Friday, December 29, 2023

सतसंग पाठ के अनमोल कड़ियां


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


दुखित तुम बिन, रटत निसदिन,

प्रगट दर्शन दीजिए;

 बिनती सुन प्रिय स्वामियाँ,

बलि जाऊँ बिलम्ब न कीजिएँ 🙏


🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏





🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


पिया मेरे और मैं पिया की,

कुछ भेद न जानो कोई,

जो कुछ होये सो मौज से होई,

पिया समरथ करे सोई

🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏



🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


गुरू प्यारे की दम दम शुक्रगुज़ार


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


सुमरिन करले हिये धर प्यार राधास्वामी नाम का आधार


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


मैं हू बाल अनाड़ी प्यारे

 तुम हो दाता अपर अपारे

 राखो चरनन मोहि सदा रे मेरी निसदिन यही पुकारी


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏


गुरु की मौज रहो तुम धार।

गुरु की रज़ा सम्हालो यार।।


गुरु जो करें सो हित कर जान।

          

गुरु जो कहें सो चित धर मान।।

शुक़र की करना समझ विचार।

             

सुख दुःख देंगे हिक़मत धार।।


🙏🙏 *राधास्वामी



🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏

मैं चेरी स्वामी तुम्हरे घर की ।

साफ करो बुद्धि मायावर की ।।

तब स्वामी ने दिया दिलासा ।

प्रेम पंख ले उड़े आकाशा ।।

🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏


🙏🌹राधास्वामी 🌹🙏


पलटू सतगुरु के बिना सरे न एको काज ।

भवसागर से तारता सतगुरु नाम जहाज ।।

🙏🌹राधास्वामी 🙏🌹



🌹🙏

पलटू पारस क्या करे

ज्यों लोहा खोटा होय ।

साहिब सबको देत हैं

लेता नाहीं कोय ।।


🌹🙏राधास्वामी 🌹🙏




🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


सतपुरूष तुम सतगुरू दाता

सब जीवन के पितु और माता,

दया धार अपना कर लीजै

काल जाल से न्यारा कीजै


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏




🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏


राधास्वामी दयाल दया के सागर, अपनापन न बिसारो;

पाप करम मैं सदा से करता,

जीव दया चित्त धारो


🙏🌹🙏राधास्वामी🙏🌹🙏🙏


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


Wednesday, December 27, 2023

वचन

*रा धा/ध: स्व आ मी!       


             

27-12-23- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-

 (22.12.31 मंगल का तीसरा भाग)-


कल 6 शादियां होंगी। फरीकैन (पक्षकार  गण) ने जेवर व कपडे दिखलाये। शुक्र है कि अब सतसंगिन बहनों को समझ आ गई है कि दयालबाग की साख्ता (निर्मित ) अशिया (वस्तुएं ) शादी में देने से अपना व कुल संगत का भला है।

 प्रेमी भाई जयन्ती प्रसाद एम० ए० ने अपनी दुख्तर (पुत्री) को करीबन सभी कपडे दयालबाग के बुने हुए दिये हैं। और दूसरे असहाब (लोगों) ने भी दयालबाग के कपडों व जेवरों की काफ़ी तादाद इस्तेमाल की है। सुनहरी फाउण्टेनपेन, ग्रामोफोन, बेशक़ीमत (बहुमूल्य ) सुनहरी साडिया, तिलाई (स्वर्ण) जेवर ऐसी चीज़े हैं जो दयालबाग में साख्त होती हैं और मुकर्ररह (नियत) दामों पर बिकती हैं और जिनके खरीदार को किसी किस्म के धोखे का एहतिमाल (आशंका) नहीं है।

जेवरात के लिये अभी एक नामी कारीगर कलकत्ता से बुलाया गया है। उसकी मदद से उम्मीद है कि जेवरात का काम खूब चमकेगा। लोग नहीं जानते बेईमान सुनार उन्हें टाके व मिलावट के जरीये कैसी बेरहमी से लूटते हैं

दयालबाग में इस सीगे (विभाग) के तरक़्क़ी करने से सतसंगी भाइयों को हर साल हज़ारों रुपये की बचत रहेगी। क्रमशः--------                                                              🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻 रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


Wednesday, December 13, 2023

चरित्र बड़ा या ज्ञान



*🌳 🌳*


एक राजपुरोहित थे। वे अनेक विधाओं के ज्ञाता होने के कारण राज्य में अत्यधिक प्रतिष्ठित थे। बड़े-बड़े विद्वान उनके प्रति आदरभाव रखते थे पर उन्हें अपने ज्ञान का लेशमात्र भी अहंकार नहीं था। उनका विश्वास था कि ज्ञान और चरित्र का योग ही लौकिक एवं परमार्थिक उन्नति का सच्चा पथ है। प्रजा की तो बात ही क्या स्वयं राजा भी उनका सम्मान करते थे और उनके आने पर उठकर आसन प्रदान करते थे।


एक बार राजपुरोहित के मन में जिज्ञासा हुई कि राजदरबार में उन्हें आदर और सम्मान उनके ज्ञान के कारण मिलता है अथवा चरित्र के कारण? इसी जिज्ञासा के समाधान हेतु उन्होंने एक योजना बनाई। योजना को क्रियान्वित करने के लिए राजपुरोहित राजा का खजाना देखने गए। खजाना देखकर लौटते समय उन्होंने खजाने में से पाँच बहुमूल्य मोती उठाए और उन्हें अपने पास रख लिया। खजांची देखता ही रह गया। राजपुरोहित के मन में धन का लोभ हो सकता है। खजांची ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था। उसका वह दिन उसी उधेड़बुन में बीत गया।


दूसरे दिन राजदरबार से लौटते समय राजपुरोहित पुन: खजाने की ओर मुड़े तथा उन्होंने फिर पाँच मोती उठाकर अपने पास रख लिए। अब तो खजांची के मन में राजपुरोहित के प्रति पूर्व में जो श्रद्धा थी वह क्षीण होने लगी।


तीसरे दिन जब पुन: वही घटना घटी तो उसके धैर्य का बाँध टूट गया। उसका संदेह इस विश्वास में बदल गया कि राजपुरोहित की ‍नीयत निश्चित ही खराब हो गई है। उसने राजा को इस घटना की विस्तृत जानकारी दी। इस सूचना से राजा बहुत आहत हुआ। उनके मन में राजपुरोहित के प्रति आदरभाव की जो प्रतिमा पहले से प्रतिष्ठित थी वह चूर-चूर होकर बिखर गई।


चौथे दिन जब राजपुरोहित सभा में आए तो राजा पहले की तरह न सिंहासन से उठे और न उन्होंने राजपुरोहित का अभिवादन किया, यहाँ तक कि राजा ने उनकी ओर देखा तक नहीं। राजपुरोहित तत्काल समझ गए कि अब योजना रंग ला रही है। उन्होंने जिस उद्देश्य से मोती उठाए थे, वह उद्देश्य अब पूरा होता नजर आने लगा था। यही सोचकर राजपुरोहित चुपचाप अपने आसन पर बैठ गए। राजसभा की कार्यवाही पूरी होने के बाद जब अन्य दरबारियों की भाँति राजपुरोहित भी उठकर अपने घर जाने लगे तो राजा ने उन्हें कुछ देर रुकने का आदेश दिया। सभी सभासदों के चले जाने के बाद राजा ने उनसे पूछा- "सुना है आपने खजाने में कुछ गड़बड़ी की है।"


इस प्रश्न पर जब राजपुरोहित चुप रहे तो राजा का आक्रोश और बढ़ा। इस बार वे कुछ ऊँची आवाज में बोले -"क्या आपने खजाने से कुछ मोती उठाए हैं?"


राजपुरोहित ने मोती उठाने की बात को स्वीकार किया।


राजा का अगला प्रश्न किया- "आपने कितेने मोती उठाए और कितनी बार? वे मोती कहाँ हैं?"


राजपुरोहित ने एक पुड़िया जेब से निकाली और राजा के सामने रख दी जिसमें कुल पंद्रह मोती थे। राजा के मन में आक्रोश, दुख और आश्चर्य के भाव एक साथ उभर आए। राजा बोले - "राजपुरोहित जी आपने ऐसा गलत काम क्यों किया? क्या आपको अपने पद की गरिमा का लेशमात्र भी ध्यान नहीं रहा। ऐसा करते समय क्या आपको लज्जा नहीं आई? आपने ऐसा करके अपने जीवनभर की प्रतिष्ठा खो दी। आप कुछ तो बोलिए, आपने ऐसा क्यों किया?"


राजा की अकुलाहट और उत्सुकता देखकर राजपुरोहित ने राजा को पूरी बात विस्तार से बताई तथा प्रसन्नता प्रकट करते हुए राजा से कहा -"राजन् केवल इस बात की परीक्षा लेने हेतु कि ज्ञान और चरित्र में कौन बड़ा है, मैंने आपके खजाने से मोती उठाए थे, अब मैं निर्विकल्प हो गया हूँ। यही नहीं आज चरित्र के प्रति मेरी आस्था पहले की अपेक्षा और अधिक बढ़ गई है।"


कुछ पल ठहर कर राजपुरोहित ने आगे कहा -"आपसे और आपकी प्रजा से अभी तक मुझे जो प्यार और सम्मान मिला है वह सब ज्ञान के कारण नहीं ‍अपितु चरित्र के ही कारण था। आपके खजाने में सबसे अधिक बहुमू्ल्य वस्तु सोना-चाँदी या हीरा-मोती नहीं बल्कि चरित्र है। अत: मैं चाहता हूँ कि आप अपने राज्य में चरित्र संपन्न लोगों को अधिकाधिक प्रोत्साहन दें ताकि चरित्र का मूल्य उत्तरोत्तर बढ़ता रहे।" कहा जाता है धन गया कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य गया तो कुछ गया। चरित्र गया तो सब कुछ गया।


*

Monday, December 4, 2023

माप-अमाप*


*प्रस्तुति - स्वामी शरण



गुरुनानकजी एक बार लाहौर में ठहरे। तो लाहौर का जो सब से धनी आदमी था, वह उनके चरणों में नमस्कार करने आया। वह बहुत धनी आदमी था। लाहौर में उन दिनों ऐसा रिवाज था कि जिस आदमी के पास एक करोड़ रुपया हो, वह अपने घर पर एक झंडा लगाता था। इस आदमी के घर पर कई झंडे लगे थे। इस आदमी का नाम था, सेठ दुनीचंद। उसने नानक के चरणों में सिर रखा और कहा कि कुछ आज्ञा दें मुझे। मैं कुछ सेवा करना चाहता हूं। धन बहुत है आपकी कृपा से। आप जो भी कहेंगे, वह मैं पूरा कर दूंगा।


नानक ने अपने कपड़ों में छिपी हुई एक छोटी सी कपड़े सीने की सुई निकाली, दुनीचंद को दी, और कहा, इसे सम्हाल कर रखना। और मरने के बाद मुझे वापस लौटा देना।


दुनीचंद अपनी अकड़ में था। उसे समझ ही न आयी। उसे कुछ खयाल ही न आया कि यह क्या गुरु नानक कह रहे हैं! उसने कहा, जैसी आपकी आज्ञा। जो आप कहें, कर दूंगा। अकड़ का समय होता है आदमी के मन का, तब आदमी अंधा होता है कि कुछ चीजें असंभव हैं। धन से तो हो ही नहीं सकतीं। घर लौटा। लेकिन घर लौटते-लौटते उसे भी खयाल आया कि मर कर लौटा देंगे! लेकिन जब मैं मर जाऊंगा, तब इस सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?


वापस लौटा। और कहा कि आपने थोड़ा बड़ा काम दे दिया। मैं तो सोचा, बड़ा छोटा काम दिया है। और क्या मजाक कर रहे हैं? सुई को बचाने की जरूरत भी क्या है? लेकिन संतों का रहस्य! सोचा, होगा कुछ प्रयोजन। लेकिन क्षमा करें। यह अभी वापस ले लें। क्योंकि यह उधारी फिर चुक न सकेगी। अगर मैं मर गया तो सुई को साथ कैसे ले जाऊंगा?


तो नानक ने कहा, सुई वापस कर दो। प्रयोजन पूरा हो गया है। यही मैं तुमसे पूछता हूं कि अगर एक सुई न ले जा सकोगे, तो तुम्हारी जो करोड़ों-करोड़ों की संपदा है, उसमें से क्या ले जा सकोगे? अगर एक छोटी सी सुई को तुम न ले जा सकोगे पार, तो और तुम्हारे पास क्या है, जो तुम ले जा सकोगे? दुनीचंद, तुम गरीब हो। क्योंकि अमीर तो वही है जो मौत के पार कुछ ले जा सके।


लेकिन जो भी मापा जा सकता है, वह मौत के पार नहीं ले जाया सकता। जो अमाप है, इम्मेजरेबल है, जिसको हम माप नहीं सकते, वही केवल मौत के पार जाता है।

दुनिया में दो ही तरह के लोग हैं। एक, जो मापने की ही चिंता करते रहते हैं। खोज करते हैं उसकी, जो मापा जा सकता है, तौला जा सकता है। और एक, mजो उसकी खोज करते हैं, जो तौला नहीं जा सकता। पहले वर्ग के लोग धार्मिक नहीं हैं, संसारी हैं। दूसरे वर्ग के लोग धार्मिक हैं, संन्यासी हैं।


अमाप की खोज धर्म है। और जिसने अमाप को खोज लिया, वह मृत्यु का विजेता हो गया। उसने अमृत को पा लिया। जो मापा जा सकता है, वह मिटेगा। जिसकी सीमा है, वह गलेगा। जिसकी परिभाषा हो सकती है, वह आज है, कल खो जाएगा। हिमालय जैसे पहाड़ भी खो जाएंगे। सूर्य, चांद, तारे भी बुझ जाएंगे। बड़े से बड़ा, थिर से थिर...पहाड़ को हम कहते हैं, अचल; वह भी चलायमान है। वह भी खो जाएगा। वह भी बचेगा नहीं। वह भी थिर नहीं है। जहां तक माप जाता है वहां तक सभी अस्थिर है, परिवर्तनशील है। जहां तक माप जाता है, वहां तक लहरें हैं। जहां माप छूट जाता है, सीमाएं खो जाती हैं, वहीं से ब्रह्म का प्रारंभ है।


एक ओंकार सतनाम

Sunday, December 3, 2023

संस्कार


प्रस्तुति - कृति / दिव्यांश 

*🌳 संस्कार क्या है 🌳*


एक राजा के पास सुन्दर घोड़ी थी। कई बार युद्व में इस घोड़ी ने राजा के प्राण बचाये और घोड़ी राजा के लिए पूरी वफादार थीI कुछ दिनों के बाद इस घोड़ी ने एक बच्चे को जन्म दिया, बच्चा काना पैदा हुआ, पर शरीर हष्ट पुष्ट व सुडौल था।


बच्चा बड़ा हुआ, बच्चे ने मां से पूछा: *मां मैं बहुत बलवान हूँ, पर काना हूँ.... यह कैसे हो गया"* 


इस पर घोड़ी बोली: *"बेटा जब में गर्भवती थी, तू पेट में था तब राजा ने मेरे ऊपर सवारी करते समय मुझे एक कोड़ा मार दिया, जिसके कारण तू काना हो गया।*


यह बात सुनकर बच्चे को राजा पर गुस्सा आया और मां से बोला: *"मां मैं इसका बदला लूंगा।"*


मां ने कहा *"राजा ने हमारा पालन-पोषण किया है, तू जो स्वस्थ है....सुन्दर है, उसी के पोषण से तो है, यदि राजा को एक बार गुस्सा आ गया तो इसका अर्थ यह नहीं है कि हम उसे क्षति पहुचाये"*


पर उस बच्चे के समझ में कुछ नहीं आया, उसने मन ही मन राजा से बदला लेने की सोच ली।


एक दिन यह मौका घोड़े को मिल गया राजा उसे युद्व पर ले गया । युद्व लड़ते-लड़ते राजा एक जगह घायल हो गया, घोड़ा उसे तुरन्त उठाकर वापस महल ले आया।


इस पर घोड़े को ताज्जुब हुआ और मां से पूछा: *"मां आज राजा से बदला लेने का अच्छा मौका था, पर युद्व के मैदान में बदला लेने का ख्याल ही नहीं आया और न ही ले पाया, मन ने गवारा नहीं किया...."* 


इस पर घोडी हंस कर बोली: *"बेटा तेरे खून में और तेरे संस्कार में धोखा देना है ही नहीं, तू जानकर तो धोखा दे ही नहीं सकता है।"*


*"तुझ से नमक हरामी हो नहीं सकती, क्योंकि तेरी नस्ल में तेरी मां का ही तो अंश है।"*


*यह सत्य है कि जैसे हमारे संस्कार होते है, वैसा ही हमारे मन का व्यवहार होता है, हमारे पारिवारिक-संस्कार अवचेतन मस्तिष्क में गहरे बैठ जाते हैं, माता-पिता जिस संस्कार के होते हैं, उनके बच्चे भी उसी संस्कारों को लेकर पैदा होते हैं

💐🙏❤️🌹👌

सुंदर व्यवहार

 *गुरु मंत्र*


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


एक सभा में लगभग 30 वर्षीय एक युवक ने एक प्रश्न पूछा, "गुरु जी, जीवन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण क्या है?"


गुरुजी मुस्कराए और फिर उस युवक से पूछा, "आप मुम्बई में जुहू चौपाटी पर चल रहे हैं और सामने से एक सुन्दर लडकी आ रही है, तो आप क्या करोगे?"


युवक ने कहा, "उस पर नजर जायेगी, उसे देखने लगेंगे।"


गुरु जी ने पूछा, "वह लडकी आगे बढ़ गयी, तो क्या पीछे मुडकर भी देखोगे?"


लडके ने कहा, "हाँ, अगर धर्मपत्नी साथ नहीं है तो।" (सभा में सभी हँस पड़े) 


गुरु जी ने फिर पूछा, "जरा यह बताओ वह सुन्दर चेहरा आपको कब तक याद रहेगा?"


युवक ने कहा, "5-10 मिनट तक, जब तक कोई दूसरा सुन्दर चेहरा सामने न आ जाए।"


गुरु जी ने उस युवक से कहा, " अब जरा कल्पना कीजिये... आप जयपुर से मुम्बई जा रहे हैं और मैंने आपको एक पुस्तकों का पैकेट देते हुए कहा कि मुम्बई में अमुक महानुभाव के यहाँ यह पैकेट पहुँचा देना।


आप पैकेट देने मुम्बई में उनके घर गए। उनका घर देखा तो आपको पता चला कि यह तो बड़े अमीर हैं। घर के बाहर गाडियाँ और चौकीदार खडे हैं।


आपने पैकेट की सूचना अन्दर भिजवाई, तो वह महानुभाव खुद बाहर आए। आप से पैकेट लिया। आप जाने लगे तो आपको आग्रह करके घर में ले गए। पास में बैठाकर गरम खाना खिलाया।


चलते समय आप से पूछा, "किसमें आए हो?"


आपने कहा, "लोकल ट्रेन में।"


उन्होंने ड्राइवर को बोलकर आपको गंतव्य तक पहुँचाने के लिए कहा और आप जैसे ही अपने स्थान पर पहुँचने वाले थे कि उन महानुभाव का फोन आया, "भैया, आप आराम से पहुँच गए.।"


अब आप बताइए कि आपको वह महानुभाव कब तक याद रहेंगे? "


युवक ने कहा, "गुरु जी! जिंदगी में मरते दम तक उस व्यक्ति को हम भूल नहीं सकते।"


गुरु जी ने युवक के माध्यम से सभा को सम्बोधित करते हुए कहा, "यह है जीवन की हकीकत। सुन्दर चेहरा थोड़े समय ही याद रहता है, पर सुन्दर व्यवहार जीवन भर याद रहता है।"


बस यही है जीवन का गुरु मंत्र... अपने चेहरे और शरीर की सुंदरता से ज़्यादा अपने व्यवहार की सुंदरता पर ध्यान दें... जीवन अपने लिए आनंददायक और दूसरों के लिए अविस्मरणीय प्रेरणादायक बन जाएगा...


                         ♾️


*"असल में आदर अपने अंदर के प्रेम का सार है। जब आप प्रेम पूर्ण दशा में होते हैं, यदि उस समय आपका शत्रु भी आपके सामने आ जाये, आप उसे कुछ ऐसे ढंग से देखेंगे कि वह भी महसूस करेगा," बहुत अच्छे हम अभी भी मित्र हैं। "लौटते समय में वह शत्रु नहीं रहेगा, उसका दिल बदल जाएगा।"*



Saturday, December 2, 2023

शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ

 Ra DHA Sva Aa Mi


Tomorrow, on 03rd December 2023, we are arranging a formal discussion meeting with shahdara Branch youth members.


Heartly request to all youths come in morning satsang and attend the meeting.


Meeting - Formal discussion with youth By Branch सेक्रेटरी


Premises - Shahdara Branch 

Timing - 09Am [After Satsang]


Heartly Ra Dha Sva Aa Mi

Branch Secretary

Shahdara


🌹❤️🙏🙏🙏🙏🙏🌹❤️

Friday, December 1, 2023

शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के सूचनार्थ

 _*रा धा स्व आ मी*_

  

 कल दिनांक 26 नवंबर 2023, DRSA,रीजनल सत्संग 2023 *हुजूर रा धा स्व आ मी दयाल* की असीम कृपा से सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।


 *महिला एसोसिएशन* को विशेष धन्यवाद एवं आभार जिन्होंने अद्भुत प्रबंधन के साथ अपना कार्य सफलतापूर्वक पूरा किया।


 मैं *यूथ एसोसिएशन* का भी आभारी हूं जिन्होंने वॉलंटियर की व्यवस्था करने में मदद की और आखिरी तक रीजन को सहायता प्रदान की।


 सांस्कृतिक को खूबसूरती से पेश करने, कार्यक्रम के प्रबंधन और दिल्ली क्षेत्र की सभी ब्रांचों के साथ अद्भुत समन्वय दिखाने के लिए *क्लचरल टीम* को भी बहुत बहुत धन्यवाद।


 _*मैं  हर उस वॉलंटियर का धन्यवाद करता हूं जिसने किसी भी प्रकार की सेवा कर इस DRSA, रीजनल सत्संग के कार्यक्रम को सफल बनाया*_


 *हार्दिक रा धा स्व आ मी*


 *ब्रांच सेक्रेट्री*

 *शाहदरा*

Wednesday, November 29, 2023

भीष्म कृष्ण संवाद


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


भीष्म ने कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? 

सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !! 


कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! 


एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ? 


कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...." 


भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया

 कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! " 


कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर .... " कहिये पितामह .... !" 


भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" 


"किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" 


" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तोll अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" 


इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! 

इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! 

उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !!  


मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !! 


"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? 

अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! 

मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" 


"तो सुनिए पितामह .... ! 

कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! 

वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !" 


"यह तुम कह रहे हो केशव .... ? 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है..? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा,फिर यह उचित कैसे गया..? " 


"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह,पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है..! 


हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है..!! 

राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था..! 

हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह..!!" 


" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो..!" 


" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह..! 

राम के युग में खलनायक भी 'रावण'जैसा शिवभक्त होता था..!! 

तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण,मंदोदरी,माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे.. तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे..! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था..!! 

इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया..!किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध,दुर्योधन,दुःशासन,शकुनी,जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं..!! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह..! पाप का अंत आवश्यक है पितामह,वह चाहे जिस विधि से हो..!!" 


"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव..? 

क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा..? 

और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा..??" 


" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह..! 


कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा..! 


वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा..नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा..! 


जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह..! 

तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय,केवल धर्म की विजय..! 


भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह..!!" 


"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव..? 

और यदि धर्म का नाश होना ही है,तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है..?" 


"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह..! 


ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता..!केवल मार्ग दर्शन करता है 

सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है..! 

आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न..! 

तो बताइए न पितामह,मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या..? 

सब पांडवों को ही करना पड़ा न..? 

यही प्रकृति का संविधान है..!


युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से..!यही परम सत्य है..!!"


भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे..उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी..!

उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है..कल सम्भवतः चले जाना हो..अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण..!"


कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले,पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था..!


जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आ

क्रमण कर रही हों,तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है..!!

धर्मों रक्षति रक्षिती

Tuesday, November 14, 2023

जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध

 *_🌻 जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध  🌻*


*_🌹 एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति 


       _जब रावण की सेना को हरा कर- और सीता जी को लेकर श्री राम चन्द्र जी वापस अयोध्या पहुंचे - तो वहां उन सब के लौटने की ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ।

       _वानर सेना के भी सभी लोग आमंत्रित थे- लेकिन बेचारे,सब ठहरे वानर ही न...?

      _तो सुग्रीव जी ने उन सब को खूब समझाया- देखो- यहाँ हम मेहमान हैं, और अयोध्या के लोग हमारे मेजबान।

      ‌‌ _तुम सब यहाँ खूब अच्छे से आचरण करना - हम वानर जाति वालों को लोग *शिष्टाचार विहीन* न समझें,इस बात का ध्यान रखना!

        _वानर भी अपनी जाति का मान रखने के लिए तत्पर थे,किन्तु एक वानर आगे आया- और हाथ जोड़ कर श्री सुग्रीव से कहने लगा *"प्रभो - हम प्रयास तो करेंगे कि अपना आचार अच्छा रखें, किन्तु हम ठहरे बन्दर* कहीं भूल चूक भी हो सकती है- तो अयोध्या वासियों के आगे हमारी अच्छी छवि रहे- इसके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप किसी को हमारा अगुवा बना दें!

          ‌  _जो न सिर्फ हमें मार्गदर्शन देता रहे,बल्कि हमारे बैठने आदि का प्रबंध भी सुचारू रूप से चलाये, कि कही इसी चीज़ के लिए वानर आपस में लड़ने भिड़ने लगें तो हमारी छवि धूमिल नहीं होगी!"

         _अब वानरों में सबसे ज्ञानी,व *श्री राम के सर्व प्रिय तो हनुमान ही माने जाते थे-* तो यह जिम्मेदारी भी उन पर आई!

          _भोज के दिन श्री हनुमान जी सबके बैठने वगैरह का इंतज़ाम करते रहे, और सबको ठीक से बैठाने के बाद श्री राम के समीप पहुंचे, *तो श्री राम ने उन्हें बड़े प्रेम से कहा- कि तुम भी मेरे साथ ही बैठ कर भोजन करो।*

       _अब हनुमान पशोपेश में आ गए, उनकी योजना में प्रभु के बराबर बैठना तो था ही नहीं!

        _" वे तो अपने प्रभु के जीमने के बाद ही- प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करने वाले थे!"

      _न तो उनके लिए बैठने की जगह ही थी, और ना ही केले का पत्ता- तो हनुमान बेचारे पशोपेश में थे- *ना तो प्रभु की आज्ञा टाली जाए,ना उनके साथ खाया जाए!* प्रभु तो भक्त के मन की बात जानते हैं ना ?

         _तो वे जान गए कि- मेरे हनुमान के लिए- केले का पत्ता भी नहीं है,और ना ही स्थान है।

        _उन्होंने अपनी कृपा से अपने से लगता हनुमान के बैठने जितना स्थान बढ़ा दिया *(जिन्होंने इतने बड़े संसार की रचना की हो उन्होंने ज़रा से और स्थान की रचना कर दी )*  लेकिन प्रभु ने एक और केले का पत्ता नहीं बनाया!


     _उन्होंने कहा *"हे मेरे प्रिय! अति प्रिय छोटे भाई!, या पुत्र की तरह प्रिय हनुमान!*  तुम मेरे साथ मेरे ही केले के पत्ते में भोजन करो।

           _क्योंकि भक्त और भगवान तो एक ही हैं-  *एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति* तो कोई हनुमान को भी पूजेगा , तो मुझे ही प्राप्त करेगा *(यही अद्वैत यानी एकेश्वरवाद है.)"*

        _इस पर श्री हनुमान जी बोले - "हे प्रभु - आप मुझे कितने ही अपने बराबर बताएं,मैं कभी आप नहीं होऊँगा,ना तो कभी हो सकता हूँ - ना ही होने की अभिलाषा है! *,,,,, (यह है द्वैत,यानी जीव और ब्रह्म, भक्त और भगवान,के बीच की मर्यादा),,,,,* - मैं सदा सर्वदा से आपका सेवक हूँ,और रहूँगा-आपके चरणों में ही मेरा स्थान था - और रहेगा।

      _*तो मैं  तो आपकी थाल में से खा ही नहीं सकता!"*

     _जब हनुमान जी ने प्रभु के साथ भोजन करने से इनकार कर दिया। *तब,श्री राम ने अपने सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के मध्य में एक रेखा खींच दी - जिससे वह पत्ता एक भी रहा- और दो भी हो गया! एक भाग में प्रभु ने भोजन किया- और दूसरे अर्ध भाग में हनुमान को कराया। तो जीवात्मा और परमात्मा के ऐक्य और द्वैत- दोनों के चिन्ह के रूप में केले के पत्ते आज भी एक होते हुए भी दो हैं -और दो होते हुए भी एक है।*

_*"यानी द्वैत में अद्वैत "* यही सृष्टि की व्यवस्था है , जो ब्रह्म और जीव के संबंध- *यानी द्वैत में अद्वैत को दर्शाती है।* इसे समझ लिया- तो जीवन से उद्धार तय है! यहीं है *जीवात्मा एवं परमात्मा का सम्बन्ध।**


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परम पूज्य हुज़ूर डा, लाल साहब जी

 पांच महत्वपूर्ण बातें

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प्रस्तुति - गुरुदास जी डेढ़गांव 


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18 अगस्त 1979 को सुबह रीजनल एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट, सेक्रेटरी, और ब्रांच सतसंग के सेक्रेटरी को हुज़ूर ने फरमाया---

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पहली बात---

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परम पूज्य हुज़ूर ने इस पर अधिक जोर दिया फरमाया कि मै ब्रांच सतसंगों के सेक्रेटरी को ज्यादा महत्वपूर्ण ब्यक्ति और उनको ब्रांच में सभा का प्रतिनिधि खयाल करता हूँ, 

इस वास्ते इस पद के मुतअल्लिक यह उनका पवित्र फर्ज है कि वह देखें कि ब्रांच के तमाम काम बहुत अच्छी तरह हो रहें हैं कि नहीं, 

ब्रांच सतसंग की समस्याएं चाहे वह सतसंगीयों के आपसी झगड़े की हो, सेहत की खराबी की हो या रा-धा-स्व-आ-मी मत के बारे में हो, 

खुद ही सुलझा लेनी चाहिए, दयालबाग को लिख कर नहीं भेजनी चाहिए, 

सेक्रेटरी को अपने ब्रांच सतसंग में ब्रांच के सतसंगीयों में खूब रलमिल कर उनकी समस्याओं को समझना चाहिए और उनका हल निकालना चाहिए।। 


दूसरी बात---

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फरमाया कि अब तक का अनुभव है कि उपदेश फार्म बहुत लापरवाही से अधूरे और घसीट कर भरे जाते हैं, 

जो पढने में भी नहीं आते हैं, 

उपदेश सतसंगी की जिंदगी की एक महान बात है, 

ऐसी महान बात की शुरुआत ऐसी लापरवाही से फार्म भरकर की जाती है, 

तो कोई शख्स उसके बहुत अच्छे नतीजे की उम्मीद किस तरह कर सकता है, 

सेक्रेटरी को चाहिए कि फार्म अपने समाने भरवायें और देखें कि तमाम पूछी गई बातें पूरी और सही भरी गई है और साफ व खुशखत लिखी गई है।। 


तीसरी बात----

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सभी ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान अपनी ब्रांच में शादी के लायक लडके व लडकियों की फेहरिस्त तैयार करें, 

और अपने रीजनल प्रेसीडेन्ट के पास भेजें, 

जिससे कि प्रेसीडेन्ट के पास अपने अपने रीजन के ऐसे तमाम लडकों व लडकियों की पूरी जानकारी हो, 

ताकि शादियों की बातचीत और तय करने में वह सहायता कर सकें, 

सभी ब्रांच सेक्रेटरी को मशविरा दिया कि वह इस सिलसिले में अपनी पूरी कोशिश करें, 

ताकि शादियों का एक बहुत अच्छा और अनुकरणीय उदाहरण स्थापित हो जाय।। 


चौथी बात----

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ब्रांच सतसंग को सतसंग के इंडस्ट्रीयल प्रोग्राम को आगे बढाने में हिस्सा लेना चाहिए, 

यह दयालबाग के बने हुए माल की बिक्री से और अपने क्षेत्र में नुमाइश करने से कीया जा सकता है।। 


पांचवीं बात----

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फरमाया कि ब्रांच सतसंगों को 5 से 10 साल की उम्र के बच्चों के ग्रुप के लिए छोटे छोटे स्कूल जारी करने चाहिए, 

अगर यह मुमकिन ना हो तो सतसंगीयों को खुद ही बच्चों को पढाने का इन्तजाम करना चाहिए

बच्चों को सतसंग, दयालबाग और रा-धा-स्व-आ-मी क्यो कहते हैं, 

आदि बातों की A B C के बारे में जानकारी देनी चाहिए।। 


🙏रा-धा-स्व-आ-मी

Monday, November 13, 2023

बचन

 रा धा/ध: स्व आ मी



- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:- (24-11-31 मंगल का तीसरा भाग)- जब तीसरा नम्बर आया तो सेक्रेटरी साहब ने कहा कि मेरा नम्बर सरका दिया गया है। सबसे अव्वल पण्डित चमूपति जी ने जो आर्य समाज के माननीय वक्ता हैं तक़रीर की।             

                           

फ़िर रेवरेण्ड़ ठाकुर दास  साहब का लेक्चर हुआ उसके बाद प्रिंसिपल छबीलदास साहब ने व्याख्यान दिया। प्रिंसिपल साहब के सिवाय सबने यही कहा कि परमार्थ कौमी तरक्की के रास्ते में स‌ददेराह नहीं है। उसके बाद मुझे बोलने की इजाजत दी गई। डाक्टर नौरंग साहब ने बतौर सदर (अध्यक्ष) के अव्वल हाजिरीन(उपस्थित जन) से मेरा तार्रुफ (परिचय) कराया। मेरी सहूलियत के लिये एक कुसी रख दी गई थी जिस पर बैठकर में आराम से बोल सका। हाजिरीन एकदम खामोश हो गये।


मैने सुगांधीर सामला कि आवल में आर्य समाज के उस फैज (लाभ) के लिये जो मुझे गुजिश्ता (पिछली) सदी के आखिर में अपनी तालिबद्दल्ली(विद्यार्थी ) के जमाने में समाज से मिला है जिक्र कर दूँ। चुनांचे मैंने ऐसा ही किया और इस फिकरें   (वाक्य) पर बढ़े जोर से तालियां बजी। इससे जाहिर है कि अब समाजी भाई मेरी तरफ मोहब्बत की निगाह से देखने लगे हैं। उनको व नीज दूसरे सब मbतों के अनुयायियों को जेहननशीन (समझना)  चाहिये कि सतसंग प्राणिमात्र के लिये रोम रखता है और सत्संग के साथ प्रेम रखने में सबका भला है।


मजहबी ध्यासात में तकरको बेशक रहे लेकिन दिलों में तफरका (भिन्नता ) सेवक रहे लेकिन दिलों तफ़रका नहीं होना चाहिये। खैर! निस्फ़ घंटा गुजर गया। मुझे अफसोस है कि बमुश्किल तमाम निस्फ़ मजमून अदा हो सका। साहबेसद्र ने अजराहे-नवाजिश(कृपा वंश) तस्वीर जारी रखने की इजाजत दे दी। मैंने मजबूरन आयन्दा पांच मिनट के अन्दर जैसे जैसे मजमून खत्म कर दिया।

ऐसे जबरदस्त मजमून के लिये दो घंटे भी कम वक़्त था। चूंकि इस तक़रीर का अवाम(सामान्य जन) पर निहायत ही अच्छा असर पड़ा इसलिये इरादा है कि प्रेम प्रचारक में इसका खुलासा (Simply) तहरीर करूँ। साहबे सद्र ने मेरे बैठ जाने कर ऐसे तारीफ़ी कलमात(शब्द) जबान से निकाले कि मुझे बड़ी शर्म मालूम हुई क्योंकि यह मेरी जिन्दगी में पहला ही मौका था कि किसी ने बसरेआम(सार्वजनिक रूप से) मेरी ऐसी पुरजोश(उत्साह  पूर्वक) तारीफ़ की हो।

N यह महज रा धा/ध: स्व आ मी दयाल की दया है यह जब जैसा मुनासिब खयाल फ़रमाते हैं उसके लिये सभी सामान मुहय्या(एकत्रित )फरमा देते हैं। मेरे बाद मिस्टर जुत्शी जी, पण्डित विश्व बन्धु जी की तकरीरे हुई। दस बज गये और मैं चला आया।     

                                        🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी!


रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

Wednesday, November 8, 2023

तुलसीदास हनुमान जी और हनुमान चालीसा

 तुलसीदास जी हनुमान चालीसा लिखते थे लिखे पत्रों को रात में संभाल कर रख देते थे सुबह उठकर देखते तो उन में लिखा हुआ कोई मिटा जाता था।


तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आराधना की , हनुमान जी प्रकट हुए तुलसीदास ने बताया कि मैं हनुमान चालीसा लिखता हूं तो रात में कोई मिटा जाता है हनुमान जी बोले वह तो मैं ही मिटा जाता हूं।


हनुमान जी ने कहा अगर प्रशंसा ही लिखनी है तो मेरे प्रभु श्री राम की लिखो , मेरी नहीं तुलसीदास जी को उस समय अयोध्याकांड का प्रथम दोहा सोच में आया उसे उन्होंने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में लिख दिया


"श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि।


वरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥


तो हनुमान जी बोले मैं तो रघुवर नहीं हूं तुलसीदास जी ने कहा आप और प्रभु श्री राम तो एक ही प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत अवतरित हुए हैं इसलिए आप भी रघुवर ही है।


तुलसीदास ने याद दिलाया कि ब्रह्म लोक में सुवर्चला नाम की एक अप्सरा रहती थी जो एक बार ब्रह्मा जी पर मोहित हो गई थी जिससे क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी ने उसे गिद्धि होने का श्राप दिया था वह रोने लगी तो ब्रह्मा जी को दया आ गई उन्होंने कहा राजा दशरथ के पुत्र यज्ञ में हवि के रूप में जो प्रसाद तीनों रानियों में वितरित होगा तू कैकेई का भाग लेकर उड़ जाएगी मां अंजना भगवान शिव से हाथ फैला कर पुत्र कामना कर रही थी उन्ही हाथों में वह प्रसाद गिरा दिया था जिससे आप अवतरित हुए प्रभु श्री राम ने तो स्वयं आपको अपना भाई कहा है।


"तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई


तुलसीदास ने एक और तर्क दिया कि जब आप मां जानकी की खोज में अशोक वाटिका गए थे तो मां जानकी ने आपको अपना पुत्र बनाया था।


"अजर अमर गुननिधि सुत होहू।


करहुं बहुत रघुनायक छोहू॥


जब मां जानकी की खोज करके वापस आए थे तो प्रभु श्री राम ने स्वयं आपको अपना पुत्र बना लिया था।


"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।


देखेउं करि विचार मन माहीं॥


इसलिए आप भी रघुवर हुए तुलसीदास का यह तर्क सुनकर हनुमानजी अंतर्ध्यान हो।


संसार में बहुधा यह बात कही और सुनी जाती है कि व्यक्ति को ज्यादा सीधा और सरल नहीं होना चाहिए सीधे और सरल व्यक्ति का हर कोई फायदा उठाता है ,यह भी लोकोक्ति है कि टेढे वृक्ष को कोई हाथ भी नहीं लगाता सीधा वृक्ष ही काटा जाता है।


दरअसल टेढ़े लोगों से दुनिया दूर भागती हैं वहीँ सीधों को परेशान किया जाता है।तो क्या फिर सहजता और सरलता का त्याग कर टेढ़ा हुआ जाए नहीं कदापि नहीं ; पर यह बात जरूर समझ लेना दुनिया में जितना भी सृजन हुआ है वह टेढ़े लोगों से नहीं सीधों से ही हुआ है।


कोई सीधा पेड़ कटता है तो लकड़ी भी भवन निर्माण या भवन श्रृंगार में ही काम आती है।


मंदिर में भी जिस शिला में से प्रभु का रूप प्रगट होता है वह टेढ़ी नहीं कोई सीधी शिला ही होती है।


जिस बाँसुरी की मधुर स्वर को सुनकर हमें आंनद मिलता है वो भी किसी सीधे बांस के पेड़ से ही बनती है। सीधे लोग ही गोविंद के प्रिय होते हैं !


🙏🏻 जय श्री सीताराम जी 🙏

आगरा जिला प्रशासन की सभी कार्रवाई को ठहराया


Anoop टोटल Tv:

😃


ज्योति एस. की रिपोर्ट


खुशखबरी खुशखबरी,



 इलाहाबाद.


हाईकोर्ट ने जारी किया आदेश। आगरा जिला प्रशासन की सभी कार्रवाई को ठहराया अवैध, किया निरस्त।


 अब मुंह काला करने कहां जाएंगे राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग को बदनाम करने वाले.


-पीत पत्रकारिता करने वाला मी डिया कहां छुपाएगा अपना चेहरा, क्या झूठ को सच में बदलने की अपनी कुचेष्टा छोड़ेगा मीडिया और जिला प्रशासन 



-आगरा जिला प्रशासन ने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग के खिलाफ की थी अवैधानिक कार्रवाई,  हाईकोर्ट ने प्रशासन के सभी नोटिसों और आदेशों को किया निरस्त, कार्रवाई को ठहराया गलत


-राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के पक्ष को सुनने और उसके बाद कदम उठाने का जिला प्रशासन को दिया आदेश


-हाईकोर्ट के आदेश से जिला प्रशासन की मनमानी और बदनीयत हुई उजागर, सच सामने आया, झूठ का मुंह हुआ काला, उंगली उठाने वालों के मुंह पर पुत गई कालिख


ज्योति एस, प्रयागराज।


 निजी स्वार्थ सिद्धि को उच्च कोटि की अति पावन पवित्र धार्मिक संस्था राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा को झूठ परोसकर बदनाम करने का षड्यंत्र रचने वाले जिला प्रशासन और मीडिया के के लोग अपना मुंह काला करने अब कहां जाएंगे, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले ने उनके मुंह पर कालिख को दी है। आगरा जिला प्रशासन की बदनियत और मनमानी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंकुश लगाते हुए राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा की संपत्तियों पर उसकी ओर से जारी सभी नोटिसों और आदेशों को निरस्त (क्वैश) कर दिया। हाई कोर्ट ने आज इस आशय के लिखित आदेश जारी कर दिए।


अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन को तय समय में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा का पक्ष सुनने और उसके बाद आगे कोई कदम उठाने के निर्देश भी दिए। 

हाईकोर्ट ने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा को इस मामले में जिला प्रशासन की ओर से किए गए बेजा लाठीचार्ज तथा मानवाधिकार उल्लंघन मामले में  कार्रवाई जारी रखने की छूट भी प्रदान की। 

आगरा जिलाधिकारी आगरा पहले ही इस मामले में हाईकोर्ट के दो-दो अवमानना नोटिस का सामना कर रहे हैं। इस मामले में सुनवाई जारी है।

आरोप है कि उच्चकोटि की अति पावन-पवित्र धार्मिक संस्था राधास्वामी सतसंग सभा की संपत्तियों पर भूमाफियाओं व बिल्डर लॉबी के दबाव में अनैतिक-अवैधानिक कब्जा करने-कराने की नीयत को लेकर आगरा जिला प्रशासन ने सितंबर माह में तोड़फोड़ की कार्रवाई की थी, जिसमें किसी कार्य सेवा कर रहे निहत्थे शांतिप्रिय सतसंगी बच्चों, बूढ़ों महिलाओं तक पर लाठी चार्ज और पथराव किया गया था। आरोप है कि इस मामले में भू माफियाओं और बिल्डर लाॅबी से जुड़े कतिपय ग्रामीणों का भी सहयोग लिया था। जबकि राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा ने इसका लगातार विरोध किया और प्रशासन को भूमि का स्वामित्व अपना बताते हुए उसके पक्ष में प्रमाण भी प्रस्तुत किया था और उनसे अवैधानिक कार्रवाई रोकने की लगातार मांग की थी। यह भी बताया था कि यह क्षेत्र तहसील प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और नगर पंचायत दयालबाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। बावजूद इसके कार्रवाई की गई और राधास्वामी सत्संग सभा की कोई सुनवाई नहीं की गई।


*राधास्वामी सतसंग सभा ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के काउंसिल उज्जवल सत्संगी ने बताया कि आगरा जिला प्रशासन के नोटिस के जवाब में  राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा ने आगरा जिला प्रशासन को स्पष्ट किया था कि यह उसके अधिकार क्षेत्र का मामला नहीं है। क्योंकि राधास्वामी सतसंग सभा की प्रश्नगत समस्त संपत्तियां दयालबाग नगर पंचायत क्षेत्र में आती हैं, इसलिए यह दयालबाग नगर पंचायत के अधिकार का क्षेत्र का मामला है, जिसमें तहसील प्रशासन अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है जो कि कानूनन उचित नहीं है। इतना ही नहीं राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा ने हाईकोर्ट में यह भी अपील दाखिल की थी कि उन्हें नोटिस मात्र दो संपत्तियों पर मिला, जबकि प्रशासनिक कार्रवाई की जद में 14 संपत्तियों को रखा गया, जोकि गलत और असंवैधानिक है।

आगरा जिला प्रशासन ने अपने जवाब में कहाकि नोटिस समस्त 14 संपत्तियों का दिया गया था। पर, राधास्वामी सतसंग सभा ने केवल दो ही नोटिस को रिसीव किया। जिस पर हाईकोर्ट की टिप्पणी थी कि आगरा जिला प्रशासन का यह कथन उचित जान नहीं पड़ता, क्योंकि जो व्यक्ति दो नोटिस रिसीव कर सकता है, उसे बाकी के नोटिस रिसीव करने में क्या आपत्ति। हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन से यह भी पूछा कि उसने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा की इस आपत्ति कि 'मामला सदर तहसील अधिकार क्षेत्र का नहीं है क्योंकि प्रश्नगत संपत्ति नगर पंचायत दयालबाग के अधिकार क्षेत्र में आती हैं,' का उसने क्या जवाब दिया।*


इस मामले में आगरा जिला प्रशासन के जवाब से असंतुष्ट होते हुए *हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन (सदर तहसील) की ओर से इस मामले में जारी सभी नोटिस और आदेशों को निरस्त (क्वैश) करने का आदेश देते हुए, निर्देश दिया कि आगरा जिला प्रशासन हाईकोर्ट की ओर से दिए गए समय में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के पक्ष की सुनवाई करेगा उसकी ओर से प्रस्तुत प्रमाण को जांचेगा-परखेगा। इसके पश्चात ही भविष्य में कार्रवाई करेगा।*

हाईकोर्ट ने इस मामले में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा को लाठीचार्ज तथा अन्य कार्रवाई एवं मानवाधिकार उल्लंघन मामले में अपनी कार्रवाई जारी रखने की छूट भी प्रदान की।

गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट में इस मामले में राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए लालगढ़ी और राधाबाग नहर भूमि मामले में हाईकोर्ट की रोक के बावजूद कार्रवाई करने पर आगरा जिला अधिकारी को अवमानना नोटिस जारी किया हुआ है। इस पर भी सुनवाई होनी है।

पूर्व और आज के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से स्पष्ट हो गया कि आगरा जिला प्रशासन ने मनमाने तरह से अवैधानिक रूप से राधास्वामी सतसंग सभा की संपत्तियों पर तोड़फोड़ की तथा कृषि कार्य सेवा दे रहे शांतिप्रिय सतसंगियों पर लाठीचार्ज और पथराव किया था। इतना ही नहीं आगरा जिला प्रशासन के नोटिस की आड़ लेकर जो लोग राधास्वामी सतसंग सभा की नियत और कार्य पर उंगली उठा रहे थे, उनके मुंह पर भी कालिख पुत गई। क्योंकि हाईकोर्ट के निर्णय से साबित हो गया कि आगरा जिला प्रशासन की कार्रवाई अवैधानिक थी।


प्रस्तुति - 

Sunday, October 22, 2023

‼️नेत्रहीन संत‼️*


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद



एक बार एक राजा अपने सहचरों के साथ शिकार खेलने जंगल में गया था वहाँ शिकार के चक्कर में एक दूसरे से बिछड़ गये और एक दूसरे को खोजते हुये राजा एक नेत्रहीन संत की कुटिया में पहुँच कर अपने बिछड़े हुये साथियों के बारे में पूछा।


नेत्र हीन संत ने कहा महाराज सबसे पहले आपके सिपाही गये हैं, बाद में आपके मंत्री गये, अब आप स्वयं पधारे हैं इसी रास्ते से आप आगे जायें तो मुलाकात हो जायगी संत के बताये हुये रास्ते में राजा ने घोड़ा दौड़ाया और जल्दी ही अपने सहयोगियों से जा मिला और नेत्रहीन संत के कथनानुसार ही एक दूसरे से आगे पीछे पहुंचे थे.

यह बात राजा के दिमाग में घर कर गयी कि नेत्रहीन संत को कैसे पता चला कि कौन किस ओहदे वाला जा रहा है लौटते समय राजा अपने अनुचरों को साथ लेकर संत की कुटिया में पहुंच कर संत से प्रश्न किया कि आप नेत्रविहीन होते हुये कैसे जान गये कि कौन जा रहा है, कौन आ रहा है ?


राजा की बात सुन कर नेत्रहीन संत ने कहा महाराज आदमी की हैसियत का ज्ञान नेत्रों से नहीं उसकी बातचीत से होती है सबसे पहले जब आपके सिपाही मेरे पास से गुजरे तब उन्होंने मुझसे पूछा कि ऐ अंधे इधर से किसी के जाते हुये की आहट सुनाई दी क्या ? 

तो मैं समझ गया कि यह संस्कार विहीन व्यक्ति छोटी पदवी वाले सिपाही ही होंगे.

जब आपके मंत्री जी आये तब उन्होंने पूछा बाबा जी इधर से किसी को जाते हुये..... 

तो मैं समझ गया कि यह किसी उच्च ओहदे वाला है, क्योंकि बिना संस्कारित व्यक्ति किसी बड़े पद पर आसीन नहीं होता इसलिये मैंने आपसे कहा कि सिपाहियों के पीछे मंत्री जी गये हैं.


जब आप स्वयं आये तो आपने कहा सूरदास जी महाराज आपको इधर से निकल कर जाने वालों की आहट तो नहीं मिली तो मैं समझ गया कि आप राजा ही हो सकते हैं क्योंकि आपकी वाणी में आदर सूचक शब्दों का समावेश था और दूसरे का आदर वही कर सकता है जिसे दूसरों से आदर प्राप्त होता है क्योंकि जिसे कभी कोई चीज नहीं मिलती तो वह उस वस्तु के गुणों को कैसे जान सकता है!

दूसरी बात यह संसार एक वृक्ष स्वरूप है- जैसे वृक्ष में डालियाँ तो बहुत होती हैं पर जिस डाली में ज्यादा फल लगते हैं वही झुकती है इसी अनुभव के आधार में मैं नेत्रहीन होते हुये भी सिपाहियों, मंत्री और आपके पद का पता बताया अगर गलती हुई हो महाराज तो क्षमा करें.


राजा संत के अनुभव से प्रसन्न हो कर संत की जीवन व्रत्ति का प्रबंन्ध राजकोष से करने का मंत्री जी को आदेशित कर वापस राजमहल आया.


*तात्पर्य:-*


आजकल हमारे परिवार संस्कार विहीन होता जा रहे है थोड़ा सा पद, पैसा व प्रतिष्ठा पाते ही दूसरे की उपेक्षा करते हैं, जो उचित नहीं है मधुर भाषा बोलने में किसी प्रकार का आर्थिक नुकसान नहीं होता है अतः मीठा बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए..


_*अगर यह पोस्ट पसंद आये तो दुसरो को भी शेयर /*


🪴 _।।जय जय श्री राम।।_  🪴

🪷 _।।हर हर महादेव।।_  🪷.

23 अक्टूबर, शारदीय नवरात्र महानवमी पर विशेष )

 


स्वयं  की जागृति  ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है /  विजय केसरी


 नौ दिनों तक माता के नौ रूपों की आराधना महा नवमी के दिन पूर्णाहुति  के बाद नवरात्र संपन्न हो जाता है। माता के नौ रूपों का दर्शन,नौ नूतन संकल्प, नौ  व्याधियों से मुक्ति और  दसों दिशाओं में सुख, समृद्धि की कामना नवरात्र का उद्देश्य है। देवी पुराण के कथन अनुसार, 'स्वयं की जागृति व स्व जागरण ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है। आज की बदली परिस्थिति में इस जागृति को समझने की जरूरत है।  बाहरी तौर पर नवरात्र पर हम सब जो कर रहे हैं, यह इसका बाह्य स्वरूप है, इसका आध्यात्मिक स्वरूप है, स्वयं का जागरण । यह आलेख समर्पित है, स्वयं को जागृत करने के संदर्भ में। दुर्गा पूजा नौ दिनों तक चलने वाला एक लोकप्रिय पर्व के रूप में भारत सहित विश्व के कई देशों में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है।  दुर्गा पूजा पर घर परिवार के लोग एक साथ जुटते हैं।  वे परिवार के साथ समूह में दुर्गा पूजा पर्व मनाते हैं । इस अवसर पर कई दुर्गा भक्तों के यहां नवरात्र का अनुष्ठान होता है। भक्तगण  बहुत ही विधि विधान के साथ नौ दिनों तक मां के नौ रूपों की पूजा करते हैं।   नौ दिनों तक चलने वाले इस पूजा कार्यक्रम के क्या मायने है ? इस पर विचार करने की जरूरत है।  आखिर नौ दिनों तक यह पूजा क्यों की जाती है ? इस पूजा के पीछे क्या गुढ़ रहस्य है ? यह जानना बहुत ही जरूरी है।

 यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है। महिषासुर नामक राक्षस के आतंक से संपूर्ण ब्रह्मांड त्राहिमाम त्राहिमाम कर रहा था।  महिषासुर  स्वयं को ईश्वर ही समझ बैठा था।  महिषासुर इतना ताकतवर बन गया था कि उसे पराजित करने में अलग-अलग ब्रह्मा, विष्णु, महेश  त्रिदेव  भी अक्षम हो गए थे।  ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित सभी  देवताओं की आराधना पर माता दुर्गा का प्रकटीकरण हुआ था। मां दुर्गा चाहती तो पलक झपकते ही महिषासुर का सर्वनाश कर सकती थी, लेकिन मां दुर्गा ऐसा ना कर, क्या संदेश देना चाहती हैं ? इस भीषण युद्ध और रक्तपात में करोड़ों जाने चली गई थीं। युद्ध के दौरान  महिषासुर का कई बार दुर्गा मां से सामना भी हुआ था। इसके बावजूद महिषासुर के अंदर के ज्ञान की लौ ना जल  सकी थी। 

अब इस बात को हम सब स्वयं के जीवन के साथ जोड़ कर देखें। समस्त योनियों में मनुष्य की योनी ही सर्वश्रेष्ठ है। हम सब अनंत काल से इस धरा पर जन्म ले रहे हैं और मृत्यु को प्राप्त कर रहे हैं ।‌इस बात को हमारे धर्म ग्रंथों ने भी माना है । अब प्रश्न यह उठता है कि हमारा जन्म बार-बार क्यों इस धरा पर होता रहता है ? इसका उत्तर, हमारे वेद और पुराणों में वर्णित है कि  मनुष्य, मोक्ष प्राप्ति के लिए बार-बार मरता है और जन्म लेता है।  यह क्रम अनंत काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक चलता रहेगा।  जिसने स्वयं को जागृत कर लिया, माया के बंधन से स्वयं को मुक्त कर लिया, वह ईश्वर के अंश में समाहित हो गया । अब उसका ना बार-बार जन्म होगा और ना मृत्यु को प्राप्त करेगा । नवरात्र स्वयं को जागृत करने का एक महान पर्व है।  एक साल में तीन सौ पैंसठ दिन होते हैं।

 शारदीय नवरात्र हम लोगों को एक अवसर प्रदान करता है । इन नौ  दिनों में अपने अंदर छुपे असत्य को जाने । सत्य से साक्षात्कार करें । जिस बाह्य दुनिया को हम सबों ने अपना मान लिया है , वास्तव में यह बाह्य दुनिया हम सबों. का  है ही नहीं । यहां हम सब जो भी यश, बल ,शक्ति, वैभव अर्जित करते हैं, कुछ समय के बाद ये सभी विस्मृत कर दिए जाएंगे।  लेकिन हम सबों का इस धरा पर आना और जाना लगातार बना रहेगा।  नवरात्र सच्चे अर्थों में स्वयं को जगाने का ही पर्व है।

  नवरात्र पर हम सभी बाहर बिखरी  उर्जा को स्वयं में समाहित करने का एक अवसर प्रदान करता है।  हम सब माया के बंधन में इस तरह जकड़ चुके हैं कि स्वयं के  सच को जान कर भी अंजान बने हुए हैं। अर्थात स्वयं के ज्ञान पर अज्ञानता की बहुत बड़ी पट्टी बंधी हुई है। जिस दौलत के पीछे हम सब भाग रहे हैं।  क्या उस दौलत की फूटी कौड़ी भी हम ले जा सकते हैं ?  तब फिर यह भागम भाग क्यों ? पूरा जीवन जिस धन को कमाने के पीछे लगा देते हैं ,अंत में उस अर्जित धन का रति भर  भी हम ले नहीं जा सकते हैं । तब फिर इसके पीछे पागल क्यों है ?  यह हमारे अंदर जो अज्ञान है,  मुझे अज्ञानी बनाकर जन्मो जन्म से रखे हुए हैं।  जिस दिन हमारे अंदर छुपा ज्ञान जागृत हो जाएगा, यह सारी दुनिया, धन दौलत सब बेमानी लगने लगेगी। महिषासुर अपार शक्तिशाली होकर भी अज्ञानी था।  हम सब स्वयं को ज्ञानी जरूर कहते है, लेकिन क्या वास्तव में हम सब ज्ञानी हैं ? जिसने ज्ञान को प्राप्त कर लिया, उसके लिए यह संसार नश्वर के समान हो गया। उसके लिए  दुनिया की दौलत भी मिट्टी के समान हो जाती है। 

 भगवान महावीर, जिनका जन्म एक राजघराने में हुआ था। जिस पल  उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, उन्होंने अपने महल का त्याग कर दिया था। वे ज्ञान की प्राप्ति के लिए जंगलों की ओर दौड़ पड़े थे। महावीर ने खुद को जागरण कर भगवान बना दिया था । उन्होंने अंधकार में पड़े लाखों लोगों को ज्ञान की रोशनी दिया था।  सिर्फ एक के जागरण से संसार जग सकता है।  तब संसार के जगने से संसार का क्या हाल होगा ? सुखद आनन्द का अनुभव कर मन परम आनंद में डूब जाता है ।  भगवान बुद्ध, जिन्हें राजमहल से निकलने की अनुमति नहीं थी । जब भगवान बुद्ध में ज्ञान का जागरण हुआ था, तब महल और राजघराने के सभी सदस्य उन्हें रोक पाए थे ?  नहीं । उन्होंने  दुनिया में इतिहास ही रच दिया था। स्वयं के जागरण में दुनिया की समस्त ऊर्जा और शक्तियां निहित होती है।  संसार का वैभव और संसार की सारी दौलत भी इस जागरण को पराजित नहीं कर सकता है। नवरात्र,अपनी बिखरी बाहरी शक्ति व  ऊर्जा को पहचानने का पर्व है।‌ नौ  दिनों तक स्वयं के महिषासुर से लड़ने की जरूरत है । हमारे अंदर विद्यमान काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह, ये पंच विकार,  जिससे आजीवन लड़ते रहते हैं,लेकिन इन पंच विकारों से मुक्त नहीं हो पाते हैं।  उसके पीछे सबसे बड़ा कारण है, हम सब ने बाह्य दुनिया को ही सब कुछ मान लिया है। हम सबों ने बाहर रोशनी जरूर कर दिया है , किन्तु अंदर अंधेरा ही अंधेरा  है।

 अंदर के  प्रकाश को जगाने का पर्व नवरात्र है ।‌ इन नौ दिनों में स्वयं के अंदर की आसुरी शक्तियों को नाश करने का पर्व है।  सत्य को अनुभव करने का पर्व है । सत्य से साक्षात्कार करने का पर्व है । हम सब  नौ  दिनों तक नवरात्र का अनुष्ठान जरूर करते हैं।  दुर्गा सप्तशती का पाठ  करते हैं।  यह अनुष्ठान क्यों है ? यह दुर्गा सप्तशती का पाठ क्यों ?  इस मर्म को जब हम जान जाएंगे, तब मन मस्तिष्क में एक विशेष  आनंद की अनुभूति होगी। यह आनंद की प्राप्ति ही सच्चे अर्थों में नवरात्र है।  आज पूरी दुनिया यश, धन, वैभव और बल के पीछे भाग रही है । जबकि ये यश,शक्ति बल,  और वैभव शाश्वत रहने वाला नहीं है । नवरात्र स्वयं को पहचानने का पर्व है । स्वयं को जानने का पर्व है।  स्वयं से साक्षात्कार करने का पर्व है।‌

 यह शरीर पांच तत्वों के मेल से बना हुआ है । अंत में पांच तत्व अपने-अपने तत्वों में मिल जाते हैं।  एक तत्व, आत्मा तत्व, अजर अमर अविनाशी है।  पूरा जीवन हम सब  इस आत्म शक्ति के साथ जीते हैं। लेकिन इस  आत्म शक्ति को जानने की कभी कोशिश करते नहीं है।  श्रीमद्भागवत गीता में भगवान कृष्ण ने रणभूमि में अर्जुन को इसी आत्म साक्षात्कार का ज्ञान दिया था।  सच्चे अर्थों में नवरात्र महाभारत की तरह ही रणभूमि के रूप में हमारे सामने हैं । हम सब अर्जुन की भूमिका में हैं।  मां जगदंबा कृष्ण के रूप में हम सबों को आत्म ज्ञान देने के लिए अवतरित होती है । बस जरूरत है, नवरात्र के इस उद्देश को समझने की।

 जन्मो जन्म से बैठे स्वयं के महिषासुर को परास्त करने का पर्व नवरात्र है। हम सब के ज्ञान रूपी आंखों पर अज्ञानता की जो पट्टी बंधी हुई है, उसे खोलने की जरूरत है । जिस पल इस अंधकार की पट्टी को खोलने का मन बना लिया, समझ लीजिए, स्वयं के अंदर नवरात्र का अनुष्ठान जागृत हो गया । इसके लिए कहीं बाहर भाग दौड़ करने की जरूरत नहीं है, बल्कि स्वयं के अंदर विद्यमान नवरात्र की शक्ति को जगाने की जरूरत है। स्वामी विवेकानंद ने गुरु परमहंस से ज्ञान प्राप्त कर जो परचम लहराया था, वह क्या था ? सच्चे अर्थों में नवरात्र का जागरण ही था। उनका नवरात्र ऐसा जगा था कि जब तक दुनिया कायम रहेगी, स्वामी विवेकानंद के विचार लोगों को प्रेरित करता रहेगा। नवरात्र बाहर बिखरी ऊर्जा को स्वयं में आत्मसात करने का काल है । आंतरिक उर्जा से बड़ी कोई शक्ति नहीं है।  इन नौ दिन रात की अवधि में स्वयं को पहचानने का अवसर मिलता है। जिसने स्वयं को जान लिया ,स्वयं को जागृत कर लिया, नवरात्र हो गया।


विजय केसरी,

( कथाकार स्तंभकार )

पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301,

मोबाइल नंबर :- 92347 99550


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Saturday, October 21, 2023

ओम शब्द


*प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद


ईश्वर के सर्वश्रेष्ठ नाम ‘ओ३म्’ के सम्बन्ध में कुछ प्राथमिक जानकारियां...*



1. *‘ओम्’*  (Om/Aum) ईश्वर (परमात्मा, परमेश्वर, ब्रह्म) का सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम नाम है। ‘ओम्’ का ठीक से उच्चारण हो सके इसलिए उसे *‘ओ३म्’* लिखा जाता है । कई बार लोग ‘ओम्’ को *‘ॐ’* इस  संकेत रूप में भी लिख देते हैं। ‘ओ३म्’ में जो तीन की संख्या *‘३’* का समावेश है उसका तात्पर्य यह दर्शाने का है कि *‘ओ’* का उच्चारण *प्लुत* करना है । *ह्रस्व, दीर्घ* और *प्लुत* – इन तीनों प्रकार से उच्चारण किया जाता है । *ह्रस्व* उच्चारण करने में जितना समय लगता है, इससे दुगना समय *दीर्ध* उच्चारण में और तीन गुना समय *प्लुत* उच्चारण में लगता है, इसलिए *‘ओ३म्’ में ‘ओ’ का प्लुत उच्चारण करना है, यही बताने के लिए ‘ओ’ के पश्चात् ‘३’ संख्या लिखी जाती है।* _(गुजरात में कई बार लोग भूल से 'ओ३म्' का उच्चारण ‘ओरूम्’ करते हैं, क्योंकि गुजराती में *‘रू’* को *‘३’* लिखा जाता है।)_


2. *सत्यार्थप्रकाश* महर्षि दयानन्द का विश्व प्रसिद्ध ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ में चौदह समुल्लास (अध्याय / प्रकरण) हैं, परन्तु इसके प्रथम ही समुल्लास का आरम्भ *‘ओ३म्’* की व्याख्या से किया गया है। ‘ओ३म्’ को *‘ओंकार शब्द’* भी कह सकते हैं। ‘ओ३म्’ परमेश्वर का सर्वोत्तम, प्रधान अथवा निज नाम है । ‘ओ३म्’ को छोड़कर परमेश्वर के जितने भी अन्य नाम हैं वे सब गौणिक या गौण नाम हैं, मुख्य नाम तो केवल *ओ३म्* ही है। ‘ओ३म्’ नाम केवल और केवल परमात्मा ही का नाम है । परमात्मा से भिन्न किसी अन्य पदार्थ का नाम ‘ओ३म्’ नहीं हो सकता है। यह भिन्न बात है कि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपना या अन्य किसी व्यक्ति या ईश्वरेतर पदार्थ का नाम ‘ओ३म्’ रख लेवें!


3. *अ-उ-म्* - इन तीन अक्षर मिलकर एक ‘ओ३म्’ समुदाय हुआ है। ‘अ’ और ‘उ’ मिलकर *‘ओ’* होता है । ‘ओ’ का *प्लुत* उच्चारण करना है इसलिए इसके आगे *‘३’* लिखा जाता है। इस एक ‘ओ३म्’ नाम से परमेश्वर के बहुत नाम आते हैं – अनेकानेक नामों का समावेश हो जाता है। *अ*-कार विराट्, अग्नि, वायु आदि नामों का; *उ*-कार हिरण्यगर्भ, वायु, तैजस आदि नामों का; और *म*-कार ईश्वर, आदित्य, प्राज्ञ आदि नामों का वाचक और ग्राहक है। वेदादि सत्य शास्त्रों में ‘ओ३म्’ का स्पष्ट व्याख्यान किया गया है। इन शास्त्रों में प्रकरण अनुकूल उपर्युक्त विराट्, अग्नि आदि सब नामों को परमेश्वर ही के नाम बताए गए हैं।  


4. यजुर्वेद के ४०वें अध्याय के १७वें मन्त्र में ‘ओ३म्’ को परमेश्वर का नाम बताते हुए पाठ है – *‘ओं खम्ब्रह्म’*, अर्थात् जिसका नाम ओ३म् है वह आकाशवत् महान् – सर्वव्यापक है । ‘ओ३म्’ का मुख्य अर्थ *‘अवतीत्योम्’* से यह लिया जाता है कि - ईश्वर रक्षा करनेवाला है। ईश्वर का रक्षा करने के गुण का प्रकाश ‘ओम्’ नाम से होता है। ईश्वर सर्वरक्षक है – इस सत्य को ‘ओ३म्’ नाम प्रकट करता है । छान्दोग्य उपनिषद् में कहा है – *_‘ओमित्येतदक्षरमुद्गीथमुपासीत’*_ अर्थात् जिसका नाम ‘ओ३म्’ है वह कभी नष्ट नहीं होता है। उसी की उपासना करनी योग्य है, अन्य की नहीं । 


5. कठोपनिषद् (वल्ली २, मन्त्र १५) का मन्त्र – _*“सर्वे वेदा यत्पदमामनन्ति तपांसि सर्वाणि च यद्वदन्ति । यदिच्छन्तो ब्रह्मचर्यं चरन्ति तत्ते पदं संग्रहेण ब्रवीम्योमित्येतत्॥”*_ बड़ा प्रसिद्ध है। इस मन्त्र में उपनिषत्कार ने इस बात की घोषणा की है कि सब वेद, सब धर्मानुष्ठानरूप तपश्चरण, जिसका कथन और मान्य करते हैं और जिसकी प्राप्ति की इच्छा करके ब्रह्मचर्य आश्रम करते हैं, उसका नाम *‘ओ३म्’* है ।

6. सत्यार्थप्रकाश के सप्तम समुल्लास में महर्षि दयानन्द जी ने ईश्वर की उपासना कैसे करनी चाहिए यह बताते हुए योग के अंगों का वर्णन किया है। वहां उन्होंने लिखा है कि उपासक को नित्य प्रति परमात्मा के ‘ओ३म्’ नाम का अर्थ-विचार और जप करना चाहिए ।  


7. *ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका* ग्रन्थ के उपासना विषयक प्रकरण में महर्षि दयानन्द जी ने योगदर्शन के *‘तस्य वाचकः प्रणवः’* (१.२७) सूत्र की व्याख्या करते हुए लिखा है – _*“जो ईश्वर का ‘ओंकार’ नाम है सो पिता-पुत्र के सम्बन्ध के समान है और यह नाम ईश्वर को छोड़ के दूसरे अर्थ का वाची नहीं हो सकता। ईश्वर के जितने नाम हैं, उनमें से ओंकार सब से उत्तम नाम है।”*_ इसी प्रकरण में महर्षि ने योगदर्शन के अगले *‘तज्जपस्तदर्थभावनम्’* (१.२८) सूत्र को उद्धृत कर इसकी व्याख्या करते हुए लिखा है – _*“इसलिए इसी ('ओ३म्') नाम का जप अर्थात् स्मरण और उसी का अर्थ-विचार सदा करना चाहिए कि जिससे उपासक का मन एकाग्रता, प्रसन्नता और ज्ञान को यथावत् प्राप्त होकर स्थिर हो।”*_ महर्षि ने अष्टांग योग के दूसरे अंग *नियम* में जिसका निर्देश किया गया है उस ‘स्वाध्याय’ में ‘ओंकार के विचार’ का समावेश किया है । 


8. ‘ओ३म्’ को *‘प्रणव’* कहा जाता है। ‘प्र’ उपसर्ग पूर्वक ‘णु-स्तुतौ’ इस धातु से ‘प्रणव’ शब्द निष्पन्न होता है। इस ‘ओ३म्’ पद के द्वारा ईश्वर की प्रकृष्ट रूप से स्तुति की जाती है, करनी चाहिए – इसीलिए इसे ‘प्रणव’ कहते हैं । ईश्वर के केवल एक ही नाम ‘ओ३म्’ को ‘प्रणव’ कहा जाता है। उसके किसी भी अन्य नाम को ‘प्रणव’ नहीं कहा जाता है। ‘ओ३म्’ को *‘उद्गीथ’* भी कहा जाता है। ‘ओ३म्’ के माध्यम से ईश्वर का उत्तम रूप से गान – स्तुति - ध्यान किया जाता है, इसलिए उसे ‘उद्गीथ’ कहा जाता है। छान्दोग्य उपनिषद् आदि में ‘उद्गीथ-उपासना’ का वर्णन पाया जाता है । 


9. यजुर्वेद के ४०वें अध्याय के १५वें मन्त्र में *‘ओ३म् क्रतो स्मर क्लिबे स्मर। कृतं स्मर।’* आया है । इसका भाष्य करते हुए महर्षि दयानन्द लिखते हैं –  ,*_“हे (क्रतो) कर्म करने वाले जीव! तू शरीर छूटते समय (ओ३म्) इस नाम-वाच्य ईश्वर को (स्मर) स्मरण कर, (क्लिबे) अपने सामर्थ्य के लिए परमात्मा और अपने स्वरूप का (स्मर) स्मरण कर, (कृतम्) अपने किये का (स्मर) स्मरण कर।”_*


10. ईश्वर एक द्रव्य, पदार्थ, वस्तु, सत्ता, नामी या वाच्य है। ‘ओ३म्’ उस ईश्वर का वाचक है, द्योतक है, संज्ञा या नाम है। *ईश्वर अभिधेय है, ‘ओ३म्’ अभिधान है। ईश्वर पदार्थ है, ‘ओ३म्’ पद है।* नाम से नामी का ज्ञान होता है। ‘ओ३म्’ से ईश्वर के स्वरूप की अभिव्यक्ति – प्रकाश होता है। ईश्वर और ‘ओ३म्’ नाम का नित्य सम्बन्ध है। *जब हम कहते हैं कि ‘ओ३म्’ ईश्वर का नाम है या वाचक है, तब हम ईश्वर और ‘ओ३म्’ नाम के बीच प्रथम से विद्यमान नित्य सम्बन्ध को प्रकट करते हैं; कोई नया सम्बन्ध स्थापित नहीं करते हैं।*


*‘ओ३म्’ की अनेकानेक विशेषताएं हैं। अतः ‘ओ३म्’ पर प्रगाढ़ आस्तिक्य भाव से – ईश्वर-प्रणिधान पूर्वक निरन्तर चिन्तन-मनन – अर्थ-भावना करने की आवश्यकता है; क्योंकि ‘ओ३म्’ का विचार ही प्रकारान्तर से ईश्वर-विचार है।*


*शुभ प्रभात मित्रो। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*

Monday, October 16, 2023

संत मत की परम्परा और राधास्वामी संत मत / उदय वर्मा


 भारत मेंअनादि काल से संत मत की परंपरा की अविच्छिन्न धारा प्रवाहित होती रही है। इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि अपने अध्यात्मिक साधना के सफर में सद्गुरुओं और संतों ने हर स्तर पर  भारतीय चेतना की  प्रगति को शिखरचुम्बी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। राधास्वामी भी एक ऐसा ही पंथ है, जिसके गुरु महाराजों ने अपने अनुनायियों को आत्म कल्याण और परमार्थ के मार्ग पर चलने  के लिए प्रेरित किया ।

     राधास्वामी पंथ में भक्ति का मूल स्वर प्रेम भक्ति ही है , जिसका स्थायी संदेश मानव कल्याण की सर्वोच्च संभावनाओं की तलाश है। इस मत के पथिकों में गुरु महाराज के प्रति जो प्रेम की पराकाष्ठा मिलती है, वह दास्य भाव की भक्ति से गुम्फित हो कर अपने चरम पर पहुंचती है और भक्त खुद को गुरु चरणों में अर्पित कर धन्य हो जाते हैं। नदियां समुद्र में मिल कर पूर्ण होती हैं और अपना अस्तित्व मिटा कर समुद्र बन जाती हैं, यानी मुक्ति  पाती है, वैसे ही गुरु चरणों में समर्पित भक्त अपना कर्म पूरा करने के उपरांत अंततः गुरु में विलीन हो कर मुक्ति प्राप्त करते हैं राधास्वामी लोक में स्थान पाते हैं।


   वास्तव में राधास्वामी मत के गुरुओं  का पूरा अभियान मानव मुक्ति की साधना की प्रेम-कथा है। राधास्वामी आध्यात्मिक आन्दोलन जीवधारियों को उसकी सहज रागदीप्त चेतना से जोड़ कर एक ऐसे समाज की रचना का पक्षधर है, जिसमें आध्यात्मिक,नैतिक और आत्मिक उत्थान के सारे साधन सहज सुलभ हो। इस अर्थ में राधास्वामी आन्दोलन एक ऐसा पंथ है जो अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला मार्ग खोलता है। 

  राधास्वामी पंथ की स्थापना १८६१ में श्री सेठ शिव दयाल सिंह महाराज ने की थी। चूंकि सेठ शिव दयाल सिंह महाराज जी की पत्नी का नाम राधा था, इसलिए उन्हें राधास्वामी भी कहा जाता था, यही कारण है कि उनके द्वारा स्थापित पंथ का नाम राधास्वामी पड़ा। जिस दिन राधास्वामी मत आमजनों के बीच अवतरित हुआ था, वह दिन विद्या और ज्ञान की देवी की आराधना का दिन था। महाराज जी ने अपने पंथ की स्थापना के लिए वसंत पंचमी के पावन दिन को ही क्यों चुना, इस विषय में उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा।  लेकिन हमें यह कहना पड़ेगा कि राधास्वामी मत गुह्य धार्मिक मत है और इस मत का अनुयायी कोई भी हो सकता है। इस पंथ के अनुसार जीवधारी अपनी उच्चतम क्षमताओं को सिर्फ शब्द नाम जप द्वारा प्रकट कर सकते हैं। राधास्वामी मत के अनुसार पहले सतपुरूष निराकार था, फिर उसने आकार ग्रहण किया। इससे पहले कोई रचना नहीं हुई थी, कुछ था तो शून्य था, बाद में शब्द प्रकट हुआ , फिर रचना शुरू हुई। पहले सतलोक,  फिर सत् पुरूष की कला से तीनों लोकों का विस्तार हुआ। राधास्वामी पंथ के अनुसार  इन तीनों लोकों से ऊपर राधास्वामी लोक है। हालांकि इस स्थापना से सनातन की मान्यता अलग है। 

  राधास्वामी पंथ में नाम और सत्संग यानी सच्चे लोगों की सभा का विशेष महत्व है। इस पंथ में भक्त नाम भक्ति और सत्संग के माध्यम से एक ऐसी दुनिया रचते हैं, जिसमें न कोई बड़ा होता है न छोटा, न कोई अमीर होता है न गरीब, न कोई ऊंच होता है न नीच। सब बराबर होते है। हुजूर के दरवार में आ कर सभी नाकारात्मक भावनाएं नष्ट हो जाती हैं और सब हजूर के हो जाते हैं और हजूर सब के। इस मरहले पर यह कहा जा सकता है कि राधास्वामी मत सामाजिक समरसता का पंथ है, जिसका उद्देश्य  कर्मकांडी उलझनों में उलझे बिना सत्संग के माध्यम से पंथियों को सत् का साक्षात्कार कराना है और समरस समाजिक चेतना का विकास करना है।

   राधास्वामीपंथी सत्संग के माध्यम से आत्म शुद्धि के साथ हजूर के शरणागत होते हैं और अपना भूत, भविष्य, यहां तक कि अपना सब कुछ मालिक पर छोड़ देते हैं। राधास्वामी पंथियों की मालिक के प्रति यह समर्पण-भक्ति की पराकाष्ठा नहीं तो और क्या है।

  राधास्वामी मत के संस्थापक शिवदयाल साहब के राधास्वामी लोक गमन के बात राधास्वामी सम्प्रदाय वस्तुत:  दो शाखाओं में विभाजित हो गया। मुख्य शाखा तो आगरा में ही रही ,जबकि दूसरी शाखा अमृतसर में व्यास नदी के तट पर स्थापित की गयी, जिसे व्यास की राधास्वामी शाखा के रूप में जाना जाता है। इन दोनों शाखाओं के अनुयायी भारत में बड़ी संख्या में तो हैं ही, विश्व के अनेकानेक देशों में भी इनका विस्तार मिलता है। यह राधास्वामी पंथ के बढ़ते महत्व को दर्शाता है।


 - उदय वर्मा

Sunday, October 15, 2023

*🌻ईश्वर सब देख रहा है !!🌻*

 प्रस्तुति : उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


*एक राजा था. वह राजा समय-समय पर वेश बदलकर अपने नगर का सर्वेक्षण करता रहता था. ताकि देख सके सभी कर्मचारी अपना कार्य नियमानुसार कर रहे हैं या नहीं ? क्या प्रजा उसके कार्य से संतुष्ट है या नहीं।एक बार राजा वेश बदल कर अपने प्रधानमंत्री के साथ निरिक्षण पर निकले. बाजार में उन्होंने ने देखा कि एक व्यक्ति का शव पड़ा था .राजा ने आसपास के दुकानदारों कहा कि इस मृत व्यक्ति को उसके घर पहुँचा दो.*


*सब लोग कहने लगे कि बुरा आदमी था इसका शव यही पड़ा रहने दो. इसके घर वाले आकर स्वयं ले जाएगे.कोई भी दुकानदार उसके बारे में बात तक नहीं करना चाहता था. राजा बहुत हैरान कि इस व्यक्ति ने ऐसे क्या कर्म किए हैं जो मृत्यु के बाद इसको कोई कंधा देने तक को भी सहमत नहीं है.*


*राजा  को किसी दुकानदार ने बताया कि यह व्यक्ति पाप कर्म करता था . बहुत शराब पीता था और वेश्या के पास भी जाता था. इसलिए कोई भी इसके शव को हाथ लगाने को तैयार नहीं है.*


*राजा को लगा कि चाहे वो जैसे भी कर्म करता हो लेकिन उसके राज्य में किसी के भी शव का ऐसा तिरस्कार नहीं होना चाहिए. राजा ने दुकानदार से उसके घर का पता पूछा. अब राजा और प्रधानमंत्री स्वयं शव अपने कंधों पर उठा कर उसके घर पहुँचे.*


*राजा ने उसकी पत्नी को पूछा -  कि कोई भी आपके पति के शव को उठाने को तैयार क्यों नहीं था ? *उस व्यक्ति की पत्नी ने कहा-कि मेरे पति बहुत ही नेक कर्म करते थे। अब राजा हैरान कि वहाँ बाजार में तो हर कोई कह रहा था कि यह पाप कर्म करता था शराब पीता वेश्या के पास जाता था. फिर इसकी पत्नी इसके कर्मों को नेक कर्म क्यों कह रही है ?* 


*उसकी पत्नी ने बताया कि जब भी उसके पति के पास पैसे इकट्ठे होते वह शराब की दुकान पर जाता और शराब खरीद कर घर आकर नाली में बहा देता ताकि किसी और का घर बर्बाद होने से बच जाए. इसी तरह वेश्या के पास जाते और उसे पैसे देकर कहते कि तुम्हें आज के पैसे मिल गए. अब तुम अपने घर का दरवाजा बंद कर लो. ताकि किसी और के पैसे बच जाए और वह पैसे अपने बीबी बच्चों पर लगाए या फिर क्या पता वह यह पैसे किसी शुभ काम में लगा दे ?*


*उस व्यक्ति की पत्नी ने कहा कि मेरे पति के शराब के ठेके और वेश्या के पास जाने के कारण लोगों ने उनसे दूरी बना ली थी. क्योंकि कोई भी उनके नेक इरादे के बारे में नहीं जानते था? मैं उनको कहती थी कि आप की इतनी बदनामी हो चुकी है कोई भी आप को कंधा देने नहीं आएगा. लेकिन मेरे पति का मानना था - *कि शुभ कर्म लोगों को दिखाने के लिए नहीं करने चाहिए.ईश्वर हमारे अच्छे बुरे कर्म फल का हिसाब रखता है.इसलिए अच्छे कर्म करने चाहिए और उसका फल ईश्वर पर छोड़ देना चाहिए क्योंकि ईश्वर सब देख रहा है, मुझे ईश्वर पर विश्वास है. मेरे पति मजाक में कहते थे कि तुम देखना मेरी शव स्वयं राजा और उनके मंत्री लाएंगे. राजा यह सब सुनकर अवाक रह गया.*


*राजा ने उस व्यक्ति की पत्नी से कहा कि चाहे आप के पति मजाक में ही कहते थे कि देखना मेरा शव राजा और मंत्री उठाएंगे. लेकिन वो बात शत् प्रतिशत सच है. क्योंकि मैं यहाँ का राजा हूँ और यह मेरा मंत्री हैं. राजा ने बड़े सम्मान के साथ उस व्यक्ति का दाह संस्कार करवाया और उसके अच्छे कर्मों की सच्चाई से सबको रूबरू करवाया.*


*यह सत्य कथन है कि हमें शुभ कर्म दिखावे के लिए नही करने चाहिए . क्योंकि हमारे कर्मों का लेखा जोखा ईश्वर रखता है हमे देखने सुनने वाले नहीं. किसी को डर होता है कि ईश्वर देख रहा है, किसी को विश्वास है ईश्वर तो देख ही रहा है. इसलिए अच्छे कर्म करते रहे*


*" सिर्फ़ नाम लेने‌‌ से‌ ही कोई सत्संगी नहीं बन जाता, सत्संगी को अपना सारा जीवन संतमत के अनुसार ढालना पड़ता है। उसका हर एक विचार,वचन और कर्म सन्तमत के उसूलों के अनुसार होने चाहिए। कथनी से करनी ज़्यादा ज़रूरी है। विचारों की शक्ति तो‌ और भी अधिक है। सत्संगी का रोज का जीवन और रहन सहन साफ़ सुथरा और ऊंचे दर्जे का होना चाहिए। उसकी रहनी-सहनी से यह ज़ाहिर होना चाहिए कि वह एक पूरे सत्गुरु का शिष्य है। "*


*सहज मार्ग -*


*जीवन में सब कुछ एक निवेश की तरह ही होता है।* *दान,प्रेम,समय,साथ,खुशी, सम्मान और अपमान,जितना - जितना हम दूसरों को देते जायेंगे,समय आने पर एक दिन वह ब्याज सहित हमें अवश्य वापस मिलने वाला है।कभी दुख के क्षणों में अपने को अलग-थलग पाओ तो एक बार आत्मनिरीक्षण अवश्य कर लेना कि क्या जब मेरे अपनों को अथवा समाज को मेरी जरूफलरत थी तो मैं उन्हें अपना समय दे पाया था..? क्या किसी के दुख में मैं कभी सहभागी बन पाया था..? आपको अपने प्रति दूसरों के उदासीन व्यवहार का कारण स्वयं स्पष्ट हो जायेगा।* 


*क्या आपकी उपस्थिति कभी किसी के अकेलेपन को दूर करने का कारण बन पाई थी अथवा नहीं...? आपको अपने एकाकी जी

वन का कारण स्वयं समझ आ जायेगा। देवी द्रौपदी ने वासुदेव श्रीकृष्ण को एक बार एक छोटे से चीर का दान किया था और आवश्यकता पड़ने पर विधि द्वारा वही चीर देवी द्रौपदी को साड़ियों के भंडार के रूप में लौटाया गया। देर से सही मगर दिया हुआ अवश्य लौटकर आता है।*


*साधु और असाधु दोनों अक्सर रहते साथ-साथ।*

*अलग-अलग हैं गुण दोनों में एक दिवस तो एक है रात।*


*सन्त रहेगा फूल की भांति महकेगा महकायेगा।*

*दुष्ट हमेशा शूल की भांति घाव पे घाव लगायेगा।*


*सज्जन है इक अमृत जैसा देता जीवन दान है।*

*नर्क बना देता जीवन को दुर्जन ज़हर समान है।*


*🙏अपना सुधार संसार की सबसे बड़ी सेवा है।🙏*

Friday, October 13, 2023

माता शैलपुत्री की पूजा से शारदीय नवरात्र का शुभारंभ / विजय केसरी


(15 सितंबर, शारदीय नवरात्र के शुभारंभ पर विशेष)




भारत सहित विश्व  के जिन देशों में भारतीय मूल के लोग रहते हैं, सबों के लिए शारदीय नवरात्र का पर्व ढेर सारी खुशियां और संकल्पों के लेकर उपस्थित होता है । यह पर्व 15 सितंबर से प्रारंभ होने जा रहा है। आज माता शैलपुत्री की विशेष पूजा-अर्चना से शारदीय नवरात्र का   शुभारंभ होगा। माता दुर्गा दुर्गति नाशिनी है । माता

 कालनाशिनी है ।दुर्गा माता की आराधना से भक्तों के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। समस्त प्राणियों की सुख दात्री देवी दुर्गा माता  की कृपा से उनके भक्तगण सदा आनंद में रहते हैं। माता के भक्त  दूसरे को भी आनंद प्रदान करते हैं।  नवरात्र का यह पर्व दशहरा के नाम से जनमानस में प्रसिद्ध है। ऐसी मान्यता है कि  माता नौ दिनों तक अपने भक्तों की भक्ति प्राप्त कर, भक्तों के सभी प्रकार के कष्ट हर कर माता दसवें दिन विदा होती हैं। संसार में जितने भी प्रकार के सुख, शांति, समृद्धि और वैभव विद्यमान हैं। यह सब कुछ माता की ही कृपा है। माता की आराधना से भक्तों को जन्म जन्म के पाप मुक्ति मिलती हैं। 

श्री देवी पुराण में ऐसा वर्णन है कि मां की भक्ति से यश, बल, धर्म ,आयु की वृद्धि होती है।  मोक्ष की भी प्राप्ति होती है। शारदीय नवरात्र पर्व का हमारे धर्म ग्रंथों में बहुत ही ऊंचा स्थान प्रदान किया गया है।  मां पुत्री रूप में हम सभी भक्तों के बीच उपस्थित होती हैं। हम सबों की भक्ति स्वीकार कर सुख, समृद्धि और शांति का आशीर्वाद देकर जाती हैं। साथ ही माता यह भी वादा कर जाती  हैं कि अगले साल मैं पुनः आऊंगी। अपने भक्तों के प्रति मां का यह स्नेह अद्भुत और बेमिसाल है।

नवरात्र पर्व का हमारे हिंदू धर्म ग्रंथों में बहुत ही महत्व है। आज दुनिया में जिस तरह की भी शक्तियां  विद्यमान है। सभी दुर्गा माता की ही तेज से उत्पन्न हुई । मां की कृपा के बिना कोई भी शक्ति गतिशील नहीं हो सकती है। नवरात्र में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। प्रथम दिन शैलपुत्री माता। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी माता। तीसरे दिन चंद्रघंटा माता। चौथे दिन कुष्मांडा माता। पांचवें दिन स्कंदमाता माता । छठे दिन कात्यानी माता। सातवें दिन कालरात्रि माता । आठवें दिन महागौरी माता और नवमी दिन सिद्धिदात्री माता की पूजा होती है। माता के हर रूपों का एक गौरवशाली इतिहास है, जो हमारी धार्मिक भावनाओं और श्रद्धा  को प्रतिष्ठित कर संदेश देती हैं। दुर्गा सप्तशती में यह बात दर्ज है कि पुत्र कुपुत्र हो सकता है। किंतु माता कभी भी कुमाता नहीं हो सकती है। इस छोटे से वाक्य में हिंदू दर्शन की बहुत बड़ी बात छुपी हुई है। इसलिए हमारी रीति - रिवाज और धर्म संस्कृति में प्रारंभ से ही माता का ख्याल रखने के लिए कहा गया है। यह पर्व हमें दूसरों की मदद करने, दूसरों की भलाई करने और विश्व बंधुत्व की सीख भी प्रदान करता है।

पाप और पुण्य दोनों मां के ही पुत्र हैं। दोनों को मां समान रूप से जन्म देती हैं। लेकिन एक अपने प्रारब्ध कर्म के कारण पाप में परिवर्तित होता और दूसरा पुण्य में। जब सृष्टि में पाप बढ़ जाते हैं। तब पुण्य जनों के उद्धार के लिए माता प्रकट होती है। नवरात्र का पर्व सत्य और असत्य पर आधारित है। असत्य कितना भी विशाल क्यों ना हो जाए ?  वह कालजयी नहीं हो सकता है। उसे एक न एक दिन सत्य के हाथों पराजित होना ही होता है। नवरात्र का पर्व हम सबों को सत्य के साथ खड़े  होने की सिख प्रदान करता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की विजय के रूप में भी मनाया जाता है। यह पर्व सिर्फ भारत देश तक ही सीमित नहीं है। हिंदू धर्म को मानने वाले विश्व भर में जहां-जहां भी  हैं, सभी नवरात्र व दशहरा का पर्व बड़े ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। देश में प्रचलित सभी पर्वों के बीच नवरात्र पर्व का एक विशेष स्थान और महत्व है। इसे सब लोग बड़े ही धूमधाम के साथ और मिलजुल कर मनाते हैं। यह पर्व हम सबों को एक साथ मिलकर रहने की भी सीख प्रदान करता है। देवी पुराण में वर्णन है कि जब पृथ्वी पर आसुरी शक्तियां बहुत ही प्रबल हो गई थीं। आसुरी शक्तियों के अत्याचार से देवगण भयाक्रांत हो गए थे। आसुरी शक्तियों के वर्चस्व इतने बढ़ गए थे कि देवगण के सिंहासन भी आसुरी शक्तियों के अधीन हो गए थे। आसुरी शक्तियों से बचने के लिए सभी देवताओं ने मिलकर माता दुर्गा की आराधना की थीं। एक कथा के अनुसार भगवान विष्णु, भगवान शिव और भगवान ब्रह्मा जी के तेज से आदि शक्ति स्वरूपा मां दुर्गा अवतरित हुई थीं। आसुरी शक्तियों के प्रतीक महिषासुर अपने अहंकार में इतना चूर हो गया था कि वह जिनसे शक्तियां प्राप्त किया था , उसी को ही चुनौती देने लगा  था । महिषासुर की आसुरी शक्तियों के अत्याचार से चंहुओर त्राहिमाम त्राहिमाम होने लगा था। माता के अवतरण के साथ ही सबसे पहले माता अपने भक्तों की भक्ति स्वीकार की थीं। तत्पश्चात देवगणों  को महिषासुर के अत्याचार से मुक्त करने के लिए सीधे रण भूमि में कूद पड़ी देवी  थी। देवी पुराण में जिस तरह रणभूमि की विभीषिका का वर्णन किया गया है। महिषासुर और माता दुर्गा के  युद्ध के समान ना कभी भूतकाल  में ऐसा हुआ था और ना भविष्य में होगा।  इस युद्ध  में संपूर्ण ब्रह्मांड  हिल गया था । आकाश से बादल टूटकर गिरने लगे थे। हवा की तरह पर्वत इधर से उधर बह रहे थे ।आकाश से सिर्फ और सिर्फ आग ही बरीस हो रही थी। युद्ध सत्य और असत्य के बीच चल रही थी। आसुरी शक्ति महिषासुर ने विभिन्न रूपों में भेष बदलकर माता को पराजित करने का संपूर्ण कोशिश किया था। लेकिन उस अहंकारी महिषासुर को यह पता ही नहीं  था कि उसके पास जो भी शक्तियां विराजमान थीं। सभी  मां की कृपा से ही प्राप्त हुई थी।  महिषासुर की शक्तियां, मां की तेज का एक अंश भी नहीं था। उसे इस अंश पर इतना गुमान था। मां उन्हें अपनी पूर्ण शक्ति को प्रदर्शित करने का अवसर दे रही थीं। माता ने उसे अपनी गलती स्वीकार करने का भी अवसर पर अवसर प्रदान करती चली जा रही थीं।  इसके बावजूद महिषासुर को अपने अहंकार का भान ही नहीं हो रहा था। अंततः मां अपने विराट रूप में उपस्थित हुई और पलक झपकते ही उसका सर्वनाश कर दी थीं। 

 महिषासुर का अंत अर्थात असत्य का अंत के समान है। इसका अभिप्राय है कि मनुष्य के अंदर पांच प्रकार के विकार होते हैं। काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह । इन्हीं पंच विकारों के कारण मनुष्य रसातल तक पहुंच जाता है। जो मनुष्य इन पंच विकारों से मुक्त होकर निर्लिप्त और साक्षी भाव से जीवन जीते हैं। उन्हें मां की कृपा प्राप्त होती है। वे इस संसार में रहकर सभी प्रकार के सुखों को भोगते हैं। सदा कष्टों से मुक्त रहते हैं। दीर्घायु बनते हैं। और अंत में मां में समाहित हो जाते हैं। ऐसे भक्त सदा सदा के लिए आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। देवी पुराण में ऐसा वर्णन है कि काम, क्रोध, मद, लोभ ,मोह जैसे विकारों से मुक्ति का ही नाम नवरात्र है।यह त्योहार पूरी तरह मानसिक है। मां को चढ़ने वाले फल - फूल आदि सभी बाह्य पूजा है। मां मन की पूजा स्वीकार करती हैं। मन में अगर कलमष है, बाहर खिले हुए फूल हैं, ऐसी पूजा का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। मन पंच विकारों से मुक्त हर्षित हो, बाहर भी खिले हुए फूल हो। इसे ही मां स्वीकार करती हैं। यह त्यौहार भक्तों के लिए एक संकल्प का त्यौहार है। इस त्यौहार का उद्देश्य है कि भक्तगण अपने पंच विकारों से मुक्त होने का संकल्प लें। भक्तगण स्वयं के अंदर छुपे काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह को त्यागने का संकल्प लें। मां के श्री चरणों में इन  पंच विकारों को अर्पित कर दें। सच्चे अर्थों में मां के प्रति यही पूजा सच्ची पूजा है। साथ ही यह पर्व हम सभी को यह भी सीख देता है कि हमसे ऐसी कोई भूल ना हो जिससे समाज की कोई भी नारी शक्ति आहत हो। यह पर्व हम सबों को नारी शक्ति के सम्मान का भी सिख प्रदान करता है। हम सब मिलकर नारी शक्ति का सम्मान करें। जाने अनजाने कोई काम ऐसा ना करें, जिससे नारी शक्ति अपमानित और परेशान हों। नारी शक्ति का सम्मान  सच्चे अर्थों में नवरात्र है।


 विजय केसरी,

( कथाकार / स्तंभकार),

पंच मंदिर चौक, हजारीबाग - 825 301 ,

मोबाइल नंबर : 92347 99550 ,

Thursday, October 5, 2023

कुछ तो लोग कहेँगे /कृष्ण मेहता


प्रस्तुति - उषा रानी -राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


एक *साधू* किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर सिर रखकर सो गया....!!!


पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं!!!

तो आईं तो एक ने कहा- *"आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया*...

*पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"*


पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...

*उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया*...

दूसरी बोली--

*"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई👆..* 

*अभी रोष नहीं गया,तकिया फेंक दिया।"* 

तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करें ?


तब तीसरी बोली-

*"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"*


लेकिन चौथी ने

बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-

*"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है,तूमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है,अभी तक वहीं का वहीं बने हुए है।*

*दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तूम जैसे भी हो,हरिनाम लेते रहो।"* 

*सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...*


आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे... 

*"अभिमानी हो गए।"*


नीचे दखोगे तो कहेंगे... 

*"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"*


आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि... 

*"ध्यान का नाटक कर रहा है।"*


चारो ओर देखोगे तो कहेंगे कि... 

*"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"*


और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...

*"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"*


*ईश्वर* को राजी करना आसान है,

लेकिन *संसार* को राजी करना असंभव है....


*दुनिया* क्या कहेगी, उस पर ध्यान दोगे तो....????


*आप अपना ध्यान नहीं लगा पाओगे.*            

    🌹जय श्री कृष्ण🌹

      🌹

Wednesday, September 27, 2023

लगे रहो और हिम्मत ना हार

 *घास और बाँस*


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक व्यापारी था लेकिन उसका व्यापार डूब गया और वो पूरी तरह निराश हो गया। अपनी जिंदगी से बुरी तरह थक चुका था। अपनी जिंदगी से तंग आ चुका था।


एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और जंगल में काफी देर अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – *मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।*


*मैं क्यों ना व्यथित होऊं?"*


*भगवान मेरी सहायता किजिए"*


भगवान का जवाब


*तुम जंगल में इस घास और बांस के पेड़ को देखो- जब मैंने घास और इस बांस के बीज को लगाया। मैंने इन दोनों की ही बहुत अच्छे से देखभाल की। इनको बराबर पानी दिया, बराबर रोशनी दी।*


*घास बहुत जल्दी बड़ी होने लगी और इसने धरती को हरा भरा कर दिया लेकिन बांस का बीज बड़ा नहीं हुआ। लेकिन मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।*


*दूसरी साल, घास और घनी हो गयी उसपर झाड़ियाँ भी आने लगी लेकिन बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी।*


*तीसरी साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी हिम्मत नहीं हारी।*


*चौथे साल भी बांस के बीज में कोई वृद्धि नहीं हुई लेकिन मैं फिर भी लगा रहा।*


*पांच साल बाद, उस बांस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित हुआ……….. घास की तुलना में ये बहुत छोटा था और कमजोर था लेकिन केवल 6 महीने बाद ये छोटा सा पौधा 100 फ़ीट लम्बा हो गया। मैंने इस बांस की जड़ को वृद्धि करने के लिए पांच साल का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी मजबूत हो गयी कि 100 फिट से ऊँचे बांस को संभाल सके।*


*जब भी तुम्हें जिंदगी में संघर्ष करना पड़े तो समझिए कि आपकी जड़ मजबूत हो रही है। आपका संघर्ष आपको मजबूत बना रहा है जिससे कि आप आने वाले  कल को सबसे बेहतरीन बना सको।*


*मैंने बांस पर हार नहीं मानी, मैं तुम पर भी हार नहीं मानूंगा, किसी दूसरे से अपनी तुलना(comparison) मत करो घास और बांस दोनों के बड़े होने का time अलग अलग है दोनों का उद्देश्य अलग अलग है।*


*तुम्हारा भी समय आएगा। तुम भी एक दिन बांस के पेड़ की तरह आसमान छुओगे। मैंने हिम्मत नहीं हारी, तुम भी मत हारो !अपनी जिंदगी में संघर्ष से मत घबराओ, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ों को मजबूत करेगा।*


*लगे रहिये, आज नहीं तो कल आपका भी दिन आएगा।*


*शुभ प्रभात। आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*



दयालबाग़ का सच / 2709 2023


1915 से तिनका तिनका जोड़ मालिक की दया व मेहर से सत्संगियों ने मेहनत से जोड़े ज़मीन के टुकड़े, जिन बंजर ज़मीनों पर दिन रात पाटा चलाके उसे उपजाऊ बनाया और मानव सेवा, शिक्षा और पर्यावरण के संतुलन की उद्ग़म दृष्टि सालों पहले ही सोच कर नित नवीन शोध के चलते दयालबाग़ की स्थापना हुई जिसमे आज शिक्षण संसथान, अस्पताल और इंडस्ट्रीज सब शामिल है।

 राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के "सेल्फ रेलिएन्ट" भारत के स्वप्न को जिस संस्था ने अपने बल पर बिना किसी बाहरी वित्त सहायता से साकार किया।

 इस पवित्र भूमि पर इंडिया के तत्कालीन वाइसराय, सरोजिनी नायडू, पूर्व भारतीय राष्ट्रपति श्री वी वी गिरी जी व राकेट मैन ऑफ़ इंडिया श्री डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जी ने यहाँ आकर इस पवित्र भूमि व दयालबाग़ के सामजिक, वैज्ञानिक व आर्थिक अवधारणा को वंदन कर देश के लिए मिसाल बताया। यहाँ खेतों की हरियाली ने दयालबाग़ छेत्र को "ग्रीन बेल्ट ऑफ़ आगरा" की संज्ञा दिलाई जिसके चलते यहाँ का तापमान आगरा के मुक़ाबले तीन से चार डिग्री काम रहता है।

 श्री सैम पित्रोदा जी, जो वर्तमान समय में किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं, उनका यह रिकार्डेड कथन है- "भारत में हर जगह हों दयालबाग़ जैसी यूनिवर्सिटीज", उन्होंने यहाँ की संपूर्ण  मानव विकास की शिक्षा नीति को सराहा और विद्यार्थियों का भविष्य सुरक्षित हाथों में है इस बात की अपने भाषण में पुष्टि की।

आज समाज में कहीं कहीं भेद भाव और जाति प्रथा के चलते समाज में विघटन देखने को मिलता है, किन्तु दयालबाग़ में खेतों और अन्य सेवाओं में निस्वार्थ भाव से सेवा होती है जहाँ मेहनती मज़दूर और एक काबिल अफसर साथ साथ हाथ बटाते हुए सेवा करते है। 

यहाँ 2 रुपए में अस्पताल में इलाज, 18000 में विवाह जो कि जाति मुक्त है, छह रूपए में भण्डार घर का भोजन उपलब्ध है। उन सभी गुणीजनों से यह प्रश्न है की जो संस्था सादा जीवन शैली, कम लागत में उच्च कोटि के कार्य करने में दिन रात अपनी लगन लगाती है , आज अचानक उसे ज़मीन हथियाने की क्या आवश्यकता आ पड़ी?

 जो उन्ही ग्रामीण वासियों को मुफ्त मेडिकल कैंप की सुविधा, ग्रामीण बच्चों को कंप्यूटर व जनरल शिक्षा और डी इ आई द्वारा सोलर एनर्जी की बिजली उन तक मुफ्त पहुँचता है।  क्या यह नीयत "भू माफियों" की होती होगी? जैसा कि दयालबाग़ को कहकर  समाचार पत्र, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया व विद्यार्थी प्रचार कर रहे है।

जिस तरह प्रशासन ने २३ व २४ को अपनी ज़मीन पर सेवा कर रहे बच्चों, महिलाओं और वृद्धों पर लाठी चार्ज और पथराव किया, बार बार सत्संग समुदाय के वाईस प्रेजिडेंट जो की स्वयं एक रिटायर्ड रेलवे पुलिस आई जी हैं, की मिन्नतों के बावजूद , प्रशासन लगातार न्याय जो शर्मसार करता रहा।

 अंत में संपूर्ण सत्संग सभा व सत्संग जगत को माननीय न्यायालय पे भरोसा है, सम्मान है की वह उचित समाधान के साथ अपना निर्णय देंगे। राधास्वामी सत्संग किसी विशेष  धर्म का नहीं अपितु "मानव धर्म" है। Please share the true information 🙏

Tuesday, September 26, 2023

पुत्री का विवाह🎈🙏*/ कृष्णा मेहता


  *🙏🎈



*बनारस की वो गलियाँ जहाँ हर मोड़ पे आपको एक छोटा-मोटा मंदिर मिल जाएगा। शायद यही बनारस की खूबसूरती का एक राज है।*


*हर पल उस छोटे बड़े मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ें मन को कितना सुकून देती हैं।*


*बनारस के इन्हीं गलियों में एक राम जानकी मंदिर है, जिसकी देख रेख मंदिर के पुजारी पंडित रामनारायण मिश्र के हाथों थी। मिश्रजी भी अपनी पूरी जिंदगी इस राम जानकी मंदिर को समर्पित कर चुके थे।*


*संपत्ति के नाम पर उनके पास एक छोटा सा 2 कमरे का मकान और परिवार में उनकी पत्नी और विवाह योग्य बेटी कमला ।* 


*मन्दिर में जो भी दान आता वही पंडित जी और उनके परिवार के गुजारे का साधन था। बेटी विवाह योग्य हो गयी थी और पंडित जी ने हर मुकम्मल कोशिश की जो शायद हर बेटी का पिता करता। पर वही दान दहेज़ पे आकर बात रुक जाती।* 


*पंडित जी अब निराश हो चुके थे। सारे प्रयास कर के हार चुके थे।*

          

*एक दिन मंदिर में दोपहर के समय जब भीड़ न के बराबर होती है उसी समय चुपचाप राम सीता की प्रतिमा के सामने आँखें बंद किये अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचते हुए उनकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे।*


 *तभी उनकी कानों में एक आवाज आई, "नमस्कार, पंडित जी!"*


*झटके में आँखें खोलीं तो देखा सामने एक बुजुर्ग दंपत्ति हाथ जोड़े खड़े थे। पंडित जी ने बैठने का आग्रह किया। पंडित जी ने गौर किया कि वो वृद्ध दंपत्ति देखने में किसी अच्छे घर के लगते थे। दोनों के चेहरे पर एक सुन्दर सी आभा झलक रही थी।*


*"पंडित जी आपसे एक जरूरी बात करनी है।" वृद्ध पुरूष की आवाज़ सुनकर पंडित जी की तंत्रा टूटी।*


*"हाँ हाँ कहिये श्रीमान।" पंडित जी ने कहा।*

 

*उस वृद्ध आदमी ने कहा, "पंडित जी, मेरा नाम विशम्भर नाथ है, हम गुजरात से काशी दर्शन को आये हैं, हम निःसंतान हैं, बहुत जगह मन्नतें माँगी पर हमारे भाग्य में पुत्र/पुत्री सुख तो जैसे लिखा ही नहीं था।"*


*"बहुत सालों से हमनें एक मन्नत माँगी हुई है, एक गरीब कन्या का विवाह कराना है, कन्यादान करना है हम दोनों को, तभी इस जीवन को कोई सार्थक पड़ाव मिलेगा।"*


*वृद्ध दंपत्ति की बातों को सुनकर पंडित जी मन ही मन इतना खुश हुए जा रहे थे जैसे स्वयं भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने किसी को भेज दिया हो।*


*"आप किसी कन्या को जानते हैं पंडित जी जो विवाह योग्य हो पर उसका विवाह न हो पा रहा हो। हम हर तरह से दान दहेज देंगे उसके लिए और एक सुयोग्य वर भी है।" वृद्ध महिला ने कहा।*


*पंडित जी ने बिना एक पल गंवाए अपनी बेटी के बारे में सब विस्तार से बता दिया। वृद्ध दम्पत्ति बहुत खुश हुए, बोले, "आज से आपकी बेटी हमारी हुई, बस अब आपको उसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, उसका विवाह हम करेंगे।"*


*पंडित जी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उनकी मनचाही इच्छा जैसे पूरी हो गयी हो।*


*विशम्भर नाथ ने उन्हें एक विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, "बनारस में ही ये लड़का है, ये उसके पिता के आफिस का पता है, आप जाइये। ये मेरे रिश्ते में मेरे साढ़ू लगते हैं।*


*बस आप जाइये और मेरे बारे में कुछ न बताइयेगा। मैं बीच में नहीं आना चाहता। आप जाइये, खुद से बात करिये।*


*पंडित जी घबराए और बोले, "मैं कैसे बात करूँ, न जान न पहचान, कहीं उन्होंने मना कर दिया इस रिश्ते के लिए तो..??"*


*वृद्ध दंपत्ति ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया कि, "आप जाइये तो सही। लड़के के पिता का स्वभाव बहुत अच्छा है, वो आपको मना नहीं करेंगे।"* 


*इतना कह कर वृद्ध दंपत्ति ने उनको अपना मोबाइल नंबर दिया और चले गए। पंडित जी ने बिना समय गंवाए लड़के के पिता के आफिस का रुख किया।*


*मानो जैसे कोई चमत्कार सा हो गया। 'ऑफिस में लड़के के पिता से मिलने के बाद लड़के के पिता की हाँ कर दी', 'तुरंत शादी की डेट फाइनल हो गयी', पंडित जी जब जब उस दंपत्ति को फोन करते तब तब शादी विवाह की जरूरत का दान दहेज उनके घर पहुँच जाता।*


*सारी बुकिंग, हर तरह का सहयोग बस पंडित जी के फोन कॉल करते ही उन तक पहुँचने लगते।* 


*अंततः धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। पंडित जी की लड़की कमला विदा होकर अपने ससुराल चली गयी।*


*पंडित जी ने राहत की साँस ली। पंडित जी अगले दिन मंदिर में बैठे उस वृद्ध दम्पत्ति के बारे में सोच रहे थे कि कौन थे वो दम्पत्ति जिन्होंने मेरी बेटी को अपना समझा, बस एक ही बार मुझसे मिले और मेरी सारी परेशानी हर लिए।*


*यही सोचते-सोचते पंडित जी ने उनको फोन मिलाया। उनका फोन स्विच ऑफ बता रहा था। पंडित जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।* 


*उन्होंने मन ही मन तय किया कि एक दो दिन और फोन करूँगा नहीं बात होने पर अपने समधी जी से पूछूँगा जरूर विशम्भर नाथ जी के बारे में।*


*अंततः लगातार 3 दिन फ़ोन करने के बाद भी विशम्भर नाथ जी का फ़ोन नहीं लगा तो उन्होंने तुरंत अपने समधी जी को फ़ोन मिलाया।*


*ये क्या….*


*फ़ोन पे बात करने के बाद पंडित जी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे। पंडित जी के समधी जी का दूर दूर तक विशम्भर नाथ नाम का न कोई सगा संबंधी, न ही कोई मित्र था।*


*पंडित जी आँखों में आँसू लिए मंदिर में प्रभु श्रीराम के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। और रोते हुए बोले,*


*"मुझे अब पता चला प्रभु, वो विशम्भर नाथ और कोई नहीं आप ही थे,*

 

*वो वृद्धा जानकी माता थीं, आपसे मेरा और मेरी बेटी का कष्ट देखा नहीं गया न?*


*दुनिया इस बात को माने या न माने पर आप ही आकर मुझसे बातें कर के मेरे दुःख को हरे प्रभु।"*


*राम जानकी की प्रतिमा जैसे मुस्कुराते हुए अपने भक्त पंडित जी को देखे जा रही थी।*



     *🕉️ 🔱 जय महादेव 🔱🕉️*

दयालबाग़ आगरा 282005

 दयालबाग, एक  ऐसा  स्थान  ज़िस  मे  खुशबू  बसती  हैं  अध्यातम , धर्म , शिक्षा , जन  कल्याण  और  सर्व  धर्म सम्भाव की, परम  पूज्ये  गुरुओ  की  महान  शिक्षा  की  | 


सन 1915 मे  उस  समय  के  आचार्य  साहब  जी  महाराज  ने  इस  आश्रम  की  नीव  रखी थी , जमीन  विधिवत  अधिग्रहीत  करी गई  थी तथा  उस  समय  यहां  ऊबड  खाबड  भूमि  को  जो  कि  किसी  भी  प्रकार  से  उपयोग  की  स्थिती  मे  नहीं  थी , उस  का  सुधार   कई  सालों  के  कठिन  परिश्रम  के  बल  पर  सत्संगी  लोगो  द्वारा  किया  गया , यह  ही  नहीं  साहब  जी  महाराज  ने  स्वदेशी  की  महत्ता  को बहुत  पहले   समझ  कर  यहां  कई  रोजाना इस्तेमाल  की  वस्तुओ  के  निर्माण  हेतु  कारखाने स्थापित  किये , ज़िस में  न  सिर्फ  इस  मत  के  अनुयायी  बल्कि अन्य  कई  non satsangi लोगो  को  भी  रोजगार  मिला , यह  बात  हैं सन  1915 से 1937 तक के  बीच  की , जब  देश  अंग्रेजो  के  राज  मे  था  और  देश  मे  तमाम  संकट  थे , उस  वक्त  उन्होने  हिंदुस्तानी  जनता  की  भलाई  हेतु  REI नामक  intermediate तक का  स्कूल  खोला  और  इस  स्कूल  के  छात्र  जो  कि आज  भी  90% से  अधिक  non satsangi  परिवारो  से  आते  हैं  उन्होने  देश  विदेश  मे  बड़ा  नाम  कमाया, यही  नहीं  सरन  आश्रम अस्पताल  की  भी  स्थापना  करी  जो  आज  भी  पूरे शहर  के  लोगो  को  बेहतरीन  इलाज  फ्री  मे  प्रदान  करता हैं , यहां  सिर्फ  2 रूपये  का  पर्चा  बनता  हैं  जो  1 साल  तक  चलता  हैं , गरीब  को  इस  से  अच्छा, फ्री  और  आसानी  से  उपलब्ध  इलाज  कहीं  और  मिलता हो तो जाने , यहां  के  DEI विश्वविध्यालय  का  नाम  पूरे  देश विदेश  मे  हैं , जहां  हजारो  बच्चे  पढ़  कर  अपना  भविष्य  उज्जव  करते  हैं , यहां  भी  शिक्षक  और  students  non satsangi भी हैं , students तो  अधिकतर  non satsangi ही  हैं |


पूरे  आगरा  मे  अगर  कहीं  concrete जंगल  नहीं  बना  हैं  तो  वो  जगह  दयालबाग  ही  हैं , वरना  builders और भूमाफीआ  यहां  भी  बड़ी  बड़ी  बिल्डिंग  तान  देते  और  शहर  का  eco-सिस्टम खराब  कर  चुके  होते , दयालबाग  को आगरा  का  environment park भी  कह  सकते हैं  जो  पूरे  शहर  को  fresh oxigen  देने  का  काम  करता हैं , यहां  कई  प्रजाती  के  पौधे  लगाये  ज़ाते  हैं  और  उन  की  चिकित्सा  मे  उपयोग  पर  शोध  भी  हो  रहा  हैं | 


दयालबाग  का  योगदान  समाज  मे केवल  यही  नहीं हैं , यहां  हिन्दु  धर्म  मे  व्याप्त  कई  कुरीतिया  जैसे जात  पात ,

ऊँच  नीच  आदि  को  भी अपने  समाज  मे  पनपने  का  मौका नहीं  दिया  गया  हैं , किसी  भी  जात  का  व्यक्ति  यहां  समान  अधिकार और  सम्मान पाता  हैं  जो  किसी  और  को  प्राप्त हो , यहां विवाह , रिश्ते  जात  देख कर  नहीं  किये  ज़ाते  वरन  जो  योग्य हैं  उस  को प्राथमिकता  मिलती  हैं |


दयालबाग , अध्यातम , सुरत  शब्द  अभ्यास  द्वारा  साधना  कर  के  उस  परम  पिता  परमात्मा  से  मिलने  का  द्वार  हैं, यहां  नियमित  तौर  पर  धर्म , चेतना  तथा  व्यक्तिक  विकास  पर  गहन शोध  तथा  conferences होती  रहती  हैं , यहां  की  university की  distence education की  branches पूरे  देश  मे  कई  शहरो  मे  हैं  जहां  बच्चे पढ़  कर अपना  जीवन  सुधारते हैं | 


यहां समाज  के  बच्चो  को  superman बनने  की  शिक्षा  बचपन  से  मिलती  हैं , उन  के  चरित्रनिर्माण  तथा  शारीरिक  तथा  मानसिक  विकास  और  मजबूती  पर  बल  दिया  जाता  हैं , क्यो  किया  जाता  हैं  तो यह  बताना भी  ज़रूरी  हैं , देश  और  विदेश  मे  राजनीतिक  और  समाजिक  उठा  पटक सदा  से  चली  आई  हैं  इस  लिये  हमें  आने  वाले  कल  के  लिये  इस  समाज से   volunteers तैयार  करने  हैं  जो  उस  मुशकिल  वक्त  मे  जन  कल्यान  के  हेतु  तत्पर  रहे , यह  कोई  फौज  नहीं  बन रही पर  यह  volunteers की  फौज  आने  वाले  समय  मे  जनता  और  निरीहजन  के  सहयोग  के लिए  बनाई  जा  रही  हैं | 


कुछ  समय  से  दयालबाग  और  सत्संगी  लोगो  पर  निराधार  आरोप समाचार पत्रो  तथा  social media पर लगाये 

जा  रहे  हैं , जो  वास्तविकता  से  कोसो  परे  हैं , न  तो  वो  varified हैं  और  न  ही किसी  भी  रूप  मे  स्वीकार  करने  योग्य| 


दयालबाग  की  भूमि  किसी 1 व्यक्ति  की  मालकियत  नहीं हैं , यह  विधिवत  अधिग्रहित  की  गई  हैं , इस  से  सम्बंधी  सभी  दस्तावेज  राधास्वामी  सत्संग  सभा  के  पास  सुरक्षित  हैं  तथा  प्रशासन या  उस  का वकील  जब  चाहे  उन  का अवलोकन  करें  परंतु  इस  प्रकार  की  कार्येवाही  ज़िस  मे  निर्दोष  लोगो  को  मारा  पीटा  गया , छोटे  बच्चो  तक  को बक्शा  नहीं  गया  वो सभ्य  समाज मे  घोर  निन्दनीय  हैं  और  और  वर्तमान  जनकल्यान  की  नीति  पर  चलने  वाली  B J P सरकार  के  शासन  काल  मे  तो  इस  प्रकार  की  बर्बारिक  अत्याचार  की तो  कोई  उम्मीद  भी  नहीं  कर  सकता | 


सरकार  से  आशा  हैं  कि  वो  न्याय  करेगी  और जनता  से भी  यह  उम्मीद  हैं  कि  वो  पीत  पत्रकारिता  से  प्रभावित  हुये  बिना  अपनी  विवेक  बुद्धि  का  इस्तेमाल  करेगे  किसी  पर  भी  बेबुनियाद  आरोप  लगाने  से पहले  सोचे , सत्संगी  जन  भी  समाज  का  हिस्सा  हैं  और  उन  को  भी  अपनी  बात  सरकार  और  समाज  मे  रखने  का  पूरा  अधिकार  हैं , कोई  जंगलराज  नहीं  चल  रहा  कि  सोशल  media पर  किसी  का  भी  चरित्रहनन कर दिया  जाये और उस  को प्रताडित  किया  जाये |


जो  कुछ  भी  सत्य  होगा  वो  समय  आने  पर खुद  ब  खुद  सामने  आयेगा, पहले  भी  आया  था  और  अब भी  आयेगा  और  वो  समय  आँख  खोलने  वाला  होगा | 

जय  हिन्द/ रा धा / ध

स्व आ मी 

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