संतोष भारतीय एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में सुपरिचित हैं. वह सांसद भी रहे. लेकिन संसद में गये ज्यादातर पत्रकारों की तरह राज्यसभा में नामांकित या चयनित होकर नहीं. सीधे जनता से निर्वाचित होकर वह सन् 1989 में लोकसभा के सदस्य बने. इस तरह पत्रकारिता और राजनीति, दोनों के अंतःपुर को उन्होंने बहुत गहराई से जाना-समझा है. / (उर्मिलेश )
अपनी नयी किताब–“वीपी सिंह, चंद्रशेखर,सोनिया गांधी और मैं”(प्रकाशक: Warrior’s Victory, Page-475, संपादन: Prof Fauzia Arshi) के 37 अध्यायों में वह वीपी सिंह, चंद्रशेखर और सोनिया गांधी जैसे बड़े राजनेताओं के जरिये हमारे आधुनिक इतिहास के बेहद महत्वपूर्ण और दिलचस्प दौर की कहानी कहते हैं. यह उनकी आंखों देखी या कानों सुनी कहानी है. इस इतिहास-कथा के वह स्वयं प्राथमिक स्रोत हैं.
पुस्तक में इस इतिहास-कथा के बहुत सारे ब्योरे हैं. घटनाओं और फैसलों के बहुत सारे जाने और अनजाने पहलू हैं. इस दौर को ‘कवर’ करने वाले अनेक पत्रकार भी इतने सारे ब्योरे और घटनाक्रम से जुड़े इतने तथ्यों को नहीं जानते रहे होगे. इसके वाजिब और ठोस कारण भी हैं.
संतोष भारतीय कई ऐसे महत्वपूर्ण और नाजुक राजनीतिक घटनाओं और फैसलों में स्वयं भी एक किरदार हैं.
उदाहरण के लिए कांशीराम और वीपी सिंह की सन् 1988 की अहम् मुलाकात के बारे में संतोष भारतीय जो तथ्य प्रस्तुत करते हैं, वह बहुतों को नहीं मालूम हो सकता था. वजह ये कि दोनों नेताओं को मिलाने वाले व्यक्ति संतोष भारतीय ही थे.
पुस्तक में ऐसे बहुत सारे वाक़ये और घटनाक्रम बहुत रोचक ढंग से दर्ज किये गये हैं. इसीलिए मैने इस पुस्तक को इतिहास-कथा कहा.
पुस्तक में चंद्रशेखर और सोनिया गांधी से जुड़े राजनीतिक प्रसंगों की भी एक से बढ़कर एक महत्वपूर्ण कथाएं हैं.
एक और बात के लिए इस किताब की तारीफ करनी पड़ेगी. संतोष जी को जिन लोगों ने पिछली सदी के अस्सी और नब्बे दशक या कुछ बाद में एक पत्रकार और एक राजनीतिक व्यक्ति के तौर पर देखा है, उनके दिमाग में उनकी छवि वीपी सिंह, चंद्रशेखर और कमल मोरारका आदि के बेहद नजदीकी व्यक्ति के रूप में होना स्वाभाविक है. लेकिन इस पुस्तक में वह जिस तरह तथ्यों को सामने लाते हैं, उससे उनका पत्रकार ही ज्यादा प्रभावी होकर उभरता है.
प्रधानमंत्री के तौर पर वीपी सिंह के योगदान के साथ उनकी कुछ भयानक विफलताओं और राजनीतिक कमजोरियों को भी वह सामने लाते हैं.
निस्संदेह, एक पत्रकार और राजनीति में सक्रिय रहे एक व्यक्ति द्वारा तमाम राजनीतिक-हस्तियों से अपनी नजदीकियों और अपनी स्मृतियों की रोशनी में लिखी यह पठनीय ‘इतिहास-कथा’ है. पुस्तक पर बाकी बातें फिर कभी.
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