*राधास्वामी!! 04-01-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-
(1) कहाँ लग कहूँ कुटिलता मन की। कान न माने गुरु के बचश की।। बुद्धि आपनी लेव सम्हारी। बचन गुरु यह मन में धारी।। -(अब अहंकार करो क्या किस से। मौत धार दम दम में बरसे।।) (सारबचन-शब्द-पहला-पृ.सं.236)
(2) सजन सँग मनुआँ कर आज प्रीति।।टेक।। छोड कुसंग करो सतसंगा। भक्ति भाव की धारो रीत।।-(राधास्वामी मेहर से काज बनावें। जावो निज घर भौजल जीत।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-18-पृ.सं.380,381)
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज
- बचन भाग 1- (5) - 21 दिसंबर 1939
- प्रातः सत्संग में मौज से शब्द पढ़ा गया - जब लग जिव जग रस चहे। सहे दुख बहु ताप।।
नीच ऊँच जोनी फिरे। काल करम संताप।। (प्रेम बिलास शब्द 133)
इस शब्द का हवाला देते हुए हुजूर ने फरमाया- पिछले दिनों अक्सर बातचीत के समय मजाकिया तौर पर मैंने मन , कन रस, और तन रस का जिक्र किया था लेकिन अब मालूम हुआ की वह बहुत भावपूर्ण था।
इस शब्द में इन रसों को जग रस नाम दिया गया है और उसके मुकाबले में भक्ति रस जिससे हमारा काज बनेगा , बताया गया है। आप इस शब्द पर जिस कदर ज्यादा विचार करेंगे उसी कदर ज्यादा आप उसको भावपूर्ण पायेंगे। नुमायश के उद्घाटन का दिन है और शब्द हमारी पुरानी बातों की ताईद करता है। इसलिए आज इस पवित्र दिन पर मैं आपको बधाई देता हूँ।।
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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