Thursday, June 30, 2022

त्यागना ही मोक्ष हैं / कृष्ण mehtav


प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


एक बार ठाकुर जी की नाव भवसागर के पार जा रही थी। ठाकुर जी ने कहा:- जिस किसी को बैठना हो बैठ जाए।


अब हम बैठ तो गए, परंतु संसार साथ ले लिया, क्योंकि हम संसारिक प्राणी जो ठहरे। सौ पचास किलोमीटर का सफर तय करना हो तो भी सारी सुविधाएं चाहिएं और यहां तो भवसागर पार जाना है।


इधर ठाकुर जी सोच रहे हैं कि रख लो जो भी रखना है, छुड़वा तो मैं अपने आप दूंगा। थोड़ी देर बाद ठाकुर जी ने जानबूझकर नाव को समुद्री तूफान में फंसा दिया और कहा कि नाव में वजन बहुत ज्यादा है, कुछ कम करो तो नैया पार लगे, अन्यथा यह डूब जाएगी।


अब मरता क्या ना करता, खुद को बचाना है तो सामान फेकना ही पड़ेगा। अब हम लगे इन गोपियों की तरह मटका रूपी संसार त्यागने।


यहां एक बात विचार करने वाली है कि यदि संसार त्यागना ही था तो नाव में बैठने से पहले ही क्यों नही त्याग दिया? कम से कम इतना जो सफर तय किया, वो तो आराम से कट जाता। परंतु हमें तो यह बातें तब समझ में आती हैं जब जान पर बन आती है।


एक बात और इस नाव में केवल आप और ठाकुर जी ही सवार हैं। यदि सामान लेकर चलोगे तो बार-बार घ्यान सामान की ओर जाएगा, अर्थात; आपकी एकाग्रता भंग होगी और जो ठाकुर जी को टकटकी लगाकर देखने का सुख है, वह आप वो नहीं मिल पाएगा।


इसलिए यदि भवसागर से पार जाना है, तो संसार को त्यागना ही पड़ेगा।


हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे


           *।। जय सियाराम जी।।*

             *।। ॐ नमह शिवाय।।*

Tuesday, June 28, 2022

भंडारा 10 जुलाई 2022 क़ो

 *परम  गुरु  हुजूर  डॉ.  एम.बी  लाल  साहब जी  का  पावन  भण्डारा  10  July'  2022  को  मनाया  जाएगा।

अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के उपदेश-प्राप्त सतसंगी भाई-बहन सोमवार, 11 जुलाई, 2022 को भेंट देंगे। भेंट की सीमा निम्नवत् रहेगी- (i) भारत की सतसंग ब्रांचों में रजिस्टर्ड उपदेश प्राप्त सतसंगी न्यूनतम 15/- रु. तथा अधिकतम 3,000/- रु. भेंट दे सकते हैं।

(ii) विदेशों की सतसंग ब्रांचों में रजिस्टर्ड उपदेश प्राप्त सतसंगी (अनुमति प्राप्त क्षेत्र) जो दयालबाग़ आयेंगे वे न्यूनतम 150/-रु. तथा अधिकतम 7,500/- रु. भेंट दे सकते हैं।।                              

(iii) अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के सतसंगी जिन्हें पैरा 1 के अनुसार दयालबाग़ आने की अनुमति है वे कार्यक्रमानुसार भेंट दे सकते हैं। उन्हें हैल्मेट, मास्क पहनना, हाथों की सफ़ाई व सामाजिक दूरी का पालन करना आवश्यक है।     

 (iv) अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के अन्य सतसंगी जो दयालबाग़ नहीं आ सकते हैं वे अपनी भेंट की धनराशि NEFT/ RTGS द्वारा ब्रांच के खाते में जो कि सेक्रेटरी व अन्य दो व्यक्तियों द्वारा संचालित किया जाता है, ऑनलाइन जमा करेंगे। जो लोग भेंट की राशि ट्रांसफ़र करने में अक्षम हैं वे ब्रांच सेक्रेटरी को नक़द दे सकते हैं।

ब्रांच सेक्रेटरी प्रत्येक "ट्रांज़ेक्शन" की जाँच कर यह देखेंगे कि यह धनराशि निर्दिष्ट नियमानुसार की गई है अथवा नहीं।

 ब्रांच द्वारा एकत्रित की गई भेंट की कुल धनराशि NEFT/ RTGS द्वारा केवल एक transaction से सभा के खाते में जमा करें व Form 'A' सूचि प्रेषित करें, जिससे भेजी गई धनराशि का मिलान हो सके। सभा के खाते का विवरण रीजनल प्रेसीडेन्ट्स को भेज दिया गया है। इस सम्बन्ध में उनसे सम्पर्क करें। (कार्यक्रम व प्रक्रिया अलग से सूचित की जायेगी)।*

*विदेशों के रीजन्स के उपदेश प्राप्त सतसंगी भाई बहन जो भंडारे में शामिल हो सकते हैं किन्तु कोविड-19 के प्रतिबंधों के कारण दयालबाग़ नहीं आ सके हें वे अपनी भेंट की धनराशि अपने रीजनल एसोसिएशन के बैंक एकाउण्ट में ऑन लाइन भेज सकते हैं। रीजनल प्रेसिडेंट, ब्रांच सेक्रेटरी द्वारा भेजी गई भेंट की लिस्ट जाँच करने के बाद उसे अपने बैंक एकाउण्ट में रीजनल स्तर पर उपयोग के लिए स्वीकृत करेंगे।*

*राधास्वामी*

सतसंगियों से निम्बोली लाने का आग्रह

 राधास्वामी 


दयालबाग में फसल की सुरक्षा के लिए जो नीम ऑयल खरीदा जाता था उसके लिए यह हुज़ूरी हुक्म हुआ है कि इसकी जगह एग्रोइकोलॉजी विभाग को निम्बोली और नीम की पत्तियों का इस्तेमाल करना है और नीम का तेल बनाना है।


इस कार्य में ज्यादा मात्रा में निम्बोली की आवश्यकता है।


आप सभी से यह अनुरोध है कि इस भण्डारे पर आने वाले सत्संगी और दयालबाग के आस-पास के क्षेत्रों में रहने वाले सत्संगी अपनी सुविधानुसार अपने साथ जितनी ज्यादा मात्रा में निम्बोली दयालबाग ला सकते हैं लेकर आयें और डेयरी में एग्रोइकोलॉजी विभाग में जमा करवाने का कष्ट करें।


जनरल मैनेजर

एग्रोइकोलॉजी विभाग

राधास्वामी सत्संग सभा

नाम राधा स्व आ मी चित धरत

 *रा धा स्व आ मी!                                                                                                

 28-06-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                               

 नाम रा धा स्व आ मी चित धरता।

  प्रेम की बानी नित पढ़ता॥१॥                                      

चित्त से सतसँग नित करता।

 ध्यान गुरु दरशन में धरता॥२॥                                              

बचन गुरु समझ समझ गुनता।

 शब्द धुन उमँग उमँग सुनता॥३॥                                       

करम और भरम जले अगनी।

 हार कर बैठ रही ठगनी॥४॥                                                

छोड़ मग काल रहा ठाड़ा।

 करम का डाल दिया भाड़ा॥५॥                                                

नाम रा धा स्व आ मी हिये धारा।

 दूत घर पड़ गया अब धाड़ा॥६॥                                                

सुरत और शब्द लिया मत सार।

 धुनन सँग करता नित्त बिहार॥७॥                                       

सरन गुरु हिरदे धार लई।

सुरत मन निज कर शब्द गही॥८॥                                         

 चरन गुरु गुन गाऊँ दम दम।

 अमी रस पियत रहूँ हर दम॥९॥                                             

दया गुरु क्या महिमा कहना।

सरन गह नित्त मगन रहना।।१०।।                                   

 उमँग मन गुरु आरत गाता।

चरन रा धा स्व आ मी हिये ध्याता।।११।।  

  (प्रेमबानी-1-शब्द-113- पृ.सं.433,434)*

रा धा स्व आ मी, ( धुन )

 *🌹🌹

रा धा स्व आ मी,

 रा धा स्व आ मी,

रा धा स्व आ मी,

 रा धा स्व आ मी,

रा धा स्व आ मी,

रा धा स्व आ मी,

रा धा स्व आ मी,

 रा धा स्व आ मी

🌹🌹*

Sunday, June 26, 2022

रोजाना वाक्यतब

 🙏

      राधास्वामी


हम लोगों को आलसपन छोडने के लिए सख्त कोशिश करनी चाहिए, 

सतसंगी भाई बहन अपना बहुत सा समय फिजूल बातों में जाया करने के आदी है, 

हम लोगों को चाहिए कि जब कोई काम ना हो तो सुमिरन ध्यान या पोथी का पाठ किया करें, 

और अगर इन बातों के लिए मौका न हो तो  अपनी तन्दुरुस्ती के लिए सैर ही करने चले जाय, 

गरजेकि अपने मन को  किसी मुफीद काम में लगाये रखना मुनासिब है, 

फिजूल बातें करना या सुस्त पडे रहना या बाजारों में बेमतलब घुमना निहायत मायूव

(बुरी) आदतें है,, 


परम पूज्य हुज़ूर साहब जी महाराज

रोजाना वाकियात डायरी भाग 1 - 18-12-1930

🙏राधास्वामी

Friday, June 24, 2022

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- सत्संग के उपदेश

परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

 सत्संग के उपदेश- भाग -3-(18)


 अगर सत्संगी बढ़ कर सेवा करने का मौका हासिल करने की गरज से दुनिया में बड़ा दर्जा मिलने के लिए प्रार्थना व कोशिश करें तो निहायत जायज   व दुरुस्त है। लेकिन अगर इज्जत ,दौलत व हुकूमत का रस लेने की गरज से प्रार्थना व कोशिश करें तो नाजायज व नामुनासिब है।

जिस शख्स को सच्चे मालिक के दर्शन, सच्ची मुक्ती, और ऊँची से ऊँची रूहानी गति की प्राप्ति के लिए रास्ता मिल गया और जिसने इन बातों को अपनी जिंदगी का उद्देश्य करार दिया उसके लिए दुनिया का रुतबा, दौलत व हुकूमत क्या हैसियत रखते हैं ?

चूँकि हुजूर राधास्वामी दयाल ने स्वार्थ व प्रमार्थ दोनों के कमाने के लिए उपदेश फरमाया है इसलिए सत्संग में स्वार्थ के लिए गुँजाइश निकल आई है वर्ना स्वार्थ की क्या हकीकत कि सच्चे परमार्रथ से आँख मिला सके। इसलिए याद रखना चाहिए कि हरचंद सतसंगी को  स्वार्थ कमाने की इजाजत है लेकिन हर हालत में मुख्यता परमार्रथ ही की रहेगी।                            

🙏🏻 रा धा स्व आ मी🙏🏻


Thursday, June 23, 2022

शबरी का इंतज़ार / कृष्ण मोहन

 प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षि मतंग जब देवलोक जाने लगे, तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।*


शबरी की उम्र *दस वर्ष* थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी।


महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे। शबरी को समझाया *"पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे, तुम यहीं प्रतीक्षा करो।"*


अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा, उसने फिर पूछा- *कब आएंगे..?*


महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे। वे भूत भविष्य सब जानते थे, वे ब्रह्मर्षि थे। *महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए और शबरी को नमन किया।*


 *आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए।*  ये उलट कैसे हुआ। *गुरु यहां शिष्य को नमन करे, ये कैसे हुआ???*


महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका।

महर्षि मतंग बोले- 

*पुत्री अभी उनका जन्म नहीं हुआ।*

*अभी दशरथ जी का लग्न भी नहीं हुआ।*

*उनका कौशल्या से विवाह होगा।* फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी। 

*फिर दशरथ जी का विवाह सुमित्रा से होगा।* फिर प्रतीक्षा..


*फिर उनका विवाह कैकई से होगा।* फिर प्रतीक्षा.. 


फिर वो *जन्म* लेंगे, फिर उनका *विवाह माता जानकी से होगा।* फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा। *तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे।* तुम उन्हें कहना *आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये। उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये, आपका अभीष्ट सिद्ध होगा। और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे।*


शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई। *अबोध शबरी* इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नहीं पाई।


*वह फिर अधीर होकर* पूछने लगी- *"इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव???"*


महर्षि मतंग बोले- *"वे ईश्वर है, अवश्य ही आएंगे।* यह भावी निश्चित है। *लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते है। लेकिन आएंगे "अवश्य"...!*


जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे। *इसलिए प्रतीक्षा करना।* वे कभी भी आ सकते है। *तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे। शायद यही मेरे तप का फल है।"*


शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई। *उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी।* वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता है, वे कभी भी आ सकतें है। 


*हर रोज रास्ते में फूल बिछाती है और हर क्षण प्रतीक्षा करती।*


*कभी भी आ सकतें हैं।*

हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा। *शबरी बूढ़ी हो गई।* लेकिन प्रतीक्षा *उसी अबोध चित्त से करती रही।*


और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े। *शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया। आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी।*


*गुरु का कथन सत्य हुआ।* भगवान उसके घर आ गए। *शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नहीं खिलाया, उन्हीं राम ने शबरी का जूठा खाया।*


*ऐसे पतित पावन मर्यादा, पुरुषोत्तम, दीन हितकारी श्री राम जी की जय हो। जय हो। जय हो। एकटक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद वृद्धा भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे-*


*"कहो राम ! शबरी की कुटिया को ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ..?"*


राम मुस्कुराए- *"यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य..?"*


*"जानते हो राम! तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्मे भी नहीं थे, यह भी नहीं जानती थी कि तुम कौन हो ? कैसे दिखते हो ? क्यों आओगे मेरे पास ? बस इतना ज्ञात था कि कोई पुरुषोत्तम आएगा, जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा।*


राम ने कहा- *"तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था कि राम को शबरी के आश्रम में जाना है।”*


*"एक बात बताऊँ प्रभु ! भक्ति में दो प्रकार की शरणागति होती है। पहली ‘वानरी भाव’ और दूसरी ‘मार्जारी भाव’।*


*”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। दिन रात उसकी आराधना करता है...!” (वानरी भाव)*


पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया। *”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी, जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न, वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है। मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना...।" (मार्जारी भाव)*


राम मुस्कुराकर रह गए!!


भीलनी ने पुनः कहा- *"सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न... “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम, कहाँ घोर दक्षिण में मैं!" तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य, मैं वन की भीलनी।  यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते..?”*


राम गम्भीर हुए और कहा-


*भ्रम में न पड़ो मां! “राम क्या रावण का वध करने आया है..?”*


*रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से बाण चलाकर भी कर सकता है।*


*राम हजारों कोस चलकर इस गहन वन में आया है, तो केवल तुमसे मिलने आया है मां, ताकि “सहस्त्रों वर्षों के बाद भी, जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे, कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिलकर गढ़ा था।”* 


*"जब कोई भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़कर कहे कि नहीं! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ, एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है।"*


*राम वन में बस इसलिए आया है, ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाए, तो उसमें अंकित हो कि "शासन/प्रशासन और सत्ता" जब पैदल चलकर वन में रहने वाले समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे, तभी वह रामराज्य है।”*

(अंत्योदय)


*राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं। राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया है माँ!*


माता शबरी एकटक राम को निहारती रहीं।


राम ने फिर कहा-


*राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है, भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए।”*


*"राम राजमहल से निकला है, ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि एक माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है।”*


*"राम निकला है, ताकि “भारत विश्व को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है।”*


*"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को बता सके कि अन्याय और आतंक का अंत करना ही धर्म है।”*


*"राम आया है, ताकि “भारत विश्व को सदैव के लिए सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाए और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाए।”* 


और


*"राम आया है, ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी शबरी के आशीर्वाद से जीते जाते है।”*


शबरी की आँखों में जल भर आया था।

उसने बात बदलकर कहा-  *"बेर खाओगे राम..?”*


राम मुस्कुराए, *"बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां!"*


शबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर लेकर आई और राम के समक्ष रख दिये।


राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- 

"बेर मीठे हैं न प्रभु..?” 


*"यहाँ आकर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है।”*


सबरी मुस्कुराईं, बोली-   *"सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम!"*


*मर्यादा-पुरुषोत्तम भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन*

*जय श्री राम🙏🏼🙏🏼*🙏🌺🙏

Saturday, June 18, 2022

जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर।।*

 *आज का अमृत*

*कबीरा सोई पीर है, जो जाने पर पीर है।*

*जो पर पीर न जानही, सो का पीर में पीर।।*


एक पाँच छे. साल का मासूम सा बच्चा अपनी छोटी बहन को लेकर मंदिर के एक तरफ कोने में बैठा हाथ जोडकर भगवान से न जाने क्या मांग रहा था.

कपड़े में मेल लगा हुआ था मगर निहायत साफ, उसके नन्हे नन्हे से गाल आँसूओं से भीग चुके थे।

बहुत लोग उसकी तरफ आकर्षित थे और वह बिल्कुल अनजान अपने भगवान से बातों में लगा हुआ था।

जैसे ही वह उठा एक अजनबी ने बढ़ के उसका नन्हा सा हाथ पकड़ा और पूछा-

"क्या मांगा भगवान से"

उसने कहा-

"मेरे पापा मर गए हैं उनके लिए स्वर्ग,

मेरी माँ रोती रहती है उनके लिए सब्र,

मेरी बहन माँ से कपडे सामान मांगती है उसके लिए पैसे"।

"तुम स्कूल जाते हो"

 अजनबी का सवाल स्वाभाविक सा सवाल था।

"हां जाता हूं" उसने कहा।

"किस क्लास में पढ़ते हो ?" अजनबी ने पूछा

"नहीं अंकल पढ़ने नहीं जाता, मां चने बना देती है वह स्कूल के बच्चों को बेचता हूँ, बहुत सारे बच्चे मुझसे चने खरीदते हैं, हमारा यही काम धंधा है" बच्चे का एक एक शब्द मेरी रूह में उतर रहा था ।

"तुम्हारा कोई रिश्तेदार"

न चाहते हुए भी अजनबी बच्चे से पूछ बैठा।

"पता नहीं, माँ कहती है गरीब का कोई रिश्तेदार नहीं होता,

माँ झूठ नहीं बोलती,

पर अंकल,

मुझे लगता है मेरी माँ कभी कभी झूठ बोलती है,

जब हम खाना खाते हैं हमें देखती रहती है,

जब कहता हूँ 

माँ तुम भी खाओ, तो कहती है मेंने खा लिया था, उस समय लगता है झूठ बोलती है "

"बेटा अगर तुम्हारे घर का खर्च मिल जाय तो पढाई करोगे ?"

"बिल्कुलु नहीं"

"क्यों"

"पढ़ाई करने वाले गरीबों से नफरत करते हैं अंकल,

हमें किसी पढ़े हुए ने कभी नहीं पूछा - पास से गुजर जाते हैं"

अजनबी हैरान भी था और शर्मिंदा भी।

फिर उसने कहा

" हर दिन इसी इस मंदिर में आता हूँ, कभी किसी ने नहीं पूछा - यहा सब आने वाले मेरे पिताजी को जानते थे - मगर हमें कोई नहीं जानता 

"बच्चा जोर-जोर से रोने लगा" अंकल जब बाप मर जाता है तो सब अजनबी क्यों हो जाते हैं ?"

मेरे पास इसका कोई जवाब नही था और ना ही मेरे पास बच्चे के सवाल का जवाब है।

ऐसे कितने मासूम होंगे जो हसरतों से घायल हैं

बस एक कोशिश कीजिये और अपने आसपास ऐसे ज़रूरतमंद यतिमो, बेसहाराओ को ढूंढिये और उनकी मदद किजिए......................... मंदिर मे सीमेंट या अन्न की बोरी देने से पहले अपने आस - पास किसी गरीब को देख लेना शायद उसको आटे की बोरी की ज्यादा जरुरत हो।


कुछ समय के लिए एक गरीब बेसहारा कि आँख मे आँख डालकर देखे आपको क्या महशूस होता है 

 

स्वयं में व समाज में बदलाव लाने के प्रयास जारी रखें।

*

Thursday, June 16, 2022

10 जुलाई क़ो भंडारा मनाने क़ो लेकर दिशा निर्देश

 परम गुरु हुज़ूर डॉ. एम.बी. लाल साहब का भण्डारा मनाए जाने के संबंध में परामर्श -


            

परम गुरु हुज़ूर डॉ. एम.बी. लाल साहब का भंडारा भारत व विदेशों की विभिन्न ब्रांचों में रविवार, 10 जुलाई, 2022 को दोपहर बाद के सत्र में खेतों में (सुपरवाइज़्ड वीडियो ट्रांस्मिशन के साथ) मनाया जाएगा। दयालबाग़ में भंडारा सप्ताह 08.07.2022 से 12.07.2022 तक मनाया जाएगा।

            

अनुमति प्राप्त क्षेत्रों के सभी सतसंगी तथा रजिस्टर्ड जिज्ञासु (बायोमेट्रिक तथा UID के साथ) जो शारीरिक रूप से स्वस्थ तथा खाँसी, ज़ुकाम व बुख़ार के लक्षणों से रहित हैं तथा मार्डन मेडिसन के रजिस्टर्ड डॉक्टर तथा/ या आयुष (रजिस्ट्रेशन नम्बर के साथ) द्वारा प्रमाणित हैं और इसके अतिरिक्त सरन आश्रम हॉस्पिटल द्वारा जिनकी जाँच कर ली गई है, वे 10 जुलाई, 2022 के भंडारे के अवसर पर दयालबाग़ में सेवा के लिए आ सकते हैं। खाँसी, ज़ुकाम व बुख़ार के लक्षण वाले लोग दयालबाग़ में बिल्कुल नहीं आएंगे। (जैसा कि सभा द्वारा जारी किए गए पत्र दिनांक 18.04.2022 में परामर्श दिया गया है कि यदि कोई भी इन लक्षणों से पीड़ित पाया गया तो उसे तत्काल वापस भेज दिया जाएगा तथा उस ब्रांच विशेष के सभी सतसंगियों को अग्रिम आदेशों तक दयालबाग़ आने से वंचित कर दिया जाएगा)।

            

यात्रा से पूर्व, यात्रा के दौरान तथा यात्रा के बाद वे सभी सावधानियों जैसे- मास्क, व हैलमेट का प्रयोग तथा हाथों की सफ़ाई व सामाजिक दूरी के मानकों का पालन करेंगे। वे अपना बायोमेट्रिक पहचान कार्ड अवश्य लेकर आएँ अन्यथा उन्हें दयालबाग़ में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी।       


इस अवसर पर दयालबाग़ उत्पादों की प्रदर्शनी दयालबाग़ में आयोजित नहीं की जाएगी।


11.07.2022 Offering of Bhent / online Bhent by Initiated Satsangis of permitted Zone


12.07.2022 Zonal Satsang


रा धा स्व आ मी


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Wednesday, June 15, 2022

मन की मत मान के पछताओगे l

 राधास्वामी!                                            15-06-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                               

मन की मत मान के पछताओगे ।

नज़रे मेहर से गिर जाओगे।।१॥                                      

भूलो मत दुनिया में रहना हुशियार ।

काल के द्वारे पै टकराओगे॥२॥                                     

करनी का अपने क्या दोगे जवाब।

धर्म के सामने चकराओगे॥३॥।                                    

पकड़ो सतगुरु के चरन जल्दी से ।

 रक्षा हो जावेगी जो उनकी सरन आओगे।।४।।                                                                             

जो न मानोगे बचन काल करेगा सख्ती ।

देख जमदूतों को घबराओगे॥५॥  

                  

सख़्त दुख भोगोगे चौरासी में।

 दामन अपना जो कहीं माया को पकड़ाओगे।।६।।                                                                           राधास्वामी का सुमिर नाम हिये से अपने ।

 छिन में सब दुक्खों से बच जाओगे॥७।।

(प्रेमबानी-4-ग़ज़ल-11- पृ.सं.12,13)


बच्चों को एक उत्तम सतसंगी बनाने की जिम्मेदारी माता पिता की है, 🙏

 राधा स्व आमी

🙏🙏🙏🙏🙏


बच्चों को एक उत्तम सतसंगी बनाने की जिम्मेदारी माता पिता की है, 🙏


इसका एक उदाहरण 

        🙏


यह कोई कहानी नही है किस्सा नहीं है एक सच्चाई है, एक हकीकत है, जो मै आप सभी को बता रहा हूँ, 


परम पूज्य हुज़ूर मेहता जी महाराज के समय में एक आदमी अपनी ससुराल में जाता था, उसकी ससुराल में सतसंग होता था, वह आदमी सतसंग में बैठा और सतसंग से प्रभावित हुआ, 

उसने अपने गाँव में आकर अपने मिलने बाले और परिवार बालों से सतसंग करने के लिए, सतसंग में बैठने के लिए कहा समझाया, 

और इस तरह से उसके घर पर सतसंग होने लगा, 

उसके बराबर वाले गाँव के कुछ लोग भी वहाँ जाने लगे, 

और कुछ दिन बाद हुज़ूर राधास्वामी दयाल की दया से वहाँ  ब्रांच बन गई और जिन्होंने सतसंग शुरू कराया था उन्ही को ब्रांच सेक्रेटरी बनाया गया, 

कुछ दिन ठीक तरह से काम करने के बाद उनका रवैया बदल गया, 

वह ब्रांच का कोई काम ठीक से नहीं करते थे, 

सभा से बार बार पत्र आने पर भी उन पर कोई असर नहीं होता था, 

और उस बराबर बाले गाँव में सतसंगी अधिक होने के कारण वहाँ ब्रांच बना दी गई, 

और पहली वाली को तोड कर उसमें मिला दिया गया, 

तो पहली बाली जो ब्रांच थी और ब्रांच सेक्रेटरी थे ना उनके बच्चे सतसंग में आये आजतक और ना ही परिवार के लोग आये, 

कारण कि, बच्चों को कभी समझाया ही नहीं गया, और वह ब्रांच सेक्रेटरी साहब दुनिया से चले गये, 

अब जो बराबर वाले गाँव में ब्रांच बनी तो वहाँ सभी लोग सतसंग में आने लगे, 

गांव तो छोटा सा था मगर सभी पति पत्नी सतसंग करते थे ब्रांच बहुत अच्छी चली, 

हुज़ूर डा. लाल साहब जी के आगमन की बात चली किसी करण बस हुज़ूर का आगमन नहीं हुआ, 

फिर मालिक की दया हुई सतसंग घर बन गया, महिला ऐसोसिएशन बन गई ई० सतसंग शुरू हुआ और फिर मालिक की दया हुई हुज़ूर सतसंगी साहब जी का आगमन हुआ, 

मगर आज वह ब्रांच ठप्प है, वहाँ पांच सतसंगी सतसंग करने के लिए  नहीं है, 

अब सवाल होता है कि ऐसा क्यो, 

तो सुनो उस ब्रांच में जो सतसंगी भाई बहन थे उन्होंने कभी अपने बच्चों को सतसंग में जाने के लिए सतसंग के किसी भी प्रोग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया, 

न अपने बच्चों को कभी सतसंग की A B C D समझाई 


सतसंग में आने के क्या लाभ है न आने के क्या नुकसान है.

कभी अपने बच्चों को नहीं बताया, ना कभी बच्चों को सतसंग में लेकर आये, 

और ना ही बच्चे सतसंग में कभी आये, 

अपने बेटी बेटा की शादियां गैर सतसंगी परिवार में कर दी गई, 

और सभी के बच्चे सतसंग से बहुत दूर चले गये, 

पूजा पाठ करने लगे, 

और जिन्होंने सतसंग शुरू किया ब्रांच बनाई वह बुजुर्ग हो गये और दुनिया छोड़ कर चले गये, 

🙏अब जरा सोचो उन्होंने अपने बच्चों के साथ क्या कीया न्याय किया अन्याय किया, 

अगर हमसे कोई पूछे कि आप राधास्वामी मत मे है तो इस मत की क्या विशेषता है, 

हम हजारों गिना देगें, 

यह मत काल के जाल से निकाल देता है, 

चोरासी के चक्र से निकाल देता है, 

फिर कोई कहे कि आप तो काल के जाल से निकल गये, 

और आपने अपने बच्चों को काल के जाल में डाल दिया तो आप बच्चों के माता पिता है या दुश्मन

फिर हमारे पास क्या जबाब है जरा सोचो, 


🙏इसलिए सभी से निवेदन है कि अपने बच्चों को सतसंग में आने के लिए सतसंग के सभी प्रोग्राम में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें, 🙏

हुज़ूर डा. लाल साहब जी ने फरमाया है कि छोटे बच्चों का दिल और दिमाग कोरी सिलेट की तरह होता है जो लकीर आप खींच दोगे वही खिच जायेगी, 

बड़े होने पर वह आपकी बात नहीं मानेंगे, 🙏


🙏सभी को 

राधास्वामी

आप सभी का

जी०एस०पाठक

Monday, June 13, 2022

जगत में खोज किया बहु भांति

 राधास्वामी!                                       

  13-06-22

आज शाम सतसंग में पढ़ा जिने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                          


 जगत में खोज किया बहु भाँति ।

 न पाई मैंने घट में शांति॥१॥                                            

  ग़ौर कर देखा जग का हाल ।

 फँसे सब करम भरम के जाल॥२॥                                     

फैल रहे जग में मते अनेक ।

धार रहे थोथे इष्ट की टेक॥३॥                                           

  भेद कोइ घर का नहिं जाने ।

भरम बस सीख नहीं माने॥४॥                                          

 मान में खप रहे पंडित भेष ।

 करम में बँध रहे मुल्ला शेख़॥५॥                                        

भाग मेरा जागा अजब निदान।

  मिला मैं राधास्वामी संगत आन॥६॥                                                                                         सुनी मैं महिमा अचरज बोल।

करी मैं राधास्वामी मत की तोल॥७॥                                      

भरम और संशय उठ भागे ।

बिरह अनुराग हिये जागे।।८।।                                              

  पता निज मालिक का पाया ।

भेद निज घर का दरसाया॥९॥                                          

 समझ मेन आई भक्ती ।

 शब्द की धारी मन परतीत॥१०॥                                          

सुरत का पाया अजब लखाव ।

 सिफ़त सुन गुरु की बाढ़ा भाव॥११॥                                                                                                

कहूँ क्या महिमा सतसँग सार ।

भरम और संशय दीने टार॥१२॥                                         

 प्रीति नित बढ़ती गुरु चरना ।

धार लई मन में गुरु सरना।।१३।।                                          

समझ मैं मन में अस धारी ।

संत बिन जाय न कोइ पारी॥१४॥                                       

बिना उन सरन न उतरे पार ।

 शब्द बिन होय न कभी उधार॥१५॥                                    

सराहूँ छिन छिन भाग अपना।

मिला मोहि सुरत शब्द गहना॥१६॥                                     

 हुआ मेरे हिरदे में उजियार ।

दया राधास्वामी कीन्ह अपार॥१७॥                                  

पकड़ धुन चढ़ता नभ की ओर ।

जोति लख सुनता अनहद घोर॥१८॥                                                                                            सुन्न धुन सुन कर चढ़ी आगे ।

गुफा में जहाँ सोहँग जागे॥१९॥                                  

सत्तपुर दरश पुरुष कीन्हा ।

परे तिस अलख अगम चीन्हा॥२०॥                                                                                                     

वहाँ से लखिया राधास्वामी धाम ।

 मिला अब निज घर किया विस्राम॥२१॥

 (प्रेमबानी-1-शब्द-106- पृ.सं.420,421,422)


Sunday, June 12, 2022

न जग में चैन और न स्वर्ग सुख है

 राधास्वामी!                                             

 13-06-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                                 

 न जग में चैन और न स्वर्ग सुख हैं 

 न ब्रह्म पद में अमर अनंदा ||

जहाँ तलक हैगा माया घेरा।

वहाँ तलक हैगा जम का फंदा॥१॥                                                                                      

पड़े भटकते हैं जग में सारे ।

पदारथ और इंद्रियों के मारे ।

 वहाँ से अब उनको कौन उबारे ।

 हुआ है अति करके जीव गंदा॥२॥                                                                                        पुरानी टेकों में अटक रहे हैं ।

 करम धरम में भटक रहे हैं ।

 सुरत शब्द की जुगत न मानें ।

 हुआ है सारा ही जगत अंधा॥३॥                                                                                

मिलें न जब लग गुरू पियारे ।

 छूटे न मन के बिकार भारे ॥

न सुर्त चीन्हे न शब्द सम्हारे ।

रहे है बंधन में जीव बंधा॥४॥                                                                                        

  बिरह जगा गुरु चरन में धाओ ।

 कर उनका सतसंग घर के भाओं॥

 उलट के धुन में सुरत लगाओ ।

पिंड का चढ़के नाका खंड़ा।।५।।                                                                    

गुरू मेहर से सुरत चढ़ावे।

 सुन्न की धुन अजब सुनावें।।

करम का लेखा तेरा चुकावें ।

 लखावें निज घट की तोहि संधा॥६॥                                                                        

वहाँ से भी फिर अधर चढ़ावें ।

अलख अगम सत की धुन सुनावें॥

 पियारे राधास्वामीसे मिलावें ।

दिलावें भक्ती का तुझको झंडा॥७॥

 (प्रेमबानी-4-ग़ज़ल-9-पृ.सं.10,11)


निर्देश - आदेश - चेतावनी

 Important Announcement at Dayalbagh  : - 12/06/2022


See that your mask is well fitted so that your nose and mouth should be covered.

The helmet should be fitted in such a way that the forehead should be clear, those who do not follow this instruction will be separated from the satsang for one month.

 

🙏🏻 Radhasoami 🙏🏻



12 जून, 2022 शाम  हुई  अनाउंसमेंट


आपका  मास्क  अच्छे  से  लगा  होना  चाहिए  ताकि  उससे  आपका  मुंह  व  नाक  अच्छे  से   ढका  हो।


हेलमेट  ऐसे  लगा  होना  चाहिए, जिससे  आपका  माथा  क्लियर  रहे,  जो  लोग  इस  इंस्ट्रक्शन  का  पालन  नहीं  करेंगे,  उन्हें  सतसंग  से  एक  महीने  के  लिए  अलग  कर  दिया  जायेगा।


रा धा स्व आ मी

परम् गुरु हुज़ूर मेहता जी महाराज का नवविवाहितों को सतपरामर्श🌹🙏

 🙏राधास्वामी🙏

         🙏

नवविवाहितों को सतपरामर्श🌹🙏


परम पूज्य हुज़ूर मेहताजी महाराज

🙏🌹🙏🌹

🙏


आप लोगो का रिश्ता पुरुष और स्त्री का हो गया, 

आप साहिबान को चाहिए कि अभी से ऐसी कार्यवाही करे जिससे आपकी जिंदगी खुशगवार और  आरामदेह हो जाय,, 

🙏

आप याद रखिये कि आपकी शादी सतसंग के अंदर हुई है, 

इसलिए आपका मुख्य 

कर्तव्य यह होना चाहिए कि आप हुज़ूर राधास्वामी दयाल को याद रखें, 

और उनको हाज़िर नाजिर जानकर सतसंग की सेवा करें, 

और सतसंग का धर्म पालन करें

और कभी इस बात को न भुलें


🙏


सतसंग के सिलसिले में यह याद रखना चाहिए कि एक दूसरे को सतसंग की सेवा करने से न रोकें, 

जहाँ तक हो सकें इस मामलें में एक दूसरे की मदद करें, 

आप साहवान एक बार स्वार्थी बातों में मत भेद रख सकते हैं, 

लेकिन परमार्थ में एक दूसरे से अलहदा ना हो, 

एक दूसरे के परमार्थी कामों में कभी रुकावट ना डाले, 

और सतसंग व सेवा में शरीक रहे,


🙏


आप लोगो को मेल और सहयोग से जीवन बिताना चाहिए, 

प्रेम व मुहब्बत से हमेशा रहे, 

एक दूसरे के साथ सहानुभूति रखें, 

स्वार्थी काम एक दूसरे के लाभ को ध्यान में रख कर करें, 

और जो कर्तव्य एक दूसरे के हो उनका पालन करें, 

🙏


आप लोग जिंदगी में संयम का जीवन जिए

आपस में लडाई झगड़ा नहीं करना चाहिए, 

सहनशीलता से काम लेना चाहिए, 

हर समय कुल मालिक को याद रखें, 

और बाहर की लड़ाई न करते हुए नाम के स्मरण के जोर से  अंतर में मन से लडाई करते रहे, 

यानि संयम से जीवन ब्यतीत करें, 

🙏

बीमारी और तकलीफ में एक दूसरे की मदद करें, 

🙏

अगर कोई खुशी का मौका पेश आवे तो ऐसी दिशा में उसमें बह नहीं जाना चाहिए, 

और अगर रंज या तकलीफ पेश आवे तो हौसला और हिम्मत को हाथ से न जाने देना चाहिए, 

दुख और मुसीबत के समय में पहले हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना कीजिए कि वह दयाल  मुसीबत को दूर करें

और इसके बाद एक दूसरे से परामर्श कीजिए, 

और फिर अपने निणऺय के अनुसार अपनी दिक्कत हल करने का प्रयास कीजिए, 

🙏

वक्त और आमदनी का  ख्याल रखते हुए आपको अपने खर्च में कमी बेशी करनी चाहिए, 

और चादर को देख कर पैर फैलाना चाहिए, 

🙏🙏

हर वर वधू को अपने माँ बाप का उसी तरह आज्ञाकारी रहना चाहिए, जैसे शादी से पहले रहते थे, 

उनको यह कहने का मौका ना मिले कि शादी करने और बहू के घर में आने के बाद लडका उनके हाथ से निकल गया, 

🙏

शादी के बाद अगर कुछ सहनशीलता से काम लीया जाय तो जो झगड़े सास बहू के सुनने में आते है वह कभी न हो, 

🙏

बहू का ससुराल जाने पर ऐसा अंग हो, 

और वह यह ख्याल करें कि मुझको कोई ढंग व शउर नहीं आता, 

मै हर तरह से आजिज और गरीब हूँ, 

आप लोग जो कुछ मुझे सिखाना चाहे सिखायें, मैं सीखने को तैयार हूँ, 

तो ससुराल के लोग कितने ही सख्त मिजाज क्यो न हो 

फिर भी दोनों खरीकों में कोई खीचातानी और अनबन नहीं हो सकती है

इसलिए हर बहू को यह अंग लेकर ससुराल जाना चाहिए, 

🙏

आप यह जानते हैं कि शादी जिंदगी में एक दफा होती है, 

इसलिए ऐसे अच्छे मौके पर आज कोई ऐसी नेक प्रतिज्ञा अपने दिल में कायम कीजिए, जिसमें आपकी भलाई की आशा हो, 

जो प्रण आज अपने दिल में कायम करें 

आप उसे हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में पेश कीजिए 

और उनसे उसमें  कामयाबी के साथ चलने की ताकत मांगिये, 

आपको उनकी तरफ से ताकत जरूर मिलेगी

🙏

आप साहवान की तमाम जिंदगी आराम से गुजरेगी 

आप सब फुले फलेगें 

और आपकी औलाद भी खूबसूरत तन्दरुस्त और मालिक की भक्त होगी, 

और खुब  प्रसन्न रहेगी, 

और संगत भी इससे फायदा उठावेगी और सेवा के इनाम में आपको हुज़ूर राधास्वामी दयाल की दया व प्रशन्नता प्राप्त होगी 🙏🙏

🙏🙏

परम पूज्य हुज़ूर मेहताजी महाराज के बचन न ० 7-11-5०-99 और 137 के चुने अंश

🙏🙏

सभी से निवेदन है कि हुज़ूर के इन बचनों का पालन करके राधास्वामी संगत को सुंदर बनायें

ताकि अन्य लोग हमारे प्यार मुहब्बत से रहने के तरीके को देख कर हायल कायल हो जाय और कहने लगे कि यह जो संगत है बहुत ही सुंदर व सभ्य संगत है🙏

और पूरी आशा और विश्वास है कि हुज़ूर के इस बताये रास्ते पर चल कर किसी सतसंगी परिवार में किसी प्रकार का झगड़ा नहीं होगा 

और न कोई तलाक की बात होगी 

और गैर सतसंगी समाज में हम सतसंगी  लोग अपने सतसंग का असर डालने में कामयाब होगें, 

🙏

और इसकी हाड कापी किसी सतसंगी भाई बहन व बच्चों को चाहिए तो मुझे कौल करें

🙏

जी०एस०पाठक

Saturday, June 11, 2022

आज आनंद मौज से चहुँ दिस छाई ।

 राधास्वामी!                                           09-06-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                             

आज आनंद मौज से चहुँ दिस छाई ।

 राधास्वामी की रहे सब मिल महिमा गाई ॥ १ ॥                                                                             

मेहर से गुरु के मिला ऐसा सुहावन संजोग ।

 खुश हुए देख के यह ओसर सज्जन भाई ॥ २ ॥                                                                शादियाने  के लगे बाजे चहुँ  दिस बजने।

राग और रागनी सुर संग उमँग कर गाई।। ३ ।।                                                                      

 हर तरफ़ नारे खुशी के लगे करने गुंजार।

अर्श ने गरज गरज बूंद अमी सरसाई ॥ ४ ॥                                                                             उमँग उमँग हर कोई देया है मुबारकबादी । राधास्वामी रहें निज मेहर से नित प्रति सहाई ॥ ५

 ॥ (प्रेमबानी-4-ग़ज़ल-5-पृ.सं.6,7)


गुरु के सनमुख आन खड़ा., पिरेमी प्यारा उमंग भरा

 *राधास्वामी!                                            11-06-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                              

गुरू के सन्मुख आन खड़ा ।

पिरेमी प्यारा उमँग भरा।।१।।                                            

 खेलता गुरु आगे कर प्यार ।

 रूप गुरु धरता हिये मँझार॥२॥                                            

गावता राधास्वामी नाम सम्हार।

 धावता सेवा को हर बार॥३॥                                            

 सरन गुरु हित कर धार लई ।

 चरन राधास्वामी जकड़ गही॥४॥                                       

 संग गुरु चाहत चित से नित्त ।

भक्ति गुरु धारत हिये कर हित्त॥५॥                                                                                                  

 दरश गुरु करता दृष्टी जोड़ ।

 शब्द धुन सुनता घट में घोर॥६॥                                                

प्रेम अँग आरत गुरु गाता ।

 चरन राधास्वामी हिये ध्याता॥७॥


 (प्रेमबानी-1-शब्द-104- पृ.सं.418)*


Thursday, June 9, 2022

और आस्था ने बचा ली एक जिंदगी

अविश्वासनीय मगर सत्य घटना


प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


दोस्तो 1985-86 मे समुन्द्र किनारे रामायण सीरियल की शूटिंग चल रही थी... राम की भूमिका निभाने वाले अरुण गोविल एक शिला पर बैठे थे!


समुन्द्र के पास ही छोटा सा गाँव था उस गांव के लोग भी कभी-कभी रामायण की शूटिंग देखने आ जाते थे!


 एक दिन उसी गांव में एक बच्चे को सर्प ने डस लिया


बच्चा एकदम बेहोश हो गया, मुँह से सफेद झाग आने लगे! जैसे ही उसकी माँ को पता चला वो बच्चे को अपनी गोदी मे उठाकर वहाँ दौड़ी जहाँ रामायण की शूटिंग चल रही थी!


    सभी रामायण की शूटिंग मे व्यस्त थे...


 महिला रोते-रोते एकदम वहाँ पहुँची जहाँ रामजी ( अरुण गोविल ) बैठे हुये थे! महिला ने बच्चे को राम जी के चरणों में पटक दिया! और जोर जोर से रोने लगी , राम जी मेरे बच्चे को बजाओ....


   आप भगवान हो मेरे बच्चे को बचाओ 🙏


कुछ समय के लिये शूटिंग रोक दी गईं.. सभी शूटिंग करने वाले हैरान होकर महिला की तरफ देख रहे थे!


 जब महिला राम जी के सामने जोर जोर से रोने लगी तब रामजी (अरुण गोविल ) एकदम खड़े हो गये! और बच्चे को देख उसके सर पर अपना हाथ फेरने लगे!


 और जैसे ही राम जी ने बच्चे के सर पर अपना हाथ फेरा बच्चे को होश आने लगा! बच्चा आँखे खोलने लगा! महिला के साथ आए लोग देखकर दंग रह गये! जय श्री राम के नारे लगने लगे!


        बच्चा खड़ा हो गया.....


महिला का ईश्वर के प्रति भाव देखो एक अभिनेता के अंदर प्रभु की शक्ति पैदा हो गई  🙏


बोलिये - सियावर रामचंद्र जी की जय

  जय जय श्री राम 🚩🚩

चरन गुरु हिये में भक्ति जगाय ।

 राधास्वामी!                                          

0906-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                             

चरन गुरु हिये में भक्ति जगाय ।

 शब्द गुरु सन्मुख आई धाय॥१॥                                                                                                  उठी धुन घट में घोरमघोर ।

घटा अब काल करम का ज़ोर॥२॥                                             

काम और लोभ रहे मुरझाय ।

अहँग और क्रोध रहे शरमाय॥३॥                                         

दया गुरु हुआ काल बल छीन ।

 थाक रहे माया और गुन तीन॥४॥                                  

दीनता अब नित बढ़ती जाय ।

 मान और मोह नहीं ठहराय॥५॥                                             

 ईरखा चित से डार दई ।

 ममत और माया बिसर गई॥६॥                                                    

प्रेम गुरु हिरदे बढ़ता सार ।

 सरन दृढ़ करता तन मन वार॥७॥                                            *●

                  

सुरत धुन संग अमी रस लेत ।

 मेहर गुरु दाता छिन छिन देत॥८॥                                   

सुनत रही घंटा संख पुकार ।

 गगन में होती गरज अपार।।९॥                                               

सुन्न में डारी सारँग धूम ।

भंवर धुन मुरली सुन सुन झूम॥१०॥                                     

अमरपुर सूरत हो गई सार ।

किया फिर अलख अगम से प्यार॥११॥                                    

परे चढ़ दरशन राधास्वामी पाय ।

 भाग जुग जुग के लीन जगाय॥१२॥                                                                 

आरती अद्भुत लीनी साज ।

किया राधास्वामी पूरन काज॥१३॥                                        

 रहा मैं जग में नीच नकार ।

 मेहर से राधास्वामी कीन उधार॥१४॥                                     

  प्रेम अँग सेव करूँ दिन रात ।

दई राधास्वामी अचरज दात॥१५॥                                                                                                   

नित्त गुरु महिमा गाय रहूँ।

चरन राधास्वामी ध्याय रहूँ॥१६॥

(प्रेमबानी-1-शब्द-102- पृ.सं.415,416,417)*


Tuesday, June 7, 2022

दवाई की शीशी / कृष्ण mehtav

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प्रस्तुति - दीपक कुमार सिन्हा



* 👉 राजस्थान में भगवान श्री कृष्ण के एक दयालु भक्त थे, नाम था रमेश चंद्र। उनकी दवाइयों की दुकान थी। उनकी दुकान में भगवान श्री कृष्ण की एक छोटी सी तस्वीर एक कोने में लगी थी। वे जब दुकान खोलते, साफ सफाई के उपरांत हाथ धोकर नित्य भगवान की तस्वीर को साफ करते और बड़ी श्रद्धा से धूप इत्यादि दिखाते। उनका एक पुत्र भी था राकेश, जो अपनी पढ़ाई पूरी करके उनके ही साथ दुकान पर बैठा करता था। वह भी अपने पिता को ये सब करते हुए देखता, चूँकि वह नए ज़माने का पढ़ा लिखा नव युवक था, लिहाजा अपने पिता को समझाता, भगवान वगैरह कुछ नहीं होते, सब मन का वहम है।

शास्त्र कहते हैं कि सूर्य अपने रथ पर ब्रह्मांड का चक्कर लगाता है जबकि विज्ञान ने सिद्ध कर दिया कि पृथ्वी सूर्य का चक्कर लगाती है, इस तरह से रोज विज्ञान के नए नए उदाहरण देता यह बताने के लिए कि ईश्वर नहीं हैं !


पिता उस को स्नेह भरी दृष्टि से देखते और मुस्कुरा कर रह जाते। वो इस विषय पर तर्क वितर्क नही करना चाहते थे।


समय बीतता गया पिता बूढ़े हो गए थे। शायद वे जान गए थे कि अब उनका अंत समय निकट ही आ गया है...


अतः एक दिन अपने बेटे से कहा, "बेटा तुम ईश्वर को मानो या मत मानो, मेरे लिए ये ही बहुत है कि तुम एक मेहनती, दयालु और सच्चे इंसान हो "  

"क्या तुम मेरा एक कहना मानोगे ?" 

बेटे ने कहा, "कहिये ना पिताजी, जरुर मानूँगा।"


पिता ने कहा, "बेटा मेरे जाने के बाद एक तो तुम दुकान में रोज भगवान की इस तस्वीर को साफ करना और दूसरा यदि कभी किसी परेशानी में फँस जाओ तो हाथ जोड़कर श्रीकृष्ण से अपनी समस्या कह देना। बस मेरा इतना कहना  मान लेना।"

बेटे ने स्वीकृति दे दी।

कुछ ही दिनों के बाद पिता का देहांत हो गया, समय गुजरता रहा...


एक दिन बहुत तेज बारिश पड़ रही थी। राकेश दुकान में दिनभर बैठा रहा और ग्राहकी भी कम हुई। ऊपर से बिजली भी बहुत परेशान कर रही थी। तभी अचानक एक लड़का भीगता हुआ तेजी से आया और बोला, "भईया ये दवाई चाहिए। मेरी माँ बहुत बीमार है। डॉक्टर ने कहा ये दवा तुरंत ही चार चम्मच यदि पिला दी जाये तो ही माँ बच पायेगी, क्या ये दवाई आपके पास है ?"


राकेश ने पर्चा देखकर तुरंत कहा, "हाँ ये है।" लड़का बहुत खुश हुआ...और कुछ ही समय के लेन देन के उपरांत दवा लेकर चला गया। परन्तु ये क्यालड़के के जाने के थोड़ी ही देर बाद राकेश ने जैसे ही काउंटर पर निगाह मारी तो...पसीने के मारे बुरा हाल था क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही एक ग्राहक चूहे मारने की दवाई की शीशी वापस करके गया था राकेश ने शीशी काउंटर पर ही रखी रहने दी कि लाईट आने पर वापस सही जगह पर रख देगा। पर जो लड़का दवाई लेने आया था, वह अपनी शीशी की जगह चूहे मारने की दवाई ले गया और लड़का पढ़ा लिखा भी नहीं था !


"हे भगवान !" अनायास ही राकेश के मुँह से निकला, "ये तो अनर्थ हो गया !" तभी उसे अपने पिता की बात याद आई और वह तुरंत हाथ जोड़कर भगवान कृष्ण की तस्वीर के आगे दुःखी मन से  प्रार्थना करने लगा कि, "हे प्रभु ! पिताजी कहते थे कि आप है।आप सचमुच है तो आज ये अनहोनी होने से बचा लो। एक माँ को उसके बेटे द्वारा जहर मत पीने दो, प्रभु मत पीने दो !"


"भईया ! पीछे से आवाज आई.. कीचड़ की वजह से मैं फिसल गया, दवा की शीशी भी फूट गई ! कृपया आप एक दूसरी शीशी दे दीजिये..।"  भगवान की मनमोहक मुस्कान से भरी तस्वीर को देखकर राकेश की आँखों से झर झर आँसू बह निकले !

उसके भीतर एक विश्वास जाग गया था कि कोई है जो सृष्टि चला रहा है, जिसे कोई खुदा कहता है, तो कोई परमात्मा!


प्रेम और भक्ति से भरे हृदय से की गई प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती।

*🚩💐🚩🙏॥भगवान श्रीकृष्ण से आपकी सपरिवार स्वस्थ और तनावमुक्त सहित कुशलता की कामना करता हूं ॥🙏🚩

Monday, June 6, 2022

🙏🏿 खामोश. 🙏🏿आत्मलीन 🙏🏿

 "मैं चुप  :  सौ सुख" 

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मैं मन हूँ|


मैं निरंतर बोलता हूँ मुझे सुख चाहिए, मुझे सुख चाहिए|सुख मिलता नहीं क्यों कि मैं "दूसरों" को भी उत्पन्न करता हूँ|दूसरे हैं तो सुख कहां? सुख तो भ्रम है|

क्या मैं चुप नहीं हो सकता? 

मैं चुप होता हूं तो दूसरे नहीं होते|मैं बोलता हूं या सोचता हूं तो ही दूसरे होते हैं अन्यथा नहीं|दुख को, व्यथा को वास्तविक की तरह, मजबूरी की तरह माना जाता है लेकिन सच क्या है? 

'व्यथा की सत्ता, मन से परे नहीं है|'

मन मौन है नहीं|

मन मौन हो तो कुछ नया घटे|

"मन को मौन रखो और तुम आविष्कार कर लोगे|"

इसके लिए यही ध्यान रखना है कि मैं मन हूं और मुझे मौन रहना है|बोलने का मतलब दुख, मौन रहने का मतलब सुख|

सौ सुख भी तथा सौ जने सुखी भी अर्थात जो भी हमारे संपर्क में हों वे सब सुखी|

यह भी कहा जा सकता है-

"मैं चुप:सौ चुप|"

कोशिश मुझे ही करनी होगी|जो भी व्यक्ति मेरे मानसपटल पर आता है मैं उसे चुप देखूँ|ऐसा भाव करूं कि वह चुप है कुछ भी नहीं बोल रहा|वह कुछ नहीं बोल रहा तो उसके मन में भी कुछ नहीं चल रहा|उसे मौन देखना उसके मन को भी मौन कर देना है|बाहर भीतर कुछ नहीं|

क्या इससे यह पता नहीं चलता कि ये सब अपने मन का खेल है? 

मन का ही खेल है क्योंकि मन मौन नहीं है|निरंतर सोचे चला जा रहा है, सतत अपने प्रलाप में व्यस्त है|

उसके चक्कर में आगये हैं हम|मन के साथ हम भी मन हो गये हैं|उसके साथ बहना रहा|वह वहाँ हम वहाँ, उसकी जल्दी हमारी जल्दी|उसे जल्दी पहुंचना है तो हमें घिसटना है|

जैसे हम कुछ नहीं|

वहाँ क्यों क्यों कि कोई है लेकिन अब हम जो भी हो उसे मौन देख रहे हैं|हम भी मौन हैं|

बोलने में सब अलग अलग हैं मैं मेरा तू तेरा करके|'मैं अरु मोर तोर तें माया|जे हीं कीन्हें बस जीव निकाया||'सब को अपने वश में कर रखा है माया ने|

मौन में सब एक हैं|

 सघन मौन में माया का जोर नहीं चलता|शब्दों से विभाजन का भ्रम फैलाने वाली माया विलीन हो जाती है स्रोत में|

हमें ही मौन रहना पडे इसके लिए हम अपने भीतर मौजूद हर मानसिक व्यक्ति को मौन अनुभव करें|

"ध्यान भीतरी एकांत ही तो है|"

जो भी व्यक्ति हमारे ध्यान में है वह कुछ भी नहीं बोल रहा, वह चुप है|हम भी चुप हैं ही|

"मन की मृत्यु, प्रज्ञा का जन्म है|"

गहरी समझ अपना कार्य करने लगती है|अभी तो स्वार्थ वश सारी ऊर्जा इसीमें लगी है कि कौन हमारे बारे में क्या सोचता है, क्या कहता है, हमारे अनुकूल है या प्रतिकूल, हमारे प्रति सद्भाव रखता है या असद्भाव? 

सद्भाव रखता हो तो शांति हो जाती है, असद्भाव रखता हो तो हम सावधान हो जाते हैं|

लेकिन ये सब हमारा मन ही कर रहा है|वह चुप नहीं है, सतत बोल रहा है|

उसके प्रवाह में हम भी बह रहे हैं, हम रुकें तो कुछ हो|

मन को, विचारों को जबरदस्ती नहीं रोका जा सकता, हम स्वयं रुकने की कोशिश जरूर कर सकते हैं|

चित्त की स्थिरता इसका परिणाम होगा|

चित्त के रूप में हम स्थिर हो गये तो बहुत बड़ी बात होगी|इसी अर्थ में-

'परिपूर्णता सभी की नियति है|'

यह आज समझ में नहीं आया तो कभी तो समझ में आयेगा|यद्यपि ज्ञानी जन कहते हैं-सत्य भविष्य की चीज नही, वह नित्य वर्तमान है|अभी यहाँ मौजूद है|'

बात तो ठीक है लेकिन यह जो तब वहाँ रहने की आदत पडी है क्या यह तुरंत बदल जायेगी, क्षण भर में सतत "अभीयहां" में रुपांतरित हो जायेगी| साधना चाहिए|गीता अभ्यास और वैराग्य का उपाय बताती है|

'असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्|

अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||श्रीमद्भगवद्गीता ६|३५||

इसके अभ्यास के लिए यह अच्छा है कि द्रष्टा तथा दृश्य बने मन के दोनों रुपों को मौन कल्पित किया जाय|

हमारे भीतर मानसिक द्रष्टा भी चुप और मानसिक दूसरा भी चुप-यह हम कर सकते हैं|वह दूसरा हमारा ही मन ही तो है|

जब सचमुच कोई उपस्थित हो तथा बोल रहा हो तब यह अभ्यास करना मुश्किल है लेकिन जैसे जैसे हमारा अभ्यास बढता है यह भी आसान हो जाता है|

तब परिणाम में देखा जा सकता है कि एक वक्ता मंच से बोल रहा है तथा हजार श्रोता सुन रहे हैं चुप होकर|

यह शक्ति आयी कहां से? 

क्योंकि वक्ता स्व में स्थित है|

उसका मन आमने सामने व्यस्त नहीं है 

-क्रिया प्रतिक्रिया करते हुए|

कभी मानसिक मैं बोल रहा है, मानसिक दूसरा सुन रहा है;कभी मानसिक दूसरा बोल रहा है प्रेम से या डांटकर और मानसिक मैं सुन रहा है|

अंत:करण की यह द्वैत पूर्ण स्थिति सभी की है इसलिए-

मै चुप : सब चुप|

ध्यान|

स्व में स्थिति|

Saturday, June 4, 2022

मानसिक स्वास्थ्य के लिए प्रसन्नचित्त रहना आवश्यक है।.

* प्रस्तुति  - अश्विनी जारूहार 

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       स्वादिष्ट व्यंजन की कल्पना करने मात्र से हमारे मुंँह में पानी भर आता है। शोक समाचार पाकर उदासी छा जाती है, चेहरा लटक जाता है। प्रफुल्ल मुखाकृति से आन्तरिक प्रसन्नता का पता चलता है। इस प्रकार अदृश्य होते हुए भी मन की हलचलों का भला और बुरा प्रभाव जीवन में पग-पग पर अनुभव होता है।

       मनुष्य अपने मानस का प्रतिबिम्ब है। मानसिक दशा का स्वास्थ्य के साथ घनिष्ठ संबंध है। नवीनतम शोधों के आधार पर तो यह भी कहा जाने लगा है, कि रोग शरीर में नहीं बल्कि मस्तिष्क में उत्पन्न होता है। यही कारण है कि उत्तम और समग्र स्वास्थ्य के लिए मन का स्वस्थ होना सबसे जरूरी है।

       प्रसन्नचित्त रहना मानसिक स्वास्थ्य के लिए सबसे अधिक आवश्यक है। उदासीन रहने वालों की अपेक्षा खुशमिजाज लोग अक्सर अधिक स्वस्थ, उत्साही और स्फूर्तिवान पाए जाते हैं।

       गीताकार ने प्रसन्नता को महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सद्गुण माना है और कहा है कि प्रसन्नचित्त लोगों को उद्विग्नता नहीं सताती एवं उन्हें जीवन में दु:ख कभी सताते नहीं।

       अकारण भय, आशंका, क्रोध, दुश्चिन्ता आदि की गणना मानसिक रोगों में की जाती है। जिस प्रकार शारीरिक क्षमता का लक्षण मुख-मण्डल पर दृष्टिगोचर होता है, उसी प्रकार मन की रुग्णता भी चेहरे पर झलकती है।

       मनोवैज्ञानिक डॉक्टर लिली एलेन के अनुसार मुस्कान वह दवा है, जो इन रोगों के निशान आपके चेहरे से ही नहीं उड़ा देगी, वरन् इन रोगों की जड़ भी आपके अन्त: से निकाल देगी।

       कुछ लोग बोझिल मन से परेशान रहते हैं। ऐसे लोगों को प्रसन्न रहने की कला सीखनी चाहिए। यह अभ्यास करने के लिए आज और अभी से तैयार हुआ जा सकता है। दैनिक जीवन में जिससे भेंट हो उससे यदि मुस्कुराते हुए मिला जाय, तो बदले में सामने वाला भी मुस्कुराहट भेंट करेगा। उसे हल्की-फुल्की बात करने में झिझक नहीं महसूस होगी और इस तरह अपने मन का भारीपन काफी दूर होगा।

       अगर कोई चेहरे पर चौबीसों घण्टे गमगीनी लादी रहे, तो धीरे-धीरे उसके सहयोगियों की संख्या घटती चली जाती है। यदि प्रत्येक क्षण प्रसन्नता बांँटते रहने का न्यूनतम संकल्प शुरू किया जाय, तो थोड़े दिनों के प्रयास से ही आशातीत परिणाम मिलने लगेंगे।

( संकलित व सम्पादित) 

अखण्ड ज्योति मार्च 1984 पृष्ठ 48


ज्योतिष भविष्य की ओर देखने का माध्यम हैं?

 भविष्य एकदम अनिश्‍चित नहीं है। हमारा ज्ञान अनिश्‍चित है। हमारा अज्ञान भारी है। भविष्‍य में हमें कुछ दिखाई नहीं पड़ता। हम अंधे हैं। भविष्‍य का हमें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। नहीं दिखाई पड़ता है इसलिए हम कहते हैं कि निश्‍चित नहीं है लेकिन भविष्‍य में दिखाई पड़ने लगे… और ज्‍योतिष भविष्‍य में देखने की प्रक्रिया है।

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तो ज्‍योतिष सिर्फ इतनी ही बात नहीं है कि ग्रह-नक्षत्र क्‍या कहते हैं। उनकी गणना क्‍या कहती है। यह तो सिर्फ ज्‍योतिष का एक डायमेंशन है, एक आयाम है। फिर भविष्‍य को जानने के और आयाम भी हैं।


मनुष्‍य के हाथ पर खींची हुई रेखाएं हैं, मनुष्‍य के माथे पर खींची हुई रेखाएं हैं, मनुष्‍य के पैर पर खींची हुई रेखाएं हैं, पर ये भी बहुत ऊपरी हैं। मनुष्‍य के शरीर में छिपे हुए चक्र हैं। उन सब चक्रों का अलग-अलग संवेदन है। उन सब चक्रों की प्रति पल अलग-अलग गति है। फ्रिक्‍वेंसी है। उनकी जांच है। मनुष्‍य के पास छिपा हुआ, अतीत का पूरा संस्‍कार बीज है।


रान हुब्‍बार्ड ने एक नया शब्‍द, एक नई खोज पश्‍चिम में शुरू की है- पूरब के लिए तो बहुत पुरानी है। वह खोज है- टाइम ट्रैक। हुब्‍बार्ड का ख्‍याल है कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति जहां भी जिया है इस पृथ्वी पर या कहीं और किसी ग्रह पर- आदमी की तरह या जानवर की तरह या पौधे की तरह या पत्‍थर की तरह। आदमी जहां भी जिया है अनंत यात्रा में- उस… पूरा का पूरा टाइम ट्रैक, समय की पूरी की पूरी धारा उसके भीतर अभी भी संरक्षित है। वह धारा खोली जा सकती है और उस धारा में आदमी को पुन: प्रवाहित किया जा सकता है।,,,,

आगे जारी ,.....

Friday, June 3, 2022

सूर्योदय सूर्यास्त की पौरिणीक रोचक कथा*

 * रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


स्कंद महापुराण के काशी खंड में एक कथा वर्णित है कि त्रैलोक्य संचारी महर्षि नारद एक बार महादेव के दर्शन करने के लिए गगन मार्ग से जा रहे थें। मार्ग के बीच में उनकी दृष्टि उत्तुंग विंध्याद्रि पर केंद्रित हुई। ब्रह्मा के मानस पुत्र देवर्षि नारद को देखकर विंध्या देवी अति प्रसन्न हुई। तत्काल उनका स्वागत कर विंध्या ने देवर्षि को श्रद्धापूर्वक प्रणाम किया। देवर्षि नारद ने आह्लादित होकर विंध्या को आशीर्वाद दिया। 

इसके बाद विंध्या ने यथोचित सत्कार करके नारद को उचित आसन पर बैठाया। यात्रा की थकान दूर करने के लिए उनके चरण दबाते हुए विंध्या ने कहा कि देवर्षि, मैंने सुना है कि मेरु पर्वत अहंकार के वशीभूत हो सर्वत्र यह प्रचार कर रहा है कि वही समस्त भूमंडल का वहन कर रहा है। हिमवंत गौरीदेवी के पिता हैं। इस कारण से उनको गिरिराज की उपाधि उपलब्ध हो गई है। कहा जाता है कि हिमगिरी में रत्नभंडार है और वह स्वर्णमय है, परंतु मैं इस कारण उसे अधिक महत्व नहीं देती। यह भी माना जाता है कि हिमवान पर अधिक संख्या में महात्मा और ऋषि, मुनि निवास करते हैं। इस कारण से भी मैं उनका अधिक आदर नहीं कर सकती। उनसे भी अधिक उन्नत पर्वतराज इस भूमंडल पर अनेक हैं। आप ही बताइए, इस संबंध में आपके क्या विचार हैं? 

देवर्षि मंदहास करके बोले, मैं तुम लोगों के बल-सामर्थ्य के बाबत अधिक नहीं जानता, परंतु इतना बता सकता हूं कि इसका निर्णय भविष्य ही कर सकता है। यह उत्तर देकर देवमुनि आकाश पथ पर अग्रसर हुए। नारद का उत्तर सुनकर विंध्या देवी मन-ही-मन खिन्न हो गई और अपनी मानसिक शांति खोकर सोचने लगी कि ज्ञाति के द्वारा किए गए अपमान को सहन करने की अपेक्षा मृत्यु ही उत्तम है। मेरु पर्वत की प्रशंसा मैं सुन नहीं सकती। इसके बाद ईष्या के वशीभूत हो विंध्या देवी सदा अशांत रहने लगी। क्रमश: निद्रा और आहार से वंचित हो वह दिन-प्रतिदिन दुर्बल होती गई। 

प्रतिकार की भावना से प्रेरित हो वह सोचती रह गई। अंत में वह एक निश्चय पर आ गई कि सूर्य भगवान प्रतिदिन मेरु पर्वत की प्रदक्षिणा किया करते हैं। मैं ग्रह एवं नक्षत्रों के मार्ग को अवरुद्ध करते हुए आकाश की ओर बढ़ती जाऊंगी। तब तमाशा देखूंगी, किसकी ताकत कैसी है? इस निश्चय पर पहुंचकर विंध्या देवी आकाश की ओर बढ़ चली। बढ़ते-बढ़ते उसने सूर्य के आड़े रहकर उनके मार्ग को अवरुद्ध कर दिया। परिणामस्वरूप तीनों लोक सूर्य प्रकाश से वंचित रह गए और सर्वत्र अंधकार छा गया। समस्त प्राणी समुदाय तड़पने लगा। देवताओं ने व्याकुल होकर सृष्टिकर्ता से शिकायत की। ब्रह्मदेव को जब पता चला तो उन्होंने देवताओं को उपाय बताया कि पुत्रो सुनो, इस समय विंध्या और मेरु पर्वत के बीच बैर हो गया है। इस कारण से विंध्या ने सूर्य के परिभ्रमण के पथ को रोक रखा है। इस समस्या का समाधान केवल महर्षि अगस्त्य ही कर सकते हैं। इस समय वे काशी क्षेत्र में विश्वेश्वर के प्रति तपस्या में निमग्न हैं और तपोबल में वे अद्वितीय हैं। 

एक बार उन्होंने लोक कंटक वातापि और इलवल का मर्दन कर जगत् की रक्षा की थी। इस भूमंडल पर कोई ऐसा व्यक्ति नहीं, जो उनसे भय न खाता हो। उस महानुभाव ने सागर को ही मथ डाला था। इसलिए तुम लोग उस महाभाग के आश्रय में जाकर उनसे प्रार्थना करो। तुम लोगों के मनोरथ की सिद्धि होगी। ब्रह्मदेव के मुंह से उपाय सुनकर देवता प्रसन्न हुए। वे उसी समय काशी नगरी पहुंचे। वहां पर देखा, महर्षि अगस्त्य अपनी पत्नी लोपामुद्रा समेत पर्ण-कुटी में तपस्या में लीन हैं। देवताओं ने भक्तिभाव से उन मुनि दम्पति को प्रणाम करके निवेदन किया कि महानुभाव! हम अपनी विपदा क्या बताएं? विंध्या पर्वत मेरु पर्वत के साथ शत्रु-भाव से उसका अपमान करने के लिए तैयार हैं। इसी आशय से उसने सूर्य पथ को रोक रखा है। विंध्या गगन की ओर गतिमान है। उसकी गति को रोकने की क्षमता केवल आप ही रखते हैं। आप कृपा करके सूर्य की परिक्रमा को यथावत् संपन्न करके तीनों लोकों की रक्षा कीजिए। यही मेरा आपसे सादर निवेदन है, देवगुरु बृहस्पति ने प्रार्थना की। 

महर्षि अगस्त्य ने देवताओं की विपदा पर दया दिखाकर उन्हें अभय प्रदान किया। जगत के कल्याण के लिए महर्षि ने देवताओं को अभय तो प्रदान किया, परंतु उनका मन काशी नगरी और काशी के अधिष्ठाता देव विश्वेश्वर को छोड़ने को मानता न था। गंगा जी में स्नान किए बिना वे कभी पानी तक ग्रहण नहीं करते और विश्वेश्वर के दर्शन किए बिना वे पल-भर नहीं रह सकते। काशी को त्यागते हुए उनका मन विकल हो उठा। विवश होकर मन-ही-मन महादेव का स्मरण करते हुए उन्होने काशी से प्रस्थान किया।विंध्या देवी ने दूर से ही महर्षि अगस्त्य को देखा। निकट आने पर उनके तमतमाए हुए मुखमंडल को देख विंध्या देवी नख से लेकर शिख तक कांप उठी। अपना मस्तक झुकाकर मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनि को शांत करने के विचार से विनीत भाव से बोली किमहात्मा, आदेश दीजिए मैं आपकी क्या सेवा कर सकती हूं? 

विंध्या, तुम साधु प्रकृति की हो। स्थिर चित्त हो। मेरे स्वभाव से भी तुम भली-भांति परिचित हो। मैं दक्षिणापथ में जा रहा हूं। तुम मेरे लौटने तक इसी प्रकार झुकी रहो, ऊपर उठने की चेष्टा न करो। यही मेरा आदेश है। यह कहकर महर्षि अगस्त्य ने विंध्या को आशीर्वाद दिया और दक्षिण दिशा की ओर निकल पड़े। दक्षिण में मुनि दम्पति ने पवित्र गोदावरी के तट पर अपना स्थिर निवास बनाया। किंतु विंध्या को इस बात का पता न था और वह अपना इसी इंतजार में समय काटने लगी कि महर्षि अगस्त्य शीघ्र ही लौट आनेवाले हैं। समय बीतता गया, परंतु महर्षि नहीं लौटे। विंध्या ने जो अपना मस्तक झुकाया, उसे अगस्त्य की प्रतीक्षा में झुकाए ही रखा। फिर क्या था, पूर्व दिशा में सूर्योदय हुआ और पश्चिमी दिशा में सूर्यास्त होता रहा। समस्त दिशाएं सूर्य के आलोक से दमक उठीं। प्राणी-समुदाय हर्षोल्लास से नाच उठा। जगत के कार्यकलाप यथावत् घटित होने लगे. 

रवि अरोड़ा की नजर से......

 असली कश्मीर फाइल्स ? /  रवि अरोड़ा



भगवान न करे कि जब तक आप ये पंक्तियां पढ़ें, संख्या बढ़ चुकी हो , मगर इन्हे लिखते समय तक तो कश्मीर के दस घरों में मातम छाया हुआ है । वैसे मातम तो कश्मीर के लाखों परिवारों में पसरा हुआ है मगर ये दस घर वे हैं जिनके किसी न किसी सदस्य को हाल ही में आतंकियों ने सरे आम गोली से उड़ा दिया । जी हां टारगेट किलिंग का शिकार हुए अधिकांश लोग वही कश्मीरी पंडित थे जिनके नाम पर आपको एक जहर भरी फिल्म हाल ही में दिखाई गई और मजबूर किया गया कि आप फिल्म देख कर रोएं और कुछ खास इतिहास पुरुषों को गाली दें । कश्मीर फाइल्स नाम की इस फिल्म के प्रचार प्रसार में खुद प्रधान मंत्री तक कूद पड़े थे और भगवा पार्टी की अधिकांश राज्य सरकारों ने भी इसे टैक्स फ्री कर दिया तथा पार्टी के तमाम सदस्यों को जैसे अघोषित टास्क दे दिया गया कि कैसे लोगों को सिनेमा घर तक लाना है और फिल्म की समाप्ति के बाद कौन कौन से नारे लगाने हैं । कश्मीरी पंडितों के दुखों पर बनी इस फिल्म के निर्माता ने सैंकड़ों करोड़ कमा लिए और उस पर राजनीति करने वालों ने वोट बटोर लिए मगर सवाल मौजू है कि पीड़ितों के हाथ आखिर क्या आया ? फिल्मी नहीं असली जीते जागते कश्मीरी पंडित तो अब भी रोज़ मारे जा रहे हैं और जो बचे हैं वे पानी पी पी कर सरकार को कोस रहे हैं और आए दिन सड़कों पर जुलूस निकाल रहे हैं और धरने दे रहे हैं । 


5 अगस्त 2019 को जब केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35 ए हटाई थी तो उम्मीद बंधी थी कि अब शायद घाटी के हालात सुधर जाएंगे । स्वयं गृह मंत्री ने संसद में दावा किया था कि 1990 में पलायन कर चुके कश्मीरी कश्मीरी की ही न केवल घर वापसी होगी अपितु भारत के हर कोने का आदमी अब कश्मीर में बस सकेगा । कारोबार, उद्योग धंधे , पूंजी निवेश, पर्यटन और अन्य सेवा क्षेत्रों के संपूर्ण विकास का भी खाका खींच कर लोगों को भरमाया गया था मगर हाय री भाजपा सरकार , हर बार की तरह इस बार भी न कोई वादा निभाया गया और न ही किसी घोषणा को अमली जामा पहनाया गया । महबूबा मुफ्ती के साथ गठबंधन सरकार चलाने और राज्यपाल शासन के तहत सरकार चाहती तो काया पलट कर सकती मगर हुआ कुछ नहीं । धारा 370 हटने के बाद तो राह में कोई कांटा भी नहीं बचा था मगर इन तीन सालों में भी सरकार ने तिनका तक नहीं तोड़ा । हां कश्मीरी पंडितों के नाम पर जितनी राजनीति की जा सकती थी , वह की और फिर उन्हें उन्हीं के हाल पर छोड़ दिया । नतीजा अब घाटी के बचे खुचे कश्मीरी पंडित भी पलायन शुरू कर चुके हैं और यदि घाटी के अन्य सवा लाख हिन्दू भी यही फैसला लेते हैं तो यह 1990 से भी बड़ी त्रासदी होगी । क्या दुर्भाग्य ही है कि उस समय की वी पी सिंह सरकार में भी भाजपा सत्ता की भागीदार थी और अब भी वही सत्ता में है । सवाल लखटकिया है कि धारा 370 हटाए जाने का देश , कश्मीर और कश्मीरी पंडितों को क्या फायदा हुआ ? इस बड़े राजनैतिक कदम का कहीं भी कोई लाभ यदि हुआ है तो क्या भाजपा के अतिरिक्त कोई और उसका साझीदार है ? 


क्या विडंबना है कि जिन कश्मीरी पंडितों के नाम पर भाजपा ने अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकी , वही अब उसके खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं । घाटी के सरकारी दफ्तरों में काम कर रहे ये कश्मीरी पंडित साफ कह रहे हैं कि सरकार उनकी सुरक्षा करने में असफल रही है अतः अब हमारा तबादला घाटी से जम्मू क्षेत्र में कर दिया जाए । पता नहीं सरकार के कानों तक उनकी यह आवाज पहुंचेगी कि नहीं । वैसे पता नहीं क्यों मुझे तो लगता है कि कुछ न कुछ तो झूठा सच्चा उसे करना ही पड़ेगा । जम्मू कश्मीर का परिसीमन हो चुका है । किसी भी दिन वहां चुनावों की घोषणा हो सकती है और राज्य में अपनी सरकार और हिंदू मुख्यमंत्री बनाने के अपने इरादे के चलते हवा में ही सही मगर भाजपा को गांठ तो बांधनी ही पड़ेगी । अब बात हवा में गांठ बांधने की ही हो तो भला कौन उसका मुकाबला कर सकता है ।

Thursday, June 2, 2022

एक बाल्टी दूध का छल / कृष्ण मेहता

 

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


एक बार एक राजा के राज्य में महामारी फैल गयी। चारो ओर लोग मरने लगे। राजा ने इसे रोकने के लिये बहुत सारे उपाय करवाये मगर कुछ असर न हुआ और लोग मरते रहे। दुखी राजा ईश्वर से प्रार्थना करने लगा। तभी अचानक आकाशवाणी हुई। आसमान से आवाज़ आयी कि हे राजा! तुम्हारी राजधानी के बीचों बीच जो पुराना सूखा कुंआ है, अगर अमावस्या की रात को राज्य के प्रत्येक घर से एक-एक बाल्टी दूध उस कुएं में डाला जाये तो अगली ही सुबह ये महामारी समाप्त हो जायेगी और लोगों का मरना बन्द हो जायेगा। राजा ने तुरन्त ही पूरे राज्य में यह घोषणा करवा दी कि महामारी से बचने के लिए अमावस्या की रात को हर घर से कुएं में एक-एक बाल्टी दूध डाला जाना अनिवार्य है। 


*अमावस्या की रात जब लोगों को कुएं में दूध डालना था। उसी रात राज्य में रहने वाली एक चालाक एवं कंजूस बुढ़िया ने सोंचा कि सारे लोग तो कुंए में दूध डालेंगे, अगर मैं अकेली एक बाल्टी पानी डाल दूं तो किसी को क्या पता चलेगा। इसी विचार से उस कंजूस बुढ़िया ने रात में चुपचाप एक बाल्टी पानी कुंए में डाल दिया। अगले दिन जब सुबह हुई तो लोग वैसे ही मर रहे थे। कुछ भी नहीं बदला था क्योंकि महामारी समाप्त नहीं हुई थी। राजा ने जब कुंए के पास जाकर इसका कारण जानना चाहा तो उसने देखा कि सारा कुंआ पानी से भरा हुआ है। दूध की एक बूंद भी वहां नहीं थी। राजा समझ गया कि इसी कारण से महामारी दूर नहीं हुई और लोग अभी भी मर रहे हैं।*


दरअसल ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि जो विचार उस बुढ़िया के मन में आया था वही विचार पूरे राज्य के लोगों के मन में आ गया और किसी ने भी कुंए में दूध नहीं डाला। 


*शिक्षा:-*

मित्रों, जैसा इस प्रसंग में हुआ वैसा ही हमारे जीवन में भी होता है। जब भी कोई ऐसा काम आता है जिसे बहुत सारे लोगों को मिल कर करना होता है तो अक्सर हम अपनी जिम्मेदारियों से यह सोच कर पीछे हट जाते हैं कि कोई न कोई तो कर ही देगा और हमारी इसी सोच की वजह से स्थितियां वैसी की वैसी बनी रहती हैं। अगर हम दूसरों की परवाह किये बिना अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने लग जायें तो पूरे देश की जनता ऐसा बदलाव ला सकती हैं जिसकी आज हमें ज़रूरत है।

*

Wednesday, June 1, 2022

सत्संग में बुजुर्ग

 *सत्संगी अपनी ब्रांच के बुजुर्गों से सब कुछ सीखते हैं उन से धीरे धीरे उनकी सेवा भी यह कह कर धीरे धीरे ले ली जाती है की वे सिर्फ अब हिदायत दें फिर एक दिन आता है सारी सेवाएं नव युवक युवतियां संभाल लेते हैं । अच्छी बात है*


*पर कभी सोचा है आप ने जब आप को वो सब कुछ सिखा रहे थे तब कितना प्यार भी दर्शा रहे थे और आप लोगों ने उन्हें अब इग्नोर कर दिया है ना उनसे सीखने के लिए आप उनसे संपर्क करते हैं ना ही उनका हाल चाल पूछना जरूरी समझते हैं।*


*ब्रांच के उच्च अधिकारी उन बुजुर्गों को सम्मानित करने पर विचार करें जिन्होंने ब्रांच उन्नति के लिए सेवा का योगदान दिया है ऐसा करने से बुजुर्गों को महसूस नहीं होगा कि ब्रांच में उनकी जरूरत नहीं या वे ब्रांच का हिस्सा नहीं।*


*समय समय पर बुजुर्गों से विचार विमर्श करें  राय तो सब की लें फिर ब्रांच के लिए जो ठीक हो वही करें।*


*एक से पांच लोगों की ड्यूटी लगाई जाए बुजुर्गो को हर हफ्ते कॉल करके उनका हाल चाल पता किया जाए।*


*बुजुर्ग सत्संगी हर brach की नीव हैं उनका ध्यान रखे।*


 *राधास्वामी* 🙏

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