Monday, May 31, 2021

शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र /🙏🙏✌️

 शास्त्रों में स्वच्छता के सूत्र /🙏🙏✌️


हमारे पूर्वज अत्यंत दूरदर्शी थे। उन्होंने  हजारों वर्षों पूर्व वेदों व पुराणों में महामारी की रोकथाम के लिए परिपूर्ण स्वच्छता रखने के लिए स्पष्ट निर्देश दे कर रखें हैं- 


1. लवणं व्यञ्जनं चैव घृतं

    तैलं तथैव च । 

    लेह्यं पेयं च विविधं 

    हस्तदत्तं न भक्षयेत् ।। 

       - धर्मसिन्धू ३पू. आह्निक


नामक, घी, तेल, चावल, एवं अन्य खाद्य पदार्थ चम्मच से परोसना चाहिए हाथों से नही।


2. अनातुरः स्वानि खानि न 

    स्पृशेदनिमित्ततः ।।

    - मनुस्मृति ४/१४४


 अपने शरीर के अंगों जैसे आँख, नाक, कान आदि को बिना किसी कारण के छूना नही चाहिए।


3. अपमृज्यान्न च स्न्नातो

    गात्राण्यम्बरपाणिभिः ।। 

    - मार्कण्डेय पुराण ३४/५२


एक बार पहने हुए  वस्त्र धोने के बाद ही पहनना चाहिए। स्नान के बाद अपने शरीर को शीघ्र सुखाना चाहिए।


4. हस्तपादे मुखे चैव पञ्चाद्रे

    भोजनं चरेत् ।।

    पद्म०सृष्टि.५१/८८

    नाप्रक्षालितपाणिपादो

    भुञ्जीत ।।

    - सुश्रुतसंहिता चिकित्सा

    २४/९८

 अपने हाथ, मुहँ व पैर स्वच्छ करने के बाद ही भोजन करना चाहिए।


5. स्न्नानाचारविहीनस्य सर्वाः 

    स्युः निष्फलाः क्रियाः ।।


   - वाघलस्मृति ६९


बिना स्नान व शुद्धि के यदि कोई कर्म किये जाते है तो वो निष्फल रहते हैं।


6. न धारयेत् परस्यैवं

    स्न्नानवस्त्रं कदाचन ।I

    - पद्म० सृष्टि.५१/८६


स्नान के बाद अपना शरीर पोंछने के लिए किसी अन्य द्वारा उपयोग किया गया वस्त्र(टॉवेल) उपयोग में नही लाना चाहिये।


7. अन्यदेव भवद्वासः

    शयनीये नरोत्तम ।

    अन्यद् रथ्यासु देवानाम

    अर्चायाम् अन्यदेव हि ।।

    - महाभारत अनु १०४/८६


पूजन, शयन एवं घर के बाहर  जाते समय अलग- अलग वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए।


8. तथा न अन्यधृतं (वस्त्रं 

    धार्यम् ।।

   - महाभारत अनु १०४/८६


दूसरे द्वारा पहने गए वस्त्रों को नही पहनना चाहिए।


9.  न अप्रक्षालितं पूर्वधृतं

     वसनं बिभृयाद् ।।

    -  विष्णुस्मृति ६४


एक बार पहने हुए वस्त्रों को स्वच्छ करने के बाद ही दूसरी बार पहनना चाहिए।


10. न आद्रं परिदधीत ।।

      - गोभिसगृह्यसूत्र ३/५/२४


गीले वस्त्र न पहनें।


सनातन धर्म ग्रंथो के माध्यम से ये सभी सावधानियां समस्त भारतवासियों को हजारों वर्षों पूर्व से सिखाई जाती रही है।

इस पद्धति से हमें अपनी व्यग्तिगत स्वच्छता को बनाये रखने के लिए सावधानियां बरतने के निर्देश तब दिए गए थे जब आज के जमाने के माइक्रोस्कोप नही थे। लेकिन हमारे पूर्वजों ने वैदिक ज्ञान का उपयोग कर धार्मिकता  व सदाचरण का अभ्यास दैनिक जीवन में स्थापित किया था।

   आज भी ये सावधानियां अत्यन्त प्रासंगिक है। यदि हमें ये उपयोगी लगती हो तो इनका पालन कर सकते हैं।





चणामृत और पंचामृत में क्या अंतर है..??"*/ कृष्ण मेहता

🌹🌹चणामृत और पंचामृत में क्या अंतर है..??"*/ कृष्ण मेहता 


मंदिर में या फिर घर/मंदिर  पर जब भी कोई पूजन होती है, तो चरणामृत या पंचामृत दिया हैं। मगर हम में से ऐसे कई लोग इसकी  महिमा और इसके बनने की प्रक्रिया को नहीं जानते होंगे।


चरणामृत का अर्थ होता है भगवान के चरणों का अमृत और पंचामृत का अर्थ पांच अमृत यानि पांच पवित्र वस्तुओं से बना। दोनों को ही पीने से व्यक्ति के भीतर जहां सकारात्मक भावों की उत्पत्ति होती है,

 वहीं यह सेहत से जुड़ा मामला भी है।


 *चरणामृत क्या है.??* 


शास्त्रों में कहा गया है -

*अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।*

*विष्णो पादोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते।।*


 *अर्थात :*

भगवान विष्णु के चरणों का अमृतरूपी जल सभी तरह के पापों का नाश करने वाला है। यह औषधि के समान है। जो चरणामृत का सेवन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता है।


*कैसे बनता चरणामृत..??* 


तांबे के बर्तन में चरणामृत रूपी जल रखने से उसमें तांबे के औषधीय गुण आ जाते हैं। चरणामृत में तुलसी पत्ता, तिल और दूसरे औषधीय तत्व मिले होते हैं। मंदिर या घर में हमेशा तांबे के लोटे में तुलसी मिला

 जल रखा ही रहता है। 


 *चरणामृत लेने के नियम :*

चरणामृत ग्रहण करने के बाद बहुत से लोग सिर पर हाथ फेरते हैं, लेकिन शास्त्रीय मत है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। इससे नकारात्मक प्रभाव बढ़ता है। चरणामृत हमेशा दाएं हाथ से लेना चाहिए और

श्रद्घाभक्तिपूर्वक मन को शांत रखकर ग्रहण करना चाहिए। इससे चरणामृत अधिक लाभप्रद होता है।


 *चरणामृत का लाभ*  


आयुर्वेद की दृष्टि से चरणामृत स्वास्थ्य के लिए बहुत ही अच्छा माना गया है। आयुर्वेद  के  अनुसार  तांबे  में अनेक रोगों को नष्ट करने की क्षमता होती है। यह पौरूष शक्ति को बढ़ाने में भी गुणकारी माना जाता है। तुलसी के रस से कई रोग दूर हो जाते हैं और इसका जल मस्तिष्क  को  शांति  और निश्चिंतता प्रदान करता हैं। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही साथ चरणामृत बुद्घि, स्मरण शक्ति को बढ़ाने भी कारगर होता है।


 *पंचामृत* 

 *पंचामृत का अर्थ है.*


'पांच अमृत'। दूध, दही, घी, शहद, शक्कर  को मिलाकर पंचामृत बनाया जाता है। इसी से भगवान का अभिषेक किया जाता है। पांचों प्रकार के मिश्रण से बनने वाला पंचामृत कई रोगों में लाभ-दायक और मन को शांति प्रदान करने वाला होता है। इसका एक

आध्यात्मिक पहलू भी है। वह यह कि पंचामृत आत्मोन्नति के 5 प्रतीक हैं। जैसे -


 दूध - दूध पंचामृत का प्रथम भाग है। यह शुभ्रता का प्रतीक है, अर्थात हमारा जीवन दूध की तरह निष्कलंक होना चाहिए।


दही- दही का गुण है कि यह दूसरों को अपने जैसा बनाता है। दही चढ़ाने का अर्थ यही है कि पहले हम निष्कलंक हो सद्गुण अपनाएं और दूसरों को भी अपने जैसा बनाएं।


घी- घी स्निग्धता और स्नेह का प्रतीक है। सभी से हमारे स्नेहयुक्त संबंध हो, यही भावना है।


शहद- शहद मीठा होने के साथ ही शक्तिशाली भी होता है। निर्बल व्यक्ति जीवन में कुछ नहीं कर सकता, तन और मन से शक्तिशाली व्यक्ति ही सफलता पा सकता है।


शक्कर- शक्कर का गुण है मिठास, शकर चढ़ाने का अर्थ है जीवन में मिठास घोलें। मीठा बोलना  सभी  को  अच्छा लगता है और इससे मधुर व्यवहार बनता है।

उपरोक्त गुणों से हमारे जीवन में सफलता हमारे कदम चूमती है। 


पंचामृत के लाभ : पंचामृत का सेवन करने से शरीर पुष्ट और रोगमुक्त रहता है। पंचामृत से जिस तरह हम भगवान को स्नान कराते हैं, ऐसा ही खुद स्नान करने से शरीर की कांति बढ़ती है। पंचामृत उसी मात्रा में  सेवन  करना  चाहिए,  जिस मात्रा में किया जाता है। उससे ज्यादा नहीं        🌹

सकारात्मक परिणाम

 *पॉजिटिविटी* / कृष्ण मेहता 


एक नर्स  लंदन में ऑपरेशन से दो घंटे पहले मरीज़ के कमरे में घुसकर कमरे में रखे गुलदस्ते को संवारने और ठीक करने लगी।


ऐसे ही जब वो अपने पूरे लगन के साथ काम में लगी थी, तभी अचानक उसने मरीज़ से पूछा "सर आपका ऑपरेशन कौन सा डॉक्टर कर रहा है?"


नर्स को देखे बिना मरीज़ ने अनमने से लहजे में कहा "डॉ. जबसन।"


नर्स ने डॉक्टर का नाम सुना और आश्चर्य से अपना काम छोड़ते हुये मरीज़ के पास पहुँची और पूछा "सर, क्या डॉ. जबसन ने वास्तव में आपके ऑपरेशन को स्वीकार किया हैं?


मरीज़ ने कहा "हाँ, मेरा ऑपरेशन वही कर रहे हैं।"


नर्स ने कहा "बड़ी अजीब बात है, विश्वास नहीं होता"


परेशान होते हुए मरीज़ ने पूछा "लेकिन इसमें ऐसी क्या अजीब बात है?"


नर्स ने कहा "वास्तव में इस डॉक्टर ने अब तक हजारों ऑपरेशन किये हैं उसके ऑपरेशन में सफलता का अनुपात 100 प्रतिशत है । इनकी तीव्र व्यस्तता की वजह से  इन्हें समय निकालना बहुत मुश्किल होता है। मैं हैरान हूँ आपका ऑपरेशन करने के लिए उन्हें फुर्सत कैसे मिली?


मरीज़ ने नर्स से कहा "ये मेरी अच्छी किस्मत है कि डॉ जबसन को फुरसत मिली और वह मेरा ऑपरेशन कर रहे हैं ।


नर्स ने एक बार बार कहा "यकीन मानिए, मेरा हैरत अभी भी बरकरार है कि दुनिया का सबसे अच्छा डॉक्टर आपका ऑपरेशन कर रहा है!!"


इस बातचीत के बाद मरीज को ऑपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया गया, मरीज़ का सफल ऑपरेशन हुआ और अब मरीज़ हँस कर अपनी जिंदगी जी रहा है।


मरीज़ के कमरे में आई महिला कोई साधारण नर्स नहीं थी, बल्कि उसी अस्पताल की मनोवैज्ञानिक महिला डॉक्टर थी, जिसका काम मरीजों को मानसिक और मनोवैज्ञानिक रूप से संचालित करना था, जिसके कारण उसे संतुष्ट करना था जिस पर मरीज़ शक भी नहीं कर सकता था। और इस बार इस महिला डॉक्टर ने अपना काम मरीज़ के कमरे में गुलदस्ता सजाते हुये कर दिया था और बहुत खूबसूरती से मरीज़ के दिल और दिमाग में बिठा दिया था कि जो डॉक्टर इसका ऑपरेशन करेगा वो दुनिया का मशहूर और सबसे सफल डॉक्टर है जिसका हर ऑपरेशन सफल ऑपरेशन होता है और इसी पॉजिटिविटी ने मरीज के अन्दर के डर को खत्म कर दिया था। और वह ऑपरेशन थियेटर के अन्दर यह सोचकर गया कि अब तो मेरा आपरेशन सक्सेज होकर रहेगा , मैं बेकार में इतनी चिन्ता कर रहा था। 


*पॉजिटिविटी दीजिये लोगों को...यह आपदा काल है, इस आपदा काल में आप लोगों की जितनी पॉजिटिविटी बढ़ा सकें उतनी बढ़ाइये , क्योंकि इस सम✌️👌🙏🙏🙏👌यह काम ईश्वर की वन्दना से भी बढ़कर है।*

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✒️📇जीवन की पाठशाला 📖🖋️

 ✒️📇जीवन की पाठशाला 📖🖋️


प्रस्तुति - सान्वी सिन्हा



जीवन चक्र ने मुझे सिखाया की किसी भी माँ बाप को अपने बेटे के विवाह से पूर्व मानसिक तौर पर अपने आपको तैयार रखना चाहिए की कल को अगर बेटा कुछ भी नहीं कमाता है तो बहु की और आने वाली नई पीढी की जिम्मेदारी हमारी है ,अगर माँ बाप पुत्र मोह में उसकी गलतियों पर पर्दा डालते हुए अगर बहु से घर -गृहस्थी -रोजगार -काम एवं आय की अपेक्षा रखते हैं तो आप अपने ही बेटे बहु के आगामी भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं ...,


1-1घन्टे करीब की हॉरर /डरावनी मूवी देखने से आपकी करीना 30 मिनट पैदल चलने के बराबर की कैलोरी जल जाती है ...,


2-जन्म के समय एक बेबी पांडा का कद चूहे से भी छोटा होता है ...,


3-हमारी नसों में खून 400किलोमीटर प्रति घंटे की रफ़्तार से दौड़ता है ,मतलब की पूरे दिन में करीना 9600 किलोमीटर की दूरी तय करता है ...,


4-शतरंज में भारत की पहली महिला वर्ल्ड चैंपियन कोनेरू हम्पी हैं ...,


5-दुनिया में सबसे भारी पदार्थ यूरेनियम है ...,


6-भारत में डाक सेवा की शुरुआत 1835 में हुई थी ...,


आखिर में एक ही बात समझ आई की हम बेटे को बेटी नहीं बोलते लेकिन बेटी को बेटा जरूर बोलते हैं ,मतलब की स्त्री का दर्जा पुरुष से कहीं ऊपर का है  ...!


बाक़ी कल , अपनी दुआओं में याद रखियेगा 🙏सावधान रहिये-सुरक्षित रहिये ,अपना और अपनों का ध्यान रखिये ,संकट अभी टला नहीं है ,दो गज की दूरी और मास्क 😷 है जरुरी ...!

🌹सुप्रभात🙏 

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Sunday, May 30, 2021

सम्बंध, भाव और, भक्ति!

 प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


एक किशोरी कन्या एक पूरूष की गोद में आकर बैठ जाती है! आस पास बैठे किसी भी व्यक्ति को कोई असहजता नही हुई! क्यूँ?


कन्या उस व्यक्ति की पूत्रि थी ! सम्बंध भाव का कारण है न केवल व्यक्तिगत रूप से बल्कि उन  सभी के लिए भी जो दर्शक है ! सड़क किनारे रखे या दुकान पे रखे शिला खंड पे आप शीश नही नवाएँगे लेकिन जैसे ही शिला मंदिर की चौखट पे लगता है वंदनीय हो जाता है और जब श्री विग्रह रूप ले लेता है तो क्या कहना ! शिला नही बदलती भाव बदलता है !


गुरु जी कहते है कि भगवान से सम्बंध स्थापित करो और उस सम्बंध को वैसे ही निभाने का प्रयास करो जैसे जीवन में करते हो ! बस यहीं से एक समस्या प्रारम्भ होती है ! मेरे पीता जी मेरी माता जी और उनसे भी ऊपर मेरे दादा जी और दादी जी, मेरी बहन, मेरे अनुज और ज्येस्ठ भ्राता, मेरी पत्नी, मेरी संतान, मेरे मित्र और बोहोत से अन्य सम्बंध है जीवन में इन सभी के प्रति प्रेम का भाव पूष्ट इसलिए होता है क्यूँकि हम इनको जानते है इनसे वार्तालाप करते है या किया है ! हम इनको छू सकते है या छुआ था जीवन में कभी न कभी !


ऐसे भी रिश्ते है जो हमारे ही है किंतु हम चाह कर भी उनके  प्रति प्रेम को महसूस नही कर पाते जैसे अपने पूर्वजों के प्रति जिनको हमने न कभी देखा न सुना है ! बोहोत से बच्चे ऐसे है जिनके माता पीता का साया उनके जन्म के समय ही उठ जाता है वो बच्चे कभी उनके प्रति किसी भाव को महसूस नही कर पाते  ! 


केवल जानना पर्याप्त नही होता ! आप ऐसे लोगों से मिलेंगे जिनकी पारिवारिक शृंखला महान विभूतियों की है जिनको वो ही नही संसार जानता है किंतु वो उनके प्रति भी प्रेम को महसूस नही कर पाते ! सम्मान करते है किंतु प्रेम एक अलग भाव है जिसमें सम्मान स्वतः होता है ! 


तो प्रश्न है फिर भगवान से प्रेम कैसे होगा ?  


उनको जान ने के लिए ग्रंथ है गुरु जी है किंतु उनको महसूस कैसे करे ताकि प्रेम उत्पन्न हो सके? प्रेम ही तो भक्ति के प्रथम सिड़ी है !


नारद भक्ति सूत्र कहता है "प्रेम की परिकास्ठा जो नीस्वार्थ भाव से भरी हो भक्ति कहलाती है!" 


गुरु जी बोले भगवान को महसूस करना समस्त ब्रहम्मांड में सबसे सरल है जीवित में या निर्जीव में , साकार या निराकार किसी भी रूप में भगवान को मान लो जैसे तुम्हारा ह्र्दय स्वीकार करे और अब उनकी सेवा प्रारम्भ करो ! उन्हें अपना सर्वस्व मान लो उनके चरण पखारो, निराकार है तो मानसिक सेवा करो  (मन में सोचो की तुम सेवा कर रहे हो) उनसे बातें करो, उनको बढ़िया से बढ़िया भोजन कराओ, अच्छे अच्छे वस्त्र पहनाओ, दिल खोल के अपने मन की बात बोलो ! उनका ध्यान रखो जैसे सांसारिक सम्बन्धों का रखते हो ! जैसे अपने पुत्र या पूत्रि का रखते हो ! 


स्वार्थ का स्थान संसार में भी नही है और भगवान के साथ बिलकुल भी नही है !

क्या एक पीता अपनी पूत्रि से इसलिए प्रेम करता है की वो उसको कुछ दे ? क्या एक पूत्र माता पीता से केवल इसलिए प्रेम करता है की वो उसको कुछ दे ? जब सम्बन्धों में वयोपार और स्वार्थ आ जाता है तब वो अर्थहीन हो जाते है ऐसे ही भगवान से प्रेम करने में इस स्वार्थ को वयोपार मध्य में मत लाओ ! ये याद रखी वो सर्व अंतर्यामी है साधारण मनुष्य भी मन के भाव को भांप लेता है वो भगवान है मन में ही रहते है !  


तुम पाओगे की जिस रूप में तुमने उन्हें स्वीकार कर लिया है वो उसी रूप में तुम्हारे साथ लीला भी करेंगे ! विश्वास करो अगर तुम किसी निन्दित व्यक्ति में भी भगवान को देख पाए तो वो निन्दित जीव भी तुम्हारे साथ ऐसे व्यवहार करेगा जैसे भगवान से आपेक्षित है ! यही मूल अंतर है एक बुत में और श्री विग्रह में ! अंतर ये नही की एक बुत (पत्थर की मूरत) है और एक भगवान है  भगवान तो दोनों में है तुम्हारा भाव किस मूरत में उन्हें स्वीकार करता है ये मूल अंतर है इसीलिए एक मूरती श्री विग्रह है और दूसरी पत्थर की मूरत !


अब अंतर सुनो ईश्वर से और संसार के सम्बन्धों में वो निभाते है ! वो सुनते है ( "He is a good listener." ) शब्दों के जाल से प्रभावित नही होते तुम्हें अपना मान लिया तो तार के ही रहेंगे भले ही तुम्हें पसंद आए या नही ! तुम बोलो की परेशान हूँ धन चाहिए तो अगर उनको सही नही लगता तुम्हारे लिए तो धन नहीं देंगे ! जैसे नारद जी ने माँगा कुछ रूप था और दे दिया वानर रूप ! ग़ज़ब खेल है हरी के ! 


"अंत भला तो सब भला!" ये शब्द उन्ही के प्रेमियों के लिए सत्य है ! क्यूँकि वो जो दंड देना है या जो प्रारब्ध के कष्ट है इसी जीवन में दे देंगे अगले जन्म के लिए कुछ नही छोड़ेंगे  ! और जीतना इस भाव में अग्रसर होने लगोगे उतने पागल और दीवाने होने लगोगे ! कष्ट भी फीके लगेंगे और सुख भी ! हरी प्रेम की मदिरा सबसे नशीली है इसकी आदत छूटे नही छूटती और मनुष्य इनसे सम्बंध जुड़ने के पश्चात बाक़ी सब सम्बन्धों को बिसरा देता है !  


महाराज बली का सब छिना, वरुण पाश में बांधा और फिर स्वर्ग से भी उत्तम स्थान दिया, ध्रुव जी को खूब अपमान सहन करवाया दूध मुहें बालक को वन के कष्ट भूख प्यास सब सहने दी फिर अति पूजनीय लोक दे दिया, बेचारे नारद जी को वनों में भटकवाया पूरे एक जन्म तड़पाया फिर कहीं अपनाया ग्रंथ भरे पड़े है हरी कि कौतुकी से ! बड़ा चंचल स्वभाव है गोविंद का पूरा आनंद लेते है भक्तों के प्रेम का किंतु भक्त को परीक्षा लगती है और लगनी भी चाहिए ! जो भी हो इस सब में जो आनंद है वो ब्रहम्मांड के सभी सुखों में भी नही है !


श्री सीता राम जी !


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घास का तिनका* 🌱

 *प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


*रामायण में एक घास के तिनके का भी रहस्य है, जो हर किसी को नहीं मालूम क्योंकि आज तक हमने हमारे ग्रंथो को*

सिर्फ पढ़ा, समझने की कोशिश नहीं की।

रावण ने जब माँ सीता जी का हरण करके लंका ले गया तब लंका मे सीता जी वट वृक्ष के नीचे बैठ कर चिंतन करने लगी। रावण बार बार आकर माँ सीता जी को धमकाता था, लेकिन माँ सीता जी कुछ नहीं बोलती थी। यहाँ तक की रावण ने श्री राम जी के वेश भूषा मे आकर माँ सीता जी को 

भ्रमित करने की भी कोशिश की लेकिन फिर भी सफल नहीं हुआ,

रावण थक हार कर जब अपने शयन कक्ष मे गया तो मंदोदरी ने उससे कहा आप  तो राम का वेश धर कर गये थे, फिर क्या हुआ?

रावण बोला- जब मैं राम का रूप लेकर सीता के समक्ष गया तो सीता मुझे नजर ही नहीं आ रही थी ।

रावण अपनी समस्त ताकत लगा चुका था लेकिन जिस जगत जननी माँ को आज तक कोई नहीं समझ सका, उन्हें रावण भी कैसे समझ पाता !

रावण एक बार फिर आया और बोला मैं तुमसे सीधे सीधे संवाद करता हूँ लेकिन तुम कैसी नारी हो कि मेरे आते ही घास का तिनका उठाकर उसे ही घूर-घूर कर देखने लगती हो,

क्या घास का तिनका तुम्हें राम से भी ज्यादा प्यारा है?  

रावण के इस प्रश्न को सुनकर माँ सीता जी बिलकुल चुप हो गयी और उनकी आँखों से आसुओं की धार बह पड़ी।

इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि

जब श्री राम जी का विवाह माँ सीता जी के साथ हुआ,तब सीता जी का बड़े आदर सत्कार के साथ गृह प्रवेश भी हुआ। बहुत उत्सव मनाया गया।    *प्रथानुसार नव वधू विवाह पश्चात जब ससुराल आती है तो उसके हाथ से कुछ मीठा पकवान बनवाया जाता है, ताकि जीवन भर घर में मिठास बनी रहे।* 

इसलिए माँ सीता जी ने उस दिन अपने हाथों से घर पर खीर बनाई और समस्त परिवार, राजा दशरथ एवं तीनों रानियों  सहित चारों भाईयों और ऋषि संत भी भोजन पर आमंत्रित थे।

माँ सीता ने सभी को खीर परोसना शुरू किया, और भोजन शुरू होने ही वाला था की ज़ोर से एक हवा का झोका आया। सभी ने अपनी अपनी पत्तलें सम्भाली,सीता जी बड़े गौर से सब देख रही थी।

ठीक उसी समय राजा दशरथ जी की खीर पर एक छोटा सा घास का तिनका गिर गया, जिसे माँ सीता जी ने देख लिया। लेकिन अब खीर मे हाथ कैसे डालें? ये प्रश्न आ गया। माँ सीता जी ने दूर से ही उस तिनके को घूर कर देखा  वो जल कर राख की एक छोटी सी बिंदु बनकर रह गया। सीता जी ने सोचा 'अच्छा हुआ किसी ने नहीं देखा'।

लेकिन राजा दशरथ माँ सीता जी 

के इस चमत्कार को देख रहे थे। फिर भी दशरथ जी चुप रहे और अपने कक्ष पहुचकर माँ सीता जी को बुलवाया ।

फिर उन्होंने सीताजी से कहा कि मैंने आज भोजन के समय आप के चमत्कार को देख लिया था ।

आप साक्षात जगत जननी स्वरूपा हैं, लेकिन एक बात आप मेरी जरूर याद रखना।

आपने जिस नजर से आज उस तिनके को देखा था उस नजर से आप अपने शत्रु को भी कभी मत देखना।

इसीलिए माँ सीता जी के सामने जब भी रावण आता था तो वो उस घास के तिनके को उठाकर राजा दशरथ जी की बात याद कर लेती थी।

*तृण धर ओट कहत वैदेही*

*सुमिरि अवधपति परम् सनेही*


*यही है उस तिनके का रहस्य* ! 

इसलिये माता सीता जी चाहती तो रावण को उस जगह पर ही राख़ कर 

सकती थी, लेकिन राजा दशरथ जी को दिये वचन एवं भगवान श्रीराम को रावण-वध का श्रेय दिलाने हेतु वो शांत रही !

ऐसी विशालहृदया थीं हमारी जानकी माता !

जय हो प्रभु श्री राम जी की ...


Nidhi Nitya

Neha Yadav

Neetu Sharma

R K Singh

Ramesh Tripathi

Avantika Vandanapu

DrAc Tripathi

Thakur Dron Singh

भक्ति और भगवान"

 .      प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा

             "

          चित्रकूट में एक बार एक पत्र पुष्प विहीन ठूँठ पर भगवान की दृष्टि पड़ी। एक जड़ विहीन अमरबेल उस ठूँठ से लिपटी थी। अमरबेल की हरियाली से, वह ठूँठ हरा भरा लग रहा था।

          सीताजी ने पूछा, "प्रभु ! इतने ध्यान क्या देख रहे हैं ?" रामजी ने कहा, "आप वह ठूँठ देखती हैं, कितना भाग्यशाली है, इसके पास अपनी कुछ शोभा नहीं है, फिर भी यह कितना धन्य है, कि इसे इस अमरबेल का संग मिला, इसकी पूरी शोभा इस बेल के कारण है।"

          सीताजी कहने लगीं, "प्रभु ! धन्य तो यह अमरबेल है, जिसे ऐसा आश्रय मिल गया। नहीं तो यह जड़हीन बेल भूमि पर ही पड़ी दम तोड़ देती, कैसे तो ऊपर उठती, कैसे फलती फूलती, कैसे सौंदर्य को प्राप्त होती ? भाग्य तो इस बेल का है, वृक्ष का तो अनुग्रह है।"

          अब निर्णय कौन करे ? दोनों ही लक्ष्मणजी की ओर देखने लगे। लक्ष्मणजी ने देखा कि उस वृक्ष और बेल से बनी छाया में एक पक्षी बैठा है। लक्षमणजी की आँखें भीग आईं। कहने लगे, "भगवान ! न तो यह वृक्ष धन्य है, न बेल। धन्य तो यह पक्षी है, जिसे इन दोनों की छाया मिली है।"

          ध्यान दें, ब्रह्म तो वृक्ष जैसा अविचल है, वह बस है, जैसा है वैसा है, तटस्थ है। जब भक्ति रूपी लता इससे लिपट जाती है, तब ही यह शोभा को प्राप्त होता है। तो भगवान का मत है कि हमारी शोभा तो भक्ति से है। सीताजी का मत है कि भगवान के ही कारण भक्ति को सहारा है, भगवान की शरण ही न हो, तो शरणागत कहाँ जाएँ ? दीनबंधु ही न होते, तो दीनों को पूछता कौन ?

          परन्तु लक्षमणजी का मत है कि धन्य तो मैं हूँ, माने वह जीव धन्य है, जिसे भक्ति और भगवान दोनों की कृपा मिलती है ।

        

               जय श्रीराम 🙏

भक्ति

 एक नास्तिक की भक्ति🙏🙏🙏🙏

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प्रस्तुति --  रेणु दत्ता /+आशा सिन्हा






हरिराम नामक आदमी शहर के एक छोटी सी गली में रहता था। वह एक मेडिकल दुकान का मालिक था।

सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी,

दस साल का अनुभव होने के कारण उसे अच्छी तरह पता था कि कौन सी दवाई कहाँ रखी है।

वह इस पेशे को बड़े ही शौक से बहुत ही निष्ठा से करता था।

दिन-ब-दिन उसके दुकान में सदैव भीड़ लगी रहती थी,

वह ग्राहकों को वांछित दवाइयों को सावधानी और इत्मीनान होकर देता था।

पर उसे भगवान पर कोई भरोसा नहीं था वह एक नास्तिक था,

भगवान के नाम से ही वह चिढ़ने लगता था।

घरवाले उसे बहुत समझाते पर वह उनकी एक न सुनता था,

खाली वक्त मिलने पर वह अपने दोस्तों के संग मिलकर घर या दुकान में ताश खेलता था।

एक दिन उसके दोस्त उसका हालचाल पूछने दुकान में आए और अचानक बहुत जोर से बारिश होने लगी,बारिश की वजह से दुकान में कोई आ नहीं रहा था।

तो बस फिर क्या, सब दोस्त मिलकर ताश खेलने लगे।


तभी एक छोटा लड़का उसके दूकान में दवाई लेने पर्चा लेकर आया। उसका पूरा शरीर भीगा था।

हरिराम ताश खेलने में इतना मशगूल था कि बारिश में आए हुए उस लड़के पर उसकी नजर नहीं पड़ी।

ठंड़ से ठिठुरते हुए उस लड़के ने दवाई का पर्चा बढ़ाते हुए कहा- "जी मुझे ये दवाइयाँ चाहिए, मेरी माँ बहुत बीमार है, उनको बचा लीजिए. बाहर और सब दुकानें बारिश की वजह से बंद है। आपके दुकान को देखकर मुझे विश्वास हो गया कि मेरी माँ बच जाएगी। यह दवाई उनके लिए बहुत जरूरी है।

इस बीच लाइट भी चली गई और सब दोस्त जाने लगे।

बारिश भी थोड़ा थम चुकी थी,

उस लड़के की पुकार सुनकर ताश खेलते-खेलते ही हरिराम ने दवाई के उस पर्चे को हाथ में लिया और दवाई लेने को उठा,

ताश के खेल को पूरा न कर पाने के कारण अनमने से अपने अनुभव से अंधेरे में ही दवाई की उस शीशी को झट से निकाल कर उसने लड़के को दे दिया।

उस लड़के ने दवाई का दाम पूछा और उचित दाम देकर बाकी के पैसे भी अपनी जेब में रख लिया।

लड़का खुशी-खुशी दवाई की शीशी लेकर चला गया। 

वह आज दूकान को जल्दी बंद करने की सोच रहा था।

थोड़ी देर बाद लाइट आ गई और वह यह देखकर दंग रह गया कि उसने दवाई की शीशी समझकर उस

लड़के को दिया था, वह चूहे मारने वाली जहरीली दवा है,

जिसे उसके किसी ग्राहक ने थोड़ी ही देर पहले लौटाया था,

और ताश खेलने की धुन में उसने अन्य दवाइयों के बीच यह सोच कर रख दिया था कि ताश की बाजी के बाद फिर उसे अपनी जगह वापस रख देगा।

अब उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।

उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया। उस लड़के बारे में वह सोच कर तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार माँ को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी।

लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा। एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया

पर यह बात तो बाद के बाद देखा जाएगी।

अब क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता।

कैसे उस बीमार माँ को बचाया जाए?

सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में।


हरिराम को कुछ सूझ नहीं रहा था।

घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था। घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा।

पहली बार उसकी दृष्टि दीवार के उस कोने में पड़ी, जहाँ उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उदघाटन के वक्त लगाई थी,

पिता से हुई बहस में एक दिन उन्होंने हरिराम से भगवान को कम से कम एक शक्ति के रूप मानने और पूजने की मिन्नत की थी।

उन्होंने कहा था कि भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है।

हरिराम को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आज़माना चाहा।

उसने कई बार अपने पिता को भगवान कृष्ण की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था।

उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।

थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया।

हरिराम को पसीने छूटने लगे।

वह बहुत अधीर हो उठा।

पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी...बाबूजी माँ को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुँच भी गया था, बारिश की वजह से ऑंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई।

क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं ?

लड़के ने उदास होकर पूछा।


हाँ! हाँ ! क्यों नहीं?

हरिराम ने राहत की साँस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!

पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा,

पर मेरे पास तो अभी पुरे पैसे नहीं है,

उस लड़के ने हिचकिचाते हुए बड़े भोलेपन से कहा।

हरिराम को उस बिचारे पर दया आई।

कोई बात नहीं- तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी माँ को बचाओ।

जाओ जल्दी करो, और हाँ अब की बार ज़रा संभल के जाना।

लड़का, अच्छा ...कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।


अब हरिराम की जान में जान आई।

भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया।

अपने भीतर हुए इस परिवर्तन को वह पहले अपने घरवालों को सुनाना चाहता था।

जल्दी से दुकान बंद करके वह घर को रवाना हुआ।

उसकी नास्तिकता की घोर अंधेरी रात भी अब बीत गई थी और अगले दिन की नई सुबह एक नए हरिराम की प्रतीक्षा कर रही थी।

मनुष्य चाहे नास्तिक हो परंतु जब वो परेशानी में होता है और सब जगह से वो असफल होता है तो फिर उससे भगवान की याद आती ही है 

भगवान श्री कृष्ण भी बहुत प्यारे है बहुत जल्द भक्त पर प्रसन्न हो जाते है अगर कोई प्यार से उन्हे अपने आप को समर्पित कर दे तो वो उसे अपनी शरण में ले लेते है चाहे वह कितना ही दुराचारि क्यों ना हो। भगवान भक्त को मुसीबत में देखते है तो दौडे चले आते है।

भगवान अत्यन्त दयालू है श्री कृष्ण की माया से तो ब्रह्मा विष्णु और महेश भी मोहित है वह भी उनकी माया का वर्णन नहीं कर सकते।

जय हो गौलोक धाम के अधिपति की।


क्षमा करें लेख में अगर कही त्रुटी हो तो।

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा। 

पित मात स्वामी सखा हमारे हे नाथ नारायण वासुदेवा।। 

राजाधिराज महाराज द्वारिकाधीश भगवान की जय 

श्री भगवान के शुद्ध भक्तों की जय 🙏


आपका हर पल मंगलमय हो। 

श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेवा। 

*जय श्री कृष्ण*

*प्रेम से बोलो "जय श्री कृष्ण*

*विनम्र निवेदन ...एक बार श्रीमद्भगवद्गीता अवश्य पढ़े अपने जीवन में* । 🙏

*परम भगवान श्री कृष्ण सदैव आपकी स्मृति में रहें*

*श्री कृष्ण शरणं मम*

*ये महामंत्र नित्य जपें और खुश रहें। 😊*

सदैव याद रखें और व्यवहार में आचरण करें। ईश्वर दर्शन अवश्य होंगे।

*श्रीमद्भगवद्गीता ज्ञान परिवार*

ईश्वर लीला की परख पहचान

 अध्याय ९      POST २


भगवान के स्वरूप की समझ।


प्रस्तुति -  रेणु दता / आशा सिन्हा 



मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।

 मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेषवस्थितः॥


मुझ निराकार परमात्मा से यह सब जगत्‌ जल से बर्फ के सदृश परिपूर्ण है और सब भूत मेरे अंतर्गत संकल्प के आधार स्थित हैं, किंतु वास्तव में मैं उनमें स्थित नहीं हूँ। 


जैसे बीज ही वृक्ष हो जाता है, अथवा स्वर्ण ही अलंकार हो जाता है, वैसे ही मुझ एक का ही विस्तार यह जगह है।  अव्यक्त दशा में यह जमा हुआ है, और वही विश्वा कार होते हुए मानो पिघल जाता है, इस प्रकार निराकार ब्रह्म त्रिलोक के रूप से साकार हुआ है।  महत्त्व से लेकर देह तक यह संपूर्ण भूत मात्र मुझ में ही प्रतिबंधित है।  पर मैं उनमें नहीं जैसे जल से ही फैन दिखाई देता है पर फैन में जल नहीं। 

 ॥4॥


न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्‌।

 भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः॥


वे सब भूत मुझमें स्थित नहीं हैं, किंतु मेरी ईश्वरीय योगशक्ति को देख कि भूतों का धारण-पोषण करने वाला और भूतों को उत्पन्न करने वाला भी मेरा आत्मा वास्तव में भूतों में स्थित नहीं है। 


भूमि के भीतर से क्या घड़ों गागर का स्वयं सिद्ध अंकुर निकलता है??? वे तो कुम्हार की ही बुद्धि उत्पन्न होते हैं।  अथवा समुद्र के पानी में क्या तरंग की खान रहती है?? वह क्या वायु का भिन्न भिन्न कार्य नहीं है??   कपास के पेट में क्या कपड़े की संदूक भरी रहती है?? वह तो केवल पहनाने हारे के दृष्टि से ही कपड़ा कहलाता है।  यद्यपि स्वर्ण अलंकार बन जाता है तथा भी उसका स्वर्णत्व नहीं घटता।  और जो अलंकार है वह पहने हारे की भावना के है अनुसार ही होते हैं।  कहो प्रतिध्वनि से जो शब्द उठता है, अथवा दर्पण में जो रूप दिखाई देता है, वह पहले से ही वहां मौजूद रहता है?? या सचमुच में हमारे बोलने व देखने से होता है।  वैसे ही मेरे इस निर्मल स्वरूप में जो पदार्थ की कल्पना स्थापित कराता है उसी के संकल्प के कारण पदार्थों का आभास होता है।  यदि उस कल्पना स्थापित करने वाले प्रकृति का अंत हो जाए तो साथ ही भूताभाश भी लुप्त हो जाता है।  और एक शा मेरा शुद्ध स्वरूप ही बचा रहता है। 

आप ही आप चक्कर खाने से जैसे गिरी कंदर घूमते दिखाई देते हैं, वैसे ही अपने ही कल्पना के कारण अखंड ब्रह्म की जगह भूत मात्रा दिखाई देती है।  वही, करना छोड़कर देखो तो मैं सब पदार्थों में हूं,  और सब पदार्थ मुझ में है यह बात सपना में भी आने योग्य नहीं है।  

इसलिए हे प्रियतम इस प्रकार मैं विश्व का आत्मा हूं।  जो इस मिथ्या भूत ग्राम में सर्वदा भावना करने योग्य है।  जैसे सूर्य की किरणों  के आधार पर अवास्तविक मृगजल  दिखाई देता है।  वैसे ही मेरे अधिष्ठान पर सब भूत मात्रा दिखाई देता है, और वह मेरी ही भावना करता है।  इस प्रकार मैं भूत मात्र का उत्पन्न करने वाला हूं, तथा कि उन सभी से अभिन्न हूं, जैसे प्रभा और सूर्य दोनों एक ही है।  अब तुम हमारा ऐश्वर्य योग अच्छी तरह देख चुके।  अब कहो, क्या इस प्राणियों के भेद का कुछ संबंध है???  तात्पर्य यह कि यथार्थ में प्राणी मुझसे भीन्न नहीं है।  और मुझे भी मुझे भी कभी प्राणियों से भिन्न मत मानो। 

 ॥5॥

भगवान श्रीकृष्ण कहते है की  जैसे प्रभा और सूर्य दोनों एक ही है, वैसे ही प्राणी मुझसे भीन्न नहीं है।  और मुझे भी मुझे भी कभी प्राणियों से भिन्न मत मानो। 


अस्तु। 


सद्गुरु नाथ महाराज की जय।

अटल मृत्यु

 मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए


प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा




एक बार भगवान विष्णु गरुड़ पर बैठ कर कैलाश पर्वत पर गए। द्वार पर गरुड़ को छोड़ कर श्री हरि खुद शिव से मिलने अंदर चले गए। तब कैलाश की प्राकृतिक शोभा को देख कर गरुड़ मंत्रमुग्ध थे कि तभी उनकी नजर एक खूबसूरत छोटी सी चिड़िया पर पड़ी। चिड़िया कुछ इतनी सुंदर थी कि गरुड़ के सारे विचार उसकी तरफ आकर्षित होने लगे।


उसी समय कैलाश पर यम देव पधारे और अंदर जाने से पहले उन्होंने उस छोटे से पक्षी को आश्चर्य की दृष्टि से देखा। गरुड़ समझ गए उस चिड़िया का अंत निकट है और यमदेव कैलाश से निकलते ही उसे अपने साथ यमलोक ले जाएँगे।


गरूड़ को दया आ गई। इतनी छोटी और सुंदर चिड़िया को मरता हुआ नहीं देख सकते थे। उसे अपने पंजों में दबाया और कैलाश से हजारो कोश दूर एक जंगल में एक चट्टान के ऊपर छोड़ दिया, और खुद वापिस कैलाश पर आ गया। आखिर जब यम बाहर आए तो गरुड़ ने पूछ ही लिया कि उन्होंने उस चिड़िया को इतनी आश्चर्य भरी नजर से क्यों देखा था ?


यम देव बोले "गरुड़ जब मैंने उस चिड़िया को देखा तो मुझे ज्ञात हुआ कि वो चिड़िया कुछ ही पल बाद यहाँ से हजारों कोस दूर एक नाग द्वारा खा ली जाएगी। मैं सोच रहा था कि वो इतनी जल्दी इतनी दूर कैसे जाएगी, पर अब जब वो यहाँ नहीं है तो निश्चित ही वो मर चुकी होगी।"


गरुड़ समझ गये "मृत्यु टाले नहीं टलती चाहे कितनी भी चतुराई की जाए।"

इस लिए श्री कृष्ण कहते है- करता तू वह है, जो तू चाहता है

परन्तु होता वह है, जो में चाहता हूँ

कर तू वह, जो में चाहता हूँ

फिर होगा वो, जो तू चाहेगा ।


                           जय भोलेनाथ

सीता हरण रावण छल

 🌀*#हनुमानजी_का_दशांश_और_बाली*🌀

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प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


#लंकाधिपति_रावण साधु का वेश धारण कर छल से माता जानकी का हरण कर उन्हें अपनी स्वर्णनगरी लंका ले गया।‌ #श्रीराम अपने अनुज #लक्ष्मण के साथ सीताजी की खोज में वन-वन भटकते हुए ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचे तो वहां उनका साक्षात्कार ब्राह्मण वेशधारी हनुमान से  हुआ। प्रभु श्रीराम ने अपने वन-वन भटकने का कारण हनुमान को बताया। 🏹श्रीराम ने तो अपना परिचय दशरथ सुत के रूप में दिया किन्तु #हनुमान_जी ने अपने दिव्य नेत्रों से पहचान लिया कि जिनकी अर्चना वह अपने बाल्यकाल से कर रहे हैं वहीं जगतस्वामी मुनि वेश में उनके सम्मुख हैं।मन ही मन प्रभु को प्रणाम कर हनुमान उन्हें अपने कंधों पर धारण कर सुग्रीव के निकट ले गए। सुग्रीव ने श्रीराम को सीताजी की खोज करने में पूर्ण सहयोग का वचन दिया।


#ऋष्यमूक_पर_निवास_के_मध्य ही हनुमान ने अपने इष्ट श्रीराम को #सुग्रीव और #बाली के मध्य की वैमनस्यता व प्रतिद्वंदता के विषय में बताकर सुग्रीव की सहायता का अनुरोध किया।


एक दिवस #पत्थरशिला पर लक्ष्मण के साथ बैठे ‌🏹श्रीराम सीताजी के संदर्भ में विचार विमर्श कर रहे थे तो हनुमान ने पुनः #सुग्रीव_को_बाली_से_भयमुक्त कराने की।श्रीराम ने अपने अधरों पर मुस्कान बिखेरते हुए कहा-"अंजनि पुत्र,इस शुभ कार्य  हेतु तुम अकेले ही सक्षम हो तो मेरी सहायता की आवश्यकता क्यों?"


हनुमान ने अपने प्रभु के समक्ष अपना सिर झुका दिया-"आप सर्वज्ञ हैं #परमेश्वर लेकिन आपका यह सेवक चाहता है कि बाली को सद्गति आपके #सानिध्य से मिले।"


"नहीं #हनुमंत।उसे सद्गति तो तुम्हारे हाथ से मृत्यु पाकर भी प्राप्त होगी।फिर.....!"🏹श्रीराम ने कहना चाहा।


हनुमान श्रीराम के समक्ष हाथ जोड़कर खड़े होकर बोले-"आपका सेवक #वचनबद्ध है #ब्रह्मा_जी के कारण। आपके कर कमलों से ही यह शुभ कार्य होना है प्रभु!"


"वचनबद्धता?...कैसी वचनबद्धता हनुमान?बाली के मध्य ब्रह्मा जी का प्रवेश क्यों? मुझे बताओ।"श्रीराम ने #प्रश्न किया।


"प्रभु आप तो #सर्वव्यापक और #सर्वज्ञाता हैं।#ब्रह्मांड में ऐसा कुछ घटित हो ही नहीं सकता जो आप से अदृश्य रह सके इसलिए.....‌।"हनुमान की बातों का आशय समझते हुए श्रीराम ने हनुमान को रोकते हुए कहा-


"यह बात अलग है हनुमंत मगर #देव भी तो कभी कभी #सोते हैं, ज्ञात है न तुम्हें? इसलिए अपने मुखारबिंद से सारा वृत्तांत कहो।"


"जैसी आज्ञा प्रभु!हे जगन्नाथ,सुग्रीव और बाली दोनों ब्रह्मा के औरस ( #वरदान_द्वारा_प्राप्त ) पुत्र हैं।

ब्रह्मा जी द्वारा बाली को‌ वरदान प्राप्त था कि जो भी उससे युद्ध करने उसके सामने आएगा उसकी #आधी_शक्ति बाली में समाहित हो जाएगी। #इसीलिए बाली को #अजेय कहा जाता है।"


 कुछ पल के लिए हनुमान ने अपनी वाणी को विश्राम देकर पुनः कहा-"इस वरदान को प्राप्त कर बाली #अभिमान_का_पर्याय बन गया प्रभु।उसका अभिमान तब और विस्तार पा गया जब त्रिलोक विजेता रावण से युद्ध में उसने रावण को परास्त कर अपनी #कांख(बगल) में धारण कर छह महीने तक पूरी दुनिया में भ्रमण किया।तबसे बाली अपने आपको संसार का सबसे बड़ा योद्धा समझने लगा है और उसका यही अभिमान उसकी सबसे #बड़ी_त्रुटि बन गया।" 


"अपनी शक्ति से गर्वित एक दिन बाली एक जंगल मे पेड़ पौधों को तिनके के समान उखाड़ कर फेंक रहा था;अमृत समान जल के सरोवरों को मिट्टी से कीचड़ करते हुए बार बार #देव और #नरों को अपने से युद्ध करने की चुनोती दे रहा था।हे त्रिलोकीनाथ! संयोगवश उस समय जंगल में आपका यह सेवक आपके नाम के उच्चारण में लीन था।"कहकर हनुमान ने प्रभु श्रीराम के चरणों में अपना सिर झुका लिया।


हनुमान ने प्रसंग को आगे विस्तार देते हुए कहा-"बाली के इस #अनैतिक व #अमर्यादित कृत्य से मेरे 'राम_नाम' के जाप में विघ्न हो गया तो मैंने बाली के सामने जाकर अनुरोध किया- हे परमवीर, हे ब्रह्मांश, हे राजकुमार बाली( तब बाली किष्किंधा के युवराज थे)आप इस शांत जंगल को अपनी शक्ति के अभिमान की अग्नि में क्यों जला रहे हैं?अमृत समान सरोवरों को क्यों दूषित कर रहे हैं? प्रकृति से दुर्व्यवहार की सजा सदियों को भुगतना पडती है।इससे तुम्हे क्या प्राप्त होगा?क्यों प्रकृति के प्रकोप का भाजन और कारण बनना चाहते हो? इसलिए हे कपि राजकुमार, अपनी शक्ति के घमंड को शांत कर 'राम नाम' का जाप करो।इससे तुम्हारे मन में अपने बल का भान नही होगा और *राम नाम* के जाप से तुम्हारे इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाएंगे।"


हनुमान ने आगे बताया-"अपने बल के मद चूर बाली ने मुझसे कहा-ए तुच्छ वानर!राजकुमार बाली को ज्ञान मत दे।शक्ति के समक्ष हर ज्ञान व्यर्थ होता है। मेरी हुंकार से विशालकाय पर्वत भी खण्डहर बन जाते हैं।है कौन यह राम? कैसा है,कहां रहता है? मैंने तो कभी इसका नाम सुना नहीं किसी के मुख से। मैंने उसे बताया कि अपरंपार महिमा के स्वामी 🏹प्रभु_श्रीराम तीनो लोकों के स्वामी है। भगवान श्रीराम उस सागर के समान हैं जिसकी एक बूंद पाकर मानव #भवसागर से पार  हो जाता है।मेरे ज्ञान  को सुनकर क्रोधित बाली बोल उठा- इतना ही महान है🥀राम ...तो बुला अपने उस महान राम को। मैं भी उसकी भुजाओं के बल को तौल कर देखूं।"


कौशल्या-नंदन बहुत ही तन्मयता से हनुमान के प्रसंग को सुन रहे थे! उसी तन्मयता में उनके मुख से उच्चरित हो गया-"आगे बोलो महावीर!"


हनुमान ने आगे कहा-"प्रभु,बाली के कठोर वचन सुनकर मेरा क्रोध अंकुरित हो उठा तो मैंने उसकी चेतना को झंकृत करने के उद्देश्य से कहा-श्रीराम तो समय आने पर तुम्हारे सामने आएंगे अहंकारी बाली,इस समय उनका एक *तुच्छ_सेवक* तुम्हारे समक्ष है पहले उससे ही संग्राम कर लो।अहंकार में चूर बाली मुझसे युद्ध को तैयार होकर बोला-उचित है।कल नगर के मध्य हमारा युद्ध होगा।"


🏹मर्यादा_पुरुषोत्तम_श्रीराम ने सब कुछ जानते हुए भी अनजान बनने के प्रयास में हनुमान जी का उत्साह बढाया-"प्रिय वीर हनुमान,क्या तुम्हें बाली के समक्ष अपनी शक्ति के आधा हो जाने का भय नहीं सताया?आगे कहो ... फिर क्या हुआ?देखो,... सभी जिज्ञासा से तुम्हें देख रहे हैं।"


हनुमान जी ने एक बार सभी को निहारते हुए आगे बताया- "प्रभु,जिस पर प्रभु की कृपा हो, विश्वास हो उसके निकट भय आ ही नहीं सकता।बाली नगर में इस युद्ध की घोषणा कराने चला गया तो मैं अपने आराध्य की उपासना में संलग्न हो गया। अगले दिन तय समय पर मैं युद्ध के उद्देश्य से जब अपने घर से गमन कर रहा था तभी मेरे सामने 🌸ब्रह्मा_जी प्रगट हुए। सृष्टि के रचियता को अपने सम्मुख पाकर मैंने उन्हें सादर प्रणाम करते हुए निवेदन किया- हे जगत पिता,एक तुच्छ वानर के घर आपका आगमन किस प्रयोजन से हुआ है? आदेश किया होता तो मैं स्वयं आपकी सेवा में उपस्थित हो जाता।"


ब्रह्मा जी ने मुझसे कहा -" हे पवनपुत्र, हे शिवांश, हे अंजनि सुत, हे राम भक्त हनुमान....पुत्र बाली को उसकी उद्दंडता और असभ्यता के लिए क्षमा करते हुए  युद्ध के लिए प्रस्थान मत करो।"


ब्रह्मा जी के अनुरोध को सुनकर मैंने उनके समक्ष अपना पक्ष रखते हुए कहा-"हे प्रभु,बाली ने यदि मात्र मेरा अपमान किया होता तो मेरे पास उसके लिए 🌷क्षमादान सुरक्षित है मगर अभिमानवश उसने मेरे आराध्य प्रभु श्रीराम का अनादर किया है।अब वह क्षमा का नहीं दण्ड का अधिकारी है।मात्र मेरे बारे में कहा होता तो मैं उसे क्षमा कर देता।यदि आज मैं उसकी चुनौती से मुख मोड़ लूं तो सारी सृष्टि में यह संकेत जाएगा कि कायर हनुमान एक बलवान योद्धा से भयातुर हो गया।मेरा पक्ष सुन ब्रम्हा जी ने कहा-यदि ऐसा है महावीर तो मेरा एक निवेदन स्वीकार कर लो कि युद्धस्थल पर अपनी शक्ति का 🔥दशांश🔥 ही लेकर जाना, अपनी शक्ति के शेष भाग को अपने आराध्य के चरणों में रख जाना। ब्रह्मा जी का अपमान हो यह मैं कैसे स्वीकार कर सकता हूं? उनके मान की रक्षा के लिए मैं अपनी शक्ति का दशांश लेकर युद्धस्थल पर पहुंच गया।"इतना कहकर हनुमान ने अपने आराध्य को निहारा तो पाया कि श्रीराम तो उन्हीं की ओर देख रहे हैं।


हनुमान को अपनी ओर निहारते देख भगवान ने कहा- "आगे का वृत्तांत कहो केसरी नंदन!"


हनुमान जी ने आगे बताया-" हे दयासिंधु, वहां पहुंचने पर मैंने युद्ध के लिए ललकारते बाली को पाया।सारा नगर दो महायोद्धाओं के संग्राम को देखने के लिए व्यातुर था।बाली की ललकार पर मैं अखाड़े में पांव रखकर उसके सम्मुख खड़ा हुआ तो मेरी आधी शक्ति उसमें समाहित हो गई।मेरी शक्ति बाली के शरीर में समाहित हुई तो उसके शरीर में बदलाव आरंभ होने लगे। शक्ति का अथाह सागर हिलोरें लेने लगा उसके शरीर में, शक्ति से विस्तारित शरीर को चीरकर रक्त बहने लगा।अचंभित बाली बस अपने ही शरीर को देख रहा था, उसके बदलाव को देख रहा था।वह समझ ही नहीं पा रहा था कि उसके साथ हो क्या रहा है?


तभी वहां बाली के समक्ष प्रकट हुए 🥀ब्रह्मा जी ने उसे समझाया- समय व्यर्थ किए बिना अविलंब यहां से बहुत दूर चले जाओ पुत्र वरना अनहोनी तुम्हारे अभिनंदन के लिए तैयार है। 🌀किंकर्तव्यविमूढ़ बाली अपनी दयनीय दशा और ब्रह्मा जी के वचन का आश्य समझ वहां से कहीं दूर निकल जाने के उद्देश्य से भाग दिया।शरीर से बहता रक्त उसके जाने की दिशा की चुगली कर रहा था। दूर......दूर.......और ज्यादा दूर फिर थक कर गिर पड़ा बाली।होश आया तो उसने अपने सामने फिर ब्रह्मा जी को पाया तो अवाक् बाली के मुख से निकला-यह सब क्या हो रहा है मेरे साथ?ब्रह्मा जी ने बाली को जब सारा वृत्तांत बताया तो वह विस्मित हो गया।"


"सृष्टि के रचनाकार ब्रह्मा जी ने क्या कहा बाली से, अतुलित बलधाम?"सहजता की प्रतिमूर्ति बने सुमित्रानंदन लक्ष्मण ने जिज्ञासावश हनुमान जी से प्रश्न किया।


"ब्रह्मा जी ने बाली को बताया कि किस तरह उन्होंने मुझे अपनी शक्ति का दशमांश ही ले जाने को राजी किया।ब्रह्मा जी ने बाली से कहा-पुत्र! यदि पवनपुत्र अपनी शक्ति का मात्र दसवां हिस्सा न लेकर अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ तुम्हारे सामने आते तो कल्पना करो कि तुम्हारी दशा क्या होती? उनके बल का आधा हिस्सा पाकर तुम्हारा शरीर उसे न सहकर टुकड़ों में उसी पल विभक्त हो जाता और तुम्हरा वरदान तुम्हारे लिए अभिशाप बन जाता।यह सब सुनकर बाली सर्दी में भी  पसीने-पसीने हो गया और मैं कुछ दूर एक पेड़ पर बैठा सब सुन रहा था।ब्रह्मा जी ने आगे कहा-पुत्र पवनपुत्र से मैंने वचन ले लिया है। तुम्हें ध्यान रखना होगा कि हनुमान तुमसे कभी रुष्ट न हों। तुम भी बजरंगबली के आराध्य की उपासना कर उनसे अपनी मुक्ति का वरदान प्राप्त करो। तभी से बाली को आपकी प्रतीक्षा है प्रभु।अब समय आ गया है उसकी मुक्त का प्रभु।" कहकर हनुमान अविचल भाव से हाथ जोड़कर अपने आराध्य के समक्ष नतमस्तक हो गए।


🏹❗🏹*जय श्री राम जय श्री राम,*🏹❗🏹

🚩❗🚩*पवनपुत्र हनुमान की जय*,🚩❗🚩

साला हैं भाई साला हैं / संदीप शर्मा

 महत्वपूर्ण जानकारी क्यों कहते हैं पत्नी के भाई को साला*धर्मपत्नी के भाई को साला क्यों कहते हैं? कितना श्रेष्ठ और सम्मानित होता है...*

         "साला" शब्द की रोचक जानकारी

हम प्रचलन की बोलचाल में *साला* शब्द को एक *"गाली"* के रूप में देखते हैं साथ ही *"धर्मपत्नी"* के भाई/भाइयों को भी "साला", *"सालेसाहब"* के नाम से इंगित करते हैं। 

*"पौराणिक कथाओं"* में से एक *"समुद्र मंथन"* में हमें एक जिक्र मिलता है, मंथन से जो *14 दिव्य रत्न* प्राप्त हुए थे वो :

कालकूट (हलाहल), ऐरावत, कामधेनु, उच्चैःश्रवा, कौस्तुभमणि, कल्पवृक्ष, रंभा (अप्सरा), महालक्ष्मी, शंख (जिसका नाम साला था!), वारुणी, चन्द्रमा, शारंग धनुष, गंधर्व, और अंत में अमृत। 


*"लक्ष्मीजी"* मंथन से *"स्वर्ण"* के रूप में निकली थी, इसके बाद जब *"साला शंख"* निकला, तो उसे *लक्ष्मीजी* का भाई कहा गया!

*दैत्य और दानवों* ने कहा कि अब देखो लक्ष्मीजी का *भाई साला (शंख)* आया है ..

तभी से ये प्रचलन में आया कि नव विवाहिता "बहु" या *धर्मपत्नी* जिसे हम *"गृहलक्ष्मी"* भी कहते है, उसके भाई को बहुत ही पवित्र नाम साला कह कर पुकारा जाता हैं।


समुद्र *मंथन* के दौरान "पांचजन्य साला शंख" *प्रकट* हुआ, इसे भगवान *विष्णु* ने अपने पास रख लिया।

इस शंख को *"विजय का प्रतीक"* माना गया है, साथ ही इसकी ध्वनि को भी बहुत ही शुभ माना गया है।

*विष्णु पुराण* के अनुसार *माता लक्ष्मी* समुद्रराज की पुत्री हैं तथा शंख उनका *सहोदर* भाई है।

अतः यह भी मान्यता है कि जहाँ *शंख है*, वहीं *लक्ष्मी* का वास होता है।

इन्हीं कारणों से *हिन्दुओं* द्वारा पूजा के दौरान *शंख* को बजाया जाता है।


जब भी *धन-प्राप्ति* के उपाय करो "*शंख" को कभी नजर अंदाज ना करे, *लक्ष्मीजी* का चित्र या प्रतिमा के नजदीक रखें।

जब भी किसी जातक का साला या जातिका का भाई खुश होता है तो ये उनके यहाँ *"धन आगमन"* का शुभ सूचक होता है और इसके विपरीत साले से *संबंध बिगाड़ने पर जातक घोर दरिद्रता का जीवन जीने लगता है।


अतः *साले* साहब को सदैव *प्रसन्न* रखें

 *लक्ष्मी* स्वयं चलकर आपके घर दस्तक देगी और है तो बनी रहेगी.......!


आलेख:---

संदीप शर्मा

(वास्तु, कर्मकाण्ड व कुंडली परामर्श)

पुजारी--माँ भद्रकाली मंदिर इटखोरी, चतरा

सम्पर्क सूत्र-9931585660

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लॉक डाउन कथा / रवीश कुमार

 कोरोना की कहानियाँ... / रवीश कुमार 


देख रहा था कि कोई एटीएम के बाहर आकर बैठ गया है। बाहर आते ही एक हट्ठा-कट्ठा आदमी रोने लगा। सामने उसकी साइकिल लगी थी ।साइकिल पर प्लास्टिक के खिलौने। तरह तरह के रंग और आकार वाले। उसने कहा कि पता नहीं क्या हुआ है। बच्चे बाहर ही नहीं आते हैं। मेरा खिलौना नहीं बिक रहा है। मेरे बच्चे दो दिन से भूखे हैं। मैंने कुछ पैसे देने चाहे। उसने लेने से मना कर दिया। कहने लगा कि राशन ख़रीद दीजिए। पैसा नहीं लूँगा। मैं ठग नहीं हूँ। यह कह कर रोने लगा। मुझे समझाना पड़ा कि मेरी हालत ऐसी नहीं है कि दुकान में जाकर इतना सामान ख़रीदूँ। तुम ये पैसे रख लो। तब भी न ले। बोला कि आपको विश्वास ही नहीं होगा। इसलिए पैसा नहीं चाहिए। आप चावल दाल और तेल ख़रीद दो। मुझे ख़ुद ही एक पहाड़ जैसी ख़बर का सामना करने जाना था। बहुत समझाया कि मैं पूरा भरोसा करता हूँ कि तुम ठग नहीं हो। कोई और समय होता तो राशन ख़रीद कर देता लेकिन पैसे रख लो। बहुत मुश्किल से लिया। फिर रोने लगा कि सही में मेरे बच्चे दो दिन से नहीं खाए हैं। अब मुझे मुड़ना पड़ा और कहना पड़ा कि तुम जो कह रहे हो वही सही है। सिर्फ़ तुम्हारे लिए सही नहीं है इस देश में लाखों लोगों के लिए सही है। यह मैं जानता हूँ। तुमने कुछ भी झूठ नहीं कहा। भले यह तुम्हारा सच न हो लेकिन लाखों लोगों का सच तो है। इसलिए ज़्यादा मत सोचो। खाना लेकर घर जाओ।


नोट- बहुत से लोग लिख रहे हैं कि बैंक का लोन माफ़ करवा दीजिए। फ़ीस नहीं दे पा रहे हैं। कमाई बंद है। दुकान बंद है। सरकार से कहिए कि कुछ पैसे दे। 


दूसरा नोट- ख़ुशी की बात है कि भारत महान की राजधानी में 22000 करोड़ का सेंट्रल विस्ता बन रहा है। विस्ता का पित्ज़ा बनाकर खाते रहिए। ठूँस लीजिएगा। भर पेट।

Saturday, May 29, 2021

उपभोगवाद की हकीकत*

 😏😏😏 / इन पांच लघु कहानी से समझे*

*उपभोगवाद की हकीकत*

                 *1*

सर में भयंकर दर्द था सो अपने परिचित केमिस्ट की दुकान से सर दर्द की गोली लेने रुका।

दुकान पर नौकर था, उसने मुझे गोली का पत्ता दिया ,

तो उससे मैंने पूछा गोयल साहब कहाँ गए हैं ,

*तो उसने कहा साहब के सर में दर्द था ,*

*सो सामने वाली दुकान में कॉफी पीने गये हैं।*

अभी आते होंगे!


मैं अपने हाथ मे लिए उस दवाई के पत्ते को देखने लगा.?

🤔😏

                  *2*

माँ का ब्लड प्रेशर और शुगर बढ़ा हुआ था , सो सवेरे सवेरे उन्हें लेकर उनके पुराने डॉक्टर के पास गया।

क्लिनिक से बाहर उनके गार्डन का नज़ारा दिख रहा था ,

जहां डॉक्टर साहब योग और व्यायाम कर रहे थे।

मुझे करीब 45 मिनिट इंतज़ार करना पड़ा। 

कुछ देर में डॉक्टर साहब अपना नींबू पानी लेकर क्लिनिक आये ,

और माँ का चेक-अप करने लगे।

उन्होंने मम्मी से कहा आपकी दवाइयां बढ़ानी पड़ेंगी ,

और एक पर्चे पर करीब 5 या 6 दवाइयों के नाम लिखे।

उन्होंने माँ को दवाइयां रेगुलर रूप से खाने की हिदायत दी।

बाद में मैंने उत्सुकता वश उनसे पूछा कि...

क्या आप बहुत समय से योग कर रहे हैं.?

तो उन्होंने कहा कि...

*पिछले 15 साल से वो योग कर रहे हैं ,*

*और ब्लड प्रेशर व अन्य बहुत सी बीमारियों से बचे हुए हैं!*


मैं अपने हाथ में लिए हुए माँ के उस पर्चे को देख रहा था ,

जिसमें उन्होंने BP और शुगर कम करने की कई दवाइयां लिख रखी थी.?

🤔😏

                  *3*

अपनी बीवी के साथ एक ब्यूटी पार्लर गया। मेरी बीवी को हेयर ट्रीटमेंट कराना था , क्योंकी उनके बाल काफी खराब हो रहे थे।

रिसेप्शन में बैठी लड़की ने उन्हें कई पैकेज बताये और उनके फायदे भी। पैकेज 1200 ₹ से लेकर 3000 ₹ तक थे।

कुछ डिस्काउंट के बाद मेरी बीवी को उन्होंने 3000 ₹ वाला पैकेज 2400 ₹ में कर दिया।

हेयर ट्रीटमेंट के समय उनका ट्रीटमेंट करने वाली लड़की के बालों से अजीब सी खुश्बू आ रही थी।

मैंने उससे पूछा कि आपने क्या लगा रखा है ,

कुछ अजीब सी खुश्बू आ रही है।


तो उसने कहा ---

*उसने तेल में मेथी और कपूर मिला कर लगा रखा है ,*

*इससे बाल सॉफ्ट हो जाते हैं और जल्दी बढ़ते हैं।*


मैं अपनी बीवी की शक्ल देख रहा था , जो 2400 रु में अपने बाल अच्छे कराने आई थी।

🤔🤔

              *4*

मेरी रईस कज़िन जिनका बड़ा डेयरी फार्म है, उनके फार्म पर गया।

फार्म में करीब 150 विदेशी गाय थी , जिनका दूध मशीनों द्वारा निकाल कर प्रोसेस किया जा रहा था।

एक अलग हिस्से में 2 देसी गाय हरा चारा खा रही थी।

पूछने पर बताया.. .

*उनके घर उन गायों का दूध नही आता ,* *जिनका दूध उनके डेयरी फार्म से सप्लाई होता है।*

बल्कि परिवार के इस्तेमाल के लिए ...

*इन 2 देसी गायों का दूध, दही व घी इस्लेमाल होता है।*

 

मै उन लोगों के बारे में सोच रहा था ,

जो ब्रांडेड दूध को बेस्ट मानकर खरीदते हैं।

🤔😏

                   *5*.

एक प्रसिद्ध रेस्तरां जो कि अपनी विशिष्ट थाली और शुद्ध खाने के लिए प्रसिद्ध है ,

हम खाना खाने गये।

निकलते वक्त वहां के मैनेजर ने बडी विनम्रता से पूछा-

सर खाना कैसा लगा ? हम बिल्कुल शुद्ध घी तेल और मसाले प्रयोग करते हैं ,

हम कोशिश करते हैं बिल्कुल घर जैसा खाना लगे।

मैंने खाने की तारीफ़ की तो उन्होंने अपना विजिटिंग कार्ड देने को अपने केबिन में गये।

काउंटर पर एक 3 डब्बों का स्टील का टिफिन रखा था।

एक वेटर ने दूसरे से कहा--

"सुनील सर का खाना अंदर केबिन में रख दे , बाद में खाएंगे"। 

मैंने वेटर से पूछा क्या सुनील जी यहां नही खाते?

तो उसने जवाब दिया--

*"सुनील सर कभी बाहर नही खाते ,*

*हमेशा घर से आया हुआ खाना ही खाते हैं"*

मैं अपने हाथ में 1670 रु के बिल को देख रहा था।

🤔〽️✌️🤔

ये कुछ वाकये हैं जिनसे मुझे समझ आया कि .. 

*हम जिसे सही जीवन शैली समझते हैं ..*

*वो हमें भ्रमित करने का जरिया मात्र है।*


*हम कंपनियों के ATM मात्र हैं।*

*जिसमें से कुशल मार्केटिंग वाले लोग मोटा पैसा निकाल लेते हैं।*


*अक्सर जिन चीजों को हमें बेचा जाता है ,*

*उन्हें बेचने वाले खुद इस्तेमाल नहीं करते।*

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

  कृपया इसे एक बार और पढें।

   *शायद विचारणीय हो।*

Friday, May 28, 2021

*फूफा जी भी कभी दामाद होते थे

 *फूफा*


*जैसा कि हम सभी को विदित है कि फूफा धरती की वह प्रजाति है जिसे किसी समारोह में निमंत्रण भी दिया जाता है और उसके आ जाने के बाद , उसके फूंक - फूंक कर कदम रखने के बावजूद , कुछ न कुछ  ऐसा कर दिया जाता है कि उसे गुस्सा आ जाय । बाद में जब वो अपना नियंत्रण खो देता है तो  कहा जाता है कि इसे निमंत्रण देना ही बेकार था ।*


*क्या सोचकर आपने उसे निमंत्रण दिया था ? फूफा आपका कार्ड देखकर खुश होगा , शाबाशी देगा ? ...वो आपके दावत का भूखा है ? उसे अपनी इज्जत की कोई परवाह नहीं  ? ...भाई साहब अज्ञानी हैं आप । बात बात में फूफा के आचरण में नुक्स निकालने से पहले क्या एक बार भी आपने फूफा की जगह खुद को रखकर देखा है । अगर देखते तो उसे क्रोध न करना पड़ता और न ही आपको उसकी निंदा ।*


*मत भूलिए कि फूफा भी कभी दामाद था । अगर शादी के कुछ वर्षों बाद अधिकार और सम्मान में कटौती कर ही लेनी थी तो शुरू में ताड़ पर क्यों चढ़ाया ? चार तरह की मिठाई , विविध प्रकार के भोजन , बढ़िया बिस्तर , शादी के कई सालों तक क्यों दिए जाते रहे ? जो कमसिन साली पहले मजाक करने पर मुँह छुपाकर खिलखिलाते हुए भाग खड़ी होती थी , आज चार बच्चों की माँ हो जाने के बाद एकदम से बिफर क्यों पड़ती है , नाक - भौं क्यों सिकोड़ती है ? बचपन में यही सिखाया था उसे , ऐसे होते हैं संस्कार ?  फूफा से आखिर क्यों नहीं पूछा जाता कि आज खाने में क्या बनेगा ?  इसके बाद भी आप पूछते हैं फूफा नाराज क्यों है ।*


*हाल के दिनों की बार करें तो पातकीनाथ नाम के एक सज्जन जो मेरे ही गाँव के हैं , अपनी ससुराल गए । साले के लड़के का तिलक था । तिलक के दो दिन पहले से उन्होंने तैयारी शुरू कर दी , बाल और जूते रंग डाले , कपड़े अच्छे से स्त्री कर ली , खैनी खाने से पीले पड़े दाँतों को डेंटिस्ट के पास जाकर साफ करा लिया । शाम को तिलक चढ़नी थी , ये दोपहर में ही पहुँच गए । पहुँचने पर  न कोई विशेष स्वागत न खुशी का इजहार  और तो और बड़े साले ने जले पर नमक भी छिड़क दिया - इतनी धूप में क्यों आये पातकी बाबू ? तिलक तो शाम में चढ़नी है न ?*


*पसीना - पसीना हुए पातकीनाथ को क्रोध से काँप गए , मन में आया कि कह दें कि "अरे साले धूप की इतनी ही फिक्र है तो शर्बत में बर्फ का इंतजाम क्यों नहीं किया ?  मेरे वापस चले जाने पर ही कलेजा ठंडा होगा क्या तुम्हारा ? "मगर जाने क्यों खुद पर कंट्रोल किया और चुपचाप बैठे रहे । कुछ देर बाद साले का लड़का जिसकी तिलक चढ़नी थी सबको डियो छिड़कते हुए बताने लगा कि " विदेश से मंगाया है , दो हजार का है " उस कमरे में बैठे हर आदमी को उसने डियो लगाया लेकिन जैसे ही पातकी जी के पास आया नाक सिकोड़ ली -"अरे फूफा जी ये कौन सा घटिया सेंट लगाकर आ गए आप ?" कहकर बाहर निकल गया ।*


*पातकी के मन में आया कि उसका झोंटा पकड़ कर कस के दो मुक्का हन दें , लेकिन पत्नी की हिदायत का मान रखा और चुप रहे ।*


*थोड़ी देर बाद साले का दामाद आया , लगा कि भगवान पधारे हैं , टेबल फैन पातकी के पास से हटाकर उसकी ओर कर दिया गया , साले ने पूछा -"बाबू भूख लगी होगी आपको , चलिए पहले भोजन करिए फिर आराम कीजियेगा ।"*


*पातकी को इस पर गुस्सा नहीं आएगा तो क्या खुश होंगे ? दो घण्टे से आकर बैठे हैं  लेकिन उनके खाने की फिक्र नहीं कर रहे साले , दस मिनट पहले आया दामाद मानो खाने के बिना मरा जा रहा है , उसे अंदर लिए जा रहे हैं पापी , अब भी पातकी से खाने के लिए  नहीं पूछा जा रहा । जब दामाद खाकर आ गया तब पातकी जी की पत्नी आकर बोलीं -"बैठे काहें हैं चलिए खाना खा लीजिये !"*


*क्या कोई इज्जतदार अब खाना खाने जाएगा ? पातकी नाथ भी एक इज्जतदार आदमी हैं , पत्नी को देख त्यौरियां चढ़ा कर बोले -"कभी देखी हो क्या तीन बजे खाना खाते हुए ? "...हालाँकि भूख खूब लगी थी उन्हें ।*


*पत्नी " हुँह " कर मुँह बिचकाती चली गयी । पातकीनाथ खून का घूँट पीकर मन में बुदबुदाये -" तुम घर चलो तब बताते हैं ।"*


*शाम होने को थी , जो लड़का उनके माला सेंट को घटिया बता कर गया था , पास आकर बोला -" फूफा जी जल्दी अपनी मोटरसाइकिल दीजिये , काजू की बर्फी लानी है ।"*


*अब तक उपेक्षा के शिकार पातकी जी ने गुस्सा थूक दिया , सोचा मेरी न सही मेरी गाड़ी की तो पूछ है । चाबी सौंप दी । आधे घण्टे बाद ये जब दरवाजे पर बैठकर हलवाइयों पर नजर गड़ाए हुए थे , तभी साले के लड़के का पैदल आगमन हुआ । वो गुस्से में था -"गाड़ी चलाते हैं तो कागज क्यों नहीं रखते आप ?"*


*-"कागज तो हइये है , क्या हुआ ?"..कहते हुए पैंट की पिछली जेब से कागज निकाल कर दिखाया पातकी जी ने ।*


*साले का लड़का गुर्राया -" गाड़ी की डिक्की में रखना होता है कागज , अपनी डिक्की में नहीं । गाड़ी का चालान हो गया है , थाने से छुड़ाना पड़ेगा ।"...कहकर वो मिठाई का डिब्बा लिए भीतर चला गया ।*


*इस मुसीबत से पातकी जी बौखला गए थे , लेकिन फिर भी कंट्रोल किया ।*


*रात हुई , तिलक चढ़ाने का कार्यक्रम शुरू होने वाला था , भूखे - प्यासे पातकीनाथ सब कुछ भुलाकर सबसे आगे के सोफे पर बैठ चुके थे । रह - रहकर निगाह आइसक्रीम की स्टॉल की तरफ चली जाती । आइसक्रीम पातकी जी को बहुत प्रिय है , सोफे से उठकर आइसक्रीम वाले के पास चले गए और रौबदार आवाज में बोले -" बटरस्कॉच फ्लेवर है कि नहीं ?"*


*-"बिलकुल है ।"*


*-"जरा निकालो !"*


*आइसक्रीम वाले में कोई हरकत न देखकर दोबारा बोले -" अरे निकालो भाई !"*


*-"तिलक चढ़ने के बाद आइसक्रीम शुरू होगा ।"*


*-"मगर कुछ लोग तो खा रहे हैं ।"*


*-"अभी जिनको वो कहेंगे उन्हीं को देना है , ऐसा जिनका तिलक है , उन भैया ने कहा है ।"...कहकर उसने एक आदमी की तरफ इशारा किया , फिर बोला-"आप भी उनसे कहलवा दीजिये तो आपको भी दे दूँगा ।"*


*पातकीनाथ नाथ ने देखा कि वो आइसक्रीम वाला निमंत्रण में मिल रहे लिफाफे इकट्ठा कर रहे साले के दामाद की ओर इशारा कर रहा है । अब यह कितना बेइज्जती भरा कदम होता यदि पातकीनाथ एक अदद आइसक्रीम के लिए उससे जाकर सोर्स लगाते , मन मारकर वापस सोफे की तरफ आये , यहाँ उनकी जगह उनके साले साहब आसन जमा चुके थे । इन्हें देखकर बोले -"खड़े काहें हैं पातकीनाथ बाबू ! उधर से एक ठो प्लास्टिक वाली कुर्सिया खींच काहें नहीं लेते ?"*


*जठराग्नि और अपमान में जल रहे पातकीनाथ से अब वहाँ और रुका नहीं गया । टेंट वाली गाड़ी कुछ सामान लेने के लिए शहर की तरफ जा रही थी , ये उसी पर चढ़े और थाने पहुँच गए । दरोगा संयोग से इनका जिगरी यार निकला , गाड़ी बिना किसी खर्चे के मिल गयी । चलने लगे तो दारोगा ने कहा -"किसी और सेवा की जरूरत हो तो हिचकना मत ।"*


*बेइज्जती से आहत पातकीनाथ के दिल में बदले की भावना ने सिर उठाया -" सेवा क्या है दोस्त ? बस एक जरूरी सूचना देना अपना फर्ज समझता हूँ । बगल के गाँव में तिलेसरनाथ नाम के आदमी के यहाँ तिलक कार्यक्रम है , उसमें कोविड नियमों को ताक पर रखकर सैकड़ों आदमियों को निमन्त्रित करके महामारी को बढ़ावा दिया जा रहा है ।"*


*दारोगा ने वो वीडियो देखा था जिसमें एक डीएम ने जाकर शादी कार्यक्रम रुकवाया था । उसकी भुजाएं फड़क उठीं , पातकीनाथ को गले लगाकर बोला -" अब कल का अखबार पढ़ना दोस्त ।"*


*पातकीनाथ मोटरसाइकिल लेकर घर चले आये । गैस पर खिचड़ी चढ़ाए ही थे कि पत्नी का फोन आया -" आप रिश्तेदार हैं कि दुश्मन जी ? कितना बेज्जती हुआ भैया का । आखिर का मिला आपको तिलक में पुलिस को बुलाकर ?"*


*पातकीनाथ मुस्कुरा कर बोले -" सुकून !"*


*-"सारा सुकून हम निकालेंगे आपका आकर , नाक काट दिया आपने हमारा , सारा लोग आपको खलनायक बोल रहा है ।"*


*पातकीनाथ चिल्लाए -" हाँ मैं हूँ खलनायक !जो बिगाड़ना हो बिगाड़ लेना ।"कहकर उन्होंने फोन काट दिया ।*

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...