Thursday, March 31, 2022

पूज्य परम हुज़ूर डा. लाल साहब का संदेश,

 🌹राधास्वामी🌹

          🙏

बच्चे अधखिले फुल का एक गुलदस्ता🌷



🌹 पूज्य परम हुज़ूर डा. लाल साहब का संदेश, 1-2-1990 एक अंश ❄️


❄️बच्चे नन्ही कलीयां अधखिले फुलों का एक गुलदस्ता आपके सामने पेश है, 

❄️अब इन फुलों को कैसे और खिलाया जाय, और बड़ा कीया जाय ताकि यह फल दायक वृक्ष हो सकें, और उनसे सतसंग को आगे फैला सकें, 

❄️यह कहने में कोई हर्ज नहीं है कि इस बात की जिम्मेदारी सभा मेम्बर, और रीजनल मेम्बर की ही नहीं बल्कि हर एक सतसंगी भाई बहन के ऊपर है, 

❄️इन बच्चों को बाताबरण ऐसा मिले, रक्षा इनकी ऐसी हो शिक्षा इनकी ऐसी हो, कि यह आगे चलकर एक उत्तम सतसंगी बन सकें, 

❄️तो बच्चे तो बडो़ की ही मिशाल का अनुकरण कर सकते हैं, उनके पदचिह्न पर चल सकते हैं, उन्ही का हुक्म मान सकते हैं, 

❄️यह तभी होगा जब बडे़ अपने विचार और आचरण और सामाजिक आर्थिक ब्यवहार से ऐसी मिशाल पेश करें, कि बच्चे उससे प्रभावित हो करके और आगे बडे़, 

❄️हमको हुज़ूर मेहताजी महाराज ने यह संदेश  दिये है, सबको मिलजुल करके मेहनत के साथ काम करना चाहिए, हर एक को  परिश्रमी, दयावान, और विचारशील और हुज़ूर राधास्वामी दयाल के सच्चे भक्त बनना चाहिए, 

❄️अनुशासन की भी सख्त जरुरत इन कामों में पडती है, 

❄️किसी भी संस्था को किसी भी संगठन को, किसी भी संगत को आगे बढ़ना चाहते हैं तो इन सब बातों पर अमल करना जरूरी है

🙏🌷राधास्वामी

Tuesday, March 29, 2022

सफल जीवन (बंधन ही प्रेरणा हैं )

 .                        🌹


प्रस्तुति - कुसुम सिन्हा / नवल किशोर प्रसाद


*एक बार अर्जुन ने कृष्ण से पूछा-*

*माधव.. ये 'सफल जीवन' क्या होता है ?*


*कृष्ण अर्जुन को पतंग  उड़ाने ले गए।अर्जुन कृष्ण  को ध्यान से पतंग उड़ाते देख रहा था।*


*थोड़ी देर बाद अर्जुन बोला-*


*माधव.. ये धागे की वजह से पतंग अपनी आजादी से और ऊपर की ओर नहीं जा पा रही है,क्या हम इसे तोड़ दें?ये और ऊपर चली जाएगी|*


*कृष्ण ने धागा तोड़ दिया ..*


*पतंग थोड़ा सा और ऊपर गई और उसके बाद लहरा कर नीचे आयी और दूर अनजान जगह पर जा कर गिर गई...*


*तब कृष्ण ने अर्जुन को जीवन का दर्शन समझाया,पार्थ..'जिंदगी में हम जिस ऊंचाई पर हैं,* 

*हमें अक्सर लगता की कुछ चीजें, जिनसे हम बंधे हैं वे हमें और ऊपर जाने से रोक रही हैं;*   *जैसे :*

           *-घर-*

         *-परिवार-*

       *-अनुशासन-*

      *-माता-पिता-*

       *-गुरू-और-*

          *-समाज-*


*और हम उनसे आजाद होना चाहते हैं...*


*वास्तव में यही वो धागे होते हैं - जो हमें उस ऊंचाई पर बना के रखते हैं..*


*'इन धागों के बिना हम एक बार तो ऊपर जायेंगे परन्तु बाद में हमारा वो ही हश्र होगा, जो बिन धागे की पतंग का हुआ...'*


*"अतः जीवन में यदि तुम ऊंचाइयों पर बने रहना चाहते हो तो, कभी भी इन धागों से रिश्ता मत तोड़ना.."*


*धागे और पतंग जैसे जुड़ाव के सफल संतुलन से मिली हुई ऊंचाई को ही '"सफल" जीवन कहते हैं..!!*

   *🙏🏿🙏🏾🙏🏽जय जय🙏🏼🙏🙏🏻

आज़ादी की दीवानी मस्तानी भीकाजी कामा


क्या आप जानते हैं?


प्रस्तुति -  उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद


भारत की आज़ादी से चार दशक पहले, साल 1907 में विदेश में पहली बार भारत का झंडा एक महिला ने फहराया था!


46 वर्षीया भीकाजी कामा ने जर्मनी के स्टुटगार्ट में हुई दूसरी 'इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांग्रेस' में यह झंडा फहराया था। यह भारत के आज के झंडे से अलग, आज़ादी की लड़ाई के दौरान बनाए गए कई अनौपचारिक झंडों में से एक था। उस वक्त देश में राष्ट्रवाद की लहर तेज थी, क्योंकि दो साल पहले ही बंगाल प्रांत का बंटवारा हुआ था। लोगों का गुस्सा अंग्रेज सरकार के खिलाफ अपनी चरम पर था। यह वह दौर था, जब महात्मा गांधी दक्षिण अफ़्रीका में ही थे, पर बंटवारे से उमड़े गुस्से में लोगों ने 'स्वदेशी' को तरजीह देने के लिए विदेशी कपड़ों का बहिष्कार शुरू कर दिया था।


लेखक बंकिम चंद्र चैटर्जी की किताब 'आनंदमठ' से निकला गीत 'वन्दे मातरम' राष्ट्रवादी आंदोलनकारियों में लोकप्रिय हो गया। भीकाजी कामा द्वारा फहराए झंडे पर भी 'वन्दे मातरम' लिखा था। इसमें हरी, पीली और लाल पट्टियां थीं। झंडे में हरी पट्टी पर बने आठ कमल के फूल भारत के आठ प्रांतों को दर्शाते थे। लाल पट्टी पर सूरज और चांद बना था। सूरज हिन्दू धर्म और चांद इस्लाम का प्रतीक था। यह झंडा अब भी पुणे की केसरी मराठा लाइब्रेरी में प्रदर्शित है।


एक गुलाम देश, एक आज़ाद सोच लिए, एक क्रांतिकारी महिला और हमारे देश का अपना पहला झंडा!! आज करीब 114 साल बाद यह घटना बड़ी आम लगती है, लेकिन उस वक्त यह निडरता, बहादुरी और अपने अधिकार को न छोड़ने की मिसाल रही होगी और ऐसी मिसाल पेश करने के लिए भीकाजी कामा को शत-शत नमन।


#Firstflag #india #फ्रीडमफैटर


🙏🏿🙏🏿

Monday, March 28, 2022

माथे का टीका / कृष्ण मेहता

प्रस्तुति - उषा रानी / राजेन्द्र प्रसाद 

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काफी समय पहले की बात है कि एक मन्दिर के बाहर बैठ कर एक भिखारी भीख माँगा करता था । वह एक बहुत बड़े महात्मा जी का शिष्य था, जो कि एक पूर्ण संत थे। उसकी उम्र कोई साठ को पार कर चुकी थी। 

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आने जाने वाले लोग उसके आगे रक्खे हुए पात्र में कुछ न कुछ डाल जाते थे । लोग कुछ भी डाल दें, उसने कभी आँख खोल कर भी न देखा था कि किसने क्या डाला । 

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उसकी इसी आदत का फायदा उसके आस पास बैठे अन्य भिखारी तथा उनके बच्चे उठा लेते थे । वे उसके पात्र में से थोड़ी थोड़ी देर बाद हाथ साफ़ कर जाते थे । 

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कई उसे कहते भी थे कि सोया रहेगा तो तेरा सब कुछ चोरी जाता रहेगा। वह भी इस कान से सुन कर उधर से निकाल देता था। *किसी को क्या पता था कि वह प्रभु के प्यार में रंगा हुआ था। हर वक्त गुरु की याद उसे अपने में डुबाये रखती थी।* 

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*एक दिन ध्यान की अवस्था में ही उसे पता लगा कि उसकी अपनी उम्र नब्बे तक पहुंच जायेगी। यह जानकर वह बहुत उदास हो गया। जीवन इतनी कठिनाइयों से गुज़र रहा था पहले ही और ऊपर से इतनी लम्बी अपनी उम्र की जानकारी - वह सोच सोच कर परेशान रहने लग गया।*


*एक दिन उसे अपने गुरु की उम्र का ख्याल आया। उसे मालूम था कि गुरुदेव की उम्र पचास के आसपास थी। पर ध्यान में उसकी जानकारी में आया कि गुरुदेव तो बस दो बरस ही और रहेंगे।*

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*गुरुदेव की पूरी उम्र की जानकारी के बाद वह और भी उदास हो गया। बार बार आँखों से बूंदे टपकने लग जाती थीं। पर उसके अपने बस में तो नही था न कुछ भी। कर भी क्या सकता था, सिवाए आंसू बहाने के।*

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*एक दिन सुबह कोई पति पत्नी मन्दिर में आये। वे दोनों भी उसी गुरु के शिष्य थे जिसका शिष्य वह भिखारी था। वे तो नही जानते थे भिखारी को , पर भिखारी को मालूम था कि दोनों पति पत्नी भी उन्ही गुरु जी के शिष्य थे।*


*दोनों पति पत्नी लाइन में बैठे भिखारियों के पात्रों में कुछ न कुछ डालते हुए पास पहुंच गये। भिखारी ने दोनों हाथ जोड़ कर उन्हें ऐसे ही प्रणाम किया जैसे कोई घर में आये हुए अपने गुरु भाईओं को करता है।*


*भिखारी के प्रेम पूर्वक किये गये प्रणाम से वे दोनों प्रभावित हुए बिना न रह सके। भिखारी ने उन दोनों के भीतर बैठे हुए अपने गुरुदेव को प्रणाम किया था इस बात को वे जान न पाए।*

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*उन्होंने यही समझा कि भिखारी ने उनसे कुछ अधिक की आस लगाई होगी जो इतने प्यार से नमस्कार किया है। पति ने भिखारी की तरफ देखा और बहुत प्यार से पुछा, कुछ कहना है या कुछ और अधिक चाहिए ?*

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*भिखारी ने अपने पात्र में से एक सिक्का निकाला और उनकी तरफ बढ़ाते हुए बोला , जब गुरुदेव के दर्शन को जायो तो मेरी तरफ से ये सिक्का उनके चरणों में भेंट स्वरूप रख देना ।* 


*पति पत्नी ने एक दुसरे की तरफ देखा , उसकी श्रद्धा को देखा, पर एक सिक्का, वो भी गुरु के चरणों में ! पति सोचने लगा क्या कहूँगा, कि एक सिक्का !  कभी एक सिक्का गुरु को भेंट में तो शायद किसी ने नही दिया होगा , कभी नही देखा।* 


*पति भिखारी की श्रद्धा को देखे तो कभी सिक्के को देखे। कुछ सोचते हुए पति बोला , आप इस सिक्के को अपने पास रक्खो , हम वैसे ही आपकी तरफ से उनके चरणों में रख देंगे ।*

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*नही आप इसी को रखना उनके चरणों में । भिखारी ने बहुत ही नम्रता पूर्वक और दोनों हाथ जोड़ते हुए कहा। उसकी आँखों से झर झर आंसू भी निकलने लग गये।*

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*भिखारी ने वहीं से एक कागज़ के टुकड़े को उठा कर सिक्का उसी में लपेट कर दे दिया । जब पति पत्नी चलने को तैयार हो गये तो भिखारी ने पुछा , वहाँ अब भंडारा कब होगा ?*

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*भंडारा तो कल है , कल गुरुदेव का जन्म दिवस है न। भिखारी की आँखे चमक उठीं। लग रहा था कि वह भी पहुंचेगा , गुरुदेव के जन्म दिवस के अवसर पर।*


*दोनों पति पत्नी उसके दिए हुए सिक्के को लेकर चले गये। अगले दिन जन्म दिवस ( गुरुदेव का ) के उपलक्ष में आश्रम में भंडारा था। वह भिखारी भी सुबह सवेरे ही आश्रम पहुंच गया।*


*भंडारे के उपलक्ष में बहुत शिष्य आ रहे थे। पर भिखारी की हिम्मत न हो रही थी कि वह भी भीतर चला जाए। वह वहीं एक तरफ खड़ा हो गया कि शायद गेट पर खड़ा सेवादार उसे भी मौका दे भीतर जाने के लिए। पर सेवादार उसे बार बार वहाँ से चले जाने को कह रहा था।* 


*दोपहर भी निकल गयी, पर उसे भीतर न जाने दिया गया। भिखारी वहाँ गेट से हट कर थोड़ी दूर जाकर एक पेड़ की छावं में खड़ा हो गया।*

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*वहीं गेट पर एक कार में से उतर कर दोनों पति पत्नी भीतर चले गये। एक तो भिखारी की हिम्मत न हुई कि उन्हें जा कर अपने सिक्के की याद दिलाते हुए कह दे कि मेरी भेंट भूल न जाना। और दूसरा वे दोनों शायद जल्दी में भी थे इस लिए जल्दी से भीतर चले गये और भिखारी बेचारा, एक गरीबी , एक तंग हाली और फटे हुए कपड़े उसे बेबस किये हुए थे कि वह अंदर न जा सके।* 


*दूसरी तरफ दोनों पति पत्नी गुरुदेव के सम्मुख हुए, बहुत भेंटे और उपहार थे, उनके पास, गुरुदेव के चरणों में रखे।* 


*पत्नी ने कान में कुछ कहा तो पति को याद आ गया उस भिखारी की दी हुई भेंट। उसने कागज़ के टुकड़े में लिपटे हुए सिक्के को जेब में से बाहर निकाला, और अपना हाथ गुरु के चरणों की तरफ बढ़ाया ही था तो गुरुदेव आसन से उठ खड़े हुए ,*


*गुरुदेव ने अपने दोनों हाथ आगे बढ़ाकर सिक्का अपने हाथ में ले लिया, उस भेंट को गुरुदेव ने अपने मस्तक से लगाया और पुछा,* 

_*ये भेंट देने वाला कहाँ है, वो खुद क्यों नही आया ?*_


*गुरुदेव ने अपनी आँखों को बंद कर लिया, थोड़ी ही देर में आँख खोली और कहा,* _*वो बाहर ही बैठा है, जाओ उसे भीतर ले आयो।*_


*पति बाहर गया, उसने इधर उधर देखा। उसे वहीं पेड़ की छांव में बैठा हुआ वह भिखारी नज़र आ गया।* 

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*पति भिखारी के पास गया और उसे बताया कि गुरुदेव ने उसकी भेंट को स्वीकार किया है और भीतर भी बुलाया है।*


*भिखारी की आँखे चमक उठीं। वह उसी के साथ भीतर गया, गुरुदेव को प्रणाम किया और उसने गुरुदेव को अपनी भेंट स्वीकार करने के लिए धन्यवाद दिया।*


गुरुदेव ने भी उसका हाल जाना और कहा

 _*प्रभु के घर से कुछ चाहिए तो कह दो आज मिल जायेगा।*_


भिखारी ने दोनों हाथ जोड़े और बोला - 

_*एक भेंट और लाया हूँ आपके लिए, प्रभु के घर से यही चाहता हूँ कि वह भेंट भी स्वीकार हो जाये।*_


_*हाँ होगी, लायो कहाँ है ?*_ 


वह तो खाली हाथ था, उसके पास तो कुछ भी नजर न आ रहा था भेंट देने को, सभी हैरान होकर देखने लग गये कि क्या भेंट होगी !* 


_*हे गुरुदेव, मैंने तो भीख मांग कर ही गुज़ारा करना है, मैं तो इस समाज पर बोझ हूँ। इस समाज को मेरी तो कोई जरूरत ही नही है। पर हे मेरे गुरुदेव , समाज को आपकी सख्त जरूरत है, आप रहोगे तो अनेकों को अपने घर वापिस ले जायोगे।*_


_*इसी लिए मेरे गुरुदेव, मैं अपनी बची हुई उम्र आपको भेंट स्वरूप दे रहा हूँ। कृपया इसे कबूल करें।"*_ 

इतना कहते ही वह भिखारी गुरुदेव के चरणों पर झुका और फिर वापिस न उठा। कभी नही उठा।


वहाँ कोहराम मच गया कि ये क्या हो गया, कैसे हो गया ? सभी प्रश्न वाचक नजरों से गुरुदेव की तरफ देखने लग गये ।


एक ने कहा,  *"हमने भी कई बार कईओं से कहा होगा कि भाई मेरी उम्र आपको लग जाए , पर हमारी तो कभी नही लगी। पर ये क्या, ये कैसे हो गया ?"*


*गुरुदेव ने कहा, _इसकी बात सिर्फ इस लिए सुन ली गयी क्योंकि इसके माथे का टीका चमक रहा था। आपकी इस लिए नही सुनी गयी क्योंकि माथे पर लगे टीके में चमक न थी।_*

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*सभी ने उसके माथे की तरफ देखा, वहाँ तो कोई टीका न लगा था। गुरुदेव सबके मन की उलझन को समझ गये और बोले  _टीका ऊपर नही, भीतर के माथे पर लगा होता है..!!_*

😊

 *आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*

Saturday, March 26, 2022

बायोमेट्रिक स्कैन कराये

 राधास्वामी 

ग्रेसियस हुज़ूर के द्वारा जारी किये गए निर्देश के अनुसार सभी उपदेश प्राप्त सत्संगी और जिज्ञासु का बायोमेट्रिक स्कैन कर उनके UID से लिंक किया जाना अनिवार्य कर दिया गया है और इस कार्य को ३ महीने के अंदर पूरा किया जाना ज़रूरी है (यानि की मई तक) । 

वे सभी सत्संगी और जिज्ञासु जो अप्रैल के भंडारे में स्पेशल परमिशन के तहत दयालबाग़ जाने वाले हैं, कृपया अपने ब्रांच सेक्रेटरी से संपर्क कर प्राथमिकता में अपना बायोमेट्रिक स्कैन करा लें। 

बाकी सभी सत्संगियों का बायोमेट्रिक स्कैन का कार्य उनके ब्रांच सेक्रेटरीज के द्वारा चरणबद्ध तरीके से पूरा किया जायेगा जिसमे आपकी सहभागिता अपेक्षित हैं ताकि इस कार्य को ग्रेसियस हुज़ूर के द्वारा दिए गए समय सीमा के अंदर पूरा किया जा सके। 

आपके ब्रांच सेक्रेटरीज के द्वारा आपको बायोमेट्रिक स्कैन की समय सारिणी आने वाले दिनों में सूचित की जाएगी।

Friday, March 25, 2022

बंगाली साहित्य

 

बँगला भाषा (बाङ्ला भाषा) का साहित्य स्थूल रूप से तीन भागों में बाँटा जा सकता है -

  • प्राचीन साहित्य (950-1,200 ई.),
बंगला साहित्य

Charyapada.jpg
Bankim Chandra Chattopadhyay.jpg Rabindranath Tagore in 1909.jpg Nazrul.jpg
Begum Rokeya.jpg Mir mosharraf hossain.jpg Sarat Chandra Chattopadhyay.jpg
Upendrokishor-ray.gif चित्र:Jibanananda Das.jpg Suakanta Bhattacharya.jpg
चित्र:Shamsur Rahman.jpg Sunil Gangopadhyay taken by Ragib.jpg
चर्यापद पुथि
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्यायरवीन्द्रनाथ ठाकुरकाजी नज़रुल इस्लाम
बेगम रोकेयामीर मशाररफ होसेनशरत्चन्द्र चट्टोपाध्याय

उपेन्द्रकिशोर रायचौधुरी जीवनानन्द दास सुकान्त भट्टाचार्य
शामसुर रहमानसुनील गंगोपाध्यायमहाश्वेता देवी
बांग्ला साहित्य
बांग्ला भाषा
साहित्य का इतिहास
बांग्ला साहित्य का इतिहास
बंगला साहित्यकारों की तालिका
कालानुक्रमिक तालिका - वर्णानुक्रमिक तालिका
बंगाली साहित्यकार
लेखक - उपन्यासकार - कवि
साहित्यधारा
प्राचीन और मध्ययुगीय
चर्यापद - मंगलकाब्य - वैष्णब पदावली और साहित्य - नाथसाहित्य - अनुवाद साहित्य -इसलामि साहित्य - शाक्तपदावली - बाउल गान
आधुनिक साहित्य
उपन्यास - कविता - नाटक - लघुकथा - प्रबन्ध - शिशुसाहित्य - कल्पविज्ञान
प्रतिष्ठान और पुरस्कार
भाषा शिक्षायन
साहित्य पुरस्कार
सम्पर्कित प्रवेशद्बार
साहित्य प्रवेशद्बार
बङ्ग प्रबेशद्बार

  • मध्यकालीन साहित्य (1,200-1,800 ई.), तथा

  • आधुनिक साहित्य (1,800 के बाद)।

प्रारंभिक साहित्य बंगाल के जीवन तथा उसके गुण-दोष-विवेचन की दृष्टि से ही अधिक महत्वपूर्ण है। चंडीदासकृतिवासमालाधर बसुविप्रदास पिपलाईलोचनदासज्ञानदासकविकंकण मुकुन्दरामकृष्णदासकाशीराम दासरायगुणाकर भारतचन्दराय आदि कवि इसी काल में हुए हैं।

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...