Wednesday, June 30, 2021

सबसे बड़ा गुण

 * आज का प्रेरक प्रसंग * / कृष्ण मेहता 


          *!! सबसे बड़ा गुण !!*

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एक राजा को अपने लिए सेवक की आवश्यकता थी। उसके मंत्री ने दो दिनों के बाद एक योग्य व्यक्ति को राजा के सामने पेश किया। राजा ने उसे अपना सेवक बना तो लिया पर बाद में मंत्री से कहा, ‘‘वैसे तो यह आदमी ठीक है पर इसका रंग-रूप अच्छा नहीं है।’’ मंत्री को यह बात अजीब लगी पर वह चुप रहा।


एक बार गर्मी के मौसम में राजा ने उस सेवक को पानी लाने के लिए कहा। सेवक सोने के पात्र में पानी लेकर आया। राजा ने जब पानी पिया तो पानी पीने में थोड़ा गर्म लगा। राजा ने कुल्ला करके फेंक दिया। वह बोला, ‘‘इतना गर्म पानी, वह भी गर्मी के इस मौसम में, तुम्हें इतनी भी समझ नहीं।’’ मंत्री यह सब देख रहा था। मंत्री ने उस सेवक को मिट्टी के पात्र में पानी लाने को कहा। राजा ने यह पानी पीकर तृप्ति का अनुभव किया।


इस पर मंत्री ने कहा, ‘‘महाराज, बाहर को नहीं, भीतर को देखें। सोने का पात्र सुंदर, मूल्यवान और अच्छा है, लेकिन शीतलता प्रदान करने का गुण इसमें नहीं है। मिट्टी का पात्र अत्यंत साधारण है लेकिन इसमें ठंडा बना देने की क्षमता है। कोरे रंग-रूप को न देखकर गुण को देखें।’’ उस दिन से राजा का नजरिया बदल गया।


सम्मान, प्रतिष्ठा, यश, श्रद्धा पाने का अधिकार चरित्र को मिलता है, चेहरे को नहीं। चाणक्य ने कहा है कि मनुष्य गुणों से उत्तम बनता है न कि ऊंचे आसन पर बैठने से या पदवी से। जैसे ऊंचे महल के शिखर पर बैठ कर भी कौवा, कौवा ही रहता है; गरुड़ नहीं बन जाता। उसी तरह अमिट सौंदर्य निखरता है मन की पवित्रता से, क्योंकि सौंदर्य रंग-रूप, नाक-नक्श, चाल-ढाल, रहन-सहन, सोच-शैली की प्रस्तुति मात्र नहीं होता। यह व्यक्ति के मन, विचार, चिंतन और कर्म का आइना है। कई लोग बाहर से सुंदर दिखते हैं मगर भीतर से बहुत कुरूप होते हैं। जबकि ऐसे भी लोग हैं जो बाहर से सुंदर नहीं होते मगर उनके भीतर भावों की पवित्रता इतनी ज्यादा होती है कि उनका व्यक्तित्व चुंबकीय बन जाता है। सुंदर होने और दिखने में बहुत बड़ा अंतर है।


*शिक्षा:-*

आपका चरित्र ही आपका सबसे बड़ा गुण है।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।*

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हनुमान जी का जुगाड़ ))))))*

 *आज का अमृत* (((((  प्रस्तुति - कृष्ण मेहता 

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एक गरीब ब्रह्मण था। उसको अपनी कन्या का विवाह करना था। उसने विचार किया कि कथा करने से कुछ पैसा आ जायेगा तो काम चल जायेगा।

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ऐसा विचार करके उसने भगवान राम के एक मंदिर में बैठ कर कथा आरंभ की। उसका भाव था कि कोई श्रोता आये, चाहे न आये पर भगवान तो मेरी कथा सुनेंगे।

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पंडित जी ने कथा आरंभ की थोड़े ही देर में श्रोता आने लगे और नाम मात्र चढ़ावा चढ़ा। पंडित जी ने उसी में संतोष किया और रोजाना मंदिर में जाकर कथा करने लगे। 

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एक बहुत कंजूस सेठ मंदिर में आया। भगवान को प्रणाम करके जब वह मंदिर कि परिकर्मा कर रहा था, तब भीतर से कुछ आवाज आ रही थी। ऐसा लगा कि दो व्यक्ति आपस में बातें कर रहे हैं।

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सेठ ने कान लगा कर सुना। भगवान राम हनुमान जी से कह रहे थे कि,"इस गरीब ब्रह्मण के लिए सौ रूपए का इंतजाम कर देना, जिससे कन्यादान का कार्य ठीक से हो जाए।

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हनुमान जी ने कहा, ठीक है महाराज ! इसके लिए सौ रूपए का इंतजाम हो जाएगा।

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सेठ ने यह सुना तो वह कथा समाप्ति के बाद पंडित जी से मिला और उनसे पूछा, पंडित जी ! कथा में रूपए पैदा हो रहें हैं कि नहीं ?

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पंडित जी बोले, श्रोता बहुत कम आते हैं तो रूपए कैसे पैदा हों ?

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सेठ ने कहा, मेरी एक शर्त है रोजाना कथा में जितना पैसा आए वह आप मेरे को दे देना और मैं आप को पचास रूपए दे दिया करूंगा।

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पंडित जी ने सोचा कि उनके पास कौन सा इतने पैसे आते हैं। अगर मैं सेठ की बात मान लूं तो रोजाना पचास रूपए तो मिलेंगे, पंडित जी ने सेठ कि बात मान ली। 

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इधर सेठ ने सोच रखा था कि भगवान कि आज्ञा का पालन करने हेतु हनुमान जी सौ रूपए पंडित जी को जरूर देंगे।

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मुझे सीधे-सीधे पचास रूपए का फायदा हो रहा है। जो लोभी आदमी होते हैं वे पैसे के बारे में ही सोचते हैं। सेठ ने भगवान जी कि बातें सुनकर भी भक्ति कि और ध्यान नहीं दिया बल्कि पैसे कि और आकर्षित हो गए।

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अब सेठ जी कथा के उपरांत पंडित जी के पास गए और उनसे पूछा कि, कितने रुपए आएं है ?

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सेठ के मन में विचार था कि हनुमान जी सौ रूपए तो भेंट में जरूर दिलवाऐंगे, मगर पंडित जी ने कहा कि पांच-सात रूपए ही हुए हैं। 

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अब सेठ को शर्त के मुताबिक पचास रूपए पंडित जी को देने पड़े। सेठ को हनुमान जी पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था कि उन्होंने पंडित जी को सौ रूपए नहीं दिए।

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वह मंदिर में गया और हनुमान जी कि मूर्ती पर घूंसा मारा। घूंसा मारते ही सेठ का हाथ मूर्ती पर चिपक गया

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अब सेठ जोर लगाये अपना हाथ छुड़ाने के लिए पर नाकाम रहा। हाथ हनुमान जी कि पकड़ में ही रहा। हनुमान जी किसी को पकड़ लें तो वह कैसे छूट सकता है ? 

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सेठ को फिर आवाज सुनाई दी। उसने ध्यान से सुना, भगवान हनुमान जी से पूछ रहे थे कि तुमने ब्रह्मण को सौ रूपए दिलाएं कि नहीं ?

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हनुमान जी ने कहा, महाराज पचास रूपए तो दिला दिए हैं, बाकी पचास रुपयों के लिए सेठ को पकड़ रखा है। वह पचास रूपए दे देगा तो छोड़ देंगे।

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सेठ ने सुना तो विचार किया कि मंदिर में लोग आकर मेरे को देखेंगे तो बड़ी बेईज्ज़ती होगी। 

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वह चिल्लाकर बोला, हनुमान जी महाराज ! मेरे को छोड़ दो, मैं पचास रूपय दे दूंगा। 

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हनुमान जी ने सेठ को छोड़ दिया। सेठ ने जाकर पंडित जी को पचास रूपए दे दिए।

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मेहर से घट में मिले आनंदा

 **राधास्वामी!! 01-07-2021- आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-           

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🌹🙏🙏   हार्दिक राधास्वामी   🙏🙏🌹

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गुरु प्यारे से प्रीत लगाना। मन सरधा लाय

।।टेक।।

जगत भोग सब जान असारा। इनसे हट सत्संग समाय। गुरु बचन कमाय।१।                                             

  भूल भरम और   धरमा। इनसे नहिं कुछ काज सराय । सब दूर बहाय।२।                                                                    उमँग सहित गुरु सेवा धारो। मन और स्रुत धुन संग लगाय। गुरु रूप धियाय।३।          

                                            

मेहर से घट में मिले अनंदा। दिन दिन प्रीति प्रतीति बढ़ाय। नई उमँग जगाय।४।                                   

दया करें गुरु सूरत चढावें। सहसकँवल लख त्रिकटी धाय। गुरु शब्द सुनाय।५।                                                  

 सुन्न में जाय सुनी धुन सारँग। सूरज सेत भँवर दरसाय। सोहँग धुन गाय।६।                                                     

सतगुरु रूप लखे सतपुर में । आगे राधास्वामी धाम दिखाय। निज चरन समाय।७।               

                                    

(प्रेमबानी- भाग 3- शब्द-17 पृ.सं. 84 ,85  )  

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महाभारत की सुनी अनसुनी कथाएं

 ठाकुर जी का रुला देने वाला प्रसंग🌷* 


 *नंद बाबा चुपचाप रथ पर कान्हा के वस्त्राभूषणों की गठरी रख रहे थे। दूर ओसारे में मूर्ति की तरह शीश झुका कर खड़ी यशोदा को देख कर कहा- दुखी क्यों हो यशोदा, दूसरे की वस्तु पर अपना क्या अधिकार?*


*यशोदा ने शीश उठा कर देखा नंद बाबा की ओर, उनकी आंखों में जल भर आया था। नंद निकट चले आये। यशोदा ने भारी स्वर से कहा- तो क्या कान्हा पर हमारा कोई अधिकार नहीं? ग्यारह वर्षों तक हम असत्य से ही लिपट कर जीते रहे?*


*नंद ने कहा- अधिकार क्यों नहीं, कन्हैया कहीं भी रहे, पर रहेगा तो हमारा ही लल्ला न! पर उसपर हमसे ज्यादा देवकी वसुदेव का अधिकार है, और उन्हें अभी कन्हैया की आवश्यकता भी है।*


*यशोदा ने फिर कहा- तो क्या मेरे ममत्व का कोई मोल नहीं?*

*नंद बाबा ने थके हुए स्वर में कहा- ममत्व का तो सचमुच कोई मोल नहीं होता यशोदा। पर देखो तो, कान्हा ने इन ग्यारह वर्षों में हमें क्या नहीं दिया है।*


 *उम्र के उत्तरार्ध में जब हमने संतान की आशा छोड़ दी थी, तब वह हमारे आंगन में आया। तुम्हें नहीं लगता कि इन ग्यारह वर्षों में हमने जैसा सुखी जीवन जिया है, वैसा कभी नहीं जी सके थे।*


 *दूसरे की वस्तु से और कितनी आशा करती हो यशोदा, एक न एक दिन तो वह अपनी वस्तु मांगेगा ही न! कान्हा को जाने दो यशोदा।*


*यशोदा से अब खड़ा नहीं हुआ जा रहा था, वे वहीं धरती पर बैठ गयी, कहा- आप मुझसे क्या त्यागने के लिए कह रहे हैं, यह आप नहीं समझ रहे।*


*नंद बाबा की आंखे भी भीग गयी थीं। उन्होंने हारे हुए स्वर में कहा- तुम देवकी को क्या दे रही हो यह मुझसे अधिक कौन समझ सकता है यशोदा! आने वाले असंख्य युगों में किसी के पास तुम्हारे जैसा दूसरा उदाहरण नहीं होगा। यह जगत सदैव तुम्हारे त्याग के आगे नतमस्तक रहेगा।*


*यशोदा आँचल से मुह ढांप कर घर मे जानें लगीं तो नंद बाबा ने कहा- अब कन्हैया तो भेज दो यशोदा, देर हो रही है।*

*यशोदा ने आँचल को मुह पर और तेजी से दबा लिया, और अस्पष्ट स्वर में कहा- एक बार उसे खिला तो लेने दीजिये, अब तो जा रहा है। कौन जाने फिर...*


*नंद चुप हो गए।*


*यशोदा माखन की पूरी मटकी ले कर ही बैठी थीं, और भावावेश में कन्हैया की ओर एकटक देखते हुए उसी से निकाल निकाल कर खिला रही थी। कन्हैया ने कहा- एक बात पूछूं मइया?*


*यशोदा ने जैसे आवेश में ही कहा- पूछो लल्ला।*


*तुम तो रोज मुझे माखन खाने पर डांटती थी मइया, फिर आज अपने ही हाथों क्यों खिला रही हो?*


*यशोदा ने उत्तर देना चाहा पर मुह से स्वर न फुट सके। वह चुपचाप खिलाती रही। कान्हा ने पूछा- क्या सोच रही हो मइया?*


*यशोदा ने अपने अश्रुओं को रोक कर कहा- सोच रही हूँ कि तुम चले जाओगे तो मेरी गैया कौन चरायेगा।*


*कान्हा ने कहा- तनिक मेरी सोचो मइया, वहां मुझे इस तरह माखन कौन खिलायेगा? मुझसे तो माखन छिन ही जाएगा मइया।*


*यशोदा ने कान्हा को चूम कर कहा- नहीं लल्ला, वहां तुम्हे देवकी रोज माखन खिलाएगी।*


*कन्हैया ने फिर कहा- पर तुम्हारी तरह प्रेम कौन करेगा मइया?*


*अबकी यशोदा कृष्ण को स्वयं से लिपटा कर फफक पड़ी। मन ही मन कहा- यशोदा की तरह प्रेम तो सचमुच कोई नहीं कर सकेगा लल्ला, पर शायद इस प्रेम की आयु इतनी ही थी।*


*कृष्ण को रथ पर बैठा कर अक्रूर के संग नंद बाबा चले तो यशोदा ने कहा- तनिक सुनिए न, आपसे देवकी तो मिलेगी न? उससे कह दीजियेगा, लल्ला तनिक नटखट है पर कभी मारेगी नहीं।*


*नंद बाबा ने मुह घुमा लिया। यशोदा ने फिर कहा- कहियेगा कि मैंने लल्ला को कभी दूब से भी नहीं छुआ, हमेशा हृदय से ही लगा कर रखा है।*


*नंद बाबा ने रथ को हांक दिया। यशोदा ने पीछे से कहा- कह दीजियेगा कि लल्ला को माखन प्रिय है, उसको ताजा माखन खिलाती रहेगी। बासी माखन में कीड़े पड़ जाते हैं।*


*नंद बाबा की आंखे फिर भर रही थीं, उन्होंने घोड़े को तेज किया। यशोदा ने तनिक तेज स्वर में फिर कहा- कहियेगा कि बड़े कौर उसके गले मे अटक जाते हैं, उसे छोटे छोटे कौर ही खिलाएगी।*


*नंद बाबा ने घोड़े को जोर से हांक लगाई, रथ धूल उड़ाते हुए बढ़ चला।*

*यशोदा वहीं जमीन पर बैठ गयी और फफक कर कहा- कृष्ण से भी कहियेगा कि मुझे स्मरण रखेगा।*


*उधर रथ में बैठे कृष्ण ने मन ही मन कहा- तुम्हें यह जगत सदैव स्मरण रखेगा मइया। तुम्हारे बाद मेरे जीवन मे जीवन बचता कहाँ है ?*


😥😥😥

 *लीलायें तो ब्रज में ही छूट जायेंगी..*

*हाथी घोड़ा पालकी - जय कन्हैया लाल की*


🙏🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏🙏

।।"द्रौपदी का कर्ज"।।/ मनोज चौहान

:अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा महल में झाड़ू लगा रही थी तो द्रौपदी उसके समीप गई उसके सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोली, "पुत्री भविष्य में कभी तुम पर घोर से घोर विपत्ति भी आए तो कभी अपने किसी नाते-रिश्तेदार की शरण में मत जाना। सीधे भगवान की शरण में जाना।" उत्तरा हैरान होते हुए माता द्रौपदी को निहारते हुए बोली, "आप ऐसा क्यों कह रही हैं माता ?" 

        द्रौपदी बोली, "क्योंकि यह बात मेरे ऊपर भी बीत चुकी है। जब मेरे पांचों पति कौरवों के साथ जुआ खेल रहे थे, तो अपना सर्वस्व हारने के बाद मुझे भी दांव पर लगाकर हार गए। फिर कौरव पुत्रों ने भरी सभा में मेरा बहुत अपमान किया। मैंने सहायता के लिए अपने पतियों को पुकारा मगर वो सभी अपना सिर नीचे झुकाए बैठे थे। पितामह भीष्म, द्रोण धृतराष्ट्र सभी को मदद के लिए पुकारती रही मगर किसी ने भी मेरी तरफ नहीं देखा, वह सभी आँखें झुकाए आँसू बहाते रहे। सबसे निराशा होकर  मैंने श्रीकृष्ण को पुकारा, "आपके सिवाय मेरा और कोई भी नहीं है, तब श्रीकृष्ण तुरंत आए और मेरी रक्षा की।"

        जब द्रौपदी पर ऐसी विपत्ति आ रही थी तो द्वारिका में श्री कृष्ण बहुत विचलित होते हैं। क्योंकि उनकी सबसे प्रिय भक्त पर संकट आन पड़ा था। रूकमणि उनसे दुखी होने का कारण पूछती हैं तो वह बताते हैं मेरी सबसे बड़ी भक्त को भरी सभा में नग्न किया जा रहा है।  रूकमणि बोलती हैं, "आप जाएँ और उसकी मदद करें।" श्री कृष्ण बोले, "जब तक द्रोपदी मुझे पुकारेगी नहीं  मैं कैसे जा सकता हूँ। एक बार वो मुझे पुकार लें तो मैं तुरंत उसके पास जाकर उसकी रक्षा करूँगा। तुम्हें याद होगा जब पाण्डवों ने राजसूर्य यज्ञ करवाया तो शिशुपाल का वध करने के लिए मैंने अपनी उंगली पर चक्र धारण किया तो उससे मेरी उंगली कट गई थी। उस समय "मेरी सभी  पत्नियाँ वहीं थी। कोई वैद्य को बुलाने भागी तो कोई औषधि लेने चली गई। मगर उस समय मेरी इस भक्त ने अपनी साड़ी का पल्लू फाड़ा और उसे मेरी उंगली पर बाँध दिया। आज उसी का ऋण मुझे चुकाना है, लेकिन जब तक वो मुझे पुकारेगी नहीं मैं जा नहीं सकता।"  अत: द्रौपदी ने जैसे ही भगवान कृष्ण को पुकारा प्रभु तुरंत ही दौड़े गए।

ऐसे हे हमारे  भगवान बस एक बार भाव से आप पुकारों तो सही🙏

 ।। हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।।

काहु न कोउ सुख दुख कर दाता। / निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता ।।

 काहु न कोउ सुख दुख कर दाता।

      निज कृत कर्म भोग सुन भ्राता ।।


राम ,लखन सीताजी का श्रंगवेरपुर में जमीन पर रात्रि विश्राम🐦तीनलोक के नाथ का जमीन पर सोना अदभुद


सिय रघुबीर कि कानन जोगू ।

          करम प्रधान सत्य कह लोगू ।।🚩


✍️यह चौपाई अयोध्या कांड मे राम बनगमन काल की है। जब भगवान राम अपनी पिता की आज्ञानुसार बन गमन को भैय्या लक्ष्मण और माता सीता चलने पर निषाद राज के यहां रात्री विश्राम को रुके। कहां चक्रवर्ती सम्राट के यहां पैदा हुए। कहा आज फूस की झोपड़ी और पत्तो के बिछावन मे लेटे है। बाहर भैय्या लक्ष्मण और निषादराज दोनो कुटी के बाहर बैठे है। 


निषाद राज जी राम जी को इस तरह देख कर दुख प्रकट करते हुए लखन जी से प्रश्न किया कि लखन जी यह सब भोग क्यों

तब लखन जी कते है हे निषाद राज कोई भी किसी भी अन्य किसी के सुख दुख का हेतु नही होता है। आगे कह रहे है जीव के स्वयं के कर्म ही सुख और दुख का हेतु है। यह हमारे हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण विधान है। इसलिए जीव को कर्मो को सजग हो कर कर्म करने चाहिए। शास्त्र विरूद्ध। निसिद्ध कर्म नही करने चाहिए। गीता मे भी भगवान श्रीकृष्ण ने लिखा है

योगःकर्मसु कौशलः।


किंतु कर्म तभी तक फलदायक है जब तक कर्मो के साथ अहंता ममता जुड़ी हुई है। किंतु साधना करते करते जैसै जैसे साधक की साधना मे परिपक्वता आती है वैसे वैसे अहंता और कर्ताभाव विगलित होने लगता है। उसके अनुभव मे आने लगता है कि गुणा गुषणेषु वर्ततन्ते


वैसे तो भगवान कर्म और कर्म फल से सदैव मुक्त ही है। कितु भगवान राम मर्यादा पुरुषोत्तम है। ऋषियों के श्राप को लोकमर्यादा की रक्षा हेतु लीला कर रहे है।

इसलिये जब तक ज्ञानोदय हो कर चित्त पूर्णतः शुद्ध ना हो जाय तब तक कर्मो को सावधानी पूर्वक करते रहे।

जय सच्चिदानंद


🐦जय हो प्रभु राम की🐦जय हो राजाराम की🐦

महाभारत की अनसुनी कहानियां

 पांच सोने के तीर



जब कौरव महाभारत का युद्ध हार रहे थे तो दुर्योधन एक रात भीष्म से मिलने गया और उन पर इलजाम लगाया की वह पांडवों से प्रेम के चलते पूर्ण मन से युद्ध नहीं लड़ रहे हैं | गुस्से में भीष्म ने पांच सोने के तीर उठाये और मन्त्र पढ़ बोले की कल वह पांच पांडवों को इन पांच तीरों से मार देंगे | दुर्योधन को भीष्म की बात पर यकीन नहीं था और उसने भीष्म से वह पांच सोने के तीर मांगे की वह उन्हें अपनी सुरक्षा में रखना चाहता है और अगले दिन वापस कर देगा | 


इससे पहले महाभारत के युद्ध से कई साल पहले पांडव जंगल में वास कर रहे थे | दुर्योधन ने अपना शिविर जहाँ पांडव रुके थे उसकी उलटी दिशा में बनाया | एक बार जब दुर्योधन तालाब में नहा रहा था तो गन्धर्व धरती पर आये | दुर्योधन ने उनसे लडाई छेड़ी लेकिन हार गया | गन्धर्व ने दुर्योधन को बंदी बना लिया | अर्जुन ने आकर दुर्योधन की जान बचाई | दुर्योधन बहुत शर्मिंदा था पर क्यूंकि वह क्षत्रिय था तो उसने अर्जुन से वर मांगने को कहा | अर्जुन ने कहा की वह वक़्त आने पर अपना वर मांग लेगा | 


अर्जुन ने अपना वर माँगा:


उसी रात कृष्ण ने अर्जुन को उस अपूर्ण वर की याद दिलाई और उनसे कहा की वह दुर्योधन से 5 सोने के तीर मांग ले | जब अर्जुन ने तीर मांगे तो दुर्योधन हैरान रह गया लेकिन क्यूंकि वह क्षत्रिय था उसे अपना वचन निभाना पड़ा | उसने कहा की तुम्हें सोने के तीरों के बारे में किसने बताया तो अर्जुन ने कहा की कृष्ण के इलावा और कौन बता सकता है | दुर्योधन भीष्म के पास फिर से पांच सोने के तीर मांगने गया | इस पर भीष्म हँसे और बोले की अब ये मुमकिन नहीं है | 


#AnyTimeRead #महाभारत

कैलाश_मानसरोवर_: शिव_की_रहस्यमय_दुनिया !!!

 #कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का निवास स्थल माना जाता है। कहा जाता है कि इस पर्वत पर भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान हैं। जो भी इस पर्वत पर आकर उनके दर्शन कर लेता है उसका जीवन पूरी तरह से सफल हो जाता है। इस पावन स्थल पर हर साल लाखों श्रद्धालु मन में सिर्फ ये आस लिए आते हैं कि शिव के साक्षात दर्शन मात्र से उनके सारे कष्ट मिट जाएंगे। कैलाश पर्वत को धरती का केंद्र कहा जाता है, जहां धरती और आकाश एक साथ आ मिलते हैं।


  कैलाश पर्वत की तलहटी में 1 दिन होता है 1 माह के बराबर ! इसका मतलब यह है कि 1 माह ढाई साल का होगा। दरअसल, वहां दिन और रात तो सामान्य तरीके से ही व्यतीत होते हैं लेकिन वहां कुछ इस तरह की तरंगें हैं कि यदि व्यक्ति वहां 1 दिन रहे तो उसके शरीर का तेजी से क्षरण होता है अर्थात 1 माह में जितना क्षरण होगा, उतना 1 ही दिन में हो जाएगा।


 कैलाश पर्वत पर कंपास काम नहीं करता यहाँ आने पर दिशा भ्रम होने लगता है. यह जगह बहुत ही ज्यादा रेडियोएक्टिव है। लेकिन ये जगह बेहद पावन, शांत और शक्ति देने वाली है!


 !!! #कैलाश_मानसरोवर_रहस्य !!! 


#भगवान_शंकर_के_निवास_स्थान कैलाश पर्वत के पास स्थित है कैलाश मानसरोवर। यह अद्भुत स्थान रहस्यों से भरा है। शिवपुराण, स्कंद पुराण, मत्स्य पुराण आदि में #कैलाश खंड नाम से अलग ही अध्याय है, जहां की महिमा का गुणगान किया गया है।


#पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इसी के पास कुबेर की नगरी है। यहीं से महाविष्णु के कर-कमलों से निकलकर गंगा कैलाश पर्वत की चोटी पर गिरती है, जहां प्रभु शिव उन्हें अपनी जटाओं में भर धरती में निर्मल धारा के रूप में प्रवाहित करते हैं। #कैलाश_पर्वत के ऊपर स्वर्ग और नीचे मृत्यलोक है। आओ जानते हैं इसके 12 रहस्य।


#1_धरती_का_केंद्र: धरती के एक ओर उत्तरी ध्रुव है, तो दूसरी ओर दक्षिणी ध्रुव। दोनों के बीचोबीच स्थित है हिमालय। हिमालय का केंद्र है कैलाश पर्वत। वैज्ञानिकों के अनुसार यह धरती का केंद्र है। कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्मों #हिन्दू_जैन_बौद्ध_और_सिख धर्म का केंद्र है।


#2_अलौकिक_शक्ति_का_केंद्र : यह एक ऐसा भी केंद्र है जिसे एक्सिस मुंडी (Axis Mundi) कहा जाता है। एक्सिस मुंडी अर्थात दुनिया की नाभि या आकाशीय ध्रुव और भौगोलिक ध्रुव का केंद्र। यह आकाश और पृथ्वी के बीच संबंध का एक बिंदु है, जहां #दसों_दिशाएं मिल जाती हैं। रशिया के वैज्ञानिकों के अनुसार एक्सिस मुंडी वह स्थान है, जहां अलौकिक शक्ति का प्रवाह होता है और आप उन शक्तियों के साथ संपर्क कर सकते हैं।


#3_पिरामिडनुमा_क्यों_है_यह_पर्वत : कैलाश पर्वत एक विशालकाय पिरामिड है, जो 100 छोटे पिरामिडों का केंद्र है। कैलाश पर्वत की संरचना कम्पास के 4 दिक् बिंदुओं के समान है और #एकांत_स्थान पर स्थित है, जहां कोई भी बड़ा पर्वत नहीं है।


#4_शिखर_पर_कोई_नहीं_चढ़_सकता : कैलाश पर्वत पर चढ़ना निषिद्ध है, परंतु 11वीं सदी में एक तिब्बती बौद्ध योगी #मिलारेपा ने इस पर चढ़ाई की थी। रशिया के वैज्ञानिकों की यह रिपोर्ट 'यूएनस्पेशियल' मैग्जीन के 2004 के जनवरी अंक में प्रकाशित हुई थी। हालांकि मिलारेपा ने इस बारे में कभी कुछ नहीं कहा इसलिए यह भी एक रहस्य है।


#5_दो_रहस्यमयी_सरोवरों_का_रहस्य : यहां 2 सरोवर मुख्य हैं- पहला, मानसरोवर जो दुनिया की शुद्ध पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार सूर्य के समान है। दूसरा, राक्षस नामक झील, जो दुनिया की खारे पानी की उच्चतम झीलों में से एक है और जिसका आकार चन्द्र के समान है। ये दोनों झीलें सौर और चन्द्र बल को प्रदर्शित करती हैं जिसका संबंध सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा से है। जब दक्षिण से देखते हैं तो एक स्वस्तिक चिह्न वास्तव में देखा जा सकता है। यह अभी तक रहस्य है कि ये झीलें प्राकृतिक तौर पर निर्मित हुईं या कि ऐसा इन्हें बनाया गया?


#6_यहीं_से_क्यों_सभी_नदियों_का_उद्गम : इस पर्वत की कैलाश पर्वत की 4 दिशाओं से 4 नदियों का उद्गम हुआ है- ब्रह्मपुत्र, सिन्धु, सतलज व करनाली। इन नदियों से ही गंगा, सरस्वती सहित चीन की अन्य नदियां भी निकली हैं। कैलाश की चारों दिशाओं में विभिन्न जानवरों के मुख हैं जिसमें से नदियों का उद्गम होता है। पूर्व में अश्वमुख है, पश्चिम में हाथी का मुख है, उत्तर में सिंह का मुख है, दक्षिण में मोर का मुख है।


#7_सिर्फ_पुण्यात्माएं_ही_निवास_कर_सकती_हैं : यहां पुण्यात्माएं ही रह सकती हैं। कैलाश पर्वत और उसके आसपास के वातावरण पर अध्ययन कर चुके रशिया के वैज्ञानिकों ने जब तिब्बत के मंदिरों में #धर्मगुरुओं से मुलाकात की तो उन्होंने बताया कि कैलाश पर्वत के चारों ओर एक अलौकिक शक्ति का प्रवाह है जिसमें तपस्वी आज भी आध्यात्मिक गुरुओं के साथ टेलीपैथिक संपर्क करते हैं।


#9_येति_मानव_का_रहस्य : हिमालयवासियों का कहना है कि हिमालय पर यति मानव रहता है। कोई इसे भूरा भालू कहता है, कोई जंगली मानव तो कोई हिम मानव। यह धारणा प्रचलित है कि यह लोगों को मारकर खा जाता है। कुछ वैज्ञानिक इसे निंडरथल मानव मानते हैं। विश्वभर में करीब 30 से ज्यादा वैज्ञानिकों ने दावा किया है कि हिमालय के बर्फीले इलाकों में हिम मानव मौजूद हैं।


#10_कस्तूरी_मृग_का_रहस्य : दुनिया का सबसे दुर्लभ मृग है कस्तूरी मृग। यह हिरण उत्तर पाकिस्तान, उत्तर भारत, चीन, तिब्बत, साइबेरिया, मंगोलिया में ही पाया जाता है। इस मृग की कस्तूरी बहुत ही सुगंधित और औषधीय गुणों से युक्त होती है, जो उसके शरीर के पिछले हिस्से की ग्रंथि में एक पदार्थ के रूप में होती है। कस्तूरी मृग की कस्तूरी दुनिया में सबसे महंगे पशु उत्पादों में से एक है।


#11_डमरू_और_ओम_की_आवाज : यदि आप कैलाश पर्वत या मानसरोवर झील के क्षेत्र में जाएंगे, तो आपको

निरंतर एक आवाज सुनाई देगी, जैसे कि कहीं आसपास में एरोप्लेन उड़ रहा हो। लेकिन ध्यान से सुनने पर यह आवाज 'डमरू' या 'ॐ' की ध्वनि जैसी होती है 


#12_आसमान_में_लाइट_का_चमकना : दावा किया जाता है कि कई बार कैलाश पर्वत पर 7 तरह की लाइटें आसमान में चमकती हुई देखी गई हैं।


#हर_हर_महादेव❤️🙏🏻

हनुमान जी की दिव्य उधारी / मनोज चौहान

 #रामजी लंका पर विजय प्राप्त करके आए तो, भगवान ने विभीषण जी, जामवंत जी, अंगद जी, सुग्रीव जी सब को अयोध्या से विदा किया। तो सब ने सोचा हनुमान जी को प्रभु बाद में बिदा करेंगे, लेकिन रामजी ने हनुमानजी को विदा ही नहीं किया,अब प्रजा बात बनाने लगी कि क्या बात सब गए हनुमानजी नहीं गए अयोध्या से!*


*अब दरबार में काना फूसी शुरू हुई कि हनुमानजी से कौन कहे जाने के लिए, तो सबसे पहले माता सीता की बारी आई कि आप ही बोलो कि हनुमानजी चले जाएं।*


*माता सीता बोलीं मैं तो लंका में विकल पड़ी थी, मेरा तो एक एक दिन एक एक कल्प के समान बीत रहा था, वो तो हनुमानजी थे,जो प्रभु मुद्रिका लेके गए, और धीरज बंधवाया कि...!*


*कछुक दिवस जननी धरु धीरा।*

*कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा।।*


*निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं।*

*तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं॥*


*मै तो अपने बेटे से बिल्कुल भी नहीं बोलूंगी अयोध्या छोड़कर जाने के लिए,आप किसी और से बुलवा लो।*


*अब बारी आई लक्षमण जी की तो लक्ष्मण जी ने कहा, मै तो लंका के रणभूमि में वैसे ही मरणासन्न अवस्था में पड़ा था, पूरा रामदल विलाप कर रहा था।*


*प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर।*

*आइ गयउ हनुमान जिमि करुना महँ बीर रस।।*


*ये जो खड़ा है ना , वो हनुमानजी का लक्ष्मण है। मै कैसे बोलूं, किस मुंह से बोलूं कि हनुमानजी अयोध्या से चले जाएं!*


*अब बारी आई भरत जी की, अरे! भरत जी तो इतना रोए, कि रामजी को अयोध्या से निकलवाने का कलंक तो वैसे ही लगा है मुझ पर, हनुमान जी का सब मिलके और लगवा दो!*


*और दूसरी बात ये कि...!*


*बीतें अवधि रहहिं जौं प्राना।* 

*अधम कवन जग मोहि समाना॥*


*मैंने तो नंदीग्राम में ही अपनी चिता लगा ली थी, वो तो हनुमानजी थे जिन्होंने आकर ये खबर दी कि...!*


*रिपु रन जीति सुजस सुर गावत।*

*सीता सहित अनुज प्रभु आवत॥*


*मैं तो बिल्कुल न बोलूं हनुमानजी से अयोध्या छोड़कर चले जाओ, आप किसी और से बुलवा लो।*


*अब बचा कौन..? सिर्फ शत्रुघ्न भैया। जैसे ही सब ने उनकी तरफ देखा, तो शत्रुघ्न भैया बोल पड़े मैंने तो पूरी रामायण में कहीं नहीं बोला, तो आज ही क्यों बुलवा रहे हो, और वो भी हनुमानजी को अयोध्या से निकालने के लिए, जिन्होंने ने माता सीता, लक्षमण भैया, भरत भैया सब के प्राणों को संकट से उबारा हो! किसी अच्छे काम के लिए कहते तो बोल भी देता। मै तो बिल्कुल भी न बोलूं।*


*अब बचे तो मेरे राघवेन्द्र सरकार,* 

*माता सीता ने कहा प्रभु! आप तो तीनों लोकों ये स्वामी है, और देखती हूं आप हनुमानजी से सकुचाते है।और आप खुद भी कहते हो कि...!*


*प्रति उपकार करौं का तोरा।* 

*सनमुख होइ न सकत मन मोरा॥*


*आखिर आप के लिए क्या अदेय है प्रभु! राघवजी ने कहा देवी कर्जदार जो हूं, हनुमान जी का, इसीलिए तो*


*सनमुख होइ न सकत मन मोरा*


*देवी! हनुमानजी का कर्जा उतारना आसान नहीं है, इतनी सामर्थ्य राम में नहीं है, जो "राम नाम" में है। क्योंकि कर्जा उतारना भी तो बराबरी का ही पड़ेगा न...!


*देवी! इतना आसान नहीं है, हनुमान जी का कर्जा चुकाना। मैंने ऐसे ही नहीं कहा था कि...!*


*"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं"*


*मैंने बहुत सोच विचार कर कहा था। लेकिन यदि आप कहती हो तो कल राज्य सभा में बोलूंगा कि हनुमानजी भी कुछ मांग लें।*


*दूसरे दिन राज्य सभा में सब एकत्र हुए,सब बड़े उत्सुक थे कि हनुमानजी क्या मांगेंगे, और रामजी क्या देंगे।*

*रामजी ने हनुमान जी से कहा! सब लोगों ने मेरी बहुत सहायता की और मैंने, सब को कोई न कोई पद दे दिया। विभीषण और सुग्रीव को क्रमशः लंका और किष्कन्धा का राजपद,अंगद को युवराज पद। तो तुम भी अपनी इच्छा बताओ...?*


*हनुमानजी बोले! प्रभु आप ने जितने नाम गिनाए, उन सब को एक एक पद मिला है, और आप कहते हो...!*


*"तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना"*


*तो फिर यदि मै दो पद मांगू तो..?*

*सब लोग सोचने लगे बात तो हनुमानजी भी ठीक ही कह रहे हैं। रामजी ने कहा! ठीक है, मांग लो, सब लोग बहुत खुश हुए कि आज हनुमानजी का कर्जा चुकता हुआ।*


*हनुमानजी ने कहा! प्रभु जो पद आप ने सबको दिए हैं, उनके पद में राजमद हो सकता है, तो मुझे उस तरह के पद नहीं चाहिए, जिसमे राजमद की शंका हो, तो फिर...! आप को कौन सा पद चाहिए...?*


*हनुमानजी ने रामजी के दोनों चरण पकड़ लिए, प्रभु ..! हनुमान को तो बस यही दो पद चाहिए।*


*हनुमत सम नहीं कोउ बड़भागी।*

*नहीं कोउ रामचरण अनुरागी।।*


*जानकी जी की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए राघवजी बोले, लो उतर गया हनुमानजी का कर्जा!*


*और अभी तक जिसको बोलना था, सब बोल चुके है, अब जो मै बोलता हूं उसे सब सुनो, रामजी भरत भैया की तरफ देखते हुए बोले...!*


*"हे! भरत भैया' कपि से उऋण हम नाही"*........


*हम चारों भाई चाहे जितनी बार जन्म लेे लें, हनुमानजी का ऋण नही उतार सकते।* 


🚩🚩 जय श्रीराम *जय श्री हनुमान जी महाराज *🚩🚩

विश्वास

🙏विश्वास🙏


यह कहानी एक ऐसे पर्वतारोही की है जो सबसे ऊँचे पर्वत पर विजय पाना चाहता था। 


कई सालों की कड़ी मेहनत के बाद उसने अपना साहसिक अभियान शुरु किया। पर वह यह उपलब्धि किसी के साथ साझा नहीं करना चाहता था, अत: उसने अकेले ही चढ़ाई करने का निश्चय किया। 


उसने पर्वत पर चढ़ना आरंभ किया, जल्दी ही शाम ढलने लगी। पर वह विश्राम के लिए तम्बू में ठहरने की जगह अंधेरा होने तक चढ़ाई करता रहा। घने अंधकार के कारण वह कुछ भी देख नहीं पा रहा था। 


हाथ को हाथ भी सुझाई नहीं दे रहा था। चंद्रमा और तारे सब बादलों की चादर से ढके हुए थे। वह निरंतर चढ़ता हुआ पर्वत की चोटी से कुछ ही फुट के फासले पर था कि तभी अचानक उसका पैर फिसला और वह तेजी से नीचे की तरफ गिरने लगा। गिरते हुए उसे अपने जीवन के सभी अच्छे और बुरे दौर चलचित्र की तरह दिखाई देने लगे। उसे अपनी मृत्यु बहुत नजदीक लग रही थी, तभी उसकी कमर से बंधी रस्सी ने झटके से उसे रोक दिया। 


उसका शरीर केवल उस रस्सी के सहारे हवा में झूल रहा था। उसी क्षण वह जोर से चिल्लाया: ‘भगवान मेरी मदद करो!’ तभी अचानक एक गहरी आवाज आकाश में गूँजी:- तुम मुझ से क्या चाहते हो ?


पर्वतारोही बोला - भगवन् मेरी रक्षा कीजिए!

- क्या तुम्हें सच में विश्वास है कि मैं तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ ?

वह बोला - हाँ, भगवन् मुझे आप पर पूरा विश्वास है ।

- ठीक है, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास है तो अपनी कमर से बंधी रस्सी काट दो.....

कुछ क्षण के लिए वहाँ एक चुप्पी सी छा गई और उस पर्वतारोही ने अपनी पूरी शक्ति से रस्सी को पकड़े रहने का निश्चय कर लिया।


अगले दिन बचाव दल को एक रस्सी के सहारे लटका हुआ एक पर्वतारोही का ठंड से जमा हुआ शव मिला । उसके हाथ रस्सी को मजबूती से थामे थे... और वह धरती से केवल 5 फुट की ऊँचाई पर था।


और आप? आप अपनी रस्सी से कितने जुड़े हुए हैं ? क्या आप अपनी रस्सी को छोड़ेंगे ?

भगवान पर विश्वास रखिए। कभी भी यह नहीं सोचिए कि वह आपको भूल गया है या उसने आपका साथ छोड़ दिया है ।


याद रखिए कि वह हमेशा आपको अपने हाथों में थामे हुए है।

-प्रेरक / भक्ति कथायें

🙏❤️🌹जय श्री कृष्णा🌹❤️🙏

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राम से बड़ा राम का नाम क्यों..?

      रामदरबार में हनुमानजी महाराज श्री रामजी की सेवा में इतने तन्मय हो गए कि गुरू वशिष्ठ के आने का उनको ध्यान ही नहीं रहा

सबने उठ कर उनका अभिवादन किया लेकिन  हनुमानजी नहीं कर पाए

वशिष्ठ जी ने श्री रामजी से कहा कि राम गुरु का भरे दरबार में अभिवादन नहीं कर अपमान करने पर क्या सजा होनी चाहिए❓

श्री रामजी ने कहा गुरुवर आप ही बताएं ❓


वशिष्ठ जी ने कहा:- "मृत्यु दण्ड"


श्रीराम जी ने कहा:- स्वीकार है


तब श्रीराम जी ने कहा:- गुरुदेव आप बताएं कि यह अपराध किसने किया है..❓


बता दूंगा पर "राम" वो तुम्हारा इतना प्रिय है कि, तुम अपने आप को सजा दे दोगे पर उसको नहीं दे पाओगे


श्रीराम जी ने कहा:- गुरुदेव,राम के लिए सब समान हैं, मैंने सीता जैसी पत्नी का सहर्ष त्याग धर्म के लिए कर दिया....फिर भी आप संशय कर रहे हैं..❓


नहीं, "राम"! मुझे तुम्हारे उपर पर संशय नहीं है पर, मुझे दण्ड के परिपूर्ण होने पर संशय है.... अत:यदि तुम यह विश्वास दिलाते हो कि,तुम स्वयं उसे मृत्यु दण्ड अपने अमोघ बाण से दोगे तो ही मैं अपराधी का नाम और अपराध बताऊंगा

श्रीराम जी ने पुन: अपना संकल्प व्यक्त कर दिया।


तब वशिष्ठ जी ने बताया कि यह अपराध हनुमान जी ने किया है

हनुमानजी ने भी स्वीकार कर लिया।

तब दरबार में रामजी ने घोषणा की कि कल सांयकाल सरयु के तट पर,हनुमानजी को में स्वयं अपने अमोघ बाण से मृत्यु दण्ड दूंगा

हनुमानजी के घर जाने पर उदासी की अवस्था में माता अंजनी ने देखा तो चकित रह गई कि मेरा लाल महावीर, अतुलित बल का स्वामी, ज्ञान का भण्डार, आज इस अवस्था में..❓


माता ने बार बार पुछा, पर जब हनुमान चुप रहें तो माता ने अपने दूध का वास्ता देकर पूछा। 

तब हनुमानजी ने बताया कि, यह प्रकरण हुआ है अनजाने में... 

माता! आप जानती हैं कि हनुमान को संपूर्ण ब्रह्माण्ड में कोई नहीं मार सकता, पर भगवान श्रीराम के अमोघ बाण से भी कोई बच भी नहीं सकता l

तब "माता" ने कहा:-

हनुमान,मैंने भगवान शंकर से, "राम" मंत्र (नाम) प्राप्त किया था ,और तुम्हें भी जन्म के साथ ही यह नाम घुटी में पिलाया।

जिसके प्रताप से तुमने बचपन में ही सूर्य को फल समझ मुख में ले लिया था,उस राम नाम के होते हुए हनुमान कोई भी तुम्हारा बाल भी बांका नहीं कर सकता,चाहे वो राम स्वयं ही क्यों ना हों।

राम नाम की शक्ति के सामने राम की शक्ति और राम के अमोघ शक्तिबाण की शक्तियां महत्वहीन हो जाएंगी।

जाओ मेरे लाल,अभी से सरयु के तट पर जाकर राम नाम का उच्चारण करना आरंभ करदो।

माता के चरण छूकर हनुमानजी,सरयु किनारे राम राम राम राम रटने लगे।

सांयकाल,राम अपने सम्पूर्ण दरबार सहित सरयु तट आए.... 

सबको कोतूहल था कि क्या राम हनुमान को सजा देंगे..❓

लेकिन जब श्रीराम ने बार बार रामबाण,अपने महान शक्तिधारी,अमोघशक्ति बाण चलाए पर हनुमानजी के ऊपर उनका कोई असर नहीं हुआ तो गुरु वशिष्ठ जी ने शंका जताई:-

राम क्या तुम अपनी पुर्ण निष्ठा से बाणों का प्रयोग कर रहे हो..❓

तब श्रीराम ने कहा:- हां गुरूदेव, मैं गुरु के प्रति अपराध की सजा देने को अपने बाण चला रहा हूं,उसमें किसी भी प्रकार की चतुराई करके मैं कैसे वही अपराध कर सकता हूं..❓

तो तुम्हारे बाण अपना कार्य क्यों नहीं कर रहे हॆ❓

तब श्रीराम ने कहा:- गुरुदेव हनुमान राम राम राम की अंखण्ड रट लगाये हुए है,मेरी शक्तिंयों का अस्तित्व राम नाम के प्रताप के समक्ष महत्वहीन हो रहा है।

 इससे मेरा कोई भी प्रयास सफल नहीं हो रहा है,आप ही बताएं गुरु देव ! मैँ क्या करुं..❓


गुरु देव ने कहा:- हे राम! आज से मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे दरबार को त्याग कर,अपने आश्रम जा रहा हूं जहां राम नाम का निरंतर जप करुंगा

जाते -जाते, गुरुदेव वशिष्ठ जी ने घोषणा की....

हे राम ! मैं जानकर,मानकर,यह घोषणा कर रहा हूं कि स्वयं राम से राम का नाम बडा़ है,राम नाम महाअमोघशक्ति का सागर है। 

जो कोई जपेगा,लिखेगा,मनन करेगा,उसकी लोक कामनापूर्ति होते हुए भी,वो मोक्ष का भागी होगा।

मैंने सारे मंत्रों की शक्तियों को राम नाम के समक्ष न्युनतर माना है।

तभी से राम से बडा राम का नाम माना जाता है,वो पत्थर भी तैर जातें है जिन पर श्रीराम का नाम लिखा रहता है। 

  🙏मेरे प्रभु मेरे श्रीराम🙏

🙏जय श्री राधे कृष्णा🙏🙏

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शुभ गीता का प्रभाव

        भाग - सात


एक प्रसिद्ध अमेरिकी विद्वान मार्क ट्वेन ने कहा है - " मानव के इतिहास में जो भी मूल्यवान एवं सृजनशील सामग्री है , उसका भंडार अकेले भारत में है । यह ऐसी भूमि है जिसके दर्शन के लिए सभी लालायित रहते हैं ।"

ऐसी पवित्र भारत - भूमि के कुरुक्षेत्र के रण - क्षेत्र में मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी को आज से 5157 वर्ष पहले भगवान श्री कृष्ण ने परमात्म-भाव में स्थित होकर जिस भगवत् - वाणी के माध्यम से भक्त अर्जुन को शाश्वत अध्यात्म - रस से आप्लावित किया था , वही भगवत् - गीता के नाम से जगत - विख्यात है ।


आइंस्टाइन ने कहा - " जब मैं भगवत् - गीता पढ़ता हूं एवं ईश्वर ने किस प्रकार विश्व ब्रह्मांड की सृष्टि की है , इस पर गंभीर मनन करता हूं , तब अन्य सभी कुछ मेरे लिए अप्रयोजनीय मालूम पड़ता है।"

When I read the Bhagavad-Gita and reflect about how God created this universe and everything else seems to me so superfluous.- Einstien


" दुनिया के पास जो भी है , उसमें सबसे अधिक गंभीर एवं महान ग्रंथ भगवत् - गीता है " - जर्मन विद्वान हंबोल्ट।

 The Bhagavad-Gita is the deepest and the subliment production that the world possesses . -- German philosopher Humbolt 


दार्शनिक ब्रुक्स ने कहा - " भावी विश्व धर्म का सूत्र ग्रंथ बनने के लिए भगवत गीता सर्वथा उपयुक्त है । "Bhagwat Geeta is pre-eminently a scripture of the future World religion . --philosopher F.T. Brooks 


जब 16 जुलाई 1945 को अल्मोड़ा में परमाणु - शक्ति का परीक्षण किया गया ,तब मीलों दूर उसकी शक्ति एवं ऊर्जा को मापने के लिए यंत्र लगाए गए थे । निर्धारित समय पर जब महा- विस्फोट हुआ , तो सारे यंत्र टूट गए । उस से निकले प्रकाश से सभी की आंखें चौंधिया गई थी। ऐसी अवस्था में स्वत: स्फूर्त भाव से गीता के अध्येता एवं परमाणु बम के जनक ओपेनहाइमर के मुख से भगवत्- गीता के विश्वरूप दर्शन के समय के वर्णन का निम्नलिखित श्लोक - दिवि सूर्यसहस्त्रय भवद्युगपदुत्थिता। यदि  भा: सदृशी सा स्याद्भासस्तस्य महात्मन:। -  का अंग्रेजी रूपांतरण फूट निकला। उनके शब्द थे -- If the radiance of a thousand suns were burnt into the sky that would be like that Splendour of the mighty one .


भगवत्-गीता के प्रादुर्भाव के 5000 वर्ष से अधिक व्यतीत हो जाने के बाद भी यह काल -सीमा का अतिक्रमण कर अपनी सर्व व्यापक एवं सर्वकालिक प्रभाव को अक्षुण्ण बनाए रखने में सफल रही है । अतः मानव जीवन की सार्थकता इसी में है कि पूर्ण तत्वज्ञान को पूर्ण सत्ता (पूर्ण अवतार भगवान श्री कृष्ण ) से ही प्राप्त किया जाए तथा अपूर्णता से पूर्णता की ओर एक कदम बढ़ाया जाए ।


इसी दृष्टि से गहन - भाव से भरपूर तत्वज्ञान से ओतप्रोत भगवत्- गीता को सरल , सहज एवं सुबोध बनाने हेतु मेरी लेखनी चल रही है , जिससे सामान्य- जन में भी भगवत्- गीता के पठन-पाठन एवं अध्ययन - मनन के प्रति रुचि उत्पन्न हो सके ।

भक्ति भाव से बोलिए भगवत्- गीता की जय।

 प्रेम से बोलिए भगवान श्री कृष्ण की जय।।

गरूड़ जी का संशय और राम नाम का प्रभाव।।

 भगवान राम जी और अनुज लक्ष्मण जी को मेघनाथ ने नाग पाश में बाँध दिया ! नारद जी ने गरूड़ जी को बुलाने को कहाँ!  ऐसा ही किया भी गया ! गरूड़ जी आए और प्रभू को भ्राता सहित नाग पाश से मुक्त किया ! 


लीला प्रारम्भ होती है  ! गरूड़ जी मन ही मन आशंकित है "भगवान जी के   भृकुटी  विलास से जगत बनते और बिगड़ते है उन्हें क्या मेरी आवश्यकता हो सकती है साधारण नागों के पाश से मुक्त होने को ! अवश्य ही ये मेरे स्वामी नही ये कोई भी हो सकते है किंतु नारायण नही !


किंतु क्या ब्रहम्मा जी और  शिव जी भी नही पहचान पाए ! ये कैसे सम्भव है?

ये कैसी माया है ?"


गरूड़ जी ने नारद जी से पूछा "हे नारद जी ये कैसी माया है जो स्वयं नागों के राजाओं के भी राजा शेष नाग की शय्या पे विलास करते है जिनका छत्र सहस्त्र फ़नों वाले नाग है क्या उनको साधारण सा नाग पाश बाँध सकता है? ये कैसी माया है नारद जी  ! मेरा मन आशंकित है क्या राम सचमूच नारायण ही है ?"


नारद जी "हे गरूड़ देव ये माया तो मेरी समझ से भी परे है ! किंतु मुझे विश्वास है की राम जी श्री हरी ही है !"


गरूड़  जी "विश्वास का आधार तर्क होता है मुनिवर किंतु अभी तो सभी तर्क अतार्किक लग रहे है ! मेरी दुविधा का समाधान कीजिए !"


नारद जी "मैं अवश्य कर देता है पक्षिराज किंतु सत्य ये है आपके प्रश्नों का उत्तर मेरे पास नही आप ब्रहम्मा जी या स्वयं महादेव की शरण में जाइए !"


गरूड़ जी पहले ब्रहम्मा जी के पास गए किंतु वो केवल मुस्कुराते रहे और केवल इतना बोले "हे वैष्णव शिरोमणि ही पक्षी राज आपके प्रश्न का उत्तर महादेव के पास इंतज़ार कर रहा है ! आप अविलम्ब कैलाश पत्ती के दर्शन को जाइए !"


गरूड़ जी "जो आज्ञा" कह कर तुरंत कैलाश की ओर चल दिए !

शिव जी के दर्शन मिलते ही दण्डवत प्रणाम किया और कुछ न बोले !

भला सर्व अंतर्यामी को कुछ कहने की क्या आवश्यकता थी ! शंकर जी मुस्कुराते हुए गरूड़ जी से बोले "हे साधु क्या आप काग भुसुंडि जी को बुला के ला सकते है ?"

गरूड़ जी बोले "जी प्रभू आपकी आज्ञा शिरोधार्य !" और गरूड़ जी चल दिए!


हिमालय की गोद में एक निर्जन वन में काग कभुशुंडी को गरूड़ जी ने देखा जैसे ही वो थोड़ा नज़दीक गए उन्होंने देखा की समस्त  वृक्ष पक्षी पशु नृत्य कर रहे है अनेको साधु भी नर्तय कर रहे है और कागभुसुंडी जी नाच नाच के ताली बजा बजा कर भजन कर रहे है 

"राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम राम रामराम राम 


गरूड़ जी मतवाले से हो गए वो ज़ोर ज़ोर से नाचने लगे आँखों से आंसू बहने लगे ज़ोर ज़ोर की चिल्लाने लगे राम राम राम राम राम राम राम राम राम

वो बिलख बिलख कर रोने लगे ! गला इतना रुंध गया की राम भी न बोला जाए!


बिना कुछ समझाए बिना किसी सिद्धांत को समझे गरूड़ जी सब समझ गए ! वो समझ गए की जिनके नाम में ऐसा प्रभाव हो वो भला हरी के अतिरिक्त कौन हो सकते है !  

कितना अभागा हूँ मैं जो अपने स्वामी को नही पहचान पाया! धिक्कार है मुझ पर !

ग्लानि से भरी आत्मा के साथ वो शंकर जी के पास पोहोंचे और पश्चाताप का साधन पूछा !


शिव बोले "हे गरूड़ जी हे हरी के प्रिय सखा जिनकी माया का पार मैं, ब्रहम्मा, दुर्गा, लक्ष्मी आदि भी नही लगा सकते उनका आपको विस्मय में डाल देना कोई अचरज नहीं ! माया पति की माया में मोहित होकर ही तो ये सब प्रपंच हो रहा है  ! किंतु फिर भी यदि कोई ग्लानि शेष है तो राम का नाम जपो ये समस्त कल्मषों को धोने का सामर्थ्य रखता है काल चक्र को काटने वाला और महा माया की माया से छुटकारा दिलाने वाला है !"

सुनो पुकात

 *बक्श लो सतगुरु*🙏🏻🙇🏼‍♀️


*चोर-चोरी कर सब कुछ ले जा सकता हैं


मगर जो नायाब हीरा हैं वह हैं हमारा सतगुरु जोकि हमारे स्वयं के अंदर विराजमान हैं जिसको हमस कोई नहीं चुरा सकता जी जो हमारी पल-पल इंतजार कर रहा है कि कब आओगे और मेरी पुकार सुन भजन-सुमरन पर बैठोगे,

हम है कि अपने धंधो में फँस कर उनका कहना ही नहीं मानते और बार-बार चौरासी में आकर लिप्त हो जाते हैं l 

हमें मालिक ऐसी बुद्धि बक्शों जो हर-पल आपको याद कर भजन-सिमरन कर सकें. बक्श लो सतगुरु मुझ अ

🙏🙏🙏

🙏🙏

🙏🙏अपराधी जीव को जिसका तुम्हारे सिवा कोई नहीं है*

कोई नहीं हैं.


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

🌹परिवार 🌹

एक पार्क मे दो बुजुर्ग बैठे बातें कर रहे थे....


पहला - "मेरी एक पोती है, 

शादी के लायक है... 

BA किया है, 

नौकरी करती है, 

कद - 5"2 इंच है.. सुंदर है

कोई लडका नजर मे हो 

तो बताइएगा.."


दूसरा - "आपकी पोती को 

किस तरह का परिवार चाहिए...?"


पहला - "कुछ खास नहीं .. 

बस लडका MA /M.TECH किया हो, 

अपना घर हो, कार हो, 

घर मे एसी हो, 

अपने बाग बगीचा हो, 

अच्छा job, अच्छी सैलरी, 

कोई लाख रू. तक हो..."


दूसरा- "और कुछ...?"


पहला- "हाँ सबसे जरूरी बात.. 

अकेला होना चाहिए.."

मां-बाप,भाई-बहन नही होने चाहिए..

वो क्या है , बडे परिवार में 

लडाई झगड़े होते है..."


दूसरे बुजुर्ग की आँखें भर आई !

फिर आँसू पोछते हुए बोला- 

"मेरे एक दोस्त का पोता है !

उसके भाई-बहन नही है, 

मां बाप एक दुर्घटना मे चल बसे, 

अच्छी नौकरी है, 

डेढ़ लाख सैलरी है, गाड़ी है बंगला है, 

नौकर-चाकर है.."


पहला- "तो करवाओ ना रिश्ता पक्का.."


दूसरा- "मगर उस लड़के की भी 

यही शर्त है कि लडकी के भी मां-बाप,

भाई-बहन या कोई रिश्तेदार ना हो..."


कहते कहते उनका गला भर आया..

फिर बोले- "अगर आपका परिवार 

आत्महत्या कर ले तो बात बन सकती है.. आपकी पोती की शादी उससे हो जाएगी 

और वो बहुत सुखी रहेगी...."


पहला- "ये क्या बकवास है? 

हमारा परिवार क्यों करे आत्महत्या.. 

कल को उसकी खुशियों मे, 

दुःख मे कौन उसके साथ 

और उसके पास होगा..."


दूसरा- "वाह मेरे दोस्त!

खुद का परिवार, परिवार है 

और दूसरे का कुछ नही... 

मेरे दोस्त अपने बच्चों को 

परिवार का महत्व समझाओ, 

घर के बडे ,

घर के छोटे सभी अपनो के लिए जरूरी होते है... वरना इंसान खुशियों का 

और गम का महत्व ही भूल जाएगा, 

जिंदगी नीरस बन जाएगी..."


पहले वाले बुजुर्ग बेहद शर्मिंदगी के कारण कुछ नहीं बोल पाए...


दोस्तो !

परिवार है तो जीवन मे हर खुशी, 

खुशी लगती है !

अगर परिवार नहीं तो 

किससे अपनी खुशियाँ 

और गम बांटोगे...🤔


यह लघुकथा जो 

अज्ञात स्रोत से प्राप्त हुई...

मग़र दिल को छू गई...


साभार: ओमप्रकाश शर्मा

गुरु प्यारे का कर दीदार

 **राधास्वामी!!30-06-2021- आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-     


                                                          

 गुरु प्यारे का कर दीदारा, घट प्रीति जगाय।।टेक।।                                                           

  गुरु दर्शन की महिमा भारी। छिन में कोटिन पाप नसाय। जिव काज बनाय।१।                                                                            

बिरही जन कोइ जानें रीति। जस दरपन में दरस दिखाय। हिये रुप बसाय।२।                                                                              

   ऐसी लगन लगाव़े जो जन। छिन छिन रहें गुरु चरन समाय। घट आनंद पाय।३।                                                                      

  चरन भेद ले सुरत चढावें। दरशन रस ले रहें तृप्ताय। धुन शब्द सुनाय।४।                                

 मेहर करें गुरु राधास्वामी प्यारे। एक दिन लें निज चरन लगाय। धुर घर पहुँचाय।५।             

(प्रेमबानी-3-शब्द-16-पृ.सं.83,84)**


Tuesday, June 29, 2021

*महामृत्युंजय मंत्र

 **महामृत्युंजय मंत्र ऋग्वेद का एक श्लोक है.शिव को मृत्युंजय के रूप में समर्पित ये महान मंत्र ऋग्वेद में पाया जाता हैl


*प्रस्तुति:- कृष्ण मेहता*

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|| महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म। उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात् !!

|| संपुटयुक्त महा मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्‍बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्‍धनान् मृत्‍योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ !!

|| लघु मृत्‍युंजय मंत्र ||

ॐ जूं स माम् पालय पालय स: जूं ॐ।

किसी दुसरे के लिए जप करना हो तो-ॐ जूं स (उस व्यक्ति का नाम जिसके लिए अनुष्ठान हो रहा हो) पालय पालय स: जूं ॐ।

|| मन्त्र जप की विधि ||

महा मृत्युंजय मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख है और लघु मृत्युंजय मंत्र की 11 लाख है.मेरे विचार से तो कोई भी मन्त्र जपें,पुरश्चरण सवा लाख करें.इस मंत्र का जप रुद्राक्ष की माला पर सोमवार से शुरू किया जाता है.जप सुबह 12 बजे से पहले होना चाहिए,क्योंकि ऐसी मान्यता है की दोपहर 12 बजे के बाद इस मंत्र के जप का फल नहीं प्राप्त होता है.आप अपने घर पर महामृत्युंजय यन्त्र या किसी भी शिवलिंग का पूजन कर जप शुरू करें या फिर सुबह के समय किसी शिवमंदिर में जाकर शिवलिंग का पूजन करें और फिर घर आकर घी का दीपक जलाकर मंत्र का 11 माला जप कम से कम 90 दिन तक रोज करें या एक लाख पूरा होने तक जप करते रहें.अंत में हवन हो सके तो श्रेष्ठ अन्यथा 25 हजार जप और करें.

ग्रहबाधा,ग्रहपीड़ा,रोग,जमीन-जायदाद का विवाद,हानि की सम्भावना या धन-हानि हो रही हो,वर-वधू के मेलापक दोष,घर में कलह,सजा का भय या सजा होने पर,कोई धार्मिक अपराध होने पर और अपने समस्त पापों के नाश के लिए महामृत्युंजय या लघु मृत्युंजय मंत्र का जाप किया या कराया जा सकता है.

|| महा मृत्युंजय मंत्र का अक्षरशः अर्थ ||

त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों वाला

यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय

सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित

पुष्टि = एक सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता

वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है,स्वास्थ्य, धन, सुख में वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली

उर्वारुकम= ककड़ी

इव= जैसे, इस तरह

बंधना= तना

मृत्युर = मृत्यु से

मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें

मा= न

अमृतात= अमरता, मोक्ष

|| महा मृत्‍युंजय मंत्र का अर्थ ||

समस्‍त संसार के पालनहार, तीन नेत्र वाले शिव की हम अराधना करते हैं। विश्‍व में सुरभि फैलाने वाले भगवान शिव मृत्‍यु न कि मोक्ष से हमें मुक्ति दिलाएं।

|| इस मंत्र का विस्तृत रूप से अर्थ ||

हम भगवान शंकर की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो प्रत्येक श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं, जो सम्पूर्ण जगत का पालन-पोषण अपनी शक्ति से कर रहे हैं,उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, जिससे मोक्ष की प्राप्ति हो जाए.जिस प्रकार एक ककड़ी अपनी बेल में पक जाने के उपरांत उस बेल-रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाती है, उसी प्रकार हम भी इस संसार-रूपी बेल में पक जाने के उपरांत जन्म-मृत्यु के बन्धनों से सदा के लिए मुक्त हो जाएं, तथा आपके चरणों की अमृतधारा का पान करते हुए शरीर को त्यागकर आप ही में लीन हो जाएं.

|| महामृत्युंजय मंत्र का प्रभाव ||

महामृत्युंजय मंत्र का प्रामाणिक प्रभाव दर्शाने वाली एक प्राचीन धार्मिक कथा है.इस कथा के अनुसार-बड़ी तपस्या से ऋषि मृकण्ड के पुत्र हुआ.कितु ज्योतिर्विदों ने उस शिशु के लक्षण देखकर ऋषि के हर्ष को चिंता में परिवर्तित कर दिया.उन्होंने कहा यह बालक अल्पायु है.इसकी आयु केवल बारह वर्ष है.मृकण्ड ऋषि ने अपनी पत्नी को आश्वत किया-देवी, चिंता मत करो.विधाता जीव के कर्मानुसार ही आयु दे सकते हैं, कितु मेरे स्वामी समर्थ हैं.भाग्यलिपि को स्वेच्छानुसार परिवर्तित कर देना भगवान शिव के लिए विनोद मात्र है.ऋषि मृकण्ड के पुत्र मार्कण्डेय बढऩे लगे.शैशव बीता और कुमारावस्था के प्रारंभ में ही पिता ने उन्हें शिव मंत्र की दीक्षा तथा शिवार्चना की शिक्षा दी.पुत्र को उसका भविष्य बता समझा दिया कि पुरारि ही उसे मृत्यु से बचा सकते हैं.माता-पिता तो दिन गिन रहे थे.बारह वर्ष आज पूरे होंगे और पुत्र पर काल घात करेगा.

मार्कण्डेय मंदिर में बैठे थे.रात्रि से ही और उन्होंने मृत्युंजय मंत्र की शरण ले रखी है- त्र्यम्बक यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धन्म।उर्वारुकमिव बन्धनामृत्येर्मुक्षीय मामृतात्।।सप्रणव बीजत्रय-सम्पुटित महामृत्युंजय मंत्र चल रहा था.काल किसी की भी प्रतीक्षा नहीं करता.यमराज के दूत समय पर आए और संयमनी लौट गए.उन्होंने अपने स्वामी यमराज से जाकर निवेदन किया- हम मार्कण्डेय तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए.इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लाऊंगा.दण्डधर यमराज जी महिषारूढ़ हुए और क्षण भर में मार्कण्डेय के पास पहुंच गए.बालक मार्कण्डेय ने उन कज्जल कृष्ण, रक्तनेत्र पाशधारी को देखा तो सम्मुख की लिंगमूर्ति से लिपट गया.हुम्..एक अद्भुत अपूर्व हुंकार और मंदिर, दिशाएं जैसे प्रचण्ड प्रकाश से चकाचौंथ हो गईं.शिवलिंग से तेजोमय त्रिनेत्र गंगाधर चन्द्रशेखर प्रकट हो गए थे और उन्होंने त्रिशूल उठा लिया था और यमराज से कहा कि तुम मेरे आश्रित पर पाश उठाने का साहस केसे करते हो?

यमराज ने डांट पडऩे से पूर्व ही हाथ जोडक़र मस्तक झुका लिया था और कहा कि मैं आप का सेवक हूं.कर्मानुसार जीव को इस लोक से ले जाने का निष्ठुर कार्य प्रभु ने इस सेवक को दिया है.भगवान चंद्रशेखर (शिव जी) ने कहा कि यह संयमनी नहीं जाएगा.इसे मैंने अमरत्व दिया है। मृत्युंजय प्रभु की आज्ञा को यमराज अस्वीकार केसे कर सकते थे? यमराज खाली हाथ लौट गए.मार्कण्डेय ने यह देख लिया और भगवान शिव जी को प्रणाम कर उन्होंने कहा-उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् अर्थात वृन्तच्युत खरबूजे के समान मृत्यु के बन्धन से छुड़ाकर मुझे अमृतत्व प्रदान करें.मंत्र के द्वारा चाहा गया वरदान उस का सम्पूर्ण रूप से उसी समय मार्कण्डेय को प्राप्त हो गया.भाग्यलेख-वह औरों के लिए अमित होगा, कितु आशुतोष के आश्रितों के लिए भाग्येलख क्या? भगवान ब्रह्मा भाग्यविधाता स्वयं भगवती पार्वती से कहते हैं-बावरो रावरो नाह भवानी.

मेरे विचार से महामृत्युंजय मंत्र शोक,मृत्यु भय,अनिश्चता,रोग,दोष का प्रभाव कम करने में,पापों का सर्वनाश करने में अत्यंत लाभकारी है.महामृत्युंजय मंत्र का जाप करना या करवाना सबके लिए और सदैव मंगलकारी है,परन्तु ज्यादातर तो यही देखने में आता है कि परिवार में किसी को असाध्य रोग होने पर अथवा जब किसी बड़ी बीमारी से उसके बचने की सम्भावना बहुत कम होती है,तब लोग इस मंत्र का जप अनुष्ठान कराते हैं.महामृत्युंजय मंत्र का जाप अनुष्ठान होने के बाद यदि रोगी जीवित नहीं बचता है तो लोग निराश होकर पछताने लगे हैं कि बेकार ही इतना खर्च किया.यहांपर मैं एक बात कहना चाहूंगा कि मेरे विचार से तो इस मंत्र का मूल अर्थ ही यही है कि हे महादेव..या तो रोगी को ठीक कर दो या तो फिर उसे जीवन मरण के बंधनों से मुक्त कर दो.अत: इच्छानुसार फल नहीं मिलने पर पछताना या कोसना नहीं चाहिए.अंत में एक बात और कहूँगा कि महामृत्युंजय मन्त्र का अशुद्ध उच्चारण न करें और महा मृत्युंजय मन्त्र जपने के बाद में इक्कीस बार गायत्री मन्त्र का जाप करें ताकि महामृत्युंजय मन्त्र का अशुद्ध उच्चारण होने पर भी पर अनिष्ट होने का भय न रहे.जगत के स्वामी बाबा भोलेनाथ और माता पार्वती आप सबकी मनोकामना पूर्ण करें.

किस काम की दौलत

 *आज का अमृत/ *अनमोल दौलत*

🔸🔸🔹🔸🔸

प्रस्तुति - कृष्ण मेहता


एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके( एकतरह शाही खजाना ) आबादी से बाहर जंगल एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसकेएक खास मंत्री के पास थी इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला , तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था , और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था .


उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा, उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया  . उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ , और दरवाजे के पास आया तो ये क्या ...दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था . उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था .


राजा चिल्लाता रहा , पर अफसोस कोई ना आया वो थक हार के खजाने को देखता रहा अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था , पागलो सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरो के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो.. फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो की तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया .


जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया , वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था .


राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया . उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा  को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया , उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है , और उसकी लाश को कीड़े मकौड़े खा रहे थे . राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था...ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी...


यही सच है , आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी , चाहे आप कितनी बेईमानी से हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा ..इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है , उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत.. जो आपके सदैव काम आयेगी।

*🌹

Monday, June 28, 2021

🌼🌼राधा का विवाह कृष्ण से क्यों नहीं हुआ🌼🌼

 ब्रज है राधे-राधे की भूमि और मथुरा है श्री कृष्ण जन्मभूमि। मथुरा, वृंदावन और गोकुल श्री कृष्ण के प्रारंभिक जीवन का हिस्सा है। सभी भक्त पूरे विश्व में राधा और कृष्ण का नाम एक सांस में लेते हैं और कहते हैं राधे-कृष्ण। इससे यह साफ पता चलता है कि दोनों अलग नहीं एक है।

   भगवान विष्णु ने पृथ्वी पर जन्म लिया कंस को मारने के लिए और साथ ही उन्होंने उसी युग में महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन के माध्यम से पूरे धरती के लोगों को भगवत गीता का पाठ पढ़ाया। पृथ्वी लोक में कृष्ण का विवाह राधा से नहीं हुआ बल्कि उनका विवाह रुक्मणी और सत्यभामा के साथ हुआ। इसलिए भक्त हमेशा सोच में रहते हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ

   इसके पीछे कई तथ्य और कहानियां कही गई है-

   कई शास्त्रों में माना गया है कि राधा और कृष्ण कभी अलग थे ही नहीं, वह दोनों एक ही थे। तो एक ही व्यक्ति कैसे विवाह कर सकते थे।

   एक दूसरी कथा में माना गया है, राधा तो जीवात्मा थी और कृष्ण तो परमात्मा। राधा का निस्वार्थ प्रेम कृष्ण के प्रति एक परम निष्ठा और प्रेम था। राधा ने अपना सब कुछ कृष्ण पर निछावर कर दिया था यानी वह एक हो गए थे। ऐसे मिलन को विवाह से ऊपर माना गया है।

   कई लोगों का मानना है श्रीधामा के अभिशाप के कारण कृष्ण और राधा का विवाह नहीं हो पाया। श्रीधामा श्री कृष्ण का एक भक्त और मित्र था जो भक्ति को प्रेम से अधिक मानता था। इसलिए उसने क्रोध में आकर एक दिन राधा को श्राप दिया कि वह कृष्ण से जुड़े सभी यादों को भुला देगी और पृथ्वी लोक में 100 वर्ष रहेगी। इस कारण ब्रह्मा ने कृष्ण को विष्णु के 9 अवतार के रूप में जाने को कहा और राधा को शाप से मुक्त कराने का निवेदन किया। इसलिए अभी राधा कृष्ण का विवाह नहीं हो पाया।

    एक और कहानी में माना गया है की राधा ने पृथ्वी पर प्रेम का महत्व और सही अर्थ बताने के लिए जन्म लिया था। जो आप राधा और कृष्ण के प्रेम भावना की शक्ति के माध्यम से देख सकते हैं। साथी राधा कृष्ण ने यह भी धरती में जन्म लेकर बताया कि प्रेम को किसी विवाह रूपी समझौते में बांधकर नहीं रखा जा सकता। प्रेम में केवल पाना ही नहीं, त्याग और समर्पण मायने रखता है, यह सब आदर्श स्थापित करने के लिए दोनों ने धरती पर अवतार लिया। 


संगीत है श्रीकृष्ण, सुर है श्रीराधे

शहद है श्रीकृष्ण, मिठास है श्रीराधे

पूर्ण है श्रीकृष्ण, परिपूर्ण है श्रीराधे

आदि है श्रीकृष्ण, अनंत है श्रीराधे।।


💕💛 जय श्री राधे कृष्ण 💛💕

दर्शन राधास्वामी की.....,.

 राधास्वामी!! 29-06-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला पहला पाठ:-        

                                  

  दर्द दुखी मैं बिरहिन भारी। दर्शन की मोहि प्यास करारी।।                                     

  दर्शन राधास्वामी छिन छिन चाहूँ। बार बार उन पर बलि जाऊँ।।                                         

वह तो ताड मार फटकारें। मैं चरनन पर सीस चढाऊँ।।                                             

 निरधन निरबल क्रोधिन मानी। मैं गुन अपने अब पहिचानी।।                                  

  स्वामी दीन दयाल हमारे। मो सी अधम को लीन्ह उबारे।।                                               

मैं जिद्दन दम दम हट करती। मौज हुकम में चित नहिं धरती।।                                     

दया करो राधास्वामी प्यारे। औगुन बख्शों लेवो उबारे।।


(सारबचन-शब्द-2-पृ.सं.545,545)

अनमोल दौलत / कृष्ण मेहता

 कृष्ण मेहता: 🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 29 जून 2021*

⛅ *दिन - मंगलवार*

⛅ *विक्रम संवत - 2078 (गुजरात - 2077)*

⛅ *शक संवत - 1943*

⛅ *अयन - दक्षिणायन*

⛅ *ऋतु - वर्षा* 

⛅ *मास - आषाढ़ (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - ज्येष्ठ)*

⛅ *पक्ष - कृष्ण* 

⛅ *तिथि - पंचमी दोपहर 01:22 तक तत्पश्चात षष्ठी*

⛅ *नक्षत्र - शतभिषा 30 जून रात्रि 01:02 तक तत्पश्चात पूर्व भाद्रपद*

⛅ *योग - प्रीति दोपहर 12:21 तक तत्पश्च


🌷 *किसीको मिर्गी की तकलीफ हो तो* 🌷

➡ *किसीको मिर्गी की तकलीफ है तो २ चम्मच प्याज का रस पिलाकर ऊपर से आधा चम्मच भुना हुआ जीरा खिला दो | मिर्गी की बीमारी में ५ – १० दिन में लाभ होगा |*

🙏🏻 

           🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *क्रोध आये तो* 🌷

😡 *क्रोध दूर करने का एक सरल प्रयोग भी है ,

🤛🏻 *‘क्रोध आये तो मुट्ठियाँ बंद कर लो | दोनों हाथों की मुट्टियाँ ऐसे बंद करें कि नखों के दबाव से हथेलियाँ दबें | इससे क्रोध दूर होने में मदद मिलेगी |’*

🙏🏻 *

         🌞 *~  हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *वास्तु शास्त्र* 🌷

🍽 *बर्तन*

*कई लोग घर में टूटे-फूटे बर्तन भी रखे रहते हैं जो कि अशुभ प्रभाव देते हैं। शास्त्रों के अनुसार घर में टूटे-फूटे बर्तन नहीं रखना चाहिए। यदि ऐसे बर्तन घर में रखे जाते हैं तो इससे महालक्ष्मी असप्रसन्न होती हैं और दरिद्रता का प्रवेश हमारे घर में हो सकता है। टू

🙏🏻 


           🌞 *~ हिन्दू पंचाग ~* 🌞


🙏🍀🌻🌹🌸 / *अनमोल दौलत*

🔸🔸🔹🔸🔸

एक राजा था जिसने ने अपने राज्य में क्रूरता से बहुत सी दौलत इकट्ठा करके( एकतरह शाही खजाना ) आबादी से बाहर जंगल एक सुनसान जगह पर बनाए तहखाने मे सारे खजाने को खुफिया तौर पर छुपा दिया था खजाने की सिर्फ दो चाबियां थी एक चाबी राजा के पास और एक उसकेएक खास मंत्री के पास थी इन दोनों के अलावा किसी को भी उस खुफिया खजाने का राज मालूम ना था एक रोज़ किसी को बताए बगैर राजा अकेले अपने खजाने को देखने निकला , तहखाने का दरवाजा खोल कर अंदर दाखिल हो गया और अपने खजाने को देख देख कर खुश हो रहा था , और खजाने की चमक से सुकून पा रहा था .


उसी वक्त मंत्री भी उस इलाके से निकला और उसने देखा की खजाने का दरवाजा खुला है वो हैरान हो गया और ख्याल किया कि कही कल रात जब मैं खजाना देखने आया तब शायद खजाना का दरवाजा खुला रह गया होगा, उसने जल्दी जल्दी खजाने का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और वहां से चला गया  . उधर खजाने को निहारने के बाद राजा जब संतुष्ट हुआ , और दरवाजे के पास आया तो ये क्या ...दरवाजा तो बाहर से बंद हो गया था . उसने जोर जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया पर वहां उनकी आवाज सुननेवाला उस जंगल में कोई ना था .


राजा चिल्लाता रहा , पर अफसोस कोई ना आया वो थक हार के खजाने को देखता रहा अब राजा भूख और पानी की प्यास से बेहाल हो रहा था , पागलो सा हो गया.. वो रेंगता रेंगता हीरो के संदूक के पास गया और बोला ए दुनिया के नायाब हीरो मुझे एक गिलास पानी दे दो.. फिर मोती सोने चांदी के पास गया और बोला ए मोती चांदी सोने के खजाने मुझे एक वक़्त का खाना दे दो..राजा को ऐसा लगा की हीरे मोती उसे बोल रहे हो की तेरे सारी ज़िन्दगी की कमाई तुझे एक गिलास पानी और एक समय का खाना नही दे सकती..राजा भूख से बेहोश हो के गिर गया .


जब राजा को होश आया तो सारे मोती हीरे बिखेर के दीवार के पास अपना बिस्तर बनाया और उस पर लेट गया , वो दुनिया को एक पैगाम देना चाहता था लेकिन उसके पास कागज़ और कलम नही था .


राजा ने पत्थर से अपनी उंगली फोड़ी और बहते हुए खून से दीवार पर कुछ लिख दिया . उधर मंत्री और पूरी सेना लापता राजा  को ढूंढते रहे पर बहुत दिनों तक राजा ना मिला तो मंत्री राजा के खजाने को देखने आया , उसने देखा कि राजा हीरे जवाहरात के बिस्तर पर मरा पड़ा है , और उसकी लाश को कीड़े मोकड़े खा रहे थे . राजा ने दीवार पर खून से लिखा हुआ था...ये सारी दौलत एक घूंट पानी ओर एक निवाला नही दे सकी...


यही सच है , आखिरी समय आपके साथ आपके कर्मो की दौलत जाएगी , चाहे आप कितनी बेईमानी से हीरे पैसा सोना चांदी इकट्ठा कर लो सब यही रह जाएगा ..इसीलिए जो जीवन आपको प्रभु ने उपहार स्वरूप दिया है , उसमें अच्छे कर्म लोगों की भलाई के काम कीजिए बिना किसी स्वार्थ के ओर अर्जित कीजिए अच्छे कर्मो की अनमोल दौलत.. जो आपके सदैव काम आयेगी।

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महाकाल के तेवर समझें, दण्ड के नहीं-पारितोषिक के पात्र बनें🔥*

साहस ने हमें पुकारा है। समय ने, युग ने, कर्तव्य ने, उत्तरदायित्व ने, विवेक ने, पौरुष ने हमें पुकारा है। यह पुकार अनसुनी न की जा सकेगी। आत्मनिर्माण के लिए, नव निर्माण के लिए हम काँटों से भरे रास्तों का स्वागत करेंगे और आगे बढ़ेंगे। लोग क्या कहते और क्या करते हैं, इसकी चिन्ता कौन करे?


अपनी आत्मा ही मार्गदर्शन के लिए पर्याप्त है। लोग अँधेरे में भटकते हैं-भटकते रहें, हम अपने विवेक के प्रकाश का अवलम्बन कर स्वत: ही आगे बढ़ेंगे। कौन विरोध करता है, कौन समर्थन, इसकी गणना कौन करे? अपनी अन्तरात्मा, अपना साहस अपने साथ है। सत्य के लिए, धर्म के लिए, न्याय के लिए हम एकाकी आगे बढ़ेंगे और वही करेंगे, जो करना अपने जैसे सजग व्यक्ति के लिए उचित और उपयुक्त है।


परिवर्तन के लिए समर्थ साहस की अपेक्षा की जाती है। संसार में साहस मिट गया है, यौवन की उमंगें भीरुता ने ग्रस ली हैं, हम स्वयं को इस कलंक से कलंकित न होने देंगे और कोई न सही हम अकेले ही आगे बढ़ेंगे, बढ़ रहे हैं, वहाँ तक बढ़ते जायेंगे जहाँ तक की प्रस्तुत अवांछनीय परिस्थितियों, विडम्बनाओं और विचारणाओं का अन्त न हो जायेगा। युग को बदलना है इसलिए अपने दृष्टिकोण और क्रियाकलाप का परिवर्तन साहस या दुस्साहस पूर्वक करना ही होगा। इसके अतिरिक्त कोई मार्ग नहीं है।


हम युग की पुकार का बार-बार उद्घोष कर रहे हैं। उचित है कि समय रहते इस युग पुकार को सुन लिया जाय। न सुना जायेगा तो हम अधिक क्या कहें सिर्फ चेतावनी भर देते हैं कि अगले ही दिनों महाकाल प्रतिभाओं को व्यक्तिगत स्वार्थ साधना में जुते रहने से मुक्त करा लेगा। कोई धन का मनमाना अपव्यय न कर सकेगा। किसी की बुद्धि व्यक्तिगत तृष्णा की पूर्ति में न लगी रहने पायेगी, किसी का बल वासना की पूर्ति में संलग्न न रहने दिया जायेगा।


*💧नोट करने वाले नोट कर लें, जिसे हम स्वेच्छा एवं सज्जनता से अनुदान के रूप में माँग रहे हैं, यदि वह लोगों से देते न बना, तो वह दिन दूर नहीं जबकि हर कृपण से इन दैवी विभूतियों को महाकाल लात मारकर उगलवा लेगा और तब बहुत देर तक कसक-कराह भरा दर्द सहना पड़ेगा। आज वह त्याग, उदारता, आत्मसंतोष और ऐतिहासिक यश के साथ किया जा सकने का अवसर है।💧*


अगले दिनों संसार में एक भी व्यक्ति अमीर न रह सकेगा। पैसा बँट जायेगा, पूँजी पर समाज का नियंत्रण होगा और हम सभी केवल निर्वाह मात्र के अर्थ साधन उपलब्ध कर सकेंगे।


बुद्ध के अनुयायियों ने उत्सर्ग की हवा बहायी, तो युवक-युवती, यौवन और वैभव का सुख छोड़कर परमार्थ प्रयोजन के लिए भिक्षुक-भिक्षुणी का कष्ट साध्य जीवन जीने के लिए तत्पर हो गये। गाँधी की आँधी चली तो आवश्यक कामों और रंगीन सपनों को पैरों तले कुचलते हुए लाखों मनस्वी जेल यातनाएँ और फाँसी, गोली खाने के लिए चल पड़े। उस समय लोगों ने उन्हें भले ही नासमझ कहा हो; किन्तु इतिहास साक्षी है कि वह निर्णय उनके लिए सौभाग्य एवं सुयश का द्वार खोल गया, वे धन्य हो गये।


इन दिनों भी महाकाल प्रतिभाओं को युग-नेतृत्व के लिए पुकार रहा है। सुयोग एवं सौभाग्य का अनुपम अवसर सामने है। वासना, तृष्णा एवं अहंता के कुचक्र को तोड़कर जो योद्धा-सृजन सैनिक आगे बढ़ेंगे, वे दिव्य अनुदानों के भागीदार बनेंगे। जो उनसे चिपके रहने का प्रयास करेंगे, वे दुहरी हानि उठायेंगे। महाकाल उन कुचक्रों को अपने भीषण प्रहार से तोड़ेगा, तब उससे चिपके रहने वालों पर क्या बीतेगी, सम्भवत: इसका अनुमान भी कोई लगा न पाये।


*💥अच्छा हो लोग विवेक की बात स्वीकार करें, भीषण पश्चाताप और पीड़ा से बचें, अनुपम सौभाग्य, सुयश के भागीदार बनें।💥*


*🔥—पं०श्रीराम शर्मा आचार्य🔥*   

  ‘‘युग की पुकार अनसुनी न करें - युग की पुकार जिसे सुना ही जाय’’ पुस्तक से

भगवान का घर*/ प्रस्तुति - कृष्ण मेहता

 *कल दोपहर में मैं बैंक में गया था। वहाँ एक बुजुर्ग भी उनके काम से आये थे। वहाँ वह कुछ काम की बात ढूंढ रहे थे। मुझे लगा शायद उन्हें पेन चाहिये। इसलिये उनसे पुछा तो, वह बोले "बिमारी के कारण मेरे हाथ कांप रहे हैं और मुझे पैसे निकालने की स्लीप भरनी हैं। उसके लिये मैं देख रहा हूँ कि किसी की मदद मिल जाये तो अच्छा रहता।"

   मैं बोला "आपको कोई हर्ज न हो तो मैं आपकी स्लीप भर दूँ क्या?"

   उनकी परेशानी दूर होती देखकर उन्होंने मुझे स्लीप भरने की अनुमति दे दी। मैंने उनसे पुछकर स्लीप भर दी।

   रकम निकाल कर उन्होंने मुझसे पैसे गिनने को कहा। मैंने पैसे गिनकर उन्हें वापस कर दिये।

  मेरा और उनका काम लगभग साथ ही समाप्त हुआ तो, हम दोनों एक साथ ही बैंक से बाहर आ गये तो, वह बोले "साॅरी तुम्हें थोडा कष्ट तो होगा। परन्तु मुझे रिक्षा करवा दोगे क्या? भरी दोपहरिया में रिक्षा मिलना कष्टकारी होता हैं।"

मैं बोला "मुझे भी उसी तरफ जाना हैं। मैं तुम्हें कार से घर छोड दूँ तो चलेगा क्या?" 

वह तैयार हो गये। हम उनके घर पहूँचे। घर क्या बंगला कह सकते हो। 60' × 100' के प्लाट पर बना हुआ। घर में उनकी वृद्ध पत्नी थी। वह थोडी डर गई कि इनको कुछ हो तो नहीं गया जिससे उन्हें छोडने एक अपरिचित व्यक्ति घर तक आया हैं। फिर उन्होंने पत्नी के चेहरे पर आये भावों को पढकर कहा कि" चिंता की कोई बात नहीं। यह मुझे छोडने आये हैं।"

   फिर हमारी थोडी बातचीत हुई। उनसे बातचीत में वह बोले "इस *भगवान के घर* में हम दोनों पति-पत्नी ही रहते हैं। हमारे बच्चे विदेश में रहते हैं।" 

   मैंने जब उन्हें *भगवान के घर* के बारे में पुछा तो कहने लगे

   "हमारे घर में *भगवान का घर* कहने की पुरानी परंपरा हैं। इसके पीछे की भावना हैं कि यह घर भगवान का हैं और हम उस घर में रहते हैं। लोग कहते हैं कि *घर हमारा और भगवान हमारे घर में रहते हैं।*"

   मैंने विचार किया कि, दोनों कथनों में कितना अंतर हैं। तदुपरांत वह बोले...

  " भगवान का घर बोला तो अपने से कोई नकारात्मक कार्य नहीं होते हमेशा सदविचारों से ओत प्रेत रहते हैं।"

 बाद में मजाकिया लहजे में बोले ...

  " लोग मृत्यु उपरान्त भगवान के घर जाते हैं परन्तु हम तो जीते जी ही भगवान के घर का आनंद ले रहे हैं।"

   यह वाक्य अर्थात ही जैसे भगवान ने दिया कोई प्रसाद ही हैं।  उन बुजुर्ग को घर छोडने की बुद्धि शायद भगवान ने ही मुझे दी होगी। 

   *घर भगवान का और हम उनके घर में रहते हैं*


   यह वाक्य बहुत देर तक मेरे दिमाग में घुमता रहा। सही में कितने अलग विचार थे यह। जैसे विचार वैसा आचार। इसलिये वह उत्तम होगा ही इसमें कोई शंका नहीं,।

🙏🙏

नटवर नंद गोपाल की सुनी अनसुनी बातें मोहक प्रसंग

 देवों में सबसे सुंदरतम भगवान श्री कृष्ण के जीवन की कई बातें अनजानी और रहस्यमयी है आइए जानें 24 अनजाने तथ्य...


प्रस्तुति -+कृष्ण मेहता 


1. भगवान् श्री कृष्ण के खड्ग का नाम नंदक, गदा का नाम कौमौदकी और शंख का नाम पांचजन्य था जो गुलाबी रंग का था।


 2. भगवान् श्री कृष्ण के परमधामगमन के समय ना तो उनका एक भी केश श्वेत था और ना ही उनके शरीर पर कोई झुर्री थीं।


3.भगवान् श्री कृष्ण के धनुष का नाम शारंग व मुख्य आयुध चक्र का नाम सुदर्शन था। वह लौकिक, दिव्यास्त्र व देवास्त्र तीनों रूपों में कार्य कर सकता था उसकी बराबरी के विध्वंसक केवल दो अस्त्र और थे पाशुपतास्त्र ( शिव, कॄष्ण और अर्जुन के पास थे) और प्रस्वपास्त्र ( शिव, वसुगण, भीष्म और कृष्ण के पास थे)।


4. भगवान् श्री कृष्ण की परदादी 'मारिषा' व सौतेली मां रोहिणी (बलराम की मां) 'नाग' जनजाति की थीं।

5. भगवान श्री कृष्ण से जेल में बदली गई यशोदापुत्री का नाम एकानंशा था, जो आज विंध्यवासिनी देवी के नाम से पूजी जातीं हैं।


6. भगवान् श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का वर्णन महाभारत, हरिवंशपुराण, विष्णुपुराण व भागवतपुराण में नहीं है। उनका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण, गीत गोविंद व प्रचलित जनश्रुतियों में रहा है।


7. जैन परंपरा के मुताबिक, भगवान श्री कॄष्ण के चचेरे भाई तीर्थंकर नेमिनाथ थे जो हिंदू परंपरा में घोर अंगिरस के नाम से प्रसिद्ध हैं।


8. भगवान् श्री कृष्ण अंतिम वर्षों को छोड़कर कभी भी द्वारिका में 6 महीने से अधिक नहीं रहे।


9. भगवान श्री कृष्ण ने अपनी औपचारिक शिक्षा उज्जैन के संदीपनी आश्रम में मात्र कुछ महीनों में पूरी कर ली थी।


10. ऐसा माना जाता है कि घोर अंगिरस अर्थात नेमिनाथ के यहां रहकर भी उन्होंने साधना की थी।


11. प्रचलित अनुश्रुतियों के अनुसार, भगवान श्री कृष्ण ने मार्शल आर्ट का विकास ब्रज क्षेत्र के वनों में किया था। डांडिया रास का आरंभ भी उन्हीं ने किया था।


12. कलारीपट्टु का प्रथम आचार्य कृष्ण को माना जाता है। इसी कारण नारायणी सेना भारत की सबसे भयंकर प्रहारक सेना बन गई थी।


13. भगवान श्रीकृष्ण के रथ का नाम जैत्र था और उनके सारथी का नाम दारुक/ बाहुक था। उनके घोड़ों (अश्वों) के नाम थे शैव्य, सुग्रीव, मेघपुष्प और बलाहक।


14. भगवान श्री कृष्ण की त्वचा का रंग मेघश्यामल था और उनके शरीर से एक मादक गंध निकलती थी।


15. भगवान श्री कृष्ण की मांसपेशियां मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जातीं थीं, इसलिए सामान्यतः लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था ठीक ऐसे ही लक्ष्ण कर्ण व द्रौपदी के शरीर में देखने को मिलते थे।


16. जनसामान्य में यह भ्रांति स्थापित है कि अर्जुन सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे, परंतु वास्तव में कृष्ण इस विधा में भी सर्वश्रेष्ठ थे और ऐसा सिद्ध हुआ मद्र राजकुमारी लक्ष्मणा के स्वयंवर में जिसकी प्रतियोगिता द्रौपदी स्वयंवर के ही समान परंतु और कठिन थी।


17. यहां कर्ण व अर्जुन दोंनों असफल हो गए और तब श्री कॄष्ण ने लक्ष्यवेध कर लक्ष्मणा की इच्छा पूरी की, जो पहले से ही उन्हें अपना पति मान चुकीं थीं।


18. भगवान् श्रीकृष्ण ने कई अभियान और युद्धों का संचालन किया था, परंतु इनमे तीन सर्वाधिक भयंकर थे। 1- महाभारत, 2- जरासंध और कालयवन के विरुद्ध 3- नरकासुर के विरुद्ध


19. भगवान् श्री कृष्ण ने केवल 16 वर्ष की आयु में विश्वप्रसिद्ध चाणूर और मुष्टिक जैसे मल्लों का वध किया। मथुरा में दुष्ट रजक के सिर को हथेली के प्रहार से काट दिया।


20. भगवान् श्री कृष्ण ने असम में बाणासुर से युद्ध के समय भगवान शिव से युद्ध के समय माहेश्वर ज्वर के विरुद्ध वैष्णव ज्वर का प्रयोग कर विश्व का प्रथम जीवाणु युद्ध किया था।


21. भगवान् श्री कृष्ण के जीवन का सबसे भयानक द्वंद्व युद्ध सुभुद्रा की प्रतिज्ञा के कारण अर्जुन के साथ हुआ था, जिसमें दोनों ने अपने अपने सबसे विनाशक शस्त्र क्रमशः सुदर्शन चक्र और पाशुपतास्त्र निकाल लिए थे। बाद में देवताओं के हस्तक्षेप से दोनों शांत हुए।


22. भगवान् श्री कृष्ण ने 2 नगरों की स्थापना की थी द्वारिका (पूर्व में कुशावती) और पांडव पुत्रों के द्वारा इंद्रप्रस्थ (पूर्व में खांडवप्रस्थ)।


23. भगवान् श्री कृष्ण ने कलारिपट्टू की नींव रखी जो बाद में बोधिधर्मन से होते हुए आधुनिक मार्शल आर्ट में विकसित हुई।


24. भगवान् श्री कृष्ण ने श्रीमद्भगवतगीता के रूप में आध्यात्मिकता की वैज्ञानिक व्याख्या दी, जो मानवता के लिए आशा का सबसे बड़ा संदेश थी, है और सदैव रहेगी।


🚩🚩💞💞जय श्री राधा माधव💞💞🚩🚩🙏🙏

---जिंदगी क्या हैं ?---*/ प्रस्तुति - बीणा शर्मा

   *एक बार समुद्र के किनारे एक लहर आई और एक बच्चे की चप्पल को अपने साथ बहाकर ले गई बच्चे ने उंगली से रेत पर लिखा*

*समुंद्र चोर है।* 


*उसी समुंदर के दूसरे किनारे पर कुछ मछुआरों ने खूब सारी मछली पकड़ी और एक मछुआरे ने रेत पर लिखा*

*समुंद्र पालनहार हैं।*


*एक युवक समुंदर में डूबकर मर गया ,उसकी पत्नी ने रेत पर लिखा*

*समुंद्र हत्यारा हैं।*


*वही एक किनारे पर एक भिखारी रेत पर टहल रहा था उसे लहर के साथ तैर कर आया एक मोती मिला उसने रेत पर लिखा*

*समुंद्र दानी हैं।*


*अचानक एक बड़ी लहर आई और सारा लिखा मिटा कर चली गई लोग समुद्र के बारे में कुछ भी कहें,लेकिन*


*विशाल समुद्र अपनी लहरों में मस्त रहता हैं अपना क्रोध और अपनी शांति अपने हिसाब से तय करता हैं।*


*अगर विशाल समुद्र बनना है तो किसी के निर्णय पर ध्यान ना दें*,


*जो करना है अपने हिसाब से करें,जो गुजर गया उसकी चिंता ना करें हार -जीत, सुख-दुख, खोना और पाना इन सबके चलते मन विचलित ना करें।*


*अगर जिंदगी सुख और शांति से भरी होती तो इंसान जन्म लेते समय रोता नहीं,*

*जन्म लेते समय रोना और मर कर रुलाना इसी के बीच के समय को संघर्ष कहते हैं।*


*कुछ जरूरतें पूरी*

*कुछ ख्वाहिशें अधूरी*

*बस---*

*इसी का नाम जिंदगी है।*


*समझदारी से जिन्दगी जीएं।*



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भाग्य और कमाई

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एक आदमी ने नारदमुनि से पूछा मेरे भाग्य में कितना धन है...

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नारदमुनि ने कहा - भगवान विष्णु से पूछकर कल बताऊंगा...

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नारदमुनि ने कहा- 1 रुपया रोज तुम्हारे भाग्य में है...

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आदमी बहुत खुश रहने लगा...

उसकी जरूरते 1 रूपये में पूरी हो जाती थी...

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एक दिन उसके मित्र ने कहा में तुम्हारे सादगी जीवन और खुश देखकर बहुत प्रभावित हुआ हूं और अपनी बहन की शादी तुमसे करना चाहता हूँ...

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आदमी ने कहा मेरी कमाई 1 रुपया रोज की है इसको ध्यान में रखना...

इसी में से ही गुजर बसर करना पड़ेगा तुम्हारी बहन को...

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मित्र ने कहा कोई बात नहीं मुझे रिश्ता मंजूर है...

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अगले दिन से उस आदमी की कमाई 11 रुपया हो गई...

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उसने नारदमुनि को बुलाया की हे मुनिवर मेरे भाग्य में 1 रूपया लिखा है फिर 11 रुपये क्यो मिल रहे है...??

:

नारदमुनि ने कहा - तुम्हारा किसी से रिश्ता या सगाई हुई है क्या...??

:

हाँ हुई है...

:

तो यह तुमको 10 रुपये उसके भाग्य के मिल रहे है...

इसको जोड़ना शुरू करो तुम्हारे विवाह में काम आएंगे...

:

एक दिन उसकी पत्नी गर्भवती हुई और उसकी कमाई 31 रूपये होने लगी...

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फिर उसने नारदमुनि को बुलाया और कहा है मुनिवर मेरी और मेरी पत्नी के भाग्य के 11 रूपये मिल रहे थे लेकिन अभी 31 रूपये क्यों मिल रहे है...

क्या मै कोई अपराध कर रहा हूँ...??

:

मुनिवर ने कहा- यह तेरे बच्चे के भाग्य के 20 रुपये मिल रहे है...

:

हर मनुष्य को उसका प्रारब्ध (भाग्य) मिलता है...

किसके भाग्य से घर में धन दौलत आती है हमको नहीं पता...

:

लेकिन मनुष्य अहंकार करता है कि मैने बनाया,,,मैंने कमाया,,,

मेरा है,,,

मै कमा रहा हूँ,,, मेरी वजह से हो रहा है...

:

हे प्राणी तुझे नहीं पता तू किसके भाग्य का खा कमा रहा है...।।

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मुंशी नहीं, विश्व न्यायाधीश हैं चित्रगुप्त*

 यह विडंबना है कि चित्रगुप्त भगवान को यमराज का मुंशी बता दिया जाता है। खुद कायस्थ भाई भी बिना जाने-समझे ऐसी ही बात कहते हैं। जबकि यह पूर्णतः गलत है।


कृपया निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करें--


## प्रत्येक वर्ष चित्रगुप्त पूजा में राजा सौदास की कहानी  पढ़ते हैं। एक बार फिर उस कथा को ध्यानपूर्वक पढ़ें। श्लोक संख्या 20 एवं 21 पर ध्यान दें।


## ब्रह्मा जी की दस हज़ार दस सौ वर्ष की तपस्या के बाद उनके शरीर से चित्रगुप्त जी प्रकट हुए।


## ब्रह्मा जी ने उनसे कहा-

*मच्छरीरात्समुद्भूतस्मात्कायस्थसंज्ञकः।*

*चित्रगुप्तेति नाम्ना तु ख्यातं भुवि भविष्यति।।20।।*

*धर्माधर्म-विवेकार्थं धर्मराजपुरे शुभे।*

*भविष्यन्ति हि भो वत्स! निवासः सुविनिश्चितम्।।21।।*


अर्थात्

## ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी से कहा कि मेरे शरीर से तुम उत्पन्न हुए हो इसलिए तुम्हारी संज्ञा *कायस्थ* है और पृथ्वी पर *चित्रगुप्त* नाम विख्यात होगा।।20।।


## हे वत्स! धर्म और अधर्म के विवेकपूर्वक विचार के लिए धर्मराजपुरी में तुम्हारा निवास सुनिश्चित हो।।21।।


## *धर्मराजपुरी* यानि न्याय का स्थान।


## *धर्माधर्म-विवेकार्थं* का अर्थ है, धर्म तथा अधर्म का विवेकपूर्वक विचार यानि न्याय करना।


## इन श्लोकों से स्वतः स्पष्ट है कि चित्रगुप्त जी का कार्य न्याय करना है।


## कुछ अन्य उद्धरणों में भी कहा गया है कि ब्रह्मा जी ने चित्रगुप्त जी से कहा-धर्मराजपुरी में वास करो, तीनों लोकों के प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखो और धर्माधर्म यानि धर्म व अधर्म का विचार करो।


## भ्रमवश हमसब सिर्फ लेखाजोखा रखने तक की बात को पकड़ कर चित्रगुप्त जी को मुंशी, लिपिक बता देते हैं।


## सच तो यह है कि ब्रह्मा जी ने *न्याय करने का कार्य* ही तो चित्रगुप्त जी को सौंपा है। 


## चित्रगुप्त जी सभी प्राणियों के पाप-पुण्य का लेखा-जोखा रखते हैं, ताकि न्याय कार्य में सहूलियत हो।


## वह *विश्व न्यायाधीश* हैं, न कि मुंशी या लिपिक, क्योंकि उन्ही की इच्छा से कोई भी प्राणी स्वर्ग का पुरस्कार या नरक का दंड प्राप्त करता है।


## भीष्म पितामह को *इच्छामृत्यु का वरदान* चित्रगुप्त जी ने ही दिया था।


## राजा सौदास को भी चित्रगुप्त जी की इच्छा के कारण ही स्वर्गलोक प्राप्त हुआ।


*अब आप सब तय करें की आप मुंशी की संतान हैं या विश्व न्यायाधीश के।*


-कृपया इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि विश्व न्यायाधीश को मुंशी या लिपिक कहने वालों की आँखें खुल जाएं।


श्री चित्रगुप्ताय नमः

राधास्वामी - राधास्वामी - राधास्वामी

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🙏🙏🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏🙏🙏

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*हम करते रहें :*


             *मालिक की भक्ति*

                        और


                       हमारी

                *उस भक्ति पर*

                     *भरोसा*


                    हमें इतना हो

                          की

                     *सँकट में*


                         हम हो

                          और


                 *हमारे सँकट की चिँता*

                           हमारे


                  *दाता दयाल को हो !*


🙏🙏🙏🙏 *राधास्वामी* 🙏🙏🙏🙏

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Sunday, June 27, 2021

क्यों पूजें जाते हैं पीर, मजार ?

 *पीर का अर्थ* / *क्यों पूजें जाते हैं पीर, मजार ?*


 सोये हुए हिन्दू को जगाये रखने के लिए इस ऐतिहासिक सचाई का संदेश बार- बार प्रसारित करना नितांत आवश्यक है.

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आपने भी हरी चादर लेकर घूमते कुछ दाढी वालों को देखा होगा या  बहुत लोग पीर की पूजा करने जाते हैं। आखिर क्या है पीर??

*👉पीर का मतलब*???

मुस्लिम राजा का यह एक अधिकारी होता था, जिसे पीर कहा जाता था। जिसकी नौ गज के घेरे तक सुरक्षा रहती थी, जैसे आजकल सुरक्षा कमांडो मुख्यमंत्री को घेरा बनाकर चलते हैं। गावों में लगान आदि इकट्टा करने का जिम्मा पीर का होता था! रैवैन्यु गांव के एक निश्चित स्थान पर सभी लोग उस पीर के पास जाकर मुगलों का टैक्स देते थे! वो टैक्स केवल हिंदूओं पर ही था जिसको जजिया कर भी कहते थे!

जो हिन्दू परिवार वह जजिया कर देने से मना कर देता था, तो उस पीर के साथ नौ गज के घेरे में रहने वाले सुरक्षा कर्मी , गांव में सबके सामने उस जजिया कर न चुकाने वाले परिवार की सबसे सुंदर बहु या बेटी को नंगा करके लाते थे, व सबके सामने उसके साथ बलात्कार किया जाता था, ताकि किसी की हिम्मत ना पड़े बाद में जजिया कर देने से मना करने से! सबके सामने हो रहे इस घिनौने बलात्कार के समय कुछ लोग उस बहु बेटी के उपर चादर डाल देते थे, व गांव के बाकी लोग डर के मारे लगान व जजिया कर (पैसा) उसी चादर के उपर या उसके पास धड़ाधड़ डालते चले जाते थे!

और हाथ जोड़ लेते थे सिर झुकाते थे कि कहीं उनके उपर भी पीर या उसके नौ गज के घेरे वाले सुरक्षा देने वाले मुल्ले कोई अत्याचार ना करें!


*👉क्यू पूजा करते हैं पीर मजार की*???

यह है उन पीरों की सच्चाई, जब वह दुष्ट नीच पीर मरे थे तब भी मूर्ख अज्ञानी हिंदुओ में उनके प्रति वही घबराहट व भयंकर खौफ बना रहा, और फिर यह पीढी दर पीढी परम्परा लोगों के दिमाग में बैठ गई। ऐसे राक्षस पीरों के मरने के सदियों बाद भी मूर्ख हिंदु डर के मारे उनकी कब्रों पर वही चादर व पैसा चढ़ाता है!

अर्थात् जिस जिस नीच पीर ने मूर्ख हिंदुओं की बहिन बेटियों की इज्जत लूटी, यह मूर्ख उनकी ही कब्रों (पीरो) पर माथा रगड़ता फिरता है! कहीं नौकरी मांगता फिरता है तो कहीं पुत्र और धन दौलत व व्यापार या तरक्की के लिए माथा रगड़ता है।

क्या इससे अधिक कायरता व मूर्खता की मिसाल दुनियां में कहीं मिल सकती है!

*विशेष:--* पीर से ज्यादा अधिकार और क्षेत्रफल ख्वाजा के पास होता था और वह पीर से भी ज्यादा अत्याचार लुटखसूट करता था और उससे भी ज्यादा अधिकार सैय्यद को मिले होते थे। और वह अपने अधिन जनता पर अत्याधिक अनाचार अत्याचार दुराचार करता था उसी भय से आज भी हिन्दू उनसे डरते हैं और उनकी मजारों पर चदर चढ़ाते हैं और उनकी जय तक बोलते हैं।

*इस जानकारी को सार्वजनिक कर के सभी सनातन धर्म के सभी अनुयायियों तक पहुचे यह आप का काम है!  ताकि मानसिक गुलामी में जी रहे लोगों तक असलियत का पता चल सके!*

*यह जानकारी पूरी तरह से तथ्यों पर आधारित है! आप इस के कुछ इतिहास के हिस्सों की जानकारी बीकानेर के संग्रहालय में रखे दस्तावेज़ों से प्राप्त किया जा सकता है*

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Saturday, June 26, 2021

Tतिरुपति_बालाजी के अद्भुत 7 रहस्य

 *तिरुपति_बालाजी के ऐसे 7 रहस्य जिसे आप जानकर अभिभूत हो जाएंगे*यहां के सारे रहस्य का जवाब वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है*...


प्रस्तुति -- कृष्ण मेहता



1:- मूर्ति पर लगे बाल असली है!

भगवान वेंकटेश्‍वर स्‍वामी के मूर्ति पर लगे बाल कभी नहीं उलझते वह हमेशा मुलायम रहते हैं ऐसा क्यों होता है इसका जवाब वैज्ञानिकों के पास भी नहीं है।

2:- हजारों साल से बिना तेल का जलता दिया!

मंदिर के गर्भगृह में एक दीपक जलता है आपको जानकर हैरानी होगी यह दीपक हजारों सालों से ऐसे ही जल रहा है वह भी बिना तेल के। यह बात काफी ज्यादा हैरान करने वाली है ऐसा क्यों है इसका जवाब आज तक किसी के पास नहीं है

3:- मंदिर के मूर्ति को पसीना आता है!

मंदिर का गर्भगृह को ठंडा रखा जाता है पर फिर भी मूर्ति का तापमान 110 फॉरेनहाइट रहता है जो कि काफी रहस्यमई बात है और उससे भी बड़ी रहस्यमई की बात यह है कि भगवान मूर्ति को पसीना भी आता है जिसे समय-समय पर पुजारी पोछते रहते हैं।

4:- भगवान की मूर्ति से समुद्र की लहरों की आवाज!

भगवान वेंकटेश्‍वर के मूर्ति के कानों के पास अगर ध्यान से सुना जाए, तो समुद्र की लहरों की आवाज आती है। यह भी काफी विचित्र बात है।

5:- मूर्ति बीच में है या दाई ओर है?

जब आप मूर्ति को गर्भगृह के

बाहर से देखेंगे तो आपको मूर्ति दाई ओर दिखाई देगी और जब आप मूर्ति को गर्भगृह के अंदर से देखेंगे तब आपको मूर्ति मध्य में दिखेगी।

6:- विशेष गांव से आता है फूल।

तिरुपति बालाजी मंदिर से करीब 23 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है इसी गांव से मंदिर के लिए फूल, फल, घी आदि जाता है इस गांव में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश पर प्रतिबंध है और इस गांव के लोग काफी पुरानी जीवन शैली का उपयोग करते हैं।

7:- परचाई कपूर भी बेअसर है

परचई कपूर एक खास तरह का कपूर होता है जिसे पत्थर पर लगाने पर पत्थर कुछ टाइम बाद चटक जाता है मगर इस कपूर को भगवान की मूर्ति पर लगाया जाता है और इस मूर्ति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता ।

Friday, June 25, 2021

सवाल का सचन

 🙏🙏 / राधास्वामी =  सवाल एक गैर सतसंगी का सतसंगी से,


जो मै आपसे सेयर करने जा रहा हूँ यह वाक्या 2018 का है एक जिला सतसंग का

देहात की ब्रांच में  आयोजन किया गया, जहाँ कम से कम 12-14 ब्रांच के सतसंगी भाई बहन और बच्चों ने भाग लीया, 

सभी अपने अपने बाहन से गये, 

एक ब्रांच के सतसंगी उस ब्रांच का मै नाम नहीं लेना चाहता हूं, बस से गये, 

जहाँ सतसंग का आयोजन हो रहा था उसके पास में कोई गगां का घाट था और उस ब्रांच के सतसंगी अपनी बस लेकर गंगा स्नान करने के लिए गयें, 

और यह बात वहाँ के गैर सतसंगी लोगों को पता चल गई , 

तो एक गैर सतसंगी ने चार पांच सतसंगीयों से यह सवाल किया

1- सवाल गैर सतसंगी का

आप यह बताईये कि राधास्वामी मत की क्या विशेषता है, 

जबाब सतसंगी का

राधास्वामी मत संत मत है, इस मत में आने पर काल के जाल से छुटकारा मिल जाता है, चोरासी के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है, 

2-

सबाल गैर सतसंगी का

मैंने यह सुना है कि राधास्वामी मत बाले किसी और देवी देवताओं की पूजा नही करते हैं, 


जबाब सतसंगी का

जी हाँ आपने सही सुना है, हम लोगों का इस्ट देहधारी गुरु हैं हम उन की ही पूजा करते हैं, 

हमारी रीति रिवाज, सब अलग है और वह संसारी लोगों से मेल नहीं खा सकते है, 

3-

     सबाल गैर सतसंगी का

आप  यह बताओ कि आप तो राधास्वामी मत में आ कर काल के जाल से बच गये, और आपने अपने बच्चों को काल के जाल में डाल दिया, काल के हलाले कर दिया, 

आप कैसे सतसंगी हो कैसे माँ बाप हो कि अपनी ही औलाद के दुश्मन हो गये, 

आपको बुरा लग रहा होगा साहब पर मै इसलिए कह रहा हूँ कि मैने सतसंगी के बच्चों को सतसंग में जाते नहीं देखा है, 

मैंने सतसंगीयों के बच्चों को पुजा पाठ करते देखा है, 

और आप अपने बच्चों की शादीया भी हम गैर सतसंगी लोगों की तरह करते हो, 

दहेज लेते हो और देते हो, 

और पंडित, हवन, पूजा पाठ, सारे रस्म रिवाज हम गैर सतसंगी जैसे करते हो, 

फिर आप झुठ क्यो वोलते हो, 

और साहब मै आपको ऐसे बहुत लडके और लडकीया दिखा दूं आपके कि उनकी शादीया गैर सतसंगी परिवार में हुई है और वह पुजा पाठ करते हैं और न कभी दयालबाग जाते हैं, न सतसंग जाते हैं, 

आपकी बेटीयाँ आपके गैर सतसंगी दामादों के साथ मंदिर जाती है, और आपके बेटे और बहु मंदिर जाते हैं, 

और आप कह रहे हो कि इस मत में आने पर काल के जाल से छुटकारा मिल जाता है  चोरासी के चक्कर से मुक्ति मिल जाती है, तो कैसे मान ले कि आप सही कह रहे हो

और आपके यहाँ जब किसी का पुत्र पैदा होता है तो सारी रस्म रिवाज हमारी जैसी ही होती है, 

और आपके यहाँ जब किसी की मृत्यु होती है तो सारे कर्म कांड हम गैर सतसंगी जैसे होते हैं, 

पंडित, हवन, मृत्यु भोज सब कुछ होता है, 

तो साहब आप दोगली बात क्यो करते हो, 

सतसंगी हो कर झुठ क्यो बोलते हो, 

देखो साहब मै काफी दिनों तक सतसंग में बैठा हूँ, जिज्ञासु की रीति से, तो मुझे यह सब वहाँ देखने को मिला, 

तब मैंने सोचा कि हम गैर सतसंगी और इन सतसंगी में कोई अंतर नहीं है, 

और मै गलत कह रहा हूँ तो मै आपको प्रमाण दे रहा हूँ कि एक बस भर कर सतसंगी गंगा जी नहा कर आये है अभी अभी और अब सतसंग करेंगे और प्रीत भोज करेंगे

तो बताओ हम गैर सतसंगी और आप सतसंगी में क्या फर्क रहा, क्या अंतर रहा, 

अंतर तो साहब आपकी कथनी और करनी बहुत है, 


तो सतसंगी भाईयों और बहनों और युवा बच्चों उस गैर सतसंगी के सवालों का जबाब उन चार पांच सतसंगी भाईयों के पास नहीं था, 

और उनको अपनी नजरें झुकानी पडीं

इस वाक्या का अफसोस कि मैं चशमदीद था और आज भी मुझे उस गैर सतसंगी के वह सवालात पींडा देते हैं कचोंटते है क्यो कि उसके सवालों का कोई जवाब नहीं था इसलिए कि हम लोग सारे काम गैर सतसंगी जैसे करते हैं, 

और जो सतसंगी बस में भर कर गंगा नहाने गये थे, जिनकी बजह से उन चार पांच सतसंगी भाईयों को अपनी नजरें झुकानी पडीं, र्समिंदा होना पड़ा, उनके लिए तो कुछ कहने के लिए मेरे पास शब्द नहीं है, 


🙏तो मेरी सभी से यह अपील है, प्रार्थना है, गुजारिश है, निवेदन है, और यह अपील मै करता रहा हूँ कर रहा हूँ करता  रहूँगा कि आप सब सतसंगी भाई बहन और सतसंग का युथ इन सब बातो पर गौर करें, और जहाँ भी कोई भी ऐसी कार्यवाही करता मिले उसको फौरन रोको टोको समझाओ कि ऐसा करने से राधास्वामी दयाल की नजरों में वह सतसंगी खुद तो गिरता ही है साथ में हमारे सतसंग का स्तर भी गिरता है

🙏इस विषय में आप किसी को भी कोई राय मशवरा देना हो तो आप मुझे कभी भी कौल कर सकते हैं,, 

आपका अपना

जी०एस० पाठक

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सफर आसान कैसे हो?

 🌹*"चींटी इतनी छोटी है! उसको यदि मुम्बई से पूना यात्रा करनी हो, तो लगभग ३-४ जन्म लेना पड़ेगा। 

🌹लेकिन यही चींटी पूना जाने वाले व्यक्ति के कपड़े पर चढ़ जाये, तो सहज ही ३-४ घण्टे में पूना पहुँच जाएगी कि नहीं! 

🌹ठीक इसी प्रकार अपने प्रयास से भवसागर पार करना कितना कठिन है! पता नहीं, कई जन्म लग सकते हैं। 

इसकी अपेक्षा यदि हम सतगुरु का हाथ पकड लें, और उनके बताये सदमार्ग पर श्रद्धापूर्वक चलें, तो सोचिये कितनी सरलता से वे आपको सुख, समाधान व अखण्ड आनन्दपूर्वक भवसागर पार करा सकते हैं !!"*

🌹वे लोग कितने सौभाग्यशाली हैं, जिनके जीवन में सतगुरु  जी भी हैं।

🌹🌹🙏🏻

आम जनमानस की कविताएँ

 चौथे स्तम्भ के नीचे दब कर सो गया भारत का भविष्य:


इस नन्ही जान की कीमत क्या होगी उसके लिए जो कहने भर के लिए लोकतंत्र कहलाता. काफी दिनों से इस मामर्मिक तस्वीर ने मुझे सोने नहीं दिया. इस तस्वीर का स्त्रोत तो मैं नहीं ढूंड पाया वार्ना यह आज लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ पर कुरेद के गढ़ी गयी होतI। यह नज़ारा हम में से कितनो ने नहीं देखा होगा पर जब तक आँखों देखी या कोई इस दृश्य को तसवीर में उतार कर कहानी न लिख ले तब तक उस बच्चे की क्या कीमत. फोटो तो सब देख के परेशान होंगे और कोहरे के तरह इस दृश्य को अपने दिमाग से निकलने की कोशिश करेंगे। मेरी चिंता इस बच्चे का क्या हुआ होगा बस वही सत्ता रही है और अपना गुस्सा और दर्द आपसे व्यक्त कर रहा हूँ ।


मुझे बस अदम गोंडवी की वो कविता, दिमाग को कचोटती रही : 


सौ में सत्तर आदमी फ़िलहाल जब नाशाद है

दिल पे रख के हाथ कहिए देश क्या आज़ाद है

कोठियों से मुल्क के मेआर को मत आंकिए

असली हिंदुस्तान तो फुटपाथ पे आबाद है

जिस शहर में मुंतजिम अंधे हो जल्वागाह के

उस शहर में रोशनी की बात बेबुनियाद है

ये नई पीढ़ी पे मबनी है वहीं जज्मेंट दे

फल्सफा गांधी का मौजूं है कि नक्सलवाद है

यह गजल मरहूम मंटों की नजर है, दोस्तों

जिसके अफसाने में ‘ठंडे गोश्त की रुदाद है


यह बच्चा ज़िंदा है या इस असंवेदनशील समाज की बलि चढ़ गया, यह कौन है, कहाँ से आया और गुमनामी में सो गया. ऐसे कई दृश्य हमारी कठोर नज़रों के सामने से बोझिल हो जाते हैं प्रतिदिन, प्रतिसमय.


 इसलिए पाश कहते हैं : 

सबसे ख़तरनाक वो आंख होती है

जिसकी नज़र दुनिया को मोहब्बत से चूमना भूल जाती है

और जो एक घटिया दोहराव के क्रम में खो जाती है

सबसे ख़तरनाक वो गीत होता है

जो मरसिए की तरह पढ़ा जाता है

आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर

गुंडों की तरह अकड़ता है

सबसे ख़तरनाक वो चांद होता है

जो हर हत्याकांड के बाद

वीरान हुए आंगन में चढ़ता है

लेकिन आपकी आंखों में

मिर्चों की तरह नहीं पड़ता


उस बच्चे को ओढ़ने के लिए इस देश का चौथा लोकतान्त्रिक कहे जाने वाली ओढ़नी ही नसीब हुई पर चौथा स्तम्भ उसको अपने नीचे दबा कर कहाँ बोझिल कर गया अभी तक देखने को नसीब नहीं हुआ और इस सूरतेहाल में शायद यह चौथा स्तम्भ भी इस नन्ही जान को जीवन दान नहीं दे पायेगा    — रेड पैंथर

Thursday, June 24, 2021

कब क्या खाएं और न खाएं

 किस माह में क्या नहीं खाना चाहिए, खाया तो होगा गंभीर रोग


हिन्दू शास्त्रों और आयुर्वेद में भोजन के संबंध में बहुत कुछ लिखा है। जैसे किस वार को क्या क्या खाना चाहिए और क्या नहीं, किस तिथि को क्या खाना चाहिए और क्या नहीं और किस माह में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं। दरअसल, इसके पीछे वैज्ञानिक कारण है। प्रत्येक वार, तिथि या माह में मौसम में बदलावा होता है। इस बदलावा को समझकर ही खाना जरूरी है।


जैसे आप यह नहीं जानते हैं कि क्यों नहीं रात को दही खाना चाहिए और क्यों नहीं दूध के साथ नमक नहीं खाना चाहिए। आप इस संबंध में किसी डॉक्टर से पूछ लें। वैसे हम तो बता ही देंगे। खाने के मेल को भी जानना जरूरी है लेकिन फिलहाल यहां प्रस्तुत है कि किस माह में क्या नहीं खाना चाहिए और क्या खाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि हिन्दू माह ही मौसम के बदलाव को प्रदर्शित करते हैं अंग्रेजी माह नहीं।

 

इसके लिए कुछ दोहे प्रचलित है-

किस माह में क्या ना खाएं-

।।चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।

सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही।

अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना।

जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।।।

  

किस माह में क्या खाएं-

।।चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल।

कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल।

माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।।

 1.चैत्र माह

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार मार्च-अप्रैल के बीच आता है। हिन्दू कैलेंडर के यह प्रथम माह है। इस माह से चैत्र नवरात्रि प्रारंभ होती है। चैत्र माह में गुड़ खाना मना है। चना खा सकते हैं।

 2.वैशाख

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अप्रैल-मई के बीच आता है। वैशाख माह में नया तेल लगाना मना है। इस माह में तेल व तली-भुनी चीजों से परहेज करना चाहिए। बेल खा सकते हैं।

 3.ज्येष्ठ

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार मई-जून के बीच आता है। जेठ माह में दोपहर में चलना खेलना मना है। इन महीनों में गर्मी का प्रकोप रहता है अत: ज्यादा घूमना-फिरना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अधिक से अधिक शयन करना चाहिए। इस माह बेल खाना चाहिए।

 4.आषाढ़

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जून-जुलाई के बीच आता है। आषाढ़ माह में पका बेल न खाना मना है। इस माह में हरी सब्जियों के सेवन से भी बचें। लेकिन इस माह में खूब खेल खेलना चाहिए। कसरत करना चाहिए।

 5.श्रावण (सावन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जुलाई-अगस्त के बीच आता है। सावन माह में साग खाना मना है। साग अर्थात हरी पत्तेदार सब्जियां और दूध व दूध से बनी चीजों को भी खाने से मना किया गया है। इस माह में हर्रे खाना चाहिए जिसे हरिद्रा या हरडा कहते हैं।

 6.भाद्रपद (भादो)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अगस्त-सितम्बर के बीच आता है। भादो माह में दही खाना मना है। इन दो महीनों में छाछ, दही और इससे बनी चीजें नहीं खाना चाहिए। भादो में तिल का उपयोग करना चाहिए।

 7.आश्विन (क्वार)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार सितम्बर-अक्टूबर के बीच आता है। क्वार माह में करेला खाना मना है। इस माह में नित्य गुड़ खाना चाहिए।

 8.कार्तिक  

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार अक्टूबर-नवम्बर के बीच आता है। कार्तिक माह में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। इस माह में मूली खाना चाहिए।

 9.मार्गशीर्ष (अगहन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार नवम्बर-दिसंबर के बीच आता है। इस समय में भोजन में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। तेल का उपयोग कर सकते हैं।

 10.पौष (पूस)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार दिसंबर-जनवरी के बीच आता है। दूध पी सकते हैं लेकिन धनिया नहीं खाना चाहिए क्योंकि धनिए की प्रवृति ठंडी मानी गई है और सामान्यत: इस मौसम में बहुत ठंड होती है। इस मौसम में दूध पीना चाहिए। 

 11.माघ

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार जनवरी-फरवरी के बीच आता है। माघ माह में मूली और धनिया खाना मना है। मिश्री नहीं खाना चाहिए। इस माह में घी-खिचड़ी खाना चाहिए।

 12.फाल्गुन (फागुन)

यह माह अंग्रेजी माह के अनुसार फरवरी-मार्च के बीच आता है। इस माह में सुबह जल्दी उठना चाहिए। इस माह में में चना खाना मना।

_______________

मोमोज आपकी जिंदगी बरबाद कर देगा ....


आजकल गली मोहल्लो नुक्कड़ मार्केट पर सिल्वर के स्ट्रीमर में उबलते हुए मोमोज  तीखी लाल मिर्च की चटनी के साथ खाते हुए युवा किशोर आपको भारी संख्या में दिख जाएंगे अक्सर शाम के समय मासूम युवा किशोर नहीं जानते वह मोमोज खा कर अपने स्वास्थ्य चरित्र को किस हद तक बर्बाद कर रहे हैं

Momoz मैदा के बने हुए होते हैं मैदा गेहूं का एक उत्पाद है जिसमें से प्रोटीन व फाइबर निकाल लिया जाता है मृत #starch ही शेष रहता है उसे और अधिक चमकाने के लिए बेंजोयल पराक्साइड मिला दिया जाता है जो एक रासायनिक बिलीचर है जी हां वही ब्लीचर्स जिससे चेहरे की सफाई की जाती है 

यह ब्लीचर शरीर में जाकर किडनी को नुकसान पहुंचाता है

मैदे के प्रोटीन रहित होने से इसकी प्रकृति एसिडिक हो जाती है यह शरीर में जाकर हड्डियों के कैल्शियम को सोख लेता है तीखी लाल मिर्च की चटनी उत्तेजक होती है जिससे यौन रोग धातु रोग  जैसी महा भयंकर बीमारियां देश के किशोर व युवा को खोखला कर रही है

यह खाना आप तो पर तो भयंकर अत्याचार है आंतों का सत्यानाश कर देता है जीभ के स्वाद में आकर अपने स्वास्थ्य को युवा किशोर खराब कर रहे हैं

momoz पूर्वी एशियाई देशों चीन तिब्बत का खाना है वहां की जलवायु के यह अनुकूल वहां यह  जौ के आटे से बनाया जाता है ना कि मैदा से है भारत की गर्म जलवायु के यह  अनुकूल नहीं है

आज ही शुभ संकल्प लें इस स्वास्थ्य नाशक रोगप्रधान आहार को कभी नहीं खाएंगे ना ही किसी को खाने दिजिए !!

राधास्वामी / 26.06.2021

: **राधास्वामी!!  /  25 -06-2021- आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                

                          

    गुरु प्यारे की छबि मनमोहन। रही नैनन छाय।।टेक।।

 जब से मैं पाये गुरु प्यारे के दरशन ।

हिरदे में रही प्रीति समाय ।

 मन अति अकुलाय।।-

(राधास्वामी मेहर से घट पट खोला। धुन सँग सूरत अधर चढाय। दई घर पहुँचाय।।)

(प्रेमबानी-3-शब्द-11-पृ.सं.78,79)**


 Ek aur ati sukhmayee raat ke baad, pray for all, for a great morning and day.


43799: Malik ke charno mein prathna hei ki, ham sab hamesha satsang va seva se jure rahen,

[6/25, 03:44] +91 70421 43799: tatha aap apni Daya va Mehar se poore Satsang privar aur sampoorn pranimatra ki, sarbat jagat ki raksha karein taki hamsab is musibaton se jaldi nijat pa lein. Is benti ke saath aap sabhi ko prem poorvak is navintm suprabhat aur mangal din ki shubhkamnaayein tatha hardi

🙏🙏🙏राधास्वामी🙏🙏🙏🙏

अरे वो कायस्थ होगा.........

 गब्बर : - अरे ओ सांभा कितने आदमी थे?


सांभा : - अकेला ही था


गब्बर : - और तुम 


सांभा : - सरदार, हम 10 थे


गब्बर : - वो अकेला और तुम 10 फिर भी मार खाकर आ गए


सांभा : - वो सब से अलग था 


गब्बर : - मुझे उसकी पहचान बताओ 


सांभा  :- सरदार उसके हाथ में कलम,माथे पर  केसरिया पगड़ी  और केसरियां धोती कुर्ता  पहने हुए था।स्वामी विवेकानंद जी की तरह


गब्बर :- ओ तेरी कि,

तुमने मेरा नाम तो नहीं बताया होगा ना 


सांभा :-  नहीं सरदार, मगर आप इतना चौंक क्यूँ गए


गब्बर :- अरे यहाँ से जल्दी भागो सालो ..😳


सांभा :- मगर क्यूँ सरदार


गब्बर :- अरे भागो .. तुमने *कायस्थ* को छेड़ दिया है


सांभा :-  मगर *कायस्थ* क्या होते हैं


गब्बर :- 

*कायस्थ* खुद एक काल है , वेद है , शास्त्र है , समय है और एक अमिट अपार शक्ति है ..बह्मा के अंश से पैदा हुई उर्जा का अंश है *कायस्थ* .. 


सांभा :- सरदार वो शुरूआत में तो हाथ जोड़ रहा था मगर जब हमने जबरदस्ती लूटने की कोशिश कि तो उसने हमारा ये हाल कर दिया .. 

वो शक्ल से बहुत ही शांत और साधारण लग रहा था


गब्बर :- अरे क्रांति हमेशा वो ही लाते हैं जो शांति प्रिय होते हैं.. 

यूँ धूल तो झूंड भी उठाते हैं

😳😳😳😳😳


ये वो मानव जाति है जो युद्ध में चलते हुए रथ का पहिया बदल देते हैं .. 

इनके पास जन्म से ही  ज्ञान का योग होता है जो पृथ्वी पर और किसी भी मानव जाति में नहीं होता.. 

इनके अंदर त्रिदेव शक्ति विद्यमान है ..


1. ब्रह्मा जी का ब्रह्म ज्ञान 

2. विष्णु जी का स्तुतीकरण 

3. शिव जी का अमिट प्रभान


देवों का भी सबसेप्रिय मानव *कायस्थ* ही है

क्योंकि ये हर क्षेत्र में निपुण हैं;

वो चाहे विज्ञान हो,

काल वैदिक शास्त्र हो

या भौतिक जगत ज्ञान हो


इस पृथ्वी पर वर्तमान में लगभग 5 करोड़ 63 लाख *कायस्थ* हैं;

अगर पृथ्वी के एक कोने पर मिलकर खड़े हो गए तो पृथ्वी को एक तरफ झुका सकते हैं ...


_* *_


सबसे ज्यादा *कायस्थ* की जनसंख्या वाला देश .... 

हिन्दुस्तान,

लगभग2करोड़ 79 लाख*


सबसे ज्यादा प्रतिशत *कायस्थ* जनसंख्या वाला राज्य  ..उत्तरप्रदेश,

 60% *कायस्थ* हैं


*कायस्थ* के देश;

हिन्दुस्तान , नेपाल , अमरीका, लंदन,शिफान,आस्ट्रेलिया,श्री लंका , भूटान , तिब्बत , मयंमार ,  चीन , अफगानिस्तान , तुर्किस्तान

और....अन्य


*कायस्थ* के संस्कार सबसे अहम हैं,

*कायस्थ* की शक्ति सबसे अमिट है,

*कायस्थ* का सम्मान सबसे बड़ा सम्मान है


*कायस्थ* ना राज के भूखे हैं,

*कायस्थ* ना ताज के भूखे हैं,

*कायस्थ* एक अमिट शक्ति है,

*कायस्थ* सम्मान और संस्कार के भूखे होते हैं


विश्व *कायस्थ* मंच

जय चित्रगुप्त

जय *कायस्थ* संस्कार,

जय *कायस्थ* ,

जय हिन्दुत्व राज


अगर _*कायस्थ*_ वंश से हैं तो शेयर करें;

इग्नोर तो जलने वाले भी कर देंगे😇😇😁😁😁😁


  ⛳ *जय श्री चित्रगुप्त महाराज* ⛳

🌹🍷

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...