[6/26, 10:29] Agra: एक बार सतगुरु जी का दरबार सजा हुआ था। *कर्म-फल* के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो *प्रारब्ध* है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि
अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है।
वचनों के पश्चात मेहर हुई कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे।
एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु मैं बहुत गरीब हूँ। मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ उसकी भावना को देखकर सतगुरु जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि ,तुझे लखपति बनाया और ऐसे ही दूसरे गुरुमुखों ने भी मांगा।
उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे। उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा रायबुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो, उसने हाथ जोड़कर खड़े होकर प्रार्थना की कि प्रभु मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं है। परन्तु मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न हो गया है। अगर आपकी कृपा हो तो मेरा सन्देह दूर कर दें, प्रार्थना है कि प्रभु अभी-अभी आपने वचन फरमाये हैं कि प्रारब्ध से कम या अधिक किसी को नहीं मिलता अपने कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भुगतना ही पड़ता है तो मेरे मन में सन्देह हुआ कि अभी जिसे आपने लखपति होने का आशीर्वाद दिया है, जब इनकी तकदीर में नहीं है तो आपने कहां से दे दिये?
सतगुरु जी ने सेवक द्वारा एक कोरा कागज़, मोहर वाली स्याही मँगवाई और अपनी अँगुली की अंगूठी उतार कर रायबुलारदीन से फरमाया कि बताओ इस अँगूठी के अक्षर उल्टे हैं कि सीधे ?
उसने उत्तर दिया कि उल्टे हैं सच्चे गुरुदेव, फिर स्याही में डुबो कर कोरे कागज़ पर मोहर छाप दी अब पूछा बताओ अक्षर उल्टे हुये है कि सीधे।
उत्तर दिया कि महाराज अब सीधे हो गये हैं।
वचन हुये कि तुम्हारे प्रश्न का तुम्हें उत्तर दे दिया गया है, उसने विनय की भगवन मेरी समझ में कुछ नहीं आया।सतगुरु जी
ने फरमाया जिस प्रकार छाप के अक्षर उल्टे थे लेकिन स्याही लगाने से छापने पर वह सीधे हो गये हैं। इसी तरह ही जिस जीव के भाग्य उल्टे हों और अगर उसके मस्तक पर *सन्त सत्गुरु* के चरण कमल की छाप लग जाये तो उसके भाग्य सीधे हो जाते हैं।
*सन्त महापुरुषों* की शरण में आने से जीव की किस्मत पल्टा खा जाती है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने चार वेद रचे इसके बाद जो स्याही बच गई वे उसे लेकर भगवान के पास गये उनसे प्रार्थना की कि इस स्याही का क्या करना है ?
भगवान ने कहा इस स्याही को ले जाकर सन्तों के हवाले कर दो उनको अधिकार है कि वे लिखें या मिटा दें या जिस की किस्मत में जो लिखना चाहें लिख दें।
*इसलिये जो सौभाग्यशाली जीव *सतगुरु की चरण शरण* में आ जाते हैं। सतगुरु के चरणों को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। सभी कार्य उनकी आज्ञा मौजानुसार निष्काम भाव से सेवा करते हैं *सुमिरण करते* हैं निःसन्देह यहाँ भी सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं और कर्म बन्धन से छूटकर आवागमन के चक्र से *आज़ाद होकर मालिक के सच्चे धाम मोक्ष को प्राप्त करते हैं।*,*🌿🌴🌴🌿*
🙏🙏
राधास्वामी
सवाल एक गैर सतसंगी का सतसंगी से,
यह वाक्या 2018 का है एक जिला सतसंग का
देहात की ब्रांच में आयोजन किया गया, जहाँ कम से कम 12-14 ब्रांच के सतसंगी भाई बहन और बच्चों ने भाग लीया,
सभी अपने अपने बाहन से गये,
एक ब्रांच के सतसंगी उस ब्रांच का मै नाम नहीं लेना चाहता हूं, बस से गये,
जहाँ सतसंग का आयोजन हो रहा था उसके पास में कोई गगां का घाट था और उस ब्रांच के सतसंगी अपनी बस लेकर गंगा स्नान करने के लिए गयें,
और यह बात वहाँ के गैर सतसंगी लोगों को पता चल गई ,
तो एक गैर सतसंगी ने चार पांच सतसंगीयों से यह सवाल किया
1- सवाल गैर सतसंगी का
आप यह बताईये कि राधास्वामी मत की क्या विशेषता है,
जबाब सतसंगी का
राधास्वामी मत संत मत है, इस मत में आने पर काल के जाल से छुटकारा मिल जाता है, चोरासी के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है,
2-
सबाल गैर सतसंगी का
मैंने यह सुना है कि राधास्वामी मत बाले किसी और देवी देवताओं की पूजा नही करते हैं,
जबाब सतसंगी का
जी हाँ आपने सही सुना है, हम लोगों का इस्ट देहधारी गुरु हैं हम उन की ही पूजा करते हैं,
हमारी रीति रिवाज, सब अलग है और वह संसारी लोगों से मेल नहीं खा सकते है,
3-
सबाल गैर सतसंगी का
आप यह बताओ कि आप तो राधास्वामी मत में आ कर काल के जाल से बच गये, और आपने अपने बच्चों को काल के जाल में डाल दिया, काल के हलाले कर दिया,
आप कैसे सतसंगी हो कैसे माँ बाप हो कि अपनी ही औलाद के दुश्मन हो गये,
आपको बुरा लग रहा होगा साहब पर मै इसलिए कह रहा हूँ कि मैने सतसंगी के बच्चों को सतसंग में जाते नहीं देखा है,
मैंने सतसंगीयों के बच्चों को पुजा पाठ करते देखा है,
और आप अपने बच्चों की शादीया भी हम गैर सतसंगी लोगों की तरह करते हो,
दहेज लेते हो और देते हो,
और पंडित, हवन, पूजा पाठ, सारे रस्म रिवाज हम गैर सतसंगी जैसे करते हो,
फिर आप झुठ क्यो वोलते हो,
और साहब मै आपको ऐसे बहुत लडके और लडकीया दिखा दूं आपके कि उनकी शादीया गैर सतसंगी परिवार में हुई है और वह पुजा पाठ करते हैं और न कभी दयालबाग जाते हैं, न सतसंग जाते हैं,
आपकी बेटीयाँ आपके गैर सतसंगी दामादों के साथ मंदिर जाती है, और आपके बेटे और बहु मंदिर जाते हैं,
और आप कह रहे हो कि इस मत में आने पर काल के जाल से छुटकारा मिल जाता है चोरासी के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है, तो कैसे मान ले कि आप सही कह रहे हो
और आपके यहाँ जब किसी का पुत्र पैदा होता है तो सारी रस्म रिवाज हमारी जैसी ही होती है,
और आपके यहाँ जब किसी की मृत्यु होती है तो सारे कर्म कांड हम गैर सतसंगी जैसे होते हैं,
पंडित, हवन, मृत्यु भोज सब कुछ होता है,
तो साहब आप दोगली बात क्यो करते हो,
सतसंगी हो कर झुठ क्यो बोलते हो,
देखो साहब मै काफी दिनों तक सतसंग में बैठा हूँ, जिज्ञासु की रीति से, तो मुझे यह सब वहाँ देखने को मिला,
तब मैंने सोचा कि हम गैर सतसंगी और इन सतसंगी में कोई अंतर नहीं है,
और मै गलत कह रहा हूँ तो मै आपको प्रमाण दे रहा हूँ कि एक बस भर कर सतसंगी गंगा जी नहा कर आये है अभी अभी और अब सतसंग करेंगे और प्रीत भोज करेंगे
तो बताओ हम गैर सतसंगी और आप सतसंगी में क्या फर्क रहा, क्या अंतर रहा,
अंतर तो साहब आपकी कथनी और करनी बहुत है,
तो सतसंगी भाईयों और बहनों और युवा बच्चों उस गैर सतसंगी के सवालों का जबाब उन चार पांच सतसंगी भाईयों के पास नहीं था,
और उनको अपनी नजरें झुकानी पडीं
इस वाक्या का अफसोस कि मैं चशमदीद था और आज भी मुझे उस गैर सतसंगी के वह सवालात पींडा देते हैं कचोंटते है क्यो कि उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए कि हम लोग सारे काम गैर सतसंगी जैसे करते हैं,
और जो सतसंगी बस में भर कर गंगा नहाने गये थे, जिनकी बजह से उन चार पांच सतसंगी भाईयों को अपनी नजरें झुकानी पडीं, र्समिंदा होना पड़ा, उनके लिए तो कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है,
🙏तो मेरी सभी से यह अपील है, प्रार्थना है, गुजारिश है, निवेदन है, और यह अपील मै करता रहा हूँ कर रहा हूँ करता रहूँगा कि आप सब सतसंगी भाई बहन और सतसंग का युथ इन सब बातो पर गौर करें, और जहाँ भी कोई भी ऐसी कार्यवाही करता मिले उसको फौरन रोको टोको समझाओ कि ऐसा करने से राधास्वामी दयाल की नजरों में वह सतसंगी खुद तो गिरता ही है साथ में हमारे सतसंग का स्तर भी गिरता है
[7/14, 22:41] Agra: सारबचन (नसर)
(परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज)
*बचन हज़ूरी जो कि महाराज परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी साहब ने ज़बान मुबारक से वक़्त सतसंग के फ़रमाए और जिनमें से थोड़े से वास्ते हिदायत सतसंगियों के लिखे गए।*
*132.* संत करामात नहीं दिखाते हैं, अपने स्वामी की मौज में बरतते हैं और गुप्त रहते हैं। जो स्वामी को प्रगट करना अपने भक्त का मंज़ूर होवे, तो करामात दिखावें और जो गुप्त रखना है, तो करामात नहीं दिखाते हैं, क्योंकि करामात दिखाने पर संतों को जल्द गुप्त होना पड़ता है और सच्चों का अकाज और झूठों की भीड़भाड़ होती है। इस वक़्त में करामात दिखाने का हुक्म नहीं है और जो करामात देखने की चाह रखते हैं, वह परमार्थी भी नहीं हैं।
*133 -* हिंदू और मुसलमान दोनों में जो अंधे हैं, उनके वास्ते तीर्थ, ब्रत, मंदिर और मसजिदों की पूजा है और *जिनको आँख है, उनके वास्ते वक़्त के सतगुरु की पूजा है।* हर एक के वास्ते यह बात नहीं हैं, सिर्फ़ सतसंगी को और जिनको आँख है, उन्हीं को सतगुरु की क़दर होगी।
*दृष्टान्त-* एक शख़्स है कि वह लुक़मान हकीम की तारीफ़ करता है और वक़्त के हकीम की निंदा करता है। इससे मालूम होता है कि उसको बीमारी और दर्द नहीं है। अगर दर्द होता तो वक़्त के हकीम की तारीफ़ करता, क्योंकि लुक़मान चाहे बहुत अच्छा हकीम था, पर अब कोई बीमार चाहे कि उसके नाम से रोग खोवे, तो कभी नहीं दूर हो सकता है। जब तक वक़्त के हकीम के पास न जायगा, रोग दूर न होगा। इस तरह से जो दर्दी परमार्थ का है और संसार के सुख को विष रूप देखता है और मोक्ष की चाह रखता है, सो वह जब तक कि वक़्त के पूरे सतगुरु के पास नहीं जावेगा, उसको चैन नहीं आवेगा और वही महिमा वक़्त के सतगुरु की जानेगा। और जो झूठे हैं, वह तीर्थ, ब्रत और मूरतपूजा और पिछलों की टेक में भरमेंगे और सतगुरु की महिमा नहीं जानेंगे।
*134 -* करनी और दया दोनों संग चलेंगी। दया बिना करनी नहीं बनेगी और करनी बिना दया नहीं होगी और जो दया को मुख्य करोगे, तो आलसी हो जाओगे और फिर करनी नहीं बनेगी।
*135 -* चौरासी लाख जोन भुगत कर जीव को गाय की जोन मिलती है और फिर नरदेही मिलती है। इसमें जो जीव से अच्छी करनी बनेगी, तो बराबर नरदेही मिलती चली जायेगी जब तक कि काम पूरा नहीं होगा। सो अच्छी करनी यह है कि अपने कुल की याद करना, क्योंकि जोन बदलती है पर जीव का कुल नहीं बदलता है। वह एक ही है, यानी सब जीव सत्तनाम बंसी है। सो यह बात बिना सतगुरु-भक्ति के और कोई जतन से हासिल नहीं होगी।
*136 -* अंत में जिसने जाकर बासा किया,
*वही बसंत है और वही अच्छा बसंत है और उनको ही हमेशा बसंत है जो चढ़ कर, जहाँ सबका अंत है, वहाँ बसे हैं।*
🙏🙏🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏🙏🙏
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राधास्वामी
आप सभी सतसंगी भाई बहन जी और बच्चों को यह ज्ञात होगा कि परम पूज्य हुज़ूर डां लाल साहब जी के भंडारे के शुभ अवसर पर परम पूज्य हुज़ूर के जीवन परिचय पर आधारित एक क्वज प्रतियोगिता का आंलाइन आयोजन किया गया था, इसकी लिंक खुद मैंने सभी ग्रुपों पर भेजी थी, और सभी से इसमें भाग लेने के लिए निवेदन कीया था,
फिर सभी से पूछा गया था कि जिसने भाग लिया है वह अपना नाम ब्रांच के नाम सहित भेजें
तो अभी तक केवल 6 नाम आये है,
इससे यह पता चलता है कि सतसंगी भाई बहन सतसंग के कामों में, सतसंग के प्रोग्रामों में कितनी रुचि लेते हैं और सतसंग के संस्कार अपने बच्चों को कितने देते हैं,
और ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान अपनी ब्रांचों के अंदर अपना समय कितना देते हैं,
जबकि इसमें भाग लेने के लिए आपको कहीं जाने के भी आवश्यकता नहीं थी, कोई पैसा खर्च करने के भी जरूरत नहीं थी घर पर बैठे ही इसमें भाग लीया जा सकता था,
इसी तरह इसफीया प्लांटेसन में देखा गया था कि बडोदा ब्रांच के ब्रांच सेक्रेटरी साहब परम सारस्वत ने, 1 जुलाई से कम से कम
आठ दिन पहले ब्रांच के सतसंगी भाई बहन व बच्चों को लेकर इसकी शुरुआत कर दी थी, और मैने सभी ग्रुपों पर वह सभी फोटो व वीडियो सभी को प्रोत्साहित करने के लिए भेजें थे,
और प्रे०ब० कोमल शर्मा ने यह मेसेज सभी ग्रुपों पर पास कीया था कि सभी अपनी अपनी ब्रांचों के फोटो व वीडियो भेजें, उसमें भी अधिक से अधिक 1०-12 ब्रांचों का ही आया था,
इससे तो यही समझा जा सकता है कि ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान अपनी अपनी ब्रांचों में सतसंगी भाई बहन जी और बच्चों को सतसंग के प्रोग्रामों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं करते हैं, या उनके पास समय नहीं होता है, या सतसंगी भाई बहन व बच्चे रुचि नहीं लेते हैं,
या ब्रांचों के अंदर गुटबन्दी होती है मै समझता हूँ कि इन सब की जिम्मेदारी ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान की होती है कि ब्रांचों के अंदर सतसंग के सभी प्रोग्राम सुचारू रुप से हो,
हम सभी अपने बच्चों को सभी सुविधा महगी से महगी दे सकते हैं, मगर सतसंग के संस्कार नहीं दे सकते हैं तो सब बेकार होगा आगे चलकर कर, यह हम लोगो को भलीभाँति समझ लेना चाहिए,
आप सबसे बस यही निवेदन होगा कि परम पूज्य हुज़ूर डां लाल साहब जी ने फरमाया है, सतसंग के सभी प्रोग्रामों में भाग लेकर हुज़ूर के आशीर्वाद लीजिए, 🙏
सतसंगी को सतसंग का पूरा फायदा तभी मिलेगा जब वह सतसंग पोलिसी के अनुसार चलेगा
🙏सोचिए समझिए गोंर करिये, किसी को कोई संका है तो मुझे कौल करिये
जी०एस० पाठक
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