क्यों अंडाकार है शिवलिंग? / प्रस्तुति -- कृष्ण मेहता*
ब्रहा ;विष्णु और महेश ये तीनो देवता सृष्टि की सर्वशक्तिमान हैं।इनमें भगवान शंकर सर्वोच्च और सर्वशक्तिमान है। यही वजह है कि सभी देवी देवातओ की पूजा मूर्ति या तस्वीर रूप में की जाती है लेकिन भगवान शंकर की पूजा के लिए शिवलिंग को पूजा जाता है।शिवलिंग भगवान शिव का प्रतीकात्मक रूप हैं। भगवान शिव का कोई स्वरूप नहीं है, उन्हें निराकार माना जाता है। 'लिंग' के रूप में उनके इसी निराकार रूप की आराधना की जाती है. सनातन धर्म परिवार
शिवलिंग_का_अर्थ - 'लिंगम' शब्द 'लिया' और 'गम्य' से मिलकर बना है।जिनका अर्थ 'शुरुआत' और 'अंत' होता है। चूंकि यह माना जाता है कि शिव से ही ब्रह्मांड प्रकट हुआ है और यह उन्हीं में मिल जाएगा। अतः शिवलिंग उनके इसी रूप को परिभाषित करता है।
शिवलिंग में विराजे है तीनों देवता - शिवलिंग में में तीनो देवता का वास माना जाता है। शिवलिंग को तीन भागो में बांटा जा सकता है। सबसे निचला हिस्सा जो नीचे टिका होता है दूसरा बीच का हिस्सा और तीसरा शीर्ष सबसे ऊपर जिसकी पूजा की जाती है।
इसमें समाए त्रिदेव - इस लिंगम का निचला हिस्सा ब्रह्मा जी (सृष्टि के रचयिता), मध्य भाग विष्णु (सृष्टि के पालनहार) और ऊपरी भाग शिव जी (सृष्टि के विनाशक) हैं। इसका अर्थ हुआ शिवलिंग के जरिए त्रिदेव की आराधना हो जाती है।
शिवलिंग में विराजे है शिव और शक्ति एक साथ - एक अलग मान्यता के अनुसार लिंगम का निचला हिस्सा स्त्री व ऊपरी हिस्सा पुरुष का प्रतीक होता है। इसका अर्थ हुआ इसमें शिव और शक्ति साथ में वास करते हैं।
अंडे की तरह आकार
शिवलिंग के अंडाकार के पीछे आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनो कारण है
आध्यतामिक कारण
आधायात्मिक दृष्टि से देखे तो शिव ब्राहाणम्ड के निर्माण की जड़ है मतलब शिव ही वो बीज है जिससे पूरा संसार बना एसलिए शिवलिंग का आकार अंडे जैसा है।
विज्ञान के अनुसार सनातन धर्म परिवार
विज्ञान के अनुसार बिग बौग थ्यौरी कहती है कि ब्रहाण्ड का निमार्ण अंडे जैसे छोटे कण से हुआ है।हम शिवलिंग के आकार को इसी अंडे के साथ जोड़कर देख सकते हैं।
शिव ही क्यों सर्वशक्तिमान - क्या है कहानी
स्वर्ग में ब्रह्मा और विष्णु आपस में बात कर रहे थे कि शिव कौन इसी बीच उनके सामने एक स्तंभ आकर खडा हो गया दोनो ही देवता इसकी उत्पत्ति और अंत ढूढने लगे लेकिन नहीं मिला। आखिरकार हारकर दोनो ने स्तंभ के आगे प्रार्थना की वो अपनी पहचान बताए तब भोलेनाथ अपने असली रूप में आए और उन्हें अपनी पहचान बताई. शिव के इस रूप को लिंगोद्भव मूर्ति कहा जाता है।
तीन रूपों की पूजा
ईश्वर की रूप, अरूप और रुपारूप तीन रूपों की पूजा की जाती हैं।शिवलिंग रुपारूप में आता है, क्योंकि इसका रूप है भी और नहीं भी।
शिवलिंग पर जल क्यों चढाया जाता है,आध्यात्मिक कारण
शिवलिंग पर जल चढाने की परंपरा सालो से है और हम सभी शिवलिंग पर जल चढाते है। लेकिन हममे से कम ही लोग जानते है कि इसके पीछे का कारण क्या है। दरअसल समुद्र मंथन के दौरान हलाहल (विष) से भरा पात्र भी निकला था। सभी को बचाने के लिए शिवजी ने इस विष को ग्रहण कर लिया था।इसी वजह से उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है। विष पीने के कुछ देर बाद भोलेनाथ के शरीर में गर्मी बढ़ गई।इसे कम करने के लिए सभी देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया था।यही परंपरा आज भी चली आ रही हैं।
वैज्ञानिक कारण
शिवलिंग अपने आप में अनंत ऊर्जा का वाहक है जिससे निरंतर असीम ऊर्जा का प्रवाह होता रहता है ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार किसी परमाणु रिएक्टर से होता है उसी ऊष्मा और ऊर्जा को शांत करने के लिए शिवलिंग पर निरंतर चल अभिषेक करने की परंपरा चली आ रही है जोकि हमारे वैदिक ऋषि मुनियों द्वारा बनाई गई वैज्ञानिक परंपरा है।
No comments:
Post a Comment