Friday, September 30, 2022

गया ब्रांच के समस्त सत्संगियो के (लिए) सूचनार्थ



(गया ब्रांच ) राधास्वामी सत्संग सभा   दयालबाग़ से  संबद्ध  गया ब्रांच के समस्त सत्संगियो के (लिए) सूचनार्थ 

 सूचना 

जो लोग अक्टुबर भंडारे पर दयालबाग जा रहे हैं , और  यदि वे इस ग्रुप में नाम दिये हैं या नहीं भी दिये हैं , वे लोग दि० 1/10/22 ( शनिवार ) को दोपहर दो बजे सतसंग भवन आ कर ब्राॕच सेक्र॓टरी से मेडिकल सर्टिफिकेट ले लें | इसके लिए उन्हें किसी डाक्टर से यह लिखवा कर लाना है कि , उन्हें तथा उनके साथ जाने वालों को सर्दी , खॉसी , बुखार नहीं है | ( नाम एवं उम्र के साथ ) 


डा० का रजिस्ट्रेशन न० भी लिखा रहना चाहिए |  मेडिकल सर्टिफिकेट की एक फोटोकापी भीसाथ में लायेगें |

पिछले रविवार को जिन्होंने बायोमेट्रीक सर्टिफिकेट नहीं लिया है , वे इसे अवश्य ले लेगें। इसके बिना दयालबाग में प्रवेश की अनुमति नहीं मिलेगी |

किसी कारण से यदि वे इसे एक तारीख को नहीं ले पाये तो वे इसे 2/10 को उसी जगह तथा उसी समय पर जरुर से जरुर ले लेगें।

इसके बाद आप इसे नहीं ले पायेगें |

रा धा स्व आ मी

ब्राॕच सेक्र॓टरी गया ब्राॕच

27/9/2022

Tuesday, September 27, 2022

राधास्वामी नाम एक लफ्ज है

 राधास्वामी नाम एक लफ्ज है

The Name Radhasoami is a Word


बचन महाराज साहब, भाग २, बचन ४, पैरा ५, राधास्वामी सतसंग, स्वामीबाग आगरा।


कुल मालिक का नाम राधास्वामी है।

 'स्वामी' भंडार को कहते हैं और 'राध' धार को कहते हैं, जो भंडार की तरफ मुतवज्जह है।

 इस रचना में देखा जाता है कि बगैर धार और भंडार के कोई काम नहीं होता, जैसे लैम्प की लौ रोशनी का भंडार है और उससे जो किरनियां छूटती हैं, वह धारे हैं। अगर यह दोनों चीज़ न हों तो काम रोशनी का नहीं हो सक्ता। इसी तरह मालिक की कार्यवाही इस रचना में है। 

राधास्वामी नाम मालिक के स्वरूप को कि जिस तरह वह कार्यवाही कर रहा है, एक लफ्ज में बताता है।


Sunday, September 25, 2022

अपनी कीमत / कृष्ण मेहता

 

प्रस्तुति - रेणु  दत्ता  / आशा सिन्हा  


एक बहुत अरबपति महिला ने एक गरीब चित्रकार से अपना चित्र बनवाया, पोट्रट बनवाया। चित्र बन गया, तो वह अमीर महिला अपना चित्र लेने आयी। वह बहुत खुश थी। चित्रकार से उसने कहा, कि क्या उसका पुरस्कार दूं? चित्रकार गरीब आदमी था। गरीब आदमी वासना भी करे तो कितनी बड़ी करे, मांगे भी तो कितना मांगे?

हमारी मांग, सब गरीब आदमी की मांग है परमात्मा से। हम जो मांग रहे हैं, वह क्षुद्र है। जिससे मांग रहे हैं, उससे यह बात मांगनी नहीं चाहिए।

तो उसने सोचा मन में कि सौ डालर मांगूं, दो सौ डालर मांगूं, पांच सौ डालर मांगूं। फिर उसकी हिम्मत डिगने लगी। इतना देगी, नहीं देगी! फिर उसने सोचा कि बेहतर यह हो कि इसी पर छोड़ दूं, शायद ज्यादा दे। डर तो लगा मन में कि इस पर छोड़ दूं, पता नहीं दे या न दे, या कहीं कम दे और एक दफा छोड़ दिया तो फिर! तो उसने फिर भी हिम्मत की। उसने कहा कि आपकी जो मर्जी। तो उसके हाथ में जो उसका बैग था, पर्स था, उसने कहा,तो अच्छा तो यह पर्स तुम रख लो। यह बडा कीमती पर्स है।

पर्स तो कीमती था, लेकिन चित्रकार की छाती बैठ गयी कि पर्स को रखकर करूंगा भी क्या? माना कि कीमती है और सुंदर है, पर इससे कुछ आता-जाता नहीं। इससे तो बेहतर था कुछ सौ डालर ही मांग लेते। तो उसने कहा, नहीं-नहीं, मैं पर्स का क्या करूंगा, आप कोई सौ डालर दे दें। 

उस महिला ने कहा, तुम्हारी मर्जी। उसने पर्स खोला, उसमें एक लाख डालर थे, उसने सौ डालर निकाल कर चित्रकार को दे दिये और पर्स लेकर वह चली गयी।

सुना है कि चित्रकार अब तक छाती पीट रहा है और रो रहा है–मर गये, मारे गये, अपने से ही मारे गये!

आदमी करीब-करीब इस हालत में है। परमात्मा ने जो दिया है, वह बंद है, छिपा है। और हम मांगे जा रहे हैं–दो-दो पैसे, दो-दो कौड़ी की बात। और वह जीवन की जो संपदा उसने हमें दी है, उस पर्स को हमने खोल कर भी नहीं देखा है।


जो मिला है, वह जो आप मांग सकते हैं, उससे अनंत गुना ज्यादा है। लेकिन मांग से फुरसत हो, तो दिखायी पड़े, वह जो मिला है। भिखारी अपने घर आये, तो पता चले कि घर में क्या छिपा है। वह अपना भिक्षापात्र लिये बाजार में ही खड़ा है! वह घर धीरे-धीरे भूल ही जाता है, भिक्षा-पात्र ही हाथ में रह जाता है। इस भिक्षापात्र को लिये हुए भटकते-भटकते जन्मों-जन्मों में भी कुछ मिला नहीं। कुछ मिलेगा नहीं।



Friday, September 16, 2022

शाहदरा ब्रांच के सूचनार्थ

 _*रा-धा-स्वा -मी*_


परम  गुरु  हुज़ूर महाराज जी  के  भंडारे  के  शुभ अवसर  पर  परमिटेड  जोन (दिसम्बर भंडारा)  दिल्ली रीजन के सभी जिज्ञासु भाई व बहन पहला उपदेश 

अथवा उपदेश का  रिवीजन, अथवा दूसरा उपदेश  तथा  दूसरा  उपदेश  का  रिवीजन करना चाहते हैं वो तुरंत ही फोन या मैसेज द्वारा अपना नाम हमें लिखवा दे I आपको अधिक जानकारी दे दी जाएगी I

पहला उपदेश और पहले उपदेश का रिवीजन दयालबाग़ मे होगा |

दूसरा उपदेश और दूसरे उपदेश का रिवीज़न वेर्चुअल मोड यानि यहीं दिल्ली मे ऑनलाइन माध्यम से होगा |

पहला उपदेश और पहले उपदेश के रिवीज़न के लिए वही लोग अप्लाई करें जो भंडारे से 4 दिन पहले दयालबाग़ जा सकते हैं और भंडारे के बाद 3 दिन और रुक सकते हैं |


_*RA DHA SOA AAH MI*_


On the occasion of Zonal Bhandara of Param Guru Huzur Maharaj in December 2022 persons desirous of seeking First Updesh, Revision of First Updesh, Second Updesh and Revision of Second Updesh can apply.


First Updesh (S & D Initiation) and Revision of S & D Initiation will be given in Physical mode at Dayalbagh, 


while second Updesh (Bhajan Updesh) and Revision of Bhajan Updesh will be given through Virtual Reality Mode i.e. online.


Accordingly, only those Jigyasus, who will be physically present in Dayalbagh for at least one week on the Zonal Bhandara should apply for First Updesh and Revision of First Updesh. They may plan to  reach Dayalbagh at least 4 days prior to the scheduled Bhandara date  and stay upto 3 days after Bhandara.


Last Date : 2 October 2022


WHRS🙏🏼

9911990049

9136136525

Tuesday, September 13, 2022

सुकरात



यूनानी दार्शनिक सुकरात समंदर के किनारे टहल रहे थे। उनकी नजर रेत पर बैठे एक अबोध बालक पर पड़ी, जो रो रहा था। सुकरात ने रोते हुए बालक का सिर सहलाते हुए उससे रोने का कारण पूछा। बालक ने कहा, ‘यह जो मेरे हाथ में प्याला है, इसमें मैं समुद्र के सारे पानी को भरना चाहता हूं, किंतु यह मेरे प्याले में समाता ही नहीं।’ बालक की बात सुनकर सुकरात की आंखों में आंसू आ गए।


सुकरात को रोता देख, रोता हुआ बालक शांत हो गया और चकित होकर पूछने लगा, ‘आप भी मेरी तरह रोने लगे, पर आपका प्याला कहां है?’ सुकरात ने जवाब दिया, ‘बच्चे, तू छोटे से प्याले में समुद्र भरना चाहता है, और  अपनी छोटी सी बुद्धि में संसार की तमाम जानकारियां भरना चाहता हूं।’ बालक को सुकरात की बातें कितनी समझ में आईं यह तो पता नहीं, लेकिन दो पल असमंजस में रहने के बाद उसने अपना प्याला समंदर में फेंक दिया और बोला, ‘सागर यदि तू मेरे प्याले में नहीं समा सकता, तो मेरा प्याला तो तेरे में समा सकता है।’


बच्चे की इस हरकत ने सुकरात की आंखें खोल दीं। उन्हें एक कीमती सूत्र हाथ लग गया था। सुकरात ने दोनों हाथ आकाश की ओर उठाकर कहा, ‘हे परमेश्वर, आपका असीम ज्ञान व आपका विराट अस्तित्व तो मेरी बुद्धि में नहीं समा सकता, किंतु मैं अपने संपूर्ण अस्तित्व के साथ आपमें जरूर लीन हो सकता हूं।’


दरअसल, सुकरात को परमात्मा ने बालक के माध्यम से ज्ञान दे दिया। जिस सुकरात से मिलने के लिए बड़े-बड़े विद्वानों को समय लेना पड़ता था, उसे एक अबोध बालक ने परमात्मा का मार्ग बता दिया था। असलियत में परमात्मा जब आपको अपनी शरण में लेता है, यानि जब आप ईश्वर की कृपादृष्टि के पात्र बनते हैं तो उसकी एक खास पहचान यह है कि आपके अंदर का ‘मैं’ मिट जाता है। आपका अहंकार ईश्वर के अस्तित्व में विलीन हो जाता है।


‘मैं-पन’ का भाव छूटते ही हमारे समस्त प्रकार के पूर्वाग्रह, अपराधबोध, तनाव, व्यग्रता और विकृतियों का ईश्वरीय चेतना में रूपांतरण हो जाता है।दरअसल, हरेक व्यक्ति को कई बार अपने जीवन में परमात्मा की अनुभूति होती है। जितना हमारा जीवन सहज-सरल, व पावन-पवित्र होता जाता है, उतना ही परमात्मा प्रसाद-स्वरूप हमारे जीवन में समाहित होता जाता है।

🙏


जीवन को सरल बनाने का मूल मंत्र यही है कि "मैं" को त्याग कर खुद को ईश्वर के अधीन कर दें वो जैसे चाहें रखें। यदि खुश रहना है और हम उतना माद्दा नहीं रखते हैं कि परिस्थितियों को अपने अनुकूल कर लें तो अपने आप को परिस्थितियों के अनुरूप ढाल लें इसी में भलाई है। कभी कभी हालात और नियति से  समझौता कर लेना भी जीवन को सरल बनाने में सहायक सिद्ध होता है।

शिक्षक / आज हाशिए पर है शिक्षक "

 "आज हाशिए पर है शिक्षक "

श्रद्धा से मस्तक झुक जाए,बिना स्वार्थ के सिद्धि देता। 

शिक्षक ही  पीढ़ी -दर - पीढ़ी , ज्ञान दान समृद्धि देता।।

बिना स्वार्थ सुख-दुख की चिंता,सर्वसमाज हितों की चिंता। 

स्नेहाशीष के अभिसिंचन से , वही चतुर्दिक वृद्धि देता।। 

छाया  बनकर  साथ रह रहे , दिग्भ्रमित सन्मार्ग बताएं।

गढ़ कर  मेरे  जीवन  को वह , चारों और प्रसिद्धि देता।।

विकट   परिस्थितियों  में  केवल ,ज्ञान साथ ही देता है।

कठिन साधना के तपबल से ,सबको बुद्धि-शुद्धि देता।।

राम-रहीम खुदा के बंदे , फिर भी शिक्षक बिना अधूरे। 

नव पथ पर चलने वालों को , वह हरदम विवृद्धि देता।।

कौशल और कला से सजकर,हम समाज के लायक होते।

वह प्रत्यक्ष - परोक्ष  रूप से ,  हमें सदा  ही रिद्धि देता।। 

नेता-वक्ता-अधिकारी को,ख्याति मिल  रही चारों ओर।

आज हाशिए पर है शिक्षक,जो सबको अभिवृद्धि 

देता।।...

"अनंग"

💐💐 की महिमा💐💐



एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?


तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।


तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला, तब संत ने आराम की सांस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है, शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया, तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो, लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता।🕉️ 

🕉️🕉️🕉️🙏

Monday, September 12, 2022

पाकिस्तान पढ़ाता चीन को हिंदी

 

पाकिस्तान में  हिंदी दिवस मनाया जाए या नहीं, पर वह  चीन को हिंदी पढ़ा रहा है। चीनियों को कम से कम हिंदी का कामचलाऊ ज्ञान सिखा रही है पाकिस्तान की नेशनल यूनिवर्सिटी आफ मॉडर्न लैंगवेज्ज (एनयूएमएल)। ये इस्लामाबाद में है। इधर बहुत सी विदेशी भाषाएं पढ़ाई-सिखाई जाती हैं। दक्षिण एशिया की भाषाओं के विभाग में हिन्दी के साथ-साथ बांग्ला भी पढ़ाई जाती है।इधर हिन्दी विभाग 1973 से चल रहा है।


पाकिस्तान से मुख्य रूप से चीनी और पाकिस्तानी डिप्लोमेट हिंदी सीखते हैं। दोनों देश मानते हैं कि चूंकि हिंदी भारत की राजभाषा है, इसलिए इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। इसे सीखना जरूरी है। इसे जाने बिना बगैर भारत को समझना कठिन है। इधर से संयुक्त अरब अमीरत के सरकारी अफसर भी हिंदी सीखते हैं।


एनयूएमयू में हिन्दी का डिप्लोमा और सर्टिफिकेट कोर्स करवाता था। यहां से एम.फिल और पीएचडी की डिग्री भी ली जा सकती है। एनयूएमयू से पहली एम.फिल की डिग्री शाहीन जफर ने ली थी। यह 2015 की बात है।  उनका थीसिस का विषय था ' हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण  (1947-2000)'। जफर के गाइड प्रो. इफ्तिखार हुसैन आरिफ थे।


कुछ समय पहले तक हिन्दी विभाग की प्रमुख डा. नसीमा खातून थीं। उन्होंने नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्लाय से हिन्दी साहित्य में पी.एचडी की है। उनके प्रोफाइल से साफ है कि वह आगरा से संबंध रखती हैं। वह आगरा विश्वविद्लाय में भी पढ़ी हैं। आजकल हिन्दी विभाग की अध्यक्ष शाहीन जफर हैं। उन्होंने ही यहां से एम.फिल किया है। यहां नसीम रियाज भी है। वह पटना विश्वविद्लाय से इतिहास में एमए हैं। जुबैदा हसन भी इधर पढ़ा रही है! यहां की फैक्लटी को देखकर समझ आ रहा है कि हिन्दी वह पढ़ा रही हैं जो निकाह के बाद पाकिस्तान गईं हैं। 


पर  चूंकि दोनों देशों के संबंध लगातार खराब होते जा रहे हैं इसलिए सरहद के आरपार विवाह भी नहीं हो रहे या बहुत कम हो रहे हैं। इसका असर यहां के हिन्दी विभाग पर हो सकता है। आखिर उसे अध्यापक तो भारत से जाकर बसे ही लोगों में से मिल रहे थे।


 अगर बात नेशनल यूनिवर्सिटी आफ मॉडर्न लैंगवेज्ज (एनयूएमएल) से हटकर करें तो पाकिस्तान की पंजाब यूनिवर्सिटी (लाहौर) में भी हिन्दी विभाग है। ये 1983 से चल रहा है। यहां 1947 तक तो हिन्दी विभाग था ही। वह खत्म कर दिया था। यहां से भी हिन्दी  डिप्लोमा, बीए और एमए की डिग्री ली जा सकती है। यहां पर डॉ. मोहम्मद सलीम मजहर  हिन्दी विभाग के डीन हैं और शबनम रियाज अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं। 


शबनम रियाज भी मूल रूप से भारतीय ही लग रही हैं। उन्होंने हिन्दी में एमए पटियाला की पंजाबी यूनिवर्सिटी से किया है। तो यही लगता है कि वह भी निकाह के बाद पाकिस्तान चली गईं। डॉ सलीम ने एमए पंजाब यूनिवर्सिटी से ही किया है।


 हिन्दी बोलते पाकिस्तानी


हालांकि पाकिस्तान में हिन्दी को पढ़ने-पढ़ाने के लगभग सारे रास्ते बंद कर दिए गए, पर वह फिर भी अपने लिए जगह बना रही है।  हिन्दी फिल्मों और भारतीय टीवी सीरियलों के चलते दर्जनों हिन्दी के शब्द आम पाकिस्तानियों की आम बोल-चाल में शामिल हो गए हैं। अब पाकिस्तानियों की जुबान में आप ‘जन्मतिथि’ ‘भूमि’ ‘विवाद’, ‘अटूट’, ‘विश्वास’, ‘आशीर्वाद’, ‘ चर्चा’, ‘पत्नी’, ‘ शांति’ जैसे अनेक शब्द सुन सकते हैं। इसकी एक वजह ये भी समझ आ रही कि खाड़ी के देशों में लाखों भारतीय-पाकिस्तानी एक साथ काम कर रहे हैं। दोनों के आपसी सौहार्दपूर्ण रिश्तों के चलते दोनों एक-दूसरे की जुबान सीख रहे हैं। दुबई,अबूधाबू, रियाद, शारजहां जैसे शहरों में हजारों पाकिस्तानी काम कर रहे हैं भारतीय कारोबारियों की कंपनियों, होटलों, रेस्तरां वगैरह में। इसके चलते वे हिन्दी के अनेक शब्द सीख लेते हैं।इस बीच, पाकिस्तानियों  की हिन्दी को सीखने की एक वजह भारतीय़ समाज और संस्कृति को और अधिक गहनता से जानने की इच्छा भी है। ये इंटरनेट के माध्यम से हिन्दी सीख रहे हैं। और खुद पाकिस्तान के भीतर भी हिन्दी को जानने-समझने-सीखने की प्यास तेजी से बढ़ रही है।


क्यों सिंध के हिन्दू सीखते हिन्दी


उधर, पाकिस्तान के सिंध हिन्दी को जानने –समझने को लेकर वहां के हिन्दुओं में गहरी दिलचस्पी पैदा हो रही है। ये हिन्दी सीखने को लेकर खासे उत्साहित हैं। ये अपने बड़े-बुजुर्गों से हिन्दी सीख रहे हैं। इनकी चाहत है कि ये कम से कम इतनी हिन्दी तो जान लें ताकि ये हिन्दू धर्म की धार्मिक पुस्तकों को पढ़ सकें।


 कराची में रहने वाले चंदर कुमार एमबीए हैं। पाकिस्तान की वित्तीय राजधानी में एक एनजीओ से जुड़े हैं। वे बता रहे थे कि सिंध के स्कूलों या कॉलेजों में हिन्दी को पढ़ने-पढ़ाने की किसी तरह की व्यवस्था नहीं है। लेकिन देश के विभाजन के बाद भी जो लोग रह गए थे हिन्दी जानने वाले, वे ही आगे की पीढ़ियों को हिन्दी पढ़ाते रहे। जिन्होंने उनसे हिन्दी जानी, वे आगे की पीढ़ियों को हिन्दी पढ़ाते रहे। चंदर कुमार हिन्दी सिंधी भाषा के माध्यम से जानी। सिंध में लाखों हिन्दू रहते हैं। कुछ हिन्दू गूगल साफ्टवेयर से भी हिन्दी सीख रहे हैं।


 कौ न पढ़ाता हिन्दी


मुहाजिर कौमी मूवमेंट के सदर अल्ताफ हुसैन ने इस लेखक को सन 2004 में राजधानी दिल्ली में  बताया था कि सिंध में उत्तर प्रदेश और बिहार से जाकर बसे लोग भी हिन्दी हिन्दुओं को पढ़ा देते हैं। उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों ने तो हिन्दी सीखी ही थी। सिंध सूबे में उत्तर प्रदेश और बिहार के लाखों लोग रहते हैं। ये हाल के सालों तक वहां पर जाकर बसते रहे हैं।


 चंदर कुमार ने बताया कि पाकिस्तान में कम से कम मिडिल क्लास से संबंध रखने वाले हिन्दू तो हिन्दी सीखते ही हैं। हालांकि पाकिस्तान के हिन्दुओं की मातृभाषा हिन्दी नहीं है, पर वे हिन्दी से भावनात्मक रूप से जुड़ते हैं।

Haribhoomi


चित्र 1. हिंदी विभाग. 2.  शाहीन जी 

लेख साभार Vivek Shukla  sir.

Wednesday, September 7, 2022

वामन अवतार जन्मोत्सव (7 सितम्बर विशेष*)

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भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को वामन द्वादशी या वामन जयंती के रूप में मनाया जाता है। जो इस वर्ष आज 7 सितम्बर बुधवार को है।


प्राचीन धर्मग्रंथ शास्त्रों के अनुसार इस शुभ तिथि को श्री विष्णु के रूप भगवान वामन का अवतरण हुआ था।


धार्मिक शास्त्र,पुराणों तथा मान्यताओं के अनुसार भक्तों को इस दिन व्रत-उपवास करके दोपहर (अभिजित मुहूर्त) में भगवान वामन की पूजा करनी चाहिए।

भगवान वामन की संभव हो तो स्वर्ण प्रतिमा नही तो पीतल की प्रतिमा का पंचोपचार सहित पूजा करनी चाहिए।

भगवान वामन को पंचोपचार सामर्थ्य हो तो षोडषोपचार पूजन करने से पहले चावल, दही आदि जैसी वस्तुओं का दान करना सबसे उत्तम माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जो भक्ति श्रद्धा-भक्तिपूर्वक इस दिन भगवान वामन की पूजा करते हैं, उनके सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।


वामन अवतार की पौराणिक कथा

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वामन अवतार भगवान विष्णु का महत्वपूर्ण अवतार माना जाता है. श्रीमद्भगवद पुराण में वामन अवतार का उल्लेख मिलता है. वामन अवतार कथा अनुसार दैत्यराज बलि ने इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर अधिपत्य कर लिया था। बली विरोचन के पुत्र तथा प्रह्लाद के पौत्र थे और एक दयालु असुर राजा के रूप में जाने जाते थे। यह भी कहा जाता है कि अपनी तपस्या तथा ताक़त के माध्यम से बली ने त्रिलोक पर आधिपत्य हासिल कर लिया था।


देव और दैत्यों के युद्ध में देव पराजित होने लगते हैं। असुर सेना अमरावती पर आक्रमण करने लगती है। तब इन्द्र भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं। भगवान विष्णु उनकी सहायता करने का आश्वासन देते हैं और भगवान विष्णु वामन रुप में माता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होने का वचन देते हैं। दैत्यराज बलि द्वारा देवों के पराभव के बाद कश्यप जी के कहने से माता अदिति पयोव्रत का अनुष्ठान करती हैं जो पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है।


तब उनके व्रत, आराधना से प्रसन्न होकर विष्णु जी प्रकट हुये और बोले- देवी! व्याकुल मत हो मैं तुम्हारे ही पुत्र के रूप में जन्म लेकर इंद्र को उनका हारा हुआ राज्य दिलाऊंगा। तब समय आने पर उन्होंने अदिति के गर्भ से जन्म लेकर वामन के रूप में अवतार लिया। तब उनके ब्रह्मचारी रूप को देखकर सभी देवता और ऋषि-मुनि आनंदित हो उठे।


महर्षि कश्यप ऋषियों के साथ उनका उपनयन संस्कार करते हैं वामन बटुक को महर्षि पुलह ने यज्ञोपवीत, अगस्त्य ने मृगचर्म, मरीचि ने पलाश दण्ड, आंगिरस ने वस्त्र, सूर्य ने छत्र, भृगु ने खड़ाऊं, गुरु देव जनेऊ तथा कमण्डल, अदिति ने कोपीन, सरस्वती ने रुद्राक्ष माला तथा कुबेर ने भिक्षा पात्र प्रदान किए तत्पश्चात भगवान वामन पिता से आज्ञा लेकर बलि के पास जाते हैं। उस समय राजा बलि स्वर्ग पर अपना स्थायी अधिकार प्राप्त करने के लिए अश्वमेध यज्ञ कर रहे थे। वामन देव वहां पहुंचे गये। उनके तेज से यज्ञशाला स्वतः प्रकाशित हो उठी।


बलि ने उन्हें एक उच्च आसन पर बिठाकर उनका आदर सत्कार किया और अंत में राजा बली ने वामन देव से इक्षीत भेंट मांगने को कहा।


इस पर वामन चुप रहे। लेकिन जब रजा बलि उनसे बार-बार अनुरोध करने लग गया तो उन्होंने अपने कदमों के बराबर तीन पग भूमि भेंट में देने को कहा। तब राजा बलि ने उनसे और अधिक कुछ मांगने का आग्रह किया, लेकिन वामन देव अपनी बात पर अड़े रहे।


तब राजा बलि ने अपने दायें हाथ में जल लेकर तीन पग भूमि देने का संकल्प ले लिया। जेसे ही संकल्प पूरा हुआ वेसे ही वामन देव का आकार बढ़ने लगा और वे बोने वामन से विराट वामन हो गए।


तब उन्होंने अपने एक पग से पृथ्वी और अपने दूसरे से स्वर्ग को नाप लिया। तीसरे पग के लिए तो कुछ बचा ही नही तब राजा बलि ने तीसरे पग को रखने के लिए अपना मस्तक आगे कर दिया।


तब राजा बली बोले- हे प्रभु, सम्पत्ति का स्वामी सम्पत्ति से बड़ा होता है। आप तीसरा पग मेरे मस्तक पर रख दो। सब कुछ दान कर चुके बलि को अपने वचन से न फिरते देख वामन देव प्रसन्न हो गए। 

तब बाद में उन्हे पाताल का अधिपति बनाकर देवताओं को उनके भय से मुक्त कराया। 


एक और कथा के अनुसार वामन ने बली के सिर पर अपना पैर रखकर उनको अमरत्व प्रदान कर दिया। विष्णु अपने विराट रूप में प्रकट हुये और राजा को महाबली की उपाधि प्रदान की क्योंकि बली ने अपनी धर्मपरायणता तथा वचनबद्धता के कारण अपने आप को महात्मा साबित कर दिया था। विष्णु ने महाबली को आध्यात्मिक आकाश जाने की अनुमति दे दी जहाँ उनका अपने सद्गुणी दादा प्रहलाद तथा अन्य दैवीय आत्माओं से मिलना हुआ।


वामनावतार के रूप में विष्णु ने बलि को यह पाठ दिया कि दंभ तथा अहंकार से जीवन में कुछ हासिल नहीं होता है और यह भी कि धन-सम्पदा क्षणभंगुर होती है। ऐसा माना जाता है कि विष्णु के दिये वरदान के कारण प्रति वर्ष बली धरती पर अवतरित होते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी प्रजा खुशहाल है।


वामन देव की आरती

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ओम जय वामन देवा, हरि जय वामन देवा!!


बली राजा के द्वारे, बली राजा के द्वारे संत करे सेवा,


वामन रूप अनुपम छत्र, दंड शोभा, हरि छत्र दंड शोभा !!


तिलक भाल की मनोहर भगतन मन मोहा,


अगम निगम पुराण बतावे, मुख मंडल शोभा, हरि मुख मंडल शोभा।


कर्ण, कुंडल भूषण, कर्ण, कुंडल भूषण, पार पड़े सेवा,


परम कृपाल जाके भूमी तीन पगा, हरि भूमि तीन पड़ा 


तीन पांव है कोई, तीन पांव है कोई बलि अभिमान खड़ा।


प्रथम पाद रखे ब्रह्मलोक में, दूजो धार धरा, हरि दूजो धार धरा।


तृतीय पाद मस्तक पे, तृतीय पाद मस्तक पे बली अभिमान खड़ा।


रूप त्रिविक्रम हारे जो सुख में गावे, हरि जो चित से गावे।


सुख सम्पति नाना विधि, सुख सम्पति नाना विधि हरि जी से पावे।


ॐजय वामन देवा हरि जय वामन देवा।

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गुरुवर भारत यायावर से जीवन जीने की कला सीखी / विजय केसरी


'शिक्षक दिवस'  पर गुरुवार डॉ० भारत यायावर को विनम्र समर्पित हैं यह संस्मरण

(चंद पंक्तियां )/ विजय केसरी 




आप सर ! हर पल याद आते हैं। आपकी कमी हम सबों को बहुत खल रही है। यायावर सर से जीवन जीने की कला सीखी। उनकी रचनाएं आज भी पढ़ कर मन तृप्त हो जाता है । हर रचना कुछ न कुछ नई बात जरूर बताती रहती हैं। उनकी रचनाएं मर्म को स्पर्श करती हैं।  संवेदना से ओतप्रोत हैं। उनकी रचनाएं समय के साथ संवाद करती नजर आती हैं। भारत यायावर अपनी कृतियों के माध्यम से सदैव लोगों के दिलों में रहेंगे। शिक्षक दिवस पर उन्हें याद कर आंखों से आंसू छलक पड़े। उनके साथ बिताए पल को कभी भूल नहीं सकता हूं। हर रोज उनका मेरी दुकान पर आना । घंटों साहित्य पर बात करना।  इन्हीं स्मृतियों को चंद पंक्तियों में लिखने की एक कोशिश भर  है।

भारत यायावर जी ने मुख्य रूप से मुझे और मेरे छोटे भाई राजकुमार केसरी को पढ़ाया था। यायावर जी का हमारे परिवार से ऐसा जुड़ाव हो गया कि हमारे अन्य दोनों  छोटे भाई मनोज केसरी और प्रदीप केसरी भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। जब हम चार भाइयों की शादी हो गई। इस दरम्यान भी भारत यायावर जी का मेरे घर में आना जाना जारी रहा था । यायावर जी जब भी मेरे घर आते थे , हम सबों को कुछ ना कुछ नई बात जरूर बताते रहते। हम चारों भाइयों ने उनसे जीवन जीने की कला सीखी । 

भारत यायावर जी को हम सभी भाइयों की पत्नियां भी ऊन्हें अपना गुरु मानने लगीं थीं । आगे चलकर उन्होंने हमारे  बच्चों को भी बहुत कुछ सिखाया और बताया था । उनकी सीख का ऐसा प्रभाव हुआ कि सभी बच्चे ऊंचे पदों पर कार्यरत है। वे सभी बच्चे भी उन्हें अपना गुरु मानते हैं। हम भाइयों की अनुपस्थिति में जब भी भारत यायावर जी मेरे आवास पर पहुंचे थे , हम  भाइयों की पत्नियां उन्हें बड़े ही आदर भाव के साथ सम्मान करती थीं । वे सब सर से हुई बातचीत को बहुत ही प्रसन्न मन से हम लोगों को सुनाती थीं । यह ईश्वर का परम सौभाग्य है कि ऐसे व्यक्ति हम लोगों को गुरु के रूप में मिले।

 आज 'शिक्षक दिवस' है। सभी शिक्षकों को मेरी ओर से ढेर सारी शुभकामनाएं। बचपन से लेकर अब तक सीखता ही चला आ रहा हूं। नित कुछ ना कुछ  नए  मिलने - जुलने वालों और पुस्तकों के पाठन से भी सीखता रहता हूं। हमेशा सीखने की ललक बनी रहती है। मुझ पर अपनी कृपा रखने और सिखाने वालों से जाने अनजाने में कुछ भूल हुई  होगी तो क्षमा करेंगे।

 सर्वप्रथम मैंने श्री भारता यायावर का नाम इसलिए दर्ज किया है कि उनके द्वारा दी गई शिक्षा का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा है। यह मेरा सौभाग्य है कि बचपन से लेकर एक बर्ष तक उनकी कृपा मुझ पर बनी हुई थी । मैं कभी भी किसी भी परेशानी में रहा,  उनकी बहुमूल्य वाणी ने मुझमें एक नई ऊर्जा भरी थी । आज वे स शरीर नहीं हैं, फिर भी उनकी कही बातें कुछ न कुछ सिखाती ही रहती हैं।  वे  हमेशा मेरे परिवार को आगे फलते फूलते देखना चाहते थे । वे हमेशा हम लोगों का शुभ चाहते थे । पिता के निधन के बाद मुझे परंपरागत खाद्यान्न का व्यवसाय प्राप्त हुआ था।  अभी मैं ज्वेलरी के व्यवसाय से जुड़ा हुआ हूं। वे हमारे क्रमवार विकास में हमेशा साथ रहें थे।। उनकी सराहना भरी बातें मुझे हमेशा मार्ग प्रदर्शित करती रहीं।

 श्री यायावर जी हमारे  परिवार के सदस्यों  के साथ ऐसा जुड़ चुके थे कि हम सभी उन्हें गुरु के साथ अपने परिवार का मजबूत स्तंभ मानते रहे थे।  ऐसे देखा जाए तो हम चार भाइयों के स्कूल से लेकर कॉलेज तक कई शिक्षक मिले। सबों से हम भाइयों को सीखने का अवसर मिला। लेकिन भारत यायावर जी हम लोगों में ऐसा समाहित हो गए कि वे हमारे अस्तित्व का एक हिस्सा बन गए ।

 गुरु का अर्थ है, अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाला।

 हम भाइयों के क्रमवार विकास में श्री भारत यायावर का न भूलने वाला सहयोग रहा है।  बीच के काल खंड में वे हजारीबाग से बोकारो चले गए। इसके बावजूद भी उनसे हम लोगों की दूरियां कम नहीं हुई। हम सब हमेशा उन्हें याद करते रहते। भारत सर भी हम लोगों को याद करते। वे जब भी हजारीबाग आते। हम लोगों से जरूर मिलते थे।  हम लोगों को  आशीर्वाद देते थे ।  हम लोगों को आर्थिक रूप से आगे बढ़ते देखकर वे बहुत प्रसन्न होते थे । साथ ही वे यह भी शिक्षा देते कि तुम सब कभी भी नैतिकता का त्याग नहीं करते थे । धन पर कभी भी घमंड मत करो। तुम लोगों से जो भी बन पड़ता है, समाज सेवा के लिए जरूर करो। उनकी ये बातें हम सब हमेशा याद रखतें हैं । 

जब भारत यायावर जी हम दोनों भाइयों को घर में ट्यूशन दिया करते थे। उन्होंने हम दोनों भाइयों को कभी भी नहीं डांटा और ना मारा। हिंदी हो। अंग्रेजी हो। साइंस हो अथवा मैथेमेटिक्स हो,वे सब विषयों को इतनी सहजता से बताते  कि बातें बहुत आसानी से मस्तिक में बातें पहुंच जाती । सालाना होने वाले स्कूल की परीक्षाओं में हम दोनों भाइयों को अच्छे अंक प्राप्त होते थे। इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी भारत सर का जो स्वभाव पहले वाला ही था । जब वे हम दोनों भाइयों को पढ़ाते थे। तब भी वे कविताओं की रचना किया करते थे। कभी-कभी कविता हम दोनों भाइयों को भी सुना दिया करते थे । साहित्य के प्रति उनका जो समर्पण उस समय था, इतने वर्ष बीत जाने के बाद भी उनका वही लगाव बना हुआ था। उन्होंने साहित्य सृजन करते हुए अंतिम सांस ली थी ।

 वे सरस्वती माता के सच्चे साधक और उपासक थे। वे साहित्य रचना कर्म के लिए ही पैदा हुए थे। देश के सुप्रसिद्ध प्रख्यात साहित्यकार, कथाकार फणीश्वर नाथ रेणु की रचनाओं से वे इतने प्रभावित हुए कि देशभर में बिखरे पड़े रेणुजी के साहित्य को संकलित करने में लग गए। उन्होंने अपने जीवन का बहुमूल्य समय रेणु रचनावली को निर्मित करने में लगा दिया था । जिस कालखंड में श्री भारत यायावर जी, रेणु जी की रचनाओं को खोज रहे थे। देशभर का भ्रमण कर रहे थे। यात्रा पर यात्राएं कर रहे थे। एक पुस्तकालय से दूसरे पुस्तकालय की ओर बढ़ते चले जा रहे थे। उस समय वे बिल्कुल युवा थे। जबकि उस उम्र में युवा मौज मस्ती में लगे होते हैं।   लेकिन यायावर जी ने एक साधक व तपस्वी के रूप में अपने जीवन का बहुमूल्य समय रेणु रचनावली को निर्मित करने में लगा दिया था । इसके साथ ही उन्होंने हिंदी साहित्य के अलावा  कई भाषाओं के साहित्य का विराट अध्ययन किया। था  वे निरंतर लिखते रहे और लिखते रहे थे।  उन्होंने प्रख्यात साहित्यकार महावीर प्रसाद द्विवेदी रचनावली का 15 खंडों में संपादन कर साहित्य का बड़ा काम किया था ।

 इसी दरम्यान वे कॉलेज की सेवा से जुड़े और पढ़ाने में ऐसा रम गए कि विद्यार्थीगण आज भी उन्हें याद करते हैं। उन्होंने कभी भी किताब खोल कर लेक्चर नहीं दिया। उनसे जिस विद्यार्थी ने  भी सवाल का उत्तर जानना चाहा। बिना इधर उधर झांके श्री यायावर जी ने उसका तुरंत जवाब दे दिया। उनके यहां नियमित रूप से कॉलेज के छात्र छात्राएं आते रहते थे । हिंदी साहित्य संबंधी जानकारियां लेते रहते थे। भारत यायावर जी ने कभी भी किसी छात्र - छात्रा को निराश नहीं किया। छात्रों ने  जो भी जानकारियां मांगी, उन्होंने दिया था। 

इसीलिए देश भर के विभिन्न हिंदी के प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उनकी रचनाएं छपती रहती थी।  उनकी  रचनाएं आज भी देशभर में पढ़ी जा रही हैं। देश भर से उनकी रचनाओं पर प्रतिक्रियाएं भी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। उनकी रचनाएं देशभर में साहित्य की चर्चा के केंद्र में भी बनी रहती हैं। हजारीबाग जैसे छोटे शहर में जन्म लेकर उन्होंने राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय स्तर तक अपनी पहुंच बनाई थी । उनकी अब तक साठ से अधिक किताबें  प्रकाशित हो चुकी हैं। वे  जीवन के अंतिम क्षण तक साहित्य साधना में रत थे।  देश की कई प्रतिष्ठित पत्रिकाओं  ने उन पर कवर स्टोरी भी प्रकाशित किया था। भारत यायावर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर लेखक गण कुछ ना कुछ लिखते ही रहते हैं, जो  विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते  रहते हैं। यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भी उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर कुछ पंक्तियां अर्पित की है। उनका व्यक्तित्व इतना विराट होने के बावजूद मैंने उनमें कभी भी अहम का कोई भाव नहीं देखा। सहजता, सरलता उनके स्वभाव में शामिल था  उनके मन में किसी के प्रति  कोई भेदभाव नहीं रहता था। वे सभी को आदर करते थे। वे अपनी आलोचनाओं से घबराते नहीं थे । उनके जीवनकाल में उनकी रचनाओं पर नियमित रूप से आलोचनाएं छपती रहती थीं।  वे बड़े ध्यान से आलोचनाओं को पढ़ते थे।  वे  गहन विचार-विमर्श कर ही कुछ पंक्तियां लिखते थे।

 संपादन कला में भारत यायावर जी पूरी तरह पारंगत थे,जिस भी पुस्तक का उन्होंने संपादन किया,  वह  पुस्तक साहित्यिक धरोहर बन जाती हैं। आज भी उनकी पुस्तकें बड़े चाव से पढ़ी जाती  हैं। उनकी संपादित पुस्तकों एवं कृतियों पर कई छात्र शोधरत हैं।

 झारखंड के हिंदी साहित्य के प्रख्यात कथाकार राधाकृष्ण की भी रचनाओं को खोज कर उन्होंने एक पुस्तक का रूप प्रदान किया था। वे, उनकी रचनाओं की खोज में लगे हुए थे। कथाकार राधा कृष्ण के पुत्र गोपाल जी के साथ उन्होंने देश के देशभर के कई पुस्तकालयों का दौरा भी किया था , लेकिन उनके निधन के बाद उनका यह कार्य अधूरा ही रह गया।  नए साहित्यकार, यायावर जी  हमेशा संवाद स्थापित कर कुछ न कुछ सीखते ही रहते थे।  उनके विराट व्यक्तित्व के भीतर कोमल मन था, जो सभी से प्रेम करता था । प्रकृति को महसूस करता था। लोगों के सुख दुख की बातें भी सुनता था। दूसरों के दुख से दुखी होता था। दूसरे के आनंद में आनंदित होता था।

यायावर जी का हिंदी साहित्य के गद्य और पद्य दोनों विधा पर समान रूप से अधिकार था । उनके लेखों का विश्लेषण बहुत ही सूक्ष्म होता था। उनकी बातें मन को छूती थीं। विचार करने की एक नई दृष्टि प्रदान करती हैं। 'पुरखों के कोठार से ' स्थाई स्तंभ के माध्यम से उन्होंने  कई  पुरानी साहित्य के दबे हुए इतिहास को  फिर से उद्घाटित किया। ऐसा लेख लिखने वाले वे भारत के पहले लेखक बन गए।

 देश दुनिया में क्या कुछ हो रहा है? सब पर उनकी निगाह रहती थी।  लेकिन वे फालतू के विवाद में नहीं पड़ते थे । वे समाज के हर बदलते रंग का जवाब  साहित्य के माध्यम से देते थे ।  भारत यायावर जी का कहना था कि दुनिया की कोई भी  चीज ऐसी नहीं ,जो साहित्य से परे है । साहित्य के अंदर में दुनिया की सारी चीजें समाहित है। जिसने साहित्य को गले लगाया दुनिया के सब ज्ञान को प्राप्त कर लिया। साहित्य में विज्ञान है। अंकगणित है। कला है। अध्यात्म है। आयुर्वेद है। बस! उसे समझने और मनन करने की जरूरत है। उनका साहित्य में गहरी रूचि रहने के कारण वे इस तरह की बातें कह पाते हैं।

मैंने ऊपर दर्ज किया है कि भारत यायावर जी का गद्य और पद्य दोनों विधाओं पर समान रूप से पकड़ थी।  

उनकी कविताओं पर  मैं  विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूं कि उनकी कविताएं जीवन की सच्चाई को बयान करती है। वे समाज में जो देखते थे। जो महसूस करते थे । अपने घर में जो देखते थे। उसको ही, उन्होंने अपनी पंक्तियों में पिरोया था ।  उनकी पंक्तियां दिल का  राग सुनाती  हैं। अपना हाल बताती हैं। मेरा हाल पूछती हैं।

 उनका 'हाल बेहाल' और 'कविता फिर भी मुस्कुराएगी' कविता संग्रह की  कविताएं जीवन के हर पक्षों पर विमर्श करती नजर आती हैं। जीवन की बात बताती हैं। जीवन की राह दिखाती है।  एक नई दृष्टि भी प्रदान करती हैं। 

उनकी कविताएं जब पढ़ता हूं, तब लगता है ये पंक्तियां मुझसे जुड़ी हुई है। कविताएं मुझसे बातें भी करती हैं। मेरा दुखड़ा सुनती हैं। खुद अपना दुखड़ा भी बताती हैं। कविता की पंक्तियां मात्र कविता नहीं बल्कि हम साथी बनी नजर आती है। 

यह मेरा ‌परम सौभाग्य है कि भारत यायावर जैसे शब्द शिल्पी से कुछ सीखने और जानने का अवसर  मिला।भारत यायावर जैसे गुरु पाकर जीवन धन्य हुआ। 

 गुरुवर भारत यायावर अब इस धरा पर नहीं है । फिर भी,..मैं महसूस करता हूं कि उनकी कृपा मुझ पर बनी हुई है । गत दिनों उनकी धर्मपत्नी संध्या सिंह जी ने यायावर जी की कृतियों को हजारीबाग के बिनोवा भावे पुस्तकालय को समर्पित कर दिया।


विजय केसरी ,

(कथाकार /स्तंभकार) 

 पंच मंदिर चौक,  हजारीबाग - 825 301.

 मोबाइल नंबर :- 92347 99550.

Friday, September 2, 2022

मनुष्य साहस प्रेम और धीरज / कृष्ण मेहता

 प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद



मनुष्य का सबसे बड़ा गुण साहस है क्योंकि यह अन्य सब गुणों का प्रतिनिधित्व करता है| साहस ही जीवन की विशेषताओं को व्यक्त होने का अवसर देता है| साहस सफलता का स्वप्न और संकल्प लेकर चलता है| यदि सम्मान युक्त जीवन जीना है तो साहसी बनना पड़ेगा| साहस समुद्र के अंदर से अपना रास्ता बनाता है और पहाड़ों को चीर कर आगे बढ़ता है| साहस के शब्दकोश में असंभव और पराजय नाम के कोई शब्द हैं ही नहीं|साहस से उस संकल्प- बल की उत्पत्ति होती है  जिससे अंधेरे में भी प्रकाश फैलता है और असंभव संभव बन जाता है तथा जिस से सब कुछ उपलब्ध किया जा सकता है|"

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मनुष्य सर्वथा अकेला रह रहा होता तो और बात थी लेकिन ऐसा है नहीं, सभी के साथ रहना पडता है और वहीं उसके रजोगुण, तमोगुण प्रकट होने की संभावना होती है|आदमी उनमें खोकर उनके आवेश से भरा रहता है|सजग रहे कौन, निरीक्षण करे कौन? यदि ध्यान गया तब भी दुर्बलता की मजबूरी बनी रहती है|इसके लिए साहस चाहिए- प्रेम का साहस|

जो प्रेम से भागता है वह भय से भागता है|क्रोध भी भय है|

क्रोधी आदमी भीतर से भयभीत होता है|उसका अहंकार भय से बचने के लिए क्रोध का सहारा लेता है|

भय से न बच पाये तो क्या होगा ऐसी चिंता होती है|

समझदार आदमी इन सारे कारणों को समझकर प्रेम का साहस करता है|

साहस बहुत बड़ी बात है मगर अहंकार के हाथ में पडकर इसका दुरूपयोग होता है|जहाँ कहीं साहस की चर्चा चलती है इसकी आंखें चमक उठती हैं|यह ध्यान से सुनने लगता है|बात है भी सही|साहस के आगे किसीकी चलती भी नहीं|ज्यादा से ज्यादा उसका शरीर नष्ट होता है लेकिन इसकी उसे परवाह नहीं होती|परवाह हो तो साहसी कैसा? 

दुनिया में जो बडे काम हुए हैं वे साहस ने ही किये हैं|ज्ञानी और अनुभवी तो स्वभाव से अंतर्मुखी होते हैं, सहज ही कर्म में प्रवृत्त नहीं होते|कर्म के लिए तो साहस, जोश, दृढता, ऊर्जा चाहिए|कर्म जगत में कठिनाईयां आती ही हैं इसलिए ठीक ही कहा है-

"साहस और धैर्य ऐसे गुण हैं जिनकी कठिन परिस्थितियां आ पडने पर बड़ी आवश्यकता होती है|"

धैर्य भी चाहिए|धैर्य को समझने वाली सूक्ष्म बुद्धि भी|

"वही व्यक्ति सच्चा साहसी है जो मनुष्यों पर आनेवाली भारी विपत्ति को बुद्धिमत्ता पूर्वक सह सकता है|"

और उसमें से बाहर निकल भी आता है|बाहर निकलने की जल्दी नही होती|बाहर निकलने की जल्दी हो तो धैर्य विकसित नहीं हो सकता, न साहस होता है|

धैर्य हीन साहस कैसा? 

धैर्य युक्त होने से वह अडिग है|वह सदा समस्या रहित है|समस्या शब्द अहंकार का है, साहस का नहीं|साहसी इस भाषा में सोचता ही नहीं| वह इसे अवसर की तरह लेता है|

कहा है-"सहनशक्ति के अभ्यास में अपना शत्रु सबसे अच्छा शिक्षक है|"

गीता के समत्व योग को जिसने अच्छी तरह समझ लिया वह स्वागत करेगा कि आने दो शत्रु को, हानि को, दुख, पराजय को, रोग शोक को हम सहने की शक्ति बढाने के अवसर की तरह लेंगे उसे|

साहसी आदमी में असीम सहनशक्ति होती है|हम सहनशक्ति को अच्छी दृष्टि से नहीं देखते-यह अहंकार का काम है|अहंकारी आदमी साहसी तो होना चाहता है किंतु सहनशक्ति उसे नापसंद होती है इसलिए वह चूक जाता है|

साहसी आदमी में सहनशक्ति हो तो वह समझदार भी होता है|समझदार हो तो शायद ही कभी उसे 'एक्शन' लेने की जरूरत पडती है|

साहस अहंकार को अच्छा लगता है इसलिए वह साहस का गुणगान करता है|

हम दूसरी बात कर रहे हैं|जो भी समाज के संरक्षक हैं, शुभचिंतक हैं वे साहस को प्रेम से जोडकर देखते हैं|

प्रेम ही आधार शिला है|प्रेम का अभाव है इसलिए साहस की जरूरत पडती है-प्रेम के साहस की|

"ध्यान रखना तुम अगर तथाकथित सांसारिक प्रेम की पीड़ा से न गुजरे तो तुम ईश्वरीय प्रेम को भी न पा सकोगे"

संसार से त्रस्त होकर कोई ईश्वर की भक्ति में डूब जाना चाहता है तो वह पलायनवादी है, कमजोर है, साहस नहीं है उसमें प्रेम करने का सबसे जैसा कि गीता कहती है-

"सर्वभूतहितेरता:|"

सर्वे भवंतु सुखिनः प्रार्थना हमारे यहाँ इसी संदेश में से आयी है|

मगर साहस?साहस के अभाव में कमजोर हृदय से की गयी प्रार्थना का असर नहीं होता|प्रार्थना क्रियात्मक होनी चाहिए|वह संभव हो पाता है साहस से-प्रेम के साहस से|

ऐसा भी नहीं कि केवल प्रेम कर लिया जबानी (हालांकि यह भी अच्छा है फिर भी) साहस को जब किसीको सहयोग की आवश्यकता होती है तब दिल खोलकर सहयोग करता भी है|वह केवल नाम का साहस थोडे ही है, शब्दकोश में लिखा शब्द जिसमें उसका अर्थ बता रखा है|उस अर्थ को तो कोई भी पढ ले लेकिन जब सचमुच किसी साहसी आदमी से सामना होता है तब उसका असली अर्थ समझ में आता है|

"क्या साहस को स्वीकार किये बिना ही कहीं शुभ यश प्राप्त होता है? "

ऐसे शुभ यश देने वाले साहस की जरूरत है सूक्ष्म दृष्टि से, न कि अहंकार को संतुष्ट करने वाले की तरह|

यह तभी संभव होगा जब प्रेम का साहस हो|साहस इसलिए क्यों कि प्रेम की इच्छा नहीं होती, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या से घिरे रहते हैं|

जबर्दस्ती प्रेम के लिए कहा जाय तो अवसाद उत्पन्न हो जाता है|क्या जबर्दस्ती प्रेम हो सकता है? उसके लिए साहस चाहिए|क्षुद्र हृदय की दुर्बलता का अंत चाहिए|

तब युद्ध हो सकता है|

ऐसा युद्ध जो हमें हमारी सारी कमजोरियों से उबार लेता है और समत्व योग में स्थापित कर देता है|

"क्लैब्यं मा स्म गम:पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते|क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्त्तिष्ठ परंतप||हे अर्जुन, नपुंसकता को मत प्राप्त हो, यह तेरे में योग्य नहीं है|हे परंतप! तुच्छ हृदय की दुर्बलता को त्याग कर युद्ध के लिए खड़ा हो|"

युद्ध की बात से अहंकार बड़ा उत्साहित होता है, उसकी शत्रुता की वृत्ति शिखर पर पहुँच जाती है मगर यह गीता है जो साथ साथ सजग कर देती है कि ध्यान रहे तुम ही तुम्हारे शत्रु या मित्र हो इसलिए तुम्हारे भीतर तथाकथित शत्रु या मित्र को लेकर समता होनी चाहिए|भीतर शांति, सन्नाटा, बाहर निष्काम कर्म|वह स्वत:होता है बिना कर्ता भोक्ता भाव के|वह ईश्वरीय विधान की तरह है जो किसी को किसीकी स्वतंत्रता छीनने की अनुमति नहीं देता|

केवल आवश्यकतानुसार यथायोग्य कर्म की अनुमति ही देता है|

कर्म के पीछे प्रज्ञा शक्ति होती है|

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...