Sunday, December 14, 2014

सुरत शब्द योग





प्रस्तुति-- राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा

सुरत शब्द योग एक आंतरिक साधन या अभ्यास है जो संत मत और अन्य संबंधित आध्यात्मिक परंपराओं में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में 'सुरत' का अर्थ आत्मा, 'शब्द' का अर्थ ध्वनि और 'योग' का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को 'ध्वनि की धारा' या 'श्रव्य जीवन धारा' कहते हैं।[1]. शरीर में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक बोध-भान होते हैं। इनसे अलग एक और तत्त्व है जो इन सब का साक्षी है जिसे सुरत, चेतन तत्त्व चेतना, या चेतनता कहा गया है। सृष्टिक्रम में वही सुरत क्रमश: शब्द, प्रकाश (आत्मा), मन और शरीर में आ जाती है। सुरत का सहज और स्वाभाविक तरीके से इसी मार्ग से लौट जाना सुरत शब्द योग का विषय और प्रयोजन है।[2] सुरत को परम तत्त्व भी कहा गया है। जीवन के रचना क्रम में हिलोर पैदा होने पर सुरत और शब्द दो हस्तियाँ बन जाती हैं और जीवन का खेल प्रारंभ होता है। सुरत में शब्द (ध्वनि) की ओर आकर्षित होने का स्वाभाविक गुण है। यह सुरत शब्द योग का आधार सिद्धांत है।[3].

यह भी देखें

संदर्भ

  1. Singh, K., Naam or Word. Blaine, WA: Ruhani Satsang Books. ISBN 0-942735-94-3, 1999; BOOK TWO: SHABD, The Sound Principle.
  2. {{cite book |title=संत मत और आत्मानुभूति |author= दयाल फकीर चंद |editor=डॉ॰आई. सी. शर्मा |publisher=मानवता मंदिर होशियारपुर |year=1988 |page=177 and 178 |language=Hindi
  3. भगत मुंशीराम (2008) (हिंदी में). संत मत (दयाल फकीर मत की व्याख्या). कश्यप पब्लिकेशन. प॰ 49. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 9788190550147.

राधास्वामी के गुरू की संत वाणी


प्रस्तुति-- राजेन्द्र प्रसाद, उषा रानी 

आगरा। वृंदावन की कुंज गलियों से निकले राधा-कृष्ण के बोल तो सबको निहाल करते हैं। परंतु आगरा की ऐसी गली के बारे में कुछ ही लोगों ने सुना है। यह है प्राचीन पन्नी गली। सबसे पहले यहीं से झंकृत हुई थी राधास्वामी मत की ध्वनि, जो आज पूरे विश्व में गुंजायमान है। देश-विदेश में इसके कई करोड़ अनुयायी सत्संगी हैं।
कश्मीरी बाजार की इस गली में प्रवेश करने के बाद कुछ दूरी पर दायीं ओर यह सत्संग भवन है। इसके ऊपरी कक्ष में राधास्वामी मत के संस्थापक कुल मालिक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज [शिवदयालजी महाराज] का जन्म 24 अगस्त 1818 को हुआ। बचपन से ही उनका मन सुरत साधना योग में लगने लगा। वह इस भवन में सत्संग करने लगे। इस सत्संग को उन्होंने राधास्वामी नाम दिया। इसी दौरान उनके कुछ शिष्य बन गए। इनमें से उनके चयनित शिष्य यहां नियमित आते। उन्हें प्रेम, शांति और सद्भावना का संदेश दिया जाता।
धीरे-धीरे इस मत के अनुयायियों की संख्या बढ़ने लगी। आखिर इस मत के द्वितीय गुरु परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज [राय बहादुर सालिगराम महाराज] की विशेष प्रार्थना पर स्वामीजी महाराज ने इसी भवन के आंगन में 15 फरवरी 1861 में इस मत को आम जनता के लिए शुरू किया। बाद में स्वामीजी महाराज ने इसी भवन में सन् 1878 ई. में अपना चोला छोड़ दिया। इनकी समाधि स्वामी बाग में है, जहां भव्य स्मारक निर्माणाधीन है। जबकि हुजूर महाराज की पवित्र समाधि पीपलमंडी के हुजूरी भवन में है। वहां वर्तमान गुरु दादाजी महाराज [डॉ.अगम प्रसाद माथुर] द्वारा जगत कल्याण के लिए नियमित प्रवचन दिए जाते हैं।
प्रतिदिन होता है सत्संग
पन्नी गली के इस सत्संग भवन के सेवादार नत्थी प्रसाद और लाल बहादुर ने बताया कि यहां प्रतिदिन प्रात: सत्संग होता है। इसके अलावा प्रत्येक गुरुवार को बड़ा सत्संग होता है। स्वामीजी महाराज के जन्म दिवस जन्माष्टमी पर भव्य एवं विशाल सत्संग यहां किया जाता है, जिसमें देश-विदेश से सत्संगी आते हैं।
प्राचीनता की झलक
जिस कक्ष में स्वामीजी महाराज का जन्म हुआ था, वहां उनका चित्र रखा हुआ है। ऊपरी मंजिल पर सत्संग भवन है, वहां स्वामीजी महाराज की चरण पादुकाएं रखी हुई हैं। जहां नियमित सत्संग होता है। भवन की देखरेख अचल सरन सेठ और प्रीतम बाबू के निर्देशन में होती है। इस भवन में व्यवस्था दुरुस्त है, लेकिन इसकी प्राचीनता को ज्यों का त्यों रखा गया है।
तीव्र गति से बढ़ा मत
स्थापना के बाद इस मत का तेजी से विस्तार हुआ। इसकी शाखाएं बढ़ती गईं। सबसे अधिक मजबूत और विस्तृत है राधास्वामी व्यास शाखा, जिसके 500 से अधिक सत्संग केंद्र हैं। इसके 50 लाख से ज्यादा अनुयायी देश-विदेश में हैं। आदि केंद्र हजूरी भवन, पीपलमंडी के लाखों अनुयाई देश-विदेश में हैं। स्वामी बाग में प्रतिदिन सत्संग होता है, इनके भी बेशुमार अनुयायी हैं। राधास्वामी सत्संग सभा, दयालबाग का अपना अलग अस्तित्व है। इसके गुरु, प्रो. पीएस सत्संगी शैक्षिक और आध्यात्मिक संदेश देते हैं। इसके अलावा अन्य शाखाएं भी हो गयी हैं। जितनी भी शाखाएं इस मत की हैं, सभी का केंद्र बिंदु पन्नी गली का यह सत्संग और हजूरी भवन है।
क्या है मत का आधार
इस मत का मुख्य आधार सुरत शब्द योग है, जो एक आंतरिक साधना या अभ्यास है। यह संत मत और आध्यात्मिक परंपरा में अपनाई जाने वाली योग पद्धति है। संस्कृत में सुरत का अर्थ आत्मा, शब्द का अर्थ ध्वनि और योग का अर्थ जुड़ना है। इसी शब्द को ध्वनि की धारा या श्रव्य जीवन धारा कहते हैं। इसके आधार पर सत्संगियों को सुरत शब्द का संदेश दिया जाता है।

सूर्य मंदिर में माँ काली में क्या है विशेषताएं



 
 
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जानिये सूर्य मंदिर में कहाँ है माँ काली और क्या है विशेषताएं
 देखे तस्वीरों में माँ महाकाली
क्या आप जानते है , की देव सूर्य मंदिर में कहाँ है माँ काली का स्थान अगर नहीं तो मै आपको बताता हूँ की देव सूर्य मंदिर में प्रवेश द्वार के बाद गर्भ गृह में जाने वाली मुख्य द्वार के दाहिनी ओर दीवाल पर है माँ काली के दिव्य स्वरुप की मूर्तियां , माँ काली के इस दिव्य स्वरुप का भक्तो को होता है सबसे पहले मुख्य द्वार पर दर्शन। भगवान सूर्य के एग्यारहवे रूप त्रिमूर्ति के दर्शन से पहले अर्थात गर्भ गृह में प्रवेश करने से पहले माँ काली के दर्शन करने से होता है शत्रुओ का नाश।

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Saturday, December 6, 2014

द ग्रैंड डिजाइन’ vs ब्रंह्मांड का सृजक कौन ?







प्रस्तुति-- डा.ममता शरण, कृति शरण, ,सृष्चि शरण
महान भौतिकविद् स्टीफन हॉकिंग ने हाल में कहा है कि ब्रह्मांड की संरचना में भगवान या ईश्वर का कोई हाथ नहीं, बल्कि उसका अस्तित्व भौतिकी या प्रकृति के बुनियादी नियमों के एक विशेष प्रक्रिया में काम करने के कारण हुआ था। उनका यह बयान उनकी शीघ्र प्रकाशित पुस्तक ‘द ग्रैंड डिजाइन’ के आगमन से पहले आए हैं।

जैसा कि नाम से जाहिर है, द ग्रैंड डिजाइन से आशय समूची सृष्टि या इस ब्रह्मांड की संरचना से है, उसके अस्तित्व में आने से जुड़ी तकनीकी प्रक्रिया से है। कहना न होगा कि हॉकिंग का यह बयान अपने आप में चौंकाऊ भी है और विवादस्पद भी क्योंकि इनसान की आस्था से जुड़े मुद्दों पर सवालिया निशान उठाने पर जवाब में विरोधी स्वर अधिकाधिक मुखर हो जाते हैं।
बिग बैंग से बना ब्रह्मांड
बिग बैंग यानी ब्रह्मांडीय महाविस्फोट वह घटना है, जिससे हमारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई है। बिग बैंग थ्योरी ब्रह्मांड के शुरुआती विकास पर रोशनी डालती है। इस थ्योरी के मुताबिक बिग बैंग की घटना करीब 13.7 अरब वर्ष पहले हुई थी। यह अनुमान 2009 तक की गई गणनाओं के आधार पर लगाया गया है। बिग बैंग मॉडल के मुताबिक ब्रह्मांड शुरुआती अवस्था में बहुत ही गरम और घना था, जिसका तेजी से विस्तार हुआ। फैलने के बाद ठंडा होकर वह मौजूदा अवस्था में पहुंचा। आज भी यह फैल रहा है।

सत्य की पड़ताल
आज हम यहां बात करेंगे हॉकिंग की और उनके द्वारा बताए गए उन कारणों की जिनकी रोशनी में उन्होंने सृष्टि संरचना संबंधी ऐसा बयान दिया। इसमें कोई शक नहीं कि स्टीफन हॉकिंग बीसवीं सदी के महान वैज्ञानिक हैं। उनकी 1988 में प्रकाशित पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ उन्होंने समय की शाश्वत शक्ति के बारे में अति साधारण शैली में पाठकों के सामने ब्रह्मांड और उसके अनेक रहस्यों को रखा था।

यह कुछ ऐसे सवाल थे जिनके बारे में आदिकाल से लेकर आधुनिक विज्ञान के साथ दिमागी मशक्कत करने वाला मनुष्य जूझता आया था, लेकिन इसके जवाब आज तक मनुष्य के सामने नहीं आए थे। अपनी नई पुस्तक में हॉकिंग ब्रह्मांड के अस्तित्व संबंधी कुछ इन्हीं सवालों से दो-चार होंगे।
दरअसल, ग्रैंड डिजाइन या सृष्टि संरचना की एक सर्वमान्य थ्योरी पर अल्बर्ट आइंसटीन ने भी अपने जीवन के अंतिम तीस वर्ष लगाए थे, लेकिन वह किसी पुख्ता नतीजे पर नहीं पहुंच सके थे। हॉकिंग ने इसी दिशा में कुछ प्रयास किए हैं। लिहाजा प्रश्न उठते हैं यह ब्रह्मांड कैसे बना, हम यहां क्यों हैं, क्या सृष्टि सृजन का ग्रैंड डिजाइन उस आदिसत्ता के कारण है जिसे हम ईश्वर कहते हैं या विज्ञान के पास इस संबंध में कुछ अन्य विचार हैं? सत्य क्या है?
द ग्रैंड डिजाइन में ब्रह्मांड संबंधी रहस्यों पर सबसे हालिया विमर्शो को बेहद सरल भाषा में शामिल किया गया है। इसमें मॉडल आधारित यथार्थवाद से जुड़े नए विचारों को जगह मिली है - जिसका मतलब कि सत्य का कोई एक रूप नहीं होता। इसके साथ ही इसमें ‘मल्टीवर्स’ या बहु-ब्रह्मांडों के कन्सेप्ट पर भी सामग्री है। मल्टीवर्स यानी हमारे इस ब्रह्मांड जैसे अनेक अन्य ब्रह्मांड जो सब एक साथ अस्तित्व में आए थे।
साथ ही एक अन्य विचार जिसमें कहा गया है कि ब्रह्मांड का कोई एक इतिहास नहीं, बल्कि हरेक संभावित इतिहास की शाखाएं मौजूद हैं। इसमें एम-थ्योरी पर कई बेहतरीन आकलन भी किए गए हैं और गौर किया गया है कि क्या यह वही थ्योरी है जिसकी तलाश में आइंस्टीन ने अपने जीवन का बड़ा हिस्सा लगा दिया था।
हॉकिंग, तब और अब
स्टीफन हॉकिंग ने अपनी पुस्तक ‘ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ के अंत में ईश्वर पर कुछ देर के लिए अपने विचार व्यक्त किए थे। उन्होंने लिखा था कि यदि वैज्ञानिक प्रकृति के बुनियादी नियमों को तलाश लेते हैं तो ‘हमें ईश्वर के मस्तिष्क का पता चल सकता है’।
अब वैज्ञानिक जिस एम-थ्योरी की बात कर रहे हैं, वह फंडामेंटल पार्टिकल्स और ऊर्जा के बारे में विस्तृत तौर पर समझाती है और संभवत: ब्रह्मांड उत्पत्ति के बारे में भी बता सकती है। यदि यह थ्योरी अपनी घोषणाओं को प्रयोग के जरिए साबित करने में सफल रहती है तो यह उत्पत्ति के सभी धार्मिक विचारों को पलट कर रख सकती है। कहना न होगा कि हॉकिंग के असाधारण मस्तिष्क में यह काम हो चुका है।
प्रो. हॉकिंग अब अपनी नई पुस्तक में कहते हैं कि कॉम्पलेक्स थ्योरेटिकल फिजिक्स केआधार पर बनी थ्योरी जिसे एम-थ्योरी भी कहते हैं, ज्ञात ब्रह्मांड की हर चीज को एक्सप्लेन करेगी। हॉकिंग का कहना है कि मनुष्य जो कि खुद प्रकृति केमूलभूत कणों का संकलन है, हमें और हमारे ब्रह्मांड को शासित करने वाले नियमों को समझने के बहुत करीब पहुंच गया है। यह नि:संदेह एक बड़ी सफलता है।
क्या है एम-थ्योरी
अल्बर्ट आइंसटीन एम-थ्योरी को खोजने की कोशिश कर रहे थे। आखिर यह एम-थ्योरी क्या है? यदि हम गैर तकनीकी तौर पर बात करें तो यह ब्रह्मांड के मूलभूत पदार्थ के बारे में एक आइडिया को व्यक्त करती है। यह दरअसल पार्टिकल फिजिक्स की एक थ्योरी है, जिसमें एक 11 आयाम वाले ब्रह्मांड की बात की गई है, जिसमें कमजोर और मजबूत बल तथा ग्रेविटी एकीकृत हैं। एम-थ्योरी स्ट्रिंग थ्योरी का विस्तार है, जिसमें ब्रह्मांड के सारे 11 आयामों की पहचान की गई है। स्ट्रिंग थ्योरी यह कहती है कि उप-आणुविक कण एक आयाम वाले स्ट्रिंग अथवा तार की तरह हैं।

पुरानी बहस
दरअसल, विज्ञान और धर्म के मध्य तनाव तभी से शुरू हो गया था जब विज्ञान का उदय हुआ था। पिछली सदियों के बजाय अब यह तनाव फिर भी कम नजर आता है, लेकिन हॉकिंग के बयान से इस बहस को फिर बल मिल सकता है, क्योंकि इस विषय पर बयान देने वाले वैज्ञानिक अधिकांश जीव उत्पत्ति प्राणि विज्ञान और भौतिकी के ही क्षेत्र में काम करते हैं। ब्रह्मांड और जीवन की उत्पत्ति दरअसल ऐसे क्षेत्र हैं जिनमें विज्ञान और धर्म के विचार कई स्थानों पर आपस में टकराते हैं। लेकिन क्या यह एक दूसरे के विकल्प हैं? या क्या दोनों के बीच कभी कोई गंभीर विमर्श हो सकता है, इसे देख जाना अभी शेष है।

विज्ञान अपनी ही पुरानी थ्योरियों की मरम्मत कर के प्रगति की सीढ़ियां चढ़ता है। शर्त यही है कि थ्योरी चाहे कितनी भी मौलिक हो, प्रयोग के दौरान उसमें कोई रुकावट नहीं होनी चाहिए। किसी भी अन्य मानवीय गतिविधि की तरह विज्ञान की अपनी कमियां भी हैं, लेकिन सृष्टि को समझने में उसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता।
न्यूटन को चुनौती
प्रो. हॉकिंग ने 9 सितंबर को प्रकाशित हो रही अपनी पुस्तक में फिजिक्स के जनक माने जाने वाले सर आइजक न्यूटन की इस धारणा को चुनौती दी है कि ब्रह्मांड का सृजन अवश्य ही भगवान ने किया होगा क्योंकि इसकी उत्पत्ति अराजकता के बीच नहीं हो सकती। अपनी नवीनतम पुस्तक में उन्होंने लिखा है कि 1992 में हमारे सौरमंडल से बाहर एक सूर्य जैसे तारे के इर्दगिर्द चक्कर लगाने वाले ग्रह की खोज से उन्हें न्यूटन के उक्त विचार को खारिज करने में मदद मिली है।
द ग्रैंड डिजाइन, जिसके सहलेखक अमेरिकी फिजिसिस्ट लेओनार्ड म्लॉडीनॉव हैं, लगभग एक दशक बाद हॉकिंग की पहली पुस्तक है। इस पुस्तक में आधुनिक भौतिकी (क्वैंटम मैकेनिक्स, जनरल रिलेटिविटी, मॉडर्न कॉसमोलॉजी) के विकास के चित्रण के अलावा इसमें बहु-ब्रह्मांडों (मल्टीवर्स) के बारे में भी अटकलें लगाई गई हैं।
(इनपुट मु. व्या.)
एलियंस के अस्तित्व को माना
प्रो. हॉकिंग, जो कंप्यूटर जनरेटेड वायस सिंथेसाइजर के जरिए बात करते हैं, न्यूरो मस्कुलर डिस्ट्राफी से पीड़ित हैं, जिसकी वजह से वे पूरी तरह से पैरालाइज्ड हो चुके हैं। लेकिन शारीरिक विकलांगता के बावजूद वे ब्रह्मांड ब्रह्मांड और भौतिकी पर विचारोत्तेजक और बेबाक टिप्पणियां करते रहे हैं।
पिछले अप्रैल में एक डाक्युमेंटरी सेरीज में उन्होंने एलियंस के अस्तित्व स्वीकार करके पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया था। उन्होंने कहा था कि यह सोचना एकदम तर्कसंगत है कि ब्रह्मांड में कहीं बुद्धिमान जीवन मौजूद है। हॉकिंग ने इससे भी आगे बढ़कर यह टिप्पणी कर डाली कि परग्रही जीव खानाबदोश बनकर विशाल अंतरिक्षों से धरती पर आ सकते हैं और हमारे ग्रह को उपनिवेश बनाकर हमारे संसाधन लूट सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हमें एलियंस से संपर्क करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसा करना एक बहुत बड़ा जोखिम होगा।
प्रोफेसर स्टीफन हॉकिंग के बयान में यों कुछ नया नहीं है। भगवान में आस्था में भी कुछ गलत नहीं क्योंकि इससे आपसी सौहार्द मजबूत होता है, जो कि किसी भी समाज में होना भी चाहिए। हॉकिंग ने मूलत: सृष्टि के नियमों के बारे में बात की है और उसे तोड़-मरोड़ कर पेश करना ठीक नहीं होगा। हमें इसके असली मतलब को समझने की कोशिश करनी चाहिए। वैसे ब्रह्मांड संरचना के बारे में अभी ज्यादा कुछ नहीं जाना जा सका है, खोज अभी जारी है। लिहाजा, हॉकिंग के बयान मूल तात्पर्य को समझना जरूरी है।
प्रोफेसर यशपाल, वैज्ञानिक एवं शिक्षाविद्

Monday, December 1, 2014

कायस्थ्य घराना





 
 
प्रस्तुति-- अखौरी प्रमोद
 
kayasthparivaar.blogspot.com


राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् : कार्यकारिणी समिति पुनर्गठित

राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् : कार्यकारिणी समिति पुनर्गठित


राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद
(कायस्थ सभाओं / संस्थाओं / मंदिरों / धर्मशालाओं / शिक्षा संस्थाओं / पत्र पत्रिकाओं का परिसंघ )
: कार्यालय :
राष्ट्रीय अध्यक्ष: जे. ऍफ़. १/७१, ब्लोक ६, मार्ग १० राजेन्द्र नगर पटना ८०००१६ बिहार
वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष: २०४ , विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाउन, जबलपुर, ४८२००१ मध्य प्रदेश
महामंत्री: २०९-२१० आयकर कॉलोनी, विनायकपुर, कानपुर २०८०२५ उत्तर प्रदेश

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क्रमांक: ०५२ / राकाम / वराउ / २०१२                        
                            जबलपुर, दिनाँक: ७.१०.२०१२
प्रतिष्ठार्थ:
आदरणीय संपादक जी,
सादर प्रकाशनार्थ विज्ञप्ति संलग्न है.
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् : कार्यकारिणी समिति पुनर्गठित
राष्ट्रीय कायस्थ महापरिषद् कायस्थ समाज की कायस्थ सभाओं / संस्थाओं / मंदिरों / धर्मशालाओं / शिक्षा संस्थाओं / पत्र पत्रिकाओं का राष्ट्र व्यापी परिसंघ है जिसके सदस्य भारत से बाहर विदेशों में भी हैं. यह एक जातीय संस्था मात्र नहीं है अपितु उन सभी का परिसंघ है जो मानते हैं कि परमपिता परमात्मा एक है जिसके विविध रूपों की उपासना विविध पंथों के माध्यम से करनेवाले सभी धर्मावलंबी समान हैं. अतः, मनुष्य मात्र में देश, लिंग, धर्म, पंथ, जाति, भाषा, विचारधारा, दल, प्रान्त, क्षेत्र ,परिवार, या अन्य आधार पर के नाम पर किसी भी प्रकार का भेदभाव किया जाना गलत है. सभी को योग्यता वृद्धि हेतु समान अवसर, योग्यतानुसार कार्य, पदोन्नति- अवसर, आय, प्रतिष्ठा, संपत्ति आदि अर्जित करने के समान अवसर मिलने चाहिए.

महापरिषद की पुनर्गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी समिति निम्नानुसार है:

राष्ट्रीय अध्यक्ष: चित्रांश त्रिलोकी प्रसाद वर्मा, रामसखीनिवास,  मुजफ्फरपुर८४२००२. चलभाष: ०९८३८५२३०२९, ईमेल: trilokeeverma@gmail.com. 
वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष: चित्रांश आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल', समन्वयम, २०४ विजय अपार्टमेन्ट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१. दूरभाष : ०७६१ २४१११३१ / चलभाष: ९४२५१ ८३२४४. ई मेल: salil.sanjiv@gmail.com, वैब:hindihindi.in.divyanarmada
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अंकेक्षक: चित्रांश अनुग्रह श्रीवास्तव, ०९३३६८५५४१७
प्रचार सचिव: चित्रांश प्रशांत कुमार सिन्हा, दिल्ली ०९८११६८४५९३
संयुक्त सचिव: चित्रांश दिनकर वर्मा, नई दिल्ली
संयुक्त सचिव : चित्रांश डॉ. प्रमोद कुमार सिन्हा, पटना
प्रवक्ता: चित्रांश अरुण माथुर, जयपुर ०९९२९६२८४३९
सलाहकार: चित्रांश अशोक सिन्हा, पटना ०९९३९७२३८८५
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मार्गदर्शक मंडल: सर्व चित्रांश विनोद बिहारी वर्मा लखनऊ, केदारनाथ सिन्हा वाराणसी, प्रदीप वर्मा वाराणसी, अखौरी विजयप्रकाश सिन्हा औरंगाबाद, बिन्ध्येश्वरी प्रसाद सिन्हा बलरामपुर, के. पी सहाय कोटा, आलोक श्रीवास्तव नागपुर, ब्रजेन्द्र कुमार श्रीवास्तव गया, कृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ उज्जैन, जगदीश प्रसाद श्रीवास्तव अयोध्या, हरेन्द्र कुमार पटना.

महापरिषद् मानव समानता के प्रति विश्वास करनेवाले सभी जनों का आव्हान करती है कि एक जुट होकर राष्ट्र व समाज निर्माण की नव चेतना जाग्रत कर भ्रष्टाचार तथा आरक्षण के विरुद्ध संघर्ष कर सामाजिक / राजनैतिक / आर्थिक शुचिता अपना कर देश को सशक्त बनाने में योगदान करें. सर्वाधिक शांतिप्रिय, बुद्धिजीवी तथा कर्मठ कायस्थ अन्य समाजों के सदस्यों से  सामाजिक नवचेतना जागृत करने में महापरिषद तथा श्री सचिन खरे से डी ३ / १९९ चित्रकूट योजना, वैशाली जयपुर ३०२०२१, चलभाष: ९४६०३- ०३९६९, ई मेल: mail@sachinbjp.com  पर संपर्क कर सहयोग करने का अनुरोध है.


                                                                                                              चित्रांश आचार्य संजीव वर्मा 'सलिल'
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II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II ( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

 II  ॐ II

II श्री महालक्ष्यमष्टक स्तोत्र II 

( मूल पाठ-तद्रिन हिंदी काव्यानुवाद-संजीव 'सलिल' )

नमस्तेस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते I
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II१II

सुरपूजित श्रीपीठ विराजित, नमन महामाया शत-शत.
शंख चक्र कर-गदा सुशोभित, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

नमस्ते गरुड़ारूढ़े कोलासुर भयंकरी I
सर्व पापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II२II

कोलाsसुरमर्दिनी भवानी, गरुड़ासीना नम्र नमन.
सरे पाप-ताप की हर्ता,  नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सर्वज्ञे सर्ववरदे सर्वदुष्ट भयंकरी I
सर्व दु:ख हरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II३II

सर्वज्ञा वरदायिनी मैया, अरि-दुष्टों को भयकारी.
सब दुःखहरनेवाली, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

सिद्धि-बुद्धिप्रदे देवी भुक्ति-मुक्ति प्रदायनी I
मन्त्रमूर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II४II

भुक्ति-मुक्तिदात्री माँ कमला, सिद्धि-बुद्धिदात्री मैया.
सदा मन्त्र में मूर्तित हो माँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

आद्यांतर हिते देवी आदिशक्ति महेश्वरी I
योगजे योगसंभूते महालक्ष्मी नमोsस्तुते II५II

हे महेश्वरी! आदिशक्ति हे!, अंतर्मन में बसो सदा.
योग्जनित संभूत योग से, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

स्थूल-सूक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोsदरे I
महापापहरे देवी महालक्ष्मी नमोsस्तुते II६II

महाशक्ति हे! महोदरा हे!, महारुद्रा  सूक्ष्म-स्थूल.
महापापहारी श्री देवी, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

पद्मासनस्थिते देवी परब्रम्ह स्वरूपिणी I
परमेशीजगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II७II

कमलासन पर सदा सुशोभित, परमब्रम्ह का रूप शुभे.
जगज्जननि परमेशी माता, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

श्वेताम्बरधरे देवी नानालंकारभूषिते I
जगत्स्थिते जगन्मातर्महालक्ष्मी नमोsस्तुते II८II

दिव्य विविध आभूषणभूषित, श्वेतवसनधारे मैया.
जग में स्थित हे जगमाता!, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

महा लक्ष्यमष्टकस्तोत्रं य: पठेद्भक्तिमान्नर: I
सर्वसिद्धिमवाप्नोति राज्यंप्राप्नोति सर्वदा II९II

जो नर पढ़ते भक्ति-भाव से, महालक्ष्मी का स्तोत्र.
पाते सुख धन राज्य सिद्धियाँ, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

एककालं पठेन्नित्यं महापाप विनाशनं I
द्विकालं य: पठेन्नित्यं धन-धान्यसमन्वित: II१०II

एक समय जो पाठ करें नित, उनके मिटते पाप सकल.
पढ़ें दो समय मिले धान्य-धन, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

त्रिकालं य: पठेन्नित्यं महाशत्रु विनाशनं I
महालक्ष्मीर्भवैन्नित्यं प्रसन्नावरदाशुभा II११II

तीन समय नित अष्टक पढ़िये, महाशत्रुओं का हो नाश.
हो प्रसन्न वर देती मैया, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

 II तद्रिन्कृत: श्री महालक्ष्यमष्टकस्तोत्रं संपूर्णं  II

तद्रिंरचित, सलिल-अनुवादित, महालक्ष्मी अष्टक पूर्ण.
नित पढ़ श्री समृद्धि यश सुख लें, नमन महालक्ष्मी शत-शत..

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Acharya Sanjiv Salil

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यम द्वितीय चित्रगुप्त पूजन पर विशेष भेंट: भजन: प्रभु हैं तेरे पास में... -- संजीव 'सलिल'

यम द्वितीय चित्रगुप्त पूजन पर विशेष भेंट:
भजन:
प्रभु हैं तेरे पास में...
-- संजीव 'सलिल'
*
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
तन तो धोता रोज न करता, मन को क्यों तू साफ रे!
जो तेरा अपराधी है, उसको करदे हँस माफ़ रे..
प्रभु को देख दोस्त-दुश्मन में, तम में और प्रकाश में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
चित्र-गुप्त प्रभु सदा चित्त में, गुप्त झलक नित देख ले.
आँख मूंदकर कर्मों की गति, मन-दर्पण में लेख ले..
आया तो जाने से पहले, प्रभु को सुमिर प्रवास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
मंदिर-मस्जिद, काशी-काबा मिथ्या माया-जाल है.
वह घट-घट कण-कणवासी है, बीज फूल-फल डाल है..
हर्ष-दर्द उसका प्रसाद, कडुवाहट-मधुर मिठास में.
कहाँ खोजता मूरख प्राणी?, प्रभु हैं तेरे पास में...
*
भजन:
प्रभु हैं तेरे पास में...                                                                           
संजीव 'सलिल'
*
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
निराकार काया में स्थित, हो कायस्थ कहाते हैं.
रख नाना आकार दिखाते, झलक तुरत छिप जाते हैं..
प्रभु दर्शन बिन मन हो उन्मन,
प्रभु दर्शन कर परम शांत मन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
कोई न अपना सभी पराये, कोई न गैर सभी अपने हैं.
धूप-छाँव, जागरण-निद्रा, दिवस-निशा प्रभु के नपने हैं..
पंचतत्व प्रभु माटी-कंचन,
कर मद-मोह-गर्व का भंजन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*
नभ पर्वत भू सलिल लहर प्रभु, पवन अग्नि रवि शशि तारे हैं.
कोई न प्रभु का, हर जन प्रभु का, जो आये द्वारे तारे हैं.. 
नेह नर्मदा में कर मज्जन,
प्रभु-अर्पण करदे निज जीवन.
जग असार सार हरि सुमिरन ,
डूब भजन में ओ नादां मन...
*

Acharya Sanjiv Salil

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हम बिखर क्यों रहे हैं?

              ये सवाल बहुत दिनों  से उभर रहा था कि हम बिखर क्यों रहे हैं? हम चित्रगुप्त की संतान और अपने बारह  भाइयों के परिवार को तोड़कर क्यों अलग अलग गुट बना रहे हैं? क्या हम भी राजनीति का शिकार हो रहे हैं? ऐसा कोई पिता तो नहीं चाहता है कि हमारे ही बच्चे अपने परिवार से टूट कर अलग अलग बिखर जाएँ.
                  रोज ही कहीं न कहीं कुछ देखने को मिल जाता है --
"सक्सेना समाज" की मीटिंग.
"माथुर समाज" के सांस्कृतिक कार्यक्रम.
"निगम समाज" के कार्यों पर प्रकाश. 
              इसी तरह से और भी बन्धु अपने समूह को एकत्र करके कुछ किया करते हैं. क्या इससे हमारे बीच की दरार नहीं दिख  रही है. जब हम आज से दो पीढ़ी पहले कट्टरता की हद से गुजर रहे थे. अपने ही बड़ों को कहते सुना था कि श्रीवास्तव के शादी श्रीवास्तव में ही होनी चाहिए , ये हमसे  नीचे होते हैं और हम ऊँचे होते हैं. वह मानसिकता अब जब बदल चुकी है तब हम क्यों इधर उधर बिखर रहे हैं. अब हम सभी भाइयों को एक स्तर पर रख कर बात करते हैं और सबको बराबर सम्मान देते हैं. अब तो शादी में भी ऐसा कोई व्यवधान हम नहीं देख रहे हैं फिर क्यों हम अलग अलग समाज की बात कर रहे हैं.
             ये शिकायत हम कहाँ करने जायेंगे? ये कायस्थ परिवार पत्रिका है और इसमें ही हम अपनों के एक साथ चलने और सोचने का आग्रह कर सकते  हैं और अगर हम कहीं बिखर रहे हैं तो उनको एक साथ लेकर चलने की बात कर सकते हैं.

देहावसान : वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव 

  -संजीव वर्मा 'सलिल'

बिलासपुर, छत्तीसगढ़ २८.११.२०१०. स्थानीय अपोलो चिकित्सालय में आज देर रात्रि विख्यात अर्थशास्त्री, छत्तीसगढ़ राज्य में महाविद्यालायीन शिक्षा के सुदृढ़ स्तम्भ रहे अर्थशास्त्र की ३ उच्चस्तरीय पुस्तकों के लेखक, प्रादेशिक कायस्थ महासभा मध्यप्रदेश के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रोटेरियन, लायन प्रो. सत्य सहाय का लम्बी बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. खेद है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार आपने प्रदेश के इस गौरव पुरुष के प्रति पूरी तरह अनभिज्ञ तथा असावधान रही. वर्ष १९९४ से पक्षाघात (लकवे) से पीड़ित प्रो. सहाय शारीरिक पीड़ा को चुनौती देते हुए भी सतत सृजन कर्म में संलग्न रहे. शासन सजग रहकर उन्हें राजकीय अतिथि के नाते एम्स दिल्ली या अन्य उन्नत चिकित्सालय में भेजकर श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्ध कराता तो वे रोग-मुक्त हो सकते थे.

१६ वर्षों से लगातार पक्षाघात (लकवा) ग्रस्त तथा शैयाशाई होने पर भी उनके मन-मष्तिष्क न केवल स्वस्थ्य-सक्रिय रहा अपितु उनमें सर्व-हितार्थ कुछ न कुछ करते रहने की अनुकरणीय वृत्ति भी बनी रही. वे लगातार न केवल अव्यवसायिक सामाजिक पत्रिका 'संपर्क' का संपादन-प्रकाशन करते रहे अपितु इसी वर्ष उन्होंने 'राम रामायण' शीर्षक लघु पुस्तक का लेखन-प्रकाशन किया था. इसमें रामायण का महत्त्व, रामायण सर्वप्रथम किसने लिखी, शंकर जी द्वारा तुलसी को रामकथा साधारण बोल-चाल की भाषा में लिखने की सलाह, जब तुलसी को हनुमानजी ने श्रीराम के दर्शन करवाये, रामकथा में हनुमानजी की उपस्थिति, सीताजी का पृथ्वी से पैदा होना, रामायण कविता नहीं मंत्र, दशरथ द्वारा कैकेयी को २ वरदान, श्री राम द्वारा श्रीभरत को अयोध्या की गद्दी सौपना, श्री भारत द्वारा कौशल्या को सती होने से रोकना, रामायण में सर्वाधिक उपेक्षित पात्र उर्मिला, सीता जी का दूसरा वनवास, रामायण में सुंदरकाण्ड, हनुमानजी द्वारा शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराना, परशुराम प्रसंग की सचाई, रावण के अंतिम क्षण, लव-कुश काण्ड, सीताजी का पृथ्वी की गोद में समाना, श्री राम द्वारा बाली-वध, शूर्पनखा-प्रसंग में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को कुँवारा कहा जाना, श्री रामेश्वरम की स्थापना, सीताजी की स्वर्ण-प्रतिमा, रावण के वंशज, राम के बंदर, कैकेई का पूर्वजन्म, मंथरा को अयोध्या में रखेजाने का उद्देश्य, मनीराम की छावनी, पशुओं के प्रति शबरी की करुणा, सीताजी का राजयोग न होना, सीताजी का रावण की पुत्री होना, विभीषण-प्रसंग, श्री राम द्वारा भाइयों में राज्य-विभाजन आदि जनरूचि के रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है. गागर में सागर की तरह विविध प्रसंगों को समेटे यह कृति प्रो. सहाय की जिजीविषा का पुष्ट-प्रमाण है.

प्रो. सत्यसहाय जीवंत व्यक्तित्व, कर्मठ कृतित्व तथा मौलिक मतित्व की त्रिविभूति-संपन्न ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर कोई भी राज्य-सत्ता गर्व कर सकती है. ग्राम रनेह (राजा नल से समबन्धित ऐतिहासिक नलेह), तहसील हटा (राजा हट्टेशाह की नगरी), जिला दमोह (रानी दमयन्ती की नगरी) में जन्में, बांदकपुर स्थित उपज्योतिर्लिंग जागेश्वरनाथ पुण्य भूमि के निवासी संपन्न-प्रतिष्ठित समाजसेवी स्व. सी.एल. श्रीवास्तव तथा धर्मपरायण स्व. महारानी देवी के कनिष्ठ पुत्र सत्यसहाय की प्राथमिक शिक्षा रनेह, ग्राम, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा दमोह तथा महाविद्यालयीन शिक्षा इलाहाबाद में अग्रज स्व. पन्नालाल श्रीवास्तव (आपने समय के प्रखर पत्रकार, दैनिक लीडर तथा अमृत बाज़ार पत्रिका के उपसंपादक, पत्रकारिता पर महत्वपूर्ण पुस्तक के लेखक) के सानिंध्य में पूर्ण हुई. अग्रज के पद-चिन्हों पर चलते हुए पत्रकारिता के प्रति लगाव स्वाभाविक था. उनके कई लेख, रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि प्रकाशित हुए. वे लीडर पत्रिका के फ़िल्मी स्तम्भ के संपादक रहे. उनके द्वारा फ़िल्मी गीत-गायक स्व. मुकेश व गीता राय का साक्षात्कार बहुचर्चित हुआ.

उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्व. महेशदत्त मिश्र पन्नालाल जी के साथ रहकर राजनीति शास्त्र में एम.ए. कर रहे थे. तरुण सत्यसहाय को गाँधी जी की रेलयात्रा के समय बकरीका ताज़ा दूध पहुँचाने का दायित्व मिला. गाँधी जी की रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुँची तो भरी भीड़ के बीच छोटे कद के सत्यसहाय जी नजर नहीं आये, रेलगाड़ी रवाना होने का समय हो गया तो मिश्रजी चिंतित हुए, उन्होंने आवाज़ लगाई 'सत्य सहाय कहाँ हो? दूध लाओ.' भीड़ में घिरे सत्यसहाय जी जोर से चिल्लाये 'यहाँ हूँ' और उन्होंने दूध का डिब्बा ऊपर उठाया, लोगों ने देखा मिश्र जी डब्बा पकड़ नहीं पा रहे और रेलगाड़ी रेंगने लगी तो कुछ लम्बे लोगों ने सहाय जी को ऊपर उठाया, मिश्र जी ने लपककर डब्बा पकड़ा. बापू ने खिड़की से यह दृश्य देखा तो खिड़कीसे हाथ निकालकर उन्हें आशीर्वाद दिया. मिश्रा जी के सानिंध्य में वे अनेक नेताओं से मिले. सन १९४८ में अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् नव स्वतंत्र देश का भविष्य गढ़ने और अनजाने क्षेत्रों को जानने-समझने की ललक उन्हें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ले आयी.

पन्नालाल जी अमृत बाज़ार पत्रिका और लीडर जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बारों में संवाददाता और उपसंपादक रहे थे. वे मध्य प्रान्त और विदर्भ के नेताओं को राष्ट्री क्षितिज में उभारने में ही सक्रिय नहीं रहे अपितु मध्य अंचल के तरुणों को अध्ययन और आजीविका जुटने में भी मार्गदर्शक रहे. विख्यात पुरातत्वविद राजेश्वर गुरु उनके निकट थे, जबलपुर के प्रसिद्द पत्रकार रामेश्वर गुरु को अपना सहायक बनाकर पन्नालाल जी ने संवाददाता बनाया था. कम लोग जानते हैं मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान् अधिवक्ता श्री राजेंद्र तिवारी भी प्रारंभ में प्रारंभ में पत्रकार ही थे. उन्होंने बताया कि वे स्थानीय पत्रों में लिखते थे. गुरु जी का जामाता होने के बाद वे पन्नालाल जी के संपर्क में आये तो पन्नालाल जी ने अपना टाइपराइटर उन्हें दिया तथा राष्ट्रीय अख़बारों से रिपोर्टर के रूप में जोड़ा. अपने अग्रज के घर में अंचल के युवकों को सदा आत्मीयता मिलते देख सत्य सहाय जी को भी यही विरासत मिली.

आदर्श शिक्षक तथा प्रशासनविद:

बुंदेलखंड में कहावत है 'जैसा पियो पानी, वैसी बोलो बनी, जैसा खाओ अन्न, वैसा होए मन'- सत्यसहाय जी के व्यक्तित्व में सुनार नदी के पानी साफगोई, नर्मदाजल की सी निर्मलता व गति तथा गंगाजल की पवित्रता तो थी ही बिलासपुर छत्तीसगढ़ में बसनेपर अरपा नदीकी देशजता और शिवनाथ नदीकी मिलनसारिता सोने में सुहागा की तरह मिल गई. वे स्थानीय एस.बी.आर. महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता हो गये. उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, सरस-सटीक शिक्षण शैली, सामयिक उदाहरणों से विषय को समझाने तथा विद्यार्थी की कठिनाई को समझकर सुलझाने की प्रवृत्ति ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया. जहाँ पहले छात्र अर्थशास्त्र विषय से दूर भागते थे, अब आकर्षित होने लगे. सन १९६४ तक उनका नाम स्थापित तथा प्रसिद्ध हो चुका था. इस मध्य १९५८ से १९६० तक उन्होंने नव-स्थापित 'ठाकुर छेदीलाल महाविद्यालय जांजगीर' के प्राचार्य का चुनौतीपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और महाविद्यालय को सफलता की राह पर आगे बढ़ाया. उस समय शैक्षणिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की दीपशिखा प्रज्वलित करनेवालों में अग्रगण्य स्व. सत्य सहाय अपनी मिसाल आप थे.जांजगीर महाविद्यालय सफलतापूर्वक चलने पर वे वापिस बिलासपुर आये तथा योजना बनाकर एक अन्य ग्रामीण कसबे खरसिया के विख्यात राजनेता-व्यवसायी स्व. लखीराम अग्रवाल प्रेरित कर महाविद्यालय स्थापित करने में जुट गये. लम्बे २५ वर्षों तक प्रांतीय सरकार से अनुदान प्राप्तकर यह महाविद्यालय शासकीय महाविद्यालय बन गया. इस मध्य प्रदेश में विविध दलों की सरकारें बनीं... लखीराम जी तत्कालीन जनसंघ से जुड़े थे किन्तु सत्यसहाय जी की समर्पणवृत्ति, सरलता, स्पष्टता तथा कुशलता के कारण यह एकमात्र महाविद्यालय था जिसे हमेशा अनुदान मिलता रहा.

उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में अधिष्ठाता छात्र-कल्याण परिषद्, अधिष्ठाता महाविद्यालयीन विकास परिषद् तथा निदेशक जनजाति प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण के रूप में भी अपनी कर्म-कुशलता की छाप छोड़ी.
आपके विद्यार्थियों में स्व. बी.आर. यादव, स्व. राजेंद्र शुक्ल. श्री अशोक राव, श्री सत्यनारायण शर्मा आदि अविभाजित मध्यप्रदेश / छतीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री, पुरुषोत्तम कौशिक केन्द्रीय मंत्री तथा स्व. श्रीकांत वर्मा सांसद और राष्ट्रीय राजनीति के निर्धारक रहे. अविभाजित म.प्र. के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य मंत्री स्व. डॉ. रामाचरण राय, शिक्षामंत्री स्व. चित्रकांत जायसवाल से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे. उनके अनेक विद्यार्थी उच्चतम प्रशासनिक पदों पर तथा कई कुलपति, प्राचार्य, निदेशक आदि भी हुए किन्तु सहाय जी ने कभी किसीसे नियम के विपरीत कोई कार्य नहीं कराया. अतः उन्होंने सभी से सद्भावना तथा सम्मान पाया.

सक्रिय समाज सेवी:

प्रो. सत्यसहाय समर्पित समाज सुधारक भी थे. उन्होंने छतीसगढ़ अंचल में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की कुप्रथा से आगे बढ़कर संघर्ष किया. ग्रामीण अंचल में रहकर तथा सामाजिक विरोध सहकर भी उन्होंने न केवल अपनी ४ पुत्रियों को स्नातकोत्तर शिक्षा दिलाई अपितु २ पुत्रियों को महाविद्यालयीन प्राध्यापक बनने हेतु प्रोत्साहित तथा विवाहोपरांत शोधकार्य हेतु सतत प्रेरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने संपर्क के सैंकड़ों परिवारों को भी लड़कियों को पढ़ाने की प्रेरणा दी.

स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे सामाजिक ऋण-की अदायगी करने में जुट गये. प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जबलपुर, बरमान (नरसिंहपुर), उज्जैन, दमोह, बालाघाट, बिलासपुर आदि अनेक स्थानों पर युवक-युवती, परिचय सम्मलेन, मितव्ययी दहेज़रहित सामूहिक आदर्श विवाह सम्मलेन आदि आयोजित कराये. वैवाहिक जानकारियाँ एकत्रित कर चित्राशीष जबलपुर तथा संपर्क बिलासपुर पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को उपलब्ध कराईं.
विविध काल खण्डों में सत्यसहाय जी ने लायन तथा रोटरी क्लबों के माध्यम से भी सामाजिक सेवा की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित कर अपूर्व सदस्यतावृद्धि हेतु श्रेष्ठ गवर्नर पदक प्राप्त किये. वे जो भी कार्य करते थे दत्तचित्त होकर लक्ष्य पाने तक करते थे.

छतीसगढ़ शासन जागे :

बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ के विविध अंचलों में प्रो. असत्य सहाय के निधन का समाचार पाते ही शोक व्याप्त हो गया. छतीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों ने उनकी स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित किये. अभियान सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था जबलपुर, रोटरी क्राउन जबलपुर, रोटरी क्लब बिलासपुर, रोटरी क्लब खरसिया, लायंस क्लब खरसिया, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सनातन कायस्थ महापरिवार मुम्बई, विक्रम महाविद्यालय उज्जैन, शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर, कायस्थ समाज बिलासपुर, कायस्थ कल्याण परिषद् बिलासपुर, कायस्थ सेना जबलपुर आदि ने प्रो. सत्यसहाय के निधन पर श्रैद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्हें युग निर्माता निरूपित किया है. छत्तीसगढ़ शासन से अपेक्षा है कि खरसिया महाविद्यालय में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाये तथा रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर में अर्थशास्त्र विषयक उच्च शोध कार्यों हेतु प्रो. सत्यसहाय शोधपीठ की स्थापना की जाए.

दिव्यनर्मदा परिवार प्रो. सत्यसहाय के ब्रम्हलीन होने को शोक का कारण न मानते हुए इसे देह-धर्म के रूप में विधि के विधान के रूप में नत शिर स्वीकारते हुए संकल्प लेता है कि दिवंगत के आदर्शों के क्रियान्वयन हेतु सतत सक्रिय रहेगा. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में विकसित करने की प्रो. सत्यसहाय की मनोकामना को मूर्तरूप देने के लिये सतत प्रयास जारी रहेंगे. आप सब इस पुनी कार्य में सहयोगी हों, यही सच्ची कर्मांजलि होगी.

**********************

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि:
तुममें जीवित था...
संजीव 'सलिल'
*
तुममें जीवित था इतिहास,
किन्तु न था युग को आभास...
*
पराधीनता के दिन देखे.
सत्याग्रह आन्दोलन लेखे..
प्रतिभा-पूरित सुत 'रनेह' के,
शत प्रसंग रोचक अनलेखे..
तुम दमोह के दीपक अनुपम
देते दिव्य उजास...
*
गंगा-विश्वनाथ मन भाये,
'छोटे' में विराट लख पाये..
अरपा नदी बिलासा माई-
छतीसगढ़ में रम harhsaaye..
कॉलेज-अर्थशास्त्र ने पाया-
नव उत्थान-विकास...
*
साक्ष्य खरसिया-जांजगीर है.
स्वस्थ रखी तुमने नजीर है..
व्याख्याता-प्राचार्य बहुगुणी
कीर्ति-विद्वता खुद नजीर है..
छात्र-कल्याण अधिष्ठाता रह-
हुए लोकप्रिय खास...
*
कार्यस्थों को राह दिखायी.
लायन-रोटरी ज्योति जलायी.
हिंद और हिन्दी के वाहक
अमिय लुटाया हो विषपायी..
अक्षय-निधि आशा-संबल था-
सार्थक किये प्रयास...
*
श्रम-विद्या की सतत साधना.
विमल वन्दना, पुण्य प्रार्थना,
तुम अशोक थे, तुम अनूप थे-
महावीर कर विपद सामना,
नेह-नर्मदा-सलिल पानकर-
हरी पीर-संत्रास...
*
कीर्ति-कथा मोहिनी अगेह की.
अर्थशास्त्र-शिक्षा विदेह सी.
सत-शिव-सुंदर की उपासना-
शब्दाक्षर आदित्य-गेह की..
किया निशा में भी उजियारा.
हर अज्ञान-तिमिर का त्रास...
*
संस्मरण बहुरंगी अनगिन,
क्या खोया?, क्या पाया? बिन-गिन..
गुप्त चित्त में चित्र चित्रगुप्त प्रभु!
कर्म-कथाएँ लिखें पल-छीन.
हरी उपेक्षित मन की पीड़ा
दिया विपुल अधरों को हास...
*
शिष्य बने जो मंत्री-शासन,
करें नीति से जन का पालन..
सत्ता जन-हित में प्रवृत्त हो-
दस दिश सुख दे सके सु-शासन..
विद्यानगर बसा सामाजिक
नायक लिये हुलास...
*
प्रखर कहानी कर्मयोग की,
आपद, श्रम साफल्य-योग की.
थी जिजीविषा तुममें अनुपम-
त्याग समर्पण कश्र-भोग की..
बुन्देली भू के सपूत हे!
फ़ैली सुरभि-सुवास...
******
प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति गीतांजलि :

शत नमन...

*
शत नमन, हे महामानव!
शत नमन...
*
धरा से उठकर गगन पर छा गये,
स्वजन, परिजन, पुरजनों को भा गये..
कार्य में स्थित रहे कार्यस्थ हे!
काय-स्थित दैव को तुम भा गये..
हुआ है स्तब्ध यह सारा चमन...
*
अमिट प्रतिभा, अजित जीवट के धनी.
बहुमुखी सामर्थ्य, थे पक्के धुनी..
विरल देखे, अब कहाँ ऐसे सु-जन?
अनुकरण युग कर सके, वैसे गुनी..
सतत उन्नति की रही तुममें लगन...
*
दिशा-दर्शक! स्वप्न कर साकार तुम.
दे सके माटी को शत आकार तुम..
संस्कारित सकल पीढ़ी को किया-
असहमत को भी रहे स्वीकार तुम.
काश हममें भी जले ऐसी अगन...
*****
प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति शब्द-सुमनांजलि
नमन हमारे...
संजीव 'सलिल'
*
पूज्य चरण में अर्पित हैं
शत नमन हमारे...
*
मन में यादों के सुगंध है,
मिला सदा आशीष.
जितना तुमने दिया, शत गुणा
तुमको दे जगदीश.
स्वागत हेतु लगे सुरपुर में
बंदनवारे....
*
तुम भास्कर, हम हुए प्रकाशित,
हैं आभारी.
बिना तुम्हारे हैं अपूर्ण हम
हे यशधारी..
यादों का पाथेय लगाये
हमें किनारे...
*
नेक प्रेरणा दे अनेक को,
विदा हो गये.
खोज रहे हम, तुम विदेह में
लीन हो गये..
मन प्राणों को दीपित करते
कर्म तुम्हारे...
*****
प्रो सत्य सहाय श्रीवास्तव के प्रति श्रृद्धा-सुमन :
संजीव 'सलिल'
*
षट्पदी
मौत ले जाती है काया, कार्य होते हैं अमर.
ज्यों की त्यों चादर राखी, निर्मल बुन्देली पूज्यवर!
हे कलम के धनी! शिक्षादान आजीवन किया-
हरा तम अज्ञानका, जब तक जला जीवन-दिया.
धरा छतीसगढ़ की ऋण से उऋण हो सकती नहीं.
'सलिल' सेवा-साधना होती अजर मिटती नहीं..
******
चतुष्पदियाँ / मुक्तक
मन-किवाड़ पर दस्तक देता, सुधि का बंदनवार.
दीप जलाये स्मृतियों के, झिलमिल जग उजियार.
इस जग से तुम चले गये, मन से कैसे जाओगे?
धूप-छाँव में, सुख-दुःख में, सच याद बहुत आओगे..
*****
नहीं किताबी शिक्षक थे तुम, गुरुवत बाँटा ज्ञान.
शत कंकर तराशकर शंकर, गढ़े बिना अभिमान..
जीवन गीता, अनुभव रामायण के अनुपम पाठ-
श्वास-श्वास तुम रहे पढ़ाते, बन रस-निधि, रस-खान..
*****
सफल उसी का जीवन, जिसका होता सत्य-सहाय.
सत्य सहाय न हो पाये तो मानव हो निरुपाय..
जो होता निरुपाय उसीका जीवन निष्फल जान-
स्वप्न किये साकार अनेकों के, रच नव अध्याय..
******
पुण्य फले तब ही जुड़ पाया, तुमसे स्नेहिल नाता.
तुममें वाचिक परंपरा को, मूर्तित होते पाया..
जटिल शुष्क नीरस विषयों को सरस बना समझाते-
दोष-हरण सद्गुण-प्रसार के थे अनुपम व्याख्याता..
*****
तुम गये तो शून्य सा मन हो गया है.
है जगत में किन्तु लगता खो गया है..
कभी लगता आँख में आँसू नहीं हैं-
कभी लगता व्यथित हो मन रो गया है..
*****
याद तुम्हारी गीत बन रही,
जीवन की नव रीत बन रही.
हार मान हर हार ग्रहण की-
श्वास-आस अब जीत बन रही..
*****
अश्रुधारा से तुम्हें तर्पण करेंगे.
हृदय के उद्गार शत अर्पण करेंगे..
आत्म पर जब भी 'सलिल' संदेह होगा-
सुधि तुम्हारी कसौटी-दर्पण करेंगे..
*****
तुम थे तो घर-घर लगता था.
हर कण अपनापन पगता था..
पारस परस तुम्हारा पाकर-
सोया अंतर्मन जगता था..
*****
सुधियों के दोहे
सत्य सहाय सदा रहे, दो आशा-सहकार.
शांति-राज पुष्पा सके, सुषमा-कृष्ण निहार..
*
कीर्ति-किरण हनुमान की, दीप्ति इंद्र शशि सोम.
चन्द्र इंदु सत्य सुधा, माया-मुकुलित ॐ..
*
जब भी जीवन मिले कर सफल साधना हाथ.
सत-शिव सुंदर रचें पा, सत-चित-आनंद नाथ..
*
सत्य-यज्ञ में हो सके, जीवन समिधा दैव.
औरों का कुछ भलाकर, सार्थक बने सदैव..
*
कदम-कदम संघर्ष कर, सके लक्ष्य को जीत.
पूज्यपाद वर दीजिये, 'सलिल'-शत्रु हो मीत..
*
महाकाल से भी किये, बरसों दो-दो हाथ.
निज इच्छा से भू तजी, गह सुरपुर का पाथ..
*
लखी राम ने भी 'सलिल', कब आओ तुम, राह.
हमें दुखीकर तुम गये, पूरी करने चाह..
*
शिरोधार्य रह मौन हम, विधि का करें विधान.
दिल रोये, चुप हों नयन, अधर करें यश-गान..
*
सद्गुरु बिन सुर कर नहीं, पाये 'सलिल' निभाव.
बिन आवेदन चुन लिया, तुमको- मिटे अभाव..
*
देह जलाने ले गये, वे जिनसे था नेह.
जिन्हें दिखाया गेह था, करते वही-गेह..
*
आकुल-व्याकुल तन हुआ, मन है बहुत उदास.
सुरसरि को दीं अस्थियाँ, सुधियाँ अपने पास..
*
आदम की औकात है, बस मुट्ठी भर राख.
पार गगन को भी करे, तुम जैसों की साख..
*
नयन मूँदते ही दिखे, झलक तुम्हारी नित्य.
आँख खुले तो चतुर्दिक, मिलता जगत अनित्य..
*****
कविता:
विरसा
संजीव 'सलिल'
*
तुमने
विरसे में छोड़ी है
अकथ-कथा
संघर्ष-त्याग की.
हमने
जीवन-यात्रा देखी
जीवट-श्रम,
बलिदान-आग की.
आये थे अनजान बटोही
बहुतों के
श्रृद्धा भाजन हो.
शिक्षा, ज्ञान, कर्म को अर्पित
तुम सारस्वत नीराजन हो.
हम करते संकल्प
कर्म की यह मशाल
बुझ ना पायेगी.
मिली प्रेरणा
तुमसे जिसको
वह पीढ़ी जय-जय गायेगी.
प्राण-दीप जल दे उजियारा
जग ज्योतित कर
तिमिर हरेगा.
सत्य सहाय जिसे हो
वह भी-
तरह तुम्हारी लक्ष्य वरेगा.
*****
प्रो. सत्यसहाय के प्रति :
स्मृति गीत:
मन न मानता...
संजीव 'सलिल'
*
मन न मानता
चले गये हो...
*
अभी-अभी तो यहीं कहीं थे.
आँख खुली तो कहीं नहीं थे..
अंतर्मन कहता है खुदसे-
साँस-आस से
छले गये हो...
*
नेह-नर्मदा की धारा थे.
श्रम-संयम का जयकारा थे..
भावी पीढ़ी के नयनों में-
स्वप्न सदृश तुम
पले गये हो...
*
दुर्बल तन में स्वस्थ-सुदृढ़ मन.
तुम दृढ़ संकल्पों के गुंजन..
जीवन उपवन में भ्रमरों संग-
सूर्य अस्त लाख़
ढले गये हो...
*****

कविता: जीवन अँगना को महकाया संजीव 'सलिल'

कविता:

जीवन अँगना को महकाया

संजीव 'सलिल'
*
*
जीवन अँगना को महकाया
श्वास-बेल पर खिली कली की
स्नेह-सुरभि ने.
कली हँसी तो फ़ैली खुशबू
स्वर्ग हुआ घर.
कली बने नन्हीं सी गुडिया.
ममता, वात्सल्य की पुडिया.
शुभ्र-नर्म गोला कपास का,
किरण पुंज सोनल उजास का.
उगे कली के हाथ-पैर फिर
उठी, बैठ, गिर, खड़ी हुई वह.
ठुमक-ठुमक छन-छननन-छनछन
अँगना बजी पैंजन प्यारी
दादी-नानी थीं बलिहारी.
*
कली उड़ी फुर्र... बनकर बुलबुल
पा मयूर-पंख हँस-झूमी.
कोमल पद, संकल्प ध्रुव सदृश
नील-गगन को देख मचलती
आभा नभ को नाप रही थी.
नवल पंखुडियाँ ऊगीं खाकी
मुद्रा-छवि थी अब की बाँकी.
थाम हाथ में बड़ी रायफल
कली निशाना साध रही थी.
छननन घुँघरू, धाँय निशाना
ता-ता-थैया, दायें-बायें
लास-हास, संकल्प-शौर्य भी
कली लिख रही नयी कहानी
बहे नर्मदा में ज्यों पानी.
बाधाओं की श्याम शिलाएँ
संगमरमरी शिला सफलता
कोशिश धुंआधार की धरा
संकल्पों का सुदृढ़ किनारा.
*
कली न रुकती,
कली न झुकती,
कली न थकती,
कली न चुकती.
गुप-चुप, गुप-चुप बहती जाती.
नित नव मंजिल गहती जाती.
कली हँसी पुष्पायी आशा.
सफल साधना, फलित प्रार्थना.
विनत वन्दना, अथक अर्चना.
नव निहारिका, तरुण तारिका.
कली नापती नील गगन को.
व्यस्त अनवरत लक्ष्य-चयन में.
माली-मलिन मौन मनायें
कोमल पग में चुभें न काँटें.
दैव सफलता उसको बाँटें.
पुष्पित हो, सुषमा जग देखे
अपनी किस्मत वह खुद लेखे.
******************************
टीप : बेटी तुहिना (हनी) का एन.सी.सी. थल सैनिक कैम्प में चयन होने पर रेल-यात्रा के मध्य १४.९.२००६ को हुई कविता.
------- दिव्यनर्मदा.ब्लागस्पाट.कॉम

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स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना: गीत भारत माँ को नमन करें.... संजीव 'सलिल'

स्वाधीनता दिवस पर विशेष रचना:

गीत

भारत माँ को नमन करें....

संजीव 'सलिल'
*













*
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें.
ध्वजा तिरंगी मिल फहराएँ
इस धरती को चमन करें.....
*
नेह नर्मदा अवगाहन कर
राष्ट्र-देव का आवाहन कर
बलिदानी फागुन पावन कर
अरमानी सावन भावन कर

 राग-द्वेष को दूर हटायें
एक-नेक बन, अमन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
अंतर में अब रहे न अंतर
एक्य कथा लिख दे मन्वन्तर
श्रम-ताबीज़, लगन का मन्तर
भेद मिटाने मारें मंतर

सद्भावों की करें साधना
सारे जग को स्वजन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
काम करें निष्काम भाव से
श्रृद्धा-निष्ठा, प्रेम-चाव से
रुके न पग अवसर अभाव से
बैर-द्वेष तज दें स्वभाव से

'जन-गण-मन' गा नभ गुंजा दें
निर्मल पर्यावरण करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
जल-रक्षण कर पुण्य कमायें
पौध लगायें, वृक्ष बचायें
नदियाँ-झरने गान सुनायें
पंछी कलरव कर इठलायें

भवन-सेतु-पथ सुदृढ़ बनाकर
सबसे आगे वतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*
शेष न अपना काम रखेंगे
साध्य न केवल दाम रखेंगे
मन-मन्दिर निष्काम रखेंगे
अपना नाम अनाम रखेंगे

सुख हो भू पर अधिक स्वर्ग से
'सलिल' समर्पित जतन करें.
आओ, हम सब एक साथ मिल
भारत माँ को नमन करें......
*******

Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

मुक्तिका ......... बात करें संजीव 'सलिल'

मुक्तिका

......... बात करें

संजीव 'सलिल'

*
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*

बात न मरने की अब होगी, जीने की हम बात करें.
हम जी ही लेंगे जी भरकर, अरि मरने की बात करें.

जो कहने की हो वह करने की भी परंपरा डालें.
बात भले बेबात करें पर मौन न हों कुछ बात करें..

नहीं सियासत हमको करनी, हमें न कोई चिंता है.
फर्क न कुछ, सुनिए मत सुनिए, केवल सच्ची बात करें..

मन से मन पहुँच सके जो, बस ऐसा ही गीत रचें.
कहें मुक्तिका मुक्त हृदय से, कुछ करने की बात करें..

बात निकलती हैं बातों से, बात बात तक जाती है.
बात-बात में बात बनायें, बात न करके बात करें..

मात-घात की बात न हो अब, जात-पांत की बात न हो.
रात मौन की बीत गयी है, तात प्रात की बात करें..

पतियाते तो डर जाते हैं, बतियाते जी जाते हैं.
'सलिल' बात से बात निकालें, मत मतलब की बात करें..
***************
Acharya Sanjiv Salil

http://divyanarmada.blogspot.com

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

चित्रगुप्त महिमा - आचार्य संजीव 'सलिल'

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चित्र-चित्र में गुप्त जो, उसको विनत प्रणाम।
वह कण-कण में रम रहा, तृण-तृण उसका धाम ।

विधि-हरि-हर उसने रचे, देकर शक्ति अनंत।
वह अनादि-ओंकार है, ध्याते उसको संत।

कल-कल,छन-छन में वही, बसता अनहद नाद।
कोई न उसके पूर्व है, कोई न उसके बाद।

वही रमा गुंजार में, वही थाप, वह नाद।
निराकार साकार वह, नेह नर्मदा नाद।

'सलिल' साधना का वही, सिर्फ़ सहारा एक।
उस पर ही करता कृपा, काम करे जो नेक।

जो काया को मानते, परमब्रम्ह का अंश।
'सलिल' वही कायस्थ हैं, ब्रम्ह-अंश-अवतंश।

निराकार परब्रम्ह का, कोई नहीं है चित्र।
चित्र गुप्त पर मूर्ति हम, गढ़ते रीति विचित्र।

निराकार ने ही सृजे, हैं सारे आकार।
सभी मूर्तियाँ उसी की, भेद करे संसार।

'कायथ' सच को जानता, सब को पूजे नित्य।
भली-भाँति उसको विदित, है असत्य भी सत्य।

अक्षर को नित पूजता, रखे कलम भी साथ।
लड़ता है अज्ञान से, झुका ज्ञान को माथ।

जाति वर्ण भाषा जगह, धंधा लिंग विचार।
भेद-भाव तज सभी हैं, कायथ को स्वीकार।

भोजन में जल के सदृश, 'कायथ' रहता लुप्त।
सुप्त न होता किन्तु वह, चित्र रखे निज गुप्त।

चित्र गुप्त रखना 'सलिल', मन्त्र न जाना भूल।
नित अक्षर-आराधना, है कायथ का मूल।

मोह-द्वेष से दूर रह, काम करे निष्काम।
चित्र गुप्त को समर्पित, काम स्वयं बेनाम।

सकल सृष्टि कायस्थ है, सत्य न जाना भूल।
परमब्रम्ह ही हैं 'सलिल', सकल सृष्टि के मूल।

अंतर में अंतर न हो, सबसे हो एकात्म।
जो जीवन को जी सके, वह 'कायथ' विश्वात्म।
************************************

बैकुंठ धाम पर भंडारे / डॉ.स्वामी प्यारी कौड़ा के दिन*

 *🙏🙏🙏🙏🙏 तेरे सजदे में सर झुका रहे,  यह आरज़ू अब दिल में है।  हर हुक्म की तामील करें,  बस यह तमन्ना अब मन में है।। तेरी आन बान शान निराल...