Friday, July 29, 2011

मनमोहन सरकार-अब तक की सबसे करप्ट सरकार



2: बीजेपी का आंकलन

सुरेंदर अग्निहोत्री ,,
आई.एन.वी.सी.
लखनऊ ,
प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिहं के नेतृत्व में यूपीए-2 सरकार ने अपने दो साल पूरे कर लिए है। उक्त अवसर पर प्रधानमन्त्री डॉ. मनमोहन सिंह और यूपीए की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गान्धी दोनों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकल्प व्यक्त किया। इससे बड़ी विडम्बना नहीं हो सकती क्योंकि एक ऐसी सरकार भ्रष्टाचार से लड़ने का संकल्प कर रही है, जिसका हाल तक का एक मन्त्री, एक वरिष्ठ कांग्रेसी सांसद और यूपीए के एक महत्वपूर्ण घटक के नेता की पुत्री भ्रष्टाचार के गम्भीर आरोपों पर तिहाड़ जेल में बन्द हैंं। यह बात काफी अहम है कि ये गिरफ्तारियां भाजपा के अभियान, सतर्क मीडिया, के दबाव तथा सर्वोच्च न्यायालय की सतत निगरानी के कारण सम्भव हो सकीं। वस्तुत: इसके लिए डॉ. मनमोहन सिंह या उनकी सराकर कोई श्रेय नहीं ले सकती क्योंकि कार्रवाई करने की बजाए उन्होंने तो इनमें से कुछ को निर्दोष होने का प्रमाणपत्र दे दिया था। यह जाहिर है कि डॉ. मनमोहन सिंह आजादी के बाद की देश की सर्वाधिक भ्रष्ट सरकार के मुखिया हैं। इसमें पारदÆशता की कमी है, उच्च स्तर पर संलिप्तता है, किसी प्रकार का कोई अंकुश नहीं है, पूरा तन्त्र ढह चुका है तथा रोज-रोज नए घोटाले सामने आ रहे हैं। दरअसल, यह प्रधानमन्त्री की `षड्यन्त्रकारी चुप्पी´, `अपराधी उदासीनता´, और `घोर लापरवाही´ थी की उनकी नाक के नीचे उनका एक मन्त्री देश के खजाने को लूटता रहा और वे उसकी अनदेखी करते रहे। इसमें यूपीए की सर्वशक्तिमान नेता श्रीमती सोनिया गान्धी की चुप्पी भी उल्लेखनीय थी।
घोटालों और राष्ट्रीय सम्पित्त की लूटा का यह सिलसिला काफी बड़ा है। लेकिन, उनमें से कुछ प्रमुख का यहां उल्लेख किया जा रहा है।
2जी स्पेक्ट्रम के आबण्टन और लाइसेंस जारी करने में घोटाला
संचार मन्त्रालय, भारत सरकार में 2जी लाइसेंसों के आबण्टन में हुआ घोर भ्रष्टाचार स्वतन्त्र भारत के इतिहास की सबसे शर्मनाक घटना है। यह तन्त्र के दुरूपयोग, गलतबयानी और धोखाधड़ी का एक गम्भीर मामला है, जिसमें बहुमूल्य स्पेक्ट्रम और लाइसेंस आबण्टन में भारी राशि के एवज में चुनिन्दा लोगों को फायदा पहुंचाया गया। यह तथ्य सर्वविदित है कि कैसे लाइसेंसों के लिए आवेदन सार्वजनिक रूप से 1/10/2007 तक मंगाए गए थे, उसके बाद एक नकली कट-ऑफ तिथि 25/9/2007 बनाई गई और 25/9/2007 तथा 1/10/2007 के बीच किए गए सभी आवेदनों को निरस्त कर दिया गया। खेल शुरू होने के बाद खेल के नियमों में बदलाव होने पर प्रधानमन्त्री चुप्पी साधे रहे। इस पर कोर्ट ने भी प्रतिकूल टिप्पणी की।
प्रधानमन्त्री ने तब भी चुप्पी साधे रखी जब तत्कालीन मन्त्री ए. राजा ने 02 नवम्बर, 2007 के उनके पत्र की खुली अवहेलना की, जिसमें उन्होंने स्पेक्ट्रम के उचित मूल्य के लिए पारदशÊ प्रक्रिया अपनाने पर बल दिया था क्योंकि 2007 में इसे 2001 के मूल्य पर बेचा जा रहा था, जबकि देश में टेलीडेंसिटी कई गुणा बढ़ चुकी थी। देश को यह जानने का हक है कि सरकार के मुखिया के रूप में प्रधानमन्त्री ने हस्तक्षेप करते हुए सारी प्रक्रिया को रोका क्यों नहीं जब सभी नियमों को ताक पर रख स्पेक्ट्रम कम मूल्य पर बेचा जा रहा था। क्या डॉ मनमोहन सिंह स्वयं जानकारी के बावजूद नहीं कार्यवाही करने और देश के राजस्व को हानि पहुंचाने के दोषी हैं कि नहीं। एक दिन के भीतर 120 लाइसेंस जारी किए गए तथा स्पेक्ट्रम का आबण्टन किया गया, जिसमें कई अपात्र कम्पनियों को भी लाइसेंस मिल गया।
चौंकाने वाली बात यह है कि एक नियमित सीबीआई मामला दर्ज हो जाने के बाद भी, डॉ. मनमोहन सिंह ने 26, जुलाई, 2009 को यह सार्वजनिक बयान दिया कि संचार मन्त्री ए. राजा के खिलाफ आरोप सही नहीं है। यह कह कर वे सीबीआई को क्या सन्देश देना चाह रहे थे, जो सीधे उन्हीं के तहत काम करती है। जब उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की निगरानी शुरू की तो ये वही भूतपूर्व मन्त्री थे, जो सबसे पहले गिरफ्तार हुए।
प्रधानमन्त्री को इसका जवाब देना होगा कि समय-समय पर जिम्मेदार लोगों की आपित्तयों के बावजूद उन्होंने इतना बड़ा घोटाला कैसे होने दिया। इसके उलट वे 2010 के मध्य तक तत्कालीन मन्त्री ए. राजा को बेगुनाही का प्रमाणपत्र देते रहे। तत्कालीन वित्त मन्त्री श्री पी. चिदम्बरम की भूमिका भी कई सवाल खड़े करती है। उनके विभाग द्वारा केबिनेट के 2003 के निर्णय के आलोक में ये आपत्ति बार-बार उठाई गई कि स्पैक्टम के कीमत एक पारदशीZ प्रक्रिया के अनुसार तय की जाए जिसमें उसकी सार्वजनिक नीलामी भी हो सकती है। ये बड़े आश्चर्य का विशय है कि 15 जनवरी 2008 को श्री चिदम्बरम ने तथाकिथ्त रूप से यह निर्णय कि चूंकि 10 जनवरी को लाइसेंस और स्पैटम दोनों का आबण्टन हो चुका है। अत: इस मामले को अब बन्द किया जाए। श्रीमती सोनिया गान्धी को भी कई जवाब देने हैं। यूपीए तथा कांग्रेस पार्टी की अध्यक्षा होने के नाते उस सरकार में जिसकी वो सर्वोच्च नेता है, जब राष्ट्र का धन लूटा जा रहा था उस समय उनकी क्या जिम्मेवारी बनती थी र्षोर्षो
जब सीएजी ने लाइसेंस निर्गत करने तथा स्पेक्ट्रम के आबण्टन के बारे में एक विस्तृत ऑडिट रिपोर्ट तैयार की तथा 1.76 लाख करोड़ रूपए के नुकसान का अनुमान लगाया तो भरसक कोशिश की गई कि इस निष्कर्ष को झुठलाया जाए और वर्तमान संचार मन्त्री श्री कपिल सिब्बल ने सार्वजनिक रूप से संसद में कहा कि कोई घाटा नहीं हुआ है। अब सीबीआई ने भी अपनी जांच के दौरान पाया है कि हजारों करोड़ रूपए का नुकसान हुआ है और वह भी तदर्थ आधार पर। नुकसान का प्रथम दृष्टया अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि 3जी स्पेक्ट्रम की नीलामी में सरकार को 35,000 करोड़ रूपए के लक्ष्य की तुलना में लगभग 67,000 करोड़ रूपए का जबर्दस्त मुनाफा हुआ और इसके अलावा ब्राडबैण्ड वायरलैस एक्सेस Æवसेज के लिए स्पेक्ट्रम की नीलामी से उसे 38,000 कराड़ रूपए का और फायदा हुआ इसके बावजूद, जहां तक 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का प्रश्न है तो प्रधानमन्त्री ने किसी समीक्षा के आदेश नहीं दिए।
जब डॉ. मुरली मनोहर जोशी लोक लेखा समिति के अध्यक्ष के रूप में इस मामले की जांच कर रहे थे तो तब शुरू में डॉ. मनमोहन सिंह ने स्वयं श्री जोशी की एक अनुभवी संसदीय नेता के रूप में प्रशंसा की तथा कहा था कि वे अच्छा काम कर रहे हैं। तथापि, जब डॉ. जोशी की अध्यक्षता वाली समिति ने कैबिनेट सचिव तथा प्रधानमन्त्री के सचिव को पूछताछ के लिए बुलाया तो सभी संसदीय और संवैधानिक नियमों की अवहेलना करते हुए कई केन्द्रीय मन्त्रियों द्वारा इसमें बाधा पहुंचाई गई। जाहिर है कि यह सरकार बहुत कुछ छुपाना चाहती है। डॉ जोशी ने लोकसभा के स्पीकर को अपनी रिपार्ट सौम्प दी है। हम यह मांग करते हैं कि उससे संसद के आगामी सत्र के पहले दिन संसद में प्रस्तुत करते हुए सार्वजनिक किया जाए।
अब वर्तमान कपड़ा मन्त्री और मई, 2004 से मई, 2007 तक दूरसंचार मन्त्री रहे दयानिधि मारन की भूमिका भी सन्देह के घेरे में आ गई है। उन्होंने जोर दिया और डॉ. मनमोहन सिंह आसानी से मान गए कि स्पेक्ट्रम का मूल्य निर्धारण मन्त्री समूह के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहना चाहिए क्योंकि इस बारे में डीएमके से समझौता हुआ है। इसका देश को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। अब गम्भीर आरोप लग रहे हैं कि एक खास मोबाइल कम्पनी की 74 प्रतिशत इिक्वटी जब एक विदेशी कम्पनी ने खरीद ली तो उसे फायदा पहुंचाया गया और तत्पश्चात् यह पैसा तथाकथित रूप से एक सहायक कम्पनी के माध्यम से श्री मारन के परिवार के बिजनेस में निवेश किया गया। हितों के स्पष्ट टकराव तथा अधिकार के दुरूपयोग के अलावा यह स्पष्ट था कि सरकारी निर्णयों की बिक्री हो रही थी। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए।
हमें उम्मीद है कि संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी इस घोटाले की तह तक जाएगी और देषियों को सजा मिलेगी। गठबन्धन राजनीति की मजबूरियों को भ्रष्ट लोगों का गठबन्धन नहीं बना देना चाहिए। भाजपा की यह मांग है कि धोखाधड़ी और भ्रष्टाचार के ऐसे गम्भीर मामले का जिम्मा यूपीए के सिर्फ एक सहयोगी (डीएमके) के ऊपर नहीं डाला जा सकता। सरकार में शीर्ष और वरिष्ठ पदों पर बैठे ऐसे लोग हैं जो इस लूट में शामिल रहे हैं। जाहिर है, उनकी भूमिका की भी जांच होनी चाहिए और जांच एजेंसी को पूरी छूट दी जानी चाहिए।
राष्ट्रमण्डल खेलों में आम जनता के धन की लूट
किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय खेल का आयोजन उपलब्धि और उत्सव का मौका होता है। हांलाकि, कुछ महीने पहले दिलली में आयोजि राष्ट्रमण्डल खेलों में हमारे खिलाड़ियों ने देश को गौरवािन्वत किया, लेकिन बड़े पैमाने पर हुए भ्रष्टाचार से देश को अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर शमÊन्दगी और नाराजगी झेलनी पड़ी। भाजपा ने खासतौर पर हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रमण्डल खेलों में लूट को सराहनीय ढंग से तथ्यों और आकड़ों के साथ देशभर में उजागर किया है। आज, श्री सुरेश कलमाड़ी आयोजन समिति के अपने अनेक सहयोगियों के साथ जेल में हैं। लेकिन, मामला यहीं खत्म नहीं होता। वे इसके मोहरे मात्र हैं। प्रत्येक फाइल को कैबिनेट, कैबिनेट सब-कमीटी, मन्त्री समूह, सम्बन्धित मन्त्रालय, यय वित्त समिति, पीएमओ और अन्तत: प्रधानमन्त्री की मञ्जूरी मिली थी।
प्रधानमन्त्री ने श्री वी.के. शंगुलू की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया और घोषणा की कि इसकी रिपोर्ट पर कार्रवाई की जाएगी। पांचवी रिपोर्ट में इसकी पुन: पुष्टि हुई कि गम्भीर घपले हुए हैं, जिससे ठेकेदारों को अनुचित फायदा पहुंचा है और अपव्यय तथा सरकार को नुकसान हुआ है। रिपोर्ट में पाया गया है कि ठेके देने में गम्भीर अनियमितताएं हुई हैं क्योंकि शुरूआत से ही साजिश थी कि परियोजनाओं को पूरा करने में विलम्ब किया जाए, लागत बढ़ाई जाए और पैसा मांगा जाए और समय कम होने के कारण ऊंची लागत में ठेके दिए जाएं। समिति ने श्रीमती शीला दीक्षित की दिल्ली सरकार जिनके हाथ में सारी वित्तीय शक्तियां थीं, विभिé एजेंसियों जैसे डीडीए, सीपीडब्लयूडी इत्यादी, श्री सुरेश कलमाडी की अध्यक्षता वाली आयोजन समिति की कड़ी आलोचना की है। चाहे वह राष्ट्रमण्डल खेल गांव हो, यहां तक कि एयर कण्डीशनरों, कुÆसयों, टॉयलेट पेपर तक खरीद में बड़े पैमाने पर घपले हुए हैं।
इस रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि Þबीमारी अन्दर तक फैली है और इसे अपवाद नहीं माना जा सकता, जिसके लिए सिर्फ कनिष्ठ पदाधिकारी जिम्मेदार हैं। इसमें शामिल अधिकारियों की आगे और जांच के आधार पर पहचान की जानी चाहिए और उपयुक्त कार्रवाई की जानी चाहिए।ß समिति ने आगे कहा है, Þएक प्रकार की कुटिलता से काम किया गया और परियोजनाओें में अनुचित विलम्ब शायद जानबूझकर किया गया, जिससे कि दहशत का माहौल उत्पé हो तथा सभी सम्बन्धितों को लाभ पहुंचाया जा सके।ß
राष्ट्रमण्डल खेलों के आयोजन में करदाता के कुल पैसों का नुकसान लगभग 70,000 करोड़ रूपए है। यह सर्वविदित है कि वित्तीय अनुमोदनों में पीएमओ के कुछ अधिकारी शामिल थे। अब कार्रवाई करने की बजाए दिल्ली की मुख्यमन्त्री श्रीमती शली दीक्षित ने इस रिपोर्ट को खारिज कर दिया है और प्रधानमन्त्री पुन: चुप्पी साधे हुए हैं। जैसा कि शुंगलू समिति ने सिफारिश की है, भाजपा यह मांग करती है कि उच्च पदों पर आसीन उन सभी लोगों की पहचान की जाए, उनकी जांच हो तथा उन्हें पर्याप्त दण्ड दिया जाए। भाजपा की यह मांग है कि सीबीआई को दिल्ली सरकार और राष्ट्रमण्डल खेल घोटाले में मुख्यमन्त्री श्रीमती शीला दीक्षित की भूमिका की भी जांच करनी चाहिए। इसमें उनकी संलिप्तता भी स्पष्ट है।
केन्द्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) की संस्थागत गरीमा और नैतिकता से समझौता
यपीए सरकार ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग के अध्यक्ष के रूप में पीजी थॉमस की नियुक्ति में नैतिकता की सभी सीमाओं को पार कर दिया। वे दागदार थे क्योंकि पामोलीन घोटाले से जुड़े मामलों में उन पर चार्जशीट की गई थी, जो केरल में एक कोर्ट के समक्ष लम्बित थी। जो समिति अनंशंसा करने वाली थी, उसमें प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री के अलावा लोकसभा में विपक्ष की नेता भी शामिल थीं। श्रीमती सुषमा स्वराज ने श्री थॉमस की नियुक्ति का विरोध किया क्योंकि वे भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी थे। गृहमन्त्री ने गलत बयानी की कि वे दोषमुक्त हो चुके हैं। श्रीमती सुषमा स्वराज का यह अनुरोध कि नियुक्ति को एक दिन के लिए टाल दिया जाए और तथ्यों का पता लगाया जाए या किसी और नाम पर विचार किया जाए, नहीं माना गया। प्रधानमन्त्री और गृहमन्त्री दोनों ने जबर्दस्ती श्री थॉमस की नियुक्ति कर दी। यहां यह उल्लेखनीय है कि पहले दूरसंचार सचिव के रूप में उन्होंने 2जी लाइसेंस देने के बारे में सीएजी की ऑडिट का यह कह कर विरोध किया थ्ज्ञा कि यह एक नीतिगत मामला है और इसका ऑडिट नहीं हो सकता। उसके बाद जो हुआ वह सबको पता है।
सीवीसी एक नैतिक गरिमायुक्त संस्था है। उनकी नियुक्ति को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करते समय उच्चतम न्यायालय ने पाया कि क्व्च्ज् की 2000 से 2004 के बीच की कई नोटिंग, जिसमें श्री थॉमस के विरूद्ध विभागीय कार्रवाई शुरू करने की अनुशंसा की गई थी, चयन आयोग की जानकारी में नहीं लाई गई। कोर्ट ने कहा कि जब सीवीसी जैसी किसी संस्था की नैतिक गरिमा का प्रश्न हो तब जनहित को सर्वोपरि रखा जाना चाहिए और वैयक्तिक नैतिकता और गरिमा का Þनिश्चय ही संस्थागत की नैतिकता गरिमा से सम्बन्ध है।ß तदनुसार, कोर्ट ने कहा कि इस प्रक्रिया में पारदर्शिता का पालन नहीं किया गया तथा यदि किसी सदस्य का विरोध है और बहुमत उसे अस्वीकार करता है तो उसे अवश्य ही इसका कारण बताना चाहिए।
एक प्रधानमन्त्री के रूप में और चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में एक दागी अधिकारी की सीवीसी के रूप में नियुक्ति थोपने के लिए डॉ. मनमोहन सिंह पूरी तरह जिम्मेवार हैं। उन्होंने अभी तक यह स्पष्ट नहीं है कि आखिर उन्होंने श्री थॉमस के विरूद्ध नेता प्रतिपक्ष श्रीमती सुषमा स्वराज की एक वैद्य आपित्त को दरकिनार क्यों कियार्षोर्षो
आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी घोटाला
यह भी भ्रष्टाचार का एक कॉपीबुक मामला था। आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी को रक्षा मन्त्रालय के नियन्त्रण वाली जमीन कारगिल के नायकों और उनकी विधवाओं के लिए फ्लैट बनाने हेतु मुम्बई के एक महंगे इलाके में दी गई थी। लेकिन, घपलेबाजी और धोखाधड़ी के जरिए इसे नौकरशाहों और राजनीतिज्ञों ने हड़प लिया। जब चव्हाण राजस्व मन्त्री और विलासराव देशमुख मुख्यमन्त्री थे तो सभी नियमों से छेड़छाड़ की गई। यहां तक कि वर्तमान केन्द्रीय मन्त्री और भूतपूर्व मुख्यमन्त्री सुशील कुमार शिन्दे की भूमिका भी सन्देह के घेरे में है। इसके लाभाÆथयों में कांग्रेस के मुख्यमन्त्रियों सहित बड़े नेताओं के अनेक रिश्तेदार शिामल हैं।
यदि कारगिल के नायकों की याद के साथ हुए ऐसे अपमान पर देशभर में क्षोभ उत्पé न हुआ होता तो शायद इसकी भी जांच मुश्किल होती। हालांकि, अभी भी सन्देह कायम है क्योंकि रक्षा विभाग द्वारा प्लाट के स्वामित्व सम्बन्धी फाइल गायब हो गई है। यहां तक कि पर्यावरणीय स्वीति वाली फाइल केन्द्रीय पर्यावरण मन्त्रालय से गायब हो चुकी है।
एण्ट्रिक्स कॉरपोरेशन लिमिटेड देवास मल्टीमीडिया घोटाला
एक और घोटाला अन्तरिक्ष विभाग में प्रकाश में आया है, जो सीधे प्रधानमन्त्री के अधीन है। 2005 में एण्ट्रिक्स कारपोरेशन लि., इसरो की वाणििज्यक शाखा, ने देवास मल्टीमीडिया के लिए दो सैटेलाइट लांच किए और बगैर निलामी या उपयुक्त मूल्य निर्धारण किए सिर्फ 1000 करोड़ रूपए में मोबाइल टेलीफोनी सहित दुर्लभ एस-बैण्ड के बीस वषो± तक 70 डभ्Z के असीमित उपयोग का बड़ा फायदा दिया। यह महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछले साल सरकार ने 3जी मोबाइल सेवाओं हेतु इसी तरह की वायु तरंगों हेतु 15 डभ्Z की नीलामी से 67719 करोड़ रूपए कमाए तथा 38000 करोड़ रूपए की उगाही ब्राडबैण्ड वायरलेस एक्सेस Æवसेज की नीलामी से हुई। इसमें न तो सरकार का कोई अनुमोदन लिया गया और न इसकी निगरानी हुई। इस सौदे के पांच वर्ष बाद इसे निरस्त करने का निर्णय जुलाई, 2010 में लिया गया। राष्ट्रीय खजाने को हुए इस नुकसान की देशव्यापी प्रतिक्रिया के बाद, इस सौदे को अन्तत: फरवरी, 2011 में रद्द किया गया। इसके पूर्व देवास मल्टीमीडिया के अधिकारी सरकार के तथा पीएमओ के उच्चाधिकारियों के सम्पर्क में थे।
अन्तरिक्ष विभाग सीधे प्रधानमन्त्री के अधीन है। जब इस भारी घपले के बारे में उनसे पूछा गया तो उनका जवाब वही था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी। यह बात विचित्र लगती है कि जब कभी किसी अनियमितता के बारे में उनसे पूछा जाता है तो वे अनभिज्ञता का रोना रोते हैं। डॉ. मनमोहन सिंह से हम ये पूछना चाहेंगे कि क्या आप कोई निगरानी नहीं करते अथवा जब कभी कोई भ्रष्टाचार होता है तो उससे आप मुंह फेर लेते हैं।
विदेशी बैंकों में जमा भारतीय नागरिकों का काला धन
भारतीय नागरिकों द्वारा अपराध और भ्रष्टाचार से उपÆजत काले धन को विदेशी बैंकों में जमा करने के सवाल पर सरकार की उदासीनता से लेकर देशभर में गहरी नाराजगी है। पहले जब लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा संसदीय दल के नेता श्री लालष्ण आडवाणी ने यह मुद्दा उठाया था तो कांग्रेस ने इसे चुनावी स्टण्ट बताया था। बाद में कहा गया कि सत्ता में आने के बाद सार्थक कदम उठाए जाएंगे। इस मुद्दे से जुड़े एक पीआईएल में जिस प्रकार उच्चतम न्यायालय ने प्रतिकूल टिप्पणियां की है उससे सरकार की नीयत का पता लगता है। हम सिर्फ बहुविषयी समिति द्वारा अध्ययन और पांच बिन्दुओं वाली रणनीति की बातें सुन रहें हैं। ये सिर्फ दिखावा है और इसमें ऐसा कोई इरादा नहीं कि एक समय-सीमा के भीतर कालेधन का पता लगाया जाए और देशवासियों को बताया जाए। अमेरिका दोहरी कर नीति के बावजूद टैक्स चोरों के नाम जाहिर करने के लिए स्वीस अधिकारियों को मजबूर कर सकता है। भारत अब कोई तीसरी दुनिया की अर्थव्यवस्था नहीं बल्कि एक उभरती हुई आÆथक महाशक्ति है, जिसकी जी-20 राष्ट्रों में अच्छी दखल है। इसका इस्तेमाल आखिर सरकार क्योंकि नहीं करती। भ्रष्टाचार के विरूद्ध संयुक्त राष्ट्र सन्धि जो दिसम्बर 2005 में प्रभावी हुई थी, उसका अनुसमर्थन भारत ने अभी पिछले सप्ताह ही किया है। यह वैश्विक भ्रष्टाचार से लड़ने का एक व्यापक उपकरण है। यदि उच्चतम न्यायालय की निगरानी नहीं होती तो प्रवर्तन निदेशालय और अन्य एजेंसियों को हसन अली की निष्पक्ष जांच नहीं करने दी जाती जो लगभग 76,000 करोड़ रूपए का कर चोर है तथा जिसके कई विदेशी खाते हैं। इसका कारण स्पष्ट है, आरोपित व्यक्तियों की जांच के दौरान कुछ बड़े कांगेसी नेताओं के विरूद्ध भी आरोप लगे हैं।
यूपीए सरकार में घोटाले एक के बाद एक चौंकाने वाली नियमितता से प्रकट होते रहते हैं। अनाज और खाद्य के आयात निर्यात में जितनी भयंकर अनियमितताएं हुई हैं उसकी जानकारी सार्वजनिक है। एफ.सी.आई. के गोदामों में रखा लाखों टन अनाज सड़ गया और गरीब जनता भूख से कराहती रही, ये भी देश जानता है। अब कोयला के ब्लॉक के आबण्टन में भी भयंकर अनिमतताओं की िशकायत सामने आ रही है, जो निजी हाथों में दिए गए हैं। ये आबण्टन उस समय के भी हैं जब डॉ मनमोहन सिंह स्वंय कोयला मन्त्री थे। ऐसे महंगे कोल ब्लॉक गैर सार्वजनिक निजी कम्पनियों और सार्वजनिक प्रतिश्ठानों को आबण्टित किए गए। जिनका काम सवालों के घेरे में था और जिनकी योजनाएं सिर्फ कागज पर थीं।
उपरोक्त उदाहरण यूपीए-1 तथा यूपीए-2 सरकारों की भ्रष्टाचार की सिर्फ मिसालें हैं। नि:सन्देह आजादी के बाद से आज तक किसी भी सरकार पर भ्रष्टाचार के इतने आरोप नहीं लगे। देश ने देखा कि किस तरह शर्मनाम ढंग से रिश्वतखोरी के जरिए डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव जीता। आज तक भी दोषियों के विरूद्ध कोई दण्डात्मक कार्रवाई नहीं हुई है। समूची यूपीए सरकार ओटैवियो क्वात्रोच्ची को बचाने में जुटी हुई थी, सिर्फ इसलिए कि गान्धी परिवार से उनकी करीबी थी। सभी को पता है कि कैसे एक सरकारी विधि अधिकारी की गलतबयानी के आधार पर बोफोर्स घोटाले के रिश्वत का पैसा उसके लन्दन बैंक खाते से मुक्त किया गया था। इन घोटालों के कारण देश की जो तबाही हुई है, इसकी जिम्मेवारी से श्रीमती सोनिया गान्धी और डॉ. मनमोहन सिंह बच नहीं सकते। उन्हें जवाब देना होगा। देश को अपने निष्कर्ष निकालने का हक है।
भाजपा इन घपलों और घोटालों को उजागर करती रहेगी और इनके खिलाफ लड़ती रहेगी। भाजपा की मांग है कि अपराध और भ्रष्टाचार से अÆजत भारतीय नागरिको का समस्त काला धन जो विदेशी बैंकों में जमा है, एक निश्चित समय-सीमा के भीतर भारत लाया जानाचाहिए और पर्याप्त कार्रवाई की जानी चाहिए। यह भी जरूरी है कि यूपीए सरकार के विभिé घोटालों में शामिल सभी बड़े-बड़े लोगों पर कोर्रवाई होनी चाहिए।
जिस शर्मनाक तरीके से डॉ मनमोहन सिंह की सरकार ने सार्वजनिक सम्पत्ति और कर दाताओं के पैसे के लूट की छूट दी उस आधार पर उसने शासन करने के सारे नैतिक आधार को खो दिया है। इस कारण भारत और भारतीयों का सिर शर्म से झुक गया है और पूरी दुनिया में देश की बदनामी हुई है।
भारतीय जनता पार्टी देश की जनता का आह्वान करती है कि वह यूपीए सरकार और शासन के दौरान जितने आयोजित और प्रायोजित भ्रष्टाचार हुए हैं उनके खिलाफ निर्णायक संघर्ष के लिए तैयार हो क्योंकि यूपीए का भ्रष्टाचार देश की राजनीति और शासन व्यवस्था को अन्दर से कमजोर और खोखला कर रहा है। जनमत का दबाव इसलिए भी आवश्यक है कि जो दोषी हैं( भले ही उनका कद अथवा पद कुछ भी हो के खिलाफ कार्यवाई हो सके और उन्हें दण्ड मिले।

फोरप्ले का जीवन में महत्व



पुरुष की कामेच्छा लगभग एक समान ही होती है, लेकिन पुरुष की कामेच्छा स्त्री की कामेच्छा की अपेक्षा जल्दी जागृत होती है. इसी असमानता को बराबर करने के लिये संभोग के पूर्व कुछ क्रियाएं की जाती हैं जिन्हे फोरप्ले कहा जाता है. वैज्ञानिक तौर पर भी यह सिद्ध हो चुका है कि मर्द जब स्त्री के अंग-अंग का भरपूर आनंद लेता है तभी स्त्री को परम आनंद मिलता है. पुरुष , स्त्री को प्यार करता है , सेक्स के लिए जबकि औरत सेक्स के सहारे प्यार चाहती है. तभी तो जब मर्द उसको उत्तेजक स्पर्श करता हुआ उसके कोमल अंगो से खेलता है तो औरत इनकार नही करती बल्कि उसका प्यार पाने के लिए वो समर्पण की मुद्रा मे आ जाती है- यह उत्तेजक स्पर्श ही फोरप्ले कहलाता है- जो दोनो को संभोग की मंजिल तक ले जाता है.
फोरप्ले और उद्दीपन सफल और आनंदमय प्रेम व्यवहार के लिए आवश्यक है अगर संभोग मुख्य भोजन है तो फोरप्ले एक स्नॅक्स की तरह है और सभी जानते है की भोजन ( संभोग) मे सबसे अधिक मुह मे पानी लानेवाला यही स्नॅक्स हो सकता है- कभी कभी तो इन्ही भूख जगानेवाली चटपटी चीज़ो से सम्पूर्ण तृप्ति पाई जा सकती है. सभी उत्तेजक स्पर्श से संभोग का मज़ा दुगना हो जाता है. फोरप्ले के दौरान सभी पाँचो इन्द्रियां ( स्पर्श-गंध-दृश्य-ध्वनि-और स्वाद ) सक्रिय रोल अदा करती है
स्पर्श : स्पर्श का प्यार और सेक्स से गहरा रिश्ता है थोड़ी तन से छेड़ छाड़ तन से तन का स्पर्श ही काम की इच्छा को जागृत करता है.
सुखद सुगंध - रति कीड़ा मे , सुगंध भी एक अहम भूमिका निभाती है. प्राचीन काल मे तरह -तरह के इत्र का इस्तेमाल होता था. महकता बदन और बेडरूम में मदहोश करने वाली सुगंध से काम की इच्छा को और बढ़ा देती है.
दृश्य : मर्द की कामुक निगाहें और आंखों से कामुक इशारे औरत को खुश करते है और औरत भी अपनी सेक्स अपील उभारने के लिए झीनी नाइटी या उत्तेजक पोशाक का सहारा लेती है और जो जरूरी भी है के मर्द की दृष्टि पड़ते ही, काम की भावना के वशीभूत हो जाए.
ध्वनि : संवाद भी जरूरी है कुछ मदहोश करने वाली बातें, सेक्सी जोक्स -जिसे हम कामुक भाषा कहते है यह भी बहूत जरूरी है.
अतुलनीय स्वाद : जैसे होठो का रसास्वादन यह भी संभोग की और ले जाते है जिससे परम सुख मिलता है. वैसे तो मर्दऔरत के अंगो को चूमता है , जीभ से चाटता है

कुल मिलाकर यह सब फोरप्ले ही कहलाते है और काम की इच्छा को जगाते है और सेक्स की क्रिया को सरल व सम्पूर्ण बनाते है - क्योंकि स्त्री पुरुष को एक अद्भुत आंनद मिलता है - फोर प्ले मे जितना समय लगाएँगे उतनी ही कामोत्तेजना आप में जागेगी मर्द के हाथ और जीभ फोर प्ले के मुख्य उपकरण का काम करते है इन्ही के सहारे आप स्त्री के तन से उन अंगो को पहचान सकते है , जिनसे वो जल्दी उत्तजित होकर समर्पण कर दे.
फोरप्ले स्त्री के अंगो का स्पर्श करना, उन्हे छूना - सहलाना - चुंबन लेना दुलारना - पुचकारना सभी कुछ है- दूसरे शब्दों में -मर्द , स्त्री के कामोत्तेजक अंगो से खेलना और उसे आनंद के चरम सीमा तक पहुचा कर सेक्स के लिये राजी करना है- पुरुष के ऐसे फोरप्ले से औरत कैसे चुप रह सकती है जब मर्द उनके होटो-गर्दनस्तन से होते हुए संभोग क्रिया संपन्न करते है.

फोरप्ले के दौरान की जाने वाली गड़बडियां
फोरप्ले, सेक्स का एक अहम हिस्सा है जब युगल अपने आप को उन अंतिम चरम क्षणों के लिए तैयार करते हैं. लेकिन फोरप्ले के दौरान कुछ ऐसी गलतियाँ हो सकती है जिससे आपके सेक्स जीवन में नीरसता व्याप्त हो जाए. कुछ ऐसी ही गलतियाँ निम्नलिखित हैं.
जल्द निपटारा: फोरप्ले सेक्स का एक हिस्सा है ना कि सेक्स के पहले का शुरूआती दौर. कई युगल, विशेषरूप से पुरूष, फोरप्ले के दौरान हडबडी दिखाते हैं. यहाँ यह समझना जरूरी है कि पुरूषों की अपेक्षा महिलाओं को सेक्स के लिए तैयार होने में समय लगता है और अच्छा फोरप्ले उनके लिए बेहद जरूरी होता है. इसलिए फोरप्ले के दौरान हडबडी करने से बचना चाहिए. फोरप्ले यदि थोडा अधिक समय तक चले तो भी कोई हर्ज नहीं है बल्कि यह चरम क्षणों के दौरान आपके रोमांच को बढाता ही है.

काटना: फोरप्ले के दौरान उत्तेजित होकर अथवा मजाक में अपने साथी के गले अथवा कान को काटना एक आम प्रवृति है. लेकिन इस दौरान ध्यान ना रखने से आपके साथी को चोट लग सकती है. कभी भी उत्साह में आकर होश ना खोएँ और ध्यान रखें की आपके काटने से साथी को चोट ना लगे.
नाखुनों का हमला: महिलाओं के हाथों के नाखुन आम तौर पर बढे हुए होते हैं. प्रेम के क्षणों के दौरान महिलाएँ अपने नाखुनों का इस्तेमाल करती हैं. यहाँ भी ध्यान देने योग्य बात है कि उनके नाखुनों से कहीं उनके पुरूष मित्र को चोट ना लग जाए. यह ना केवल प्रेम के उन क्षणों को पलभर में समाप्त कर देता है बल्कि आपके रोमांचक पल दवाई लगाने में लग सकते हैं.
स्नायूओं का खिंचाव: सेक्स एक अच्छी कसरत जरूर है, लेकिन कसरत भी एक हद तक ही उपयोगी होती है. कसरत करने का भी एक प्रकार होता है और उसका ध्यान ना रखने से चोट लग सकती है. सेक्स के दौरान भी ध्यान रखें की उत्साह में आकर आप कोई इस तरह का आसन ना अपना लें जिससे आपके स्नायूओं पर अनावश्यक बोझ पडे और मोच तथा सूजन आ जाए.
लंबा न खींचे: फोरप्ले छोटा ना हो यह जरूरी है, लेकिन इतना लम्बा भी ना हो कि आप चरम आनंद प्राप्त करने के लिए शयनकक्ष में जाएँ और जाते ही थकान के मारे सो जाएँ. यकीन मानिए, कई युगलों को यह परेशानी रहती है कि फोरप्ले के बाद वे दोनों इतना थक जाते हैं, नींद अपने आप आ जाती है. वैसे कोई भी यह नहीं चाहेगा.

Wednesday, July 27, 2011

पीएम मनमोहन जी. खुशवंत प्रेम देश के साथ गद्दारी है

बुधवार, २७ जुलाई २०११


खुशवंत सिंह के पिता ने दिलवाई थी भगत सिंह को फांसी: दिल्ली सरकार देगी ‘सम्मान



शहीद-ए-आज़म भगत सिंह की एक दुर्लभ तस्वीर
शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के बलिदान को शायद ही कोई भुला सकता है। आज भी देश का बच्चा-बच्चा उनका नाम इज्जत और फख्र के साथ लेता है, लेकिन दिल्ली सरकार उन के खिलाफ गवाही देने वाले एक भारतीय को मरणोपरांत ऐसा सम्मान देने की तैयारी में है जिससे उसे सदियों नहीं भुलाया जा सकेगा। यह शख्स कोई और नहीं, बल्कि औरतों के विषय में भौंडा लेखन कर शोहरत हासिल करने वाले लेखक खुशवंत सिंह का पिता ‘सर’ शोभा सिंह है और दिल्ली सरकार विंडसर प्लेस का नाम उसके नाम पर करने का प्रस्ताव ला रही है।

 भगत सिंह का घर
भारत की आजादी के इतिहास को जिन अमर शहीदों के रक्त से लिखा गया है, जिन शूरवीरों के बलिदान ने भारतीय जन-मानस को सर्वाधिक उद्वेलित किया है, जिन्होंने अपनी रणनीति से साम्राज्यवादियों को लोहे के चने चबवाए हैं, जिन्होंने परतन्त्रता की बेड़ियों को छिन्न-भिन्न कर स्वतंत्रता का मार्ग प्रशस्त किया है तथा जिन पर जन्मभूमि को गर्व है, उनमें से एक थे — भगत सिंह।
यहां तक कि जवाहरलाल नेहरू ने भी अपनी आत्मकथा में यह वर्णन किया है– भगत सिंह एक प्रतीक बन गया। सैण्डर्स के कत्ल का कार्य तो भुला दिया गया लेकिन चिह्न शेष बना रहा और कुछ ही माह में पंजाब का प्रत्येक गांव और नगर तथा बहुत कुछ उत्तरी भारत उसके नाम से गूंज उठा। उसके बारे में बहुत से गीतों की रचना हुई और इस प्रकार उसे जो लोकप्रियता प्राप्त हुई वह आश्चर्यचकित कर देने वाली थी।
जब दिल्ली में भगत सिंह पर अंग्रेजों की अदालत में मुकद्दमा चला तो भगत सिंह के खिलाफ गवाही देने को कोई तैयार नहीं हो रहा था। बड़ी मुश्किल से अंग्रेजों ने दो लोगों को गवाह बनने पर राजी कर लिया। इनमें से एक था शादी लाल और दूसरा था शोभा सिंह। मुकद्दमे में भगत सिंह को उनके दो साथियों समेत फांसी की सजा मिली।
 'सर' शादी लाल
इधर  दोनों को वतन से की गई इस गद्दारी का इनाम भी मिला। दोनों को न सिर्फ सर की उपाधि दी गई बल्कि और भी कई दूसरे फायदे मिले। शोभा सिंह को दिल्ली में बेशुमार दौलत और करोड़ों के सरकारी निर्माण कार्यों के ठेके मिले जबकि शादी लाल को बागपत के नजदीक अपार संपत्ति मिली। आज भी श्यामली में शादी लाल के वंशजों के पास चीनी मिल और शराब कारखाना है। यह अलग बात है कि शादी लाल  को गांव वालों का ऐसा तिरस्कार झेलना पड़ा कि उसके मरने पर किसी भी दुकानदार ने अपनी दुकान से कफन का कपड़ा भी नहीं दिया। शादी लाल के लड़के उसका कफ़न दिल्ली से खरीद कर लाए तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाया था।
शोभा सिंह अपने साथी के मुकाबले खुशनसीब रहा। उसे और उसके पिता सुजान सिंह (जिसके नाम पर सुजान सिंह पार्क है) को राजधानी दिल्ली में हजारों एकड़ जमीन मिली  और खूब पैसा भी। उसके बेटे खुशवंत सिंह ने शौकिया तौर पर पत्रकारिता शुरु कर दी और बड़ी-बड़ी हस्तियों से संबंध बनाना शुरु कर दिया। सर सोभा सिंह के नाम से एक चैरिटबल ट्रस्ट भी बन गया जो अस्पतालों और दूसरी जगहों पर धर्मशालाएं आदि बनवाता तथा मैनेज करता है। आज  दिल्ली के कनॉट प्लेस के पास बाराखंबा रोड पर जिस स्कूल को मॉडर्न स्कूल कहते हैं वह शोभा सिंह की जमीन पर ही है और उसे सर शोभा सिंह स्कूल के नाम से जाना जाता था।  खुशवंत सिंह ने अपने संपर्कों का इस्तेमाल कर अपने पिता को एक देश भक्त और दूरद्रष्टा निर्माता साबित करने का भरसक कोशिश की।
 खुशवंत सिंह की हवेली

 मॉडर्न स्कूल खुशवंत सिंह

 'सर' सोभा सिंह
खुशवंत सिंह ने खुद को इतिहासकार भी साबित करने की कोशिश की और कई घटनाओं की अपने ढंग से व्याख्या भी की। खुशवंत सिंह ने भी माना है कि उसका पिता शोभा सिंह 8 अप्रैल 1929 को उस वक्त सेंट्रल असेंबली मे मौजूद था जहां भगत सिंह और उनके साथियों ने धुएं वाला बम फेका था। बकौल खुशवंत सिह, बाद में शोभा सिंह ने यह गवाही तो दी, लेकिन इसके कारण भगत सिंह को फांसी नहीं हुई। शोभा सिंह 1978 तक जिंदा रहा और दिल्ली की हर छोटे बड़े आयोजन में बाकायदा आमंत्रित अतिथि की हैसियत से जाता था। हालांकि उसे कई जगह अपमानित भी होना पड़ा लेकिन उसने या उसके परिवार ने कभी इसकी फिक्र नहीं की। खुशवंत सिंह का ट्रस्ट हर साल सर शोभा सिंह मेमोरियल लेक्चर भी आयोजित करवाता है जिसमे बड़े-बड़े नेता और लेखक अपने विचार रखने आते हैं, बिना शोभा सिंह की असलियत जाने (य़ा फिर जानबूझ कर अनजान बने) उसकी तस्वीर पर फूल माला चढ़ा आते हैं।

 मेल टुडे में छपा कार्टून
अब प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और खुशवंत सिंह की नज़दीकियों का ही असर कहा जाए कि दोनों एक दूसरे की तारीफ में जुटे हैं। प्रधानमंत्री ने बाकायदा पत्र लिख कर दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से अनुरोध किया है कि कनॉट प्लेस के पास जनपथ पर बने विंडसर प्लेस का नाम सर शोभा सिंह के नाम पर कर दिया जाए।

महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ?




PoorBest 
नाम : मोहनदास करमचंद गांधी। उपनाम : बापू, संत, राष्ट्रपिता, महात्मा गांधी। जन्मतिथि : 2 अक्तूबर 1869। जन्म स्थान : पोरबंदर, गुजरात। विशेष : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अंहिसक और शांतिप्रिय प्रमुख क्रांतिकारी, जन्मदिन पर राष्ट्रीय अवकाश, भारतीय मुद्रा पर फोटो, सरकारी कार्यालयों में तस्वीर। बचपन से ही विद्यालयों में बच्चों को बापू के बारे में बताया जाता है और उनकी जीवनी रटाई जाती है। दे दी हमें आजादी बिना खडग़ बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। गाना भी हिंदुस्तानियों की जुबां पर सुना जा सकता है। लेकिन नाम गुम जाएगा चेहरा ये नजर आएगा... कहावत आज बापू पर चरितार्थ होती दिख रही है। बस फर्क इतना है कि नाम गांधी जयंती पर याद आता है और चेहरा कभी कभार नोट को ध्यान से देखने पर दिखता है। इतनी जानकारी आज स्वतंत्र भारत में अधिकांशत : हर पढ़े-लिखे व्यक्ति को पता है।
गांधी की जीवनी बचपने में पढऩे के बाद हर वर्ष 2 अक्तूबर को राष्ट्रीय अवकाश वाले दिन भी गांधी से संबंधित कई लेख पढऩे को मिल जाते हैं। लेकिन महात्मा गांधी के बाद उनके परिवार का क्या हुआ? उनके कितने बच्चे थे? आज उनके परिवार के सदस्य जीवित भी हैं या नहीं? उनके परिवार की कितनी पीढिय़ां आज मौजूद हैं? वे क्या कर रहीं हैं? कहां हैं? कितने सदस्य हैं? जैसे तमाम सवाल हैं जिनका जवाब पढ़े-लिखे तो क्या विशेषज्ञों और पीएचडी धारकों को भी नहीं पता होंगे। लेकिन आज आपको बताते हैं महात्मा गांधी के परिवार की मौजूदा स्थिति के बारे में।
इंटरनेट की एक वेबसाइट की मानें तो बापू के पौत्र, प्रपौत्र और उनके भी आगे के वंशज आज विश्व में छह देशों में निवास कर रहे हैं। जिनकी कुल संख्या 136 सदस्यों की है। हैरानी होगी यह सुनकर कि इनमें से 12 चिकित्सक, 12 प्रवक्ता, 5 इंजीनियर, 4 वकील, 3 पत्रकार, 2 आईएएस, 1 वैज्ञानिक, 1 चार्टड एकाउंटेंट, 5 निजी कंपनियों मे उच्चपदस्थ अधिकारी और 4 पीएचडी धारी हैं। इनमें सबसे ध्यान देने योग्य बात यह है कि मौजूदा परिवार में लड़कियों की संख्या लड़कों से काफी ज्यादा है। आज उनके परिवार के 136 सदस्यों में से 120 जीवित हैं। जो भारत के अलावा अमेरीका, दक्षिण अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और इंग्लैंड में रहते हैं।
बापू के बारे में : महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद्र और माता का नाम पुतलीबाई था। अपने परिवार में सबसे छोटे बापू की एक सबसे बड़ी बहन और दो बड़े भाई थे। इनकी सबसे बड़ी बहन रलियत, फिर भाई लक्ष्मीदास और भाभी नंद कुंवरबेन, भाई कृष्‍णदास और भाभी गंगा थीं।
बापू का परिवार : सबसे बड़े पुत्र हरिलाल (1888-18 जून 1948) का ब्याह गुलाब से हुआ। जबकि दूसरे पुत्र मणिलाल (28 अक्तूबर 1892- 4 अप्रैल 1956) की पत्नी का नाम सुशीला था। तीसरे पुत्र रामदास (1897-1969) की शादी निर्मला से हुआ। जबकि चौथे और अंतिम पुत्र देवदास (1900-1957) की पत्नी लक्ष्मी थीं।
वंशावली दूसरी पीढ़ी से
-  रामिबेन गांधी-कवंरजीत परिख
ए. अनसुया परिख-मोहन परिख
क. राहुल परिख-प्रभा परिख        ख. लेखा-नरेन्द्र सुब्रमण्यम
अवनी व अक्षय                    अमल
2. सुधा वजरिया-व्रजलाल वजरिया
क. मनीषा-राजेश परिख         ख. पारुल-निमेष बजरिया
नील व दक्ष                         अनेरी व सार्थक
ग. रवि वजरिया-शीतल वजरिया
आकाश व वीर
3. प्रबोध परिख-माधवी परिख
क. सोनल-भरत परिख        ख. पराग-पूजा परिख
रचना व गौरव                     प्राची व दर्शन
4. नीलम परिख-योगेन्द्र परिख
क. समीर परिख-रागिनी पारिख
सिद्धार्थ, पार्थ व गोपी
- कांतिलाल गांधी-सरस्वती गांधी
क. शांतिलाल-सुझान गांधी
अंजली, अलका , अनिता व एना
2. प्रदीप गांधी-मंगला गांधी
प्रिया व मेघा
-रसिकलाल गांधी
-मनुबेन गांधी-सुरेन्द्र मशरूवाला
1. उर्मि देसाई-भरत देसाई
क. मृणाल देसाई-आरती देसाई       ख. रेणू देसाई

-शांतिलाल गाँधी
-सीता गांधी-शशीकांत धुबेलिया
1. कीर्ति मेनन-सुनील मेनन
सुनीता
2. उमा मिस्त्री-राजेन मिस्त्री
सपना
3. सतीश धुपेलिया-प्रतिभा धुपेलिया
मीशा, शशिका व कबीर
-अरुण गांधी-सुनंदा गांधी
क. तुषार गांधी-सोनल गांधी       ख. अर्जना प्रसाद- हरि प्रसाद
विवान व कस्तूरी                         अनिष व परितोष
-इला गांधी-मेवालाल रामगोबिन
क. कृष गाँधी
ख. आरती रामगोबिन
ग. केदार रामगोबिन-मृणाल रामगोबिन
घ. आशा रामगोबिन
ड़. आशिष रामगोबिन-अज्ञात
मीरा व निखिल
-सुमित्रा गांधी-गजानन कुलकर्णी
1. सोनाली कुलकर्णी
2. श्रीकृष्ण कुलकर्णी-नीलू कुलकर्णी
विष्णु
3. श्रीराम कुलकर्णी-जूलिया कुलकर्णी
शिव
-कहान गांधी-शिव लक्ष्मी गांधी
-उषा गोकाणी-हरीश गोकाणी
1. संजय गोकाणी-मोना गोकाणी
नताशा व अक्षय
2. आनंद गोकाणी-तेजल गोकाणी
करण व अर्जुन
-रामचंद्र गांधी-इंदू गांधी
लीना गाँधी
-तारा भट्टाचार्य-ज्योति भट्टाचार्य
1. विनायक भट्टाचार्य-लूसी भट्टाचार्य
इण्डिया अनन्या, अनुष्का तारा व एंड्रीया लक्ष्मी
2. सुकन्या भरतराम-विवेक भरतनाम
अक्षर विदूर
-राजमोहन गांधी-उषा गांधी
1. देवव्रत गांधी
2. सुप्रिया गाधी
-गोपाल कृष्ण गांधी-तारा गांधी
1. अनिता गांधी
2. दिव्या गांधी
3. रुस्तम मणिया
Comments
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thanks
dhirendra 2011-02-02 00:48:14

शुक्र है कि आपने इस देश के असली गांधी के बारे में लोगों को बताने के लिए कुछ प्रयास किया और खास कर के उनके परिवार के बारे में बताने का काम किया...क्यूंकि अक्सर इस देश के अंदर जब बेइमानों की तारीफ में कसीदे पढ़ी जाती हैं तो मन इस तर्क के साथ उन कसीदो को स्वीकार कर लेता है कि आखिर गांधी बनने से क्या फायदा...लेकिन आज अगर गांधी जी की शहादत के 62 साल बाद कोई व्यक्ति गांधी जी के परिवार के बारे में बताना चाहता है तो समझ में आता है कि आखिर इस देश में गांधी होने का मतलब है क्या...समय के फेर ने गांधी का मतलब सत्ता पर काबिज गांधी परिवार से स्थापित कर दिया था...जिनका ना तो खून के स्तर पर गांधी से कोई रिश्ता है और ना ही विचार के स्तर पर......





Baapu raaj khatam chuka hai ..
sushil_gangwar 2011-02-01 11:29:05

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9321726603
vinod k pandey 2011-02-02 11:28:03

Gandhi jee hi nahi ,aise aur bhi mahapurus ha jinke pariwar ke bare me kuchh pata nahi ha
mai chahunga ki aap aur mahapuruso ke bare me bhi likkhe
lakh likhane ko bahut bahut dhanyabad


thanks
mahesh yadav 2011-02-27 12:18:47

Aap ka bahut dhanyawaad apane ye jankariya hum tak pahuchai.


Bapu Ji
RITA 2011-03-31 14:52:01

KYA UNKA KOI BHI VANSHAJ INDIA MAI NAHI HAI......KAM SE KAM BAPU JI KOI VANSHAJ INDIA MEI HONA CHAHIYA.


About Gandhiji
janak bhatta 2011-04-02 07:22:29

It is useful for the study of Gandhiji and his family.Gandhi Said, "Geeta Kantha Karo". I think Bhagavadgeeta is our spiritual reference book.So that is greatest commandment of Gandhiji for me.


Anonymous 2011-04-30 14:23:48

:love: :0 ;)) :D


rankit patidar 2011-05-09 14:34:24

gadhi ji ki jai ho..........!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!


rankit patidar 2011-05-09 14:35:04

bad


tiwari
Ambrish iwarit 2011-05-13 21:04:02

may ambrish tiwari ap ko suve kamana


a mere bapu
choudhary shravan khadav 2011-06-03 19:14:06

a me


hindu rajput
tribhuwan singh panwar 2011-06-05 13:46:18

i think mahatma gandhi femali is not history


अमूल्य ज्ञान.
Amit Upadhyay 2011-06-13 11:01:20

ये एक बहुत अच्छी जानकारी है उन् लोगों के लिए जो बापू को सचमुच जानना चाहते हैं.
अन्यथा गाँधी नाम का उपयोग कर न जाने कितने ही आडम्बरी इस देश में घूम रहें हैं.


massage for all
chetan pundir 2011-07-02 17:11:32

we don't want to know about that person whose family has fled from the country and life is being enjoyed. if some information about Bhagat singh's family are provided, you are requested to send me at e-mail (chetan.pundir70@gmail.com).
comrade
chetan pundeer





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