चलते रहो (चरैवेति)【१】
राजा हरिश्चन्द्र के पुत्र रोहित से देवराज इन्द्र कहते हैं ~
"रोहित ! हमने विद्वानों से सुना है कि श्रमसे थककर चूर हुये बिना किसीको धन-सम्पदा प्राप्त नहीं होती।
बैठे-ठाले पुरुष को पाप धर दबाता है।
इन्द्र उसीका मित्र है जो बराबर चलता है --- थककर , निराश होकर बैठ नहीं जाता। इसीलिए चलते रहो
( नानाश्रान्ताय श्रीरस्तीति रोहित शुश्रुम।
पापो नृषद्वरो जन इन्द्र इच्चरत: सखा चरैवेति।।)
【२】
"जो व्यक्ति चलता रहता है उसकी पिण्डलियां {जांघें} फूल देती है {अन्यों द्वारा सेवित होती है} ।
उसकी आत्मा वृद्धिंगत होकर आरोग्यादि फलकी भागी होती है तथा धर्मार्थ प्रभासादि तीर्थों में सतत चलने वाले के अपराध और पाप थककर सो जाते हैं। अतः चलते रहो।"
(पुष्पिण्यौ चरतो जङ्घे भूष्णुरात्मा फलग्रहि:।
शेरेऽस्य सर्वे पाप्मान: श्रमेण प्रपथे हताश्चरेवैति।।)
【३】
"बैठने वाले की किस्मत बैठ जाती है, उठने वाले की उठती, सोने वाले की सो जाती और चलने वाले का भाग्य प्रतिदिन उत्तरोत्तर चमकने लगता है। अतः चलते रहो।"
(आस्ते भग आसीनस्योर्ध्वस्तिष्ठति तिष्ठत:।
शेते निपद्यमानस्य चरति चरतो भगश्चरैवेति।।)
【४】
"सोने वाला पुरूष मानो कलियुग रहता है , अंगड़ाई लेने वाला पुरुष द्वापर में पहुँच जाता है, और उठकर खड़ा हुआ व्यक्ति त्रेता में आ जाता है तथा आशा और उत्साह से भरपूर होकर अपने निश्चित् मार्ग पर चलने वाले के सामने सत्ययुग उपस्थित हो जाता है। अतः चलते रहो।"
(कलि: शयानो भवति संजिहानस्तु द्वापर:।
उत्तिष्ठंस्त्रेता भवति कृतं सम्पद्यते चरंश्चरैवेति।।)
【५】
"उठकर ----- कमर कसकर चल पड़नेवाले पुरुषको ही मधु मिलता है। निरन्तर चलता हुआ ही स्वादिष्ट फलों का आनन्द प्राप्त करता है।
सूर्यदेव को देखो ! जो सतत चलते रहते हैं, क्षणभर भी आलस्य नहीं करते। इसीलिए जीवन में भौतिक और आध्यात्मिक पथ के पथिक को चाहिए कि बाधाओं से संघर्ष करता ही रहे, आगे बढ़ता ही रहे।
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