Wednesday, September 30, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाक्यात- 


24 जनवरी 1933 -मंगलवार:- 

दयालबाग पंपलेट (अंग्रेजी भाषा ) का तीसरा ऑडिशन खत्म हो गया है। सिर्फ 10 कॉपियां रह गई है। अब नया एडिशन निकालने का वक्त भी आ पहुंचा है। आज अनेक लेख लिखवाये। माह फरवरी तक जदीद एडिशन की पाण्डुलिपि तैयार करके  प्रैस में दे दिया जावेगा ।           दयालबाग प्रेस अपने हिसाब से खूब काम कर रहा है लेकिन प्रेस में कलों की कमी है। आज ₹12000 प्रेस के विस्तार के लिए मंजूर किया गया।।                                          एडीटर साहब प्रेम प्रचारक की दरख्वास्त पर एक संक्षिप्त मजमून बसंत नंबर नवंबर के लिए लिखा।                                                     रात के सत्संग में अव्वल दुनिया का नक्शा पेश किया गया और बाद में बसंत पंचमी के दिन ही की महिमा बयान हुई। दुनिया में एक और तो  दुनिया के सामान और रोशनी, हवा वगैरह कुदरत  की शक्तियाँ है और दूसरी और उनके चिन्ह और उनके भोगों के स्वादों की याद और काम क्रोध वगैरह मानसिक शक्तियाँ हैं । इनके बीचो-बीच बेचारा जीव आता है । यह चारों मिलकर जीवात्मा पर छापा मारते हैं। और जीव दिन-रात राग द्वेष के तजरुबे हासिल करता है और मरते वक्त खाली हाथ जाता है । राग द्वेष दोनों ही जिव को संसार में बाँधते हैं । और जब  प्रकृति नियम उसे चुनाव करने का मौका देते हैं तो यह संसार ही की जानिब झुकता है। नतीजा यह है कि इस इंतजाम से आत्मा संसार ही का हो रहा है। और जन्मान जन्म यहाँ रह कर दुःख पाने के बावजूद आइंदा भी यहीं रहा चाहता है। राग द्वेष ने जीव के अंदर अविद्या के परदे को इतना मजबूत व गहरा कर दिया है कि उसे अपने नफा नुकसान की सुधि ही नहीं आ सकती । परम गुरु स्वामीजी महाराज ने सन 1861 ईस्वी में बसंत पंचमी के दिन सतसंग आम जारी फरमा कर दुनिया के इस धोखे की जड उखाड़ फेंकने का इंतजाम फरमाया। इसलिए बसंत पंचमी का दिन सतसंगियों के लिए खास अहमियत रखता है। हम सबको यह मुबारक भी सच्चे प्रेम व उत्साह से मनाना चाहिये।                 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

नाटक स्वराज्य

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【स्वराज्य】- 

स्वराज्य कल से आगे- राज!         

                                

   राजकुमारी- पिता जी !       

                       

  एडा०- देखो! मैं एक बात कहना भूल गया- संदूक में जो कागज रक्खे हैं वे कोतवाल साहब के हवाले कर देना और मेरे मरने पर उनके पास इत्तिला भिजवा देना। मैंने अपनी सब जायदाद की वसीयत तुम्हारे नाम कर दी है- वसीयत का कागज भी उन्हीं कागजों में है।  कोतवाल साहब के पास चाबी है- वह खुद सन्दूक खोलेंगे- तुम सिर्फ इतना कर देना राजकुमारी हाथ जोड़कर इत्तिला कर देना।।       

                                    

 [ राजकुमारी हाथ जोडकर नमस्कार करती है। एडाल्फस आशीर्वाद देने के लिए हाथ उठाता है लेकिन जान निकल जाती है। दो-चार मिनट के बाद कोतवाल साहब मकान में दाखिल होते हैं] कोतवाल०-  राजकुमारी जी !क्या मैं अंदर आ सकता हूँ? राजकुमारी- तशरीफ़ लाइये, पिताजी का तो स्वर्गवास हो गया ।  कोत०-हैं!  कब? राजकुमारी- अभी दो-तीन मिनट हुए । कोतवाल- तुमसे कुछ कह गये?  राजकुमारी- इतना कहा है कि संदूक की चाबी आपके पास है और उसमें कुछ कागज है और वसीयत है। कोतवाल- बहुत अच्छा ! मैं अभी चाबी लाता हूँ नीज अपने प्यारे हमवतन की तकफीन(कफ्नाना) के लिए बंदोबस्त करता हूँ-  देखो! तुम घबराओ मत - हम सब तुम्हारी मदद पर है ।(कोतवाल जाता है और राजकुमारी दु:खी होकर रोती है)-●●[ गजल ] ●●       

 दुनिया को अपने जुल्म से चैन एक नफ्स (क्षण) नहीं है। ऐ  आसमाँ! क्या दिल में तेरे भी तरस नहीं।।१।।                                                       

मरने को मर ही जायँगे बंदे सब एक दिन। दो दम का है या खेल बरस दो बरस नहीं।।२।।         

                            

नाहक के जुल्म करके बनो तुम न रूसियाह(दोषी)। क्यों सुनते कान खोल के बाँगें(घंटे कि आवाज) जरस नहीं ।।३।।।                                              

  इस चश्मे नम से क्या तेरे हासिल भला मुझे । ऐ संगदिल(कठोर)! जो दिल में मेरा कुछ तरस नहीं।।४।।।                      

  【 पर्दा गिरता है】 क्रमशः 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


अनोखी मदद

 मैं पैदल घर आ रहा था । रास्ते में एक बिजली के खंभे पर एक कागज लगा हुआ था । पास जाकर देखा, लिखा था:   



"इस रास्ते पर मैंने कल एक 50 का नोट गंवा दिया है । मुझे ठीक से दिखाई नहीं देता । जिसे भी मिले कृपया इस पते पर दे सकते हैं ।" ...


यह पढ़कर पता नहीं क्यों उस पते पर जाने की इच्छा हुई । पता याद रखा । यह उस गली के आखिरी में एक घऱ था । वहाँ जाकर आवाज लगाया तो एक वृद्धा लाठी के सहारे धीरे-धीरे बाहर आई । मुझे मालूम हुआ कि वह अकेली रहती है । उसे ठीक से दिखाई नहीं देता ।


"माँ जी", मैंने कहा - "आपका खोया हुआ 50 मुझे मिला है उसे देने आया हूँ ।"


यह सुन वह वृद्धा रोने लगी ।


"बेटा, अभी तक करीब 50-60 व्यक्ति मुझे 50-50 दे चुके हैं । मै पढ़ी-लिखी नहीं हूँ, । ठीक से दिखाई नहीं देता । पता नहीं कौन मेरी इस हालत को देख मेरी मदद करने के उद्देश्य से लिख गया है ।"


बहुत ही कहने पर माँ जी ने पैसे तो रख लिए । पर एक विनती की - ' बेटा, वह मैंने नहीं लिखा है । किसी ने मुझ पर तरस खाकर लिखा होगा । जाते-जाते उसे फाड़कर फेंक देना बेटा ।'मैनें हाँ कहकर टाल तो दिया पर मेरी अंतरात्मा ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि उन 50-60 लोगों से भी "माँ" ने यही कहा होगा । किसी ने भी नहीं फाड़ा ।जिंदगी मे हम कितने सही और कितने गलत है, ये सिर्फ दो ही शक्स जानते है..

परमात्मा और अपनी अंतरआत्मा..!! मेरा हृदय उस व्यक्ति के प्रति कृतज्ञता से भर गया । जिसने इस वृद्धा की सेवा का उपाय ढूँढा । सहायता के तो बहुत से मार्ग हैं , पर इस तरह की सेवा मेरे हृदय को छू गई । और मैंने भी उस कागज को फाड़ा नहीं ।मदद के तरीके कई हैं सिर्फ कर्म करने की तीव्र इच्छा मन मॆ होनी चाहिए

🌿

                 *कुछ नेकियाँ*

                    *और*


                *कुछ अच्छाइयां..*


  *अपने जीवन में ऐसी भी करनी चाहिए,* 


          *जिनका ईश्वर के सिवाय..* 


          *कोई और गवाह् ना हो...!!*

शनि हनुमान प्रसंग

 *हनुमानजी और शनिजी  महाराज का एक रोचक प्रसंग*

〰️〰️🔹〰️〰️🔹〰️〰️🔹〰️〰️🔹〰️〰️🔹〰️〰️

तुलसीदासजी कहते हैं- "संकट ते हनुमान छुड़ावें" शनि को हम संकट कहते हैं, एक बार हनुमानजी पहाड़ की तलहटी में बैठे थे तभी शनि महाराज हनुमानजी के सिर पर आ गये, हनुमानजी ने सिर खुजाया लगता है कोई कीड़ा आ गया, हनुमानजी ने पूछा तू है कौन? शनिदेव ने कहां- मैं शनि हूँ, मैं संकट हूँ, हनुमानजी ने कहा मेरे पास क्यो आये हो? शनि बोले मैं अब आपके सिर पर निवास करूँगा।


हनुमानजी ने कहाँ- अरे भले आदमी, मैंने ही तुझे रावण के बंधन से छुड़वाया था और मेरे ही सिर पर आ गये, बोले हाँ क्यो छुड़ाया था आपने, इसका फल तो आपको भोगना पडे़गा, अच्छा कितने दिन रहना है? शनि बोला साढ़े सात साल और अच्छी खातिरदारी हो गयी तो ढाई साल और, हनुमानजी ने कहा भले आदमी किसी और के पास जाओं।


मैं भला श्री रामजी का मजदूर आदमी, सुबह से शाम तक सेवा में लगा रहता हूँ, मुश्किल पड़ जाएगी, तुम भी दुःख भोगेगे और मुझे भी परेशान करोगे, शनिदेव ने कहा मैं तो नही जाऊंगा, हनुमानजी बोले कोई बात नही तुम ऐसे नही मानोगे, हनुमानजी ने एक बहुत बड़ा पत्थर उठाया और अपने सिर पर रखा, 


पत्थर शनिदेव के ऊपर आ गया, शनि महाराज बोले यह क्या कर रहे हो? बोले माँ ने कहा था कि चटनी बनाने के लिए एक बटना ले आना वह ले जा रहा हूँ, हनुमानजी ने जैसे ही पत्थर को उठाकर मचका दिया तो शनि चीं बोलने लगा, दूसरी बार किया तो बोले क्या करते हो? बोले चिन्ता मत करों, शनिदेव बोले- छोड़ो-छोड़ो, हनुमानजी बोले नहीं अभी तो साढ़े सात मिनट भी नहीं हुये है, तुम्हें तो साढ़े सात साल रहना है।


जब दो-तीन मचके ओर दिये तो शनिदेव तिलमिला गये, शनिदेव ने कहा भैय्या मेरे ऊपर कृपा करो, बोले ऐसी कृपा नही करूँगा, बोले वरदान देकर जाओं, शनि का ही दिन था, हनुमानजी ने कहा कि तुम मेरे भक्तो को सताना बंद करोगे, तब शनि ने कहा कि हनुमानजी के जो भी भक्त शनिवार को आपका स्मरण करेगा आपके चालीसा का पाठ करेगा मैं उसके यहाँ नही, बल्कि उसके पडोसी के वहाँ भी कभी नही जाऊंगा, उसका संकट दूर हो जायेगा।


फिर शनिदेव ने कहा कि हनुमानजी एक कृपा आप भी मुझ पर कर दीजिये, हनुमानजी बोले क्या? शनिदेव बोले- आपने इतनी ज्यादा मेरी हड्डियां चरमरा दी हैं, इसलिये थोड़ी तेल मालिश हो जाये तो बड़ी कृपा हो जायें, हनुमानजी ने कहा कि ठीक है मैं अपने भक्तो को कहता हूँ कि शनिवार के दिन जो शनिदेव को तेल चढ़ायेंगा उसके संकट मैं स्वयं दूर करूँगा।


दूसरा संकट क्या है? त्रिताप ही संकट है, दैविक, दैहिक तथा भौतिक ताप यही संकट है और इसकी मुक्ति का साधन क्या है? केवल भगवान् का सुमिरन, "राम राज बैठें त्रैलोका, हरषित भये गये सब सोका" रामराज कोई शासन की व्यवस्था का नाम नही है, रामराज मानव के स्वभाव की अवस्था का नाम है, समाज की दिव्य अवस्था का नाम है।


आज कहते हैं कि हम रामराज लायेंगे, तो भाई-बहनों  फिर राम कहाँ से लायेंगे? नहीं-नहीं व्यवस्था नहीं, वह अवस्था जिसको रामराज कहते हैं, रामराज्य की अवस्था क्या है? "सब नर करहिं परस्पर प्रीती, चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती" यह रामराज्य की अवस्था है, व्यवस्था कैसी भी हो अगर, व्यक्तियों की और समाज की यह अवस्था रहेगी तो शासन में कोई भी बैठो राज्य राम का ही माना जायेगा, 


राम मर्यादा है, धर्म है, सत्य है, शील है, सेवा है, समर्पण है, राम किसी व्यक्तित्व का नाम नही है, राम वृत्ति का नाम है, स्वरूप का नाम राम नहीं है बल्कि स्वभाव का नाम राम है, इस स्वभाव के जो भी होंगे वे सब राम ही कहलायेंगे, वेद का, धर्म की मर्यादा का पालन हो, स्वधर्म का पालन हो, यही रामराज्य है।


स्वधर्म का अर्थ हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई, बौद्ध धर्म का पालन नही है, स्वधर्म का अर्थ है जिस-जिस का जो-जो धर्म है, पिता का पुत्र के प्रति धर्म, पुत्र का पिता के प्रति धर्म, स्वामी का धर्म, सेवक का धर्म, राजा का धर्म, प्रजा का धर्म, पति का धर्म, पत्नी का धर्म, शिक्षक का धर्म, शिष्य का धर्म।


यानी अपने-अपने कर्तव्य का पालन, जैसे सड़क पर अपनी-अपनी लाईन में यदि वाहन चलेंगे तो किसी प्रकार की टकराहट नही होगी, संघर्ष नही होगा और जब आप लाईन तोड़ देंगे जैसे मर्यादा की रेखा जानकीजी ने तोड़ दी थी, आखिर कितने संकट में फँस गयी, कितना बड़ा युद्ध करना पड़ा जानकीजी को छुड़ाने के लियें।


जरा सी मर्यादा का उल्लंघन जीवन को कितने बड़े संकट में फँसा सकता है, जो रामराज्य में रहेगा हनुमानजी उसके पास संकट आने ही नही देंगे, क्योंकि रामराज्य के मुख्य पहरेदार तो श्रीहनुमानजी महाराज हैं, तीनों कालों का संकट हनुमानजी से दूर रहता है, संकट होता है- शोक, मोह और भय से, भूतकाल का भय ऐसा क्यों कर दिया, ऐसा कर देता तो मोह होता है।


वर्तमान में जो कुछ सुख साधन आपके पास हैं यह बना रहे, इसको पकड़कर बैठना यह मोह और भय होता है, भविष्यकाल में कोई छीन न ले कोई लूट न ले, भविष्य का भय की मेरा क्या होगा? भाई-बहनों आपको भविष्य की चिंता छोड देना, क्योंकि, हनुमानजी सब कालों में विधमान हैं, "चारों जुग प्रताप तुम्हारा, है प्रसिद्ध जगत उजियारा" हनुमानजी तो अमर हैं।


चारों युगों में हैं सम्पूर्ण संकट जहाँ छूट जाते हैं शोक, मोह, भय वह है भगवान् श्री रामजी की कथा, कथा में हनुमानजी रहते हैं, अगर वृत्तियाँ न छूटे तो हनुमानजी छुड़ा देंगे, बिल्कुल मानस के अंत में पार्वतीजी ने प्रमाणित किया है, "सुनि भुसुंडि के बचन सुहाये, हरषित खगपति पंख फुलाये" तीनों संकट अगर दूर चले जाते हैं, या छोड़ देते हैं, मनुष्य को तो वह श्रीराम की कृपा मिल जाती है, और उस कृपा से मोह का नाश होता है, 


बिनु सतसंग न हरि कथा, तेहि बिनु मोह न भाग।

मोह गएँ बिनु राम पद, होय न दृढ़ अनुराग।।


भगवत कथा, सत्संग यह मोह का नाश करती है, संत-मिलन संत-दर्शन शोक को दूर करता है "तोहि दैखि वेग शीतल भई छाती" जैसे हनुमानजी मिले तो जानकीजी का ह्रदय शान्त हो गया, शीतल हो गया, हनुमानजी के प्रति श्रद्धा रखियें, श्रद्धा से भय का नाश होता है, आपके मन में यदि भगवान् के प्रति श्रद्धा है तो आप कभी किसी से भयभीत नही होंगे।


जय श्री रामजी 

जय श्री हनुमानजी,

*

नींद विधान


 🚩🔱🕉️🔥📿 *आज का सत्संग* 

¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤¤   उल्टा सोवे अभागिया,सीधा सोवे रोगी,

बाये तो हर कोई सोवे,दाये सोवे जोगी


उलटा सोने से घोर निंद्रा में आत्मा शरीर से एक पल के लिए भी  बाहर नहीं निकल पाती है।विधि के अनुसार 24 घण्टे में आत्मा को इक क्षण के लिए ही सही, किन्तु शरीर का त्याग करना ही होता है।

सीधा सोने से नाक के दोनों छिद्र खुल जाते है और हम दोनों छिद्रो से साँस लेने लगते है जिससे की हमारे दोनों मस्तिष्क एक साथ कार्य करने लगते है। जिससे हममे दिवास्वप्न जैसी अवस्था का निर्माण होने लगता है भ्रम की स्थिति का भी निर्माण होता है इस स्थिति का निर्माण प्रातः 4 बजे ब्रह्म मुहूर्त मे होता है।किन्तु लौकिक  -परालौकिक ज्ञान के लिए ये समय सक्षम होता।इस समय के स्वप्न अक्सर सच्चे होते है।

बायें करवट सोने से दाया मस्तिष्क कार्य करता है एवम् आपका दायें नाक का छिद्र खुल जाता है जो की पुरुष प्रधान है इसे "शिव"कहा जाता है एवम् इसकी प्रवृति गरम होती है ।जिस्से कार्यो में बाधा उतपन्न होती है अगले दिन कार्य में बाधा आती रहती है।और क्रोध पैदा होते रहता है।

बायाँ मस्तिष्क जो स्त्रैण है ममता मई होता है ये मन को शांत रखता है।दाया सोने से बायें नाक का छिद्र खुल जाता है इससे कल्पना करने में आसानी होती है।

भगवान् ने सारे ग्रन्थ कोड भाषा में लिखे है उसे डिकोड करने की आवश्यकता है।बाए करवट में सोने से शिव साधना में सफलता प्राप्त होती है एवम् दाए सोने से शिव की साधना में सफलता प्राप्त होती हैं।

सीधा सोने से दोनों सिद्धिया प्राप्त होती है।सीधा सोने से प्रातः नाक से दोनों छिद्रो से स्वास् प्रारम्भ हो जाती है जिसे शास्त्रो में सुषम्ना का जागृत होना कहा गया है 

किन्तु इसको संभालना कठिन है यही साधना का कल्प वृक्ष है जहा हर इच्छा पूर्ण होती है।

बायें आँख में शिव का निवास होता है जो सच्चा साधक होता है उसकी एक आँख छोटी होती है यही उसकी पहचान है।

हमें नहीं लगता की ध्यान दोनों आँखों को बंद कर करना चाहिए ,शिव साधक को ध्यान के समय अपनी दाई आँख बंद रखना चाहिए एकम देवी के साधक को इसके विपरीत ध्यान करना चाहिए।दोनों आँखों कों बन्द करने में स्वयं को खोने का भय होता है।भटकने का भय होता है।आँखों को खोल कर ,शुन्य में ध्यान लगाना ही उचित है।

राधस्वामी सतसंग

 **राधास्वामी!! 30-09-2020 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-    

                              

   (1) संत बचन हिरदे में धरना । उनसे मुख मोड़न नहीं करना ।। छोड़ कुसंगी से तू प्यार। सच्चा संगी खोजो यार।।-( जो हुआ सतगुरु की छाँह। सूरज लागा उसके पाँव।।) ( प्रेमबानी-3- अशआर सतगुरु महिमा- पृष्ठ संख्या- 385- 386)                                                 

  (2) ना जानू साहब कैसा है।। टेक।।  

                              

Iकोई दिखावे काली मूरत, कोई बतावे गजानन सूरत। रूप भयंकर पेख होय हैरत, क्या साहब तू ऐसा है ।।१।।  कोई कहे तुम अरब में बसते,कुँराँ वजीफा के बस रहते।नवी मेहर बिन कभी न मिलते, क्या साहब तू ऐसा है।।४।।(प्रेमबिलास- शब्द 64- पृ.सं.83)                                                                       

( 3 ) यथार्थ प्रकाश -भाग पहला- कल से आगे।।       

         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 30-09-2020- 

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन कल से आगे-( 123 ) हे प्रियजनों! उपशामक औषधियों(palliatives)  के प्रयोग से कोई व्याधि दूर नहीं हो जाती किंतु क्षणमात्र के लिए दब जाती है। तुम उनके भरोसे न रहो, अपने रोग की नियमपूर्वक चिकित्सा कराओ। तुम्हें पूर्ण स्वतंत्रता है कि यथेष्ट राष्ट्रीय तथा सामाजिक व्यवस्थाएँ स्थापित करो किंतु सच्चे मजहब अर्थात धर्म के से भगवत्प्रदत प्रवर प्रसाद का तिरस्कार न करो। ईश्वर कोई दानव या पिशाच नहीं है। जिस सारतत्व या जौहर की तुम्हारी आत्मा बनी है उसी जोहर के स्रोत यि भंडार को खुदा अर्थात ईश्वर कहते हैं। तुम चैतन्य तत्व के बिंदु हो और वह चैतन्य तत्व का सींधु है। तुम चैतन्य तत्व की किरण हो और वह चैतन्य तत्व का किरण-माली सूर्य है।  हर अंश का अंशी होता है। तुम्हारे सारतत्व का भी अंशी है -                        [वही ईश्वर है]                                         उसके अस्तित्व में नास्तिकताभाव लाना अपने अस्तित्व में नास्तिकभाव लाना है और अपने अस्तित्व में नास्तिकताभाव लाना आत्मघात है।   

                                          

🙏🏻राधास्वामी

🙏🏻 यथार्थ प्रकाश -भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


मैं कौन हूँ?

 प्रस्तुति - आत्म स्वरूप: 


🤔🤔🤔🤔🤔


*एक व्यक्ति सुबह-सुबह थोड़ा सा आध्यात्मिक हो गया और आंखें बंद करके सोचने लगा :* 🤔


1. कौन हूँ मैं ?

2. कहाँ से आया हूँ ?

3. क्यों आया हूँ ?

4. कहाँ जाना है ?


*इन प्रश्नों के चिंतन में वह इतना खो गया कि समय का ध्यान नहीं रहा।*

*तभी किचन से पत्नी की आवाज़ आई,-*


“1. एक नम्बर के आलसी हो तुम, 

2. पता नहीं कौन सी दुनिया से आये हो,

3. मेरा जिंदगी खराब करने,

4. उठो और नहाने जाओ."


*चारों प्रश्नों का बड़ी सुगमता से उत्तर मिलने से उसकी आध्यात्मिक यात्रा पूरी होने के साथ संपूर्ण ज्ञान की प्राप्ति हो गई !*


😂😂😂

[9/29, 21:56] Swami Sharan: *"यदि जीवन के 40 वर्ष पार कर लिए है तो अब लौटने की तैयारी प्रारंभ करें....इससे पहले की देर हो जाये... इससे पहले की सब किया धरा निरर्थक हो जाये....."✍️*


*लौटना क्यों है*❓

*लौटना कहाँ है*❓

*लौटना कैसे है*❓


इसे जानने, समझने एवं लौटने का निर्णय लेने के लिए आइये टॉलस्टाय की मशहूर कहानी आज आपके साथ साझा करता हूँ :


*"लौटना कभी आसान नहीं होता*"


एक आदमी राजा के पास गया कि वो बहुत गरीब था, उसके पास कुछ भी नहीं, उसे मदद चाहिए...

राजा दयालु था..उसने पूछा कि "क्या मदद चाहिए..?"


आदमी ने कहा.."थोड़ा-सा भूखंड.."


राजा ने कहा, “कल सुबह सूर्योदय के समय तुम यहां आना..ज़मीन पर तुम दौड़ना जितनी दूर तक दौड़ पाओगे वो पूरा भूखंड तुम्हारा। परंतु ध्यान रहे,जहां से तुम दौड़ना शुरू करोगे, सूर्यास्त तक तुम्हें वहीं लौट आना होगा,अन्यथा कुछ नहीं मिलेगा...!"  


आदमी खुश हो गया...

सुबह हुई.. 

सूर्योदय के साथ आदमी दौड़ने लगा...

आदमी दौड़ता रहा.. दौड़ता रहा.. सूरज सिर पर चढ़ आया था..पर आदमी का दौड़ना नहीं रुका था..वो हांफ रहा था,पर रुका नहीं था...थोड़ा और..एक बार की मेहनत है..फिर पूरी ज़िंदगी आराम...

शाम होने लगी थी...आदमी को याद आया, लौटना भी है, नहीं तो फिर कुछ नहीं मिलेगा...

उसने देखा, वो काफी दूर चला आया था.. अब उसे लौटना था..पर कैसे लौटता..? सूरज पश्चिम की ओर मुड़ चुका था.. आदमी ने पूरा दम लगाया --

वो लौट सकता था... पर समय तेजी से बीत रहा था..थोड़ी ताकत और लगानी होगी...वो पूरी गति से दौड़ने लगा...पर अब दौड़ा नहीं जा रहा था..वो थक कर गिर गया... उसके प्राण वहीं निकल गए...! 


राजा यह सब देख रहा था...

अपने सहयोगियों के साथ वो वहां गया, जहां आदमी ज़मीन पर गिरा था...

राजा ने उसे गौर से देखा..

फिर सिर्फ़ इतना कहा...

*"इसे सिर्फ दो गज़ ज़मीं की दरकार थी...नाहक ही ये इतना दौड़ रहा था...! "*


आदमी को लौटना था... पर लौट नहीं पाया...

वो लौट गया वहां, जहां से कोई लौट कर नहीं आता...


अब ज़रा उस आदमी की जगह अपने आपको रख कर कल्पना करें, कही हम भी तो वही भारी भूल नही कर रहे जो उसने की

हमें अपनी चाहतों की सीमा का पता नहीं होता...

हमारी ज़रूरतें तो सीमित होती हैं, पर चाहतें अनंत..

अपनी चाहतों के मोह में हम लौटने की तैयारी ही नहीं करते...जब करते हैं तो बहुत देर हो चुकी होती है...

फिर हमारे पास कुछ भी नहीं बचता...


अतः *आज अपनी डायरी पैन उठाये कुछ प्रश्न एवं उनके उत्तर अनिवार्य रूप से लिखें* ओर उनके जवाब भी लिखें

मैं जीवन की दौड़ में सम्मिलित हुआ था, आज तक कहाँ पहुँचा?

आखिर मुझे जाना कहाँ है ओर कब तक पहुँचना है?

इसी तरह दौड़ता रहा तो कहाँ ओर कब तक पहुँच पाऊंगा? 


हम सभी दौड़ रहे हैं... बिना ये समझे कि सूरज समय पर लौट जाता है...

अभिमन्यु भी लौटना नहीं जानता था...हम सब अभिमन्यु ही हैं..हम भी लौटना नहीं जानते...


सच ये है कि "जो लौटना जानते हैं, वही जीना भी जानते हैं...पर लौटना इतना भी आसान नहीं होता..."


काश टॉलस्टाय की कहानी का वो पात्र समय से लौट पाता...!

*"मै ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि  हम सब लौट पाएं..! लौटने का विवेक, सामर्थ्य एवं निर्णय हम सबको मिले.... सबका मंगल होय...."*✍️

प्रेम उपदेश

 प्रेम उपदेश / (परम गुरु हुज़ूर महाराज)


            40. ऐसे ऐसे बंधन और अटकें और क़ैदें पड़ी हुई हैं कि जैसा मन चाहता है कोई भी काम नहीं बनता है और कुछ अभी नहीं, हमेशा से ऐसी मौज देखने में आई है कि जिस क़दर कोई मन से इरादा निकलने का करे, उसी क़दर ज़्यादा बाहरी बखेड़े बढ़ते जाते हैं और चाहे वे बखेड़े और रगड़े असली होवें चाहे केवल देखने मात्र के, पर इस जीव को दुःख देने और तंग करने और सुस्त रखने और कभी कभी निराश करने और बिलकुल इसका बल तोड़ने को बहुत भारी मालूम पड़ते हैं। और जो चाहें कि इन झमेलों के साथ तोड़ फोड़ कर चरनों में लिपट जावें, तो ऐसा भी नहीं होता और जो इधर ही के काम को पहले पूरा करना चाहें, तो वह भी, जिस तरह और जैसा जल्दी इसका मन चाहता है, नहीं बन पड़ता बल्कि और दुःख देता है और घबराहट को बढ़ाता है। यह हालत इस जीव की है कि चाहे जितना जतन करे, मन के घाट से नहीं हटता और बारंबार उधर ही को झोका खाता है। इसमें बड़ी लाचारी है पर इसमें भी कुछ मसलहत सफ़ाई मन और बुद्धि की और तोड़ने उनके बल और भरोसे की है।

            41. सतगुरु दयाल परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी की दया बड़ी भारी है, पर वे क्या करें। इस जीव के बंधन मन और तन और इंद्रियों के संग बड़े गाढ़े हैं और जुगानजुग से बँधे चले आये हैं और पुरानी आदत उन्हीं के संग बरताव की ज़बर पड़ रही है और जोकि वे अपनी मेहर और दया से छुड़ाते हैं, पर यह छूटने में भी महा दुखी होता है और मरा जाता है और टूटने को तैयार होता है। तब वे फिर छोड़ देते हैं और इसकी हालत पर दया करते हैं और आहिस्ता आहिस्ता निकालना मुनासिब समझते हैं, एक दम के निकालने के लायक़ जीव को नहीं देखते। और ज़बरदस्ती करना मंज़ूर नहीं है, अलबत्ता काम बनाना मंज़ूर है और यह काम आहिस्ता आहिस्ता बन सकता है। जैसा कि जीव बहुत मुद्दत से भूला और भरमा हुआ है, ऐसे ही आहिस्तगी के साथ इसकी भूल और पुरानी आदतें दूर होवेंगी।

            42. और मालूम होवे कि काम के बनाव में किसी तरह का संदेह नहीं है, क्योंकि हुज़ूर राधास्वामी दयाल ने अपनी दया से सब सेवकों के हृदय में अपनी प्रीति और प्रतीति थोड़ी या बहुत बख़्शिश कर दी है। और जोकि मन अनेक रंगों की तरंगों में बहता है, पर जो हुज़ूर राधास्वामी दयाल के चरनों की थोड़ी बहुत प्रीति सुरत और मन में धरी है, उसका भी ख़्याल और सोच उसको अक्सर आता रहता है।

            43. ज़्यादा बड़भागी वे हैं कि जिनके सदा तड़प और बेकली हृदय में छाई रहती है और मन को दूसरी तरफ़ जाने नहीं देते, और जो जाता भी है तो उसको वहाँ ठहरने नहीं देते और कुरंग की तरंगों के उठाने में उसको धिक्कार देते रहते हैं। यह सब दर्जे सतगुरु के चरनों की प्रीति और बिरह के हैं। जिसको जितनी बख़्शिश है, उतना ही उसको अपने मन में फ़ायदा और असर उसका मालूम होता है। पर जो एक दम और बिलकुल मन के घाट और बाट से न्यारा होना चाहता है, तो यह जब तक कि अभ्यास करके पिंड से न्यारा न होगा, तब तक नहीं हो सकता। इस वास्ते जल्दी और घबराहट नहीं चाहिए।

राधास्वामी

साहब जी महाराज के बचन

  हुजूर साहब  जी  महाराज के बचन / : बचन नं 12


     3 अक्टूबर , 1964 को शाम के सतसंग में हुजूर साहबजी महाराज का एक बचन पोशाक के बारे में पढ़ा गया जिसमें फ़रमाया गया कि " भाईचारा व साम्य हमारी विशेषताएँ हों , आपसी संगठन हमारा जातीय शब्द हो और हम पोशाक के ध्यान से , भाषा के ध्यान से और बरताव व व्यवहार के ध्यान से एक जान दो क़ालिब ( शरीर ) हों । "


     इस बचन के बाद हुजूर मुअल्ला ने हँसते हुए मिश्राजी से ( जो बचन पढ़ रहे थे ) फ़रमाया आपने यह बचन 22 सितम्बर के पहले क्यों नहीं पढ़ा ? अगर आपने पहले पढ़ा होता तो मुझे जो इतनी बार औरतों के पोशाक के बारे में कहना पड़ा ( सलवार और कुरता पहनने के लिए ) वह न कहना पड़ता । उन्होंने उत्तर में निवेदन किया हुजूर ! गलती हो गई । फिर हुजूर ने फ़रमाया कि संतों के बचनों का महत्व व मसलहत समझना बहुत कठिन है । वह जो बचन फ़रमाते हैं यह आवश्यक नहीं कि उन पर वह उसी समय अमलदरामद करना चाहते हों । हुजूर साहबजी महाराज ने समय समय पर तरह तरह के बचन फ़रमाए जिन पर उसी समय अमल कराना उन की मंशा नहीं थी परन्तु कुछ समय बाद उन पर अमल करने की आवश्यकता प्रतीत हुई और उन पर अमल किया गया ।   


     फिर फ़रमाया कि लोगों के लिए खर्च का बढ़ाना आसान होता है , लेकिन कम करना बहुत मुश्किल होता है । मैं देखता हूँ कि अक्सर लड़के पैंट पहन कर खेतों में आते हैं और वे लग कर काम नहीं करते क्योंकि पैंट पहने हुए उन्हें उठने बैठने में तकलीफ होती है । अगर वह पायजामा पहना करें तो उठने बैठने में आसानी हो और फिर , वे . काम फुर्ती से कर सकते हैं । इसके अलावा पायजामा पहनने से आर्थिक बचत हो सकती है । पैंट की सिलाई कम से कम ढाई , तीन रुपया लगती है और प्रायजामा चार आने में सिल जाता है । पैंट की अपेक्षा पायजामें में कपडा कम लगता है और पायजामें का कपडा पैंट की अपेक्षा कम क़ीमत वाला होता है । मैं सब पुरुषों व लड़कों को सलाह दूंगा कि वह पायजामा इस्तेमाल किया करें । जिनके पास पुरानी पैंटें सिली सिलाई रखी हैं वह उनको इस्तेमाल कर सकते हैं परन्तु वह नई न बनवायें । हाँ , कॉलेजों व आफ़िसों में व विशेष उत्सवों में जाने के उद्देश्य से एक या दो पैंट बनवा लें और शेष समय में पायजामा पहना करें ।

[9/30, 12:59] +91 83779 58104:  Bachan No. 12


     On 3" October a discourse of Sahabji Maharaj on the subject of dress of Satsangis was read out in the evening Satsang and Huzur Mehtaji Sahab explained how brotherly relationship and equality should be our qualities, Unity should be our watchword and we should from the point of view of dress, from the point of view of language and in our conduct and behaviour be united and one, as if we have only one soul though separate bodies


    This discourse of Huzur Sahabji Maharaj was so appropriate and suited to the main topic of discussion these days that Huzur Mehtaji Sahab jokingly enquired why this discourse had not been read earlier ie before 22 September, for if it had been read carlier, he would have been saved from saying all he had to say to make Satsangi ladies put on kurta and salwar. Huzur Mehtaji Sahab thereafter observed as below:


     It is difficult to understand the significance and importance of the discourses and statements of the Saints. It is not necessary that they want that action according to their advice be taken immediately when they give the advice or deliver a discourse. Huzur Sahabji Maharaj at different times delivered many discourses, though it was not His intention that action on them be taken immediately thereafter.


     


Huzur continued. It is easy for people to increase their expenditure but to reduce it would be very difficult. I see that the boys often come to fields wearing pants and do not work with application for it becomes difficult for them to sit and stand wearing pants. If he wears pyjama it would be easy to stand or sit and they can work conveniently. Apart from this it would be economical to wear pyjama. Tailoring charges for pant would be atleast two and a half or three rupees and you can get a pyjama stitched for four annas The cloth needed would be less and it would be less costly as compared to cloth of a pant. I advise all men and boys that they should wear pyjamas. Those who have pants stitched with them they can use them but they should not get new ones stitched. Yes they can have a pant or two stitched for going to college or office or for special functions. The rest of the time they should wear pyjamas.

Tuesday, September 29, 2020

सीख

 🙏शिक्षा / सबक 🙏


*एक पति ने अपने गुस्सैल पत्नी  से तंग आकर उसे कीलों से भरा एक थैला देते हुए कहा ,"तुम्हें जितनी बार क्रोध आए तुम थैले से एक कील निकाल कर बाड़े में ठोंक देना !"*


🎯पत्नी को अगले दिन जैसे ही क्रोध आया उसने एक कील बाड़े की दीवार पर ठोंक दी। यह प्रक्रिया वह लगातार करती रही।


🤦🏻‍♂धीरे धीरे उसकी समझ में आने लगा कि कील ठोंकने की व्यर्थ मेहनत करने से अच्छा तो अपने क्रोध पर नियंत्रण करना है और क्रमशः कील ठोंकने की उसकी संख्या कम होती गई।


🙋🏻‍♂एक दिन ऐसा भी आया कि पत्नी  ने दिन में एक भी कील नहीं ठोंकी।


🤷🏻‍♂उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई। वे बहुत प्रसन्न हुए और कहा, "जिस दिन तुम्हें लगे कि तुम एक बार भी क्रोधित नहीं हुई, ठोंकी हुई कीलों में से एक कील निकाल लेना।"


👱‍♀️पत्नी ऐसा ही करने लगी। एक दिन ऐसा भी आया कि बाड़े में एक भी कील नहीं बची। उसने खुशी खुशी यह बात अपने पति को बताई।


*पति उस पत्नी  को बाड़े* *में लेकर गए और कीलों के छेद* *दिखाते हुए पूछा, "क्या तुम ये छेद भर सकती हो?"*


🌿पत्नी ने कहा,"नहीं जी"


🌿पति  ने उसके कन्धे पर हाथ रखते हुए कहा,"अब समझी, क्रोध में तुम्हारे द्वारा कहे गए कठोर शब्द, दूसरे के दिल में ऐसे छेद कर देते हैं, जिनकी भरपाई भविष्य में तुम कभी नहीं कर सकते !"


 *सन्देश : जब भी आपको क्रोध आये तो सोचिएगा कि कहीं आप भी किसी के दिल में कील ठोंकने तो नहीं जा रहे ?*

ये बात सास बहू पिता पुत्र भाई भाई या भाई बहन या किसी मित्र मे भी हो सकती है

दयालबाग़ शाम सत्संग

 **राधास्वामी!! 29-09-2020- 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-     

                               

 (1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।। अभ्यासी को कहे पुकारी। शब्द सुनों आओ सरन हमारी।।-(वही हकीम वही उस्ताद। हिये में सुनत रहो उन नाद।।) (प्रेमबानी-3-अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.382-383)                                                     

(2) अचरज भाग जगा मेरा प्यारी, (मोहि) नाम दिया गुरु दाना री। जनम जनम की तृषा बुझानी, पी पी अमी अघाना री।।टेक।। अस गुरु नाम पाय जिय मोरा, निसदिन रहे बिगसानि री। कहन सुनन में कैसे लाऊँ, अचरज मिला खजाना री।।४।। (प्रेमबिलास-शब्द-63, पृ.सं.82)                                                              

   (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!                                       

29-09 -2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन


कल से आगे-( 122 ) का शेष भाग :-एक समय था कि शासन ने तुम्हें इन भोगों के हटात् वंचित कर रक्खा था और अब तुम्हें उनके भोगने के लिए पूरी स्वतंत्रता प्राप्त हो गई है।  सो, तुम उन्हें भोग रहे हो और प्रसन्न हो। परंतु कंकडी निगलते समय वह राजहंस भी प्रसन्न होता था। थोड़े समय के अनन्तर अवश्य उदर- पीड़ा से ग्रस्त होंगे। मन का स्वभाव है कि संसार के भोग प्राप्त न होने पर उनके लिए तड़पता है और जब वह किसी मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं तो आनंदित होता है । 

किंतु कुछ काल के अनन्तर उसकी तृष्णा बढ़ जाती है और वह अधिक मात्रा के लिए तडपने लगता है। वह भी प्राप्त हो जाने पर और अधिक मात्रा के लिए व्याकुल होता है।  किंबहुना, उसकी तृष्णा की कोई सीमा नहीं। यही तृष्णा थी कि जिसने तुम्हारे शासको को इतना अत्याचारी और स्वार्थपरक बनाया। यही तृष्णा है जो तुम्हें मजहब और खुदा अर्थात धर्म और ईश्वर से परांगमुख कर रही है। इतना आगे चलकर तुम्हारा मान-मर्दन करेगी। 

जोकि इस तृष्णा में एक प्रकार का रसास्वाद है इसलिए मनुष्य को यह प्रिय होती है। जब तक मनुष्य को संसार के पदार्थों से श्रेयतर सुख और तृष्णा से प्रशस्यतर सास्वाद प्राप्त न हो वह इन्ही में लिप्त रहकर दुख और निरादर सहता है। यही हाल तुम्हारा है। सच्चा मजहब इनके मुकाबले आध्यात्मिक आनंद और प्रेम प्रदान करता है।

 तुम 5 मिनट के लिए अपनी चित्त-वृति संसार के पदार्थों से हटा कर अंतर्मुख करो और 10 मिनट के लिए तृष्णा से हटकर उसे प्रेम में लगाओ और देखो कि दोनों में कितना अंतर है। अंतरी आध्यात्मिक आनंद का लेशमात्र अनुभव होते ही और प्रेम के अंग की झलक आते ही तुम्हें निश्चय हो जायेगा कि किस दिशा में चलने से तुम्हारी हार्दिक इच्छा पूर्ण हो सकती है।

 जो मार्ग संसार अर्थात मन और इंद्रियों के भोग के स्थान से चलकर उस स्थान पर पहुंचता है जहां तुम्हारी और मनुष्य -मात्र की मनःकामना पूर्ण हो सकती है--              

【 वही मजहब या धर्म है】 

                                           

 उसके अस्तित्व में नास्तिकभाव लाना अपनी एक उचित और स्वाभाविक कामना में नास्तिकभाव लाना है और उस उचित और स्वभाविक कामना में नास्तिकभाव लाना अपने को नर्क का कीड़ा मानना है।।    

                         

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


DAYALBAGH satasang

 राधास्वामी!! 29-09-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                     (1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।। अभ्यासी को कहे पुकारी। शब्द सुनों आओ सरन हमारी।।-(वही हकीम वही उस्ताद। हिये में सुनत रहो उन नाद।।) (प्रेमबानी-3-अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.382-383)                                                     (2) अचरज भाग जगा मेरा प्यारी, (मोहि) नाम दिया गुरु दाना री। जनम जनम की तृषा बुझानी, पी पी अमी अघाना री।।टेक।। अस गुरु नाम पाय जिय मोरा, निसदिन रहे बिगसानि री। कहन सुनन में कैसे लाऊँ, अचरज मिला खजाना री।।४।। (प्रेमबिलास-शब्द-63, पृ.सं.82)                                                                 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!!                                       29-09 -2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 122 ) का शेष भाग :-एक समय था कि शासन ने तुम्हें इन भोगों के हटात् वंचित कर रक्खा था और अब तुम्हें उनके भोगने के लिए पूरी स्वतंत्रता प्राप्त हो गई है।  सो, तुम उन्हें भोग रहे हो और प्रसन्न हो। परंतु कंकडी निगलते समय वह राजहंस भी प्रसन्न होता था। थोड़े समय के अनन्तर अवश्य उदर- पीड़ा से ग्रस्त होंगे। मन का स्वभाव है कि संसार के भोग प्राप्त न होने पर उनके लिए तड़पता है और जब वह किसी मात्रा में प्राप्त हो जाते हैं तो आनंदित होता है । किंतु कुछ काल के अनन्तर उसकी तृष्णा बढ़ जाती है और वह अधिक मात्रा के लिए तडपने लगता है। वह भी प्राप्त हो जाने पर और अधिक मात्रा के लिए व्याकुल होता है।  किंबहुना, उसकी तृष्णा की कोई सीमा नहीं। यही तृष्णा थी कि जिसने तुम्हारे शासको को इतना अत्याचारी और स्वार्थपरक बनाया। यही तृष्णा है जो तुम्हें मजहब और खुदा अर्थात धर्म और ईश्वर से परांगमुख कर रही है। इतना आगे चलकर तुम्हारा मान-मर्दन करेगी। जोकि इस तृष्णा में एक प्रकार का रसास्वाद है इसलिए मनुष्य को यह प्रिय होती है। जब तक मनुष्य को संसार के पदार्थों से श्रेयतर सुख और तृष्णा से प्रशस्यतर सास्वाद प्राप्त न हो वह इन्ही में लिप्त रहकर दुख और निरादर सहता है। यही हाल तुम्हारा है। सच्चा मजहब इनके मुकाबले आध्यात्मिक आनंद और प्रेम प्रदान करता है। तुम 5 मिनट के लिए अपनी चित्त-वृति संसार के पदार्थों से हटा कर अंतर्मुख करो और 10 मिनट के लिए तृष्णा से हटकर उसे प्रेम में लगाओ और देखो कि दोनों में कितना अंतर है। अंतरी आध्यात्मिक आनंद का लेशमात्र अनुभव होते ही और प्रेम के अंग की झलक आते ही तुम्हें निश्चय हो जायेगा कि किस दिशा में चलने से तुम्हारी हार्दिक इच्छा पूर्ण हो सकती है। जो मार्ग संसार अर्थात मन और इंद्रियों के भोग के स्थान से चलकर उस स्थान पर पहुंचता है जहां तुम्हारी और मनुष्य -मात्र की मनःकामना पूर्ण हो सकती है--              【 वही मजहब या धर्म है】                        उसके अस्तित्व में नास्तिकभाव लाना अपनी एक उचित और स्वाभाविक कामना में नास्तिकभाव लाना है और उस उचित और स्वभाविक कामना में नास्तिकभाव लाना अपने को नर्क का कीड़ा मानना है।।               🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!

दयालबाग

  शाम 29-09-20 को होने वाले खेतों का कार्यक्रम:


जनरल पार्टी के भाईसाहबान, बहनें, सुपरमैन स्कीम के बच्चे मूंग की पकी फलियाॅ तोडने अपना थैला साथ लेकर नहर के दक्षिण में जाएँगे। कृपया ज्यादा से ज्यादा संख्या में लोग खेतों की सेवा के लिए पहुंचें ताकि फलियाॅ तोड़ने का काम समय से पूरा किया जा स के। जब 

।द

पूज्य हुज़ूर द्वारा दिव्य रहस्योद्घाटन

(15 सितम्बर, 2020 को सुबह सतसंग के दौरान)

दि.15.09.2020 को प्रातः सतसंग में सारबचन (नज़्म) के शब्द (बचन 8,

शब्द 1, कड़ी 26-30) (पृष्ठ 171) की निम्नलिखित कड़ियाँ पढ़ी गईं-

 

          गुरुमुख की गति सबसे भारी।

                     गुरुमुख कोटिन जीव उबारी।। 26।।

          कहाँ लग महिमा गुरुमुख गाऊँ।

                     कोई न जाने किस समझाऊँ।। 27।।

          जग में पड़ा काल का घेरा।

                     जीव   करें  चौरासी  फेरा।। 28।।

          जो चौरासी छूटन चावें।

                     तो गुरुमुख सेवा चित लावें।। 29।।

          और काम सब देहिं बहाई।

                     शब्द गुरू की  करें  कमाई।। 30।।

          सतसंग के उपरांत परम श्रद्धेय हुज़ूर ने फरमाया-

सारबचन (नज़्म) में प्रस्तुत गुरुमुख की महिमा का वर्णन वास्तव में परम पुरुष पूरन धनी हुज़ूर स्वामीजी महाराज एवं उनके पश्चात् हुए वक़्त संत सतगुरुओं की महिमा का वर्णन है।

          हुज़ूर राधास्वामी दयाल तो सर्वव्यापी हैं। वक़्त संत सतगुरु उनकी एक किरण के समान हैं। वे ही हुज़ूर राधास्वामी दयाल के गुरुमुख हैं। उन्हीं की महिमा का वर्णन सारबचन (नज़्म) में किया गया है।

          यहाँ पर गुरुमुख का अर्थ वक़्त संतसतगुरु के किसी चेले के रूप में लगाना पूर्णतः ग़लत होगा।

कोरोना पर सलाह

 परम पूज्य हुज़ूर द्वारा डी ई आई की टीम को MIT COVID-19 Challenge Hackathon में शानदार सफलता प्राप्त करने पर फ़रमाए गए अमृतमय आशीर्वचन


(1 सितम्बर, 2020, शाम के खेतों में)




          Massachusetts Institute of Technology (MIT) ने 28 से 30 अगस्त, 2020 तक MIT COVID-19 Challenge Hackathon-India: Turning the tide कार्यक्रम आयोजित किया जिसका प्रमुख उद्देश्य भारत में COVID-19 महामारी के कारण उत्पन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए समाधान विकसित करना था।

          48 घंटे के इस online कार्यक्रम में 30 देशों से 1400 प्रतिभागियों तथा 300 mentors ने भाग लिया। जिसमें दयालबाग़ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (DEI) (Deemed to be University) के भी कई सदस्य शामिल थे। DEI की ओर से भाग लेने वाली टीम्स (teams) में दो टीम्स को उनके tracks में विजयी घोषित किया गया-

          1. Team- Docs @Home जिसका नेतृत्व प्रो. के. स्वामी दया ने किया। और

          2. Team- Whistle Winds जिसका नेतृत्व अमोली गुप्ता (न्यूयॉर्क राधास्वामी सतसंग ब्रांच) व प्रतीश (DEI, दयालबाग़) ने किया।

          1 सितम्बर, 2020 को शाम के खेतों में कृषिकार्य के दौरान विनम्र मानवीय प्रयासों को दया मेहर से सफलता का सेहरा पहनाने के लिए परम पिता के चरणों में शुकराना पेश करने हेतु एक लघु समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर परम पूज्य हुज़ूर ने दयाकर प्रसन्न होकर अमृतमय आशीर्वचन फ़रमाये-

          “राधास्वामी।

          इस शानदार सफलता के लिए आप सभी को मेरा आशीर्वाद कि देश ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर NGT (Nominal Group Technique), AHP (Analytic Hierarchy Process) व इस प्रकार की अन्य आम सहमति निर्मित करने वाली तकनीकों पर भरोसा किया जो कमज़ोर (Least), पिछड़े (Last), निम्नतम (Lowest) व लुप्त प्राय (lost) लोगों को जीवन में उपयुक्त दर्जा दिलाने व उसके परे भव्य (सर्वोच्च) मुक्ति की प्रक्रिया के पक्ष में हैं।   

  राधास्वामी”

प्रेम पत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र- भाग 1-

 कल से आगे-(3)

 पहले इस मन में इच्छा उठती है, यानी एक किस्म की हिलोर पैदा होती है और जिस किस्म की वह इच्छा है यानी जिस इंद्री के भोग की चाह है ,उसी इंद्री की तरफ पहले मन में हिलोर उठ कर और फिर धार पैदा होकर जारी होती है। 

और जो भोग का पदार्थ सन्मुख है, तो उसका वह इंद्री भोग करती है और जो भोग का पदार्थ मौजूद नहीं है तो उसकी प्राप्ति के लिये जो जतन जरूरी है उस जतन में कारज करने वाली इंद्री के द्वारा लग जाती है।।                                                     

 (4) सुरत की शक्ति की धार सिर्फ मन तक आती है और उस चैतन्य को , जो मन आकाश में है , मदद और ताकत देती है। फिर वहाँ से मन -आकाश के चैतन्य की धार पैदा होकर इंद्री द्वार पर आती है और इंद्री द्वार से , जो इस आकाश के चैतन्य की धार है उससे मिलकर भोगों और पदार्थों में बाहर जाती है, और इसी तरह आकाश से मुआफिक इच्छा या चाह के धार पैदा होकर पिंड में इंद्री द्वारा और नीचे की तरफ जाती है और अंग अंग को ताकत देती है। 

क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


रोजाना वाकयात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकिआत-

 23 जनवरी 1933- सोमवार

-   डेरी जाकर मालूम हुआ कि नई गाय अब बिल्कुल तंदुरुस्त है। मगर दूध अभी 30 सेर दैनिक ही देती है हमारे हिसाब से डेढ़ मन दैनिक देना चाहिये।।   

                                    

  मिस्टर भट्टाचार्य प्रिंसिपल ट्रेनिंग कॉलेज मिलने आये। 26 जनवरी को आपके कॉलेज में एंबुलेंस कोर का जलसा है । हमारे गर्ल्स स्कूल से भी 8 लड़कियां फर्स्ट एड के मुकाबले के लिए जा रही हैं । अगर दिल की हालत दुरुस्त रही तो जलसे में शरीक होने का इरादा है।।     

                                             

  रात के सत्संग में दयालबाग वालों की मुश्किलों के हल के मुतअल्लिक़ अनेक प्रस्तावों पर गौर किया गया। इंसान को चाहिए कि न तो मुश्किलों में घबराये और न ही लापरवाह हो। अकलमंदी इसी में है कि उनका साहस पूर्वक मुकाबला किया जावे। हमारी अधिकतर मुश्किलात हमारी नादानी से पैदा होती है। 

हमें जिंदगी बसर करने का ढंग नहीं आता । अंग्रेजों के घर जब बच्चा पैदा होता है तो शुरू ही से उसको अलग रहने अपनी फिक्र करने की आदत डलवाते है। विपरीत इसके हमारे यहाँ मातायें बच्चों को एकदम छाती से लगाये फिरती हैं जिससे वह परले दर्जे के बुजदिल बन जाते हैं। 

खाने पीने के मुतअल्लिक़ भी हम सख्त गलतियाँ  करते हैं। रुपया पैसा मिठाइयों और फुजूल  चटपटी चीजों पर नष्ट करते हैं और खाने में घी या मक्खन की किफायत करते है। घी व मक्खन के अंदर खास ताकत है घी का चिराग रोशन करके देखो कैसे जलता है। और उसके मुकाबले अनाज और मिठाई को जलाकर देखो। 

 घी के चिराग की लौ तेज रोशन, सीधी और अटूट होगी। घी हमारे जिस्म के अंदर दाखिल होकर जिस्म को ताकत से भर देता है। अलावा इसके हर मशीन का पुर्जा चिकना रखने ही से काम देता है फिर जिस्म के अवयव खुश्क रह कर कैसे काम कर सकते हैं?  जिस्म तो एक मशीन ही है । 

जो सत्संगी सख्त मेहनत मजदूरी करते हैं या जिन्हें दिमाग से ज्यादा काम लेना पड़ता है उन्हे खालिस घी या मक्खन जरूर इस्तेमाल करना चाहिये। जिनके जिम्मे सख्त मेहनत के काम नहीं है और परमार्थ का तेज शौक रखते हैं वह चिकनाई युक्त वस्तुओं के इस्तेमाल से परहेज कर सकते हैं । वरना तंदरुस्ती बिगड जाने पर इंसान न दुनिया का रहता है न दीन का।।                  

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


Monday, September 28, 2020

दयालबाग़ 28/09 सत्संग

 **राधास्वामी!! 28-09-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-     

                             

  (1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।। जिनके है मालिक का प्यार।हिन्दु और तुरक दोउ यार।।-(रस्ते में है काल का घेरा। शब्द सुना दुख दे है घनेरा।।।) (प्रेमबानी-3-शब्द-आशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.383-384)                                    

 

(2) अचरज भाग जगा मेरा प्यारी,(मोहि) नाम दिया गुरु दाना री। जनम जनम की तृषा बुझानी, पी पी अमी अघाना री।।टेक।।  ( प्रेमबिलास-शब्द-63, पृ.सं. 81-83)  

                                

    (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।                          🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!!  / 28-09 -2020-


 आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे-( 122 )

 राष्ट्रीय पथपर्दर्शको तथा धर्म- विमुख नवयुवकों के आक्षेप सुनकर राधास्वामी-मत विस्मय से मुस्कुरा उठता है और कहता है -हे प्रियजनों ! अब जरा सच्चे मजहब की भी सुन लो।  एक पक्षीय  निर्णय करना उचित कार्यशैली नहीं है। मजहब अथवा परमार्थ तो भगवान का प्रदान किया हुआ एक अमूल्य वरदान है।

 आज तक जो कुछ तुम्हें मजहब के संबंध में बतलाया गया और जो कुछ तुमने उसके विषय में सुना वह मजहब नहीं है। मजहब का शब्दार्थ है - रास्ता ,मार्ग या पंथ।  मार्ग या पंथ मनुष्य को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाता है। संसार एक संकीर्ण तथा अन्धकारमय  स्थान है । मनुष्य का मन वासनाओं से पूर्ण है। 

तुम्हारे अंतर के अंतर सच्चे, गहरे और अविनाशी सुख तथा आनंद की वासना विद्यमान है।  संसार के पदार्थ तुम्हारी इस वासना को पूर्ण नहीं करते।  भूखा राजहंस, जिसका वास्तविक भक्ष्य मुक्ताफल है, तालाब के कंकड़ो में मुक्ताफल ढूंढता है। वहाँ मुक्ताफल कहाँ?  निदान कंकडियाँ निगलता है और उदर की पीड़ा से चिल्लाता है ।

 यही तुम्हारी दशा है। तुम संसार के पदार्थों में सच्चा, गहरा और अविनाशी सुख और आनंद खोजते हो । संसार के पदार्थ कंकडो के समान है। उनमें सच्चा सुख और आनंद कहा?  तुम विवश होकर कंकड़ी निगलते हो 

और वेदना से चिल्लाते हो । पर हर्ष है कि तुम्हें चिल्लाने की योग्यता तो आई, वरन् और लोग तो वेदना सहते हैं और कंकड़ी पर कंकड़ी निगलते हैं। सच्चा मजहब वह पंथ है जो कंकडो के तालाब अर्थात संसार से चलकर वास्तविक मानसरोवर अर्थात् निर्मल चेतनमंडल तक पहुँचता है। 

संसार तथा संसार के पदार्थों से कदापि तुम्हारी इच्छा की पूर्ति ना होगी। यद्यपि तुमने अपने विचारों, सामाजिक नियमों तथा राष्ट्रीय व्यवस्थाओं में महान परिवर्तन किये हैं तथापि कंकड किसी प्रकार मुँह में डालो कंकड़ ही रहेगा। निदान तुम्हारा संबंध मन और इंद्रियों के भोगों ही से रहेगा।   

                                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग पहला

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


प्रेम पत्र / मन और इच्छा का बयान

 **परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- 

कल से आगे :-(37)-

【 मन और इच्छा का बयान】-

(1) पिंडी मन और इच्छा ब्रह्मांडी मन और माया की (जिनको ब्रह्म और माया और शिव शक्ति कहते हैं) अंश है।  इनका असली रुझान बाहर और नीचे की तरफ है। और जिस मसाले के यह बने हुए हैं, वह भी तीसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के नीचे के आकाश का मसाला है। यह मसाला भी ब्रह्मांड के मसाले की निस्बत स्थूल है , यानी स्थूल माया की मिलौनी उसमें ज्यादा है और उसके मुख का भी नीचे और बाहर की तरफ झुकाव ज्यादा है, यानी माया के पदार्थों के साथ उसका मेल है और उन्हीं से यह पिंड मन और उसके औजार ,इंद्रियाँ और देह अपना आहार और ताकत लेते हैं।।                         (2) जबकि इस मन का यह हाल है, तब जाहिर है कि इसका असली झुकाव इंद्रियों के जरिए से लोगों की तरफ बहुत है , पर उसमें चैतन्य शक्ति जिससे वह काम दे रहा है, सुरत की धार है। क्रमशः                               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

Sunday, September 27, 2020

रोजाना वाक्यस्त

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

 रोजाना वाकिआत- 22 जनवरी- रविवार :-   

                              

     सुबह के वक्त गीता के विभिन्न तर्जुमों का अपने तर्जुमा से मुकाबला करके फर्क दिखलाया गयि। तीसरे पहर अर्सा बाद विद्यार्थियों का सत्संग हुआ । जिसमें मिलकर जिंदगी बसर करने के लाभ बयान हुए।।                                                               रात के सत्संग में गीता के उपदेशों पर रोशनी डाली गई। मेरी राय में गीता के रचनाकार का मंशा यह था कि कृष्ण जी की भक्ति को दूसरे सब उस समय प्रचलित मतों पर प्रधानता साबित की जाये। और मुसन्निफ़ की काबिलियत इसमें है कि किसी दूसरे मत के खिलाफ सख्त अल्फाज इस्तेमाल न करते हुए अपना उद्देश्य हासिल कर लिया। 

कर्मकांड ,त्याग ,सन्यास, ज्ञान सभी की महिमा बयान करके देह रूप कृष्ण जी की शरण व भक्ति को सबसे उच्चतर साबित किया । और परमार्रथ की सबसे ऊँची मंजिल उनकी जात से मेल होना करार दिया। चुनाँचे यही ख्याल लेकर लाखो आदमी कृष्ण जी की उपासना करते हैं। 

और गीता की तस्नीफ के बाद लाखों ने इंद्र वगैरह देवताओं की पूजा छोड़कर कृष्ण जी की शरण अख्तियार की । और अब चूँकि देहरूप कृष्ण जी से वस्ल हासिल नहीं है इसलिए उनकी मूर्ति की परस्तिश से यह गीता ही के पाठ के महातम पर स्थिर करके अपनी स्वार्थसिद्धि की फिक्र में है।।                                               

 अजमेर में इस साल स्वामी दयानंद जी की मृत्यु अर्द्ध शताब्दी मनाये जाने की तैयारियाँ हो रही है । इत्तिला मिली थी कि जलसा माह अक्टूबर में आयोजित होगा लेकिन आज अजमेर से खत आया है जिससे मालूम हुआ कि जलसा मनाने वाली दो पार्टियाँ है। 

एक पार्टी माह फरवरी में जलसा मना रही है दूसरी अक्टूबर में मनावेगी। प्रथम वर्णित पार्टी ने राधास्वामी मत की तालीम बयान करने के लिए प्रतिनिधि तलब किया है । मेरा इरादा माह अक्टूबर में अजमेर जाने का है क्योंकि अजमेर के सत्संगियों से वादा कर लिया है कि अगर वह उस माह दयालबाग निर्मित वस्तुओं की नुमाइश करेंगे तो मैं भी उसमें शरीक होऊँगा। जैसे सतसंग में दो पार्टियां अलग अलग भंडारा मनाती है ऐसे ही आर्य समाज में भी अलग-अलग उत्सव मनाने का बंदोबस्त हो रहा है। मालूम होता है कि लोगों के मतों में तो फर्क है लेकिन मानसिकता में फर्क नहीं है।।       

                               

    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हजूर साहबजी महाराज -

【स्वराज्य】नाटक 

 कल से आगे-( पांचवा दृश्य) 

स्थान- यूनानी चित्रकार है एडाल्फस का मकान।

 [एडल्फस चारपाई पर पड़ा है, अचानक नींद से जागकर आवाज देता है] एडाल्फस- राज! मुझे जरा बिठला दोगे? [राजकुमारी दौड़ कर आती है और एडाल्फस को चारपाई पर तकिये के सहारे बिठलाती है ] राजकुमारी-कैसी तबीयत है? एडा०- मैंने तुम्हारे पिता को अभी ख्वाब में देखा । उनकी चौडी पेशानी है न?  राजकुमारी-( खुश होकर) भला मुझे क्या मालूम उनकी पेशानी कैसी थी- मैं तो बच्चा ही थी जब वह यात्रा के लिए चले गये।।              एडा०- हाँ ठीक है -तुम्हारी उम्र मुश्किल से 1 महीने की थी जब वह तुमसे जुदा हुए- मगर तुम्हारे पिता का रंग गोरा है और आंखें निहायत चमकीली है और वह खैरियत से हैं। राजकुमारी- हाँ क्या बात क्या बातें हुई उनसे? क्या वह वापिस आ रहे हैं?  उन्हें गये 18 बरस के करीब हो गये।  एडा०- उन्होंने मुझसे दो बातें कहीं -एक तो यह है कि वह बहुत खुश है कि मैंने तुम्हारी परवरिश के लिए इंतजाम किया और दूसरी बात उन्होंने मेरी बाबत कहीं । राजकुमारी -(घबराकर) वह क्या थी? एडा०- वह निहायत थके और परेशान मालूम होते थे जिससे ख्याल होता है कि उन्हें अभी अपने इरादे में कामयाबी हासिल नहीं हुई है।  राजकुमारी- उन्होंने आपकी बाबत क्या बात कही? क्या बीमारी के बाबत कुछ कहा? एडा०- यही कि अब मेरे कूच का वक्त करीब है -मुझे तैयार हो जाना चाहिए- मेरा मौजूदा जिस्म इस काबिल नहीं है कि मैं योगसाधन कर सकूँ- मेरा खान-पान दूसरी तरह का रहा है इसलिए परमात्मा ने कृपा करके मुझे बेहतर जिस्म दिए जाने का हुकुम फरमाया है। राजकुमारी-( आंखों में आंसू ला कर ) क्या आप मुझे अकेले छोड़कर चले जायँगें? मेरे ऊपर तरस नही करेंगे? एडा०- मुहब्बत तो जिस कदर मुझे तुम्हारे साथ रही है तुम जानती ही हो लेकिन थोड़ी देर हुई (सीने पर हाथ रखकर बतलाता है) यहाँ से एक घुंडी सी खुल गई है -तब से मेरे दिल में किसी के लिए मोहब्बत नहीं रही है। अब मेरी सलाह मानो, मुझे खुशी से रुखसत होने दो और दो चार बातें जो मैं बताना चाहता हूँ वह सुन लो।[ राजकुमारी चुपचाप रोती है और एडाल्फस के चेहरे की तरफ ताकती है ।                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

U

प्रेमपत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- 

कल से आगे :-(37)-

【 मन और इच्छा का बयान】-


(1) पिंडी मन और इच्छा ब्रह्मांडी मन और माया की (जिनको ब्रह्म और माया और शिव शक्ति कहते हैं) अंश है।  इनका असली रुझान बाहर और नीचे की तरफ है। और जिस मसाले के यह बने हुए हैं, वह भी तीसरे दर्जे यानी ब्रह्मांड के नीचे के आकाश का मसाला है। यह मसाला भी ब्रह्मांड के मसाले की निस्बत स्थूल है , यानी स्थूल माया की मिलौनी उसमें ज्यादा है और उसके मुख का भी नीचे और बाहर की तरफ झुकाव ज्यादा है, यानी माया के पदार्थों के साथ उसका मेल है और उन्हीं से यह पिंड मन और उसके औजार ,इंद्रियाँ और देह अपना आहार और ताकत लेते हैं।।                         

(2) जबकि इस मन का यह हाल है, तब जाहिर है कि इसका असली झुकाव इंद्रियों के जरिए से लोगों की तरफ बहुत है , पर उसमें चैतन्य शक्ति जिससे वह काम दे रहा है, सुरत की धार है। 

क्रमशः                               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


आज का दिन 28/09 मंगलमय हो

 🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 28 सितम्बर 2020*

⛅ *दिन - सोमवार*

⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*

⛅ *शक संवत - 1942*

⛅ *अयन - दक्षिणायन*

⛅ *ऋतु - शरद*

⛅ *मास - अधिक अश्विन*

⛅ *पक्ष - शुक्ल* 

⛅ *तिथि - द्वादशी रात्रि 08:58 तक तत्पश्चात त्रयोदशी*

⛅ *नक्षत्र - धनिष्ठा रात्रि 10:39 तक तत्पश्चात शतभिषा*

⛅ *योग - धृति रात्रि 07:16 तक तत्पश्चात शूल*

⛅ *राहुकाल - सुबह 07:59 से सुबह 09:29 तक*

⛅ *सूर्योदय - 06:30* 

⛅ *सूर्यास्त - 18:27* 

⛅ *दिशाशूल - पूर्व दिशा में*

⛅ *व्रत पर्व विवरण - 

 💥 *विशेष - द्वादशी को पूतिका(पोई) अथवा त्रयोदशी को बैंगन खाने से पुत्र का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो* 🌷

➡ *29 सितम्बर 2020 मंगलवार को भोम प्रदोष योग है ।*

🙏🏻 *किसी को आर्थिक परेशानी या कर्जा हो तो भोम प्रदोष योग हो, उस दिन शाम को सूर्य अस्त के समय घर के आसपास कोई शिवजी का मंदिर हो तो जाए और ५ बत्ती वाला दीपक जलाये और थोड़ी देर जप करें :*

👉🏻 *ये मंत्र बोले :–*

🌷 *ॐ भौमाय नमः*

🌷 *ॐ मंगलाय नमः*

🌷 *ॐ भुजाय नमः*

🌷 *ॐ रुन्ह्र्ताय नमः*

🌷 *ॐ भूमिपुत्राय नमः*

🌷 *ॐ अंगारकाय नमः*

👉🏻 *और हर मंगलवार को ये मंगल की स्तुति करें:-*

🌷 *धरणी गर्भ संभूतं विद्युत् कांति समप्रभम |*

*कुमारं शक्ति हस्तं तं मंगलम प्रणमाम्यहम ||*


          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *कमरे में कैसा बल्ब लगायें* 🌷

💡 *लाल रंग के बल्ब कमरे में लगाने से उसमें रहनेवाले का स्वभाव चिडचिडा होने लगता है |*

💡 *इसलिए कमरे में पारदर्शक, आसमानी अथवा हरे रंग का बल्ब लगाओ ताकि कमरे में रहनेवाले आनंदित रहें |*


          🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

प्रस्तुति - कृष्ण  मेहता 

 🌷 *कर्ज-निवारक कुंजी भौम प्रदोष व्रत* 🌷

🙏🏻 *त्रयोदशी को मंगलवार  उसे भौम प्रदोष कहते हैं ....इस दिन नमक, मिर्च नहीं खाना चाहिये, इससे जल्दी फायदा होता है | मंगलदेव ऋणहर्ता देव हैं। इस दिन संध्या के समय यदि भगवान भोलेनाथ का पूजन करें तो भोलेनाथ की, गुरु की कृपा से हम जल्दी ही कर्ज से मुक्त हो सकते हैं। इस दैवी सहायता के साथ थोड़ा स्वयं भी पुरुषार्थ करें। पूजा करते समय यह मंत्र बोलें –*

🌷 *मृत्युंजयमहादेव त्राहिमां शरणागतम्।* *जन्ममृत्युजराव्याधिपीड़ितः कर्मबन्धनः।।*     


               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🙏🍀🌻🌹🌸💐🍁🌷🌺🙏

दयालबाग़ 28/09 सुबह सतसंग

 **राधास्वामी!! 28-09-2020 / सुबह का सतसंग 

- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-      

                              

(1) गुरु मिले परम पद दानी। क्या गति मति उनकी करूँ बखानी।। संत बिना कोई भेद न जाने। उस घर से वह आय बखाने।।-(सतगुरु मेरे परम दयाला। करूँ आरती होउँ निहाला।।) ◆दोबारा पढा गया◆ (सारबचन-शब्द-दूसरा,पृ.सं.178)         

                                

   (2) आज माँगे सुरतिया भक्ति दान।।टेक।। त्रिय तापन संग बहु दुख।पाये। फीका लगा जहान ।।-(मेहर हुई स्रुत अधर सिधारी। राधास्वामी चरनन जार समान।।)◆दोबारा पढा गया◆ (प्रेमबानी-2-शब्द-45,पृ.सं.314)   

                                          

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


सवराज्य

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-【 स्वराज्य】- नाटक 


 कल से आगे

- अमर दास- जो आसन आपको बतलाया जायगा वह निहायत आसान है और इसलिए उसे सहज आसन कहते हैं और साधन की विधि भी निहायत सहज है इसलिए उसे सहज योग कहते हैं लेकिन यह साधन उसी शख्स से बन सकता है जिसके हृदय में परमात्मा के लिए सच्चा प्रेम है । अगर आपने ईश्वरप्राणीधान की महिमा सुनी है तो इस साधन की महिमा आसानी से समझ में आ जावेगी। इस साधन का कोई संबंध न कर्मकांड से है और न हठयोग आदि से।थोड़े दिन साधन करने पर आपके अंतर में अनहद नाद प्रकट होगा । जब तक वह नाद प्रकट ना हो उस वक्त तक आपका मन किसी कदर व्याकुल रहेगा लेकिन इस नाद के प्रकट होते ही आप को परम शांति प्राप्त होगी और धीरे-धीरे आपके अंदर आत्मदर्शन व  परमात्मादर्शन का अधिकार पैदा होता जावेगा।  उग्रसेन-( बैठने के लिए कोशिश करता हुआ और दोनों हाथों से अमरदास के चरण पकड़ कर ) आप मेरे गुरुदेव हैं - आज मैंने दूसरा जन्म पाया । सच है बिना मरे दूसरा जन्म नहीं हो सकता। जैसी आपकी आज्ञा होगी मैं वैसा ही करूँगा- मुझे आपके बचनों से बहुत शांति हुई है । अनहद नाद की महिमा उन ऋषियों ने भी की थी। हे परमात्मन्! आपकी कृपा से मेरा संकल्प पूरा होने लगा है। आपको नमस्कार है!  अमरदास- आप धीरज धरें- मैं आपको एक भजन सुनाता हूँ उसे सुने और उसके अर्थो पर विचार करें। ( गाता है)          ◆◆गाना◆◆                                                     मन रे, खोजों प्रभु अविनासी।।टेक।।।                     जिन खोज्या तिन सहजहि पाया निज घट माहिं निवासी। मूर्खजन जिन मरम न जाना भरमें दुखित उदासी । कोई अटके ग्रंथन के माही कोइ गंगा कोई कासी। निज घट दृष्टि उलट नहिं देखे झिलमिल जोति प्रकासी। अमरदास बिन सतगुरु पूरे को काटे भ्रमफाँसी ।।                                      उग्रसेन- कृपानिधे! आप सत्य कहते हैं लेकिन अब निज घाट में दृष्टि उलटने का साधन बतला कर मेरी तड़प को बुझावें और मुझे आज्ञा दें कि जगत के जीवो को पुकार कर सुनाऊँ कि इस नगर में पूरे व सच्चे गुरु विद्यमान है जो भ्रम की फाँसी काटने में पूर्ण समर्थ है।  अमरदास- ओछे पात्र न बनो -अधिकारी व अनाधिकारी के भेद को मत भुलाओ।  उग्रसेन- हे महाराज ! कुल भारत पर कृपा करो।  अमरदास- अधिकार आने पर जरूर कृपा होगी -एक समय आयेगा कि भारतवर्ष में क्या सारे जगत् में सतगुरु- भक्ति व सुरत -शब्द योग की महिमा का डंका बजेगा। उग्रसेन- वह समय कब आवेगा? अमरदास- जब देश में काफी शांति हो जायगी और जीवों के वास्ते गुरु महाराज के चरणो में पहुंचने के लिए सवारी का मुनासिब बंदोबस्त हो जाएगा । उग्रसेन-धन्य है प्रभु -धन्य है! क्रमशः               🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

प्रेमपत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1


- कल से आगे-        

                                            

 ( 8 ) जो बयान कर्म की ऊपर लिखी गई है इसी को संतमत के मुआफिक शुभ कर्म समझना चाहिए। और जो करनी इसके विरुद्ध है, यानी सच्चे मालिक का खोज और उसकी भक्ति न करना और उसके दर्शनों की चाह का न होना और न उसके लिए जतन करना और न संत सतगुरु और प्रेमी जन की तलाश और उनका संग करना और न सच्चे गरीब और निर्धन जरूरतमंद की ताकत के मुआफिक मदद करना वगैरह-वगैरह, यही अशुभ कर्म है । और इसका फल यह मिलेगा कि सच्चे मालिक से दिन दिन दूर होकर जन्म मरण के साथ 84 जोन और नरको में दुख सुख भोगना पड़ेगा ।।                             

 (9) और मतों में जो धर्म और कर्म वर्णन किये हैं, उनका  मतलब सच्चे मालिक की प्राप्ति का नहीं है ।जो धर्म या कायदे वहाँ मुकर्रर किए गए हैं और जो शुभ कर्म सुख के फल की आशा करके वहाँ कराये जाते हैं, जिस किसी से वे दुरुस्ती से बन आवें, तो उनका फायदा यह होगा कि इस लोक में या ऊँचे नीचे लोक या जून में किसी कदर सुख मिलेगा, पर जन्म मरण का चक्कर दूर नहीं होगा और न सच्चे मालिक का दर्शन और उसके धाम में विश्राम मिलेगा ।।                    

(10 ) फिर जबकि धर्म-कर्म के बर्ताव में सब जगह थोड़ा बहुत तन मन धन जरूर खर्च करना पड़ेगा, तो हर एक सच्चे परमार्थी को, चाहे मर्द होवे या औरत, मुनासिब और जरूरी है कि जहां तक हो सके संतों के बचन के मुआफिक अपने धर्म और कर्म की सम्हाल करें तो उसका बहुत जल्द जन्म मरण से छुटकारा होना मुमकिन है, नहीं तो हमेशा माया के घेर में यानि काल देश में ऊंची नीची जोनो में दुख सुख सहता रहेगा।।  

( 11)  जो कोई संतों के बचन के मुआफिक कार्यवाही करेगा, उसको (सिवाय इसके कि एक दिन उसको सच्ची मुक्ति प्राप्त होगी और अजर अमर देश में आप अमर होकर सदा परम आनंद को प्राप्त होगा ) एक बड़ा फायदा यह हासिल होगा कि दिन दिन उसको थोड़ा बहुत रस और आनंद सत्संग और अभ्यास का मिलता जावेगा, और सच्चे मालिक की दया उस पर दिन दिन बढ़ती जाएगी और उसके साथ रस और आनंद भी बढ़ता जावेगा और संतों के मत के मुआफिक धर्म और कर्म यानी भक्ति और प्रेम और अभ्यास और अंतर और बाहर सेवा करने की ताकत भी बढ़ती जावेगी और एक दिन सच्चा उद्धार और जन्म मरण से हमेशा को बचाव हो जाएगा। 

क्रमशः                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकियात


- 21 जनवरी 1933 -शनिवार:-


 कोई आर्य समाजी भाई पिछले जलसे के दिनों में अजनबाना दयालबाग आये थे। उन्होंने लाहौर के प्रकाश अखबार में जलसे के हालात शाए कराये हैं। आपको यहाँ पर सहभोज बहुत पसंद आया । वाकई 15000 मर्द व औरतों का बिना भेदभाव के एक जगह मिलकर एक सा खाना खाना अपना ही असर रखता है ।खाने खिलाने का बंदोबस्त प्रेमी भाई ब्रह्म देव नारायण के सिपुर्द था। उनको बंदोबस्त में उम्मीद से बढ़कर कामयाबी हुई ।।

                            

अमेरिका में मौजूदा मंदी के दफ्ईया( निरोध) के लिए एक अजीब प्रस्ताव मंजूर होने वाली है। तह में ख्याल यह है कि जिन कच्चा अन्न की बवजह बहुतायत पैदावार की कीमतें गिर गई है उनकी पैदावार कम की जावे और जो किसान अपने क्षेत्र में इन अन्न के मुतअल्लिक़ कमी करें उन्हें निश्चित भाव से नगद रुपया बतौर मुआवजा दिया जाये। 

इसका नतीजा यह होगा कि किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी और पैदावार की मात्रा में कमी हो जावेगी। ज्यादा रुपया हाथ आने से किसान जरूरयाते जिंदगी पर ज्यादा रुपया खर्च करेंगे । जिससे मुल्क के कुल कारोबार में तरक्की होगी और अजनास की पैदावार में कमी होने से उनके भाव ठिकाने पर आ जाएंगे और कसादबाजारी का खात्मा हो जायेगा। 

किसानों के मुआवजे की रकम एकत्रित करने के लिए यह तजवीज हुई है कि उन हस्तकला पर इन खाम अजनास का इस्तेमाल करती है नया टैक्स लगाया जाये। और उसके लिए गेहूं पीसने, तंबाकू बनाने, और गोश्त बेचने के कारखाने चयनित हुए हैं । मेरी राय में इस तजवीज पर अमल करने का नतीजा यह होगा कि उनका खाम अजनास की कीमत पर दोहरा असर पड़ेगा।

 इधर जदीद टैक्स का उधर पैदावार में तखफीक  का । क्योंकि आटा, तंबाकू और गोश्त अमेरिका में हर बड़े छोटे व्यक्ति के इस्तेमाल की चीजें हैं इसलिए कुल निवासियों के रोजाना इखराजात में जबरदस्त इजाफा होगा। और अगर गैर मुल्कों से इन खाम अजनास की आयात बंद न की गई तो किसानों का सत्यानाश हो जाएगा । लेकिन अमरीका खुद स्वतंत्र मुल्क है और टैरिफ का आस्थावान है । इसलिए दरआमद का कोई अंदेशा नहीं है।।                       

बहरहाल गौर करने की बात यह है कि अमेरिका के राजनीतिज्ञ पैदावार में इजाफा को कसादबजारी के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं । मेरी भी यही राय है और भारत वासियों के लिए मुनासिब है कि इस तरफ तवज्जुह दें और कृषि से तवज्जो हटाकर सनअत व हिरफत की जानिब ध्यान देना हो। 

अगर 85% के बजाय हिंदुस्तान के सिर्फ 50% आबादी जिराअत से गुजारा करें , 35% सनअत व हिरफत से और वकिया 15% दूसरे कामों से तो जरूर मुल्क के अंदर समृद्धि हो जायगी।                                 

   🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**


स्टूडेंट्स सत्संग

 वचन  नं 9 / 19 जुलाई , 1959 रविवार को लड़कों के सतसंग में यह शब्द पढ़ा गया ।


ऐ सतगुरु पिता और मालिक मेरे ।


[9/27, 13:12] H हर्ष गर्ग: बचन नं 9


 19 जुलाई , 1959 रविवार को लड़कों के सतसंग में यह शब्द पढ़ा गया ।


ऐ सतगुरु पिता और मालिक मेरे ।


मैं चरनों पै क़ुरबान हर दम तेरे ।। 1 ।।


( प्रेमबिलास , शब्द 138 )


 हुजूर ने इस शब्द को दोबारा पढ़वाया और इसकी अंतिम दो कड़ियों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया । फ़रमाया - इस शब्द में यह बात छात्रों की ओर से संकेत में वर्णन की गई है के मेरी यानीप्रत्येक छात्र की यह अभिलाषा है कि जब तक वह जीवित रहे , चले , फिरे या परिश्रम करे या जहाँ पर पढ़े और लिखे या किसी से कोई बातचीत करे इन समस्त कामों के करने में उससे कोई ऐसा काम न बन पड़े जो गुरु महाराज की मर्जी व आज्ञा के विरुद्ध हो । प्रत्येक छात्र उनकी आज्ञा के अनुसार चित्त देकर पढ़े और बेकार व हानिकारक बातों में अपना समय और पैसा नष्ट न करे । ऐसा करने से गुरु महाराज की प्रसन्नता उसे प्राप्त होगी और वह उनका दया पात्र बनेगा । जीवन में फले फूलेगा और उन्नति करेगा । फिर हुजूर ने पूछा कि जो प्रतिज्ञा छात्रों की ओर से इस शब्द में की गई है , आप लोगों में कौन कौन उस पर चलने को तैयार हैं ?


समस्त छात्रों ने हाथ उठाकर अपनी सहमति दी ।


 Bachan No. 9


 On 19th July 1959, the following Shabda was recited in the students' Satsang:


ऐ सतगुरु पिता और मालिक मेरे ।


मैं चरनों पै क़ुरबान हर दम तेरे ।। 1 ।।


( प्रेमबिलास , शब्द 138 ) 


Huzur got the Shabda read again and drew the attention of all of them to the last two couplets. He was pleased to remark that the indication is that the prayer has been addressed on behalf of the students that it is my, ie. every student's desire that as long as he lives, while walking, going around or doing some work, and whether he reads or writes or speaks, he should not do anything which would not be in accordance with the wishes of Guru Maharaj or would be contrary to what meet with His approval. Every student should study with full attention acucording to His orders and not waste his time or money in harmful activities. By doing so he will secure the pleasure of Guru Maharaj and receive His Grace. Huzur then asked which of them was prepared to act in accordance with this.


All students indicated their willingness by raising their hands.मैं चरनों पै क़ुरबान हर दम तेरे ।। 1 ।।


( प्रेमबिलास , शब्द 138 )


 हुजूर ने इस शब्द को दोबारा पढ़वाया और इसकी अंतिम दो कड़ियों की ओर सबका ध्यान आकृष्ट किया । फ़रमाया - इस शब्द में यह बात छात्रों की ओर से संकेत में वर्णन की गई है के मेरी यानीप्रत्येक छात्र की यह अभिलाषा है कि जब तक वह जीवित रहे , चले , फिरे या परिश्रम करे या जहाँ पर पढ़े और लिखे या किसी से कोई बातचीत करे इन समस्त कामों के करने में उससे कोई ऐसा काम न बन पड़े जो गुरु महाराज की मर्जी व आज्ञा के विरुद्ध हो । प्रत्येक छात्र उनकी आज्ञा के अनुसार चित्त देकर पढ़े और बेकार व हानिकारक बातों में अपना समय और पैसा नष्ट न करे । ऐसा करने से गुरु महाराज की प्रसन्नता उसे प्राप्त होगी और वह उनका दया पात्र बनेगा । जीवन में फले फूलेगा और उन्नति करेगा । फिर हुजूर ने पूछा कि जो प्रतिज्ञा छात्रों की ओर से इस शब्द में की गई है , आप लोगों में कौन कौन उस पर चलने को तैयार हैं ?


समस्त छात्रों ने हाथ उठाकर अपनी सहमति दी ।


 

Bachan No. 9


 On 19th July 1959, the following Shabda was recited in the students' Satsang:


ऐ सतगुरु पिता और मालिक मेरे ।


मैं चरनों पै क़ुरबान हर दम तेरे ।। 1 ।।


( प्रेमबिलास , शब्द 138 ) 


Huzur got the Shabda read again and drew the attention of all of them to the last two couplets. He was pleased to remark that the indication is that the prayer has been addressed on behalf of the students that it is my, ie. every student's desire that as long as he lives, while walking, going around or doing some work, and whether he reads or writes or speaks, he should not do anything which would not be in accordance with the wishes of Guru Maharaj or would be contrary to what meet with His approval. Every student should study with full attention according to His orders and not waste his time or money in harmful activities. By doing so he will secure the pleasure of Guru Maharaj and receive His Grace. Huzur then asked which of them was prepared to act in accordance with this.


All students indicated their willingness by raising their hands.

दयालबाग़ सतसंग 27/09

 राधास्वामी!! 27-09-2020- / शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

 (1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।। गिर समान उन छाया जग में। सुरत बिहंगम रहत अधर में।।-(रुप रंग उसका मत देख। सरधा भाव निशाना पेख।। ) (प्रेमबानी-3-अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.382)                                                               

 (2) है कोई ऐसी सुरत शिरोमन। अटल सुहाग जिन पाना है।।टेक।। धोय धाय कर चूनर अपनी। सतगुरु रंग चढाना है।।-(परस चरन प्रीतम राधास्वामी। बहुरि जन्म नहिं पाना है।।) (प्रेमबिलास-शब्द-62,पृ.सं.80-81)                                                       

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


राधास्वामी!!            

                           

 शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन 

-कल से आगे-( 121) का शेष भाग:

- तुम वर्तमान विचारों में विश्वास करके अपने असली जोहर को भूल जाते हो और उस जौहर के जागृत करने के अवसर का तिरस्कार करते हो। तुम अखिल-विश्वव्यापी प्रकाश के केंद्र अर्थात अपने पालनकर्ता से मुंह मोड़ कर अपने मन की उपासना अंगीकार करते हो और शुद्ध आध्यात्मिक जीवन से वंचित रह कर मन और इंद्रियों के किंकर बनते हो। तुम स्वार्थपरक तथा वासना-पूर्ती-परायण जनों की गढंतो और मिलावटों को धर्म समझकर धर्म से घृणा करने लगते हो।

 हजरत मसीह ने किसी समय पिपासाकुल तथा शीतलता के लिए व्याकुल संसार को हिम-शीला अर्पित की थी किंतु समय पाकर वह गल गई, उसकी शीतलता जाती रही, वह उष्ण जल में परिवर्तित हो गई और वायुमंडल की बहुत सी धूली उसमें ब्याप्त हो गई। 

उसका वास्तविक स्वरूप, उसकी प्यास बुझाने की शक्ति और उसकी निर्मलता जाती रही।  स्वार्थी लोग उसमें सांसारिक विषय-भोग की चीनी मिलाकर तुमको धोखा  देते रहे, किंतु कलुषित जल निर्मल हिम का काम कैसे दे सकता है ? तुम जरा भारतवर्ष की ओर ध्यान दो और पूछो कि धर्म की यथार्थता क्या है।

 और उत्तर पाकर कुछ काल विचार करो और फिर निश्चय करो कि किस मार्ग पर चलने से तुम्हारी मनःकामना पूर्ण हो सकती है।  यह मार्ग, जो तुमने इस समय ग्रहण किया है, निःसन्देह तुम्हें अनभीष्ट पतन के स्थान की ओर ले जायगा, जैसा कि कहा हैः- तरसम्  न रसी ब काबा ऐ अराबी। ईं रह कि तू मीरवी व तुर्किस्तान अस्त।।         

         

भावार्थ- हे मूर्ख, जिस रास्ते पर तू चल रहा है  वह तो तुर्किस्तान को जाता है । उस पर चल कर तू मक्का नहीं पहुँच सकता ।।                              

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश -भाग पहला -

परम गुरु साहबजी महाराज!


हिंदी

 ;-  हिंदी ;-

      हिंदी हर भाषा की जननी ,

       वेद पुराण गीता की कथनी ।

       सँस्कृत संस्क्रति की बानी ,

        सूर कबीर मीरा की कहानी ।

       अंग्रेजी भक्ति करें विज्ञानी ,

        नीति शासन की इंग्लिशतानी

        हिंदी हिंग्लिश ग्लोबिश वाणी ।

       गूगल नेटवर्किंग ने मानी 

         हिंदी की महिमा पटरानी ।

          उर्दू अरबी की भगिनी ,

           रोमन बनी सन्देशवाहिनी ।

         मॉरीशस अमेरिका तक फैली,

        हिंदी बिंदी की ऊषाभ लाली ।

       हिंदी गंगा मानस वैतरिणी ,

        हिंदी है संगम सी सुहानी ।

        हिंदी सभ्यता की दादी नानी ,

      हिंदी ज्ञान मैत्री की सौदामिनी ।

       अखिल विश्व के वक्छ स्थल पर 

       हिंदी ने पाँव जमाने की ठानी ।

         डॉ अर्चना प्रकाश लखनऊ

         मो 9450264638

भगवान का ganeet

 🙏🕉 *ईश्वर का गणित*

🤝🤝🤝🤝🤝🤝🤝 

      *_त्याग !!_*


_एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे ।_

_थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।_


_कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी ।

पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।_ 

_उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??_

_पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।_

    _तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।_

_सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।_

_उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने  पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं ।_ 

_पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी  5 रोटी थी, अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी ।_

_इस पर दोनों में बहस होने लगी ।_

_इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें  समस्या बताई तथा  समाधान के लिए प्रार्थना की ।_

_पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों  दूसरे को ज्यादा  देने के लिये लड़ रहे है ।  पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा ।_ 

_पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।_

_कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है ।_


_भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं, 

पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए ।_

_भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा- *प्रभु, ऐसा कैसे  ?*_


_भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :_


_इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका *त्याग* सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है ।_

    _दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है  !_


_ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी  नतमस्तक हो गया।_


_इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं ।_ 

   _हम अपने त्याग का गुणगान करते है, परंतु ईश्वर हमारे त्याग की तुलना हमारे सामर्थ्य एवं भोग तौर कर यथोचित निर्णय करते हैं ।_ 


*_यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है। 🙏🙏_*

बंधन औऱ फ़र्ज़ क्या हैं?

 *सतसंग के उपदेश/ भाग-2

*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*

बचन (41)


*बन्धन व फ़र्ज़ में बड़ा फ़र्क़ है।*


             *

दुनिया का अजीब इन्तिज़ाम है। इधर तो क़ुदरत ने माँ बाप के दिल में औलाद की चाह धर दी है, उधर यह क़ायदा कर रक्खा है कि बहुत से वाल्दैन के क़तई औलाद (सन्तान) नहीं होती और जिनके होती है तो अक्सर छोटी उम्र में या कुछ बड़ी हो कर मर जाती है। जिन शख़्सों के औलाद नहीं होती वे उसके लिये जहान भर की कोशिशें करते हैं। कोई दवा दारू ऐसी नहीं जिसे वे खाने के लिये तैयार न हों, कोई हकीम डाक्टर ऐसा नहीं जिसके दरवाजे़ की हाज़िरी से उन्हें इन्कार हो और मालिक से लेकर भूत पलीत तक कोई ऐसी गुप्त शक्ति नहीं जिसका दरवाज़ा खटखटाने में उन्हें शर्म हो। 

बेचारे ग़रज़बस बावले" होकर तरह तरह की मुसीबतें व नुक़्सान उठाते हैं और जब तक उनका मनोरथ पूरा नहीं हो जाता अपनेतईं जीते जी मरा समझते हैं। दवा इलाज या पूजा पाठ कराने पर जब किसी ग़रीब की आरज़ू पूरी हो जाती है तो बेतरह ख़ुशियाँ मनाता है और जिस देवता की पूजा करते करते औलाद हुई है उसी को सच्चा करतार और कुल मालिक समझने लगता है। 

अर्से तक उसके ख़ान्दान में बल्कि उसके जुम्ला संगी साथियों के घर में उसी देवता का सेवन रहता है और इस तरह समझ बूझ का कहना एक तरफ़ रख कर लोग क़िस्म क़िस्म के इष्ट धारण करते हैं और जब कुछ अर्से बाद उनकी औलाद मर जाती है तो जो कष्ट उनको होता है उसका अन्दाज़ा लगाना हर इन्सान के लिये कठिन है।

 ऐसे शख़्सों के अलावा बहुत से ऐसे लोग भी हैं जिनके औलाद मामूली तौर से हो जाती है और वे लड़का या लड़की के मर जाने पर सख़्त दुख महसूस करते हैं। ख़ास कर बुढ़ापे की उम्र में औलाद का सदमा सख़्त रंज का बायस होता है।*

            

आज कल इस मुल्क़ में, जहाँ बच्चों की मौतों की तादाद बहुत ज़्यादा है, क़रीबन् हर वाल्दैन को इस मुसीबत का सामना करना पड़ता है। क्या यह इन्सान पर सरासर ज़ुल्म नहीं है कि पहले उसके दिल में औलाद की ख़्वाहिश डालना, फिर उसे औलाद न देना और अगर देना तो अचानक उससे रोते पीटते और चिल्लाते बिल्लाते छीन लेना? ज़ाहिरन् ज़ुल्म ज़रूर है मगर ग़ौर करो कि इन्सान को किसने कहा था कि औलाद में मोह व ममता क़ायम करो। शादी की ख़्वाहिश ज़रूर क़ुदरत ने उसके अन्दर पैदा की मगर इसलिये कि दूसरी सुरतों (आत्माओं) को इन्सानी चोले में अवतार लेने का मौक़ा मिले।

 लेकिन इसकी वजह से सिर्फ़ इस क़दर इजाज़त है कि इन्सान बख़ुशी शादी करें और जिस वाल्दैन के घर औलाद पैदा हो वे उसकी मुनासिब पर्वरिश करें लेकिन यह इजाज़त नहीं है कि जिनके घर औलाद पैदा न हो वे उसके लिये हद से ज़्यादा कोशिशें करें या अगर बावजूद हर तरह की ख़बरगीरी के औलाद मर जाय तो नाहक़ परेशान ख़ातिर हों। इन्सान ख़ुद ही मोह व ममता में पड़कर अपने लिये आयन्दा मुसीबत के सामान इकट्ठा करता है और क़ुदरत को इलज़ाम लगाता है।

 छोटी उम्र में बच्चे की भोली सूरत और सादे बोल चाल से माँ बाप के दिल में गहरी मोहब्बत क़ायम हो जाती है और बड़े होने पर उससे उम्मीदें बाँध लेने से ज़बरदस्त ग़रज़मन्दी पैदा हो जाती है और नतीजा यह होता है कि औलाद के गुज़र जाने पर माँ बाप दोनों की ज़िन्दगी तलख़ हो जाती है। 

*काश जिस क़दर मोहब्बत इन्सान अपनी औलाद के साथ करता है उसका आठवाँ हिस्सा भी सच्चे मालिक के चरणों में करे तो न सिर्फ़ दुनियवी दुख सुख उसके नज़दीक फटकने न पावेंगे बल्कि वह हँसता खेलता हुआ जन्म मरण के चक्र से बाहर हो कर अमर व अविनाशी आनन्द को प्राप्त होगा।*


राधास्वामी


Saturday, September 26, 2020

रविवार 27/09 सुबह का सतसंग

 **राधास्वामी!! 27-09-2020- आज सुबह  सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    


 (1) परम गुरु राधास्वामी प्यारे, जगत में देह धर आये, शब्द का देके उपदेशा, हंस जिव लीन मुकताये।।(प्रेमबानी-3-शब्द-3,पृ.सं.218)  

                                                     

(2) राधास्वामी दयाल सुनो मेरी बिनती। जल्दी दरस दिखाओं हो।।टेक।। तडप रही मैं बहुत दिनों से अब घट द्वार खुलाओ हो।। (प्रेमबानी-3-शब्द-5,पृ.सं.266)                         सतसंग के बाद:-                                              (1) दिल का हुजरा साफ कर जानाँ के आने के लिरे। ध्यान गैरों का उठा उसके बिठाने के लिये।। (संतबानी-संग्रह-भाग-2-शब्द-30(तुलसी साहब) पृ.सं. 84)      

                                                 


  

(2) परम गुरु परम पितु, परम प्रिय नाथ मम। आदि पुरुष आदि हितु, आनि जग तारिये।।) ( रत्नाञ्जली-पृ.सं.23)       

                                                   

(3) तमन्ना यही है कि जब तक जिऊँ। चलूँ या फिरुँ या कि मेहनत करुँ।। पढूँ या लिखूँ मुहँ से बोलूँ कलाम । न बन आये मुझसे कोई ऐसा काम।। जो मर्जी तेरी के मुवाफिक न हो। रजा के तेरी कुछ मुखालिफ जो हो।।       

                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


प्रेमपत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1- 

कल से आगे-         

                                           

 ( 8 ) जो बयान कर्म की ऊपर लिखी गई है इसी को संतमत के मुआफिक शुभ कर्म समझना चाहिए। और जो करनी इसके विरुद्ध है, यानी सच्चे मालिक का खोज और उसकी भक्ति न करना और उसके दर्शनों की चाह का न होना और न उसके लिए जतन करना और न संत सतगुरु और प्रेमी जन की तलाश और उनका संग करना और न सच्चे गरीब और निर्धन जरूरतमंद की ताकत के मुआफिक मदद करना वगैरह-वगैरह, यही अशुभ कर्म है । और इसका फल यह मिलेगा कि सच्चे मालिक से दिन दिन दूर होकर जन्म मरण के साथ 84 जोन और नरको में दुख सुख भोगना पड़ेगा ।।                            

  (9) और मतों में जो धर्म और कर्म वर्णन किये हैं, उनका  मतलब सच्चे मालिक की प्राप्ति का नहीं है ।जो धर्म या कायदे वहाँ मुकर्रर किए गए हैं और जो शुभ कर्म सुख के फल की आशा करके वहाँ कराये जाते हैं, जिस किसी से वे दुरुस्ती से बन आवें, तो उनका फायदा यह होगा कि इस लोक में या ऊँचे नीचे लोक या जून में किसी कदर सुख मिलेगा, पर जन्म मरण का चक्कर दूर नहीं होगा और न सच्चे मालिक का दर्शन और उसके धाम में विश्राम मिलेगा ।।                   

 (10 ) फिर जबकि धर्म-कर्म के बर्ताव में सब जगह थोड़ा बहुत तन मन धन जरूर खर्च करना पड़ेगा, तो हर एक सच्चे परमार्थी को, चाहे मर्द होवे या औरत, मुनासिब और जरूरी है कि जहां तक हो सके संतों के बचन के मुआफिक अपने धर्म और कर्म की सम्हाल करें तो उसका बहुत जल्द जन्म मरण से छुटकारा होना मुमकिन है, नहीं तो हमेशा माया के घेर में यानि काल देश में ऊंची नीची जोनो में दुख सुख सहता रहेगा।।

  ( 11)  जो कोई संतों के बचन के मुआफिक कार्यवाही करेगा, उसको (सिवाय इसके कि एक दिन उसको सच्ची मुक्ति प्राप्त होगी और अजर अमर देश में आप अमर होकर सदा परम आनंद को प्राप्त होगा ) एक बड़ा फायदा यह हासिल होगा कि दिन दिन उसको थोड़ा बहुत रस और आनंद सत्संग और अभ्यास का मिलता जावेगा, और सच्चे मालिक की दया उस पर दिन दिन बढ़ती जाएगी और उसके साथ रस और आनंद भी बढ़ता जावेगा और संतों के मत के मुआफिक धर्म और कर्म यानी भक्ति और प्रेम और अभ्यास और अंतर और बाहर सेवा करने की ताकत भी बढ़ती जावेगी और एक दिन सच्चा उद्धार और जन्म मरण से हमेशा को बचाव हो जाएगा। 

क्रमशः                      

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकियात-

 21 जनवरी 1933 -शनिवार:- 


कोई आर्य समाजी भाई पिछले जलसे के दिनों में अजनबाना दयालबाग आये थे। उन्होंने लाहौर के प्रकाश अखबार में जलसे के हालात शाए कराये हैं। आपको यहाँ पर सहभोज बहुत पसंद आया । वाकई 15000 मर्द व औरतों का बिना भेदभाव के एक जगह मिलकर एक सा खाना खाना अपना ही असर रखता है ।खाने खिलाने का बंदोबस्त प्रेमी भाई ब्रह्म देव नारायण के सिपुर्द था। उनको बंदोबस्त में उम्मीद से बढ़कर कामयाबी हुई ।।                            

अमेरिका में मौजूदा मंदी के दफ्ईया( निरोध) के लिए एक अजीब प्रस्ताव मंजूर होने वाली है। तह में ख्याल यह है कि जिन कच्चा अन्न की बवजह बहुतायत पैदावार की कीमतें गिर गई है उनकी पैदावार कम की जावे और जो किसान अपने क्षेत्र में इन अन्न के मुतअल्लिक़ कमी करें उन्हें निश्चित भाव से नगद रुपया बतौर मुआवजा दिया जाये। 

इसका नतीजा यह होगा कि किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी और पैदावार की मात्रा में कमी हो जावेगी। ज्यादा रुपया हाथ आने से किसान जरूरयाते जिंदगी पर ज्यादा रुपया खर्च करेंगे । जिससे मुल्क के कुल कारोबार में तरक्की होगी और अजनास की पैदावार में कमी होने से उनके भाव ठिकाने पर आ जाएंगे और कसादबाजारी का खात्मा हो जायेगा। किसानों के मुआवजे की रकम एकत्रित करने के लिए यह तजवीज हुई है कि उन हस्तकला पर इन खाम अजनास का इस्तेमाल करती है नया टैक्स लगाया जाये। और उसके लिए गेहूं पीसने, तंबाकू बनाने, और गोश्त बेचने के कारखाने चयनित हुए हैं । 

मेरी राय में इस तजवीज पर अमल करने का नतीजा यह होगा कि उनका खाम अजनास की कीमत पर दोहरा असर पड़ेगा। इधर जदीद टैक्स का उधर पैदावार में तखफीक  का । क्योंकि आटा, तंबाकू और गोश्त अमेरिका में हर बड़े छोटे व्यक्ति के इस्तेमाल की चीजें हैं इसलिए कुल निवासियों के रोजाना इखराजात में जबरदस्त इजाफा होगा। 


और अगर गैर मुल्कों से इन खाम अजनास की आयात बंद न की गई तो किसानों का सत्यानाश हो जाएगा । लेकिन अमरीका खुद स्वतंत्र मुल्क है और टैरिफ का आस्थावान है । इसलिए दरआमद का कोई अंदेशा नहीं है।।      

                 बहरहाल गौर करने की बात यह है कि अमेरिका के राजनीतिज्ञ पैदावार में इजाफा को कसादबजारी के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं । मेरी भी यही राय है और भारत वासियों के लिए मुनासिब है कि इस तरफ तवज्जुह दें और कृषि से तवज्जो हटाकर सनअत व हिरफत की जानिब ध्यान देना हो।

 अगर 85% के बजाय हिंदुस्तान के सिर्फ 50% आबादी जिराअत से गुजारा करें , 35% सनअत व हिरफत से और वकिया 15% दूसरे कामों से तो जरूर मुल्क के अंदर समृद्धि हो जायगी।                                    🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

वारिस की खोज

वारिस 

 एक इलाके में एक भले आदमी का देहांत हो गया लोग अर्थी ले जाने को तैयार हुये और जब उठाकर श्मशान ले जाने लगे तो एक आदमी आगे आया और अर्थी का एक पाऊं पकड़  लिया। और बोला के मरने वाले से मेरे 15 लाख लेने है, पहले मुझे पैसे दो फिर उसको जाने दूंगा। 

     अब तमाम लोग खड़े तमाशा देख रहे है, बेटों ने कहा के मरने वाले ने हमें तो कोई ऐसी बात नही की के वह कर्जदार है, इसलिए हम नही दे सकतें मृतक के भाइयों ने कहा के जब बेटे जिम्मेदार नही तो हम क्यों दें। 

        अब सारे खड़े है और उसने अर्थी पकड़ी हुई है, जब काफ़ी देर गुज़र गई तो बात घर की औरतों तक भी पहुंच गई। मरने वाले कि एकलौती बेटी ने जब बात सुनी तो फौरन अपना सारा ज़ेवर उतारा और अपनी सारी नक़द रकम जमा करके उस आदमी के लिए भिजवा दी और कहा के भगवान के लिए ये रकम और ज़ेवर बेच के उसकी रकम रखो और मेरे पिताजी की अंतिम यात्रा को ना रोको। 

            मैं मरने से पहले सारा कर्ज़ अदा कर दूंगी। और बाकी रकम का जल्दी बंदोबस्त कर दूंगी। अब वह अर्थी पकड़ने वाला शख्स खड़ा हुआ और सारे लोगो से मुखातिब हो कर बोला: असल बात ये है मरने वाले से 15 लाख लेना नही बल्के उनके देना है और उनके किसी वारिस को में जानता नही था तो मैने ये खेल खेला , अब मुझे पता चल चुका है के उसकी वारिस एक बेटी है और उसका कोई बेटा या भाई नही है।


👌🏻👌🏻मत मारो तुम कोख में इसको

इसे सुंदर जग में आने दो,

छोड़ो तुम अपनी #सोच ये छोटी 


इक माँ को #ख़ुशी मनाने दो,

बेटी के आने पर अब तुम

घी के दिये जलाओ,

आज ये #संदेशा पूरे जग में फैलाओ

बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ।

*सुप्रभात 🌹🙏🌹

[9/19, 10:06] KS कुसुम सहगल दीदी: 🙏 भगवान् तेरा शुक्रिया 🙏


आज इस पोस्ट को पढ़कर सारी ज़िन्दगी की टेंशन खत्म हो जायेगी*।


*एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है,


*इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था*।


*एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया तो देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी*।


*होमवर्क का टाइटल था* *********************


*वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं*।


*इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया बच्चे ने लिखा था* •••


● *मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं*।


● *मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं*।


● *मैं सुबह - सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ*।


● *मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं*।


*बच्चे का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह last वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया*।


●● *मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है*।


●● *मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं*।


●● *मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं*।


*हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया ••• मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।*


_*इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा*।_


*हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए - नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।*

💐💐


*अगर आपको बात अच्छी लगे तो उसका अनुकरण करके जिन्दगीको खुशहाल बनाइये*


सुप्रभात 🌹🙏🌹🙏

भंडारा 2020

 **परम  गुरु  हुज़ूर  महाराज  जी  का  पावन  भंडारा  【20 दिसंबर, 2020】  रविवार  के  दिन  मनाया  जायेगा। विस्तृत विवरण की जानकारी आपको जल्द ही सूचित कर दी जायेगी।*                               *राधास्वामी*

                *RADHASOAMI                 BHANDARA OF PARAM GURU HUZUR MAHARAJ (DECEMBER BHANDARA) WILL BE CELEBRATED ON 【20TH OF DECEMBER 2020】 WHICH IS SUNDAY AND DETAILED PROGRAM WILL BE INFORMED SOON                                                     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

सतसंग दयालबाग़

  शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-    

                                

 (1) संत बचन हिरदे में धरना। उनसे मुख मोडन नहिं करना।।-(याते सतगुरु ओट पकडना। झूठे गुरु से काज न सरना ) (प्रेमबानी-3- अशआर सतगुरु महिमा-पृ.सं.381)                                                           

 (2) या जग का ब्योहार देख मन। अचरज अधिक समाना रे।।टेक।। जा घर रहे सुख का भंडारा। और आनन्द खजाना रे।।-(राधास्वामी गुरु के चरन पकड जो। उलटी धार चढाना रे।।) (प्रेमबिलास-शब्द-61,पृ.सं.79-80)    

                               

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग पहला-कल से आगे।।     

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!!        

                                    

26 -09- 2020- आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन 

-कल से आगे-( 121) 

इन्होंने यदि कुछ किया है तो यह है कि राष्ट्रीय स्वतंत्रता को मुक्ति मान लिया। राष्ट्रीय स्वतंत्रता की इन्जील, सुसमाचार, के उपदेश करने वालों को मसीहा, त्राणकर्ता ; राष्ट्रीय अधिकारों के संरक्षकों को पादरी या पुजारी; रक्तपात को साधन, और क्रांति को परमेश्वर।

 इनके लिए संसार ही परम गति का स्थान है और वर्तमान जीवन ही प्रथम तथा अंतिम जीवन है । इनसे कोई कहे कि जो अत्याचार और अनाचार तुम धर्म के मत्थे मढते हो उनसे धर्म का कोई संबंध नहीं। उनके लिए वे लोग उत्तरदाई हैं जिन्होंने स्वार्थ की सिद्धि तथा विषय- वासनाओं की पूर्ति के लिए तुम्हारे और तुम्हारे पूर्वपुरुषों के सिर पर अत्याचार और बलात्कार का प्रयोग उचित समझा। 

 इन्हें कोई समझावे  कि किसी धर्म का अनुयायी कहलाने से कोई व्यक्ति वास्तव में उसका अन्यायी नहीं हो जाता। इन्हें कोई बतलावे कि धर्म कदापि यह नहीं सिखलाता कि कोई व्यक्ति श्रमजीवियों के गले काट कर राजमहल निर्माण करावे या अन्य- सुख- सामग्री प्राप्त करें, अथवा अपने संबंधियों , सजातियों तथा स्वदेशवासियों को किसी अत्याचारी के अत्याचार तथा बलात्कार के वित्रस्त तथा विपद्ग्रस्त देख कर चुपचाप बैठा रहे। ईश्वर के लिए , स्वार्थपर तथा संकीर्णहृदय मनुष्यों के दुराचारो के लिए धर्म को उत्तरदायी ठहरा कर उसका निरादर मत करो। तुम्हारा वर्तमान ईश्वर और तुम्हारी वर्तमान कल्पनाएँ क्षणिक अग्निक्रीडा(आतिशबाजी का खेल) के समान है । 

जरा रुधिर की गर्मी में कमी आने पर तुम्हें अनुभव होगा कि तुम्हारा वर्तमान मसीहा, तुम्हारे वर्तमान पादरी और तुम्हारा वर्तमान ईश्वर तुम्हारे पिछले मसीहा, पादरियों और ईश्वर से किसी अंश में प्रशयस्तर नहीं है।      

                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश -भाग पहला 

परम गुरु साहबजी महाराज!**


घास औऱ बांस

 घास और बाँस 


ये कहानी एक ऐसे व्यक्ति की है जो एक *बिज़नेस मैन* था लेकिन उसका *बिज़नेस* डूब गया और वो पूरी तरह *निराश और हताश* हो गया। अपनी लाइफ से बुरी तरह थक चुका था। अपनी लाइफ से बहुत *घुटन महसूस* करने लगा था।


एक दिन परेशान होकर वो जंगल में गया और जंगल में काफी देर अकेले बैठा रहा। कुछ सोचकर भगवान से बोला – *मैं हार चुका हूँ, मुझे कोई एक वजह बताइये कि मैं क्यों ना हताश होऊं, मेरा सब कुछ खत्म हो चुका है।*


*मैं क्यों ना frustrate होऊं?*


कृपया मेरी मदद करे....


*भगवान का जवाब*


तुम जंगल में इस *घास और बांस* के पेड़ को देखो- जब मैंने *घास और इस बांस के बीज* को लगाया। मैंने इन दोनों की ही बहुत अच्छे से *देखभाल* की। इनको बराबर *पानी* दिया, बराबर *सूर्य का प्रकाश* दिया।


घास बहुत *जल्दी बड़ी* होने लगी और इसने धरती को *हरा भरा* कर दिया लेकिन *बांस का बीज बड़ा* नहीं हुआ। लेकिन *मैंने बांस के लिए अपनी हिम्मत नहीं हारी।*


दूसरी साल, *घास और घनी* हो गयी उस पर *झाड़ियाँ* भी आने लगी लेकिन *बांस के बीज* में कोई प्रगति नहीं हुई। लेकिन मैंने फिर भी *बांस के बीज के लिए हिम्मत नहीं हारी।*


तीसरी साल भी *बांस के बीज में कोई वृद्धि* नहीं हुई, लेकिन मित्र मैंने फिर भी *हिम्मत नहीं हारी।*


चौथे साल भी *बांस के बीज* में कोई *प्रगति* नहीं हुई लेकिन मैं फिर भी लगा रहा।


पांच साल बाद, उस *बांस के बीज से एक छोटा सा पौधा अंकुरित* हुआ……….. *घास* की तुलना में ये बहुत *छोटा था और कमजोर* था लेकिन केवल 6 महीने बाद ये छोटा सा *पौधा 100 फ़ीट लम्बा हो गया*।


मैंने इस *बांस की जड़ को वृद्वि करने के लिए पांच साल* का समय लगाया। इन पांच सालों में इसकी जड़ इतनी *मजबूत हो गयी कि 100 फिट से ऊँचे बांस को संभाल सके।*


जब भी तुम्हें *जीवम में संघर्ष* करना पड़े तो समझिए कि आपकी *जड़ मजबूत* हो रही है। आपका *संघर्ष आपको मजबूत* बना रहा है जिससे कि आप आने वाले  कल को *सबसे बेहतरीन बना सको।*


मैंने बांस पर हार नहीं मानी,

मैं तुम पर भी हार नहीं मानूंगा,

*किसी दूसरे से अपनी तुलना(comparison) मत करो*

*घास और बांस* दोनों के बड़े होने का समय अलग अलग है दोनों का *उद्देश्य अलग अलग है।*


तुम्हारा भी *समय आएगा*। तुम भी एक दिन *बांस के पेड़ की तरह आसमान छुओगे*। मैंने *हिम्मत नहीं हारी*, तुम भी मत हारो ! 


शिक्षा: हमे अपने जीवन में संघर्ष  से नही घबराना चाहिए, यही संघर्ष हमारी सफलता की जड़ों को मजबूत करेगा। हमे लगे रहना चाहिए, आज नहीं तो कल हमारा भी दिन आएगा।

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...