Saturday, April 30, 2022

प्रीति गुरु हिये में बसाय रही ।

 राधास्वामी!                                          

   04-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                             

प्रीति गुरु हिये में बसाय रही ।

नाम गुरु छिन छिन गाय रही॥१॥                                           

बचन गुरु सुनत मनन कीना।

 उलट घट माहि जतन कीना॥२॥                                      

सुरत और शब्द भेद पाया।

 रूप गुरु प्रेम सहित ध्याया॥३॥                                              

जगत का थोथा है ब्योहार।

फँसा जो इसमें रह गया वार॥४॥                                          

खोज सतगुरु का जो जन कीन।

चरन में भक्ती कर हुए लीन॥५॥                                     

 सोई जन उतरे भौजल पार।

 मेहर राधास्वामी पाई सार॥६॥                                           

भाग मेरा अचरज उठ जागा।

चरन गुरु धारा अनुरागा॥७॥                                            

पड़ी थी जग में महा अचेत।

खेंच लिया चरनन में दे हेत॥८॥                                         *

●●कल से आगे-30-04-2022-●●      

             

 गुरू का जब से सतसँग कीन।

बचन सुन हुई मैं दीन अधीन॥९॥                                        

भाव जग चित से दीना छोड़।

मोह माया का नाता तोड़॥१०॥                                        

काल और करम लगे दुख देन।

देत नहिं सतसँग का सुख लेन॥११॥                                     

रोग और भोग झुमाय रहे।

बिघन अस मोहि घुमाय रहे॥१२॥                                       

भरम और संशय बहु भरमात।

काल गत कुछ नहिं बरनी जात॥१३॥                                                                    


सरन मैं राधास्वामी दृढ़ करती।

भरोसा मन में दृढ़ धरती॥१४॥                                             

मेहर बिन बस नहिं चाले मोर।

रही मैं गुरु चरनन चित जोड़॥१५॥                                         

दया कर काटें राधास्वामी जाल।

 काल मोहि कीना अति बेहाल॥१६॥                                                               

परम गुरु हूजे आज सहाय।

 दुखन से लीजे बेग बचाय॥१७॥                                           

 बचन और दरशन पाऊँ सार।

गाऊँ गुन तुम्हरा बारम्बार॥१८॥                                        

 चरन में लीना तुमहिं लगाय।

बहुरि तुम आपहि करो सहाय॥१६॥                                      

सुनो मेरी बिनती दीनदयाल।

 दरस दे मुझको करो निहाल॥२०॥                                            

शब्द की दीजे दृढ़ परतीत।

चरन में दृढ़ कर जोड़ूँ चीत॥२१॥                                                

 ध्यान गुरु रूप हिये धारूँ ।

 रूप रस चाखत जिया वारूँ ॥२२॥                                                    

सुरत सँग घट में देख बहार।

 जाऊँ तुम चरनन पर बलिहार॥२३॥                                       

आरती हित से कर में धार।

 प्रेम सँग गाऊँ तन मन वार॥२४॥                                          

परम गुरु राधास्वामी हुए दयार।

 काज किया पूरन किरपा धार॥२५॥

              (प्रेमबानी-1-शब्द-80- पृ.सं.377,378,379)*


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Friday, April 29, 2022

गुरु सँग प्रीति न कोई करे ।

 राधास्वामी!        

                                      

30-04-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                              

 गुरु सँग प्रीति न कोई करे ।

चरनन में नहिं भाव  धरे ॥ १ ॥                                                 

जो सतसंगी बचन सुनावें ।

मूरखता कर उनसे लड़े ॥ २ ॥                                             

जगत भोग में गया भुलाई ।

 जम धक्के नित खाता फिरे ॥ ३ ॥                                        

माया संग रहा अटकाई ।

 भौसागर कहो कैसे तरे ॥ ४ ॥                                             

राधास्वामी दया करें जब अपनी ।

इन जीवन की विपता टरे ॥ ५ ॥

 (प्रेमबानी-3-शब्द-28-पृ.सं.373)


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सहारा के सहारे



प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


   🌷एक विद्वान किसी गाँव से गुजर रहा था, 

उसे याद आया, उसके बचपन का मित्र इस गावँ में है, सोचा मिला जाए । 

मित्र के घर पहुचा, लेकिन देखा, मित्र गरीबी व दरिद्रता में रह रहा है, साथ मे दो नौजवान भाई भी है।


   बात करते करते शाम हो गयी, विद्वान ने देखा, मित्र के दोनों भाइयों ने घर के पीछे आंगन में फली के पेड़ से कुछ फलियां तोड़ी, और घर के बाहर बेचकर चंद पैसे कमाए और दाल आटा खरीद कर लाये।

मात्रा कम थी, तीन भाई व विद्वान के लिए भोजन कम पड़ता, 

एक ने उपवास का बहाना बनाया, 

एक ने खराब पेट का।

 केवल मित्र, विद्वान के साथ भोजन ग्रहण करने बैठा।

रात हुई,

 विद्वान उलझन में कि मित्र की दरिद्रता कैसे दूर की जाए?, नींद नही आई, 

चुपके से उठा, एक कुल्हाड़ी ली और आंगन में जाकर फली का पेड़ काट डाला और रातों रात भाग गया।


   सुबह होते ही भीड़ जमा हुई, विद्वान की निंदा हरएक ने की, कि तीन भाइयों की रोजी रोटी का एकमात्र सहारा, विद्वान ने एक झटके में खत्म कर डाला, कैसा निर्दयी मित्र था??

तीनो भाइयों की आंखों में आंसू थे।


 २- ३  वर्ष बीत गए, 

विद्वान को फिर उसी गांव की तरफ से गुजरना था, डरते डरते उसने गांव में कदम रखा, पिटने के लिए भी तैयार था, 

वो धीरे से मित्र के घर के सामने पहुचा, लेकिन वहां पर मित्र की झोपड़ी की जगह कोठी नज़र आयी, 

इतने में तीनो भाई भी बाहर आ गए, अपने विद्वान मित्र को देखते ही, रोते हुए उसके पैरों पर गिर पड़े।

बोले यदि तुमने उस दिन फली का पेड़ न काटा होता तो हम आज हम इतने समृद्ध न हो पाते, 

हमने मेहनत न की होती, अब हम लोगो को समझ मे आया कि तुमने उस रात फली का पेड़ क्यो काटा था।


 जब तक हम सहारे के सहारे रहते है, तब तक हम आत्मनिर्भर होकर प्रगति नही कर सकते। 

जब भी सहारा मिलता है तो हम आलस्य में दरिद्रता अपना लेते है।


दूसरा, हम तब तक कुछ नही करते जब तक कि हमारे सामने नितांत आवश्यकता नही होती, जब तक हमारे चारों ओर अंधेरा नही छा जाता।


जीवन के हर क्षेत्र में इस तरह के फली के पेड़ लगे होते है। आवश्यकता है इन पेड़ों को एक झटके में काट देने की।.

     

प्रगति का एक ही रास्ता आत्मनिर्भरता।

गुरु का आदेश न मानने का परिणाम*

 .                *गुरु आज्ञा*

                     *और*

*गुरु का आदेश न मानने का परिणाम*




एक सेवक ने अपने गुरू से विनती की -

*गुरुजी, मैं सत्संग भी सुनता हूँ, सेवा भी करता हूँ,*

मग़र फिर भी मुझे कोई फल नहीं मिला।


गुरु ने प्यार से पूछा, बेटा तुम्हे क्या चाहिए ?

सेवक बोला मैं तो बहुत ही ग़रीब हूँ दाता।

गुरु ने हँस कर पूछा, बेटा तुम्हें कितने पैसों की ज़रूरत है ?


सेवक ने विनती की, आप, बस इतना दे दो, कि सिर पर छत हो और समाज में इज्जत हो !


गुरु ने पूछा और ज़्यादा की भूख तो नहीं है न बेटा ?


सेवक हाथ जोड़ के बोला नहीं जी, बस इतना ही बहुत है ।


*गुरु ने उसे चार मोमबत्तियां दीं*

और कहा मोमबत्ती जला के पूरब दिशा में जाओ, जहाँ ये बुझ जाये, वहाँ खुदाई करके खूब सारा धन निकाल लेना।


अगर और कोई इच्छा बाकी हो तो दूसरी मोमबत्ती जला कर पश्चिम में जाना।


और चाहिए तो उत्तर दिशा में जाना,


*लेकिन सावधान, दक्षिण दिशा में कभी मत जाना, वर्ना बहुत भारी मुसीबत में फँस जाओगे।*

सेवक बहुत खुश हो कर चल पड़ा।

जहाँ मोमबत्ती बुझ गई, वहाँ खोदा तो -

*सोने का भरा हुआ घड़ा मिला।*

बहुत खुश हुआ और गुरु का शुक्राना करने लगा


थोड़ी देर बाद, सोचा, थोड़ा और धन माल मिल जाये, फिर आराम से घर जा कर ऐश करूँगा।

मोमबत्ती जलाई पश्चिम की ओर चल पड़ा *हीरे मोती मिल गये।*

खुशी बहुत बढ़ गई मग़र....

*मन की भूख भी बढ़ गई।*


तीसरी मोमबत्ती जलाई और उत्तर दिशा में चला वहाँ से भी

 *बेशुमार धन मिल गया।*


सोचने लगा के चौथी मोमबत्ती लेकिन *दक्षिण दिशा के लिये गुरू ने मना किया था,*

उसने सोचा,

*शायद वहाँ से भी क़ोई अनमोल चीज़ मिलेगी।*


मोमबत्ती जलाई और चला दक्षिण दिशा की ओर,

जैसे ही मोमबत्ती बुझी वो जल्दी से ख़ुदाई करने लगा


खुदाई की तो एक दरवाजा दिखाई दिया, दरवाजा खोल के अंदर चला गया।


अंदर एक और दरवाजा दिखाई दिया उसे खोल के अन्दर चला गया।


अँधेरे कमरे में उसने देखा, एक आदमी चक्की चला रहा है।

सेवक ने पूछा भाई तुम कौन हो ?


चक्की चलाने वाला बहुत खुश हो कर बोला,

ओह ! आप आ गये ?

यह कह कर उसने वो चक्की गुरू के सेवक के आगे कर दी,

सेवक कुछ समझ नहीं पाया।


सेवक चक्की चलाने लगा,


सेवक ने पूछा भाई तुम कहाँ जा रहे हो ?

अपनी चक्की सम्भालो,


आदमी ने कहा -

*मैने भी अपने गुरु का आदेश नहीं माना था, और लालच के मारे यहाँ फँस गया था, बहुत रोया, गिड़गिड़ाया, तब मेरे गुरु ने मुझे दर्शन दिये और कहा था, बेटा जब कोई तुमसे भी बड़ा लालची यहाँ आयेगा, तभी तुम्हारी जान छूटेगी।*


*आज तुमने भी अपने गुरु का आदेश नहीं माना, अब भुगतो।*


*सेवक बहुत शर्मसार हुआ और रोते रोते चक्की चलाने लगा।*


वो आज भी इंतज़ार कर रहा है, कि कोई उससे भी बड़ा लालची, पैसे का भूखा आयेगा, तभी उसकी मुक्ति होगी।


*इस सन्देश को पढ़ कर हम अंदाज़ा लगा सकते हैं की, गुरु की आज्ञा या आदेश ना मानने से इंसान कैसी कैसी मुसीबतों में फँस सकते हैं।*

*गुरु आज्ञा मान कर -*

*यदि हमने सत्संग, सेवा और नाम का सुमिरन कर लिया, तो हमारा जीवन और हमारी सेवा सफल होगी !*

*वे दाता दयाल ही हमें हर तरह की मुसीबतों, परेशानियों और उलझनों से बचा कर हमारा बेड़ा पार करेंगें।*

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Wednesday, April 27, 2022

अरे मन क्यों नहिं धारे गुरु ज्ञान।।टेक।।

 *राधास्वामी!           

                                

  27-04-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                              

 अरे मन क्यों नहिं धारे गुरु ज्ञान।।टेक।।                                                                  

 सत चेतन घट माहिं विराजे ।

तू बाहर जड़ सँग भरमान॥१॥                                  

निज घर तेरा अगम अपारा।

 तू रहा जग सँग यहाँ भुलान।।२।।                                                                     

धन औ मान पाय बहु फेला।

 तिरिया सूथ सँग मेल मिलान।।३।।                                                                                                   

 जग की हालत नित उठ देखे ।

कोई न ठहरे सभी चलान॥४॥                                    

 फिर फिर बिरधी चाहे यहाँ की ।

ऐसा मूरख समझ न लान॥५॥                                

कभी जाग्रत कभी सुपन अवस्था।

गहिरी नींद में कभी सुलान॥६॥                           

इन हालों में नित प्रति बरते ।

 परख न लावे अजब सुजान॥७॥                                    

मद माता भोगन में राता।

 मोह जाल में रहा फँसान॥८॥                                          

करता की रचना नित देखे।

 तौ भी उसका खोज न आन॥९॥                                      

परगट है क़ुदरत का खेला।

यह पोथी कभी पढ़ी न पढ़ान॥१०॥                                

खान पान में बैस बितावत।

 मरने की कभी सुद्ध न लान॥११॥                                                                 

 काम क्रोध और लोभ लहर में ।

 बहत रहे निस दिन अनजान॥१२॥                                                        

जो कोइ बचन चितावन कारन।

 कहे तो उससे रूसें आन॥१३।।                           

साध संत हुए जिव हितकारी।

परमारथ की राह लखान॥१४॥                                   

शब्द भेद दे जुगत बतावें ।

 सुरत चढ़ावें अधर ठिकान॥१५॥                                     

  जनम मरन की फाँसी काटें।

 काल करम से सहज बचान॥१६॥                                

तिनका बचन सुने नहिं चित दे।

 सोचे न अपनी लाभ और हान॥१७॥                                                               

 संत संग नाता नहिं जोड़े।

 सतसँग में नहिं बैठे आन॥१८॥                                          

कुटुंब जगत का मोह न छोड़े।

क्योंकर पावे नाम निशान॥१९॥                                                               

जीव हुआ लाचार जगत में ।

निरबल निरधन निपट अजान।।२०।।                                                                      

 जब लग मेहर न होवे धुर की।

संत मता कस माने आन॥२१॥                             

राधास्वामी दया करें जिस जन पर।

 संत चरन में वही लगान॥२२॥                                                                    

 प्रीति लाय नित करे साध सँग।

सुरत शब्द की कार कमान॥२३॥                                                               

शब्द शब्द रस पिये अधर चढ़।

सतगुरु का हिये घर कर ध्यान॥२४॥                                                                       

 दया हुई कारज हुआ पूरा।

राधास्वामी चरन समान॥२५॥

 (प्रेमबानी-3-शब्द-27-

 पृ.सं.370,371,372,373)*


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Tuesday, April 26, 2022

शगुन में एक रूपये का सिक्का क्यों?

 *शगुन के लिफाफे में हम एक रुपये का अतिरिक्त सिक्का क्यों रखते हैं ?महत्वपूर्ण जानकारी।*


 यहां कुछ कारण दिए गए हैं:


 1. संख्या '0' अंत का प्रतीक है जबकि '1' शुरुआत का प्रतीक है।  वह एक रुपये का सिक्का जोड़ा जाता है ताकि रिसीवर को शून्य के पार आने की जरूरत न पड़े।


 2. आशीर्वाद अविभाज्य हो जाते हैं।


 वह एक रुपया वरदान है।  101, 251, 501, आदि जैसी रकम।  अविभाज्य हैं।  इसका मतलब है कि आपके द्वारा दी गई शुभकामनाएँ, शुभकामनाएँ और आशीर्वाद अविभाज्य हैं।


 3. यह एक कर्ज है जिसका अर्थ है 'हम फिर मिलेंगे'।

 वह अतिरिक्त एक रुपया कर्ज माना जाता है।  उस एक रुपये को देने का मतलब है कि असली कर्ज प्राप्तकर्ता पर है जिसे फिर से आना होगा और देने वाले से मिलना होगा।  एक रुपया निरंतरता का प्रतीक है।  यह उनके बंधन को मजबूत करेगा।  इसका सीधा सा मतलब है, "हम फिर मिलेंगे।"


 4. धातु देवी लक्ष्मी का अंश है।


 धातु पृथ्वी से आती है और इसे देवी लक्ष्मी का अंश माना जाता है। यदि  एक रूपये का सिक्का धातु का हो तो  अच्छा है।


 5. शगुन का 1 रुपये निवेश के लिए है। शेष राशि को शगुन लेने वाला खर्च  कर सकता है।


शगुन देते समय हम कामना करते हैं कि जो धन हम देते हैं वह बढ़े और हमारे प्रियजनों के लिए समृद्धि लाए।  जहां शगुन की बड़ी रकम खर्च करने के लिए होती है, वहीं एक रुपया विकास का बीज होता है।  नकद या वस्तु या कर्म में वृद्धि के लिए इसे बुद्धिमानी से निवेश या दान में देना है🙏🏻😊

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( श्राद्ध, तर्पण जैसे कार्य मे अतिरिक्त एक रूपया नही दिया जाता, इस पर विशेष ध्यान रखना चाहिए,,,,,)

🙏🙏🙏🙏🙏

                 " जय श्रीराम "

Monday, April 25, 2022

कहानियों में जीव दर्शन

 *कहानी बड़ी सुहानी*


(1) *कहानी*


*फकीर का भरो

सा*

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एक फकीर के घर रात चोर घुसे। घर में कुछ भी न था। सिर्फ एक कंबल था, जो फकीर ओढ़े लेटा हुआ था। 

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सर्द रात, पूर्णिमा की रात। फकीर रोने लगा, क्योंकि घर में चोर आएं और चुराने को कुछ नहीं है, इस पीड़ा से रोने लगा।

उसकी सिसकियां सुन कर चोरों ने पूछा कि भई क्यों रोते हो ? न रहा गया उनसे।

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उस फकीर ने कहा कि आए थे— कभी तो आए, जीवन में पहली दफा तो आए ! यह सौभाग्य तुमने दिया! 

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मुझ फकीर को भी यह मौका दिया! लोग फकीरों के यहां चोरी करने नहीं जाते, सम्राटों के यहां जाते हैं। तुम चोरी करने क्या आए, तुमने मुझे सम्राट बना दिया!

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क्षण भर को मुझे भी लगा कि अपने घर भी चोर आ सकते हैं! ऐसा सौभाग्य! लेकिन फिर मेरी आंखें आंसुओ से भर गई हैं,


मैं रोका बहुत कि कहीं तुम्हारे काम में बाधा न पड़े, लेकिन न रुक पाया, सिसकियां निकल गईं, क्योंकि घर में कुछ है नहीं। 

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तुम अगर जरा दो दिन पहले खबर कर देते तो मैं इंतजाम कर रखता। दुबारा जब आओ तो सूचना तो दे देना।

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मैं गरीब आदमी हूं। दो—चार दिन का समय होता तो कुछ न कुछ मांग—तूंग कर इकट्ठा कर लेता।

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अभी तो यह कंबल भर है मेरे पास, यह तुम ले जाओ। और देखो इनकार मत करना। इनकार करोगे तो मेरे हृदय को बड़ी चोट पहुंचेगी।

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चोर तो घबड़ा गए, उनकी कुछ समझ में ही नहीं आया।

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ऐसा आदमी उन्हें कभी मिला न था। चोरी तो जिंदगी भर से की थी, मगर आदमी से पहली बार मिलना हुआ था। 

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भीड़— भाड़ बहुत है, आदमी कहां! शक्लें हैं आदमी की, आदमी कहां!

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पहली बार उनकी आंखों में शर्म आई, हया उठी। और पहली बार किसी के सामने नतमस्तक हुए, मना नहीं कर सके।

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मना करके इसे क्या दुख देना, कंबल तो ले लिया। लेना भी मुश्किल! इस पर कुछ और नहीं है!

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कंबल छूटा तो पता चला कि फकीर नंगा है। कंबल ही ओढ़े हुए था, वही एकमात्र वस्त्र था— वही ओढ़नी, वही बिछौना। 

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लेकिन फकीर ने कहा. तुम मेरी फिकर मत करो, मुझे नंगे रहने की आदत है।

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और तुम तीन मील चल कर गांव से आए, सर्द रात, कौन घर से निकलता है। कुत्ते भी दुबके पड़े हैं। 

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तुम चुपचाप ले जाओ और दुबारा जब आओ मुझे खबर कर देना।

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चोर तो ऐसे घबड़ा गए कि.. एकदम निकल कर बाहर हो गए। जब बाहर हो रहे थे तब फकीर चिल्लाया कि सुनो, कम से कम दरवाजा बंद करो और मुझे धन्यवाद दो

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आदमी अजीब है, चोरों ने सोचा। और ऐसी कड़कदार उसकी आवाज थी कि उन्होंने उसे धन्यवाद दिया, दरवाजा बंद किया और भागे।

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फिर फकीर खिड़की पर खड़े होकर दूर जाते उन चोरों को देखता रहा और उसने एक गीत लिखा— 

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जिस गीत का अर्थ है कि मैं बहुत गरीब हूं मेरा वश चलता तो आज पूर्णिमा का चांद भी आकाश से उतार कर उनको भेंट कर देता! कौन कब किसके द्वार आता है आधी रात!

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यह आस्तिक है। इसे ईश्वर में भरोसा नहीं है, लेकिन इसे प्रत्येक व्यक्ति के ईश्वरत्व में भरोसा है। 

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कोई व्यक्ति नहीं है ईश्वर जैसा, लेकिन सभी व्यक्तियों के भीतर जो धड़क रहा है, जो प्राणों का मंदिर बनाए हुए विराजमान है, 

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जो श्वासें ले रहा है, उस फैले हुए ईश्वरत्व के सागर में इसकी आस्था है। 

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फिर चोर पकड़े गए। अदालत में मुकदमा चला, वह कंबल भी पकड़ा गया।

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और वह कंबल तो जाना—माना कंबल था। वह उस प्रसिद्ध फकीर का कंबल था। 

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मजिस्ट्रेट तत्क्षण पहचान गया कि यह उस फकीर का कंबल है— 

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तो तुम उस गरीब फकीर के यहां से भी चोरी किए हो!

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फकीर को बुलाया गया। और मजिस्ट्रेट ने कहा कि अगर फकीर ने कह दिया कि यह कंबल मेरा है और तुमने चुराया है, 

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तो फिर हमें और किसी प्रमाण की जरूरत नहीं है। उस आदमी का एक वक्तव्य, हजार आदमियों के वक्तव्यों से बड़ा है।

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फिर जितनी सख्त सजा मैं तुम्हें दे सकता हूं दूंगा। फिर बाकी तुम्हारी चोरियां सिद्ध हों या न हों, मुझे फिकर नहीं है। उस एक आदमी ने अगर कह दिया...।

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चोर तो घबड़ा रहे थे, कंप रहे थे, पसीना—पसीना हुए जा रहे थे... फकीर अदालत में आया। 

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और फकीर ने आकर मजिस्ट्रेट से कहा कि नहीं, ये लोग चोर नहीं हैं, ये बड़े भले लोग हैं। 

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मैंने कंबल भेंट किया था और इन्होंने मुझे धन्यवाद दिया था। और जब धन्यवाद दे दिया, बात खत्म हो गई। 

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मैंने कंबल दिया, इन्होंने धन्यवाद दिया। इतना ही नहीं, ये इतने भले लोग हैं कि जब बाहर निकले तो दरवाजा भी बंद कर गए थे। यह आस्तिकता है।

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मजिस्ट्रेट ने तो चोरों को छोड़ दिया, क्योंकि फकीर ने कहा. इन्हें मत सताओ, ये प्यारे लोग हैं, अच्छे लोग हैं, भले लोग हैं।

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फकीर के पैरों पर गिर पड़े चोर और उन्होंने कहा हमें दीक्षित करो। वे संन्यस्त हुए। और फकीर बाद में खूब हंसा।

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और उसने कहा कि तुम संन्यास में प्रवेश कर सको इसलिए तो कंबल भेंट दिया था।

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इसे तुम पचा थोड़े ही सकते थे। इस कंबल में मेरी सारी प्रार्थनाएं बुनी थीं। इस कंबल में मेरे सारे सिब्दों की कथा थी। यह कंबल नहीं था।

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जैसे कबीर कहते हैं झीनी—झीनी बीनी रे चदरिया! ऐसे उस फकीर ने कहा प्रार्थनाओं से बुना था इसे! इसी को ओढ़कर ध्यान किया था। इसमें मेरी समाधि का रंग था, गंध थी।

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तुम इससे बच नहीं सकते थे। यह मुझे पक्का भरोसा था, कंबल ले आएगा तुमको भी। और तुम आखिर आ गए।

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उस दिन रात आए थे, आज दिन आए। उस दिन चोर की तरह आए थे, आज शिष्य की तरह आए। मुझे भरोसा था।..

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(2) *कहानी*


रामकृष्ण एक कहानी कहा करते थे। वे कहते थे: एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर पर निमंत्रित था भोजन के लिए। उसने पहली दफा खीर खाई। गरीब आदमी था। संुदर खीर थी, स्वादिष्ट खीर थी। गुलाब की पंखुड़ियां डाली गई थीं उसमें और केसर थी उसमें और पिस्ता-बादाम थे उसमें। और बहुत प्रभावित हुआ। और उसने कहा: यह क्या है? मुझे कुछ समझाओ।


पास में बैठे हुए एक पंडित ने, जो कि निमंत्रित था भोजन के लिए, उसने कहा: अरे, यह समझ में नहीं आता! यह खीर है, दूध की बनी हुई।


अंधे आदमी ने कहा: दूध क्या है? दूध का रंग क्या है, ढंग क्या है? कुछ दूध की परिभाषा दो।


पंडित तो पंडित! पंडित तो अंधों से अंधे होते हैं। पंडित समझाने बैठ गया। उसने इसको चुनौती मान ली। पंडित ने कहा: दूध, दूध तुझे पता नहीं! अरे बिल्कुल सफेद रंग का होता है।


अब अंधे आदमी ने कहा कि तुम पहेलियां बुझा रहे हो। पहला प्रश्न हल नहीं होता, तुम और नये प्रश्न खड़े कर देते हो। अब यह सफेदी क्या है?


मगर पंडित भी कोई हारने वाला था! अंधे से कुछ हारने वाला था! अंधे से कुछ पिछड़ने वाला था! उसने कहा: सफेद रंग नहीं मालूम! बगुला देखा बगुला? ठीक बगुले के रंग जैसा।


अंधे आदमी ने कहा कि बात और उलझती जा रही है। खीर से चले थे, बगुले पर पहंुच गए। बात और दूर की हुई जा रही है। बगुला कैसा होता है?


मगर पंडित तो पंडित, उनके तो ज्ञान-चक्षु खुले होते हैं! वह यह भी न देख सका कि यह अंधा आदमी है, उसको मैं बगुला समझा रहा हूं, यह कैसे समझेगा! उसने तरकीब निकाली। उसने कहा कि ऐसे नहीं चलेगा, बातचीत से नहीं चलेगा, तुझे कुछ अनुभव करवाना पड़ेगा। ला तेरा हाथ मेरे हाथ में दे।


एक हाथ में हाथ पकड़ा, दूसरा हाथ बगुले की गर्दन की तरह मोड़ा और अंधे के हाथ को लेकर दूसरे हाथ पर फेरा और कहा: देख इस तरह बगुले की गर्दन होती है!


अंधे ने कहा: अब कुछ बात कही। अब मैं समझ गया कि खीर कैसी होती है। मुड़े हुए हाथ की तरह होती है।

रामकृष्ण एक कहानी कहा करते थे। वे कहते थे: एक अंधा आदमी अपने मित्र के घर पर निमंत्रित था भोजन के लिए। उसने पहली दफा खीर खाई। गरीब आदमी था। संुदर खीर थी, स्वादिष्ट खीर थी। गुलाब की पंखुड़ियां डाली गई थीं उसमें और केसर थी उसमें और पिस्ता-बादाम थे उसमें। और बहुत प्रभावित हुआ। और उसने कहा: यह क्या है? मुझे कुछ समझाओ।


पास में बैठे हुए एक पंडित ने, जो कि निमंत्रित था भोजन के लिए, उसने कहा: अरे, यह समझ में नहीं आता! यह खीर है, दूध की बनी हुई।


अंधे आदमी ने कहा: दूध क्या है? दूध का रंग क्या है, ढंग क्या है? कुछ दूध की परिभाषा दो।


पंडित तो पंडित! पंडित तो अंधों से अंधे होते हैं। पंडित समझाने बैठ गया। उसने इसको चुनौती मान ली। पंडित ने कहा: दूध, दूध तुझे पता नहीं! अरे बिल्कुल सफेद रंग का होता है।


अब अंधे आदमी ने कहा कि तुम पहेलियां बुझा रहे हो। पहला प्रश्न हल नहीं होता, तुम और नये प्रश्न खड़े कर देते हो। अब यह सफेदी क्या है?


मगर पंडित भी कोई हारने वाला था! अंधे से कुछ हारने वाला था! अंधे से कुछ पिछड़ने वाला था! उसने कहा: सफेद रंग नहीं मालूम! बगुला देखा बगुला? ठीक बगुले के रंग जैसा।


अंधे आदमी ने कहा कि बात और उलझती जा रही है। खीर से चले थे, बगुले पर पहंुच गए। बात और दूर की हुई जा रही है। बगुला कैसा होता है?


मगर पंडित तो पंडित, उनके तो ज्ञान-चक्षु खुले होते हैं! वह यह भी न देख सका कि यह अंधा आदमी है, उसको मैं बगुला समझा रहा हूं, यह कैसे समझेगा! उसने तरकीब निकाली। उसने कहा कि ऐसे नहीं चलेगा, बातचीत से नहीं चलेगा, तुझे कुछ अनुभव करवाना पड़ेगा। ला तेरा हाथ मेरे हाथ में दे।


एक हाथ में हाथ पकड़ा, दूसरा हाथ बगुले की गर्दन की तरह मोड़ा और अंधे के हाथ को लेकर दूसरे हाथ पर फेरा और कहा: देख इस तरह बगुले की गर्दन होती है!


अंधे ने कहा: अब कुछ बात कही। अब मैं समझ गया कि खीर कैसी होती है। मुड़े हुए हाथ की तरह होती है।


हम हंसते हैं, मगर अंधा क्या करे? अंधे पर दया करो। उसकी गलती कहां? बात बिल्कुल तर्कयुक्त है। खीर के लिए ही सवाल उठा था। खीर को समझाने के लिए ही बगुले तक बात पहंुची थी। फिर बगुला, कुछ थोड़ा-थोड़ा उसकी समझ में आया कि ऐसी उसकी गर्दन होती है..मुड़े हुए हाथ की तरह। तत्क्षण उसने निष्कर्ष ले लिया कि खीर मुड़े हुए हाथ की तरह होती है। बात बड़ी दूर हो गई। कहां खीर! कहां मुड़ा हुआ हाथ! क्या लेना-देना!


विवेकानंद ने वही किया। रामकृष्ण खीर की बात कर रहे हैं, विवेकानंद मुड़े हुए हाथ की। मगर अंधों को मुड़ा हुआ हाथ समझ में आ रहा है। और अंधों की जमात है, अंधों की भीड़ है। रामकृष्ण तुम्हें समझ में नहीं आएंगे, विवेकानंद समझ में आ जाएंगे। क्योंकि रामकृष्ण बोलते हैं ऊंचाइयों से और उन ऊंचाइयों से, जहां भाषा अपने अर्थ खो देती है। और विवेकानंद बोलते हैं वहीं से जहां तुम खड़े हो। तुम्हारी ही भाषा, तुम्हारा ही तर्क, तुम्हारा ही मस्तिष्क उनके पास भी है। तुमसे थोड़ा निपुण, थोड़ा कुशल, थोड़ा ज्यादा सुशिक्षित। वे वेद का उल्लेख कर सकते हैं, उपनिषद के उद्धरण दे सकते हैं। और तुम्हारे सामने जो अतक्र्य है, जिसको तर्क में बांधा भी नहीं जा सकता, बांधा कभी गया नहीं, उसको तर्क में बांधने की चेष्टा कर सकते हैं। और तुम्हें खूब जंचेगी बात। तुम कहोगे: जो बात कभी समझ में न आती थी, समझा दी। और तुम्हें पता ही न चलेगा कि इस समझाने में वह बात खो ही गई जिसको समझाने चले थे।


परमात्मा समझाया नहीं जा सकता; केवल जाना जा सकता है..अनुभव है। उपनिषद भी नहीं समझा सकते, वेद भी नहीं, कुरान भी नहीं, बाइबिल भी नहीं, कोई भी नहीं समझा सकता। सब समझाने वाले हार गए हैं। लेकिन पंडित समझाए चले जाते हैं।


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(3) *कहानी*


         *ऊँची उड़ान*


गिद्धगिद्धों का एक झुण्ड खाने की तलाश में भटक रहा था।


उड़ते – उड़ते वे एक टापू पे पहुँच गए। वो जगह उनके लिए स्वर्ग के समान थी। हर तरफ खाने के लिए मेंढक, मछलियाँ और समुद्री जीव मौजूद थे और इससे भी बड़ी बात ये थी कि वहां इन गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था और वे बिना किसी भय के वहां रह सकते थे।


युवा गिद्ध  कुछ ज्यादा ही उत्साहित थे, उनमे से एक बोला, ” वाह ! मजा आ गया, अब तो मैं यहाँ से कहीं नहीं जाने वाला, यहाँ तो बिना किसी मेहनत के ही हमें बैठे -बैठे खाने को मिल रहा है!”


बाकी गिद्ध भी उसकी हाँ में हाँ मिला ख़ुशी से झूमने लगे।


सबके दिन मौज -मस्ती में बीत रहे थे लेकिन झुण्ड का सबसे बूढ़ा गिद्ध इससे खुश नहीं था।


एक दिन अपनी चिंता जाहिर करते हुए वो बोला, ” भाइयों, हम गिद्ध हैं, हमें हमारी ऊँची उड़ान और अचूक वार करने की ताकत के लिए जाना जाता है। पर जबसे हम यहाँ आये हैं हर कोई आराम तलब हो गया है …ऊँची उड़ान तो दूर ज्यादातर गिद्ध तो कई महीनो से उड़े तक नहीं हैं…और आसानी से मिलने वाले भोजन की वजह से अब हम सब शिकार करना भी भूल रहे हैं … ये हमारे भविष्य के लिए अच्छा नहीं है …मैंने फैसला किया है कि मैं इस टापू को छोड़ वापस उन पुराने जंगलो में लौट जाऊँगा …अगर मेरे साथ कोई चलना चाहे तो चल सकता है !”


बूढ़े गिद्ध की बात सुन बाकी गिद्ध हंसने लगे। किसी ने उसे पागल कहा तो कोई उसे मूर्ख की उपाधि देने लगा। बेचारा बूढ़ा गिद्ध अकेले ही वापस लौट गया।


समय बीता, कुछ वर्षों बाद बूढ़े गिद्ध ने सोचा, ” ना जाने मैं अब कितने दिन जीवित रहूँ, क्यों न एक बार चल कर अपने पुराने साथियों से मिल लिया जाए!”


लम्बी यात्रा के बाद जब वो टापू पे पहुंचा तो वहां का दृश्य भयावह था।


ज्यादातर गिद्ध मारे जा चुके थे और जो बचे थे वे बुरी तरह घायल थे।


“ये कैसे हो गया ?”, बूढ़े गिद्ध ने पूछा।


कराहते हुए एक घायल गिद्ध बोला, “हमे क्षमा कीजियेगा, हमने आपकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया और आपका मजाक तक उड़ाया … दरअसल, आपके जाने के कुछ महीनो बाद एक बड़ी सी जहाज इस टापू पे आई …और चीतों का एक दल यहाँ छोड़ गयी। चीतों ने पहले तो हम पर हमला नहीं किया, पर जैसे ही उन्हें पता चला कि हम सब न ऊँचा उड़ सकते हैं और न अपने पंजो से हमला कर सकते हैं…उन्होंने हमे खाना शुरू कर दिया। अब हमारी आबादी खत्म होने की कगार पर है .. बस हम जैसे कुछ घायल गिद्ध ही ज़िंदा बचे हैं !”


बूढ़ा गिद्ध उन्हें देखकर बस अफ़सोस कर सकता था, वो वापस जंगलों की तरफ उड़ चला।


मित्रों, अगर हम अपनी किसी शक्ति का प्रयोग नहीं करते तो धीरे-धीरे हम उसे खो देते हैं।


अगर हम अपने बुद्धि का प्रयोग नहीं करते तो उसकी तीक्ष्णता घटती जाती है, अगर हम अपनी मासपेशियो का प्रयोग नही करते तो

उनकी ताकत घट जाती है… इसी तरह अगर हम अपनी योग्यता को चमकाएंगे नही तो हमारी काम करने का मनोबल कम होता जाता है!


ऐसा मत करिए…अपनी काबिलियत, अपनी ताकत को जिंदा रखिये…अपने कौशल, अपने हुनर को और तराशिये…उसपे धूल मत जमने दीजिये…और जब आप ऐसा करेंगे तो बड़ी से बड़ी मुसीबत आने पर भी आप ऊँची उड़ान भर पायेंगे!


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(4) *कहानी*


*"एक सामायिक से भगवान कैसे बन सकते हैं"*


 *▪एक सामायिक 48 मिनट की होती है 48 का उल्टा करो 84 अर्थात 4गति 8400000 लाख योनियों मैं जीवो की रक्षा करते हुए उनकी गुड ब्लेसिंग प्राप्त कर सकता है*

*▪ 48 का आधा करें तो 24 मिलेगा अर्थात 24 तीर्थंकर भगवान की स्तुति कर हम उनके ओरा (आभामंडल) तक पहुंच सकते हैं*

*▪24 का आधा 12 अर्थात  श्रावक  के 12 व्रतों को धारण कर हम अपने चरित्र का निर्माण कर सकते हैं*

*▪12 का आधा 6 अर्थात 6 काया की रक्षा करना*

*▪6 का आधा 3 अर्थात मन, वचन, काया के दोषों को दूर करना मन के 10 वचन के 10 और काया के 12 दोष टोटल 32 दोषों को दूर कर= 45 आगम का स्वाध्याय करना जो हमें अरिहंत भगवान के समीप ले जा सकती है और हमें मोक्ष दिला सकती है अर्थात एक सामायिक आपको मोक्ष दिला सकती हैl*


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(5) *कहानी*


*बिटिया बड़ी हो गयी, एक रोज उसने बड़े सहज भाव में अपने पिता से पूछा - "पापा, क्या मैंने आपको कभी रुलाया*" ?👩

*सुविचार सप्रसंग कहानी के लिए*करे*


पिता ने कहा -"हाँ " 🤵


उसने बड़े आश्चर्य से पूछा - "कब" ?


पिता ने बताया - 'उस समय तुम करीब एक साल की थीं, 

घुटनों पर सरकती थीं।

 मैंने तुम्हारे सामने पैसे, पेन और खिलौना रख दिया क्योंकि मैं ये देखना चाहता था कि, तुम तीनों में से किसे उठाती हो तुम्हारा चुनाव मुझे बताता कि, बड़ी होकर तुम किसे अधिक महत्व देतीं। 

जैसे पैसे मतलब संपत्ति, पेन मतलब बुद्धि और खिलौना मतलब आनंद।


मैंने ये सब बहुत सहजता से लेकिन उत्सुकतावश किया था क्योंकि मुझे सिर्फ तुम्हारा चुनाव देखना था।


 तुम एक जगह स्थिर बैठीं टुकुर टुकुर उन तीनों वस्तुओं को देख रहीं थीं।

 मैं तुम्हारे सामने उन वस्तुओं की दूसरी ओर खामोश बैठा बस तुम्हें ही देख रहा था।

तुम घुटनों और हाथों के बल सरकती आगे बढ़ीं, 

मैं अपनी श्वांस रोके तुम्हें ही देख रहा था और क्षण भर में ही तुमने तीनों वस्तुओं को आजू बाजू सरका दिया और उन्हें पार करती हुई आकर सीधे मेरी गोद में बैठ गयीं।

मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि, उन तीनों वस्तुओं के अलावा तुम्हारा एक चुनाव मैं भी तो हो सकता था।

 तभी तुम्हारा  भाई आया ओर पैसे उठाकर चला गया,


वो पहली और आखरी बार था बेटा जब, तुमने मुझे रुलाया और बहुत रुलाया...


भगवान की दी हुई सबसे अनमोल धरोहर है बेटी...


क्या खूब लिखा है एक पिता ने...


हमें तो सुख मे साथी चाहिये दुख मे तो हमारी बेटी अकेली ही काफी है...रिशते बड़े अनमोल 

होते हैं....bandhen अच्छे लगते हैं...अपनो से


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भविष्य में दयालबाग़ की यात्रा से पहले की जरूरी बातें

 राधास्वामी.......कृपया नोट करें कि सेक्रेट्री, राधास्वामी सत्संग  सभा दयालबाग, आगरा द्वारा आज जारी पत्र के अनुसार  भविष्य में दयालबाग की यात्रा करने वाले सभी सत्संगी, जिज्ञासु और परिवार के अन्य सदस्यों को अपने ब्रांच सेक्रेट्री से यह सर्टिफिकेट लेकर जाना पड़ेगा कि वह मेडिकल रूप से फिट हैं तथा खांसी, जुकाम और बुखार के किसी भी लक्षण से रहित हैं।


दयालबाग में प्रवेश के लिए शरण आश्रम अस्पताल से भी चिकित्सा प्रमाण पत्र की आवश्यकता होगी। 


सभी इस बात को बहुत गंभीरतापूर्वक नोट करें कि किसी भी ब्रांच का कोई भी व्यक्ति अगर दयालबाग में ऊपर दरसाये हुए लक्षणों से पीड़ित पाया जाता है, तो उसे तत्काल दयालबाग से लौटने के लिए कहा जाएगा और उस विशेष ब्रांच के सभी सदस्यों को अगली सूचना तक दयालबाग जाने से रोक दिया जाएगा।

मतलब कि उस पूरी ब्रांच के सभी सदस्यों पर दयालबाग जाने के लिए प्रतिबंध लग जायेगा।यह निर्देश दिनांक 19-4-2022 से लागू हो जायेंगे।

खुश रहने की सलाह

 🙏

      राधास्वामी

ग्रेशस हुज़ूर सतसंगी साहब जी के मार्गदर्शन में 🌹

मेरिज पंचायत दयालबाग की सभी सतसंगी परिवारों को खुश हाल रहने के लिए सलाह, सुझाव, 🌹🙏🙏🙏🌹

1- वर वधू के लिए

    🌸🌸🌸🌸

1- 🌹साफ पट्टी पर, सकारात्मक दृष्टिकोण से, बिना किसी पूर्वागृह के, अपने वैवाहिक जीवन को शुरू करें,,


2-🌹 मुक्त रुप से वार्तालाप जारी रखें, और मतभेदों के बिना एक दूसरे से कुछ भी छिपाए, बात चीत कर सुलझाते रहे, छोटी मोटी कमियों पर, ध्यान न दे कर एक दूसरे के गुणों की सराहना करें,, 


3-🌹एक दूसरे के अधिकारों एवं व्यक्तित्व का सम्मान करिये, 

यदि पत्नी द्वारा नौकरी करने के प्रशन का पहले से हल न लीया गया हो, तो एक दूसरे के अधिकारों का सम्मान करते हुए, पारस्परिक रूप से विचार विमर्श करके, हल निकाले, 

ऐसी स्थिति में गृह कार्य और बच्चों के लालन पालन के विषय में भी निणृय कर लें, पत्नी को उसकी आय का कुछ हिस्सा अवश्य प्रयोग करने दें,, 


4-🌹 दौनों एक दूसरे के परिवारों का सम्मान करें,  उनसे सीखें, और उनकी परामर्श और आलोचनाओं को, यदि कुछ हो, तो सही मनोभाव से मान लें, 


5-🌹 बच्चों के पैदा हो जाने पर, उनके समक्ष सही सतसंगी जीवन, विशेष रूप से सतसंग आर्दशों को जीने का उदाहरण प्रस्तुत करना, हर एक दम्पति का प्रथम लक्ष्य  होना चाहिए,, 


6-🌹 समान रुचियां विकसित करनी चाहिये, जिससे सभी कामों में हाथ बटाया जा सकें, 

पति पत्नी को एक दूसरे के काम और रोजगार में सकारात्मक रुचि लेनी चाहिए,, 🙏🙏


2- 🌹वर के लिए

      🌸🌸🌸🌸


1-🌹 परिवार की धुरी होने के कारण  आपको, सर्तक, अच्छा, पक्षपात रहित, सबकी सुनते हुए, बातचीत करते हुए, सभी परिवारजनों  की विविध इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति, प्यार और धैर्य से, करते रहना होगा, 

यह संतुलन बनाए रखने बाली क्रिया एक कठिन कार्य है, मगर इसे जीवन भर करना होगा,, 


2-🌹 समझदारी और प्रेम से अपनी पत्नी की मदद इस प्रकार करें, कि वह आपके परिवार में घुलमिल जाय, जिससे वह आपके माता पिता व अन्य परिवारजनों के बीच संतुलन बनाये रखने में, आपकी मदद कर सकें, 


3-🌹 परिवार की दो प्रमुख कुंजियां है,, आपकी माता और आपकी पत्नी, एक ने आपको जन्म दीया है, और दूसरी आपका भविष्य है, 

उन दोनों को, किसी की अवहेलना कीये बगैर, खुश रखें, 

जिससे वह दोनों अन्य सभी की देखभाल करें, 

इस बारे में हुज़ूर मेहता जी महाराज के दीये परार्मशों का पालन करें, 

🙏ईमानदारी व परिश्रम से कमाई करें, 

अपनी पत्नी के माता पिता से कुछ भी मांग करना हेय है, चाहे यह मांग मेरिज पंचायत के द्वारा  निरधारित सीमाओं के भीतर ही क्यो न हो, 

आपके माता पिता जो   बुजुर्ग हो रहे हैं, उनकी पूरी तरह से देखभाल करें, 

उनको आपके धन से अधिक आपके प्रेम और समय की आवश्यकता है,, 

      🙏🙏

3-🌹वर की माता के लिए

🌸🌸🌸🌸🌸

1-🌹 वधू का स्वागत खुले मन, खुले दिमाग, व खुले दिल से अपनी बेटी के समान करें, 

दहेज की बात कदापि न करें, 

वधू के अवगुणों को नजरअंदाज करते हुए उसके गुणों की प्रशंसा करें, और बहुत जल्दी अधिक आशाएं ना करे ,, 

2-🌹 नवविवाहित दम्पति के निजी जीवन में दखल दीऐ  बिना, वधू को प्रेम, दयालुता और धैर्य से अपने परिवार में समायोजित होने में सहायता करेे, और यह स्वीकार कि अब आपके पुत्र  के प्रेम की भागीदार आपके साथ साथ उसकी पत्नी भी है,, 

3-🌹 दम्पति के निजी सम्बन्धों में हस्तक्षेप न करें , 

     🙏🙏

4-🌹वर के पिता के लिए

🌸🌸🌸🌸🌸

1-🌹 अपने परिवार में होने वाली समस्याओं पर नजर रखें, और उचित समय पर, मधुरता से मर्गर्दर्शन करें, 

2-🌹 अपने पुत्र और पुत्र वधू को समान नजर से देखें, 

        🙏🙏

5-🌹 वधू के माता पिता के लिए

🌸🌸🌸🌸🌸

1-🌹 अपनी बेटी को ऐसी शिक्षा दें जिससे वह अपने पति के परिवार में पूरी तरह से समायोजन कर सकें, 

अपने सच्चे प्रयासों से धैर्य से और दीनता से बडों के प्रति सम्मान द्वारा उनका प्रेम जीत सकें, 

अपनी बेटी के पारिवारिक मामलों में कदापि हस्तक्षेप ना करें, और जरूर हो तो उसे अपना पूरा भावात्मक संरक्षण दें, और सामर्थ्य के अनुसार आर्थिक संरक्षण भी दें,, 

      🙏🙏

6-🌹 वधू के लिए

    🌸🌸🌸🌸

1-🌹 केवल अपने पति के प्रति ही नहीं उसके सभी परिवारजनों के साथ एकरूपता बनाए रखें,, 

2-🌹 अपनी सासु माँ के साथ अपनी माँ जैसा ही आदर व प्रेम रखें, और यह भी सुनिश्चित करें कि आप   या आपके पति उनके माता पिता या अन्य परिवारीजन  की अपेक्षा तो नहीं कर रहे हैं,

3-🌹 अपने पति के परिवार का अंग बनते हुए उनके सभी घरेलू कामों में हाथ बटायें,

और यदि आप काम काजी महिला है, तो बिना कुछ छिपाए अपने बच्चों के तथा भविष्य के लिए कुछ बचत करते हुए, परिवार में अपेक्षित योगदान दें, 

4-🌹 कभी भी अपने माता पिता के परिवार की परम्पराओं अथवा सुविधाओं का शादी के बाद बखान न करें,, 

🌹🌹🌹🌹🌹

🙏🙏🙏🙏🙏

यह एक अमुल्य ओषधि, सभी सतसंगी परिवारों के लिए है, इन बातों का पालन हम सभी सतसंगी परिवार करते हैं तो किसी की भी कोई समस्या किसी के सामने नहीं आयेगी

और न किसी की यह शिकायत होगी कि हमने सतसंगी परिवार से शादी की और इस तरह की कोई समस्या आई, और हम लोग अन्य गैर सतसंगी परिवारों पर गैर सतसंगी समाज पर भी अपने सतसंग शिक्षा का असर डालने में कामयाब होगें, 

सो सभी से 🙏निवेदन है कि बताऐ इस रास्ते पर चलें और खुश हाल जीवन जीने


🙏राधास्वामी🙏

इसकी हाडकापी किसी भी भाई बहन को चाहिए तो आप मुझे कौल करें में आप तक पहुंचा दूगां, 

🙏आपका अपना

प्रे०भाई जी०एस० पाठक

6397831325

Thursday, April 21, 2022

अत्‍यावश्‍यक सूचना : -

 

जैसा की आप सभी जानते हैं कि , अब से दयालबाग जाने के लिए , ब्राॕच में बायोमेट्रीक बनवाना तथा साथ में ब्राॕच सेक्र॓टरी द्वारा एक सर्टिफिकेट भी ले कर जाना आवश्यक है , की इन्हें सर्दी , खॉसी , बुखार नहीं है तथा मेडिकली फिट हैं। 

दयालबाग पहुँचने पर यदि कोई लक्षण पाया जाता है तो उन्हें वापिस कर दिया जायगा तथा ब्राॕच सेक्र॓टरी भी दयालबाग आने से रोक दिया जायगा , साथ ही साथ पूरे ब्राॕच को भी दयालबाग आने से रोक दिया जायगा |

कुछ लोग इसे पूरे हल्के में लेते हैं | वे काफी समय पहले रिजर्वेशन तो लेते हैं , परन्तु ब्राॕच सेक्र॓टरी को एक दिन पहले फोन पर बताते हैं | डा० का सर्टिफिकेट माँगने पर देर रात वाट्स ऐप करते है अौर वाट्स एप पर ही सर्टिफिकेट की माँग करते हैं , वो भी ट्रेन में बैठ कर जब की ब्राॕच सेक्र॓टरी से उनकी रुबरु नहीं होती 

| उनकी ये लापरवाही पूरे ब्राॕच को जोखिम में डाल सकती है |

ब्राॕच की सेहत का ध्यान करते हुए यदि ब्राॕच सेक्र॓टरी सोशल मिडिया पर सर्टिफिकेट इशू न करे तो दयालबाग में सेक्र॓टरी को गैर- जिम्मेदार की तरह प्रस्‍तुत करेगें |

                  इस लेख के माध्यम से सभी को बताना चाहता हूँ कि , यदि ब्राॕच सेक्र॓टरी से कोई भी सर्टिफिकेट लेना है तो  वे रविवारीय सतसंग में आ कर ले लें | सोशल मिडिया का प्रयोग इसके लिए नहीं किया जायगा |

राधास्‍वामी

21/04/22

सरन गुरु महिमा चित्त बसाय / सुरत मन निस दिन चरनन धाय।

 राधास्वामी!                                              

 शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                           

सरन गुरु महिमा चित्त बसाय।

सुरत मन निस दिन चरनन धाय।।१।।                                                             

 चरन गुरु दृढ़ परतीत सम्हार।

प्रीति हिये बढ़ती दिन दिन सार॥२॥                      

  चरन राधास्वामी आसा धार।

जिऊँ मैं निस दिन चरन अधार॥३॥                            

  हिये में राधास्वामी बल धारूँ।

दया ले काल करम जारूँ॥४॥                                  

भरोसा राधास्वामी हिरदे धार।

 मौज गुरु हर दम रहूँ निहार॥५॥                                

निरख कर चलती मन की चाल।

 परख कर काटूँ माया जाल॥६॥                                                                                              सहज में छोड़ँ क्रोध और काम।

जपूँ नित हिये में राधास्वामी नाम॥७॥                                                                    

लोभ और मोह बिसार दई।

अहँग तज छोड़ी मानभई॥८॥                                                    


●●कल से आगे-●●              


दया राधास्वामी लेकर साथ।

 काल और मन का कूटूँ माथ॥९॥                                    

 परख कर पकड़ गुरु बचना।

चाल मन माया नित तजना॥१०॥                                   

डरत रहूँ सतगुरु से हर दम।

 चरन में राखूँ चित कर सम॥११॥                                 

गुरु की आज्ञा सिर पर धार।

चलूँ नित बचन बिचार बिचार॥१२॥                              

 गाऊँ उन महिमा दिन और रात।

करूँ उन सेवा तन मन साथ॥१३॥                       

शुकर कर हिरदे से हर बार।

चरन  पर जाऊँ नित बलिहार॥१४॥                               

 उमँग कर नित आरत करती।

प्रेम राधास्वामी हिये भरती॥१५॥                                           

●●कल से आगे-21-04-22-●●    

      

 पिरेमी जन सँग गाऊँ राग।

बढ़त मेरे दिन दिन हिये अनुराग॥१६॥                                

 मेहर राधास्वामी छिन छिन पाय।

ध्यान गुरु चरनन रहूँ समाय॥१७॥                           

 शब्द धुन बजती नभ की ओर।

 गगन चढ़ गई रैन हुआ भोर॥१८॥                              

चाँदनी खिली सुन्न के माहिं।

भँवर चढ़ मिटी काल की दायँ॥१६॥                                

सुनी धुन बीना सतपुर जाय।

मगन हुई दरशन सतपुर्ष पाय॥२०॥                               

अलख चढ अगम से कीना प्यार।

अनामी पुरुष किया दीदार॥२१॥                                                    

परख कर सुरत शब्द निज धार।

करूँ गुरु आरत जाउँ बलिहार॥२२॥                                                                

दया राधास्वामी कीन अपार।

 हुई मस्तानी रूप निहार॥२३॥                                     

बेद नहिं जाने यह घर बार।

रहे सब जोगी ज्ञानी वार।।२४।।                                   

दिया मेरा राधास्वामी भाग जगाय ।

मगन हुई मैं यह निज घर पाय॥२५॥

(प्रेमबानी-1-शब्द-76- पृ.सं.367,368,369,370)*


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ऐसी चौपड़ खेलो जग में / । लाल होय पहुँचो गुरु पद में ॥ १

 राधास्वामी!       

                                      

  सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                             

   ऐसी चौपड़ खेलो जग में ।

लाल होय पहुँचो गुरु पद में ॥ १ ॥                                    

माया काल से बाज़ी लाग ।

होय हुशियार जगत से भाग ॥ २ ॥                               

सुरत गोट चौपड़ में अटकी ।

बिन सतगुरु चौरासी भटकी ॥ ३ ॥                              

 पूरे गुरु से मिल धर प्रीत ।

जुग बाँधो कर दृढ़ परतीत ॥ ४ ॥                                          

प्रेम सहित उन सँग घर चलना ।

 चोट न खाओ काल बल दलना ॥ ५ ॥                                                   

  काल दूत जो विघन करावें ।

 मार कूट उन तुरत हटावें ॥ ६ ॥                                   

खेत जिताय चढ़ावें रंग।

दूर करावें सब बदरंग ॥ ७ ॥                                                  

 तीन धार के पासे डाले।

 मुखमन होय सुरत घर चाले ॥ ८ ॥                                               

●●कल से आगे-21-04-22-●●      

                          

दाव पड़ा मेरा अबके भारी ।

 सतगुरु मिल मोहि आप सम्हारी ॥ ९॥                                                       

  ऐसा औसर फिर नहिं मिलही ।

 जम को कूट पार घर चलही ॥१० ॥                                                               

  गुरु सँग जुग सीधा घर जावे ।

रस्ते में कोई विघन न आवे ॥११ ॥                            

  गुरु पद परस लाल हो जावे ।

 सतपुर जाय सेत पद पावे ॥१२ ॥                                                          

धुन मुरली और बीन सुनावे ।

सतगुरु चरन परस हरखावे ॥१३ ॥                                                          

 अलख अगम घर निरख निहारे ।

धाम अनामी अधर सिधारे ॥१४ ॥                              

  राधास्वामी चरन धार परतीती ।

 काल और महाकाल दल जीती ॥१५ ॥                                                   

अस चौपड़ राधास्वामी खिलाई ।

सुरत जीत कर निज घर आई ॥१६ ॥


 (प्रेमबानी-3-शब्द-21- पृ.सं.365,366)


Wednesday, April 20, 2022

सुखी आदमी के जूते*? / कृष्ण मेहता

  *आज का अमृत*

*पांचतत्व का पुतरा, मानुष धारिया नाम।*

*दिन चार के कारने, फिर फिर रोके ठम।।*

*

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एक व्यक्ति अपने गुरु के पास गया और बोला, गुरुदेव, दुख से छूटने का कोई उपाय बताइए। शिष्य ने थोड़े शब्दों में बहुत बड़ा प्रश्न किया था। दुखों की दुनिया में जीना लेकिन उसी से मुक्ति का उपाय भी ढूंढना! बहुत मुश्किल प्रश्न था।

गुरु ने कहा, एक काम करो, जो आदमी सबसे सुखी है, उसके पहने हुए जूते लेकर आओ। फिर मैं तुझे दुख से छूटने का उपाय बता दूंगा।

शिष्य चला गया। एक घर में जाकर पूछा, भाई, तुम तो बहुत सुखी लगते हो। अपने जूते सिर्फ आज के लिए मुझे दे दो।

उसने कहा, कमाल करते हो भाई! मेरा पड़ोसी इतना बदमाश है कि क्या कहूं? ऐसी स्थिति में मैं सुखी कैसे रह सकता हूं? मैं तो बहुत दुखी इंसान हूं।

वह दूसरे घर गया। दूसरा बोला, अब क्या कहूं भाई? सुख की तो बात ही मत करो। मैं तो पत्नी की वजह से बहुत परेशान हूं। ऐसी जिंदगी बिताने से तो अच्छा है कि कहीं जाकर साधु बन जाऊं। सुखी आदमी देखना चाहते हो तो किसी और घर जाओ।

वह तीसरे घर गया, चैथे घर गया। किसी की पत्नी के पास गया तो वह पति को क्रूर बताती, पति के पास गया तो वह पत्नी को दोषी कहता। पिता के पास गया तो वह पुत्र को बदमाश बताता। पुत्र के पास गया तो पिता की वजह से खुद को दुखी बताता। सैकड़ों-हजारों घरों के चक्कर लगा आया। सुखी आदमी के जूते मिलना तो दूर खुद के ही जूते घिस गए।

शाम को वह गुरु के पास आया और बोला, मैं तो घूमते-घूमते परेशान हो गया। न तो कोई सुखी मिला और न सुखी आदमी के जूते।

गुरु ने पूछा, लोग क्यों दुखी हैं? उन्हें किस बात का दुख है?

उसने कहा, किसी का पड़ोसी खराब है। कोई पत्नी से परेशान, कोई पति से दुखी तो कोई पुत्र से परेशान है। आज हर आदमी दूसरे आदमी के कारण दुख भोग रहा है।


गुरु ने बताया, सुख का सूत्र है - दूसरे की ओर नहीं, बल्कि अपनी ओर देखो। खुद में झांको। खुद की काबिलियत पर गौर करो। प्रतिस्पर्द्धा करनी है तो खुद से करो, दूसरों से नहीं। जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो। खुद को सुनो, खुद को देखो। यही सुख का सूत्र है। शिष्य बोला, महाराज, बात तो आपकी सत्य है लेकिन यही आप मुझे सुबह भी बता सकते थे। फिर इतनी परिक्रमा क्यों करवाई?

गुरु ने कहा, वत्स, सत्य दुष्पाच्य होता है। वह सीधा नहीं पचता। अगर यह बात मैं सुबह बता देता तो तू हर्गिज नहीं मानता। जब स्वयं अनुभव कर लिया, सबकी परिक्रमा कर ली, सबके चक्कर लगा लिए, तो बात समझ में आ गई। अब ये बात तुम पूरे जीवन में नहीं भूलोगे।

जीवन तुम्हारी यात्रा है। दूसरों को देखकर अपने रास्ते मत बदलो।

गुरु आज्ञा से जो शिष्य करही / वह भक्ति फल देही

 *राधास्वामी* 


ग्रेसश हुज़ूर सतसंगी साहब जी ने कुछ समय पहले शाम के सतसंग के बाद खेतों पर यह फरमाया था, 

और ऐलान कराया था


🙏गुरु आज्ञा से जो शिष्य करही 

वह भक्ति फल देही

🙏


आप सब काम गुरु की आज्ञा से ही करें

अगर अपना दिमाक लगायेगें तो गढे मे जायेगें, गढें में से उभर नहीं पायेगें🙏🌹


यह सब सतसंगी भाई बहनों ने सुना होगा, 


🙏मगर हम लोग फिर भी अपनी मन मौजी से ही सब करते हैं

बच्चों की शादी विवाह  गैर सतसंगी परिवार में करते हैं, सतसंग रीति रिवाज से नहीं करते हैं, अपनी अपनी अलग अलग रीति रिवाजों से करते हैं, 

दहेज लेते हैं देते हैं 

पंडित बुलाये जाते हैं नारी दोष देखते हैं नक्षत्र देखते हैं जन्म कुंडली मिलाते हैं.

हवन होता है देवी देवताओं का आह्वान करते हैं, 

यहा तक कि एक ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान ने जिनका नाम मै नहीं लेना चाहता हूँ यह कहना शुरू कर दिया कि यह प्रे०भाई जी० एस० पाठक जी यह कहते हैं कि बच्चों की शादी विवाह सतसंग में करना चाहिए यह गलत है

हम को तो बच्चों की शादी विवाह गैर सतसंगी परिवार में करना चाहिए, वाह क्या बात है, 


🙏घर में पुत्र  पैदा होने पर कुआ पुजन करते हैं सातीया  रखते हैं, बड़ी बड़ी दावतें करते हैं

नाम करण के लिए पंडित बुलाये जाते हैं हवन होता है पत्रा खुलता है, 

पत्रा के अनुसार ही नाम रखा जाता है 

बंटी, डबलु, भोदू, राम प्रकाश, कृष्ण, लक्षण प्रसाद, इस तरह के अनेक प्रकार के नाम रखें जाते हैं, 

और अगर पंडित जी ने  कही यह कह दिया कि बच्चा पर मुल है और मुल शांत करने के लिए घर के लोग कौने में मुरगा बन जाओ तो वह भी मंजुर है, 


🙏बच्चों का मुंडन कराते हैं तो जों के कटे हुए खेत में ले जाते हैं गीत गाये जाते हैं चिडी तोहि चामडिया भावे 

इस का अर्थ लगाना अति कठिन है,  नाई आता है पंडित आते हैं और न जाने कितने प्रकार के रस्मों रिवाज कीये जाते हैं, 


🙏 कुछ सतसंगी भाईयों को तो मैंने शादी के बाद गंगा स्नान करने के लिए जाते देखा है.

पुछने पर बताया कि पुत्र या पुत्री की शादी करने के बाद गंगा स्नान करके गंगा में जौ बहाने चाहिए, वाह क्या बात है, 


🙏किसी सतसंगी भाई बहन की मृत्यु हो जाने पर यह देखा गया है कि 13 दिन तक फर्स डाल कर बैठे रहना अनिवार्य है 

इसके बाद तेरहवीं होगी बड़ी बड़ी दावतें होगी, 

और कुछ सतसंगी भाई बहन को यह भी करते देखा गया है कि मृत्यु के एक साल बाद बर्सी करते हैं पंडित आते हैं दावतें होती है

इसके बाद यह भी देखा गया है कि कनागत आ गये मरने बाले के नाम का पंडित को भोजन कराओ, और कुछ दान दक्षिणा दो 

और यहाँ तक कि ऐसा भोज सतसंगी भाई बहन करते हैं और दान भी लेते हैं और दक्षिणा भी लेते हैं


🙏और कुछ सतसंगी भाई बहन को यह भी करते देखा गया है कि अपना घर बनाया है या खरीदा है तो गृह प्रवेश कराने पर हरी मिर्च और नीबू माला बना कर दरबाजे पर लटका दिया और पंडित बुला कर हवन करा कर सुधीकरण करते हैं,  और न जाने कितने प्रकार के आडंबर कीये जाते हैं,


🙏 और यह सब नोटंकी गांव देहात की ब्रांच में धडल्ले से बेखोफ आनंद मंगल पुरवक होता है

और यदि कोई एक बेचारा सतसंगी भाई बहन बोलता है या टोकता है रोकता है तो उसको गर्दन पकड कर दबा दिया जाता है


🙏अब यह सब जो हम करते हैं तो  अपने गुरु महाराज जी को भुल जाते हैं यह सब करते समय एक पल को भी हमें हमारे गुरु महाराज याद नहीं आते है.,ऐसा करने के लिए ऐसी कोई गुरु आज्ञा तो है नहीं और न हमारे गुरुओं ने कभी कोई ऐसी आज्ञा दी है

राधास्वामी मत और गुरु महाराज तो यह सब जंजाल तोडने की आज्ञा देते हैं, 

और हुज़ूर सतसंगी साहब जी ने अपने एक बचन में यह भी फरमाया है कि आप पुरानी दखियाना फुसी   रस्म रिवाजों में फसे रहोगे तो काल आपको यहाँ से नहीं निकलने देगा, 

यही भरमाये रखेगा


🙏अब हुज़ूर सतसंगी साहब जी को खेतों पर यह सब फरमा कर ऐलाउंसमेंट कराने की इस लिए आवश्यकता पडी कि बार बार समझाने के बाद भी हम लोग नहीं मानते हैं और गुरु आज्ञा में नहीं बरतते है अपनी मन मौजी करते हैं और यह सब मैंने सतसंगी लोगों को करते देखा है, टोका है रोका है


🙏🙏 सो सभी से निवेदन है कि गुरु आज्ञा का पालन करो

यह सब करके गैर सतसंगी समाज मे आलोचना का पात्र मत बनों


🙏🙏

गुरु आज्ञा से जो शिष्य करही

वह भक्ति फल देही


🙏🙏

*सभी को राधास्वामी*

सतसंगियों के सूचनार्थ

:  18  अप्रैल, 2022 सुबह   खेतों  के  बाद  सेक्रेटरी  सभा  द्वारा  की  गई  अनाउंसमेंट*


*जो  भी  जिज्ञासु  या  उपदेशी  भाईसाहबान,  बहने  बाहर  की  ब्रांचों  से  दयालबाग  आते  है,  उनके  लिए  अनिवार्य  है  कि  वो  आपने  ब्रांच  सेक्रेटरी  से  लिखवा  कर  लाए,  के  वो  मेडिकली  फिट   हैं।  उन्हे  कोई  भी  बीमारी  - खांसी  जुकाम  इत्यादि  नहीं  है।*


*अगर  ऐसे  लोगो  में  कोई  सिम्पटम  जैसे  खांसी, जुकाम  पाया  गया,  तो  पूरी  की  पूरी  ब्रांच  को  डिबार्ट  कर  दिया  जायेगा।*


*रा धा स्व आ मी*


:  नोट करें कि सेक्रेट्री, राधास्वामी सत्संग  सभा दयालबाग, आगरा द्वारा आज जारी पत्र के अनुसार  भविष्य में दयालबाग की यात्रा करने वाले सभी सत्संगी, जिज्ञासु और परिवार के अन्य सदस्यों को अपने ब्रांच सेक्रेट्री से यह सर्टिफिकेट लेकर जाना पड़ेगा कि वह मेडिकल रूप से फिट हैं तथा खांसी, जुकाम और बुखार के किसी भी लक्षण से रहित हैं।


दयालबाग में प्रवेश के लिए शरण आश्रम अस्पताल से भी चिकित्सा प्रमाण पत्र की आवश्यकता होगी। 


सभी इस बात को बहुत गंभीरतापूर्वक नोट करें कि किसी भी ब्रांच का कोई भी व्यक्ति अगर दयालबाग में ऊपर दरसाये हुए लक्षणों से पीड़ित पाया जाता है, तो उसे तत्काल दयालबाग से लौटने के लिए कहा जाएगा और उस विशेष ब्रांच के सभी सदस्यों को अगली सूचना तक दयालबाग जाने से रोक दिया जाएगा।मतलब कि उस पूरी ब्रांच के सभी सदस्यों पर दयालबाग जाने के लिए प्रतिबंध लग जायेगा।

यह निर्देश दिनांक 19-4-2022 से लागू हो जायेंगे।

Sunday, April 17, 2022

गुरु ज्ञान

 गुरुजी ज्ञान सुना रहे थे। उदाहरण दे कर उन्होंने ज्ञान सुनाना आरंभ किया।


मनुष्य के तीन मित्र होते हैं- धन, परिवार और कर्म। 


एक व्यक्ति के तीन साथी थे। उन्होंने जीवन भर उसका साथ निभाया। जब वह मरने लगा तो अपने मित्रों को पास बुलाकर बोला, “अब मेरा अंतिम समय आ गया है। तुम लोगों ने आजीवन मेरा साथ दिया है। मृत्यु के बाद भी क्या तुम लोग मेरा साथ दोगे?”


पहला मित्र (धन) बोला, “मैंने जीवन भर तुम्हारा साथ निभाया। लेकिन अब मैं बेबस हूँ। अब मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर सकता।” 


दूसरा मित्र (परिवार)बोला, ” मैं मृत्यु को नहीं रोक सकता। मैंने आजीवन तुम्हारा हर स्थिति में साथ दिया है। मैं यह सुनिश्चित करूंगा कि मृत्यु के बाद तुम्हारा अंतिम संस्कार सही से हो।


तीसरा मित्र (कर्म) बोला, “मित्र! तुम चिंता मत करो। मैं मृत्यु के बाद भी तुम्हारा साथ दूंगा। तुम जहां भी जाओगे, मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।” और यह मित्र कर्म ही था।


गुरुजी ने आगे बताया कि मृत्यु के बाद इंसान के कर्म ही हैं जो उसके साथ जाते हैं। कर्म के आधार पर ही इंसान का अगला जन्म सुनिश्चित होता है तो हमें कर्मों पर ध्यान देना चाहिए जैसा कर्म वैसा फल।

एक बच्चा गरीब के घर। एक अमीर के घर और 

एक जन्म से बीमार ही जन्म लेता है। कर्म के आधार से जबकि तीनों बच्चे परमात्मा के हैं तो कर्म पर ध्यान देना चाहिए।

तीनों में से मनुष्य के कर्म ही मृत्यु के बाद भी उसका साथ निभाते हैं।

         🌹जय जय श्री राम 🌹

Saturday, April 16, 2022

हनुमान चालीसा 24x7 कहां-कहां / विवेक शुक्ला

 

श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि... हनुमान चालीसा राजधानी के कम से कम तीन मंदिरों में लगभग अखंड चलता है। इसमें कहीं कोई व्यवधान नहीं आता। यह क्रम दिन-रात जारी रहता है। कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर और इससे तीन-चार किलोमीटर दूर पूसा रोड या आप कह सकते हैं कि करोल बाग और झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के बीच में स्थित हनुमान मंदिर में अखंड हनुमान चालीसा समवेत स्वर में हनुमान चालीसा सुना जा सकता है। 


झंडेवालान मेट्रो स्टेशन के करीब स्थित  हनुमान मंदिर में संकट मोचन की 108 फीट ऊंची प्रतिमा लगी है। इसे मंदिर में जाकर या फिर मेट्रो में सफर करते हुए देखना अपने आप में एक रोमांचकारी अनुभव से कम नहीं होता। इसे करीब से देखने के लिए मंदिर के आसपास कई विदेशी टुरिस्ट भी होते हैं। बजरंग बली की इस विशाल मूर्ति को ‘इश्क जादे’, ‘बजरंगी भाईजान’, ‘दिल्ली-6’ वगैरह फिल्मों में दिखाया भी गया है।


खैर, इनमें भक्त पांच बार, सात या इससे भी अधिक बार हनुमान चालीसा का पाठ पूरी श्रद्धा भाव के साथ करते हुए मिलेंगे। जिधर जिसको बैठने का स्थान मिल गया, वो वहां से हनुमान चालीसा का श्रीगणेश कर देता है। कनॉट प्लेस के हनुमान मंदिर में दिन में हर वक्त लगभग डेढ़ दर्जन भक्त हनुमान चालीसा को पढ़ रहे होते हैं। मंगल और शनिवार को भक्तों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो जाती है। रात को इनकी संख्या घटती है, पर खत्म नहीं होती। 


कुछ भक्तों के हाथों में हनुमान चालीसा की प्रतियां रहती हैं,कुछ को यह याद है। मतलब अनेक भक्त बार-बार इसे पढ़ने के बाद इसकी प्रति अपने हाथों में भी नहीं ऱखते। कुछ सुंदर कांड भी पढ़ रहे होते हैं। सुंदरकांड पढ़ने वाले कम होते हैं। पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, इंदिरा गांधी, बाबू जगजीवन राम इसी हनुमान मंदिर में आकर हनुमान चालीसा पढ़ना पसंद करते थे।


 इधर 1 अगस्त, 1964 से ‘श्रीराम जयराम जय-जयराम’ मंत्र का अटूट जाप आरंभ हुआ था। यहां पर स्वयंभू हनुमान की मूर्ति प्रकट हुई थी। इसमें हनुमान जी दक्षिण दिशा की ओर देख रहे हैं।  इधर इस मूर्ति के प्रकट होने के बाद यहां पर हनुमान मंदिर का निर्माण हुआ।


अगर कनॉट प्लेस के सन 1724 में राजा जयसिंह के प्रयासों से निर्मित हनुमान मंदिर को राजधानी का प्राचीनतम हनुमान मंदिर माना जा सकता है, तो पूसा रोड का संकट मोचन मंदिर तो अपने मौजूदा स्वरूप में हाल के दौर में आया है। सन 1980 से सन 1995 तक ये छोटा सा हनुमान मंदिर था। 


इसमें पूसा रोड, करोल बाग, राजेन्द्र नगर आदि के भक्त ही पूजा- अर्चना के लिए  पहुंचते थे। पर यहां पर इधर हनुमान जी की भव्य मूर्ति स्थापित होने के बाद यहां पर दिल्ली-एनसीआर के अलावा शेष भारत के हनुमान भक्त भी दर्शन करने के लिए आने लगे हैं।  कशमीरी गेट के हनुमान मंदिर में भी हनुमान चालीसा 24x7 चलता है। इसे मरघट वाला हनुमान मंदिर भी कहा जाता है।


माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण पांडवों के समय हुआ था। दिल्ली के नामवर इतिहासकार आर.वी. स्मिथ बताते थे कि मरघट वाला हनुमान मंदिर मौजूदा स्वरूप में 125 साल पहले ही आया।

पंचमुखी अवतार में हनुमान जी


राजधानी में यूं तो अनगिनत हनुमान मंदिर हैं, पर पंचमुखी की मूर्तियां गिनती के ही मंदिरों में मिलती हैं। पटेल नगर के हनुमान मंदिर में पंचमुखी हनुमान की मूर्ति में मारुति नंदन का कठोर रूप दिखाया गया है। यह अपने आप में दुर्लभ कलारूपों में एक हैं, जहां वे किसी राक्षस का वध कर रहे हैं। शेष में हनुमान जी अपने राम की भक्ति में नजर आते हैं। कनॉट प्लेस और और ओखला के हनुमान मंदिरों में भी पंचमुखी रूप में हनुमान जी हैं।


 तुगलक रोड पर  हनुमान मंदिर


तुगलक रोड पर भी एक सिद्ध हनुमान मंदिर है। इसे मंगलवार वाला हनुमान मंदिर भी माना जा सकता है। इसकी वजह ये है कि शेष दिनों में यहां पर सन्नाटा ही रहता है। ये कब खुलता या बंद होता है,येcभी सही से पता नहीं चलता। इसमें लाल बहादुर शास्त्री, बाबू जगजीवन राम, कमालापति त्रिपाठी से लेकर लालू यादव, राबड़ी देवी समेत हजारों-लाखों हनुमान भक्त आते रहे हैं। जिन दिनों लालू यादव को तुगलक रोड पर सरकारी आवास मिला हुआ था,तब राबड़ी देवी यहां आती थीं। बाबू जगजीवन राम कनॉट प्लेस वाले हनुमान मंदिर में तो लगभग हर मंगलवार को पहुंचते थे। 


इधर निश्चित रूप से  कनॉट प्लेस या बस अड्डे वाले हनुमान मंदिरों जितने भक्त तो नहीं आते। आपको इधर हनुमान चालीसा या सुंदर कांड पढ़ने वाले भक्त भी नहीं मिलेंगे।  लेकिन ये मंगलवार और कुछ हद तक शनिवार को गुलजार हो जाता है। इन दोनों दिनों में इधर सुबह से देर रात तक बजरंग बली के सैकड़ों भक्त कुछ पलों के लिए रूकते हैं। 


पूजा अर्चना करके या प्रसाद चढ़ा कर निकल लेते हैं। इन दोनों दिनों में मंदिर के बाहर कारों का आना-जाना लगा रहता है। चूंकि तुगलक रोड खासी चौड़ी है, इसलिए सामान्य यातायात प्रभावित नहीं होता।शायद ही यहां पर कोई बस या पैदल आता हो।इसमें आने वाले अधिकतर श्रदालु साउथ दिल्ली से होते हैं। ये सुबह दफ्तर जाते या शाम को घर वापस जाते इधर रूक जाते हैं।


 कई बार मंगलवार के दिन भी अगर राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री का काफिला इस सड़क से गुजरना होता है,तो हनुमान मंदिर को कुछ समय के लिए बंद करवा दिया जाता है। यह हनुमान मंदिर 1950 के आसपास स्थापित हुआ। इसकी स्थापना की थी पंडित सालिग राम शर्मा ने। वो चिराग दिल्ली रहते थे। इधर हनुमान जी और शिव परिवार की मूर्तियां हैं।

Vivekshukladelhi@gmail.com

चार रतन



प्रस्तुति - रेणु दत्ता /  आशा सिन्हा 

‼चार कीमती रत्न‼ 

 

‼मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप इससे जरूर धनवान होंगे ‼ 


1~पहला रत्न है:          


‼"माफी"‼

तुम्हारे लिए कोई कुछ भी कहे, तुम उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाना, और ना ही उसके लिए कभी प्रतिकार की भावना मन में रखना, बल्कि उसे माफ़ कर देना। 


2~दूसरा रत्न है: 

     ‼"भूल जाना"‼

अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद मन में न रखना। 


3~तीसरा रत्न है:       

‼"विश्वास"‼

हमेशा अपनी महेनत और👍🏼 उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना । यही सफलता का सूत्र है । 


4~चौथा रत्न है:

‼ "वैराग्य" ‼

हमेशा यह याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निशिचत हि हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए बिना लिप्त हुवे जीवन का आनंद लेना । वर्तमान में जीना।

Thursday, April 14, 2022

सेवा का परिणाम

 प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा / राजेंद्र प्रसाद 


एक बार सतगुरुबाग में टहल रहे थे, सेवक पीछे पीछे चल रहे थे सतगुरु अचानक रुके ओर एक सेवक को इशारा कर के  बुलाया* 

*वह एक अमीर व्यापारी का बेटा था सतगुरू इशारा कर के बोले बेटा यहाँ काफी काई जम गई है इसे साफ कर देना*


*सेवक ने उस समय तो ठीक है जी, कह दिया, पर बाद में अपने गुरु भाइयों से कहने लगा कि मैंने कभी सड़क साफ करने का काम नहीं किया, ये सेवा मुझ से तो नहीं होगी*


 *साथ खड़े एक सेवादार ने कहा, भाई जरा सोचो, सतगुरू ने हम सब में से तुझे ही क्यों चुना और यह तुझे ही ये सेवा क्यों बख्शी है?* 

*जरूर इसमें कोई गहरा राज़ है तू ध्यान में बैठ कर सतगुरू से ही पूछ ले*


*वह सेवक थोड़ी दूर जा कर एकांत में भजन में बैठ गया, कुछ देर बाद उसने देखा कि वो एक सत्तर बरस का बूढ़ा आदमी है वो सेवा कर रहा है उसके हाथों में झाड़ू है और वो सड़क की सफाई कर रहा है सामने सतगुरु खड़े हैं पास में बहुत सारे पर्चों का ढेर लगा हुआ है और सतगुरू एक-एक करके पर्चे फाड़ते जा रहे हैं*

 

*सेवक की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे उसने फौरन भजन से उठकर हाथों में झाड़ू और पानी की बाल्टी पकड़ ली और सड़क पे जमी हुई काई जोर शोर से साफ करने लगा*

 

*जब बाकी सेवादारों ने उसे काई साफ करने की सेवा करते देखा तो बड़ी हैरानी से पूछा अरे भाई अभी तो तूँ इन्कार कर रहा था , अचानक क्या हुआ?* 

 

*उस सेवादार ने रोते हुए बतलाया, मैंने भजन करते हुए अंतर में अपना अगला जन्म देखा सत्तर साल की उमर है और मेरे हाथों में झाड़ू है, मैं सड़क पर जमी हुई काई साफ कर रहा हूँ और मेरे सतगुरू अपने हाथों से मेरे बुरे और खोटे कर्मों का एक-एक पर्चा फाड़ रहे हैं*

 *सतगुरू ने अपनी दया से केवल एक घंटे की सेवा बख़्श के मेरे सत्तर वर्षों के कर्म फल काट दिये और मैं अभागा इतनी ऊँची सेवा को बहुत तुच्छ और मामूली समझ रहा था*

 

*हमारे अंतर के रूहानी मार्ग पर जमी हुई काई, हमारे अपने ही पिछले जन्मों के कर्मों का कमाया हुआ मैल है जिसकी वजह से हमारे अन्दर अन्धेरा है* 

*विकारों के इस मैल की सफाई से ही हमारा मन  निर्मल होगा, अभी तो हम जब भी प्रयास करते हैं, बार-बार फिसल कर नीचे  गिर जाते हैं*


 *गुरू दर की कोई भी सेवा बड़ी या छोटी नहीं होती छोटी और ओछी हमारी अपनी सोच होती है*

*जब जब सेवा का हुक्म आये तो इसे अपने सतगुरू की दया मेहर समझना, ज़रूर सतगुरू ने हमारे कर्मों की मैल साफ करनी होगी, बड़ी खुशी से जाना  पूरी लगन और प्यार से सँगत की सेवा करना*


*सतगुरू सेवा, महा हितकारी*

*जन्म जन्म के कर्म कटा री*

Tuesday, April 12, 2022

गुरु महिमा

 , :       *🙏शलक़ 🙏*    :


          ‼️  *जय माता दी* ‼️


 * ● कथा* 

 //// *सन्त की वाणी* ////


          

एक सन्त के पास 30 सेवक रहते थे एक सेवक ने गुरुजी के आगे प्रार्थना की, 'महाराज जी! मेरी बहन की शादी है तो आज एक महीना रह गया है तो मैं दस दिन के लिए वहाँ जाऊँगा। कृपा करें ! आप भी साथ चले तो अच्छी बात है।'

गुरु जी ने कहा– 'बेटा देखो टाइम बताएगा नहीं तो तेरे को तो हम जानें ही देंगे।' उस सेवक ने बीच-बीच में इशारा गुरु जी की तरफ किया कि गुरुजी कुछ ना कुछ मेरी मदद कर दें।

आखिर वह दिन नजदीक आ गया सेवक ने कहा, 'गुरु जी कल सुबह जाऊँगा मैं।' गुरु जी ने कहा, 'ठीक है बेटा!'

सुबह हो गई जब सेवक जाने लगा तो गुरु जी ने उसे 5 किलो अनार दिए और कहा, 'ले जा बेटा भगवान तेरी बहन की शादी खूब धूमधाम से करें दुनिया याद करें कि ऐसी शादी तो हमने कभी देखी ही नहीं और साथ में दो सेवक भेज दिये जाओ तुम शादी पूरी करके आ जाना।'

जब सेवक घर से निकले 100 किलोमीटर गए तो जिसकी बहन की शादी थी वह सेवक दूसरों से बोला, 'गुरु जी को पता ही था कि मेरी बहन की शादी है, और हमारे पास कुछ भी नहीं है, फिर भी गुरु जी ने मेरी मदद नहीं की।' दो-तीन दिन के बाद वह अपने घर पहुँच गया.

उसका घर राजस्थान रेतीली इलाके में था वहाँ कोई फसल नहीं होती थी। वहाँ के राजा की लड़की बीमार हो गई तो वैद्यजी ने बताया कि, 'इस लड़की को अनार के साथ यह दवाई दी जाएगी तो यह लड़की ठीक हो जाएगी।'

राजा ने मुनादी करवा रखी थी कि, 'अगर किसी के पास आनार है तो राजा उसे बहुत ही इनाम देंगे।' इधर मुनादी वाले ने आवाज लगाई, अगर किसी के पास अनार है तो जल्दी आ जाओ, राजा को अनारों की सख्त जरूरत है।

जब यह आवाज उन सेवकों के कानों में पड़ी तो वह सेवक उस मुनादी वाले के पास गए और कहा कि हमारे पास अनार है, चलो राजा जी के पास राजाजी को अनार दिए गए अनार का जूस निकाला गया और लड़की को दवाई दी गई तो लड़की ठीक-ठाक हो गई

राजा जी ने पूछा, 'तुम कहाँ से आए हो, तो उसने सारी हकीकत बता दी। राजा ने कहा, 'ठीक है  तुम्हारी बहन की शादी मैं करूँगा।'  राजा जी ने हुकुम दिया कि, 'ऐसी शादी होनी चाहिए जिसे देखकर लोग यह कहे कि यह राजा की लड़की की शादी है।'

सब बारातियों को सोने चांदी गहने के उपहार दिए गए बारात की सेवा बहुत अच्छी हुई लड़की को बहुत सारा धन दिया गया। लड़की के मां-बाप को बहुत ही जमीन जायदाद व आलीशान मकान और बहुत सारे  रुपए पैसे दिए गए। लड़की भी राजी खुशी विदा होकर चली गई

सेवक सोचने लगे कि, 'गुरु की महिमा गुरु ही जाने। हम ना जाने क्या-क्या सोच रहे थे गुरु जी के बारे में। गुरु जी के वचन थे जा बेटा तेरी बहन की शादी ऐसी होगी कि दुनिया देखेगी।' सन्त वचन हमेशा सच होते हैं.

          

सन्तों के वचन के अन्दर ताकत होती है लेकिन हम नहीं समझते जो भी वह वचन निकालते हैं वह सिद्ध हो जाता है हमें सन्तों के वचनों के ऊपर अमल करना चाहिए और सब्र और विश्वास करना चाहिए ना जाने सन्त मौज में आकर क्या दे दें और रंक से राजा बना दे...

 

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Monday, April 11, 2022

Best Medicine??

 *M E D I CI N E*


 is not always found In          

             *Bottles*

             *Tablets* or 

             *Vaccines*

          

       

  _Let us Understand 22 world's Best medicines..._


*1  Detoxification* 

is a medicine


*2  Quitting Junk Food* 

is a medicine


**3  Exercise* 

is a medicine. 


*4  Fasting* 

is a medicine. 


*5  Nature* 

is a medicine. 


 *6  Laughter* 

is a medicine. 

      

*7- 8  Vegetables And Fruits*

are medicines


*9  Sleep*

is a medicine. 


*10  Sunlight* 

is a medicine


*11-12  Gratitude & Love* 

are medicines


*13  Friends* 

are medicines.    

             

*14  Meditation*

is a Medicine.

          

*15  Being Fearless* 

is a Medicine

        

*16  Postive Attitude* 

is a Medicine


*17  Unconditional Love towards all living beings* 

is a medicine


*18  Listening* 

is a medicine 


*19 - 20  Speaking up & Sharing*

are medicines.


*21 Accepting*

is a medicine.


     ..and



*22  Staying in* 

*PRESENT MOMENT* 

is the 

*Best Medicine*

पहचान

 *शिक्षक का अदभुत ज्ञान*


प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 


*मनुष्य शाकाहारी जीवन है*


एक बार एक चिंतनशील शिक्षक ने अपने 10th स्टेंडर्ड के बच्चों से पूछा कि 

आप लोग कहीं जा रहे हैं और 

सामने से कोई कीड़ा मकोड़ा या कोई साँप छिपकली या कोई गाय-भैंस या अन्य कोई ऐसा विचित्र जीव दिख गया, जो आपने जीवन में पहले कभी नहीं देखा हो, तो प्रश्न यह है कि 

आप कैसे पहचानेंगे कि 

वह जीव *अंडे* देता है *या बच्चे* ?  

क्या पहचान है उसकी ?


अधिकांश बच्चे मौन रहे 

जबकि कुछ बच्चों में बस आंतरिक खुसर-फुसर चलती रही...।


मिनट दो मिनट बाद 

फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने स्वयम ही बताया कि 

बहुत आसान है,, 

जिनके भी *कान बाहर* दिखाई देते हैं *वे सब बच्चे देते हैं* 

और जिन जीवों के *कान बाहर नहीं* दिखाई देते हैं 

*वे अंडे* देते हैं.... ।।

फिर दूसरा प्रश्न पूछा कि– 

ये बताइए आप लोगों के सामने एकदम कोई प्राणी आ गया... तो आप कैसे पहचानेंगे की यह *शाकाहारी है या मांसाहारी ?*  

क्योंकि आपने तो उसे पहले भोजन करते देखा ही नहीं, 

बच्चों में फिर वही कौतूहल और खुसर फ़ुसर की आवाजें..... 


शिक्षक ने कहा– 

देखो भाई बहुत आसान है,, 

जिन जीवों की *आँखों की बाहर की यानी ऊपरी संरचना गोल होती है, वे सब के सब माँसाहारी होते हैं*,

जैसे-कुत्ता, बिल्ली, बाज, चिड़िया, शेर, भेड़िया, चील या अन्य कोई भी आपके आस-पास का जीव-जंतु जिसकी आँखे गोल हैं वह माँसाहारी ही होगा है, 

ठीक उसी तरह जिसकी *आँखों की बाहरी संरचना लंबाई लिए हुए होती है, वे सब के सब जीव शाकाहारी होते हैं*, 

जैसे- हिरन, गाय, हाथी, बैल, भैंस, बकरी,, इत्यादि। 

इनकी आँखे बाहर की बनावट में लंबाई लिए होती है  .... 


फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों से पूछा कि-

बच्चों अब ये बताओ कि मनुष्य की आँखें गोल हैं या लंबाई वाली ?


इस बार सब बच्चों ने कहा कि मनुष्य की आंखें लंबाई वाली होती है... 

इस बात पर 

शिक्षक ने फिर बच्चों से पूछा कि 

यह बताओ इस हिसाब से मनुष्य शाकाहारी जीव हुआ या माँसाहारी ??

सब के सब बच्चों का उत्तर था *शाकाहारी* ।


फिर शिक्षक से पूछा कि 

बच्चों यह बताओ कि 

फिर मनुष्य में बहुत सारे लोग मांसाहार क्यों करते हैं ? 

तो इस बार बच्चों ने बहुत ही गम्भीर उत्तर दिया 

और वह उत्तर था कि *अज्ञानतावश या मूर्खता के कारण।*


फिर उस चिंतनशील शिक्षक ने बच्चों को दूसरी बात यह बताई कि 

जिन भी *जीवों के नाखून तीखे नुकीले होते हैं, वे सब के सब माँसाहारी* होते हैं, 

जैसे- शेर, बिल्ली, कुत्ता, बाज, गिद्ध या अन्य कोई तीखे नुकीले नाखूनों वाला जीव.... 

और 

जिन जीवों के *नाखून चौड़े चपटे होते हैं वे सब के सब शाकाहारी* होते हैं,

जैसे-मनुष्य, गाय, घोड़ा, गधा, बैल, हाथी, ऊँट, हिरण, बकरी इत्यादि।


इस हिसाब से भी अब ये बताओ बच्चों कि मनुष्य के नाखून तीखे नुकीले होते हैं या चौड़े चपटे ??


सभी बच्चों ने कहा कि 

चौड़े चपटे,,


फिर शिक्षक ने पूछा कि 

अब ये बताओ इस हिसाब से मनुष्य कौन से जीवों की श्रेणी में हुआ ??

सब के सब बच्चों ने एक सुर में कहा कि *शाकाहारी ।*


फिर शिक्षक ने बच्चों से तीसरी बात यह बताई कि, 

जिन भी *जीवों अथवा पशु-प्राणियों को पसीना आता है, वे सब के सब शाकाहारी* होते हैं,

जैसे- घोड़ा, बैल, गाय, भैंस, खच्चर, आदि अनेकानेक प्राणी... ।

जबकि 

*माँसाहारी जीवों को पसीना नहीं आता है, इसलिए कुदरती तौर पर वे जीव अपनी जीभ निकाल कर लार टपकाते हुए हाँफते रहते हैं* 

इस प्रकार वे अपनी शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं.... ।


तो प्रश्न यह उठता है कि 

मनुष्य को पसीना आता है या मनुष्य जीभ से अपने तापमान को एडजस्ट करता है ??


सभी बच्चों ने कहा कि मनुष्य को पसीना आता है, 


शिक्षक ने कहा कि अच्छा यह बताओ कि 

इस बात से भी मनुष्य कौन सा जीव सिद्ध हुआ, सब के सब बच्चों ने एक साथ कहा – 

*शाकाहारी ।*

सभी लोग विशेषकर अहिंसा में, सनातन धर्म, संस्कृति और परम्पराओं में विश्वास करने वाले लोग भी चाहे तो बच्चों को नैतिक-बौधिक ज्ञान देने अथवा सीखने-पढ़ाने के लिए इस तरह बातचीत की शैली विकसित कर सकते हैं, 

इससे जो वे समझेंगे सीखेंगे वह उन्हें जीवनभर काम आएगा... 

याद रहेगा, पढ़ते वक्त बोर भी नहीं होंगे....।


बच्चे अगर बड़े हो जाएं तो उनको यह भी बताएं कि कैसे शाकाहारी मनुष्य जानकारी के अभाव में मांसाहार का उपयोग करता है और कहता है कि जब अन्न नहीं उपजाया जाता था तब मनुष्य मांसाहार का सेवन करते थे, जो सरासर गलत है तब मनुष्य कंद-मुल एवं फलों पर जीवित रहते थे, जो सही है एवं उसके संरचना और स्वभाव से मेल भी खाता है। 


*।। प्रकृति की ओर लौटिये तथा ईश्वर, भगवान, प्रभु से सच्चे अर्थों में जुड़िये ।।*

व्यवहार

 *आज का सुविचार*



 !! बड़प्पन का मापदण्ड !!*

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एक राजा थे। वन-विहार को निकले। रास्ते में प्यास लगी। नजर दौड़ाई एक अन्धे की झोपड़ी दिखी। उसमें जल भरा घड़ा दूर से ही दिख रहा था। राजा ने सिपाही को भेजा और एक लोटा जल माँग लाने के लिए कहा। सिपाही वहाँ पहुँचा और बोला- ऐ अन्धे एक लोटा पानी दे दे। अन्धा अकड़ू था। उसने तुरन्त कहा- चल-चल तेरे जैसे सिपाहियों से मैं नहीं डरता। पानी तुझे नहीं दूँगा। सिपाही निराश लौट पड़ा। इसके बाद सेनापति को पानी लाने के लिए भेजा गया। सेनापति ने समीप जाकर कहा- अन्धे ! पैसा मिलेगा पानी दे।


अन्धा फिर अकड़ पड़ा। उसने कहा, पहले वाले का यह सरदार मालूम पड़ता है। फिर भी चुपड़ी बातें बना कर दबाव डालता है, जा-जा यहाँ से पानी नहीं मिलेगा। सेनापति को भी खाली हाथ लौटता देखकर राजा स्वयं चल पड़े। समीप पहुँचकर वृद्ध जन को सर्वप्रथम नमस्कार किया और कहा- ‘प्यास से गला सूख रहा है। एक लोटा जल दे सकें तो बड़ी कृपा होगी।’ अंधे ने सत्कारपूर्वक उन्हें पास बिठाया और कहा- ‘आप जैसे श्रेष्ठ जनों का राजा जैसा आदर है। जल तो क्या मेरा शरीर भी स्वागत में हाजिर है। कोई और भी सेवा हो तो बतायें।


राजा ने शीतल जल से अपनी प्यास बुझाई फिर नम्र वाणी में पूछा- ‘आपको तो दिखाई पड़ नहीं रहा है फिर जल माँगने वालों को सिपाही, सरदार और राजा के रूप में कैसे पहचान पाये?’ अन्धे ने कहा- ‘वाणी के व्यवहार से हर व्यक्ति के वास्तविक स्तर का पता चल जाता है।’


*शिक्षा:-*

सदैव मीठा वचन बोलना चाहिए, इससे सभी जगह आदर, प्यार, स्नेह प्राप्त होता है।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

परम गुरु हुज़ूर सरकार साहब के बचन

 आज का बचन

 


राधास्वामी सम्वत् 204

अर्ध-शतक 101       सोमवार  अप्रैल 11, 2022     अंक 22       दिवस 1-7



 


परम गुरु हुज़ूर सरकार साहब


के भंडारे के पावन अवसर पर यह


प्रेम प्रचारक - विशेषांक


उनके चरण कमलों में अत्यंत श्रद्धा व दीनता के साथ


सादर समर्पित है।


 


          "परमार्थ के बारे में हम जो कुछ भी अब जानते हैं और उसके बारे में जो कुछ भी हम सोच सकते हैं उन सबके एकमात्र स्रोत-प्रोत राधास्वामी दयाल हैं। जब वह दयाल तशरीफ़ लाये तो उन्होंने हमें वह सब सिखलाया जिसका कि हम परमार्थ के बारे में अब जानने का दावा कर सकें।

 उन दयाल ने हमें यह बतलाया कि हमें अपने उद्धार के लिये केवल उन दयाल पर ही निर्भरता, विश्वास और भरोसा करना चाहिये। उन दयाल ने हमें विश्वास दिलाया कि जब एक बार हमारे अन्दर परमार्थ का बीज बो दिया गया तो उसके विकास को कोई भी नहीं रोक सकता।

 ऐसी कोई भी हालत नहीं हो सकती जहाँ उसकी तरक़्क़ी रुक जाय। प्रकृति-नियम भी इस बात की ताईद करते हैं। उन दयाल ने यह भी वायदा फ़रमाया कि यह सब वह दयाल स्वयं करेंगे। उन दयाल ने अपने ऊपर यह भी ज़िम्मेवारी ली कि अन्तिम समय पर हमें निजी और यक़ीन मदद प्रदान करेंगे और हमें हमारे मौजूदा वातावरण से निकाल कर अपनी प्रेम भरी गोद में ले लेंगे और हमें परमानन्द और मोक्ष प्रदान करेंगे।

उन दयाल ने यह भी विश्वास दिलाया कि वह यह सिलसिला तब तक जारी रक्खेंगे जब तक कि हमारा पूरा उद्धार न हो जाय। इसके अलावा उन दयाल ने हमें यह सिखलाया कि उद्धार की यह काररवाई बिना निजधार की मौजूदगी के, जिसके अवतार यह दयाल ख़ुद थे, असंभव थी। हमें यह भी सिखलाया गया कि अगर यह निजधार पिण्ड और ब्रह्मांड से वापिस चली जाय तो हमारा उद्धार असंभव हो जायेगा।

 इस निजधार के प्रत्येक बदलते नये मनुष्य रूप में हमारी उन तक प्रत्यक्ष पहुँच रही। उन दयाल ने यह भी फ़रमाया कि रचना के उद्धार का काम अपूर्णनहीं छोड़ा जायेगा और इसके बाद त्रिलोकी का ख़ात्मा हो जायगा।


('फ़ोर लेटर्स' के पत्र 1 के अंश का अनुवाद, प्रेम प्रचारक दिनांक 19 अप्रैल, 1999)


 

चरण गुरु हुआ हिये विश्वास

 राधास्वामी!                                               

11-04-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                             

  चरन गुरु हुआ हिये बिस्वास ।

 शब्द सँग करता नित्त विलाम॥१॥                                        

 दूर से आया गुरु दरबार 

चरन गुरु उमँगा हिरदे प्यार।।२।।                                                 

बचन गुरु सुन सुन चित धारे ।

लोभ मोह मन से सब टारें॥३॥                                            

शब्द गुरु महिमा चित्त समाय ।

 दिये सब काम और क्रोध बहाय॥४॥                                                                                                

हिये में जागी नई परतीत ।

चरन गुरु वढ़ती दिन दिन प्रीति॥५॥                                         

लिया अब राधास्वामी पंथ सम्हार।

 शब्द गुरु डारूँ तन मन वार॥६।।                              

सुरत और शब्द जुगत को धार ।

 धुनन की सुनता घट फनकार॥७॥                                       

देख गुरु गुरु भक्ती रीति

नई चरन हिये ध्यावत मगन भई॥८॥                                         

सुनत राधास्वामी महिमा सार ।

 चरन पर जाउँ हिये से बलिहार॥९॥                                                            

 सरन गुरु को सके महिमा गाय ।

वार मन कोई बड़भागी पाय।।१०॥                                    

चरन गुरु हुआ मन दीन अधीन ।

दया राधास्वामी लीनी चीन्ह॥११॥                                    

 सरन गुरु नित हिये दृढ़ करता ।

 धरम और करम भरमं तजता॥१२॥                                   

 भाग मेरा जागा गहिर गंभीर ।

 चरन गुरु पकड़े धारी धीर॥१३॥                                       

पकड़ धुन चढ़ते मन सूरत ।

निरखते घट में गुरु मूरत॥१४॥                                           

आरती नई बिधि घट साजी।

 हुए गुरु राधास्वामी अब राज़ी॥१५॥                                         

प्रेम अँग गावत मन हुआ लीन ।

रूप रस पाया ज्यों जल मीन॥१६॥                                                                                                  

गाउँ नित राधास्वामी गुरु महिमा।

दया पर छिन छिन जाउँ कुरबाँ।।१७।।


 (प्रेमबानी-1-शब्द-72-पृ.सं.359,360,361)

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...