भारत के विभिन्न क्षेत्रों में भले ही विविध प्रकार से होली का उत्सव मनाया जाता हो अलग-अलग रस्मों से मनाया जाता हो परंतु सबका उद्देश्य एवं भावना एक ही है-भक्ति, सच्चाई के प्रति आस्था और मनोरंजन।
होली के दिन सुबह में पूजा समारोह की रस्म होती है। होली की प्रात: सुबह लोग उत्साह से रंगो से खेलते हैं। लोग पानी और रंगो में सारोबार होकर होली का त्यौहार मनाते हैं। कुछ लोग होली के अवसर पर गुब्बारों और स्प्रे का प्रयोग करके होली मनाते हैं। होली के अवसर पर लोग स्वादिष्ट पकवान बनाते हैं जिसमे से गुजिया और पुआ एक प्रमुख व्यंजन हैं। लोग नाचते गाते हैं। कई स्थानों पर जुलूस निकले देखे जा सकते हैं होली के अवसर पर मथुरा के वृंदावन में अद्वितीय मटका समारोह का आयोजन किया जाता हैं। इस समारोह में पहले ब्रज क्षेत्र के विशेष महत्व था। समारोह में दूध और मक्खन से भरा एक मिट्टी का बर्तन उचाई पर बांधा जाता हैं और समाज के लड़के मटके तक पहुचने के लिए जी तोड़ कोशिश करते हैं जिनमे से कुछ तो असफल हो जाते हैं। इस आयोजन को जीतने वाले को इनाम से सम्मानित किया जाता हैं।
रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व पारंपरिक रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन को होलिका जलायी जाती है, जिसे होलिका दहन भी कहते है। दूसरे दिन, जिसे धुरड्डी, धुलेंडी, धुरखेल या धूलिवंदन कहा जाता है, लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि फेंकते हैं, ढोल बजा कर होली के गीत गाये जाते हैं, और घर-घर जा कर लोगों को रंग लगाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी कटुता को भूल कर गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं। एक दूसरे को रंगने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद स्नान कर के विश्राम करने के बाद नए कपड़े पहन कर शाम को लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं, गले मिलते हैं और मिठाइयां खिलाते हैं। इस दिन कई तरह के पकवान बनते हैं जिसमें गुझिया, मालपुआ, दहीबड़े खास तौर पर अवश्य बनते हैं। त्यौहार के शुरू होने के पहले दिन लोग विभिन्न अनुष्ठानों की तैयारियां शुरू कर देते हैं। दो सड़कों चौराहे पर लकडि़यां रखना, स्वादिष्ट व्यंजनो की तैयारी शुरू करना होली का महत्वपूर्ण हिस्सा है। होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन की रस्म का पालन किया जाता है।
होलिका दहन-
होली की पूर्व संध्या पर होलिका दहन करते हैं। होलिका की अग्नि इकट्ठी की जाती है। होली से काफी दिन पहले से ही यह सब तैयारियां शुरू हो जाती हैं। पर्व का पहला दिन होलिका दहन का दिन कहलाता है। इस दिन चौराहों पर व जहां कहीं अग्नि के लिए लकड़ी एकत्र की गई होती है, वहां होली जलाई जाती है। इसमें लकडि़याँ और उपले प्रमुख रूप से होते हैं। कई स्थलों पर होलिका में भरभोलिए जलाने की भी परंपरा है। भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होली में आग लगाने से पहले इस माला को भाइयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है। रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आशय है कि होली के साथ भाइयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाए। लकडि़यों व उपलों से बनी इस होली का दोपहर से ही विधिवत पूजन आरंभ हो जाता है। घरों में बने पकवानों का यहाँ भोग लगाया जाता है। दिन ढलने पर ज्योतिषियों द्वारा निकाले मुहूर्त पर होली का दहन किया जाता है। इस आग में नई फसल की गेहूँ की बालियों और चने के होले को भी भूना जाता है। होलिका का दहन समाज की समस्त बुराइयों के अंत का प्रतीक है। यह बुराइयों पर अच्छाइयों की विजय का सूचक है। गाँवों में लोग देर रात तक होली के गीत गाते हैं तथा नाचते हैं।
इसके अतिरिक्त अनेक देश ऐसे हैं जहां या तो होली से मिलता-जुलता कोई पर्व मनाया जाता है या किसी अन्य अवसर पर रंग या सादे पानी से खेलने की परंपरा है।
विदेशों में होली-
सामूहिक होली धूलिवंदन
भारत ही नहीं विश्व के अन्य अनेक देशों में भी होली अथवा होली से मिलते-जुलते त्योहार मनाने की परंपराएं हैं। नेपाल में होली के अवसर पर काठमांडू में एक सप्ताह के लिए प्राचीन दरबार और नारायणहिटी दरबार में बांस का स्तम्भ गाड़ कर आधिकारिक रूप से होली के आगमन की सूचना दी जाती है। पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मरिशस में भारतीय परंपरा के अनुरूप ही होली मनाई जाती है। प्रवासी भारतीय जहां-जहां जाकर बसे हैं वहां- वहां होली की परंपरा पाई जाती है। कैरिबियाई देशों में बड़े धूमधाम और मौज-मस्ती के साथ होली का त्यौहार मनाया जाता है। यहां होली को फगुआ के नाम से जाना जाता है और लोग परंपरागत तरीके से इसे मनाते हैं। 19वीं सदी के आखिरी और 20वीं सदी के शुरू में भारतीय लोग मजदूरी करने के लिए कैरिबियाई देश गए थे। इस दरम्यान गुआना और सुरिनाम तथा ट्रिनीडाड जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय जा बसे। भारतीय लोगों के साथ उनके त्यौहार और रस्मों-रिवाज भी इन देशों में पहुंचे। धीरे-धीरे फगुआ गुआना और सूरीनाम के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में एक हो गया। गुआना में होली के दिन राष्ट्रीय अवकाश रहता है। इस देश की कुल आबादी में हिंदुओं का प्रतिशत लगभग 33 हैं। यहाँ की लड़कियों और लड़कों को रंगीन पाउडर और पानी के साथ खेलते हुए बड़े आराम से देखा जा सकता है। गुआना के गाँवों में इस अवसर पर विशेष तरह के समारोहों का आयोजन किया जाता है। कैरिबियाई देशों में कई सारे हिंदू संगठन और सांस्कृतिक संगठन सक्रिय हैं। ये संगठन नृत्य, संगीत और सांस्कृतिक उत्सवों के जरिये फगुआ मनाते हैं। ट्रिनीडाड एंड टोबैगो में होली को काफी कुछ उसी तरह से मनाया जाता है, जैसे भारत में मनाया जाता है। हाल के वषरें में इसकी रौनक में वृद्धि हुई है। विदेशी विश्वविद्यालयों में भी होली का आयोजन होता रहा है।
भारत की विभिन्न होलियां-
बरसाने की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है बरसाने। की लठमार होली फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाई जाती है। इस दिन नंद गाँव के ग्वाल बाल होली खेलने के लिए राधा रानी के गाँव बरसाने जाते हैं और जम कर बरसती लाठियों के साए में होली खेली जाती है। इस होली को देखने के लिए बड़ी संख्या में देश-विदेश से लोग बरसाना आते हैं। मथुरा से 54 किलोमीटर दूर कोसी शेरगढ़ मार्ग पर फालैन गाँव है जहाँ एक अनूठी होली होती है। गाँव का एक पंडा मात्र एक अंगोछा शरीर पर धारण करके 20-25 फुट घेरे वाली विशाल होली की धधकती आग में से निकल कर अथवा उसे फलांग कर दर्शकों में रोमांच पैदा करते हुए प्रह्लाद की याद को ताज़ा कर देता है। मालवा में होली के दिन लोग एक दूसरे पर अंगारे फेंकते हैं। उनका विश्वास है कि इससे होलिका नामक राक्षसी का अंत हो जाता है। राजस्थान में होली के अवसर पर तमाशे की परंपरा है। इसमें किसी नुक्कड़ नाटक की शैली में मंच सच्जा के साथ कलाकार आते हैं और अपने पारंपरिक हुनर का नृत्य और अभिनय से परिपूर्ण प्रदर्शन करते हैं। तमाशा की विषय वस्तु पौराणिक कहानियों और चरित्रों के इर्दगिर्द घूमती हुई इन चरित्रों के माध्यम से सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था पर भी व्यंग्य करती है। मध्य प्रदेश के भील होली को भगौरिया कहते हैं। भील युवकों के लिए होली अपने लिए प्रेमिका को चुनकर भगा ले जाने का त्योहार है। होली से पूर्व हाट के अवसर पर हाथों में गुलाल लिए भील युवक मांदल की थाप पर सामूहिक नृत्य करते हैं। नृत्य करते-करते जब युवक किसी युवती के मुँह पर गुलाल लगाता है और वह भी बदले में गुलाल लगा देती है तो मान लिया जाता है कि दोनों विवाह सूत्र में बंधने के लिए सहमत हैं। युवती द्वारा प्रत्युत्तर न देने पर युवक दूसरी लड़की की तलाश में जुट जाता है।
बिहार की कुर्ता फाड़ होली-
होली खेलते समय सामान्य रूप से पुराने कपड़े पहने जाते हैं। मिथिला प्रदेश में होली खेलते समय लड़कों के झुंड में एक दूसरे का कुर्ता फाड़ देने की परंपरा है। होली का समापन रंग पंचमी के दिन मालवा और गोवा की शिमगो के साथ होता है जिस दिन धूम-धाम से वसंत पंचमी से शुरू होने वाला वसंतोत्सव पूरा हो जाता है।
होली से मिलते जुलते विदेशी त्योहार-
तेरह अप्रैल को ही थाईलैंड में नव वर्ष सौंगक्रान प्रारंभ होता है इसमें वृद्धजनों के हाथों इत्र मिश्रित जल डलवाकर आशीर्वाद लिया जाता है। लाओस में यह पर्व नववर्ष की खुशी के रूप में मनाया जाता है। लोग एक दूसरे पर पानी डालते हैं। म्यांमर में इसे जल पर्व के नाम से जाना जाता है। जर्मनी में ईस्टर के दिन घास का पुतला बनाकर जलाया जाता है। लोग एक दूसरे पर रंग डालते हैं। हंगरी का ईस्टर होली के अनुरूप ही है। अफ्रीका में ओमेना वोंगा मनाया जाता है। इस अन्यायी राजा को लोगों ने जिंदा जला डाला था। अब उसका पुतला जलाकर नाच गाने से अपनी प्रसन्नता व्यक्त करते हैं। अफ्रीका के कुछ देशों में सोलह मार्च को सूर्य का जन्म दिन मनाया जाता है। लोगों का विश्वास है कि सूर्य को रंग-बिरंगे रंग दिखाने से उसकी सतरंगी किरणों की आयु बढ़ती है। पोलैंड में आर्सिना पर लोग एक दूसरे पर रंग और गुलाल मलते हैं। यह रंग फूलों से निर्मित होने के कारण काफी सुगंधित होता है। लोग परस्पर गले मिलते हैं। अमरीका में मेडफो नामक पर्व मनाने के लिए लोग नदी के किनारे एकत्र होते हैं और गोबर तथा कीचड़ से बने गोलों से एक दूसरे पर आक्रमण करते हैं। 31 अक्तूबर को अमरीका में सूर्य पूजा की जाती है। इसे होबो कहते हैं। इसे होली की तरह मनाया जाता है। इस अवसर पर लोग फूहड वेशभूषा धारण करते हैं। चेक और स्लोवाक क्षेत्र में बोलिया कोनेन्से त्योहार पर युवा लड़के-लड़कियाँ एक दूसरे पर पानी एवं इत्र डालते हैं। हालैंड का कार्निवल होली सी मस्ती का पर्व है। बेल्जियम की होली भारत सरीखी होती है और लोग इसे मूर्ख दिवस के रूप में मनाते हैं। यहाँ पुराने जूतों की होली जलाई जाती है। इटली में रेडिका त्योहार फरवरी के महीने में एक सप्ताह तक हर्षोल्लास से मनाया जाता है। लकडि़यों के ढेर चौराहों पर जलाए जाते हैं। लोग अग्नि की परिक्रमा करके आतिशबाजी करते हैं। एक दूसरे को गुलाल भी लगाते हैं। रोम में इसे सेंटरनेविया कहते हैं तो यूनान में मेपोल। ग्रीस का लव ऐपल होली भी प्रसिद्ध है। स्पेन में भी लाखों टन टमाटर एक दूसरे को मार कर होली खेली जाती है। जापान में 16 अगस्त रात्रि को टेमोंजी ओकुरिबी नामक पर्व पर कई स्थानों पर तेज आग जला कर यह त्योहार मनाया जाता है। चीन में होली की शैली का त्योहार वेजे कहलाता है। यह पंद्रह दिन तक मनाया जाता है। लोग आग से खेलते हैं और अच्छे परिधानों में सज-धज कर परस्पर गले मिलते हैं। साईबेरिया में घास फूस और लकड़ी से होलिका दहन जैसी परिपाटी देखने में आती है। नार्वे और स्वीडन में सेंट जान का पवित्र दिन होली की तरह से मनाया जाता है। शाम को किसी पहाड़ी पर होलिका दहन की भांति लकड़ी जलाई जाती है और लोग आग के चारों ओर नाचते गाते।
भारत में होली पर लोकगीत गाए जाते है। उत्तर भारत का एक लोकप्रिय लोकगीत है। इसमें होली खेलने का वर्णन होता है। यह हिंदी के अतिरिक्त राजस्थानी, पहाड़ी, बिहारी, बंगाली आदि अनेक प्रदेशों की अनेक बोलियों में गाया जाता है। इसमें देवी-देवताओं के होली खेलने से अलग- अलग शहरों में लोगों के होली खेलने का वर्णन होता है। देवी देवताओं में राधा-कृष्ण, राम-सीता और शिव के होली खेलने के वर्णन मिलते हैं। इसके अतिरिक्त होली की विभिन्न रस्मों की वर्णन भी होली में मिलता है। इस लोकगीत को शास्त्रीय या उप-शास्त्रीय संगीत में ध्रुपद, धमार, ठुमरी या चैती के रूप में भी गाया जाता है।
कंजर समाज की अलग हैं रस्में और रिवाज-
शंकरपुरा कंजर बस्ती के बाशिंदे पूर्वजों की खुशी के लिए त्यौहार पर अलग-अलग पकवान परोसते हैं। बस्तीवासी होली, दीपावली, राखी, दशहरे के दिन गोत्रवार तय दिन मृतक की मूर्ति के प्रतीक पत्थर के स्थान पर जाते हैं। होली पर प्रतीक पत्थर के ऊपर गुलाल व पुष्प बिखेर कर गुड़ या मिठाई रखते हैं।
राखी पर पके चावलों में घी शक्कर मिलाकर चढ़ाते हैं। राखी बांधकर सुख समृद्वि की कामना करते हैं। दीपावली के दिन गेहूं के आटे का बड़ा रोठ अच्छी तरह सेक कर घी गुड या शक्कर मिलाकर उसका चूरमा बनाकर भोग लगाते हैं। दशहरे के दिन बस्तीवासी अपनी पंसद के पकवान बनाकर चढ़ाते हैं। मृतक की मूर्ति के सामने रखे भोग सामग्री को गोत्र के महिला-पुरुष प्रसाद मानकर आपस में बांट लेते हैं। बस्तीवासियों का कहना है कि यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है।
पांच गौत्र पांच स्थान-
बस्ती में गुदड़ावत, तेली झांझावत, कमवित, धनावत पांच गोत्र के परिवार है। इनके अलग-अलग स्थान तय है। जहां मृतक की मूर्ति का प्रतीक पत्थर रोपा जाता है। मृतक की मूर्ति के नीचे गड्ढ़े में मृतक की अस्थियां मिट्टी में दबाकर रखते हैं। पत्थर को प्रतिमा मानकर रोप देते हैं। संपन्न लोग छतरी अथवा चबूतरा बना देते हैं। बस्तीवासियों का मानना है कि ऐसा करने से पूर्वजो की आत्मा धरती पर आ जाती है। उनकी खुशी के लिए सज-धज कर गाजे बाजे से निर्धारित स्थान पर जाकर याद करते है।
होली मस्ती का पर्व है अलग-अलग प्रांत के लोग अलग-अलग रस्मों-रिवाज पर ध्येय सबका प्यार ही बांटना है।