ऋषि:- प्रयोग:| देवता:-अग्नि | छंद :-गायत्री | स्वर:- षड्ज |
अग्निं वो वृधनतमधवराणाम पुरुतमम |
अच्छा नप्त्रे सहस्वते || 1 ||
पदार्थ:- राजिंदर कुमार वैदिक
हे परमात्मा का ध्यान योग यज्ञ अभ्यास करने वाले मनुष्यों ! (व्:) आप लोग (सहस्वते) अपने मन-बुद्धि को बलवान बनाने के लिए, उससे प्रशंसित ऊर्जा शक्ति कणों को उधर्वगमन कराने के लिए, (नप्त्रे ) अपने को विषय-वासनाओ रूपी पतन में न गिरने के लिए, तथा पुत्र, पोत्रों, शिष्यों को इस ध्यान योग यज्ञ अभ्यास का उपदेश देने के लिए, उन्हें दोषों से निकाल कर सद्गुणों की प्राप्ति कराने के लिए (वर्धन्त्म ) अभ्यास से बढ़ने वाले ध्यान योग यज्ञ को, जो की (अध्वराणाम ) हिंसारहित है, का अभ्यास किया करो | इस ध्यान यज्ञ को सिद्ध करने वाले (पुरुतमम ) सर्वोत्तम पालन व् पूर्ण करने वाले, सर्वव्यापक (अग्निम) प्रकाशस्वरूप परमात्मा के (अच्छ ) अभिमुख होवो, मस्तिष्क के आकाश में स्थित अंतःकरण व् प्राण की गति ठहरा कर, उसके प्रकाशित होने का इंतजार करो | जब वह उस अंतःकरण रूपी गुफा से बाहर प्रकाशित होने के लिए निकले , तो उसका प्रकाश सीधा तुम पर पड़े | उस गुफा के बाहर अपने ध्यान योय यज्ञ अभ्यास में बैठो |
मन्त्र का हिंदी काव्य:-
अपनी मन-बुद्धि का विकास-एकाग्रता बल, ऊर्जा कणों को उधर्वगमन कराने के लिए,
विषय-वासनाओं के गर्त में न गिरने के लिए, इस हिंसारहित ध्यान यज्ञ को बढ़ाने वाले ,
इसका सवोर्त्तम पालन व् पूर्ण करने वाले प्रकाशस्वरूप प्रभु का ध्यानयोगयज्ञ अभ्यास करो,
मस्तिष्क की अंतःकरण गुफा के बाहर स्थिर होकर,उसके प्रकाशित होने का इंतजार करें |
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