Sunday, October 31, 2021

सतसंग पाठ 31101

 राधास्वामी! / 31-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                

   गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।

 सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥                                            

बिरह अनुराग की नित नई धारन ।

दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥                                                                तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥                                   

गुरु सेवा हित चित से करना ।

 सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥                                                                            

 ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।

राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥                                         

दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।

 उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥                                    

 सतसँग महिमा कही न जाई ।

भेद गुप्त सब दिया लखाई ॥७॥


राधास्वामी मत है अति कर गहिरा ।  राधास्वामी चरनन जीव निबेड़ा ॥८॥                                                         राधास्वामी देस ऊँच से ऊँचा ।

 संत बिना कोई जहाँ न पहुँचा ॥९॥                                                                                 

बडभागी जो सतसँग पावे ।

कर परतीत सरन में धावें ॥१०॥                               

 ●●●●कल से आगे●●●●                     

काल करम की फाँसी टूटे।

चौरासी का भरमन छूटे।।११।।                                        

 राधास्वामी दया भाग मेरा जागा ।

चित्त चरन में सहजहि लागा ॥१२॥                                        

 दया से लिया अपनाई ।

क्योंकर महिमा राधास्वामी गाई ॥१३॥                                                                                         

हिय में उमँग उठी अब भारी ।

आरत सतगुरु करूँ सम्हारी ॥१४॥                                                                         

 बिरह प्रेम का थाल सजाऊँ ।

धुन झनकार जोत जगवाऊँ ॥१५॥                                    

 उमँग उमँग कर आरत गाऊँ ।

दृष्टि जोड़ मन सुरत चढ़ाऊँ ॥१६॥


सहसकँवल होय त्रिकुटी धाऊँ । सुन के परे गुफा दरसाऊँ ॥१७॥                                    

 सत्तलोक जाय बीन बजाऊँ ।


अलख अगम के पार चढ़ाऊँ ॥१८॥                            

 राधास्वामी प्यारे के दरशन पाऊँ ।

उन चरनन में जाय समाऊँ।।१९।। ( -1-शब्द-46-पृ.सं.203,204,205)


[10/31, 15:56] +91 97176 60451: *रा.धास्वामी!*               **आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-                                              गुरु प्यारे के नैन रँगीले , मेरा मन हर लीन ॥ टेक ॥

अद्भुत छबि निरखत नर नारी ।

बचन सुनत हुए दीन ।

 मन धार यक़ीन ॥१॥*

*सुन्दर रूप बसा नैनन में ।

दरस बिना तड़पत ग़मगीन |

जस जल बिन मीन ॥२॥                                                                            जब गुरु दरशन मिला भाग से ।

 मगन हुई रस पियत अमी।

गुरु किरपा चीन ॥३॥                                                               

सतसँग कर गुरु सेवा लागी ।

निरमल हुई मेरी सुरत मलीन ।

हुऐ अघ सब छीन ॥४॥                                                                       शब्द भेद दे सुरत चढ़ाई ।

राधास्वामी मेहर अनोखी कीन ।

हुई चरनन लीन ॥५॥

(प्रेमबानी-3-शब्द-2-पृ.सं.67,68) (लुधियाना ब्राँच-पंजाब)**


🌹राधास्वामी🌹                                                


 पंजाब रीजन एवं विशेषकर लुधियाना ब्राँच (रिकार्ड उपस्थिति-555) के समस्त सतसंगियों को हुजूर राधास्वामी दयाल के सन्मुख मिला पुनः पाठ करने का अनमोल अवसर के लिये आप सबको बहुत बहुत हार्दिक बधाई। राधास्वामी दयाल की दया व मेहर आप सभी पर सदा बनी रहे।                                                  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


Saturday, October 30, 2021

परम् पुरुष हुज़ूर महराज साहेब

 आगरा। राधास्वामी मत के द्वितीय गुरु हजूर महाराज थे। उनका असली नाम सालिगराम बहादुर था। उन्होंने राधास्वामी मत के प्रथम गुरु स्वामी जी महाराज की बेमिसाल सेवा की। इसके बाद स्वामी जी महाराज ने हजूर महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। हजूर महाराज ने ही स्वामी जी महाराज की समाध का निर्माण कराया था, जो अब विशाल और मनमोहक है। द्वितीय जन्मशताब्दी के मौके पर स्वामी जी महाराज की समाध पर स्वामीबाग में 31 अगस्त से कार्यक्रम शुरू हो गए हैं। हजूर महाराज की समाध स्थल हजूरी भवन में महोत्सव एक सितम्बर, 2018 से शुरू होगा। इसकी व्यापाक तैयारियां चल रही हैं।

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क्या है राधास्वामी मत

राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और आगरा विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति दादाजी महाराज ( प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) ने बताया कि राधास्वामी मत मूलतः एक अन्तर्मुखी अध्यात्मवादी पंथ है, जिसमें बाह्य आडम्बरों का स्थान शून्य है। मत की शिक्षाओं का भव्य प्रासाद मत प्रवर्तक एवं आद्य आचार्य परमपुरुष पूरनधनी स्वामीजी महाराज तथा मत संस्थापक परमपुरुष पूरनधनी हजूर महाराज के विचार-दर्शन की आधारशिला पर टिका हुआ है। राधास्वामी मत तत्कालीन धर्म में विद्यमान रूढ़िवादिता एवं कर्मकाण्डीय प्रवृत्तियों के विरोध में एक निर्भीक प्रतिक्रिया के रूप में उभरा। इसका उद्देश्य एक ऐसे सरल धर्म की स्थापना था, जिससे मनुष्यों के आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग बिना जाति, वर्ण, आस्था एवं राष्ट्रीयता की अड़चन के प्रशस्त हो सके। सही मायनों में मत की शिक्षाएं आत्मा की अन्तर्निहित पुकार प्रेम पर आधारित हैं। आधुनिक वैज्ञानिक युग में निर्मल प्रेम आधारित यह प्रेमपंथ मत संस्थापकों की अनोखी उपलब्धि है। अतः राधास्वामी मत को आधुनिक भारत में ‘भक्ति के पुनरुद्धार की प्रथम धारा’ कहना समीचीन होगा।

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सर्वोच्च नाम राधास्वामी

उन्होंने बताया कि राधास्वामी मत सार्वभौम तत्वों को स्वयं में समाहित किए हुए ऐसा विचार है जो कि सुरत-शब्द योग के माध्यम से अपनी संकल्पनाओं को साकार देखने का खुला आमंत्रण देता है। मत प्रवर्तकों ने भले ही पुरातन संकल्पनाओं को नकारा नहीं है, लेकिन स्पष्ट कर दिया है कि सर्वोच्च नाम राधास्वामी ही है, जो भी मानव आत्मतत्व (आत्मा) के मूल निवास और उसके मालिक या स्वामी से तादात्म्य होना चाहे, सहज में मत प्रवर्तकों द्वारा आविष्कृत एवं परिष्कृत - योगाभ्यास (सुरत-शब्द योग) के माध्यम से हो सकता है।

परमपुरुष पूरनधनी हजूर महाराज का जन्म

राधास्वामी मत के द्वितीय आचार्य राय सालिगराम बहादुर ‘हजूर महाराज’ थे। उनका जन्म 14 मार्च, 1829 को पीपल मण्डी में आगरा निवासी एक कायस्थ परिवार में हुआ। उनके पिता राय बहादुर सिंह उस समय के प्रसिद्ध वकील थे। वे अत्यंत धार्मिक एवं दानशील प्रकृति के व्यक्ति थे। परिवार में दो पुत्र एवं पुत्री का जन्म हुआ। हुजूर महाराज की आयु अभी चार वर्ष की ही थी कि पिता का देहावसान हो गया। उनकी माँ ने अपने कठोर परिश्रम और सतत संघर्ष से दोनों पुत्रों को उच्चतम शिक्षा दिलायी।

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उच्च पद पर पहुँचने वाले वह प्रथम भारतीय

मकतब में प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त कर उच्च शिक्षा के लिए उन्होंने आगरा कालेज में प्रवेश लिया। सन् 1847 में इस विद्यालय में उन्होंने सीनियर कैम्ब्रिज की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की तथा अंग्रेजी, गणित और उर्दू में विशेष दक्षता प्राप्त की। अध्ययन समाप्ति के बाद वर्ष 1847 में हजूर महाराज ने पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के पोस्ट मास्टर जनरल के कार्यालय में कार्य शुरू किया। विभाग में द्रुत पदोन्नति प्राप्त हुई। उनकी प्रसिद्धि योग्य एवं सत्यनिष्ठ पदाधिकारी के रूप में स्थापित हुई। पहले वे डाकघरों के निरीक्षक बने, फिर महाडाकपाल के सहायक और निजी सहायक। वर्ष 1871 में वह भारत के डाकघरों के मुख्य निरीक्षक नियुक्त हुए। 1881 में पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त के पोस्ट मास्टर जनरल बने तथा उनका कार्य केन्द्र इलाहाबाद रहा। इस उच्च पद पर पहुँचने वाले वह प्रथम भारतीय थे।

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एक पैसे का पोस्टकार्ड चलाया

अद्भुत क्षमता के सम्पन्न प्रशासक होने के कारण उन्होंने डाक विभाग में अनेक नए सुधार किए। लैण्ड रेवेन्यू, मनीआर्डर, पार्सल इंश्योरेंस, वी0पी0 पार्सल, बैरंग पत्र के नियम, तार संयोजन, जिला डाक प्रबन्ध को शासकीय पत्रों के लिए बड़े डाकघर से संबद्ध करना इत्यादि अनमोल सुधार उन्हीं की देन है। विभागीय सेवा को नियन्त्रित करते हुए उन्होंने डाक व्यवस्था के विकास एवं प्रसार में अतुलनीय योगदान दिया। आम जनता के लिए सर्वप्रथम उन्होंने ही एक पैसे का पोस्टकार्ड प्रचलित किया, जो आज भी गरीब जनता के बीच संदेश आदान-प्रदान का प्रमुख माध्यम बना हुआ है। तत्कालीन परिवेश में हजूर महाराज ने संचार व्यवस्था को जो बहुमुखी आयाम दिये, वो वर्तमान संचार क्रान्ति से प्रत्येक मायने में श्रेष्ठतर थे।

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राय बहादुर’ की उपाधि

तत्कालीन अव्यवस्था एवं लालफीताशाही को उन्होंने दूर किया। विभागीय कार्यों में उनकी योजनाओं एवं सुधारों से सुगमता हुई और जनसाधारण को सीधा लाभ पहुँचा। पश्चिमोत्तर सीमा प्रान्त एवं पंजाब प्रान्त के डाक अधिनियमों को उन्होंने स्वयं जनता की भाषा में अनूदित किया। वर्ष 1871 में उनके सराहनीय प्रशासनिक सुधारों के लिए शासन द्वारा उन्हें ‘राय बहादुर’ की उपाधि से विभूषित किया गया। डाक विभाग के लिए अपनी सेवाओं के कारण वह अपरिहार्य बन गए थे और वर्ष 1884 में भी ब्रिटिश प्रशासक उनको अवकाश ग्रहण नहीं करने देना चाहते थे। भारतीय डायरेक्टर जनरल ने उनसे स्वयं एक निजी पत्र में उनके कार्यों की सराहना करते हुए सेवानिवृत्ति न लेने का अनुरोध किया था।

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गुरु की अनूठी सेवा की

लौकिक सफलताएँ हजूर महाराज के लिए महत्वहीन थीं। अपनी आत्मिक प्यास बुझाने के लिए उन्हें आध्यात्मिक गुरू की खोज थी। वर्ष 1858 ई0 में उनकी चिर कामना पूर्ण हो गई और राधास्वामी दयाल परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज से उनकी भेंट हुई। हजूर महाराज ने स्वामीजी महाराज की हर प्रकार से सेवा की। चरन दबाना, पंखा करना, चंवर डुलाना, चक्की पीसना, हुक्का भरकर लाना, शहर के बाहर मीलों दूर मीठे कुएं से नंगे पैर पद व प्रतिष्ठा का ख्याल किये बिना पानी भरकर लाना, स्नान कराना, केश संवारना, खाना बनाना, मकान की झाड़ू, सफाई-पुताई करना, स्नानागार एवं नालियाँ धोना, खदान से मिट्टी खोदकर लाना, जंगल से दातुन लाना, धोती धोना, चैका-बरतन करना, स्वामीजी महाराज के घर के लिए खाद्य सामग्री एवं अन्य आवश्यकता की वस्तुएं खरीदकर खुद लाना, पालकी उठाना, सवारी के साथ-साथ दौड़ना, पीकदान पेश करना और स्वयं पीक पी जाना आदि। हजूर सेवा में इतने तल्लीन रहते थे कि मौसम के प्रकोप की उन्हें कोई चिन्ता नहीं रहती थी। वर्ष 1858 से 1878 ई0 तक बीस वर्ष उन्होंने अपने गुरु की जो अतुलनीय सेवा की, वो भक्ति के इतिहास में अनूठी और बेमिसाल है।

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1878 में स्वामी जी महाराज के उत्तराधिकारी बने

वर्ष 1878 ई0 में निजधाम सिधारते समय स्वामीजी महाराज ने हजूर महाराज को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। उन्होंने सन् 1898 तक सतसंग का व्यापक विस्तार और सैद्धांतिक और व्यावहारिक स्तर पर आने वाली सभी समस्याओं के लिए उठने वाली सभी शंकाओं का प्रभावी समाधान किया। इसी परिसर के प्रेम विलास में उनकी अद्धभुत पच्चीकारी से युक्त समाध का निर्माण किया गया है। उनके आवास हजूरी भवन में आज भी उनकी शिक्षाओं का प्रसार आज भी जस का तस किया जा रहा है। राधास्वामी सतसंग हजूरी भवन में स्वामीजी महाराज के दो सौ वर्ष को दिव्तीय जन्म शताब्दी महोत्सव मत के रूप में मनाया जा रहा है।

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धार्मिकता होनी चाहिए।

 "धर्मों की चट्टाने"||

                    🙏°°°°°🏵️°°°°°🙏



धर्म एक मृत संगठन नहीं है, संप्रदाय नहीं है, वरन एक तरह की 


एक ऐसी जीवंत गुणवता, जिसमें समाहित है: सत्‍य के साथ होने की क्षमता।


 प्रामाणिकता, सहजता, स्‍वाभाविकता, प्रेम से भरे ह्रदय की धड़कनें और समग्र अस्‍तित्‍व के साथ मैत्रीपूर्ण लयबद्घता।


इसके लिए किन्‍हीं धर्मग्रंथों और पवित्र पुस्‍तकों की आवश्‍यकता नहीं है।

    


 सच्‍ची धार्मिकता को मसीहाओं, उद्धारकों, पवित्र ग्रंथों, पादरियों, पोपों, पंडित, पुरोहित, मौलवियों, तुम्‍हारे शंकराचार्य की और किसी, मंदिर,मस्जिद, चर्चों की आवश्यकता नहीं है। क्‍योंकि धार्मिकता तुम्‍हारे ह्रदय की खिलावट है।


वह तो स्‍वयं की आत्‍मा के, अपनी ही सत्‍ता के केंद्र-बिंदु तक पहुंचने का नाम है। और जिस क्षण तुम अपने आस्‍तित्‍व के ठीक केंद्र पर पहुंच जाते हो।


उस क्षण सौंदर्य का, आनंद का, शांति का और आलोक का विस्‍फोट होता है। तुम एक सर्वथा भिन्‍न व्‍यक्‍ति होने लगते हो। तुम्‍हारे जीवन में जो अँधेरा था वह तिरोहित हो जाता है।


और जो भी गलत था वह विदा हो जाता है। फिर तुम जो भी कहते हो वह परम सजगता और पूर्ण समग्रता के साथ होते हो।


     मैं तो बस एक ही पुण्‍य जानता हूं और वह है: सजगता।


ओशो"

"आपुई गई हिराय"

प्रवचन—5

ओशो इंटरनेशनल कम्‍यून पूना||

"अमृत कण "

साहित्य साधना के साधक भारत यायवर / विजय केसरी

 श्रद्धांजलि/ भारत यायावर की साधना सदा प्रेरणा देती रहेगी


प्रख्यात साहित्यकार, कवि, आलोचक, समीक्षक व संपादक भारत यायावर  की साधना सदा हिंदीसेवियों को प्रेरणा देती रहेगी । किसी ने  कल्पना  भी ना की थी कि इस तरह एकाएक भारत यायावर  इस दुनिया से चले जाएंगे ।  उनका संपूर्ण जीवन हिंदी की सेवा में बीता था। सच्चे अर्थों  में  वे हिंदी के एक समर्पित साधक थे । इस तरह के साधक का प्रादुर्भाव बर्षों बाद हो पाता है । उनका जाना  हिंदी जगत के लिए एक अपूरणीय क्षति है । भारत यायावर का व्यक्तित्व और कृतित्व दोनों में हिंदी ही समाहित था । हिंदी ही उनका जीवन था । उनके पास हिंदी के  अलावा और कुछ नहीं था ।  वे हिंदी के विस्तार को ही अपने जीवन का विस्तार मानते थे।  उनका हर धड़कन हिंदी के लिए ही धड़कता था । वे  मृत्यु से पूर्व तक हिंदी की ही साधना में रत थे । उन्होंने हिंदी की साधना में ही अपने देह का त्याग  किया   था ।

  मृत्यु से लगभग छः  घंटे पूर्व भारत यायावर का फोन आया । उनसे लगभग पन्द्रह मिनटों  तक बातचीत भी हुई  । इस बातचीत में कथाकार रतन वर्मा भी शामिल  रहे । फोन पर भारत यायावर ने कहा,  'मैं अभी ठीक महसूस कर रहा हूं । एक दिन पूर्व मेरी सांस उखड़ गई थी । बेटा प्रमथ्यू  ने होम्योपैथिक की दवा दी, जिससे मैं अभी अच्छा फील कर रहा हूं । मैं इतना जल्दी मरने वाला नहीं हूं । मुझे आगे और भी कई  काम करने हैं । राधाकृष्ण की रचनावाली का काम लगभग पूरा हो गया है। 'रेणु एक जीवनी' पुस्तक आ गई है। आगे  दूसरे खंड पर काम कर रहा हूं । तबीयत खराब रहने के कारण   काम की गति धीमी  हो गई है ।  सभी कामों को धीरे धीरे कर आगे बढ़ा रहा हूं । आप सब भी  निरंतर लिखते रहें'। 

उक्त बातचीत के बाद मैं और रतन वर्मा, भारत यायावर के स्वास्थ्य पर  चर्चा किया ।  इस बातचीत  के लगभग  पन्द्रह  घंटे पूर्व भारत यायावर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर दर्ज किया था,.. 'मैं बीमार हूं । दर्द से शरीर टूट रहा है।' इस पोस्ट को पढ़कर रतन वर्मा जी ने मुझे फोन किया और यायावर जी का हाल जानना चाहा ।  वे बहुत चिंतित हो रहे थे कि भारत यायावर  को क्या हो गया है ?  मैं उसी समय भारत यायावर  को फोन लगाया । कई बार फोन लगाने के बावजूद भी उन्होंने फोन नहीं उठाया ।  मैं समझा गया  कि  उनकी तबीयत जरूर बिगड़ गई होगी । मैं मन बना लिया कि सुबह उनसे मुलाकात कर हाल-चाल लूंगा । इसी निमित्त मैं सुबह झील से टहल कर रतन वर्मा  के यहां पहुंचा। मुझे देखते ही रतन वर्मा ने  भारत यायावर का हालचाल पूछा । मैंने उनसे कहा कि भारत यायावर की तबीयत खराब है। इसके बाद मैंने पुनः भारत यायावर को दो बार कॉल लगाया । घंटी बजती रही,.. पर वे कॉल नहीं उठाए । इसके बाद हम दोनों भारत यायावर को  देखने के लिए जाते । इसी बीच उनका फोन आ गया और उनसे लंबी बातचीत हुई । भारत यायावर से हम दोनों की बातचीत होने के बाद हम दोनों के चेहरे पर खुशी आ गई । रतन वर्मा, भारत यायावर के स्वास्थ्य का समाचार सुनकर बेहद खुश हुए ।  उक्त बातचीत के लगभग छःघंटे बाद  रतन वर्मा जी का फोन आया । उन्होंने कहा कि भारत यायावर के फेसबुक पोस्ट पर यह दर्ज है,.. 'भारत यायावर' मेरे पिताजी अब इस दुनिया में नहीं रहे'।' यह सुनकर मैं स्तब्ध रह गया । भारत यायावर से स्वास्थ्य पर छः घंटे  पूर्व ही रतन वर्मा और मुझसे  बातचीत हुई । रतन वर्मा ने मुझसे यह जानना चाहा कि फेसबुक में दर्ज यह बात सच है या झूठ ? फिर मैंने फोन काट कर  भारत यायावर  का फेसबुक पोस्ट देखा । फेसबुक में दर्ज  बात को सही पाया । यह खबर मुझे अंदर से बेचैन कर दिया । मैं बेहद चिंतित हो गया । यह समाचार मुझे अंदर से हिला दिया।

 अब उनकी एक एक बातें याद आने लगी । उनका नियमित मेरे घर और  व्यवसायिक प्रतिष्ठान पर आना । धंटो साथ बैठना । हम दोनों का साथ  बैठकर घंटों साहित्य पर चर्चा करना । वे एक साहित्यकार के साथ  विविध विषयों के जानकार थे । उनका हिंदी के अलावा विज्ञान, गणित, अंग्रेजी आदि विषयों पर विराट अध्ययन था । वे हिंदी के साहित्यकार जरूर थे, लेकिन हिंदी के अलावा बांग्ला साहित्य, कन्नड़ साहित्य, पंजाबी साहित्य, अंग्रेजी साहित्य आदि विविध प्रांतीय भाषाओं में क्या कुछ लिखा जा रहा है  ? सब पर अपनी नजर रखते थे। 

उनके निधन की खबर सुनकर हजारीबाग के लगभग तमाम साहित्यकार उनके पार्थिव शरीर का दर्शन करने के लिए पहुंचे । रतन वर्मा , सुबोध सिंह शिवगीत, विजय संदेश सहित कई साहित्यकारों को विश्वास ही नहीं हो पा रहा था कि इस तरह भारत यायावर जी का जाना होगा । सबकी आंखें नम थी । भारत यायावर के घर का माहौल पूरी तरह गमगीन था । भारत यायावर हमेशा हमेशा के लिए चिर निंद्रा में सोए हुए थे । अगरबत्ती धू धू कर जल रही थी । उनका बड़ा बेटा प्रमथ्यू  ने कहा,.. 'पापा इससे भी कहीं ज्यादा  बीमार पड़े , तब उन्हें कुछ भी नहीं हुआ। आज थोड़ी सी बीमारी में ही हमेशा हमेशा के लिए हम लोगोंचल गए '।  प्रमथ्यू की यह बात सुनकर सबकी आंखें भर आई ।

बाईस  दिन पूर्व ही भारत यायावर  विश्वविद्यालय की सेवा से सेवा निवृत्त हुए थे । सेवा निवृत्ति के पूर्व उन्होंने मुझसे कहा था,.. 'सेवा निवृत्ति के बाद बेटा के मुद्रणालय के पीछे एक ऑफिस बनाऊंगा । एक नया  कंप्यूटर खरीदूंगा और जमकर काम करूंगा । वहीं पर हिंदी पर बातचीत होगी । इन गोष्ठियों के माध्यम से नए रचनाकारों को सामने लाना है'। 

 भारत यायावर  की अब तक  साठ से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । इसके बावजूद उनके मन मस्तिष्क में कुछ और भी नया रचने की  उत्कंठा बनी रहती थी। उनकी उत्कंठा देखकर लगता  कि भारत यायावर  का जन्म साहित्य कर्म के लिए ही हुआ । उनकी हिंदी की साधना गजब की साधना रही । 

भारत यायावर बहुत ही  संवेदनशील व्यक्ति रहे । किसी के भी दुख - सुख में हमेशा सहयोगी रहे । मैं महसूस किया हूं कि अगर पांच - छः दिन  उनसे बातचीत नहीं हो पाई तो वे तुरंत फोन लगाकर हालचाल लिया करते थे।  यह बात सिर्फ मेरे साथ ही लागू नहीं होती  बल्कि उनसे मिलने जुलने वाले हर लोगों  पर लागू थी । यह मेरा सौभाग्य है कि भारत यायावर जैसे शख्सियत से मुझे पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ । जब मैं सातवां क्लास में पढ़ रहा था, भारत यायावर कॉलेज के विद्यार्थी थे। वे घर आकर मुझे और मेरे छोटे भाई राजकुमार को पढ़ाया करते थे । तब से लेकर अब तक वे एक शिक्षक रूप में हम चारों भाइयों का मार्ग प्रशस्त करते रहे। हम चारों भाई  उनका बहुत ही आदर किया करते थे ।  चारों भाइयों की शादी हो जाने के बाद हम भाइयों की  पत्नियां भी उनका बहुत सम्मान करती । चारो पत्नियां भी भारत यायावर को अपना गुरु मानती ।  मैं , भारत यायावर को शिक्षक के साथ अपना गुरु भी मानता । मेरा जीवन भी भीषण संघर्षों से गुजरता रहा है । जब भी मुझे सलाह की जरूरत पड़ी, उन्होंने समय-समय पर हमेशा मेरा मार्ग प्रशस्त किया । फलत: आज हमारे दोनों बच्चे अच्छी नौकरी में है।  दोनों बेटियों की शादी घरों में  हो गई । हमारे सभी भाइयों के बेटे अच्छी नौकरी और अच्छे संस्थानों में पढ़ रहे हैं । हमारे परिवार के विकास में भारत यायावर  के अवदान को कभी भुलाया जा नहीं सकता।

 हमारे घर में उनका बड़ा सम्मान रहा । वे हमारे परिवार के एक सदस्य के समान बन गए थे । उनका हमारे परिवार से सदैव मिलना जुलना होता रहता था । हमारे परिवार के किसी सदस्य की तबीयत खराब होने पर वे  तुरंत  कुछ ना कुछ चिकित्सीय परामर्श जरूर दे दिया करते थे ।  उनके इस चिकित्सीय परामर्श से तबीयत भी जल्द ठीक हो जाती थी । उन्हें एलोपैथ, आयुर्वेद और होम्योपैथी का ज्ञान था ।

जब  मैं कोरोना से ग्रसित हुआ  ,तब उनकी सलाह ने मुझे जल्द ही स्वस्थ कर दिया । पिछले दिनों मेरी पत्नी की रीढ़ की हड्डी में चोट आ गई थी।  तब उन्होंने होम्योपैथिक की एक दवा बताई थी । यह दवा रामबाण की तरह काम की ।

वे मूलत: एक कवि थे । उनकी कविताएं मर्म को छूती नजर आती हैं ।  साथ ही लोगों को  संदेश भी देती है। प्रख्यात कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु एवं महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनावली के निर्माण में उन्होंने  अपनी कविता की बलि चढ़ा दी । कवि भारत यायावर अपने आप में एक संस्था बन गए थे । जिनसे प्रेरणा पाकर  देश भर में हजारों की संख्या में हिंदी साहित्य सेवी रचना रत रहे।  वे निरंतर हिंदी साहित्य पर बातचीत किया करते थे। वे कभी भी किसी विचारधारा की धारा में नहीं बहते थे । बल्कि उनका विचार लोकहितार्थ रहा ।  उन्हें ईश्वर पर गहरी आस्था थी। वे दिखावे के कर्मकांड से सदा दूर रहते थे। उनकी साधना  कबीर  की साधना की ही तरह थी । साहित्य का कर्म ही उनकी ईश्वरीय  उपासना थी। इस संदर्भ में भारत यायावर ने कहा,,... मैं साहित्य कर्म को अपनी उपासना मानता हूं । मुझे साहित्य रचने में ही अपने इष्ट देव का दर्शन होता है। मैं चाहता हूं कि साहित्य कर्म करते हुए ही मेरा दम निकले'। भारत जी अब इस दुनिया में नहीं रहे।  उन्होंने अपने जीवन काल में जो रचना की सभी महत्वपूर्ण एवं कालजई रचनाएं हैं। उनकी रचनाएं सदा लोगों को प्रेरणा देती रहेंगी।


विजय केसरी, 

( कथाकार / स्तंभकार )

पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301, 

मोबाइल नंबर : 92347 99550.

सतसंग पाठ / 301021

 *30-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                  


 गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।

सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥                                           

 बिरह अनुराग की नित नई धारन ।

 दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥                                                                

तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥*                                  

*गुरु सेवा हित चित से करना ।

 सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥                                                                           

  ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।

 राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥                                        

 दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।

 उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥                                     

सतसँग महिमा कही न जाई ।

 **राधास्वामी!* *30-10-2021-

आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-


 गुरुमुख सुरत प्रेम भरपूरी ।

 सतगुरु चरनन सदा हज़री ॥१॥

 बिरह अनुराग की नित नई धारन ।

 दृढ़ परतीत और प्रीति सँवारन ॥२॥

 तन मन धन सब सतगुरु अरपन । करम भरम सब दूर बिडारन ॥३॥*

गुरु सेवा हित चित से करना ।

 सुरत दृष्टि दोउ तिल में भरना ॥४॥ ऐसा जोग मेहर से पाऊँ ।

राधास्वामी पै बलि बलि जाऊँ ॥५॥

दीन अधीन रहूँ गुरु चरना ।

उमँग सहित धारूँ गुरु सरना ॥६॥

सतसँग महिमा कही न जाई ।

भेद गुप्त सब दिया लखाई ॥७॥*

*राधास्वामी मत है अति कर गहिरा ।

राधास्वामी चरनन जीव निबेड़ा ॥८॥

राधास्वामी देस ऊँच से ऊँचा ।

संत बिना कोई जहाँ न पहुँचा ॥९॥

 बडभागी जो सतसँग पावे ।

कर परतीत सरन में धावें ॥१०॥*

 *काल करम की फाँसी टूटे।

चौरासी का भरमन छूटे।।११।।

 राधास्वामी दया भाग मेरा जागा । 

चित्त चरन में सहजहि लागा ॥१२॥ अपनी दया से लिया अपनाई ।

 क्योंकर महिमा राधास्वामी गाई ॥१३॥

 हिय में उमँग उठी अब भारी ।

 आरत सतगुरु करूँ सम्हारी ॥१४॥

बिरह प्रेम का थाल सजाऊँ ।

 धुन झनकार जोत जगवाऊँ ॥१५॥*

 *उमँग उमँग कर आरत गाऊँ ।

 दृष्टि जोड़ मन सुरत चढ़ाऊँ ॥१६॥*

*सहसकँवल होय त्रिकुटी धाऊँ ।

 सुन के परे गुफा दरसाऊँ ॥१७॥*

 *सत्तलोक जाय बीन बजाऊँ ।

 अलख अगम के पार चढ़ाऊँ ॥१८॥*

 *राधास्वामी प्यारे के दरशन पाऊँ ।

 उन चरनन में जाय समाऊँ।।१९।।* *

(प्रेमबानी-1-शब्द-46-पृ.सं.203,204,205)**


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सतसंग पाठ रविवार 311021

राधास्वामी!! - /  31-10-2021-(रविवार) आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                       


गुरु चरनन प्यार।

 लाओ मन मेरे उमँग से।।१।।                                                         

गुरु आरत धार।

 सन्मुख होय प्रेम अँग से।।२।।                                                          

 सुन घट धुन सार।.

 जाल उचँग से।।३।।                                                            

घट देख बहार।

 रँग जाय स्रुत गुरू रँग से।।४।।                                                    राधास्वामी सरन सम्हार।

 जीते काल निहँग से।।५।।    

   (प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं. 202)**


राधास्वामी! आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-


 गुरु मोहि अपना रुप दिखाओ।।टेक।। (सारबचन-शब्द-15-पृ.सं. 648,649)              

करनाल ब्राँच- हरियाणा)**

Wednesday, October 27, 2021

तर्क

 कालिदास बोले :- माते पानी पिला दीजिए बड़ा पुण्य होगा.


स्त्री बोली :- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो।

मैं अवश्य पानी पिला दूंगी।

कालिदास ने कहा :- मैं पथिक हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम पथिक कैसे हो सकते हो, पथिक तो केवल दो ही हैं सूर्य व चन्द्रमा, जो कभी रुकते नहीं हमेशा चलते रहते। तुम इनमें से कौन हो सत्य बताओ।


कालिदास ने कहा :- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें।

स्त्री बोली :- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं।

पहला धन और दूसरा यौवन। इन्हें जाने में समय नहीं लगता। सत्य बताओ कौन हो तुम ?

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(अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश तो हो ही चुके थे)


कालिदास बोले :- मैं सहनशील हूं। अब आप पानी पिला दें।

स्त्री ने कहा :- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं। पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है। उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है, दूसरे पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं। तुम सहनशील नहीं। सच बताओ तुम कौन हो ?

(कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले)


कालिदास बोले :- मैं हठी हूँ ।

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स्त्री बोली :- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं। सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ?

(पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके थे)


कालिदास ने कहा :- फिर तो मैं मूर्ख ही हूँ ।

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स्त्री ने कहा :- नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो।

मूर्ख दो ही हैं। पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है।

(कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे)


वृद्धा ने कहा :- उठो वत्स ! (आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी, कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए)

माता ने कहा :- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार । तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा।

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कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े।


शिक्षा :-

विद्वत्ता पर कभी घमण्ड न करें, यही घमण्ड विद्वत्ता को नष्ट कर देता है।

दो चीजों को कभी व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए.....

अन्न के कण को

"और"

आनंद के क्षण को...

(साभार)🙏🙏🙏

तुलसी कौन थी?*🌹🙏/ साक्षी भल्ला

 तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था.


वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी.


एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा –

स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प

नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।

सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता ।


फिर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है।

भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पँहुच गये जैसे

ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा मे से उठ गई और उनके चरणों को छू लिए,जैसे ही उनका संकल्प टूटा, युद्ध में देवताओ ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काट कर अलग कर दिया,उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पडा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?

उन्होंने पूछा – आप कौन हो जिसका स्पर्श मैने किया, तब भगवान अपने रूप में आ गये पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई, उन्होंने भगवान को श्राप दे दिया आप पत्थर के हो जाओ, और भगवान तुंरत पत्थर के हो गये।

सभी देवता हाहाकार करने लगे लक्ष्मी जी रोने लगे और प्रार्थना करने लगे यब वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे

सती हो गयी।

उनकी राख से एक पौधा निकला तब

भगवान विष्णु जी ने कहा –आज से

इनका नाम तुलसी है, और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जायेगा और मैं


बिना तुलसी जी के भोग


स्वीकार नहीं करुगा। तब से तुलसी जी कि पूजा सभी करने लगे। और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में

किया जाता है।देव-उठावनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है 🙏🏼🙏🏼

सतसंग पाठ

*राधास्वामी!                                 27-10-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                       

आज मैं पाई सरन गुरु पूरे ॥टेक ॥                          

 गुरु चरनन मिल हुई बड़भागी ।

 बाजे घट में अनहद तूरे ॥१॥                                         

जगत भाव भय लज्जा त्यागी ।

मन कायर हुआ घट में सूरे ॥२॥                                             

सुन सुन धुन अब चढ़त अधर में ।

 जोत जगमगी झलकत नूरे ॥३॥                                      

  त्रिकुटी जाय ओं धुन पाई ।

काल और करम रहे दोउ झूरे।।४।।                                         

 अक्षर धुन सुन आगे चाली |

 तज दिया दिया देश अब माया कूड़े ॥५॥                                                                                         

मुरली सुन धुन बीन सम्हारी ।

मगन हुई लख सत पद मूरे ॥६॥                                               

 प्रेम भंडार लखा अब भारी ।

मिल गये राधास्वामी चरन हज़रे ॥७॥                   

  राधास्वामी महिमा अतिसै भारी ।

सुरत हुई उन चरनन धूरे ।।८।।

(प्रेमबानी-3-शब्द-7-पृ.सं.  199,200)**


*राधास्वामी!*                       

*27-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-*                                                                          

*जगत में बहु दिन बीत सिराने |

 खोज नहिं पाया रह हैराने ॥१॥                                         

 ढूँढ़ता आया तज घर बारा ।

मिला मोहि राधास्वामी गुरु दरबारा ॥२॥                       

 भेद सत पाया मैं उन पासा ।

मगन मन निस दिन देख विलासा ॥३॥                                          

करूँ हित चित से सतसँग सारा ।

जपूँ नित राधास्वामी नाम अपारा ॥४॥*                                                

*ध्यान में लाऊँ सतगुरु चरना ।

 करूँ दृढ़ निस दिन राधास्वामी सरना ।।५।।                                

धुन धुन सुनता घोरंघोर ।

 मोह जग डाला तोड़ंतोड़ ॥६॥                                                

करूँ मैं आरत सतगुरु संगा । 

हुए अब करम भरम सब भंगा ॥७॥*

*दीन दिल दुरमत  त्यागी भारी ।

 चरन में लागी सुरत करारी।।८ ॥                                  

उमँग की थाली कर बिच लाया ।

प्रेम की जोत अनूप जगाया।।९।।                                    

गाऊँ गुरु आरत हंसन साथा ।

चरन में गुरु के राखूँ माथा।।१०॥                                           

हुए प्रसन्न प्यारे ।

 दया कर दीना पार उतारे।।११।।                                                     

गाऊँ गुन उनका बारम्बारा

मिला मोहि संत मता निज सारा।।१२।।


(प्रेमबानी-1-शब्द-44-पृ.सं.200,201)**

Tuesday, October 26, 2021

कन्हैया मुस्कुरा रहे थे🙏/ साक्षी भल्ला

 


एक औरत रोटी बनाते बनाते ॐ भगवते वासूदेवाय नम: का जाप कर रही थी..

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अलग से पूजा का समय कहाँ निकाल पाती थी बेचारी, तो बस काम करते करते ही।

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एकाएक धड़ाम से जोरों की आवाज हुई और साथ मे दर्दनाक चीख। 

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कलेजा धक से रह गया जब आंगन में दौड़ कर झांकी तो आठ साल का चुन्नू चित्त पड़ा था, खुन से लथपथ। मन हुआ दहाड़ मार कर रोये। 

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परंतु घर मे उसके अलावा कोई था नही, रोकर भी किसे बुलाती, फिर चुन्नू को संभालना भी तो था। 

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दौड़ कर नीचे गई तो देखा चुन्नू आधी बेहोशी में माँ माँ की रट लगाए हुए है।

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अंदर की ममता ने आंखों से निकल कर अपनी मौजूदगी का अहसास करवाया। 

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फिर 10 दिन पहले करवाये अपेंडिक्स के ऑपरेशन के बावजूद ना जाने कहाँ से इतनी शक्ति आ गयी कि चुन्नू को गोद मे उठा कर पड़ोस के नर्सिंग होम की ओर दौड़ी। 

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रास्ते भर भगवान को जी भर कर कोसती रही, बड़बड़ाती रही, हे कन्हैया क्या बिगाड़ा था मैंने तुम्हारा, जो मेरे ही बच्चे को..।

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खैर डॉक्टर सा. मिल गए और समय पर इलाज होने पर चुन्नू बिल्कुल ठीक हो गया। 

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चोटें गहरी नही थी, ऊपरी थीं तो कोई खास परेशानी नही हुई।

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रात को घर पर जब सब टीवी देख रहे थे तब उस औरत का मन बेचैन था। 

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भगवान से विरक्ति होने लगी थी। एक मां की ममता प्रभुसत्ता को चुनौती दे रही थी।

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उसके दिमाग मे दिन की सारी घटना चलचित्र की तरह चलने लगी। 

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कैसे चुन्नू आंगन में गिरा की एकाएक उसकी आत्मा सिहर उठी...

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कल ही तो पुराने चापाकल का पाइप का टुकड़ा आंगन से हटवाया है, ठीक उसी जगह था जहां चिंटू गिरा पड़ा था। 

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अगर कल मिस्त्री न आया होता तो..? उसका हाथ अब अपने पेट की तरफ गया जहां टांके अभी हरे ही थे, ऑपरेशन के। 

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आश्चर्य हुआ कि उसने 20-22 किलो के चुन्नू को उठाया कैसे, कैसे वो आधा किलोमीटर तक दौड़ती चली गयी ? 

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फूल सा हल्का लग रहा था चुन्नू। वैसे तो वो कपड़ों की बाल्टी तक छत पर नही ले जा पाती।

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फिर उसे ख्याल आया कि डॉक्टर साहब तो 2 बजे तक ही रहते हैं और जब वो पहुंची तो साढ़े 3 बज रहे थे...

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उसके जाते ही तुरंत इलाज हुआ, मानो किसी ने उन्हें रोक रखा था।

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उसका सर प्रभु चरणों मे श्रद्धा से झुक गया। 

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अब वो सारा खेल समझ चुकी थी। मन ही मन प्रभु से अपने शब्दों के लिए क्षमा मांगी।

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तभी टीवी पर ध्यान गया तो प्रवचन आ रहा था... 

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प्रभु कहते हैं: मैं तुम्हारे आने वाले संकट रोक नहीं सकता, लेकिन तुम्हे इतनी शक्ति दे सकता हूँ कि तुम आसानी से उन्हें पार कर सको...

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तुम्हारी राह आसान कर सकता हूँ। बस धर्म के मार्ग पर चलते रहो।

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उस औरत ने घर के मंदिर में झांक कर देखा, कन्हैया मुस्कुरा रहे थे।


राधे राधे❤️🙏

ईश्वर की सत्ता🙏 / साक्षी भल्ला

 

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एक बार किसी विद्वान् से 

एक बूढ़ी औरत ने पूछा कि 

क्या इश्वर सच में होता है ? 

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उस विद्वान् ने कहा कि 

माई आप क्या करती हो ?

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उसने कहा कि मै तो दिन 

भर घर में अपना चरखा 

कातती हूँ और घर के बाकि 

काम करती हूँ , और मेरे 

पति खेती करते हैं . 

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उस विद्वान ने कहा कि

माई क्या ऐसा भी कभी 

हुआ है कि आप का चरखा 

बिना आपके चलाये चला 

हो , या कि बिना किसी के 

चलाये चला हो ? 

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उसने कहा ऐसा कैसे 

हो सकता है कि वो बिना 

किसी के चलाये चल जाये ? 

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ऐसा तो संभव ही नहीं है.

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विद्वान् ने फिर कहा कि 

माई अगर आपका चरखा 

बिना किसी के चलाये नहीं 

चल सकता..... 

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तो फिर ये पूरी सृष्टि किसी 

के बिना चलाये कैसे चल 

सकती है ? 

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और जो इस पूरी सृष्टि 

को चला रहा है वही इसका 

बनाने वाला भी है और उसे 

ही इश्वर कहते हैं.

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उसी तरह किसी और 

ने उसी विद्वान् से पूछा कि 

आदमी मजबूर है या सक्षम ? 

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उन्होंने कहा कि अपना 

एक पैर उठाओ, उसने 

उठा दिया,

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उन्होंने कहा कि अब 

अपना दूसरा पैर भी उठाओ, 

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उस व्यक्ति ने कहा ऐसा 

कैसे हो सकता है ? 

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मै एक साथ दोनों पैर 

कैसे उठा सकता हूँ ? 

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तब उस विद्वान् ने कहा 

कि इंसान ऐसा ही है, 

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ना पूरी तरह से मजबूर 

और ना ही पूरी तरह से 

सक्षम

.

उसे इश्वर ने एक हद तक 

सक्षम बनाया है और उसे

पूरी तरह से छूट भी नहीं है . 

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उसको इश्वर ने सही गलत 

को समझने कि शक्ति दी है...

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और अब उस पर निर्भर 

करता है कि वो सही और 

गलत को समझ कर अपने 

कर्म को करे...


राधे राधे❤️🙏

सतसंग पढ़ M/ 271021

 राधास्वामी!                                 27-10-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                       

आज मैं पाई सरन गुरु पूरे ॥टेक ॥                          


 गुरु चरनन मिल हुई बड़भागी ।

बाजे घट में अनहद तूरे ॥१॥                                         

जगत भाव भय लज्जा त्यागी । 

मन कायर हुआ घट में सूरे ॥२॥                                              

सुन सुन धुन अब चढ़त अधर में ।

जोत जगमगी झलकत नूरे ॥३॥                                        

त्रिकुटी जाय ओं धुन पाई ।

 काल और करम रहे दोउ झूरे।।४।।                                        

  अक्षर धुन सुन आगे चाली |

 तज दिया दिया देश अब माया कूड़े ॥५॥                                                                                         

मुरली सुन धुन बीन सम्हारी । मगन हुई लख सत पद मूरे ॥६॥                                                 प्रेम भंडार लखा अब भारी ।

मिल गये राधास्वामी चरन हज़रे ॥७॥                      

राधास्वामी महिमा अतिसै भारी ।

 सुरत हुई उन चरनन धूरे ।।८।।


 (प्रेमबानी-3-शब्द-7-पृ.सं.  199,200)

सतसंग पाठ M/ 261021

I *राधास्वामी!/ 26-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                             

  सुरत पियारी उमँगत आई ।

गुरु दरशन कर अति हरषाई ॥१॥*                                                   

  *प्रेम सहित सुनती गुरु बचना । मन माया अँग छिन छिन तजना ॥२॥*                               

गुरु सँग प्रीति करी उन गहिरी ।

 सुरत निरत  हुई चरनन चेरी ॥३॥                                         

 हिये बिच उठी अभिलाषा भारी । आरत सतगुरु करूँ सँवारी ॥४॥*                                        

हिये अनुराग थाल कर लाई ।

 बिरह प्रेम की जोत जगाई ॥५॥                                               

सुन्दर बस्त्र प्रीति कर साजे ।

उमँग नवीन हिये में राजे ॥६॥                                                  

भोग सुधा रस आन धराई ।

हरष हरष गुरु आरत गाई ॥७॥                                                 

 अति कर प्रेम भाव हिये परखा ।

दया दृष्टि से सतगुरु निरखा ॥८॥*

*चरन भेद दे सुरत चढ़ाई । करम भरम सब दूर पराई ॥९॥                                     

  ◆◆◆कल से आगे◆◆◆                                           

 मेहर हुई निज भाग जगाये ।

 घट में दरशन सतगुरु पाये ॥१०॥                                   

आँख खुली तब निज कर देखा ।

जग जीवन का जस  है लेखा ॥११॥*                                                                

कोइ  मूरत मंदिर में अटके ।

 कोइ तीरथ कोइ बरत में भटके ॥१२॥                                               

देवी देवा पत्थर पानी ।

राम कृष्ण में रहे भुलानी ॥१३॥                                                      

 निज घर का कोई भेद न पाया ।

बिन सतगुरु सब धोखा खाया ||१४||                                           कस कस भाग सराहूँ अपना ।

सतगुरु ने मोहि किया निज अपना ॥१५॥                                                दया करी मोहि गोद बिठाया ।

 सुरत शब्द मारग दरसाया ||१६||*                                            

*चरन सरन मोहि दृढ़ कर दीन्ही ।

 मेरी सुरत करी परवीनी ॥१७॥*

*नित नित प्रीति प्रतीति बढ़ाई ।

 संशय कोट अब दीन उड़ाई ||१८||                                    

  गुरू राधास्वामी प्यारे ।

अपनी दया से मोहि लीन उवारे ॥१९॥

(प्रेमबानी-1-शब्द-43-

पृ.सं.198,199,200)


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Monday, October 25, 2021

सतसंग पाठ E/ 241021

 राधास्वामी! / 25-10-2021-

आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                सुरत पियारी उमँगत आई । गुरु दरशन कर अति हरषाई ॥१॥                                                   

  प्रेम सहित सुनती गुरु बचना ।

मन माया अँग छिन छिन तजना ॥२॥                               

गुरु सँग प्रीति करी उन गहिरी ।

 सुरत निरत  हुई चरनन चेरी ॥३॥                                         

 हिये बिच उठी अभिलाषा भारी ।

आरत सतगुरु करूँ सँवारी ॥४॥                                        

हिये अनुराग थाल कर लाई ।

 बिरह प्रेम की जोत जगाई ॥५॥                                              

 सुन्दर बस्त्र प्रीति कर साजे ।

 उमँग नवीन हिये में राजे ॥६॥                                                  

भोग सुधा रस आन धराई ।

हरष हरष गुरु आरत गाई ॥७॥                                                  

अति कर प्रेम भाव हिये परखा ।

दया दृष्टि से सतगुरु निरखा ॥८॥


चरन भेद दे सुरत चढ़ाई ।

करम भरम सब दूर पराई ॥६॥                                                

मेहर हुई निज भाग जगाये ।

 घट में दरशन सतगुरु पाये ॥१०॥                                   

आँख खुली तब निज कर देखा ।

जग जीवन का जस  है लेखा ॥११॥                                                                

कोइ  मूरत मंदिर में अटके ।

कोइ तीरथ कोइ बरत में भटके ॥१२॥                                               

देवी देवा पत्थर पानी ।

 राम कृष्ण में रहे भुलानी ॥१३॥                                                      

 निज घर का कोई भेद न पाया ।

बिन सतगुरु सब धोखा खाया ||१४||                                          

कस कस भाग सराहूँ अपना ।

सतगुरु ने मोहि किया निज अपना ॥१५॥                                               

दया करी मोहि गोद बिठाया ।

सुरत शब्द मारग दरसाया ||१६||                                             

चरन सरन मोहि दृढ़ कर दीन्ही ।

मेरी सुरत करी परवीनी ॥१७॥


नित नित प्रीति प्रतीति बढ़ाई ।

 संशय कोट अब दीन उड़ाई ||१८||                                      

गुरू राधास्वामी प्यारे ।

अपनी दया से मोहि लीन उवारे ॥१९॥

(प्रेमबानी-1-शब्द-43-पृ.सं.198,199,200)


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Sunday, October 24, 2021

सतसंग पाठ M/241021

 **राधास्वामी!                       

 24-10-2021-

आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                      

जब से मैं देखा राधास्वामी का मुखड़ा ॥टेक ॥                                                          

मोहित हुई तन मन सुध भूली ।

छोड़ दिया सब जग का झगड़ा॥१॥                                                  राधास्वामी छबि छा गई नैनन में ।

 नहीं सुहावे मोहि अब कोई रगड़ा ॥२।।                                                     

 नित्त बिलास करूँ दरशन का ।

भर भर प्रेम हुआ मन तकड़ा॥३।।                                                                   

मेहर हुई स्रुत चढ़त अधर में ।

छोड़ चली अब काया' छकड़ा ॥४॥                                                         राधास्वामी मेहर करी अब भारी । छिन छिन मन चरनन में जकड़ा ॥५।। (

प्रेमबानी-3-शब्द-4-पृ.सं.197,198)



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सतसंग पाठ E/ 241021

 *राधास्वामी!*                            *

24-10-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                       

गावे आरती सेवक पूरा ।

 छिन छिन पल पल मन को चूरा ॥१॥                                           

 दम दम सूरत चरन लगावत ।

दरशन रस ले तृप्त अघावत।।२।।*

सतसँग कर नित करम सुलावत ।

सेवा कर निज भाग जगावत ॥३॥                                     

 गुरु मत ठान सुमत हिये धारत ।

मनमत छोड़ कुमत नित जारत ॥४॥                                                                  राधा राधा नाम पुकारत ।

स्वामी स्वामी हिये बिच गावत ॥५॥                                       

कल मल काल कलेश हटावत ।

मिल मिल शब्द सुरत नभ धावत ॥६॥                                                             जगमग जोत निरख चित हरखत ।

बंकनाल धस गुरु धुन परखत ॥७॥*                                               

*सुन में जाय मानसर न्हावत ।

 किंगरी सारंगी शोर मचावत ॥८॥                                        

महासुन्न के ऊपर धावत।

मुरली धुन सँग राग सुनावत।।९।।                                    

सत्तलोक जाय बीन बजावत ।

सत्तपुरुष का दरशन पावत ॥१०॥                             

 अलख अगम के पार चढ़ावत ।

राधास्वामी चरन धियावत ॥११।।           

हुए प्रसन्न राधास्वामी दयाला ।

 प्यार किया और किया निहाला ॥१२॥

(प्रेमबानी-1-शब्द-42-पृ.सं.197,198)**

राधास्वामी!                                          

 आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला-पहला पाठ:-                                                   

   परम गुरु राधास्वामी प्यारे,जगत में देह घर आये,

शब्द का देके उपदेशा, हंस जिव लीन मुकताये ॥१॥                                       

 किया सतसंग नित जारी ,

 दया जीवों पै की भारी,

करम और भरम गये सारे,

 जीव चरनों में घिर आये ॥२॥                                       

भक्ति का आप दे दाना,

 दिया जीवन को सामाना ,

देख हुआ काल हैराना,

 रही माया भी मुरझाये ॥३॥                                      

बढ़ा कर चरन में प्रीती ,

 दई घट शब्द परतीती ,

काल और करम को जीती ,

 सुरत मन उलट कर धाये ॥४॥                                                          

 जोत लख सूर निरखा री,

परे सत शब्द परखा री,

अलख और अगम पेखा री,

चरन राधास्वामी परमाये ॥५॥

(प्रेमबानी-3-शब्द-3-पृ.सं.218)

(करनाल ब्राँच हरियाणा।)


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सतसंग पाठ M/ 251021

 **राधास्वामी! / 25-10-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                  

राधास्वामी छबि मेरे हिये बस गई री ॥टेक ॥  

                                           राधास्वामी शोभा क्योंकर गाऊँ ।

 नैन कँवल दृष्टी जोड़ दई री ॥१॥                                                            दरस रूप रस बरनूँ कैसे ।

नर देह मेरी आज सुफल भई री ॥२॥                                    

नित नित ध्याय रहूँ गुरु रूपा ।

घट में आनँद बिमल लई री॥३॥                                                                    बिन प्रीतम बहु जनम बिताये ।

 और बिपता  बहु भाँत  सही री ॥४॥                                                             

अब मोहि राधास्वामी मिले भाग से ।

चरन लगाय निज सरन दई री ॥५॥

(प्रेमबानी-3-शब्द-5-पृ.सं.198)**


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*सत्संग के बाद की घोषणा


 *आज  (२४  अक्टूबर,  २०२१)  शाम  के  सतसंग  के  बाद  की  गई  अनाउंसमेंट*  


जैसा  कि  आप  सभी  को  सतसंग  से  पहले  भी  बताया  गया  था, पावन  सम्रतालय  का  बाल  सतसंग  दर्शन,  उसमें  हमारे  संत - सतगुरुओं  के समय - समय  पर  विद्यार्थियों  के  लिए  सत - परामर्श  के  कुछ  अंश  वहाँ  पर  लगे  हुए  हैं। आप  सभी  विद्यार्थियों  को  ये  हिदायत  दी  जाती  हैं, वहाँ  जाकर  उसे  विजिट  करें, देखें, उनके  टीचर्स  भी  जाए  और  छोटे  बच्चों  के  लिए  मंगलाचरण  और  रत्नांजलि, रत्नावली  और  बड़े  स्टूडेंट्स  के  लिए  सारबचन  नज़्म  और  संतबानी  संग्रह  भाग  १  व  भाग  २, उसको  स्टडी  करें  और  उसका  फ़ायदा  उठाए।


 *राधास्वामी*

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...