Thursday, December 29, 2022

 *रा धा स्व आ मी!*  



*रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज*M



*28-12-22-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-*



 *(6.3.31-शुक्र का शेष भाग)-......*



*अखबारों से मालूम हुआ कि आखिर महात्मा गांधी व लार्ड इरविन के दरमियान समझौता हो गया है। शुक्र है कि कम-अज-कम कुछ अर्सा के लिये तो गिरफ्तारियां बन्द हो जायेंगी और हुकूमत" अहले-मुल्क" आपस में मिलकर आइंदा बेहतरी के लिये तजावीज  निकालने की कोशिश करेंगे। 

रात के सतसंग में इस मामले का जिक्र करते हुए मैंने कहा कि अगर इस सब कार्रवाई का नतीजा यह हो कि इंग्लिस्तान व हिन्दोस्तान के माबैन(आपस में) सच्ची व गहरी मोहब्बत क़ायम हो जाय तब तो इन दो हस्तियों ने बड़ी जबरदस्त ख़िदमत" सरअंजाम दी जिसके लिये हर किसी को शुक्रगुज़ार होना चाहिये और अगर नतीजा वरअक्स (उल्टा) हुआ तो सिवाय आरजी खुशी के और क्या हासिल होगा ? 


अगर इंग्लिस्तान व हिन्दोस्तान मिल कर काम करें तो न सिर्फ़ इन दो मुल्कों के बाशिंदों" के दुःख दूर हो जायें बल्कि कुल दुनिया को अमान" हासिल हो जाये। बहरहाल यह ज़रूर तस्लीम करना होगा कि महात्मा गांधी ने अपनी रोशनी के बमूजिब" खूब बढ़कर काम किया और मुल्के हिन्द की काया पलट दी नीज यह कि लार्ड इरविन ने इस कदर नामुवाफ़िक हालात की मौजूदगी में कमाल दरजे की बुर्दबारी(सहिष्णुता) से काम लिया।और आइन्दा वाइसराय के लिये यह कहने का मौक़ा न छोड़ा कि उन्हें इनान'-ए-हुकूमत ऐसे वक़्त में मिली जबकि तमाम मुल्क में अवतरी' फैली हुई थी। 

अब नतीजा यह होगा कि सिविल नाफरमानी बन्द और गिरफ्तारियां बन्द । कांग्रेसी लीडर गोलमेज कान्फ्रेंस में शरीक होकर अपनी क़िस्मत आजमाई करें। और महज अंग्रेज़ी कपड़े के बॉयकाट के बजाय बिदेशी कपड़े के खिलाफ़ प्रचार करें स्वदेशी चीज़ों के इस्तेमाल के लिये ज़ोर लगायें। क्या इन तब्दीलियों से अहले-हिन्द अपने दुःखों से निजात' हासिल करेंगे? 

अगर इनसे बढकर सहूलियतें रखने वाली कौमें दुःखों से आजाद नहीं हैं तो अहले-हिन्द कैसे निजात हासिल कर सकते हैं? अगर वह हिन्दोस्तानी भाई जिन्हें नई स्कीम के बमूजिव अख्तियारात मिलेंगे वह मौजूदा अफ़सरान से बेहतर दिल व दिमाग वाले हों तब तो मुल्क के लिये बेहतरी की उम्मीद की जा सकती है। वरना सिवाय इसके क्या होगा कि अहले हिन्द की पीठ पर विलायती चाबुकों के बजाय हिन्दोस्तानी चाबुक कड़कें ?*  




    


                        

 *🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

Tuesday, December 20, 2022

भगवान से कैसे मिलें🙏

 

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 



एक 6 साल का छोटा सा बच्चा अक्सर भगवान से मिलने की जिद किया करता था। उसे भगवान् के बारे में कुछ भी पता नही था , पर मिलने की तमन्ना, भरपूर थी। उसकी चाहत थी की एक समय की रोटी वो भगवान के साथ बैठकर खाये।


एक दिन उसने एक थैले में 5,6 रोटियां रखीं और परमात्मा को को ढूंढने के लिये निकल पड़ा।


चलते चलते वो बहुत दूर निकल आया संध्या का समय हो गया। उसने देखा एक नदी के तट पर एक बुजुर्ग माता बैठी हुई हैं, जिनकी आँखों में बहुत ही गजब की चमक थी, प्यार था, किसी की तलाश थी , और ऐसा लग रहा था जैसे उसी के इन्तजार में वहां बैठी उसका रास्ता देख रहीं हों।


वो मासूम बालक बुजुर्ग माता के पास जा कर बैठ गया, अपने थैले में से रोटी निकाली और खाने लग गया।

फिर उसे कुछ याद आया तो उसने अपना रोटी वाला हाथ बूढी माता की ओर बढ़ाया और मुस्कुरा के देखने लगा, बूढी माता ने रोटी ले ली , माता के झुर्रियों वाले चेहरे पे अजीब सी खुशी आ गई आँखों में खुशी के आंसू भी थे ,


बच्चा माता को देखे जा रहा था , जब माता ने रोटी खाली बच्चे ने एक और रोटी माता को दे दी ।

माता अब बहुत खुश थी। बच्चा भी बहुत खुश था। दोनों ने आपस में बहुत प्यार और स्नेह केे पल बिताये।


जब रात घिरने लगी तो बच्चा इजाजत लेकर घर की ओर चलने लगा और वो बार- बार पीछे मुडकर देखता ! तो पाता बुजुर्ग माता उसी की ओर देख रही होती हैं ।


बच्चा घर पहुंचा तो माँ ने अपने बेटे को आया देखकर जोर से गले से लगा लिया और चूमने लगी,

बच्चा बहूत खुश था। माँ ने अपने बच्चे को इतना खुश पहली बार देखा तो ख़ुशी का कारण पूछा,

तो बच्चे ने बताया!


माँ ! ....आज मैंने भगवान के साथ बैठकर रोटी खाई, आपको पता है माँ उन्होंने भी मेरी रोटी खाई,,, पर माँ भगवान् बहुत बूढ़े हो गये हैं,,, मैं आज बहुत खुश हूँ माँ....


उधर बुजुर्ग माता भी जब अपने घर पहुँची तो गाव वालों ने देखा माता जी बहुत खुश हैं, तो किसी ने उनके इतने खुश होने का कारण पूछा ..??


माता जी बोलीं,,,, मैं दो दिन से नदी के तट पर अकेली भूखी बैठी थी,, मुझे पता था भगवान आएंगे और मुझे खाना खिलाएंगे।

आज भगवान् आए थे, उन्होंने मेरे सांथ बैठकर रोटी खाई मुझे भी बहुत प्यार से खिलाई, बहुत प्यार से मेरी ओर देखते थे, जाते समय मुझे गले भी लगाया,, भगवान बहुत ही मासूम हैं बच्चे की तरह दिखते हैं।


इस कहानी का अर्थ बहुत गहराई वाला है।

वास्तव में बात सिर्फ इतनी है की दोनों के दिलों में ईश्वर के लिए अगाध सच्चा प्रेम था ।

और प्रभु ने दोनों को , दोनों के लिये, दोनों में ही ( ईश्वर) खुद को भेज दिया।


जब मन ईश्वर भक्ति में रम जाता है तो, हमे हर एक जीव में वही नजर आता है।


जय श्री सीता राम

रामायण संदेश,,,,,,,

 


श्मशान में जब महर्षि दधीचि के मांसपिंड का दाह संस्कार हो रहा था। तो उनकी पत्नी अपने पति का वियोग सहन नहीं कर पायीं और पास में ही स्थित विशाल पीपल वृक्ष के कोटर में 3 वर्ष के बालक को रख स्वयम् चिता में बैठकर सती हो गयीं। इस प्रकार महर्षि दधीचि और उनकी पत्नी का बलिदान हो गया किन्तु पीपल के कोटर में रखा बालक भूख प्यास से तड़प तड़प कर चिल्लाने लगा। जब कोई वस्तु नहीं मिली तो कोटर में गिरे पीपल के गोदों (फल) को खाकर बड़ा होने लगा। कालान्तर में पीपल के पत्तों और फलों को खाकर बालक का जीवन येन केन प्रकारेण सुरक्षित रहा।

  

एक दिन देवर्षि नारद वहाँ से गुजरे। नारद ने पीपल के कोटर में बालक को देखकर उसका परिचय पूंछा...


नारद- बालक तुम कौन हो ?


बालक- यही तो मैं भी जानना चाहता हूँ।


नारद- तुम्हारे जनक कौन हैं ?


बालक- यही तो मैं जानना चाहता हूँ।

   

तब नारद जी ने ध्यान धर देखा। नारद ने आश्चर्यचकित हो कर बताया कि हे बालक ! तुम महान दानी महर्षि दधीचि के पुत्र हो। तुम्हारे पिता की अस्थियों का वज्र बनाकर ही देवताओं ने असुरों पर विजय पायी थी। नारद ने बताया कि तुम्हारे पिता दधीचि की मृत्यु मात्र 31 वर्ष की वय में ही हो गयी थी।


बालक- मेरे पिता की अकाल मृत्यु का कारण क्या था ?


नारद- तुम्हारे पिता पर शनिदेव की महादशा थी।


बालक- मेरे ऊपर आयी विपत्ति का कारण क्या था ?


नारद- शनिदेव की महादशा।

  

    इतना बताकर देवर्षि नारद ने पीपल के पत्तों और गोदों को खाकर जीने वाले बालक का नाम पिप्पलाद रखा और उसे दीक्षित किया।


नारद के जाने के बाद बालक पिप्पलाद ने नारद के बताए अनुसार ब्रह्मा जी की घोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। ब्रह्मा जी ने जब बालक पिप्पलाद से वर मांगने को कहा तो पिप्पलाद ने अपनी दृष्टि मात्र से किसी भी वस्तु को जलाने की शक्ति माँगी। ब्रह्मा जी से वर मिलने पर सर्वप्रथम पिप्पलाद ने शनि देव का आह्वाहन कर अपने सम्मुख प्रस्तुत किया और सामने पाकर आँखे खोलकर भष्म करना शुरू कर दिया। शनिदेव सशरीर जलने लगे। ब्रह्मांड में कोलाहल मच गया। सूर्यपुत्र शनि की रक्षा में सारे देव विफल हो गए। सूर्य भी अपनी आंखों के सामने अपने पुत्र को जलता हुआ देखकर ब्रह्मा जी से बचाने हेतु विनय करने लगे।अन्ततः ब्रह्मा जी स्वयम् पिप्पलाद के सम्मुख पधारे और शनिदेव को छोड़ने की बात कही किन्तु पिप्पलाद तैयार नहीं हुए।ब्रह्मा जी ने एक के बदले दो वर मांगने की बात कही। तब पिप्पलाद ने खुश होकर निम्नवत दो वरदान मांगे...


1- जन्म से 5 वर्ष तक किसी भी बालक की कुंडली में शनि का स्थान नहीं होगा।जिससे कोई और बालक मेरे जैसा अनाथ न हो।


2- मुझ अनाथ को शरण पीपल वृक्ष ने दी है। अतः जो भी व्यक्ति सूर्योदय के पूर्व पीपल वृक्ष पर जल चढ़ाएगा उसपर शनि की महादशा का असर नहीं होगा।

 

     ब्रह्मा जी ने तथास्तु कह वरदान दिया। तब पिप्पलाद ने जलते हुए शनि को अपने ब्रह्मदण्ड से उनके पैरों पर आघात करके उन्हें मुक्त कर दिया। जिससे शनिदेव के पैर क्षतिग्रस्त हो गए और वे पहले जैसी तेजी से चलने लायक नहीं रहे। अतः तभी से शनि "शनै:चरति य: शनैश्चर:" अर्थात जो धीरे चलता है वही शनैश्चर है, कहलाये और शनि आग में जलने के कारण काली काया वाले अंग भंग रूप में हो गए।

      

       सम्प्रति शनि की काली मूर्ति और पीपल वृक्ष की पूजा का यही धार्मिक हेतु है।आगे चलकर पिप्पलाद ने प्रश्न उपनिषद की रचना की,जो आज भी ज्ञान का वृहद भंडार है.....


🙏🏼


#हरि_ॐ_नमः_शिवाय🔱


             🌼🥀!! #जय_श्री_हरि !!🥀🌼


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कौन हैं वे पाँच गाँव, जिसके लिए महाभारत का युद्ध हुआ?

 

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आज से लगभग `५००० साल पहले लिखा गया महाभारत आज भी इतना ही रोचक है. आम आस्थालु के लिए ये निर्विवाद श्री कृष्ण की लीला है। लेकिन कुछ पुरातत्व और वैज्ञानिक आधार बताते है की सच में महाभारत हुआ था और तब का ये विश्व युद्ध था जिसमे खंड के सभी छोटे बड़े देशो ने हिस्सा लिया था। बदला, स्त्री का अपमान और जमीन की लालच युद्ध के लिए बड़ा कारण था. तब के सबसे कदावर राजनीतिज्ञ द्वारिका नरेश श्री कृष्ण ने हर संभव प्रयास किए की युद्ध न हो. लेकिन युद्ध हुआ।

लेकिन कौरव ये ५ गांव पांडव को देने को राजी हो जाते तो आज महाभारत ग्रंथ होता या नहीं उनपर भी सवाल रहता। चलो देखते है ये ५ गांव -


इन्द्रप्रस्थ


महाभारत में इंद्रप्रस्थ का उल्लेख कहीं-कहीं पर श्रीपत के नाम से मिलता है। जब पांडवों और कौरवों के बीच संबंध खराब हो गए थे तो धृतराष्ट्र ने यमुना के किनारे खांडवप्रस्थ क्षेत्र को पांडवों को देकर अलग कर दिया था। यह क्षेत्र बड़ा ही दुर्गम था। यहां की जमीन भी उपजाऊ नहीं थी, लेकिन पांडवों ने इस उजाड़ क्षेत्र को आबाद कर दिया। इसके बाद पांडवों ने रावण के ससुर और महान शिल्पकार मायासुर से विनती कर यहां सुंदर नगरी बसाई, जिसका नाम इंद्रप्रस्थ रखा गया। मौजूदा समय में दिल्ली का दक्षिणी इलाका महाभारत काल का इंद्रप्रस्थ माना जाता है।

व्याघ्रप्रस्थ

महाभारत काल के व्याघ्रप्रस्थ को आज बागपत कहा जाता है। इस जगह को मुगलकाल से बागपत कहा जाने लगा। आज ये जगह उत्तर प्रदेश में स्थित है। कहा जाता है कि इसी जगह पर दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाकर पांडवों को मारने की साजिश रची थी। लाक्षागृह एक भवन था, जिसे दुर्योधन ने पांडवों के विरुद्ध एक षड्यंत्र के तहत उनके ठहरने के लिए बनाया था। इसे लाख से निर्मित किया गया था, ताकि पांडव जब इस घर में रहने आएं तो चुपके से इसमें आग लगा कर उन्हें मारा जा सके।


स्वर्णप्रस्थ


स्वर्णप्रस्थ का तात्पर्य ‘सोने के शहर’ से है। महाभारत का स्वर्णप्रस्थ आज सोनीपत के नाम से जाना जाता है। समय के साथ महाभारत का स्वर्णप्रस्थ, ‘सोनप्रस्थ’ बना और फिर सोनीपत कहलाया। आज ये हरियाणा का एक प्रसिद्ध शहर है।

पांडुप्रस्थ

महाभारत काल में आज के पानीपत को पांडुप्रस्थ कहा जाता था। इसी पानीपत के पास कुरुक्षेत्र स्थित है, जहां महाभारत का युद्ध हुआ था। पानीपत, नई दिल्ली से 90 किलोमीटर उत्तर में है।

तिलप्रस्थ


तिलप्रस्थ नाम का यह गांव आज तिलपत के नाम से जाना जाता है। यह हरियाणा के फरीदाबाद जिले का एक कस्बा है।


Monday, December 19, 2022

परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के अनमोल बचन*:

 


- *हमको चाहिए कि हम हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी ग़लतियों, अपराधों व कमज़ोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब उन अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए। कोशिश यह हो कि कोई अच्छा काम हमसे छूटने न पावे।*

*अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो। अंतर की आँख खुलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाय और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊँचा हो जाय जिससे कि आप बारीक़, पेचीदा और मुश्किल मामलों को आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाय जिससे आप इस संबंध में आवश्यक काररवाई कर सकें।*

*तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीक़ा यह है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें। आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।  ''साहब इतनी बिनती मोरी- लाग रहे दृढ़ डोरी'' और व्यर्थ बातों से परहेज़ किया जावे। हर वक्त़ मालिक के चरणों की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त़ पर हल हो जाती हैं। उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किल आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं।*

*(बचन भाग-2, नं 38 का अंश)*



*“अपना तार हमेशा रा धा स्व आ मी दयाल से जोड़ करके रखें”*          


                                                                     *परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर ग्रेशस हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब के अमृत* *बचन:-11.3.2007:-रा धा स्व आ मी! अभी आपने परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के अमृत बचन सुने। उसमें जो विशेष सार की बात कही गई है वो यह है कि हम सबको अपना तार रा धा स्व आ मी दयाल से जोड़ कर रखना चाहिए। ऐसा हमने कर लिया तो फिर हमारी सब मंज़िलें समय से तय हो जायेंगी और सब मुश्किलें आसान हो जायेंगी। सब रोग, दुख और दुर्दशा से हम बच जायेंगे। 

हम ऐसा* *उदाहरण संगत के रूप में प्रस्तुत कर सकेंगे, ऐसा आदर्श समस्त प्राणिमात्र के सम्मुख प्रस्तुत कर सकेंगे कि रा धा स्व आ मी सतसंग विश्वव्यापी हो जाये। ऐसी कोई क्रांति या करिश्मा से रा धा स्व आ मी मत सर्वव्यापी नहीं होगा परन्तु क्रमिक विकास और आपके उदाहरण से ही रा धा स्व आ मी मत सर्वव्यापी होगा और इसका एकमात्र तरीक़ा है कि हमारा तार रा धा स्व आ मी दयाल से हमेशा जुड़ा रहे। उसकी विधि भी हुज़ूर ने अपने बचनों में स्पष्ट कर दी है। रा धा स्व आ मी नाम का जाप और स्वरूप का ध्यान जितना अधिक आप कर सकेंगे उतना तार आपका रा धा स्व आ मी दयाल से जुड़ा रहेगा और हर तरह से उनकी रक्षा का हाथ आपके ऊपर बना रहेगा।*

पिछले भंडारे पर मैंने आपको आस्तिक की परिभाषा बताई थी कि आस्तिक वह है जो ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखता है कि ईश्वर एक परम ज्ञानमय, परम शक्ति है जिसने इस रचना की न केवल सृष्टि की पर अब भी उसका भरण पोषण कर रहा है। पर मेरी समझ से अब इस बचन के सन्दर्भ में सच्चा आस्तिक वह है जो न केवल ऐसा विश्वास रखता है परन्तु अपना तार रा धा स्व आ मी दयाल से सदैव जोड़ करके रखता है। 

जितना अधिक रा धा स्व आ मी नाम आप सुमिरेंगे, जितना अधिक स्वरूप का ध्यान आप करेंगे उतना अधिक आपका तार, आपकी डोरी रा धा स्व आ मी दयाल के चरनों में दृढ़ होती जायेगी। इससे उतर करके दूसरे दर्जे के जो आस्तिक होते हैं उन्हें ईश्वर पर यह तो विश्वास है कि किसी परम ज्ञानमय शक्ति ने इस रचना की सृष्टि की। पर उसके आगे वे समझते हैं कि एक बार प्रकृति के नियम बना दिये गये और अब उस परम स्रष्टा के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। और इसलिए वह हम सबके मामलों में किसी प्रकार से दिलचस्पी नहीं रखता। 

ऐसे लोगों को थीइस्ट (theist) न कहके डीइस्ट (Deist) कहते हैं। जैसा आपने पिछले कई व्याख्यानों में सुना, वैज्ञानिकों में ये एक तरह का फ़ैशन बन गया है कि वो अपने को आस्तिक नहीं कहना चाहते। चाहे उन्हें धार्मिक अनुभूति हो भी तो वो अपने को पैनथीइस्ट (Pantheist) कहते हैं अर्थात् वे प्रकृति की शक्ति, प्रकृति के सौन्दर्य, प्रकृति की संरचना पर श्रद्धा रखते हैं, उससे विस्मय में आ जाते हैं उसका आदर करते हैं और ये समझते हैं कि धीरे-धीरे हम उन प्राकृतिक नियमों की खोज कर रहे हैं। पर इसके परे उन्हें विश्वास नहीं है। इनसे भी नीचे के दर्जे के हैं जिन्हें संशय है ईश्वर के अस्तित्व में। ऐसे लोग एग्नोस्टिक्स (Agnostics) कहलाते हैं। और सबसे नीचे के दर्जे के वे हैं जो पूरी तरह से नास्तिक हैं, वे कहते हैं ईश्वर ऐसी कोई चीज़ ही नहीं है।

 यह तो एक बिग बैंग (Big Bang) हो गया, सारी सृष्टि हो गई, उसके नियमों का पता हम लगा रहे हैं विज्ञान से, और इसके अलावा, इस भौतिक सृष्टि के अलावा कुछ नहीं है। न किसी का कोई अस्तित्व है। इसके आगे। यहीं लोग जीते हैं और मर जाते हैं और इसके बाद कोई और जीवन नहीं है। पुनर्जीवन पर वे विश्वास नहीं रखते। ऐसे लोग एथीइस्ट (Atheist) कहलाते हैं और बहुत से वैज्ञानिक अपने को एथीइस्ट कहने में बहुत गौरव का अनुभव करते हैं।                                                                

🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*



*परम गुरु हुज़ूर मेहताजी महाराज के* *बचन-भाग-2-

48)-28 दिसम्बर, 1952- 

भंडारे पर आरती के अवसर*

 *पर ‘सतसंग के उपदेश’,भाग 3 से बचन नंबर 45 पढ़ा गया कि मालिक की दया प्राप्त करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति को तीन दर्जों से गुज़रना पड़ता है। (1) पिछले संस्कार उस पर ख़ास दया होने की इजाज़त दें (2) उसके अंदर ख़ास दया होने की लालसा पैदा हो (3) उसके अंदर ख़ास दया होने की पात्रता या योग्यता पैदा हो आदि आदि।*

*हुज़ूर मेहताजी साहब ने फ़रमाया- इस बचन से मालूम होता है कि हमारी संगत इस समय दूसरे दर्जे से गुज़र रही है यानी सतसंगियों के अंदर ज़बरदस्त चाह इस बात की पैदा हो रही है कि उनको ऊँचे दर्जे के बढ़िया तजरुबे मिलें। इसके बाद जैसा कि बचन में बतलाया गया कि तीसरा दर्जा तब आवेगा जब हमारे अंदर पात्रता यानी योग्यता ख़ास तजरुबे लेने की पैदा होगी। उसके लिये आवश्यक है कि जिस काररवाई से हम उसके अधिकारी बन सकते हैं उसे अमल में लावें जिससे कि वह योग्यता हमारे अंदर पैदा हो जाय और जो सेवा हुज़ूर राधास्वामी दयाल को हर सतसंगी से या संगत से लेनी मंज़ूर है वह पूरी हो जावे।                                                                (49)-28 दिसम्बर, 1952- भंडारे के मौक़े पर दोपहर को भंडारा शुरू होने के पहले यह शब्द पढ़ा गया- "चेतो मेरे प्यारे, तेरे भले की कहूँ।।1।।*

*(सारबचन, बचन 19,शब्द-1)*


*हुज़ूर ने फ़रमाया- इस शब्द में सतसंगियों के तर्ज़े ज़िन्दगी के बारे में बतलाया गया है। उसके दो पहलू हैं- (1)* *स्वार्थी और (2) परमार्थी। जब तक हमें संसार में रहना है हम सबकी यह ख़्वाहिश रहती है कि हम आराम से, ख़ुशी से, और सुख से रहें। परन्तु यदि हम सुख से रहना चाहते हैं तो इसके लिये आवश्यक है कि हम दूसरों को सुख पहुँचावें। इसमें आप ही का भला है। जैसा कि इस शब्द में भी बतलाया गया है कि-"जीव दया तू पाल, तेरे भले की कहूँ।।12।।*


*"दुक्ख न दे तू काय, तेरे भले की कहूँ।।13।।*


*यह पहली बात है जो दुनियाँ की तर्जे़ ज़िन्दगी के बारे में इन कड़ियों में बतलाई गई है। अगर आपको अपनी भलाई मंज़ूर है तो स्वामीजी महाराज की यह बात आपको मान लेनी चाहिए कि:-"बचन तान मत मार, तेरे भले की कहूँ।।14।।*

*"कड़ुवा तू मत बोल, तेरे भले की कहूँ।।15।।*


*तान का बचन और कड़ुवा बचन छुरी की तरह दिल में काम करते हैं और यदि किसी दिल पर छुरी चल जाय तो वह बदले में छुरी ज़रूर मारेगा।*

*हमारा तर्ज़े अमल आजिज़ी (दीनता) का होना चाहिए और हमें अपने को बड़ा न समझना चाहिए बल्कि यह समझना चाहिए कि हम और लोगों से छोटे हैं। स्वामीजी महाराज ने फ़रमाया है कि-"दीन ग़रीबी धार, तेरे भले की कहूँ।।22।।"*

*पिछले वक़्त में यह ख़याल किया जाता था कि हाथ से काम नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे हाथ मैले हो जाते हैं और आदमी हरिजन, कुली और मज़दूर हो जाता है। स्वामीजी महाराज फ़रमाते हैं कि-"लीक पुरानी छोड़, तेरे भले की कहूँ।।42।।"*

*पुराने ख़यालात छोड़ देने चाहिए इसलिए आपको यह बात मान लेनी चाहिए।*

*हर कड़ी में एक एक हिदायत आपकी बेहतरी के लिये दर्ज है इसलिए अगर आप अपनी भलाई चाहते हैं तो जैसा हुज़ूर स्वामीजी महाराज ने बतलाया है उस पर अमल करें। राय बहादुर साहब ने अभी बतलाया है कि हुज़ूर महाराज ने हर भाई व बहिन को यह शब्द एक एक बार रोज़ाना पढ़ने की हिदायत की थी।                                                           रा धा स्व आ मी*


 


*Be an early riser and be economical, industrious, truthful, kind and considerate, a good citizen and a true bhakta of Huzur Ra dha sva aah mi Dayal.*

*If you want to eat you must sweat first. If you want* *self-government, you must learn to govern yourself first.* *If you want to deserve anything you must learn to serve others.*

*Waste nothing has been an important principle of my life. I have always advised men and women, young and old alike to see that they do not their time, energy, thought, wealth, food, clothing, in short anything they possess lest they find* *themselves in want of them at the time of need.*

*I also consider waste as nothing short of sin.*

*A community which wishes to go ahead with its work must remain united in purpose, thought and action.*                                                   *It must also conserve all its resources of men, money and materials and exercise forethought and arrange for the fulfilment of its aims in good time.*                                                                 *This can be possible only if every member of the community contributes his or her best effort towards the attainment of the community's ideal.*

*Discipline, self-sacrifice and hard sustained work are not only very helpful in this endeavour but are very essential.(PARAM GURU HUZUR MEHTAJI MAHARAJ)*


*सुबह हो या शाम,खेतो का काम, करते ही रहना तुम लेकर रा धा स्व आ मी नाम।।                           मेहनत और लगन से धार के तन मन धन तेरे,सुबहो से तुम सुमिरन करना ,करना हर एक काम।। सुबह हो या शाम••••••                                                                                    याद कभी आयेगी तुमको मेहताजी महाराज की,खिंच जायेगा अंतर में मन होंगे घट में उनके दर्शन-2, सुबहो से तुम सुमिरन करना करना हर एक काम।।                                                                  सुबह हो या शाम खेतो का काम करते ही रहना तुम लेकर रा धा स्व आ मी नाम।।*


*🌹🌹रा धा स्व आ मी!!                                                                 15-03-2020-परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- :-------{संदेश}-------:-                                                                   आप प्रातकाल उठने वाले एवं मित्तव्ययी, परिश्रमी, सत्यभाषी, दयावान और विचारशील, उत्तम नागरिक और हुजूर रा धा स्व आ.मी दयाल के सच्चे भक्त बनिए।                                                                       यदि आप भोजन चाहते हैं तो पहले परिश्रम करके पसीना बहाइए। यदि आप स्वशासन चाहते हैं तो पहले अपने ऊपर शासन व संयम करना सीखिए। यदि आप अपने आप को किसी वस्तु के पाने की योग्य बनाना चाहते हैं तो दूसरों की सेवा करना सीखिए। किसी चीज को नष्ट न करना मैंने जीवन का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत रहा है। मैंने हमेशा पुरुषों और स्त्रियों, बूढो और नौजवानों सबको समान रूप से यह परामर्श दिया है कि वे हमेशा ध्यान रखें कि वह अपना समय, अपनी शक्ति ,अपने विचार अपना धन, अपने खाने की चीज और वस्त्र अर्थात जो उनके पास हो उसे नष्ट ना होने दें ताकि जरूरत के समय उनको उसकी कमी महसूस न हो। मेरा यह भी विचार है कि किसी चीज का नष्ट करना पाप से कुछ कम नहीं है ।।                                                    जो संगत अपने काम में आगे बढ़ना चाहती है उसे अपने उद्देश्य विचार एवं क्रिया में एक होना चाहिए उसे यह भी चाहिए।उसे यह भी चाहिए  कि अपने कार्यकर्ताओं , धन और सामान से संबंधित सभी साधनों को सुरक्षित रखें और दूरदर्शिता से काम लें तथा अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए उचित समय के अंदर इंतजाम करें । यह केवल तभी हो सकता है जब उस संगत का हर सदस्य अपनी संगत के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए यथाशक्ति जोर लगाएं ।अनुशासन कुर्बानी और  लगातार सख्त मेहनत इस प्रयास में न सिर्फ सहायक है बल्कि निहायत जरूरी है।                                                                                            🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

Sunday, December 18, 2022

न्यूमोनिया होने पर करें ये 5 घरेलू उपाय, होगा फायदा



==आम  तौर पर मौसम बदलने के दौरान सर्दी-खांसी की समस्या होती है। कई बार इसके साथ बुखार भी हो जाता है। लेकिन तेज बुखार के साथ अगर खांसी हो रही हो तो हो सकता है कि यह न्यूमोनिया हो। यह इन्फेक्शन की वजह से होता है। इससे फेफड़े पर असर पड़ता है और उनमें सूजन हो जाती है। इससे सांस लेने में भी परेशानी होने लगती है। साधारण सर्दी-खांसी तो अपने आप भी ठीक हो जाती है, लेकिन न्यूमोनिया हो जाने पर डॉक्टर से मिल कर इलाज करना जरूरी होता है। यह बीमारी बैक्टीरिया के संक्रमण से होती है। छोटे बच्चों को अक्सर यह बीमारी हो जाती है। इसमें दवा के साथ-साथ कुछ घरेलू उपाय भी कर सकते हैं, जो हर हाल में फायदेमंद होते हैं। जानें इनके बारे में।


1. लहसुन


लहसुन में सबसे ज्यादा एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं। यह फेफड़े को भी साफ करता है। लहसुन खाने से कफ की समस्या भी नहीं होती। इसकी तासीर गर्म होती है। इसलिए भोजन में जरूर लहसुन का शामिल करना चाहिए और रोज इसका इस्तेमाल करना चाहिए।


2. हल्दी


न्यूमोनिया होने पर दूध में एक चम्मच हल्दी का पाउडर मिला कर पीने से काफी फायदा होता है। हल्दी में भी एंटी इन्फ्लेमेटरी और एंटी बैक्टीरियल गुण होते हैं। यह किसी भी तरह के संक्रमण को कम करता है और दर्द में भी राहत पहुंचाता है। इसलिए हल्दी का सेवन जरूर करना चाहिए।


3. अदरक


सर्दियों में अदरक का इस्तेमाल करने से काफी फायदा होता है। न्यूमोनिया हो जाने पर मरीज को गर्म पानी में अदरक के टुकड़े डाल कर पिलाना चाहिए। चाहें तो गर्म पानी में अदरक का रस मिला कर भी मरीज को पिला सकते हैं। यह संक्रमण को कम करता है और इसके सेवन से बुखार जल्दी दूर होता है।


4. शहद


एक कप पानी में एक चम्मच शहद मिला कर न्यूमोनिया के मरीज को पिलाएं। शहद में एंटी बैक्टीरियल और एंटी फंगल तत्व होते हैं। इसके साथ ही इसमें एंटीऑक्सीडेंट काफी मात्रा में पाया जाता है। यह न्यूमोनिया में होने वाली खांसी को ठीक करता है। 


5. मेथी

मेथी बहुत गुणकारी होती है। न्यूमोनिया होने पर मेथी को उबाल कर पानी को छान लें और उसमें थोड़ा शहद मिला कर मरीज को पिलाएं। दिन में दो से तीन बार यह उपाय करने से बुखार में राहत मिलती है ।


धनिया पत्ता खाने के क्या फायदे है ?

 धनिया पत्ता खाने के क्या फायदे है ?

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हरे धनिये की पत्तियों का इस्तेमाल अक्सर सब्जियों के स्वाद और सलाद के लिए किया जाता है, वहीं हरी चटनी पकौड़े के स्वाद को दोगुना कर देती है। लेकिन इसी के साथ ही धनिया पत्तियों के कई फायदे हैं जिसके बारे में शायद ही आपको पता हो। इसमें मौजूद विटामिन ए, विटामिन सी, कैल्शियम व मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में मौजूद होता है, जो आपके स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है। तो आइए जानते हैं हरे धनिया पत्ती के फायदों के बारे में....


- धनिये की पत्तियों में विटामिन ए और सी पाया जाता है, जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं।


- गर्मी हो सर्दी, इसका इस्तेमाल करना हर समय शरीर को कई तरह से लाभ पहुंचाता है।


- पाचन शक्ति को मजबूत रखना है तो इसका इस्तेमाल आपको नियमित तौर पर करना चाहिए। इससे आपकी पाचन शक्ति बढ़ती है।


- धनिये की पत्तियों के सेवन से पेट संबंधी परेशानियों में आराम मिलता है और बदहजमी, पेट में दर्द, गैस की समस्या से छुटकारा मिलता है।


- जाड़े में खाने की मात्रा अधिक होने पर दस्त की शिकायत बढ़ने लगती है। ऐसे में धनिये की चटनी व सलाद पेट को राहत पहुंचाती है।


- धनिया की पत्ती विटामिन ए और सी का मुख्य स्रोत है। ये हमारे शरीर में रोग प्रतिरोधी क्षमता को मजबूत करते हैं।


- इसके नियमित सेवन से सर्दी-खांसी से छुटकारा मिलता है।


- धनिया में मौजूद तत्व शरीर से कॉलेस्ट्रॉल कम कर उसे कंट्रोल में रखते हैं। यह खून में इंसुलिन की मात्रा को नियमित करता है।


- धनिया महिलाओं में मासिक धर्म संबंधी समस्याओं को दूर करता है। अगर पीरियड्स साधारण से ज्यादा हो तो आधा लीटर पानी में लगभग 6 ग्राम धनिये के बीज डालकर उबालें। इस पानी में चीनी डालकर पीने से फायदा होगा।

धर्मात्मा की खोज / कृष्ण मेहता



🚩धर्म,समाज और हम



प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 



*एक राजा था, उसके चार बेटे थे। एक दिन राजा ने उन्हें बुलाकर कहा, ‘‘जाओ, किसी धर्मात्मा को खोज लाओ, जो सबसे बड़े धर्मात्मा को लाएगा मैं उसी को गद्दी पर बिठा दूंगा।’’ चारों लड़के चले गए।*

*कुछ दिन बाद बड़ा लड़का लौटा। वह अपने साथ एक सेठ को लाया था। उसने राजा से कहा, ‘‘यह सेठ जी खूब दान-पुण्य करते हैं, इन्होंने मंदिर बनवाए हैं, तालाब खुदवाए हैं, प्याऊ लगवाए हैं, नित्य साधु-संतों को भोजन करवाते हैं।’’ राजा ने उनका सत्कार किया और वह चले गए।*

*इसके बाद दूसरा लड़का एक दुबले-पतले ब्राह्मण को लाया। बोला, ‘‘इन्होंने चारों धामों और सातों पीढ़ियों की पैदल यात्रा की है। व्रत करते हैं और झूठ नहीं बोलते।’’* 

*राजा ने उन्हें भी दक्षिणा देकर विदा किया। फिर तीसरा लड़का एक और साधु को लेकर आया। आते ही साधु ने आसन लगाया और आंखें बंद करके ध्यान करने लगा। लड़के ने कहा, ‘‘यह बड़े तपस्वी हैं। रात-दिन में सिर्फ एक बार खाते हैं, और वह भी धूप-गर्मी में पंचाग्रि तापते हैं। जाड़ों में शीतल जल में खड़े होते हैं।’’*

*राजा ने उनका स्वागत किया, तत्पश्चात वे भी प्रस्थान कर गए।*

*चौथा लड़का जब लौटा तो अपने साथ मैले-कुचैले कपड़े पहने एक देहाती को लाया। बोला, ‘‘यह एक कुत्ते के घाव धो रहे थे। मैं इन्हें नहीं जानता। आप ही पूछ लीजिए कि  यह धर्मात्मा हैं या नहीं।’’*

*राजा ने पूछा, ‘‘क्या तुम धर्म-कर्म करते हो?’’*

*वह बोला, ‘‘मैं अनपढ़ हूं। धर्म-कर्म क्या होता है, नहीं जानता। कोई बीमार होता है तो सेवा कर देता हूं। कोई मांगता है तो अन्न दे देता हूं।’’*

*राजा ने कहा, ‘‘यही सबसे बड़ा धर्मात्मा है। सबसे  बड़ा धर्म बिना किसी इच्छा के असहायों की सेवा करना है। दान-धर्म के पीछे भावना भी पवित्र होनी चाहिए।’’*


😊😊🌹🌹🙏🌹🌹

Saturday, December 17, 2022

श्रद्धा और विश्वास*/ कृष्ण मेहता

 *आज का अमृत*


प्रस्तुति - रेणु दत्ता /आशा सिन्हा 


*तुलसी पिछले पाप से, हरि चर्चा न सुहाए।*

*जैसे ज्वर के वेग से, भूख विदा हो जाए।*


*अर्थ:* पिछले जन्म में किए हुए पाप के कारण ही मनुष्य को भगवान की चर्चा उसी प्रकार अच्छी नहीं लगती जिस प्रकार ज्वर (बुखार) से ग्रस्त किसी रोगी को भूख नहीं लगती।


*श्रद्धा और विश्वास*

〰️〰️🌼〰️〰️

एक सेठ बड़ा धार्मिक था संपन्न भी था। एक बार उसने अपने घर पर पूजा पाठ रखी और पूरे शहर को न्यौता दिया। पूजा पाठ के लिए बनारस से एक विद्वान शास्त्री जी को बुलाया गया और खान पान की व्यवस्था के लिए शुद्ध घी के भोजन की व्यवस्था की गई। जिसके बनाने के लिए एक महिला जो पास के गांव में रहती थी को सुपुर्द कर दिया गया।


शास्त्री जी कथा आरंभ करते हैं, गायत्री मंत्र का जाप करते हैं और उसकी महिमा बताते हैं उसके हवन पाठ इत्यादि होता है लोग बाग आने लगे और अंत में सब भोजन का आनंद लेते घर वापस हो जाते हैं। ये सिलसिला रोज़ चलता है।


भोज्य प्रसाद बनाने वाली महिला बड़ी कुशल थी वो अपना काम करके बीच बीच में कथा आदि सुन लिया करती थी।


रोज की तरह एक दिन शास्त्री जी ने गायत्री मंत्र का जाप किया और उसकी महिमा का बखान करते हुए बोले कि इस महामंत्र को पूरे मन से एकाग्रचित होकर किया जाए तो इस भव सागर से पार जाया जा सकता है। इंसान जन्म मरण के झंझटों से मुक्त हो सकता है।


खैर करते करते कथा का अंतिम दिन आ गया। वह महिला उस दिन समय से पहले आ गई और शास्त्री जी के पास पहुंची, उन्हें प्रणाम किया और बोली कि शास्त्री जी आपसे एक निवेदन है।"


शास्त्री उसे पहचानते थे उन्होंने उसे चौके में खाना बनाते हुए देखा था। वो बोले कहो क्या कहना चाहती हो ?"


 वो थोड़ा सकुचाते हुए बोली शास्त्री जी मैं एक गरीब महिला हूँ और पड़ोस के गांव में रहती हूँ। मेरी इच्छा है कि आज का भोजन आप मेरी झोपड़ी में करें।


सेठ जी भी वहीं थे, वो थोड़ा क्रोधित हुए लेकिन शास्त्री जी ने बीच में उन्हें रोकते हुए उसका निमंत्रण स्वीकार कर लिया और बोले आप तो अन्नपूर्णा हैं। आप ने इतने दिनों तक स्वादिष्ट भोजन करवाया, मैं आपके साथ कथा के बाद चलूंगा।"


वो महिला प्रसन्न हो गई और काम में व्यस्त हो गई। कथा खत्म हुई और वो शास्त्री जी के समक्ष पहुंच गई, वायदे के अनुसार वो चल पड़े गांव की सीमा पर पहुंच गए देखा तो सामने नदी है।


शास्त्री जी ठिठक कर रुक गए बारिश का मौसम होने के कारण नदी उफान पर थी कहीं कोई नाव भी नहीं दिख रही थी। शास्त्री जी को रुकता देख महिला ने अपने वस्त्रों को ठीक से अपने शरीर पर लपेट लिया व इससे पहले की शास्त्रीजी कुछ समझते उसने शास्त्री जी का हाथ थाम कर नदी में छलांग लगा दी और जोर जोर से ऊँ भूर्भुवः स्वः ..... ऊँ भूर्भुवः स्वः बोलने लगी और एक हाथ से तैरते हुए कुछ ही क्षणों में उफनती नदी की तेज़ धारा को पार कर दूसरे किनारे पहुंच गई।


शास्त्री जी पूरे भीग गए और क्रोध में बोले मूर्ख औरत ये क्या पागलपन था अगर डूब जाते तो...?"


महिला बड़े आत्मविश्वास से बोली शास्त्री जी डूब कैसे जाते ? आप का बताया मंत्र जो साथ था। मैं तो पिछले दस दिनों से इसी तरह नदी पार करके आती और जाती हूँ।


शास्त्री जी बोले क्या मतलब ??"


महिला बोली की आप ही ने तो कहा था कि इस मंत्र से भव सागर पार किया जा सकता है। लेकिन इसके कठिन शब्द मुझसे याद नहीं हुए बस मुझे ऊँ भूर्भुवः स्वः याद रह गया तो मैंने सोचा "भव सागर" तो निश्चय ही बहुत विशाल होगा जिसे इस मंत्र से पार किया जा सकता है तो क्या आधा मंत्र से छोटी सी नदी पार नहीं होगी और मैंने पूरी एकाग्रता से इसका जाप करते हुए नदी सही सलामत पार कर ली। बस फिर क्या था मैंने रोज के 20 पैसे इसी तरह बचाए और आपके लिए अपने घर आज की रसोई तैयार की।"


शास्त्री जी का क्रोध व झुंझलाहट अब तक समाप्त हो चुकी थी। किंकर्तव्यविमूढ़ उसकी बात सुन कर उनकी आँखों में आंसू आ गए और बोले माँ मैंने अनगिनत बार इस मंत्र का जाप किया, पाठ किया और इसकी महिमा बतलाई पर तेरे विश्वास के आगे सब बेसबब रहा।"


"इस मंत्र का जाप जितनी श्रद्धा से तूने किया उसके आगे मैं नतमस्तक हूं। तू धन्य है कह कर उन्होंने उस महिला के चरण स्पर्श किए। उस महिला को कुछ समझ नहीं आ रहा था वो खड़ी की खड़ी रह गई। शास्त्री भाव विभोर से आगे बढ़ गए वो पीछे मुड़ कर बोले मां चलो भोजन नहीं कराओगी बहुत भूख लगी है।"

*🌹

Wednesday, December 14, 2022

*रसोईघर सबसे बड़ा औषधालय:-*

 


*अचानक समस्या आने पर जब कोई रास्ता न हो, रसोईघर है, काफी हैJ*॥


*ये 7 चीजें तो रसोईघर में होंगी ही*


*" घर में है घरेलू दवाघर "*

हल्दी

सोंठ

दालचीनी

लोंग

सोंफ

अजवाइन

काली मिर्च


*खांसी*

हल्दी, सोंठ, दालचीनी, लोंग, कालिमिर्च का पाउडर गुड़ से या काढ़ा बनाकर ले


*बुखार*

हल्दी, सोंठ, दालचीनी, लोंग, कालिमिर्च काढ़ा बनाकर ले


*जुखाम सर्दी*

हल्दी, सोंठ, दालचीनी, लोंग, कालिमिर्च का काढ़ा बनाकर ले


*गैस बन रही हो*

अजवाइन, सोंफ, सोंठ का पाउडर सोडा मिलाकर ले


*उल्टी*

अजवाइन सोंफ को उबालकर निम्बू डॉलेकर ले


*दस्त*

सोंफ, सोंठ को खांड से ले


*पेट दर्द*

अजवाइन, काली मिर्च, सोंफ को काला नमक से ले


*कमर जोड़ो में दर्द*

सभी को मिलाकर तेल में गर्म करके मालिश करें

अजवाइन सोंठ को काढ़ा बनाकर पिये

H

*चक्कर आना*

सोंफ लोंग को काढ़ा बनाकर खांड से ले


मूत्र रुक जाए

सोंफ मिश्री का काढ़ा ले


*सूजन*

सोंठ गुड़ का काढ़ा ले

हल्दी सरसो को गर्म कर लेप करें


*गले छाती में भारीपन*

हल्दी काली मिर्च सिंधी नमक के गरारे करें एव पिये

सोंठ गुड़ चूसे


*उच्च रक्तचाप*

सोंठ दालचीनी काली मिर्च का काढ़ा दिन में 3 बार


*दांत दर्द*

लांग का कुल्ला करें एव पेस्ट लगाए


*अचानक शुगर बहुत बढ़ जाये*

लोंग कालिमिर्च हल्दी सोंठ काढ़ा बनाकर प्रत्येक 1 घण्टे में दें


*कोई कीड़ा काट ले*

*हल्दी+काली मिर्च का पेस्ट लगाए*


समस्या के अनुसार इनका प्रयोग जल्दी जल्दी भी किया जाता है


इलाज से बेहतर बचाव है

स्वदेशी बने प्रकृति से जुड़े


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Tuesday, December 13, 2022

भारत-पाकिस्तान सीमा

 

भारत और पाकिस्तान सीमा, अन्तर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) के रूप में भारत और पाकिस्तान के बीच एक अन्तर्राष्ट्रीय सीमा है, जो भारतीय राज्यों को पाकिस्तान के चार प्रांतों से अलग करती है। यह सीमा उत्तर में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलओसी) से, जो पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित कश्मीर को भारतीय कश्मीर से अलग करती है, वाघा तक तक जाती है, जो कि पंजाब प्रांत और पाकिस्तान के पंजाब प्रांत को पूर्व में विभाजित करती है। दक्षिण में शून्य बिंदु, भारत के गुजरात और राजस्थान को पाकिस्तान के सिंध प्रांत से अलग करता है।[1]

भारत-पाकिस्तान सीमा(रेडक्लिफ रेखा)
India-Pakistan Border at Night.jpg
रात के समय सीमा का पैनोरमा, अरब सागर से लेकर हिमालय की तलहटी तक फैला हुआ है।
विशेषताएँ
शामिल देश भारत  पाकिस्तान
लम्बाई3,323 किलोमीटर (10,902,000 फीट)
इतिहास
स्थापित17 अगस्त 1947

भारत के विभाजन के बाद सर सिरिल रेडक्लिफ द्वार रेडक्लिफ रेखा के निर्माण के बाद।
वर्तमान आकार2 जुलाई 1972

शिमला संधि के अनुसमर्थन के बाद नियंत्रण रेखा का सीमांकन।
संधियाँकराची समझौताशिमला समझौता
टिप्पणियाँकश्मीर, भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा द्वारा बटा हुआ है, जिसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है।
भारत-पाकिस्तान सीमा का मानचित्र

1947 में रेडक्लिफ रेखा के आधार पर तैयार किया गया और बनाया गया सीमा, जो पाकिस्तान और भारत को एक दूसरे से विभाजित करती है, विभिन्न शहरी इलाकों से लेकर निर्जन रेगिस्तान के विभिन्न इलाकों से होकर जाती है। आगे चल कर यह सीमा अरब सागर में, पाकिस्तान के मनोरा द्वीप से मुंबई के हार्बर के मार्ग पर चलती हुई दक्षिण पूर्व तक जाती है।

भारत और पाकिस्तान सीमा पर स्वतंत्रता के बाद से, दोनो देश के बीच कई संघर्ष और युद्ध देख चुका है, और यह दुनिया की सबसे जटिल सीमाओं में से एक है।[2] पीबीएस द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार सीमा की कुल लंबाई 2,900 किमी (1,800 मील) है।[2] यह 2011 में विदेश नीति में लिखे गए लेख के आधार पर, दुनिया की सबसे खतरनाक सीमाओं में से एक है।[3] भारत द्वारा लगभग 50 हजार खम्बों पर 150,000 तेज रोशनी वाले बल्ब स्थापित किये जाने के कारण रात में इसे अंतरिक्ष से भी देखा जा सकता है।[4][5][6]

वाघा,भारत-पाकिस्तान सीमा

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...