Friday, December 29, 2023

सतसंग पाठ के अनमोल कड़ियां


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


दुखित तुम बिन, रटत निसदिन,

प्रगट दर्शन दीजिए;

 बिनती सुन प्रिय स्वामियाँ,

बलि जाऊँ बिलम्ब न कीजिएँ 🙏


🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏





🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


पिया मेरे और मैं पिया की,

कुछ भेद न जानो कोई,

जो कुछ होये सो मौज से होई,

पिया समरथ करे सोई

🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏



🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


गुरू प्यारे की दम दम शुक्रगुज़ार


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


सुमरिन करले हिये धर प्यार राधास्वामी नाम का आधार


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


मैं हू बाल अनाड़ी प्यारे

 तुम हो दाता अपर अपारे

 राखो चरनन मोहि सदा रे मेरी निसदिन यही पुकारी


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏


गुरु की मौज रहो तुम धार।

गुरु की रज़ा सम्हालो यार।।


गुरु जो करें सो हित कर जान।

          

गुरु जो कहें सो चित धर मान।।

शुक़र की करना समझ विचार।

             

सुख दुःख देंगे हिक़मत धार।।


🙏🙏 *राधास्वामी



🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏

मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की ।

साफ करो बुद्धि मायावर की ।।

तब स्वामी ने दिया दिलासा ।

प्रेम पंख ले उड़े आकाशा ।।

🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏


🙏🌹राधास्वामी 🌹🙏


पलटू सतगुरु के बिना सरे न एको काज ।

भवसागर से तारता सतगुरु नाम जहाज ।।

🙏🌹राधास्वामी 🙏🌹



🌹🙏

पलटू पारस क्या करे

ज्यों लोहा खोटा होय ।

साहिब सबको देत हैं

लेता नाहीं कोय ।।


🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏




🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


सतपुरूष तुम सतगुरू दाता

सब जीवन के पितु और माता,

दया धार अपना कर लीजै

काल जाल से न्यारा कीजै


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


राधास्वामी दयाल दया के सागर, अपनापन न बिसारो;

पाप करम मैं सदा से करता,

जीव दया चित्त धारो


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏🙏


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Wednesday, December 27, 2023

वचन

*रा धा/ध: स्व आ मी!       


             

27-12-23- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-

 (22.12.31 मंगल का तीसरा भाग)-


कल 6 शादियां होंगी। फरीकैन (पक्षकार  गण) ने जेवर व कपडे दिखलाये। शुक्र है कि अब सतसंगिन बहनों को समझ आ गई है कि दयालबाग की साख्ता (निर्मित ) अशिया (वस्तुएं ) शादी में देने से अपना व कुल संगत का भला है।

 प्रेमी भाई जयन्ती प्रसाद एम० ए० ने अपनी दुख्तर (पुत्री) को करीबन सभी कपडे दयालबाग के बुने हुए दिये हैं। और दूसरे असहाब (लोगों) ने भी दयालबाग के कपडों व जेवरों की काफ़ी तादाद इस्तेमाल की है। सुनहरी फाउण्टेनपेन, ग्रामोफोन, बेशक़ीमत (बहुमूल्य ) सुनहरी साडिया, तिलाई (स्वर्ण) जेवर ऐसी चीज़े हैं जो दयालबाग में साख्त होती हैं और मुकर्ररह (नियत) दामों पर बिकती हैं और जिनके खरीदार को किसी किस्म के धोखे का एहतिमाल (आशंका) नहीं है।

जेवरात के लिये अभी एक नामी कारीगर कलकत्ता से बुलाया गया है। उसकी मदद से उम्मीद है कि जेवरात का काम खूब चमकेगा। लोग नहीं जानते बेईमान सुनार उन्हें टाके व मिलावट के जरीये कैसी बेरहमी से लूटते हैं

दयालबाग में इस सीगे (विभाग) के तरक़्क़ी करने से सतसंगी भाइयों को हर साल हज़ारों रुपये की बचत रहेगी। क्रमशः--------                                                              🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


Wednesday, December 13, 2023

चरित्र बड़ा या ज्ञान



*🌳 🌳*


एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।


एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।


दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।


तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की ‍नीयत निश्चित ही खराब हो गई है। उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। इस सूचना से राजा बहुत आहत हुआ। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।


चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था। यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा- "सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।"


इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -"क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?"


राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।


राजा का अगला प्रश्न किया- "आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार? वे मोती कहाँ हैं?"


राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए। राजा बोले - "राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?"


राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा -"राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे, अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।"


कुछ पल ठहर कर राजपुरोहित ने आगे कहा -"आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है वह सब ज्ञान के कारण नहीं ‍अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है। अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे।" कहा जाता है धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया। चरित्र गया तो सब कुछ गया।


*

Monday, December 4, 2023

माप-अमाप*


*प्रस्तुति - स्वामी शरण



गुरुनानकजी एक बार लाहौर में ठहरे। तो लाहौर का जो सब से धनी आदमी था, वह उनके चरणों में नमस्कार करने आया। वह बहुत धनी आदमी था। लाहौर में उन दिनों ऐसा रिवाज था कि जिस आदमी के पास एक करोड़ रुपया हो, वह अपने घर पर एक झंडा लगाता था। इस आदमी के घर पर कई झंडे लगे थे। इस आदमी का नाम था, सेठ दुनीचंद। उसने नानक के चरणों में सिर रखा और कहा कि कुछ आज्ञा दें मुझे। मैं कुछ सेवा करना चाहता हूं। धन बहुत है आपकी कृपा से। आप जो भी कहेंगे, वह मैं पूरा कर दूंगा।


नानक ने अपने कपड़ों में छिपी हुई एक छोटी सी कपड़े सीने की सुई निकाली, दुनीचंद को दी, और कहा, इसे सम्हाल कर रखना। और मरने के बाद मुझे वापस लौटा देना।


दुनीचंद अपनी अकड़ में था। उसे समझ ही न आयी। उसे कुछ खयाल ही न आया कि यह क्या गुरु नानक कह रहे हैं! उसने कहा, जैसी आपकी आज्ञा। जो आप कहें, कर दूंगा। अकड़ का समय होता है आदमी के मन का, तब आदमी अंधा होता है कि कुछ चीजें असंभव हैं। धन से तो हो ही नहीं सकतीं। घर लौटा। लेकिन घर लौटते-लौटते उसे भी खयाल आया कि मर कर लौटा देंगे! लेकिन जब मैं मर जाऊंगा, तब इस सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?


वापस लौटा। और कहा कि आपने थोड़ा बड़ा काम दे दिया। मैं तो सोचा, बड़ा छोटा काम दिया है। और क्या मजाक कर रहे हैं? सुई को बचाने की जरूरत भी क्या है? लेकिन संतों का रहस्य! सोचा, होगा कुछ प्रयोजन। लेकिन क्षमा करें। यह अभी वापस ले लें। क्योंकि यह उधारी फिर चुक न सकेगी। अगर मैं मर गया तो सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?


तो नानक ने कहा, सुई वापस कर दो। प्रयोजन पूरा हो गया है। यही मैं तुमसे पूछता हूं कि अगर एक सुई न ले जा सकोगे, तो तुम्हारी जो करोड़ों-करोड़ों की संपदा है, उसमें से क्या ले जा सकोगे? अगर एक छोटी सी सुई को तुम न ले जा सकोगे पार, तो और तुम्हारे पास क्या है, जो तुम ले जा सकोगे? दुनीचंद, तुम गरीब हो। क्योंकि अमीर तो वही है जो मौत के पार कुछ ले जा सके।


लेकिन जो भी मापा जा सकता है, वह मौत के पार नहीं ले जाया सकता। जो अमाप है, इम्मेजरेबल है, जिसको हम माप नहीं सकते, वही केवल मौत के पार जाता है।

दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं। एक, जो मापने की ही चिंता करते रहते हैं। खोज करते हैं उसकी, जो मापा जा सकता है, तौला जा सकता है। और एक, mजो उसकी खोज करते हैं, जो तौला नहीं जा सकता। पहले वर्ग के लोग धार्मिक नहीं हैं, संसारी हैं। दूसरे वर्ग के लोग धार्मिक हैं, संन्यासी हैं।


अमाप की खोज धर्म है। और जिसने अमाप को खोज लिया, वह मृत्यु का विजेता हो गया। उसने अमृत को पा लिया। जो मापा जा सकता है, वह मिटेगा। जिसकी सीमा है, वह गलेगा। जिसकी परिभाषा हो सकती है, वह आज है, कल खो जाएगा। हिमालय जैसे पहाड़ भी खो जाएंगे। सूर्य, चांद, तारे भी बुझ जाएंगे। बड़े से बड़ा, थिर से थिर...पहाड़ को हम कहते हैं, अचल; वह भी चलायमान है। वह भी खो जाएगा। वह भी बचेगा नहीं। वह भी थिर नहीं है। जहां तक माप जाता है वहां तक सभी अस्थिर है, परिवर्तनशील है। जहां तक माप जाता है, वहां तक लहरें हैं। जहां माप छूट जाता है, सीमाएं खो जाती हैं, वहीं से ब्रह्म का प्रारंभ है।


एक ओंकार सतनाम

Sunday, December 3, 2023

संस्कार


प्रस्तुति - कृति / दिव्यांश 

*🌳 संस्कार क्या है 🌳*


एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।


बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: *मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया"* 


इस पर घोड़ी बोली: *"बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।*


यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: *"मां मैं इसका बदला लूंगा।"*


मां ने कहा *"राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये"*


पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।


एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।


इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: *"मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया...."* 


इस पर घोडी हंस कर बोली: *"बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा देना है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"*


*"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"*


*यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं

💐🙏❤️🌹👌

सुंदर व्यवहार

 *गुरु मंत्र*


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


एक सभा में लगभग 30 वर्षीय एक युवक ने एक प्रश्न पूछा, "गुरु जी, जीवन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है?"


गुरुजी मुस्कराए और फिर उस युवक से पूछा, "आप मुम्बई में जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी आ रही है, तो आप क्या करोगे?"


युवक ने कहा, "उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।"


गुरु जी ने पूछा, "वह लडकी आगे बढ़ गयी, तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे?"


लडके ने कहा, "हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है तो।" (सभा में सभी हँस पड़े) 


गुरु जी ने फिर पूछा, "जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा?"


युवक ने कहा, "5-10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।"


गुरु जी ने उस युवक से कहा, " अब जरा कल्पना कीजिये... आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना।


आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए। उनका घर देखा तो आपको पता चला कि यह तो बड़े अमीर हैं। घर के बाहर गाडियाँ और चौकीदार खडे हैं।


आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई, तो वह महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठाकर गरम खाना खिलाया।


चलते समय आप से पूछा, "किसमें आए हो?"


आपने कहा, "लोकल ट्रेन में।"


उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि उन महानुभाव का फोन आया, "भैया, आप आराम से पहुँच गए.।"


अब आप बताइए कि आपको वह महानुभाव कब तक याद रहेंगे? "


युवक ने कहा, "गुरु जी! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।"


गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, "यह है जीवन की हकीकत। सुन्दर चेहरा थोड़े समय ही याद रहता है, पर सुन्दर व्यवहार जीवन भर याद रहता है।"


बस यही है जीवन का गुरु मंत्र... अपने चेहरे और शरीर की सुंदरता से ज़्यादा अपने व्यवहार की सुंदरता पर ध्यान दें... जीवन अपने लिए आनंददायक और दूसरों के लिए अविस्मरणीय प्रेरणादायक बन जाएगा...


                         ♾️


*"असल में आदर अपने अंदर के प्रेम का सार है। जब आप प्रेम पूर्ण दशा में होते हैं, यदि उस समय आपका शत्रु भी आपके सामने आ जाये, आप उसे कुछ ऐसे ढंग से देखेंगे कि वह भी महसूस करेगा," बहुत अच्छे हम अभी भी मित्र हैं। "लौटते समय में वह शत्रु नहीं रहेगा, उसका दिल बदल जाएगा।"*



Saturday, December 2, 2023

शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ

 Ra DHA Sva Aa Mi


Tomorrow, on 03rd December 2023, we are arranging a formal discussion meeting with shahdara Branch youth members.


Heartly request to all youths come in morning satsang and attend the meeting.


Meeting - Formal discussion with youth By Branch सेक्रेटरी


Premises - Shahdara Branch 

Timing - 09Am [After Satsang]


Heartly Ra Dha Sva Aa Mi

Branch Secretary

Shahdara


🌹❤️🙏🙏🙏🙏🙏🌹❤️

Friday, December 1, 2023

शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ

 _*रा धा स्व आ मी*_

  

 कल दिनांक 26 नवंबर 2023, DRSA,रीजनल सत्संग 2023 *हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल* की असीम कृपा से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।


 *महिला एसोसिएशन* को विशेष धन्यवाद एवं आभार जिन्होंने अद्भुत प्रबंधन के साथ अपना कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया।


 मैं *यूथ एसोसिएशन* का भी आभारी हूं जिन्होंने वॉलंटियर की व्यवस्था करने में मदद की और आखिरी तक रीजन को सहायता प्रदान की।


 सांस्कृतिक को खूबसूरती से पेश करने, कार्यक्रम के प्रबंधन और दिल्ली क्षेत्र की सभी ब्रांचों के साथ अद्भुत समन्वय दिखाने के लिए *क्लचरल टीम* को भी बहुत बहुत धन्यवाद।


 _*मैं  हर उस वॉलंटियर का धन्यवाद करता हूं जिसने किसी भी प्रकार की सेवा कर इस DRSA, रीजनल सत्संग के कार्यक्रम को सफल बनाया*_


 *हार्दिक रा धा स्व आ मी*


 *ब्रांच सेक्रेट्री*

 *शाहदरा*

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...