Sunday, October 4, 2020

सतसंग संस्कृति

 सतसंग संस्कृति । 🌹🙏:

राधास्वामी!! आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-


                                   (1) भर्म की ठेंठी निकालो कान से। तब लगाओ ध्यान अनहद तान से।।-(काटते और खोदते रस्ता रहो। मरते दम तक एक दम गाफिल न हो।।) (प्रेमबानी-3-महिमा आन्नद शब्द और जुगत उसकी प्राप्ती की,पृ.सं.389)                                                         

    (2) चल री सुरत अब निज घर अपने, काहे को जग में सोती है।।टेक।। दो पद आगे और रहाने, अलख अगम तिन नाम धराने। लखे उन्हे सोई निज घर जाने, नहीं सब करनी थोथी है।।५।।-(मेहर करें जब दीनदयाला, निज घर अपना लेय सँभाला। राधास्वामी राधास्वामी नाम की माला, दम दम रहे पिरोती है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-65,पृ.सं.86-87)                                                  

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                       🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!! 04-10- 2020- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे-                                                                                                                                     (5) जोकि साधारण मनुष्य के लिए किसी दूसरे मनुष्य की आध्यात्मिक गति अर्थात पहुँच का जान लेना असंभव है इसलिए किसी प्रेमी जिज्ञासु के लिए सच्चे सतगुरु की एकदम पहचान कर लेना भी असंभव है। प्रेमी जिज्ञासु की यह कठिनाई सुगम करने के लिए राधास्वामी-मत में आज्ञा है कि वह पहले-पहल सतगुरु वक्त को केवल बड़ा भाई समझे और उनके चरणों में केवल इस तरह विनीत भाव से बर्तें जैसे संसार में एक छोटा भाई अपने बड़े भाई के साथ बर्तता है और ज्यों ज्यों उसे अंतरी अनुभव प्राप्त होने पर सतगुरु की आध्यात्मिक श्रेष्ठता और अन्तरी गति की परख आती जावे उनके चरणों में अपनी श्रद्धा और प्रेम बढ़ाता जावे, और जिस दिन उसे अपना चैतन्य स्वरूप, सतगुरु का चैतन्य स्वरुप और का निजस्वरूप एक दृष्टिगत हो उस दिन उनके चरणों में पूर्ण श्रद्धा और प्रेम स्थिर करें।।         🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻     

                        

  यथार्थ -प्रकाश-भाग-2-

परम गुरु हुजूर साहcबजी महाराज!


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