*🌹🌹राधास्वामी!! - हुजूर राधास्वामी दयाल की दया व मेहर से आज से हम [भागवद् गीता के उपदेश]【 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज आनंदस्वरूप साहब जी】 द्वारा रचित , शुरू करने जा रहे हैं । उन दाता दयाल के चरणों में प्रार्थना है कि हमसे टाईपिंग करते समय अनजाने में कोई त्रुटि हो तो उसके लिए हम सबको क्षमा करें। राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सहाय!🌹🌹**
**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-[ भागवत गीता के उपदेश]-
।।भूमिका।।:-
(1) श्रीमद्भागवत गीता हिंदुओं के सुविख्यात महाभारत पुराण के भीष्म पर्व का एक अंश है। इस पुस्तक के रचयिता कृष्ण द्वैपायन उपनाम व्यास जी माने जाते हैं । इसमें हस्तिनापुर के प्रसिद्ध राजवंश के गृह- कलह का हाल पद्य में अत्यंत रोचक रीति से वर्णन किया गया है। इस राजवंश की दो शाखाएँ थी- एक पाण्डव कहलाती थी दूसरी कौरव। व्यास जी दोनों शाखाओं से संबंध रखते थे।।
(2) प्राय:अनुसंधानकर्ताओं का मत है कि हिंदुओं के अन्य ग्रंथों की तरह महाभारत और गीता में भी समय-समय पर कुछ न कुछ अंश बढ़ाया जाता रहा है और बहुतो का यह भी मत है कि गीता के उपदेश महाभारत पुराण के लेखबद्ध होने से पहले विद्यमान थे और व्यास जी ने उन्हें पद्य का रूप देकर अपने ग्रंथ का अंश बना लिया। जो भी हो, परंतु यह स्वीकार करने में किसी को संकोच नहीं कि महाभारत हिंदुओं की एक प्राचीन पुस्तक है । अनुसंधानकर्ताओं का अनुमान है कि यह पुस्तक आज से कम से कम ढाई हजार वर्ष पहले रची गई और गीता के विषयों और लेखनशैली से इस मन्तव्य की पुष्टि होती है। जैसे गीता में कई जगह उपनिषदो से पूरी पंक्तियाँ उद्भुत की गई है और संख्या व योग दर्शन की शिक्षा का उल्लेख किया गया है, पर यह उल्लेख पातंजल योगसूत्रो और सांख्य दर्शन की शिक्षा की अपेक्षा अपूर्ण है। इन कारणों से और साथ ही इस कारण से की उपनिषदों के छन्दों की अपेक्षा गीता के छन्द अधिक नियमित है प्रकट है यह पुस्तक उपनिषदों के और योग व साँख्य दर्शनों के मध्य काल में रची गई। इसके अतिरिक्त देखने में आता है कि गीता में व्यर्थ शब्द केवल छन्द पूरा करने के लिए जगह-जगह भरे गये हैं और कुछ शब्द (योग, ब्रह्म, बुद्धि, आत्मा आदि) अनियत अर्थ में प्रयुक्त किए गये हैं । इसके विपरीत दर्शनों की भाषा अत्यंत संगठित और संक्षिप्त है और उनमें सभी पारिभाषिक शब्द केवल नियत अर्थ में प्रयुक्त हुए हैं।
इसके अतिरिक्त गीता में वैदिक कर्मों और देवताओं की उपासना को निम्नश्रेणी में स्थान देकर मालिक की भक्ति की महिमा वर्णन की गई है जो उपनिषदों की शिक्षा के पूर्णतया अनुकूल है। और इन विषयों से संबंध रखने वाले गीता के उपदेशों के साथ मनुस्मृति की व्यवस्थाओं की तुलना करने से स्पष्ट होता है कि गीता ऐसे समय में रची गई जब हिंदू जाति का ह्रदय अत्यंत उदार था। उदाहरणार्थ गीता के चौथे अध्याय के तेरहवें और 18वें अध्याय के 41वें श्लोक में स्पष्ट रूप से वर्णन किया गया है कि वर्णो का विभाग गुणों के भेद के कारण है और मनुस्मृति की तरह कहीं भी यह नहीं कहा गया है कि वर्णो का विभाग जन्म से होता है। और क्योंकि पतंजलि मुनि का समय ईसा से लगभग 200 वर्ष पूर्व और मनु का समय ईसा से 200 वर्ष पश्चात माना जाता है इसलिए प्रकट है कि गीता का जन्म आज से लगभग ढाई हजार वर्ष पूर्व हुआ।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूरगुरु महाराज-
प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे -(47)
[ सवाल जवाब]-
(1) सवाल जिन जीवों ने सच्चे दिल से ऐसी सरन ली है कि जो कुछ होता है मालिक की मौज से होता है और सच्ची ख्वाहिश इस बात की रखते हैं कि वह कर्मों के बंधन में न पड़े, जो कुछ अच्छा और बुरा हो सब मालिक की मौज पर छोड़ दें, तो फिर जो नाकिस कर्म उनसे बनेगा उसका उत्तरदाई कौन है?- या जो ख्यालात नापसंदीदा कि एकाएक उनके दिल में पैदा हो जाते हैं और वह सच्चे दिल से यह बात चाहते हैं कि ऐसे ख्यालात कि ऐसी कार्यवाही उनसे मनसा( मन से) बाचा( वाणी से) कर्मन ( कर्म द्वारा) सरजद न हो(न बन पड़े ), तो इसकी निस्बत क्या ख्याल हो सकता है? अगर उनके जिम्में डाला जावेगा , तो वह मारे पड़े, क्योंकि वह तो बारम्बार तोबा कर रहे हैं कि हे मालिक हमारे हाथ से खोटी करनी न बने। अगर मालिक के जिम्में में रक्खा जावे तो ऐसी कार्रवाइयाँ क्यों करावेगा ? तो बावजूदे कि दिल से ऐसी सरन इख्तियार की है या करना चाहते हैं और फिर हरकात नापसंदीदा बन पडे , या एकाएक दिल में उनका ख्याल बिला सौचे पैदा हो, इसका क्या जतन है और यह क्यों पैदा होते हैं?
दूसरे वह जीव जो सरन दृढ करना चाहते हैं यह समझ लेकर कि जो सब कर्म भले और बुरे मालिक की मौज पर छोड़ दिए जावें तो निस्बत बुरे कर्मों के मालिक के जिम्में दोष आता है, और जो ऐसा बर्ताव करें कि जो कोई नेक करनी भूल चूक से (गोकि नेक कर्म इस जीव से सरजद होना एक कठिन काम बल्कि नामुमकिन है , मगर मान लो अगर मालिक की दया से बन जावे) उनसे बन पडे तो उसके वास्ते सच्चे दिल से यह विश्वास किया मालिक ने किया और जो नाकिस कर्म उनसे (जो रोजाना बनते हैं) सरजद हों, वह सच्चे दिल से अपने ऊपर ले लें कि यह हमसे हुआ और बवजह सरजद होने के अपने मालिक से माफी चाहें, तो उनके वास्ते मौका माफी है या नहीं? मतलब यह है कि:-(१) वह जीव जो कर्मों का बंधन नहीं चाहते और चरन सरन दृढ करना चाहते हैं और वह सब कर्म भले और बुरे मालिक के जिम्में रख दें।।
(२) वह जीव जो कर्मों का बंधन नहीं चाहते और चरन शरन दृढ करना चाहते हैं, अगर कोई कर्म वर्ष 6 महीने में मालिक की दया से बन पड़े तो वह मालिक के अर्पण और जो खराब कार्रवाई नित्य और हर घड़ी होती है वह अपने जिम्मे ले लें, तो इन दोनों किस्म में से वह जुगत बतला दीजिए जिससे कि जीव का सहज गुजारा हो जावे कि किस हालत में मालिक की तरफ से ज्यादा रक्षा होगी और जीवो का जल्दी काम बनेगा। क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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