विनयपत्रिका में गोस्वामीजी ने लिखा - शरीर रूपी ब्रह्मांड में प्रवृत्ति ही लंका का किला है, जिसे मन रूपी मय दानव ने बनाया है। जीव का मन ही मय दानव है। यह बड़े पते की बात है। यही मन पाप की और यही पुण्य की भी सृष्टि करता है। यही रावण की और यही युधिष्ठिर की सभा को भी सजाता है। यह सब मन का ही तो खेल है। यह मन ही पौराणिक ग्रंथों का मय दानव है
मय दानव ने अपनी बेटी का विवाह रावण से किया, गोस्वामीजी ने वहां एक बड़ा मधुर व्यंग्य किया है। उन्होंने कहा कि अगर मय ने अपनी बेटी का विवाह विभीषण से कर दिया होता तोधन्य हो जाता यही ठीक था, ऐसा ही होना चाहिए था और बाद में हुआ भी यही। वस्तुतः मंदोदरी को विभीषण की पत्नी होना चाहिए था। पर विभीषण की योग्यता जानते हुए भी मय दानव ने अपनी पुत्री का विवाह रावण से ही कियाऐसा क्यों किया उसका सीधा-सा तर्क है - लंका का राजा विभीषण नहीं, रावण बनेगाजो राजा बनेगा, उसी से हम अपनी बेटी का विवाह करेंगे। यदि उसे पता होता कि अंत में विभीषण ही राजा बनेगा तो वह ऐसी भूल न करतामन जबअपनी वृत्तियाँ मोह को अर्पित करता है, तब यदि उसे ठीक-ठीक भान हो जाए कि अंत में ईश्वर ही हमारे जीवन पर राज्य करेंगे, ईश्वर ही जीवन की सर्वश्रेष्ठ वस्तु है तो वह इन वृत्तियों को मोह की सेवा में अर्पित न करता, लेकिन हमारे मन की वृत्ति तो यही देखती है कि इस समय सिंहासन पर कौन बैठा हुआ है, सत्ता और वैभव किसके पास है, बस, वही योग्य है और वह वहीं समर्पण कर देता है, उसी की सेवा में लग जाता है मंदोदरी का विवाह रावण से हो गया। रावण हर्षित हो गयाव्यक्ति हर्षित कब होता है सीधी सी बात हैजब कोई बात हमारे मन के अनुकूल हो जाए, भोग्य वस्तु मिल जाएतब हमें हर्ष होता है और विषाद कब होता है ? रावण का विषाद है कि अक्षय कुमार मारा गया। कितनी बढ़िया बात है ! यह केवल रावण की दशा नहीं है, संसार में जितने भी मोहग्रस्त जीव हैं, सबकी यही दशा है। किसी की मृत्यु पर हमें शोक क्यों होता है ? इसलिए कि हम रावण के समान उसे अक्षयकुमार मान बैठे हैं। अगर हम उसे क्षय कुमार मानते, तब तो कोई बात नहीं थी। कबीरदासजी से किसी ने बड़े आश्चर्य से कहा - महाराज ! आज अमुक की मृत्यु हो गई उन्होंने कहा - इसमें आश्चर्य की क्या बात ? आश्चर्य तो तब होता, जब कोई अनहोनीघटनाघटजाती परंतु जो घटना नित्य हो रही है, इसमें भला आश्चर्य कैसा
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