Friday, January 8, 2021

वचन उपदेश और भागवत गीता

 **परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज -भाग 1- कल से आगे-(7) - 22 दिसंबर 1939-


 आज रात सत्संग के बाद करीब 8:00 बजे चार  अंतर्जातीय विवाह हुए जिनमें से एक विवाह रायबहादुर गुरु चरण दास मेहता प्रेसिडेंट राधास्वामी सत्संग सभा के सुपुत्र का था। आप दिल्ली के मशहूर डेंटिस्ट हैं। हुजूर मुअल्ला ने दूल्हे का चाचा बनकर मजाक में यह फरमाया कि प्रेमी भाई प्रेम स्वरूप की शादी में उनके चाचा प्रेमी भाई ज्योति स्वरूप जी ने सेहरा गाकर पढा था। मुझको सेहरा गाना तो नहीं आता। अलबत्ता चाचा की हैसियत से मैं दूल्हे का सेहरा (फूलों का हार ) पहना जरूर रहा हूँ। इस लिहाज से चाचा होने का फर्ज अदा कर रहा हूँ। हुजूर ने वर और और वधू के गलों में फूलों के हार पहनाये। फिर हुजूर ने वरों और वधूओं की ओर मुखातिब होकर फरमाया कि आज आप लोगों का रिश्ता पुरुष और स्त्री का हो गया ।

आपको चाहिए कि आप लोग जिंदगी में संयम का जीवन व्यतीत करें और स्वार्थी काम एक दूसरे के लाभ को ध्यान में रखकर करें और परमार्थी कार्रवाई में भी एक दूसरे का साथ दें और मुवाफिकत करें और प्रेम व मोहब्बत से हमेशा रहे । अगर आप साहिबान इन बातों पर अमल करें तो आप साहिबान की तमाम जिंदगी आराम से गुजरेगी । आपकी औलाद भी खूबसूरत तंदुरुस्त और मालिक की भक्त होगी।  संगत भी इससे फायदा उठावेगी और सेवा के इनाम में आपको हुजूर राधास्वामी दयाल की दया और प्रसन्नता प्राप्त होगी ।

एक बात और आपके सामने पेश करता हूँ कि आज से आप कोई पवित्र प्रतिज्ञा अपने दिल के अंदर कायम करें और उसके पूरा करने के लिए कोशिश करें । आप में से हर वर वधु को अपने मां-बाप का उसी तरह आज्ञाकारी रहना चाहिए जैसा कि शादी से पहले रहते थे। उनको यह कहने का मौका न मिले शादी करने और घर में बहू आने के बाद उनका लड़का उनके हाथों से निकल गया। याद रखिये कि आपने यह प्रण तमाम संगत के सामने किया है । इसलिए इस पर कायम रहना आपका जरूरी कर्तव्य हो जाता है।

क्रमशः

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 -[भागवद् गीता के उपदेश] कल से आगे-(9)-

परंतु भक्ति मार्ग में पदार्पण पर करना हर किसी के बस की बात नहीं । इस मार्ग पर चलने के लिए विशेष अधिकार की आवश्यकता है। मनुष्य का हृदय हर प्रकार के राग द्वेष से मुक्त और शुद्ध होना चाहिए और उसे हर वस्तु और हर दशा को, चाहे वह प्रिय हो या अप्रिय, शुभ हो या अशुभ ,उसे विशुद्ध पुरुष का आभास समझना चाहिये और सुख दुःख , आदर निरादर, जो कुछ सिर पर आवे शांत चित्त से सहन करते हुए अपने धर्म का पालन करना चाहिये। और चूँकि प्रकट है कि यह अधिकार बिना विशेष साधन किये मनुष्य के अंतर में उत्पन्न नहीं हो सकता, इसलिए परामर्श दिया गया है कि प्रेमी प्रमार्थी उचित साधन करके अपना मन एकाग्र और बुद्धि स्थिर रखने का अभ्यास करें।।

                                                            

  (10)- गीता के रचयिता ने अपने सिद्धांत सर्वसाधारण के सामने ओजस्वी और प्रभावशाली रूप से उपस्थित करने में पूर्ण योग्यता दिखलाई है । पहले तो उसने संवाद (प्रश्नोत्तर ) की शैली का प्रयोग किया है जो अत्यंत प्रभावपूर्ण उपयोगी है।  दूसरे उसने लिए श्रीकृष्ण जी और अर्जुन जैसे पात्र चुने हैं और तीसरे घटनास्थल के लिए रणभूमि का उपयोग करके प्रकृत विषय को विशेष लाल्यित प्रदान कर दिया है ।।                                           

पांडव पाँच भाई थे - युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव।  उनसे महाराजा धृतराष्ट्र के बेटों ने, जो कौरव कहलाते थे और जो पांडवों के चचेरे भाई थे , हस्तिनापुर का सिंहासन , जिसके वे पूरे उत्तराअधिकारी थे, छीन लिया और उनके विनाश के लिए तरह-तरह के उपाय किये। अंत में निश्चय हुआ कि पांडव कौरवो से अपनी पैतृक संपत्ति खड़ग् के बल से लौटा लें। अतः कुरुक्षेत्र के मैदान में उभय पक्ष की सेनाएँ  एकत्रित हुए और वह दिन आया कि दोनों पक्ष अपने अपने भाग्य का निर्णय करें । एक और से दुर्योधन, जो कौरवों का सरदार था, रणक्षेत्र में निकला । दूसरी और अर्जुन अपने रथ में सवार होकर आगे बढ़ा। अर्जुन का रथ हाँकने वाले श्रीकृष्ण जी थे।

 इधर दुर्योधन अपनी सेनाओं को पांडवों की सेनाओं की अपेक्षा तुच्छ देखकर घबरा जाता है।  उधर अर्जुन अपने गुरु द्रोणाचार्य और निकट संबंधियों और परिजनों को मरने मारने पर तुला देखकर व्यग्रचित हो जाता है।  दुर्योधन का दिल बढ़ाने के लिए उसके सेनापति भीष्म पितामह अपना महान् शंख बजाते हैं, जिसे सुनकर सैकड़ों शंख और नक्कारे बजने लगते हैं और अर्जुन को समझाने के लिए श्री कृष्ण जी संभाषण प्रारंभ करते हैं।

 क्रमशः                      

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र -भाग 1- कल से आगे :-

तो वह प्रेमी ऐसी समझ कि कुल अपनी करतूत को मालिक की मौज के साथ संबंध जाहिर करें ठीक-ठीक धारण नहीं कर सकता है । उसके अंदर में जो पाप है नाकिस कर्म की वासना पैदा होती है या उससे ऐसे कर्म अनजाने जाहिर हो जाते हैं, तो अभी उसकी पुरानी आदत दूर नहीं हुई और न उसके मन में पूरी सफाई आई है, और न मन और सुरत उसके इस कदर जागे हैं कि ऐसी तरंगों को उठने न देवे या फौरन रोक लेवें। तो ऐसे प्रेमी को चाहिए कि नेक कामों को मौज और दया के आसरे और हवाले करके और जो करतूत नाकिस बने तो उसकाभागt जहूर अपने पिछले नाकिस कर्मों के सबब से या अपने मन की मलिनता की वजह से समझ कर उस पर शरमावे और पछतावे और चरणों में राधास्वामी दयाल के प्रार्थना करता रहे और अपना अभ्यास ध्यान और भजन का दुरुस्ती के साथ करता रहे, तो अलबत्ता उसकी हालत आहिस्ता आहिस्ता बदलती जावेगी और जो कसूर उससे ऐसी सूरत में बनेंगे वह भी राधास्वामी दयाल अपनी मेहर और दया से माफ फरमावेंगे। क्रमशः      

                                                                 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


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