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*"करता" करे न कर सकें,*_
_*"गुरु" करे सो होय!*_
*तीन "लोक" नव खण्ड में,*_
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_*"गुरू" कोई "व्यक्ति" नहीं, कोई "शरीर" नहीं, "गुरू" एक "तत्व" है, एक "शक्ति" है।
"गुरू" "सच्चा" "शब्द" हैं। "
गुरू" "सच्चा" "नाम" हैं। "गुरू" एक "भाव" है, "गुरू" "श्रद्धा" है।
"गुरू" "समर्पण" है।आपका "गुरू" आपके "व्यक्तित्व" का "परिचय" है।
"कब" "कौन", "कैसे" आपके लिए "गुरू" "साबित" हो यह आप की "दृष्टि" एवं "मनोभाव" पर "निर्भर" करता है।
"गुरू" "प्रार्थना" से मिलता है। "गुरू" "समर्पण" से मिलता है, "गुरू" "दृष्टा" भाव से मिलता है।*_
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