Saturday, February 29, 2020

सत्संग में जाने से सकारात्मक बढती है।




प्रस्तुति - रेणु दत्ता /आशा सिन्हा

*सत्संग में जा कर हम घडी दो घडी अपने जीवन की सभी परेशानियां भूल जाते हैं और बडी शिद्दत से अपने सतगुर को याद करते है और प्रवचन सुनते हैं जब आंखे बन्द करते हैं तब तो सतगुर की छवि आंखो को दिखाई देती है और आंख खोले तो साध संगत दिखाई देती है यानि डबल दर्शन और पूरा दिन एक अजीब सी सकारात्मकता लेकर आता है और सारा दिन मन प्रसन्न रहता है अगर किसी दिन सत्संग नहीं जा पाते तो पूरा दिन खाली और अफसोस में बीतेगा सो हमेंकभी भी सत्संग नही छोड़ना चाहिये नियमित रूप से जाकर लाभ लेना चाहिए!!*_

 *⚜राधास्वामी जी⚜*

सत्संग के उपदेश मिश्रित बचन





प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा

[01/03, 04:30] +

91 97830 60206:

**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाक्यात-

 23 जुलाई 1932 -शनिवार:-

 चंद रोज हुए दयालबाग में एक प्रेम सत्संगी का इंतकाल हो गया ।उसकी उम्र 73 वर्ष की थी। दुनिया के लिहाज से उसने काफी उम्र पाई। वह कई बरस से दयालबाग में ऑनरेरी काम करता था और घर बार के कामों से ज्यादा ताल्लुक नहीं रखता था। लेकिन क्योंकि स्वभाव का नेक था इसलिए हर शख्स के दिल में उसके लिए मोहब्बत थी चुनांचे अब उसके मर जाने पर उसके संबंधीगण जार जार रोते हैं ।

वह कम उम्र या कम अक्ल नहीं है कि उन्हें समझाया जाए। वह बखूबी जानते हैं कि रोना या अफसोस करना नामुनासिब है लेकिन वह मजबूर है । मोहब्बत का जोश आंसुओं की शक्ल अख्तियार करके फूट-फूटकर निकलता है। आप कहेंगे उन्हें मृतक के साथ उसकी हालते जिंदगी में मोहब्बत नहीं पालनी चाहिए थी । लेकिन वह बाप था और वह बच्चे हैं। वह बच्चों से मोहब्बत करता था ,उनको सुख देता था, एक नेकदिल था ।

 बच्चे कैसे उसकी मोहब्बत पीकर चुप लगा जाते? आप कहेंगे कि उसे बच्चों के साथ मोहब्बत जब जबानी चाहिए थी। लेकिन वह दुनिया के दस्तूर के खिलाफ कैसे अमल करता?- इंसानी स्वभाव, दुनिया का रिवाज, दुनिया की तालीम उसके खिलाफ थे। जब उसे विवेक आया उसने दुनिया के ताल्लुकात कम कर दिए और अपने तई संभाल लिया। नासमझी के जमाने के बोये हुये बीजों के लिए वह क्या कर सकता था?  गरजेकि यह हालत है कि दुनिया की मोहब्बत का। उसका अंजाम खुद अपने लिए दुख , और दूसरों के लिए दुख है । सतसंगी भाइयों को चाहिए कि आइंदा सोच समझकर चले। 

  रात के सत्संग में बयान हुआ  सतसंगी दूसरों की देखा देखी स्वामीजी महाराज का जन्म वक्त खास तरह से मनाते हैं। इसमें शक नहीं कि हर प्रेमी जन का फर्ज है कि अपने बुजुर्गों की दया व मेहरबानियों याद कर और शुकराना बजा लावे लेकिन हम गलत रास्ते पर पड़ जाएंगे अगर जन्म घड़ी व मुहूर्त के वहमों में पड़कर खास रश्मियात बजा लाने की फिक्र करने लगेंगे । स्वामीजी महाराज हमारे परम पूज्य सतगुरु है। उनका जन्मदिन हमारे लिए एक मुबारक दिन है । और हमारे जिम्में फर्ज है कि वह दिन मनावे लेकिन ख्याल रखें कि किसी किस्म के भ्रम में हमारी संगत के अंदर न घुसने पावे।  हिंदू भाई कृष्ण महाराज का जन्मदिन मनाते हैं लेकिन साथ ही जन्म की भी नकल उतारते हैं । हमें इस किस्म की बातों से परहेज करना चाहिए

।🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -सत्संग के उपदेश

 -भाग 2- कल का शेष:-

 मन की शुद्धता प्राप्त करने के लिए अव्वल उपाय झुरना यानी पश्चाताप करना है, दूसरा उपाय मन के अंदर भक्ति व प्रेम के ख्यालात पैदा करना है और तीसरा उपाय सुरत यानी तवज्जुह को अंतर में किसी ऊंचे मुकाम पर जमाना है और चौथा उपाए सच्चे मालिक या गुरु महाराज की दया मेहर हासिल करना है। जब हम अपनी गलतियों को गलतियां समझने लगते हैं तभी हमारे मन के अंदर पश्चाताप पैदा होता है। दूसरे लफ़्ज़ों में जब हमारा मन सच्चा होकर बरतने लगता है तभी हमको अपनी कसरे नजर आती हैं । कसरे नजर आने पर अपनी गलती व कमजोरी के लिए हर शौकीन परमार्थी को जोड़ना चाहिए । सच्चा पछतावा पैदा होने पर जैसे नींबू निचोड़ने से अर्क निकल जाता है ऐसे ही मन के अंदर से विकारी अंग निकल जाते हैं। श्रद्धा और भक्ति के ख्यालात मन में पैदा करने से शुद्दता ऐसे प्राप्त होती है जैसे तेजाब के अंदर खार डालने से तेजाब की तेजाबी मिट जाती है ।और सुरत यानी तवज्जुह को किसी ऊंचे मुकाम पर ले जाने से मन को शुद्धता ऐसे प्राप्त होती है जैसे किसी दर्द का रोगी नींद आ जाने पर स्वपन में मनोहर तजुर्बात हासिल करता है यानी तवज्जुह के ऊंचे स्थान की ओर मुखातिब होने से उनका झुकाव निचली जानिब वाले अंगों की तरफ से हट जाता है । सच्चे मालिक या सच्चे गुरु महाराज की कृपा दृष्टि से मन को ऐसे शुद्धता प्राप्त होती है जैसे वर्षा होने से  तमाम वृक्ष व जमीन धुल जाते है। प्रेमीजनों को चाहिये कि इध उपायों में से जिस मौके पर जो उपाय बन पडे वहीं अमल में लावें और लाभ उठावें। 

         बाज पुराने ख्यालात के लोग गंगा, यमुना वगैरह  दरियाओं में स्नान करने से मन की शुद्धता प्राप्त होने की आशा बाँधते है। खुले पानी में गोता मारने पर जिस्म के अंदर अव्वल एक दर्जा की ठंडक आ जाती है जो ग्रीष्म ऋतु  में खासकर हद दर्जे की सोहावनी लगती है। नहाने  के थोडी देर बाद जिस्म में खुशगवार गर्माई व दमक महसूस होती है। अनसमझ लोग इन्ही तजरुबात से खुश होकर अपनी तई तसल्ली देते है कि दरिया में स्नान करने से उनके पाप धुल गये और उनका हृदय शुद्द हो गया। प्रेमीजनों को इस भ्रम से होशियार रहना चाहिये।

।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



 **परम गुरू हुजूर महाराज-प्रेमपत्र-भाग-1-

कल से आगे:

- संत कहते हैं कि यह परम सुख का भंडार तुम्हारे घट में मौजूद है।।                           आदि में सूरत राधास्वामी के चरणों से उतर के ब्रह्मांड में होती हुई और वहां से मन को संग लेती हुई दोनों आंखों के मध्य में आकर ठहरी और वही इसकी असल बैठक है। फिर वहां से सुरत तमाम देह में फैली और एक एक सुख या एक एक किस्म का रस, जो दस इंद्रियों के वसीले से हासिल होता है, सुरत की एक-एक धार का है जो इंद्री द्वारे बैठ कर लेती है । अगर सुरत की धार उस इंद्री पर न हो तो वह इंद्री कुछ काम नहीं दे सकती है। और वह सुरत कतरा या बूंद है सत्तपुरुष राधास्वामी सिंध की । अब जबकि एक कतरा इस कदर सुखदायक है, तो उस सिंध के सुख की क्या महिमा की जावे।।         


   संत फरमाते हैं कि जो सुख की सुरत के भंडार में है वह अविनाशी है और वह देश भी अविनाशी है और तुम भी अविनाशी हो। पर मन और माया का संग करके इस मृत्युलोक में दुख और सुख जन्म मरण भोगना पड़ता है। जबकि दुनिया के नाशवान और तुच्छ सुखों के लिए रात दिन उम्र भर मेहनत करते हो, तब उस सुख के लिए जो सर्व सुखों का भंडार है किस कदर मेहनत करनी चाहिए। जिस कदर मुमकिन हो कम से कम 2 घंटे सुबह और शाम 4 घंटे सुबह और शाम या 4 घंटे सुबह और शाम तवज्जह के साथ इस काम के वास्ते अभ्यास करना मुनासिब है जो शौक होवे, क्योंकि हर एक गृहस्थ  4 घंटे अभ्यास दो-तीन दफा करके हर रोज कर सकता है। बहुत से आदमी 6,7,या 8, घंटे रोज नौकरी करते हैं और कोई कोई 10 घंटे और 12 घंटे रोज मेहनत करते हैं । फिर जो चाहे कोई चाहे कम से कम 2 घंटे, और भी 4 घंटे बल्कि 6 घंटे काम के वास्ते निकाल सकता है।


क्रमशः🙏🏻


 राधास्वामी🙏🏻**

बोधपरक कथाएं



प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा


 कृष्ण मेहता: आत्मबोध
एक बार एक लड़के ने एक सांप पाला, वह लड़का सांप से बहुत प्यार करता था... उस सांप के साथ ही खेलता खाता और साथ में ही सोता भी था .. एक बार वह सांप बीमार जैसा रहने लगा... उसने खाना खाना भी छोड़ दिया, यहाँ तक कई दिनों तक उसने कुछ नहीं खाया तो लड़का परेशान हुआ और उसे वेटरिनरी डॉक्टर के यहाँ लेकर गया .... डॉक्टर ने सांप का पूरा चैक अप करने के बाद उस लड़के से पूछा,
"क्या यह सांप आपके साथ ही सोता है ?"
उस लड़के ने कहा,  "हाँ"
डॉक्टर ने पूछा, "आपसे बहुत सट के सोता है"
लड़का ने कहा,  " जीहाँ, मुझसे लिपट कर सोता है"
डॉक्टर ने पूछा, "क्या रात को सांप अपनी पूरी बॉडी को स्ट्रेच करता है ...?"
ये सुन कर लड़का चौंका उसने कहा, "हाँ डॉक्टर साहब  .. ये रात को अपनी बॉडी को बहुत बुरी तरह स्ट्रेच करता है और मुझसे इसकी इतनी बुरी हालत देखी नहीं जाती और मैं किसी भी तरह से इसका दुःख दूर नहीं कर पाता ........"
डॉक्टर ने कहा, ...." इस सांप को कोई बीमारी नहीं है ... और ये जो रात को तुम्हारे बिल्कुल बगल में लेट कर अपनी बॉडी को स्ट्रेच करता है वो दरअसल तुम्हें निगलने के लिए अपने शरीर को तुम्हारे बराबर लम्बा करने की कोशिश करता है .... वो लगातार ये परख रहा है कि तुम्हारे पूरे शरीर को वो ठीक से निगल पायेगा या नहीं और निगल लिया तो पचा पायेगा या नहीं ..."
लड़का अवाक रह गया ...!

इस घटना से हमें यह शिक्षा मिलती है कि जो आपके साथ हर वक्त रहते हैं .... जिनके साथ आप खाते पीते उठते बैठते सोते हैं ...... जरुरी नहीं कि वो भी आपको उतना ही प्यार करते हो जितना आप उन्हें प्यार करते हैं ...... हो सकता है उनमें से कोई आपको निगलने के लिए अपना आकार धीरे-धीरे बढ़ा रहा हो ..... और आप निरे भावुक होकर उसकी दीन हीन दशा को देखकर द्रवित हो रहे हो..... इसलिए सावधान हो जाइए .....
[09/02, 07:27] Morni कृष्ण मेहता: दिमाग (मस्तिष्क) से जुड़ें रोचक तथ्य:--

कभी-कभी मेरे दिल में ये ख़्याल आता हैं कि दिमाग भी कितने कमाल की चीज हैं यह हर समय हमारे हुक्म के लिए तैयार रहता हैं. कई बार हम थक कर कहते है कि आज मेरा दिमाग काम नही कर रहा.. बल्कि मस्तिष्क कभी थकता ही नही हैं।

1. अगर 5 से 10 मिनट तक दिमाग में ऑक्सीजन की कमी हो जाए तो यह हमेशा के लिए Damage हो सकता हैं.

2. दिमाग पूरे शरीर का केवल 2% होता हैं लेकिन यह पूरी बाॅडी का 20% खून और ऑक्सीजन अकेला इस्तेमाल कर लेता हैं.

3. हमारा दिमाग़ 40 साल की उम्र तक बढ़ता रहता हैं.

4. हमारे दिमाग के 60% हिस्से में चर्बी होती हैं इसलिए यह शरीर का सबसे अधिक चर्बी वाला अंग हैं.

5. सर्जरी से हमारा आधा दिमाग़ हटाया जा सकता हैं और इससे हमारी यादों पर भी कुछ असर नही पडेगा.

6. जो बच्चे पाँच साल का होने से पहले दो भाषाएँ सीखते है उनके दिमाग की संरचना थोड़ी सी बदल जाती हैं.
7. दिमाग की 10% प्रयोग करने वाली बात भी सच नही हैं बल्कि दिमाग के सभी हिस्सों का अलग-अलग काम होता हैं.
8. दिमाग़ के बारे में सबसे पहला उल्लेख 6000 साल पहले सुमेर से मिलता हैं.

9. 90 मिनट तक पसीने में तर रहने से आप हमेशा के लिये एक मनोरोगी बन सकते हो.
10. बचपन के कुछ साल हमें याद नही रहते क्योकिं उस समय तक “HIPPOCAMPUS” डेवलप नही होता, यह किसी चीज को याद रखने के लिए जरूरी हैं.
11. छोटे बच्चे इसलिए ज्यादा सोते हैं क्योंकि उनका दिमाग़ उनके शरीर द्वारा बनाया गया 50% ग्लूकोज इस्तेमाल करता हैं.

12. 2 साल की उम्र में किसी भी उम्र से ज्यादा Brain cells होती हैं.
13. अगर आपने पिछली रात शराब पी थी और अब आपको कुछ याद नही हैं तो इसका मतलब ये नही हैं कि आप ये सब भूल गए हो बल्कि ज्यादा शराब पीने के बाद आदमी को कुछ नया याद ही नही होता.

14. एक दिन में हमारे दिमाग़ में 70,000 विचार आते हैं और इनमें से 70% विचार Negative (उल्टे) होते हैं.

15. हमारे आधे जीन्स दिमाग़ की बनावट के बारे में बताते हैं और बाकी बचे आधे जीन्स पूरे शरीर के बारे में बताते हैं.

16. हमारे दिमाग की memory unlimited होती हैं यह कंप्यूटर की तरह कभी नही कहेगा कि memory full हो गई.
17. अगर शरीर के आकार को ध्यान में रखा जाए तो मनुष्य का दिमाग़ सभी प्रणीयों से बड़ा हैं। हाथी के दिमाग का आकार उसके शरीर के मुकाबले सिर्फ 0.15% होता हैं बल्कि मनुष्य का 2%.
18. एक जिन्दा दिमाग बहुत नर्म होता है और इसे चाकू से आसानी से काटा जा सकता हैं.
19. जब हमे कोई इगनोर या रिजेक्ट करता हैं तो हमारे दिमाग को बिल्कुल वैसा ही महसूस होता हैं जैसा चोट लगने पर.

20. Right brain/Left brain जैसा कुछ नही हैं ये सिर्फ एक मिथ हैं. पूरा दिमाग़ इकट्ठा काम करता हैं.

21. चाॅकलेट की खूशबू से दिमाग़ में ऐसी तरंगे उत्पन्न होती हैं जिनसे मनुष्य आराम (Relax) महसूस करता हैं.

22. जिस घर में ज्यादा लड़ाई होती हैं उस घर के बच्चों के दिमाग पर बिल्कुल वैसा ही असर पड़ता हैं जैसा युद्ध का सैनिकों पर.

23. टी.वी. देखने की प्रक्रिया में दिमाग़ बहुत कम इस्तेमाल होता है और इसलिए इससे बच्चों का दिमाग़ जल्दी विकसित नहीं होता. बच्चों का दिमाग़ कहानियां पढ़ने से और सुनने से ज्यादा विकसित होता है क्योंकि किताबों को पढ़ने से बच्चे ज्यादा कल्पना करते हैं.

24. हर बार जब हम कुछ नया सीखते है तो दिमाग में नई झुर्रियां विकसित होती हैं और यह झुरिया ही IQ का सही पैमाना हैं.

25. अगर आप खुद को मना ले कि हमने अच्छी नींद ली हैं तो हमारा मस्तिष्क भी इस बात को मान जाता हैं.

26. हमारे पलक झपकने का समय 1 सैकेंड के 16वें हिस्से से कम होता है पर दिमाग़ किसी भी वस्तु का चित्र सैकेंड के 16वें हिस्से तक बनाए रखता हैं.

27. हेलमेट पहनने के बाद भी दिमाग को चोट लगने की संभावना 80% होती हैं.

28. मनुष्य के दिमाग़ में दर्द की कोई भी नस नही होती इसलिए वह कोई दर्द नही महसूस नही करता.

29. एक ही बात को काफी देर तक tension लेकर सोचने से हमारा दिमाग कुछ समय के लिए सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को खो देता हैं.
30. दिमाग तेज करने के लिए सिर में मेहंदी लगाए और दही खाए. क्योकिं दही में अमीनो ऐसिड होता हैं जिससे टेंशन दूर होती हैं और दिमाग़ की क्षमता बढ़ती हैं.
31. अगर आप अपने स्मार्टफ़ोन पर लम्बे समय तक काम करते हैं तब आपके दिमाग़ में ट्यूमर होने का खतरा बड़ जाता हैं.
32. अगर दिमाग़ से “Amygdala” नाम का हिस्सा निकाल दिया जाए तो इंसान का किसी भी चीज से हमेशा के लिए डर खत्म हो जाएगा.
33. Brain (दिमाग) और Mind (मन) दो अलग-अलग चीजे हैं वैज्ञानिक आज तक पता नही लगा पाए कि मन शरीर के किस हिस्से में हैं.

34. हमारे दिमाग़ में एक “मिडब्रेन डोपामाइन सिस्टम” (एमडीएस) होता है, जो घटने वाली घटनाओं के बारे में मस्तिष्क को संकेत भेजता हैं हो सकता की हम इसे ही अंतर्ज्ञान अथवा भविष्य के पूर्वानुमान कहते हैं. जिस व्यक्ति के दिमाग में यह सिस्टम जितना ज्यादा विकसित होता है वह उतनी ही सटीक भविष्यवाणी कर सकता हैं.

दीक्षा के बाद कठिनाईयां बढ़ जाती है।





प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा /आशा सिन्हा

*

जो भी व्यक्ति साधना में अग्रसर होता है उनमें से हर कोई दीक्षा लेना चाहता है। परंतु ऐसा नहीं है की दीक्षा सिर्फ साधक को ही लेनी चाहिए बल्कि हमारे सनातन धर्म में यह कहा गया है कि दीक्षा प्रत्येक व्यक्ति को लेनी चाहिए। पूर्व काल में और आज भी कहीं-कहीं यह प्रचलित है की विवाह के समय ही पति-पत्नी को गुरु द्वारा दीक्षा दी जाती है। लेकिन वह दीक्षा सिर्फ #कुलगुरु के द्वारा ही दी जाती है ना की किसी अन्य के द्वारा।

आज की समय में यह हमेशा सुनने को देखने को मिलता है कि दीक्षा लेने के कुछ समय बाद साधक की परेशानियां और बढ़ गई। आखिर क्या कारण है इसका ?हमने तो दीक्षा इसलिए ली थी कि हमें साधना में सफलता प्राप्त हो लेकिन ऐसा क्यों कि हमारी परेशानियां ही बढ़ती जा रही है इसका क्या क्या कारण है यह मैं आज आपके सामने रख रहा हूं।

पहला_और_सबसे_बड़ा_प्रमुख_कारण
आपको यह पता ही नहीं है कि आप किस कुल से हैं ।अर्थात जिस भी कुल में आपका जन्म हुआ है वहां पहले से ही आपके जो भी देवी देवता पूजित हो रहे हैं उन्हीं के कुल के अनुसार दीक्षा लेनी चाहिए फिर भी अगर आप इससे बाहर चाहते हैं तो भी आपको यह जानकारी होनी चाहिए कि आपके पूर्वजों ने किन की साधनाएं की थी और हम में से हर किसी के पूर्वज किसी न किसी बड़ी शक्ति की पूजा करके उनको अपने घर में स्थान दिया ही हैं यह अकाट्य सत्य है। इसे हम झुठला नहीं सकते और हमारा जन्म जो हुआ है वह भी उस कुल के शक्ति के कारण ही हुआ है, अपने कुल में जन्म देने का श्रेय उस कुल के शक्ति को जाता है और कहीं ना कहीं वह शक्ति यह चाहती हैं कि आने वाले समय में आप उनकी सेवा करें लेकिन आज के समय में खास करके फेसबुक और इंटरनेट के माध्यम से जो दीक्षा दी जाती है उसमें ना तो आपके कुल का पता होता है ना तो आपके कुल में पूजित शक्तियों के बारे में पूछा जाता है सीधा आपको मंत्र उठा के दीक्षा दे देते हैं।

अब यह भी प्रश्र उठता है की अगर मेरे पिता वैष्णव हैं और मुझे शैव मार्ग पर चलना है तो क्या यह फलित नही होगा। इसका साधारण सा उत्तर है बिल्कुल होगा बस आपको इतना करना है कि प्रथम दीक्षा अपने कुलगुरू द्वारा लेना है और भगवान नारायण का कम से कम एक पुरश्चरण अवश्य करना है। उसके बाद ही गुरूआज्ञा लेकर या तो उनके द्वारा या गुरू द्वारा बताये गये विद्वान साधक द्वारा आप शैव मार्ग को चुनें। लेकिन कुलगुरू और पिता अगर आपको सीधे आज्ञा प्रदान कर दें तो नारायण इच्छा।

दुसरा_प्रमुख_कारण

आप गृहस्थ हो। पत्नी है , बच्चे हैं और दीक्षा लिये हो शमशानिक अघोरी की। तो भैया आज फलित हो भी जाये आपके अगले वंश के बच्चे अगर सेवा पुजा न करें तो दर दर भटकेंगे। महाकाली की कालका स्वरूप घर में पुजित होती है जिनके पुजन भोग में लहसन प्याज तक वर्जित है। शमशान काली को बडे़ बोल वाले आज घर पुजवा देंगे कल को आपका घर शमशान बनेगा। नियम बना है न तो नियम के अनुसार चलिये। शमशान साधना की इतनी इच्छा है तो छोड़ कर परिवार एकांतवास करिये। अपने इच्छा के लिये कुल के नाश का कारण न बनिये।

तीसरा_प्रमुख_कारण

वर्ण संकर दीक्षा - यह आज बहुत ही प्रभावी है। इस बात को कहते हुये जरा भी हिचक नही की लंपट और कपटी गुरू अपने से उच्च वर्ण के व्यक्ति को भी दीक्षा दे दे रहे हैं। अरे अपनी तुलना महाकवि बाल्मिकी, संत रविदास , महर्षि विश्वामित्र से करना छोड़ दो की वह तो शुद्र थे, क्षत्रिय थे। अरे तुम कालनेमियों में इतना सामर्थय आ गया है जो संतो और ऋषियों के समकक्ष बैठोगे। हाँ आज भी जो समर्थ गुरू हैं जिन्होंने वास्तव में साधनाऐं की हैं तो उनका मुखतेज से ब्रह्मविद्या झलकती है। उन्हें आप गुरू बनायें चाहे वह शुद्र हों या कुछ और।
इसे पढ़ कर जो स्वयं को कालनेमि समझता हो वह ही कमेंट में अपना चरित दिखाये वरना सिद्ध तो शांत रहेंगे ही। 😜
गलती उनकी है जो कालनेमी को पहचान नही पाते और मंत्र ले कर फंस जाते हैं। अरे पुरे जीवन का सवाल है परखो पहले फिर दीक्षा लो।

चौथा_प्रमुख_कारण

स्वयंसिद्ध गुरू जो इतना विज्ञापन देते हैं की दीक्षा लो और सिद्ध हो जाओ। यह मंत्र बिना दीक्षा नही करनी यह स्त्रोत बिना दीक्षा नही करनी। आप दीक्षा पर दीक्षा लेते हो हर दीक्षा का 4100 रू देते हो और गंवा के पैसा टुटते रहते हो।
अगर वास्तव में गुरू होते तो हर स्त्रोत मंत्र की दीक्षा नही बल्कि आज्ञा दी जाती है और विधि बताई जाती है, वह करवाते। तो जिनको सिर्फ अपना बैंक भरना है वैसे गुरू की दीक्षा फलित होने से रही।

पाँचवा_प्रमुख_कारण

सब कुछ बिल्कुल सही से हुआ। गुरू भी मिल गयें। दीक्षा भी सही। तब भी दीक्षा के बाद परेशानी हो गयी। ऐसी स्थिति में गुरू जी से कह कर स्वयं के लिये शाप विमोचन  विधि करवानी चाहिये। पहले से कभी गाय, पशु या प्राणी को कष्ट दिये हो और उनका रोना आप पर पडा़ हो तब दीक्षा के साथ श्राप भी तुरंत असर दिखाता है।

विशेष :-
1. जो गुरू भगवान से ज्यादा अपनी भक्ति करवाये। गुरू गुरू करते रहे और स्वयं को ही भगवान समझे ऐसे गुरू से तुम्हे कुछ नही मिलेगा। लिख लो। ठगे जाओगे स्वयं के द्वारा।

2. गुरू वह है जो तुम्हें परम मोक्ष के ओर ले जाये। सांसारिक कष्टों को हल करे। सिर्फ दक्षिणा न मांगे बल्कि तुम्हारे बुरे दिनों में अपना सामर्थय दिखाये।

3. वैसे दुष्ट और लंपट गुरूओं से भी दीक्षा लेना बेकार है जो अपने ही शिष्य की साधना और अध्यात्मिक  उन्नति से ईर्ष्या रखता हो। ऐसे दुष्ट कालनेमी अपने ही शिष्य की शक्तियों को बंधन में डाल देते और उनका आर्थिक स्थिति खराब कर स्वयं के अंहकार को पोषित करते हैं। इन जैसों के लिये यमराज सफोला गोल्ड रिफाइन तेल को कराह में डाल गरम रखते हैं। विशेष आवभगत होती है।

जिस तरह सोना लेते समय स्वयं हॉलमार्क देखते हो न की गाढी़ कमाई से ले रहे हैं नकली न निकल जाये तो माता जी, भैया जी अपने वर्तमान और भविष्य की स्वर्ण कुंजि किसी को सौंपने से पहले क्यों नही परखते और सोचते ??
 याद रहे बडे़ बडे़ ब्रांडेड शोरूमों में ही नकली स्वर्ण अधिकतर बेचे जाते हैं। तो शोरूम मत देखो समान देखो। क्या दिया जा रहा है़। भेडो़ं के जैसे कुंऐ में मत गिरो कि इतने लोग शमशान काली दीक्षा लिये और शत्रुनाश किये तो हम भी वही करेंगे। अरे क्या राम जी, विष्णुजी , शिवजी, दुर्गा जी शत्रुनाश नही किये। इनकी पुजा से समस्या हल नही होगा। भोले मानुषों राम नाम लेकर लंका दहन करने वाले हनुमान जी कितने मुंडमाला पहनते थे?? अब रहस्य मत बताना मुझे।

मेरा कथन सिर्फ यह है की परख कर गुरू बनाओ और ऐसा गुरू बनाओ जो आपके कष्टों में साथ खडा़ रहे। न की मझधार डुलाने वाले उससे आपकी बात भी न होने दे। बाकी आपकी श्रद्धा और भगवती इच्छा।🙏

सीधा दीक्षा पर लिखा है तो अब तुम स्वयंसिद्ध गुरू हो ही और अब तो और भी दीक्षा दोगे इस चोरी के बाद, तो चोरी के लिये कुछ नही कह रहा मैं लेकिन सौगंध है तुम्हें अपने माता पिता गुरू और इष्ट की, कि अगर मेरे इन विचारों को पैसे कमाने के लिये प्रक्षेपित कर रहे हो तो जितना कमाओगे उसका आधा हिस्से का तुम अपने हाथों से भोजन बनाकर गरीबों को खिलाओगे, या कुष्टरोगियों के लिये दवा खरीदोगे या जरूरतमंदों की सहायता करोगे
राधास्वामी।।





संत और पनिहारिन संवाद




प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा

✋🏻 प्रेरक प्रसंग ✋🏻

एक साधु किसी नदी के पनघट पर गया और पानी पीकर पत्थर पर अपना सिर रखकर सो गया....!!!

पनघट पर पनिहारिन आती-जाती रहती हैं!
             तो एक ने कहा- "आहा! साधु हो गया, फिर भी तकिए का मोह नहीं गया...
पत्थर का ही सही, लेकिन रखा तो है।"

पनिहारिन की बात साधु ने सुन ली...
उसने तुरंत पत्थर फेंक दिया...

दूसरी बोली--
"साधु हुआ, लेकिन खीज नहीं गई..
अभी रोष नहीं गया,तकिया फेंक दिया।"
तब साधु सोचने लगा, अब वह क्या करे ?

तब तीसरी बोली-
"बाबा! यह तो पनघट है,यहां तो हमारी जैसी पनिहारिनें आती ही रहेंगी, बोलती ही रहेंगी, उनके कहने पर तुम बार-बार परिवर्तन करोगे तो साधना कब करोगे?"

लेकिन चौथी ने
बहुत ही सुन्दर और एक बड़ी अद्भुत बात कह दी-
"क्षमा करना,लेकिन हमको लगता है,तुमने सब कुछ छोड़ा लेकिन अपना चित्त नहीं छोड़ा है,अभी तक वहीं के वहीं बने हुए हैं।
दुनिया पाखण्डी कहे तो कहे, तुम जैसे भी हो,
हरिनाम लेते रहो।"
सच तो यही है, दुनिया का तो काम ही है कहना...

आप ऊपर देखकर चलोगे तो कहेंगे...
"अभिमानी हो गए।"

नीचे देखोगे तो कहेंगे...
"बस किसी के सामने देखते ही नहीं।"

आंखे बंद करोगे तो कहेंगे कि...
"ध्यान का नाटक कर रहा है।"

चारों ओर देखोगे तो कहेंगे कि...
"निगाह का ठिकाना नहीं। निगाह घूमती ही रहती है।"

और परेशान होकर आंख फोड़ लोगे तो यही दुनिया कहेगी कि...
"किया हुआ भोगना ही पड़ता है।"

ईश्वर को राजी करना आसान है....
       लेकिन संसार को राजी करना असंभव है.... !!
               
"अतः कर्म करो आलोचनाओं की चिंता न करो ।।"
   
!!जय हो राधास्वामी !!



ईश्वर के प्रति अटूट भक्ति ही भक्त की शक्ति है




प्रस्तुति -  दिनेश कुमार सिन्हा

*🌷प्रेरणादायी कहानियां🌷*

ईश्वर पर अटूट भरोसा – भगवान आपके साथ हैं

जाड़े का दिन था और शाम होने आयी । आसमान में बादल छाये  थे । एक नीम के पेड़ पर बहुत से कौए बैठे थे । वे सब बार बार काँव-काँव कर रहे थे और एक दूसरे से झगड़ भी रहे थे । इसी समय एक मैना आयी और उसी पेड़ की एक डाल पर बैठ गई । मैना को देखते ही कई कौए उस पर टूट पड़े ।

बेचारी मैना ने कहा – बादल बहुत है इसीलिये आज अँधेरा हो गया है । मैं अपना घोंसला भूल गयी हूँ इसीलिये आज रात मुझे यहाँ बैठने दो ।



कौओं ने कहा – नहीं यह पेड़ हमारा है तू यहाँ से भाग जा ।

मैना बोली – पेड़ तो सब इश्वर के बनाये हुए है । इस सर्दी में यदि वर्षा पड़ी और ओले पड़े तो इश्वर ही हमें बचा सकते है । मैं बहुत छोटी हूँ तुम्हारी बहिन हूँ, तुम लोग मुझ पर दया करो और मुझे भी यहाँ बैठने दो ।

कौओं ने कहा हमें तेरी जैसी बहिन नहीं चाहिये । तू बहुत इश्वर का नाम लेती है तो इश्वर के भरोसे यहाँ से चली क्यों नहीं जाती । तू नहीं जायेगी तो हम सब तुझे मारेंगे ।

कौए तो झगड़ालू होते ही है, वे शाम को जब पेड़ पर बैठने लगते है तो उनसे आपस में झगड़ा किये बिना नहीं रहा जाता वे एकदूसरे को मारते है और काँव काँव करके झगड़ते रहते है । कौन कौआ किस टहनी पर रात को बैठेगा । यह कोई झटपट तय नहीं हो जाता । उनमें बार बार लड़ाई होती है, फिर किसी दूसरी चिड़या को वह पेड़ पर कैसे बैठने दे सकते है । आपसी लड़ाई छोड़ कर वे मैना को मारने दौड़े ।

कौओं को काँव काँव करके अपनी ओर झपटते देखकर बेचारी मैना वहाँ से उड़ गयी और थोड़ी दूर जाकर एक आम के पेड़ पर बैठ गयी ।

रात को आँधी आयी, बादल गरजे और बड़े बड़े ओले बरसने लगे । बड़े आलू जैसे ओले तड़-भड़ बंदूक की गोली जैसे गिर रहे थे । कौए काँव काँव करके चिल्लाये । इधर से उधर थोड़ा बहुत उड़े परन्तु ओलो की मार से सब के सब घायल होकर जमीन पर गिर पड़े । बहुत से कौए मर गये ।

मैना जिस आम पर बैठी थी उसकी एक डाली टूट कर गिर गयी । डाल भीतर से सड़ गई थी और पोली हो गई थी । डाल टूटने पर उसकी जड़ के पास पेड़ में एक खोंडर हो गया । छोटी मैना उसमें घुस गयी और उसे एक भी ओला नहीं लगा ।



सबेरा हुआ और दो घड़ी चढने पर चमकीली धूप निकली । मैंना खोंडर में से निकली पंख फैला कर चहक कर उसने भगवान को प्रणाम किया और उड़ी ।

पृथ्वी पर ओले से घायल पड़े हुए कौए ने मैना को उड़ते देख कर बड़े कष्ट से पूछा – मैना बहिन तुम कहाँ रही तुमको ओलो की मार से किसने बचाया ।

मैना बोली मैं आम के पेड़ पर अकेली बैठी थी और भगवान की प्रार्थना करती थी । दुख में पड़े असहाय जीव को इश्वर के सिवा कौन बचा सकता है ।

लेकिन इश्वर केवल ओले से ही नहीं बचाते और केवल मैना को ही नहीं बचाते । जो भी इश्वर पर विश्वास करता है और इश्वर को याद करता है, उसे इश्वर सभी आपत्ति-विपत्ति में सहायता करते है और उसकी रक्षा करते है ।

*🌹शुभ रात्रि*
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इस तरह सिगरेट की लत से मुक्ति पाएं



प्रस्तुति - सचिन चौहान / अर्चना चौहान

सिगरेट की तलब दूर करने में मददगार हैं ये 5 घरेलू नुस्‍खे

शक्तिशाली हर्ब जिनसेंग

जिनसेंग एक शक्तिशाली हर्ब है, जो शरीर में एनर्जी के स्तर को बढ़ा देता है। जब आप धूम्रपान छोड़ रहे होते हैं, तो आपका शरीर तनाव और आलस्य की चपेट में आ जाता है। जिनसेंग इन सबसे निपटने में मदद करता है। ‘जिनसेंग रिसर्च’ जरनल में छपी रिपोर्ट के अनुसार जिनसेंग न्यूरोट्रासमीटर डोपामाइन रिलीज करने से रोकता है। ये डोपामाइन स्मोकिंग के दौरान प्लेजर देता है। यदि रोजाना जिनसेंग का सेवन करेंगे तो धूम्रपान करने से मिलने वाली खुशी और संतुष्टि कम हो जाती है।

विटामिन सी से भरपूर आहार

सिगरेट पीने से विटामिन सी की कमी आ जती है जिससे अधिक निकोकिन का सेवन करने का मन करता है। अमेरिकन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित रिसर्च के अनुसार अगर आप सही मायनों में निकोटिन की लत छोड़ना चाहते हैं तो विटामिन सी से भरपूर आहार जैसे आंवला, संतरा, अमरूद और बेरीज का सेवन करें। इसमें मौजूद विटामिन सी निकोटिन लेने की इच्‍छा कम करता है।

धूम्रपान की लालसा लाल मिर्च

लाल मिर्च में कैप्साइसिन के अलावा विटामिन सी होता है। जो श्‍वसन प्रणाली को मजबूत बनाने का काम करती है और धूम्रपान की लालसा को कम करती है। इस मसाले को अपने खाने में प्रयोग करने के साथ ही 1 गिलास पानी में चुटकी भर भी प्रयोग कर सकते हैं। इससे आपको तुरंत राहत मिलती है और यह लंबे समय तक काम करता है।

उपयोगी औषधि शहद

किसी भी तरह का नशा दूर करने के लिए शहद उपयोगी औषधि है। शहद में उपयोगी विटामिन, एंजाइम और प्रोटीन होते हैं जो स्‍मोकिंग की तलब को छुड़वाने में मदद करते हैं। हमेशा शुद्ध शहद का प्रयोग करें क्‍योंकि इसका अच्‍छा प्रभाव पड़ता है।

स्‍मोकिंग की लत कम करें ओट्स

ओट्स शरीर से घातक विषैले पदार्थों को बाहर निकालता है और स्मोकिंग की चाहत को कम कर देता है। इसे इस्‍तेमाल करने के लिए एक चम्मच ओटस लें और उन्हें 2 कप पानी में उबालें। इसके बाद इसे रात भर कहीं रख दें। सुबह फिर से 10 मिनट के लिए उबालें। इस पानी को कुछ भी खाने के बाद पीयें। इस प्रकर ये पानी आपके शरीर में जहरीले तत्वों को हटाकर स्‍मोकिंग की लत को कम करता है।

अन्‍य उपाय

सिगरेट पीने की इच्‍छा होने पर दालचीनी चबाये या इसका टुकड़ा चूसें। इसका तीखा स्‍वाद निकोटिन की इच्‍छा खत्‍म करता है।
जब भी स्‍मोकिंग का मन करें तो आप मुलेठी का दातून लेकर उसे चबा सकते हैं, आपकी स्‍मोकिंग की इच्‍छा कम हो जाएगी।
बेकिंग सोडा शरीर के पीएच स्‍तर को सामान्‍य रखता है, इससे निकोटिन लेने की इच्‍छा कम हो जाती है।
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परनिंदा का गलत परिणाम




प्रस्तुति - सुधा सिन्हा / शंभूनाथ सिन्हा


*🌷प्रेरणादायी कहानियां🌷*

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    राजा पृथु एक दिन सुबह-सुबह घोड़ों के तबेले में जा पहुँचे। तभी वहाँ एक साधु भिक्षा मांगने आ पहँचा। सुबह-सुबह साधु को भिक्षा मांगते देख पृथु क्रोध से भर उठे। उन्होंने साधु की निंदा करते हुये, बिना विचारे तबेले से घोड़े की लीद उठाई और उसके पात्र में डाल दी। साधु भी शांत स्वभाव का था, सो भिक्षा ले वहाँ से चला गया और वह लीद कुटिया के बाहर एक कोने में डाल दी।

कुछ समय उपरान्त राजा पृथु शिकार के लिये गये। पृथु ने जब जंगल में देखा कि, एक कुटिया के बाहर घोड़े की लीद का बड़ा सा ढेर लगा हुआ है। उन्होंने देखा कि, यहाँ तो न कोई तबेला है और न ही दूर-दूर तक कोई घोड़े दिखाई दे रहे हैं। वह आश्चर्यचकित हो कुटिया में गये और साधु से बोले, "महाराज ! आप हमें एक बात बताइये, यहाँ कोई घोड़ा भी नहीं, न ही तबेला है, तो यह इतनी सारी घोड़े की लीद कहा से आई ?"

साधु ने कहा, " राजन् ! यह लीद मुझे एक राजा ने भिक्षा में दी है। अब समय आने पर यह लीद उसी को खानी पड़ेगी। यह सुन राजा पृथु को पूरी घटना याद आ गई। वे साधु के पैरों में गिर क्षमा मांगने लगे। उन्होंने साधु से प्रश्न किया, हमने तो थोड़ी-सी लीद दी थी, पर यह तो बहुत अधिक हो गई ? साधु ने कहा, "हम किसी को जो भी देते हैं, वह दिन-प्रतिदिन प्रफुल्लित होता जाता है और समय आने पर हमारे पास लौटकर आ जाता है, यह उसी का परिणाम है।"

यह सुनकर पृथु की आँखों में अश्रु भर आये। वे साधु से विनती कर बोले, "महाराज ! मुझे क्षमा कर दीजिये। मैं आइन्दा ऐसी गलती कभी नहीं करूँगा। कृपया कोई ऐसा उपाय बता दीजिये, जिससे मैं अपने दुष्ट कर्मों का प्रायश्चित कर सकूँ।"

राजा की ऐसी दु:खमयी हालत देखकर साधु बोला, "राजन् ! एक उपाय है। आपको कोई ऐसा कार्य करना है, जो देखने में तो गलत हो, पर वास्तव में गलत न हो। जब लोग आपको गलत देखेंगे, तो आपकी निंदा करेंगे। जितने ज्यादा लोग आपकी निंदा करेंगे, आपका पाप उतना हल्का होता जायेगा। आपका अपराध निंदा करने वालों के हिस्से में आ जायेगा।

यह सुनकर राजा पृथु ने महल में आकर काफी सोच-विचार किया और अगले दिन सुबह से शराब की बोतल लेकर चौराहे पर बैठ गये। सुबह-सुबह राजा को इस हाल में देखकर सब लोग आपस में राजा की निंदा करने लगे कि, कैसा राजा है ? कितना निंदनीय कृत्य कर रहा है, क्या यह शोभनीय है ? आदि-आदि ! निंदा की परवाह किये बिना राजा पूरे दिन शराबियों की तरह अभिनय करते रहे।

इस पूरे कृत्य के पश्चात जब राजा पृथु पुनः साधु के पास पहुँचे, तो लीद के ढेर के स्थान पर एक मुट्ठी लीद देख आश्चर्य से बोले, "महाराज ! यह कैसे हुआ ? इतना बड़ा ढेर कहाँ गायब हो गया ?"

साधू ने कहा, "यह आपकी अनुचित निंदा के कारण हुआ है राजन् ! जिन-जिन लोगों ने आपकी अनुचित निंदा की है, आपका पाप उन सबमें बराबर-बराबर बंट गया है।

जब हम किसी की बेवजह निंदा करते हैं, तो हमें उसके पाप का बोझ भी उठाना पड़ता है। तथा हमें अपने किये गये कर्मों का फल तो भुगतना ही पड़ता है। अब चाहे हँसकर भुगतें या रोकर। हम जैसा देंगे, वैसा ही लौटकर वापिस आयेगा।

*"दूसरे की निंदा करिये और अपना घड़ा भरिये।"* हम जाने-अनजाने अपने आस-पास के व्यक्तियों की निंदा करते रहते हैं। जबकि हमें उनकी वास्तविक परिस्थितियों का तनिक भी ज्ञान नहीं होता। निंदा-रस का स्वाद बहुत ही रुचिकर होता है। इसलिये लगभग हर व्यक्ति इसका स्वाद लेने को आतुर रहता है।

वास्तव में निंदा एक ऐसा  मानवीय गुण है, जो सभी व्यक्तियों में कुछ-न-कुछ मात्रा में अवश्य पाया जाता है। यदि हमें ज्ञान हो जाये कि, पर-निंदा का परिणाम कितना भयानक होता है, तो हम इस पाप से आसानी से बच सकते हैं।

*🌹शुभ रात्रि*
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शनि शांति के सार्थक उपाय




प्रस्तुति - कृष्ण मेहता

शनि के उपाय
1- सर्वप्रथम शनि ग्रह के स्वामी भगवान भैरव से माफी मांगते हुए उनकी उपासना करें।
2- हनुमान ही शनि के दंश से बचा सकते हैं तो प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढ़ें।
3- शनि की शांति के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जप भी कर सकते हैं।
4 तिल, उड़द, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, काली गौ और जूता दान देना चाहिए।
5 कौवे को प्रतिदिन रोटी खिलाएं।
6 छायादान करें अर्थात कटोरी में थोड़ा-सा सरसों का तेल लेकर अपना चेहरा देखकर शनि मंदिर में अपने पापों की क्षमा मांगते हुए रख आएं।
7 दांत, नाक और कान सदा साफ रखें।
8 अंधे, अपंगों, सेवकों और सफाइकर्मियों से अच्छा व्यवहार रखें।
9 कभी भी अहंकार, घमंड न करें, विनम्र बने रहें।
10 किसी भी देवी, देवता, गुरु आदि का अपमान न करें।
11 शराब पीना, जुआ खेलना, ब्याज का धंधा तुरंत बंद कर दें।
12 पराई स्त्री से कभी संबंध न रखें-

हिंदू धर्म की परम पावन पवित्र शुद्ध मोहक ध्वनियां





प्रस्तुति - स्वामी शरण/ दीपा शरण

हिन्दू धर्म और पवित्र ध्वनियां
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हिन्दू धर्म का नृत्य, कला, योग और संगीत से गहरा नाता रहा है। हिन्दू धर्म मानता है कि ध्वनि और शुद्ध प्रकाश से ही ब्रह्मांड की रचना हुई है। आत्मा इस जगत का कारण है। चारों वेद, स्मृति, पुराण और गीता आदि धार्मिक ग्रंथों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को साधने के हजारोहजार उपाय बताए गए हैं। उन उपायों में से एक है संगीत। संगीत की कोई भाषा नहीं होती। संगीत आत्मा के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। शब्दों में बंधा संगीत विकृत संगीत माना जाता है।

प्राचीन परंपरा : भारत में संगीत की परंपरा अनादिकाल से ही रही है। हिन्दुओं के लगभग सभी देवी और देवताओं के पास अपना एक अलग वाद्य यंत्र है। विष्णु के पास शंख है तो शिव के पास डमरू, नारद मुनि और सरस्वती के पास वीणा है, तो भगवान श्रीकृष्ण के पास बांसुरी। खजुराहो के मंदिर हो या कोणार्क के मंदिर, प्राचीन मंदिरों की दीवारों में गंधर्वों की मूर्तियां आवेष्टित हैं। उन मूर्तियों में लगभग सभी तरह के वाद्य यंत्र को दर्शाया गया है। गंधर्वों और किन्नरों को संगीत का अच्छा जानकार माना जाता है।

सामवेद उन वैदिक ऋचाओं का संग्रह मात्र है, जो गेय हैं। संगीत का सर्वप्रथम ग्रंथ चार वेदों में से एक सामवेद ही है। इसी के आधार पर भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा और बाद में संगीत रत्नाकर, अभिनव राग मंजरी लिखा गया। दुनियाभर के संगीत के ग्रंथ सामवेद से प्रेरित हैं।

संगीत का विज्ञान : हिन्दू धर्म में संगीत मोक्ष प्राप्त करने का एक साधन है। संगीत से हमारा मन और मस्तिष्क पूर्णत: शांत और स्वस्थ हो सकता है। भारतीय ऋषियों ने ऐसी सैकड़ों ध्वनियों को खोजा, जो प्रकृति में पहले से ही विद्यमान है। उन ध्वनियों के आधार पर ही उन्होंने मंत्रों की रचना की, संस्कृत भाषा की रचना की और ध्यान में सहायक ध्यान ध्वनियों की रचना की। इसके अलावा उन्होंने ध्वनि विज्ञान को अच्छे से समझकर इसके माध्यम से शास्‍‍त्रों की रचना की और प्रकृति को संचालित करने वाली ध्वनियों की खोज भी की। आज का विज्ञान अभी भी संगीत और ध्वनियों के महत्व और प्रभाव की खोज में लगा हुआ है, लेकिन ऋषि-मु‍नियों से अच्छा कोई भी संगीत के रहस्य और उसके विज्ञान को नहीं जान सकता।

प्राचीन भारतीय संगीत दो रूपों में प्रचलन में था-1. मार्गी और 2. देशी। मार्गी संगीत तो लुप्त हो गया लेकिन देशी संगीत बचा रहा जिसके मुख्यत: दो विभाजन हैं- 1. शास्त्रीय संगीत और 2. लोक संगीत।

शास्त्रीय संगीत शास्त्रों पर आधारित और लोक संगीतकाल और स्थान के अनुरूप प्रकृति के स्वच्छंद वातावरण में स्वाभाविक रूप से पलता हुआ विकसित होता रहा। हालांकि शास्त्रीय संगीत को विद्वानों और कलाकरों ने अपने-अपने तरीके से नियमबद्ध और परिवर्तित किया और इसकी कई प्रांतीय शैलियां विकसित होती चली गईं तो लोक संगीत भी अलग-अलग प्रांतों के हिसाब से अधिक समृद्ध होने लगा।

बदलता संगीत : मुस्लिमों के शासनकाल में प्राचीन भारतीय संगीत की समृद्ध परंपरा को अरबी और फारसी में ढालने के लिए आवश्यक और अनावश्यक और रुचि के अनुसार उन्होंने इसमें अनेक परिवर्तन किए। उन्होंने उत्तर भारत की संगीत परंपरा का इस्लामीकरण करने का कार्य किया जिसके चलते नई शैलियां भी प्रचलन में आईं, जैसे खयाल व गजल आदि। बाद में सूफी आंदोलन ने भी भारतीय संगीत पर अपना प्रभाव जमाया। आगे चलकर देश के विभिन्न हिस्सों में कई नई पद्धतियों व घरानों का जन्म हुआ। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान पाश्चात्य संगीत से भी भारतीय संगीत का परिचय हुआ। इस दौर में हारमोनियम नामक वाद्य यंत्र प्रचलन में आया।

दो संगीत पद्धतियां : इस तरह वर्तमान दौर में हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटकी संगीत प्रचलित है। हिन्दुस्तानी संगीत मुगल बादशाहों की छत्रछाया में विकसित हुआ और कर्नाटक संगीत दक्षिण के मंदिरों में विकसित होता रहा।

हिन्दुस्तानी संगीत : यह संगीत उत्तरी हिन्दुस्तान में- बंगाल, बिहार, उड़ीसा, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, गुजरात, जम्मू-कश्मीर तथा महाराष्ट्र प्रांतों में प्रचलित है।

कर्नाटक संगीत :  यह संगीत दक्षिण भारत में तमिलनाडु, मैसूर, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश आदि दक्षिण के प्रदेशों में प्रचलित है।

वाद्य यंत्र : मुस्लिम काल में नए वाद्य यंत्रों की भी रचना हुई, जैसे सरोद और सितार। दरअसल, ये वीणा के ही बदले हुए रूप हैं। इस तरह वीणा, बीन, मृदंग, ढोल, डमरू, घंटी, ताल, चांड, घटम्, पुंगी, डंका, तबला, शहनाई, सितार, सरोद, पखावज, संतूर आदि का आविष्कार भारत में ही हुआ है। भारत की आदिवासी जातियों के पास विचित्र प्रकार के वाद्य यंत्र मिल जाएंगे जिनसे निकलने वाली ध्वनियों को सुनकर आपके दिलोदिमाग में मदहोशी छा जाएगी।

उपरोक्त सभी तरह की संगीत पद्धतियों को छोड़कर आओ हम जानते हैं, हिन्दू धर्म के धर्म-कर्म और क्रियाकांड में उपयोग किए जाने वाले उन 10 प्रमुख वाद्य यंत्रों को जिनकी ध्वनियों को सुनकर जहां घर का वस्तु दोष मिटता है वहीं मन और मस्तिष्क भी शांत हो जाता है।

1. मंदिर की घंटी (bells) : जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ तब जो नाद था, घंटी की ध्वनि को उसी नाद का प्रतीक माना जाता है। यही नाद ओंकार के उच्चारण से भी जाग्रत होता है।

 जिन स्थानों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध और पवित्र बना रहता है। इससे नकारात्मक शक्तियां हटती हैं। नकारात्मकता हटने से समृद्धि के द्वार खुलते हैं। प्रात: और संध्या को ही घंटी बजाने का नियम है, वह भी लयपूर्ण।

घंटी या घंटे को काल का प्रतीक भी माना गया है। ऐसा माना जाता है कि जब प्रलय काल आएगा, तब भी इसी प्रकार का नाद यानी आवाज प्रकट होगी।

2. शंख (conch) : शंख को नादब्रह्म और दिव्य मंत्र की संज्ञा दी गई है। शंख समुद्र मंथन के समय प्राप्त 14 अनमोल रत्नों में से एक है। लक्ष्मी के साथ उत्पन्न होने के कारण इसे लक्ष्मी भ्राता भी कहा जाता है। यही कारण है कि जिस घर में शंख होता है वहां लक्ष्मी का वास होता है।

कई देवी-देवतागण शंख को अस्त्र रूप में धारण किए हुए हैं। महाभारत में युद्धारंभ की घोषणा और उत्साहवर्धन हेतु शंख नाद किया गया था।

शंख के मुख्यतः 3 प्रकार होते हैं- वामावर्ती, दक्षिणावर्ती तथा गणेश शंख। उक्त 3 प्रकार के अनेक प्रकार होते हैं- इसके अलावा गोमुखी शंख, विष्णु शंख, पांचजन्य शंख, अन्नपूर्णा शंख, मोती शंख, हीरा शंख, शेर शंख आदि।

शंख सूर्य व चंद्र के समान देवस्वरूप हैं जिसके मध्य में वरुण, पृष्ठ में ब्रह्मा तथा अग्र में गंगा और सरस्वती नदियों का वास है। तीर्थाटन से जो लाभ मिलता है, वही लाभ शंख के दर्शन और पूजन से मिलता है।

3. बांसुरी (flute) : ढोल मृदंग, झांझ, मंजीरा, ढप, नगाड़ा, पखावज और एकतारा में सबसे प्रिय बांस निर्मित बांसुरी भगवान श्रीकृष्ण को अतिप्रिय है।

इसे वंसी, वेणु, वंशिका और मुरली भी कहते हैं। बांसुरी से निकलने वाला स्वर मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करता है। जिस घर में बांसुरी रखी होती है वहां के लोगों में परस्पर प्रेम तो बना रहता है, साथ ही सुख-समृद्धि भी बनी रहती है।

4. वीणा (lyre) : वीणा एक ऐसा वाद्य यंत्र है जिसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत में किया जाता है, जैसे दुर्गा के हाथों में तलवार, लक्ष्मी के हाथों में कमल का फूल होता है उसी तरह मां सरस्वती के हाथों में ‍वीणा होती है।

वीणा शांति, ज्ञान और संगीत का प्रतीक है। सरस्वती और नारद का वीणा वादन तो जगप्रसिद्ध है ही।

वीणा के प्रमुख दो प्रकार हैं- रुद्र वीणा और विचित्र वीणा। यह मूलत: 4 तार की होती है, लेकिन यह शुरुआत में यह एक तार की हुआ करती थी। वीणा से निकली ध्वनी मन के तार छेड़ देती है। इसे सुनने से मन और शरीर के सारे रोग मिट जाते हैं। वीणा से ही सितार, गिटार और बैंजो का आविष्कार हुआ।

 5. मंजीरा : इसे भारत के अलग-अलग राज्यों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे झांझ, तला, मंजीरा, कफी आदि। ये फैले हुए शंकु के आकार के ब्रास के बने दो छल्ले होते हैं, जो आपस में एक धागे की सहायता से बंधे होते हैं।

इन्हें दोनों हाथों में पकड़कर आपस में लड़ाकर बजाया जाता है। कुछ कलाकार इन्हें एक हाथ की ही उंगलियों में फंसाकर बजाते हैं।

मंजीरा को आसानी से कहीं भी भजन-कीर्तन में बजते देखा-सुना जा सकता है। अधिकतर इसका प्रयोग राजस्थान के प्राय: सभी लोकनाट्यों तथा नृत्यों में किया जाता है।
 

6. करतल : इसे खड़ताल भी कहते हैं। इस वाद्य यंत्र को आपने नारद मुनि के चित्र में उनके हाथों में देखा होगा। यह भी भजन और कीर्तन में उपयोग किया जाना वाला यंत्र है। इसका आकार धनुष की तरह होता है।

इस वाद्य का निर्माण लगभग एक फीट की दो लकड़ी के टुकड़े पर किया जाता है। इस लकड़ी के सिरे पर लोहे या पीतल के गोल-गोल टुकड़े लगा दिए जाते हैं।

एक हाथ में दोनों टुकड़ों को पकड़कर उन्हें आपस में लड़ाया जाता है जिससे ताल निकलती है। राजस्थानी लोक संगीत में भी करतल का बहुत उपयोग होता है।

7. पुंगी या बीन : यह वाद्य यंत्र भी भारत में प्राचीनकाल से ही प्रचलित है। अक्सर यह सपेरों के पास देखा जाता है। हालांकि इसके और भी काम होते हैं लेकिन सपेरों के पास देखे जाने के कारण यह मान्यता प्रचलित हो गई कि इसे सांप को पकड़ने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

यह आमतौर पर बांस की दो पतली छड़ों का बना होता है जिसमें से एक का काम होता है धुन पैदा करना वहीं दूसरी नली ताल निकालने में काम आती है। बांस की दोनों ही नलियां एक बड़े खोखले टुकड़े से जुड़ी होती हैं, जो कई बार नारियल के खोल से भी बनता है। फूंक मारकर बजाने पर बांस की नलियों में कंपन होता है जिससे एक पतली आवाज निकलती है।

8. ढोल : ढोलक कई प्रकार के होते हैं। अक्सर इन्हें मांगलिक कार्यों के दौरान बजाया जाता है। ढोल भारत के बहुत पुराने ताल वाद्य यंत्रों में से है। ये हाथ या छड़ी से बजाए जाने वाले छोटे नगाड़े हैं, जो मुख्य रूप से लोक संगीत या भक्ति संगीत को ताल देने के काम आते हैं।

ढोलक आम, बीजा, शीशम, सागौन या नीम की लकड़ी से बनाई जाती है। लकड़ी को पोला करके दोनों मुखों पर बकरे की खाल को मजबूत सूत की रस्सियों से कसा जाता है। रस्सी में छल्ले रहते हैं, जो ढोलक का स्वर मिलाने में काम आते हैं। चमड़े अथवा सूत की रस्सी द्वारा इसको खींचकर कसा जाता है। ढोलक और ढोलकी को अधिकतर हाथ से बजाया जाता है जबकि ढोल को अलग-अलग तरह की छड़ियों से।

प्राचीनकाल में ढोल का प्रयोग महत्वपूर्ण था। यह पूजा और नृत्य गान के अलवा खूंखार जानवरों को भगाने के काम भी आता था। इसके अलावा इसका उपयोग चेतावनी के रूप में भी किया जाता था।

9. नगाड़ा : नगाड़ा प्राचीन समय से ही प्रमुख वाद्य यंत्र रहा है। इसे बजाने के लिए लकड़ी की डंडियों से पीटकर ध्वनि निकाली जाती है। वास्तव में नक्कारा, नगारा या नगाड़ा संदेश प्रणाली से जुड़ा हुआ शब्द है।

हालांकि बाद में इसका उपयोग लोक उत्सवों, आरती आदि के अवसर पर भी किया जाना लगा। इसे दुंदुभी भी कहा जाता है।

 10. मृदंग : यह दक्षिण भारत का एक थाप यंत्र है। कर्नाटक संगीत में इसका ताल यंत्र के रूप में उपयोग होता है। बहुत ही मधुर आवाज के इस यंत्र का इस्तेमाल गांवों में कीर्तन गीत गाने के दौरान किया जाता है। ढोल के दोनों सिरे समान होते हैं जबकि मृदंग का एक सिरा काफी छोटा और दूसरा सिरा काफी बड़ा (लगभग 10 इंच) होता है।

नवरात्रि उत्सव के दौरान इसका उपयोग होगा है। अधिकतर आदिवासी इलाके में ढोल के साथ मृदंग का उपयोग भी होता है।

 11. डमरू : डमरू या डुगडुगी एक छोटा संगीत वाद्य यंत्र होता है। डमरू का हिन्दू, तिब्बती वबौद्ध धर्म में बहुत महत्व माना गया है। भगवान शंकर के हाथों में डमरू को दर्शाया गया है। साधु और मदारियों के पास अक्सर डमरू मिल जाएगा।

 शंकु आकार के बने इस ढोल के बीच के तंग हिस्से में एक रस्सी बंधी होती है जिसके पहले और दूसरे सिरे में पत्थर या कांसे का एक-एक टुकड़ा लगाया जाता है। जब डमरू को बीच में से पकड़कर हिलाया जाता है तो यह डला (टुकड़ा) पहले एक मुख की खाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिससे 'डुग-डुग' की आवाज उत्पन्न होती है।

अंत में कुछ खास ध्वनियां...

चिमटा : लगभग एक मीटर लंबे लोहे के चिमटे की दोनों भुजाओं पर पीतल के छोटे-छोटे चक्के कुछ ढीलेपन के साथ लगाकर इस यंत्र का निर्माण किया जाता। इसे हिलाकर या हाथ पर मारकर बजाया जाता है। अधिकतर इसका उपयोग नाथ साधु करते हैं।

तुनतुना : यह लंबाई में एक से दो फुट का होता है जिसमें मोटे डंडे पर एक तार दो सिरों के बीच कसा होता है। एक सिरे पर तार को कसने और उसमें तनाव पैदा करने के लिए गुठली होती है और दूसरे सिरे पर एक खोखले सिलेंडर के आकार का बर्तन जिससे ध्वनि निकलती है।

घाटम : घाटम मिट्टी का बना एक बर्तन होता है। इसका सबसे ज्यादा प्रयोग दक्षिण भारत के सांस्कृतिक संगीत में होता है। इसे हाथ की थाप मारकर बजाया जाता है।

 दोतार : यह लकड़ी की आसान बनावट का एक वाद्य यंत्र होता है जिसका लोक संगीत में बहुत प्रयोग होता है। यह एक ऐसा यंत्र है, जो किसी न किसी रूप में भारत के हर हिस्से के लोक संगीत में पुराने समय से ही शामिल रहा है।

तबला : इसका प्रयोग शास्त्रीय संगीत से लेकर हर तरह के संगीत में किया जाता है। भारत के महाराष्ट्र राज्य में भोज की गुफाओं में 200 ईपू की मूर्तियों में महिलाएं तबला बजाते और नृत्य करते हुए अंकित की गई हैं।

आचार्य डॉ0 विजय शंकर मिश्र




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स्नान विधि




प्रस्तुति- सुधा सिन्हा / शंभूनाथ सिन्हा


*_स्नान का पौराणिक तरीका ..........._*

नहाने से स्वास्थ्य लाभ और पवित्रता मिलती है। सभी प्रकार के पूजन कर्म आदि नहाने के बाद ही किए जाते हैं, इस कारण स्नान का काफी अधिक महत्व है। पुराने समय में सभी ऋषि-मुनि नदी में नहाते समय सूर्य को जल अर्पित करते थे और मंत्रों का जप करते थे। इस प्रकार के उपायों से अक्षय पुण्य मिलता है और पाप नष्ट होते हैं।

ज्योतिष में धन संबंधी परेशानियों से मुक्ति पाने के लिए कई उपाय बताए गए हैं, जो अलग-अलग समय परकिए जाते हैं। नहाते समय करने के लिए एक उपाय बताया गया है। इस उपाय को सही विधि से हर रोज किया जाए तो निकट भविष्य में सकारात्मक फल प्राप्त हो सकते हैं।

जानिए उपाय की विधि…

प्रतिदिन नहाने से पहले बाल्टी में पानी भरें और इसके बाद अपनी तर्जनी उंगली (इंडेक्स फिंगर) से पानी पर त्रिभुज का चिह्न बनाएं।

त्रिभुज बनाने के बाद एक अक्षर का बीज मंत्र ‘ह्रीं’ उसी चिह्न के बीच वाले स्थान पर लिखें। साथ ही, अपने इष्ट देवी-देवता से परेशानियों दूर करने की प्रार्थना करें।

नहाते समय करें मंत्रों का जप....................

शास्त्रों में दिन के सभी आवश्यक कार्यों के लिए अलग-अलग मंत्र बताए गए हैं। नहाते समय भी हमें मंत्र जप करना चाहिए। स्नान करते समय किसी मंत्र का पाठ किया जा सकता है या कीर्तन या भजन या भगवान का नाम लिया जा सकता है। ऐसा करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

नहाते समय इस मंत्र का जप करना श्रेष्ठ रहता है…

मंत्र: गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिन्धु कावेरी जलऽस्मिन्सन्निधिं कुरु।।

नदी में नहाते समय पानी पर ऊँ लिखें............

यदि कोई व्यक्ति किसी नदी में स्नान करता है तो उसे पानी पर ऊँ लिखकर पानी में तुरंत डुबकी मार लेना चाहिए। ऐसा करने से नदी स्नान का पूर्ण पुण्य प्राप्त होता है। इसके अलावा आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा भी समाप्त हो जाती है। इस उपाय से ग्रह दोष भी शांत होते हैं। यदि आपके ऊपर किसी की बुरी नजर है तो वह भी उतर जाती है।

रामचरितमानस की एक चौपाई





प्रस्तुति - अरुण यादव

तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी:

सिय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला –

अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।

तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।

लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।

अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले – श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?

तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले – ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।

हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले – श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।

ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।

!! जय श्री राम !!
गंगा बड़ी, न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।
सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हदय राम का वास।।
!! जय श्री राम वन्दन !!



मोहक मस्त प्रेरणादायी मनोहर उक्तियां




प्रस्तुति - कृष्ण मेहता:

🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

*मनुष्य में द्रढ़ता होनी चाहिए*
        *जिद नहीं,*

*बहादुरी होनी चाहिए*
   *जल्दबाजी नहीं,*

*दया होनी चाहिए*
  *कमजोरी नहीं,*

*ज्ञान होना चाहिए*
 *अहंकार नहीं.....!!*

🌸🌸सुप्रभात जी 🌸🌸


🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏
[07/02, 05:26] Morni कृष्ण मेहता: *कुछ नेकियाँ*
                    *और*
                *कुछ अच्छाइयां..*
  *अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,*
          *जिनका ईश्वर के सिवाय..*
          *कोई और गवाह ना हो...!!*

                ‼ *सु-प्रभातम्*‼
*_🍁🙏🏻आपका दिन मंगलमय हो🙏🏻🍁_*
[09/02, 14:08] Morni कृष्ण मेहता: *उपाय नंबर :-4*

*वास्तु विज्ञान के अनुसार शीशा तथा नमक दोनों ही राहू की कारक वस्तु है। अतः एक शीशे के प्याले में नमक भरकर शौचालय और स्नान घर में रखना चाहिए इससे वास्तुदोष दूर होता है। इससे नकारात्मक ऊर्जा तो दूर होगी ही साथ में सूक्ष्म कीट-काटाणुओं का भी नाश होता है।*
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: *"रिश्तों का स्वाद*
*हर  रोज  बदलता रहता है...*
*मीठा,नमकीन या खारा...!*
*बस ये इस बात पर निर्भर करता है कि.....*
*हम प्रतिदिन*
 *अपने रिश्ते में मिला क्या रहे है ?*
       🙏 *शुभ  प्रभातम्*🙏
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: *विचारों की खूबसूरती*
*कही से भी मिले चुरा लो...!*

*क्योंकि चेहरे की खूबसूरती*
*तो उमर के साथ बदल जाती है...!*

*मगर विचारों की खूबसूरती*
*हमेशा दिलो मे अमर रहती है...!!*
आज का दिन आपका शुभ हो ।
*🙏 सुप्रभात 🙏*
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी:

सिय राम मय सब जग जानी,
करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।

अर्थात –
पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।

चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला –

अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।

तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।

लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे तभी बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।

अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले – श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?

तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले – ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।

हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले – श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।

ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया।

!! जय श्री राम !!
गंगा बड़ी, न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।
सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हदय राम का वास।।
!! जय श्री राम वन्दन !!
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: 🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏🌹🙏

*चरण हमें सिर्फ*
 *मन्दिर तक ले जाते हैं,*

 *लेकिन आचरण हमें*
 *परमात्मा तक.........*

*🌴🌴🌴🌹🙏🏻जय श्री राम 🌹🙏🏻🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴🌴*
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: घड़ी की फितरत भी अजीब है, हंमेशा टिक-टिक कहती है...!*
*मगर..., ना खुद टिकती है और ना दूसरों को टिकने देती है*.
💐👏 *जय माता की💐👏
एक छोटी सी लड़ाई से लोग...*
*आपस का प्यार खत्म कर लेते है...*
*क्यो न प्यार से हम इस छोटी सी...*
*लड़ाई को ही खत्म कर दे...*
💐👏 *जय माता की
💐👏
[13/02, 05:29] Morni कृष्ण मेहता: *ॐ श्री परमात्मने नमः*

*राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे।*
*सहस्रनाम तत्तुल्यं रामनाम वरानने ।।*

*भगवान शिवशंकर कहते हैं कि,” हे पार्वती !! मैं निरंतर राम नाम के पवित्र नामों का जप करता हूँ, और इस दिव्य ध्वनि में आनंद लेता हूँ । रामचन्द्र का यह पवित्र नाम भगवान श्रीहरि के एक हजार पवित्र नामों (विष्णुसहस्त्रनाम) के तुल्य है*

*जय सिया राम*
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: *अच्छे रिश्तों को वादे और*
*शर्तों की जरूरत नहीं होती.*

*बस दो खूबसूरत लोग चाहिए*
*एक निभा सके और*
*दूसरा उसको समझ सके.*
*🙏🏻🎂सुप्रभात🎂🙏🏻*
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: 🌹🙏 *जय श्री कृष्ण*🙏🌹

    *परिस्थिति बदलना जब मुमकिन ना हो,*

    *तो मन की स्थिति बदल लीजिए,*

    *सब कुछ अपने आप ही बदल जाएगा।*

       🌹 *शुभ प्रभात ,आप सभी अपनों का दिन शुभ हो,आप सब स्वस्थ एवं प्रसन्न रहें 🌹
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: श्रेष्ठ वही है जिसमें
*दृढ़ता हो, जिद नहीं.*
*बहादुरी हो, जल्दबाजी नहीं.*
*दया हो, कमजोरी नहीं.*
*ज्ञान हो, अहंकार नहीं*
*करूणा हो, प्रतिशोध नहीं*
*निर्णायकता हो, असमंजस नहीं....*
*अगर लोग आपकी अच्छाई को आपकी कमजोरी समझने लगते हैं,  तो यह उनकी समस्या है, आपकी नहीं...*

*आपका आज का दिन शुभ एवं मंगलमय हो। शुभकामनाओं के साथ!!*
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: 🌹 *वक़्त के साथ-साथ*
      *बहुत कुछ बदल जाता है.*


    *_लोग भी...._*
    *_रास्ते भी...._*
    *_अह्सास भी...._*

       *और कभी - कभी*
                     *हम _ख़ुद_ भी..!!*
🌹🙏 *शुभ-प्रभात* 🙏🌹
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: *🔔  ये जीवन है...  🔔*
*"सच तो.. मत ही बोलिये.. साहेब,*
*अपचक हो जायेगा.. दुनिया को...,*
*यहाँ.. लोगों की खुराक,*
*झूठ जो बन गयी है...।"*
*🙏 सुरमई सुबह पर राधे-राधे🙏*
*😊🌹जरा मुस्कुराइये🌹😊*
[13/02, 05:30] Morni कृष्ण मेहता: छाते और दिमाग की उपयोगिता
तभी है,
जब यह खुले हों,
*अन्यथा*
*दोनों हमारे लिए बोझ हैं...*

। सुप्रभात ।
[15/02, 05:37] Morni कृष्ण मेहता: *धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य। धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है। उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं।*

*राधे राधे 🙏*
[15/02, 05:37] Morni कृष्ण मेहता: *हमारी नीयत से ईश्वर प्रसन्न होते हैं, और दिखावे से इंसान ।।*

*यह हम पर निर्भर करता है कि हम किसे प्रसन्न करना चाहते हैं*
🙏🏻 *सुप्रभातम्*🙏🏻
आपका दिन मंगलमय हो
[15/02, 05:37] Morni कृष्ण मेहता: *श्री राधे *

*जिसके जीवन मे सत्संग् हो वह भव से पार हो सकता है...*

*किन्तु,,,,*

*जिसका जीवन ही सत्संग हो, वह न जाने कितनों को पार लगा सकता है।।*⚡

*_________🌷राधे राधे जी 🙏🙏🌷___________*
[15/02, 05:38] Morni कृष्ण मेहता: संसार का सागर *दुखों* से भरा रहता है,
कोई शौक में पड़ा तो कोई मोह में पड़ा रहता है।
मेरे *श्याम* की महफिल में आकर तो देखो यारो,🥰
इनकी महफिल में हर कोई *आनंद* और *उत्साह* से भरा रहता है।😊

     🍃🌹 *जय श्री राधाकृष्ण* 🌹🍃

एक मार्च 2020 को खेत का प्रोग्राम




प्रस्तुति - धीरेन्द्र किशोर

[29/02, 17:22] +91 94162 65214: 🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
             *खेत प्रोग्राम।*
            *01.03.2020*
          *Khet Program.*
🌙
*Morning:*
*All Students and their teachers, Superman , Arz aspirants : Phalbagh.*
*Brothers : SPEEHA PLANTATION, SWET NAGAR.*
*Sisters: Bhandara Ground.*

🌝
*Evening: Phalbagh.*

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾

  🌙               
*सुबह :*
*विद्यार्थी और उनके शिक्षक, सुपरमैन, अर्ज़ करने वाले: फल बाग़।*
*भाई साहब: स्पीहा प्लांटेशन, स्वेत नगर।*
*बहने: भंडारा ग्राउंड।*

🌞
*शाम : फल बाग़।*
[29/02, 19:49] +91 85569 80063: राधास्वामी।

कृपया नोट करे कि कल दिनांक  01.03.2020 इ-सत्संग लॉगिन और सत्संग शुरू होने का समय  सुबह 03:00 बजे है।

सब भाई व बहनों से निवेदन है कि सुबह 02:45 बजे सत्संग भवन पहुचने की कोशिश करे।

कृपया नोट करे तथा औरो को भी सूचित कर दे।

राधास्वामी

ग्रहों का बुरा प्रभाव



प्रस्तुति - कृष्ण मेहता

*ग्रह कैसे खराब फल देते हैं*

हमारी मुश्किलों के हल निकलते नहीं,
क्योंकि माँ के चरण स्पर्श कर घर से निकलते नहीं..
*चन्द्र खराब*

काम हमारे बनते नहीं,
क्योंकि पिता की बात हम कभी सुनते नहीं..
*सूर्य खराब*

यार दोस्त भी काम आता नहीं,
सगा भाई हमें फूटी आँख भाता नहीं..
*मंगल खराब*

व्यापार में सदा ही होता है घाटा,
क्योंकि बुआ बहन से हम रखते नहीं कोई नाता..
*बुध खराब*

समाज सोसायटी में हमारी कोई मान मर्यादा नहीं,
क्योंकि घर के बड़े बजुर्गों की इज्जत करना हमें आता नहीं..
*गुरु खराब*

बरकत हमारे घर में आती नहीं,
पराई नार पर नजर रखते हैं, पत्नी हमें सुहाती नहीं..
*शुक्र खराब*

मौके पर आकर सब काम बिगड़ जाते हैं,
गरीबों का हक हम अक्सर खा जाते हैं..
*शनि खराब*

बुरे समय में जब घर में अक्सर झगड़े होने लगते है,
अपनों से ज्यादा हमें पराये अच्छे लगते है..
*राहू खराब*

दूसरों की सफलता से हम जलते हैं
और भगवान को कोसते हुए अपने हाथ मलते है...
*केतु खराब*

पता नही किसने लिखा पर सच लिखा, 🌹🌹*🚩🌹🌹🙏घुमाव

सुंदर मोहक आकर्षक सारगर्भित सरस सरल भावोद्गगार





प्रस्तुति - सुधा सिन्हा/ अर्चना चौहान

*केवल अहंकार*
                   *ही ऐसी दौड़ है*

*जहाँ जीतने वाला* 
                    *हार जाता है।*
     Good Morning
 .
    *किसी ने पूछा कि*
 *इस दुनिया में आपका*
 *अपना कौन है..???*

 *ज्ञानी व्यक्ति ने हंसकर*
       *कहा:  'समय'*

     *अगर वो सही है,*
    *तो सभी अपने हैं,*
   *वरना कोई भी नहीं*
    *🌹🌹 सुप्रभात 🌹🌹*
꧂*🌹🌹🌹🌹*
   
   *अच्छे व्यक्ति* के साथ
 संबंध, उस  *"गन्ने "* के    समान है--जिसे आप *तोड़ो :मरोड़ो :काटो या फिर कुचल दो*                         
           आपको उससे
   *मीठा रस*  ही मिलेगा
🌹🌹🌹 शुभ प्रभात


[20/02, 08:48] KS कुसुम सहगल दीदी: चाय और चरित्र

जब भी गिरतें हैं,

तब ....

दाग जरूर लगतें हैं।

Good morng 🌹
[21/02, 09:14] KS कुसुम सहगल दीदी: *शिव की महिमा अपार*
*शिव करते सबका उद्धार*
*उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे*
*और आपके जीवन में आएं खुशियां *हज़ार*
*आपको और आपके समस्त परिवार को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं *
*🌹🌹बम बम भोले नाथ🌹🌹*
[22/02, 10:02] KS कुसुम सहगल दीदी: *ज़िंदगी में समस्या देने वाले की हस्ती कितनी भी बड़ी क्यों न हो,*

 *पर ईश्वर की "कृपादृष्टि" से बड़ी नहीं हो सकती.....*

 _*🍂🍂सुप्रभात🍂🍂*_
[23/02, 10:47] KS कुसुम सहगल दीदी: *....✍🏻सपने और लक्ष्य में एक ही अंतर है -*
   *सपने के लिए बिना मेहनत की*
        *नींद चाहिए और लक्ष्य*
           *के लिए बिना नींद*
               *की मेहनत।*

   *🙏🏻💐सुप्रभात।💐🙏🏻*
[24/02, 08:17] KS कुसुम सहगल दीदी: *अपनी प्रतिष्ठा का बहुत*
*अच्छे से ख्याल रखे*,
           *क्योंकि*....
*एक यही है जिसकी उम्र*
*आप से ज्यादा है* l
                              *🙏🏻सुप्रभात*😊
[26/02, 09:12] KS कुसुम सहगल दीदी: *इस दुनिया में मजबूत से मजबूत,*
*लोहा टूट जाता है...*
*कई झूठे इकठ्ठे हो जाएं,*
*तो सच्चा टूट जाता है...!!*

          *🌹 सुप्रभात🌹*
[27/02, 10:09] KS कुसुम सहगल दीदी: ✍... *अच्छे व्यक्ति को समझने के लिए अच्छा हृदय चाहिये*
*न कि अच्छा दिमाग*
*क्योंकि दिमाग हमेशा तर्क करेगा*
*और हृदय हमेशा प्रेम--भाव देखेगा ।।*
🌹🙏 *सुप्रभात* 🌹🙏
[28/02, 08:59] KS कुसुम सहगल दीदी: *दो चम्मच हँसी चुटकी भर मुस्कान,*

*बस यही खुराक ,ख़ुशी की पहचान..*
               *सुप्रभात*
[29/02, 09:38] KS कुसुम सहगल दीदी: *आँसूओं के प्रतिबिंब गिरे...*
 *....ऐसे दर्पण अब कहाँ ?*

*बिना कहे सब कुछ समझे...*
  *...वैसे रिश्ते अब कहाँ ?*

*🙏🌹सुप्रभात🌹🙏*




एक मार्च 2020 को खेत का प्रोग्राम



प्रस्तुति - अरूण अगम यादव
🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾
             *खेत प्रोग्राम।*
            *01.03.2020*
          *Khet Program.*
🌙
*Morning:*
*All Students and their teachers, Superman , Arz aspirants : Phalbagh.*
*Brothers : SPEEHA PLANTATION, SWET NAGAR.*
*Sisters: Bhandara Ground.*

🌝
*Evening: Phalbagh.*

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾

  🌙               
*सुबह :*
*विद्यार्थी और उनके शिक्षक, सुपरमैन, अर्ज़ करने वाले: फल बाग़।*
*भाई साहब: स्पीहा प्लांटेशन, स्वेत नगर।*
*बहने: भंडारा ग्राउंड।*

🌞
*शाम : फल बाग़।*

जब कोई पीछे से आवाज दे दे तब??




प्रस्तुति- सुधा सिन्हा/ शंभूनाथ सिन्हा 


ऐसे समय पर पीछे से कोई आवाज लगा दे तो क्या करना चाहिए...
काफी लोगों के साथ अक्सर ऐसा होता है कि वे घर से किसी खास कार्य के लिए निकल रहे होते हैं और ठीक उसी पीछे से कोई आवाज लगा देता है। ऐसे में व्यक्ति को थोड़ी रुक जाना चाहिए फिर अपने कार्य की ओर निकलना चाहिए। 

ऐसी प्राचीन मान्यता है।
पुराने समय से ही हमारे दैनिक जीवन से जुड़ी कई प्रकार की पंरपराएं प्रचलित हैं, जिनका आज भी कई लोग पालन करते हैं। वहीं कुछ लोग इन परंपराओं को अंधविश्वास का नाम देते हैं। जबकि घर से वृद्धजन इन्हें गहराई से लेते हैं और सभी को इन परंपराओं का निर्वाह करने की बात भी कहते हैं। इस प्रकार प्रथाएं शकुन और अपशकुन की मान्यताओं पर आधारित हैं। शकुन यानि शुभ संकेत और अपशकुन यानि बुरा संकेत।

यदि कोई व्यक्ति किसी खास कार्य के लिए निकल रहा है और उसे पीछे से आवाज लगा दी जाए तो इसे अपशकुन माना जाता है। इस संबंध में ऐसा माना जाता है कि किसी को पीछे से आवाज लगाना या टोंकना अशुभ है। ऐसा होने का यही मतलब लगाया जाता है कि व्यक्ति जिस खास कार्य के लिए जा रहा है उसके पूर्ण होने में बाधाएं आ सकती हैं। यह एक संकेत के समान ही है। यदि किसी व्यक्ति के साथ ऐसा होता है तो उसे घर पर थोड़ी रुककर निकलना चाहिए।





कल शाहदरा ब्रांच में सत्संग नहीं होगा।




प्रस्तुति -  सुधा सिन्हा / शंभूनाथ सिन्हा -


दिल्ली की हालत आज भी पहले जैसी नहीं
हुई है। दंगो के दर्द को देखते हुए कल रविवार 0103-2020 को ई सत्संग ओर सुबह ब्रांच का सत्संग भी नहीं होगा। सत्संगियों की सुरक्षा को देखते हुए शाहदरा ब्रांच के साप्ताहिक आयोजन को इस बार रोक दिया गया है।।






*Radhasoami*
Due to Disturbances in Delhi and Specially in Shahdara Branch Area,  tomorrow *01/03/2020, Sunday* there will be no e Satsang and Branch Satsang.

Satsangies are requested to avoid e satsang and for Branch satsang go to Nearby Branches ie *Soami Nagar, Ashok Vihar and Karol Bagh.*

*राधास्वामी*
आजकल दिल्ली के आपत्तिजनक  हालातों की वजह से कल *01/03/2020,  रविवार*  को  ई सतसंग और ब्रांच सतसंग नही होगा ! सत्संगियों से अनुरोध है कि वो सुबह ई सत्संग को अवॉयड करें और ब्रांच सत्संग के लिए निकटतम
ब्रांच जैसी *स्वामी नगर, अशोक विहार या करोलबाग मे जाएँ.*


🙏🏼

आज 29/02 को सुबह शाम का सत्संग पाठ-बचन




प्रस्तुति - अरूण अगम विमला

राधास्वामी!!
 29-02-2020-   

आज सुबह के सतसंग में पढे गये पाठ-   
                                                               (1) मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की। गुन गाऊँ उनका सार।। मैं प्यारी प्यारे राधास्वामी की। सुनी घट में रारंकार।।(सारबचन-शब्द-दूसरा,पे.न.43)     
                                                             (2) सुरतिया धोय रही अब चूनर मैल भरी।।

(प्रेमबानी-2,शब्द-78,पे.न.196)   
                     
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*

*राधास्वामी!!

 आज शाम के सतसंग में पढे गये पाठ:-                                                       
 (1) राधास्वामी संग लगाई, मोहि बचन सुनाई, हिये प्रीति बढाई रे। राधास्वामी ३, प्यारे राधास्वामी रे।।
(प्रेमबानी-3,शब्द-दूसरा,पे.न.181)                                                                           
3) सुन सेवक की माँग हुए स्वामी अति मगना। गहरी मेहर बिचार मृदु अस बोले बचना।।इक इक के ढिंग जाय कहा तब बाल पुकारु। मैं हूँ बाल अनाथ पिता बिन भया दुखारी।
।(प्रेमबिलास-शब्द-74,पे.न.104)                                                       
 (3) सतसंग के उपदेश-भाग तीसरा।     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:

-( 72 )

अगर कोई सत्संगी यह ख्याल करता है कि महज रूपए पैसे खर्च करने से जीव का कल्याण हो सकता है तो यह उसकी बड़ी भूल है । यह ठीक है कि सत्संग में रूपए पैसे भेंट करने से सत्संगी का धन में मोह कम होता है और उसे गुरु महाराज की दया प्राप्त होती है और जया प्राप्त होने से उसका चित्त शुद्ध होता है और बुद्धि निर्मल होती है और चित्त शुद्ध व बुद्धि निर्मल होने से परमार्थ कमाने में सहूलियत रहती है और बुरे कर्मों से बचाव रहता है लेकिन ये फायदे तब होते हैं जब रुपया पैसा प्रेम व श्रद्धा से भेंट किया जावे ।  जो लोग प्रेम व श्रद्धा के बजाय महज दिखलावे या कोई दुनियावी नफा हिसिल खरने की गरज से  रुपया पैसा भेंट करते हैं वे नुकसान में रहते हैं ।।   
                   
  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

सत्संग के उपदेश -भाग तीसरा।*




Friday, February 28, 2020

मन की शुद्धता के लिए उपाय





प्रस्तुति - स्वामी शरण /दीपा शरण/
  सृष्टि शरण - दृष्टि शरण


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-सतसंग के उपदेश-भाग-2-(30)

-【मन की शुद्धता के लिये उपाय।।

:-बाज लोग कहते है कि जबतक वे आजादाना जिंदगी बसर करते थे और परमार्थ के सम्बंध में सिवाय जबानी जमा खर्च के कोई यत्न या कोशिश न करते थे उनको अपना मन निहायत साफ सुथरा मालूम होता था लेकिन जबसे उन्होने मन व इंद्रियों के दमन यानी काबू करने के लिये बाकायदा यत्न शुरु किया उन्हे महसूस हुआ कि उनका मन कैसी गंदी व नापाक ख्वाहिशात से भरा हुआ है और जब उसे ठहराने के लिये कोशिश की जाती है तो बछेरे के समान, जो पीठ पर हाथ रखने से उछलता है, गैरमामूली-चंचलता दिखलाता है और उनकी तबीयत में बार बार यही आता है कि अभ्यास छोडकर खडे हो जायँ या लेट जायँ। बाज अनजान मन की यह हालत देखकर साधन की युक्तियों की निस्बत शक खरने लगते है और कुछ नादान जो साधन छोडकर बदूस्तरे साबिक मन के खेल कूद में लग जाते है। वाजह हो कि मन के इस किस्म के विघ्न सिर्फ सुरत-शब्द अभ्यास ही की कमाई में प्रकट नही होते, पतञ्जली महाराज ने भी अपने योगसूत्रों में इन विघ्नों का विस्तार से जिक्र किया है जिससे जाहिर होता है कि अस्टांग योग करने वालों को भी इन विघ्नों का सामना करना पड़ता था। असल बात यह है कि जब तक मन के अंदर मलिनता भरी है कोई भी शख्स कामयाबी के साथ योग साधन नहीं कर सकता इसलिए हर एक शौकीन अभ्यासी को मन की शुद्धता हासिल करने के लिए यत्न करना चाहिए। मन की शुद्धता कैसे प्राप्त हो ? हम लोग नहीं जवाब देंगे कि सत्य बोलने से मन को शुद्धता प्राप्त होती है लेकिन यह जवाब काफी नहीं है ।सत्य बोलने से तबीयत में शांति और निर्मलता जरूर आती है लेकिन हाल के और पिछले जन्मों के संस्कार और संसार के पदार्थों की कोशिश और अपने व संगी साथियों के मन के काम, क्रोध वगैरह अंगों का जो अपना असर जरूर ही दिखलाते हैं। केवल सत्य बोलने का व्रत धारण कर लेने से उनके नाकिस असर से बचाव नहीं हो सकता। जैसे जल में स्नान करने से थोड़ी देर के लिए बदन साफ़ व ठंडा हो जाता है ऐसे ही सत्य बोलने पर मन को थोड़ी देर के लिए निर्मलता व शीतलता प्राप्त हो जाती है लेकिन जल्द ही मन बदस्तूर मलीन हो जाता है।

क्रमशः

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **




साहबजी महाराज /रोजनामचा वाक्यात




प्रस्तुति - आत्म स्वरूप /
सुनीता स्वरुप /मेहर स्वरूप


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज
- रोजाना वाक्यात-

 22 जुलाई 1932 -शुक्रवार:-

 अहमदाबाद में एक बड़ा पिंजरापोल है । जिसकी मुतअद्दिद शाखे हैं। वहां के प्रबंधकों ने चमड़ा रंगने का कारखाना जारी करने का इरादा किया है। दयालबाग से मशवरा व मदद मांगते हैं । शुक्र है कि हिंदू भाइयों को समझ आ रही है कि कूड़े करकट से रुपया पैदा हो सकता है । जब दयालबाग में चमड़े के काम का कारखाना जारी किया गया था तो कई आदमियों ने सख्त विरोध किया था। एक पंडित जी ने तो यहां तक कह दिया था कि दयालबाग वालों का हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा । लेकिन अब जगह जगह यहां के कारखानों कारखाना की क़द्र हो रही है । दयालबाग लेदर स्कूल में काफी से ज्यादा उम्मीदवार भर्ती होने के लिए आए हैं और मुल्क भर में दयालबाग के जूतों व सूटकेसों की कद्र है। एक महाराजा साहब ने अपनी रियासत के कुल शेर व रीछ वगैरह जंगली जानवरों की खाले दयालबाग  के कारखाने में भेजने का हुकुम पारित फरमा दिया है और 400 के करीब खाले पहुंच गई है। भाई अगर जीना चाहते हो तो काम करो और मिलकर काम करो। और जमाने की चाल देख कर काम करो।  वरना तुम्हारे दफन करने के लिए गड्ढा खुदा है । आराम से उसमे जा लेटो। रात के सत्संग में बयान हुआ कि दुनिया में परमार्थ के इच्छुक तो बहुत है लेकिन हर किसी की योग्यता पृथक है। बाज तो पिछले महात्माओं के चमत्कारों और उनकी मुसीबतों का हाल पढ सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, बाज मंदिर मस्जिद बनवा कर, बाज कथा या कव्वाली सुनकर, बाज दान पुण्य करके और बाज तर्क वितर्क में शरीक होकर। लेकिन सच्चे परमार्थी की वही शख्स कदर कर सकता है जिसकी सहनशीलता काफी बड़ी है और जो हर वक्त जागृत रहता है जिस पर दुनिया की हानि लाभ अपना पर्दा नहीं डाल सकती और जिसके अंदर मालिक के दर्शन के लिए हमेशा तड़प मौजूद रहती है । एक औरत खाना पकाने बैठती है इतने में उसका बच्चा रोने लगता है वह खाने का काम छोड़कर बच्चे को संभालती है। इतने में घर की गाय जंगल से चर कर वापस आ जाती है बच्चे को लिटा कर गाय बांधने लगती है। गाय किसी वजह से खौफ खाकर उसके सींग मारती है और वह जख्मी होकर चिल्लाने लगती है। अर्थात इसी तरह काम के अंदर काम निकल कर यानी अव्वल काम यानी खाना बनाना भूल जाती है । ठीक यही हाल इंसान का है । जब तब परमार्थ कमाने का इरादा करता है लेकिन काम के अंदर काम, ख्वाइश के अंदर ख्वाइश पैदा होने से वह परमार्थ के मुतअल्लिक़ इरादे को भूल जाता है।  जब कूच का वक्त आता है तो दुनिया के सब काम खत्म हो जाने से उसे परमार्थ कमाने की याद आती है। रोता है सर पीटता है और हाय हाय करता हुआ चला जाता है। इसलिए सच्चे प्रमार्ध की कमाई वही शख्स कर सकता है जो हर वक्त बेदार रहे और परमार्थी मकसद को हमेशा मुख्य रखे । 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 **

प्रेमपत्र भाग - 1 / अभ्यास




प्रस्तुति- संत शरण /
रीना शरण अमी शरण


**परम गुरु हुजूर महाराज
- प्रेम पत्र -भाग 1-(9)-

【 उपदेश शब्द के अभ्यास का ।】

:-इस दुनियाँ में सब जीवों के मन में चाह सुख की मालूम होती है और हर रोज उसके वास्ते मेहनत मशक्कत करते हैं। और जो कुछ सुख यहां के हासिल होते हैं अगर पूरे पूरे नहीं मिलते और जो मिले तो वह सब नाशवान है और उसमें आनंद थोड़ी देर का है।।

                  अक्लमंद वह है जो दुनियाँ के हाल और सुखों को देखकर कोई यहां ठहराऊ नहीं है खोज यानी तलाश करें कि परम सुख, जो हमेशा एक रस कायम रहे, वह कहां है। और जब कि इस दुनिया के छोटे-छोटे सुखों के वास्ते उम्र भर खपता रहता है और फिर वे सब सुख यहां के यहीं छोड़ जाता है, फिर उस सुख के लिए जो हमेशा एक रस  रहे जरूर तवज्जह करना मुनासिब मालूम होता है। दुनिया के सुखों की प्राप्ति की ख्वाहिश में बारंबार जन्मना और मरना पड़ता है । इसलिए हर एक को चाहिए कि इनमें प्रीति कम करें और ऐसे मुकाम के हाजिर करने के वास्ते कोशिश करें कि जहां हमेशा पूरा आनंद प्राप्त होवे।।
                             विचारवान आदमी इस दुनिया की नाशवान हालत को देखकर जरूर दिल में ख्याल करता है कि कोई ऐसा स्थान भी है जो अमर होवे और जो सर्व सुख का भंडार हो, और जिसकी प्राप्ति के लिए एक बार मेहनत करनी पड़े और फिर हमेशा का आनंद प्राप्त होवे और बार-बार मेहनत न करनी पड़े , जैसे यहां हर दिन में नए सिरे से मेहनत करके दुनिया के सुख मिलते हैं और मरने के वक्त एकदम सब छोड़ने पड़ते हैं।

क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**




सत्संग के मिश्रित बचन उपदेश





प्रस्तुति - उषा रानी /
राजेंद्र प्रसाद सिन्हा


 [29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-सतसंग के उपदेश-भाग-2-(30)-【मन की शुद्धता के लिये उपाय।।:-बाज लोग कहते है कि जबतक वे आजादाना जिंदगी बसर करते थे और परमार्थ के सम्बंध में सिवाय जबानी जमा खर्च के कोई यत्न या कोशिश न करते थे उनको अपना मन निहायत साफ सुथरा मालूम होता था लेकिन जबसे उन्होने मन व इंद्रियों के दमन यानी काबू करने के लिये बाकायदा यत्न शुरु किया उन्हे महसूस हुआ कि उनका मन कैसी गंदी व नापाक ख्वाहिशात से भरा हुआ है और जब उसे ठहराने के लिये कोशिश की जाती है तो बछेरे के समान, जो पीठ पर हाथ रखने से उछलता है, गैरमामूली-चंचलता दिखलाता है और उनकी तबीयत में बार बार यही आता है कि अभ्यास छोडकर खडे हो जायँ या लेट जायँ। बाज अनजान मन की यह हालत देखकर साधन की युक्तियों की निस्बत शक खरने लगते है और कुछ नादान जो साधन छोडकर बदूस्तरे साबिक मन के खेल कूद में लग जाते है। वाजह हो कि मन के इस किस्म के विघ्न सिर्फ सुरत-शब्द अभ्यास ही की कमाई में प्रकट नही होते, पतञ्जली महाराज ने भी अपने योगसूत्रों में इन विघ्नों का विस्तार से जिक्र किया है जिससे जाहिर होता है कि अस्टांग योग करने वालों को भी इन विघ्नों का सामना करना पड़ता था। असल बात यह है कि जब तक मन के अंदर मलिनता भरी है कोई भी शख्स कामयाबी के साथ योग साधन नहीं कर सकता इसलिए हर एक शौकीन अभ्यासी को मन की शुद्धता हासिल करने के लिए यत्न करना चाहिए। मन की शुद्धता कैसे प्राप्त हो ? हम लोग नहीं जवाब देंगे कि सत्य बोलने से मन को शुद्धता प्राप्त होती है लेकिन यह जवाब काफी नहीं है ।सत्य बोलने से तबीयत में शांति और निर्मलता जरूर आती है लेकिन हाल के और पिछले जन्मों के संस्कार और संसार के पदार्थों की कोशिश और अपने व संगी साथियों के मन के काम, क्रोध वगैरह अंगों का जो अपना असर जरूर ही दिखलाते हैं। केवल सत्य बोलने का व्रत धारण कर लेने से उनके नाकिस असर से बचाव नहीं हो सकता। जैसे जल में स्नान करने से थोड़ी देर के लिए बदन साफ़ व ठंडा हो जाता है ऐसे ही सत्य बोलने पर मन को थोड़ी देर के लिए निर्मलता व शीतलता प्राप्त हो जाती है लेकिन जल्द ही मन बदस्तूर मलीन हो जाता है। क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 **
[29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1-(9)-【 उपदेश शब्द के अभ्यास का ।】:-इस दुनियाँ में सब जीवों के मन में चाह सुख की मालूम होती है और हर रोज उसके वास्ते मेहनत मशक्कत करते हैं। और जो कुछ सुख यहां के हासिल होते हैं अगर पूरे पूरे नहीं मिलते और जो मिले तो वह सब नाशवान है और उसमें आनंद थोड़ी देर का है।।                    अक्लमंद वह है जो दुनियाँ के हाल और सुखों को देखकर कोई यहां ठहराऊ नहीं है खोज यानी तलाश करें कि परम सुख, जो हमेशा एक रस कायम रहे, वह कहां है। और जब कि इस दुनिया के छोटे-छोटे सुखों के वास्ते उम्र भर खपता रहता है और फिर वे सब सुख यहां के यहीं छोड़ जाता है, फिर उस सुख के लिए जो हमेशा एक रस  रहे जरूर तवज्जह करना मुनासिब मालूम होता है। दुनिया के सुखों की प्राप्ति की ख्वाहिश में बारंबार जन्मना और मरना पड़ता है । इसलिए हर एक को चाहिए कि इनमें प्रीति कम करें और ऐसे मुकाम के हाजिर करने के वास्ते कोशिश करें कि जहां हमेशा पूरा आनंद प्राप्त होवे।।                              विचारवान आदमी इस दुनिया की नाशवान हालत को देखकर जरूर दिल में ख्याल करता है कि कोई ऐसा स्थान भी है जो अमर होवे और जो सर्व सुख का भंडार हो, और जिसकी प्राप्ति के लिए एक बार मेहनत करनी पड़े और फिर हमेशा का आनंद प्राप्त होवे और बार-बार मेहनत न करनी पड़े , जैसे यहां हर दिन में नए सिरे से मेहनत करके दुनिया के सुख मिलते हैं और मरने के वक्त एकदम सब छोड़ने पड़ते हैं। क्रमशः🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**
[29/02, 08:20] +91 94162 65214: **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 22 जुलाई 1932 -शुक्रवार:- अहमदाबाद में एक बड़ा पिंजरापोल है । जिसकी मुतअद्दिद शाखे हैं। वहां के प्रबंधकों ने चमड़ा रंगने का कारखाना जारी करने का इरादा किया है। दयालबाग से मशवरा व मदद मांगते हैं । शुक्र है कि हिंदू भाइयों को समझ आ रही है कि कूड़े करकट से रुपया पैदा हो सकता है । जब दयालबाग में चमड़े के काम का कारखाना जारी किया गया था तो कई आदमियों ने सख्त विरोध किया था। एक पंडित जी ने तो यहां तक कह दिया था कि दयालबाग वालों का हुक्का पानी बंद कर दिया जाएगा । लेकिन अब जगह जगह यहां के कारखानों कारखाना की क़द्र हो रही है । दयालबाग लेदर स्कूल में काफी से ज्यादा उम्मीदवार भर्ती होने के लिए आए हैं और मुल्क भर में दयालबाग के जूतों व सूटकेसों की कद्र है। एक महाराजा साहब ने अपनी रियासत के कुल शेर व रीछ वगैरह जंगली जानवरों की खाले दयालबाग  के कारखाने में भेजने का हुकुम पारित फरमा दिया है और 400 के करीब खाले पहुंच गई है। भाई अगर जीना चाहते हो तो काम करो और मिलकर काम करो। और जमाने की चाल देख कर काम करो।  वरना तुम्हारे दफन करने के लिए गड्ढा खुदा है । आराम से उसमे जा लेटो। रात के सत्संग में बयान हुआ कि दुनिया में परमार्थ के इच्छुक तो बहुत है लेकिन हर किसी की योग्यता पृथक है। बाज तो पिछले महात्माओं के चमत्कारों और उनकी मुसीबतों का हाल पढ सुनकर ही संतुष्ट हो जाते हैं, बाज मंदिर मस्जिद बनवा कर, बाज कथा या कव्वाली सुनकर, बाज दान पुण्य करके और बाज तर्क वितर्क में शरीक होकर। लेकिन सच्चे परमार्थी की वही शख्स कदर कर सकता है जिसकी सहनशीलता काफी बड़ी है और जो हर वक्त जागृत रहता है जिस पर दुनिया की हानि लाभ अपना पर्दा नहीं डाल सकती और जिसके अंदर मालिक के दर्शन के लिए हमेशा तड़प मौजूद रहती है । एक औरत खाना पकाने बैठती है इतने में उसका बच्चा रोने लगता है वह खाने का काम छोड़कर बच्चे को संभालती है। इतने में घर की गाय जंगल से चर कर वापस आ जाती है बच्चे को लिटा कर गाय बांधने लगती है। गाय किसी वजह से खौफ खाकर उसके सींग मारती है और वह जख्मी होकर चिल्लाने लगती है। अर्थात इसी तरह काम के अंदर काम निकल कर यानी अव्वल काम यानी खाना बनाना भूल जाती है । ठीक यही हाल इंसान का है । जब तब परमार्थ कमाने का इरादा करता है लेकिन काम के अंदर काम, ख्वाइश के अंदर ख्वाइश पैदा होने से वह परमार्थ के मुतअल्लिक़ इरादे को भूल जाता है।  जब कूच का वक्त आता है तो दुनिया के सब काम खत्म हो जाने से उसे परमार्थ कमाने की याद आती है। रोता है सर पीटता है और हाय हाय करता हुआ चला जाता है। इसलिए सच्चे प्रमार्ध की कमाई वही शख्स कर सकता है जो हर वक्त बेदार रहे और परमार्थी मकसद को हमेशा मुख्य रखे । 🙏🏻राधास्वामी 🙏🏻 **

ध्यान का सार





 प्रस्तुति दिनेश कुमार सिन्हा


✍️एक मालिक का प्यारा जब ध्यान पर  बैठता  तो उस  समय पर कोई भी उससे मिलने नहीं आता था।एक बार की बात हैं उनकी कुटिया में उनके ध्यान के समय एक अतिथि आ गया उसको मालूम नहीं था कि यह उनके ध्यान का समय हैं..वह लगा बाहर से जोर-जोर से आवाज लगाने और दरवाज़ा खटखटाने पर वो मालिक के प्यार में इतना रमें थे कि उन्हें कोई ख्याल ही ना था कि कोई दरवाजे को खटखटा रहा हैं.

वह अतिथि जब दरवाजा खटखटाते हुए परेशान हो गये तो चिल्लाकर बोले अंदर कौन हैं..?"पर कोई उत्तर नहीं आया तो वह चुपचाप वहीँ प्रतीक्षा करने लग गया। शाम के समय जब वह बाहर निकले तो अतिथि ने उनके ध्यान की बहुत सराहना की और बाद में उलाहना भी दिया कि हमने आपको कई आवाजें दी आप ने हमारी एक भी आवाज का उत्तर नहीं दिया।इस पर मालिक के प्यारे फकीर ने मुस्कुराते हुए जबाव दिया कि ---"मैं तो कुटिया के भीतर ही था।" उस व्यक्ति ने कहा ---" क्या आपको हमारी आवाज सुनाई नहीं दी।" मालिक के प्यारे ने कहा ---"सुनाई दी थी...तुम्हारा सवाल था अंदर कौन हैं ?" यह सुन वह व्यक्ति रुआंसा हो बोला ---"आपने मेरी आवाज सुनकर भी दरवाजा खोलना संभव नहीं समझा ऐसा क्यो..?" मालिक के प्यारे ने कहा ---" तुम्हारे प्रश्न "अंदर कौन है" ..? का उत्तर जान्ने  के लिए मुझे अंदर जाना पड़ा..सो उसी में देर हो गयी..!!"

तब तक वहाँ कई लोग जमा हो गए और मालिक का प्यारा मालिक की बातों में इतना मस्त हो गया कि इसे समय का पता ही नहीं चला।लेकिन थोड़ी देर में आंधी-तूफान आ गया।सब अपनी जान बचाने इधर-उधर भागने लगे वह अतिथि भी भागा...पर मालिक के प्यारे फकीर को देख वह वापिस वहीँ लौट आया।उसने मालिक के प्यारे से प्रश्न किया ---"इस तूफान में सब भागे पर आप नहीं..ऐसा क्यों..?"

मालिक के प्यारे ने कहा ---" जब सब बाहर की ओर  भागे तब मैं भीतर की ओर  चला गया, अपने ही ध्यान में वहाँ तूफान नहीं था परम शान्ति थी...अतिथि ने खुश होकर कहा ---" मुझे ध्यान का तरीका मिल गया। कहने का भाव हैं जो मालिक के ध्यान अर्थात् भजन सिमरन में दिन-रात रहता हैं उसे धूप-छाँव, सर्दी-गर्मी, आँधी-तूफान, सुख-दुःख,आदि थपेडों की कोई परवाह नहीं होती।वह हर हाल में खुश रहता हैं।

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रामनगर में रामवृक्ष की महिमा अपरंपार






प्रस्तुति- दिनेश कुमार सिन्हा

*कौनसा वृक्ष धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए एक चुनौती बना हुआ है?*
सियाराम मय सब जाग जानि... की कल्पना पूरे रामनगरी के कण-कण में साकार होती है। यहां की रज में श्री सीताराम के प्रति अगाध निष्ठा बसी है।

रामनगरी में ही एक ऐसा वृक्ष है जिसके तने, टहनियों व पत्तियों पर राम-राम अंकित मिलता है, जो कि अमिट है। अयोध्या के दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष है, जो धर्म, आस्था और विज्ञान के लिए चुनौती बना हुआ है। आसपास के लोगों की इस पेड़ से अगाध निष्ठा है।

यहां वर्ष में एक बार मेला भी लगता है। कदम प्रजाति के इस पेड़ की खासियत ये है कि इसकी जड़ और डालियों पर भगवान राम का नाम लिखा है और धीरे-धीरे इस पेड़ पर भगवान का नाम लिखे होने की संख्या बढ़ती जा रही है।

आस्था, धर्म और विज्ञान अलग-अलग क्षेत्र होते हुए भी कहीं न कहीं आपस में जुड़े हैं। धर्म और आस्था की सीमा रेखा जहां समाप्त होती है वहीं से विज्ञान का क्षेत्र शुरू होता है।

आस्था और धर्म को बहुधा: विज्ञान की कसौटी पर कभी भी पूर्ण रूपेण नहीं कसा जा सकता है। दर्शन नगर प्रक्षेत्र के तकपुरा गांव में मौजूद दुर्लभतम ‘राम-राम’ वृक्ष अपनी दूसरी पीढ़ी का पौधा है।
पहली पीढ़ी का पौधा वर्तमान वृक्ष से लगभग 50 मीटर की दूरी पर स्थित था, जो आसपास के लोगों द्वारा वहां की मिट्टी खोद लेने के कारण सूख गया था।

‘राम-राम’ वृक्ष जहां वर्तमान में स्थित है, वह यद्यपि एक उपेक्षित पुराना बाग है लेकिन धार्मिक परिदृश्य में इसे देखें तो जनश्रुति के अनुसार ये वृक्ष हनुमान जी द्वारा हिमालय से संजीवनी बूटी का पहाड़ लेकर श्रीलंका जाने के मार्ग में अवस्थित है। इस ‘राम-राम’ वृक्ष के तने के ऊपर एक सिल्की छिलका है जो समय-समय पर सूखकर जब हटता है तो उसके नीचे तने पर ‘राम-राम’, ‘सीता’ तथा श्रीरामसीता शब्द लिखे मिलते हैं जिन्हें मिटाया नहीं जा सकता। ये तीनों शब्द वृक्ष के पूरे तने पर मिलते हैं।

वनस्पति विज्ञान के आधार पर जब इस वृक्ष की बात होती है तो अभी तक ‘राम-राम’ वृक्ष के वानस्पतिक नाम का निर्धारण नहीं हो सका है। जिस खेत में पेड़ है उसके मालिक उदय प्रकाश वर्मा बताते हैं कि इस पेड़ पर दशकों पूर्व अचानक भगवान राम का नाम लिखा देखा गया।
जिसके बाद से पेड़ के हर दल पर भगवान का नाम अंकित होता है। इस चमत्कारी पेड़ की महिमा जब लोगों को पता चली तो इस पेड़ की पूजा शुरू हो गई। प्रतिदिन सुबह आठ बजे एक पुजारी इस पेड़ की पूजा करते हैं। वहीं साल में पितृ विसर्जन के दिन इस पेड़ के नीचे मेला भी लगता है।



कुछ प्रेरक कथाएं




 प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा

[15/02, 05:10] Morni कृष्ण मेहता: एक सौदागर राजा के महल में
दो गायों को लेकर आया -
दोनों ही स्वस्थ, सुंदर व दिखने में
लगभग एक जैसी थीं।
सौदागर ने राजा से कहा "महाराज -
ये गायें माँ - बेटी हैं परन्तु मुझे यह
नहीं पता कि माँ कौन है व बेटी कौन -
क्योंकि दोनों में खास अंतर नहीं है।
मैंने अनेक जगह पर लोगों से यह
पूछा किंतु कोई भी इन दोनों में माँ -
बेटी की पहचान नहीं कर पाया - बाद
में मुझे किसी ने यह
कहा कि आपका बुजुर्ग मंत्री बेहद
कुशाग्रबुद्धि का है और यहाँ पर मुझे
अवश्य मेरे प्रश्न का उत्तर मिल
जाएगा इसलिए मैं यहाँ पर चला आया -
कृपया मेरी समस्या का समाधान
किया जाए।"
यह सुनकर सभी दरबारी मंत्री की ओर
देखने लगे -
मंत्री अपने स्थान से उठकर
गायों की तरफ गया। उसने
दोनों का बारीकी से निरीक्षण
किया किंतु वह भी नहीं पहचान
पाया कि वास्तव में कौन मां है और
कौन बेटी ... ?
अब मंत्री बड़ी दुविधा में फंस गया,
उसने सौदागर से एक दिन की मोहलत
मांगी।
घर आने पर वह बेहद परेशान रहा -
उसकी पत्नी इस बात को समझ गई।
उसने जब मंत्री से परेशानी का कारण
पूछा तो उसने सौदागर की बात
बता दी।
यह सुनकर पत्नी मुस्कराते हुए
बोली 'अरे ! बस इतनी सी बात है - यह
तो मैं भी बता सकती हूँ ।'
अगले दिन
मंत्री अपनी पत्नी को वहाँ ले
गया जहाँ गायें बंधी थीं।
मंत्री की पत्नी ने दोनों गायों के आगे
अच्छा भोजन रखा - कुछ ही देर बाद
उसने माँ व बेटी में अंतर बता दिया -
लोग चकित रह गए।
मंत्री की पत्नी बोली "पहली गाय
जल्दी -जल्दी खाने के बाद दूसरी गाय
के भोजन में मुंह मारने लगी और
दूसरी वाली ने पहली वाली के लिए
अपना भोजन छोड़ दिया, ऐसा केवल एक
मां ही कर सकती है -
यानि दूसरी वाली माँ है।
माँ ही बच्चे कैे लिए भूखी रह सकती है -
माँ में ही त्याग, करुणा,वात्सल्य,
ममत्व के गुण विद्यमान होते है .
[15/02, 05:27] Morni कृष्ण मेहता: *आदेश।,, जय माँ।,* 🌸🌸🌸

एक चोर भागा कबीर बाबा के घर में घुसा, बोला, मै चोर हूँ, छिपने की जगह दे दो,

कबीर जी ने कहा, गोदडियों में छिप जाओ,

चोर छिप गया सिपाही आए और बोले,

कबीर कबीर, तूने चोर को देखा ? कबीर जी ने कहा- हाँ, गोदडियों के ढेर में छिपा है,

चोर के प्राण सूख रहे थे के आज किस कबीर बाबा के चक्कर में पड गया।

सिपाही ने सोचा, मजाक कर रहा है।

ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके सामने कोई गोदडियों के ढेर में छिप जाए,

 वे चले गए।

चोर निकल आया और बोला, बाबा जी, आज तो मरवा ही डालते आप,

 कबीर बाबा ने कहा- अरे, क्या मैं झूठ बोलता ?

क्या सत्य में इतनी ताकत नहीं, जो तुम्हें बचा सके ?

सत्य क्या मिट गया है ?

झूठ में ताकत नहीं सत्य में ताकत है।

 मुझे विश्वास था, मेरा सत्य तेरी रक्षा करेगा,

 गुरु, संत  जो कहें उसे मान लो किन्तु परंतु मत करो,,,

पांच बोध कथाएं






प्रस्तुति - दिनेश कुमार सिन्हा


 Morni कृष्ण मेहता: 🌸🌸🌸

1
एक चोर भागा कबीर बाबा के घर में घुसा, बोला, मै चोर हूँ, छिपने की जगह दे दो,

कबीर जी ने कहा, गोदडियों में छिप जाओ,

चोर छिप गया सिपाही आए और बोले,

कबीर कबीर, तूने चोर को देखा ? कबीर जी ने कहा- हाँ, गोदडियों के ढेर में छिपा है,

चोर के प्राण सूख रहे थे के आज किस कबीर बाबा के चक्कर में पड गया।

सिपाही ने सोचा, मजाक कर रहा है।

ऐसा कैसे हो सकता है कि इसके सामने कोई गोदडियों के ढेर में छिप जाए,

 वे चले गए।

चोर निकल आया और बोला, बाबा जी, आज तो मरवा ही डालते आप,

 कबीर बाबा ने कहा- अरे, क्या मैं झूठ बोलता ?

क्या सत्य में इतनी ताकत नहीं, जो तुम्हें बचा सके ?

सत्य क्या मिट गया है ?

झूठ में ताकत नहीं सत्य में ताकत है।

 मुझे विश्वास था, मेरा सत्य तेरी रक्षा करेगा,

 गुरु, संत  जो कहें उसे मान लो किन्तु परंतु मत करो,,,

2


साधना क्या है...???
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पत्थर पर यदि बहुत पानी एकदम से डाल दिया जाए तो पत्थर केवल भीगेगा।

फिर पानी बह जाएगा और पत्थर सूख जाएगा।

किन्तु वह पानी यदि बूंद-बूंद पत्थर पर एक ही जगह पर गिरता रहेगा, तो पत्थर में छेद होगा और कुछ दिनों बाद पत्थर टूट भी जाएगा।

इसी प्रकार निश्चित स्थान पर नाम स्मरण की साधना की जाएगी तो उसका परिणाम अधिक होता है ।

चक्की में दो पाटे होते हैं।

उनमें यदि एक स्थिर रहकर, दूसरा घूमता रहे तोअनाज पिस जाता है और आटा बाहर आ जाता है।

यदि दोनों पाटे एक साथ घूमते रहेंगे तो अनाज नहीं पिसेगा और परिश्रम व्यर्थ होगा।

इसी प्रकार मनुष्य में भी दो पाटे हैं -

एक मन और दूसरा शरीर।

उसमें मन स्थिर पाटा है और शरीर घूमने वाला पाटा है।

अपने मन को भगवान के प्रति स्थिर किया जाए और शरीर से गृहस्थी के कार्य किए जाएं।

प्रारब्ध रूपी खूँटा शरीर रूपी पाटे में बैठकर उसे घूमाता है और घूमाता रहेगा,

लेकिन मन रूपी पाटे को सिर्फ भगवान के प्रति स्थिर रखना है।

देह को तो प्रारब्ध पर छोड़ दिया जाए औरमन को नाम-सुमिरन में विलीन कर दिया जाए -

यही नाम साधना है।
जय श्री महाकाल

3


[15/02, 05:27] Morni कृष्ण मेहता: *



 *जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।*

ज्ञान और भक्ति का जाति या लिंग से कोई भी संबंध नही है।

भक्ति और ज्ञान जात-पात, कुल-गोत्र, पुरुष या स्त्री  देख कर नही आते,

यदि जाति के आधार पर ज्ञान या भक्ति मिलती तो बाल्मीकी रामायण नही लिख पाते,

कर्माबाई की खिचड़ी खाने द्वारकाधीश दौड़े दौड़े नही आते,

मीरा बाई सा-शरीर श्रीकृष्ण के विग्रह में ना समा जाती,

लंकापति रावण बैजनाथ ज्योर्तिलिंग की स्थापना नही कर पाता,

विश्वामित्र राम-लक्ष्मण को अस्त्र-शस्त्र नही दे पाते,

रविदास की चमड़े की कठौती से गंगा नही निकलती,

शबरी के बेर राम नही खाते,

गोपियों को प्रेम भक्ति का मणिमुकुट ना कहा जाता,

जनाबाई की चक्की पीसने भगवान विट्ठल नही आते,

और दत्त महाप्रभु साधारण मानव से ले कर पशु-पक्षी से ज्ञान नहीं लेते,

गज की पुकार पर नारायण वैकुंठ से दौड़े नही आते।

ऐसे लाखो उदाहरण है जिनमे भगवान बिना जाती देखे अपने भक्तों के मनोरथ पूर्ण किये।
उन्हें मुक्ति दी।

ईश्वर सिर्फ सच्चा प्रेम भाव और समर्पण ही चाहते है आपसे,

जो व्यक्ति अपने गुरु, इष्ट, मातृभूमि, धर्म, परिजनों की सच्चे हृदय से सेवा करता है ईश्वर सदैव उसके साथ ही होते है।।

जात-पात को छोड़िये, सबसे ऊपर भक्ति,प्रेम और ज्ञान,
जो जाती देख संशय करे उसे ना मुक्ति मिले ना मिले भगवान।।

4


*धर्म का अर्थ होता है कर्तव्य।


धर्म के नाम पर हम अक्सर सिर्फ कर्मकांड, पूजा-पाठ, तीर्थ-मंदिरों तक सीमित रह जाते हैं। हमारे ग्रंथों ने कर्तव्य को ही धर्म कहा है। भगवान कहते हैं कि अपने कर्तव्य को पूरा करने में कभी यश-अपयश और हानि-लाभ का विचार नहीं करना चाहिए। बुद्धि को सिर्फ अपने कर्तव्य यानी धर्म पर टिकाकर काम करना चाहिए। इससे परिणाम बेहतर मिलेंगे और मन में शांति का वास होगा। मन में शांति होगी तो परमात्मा से आपका योग आसानी से होगा। आज का युवा अपने कर्तव्यों में फायदे और नुकसान का नापतौल पहले करता है, फिर उस कर्तव्य को पूरा करने के बारे में सोचता है। उस काम से तात्कालिक नुकसान देखने पर कई बार उसे टाल देते हैं और बाद में उससे ज्यादा हानि उठाते हैं।*

*राधे राधे 🙏*

[16/02, 08:32] Morni कृष्ण मेहता: ❤ सूक्ष्‍म शरीर का जगत ❤🌹

( भाग--1)

प्रशन--एक मित्र ने पूछा है कि यदि मां के पेट में, पुरूष और स्‍त्री, आत्‍मा के जन्‍मनें के लिए अवसर पैदा करते है, तो इसका अर्थ यह हुआ कि आत्‍माएं अलग-अलग है और सर्वव्‍यापी आत्‍मा नहीं है? उन्होंने यह भी पूछा है कि मैंने तो बहुत बार कहा है कि एक ही है सत्‍य, एक ही परमात्‍मा है, एक ही आत्‍मा है। फिर ये दोनों बातें तो कंट्राडिक्‍टरी, विरोधी मालूम होती है।

ये दोनों बातें विरोधी नहीं है। आत्‍मा तो वस्‍तुत: एक ही है। लेकिन शरीर दो प्रकार के है। एक शरीर जिसे हम स्‍थूल शरीर कहते है, जो हमें दिखाई देता है। एक शरीर जो सूक्ष्‍म शरीर है जो हमें दिखाई नहीं पड़ता है। एक शरीर की जब मृत्‍यु होती है, तो स्‍थूल शरीर तो गिर जाता है। लेकिन जो सूक्ष्‍म शरीर है वह जो सटल बॉडी है, वह नहीं मरती है।

आत्‍मा दो शरीरों के भीतर वास कर रही है। एक सूक्ष्‍म और दूसरा स्‍थूल। मृत्‍यु के समय स्‍थूल शरीर गिर जाता है। यह जो मिट्टी पानी से बना हुआ शरीर है यह जो हड्डी मांस मज्‍जा की देह है। यह गिर जाती है। फिर अत्‍यंत सूक्ष्‍म विचारों का, सूक्ष्‍म संवेदनाओं का, सूक्ष्‍म वयब्रेशंस का शरीर शेष रह जाता है, सूक्ष्‍म तंतुओं का।

वह तंतुओं से घिरा हुआ शरीर आत्‍मा के साथ फिर से यात्रा शुरू करता है। और नया जन्‍म फिर नए स्‍थूल शरीर में प्रवेश करता है। तब एक मां के पेट में नई आत्‍मा का प्रवेश होता है, तो उसका अर्थ है सूक्ष्‍म शरीर का प्रवेश।

मृत्‍यु के समय सिर्फ स्‍थूल शरीर गिरता है—सूक्ष्‍म शरीर नहीं। लेकिन परम मृत्‍यु के समय—जिसे हम मोक्ष कहते है—उस परम मृत्‍यु के समय स्‍थूल शरीर के साथ ही सूक्ष्‍म शरीर भी गिर जाता है। फिर आत्‍मा का कोई जन्‍म नहीं होता। फिर वह आत्‍मा विराट में लीन हो जाती है। वह जो विराट में लीनता हे, वह एक ही है। जैसे एक बूंद सागर में गिर जाती है।

तीन बातें समझ लेनी जरूरी है। आत्‍मा का तत्‍व एक है। उस आत्‍मा के तत्‍व के संबंध में आकर दो तरह के शरीर सक्रिय होते है। एक सूक्ष्‍म शरीर, और एक स्‍थूल शरीर। स्‍थूल शरीर से हम परिचित है, सूक्ष्‍म से योगी परिचित होता है। और योग के भी जो ऊपर उठ जाते है, वे उससे परिचित होते है जो आत्‍मा है। सामान्‍य आंखे देख पाती है इस शरीर को। योग-दृष्‍टि, ध्‍यान देख पाता है, सूक्ष्‍म शरीर को। लेकिन ध्‍यानातित, बियॉंड योग, सूक्ष्‍म के भी पार, उसके भी आगे जो शेष रह जाता है, उसका तो समाधि में अनुभव होता है। ध्‍यान से भी जब व्‍यक्‍ति ऊपर उठ जाता है। तो समाधि फलित होती है। और उस समाधि में जो अनुभव होता है, वह परमात्‍मा का अनुभव है। साधारण मनुष्‍य का अनुभव शरीर का अनुभव है, साधारण योगी का अनुभव सूक्ष्‍म शरीर का अनुभव है, परम योगी का अनुभव परमात्‍मा का अनुभव है। परमात्‍मा एक है, सूक्ष्‍म शरीर अनंत है, स्‍थूल शरीर अनंत है।

वह जो सूक्ष्‍म शरीर है वह है कॉज़ल बॉडी। वह जो सूक्ष्‍म शरीर है, वही नए स्‍थूल शरीर ग्रहण करता है। हम यहां देख रहे है कि बहुत से बल्‍ब जले हुए है। विद्युत तो एक है। विद्युत बहुत नहीं है। वह ऊर्जा, वह शक्‍ति, वह एनर्जी एक है। लेकिन दो अलग बल्लों से वह प्रकट हुई है। बल्‍ब का शरीर अलग-अलग है, उसकी आत्‍मा एक है। हमारे भीतर से जो चेतना झांक रही है, वह चेतना एक है। लेकिन उस चेतना के झांकने में दो उपकरणों का, दो वैहिकल का प्रयोग किया गया है। एक सूक्ष्‍म उपकरण है, सूक्ष्‍म देह: दूसरा उपकरण है, स्‍थूल देह।

हमारा अनुभव स्‍थूल देह तक ही रूक जाता है। यह जो स्‍थूल देह तक रूक गया अनुभव है, यहीं मनुष्‍य के जीवन का सारा अंधकार और दुख है। लेकिन कुछ लोग सूक्ष्‍म शरीर पर भी रूक सकेत है। जो लोग सूक्ष्‍म शरीर पर रूक जाते है। वे ऐसा कहेंगें की आत्‍माएं अनंत है। लेकिन जो सूक्ष्‍म शरीर के भी आगे चले जाते है। वे कहेंगे की परमात्‍मा एक है। आत्‍मा एक ब्रह्मा एक है।

मेरी इन दोनों बातों में कोई विरोधाभाष नहीं है। मैंने जो आत्‍मा के प्रवेश के लिए कहा, उसका अर्थ है वह आत्‍मा जिसका अभी सूक्ष्‍म शरीर गिरा नहीं है। इसलिए हम कहते है कि जो आत्‍मा परम मुक्‍ति को उपलब्‍ध हो जाती है, उसका जन्‍म मरण बंद हो जाता है। आत्‍मा का तो कोई जन्‍म मरण है ही नहीं। वह न तो कभी जन्‍मी है और न कभी मरेगी। वह जो सूक्ष्‍म शरीर है, वह भी समाप्‍त हो जाने पर कोई जन्‍म मरण नहीं रह जाता। क्‍योंकि सूक्ष्‍म शरीर ही कारण बनता है नए जन्‍मों का।

सूक्ष्‍म शरीर का अर्थ है, हमारे विचार, हमारी कामनाए, हमारी वासनाएं, हमारी इच्‍छाएं, हमारे अनुभव, हमारा ज्ञान, इन सबका जो संग्रही भूत जो इंटिग्रेटेड सीड है, इन सबका जो बीज है, वह हमारा सूक्ष्‍म शरीर है। वहीं हमें आगे की यात्रा करता है। लेकिन जिस मनुष्‍य के सारे विचार नष्‍ट हो गए, जिस मनुष्‍य की सारी वासनाएं क्षीण हो गई, जिस मनुष्‍य की सारी इच्‍छाएं विलीन हो गई, जिसके भीतर अब कोई भी इच्‍छा शेष न रही, उस मनुष्‍य को जाने के लिए कोई जगह नहीं बचती, जाने का कोई कारण नहीं रह जाता। जन्‍म की कोई वजह नहीं रह जाती।

राम कृष्‍ण के जीवन में एक अद्भुत घटना है। रामकृष्‍ण को जो लोग बहुत निकट से जानते थे, उन सबको यह बात जानकर अत्यंत कठिनाई होती थी कि रामकृष्‍ण जैसा परमहंस, रामकृष्‍ण जैसा समाधिस्‍थ व्‍यक्‍ति भोजन के संबंध में बहुत लोलुप था। रामकृष्‍ण भोजन के लिए बहुत आतुर होते थे, और भोजन के लिए इतनी प्रतीक्षा करते थे कई बार उठकर चोंके में पहुंच जाते थे। और पूछते शारद को, बहुत देर हो गई। क्‍या बन रहा है आज? ब्रह्म की चर्चा चलती और बीच में ब्रह्म-चर्चा छोड़कर पहु्ंचो जाते चोंके में। और खोजने लगते कि शारदा आज क्‍या बना रहा है? शारद ने भी उन्‍हें कई बार कहा की लोग क्‍या सोचते होंगे? क्‍या कहते होंगे?ब्रह्म की चर्चा छोड़ कर एक दम अन की चर्चा पर उतर आते हो। रामकृष्‍ण हंसते और चुप रह जाते। उनके शिष्‍यों ने भी उन्‍हें अनेक बार कहां। इससे बड़ी बदनामी होती है। लोग कहते है कि ऐसा व्‍यक्‍ति क्‍या ज्ञान को उपलब्‍ध होगा। जिसकी अभी वासना , रसना, जीभ की भी पूरी नहीं हुई है।

एक दिन शारदा ने बहुत कुछ भला-बुरा कहा, रामकृष्‍ण की पत्‍नी ने, तो रामकृष्‍ण ने कहा कि तुझे पागल, पता नहीं, जिस दिन मैं भोजन के प्रति अरूचि प्रकट करूं, तू समझ लेना कि अब मेरे जीवन की यात्रा केवल तीन दिन शेष रह गये है। बस तीन दिन से ज्‍यादा फिर मैं जीऊूंगा नहीं। जिस दिन भोजन के प्रति मेरी उपेक्षा हो, समझ लेना कि तीन दिन बाद मेरी मौत आ गई है। शारदा कहने लगी, इसका अर्थ?रामकृष्‍ण कहने लगे, मेरी सारी वासनाएं क्षीण हो गई है। मेरी सारी इच्‍छाएं विलीन हो गई है। मेरे सारे विचार नष्‍ट हो गये है। लेकिन जगत के हित के लिए मैं रुका रहना चाहता हूं। मैं एक वासना को जबर्दस्‍ती पकड़े हुए हूं। जैसे किसी नाव की सारी ज़ंजीरें खुल जाएं एक जंजीर से नाव अटकी रह गई है। और वह एक जंजीर और टूट जाए तो नाव आनी अनंत यात्रा पर निकल जाएगी। मैं चेष्‍टा करके रुका हुआ हूं।

नहीं किसी की समझ में शायद उस दिन यह बात आई, लेकिन रामकृष्‍ण की मृत्‍यु के तीन दिन पहले शारदा थाली लगाकर रामकृष्‍ण के कमरे में गई। वे बैठे हुए देख रहे थे। उन्‍होंने थाली देखकर आँख बंद कर ली। लेट गए, और पीठ कर ली शारदा की तरफ। उसे एकदम से ख्‍याल आया कि उन्‍होंने कहां था कि तीन दिन बाद मौत हो जाएगी। जिस दिन भोजन के प्रति अरूचि करूंगा। उसके हाथ से थाली छूट गई। वह छाती पीटकर रोने लगी। राम कृष्‍ण ने कहा रोओ मत, तुम जो कहती थी वह बात भी अब पूरी हो गई।

ठीक तीन दिन बाद रामकृष्‍ण की मृत्‍यु हो गई। एक छोटी सी वासना को प्रयास करके वे रोके हुए थे। उतनी छोटी सी वासना जीवन यात्रा का आधार बनी थी। वह वासना भी चली गई जो जीवन यात्रा का सारा आधार समाप्‍त हो गया।

जिन्‍हें हम तीर्थकर कहते है, जिन्‍हें हम बुद्ध कहते है। जिन्‍हें हम ईश्‍वर के पुत्र कहते है। जिन्‍हें हम अवतार कहते है। उनकी भी एक ही वासना शेष रह गई होती है। और उस वासना को वे शेष रखना चाहते है करूणा के हित, सर्वमंगला के हित, सर्व लोक के हित। जिस दिन वह वासना भी क्षण हो जाती है, उसी दिन जीवन की यह यात्रा समाप्‍त और अनंत की अंतहीन यात्रा शुरू हो जाती है। उसके बाद जन्‍म नहीं है, उसके बाद मरण नहीं है। उसके बाद....उसके बाद न एक है, न अनेक है। उसके बाद तो जो शेष रह जाता है, उसे संख्‍या में गिनने का कोई उपाय नहीं है।

इसलिए जो जानते है, वे यह भी नहीं कहते कि ब्रह्म एक है। परमात्‍मा एक है। क्‍योंकि एक कहना व्‍यर्थ है जब कि दो की गिनती न बनती हो। एक कहने का कोई अर्थ नहीं है। जब कि दो और तीन न कहे जा सकते हों। एक कहना तभी तक सार्थक है जब तक कि दो, तीन चार भी सार्थक होते है। संख्‍याओं के बीच ही एक की सार्थकता है। इसलिए जो जानते है, वे यह भी नहीं कहते कि ब्रह्म एक है; वे कहते है, ब्रह्म अद्वय हे, नानडुअल है, दो नहीं है। बहुत अद्भुत बात कहते है। वे कहते है, परमात्‍मा दो नहीं है। दो नहीं है। बहुत अदभुद बात कहते है। वे कहते है कि परमात्‍मा की संख्‍या गिनने का उपाय नहीं है। एक कहकर भी हम संख्‍या में गिनने की कोशिश करते है। वह गलत है।

लेकिन उस तक पहुंचना दूर, अभी तो हम स्‍थूल पर खड़े है, उस शरीर पर जो अनंत है, अनेक है। उस शरीर के भीतर हम प्रवेश करेंगे तो एक और शरीर उपल्‍बध होगा। सूक्ष्म शरीर को भी पार करेंगे तो वह उपलब्‍ध होगा। जो नहीं है, अशरीर है, जो आत्‍मा है।

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...