Saturday, January 2, 2021

सतसंग शाम DB 02022021

 **राधास्वामी!! 02-01-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-

  (1) मन के घाट बैठ स्रुत घर की सुद्ध बिसारी। इंद्रियन सँग भरमाय फँसी अब भोगन लारी।।-(काल करम के जाल में यह फिर फिर भौ अटकाय।। साध सँग ले गुरु ज्ञान बिचारी।।) (प्रेमबानी-4-शब्द-4-पृ.सं.68,69,70)   

                               

(2) सुन सुन रह्या न जाय महिमा सतगुरू की।।टेक।। मछरी पडी भवँर के माहीं बहती बेबस धार। ठहरन को कहिं ठौर न पावे मछुआ खडा रे किनार।। -(सतगुरु पुरुष सूजान हैं रे राधास्वामी के औतार। प्रीति करा जिव बन्द छुडावें आस त्रास दें टार।।(प्रेमबिलास-शब्द-117-पृ.सं.174)                                                            

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।       🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

**राधास्वामी!!                                 

    02-01- 2021-

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-( 110)-

 यह समझ में आ जाने पर की आत्मा और परमात्मा का जौहर एक ही है और दोनों के गुण एक से हैं संत सतगुरु की श्रेष्ठता का समझ लेना कठिन नहीं रहता। और फिर सच्चे साध संतों और फकीरों की वो महिमा, जो भक्ति- मार्गों में की जाती है, असह्य नहीं प्रतीत होती क्योंकि तब समझ में आ जाती है कि साधारण मनुष्यों की आत्मा तो सोई हुई है, केवल जीवात्मा (जो अल्प है)  जागृत् है और महापुरुषों की आत्मा प्रबुद्ध है और अपने भंडार से मिली है। और भक्ति- मार्ग पर चलना क्या है ?  अल्प जीवात्मा का प्रबुद्ध आत्मा की भक्ति और सेवा करके अपनी सोई हुई आत्मा को जागृत कराने की चेष्टा करना है। ऐसा जीवात्मा भक्त कहलाता है। ऐसी प्रबुद्ध आत्मा संत सतगुरु कहलाती है। जोकि प्रबुद्ध आत्मा और सच्चे मालिक का जौहर एक ही है इसलिए भक्तजन अपने संत सतगुरु को उनके असली जौहर के गुणों को ध्यान में रखकर मालिक या खुदा कहता है । और जब उसे अपने अंतर में आत्मज्ञान की झलक दृष्टिगत होने लगती है तो विवश होकर पुकार उठता है:-                                      

मन नियम वल्लाह याराँ मन नियम । मन नियम यारस्त अज़ सर ता कदम।                    

   वक़्त बूदह अस्त कि ईं कोरचश्म। ददख़ुदी  मखमूरो महबे बीमो खश्म ।                          

 फाइलो मफऊल दीदे खेश रा। अंगबीं पिन्दाश्त जख्मे नेश रा।।                                   

चूँ  रशीदम् दर हुजूरे मुर्शिदम्। क़हक़हा दीवार गश्ता मुनहदम्।।                             

  यक बयक जुलमात शुद् अज़ चश्म दूर। आँ खुदी रा खत्म शुद दौरो फ़ुतूर।।                  

अर्थ:- मैं नहीं हूँ, अल्लाह की कसम, हे मित्रों! मैं नहीं हूँ। मैं नहीं हूँ, सिर से पैर तक यार ही यार है । एक समय था जब यह अंधा अहंकार से उन्मक्त था और भय और क्रोध से ग्रस्त था , अपने आप को कर्ता और कर्म देखता था और डंक के जख्म की पीड़ा को मधुर रस समझता था । जब मैं अपने सतगुरु के चरणो में पहुँचा और मेरे तथा सत्य के बीच जो जंगी दीवार खड़ी थी गिर गई तो एकदम मेरे नेत्रों से अंधकार हट गया और उस अहंकार अर्थात् आपे के प्रभाव और उत्पाद का अंत हो गया।।  

        

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


🙏✌️🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


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