*🌻त्याग में आनंद !*🌻 कृष्ण मेहता
एक साधु किसी नगरी में रहता था| और प्रभु-भजन करता था| लोग उनका सम्मान करते
थे| उन्हे जब-तब कोई न कोई वस्तु भेंट किया करते थे| एक दिन साधु ने अपने शिष्य से कहा - चलो बेटे ! किसी और नगर में चले| शिष्य ने कहा - नहीं,गुरु महाराज !! यहाँ बहुत चढ़ावा चढ़ता है| कुछ पैसे जमा हो जाये, फिर चलेंगे।
गुरु ने कहा- पैसे जमा करके क्या करेगा? हमें पैसे नहीं जमा करने !!
दोनों चल पड़े। शिष्य ने कुछ पैसे जमा कर रखे थे। उन्हें अपनी धोती में बांध रखा था|
चलते-चलते मार्ग में नदी पड़ गयी। एक नौका वहां थी| नौकवाला पार ले जाने के दो आने
मांगता था| साधु के पास पैसे नही थे| शिष्य देना नही चाहता था| दोनों बैठ गे। दोपहर
हो गयी,संध्या हो गयी,रात हो गयी| वे बैठे थे| रात को नाविक अपने घर जाने लगा तो
बोला - “बाबा ! तुम कब तक बैठे रहोगे? यह जंगल है,रात को सिंह इस किनारे पानी पीने आता है।अन्य पशु भी आते हैं| वे तुम्हें मार डालेंगे|”
शिष्य ने कहा--- “तुम हमें पार ले चलो”
नाविक ने कहा- ‘मैं तो दो-दो आने लिए बिना नही ले जा सकता”
शिष्य को सिंह के विचार से डर लगा ! धोती से चार आने निकालकर बोला - “अच्छा,
नहीं मानता तो ले !”
नाविक चार आने लेकर उन्हें पार ले गया| दुसरे पार पहुँचकर शिष्य ने कहा— “देखा गुरुवर ! आप तो कहते थे कि पैसा इकठ्ठा करने की आवश्यकता नही?”
*गुरूजी ने हँसते हुए कहा - सोच कर देख बेटा ! पैसा एकत्र करने में तुम्हें सुख नही मिला| पैसे देने से मिला।*
*👉सुख त्याग में है,एकत्र करने नही।*
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