Friday, January 1, 2021

सतसंग के वचन और नाटक

 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज

- बचन भाग 1- (3)- 29 जनवरी 1938

 - बसंत के दिन सुबह सत्संग में दो शब्द व एक बचन पढ़े जाने के बाद हुजूर ने फरमाया कि मैंने पहली जनवरी की सुबह तमाम सत्संगी भाइयों और बहनों और सतसंग को नए वर्ष की बधाई दी थी।  2 जनवरी को अमृतसर में मिल खरीदी  गई और 29 जनवरी को मिल चालू की गई यह "सूत " जो मिस्टर कौडा लाये हैं , उसी मिल का कता हुआ है। मौज से आज सुबह हुजूरी बचन में भी यही पढा गया कि सत्संग में यद्यपि परमार्थ की महिमा है पर स्वार्थ भी अवश्य उसके साथ है। आज बसंत के पवित्र दिन मिली तमाम सत्संगी भाइयों और बहनों से यही अर्ज है कि वे हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी सेवा कबूल फरमावें। यह सुनने पर सारे सतसंगी जोर से राधास्वामी बोल उठे।        

                         

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【 शरण आश्रम का सपूत】

 कल से आगे:-                      

  मुझे मालूम हुआ है कि जब आप इंग्लैंड से मायूस हो गये थे तो श्रीमती रीटा ने , जो आपसे कतई नाआशना थी, महज तरस खाकर आपकी मदद का बार अपने जिम्मे लिया उन्होंने आपको इटली जाने के लिए तरकीब दी और अपनी बहन के नाम से पारसी चिट्ठी दी जिससे आपको अजहद मदद मिली और आपकी सब आरजूएँ पूरी हुई । आप के कारनामों का हाल सुन कर श्रीमती रीटा ने एक निहायत मुअज्जिज  अजीज व आमिर खानदान की दुख्तर है, आपसे शादी करने का मुसम्मिम इरादा कर लिया लेकिन आप अपने उस इकरार पर कायम रहे जो आश्रम से चलते वक्त आपने किया था यानी आपने बिना इजाजत अपने मुरब्बियान के शादी करने से इनकार किया।

 प्रेमबिहारीलाल! आप सत्संग के सच्चे सपूत हैं ।(चियर्ज) अगर पाँच दस और ऐसे सपूत निकल आवें तो दुनिया का आधा भार दूर हो जाय। मुझे खुशी है कि अपने रजिस्ट्रार ऑफ मैरिजेज  दयालबाग की हैसियत में आज मुझे श्रीमती रीटा के दिल को सुखी करने का मौका मिला है। वाकई जिस मुल्क में ऐसी काबिल व मर्दुम शनास  ख्वातीन पैदा होती है उसी का सितारा ओज पर होता है!  

                                                    

आज जुम्ला सत्संगी भाइयों और बहनों को मालूम हो गया है कि शरण आश्रम जारी करने के अंदर क्या मसलहत थी और हम लोगों की छोटी-छोटी कुर्बानियों से कैसे अजीमुश्शान नतायज पैदा हो सकते हैं। मैं यह  कहे बिन नहीं रह सकता कि वह दिन निहायत मुबारक था जिस दिन शरणाश्रम के जारी करने का ख्याल पैदा हुआ और वह प्रेमी भाई और बहिने मुबारक है जिन्होंने दिल खोलकर शरणाश्रम के लिए भेंट की और आज का दिन निहायत मुबारक है कि हम अपनी आँखों से गुरु महाराज की दया का इजहार मौजूदा शक्ल में देखते हैं।

(चियर्ज) क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज

- प्रेम पत्र -भाग 1-

 कल से आगे

:-पर जो जीव की आप से न चेते यानी आँख खोल कर अपने और जगत के हाल को न देखें और उससे अपनी बेहतरी के वास्ते नतीजा और तदबीर ना निकाले और जो उनको दूसरे लोग समझावें और चितावें तो भी समझ बूझ नहीं लाते और होशियार नहीं होते यानी संसार के कारोबार और भोग बिलास में हैवानो की तरह से लिपटे रहना पसंद करते हैं , तो ऐसे जीवो के संभाल और तरक्की के वास्ते वह  मालिक समरथ दयाल आप तदबीर करता है, यानी जब ऐसे जीवों की कसरत हो जाती है तब , जैसा कि चौथे सवाल के जवाब में लिखा है,  अकाल और मरी और बीमारी भेज कर अचेत और गाफिल जीवों को संभालता है, और जो काम कि परमार्थी जीव अपनी खुशी और उमंग के साथ करके मालिक की दया और बख्शिश हासिल करते हैं , वही काम, थोड़े और बहुत , इन गाफिल जीवों से करा लेता है, जैसे कम खाना और जागरण करना, और दुनियाँ और कुटुम्ब परिवार का मोह कम करना और भागों में कम बरतना, और मान और अहंकार को तोड़ना, और दीनता और गरीबी की चाल में बरतना, और मालिक और मौत की याद करना, और दुनियाँ और अपनी देह और कुटुँब और सामान से किसी कदर चित्त में वैराग्य रखना या उदासीन रहना वगैरह।

क्रमशः   

                                     

  🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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