*लंका को जलाने का विधि द्वारा विधान क्यों रचा गया किसके श्राप से जली थी लंका*.....??
*संकलन प्रस्तुति - कृष्ण मेहता
लंका दहन रामचरित मानस का एक महत्वपूर्ण प्रसंग है ! यह सर्व विदित हैं कि हनुमान जी ने लंका को जलाकर भस्म कर दिया था! लेकिन लंका को जलाने का विधि द्वारा विधान क्यों रचा गया ? यही कारण था या फिर इसके पीछे कोई ऐसी वजह है जिसके बारे में अधिक लोग नहीं जानते हैं. दरअसल मां पार्वती के श्राप के कारण रावण की सोने की लंका जलकर राख हो गई थी !
कथा कुछ यूं हैं कि एक बार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी मां पार्वती के निमंत्रण पर कैलाश पहुंचे. इस दौरान मां लक्ष्मी ठंड से ठिठुर रही थी. जब उनसे न रहा गया तो उन्होंने पार्वती जी से कहा कि आप राजकुमारी होते हुए भी इस हिम-पर्वत पर इतने ठंड में कैसे रह रहीं हैं? इससे मां पार्वती को बहुत दुख है।
कुछ दिनों बाद शिव और पार्वती देवी लक्ष्मी के बुलावे पर बैकुंठ धाम पहुंचे. बैंकुठ धाम का वैभव देखकर मां पार्वती ने शिव से भी अत्यंत भव्य महल बनाने की इच्छा जताई. शिव ने देवशिल्पी विश्कर्मा को लंका बनाने का काम सौंपा ! . इसके बाद ही उन्होंने सोने के महल का निर्माण किया था !
इस महल की वस्तुप्रतिष्ठा की पूजा के लिए ऋषि विश्रवा को बुलाया गया था लेकिन वह महल की सुंदरता के दीवाने हो गए और उन्होंने यह महल ही शिव से दान में मांग लिया. शिव ने ऋषि विश्रवा को यह महल दान कर दिया.।।
मां पार्वती इससे बड़ी क्रोधित हुई और उन्होंने विश्रवा को श्राप देते हुए कहा कि तेरी यह नगरी भस्म हो जाए. पार्वती के श्राप के कारण ही रावण द्वारा रक्षित वह लंका हनुमान ने फूँक डाली थी. गौरतलब है कि श्रषि विश्रवा ही रावण के पिता थे !
2. क्यों नहीं नष्ट हो रही थी लंका ..............??
जब हनुमान जी लंकेश रावण की लंका को जला रहे थे तब एक बहुत ही विस्मयकारी घटना हुई लंका में आग लगती और लंका को बिना हानि पहुंचाए अदृश्य हो जाती थी l तब महावीर हनुमान जी चिंतित हो उठे की क्या रावण द्वारा अर्जित पुण्य इतने प्रबल है अथवा मेरी भक्ति में ही किसी प्रकार की कमी है !
जब श्री हनुमान जी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम का सुमिरन किया तब भगवान श्री राम की कृपा से ज्ञात हुआ की "हे हनुमान जिस लंका को तुम जला रहे हो वह माया रचित है, प्रतिबिम्ब है l असली लंका तो माँ पार्वती के हाथों शनिदेव की दृष्टि से पूर्व में ही ध्वस्त हो चुकी है l शनि देव लंका के तल में है इसीलिए ये प्रतिबिम्ब (लंका) नष्ट नहीं हो रही"! तब हनुमान जी महाराज ने जाकर शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराते है l शनि देव के बाहर आते ही ज्यो ही उनकी दृष्टि उस बिम्ब लंका पर पड़ी वह धू-धू कर जलने लगी क्योंकि माँ पार्वती के मन में लंका को स्वयं ध्वस्त करने का दुःख थाl उसी के फलस्वरूप माँ पार्वती ने अपने मन का बिम्ब रावण को दिया था /प्राप्त हुआ था.
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उसी प्रकार मनुष्य जब अपने सत्कर्म भूल कर दुष्कर्म में प्रवृत्त हो माया रुपी सुखों की रचना कर उन्ही में डूब जाता है, सुमिरन भूल जाता है तब शनि देव उसे अपना अस्तित्व और कर्म याद करवाते है इसी लिए उन्हें न्यायाधीश कहा जाता है।
।। जय श्री शनिदेव ।।
।। जय बजरंगबली ।।🙏🙏
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