Monday, May 30, 2022

कबीर कलह रू कल्पना, सत्संगति से।।*

 *आज का अमृत*

*कबीर कलह रू कल्पना, सत्संगति से।।*

*दुख वासी भागा फिरे, सुख में रहें समाय।।*


एक व्यक्ति काफी दिनों से चिंतित चल रहा था जिसके कारण वह काफी चिड़चिड़ा तथा तनाव में रहने लगा था। वह इस बात से परेशान था कि घर के सारे खर्चे उसे ही उठाने पड़ते हैं, पूरे परिवार की जिम्मेदारी उसी के ऊपर है, किसी ना किसी रिश्तेदार का उसके यहाँ आना जाना लगा ही रहता है, उसे बहुत ज्यादा आयकर देना पड़ता है आदि - आदि।

इन्ही बातों को सोच सोच कर वह काफी परेशान रहता था तथा बच्चों को अक्सर डांट देता था तथा अपनी पत्नी से भी ज्यादातर उसका किसी न किसी बात पर झगड़ा चलता रहता था।

एक दिन उसका बेटा उसके पास आया और बोला पिताजी मेरा स्कूल का होमवर्क करा दीजिये, वह व्यक्ति पहले से ही तनाव में था तो उसने बेटे को डांट कर भगा दिया लेकिन जब थोड़ी देर बाद उसका गुस्सा शांत हुआ तो वह बेटे के पास गया तो देखा कि बेटा सोया हुआ है और उसके हाथ में उसके होमवर्क की कॉपी है। उसने कॉपी लेकर देखी और जैसे ही उसने कॉपी नीचे रखनी चाही, उसकी नजर होमवर्क के टाइटल पर पड़ी।

होमवर्क का टाइटल था ••• वे चीजें जो हमें शुरू में अच्छी नहीं लगतीं लेकिन बाद में वे अच्छी ही होती हैं।

इस टाइटल पर बच्चे को एक पैराग्राफ लिखना था जो उसने लिख लिया था। उत्सुकतावश उसने बच्चे का लिखा पढना शुरू किया बच्चे ने लिखा था •••


⭐मैं अपने फाइनल एग्जाम को बहुंत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये बिलकुल अच्छे नहीं लगते लेकिन इनके बाद स्कूल की छुट्टियाँ पड़ जाती हैं।

⭐ मैं ख़राब स्वाद वाली कड़वी दवाइयों को बहुत धन्यवाद् देता हूँ क्योंकि शुरू में तो ये कड़वी लगती हैं लेकिन ये मुझे बीमारी से ठीक करती हैं।

⭐ मैं सुबह - सुबह जगाने वाली उस अलार्म घड़ी को बहुत धन्यवाद् देता हूँ जो मुझे हर सुबह बताती है कि मैं जीवित हूँ।

⭐ मैं ईश्वर को भी बहुत धन्यवाद देता हूँ जिसने मुझे इतने अच्छे पिता दिए क्योंकि उनकी डांट मुझे शुरू में तो बहुत बुरी लगती है लेकिन वो मेरे लिए खिलौने लाते हैं, मुझे घुमाने ले जाते हैं और मुझे अच्छी अच्छी चीजें खिलाते हैं और मुझे इस बात की ख़ुशी है कि मेरे पास पिता हैं क्योंकि मेरे दोस्त सोहन के तो पिता ही नहीं हैं।

बच्चे का होमवर्क पढने के बाद वह व्यक्ति जैसे अचानक नींद से जाग गया हो। उसकी सोच बदल सी गयी। बच्चे की लिखी बातें उसके दिमाग में बार बार घूम रही थी। खासकर वह last वाली लाइन। उसकी नींद उड़ गयी थी। फिर वह व्यक्ति थोडा शांत होकर बैठा और उसने अपनी परेशानियों के बारे में सोचना शुरू किया।

⭐ मुझे घर के सारे खर्चे उठाने पड़ते हैं, इसका मतलब है कि मेरे पास घर है और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से बेहतर स्थिति में हूँ जिनके पास घर नहीं है।

⭐ मुझे पूरे परिवार की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है, इसका मतलब है कि मेरा परिवार है, बीवी बच्चे हैं और ईश्वर की कृपा से मैं उन लोगों से ज्यादा खुशनसीब हूँ जिनके पास परिवार नहीं हैं और वो दुनियाँ में बिल्कुल अकेले हैं।

⭐मेरे यहाँ कोई ना कोई मित्र या रिश्तेदार आता जाता रहता है, इसका मतलब है कि मेरी एक सामाजिक हैसियत है और मेरे पास मेरे सुख दुःख में साथ देने वाले लोग हैं।

⭐ मैं बहुत ज्यादा आयकर भरता हूँ, इसका मतलब है कि मेरे पास अच्छी नौकरी/व्यापार है और मैं उन लोगों से बेहतर हूँ जो बेरोजगार हैं या पैसों की वजह से बहुत सी चीजों और सुविधाओं से वंचित हैं।


हे ! मेरे भगवान् ! तेरा बहुंत बहुंत शुक्रिया मुझे माफ़ करना, मैं तेरी कृपा को पहचान नहीं पाया।


इसके बाद उसकी सोच एकदम से बदल गयी, उसकी सारी परेशानी, सारी चिंता एक दम से जैसे ख़त्म हो गयी। वह एकदम से बदल सा गया। वह भागकर अपने बेटे के पास गया और सोते हुए बेटे को गोद में उठाकर उसके माथे को चूमने लगा और अपने बेटे को तथा ईश्वर को धन्यवाद देने लगा।


हमारे सामने जो भी परेशानियाँ हैं, हम जब तक उनको नकारात्मक नज़रिये से देखते रहेंगे तब तक हम परेशानियों से घिरे रहेंगे लेकिन जैसे ही हम उन्हीं चीजों को, उन्ही परिस्तिथियों को सकारात्मक नज़रिये से देखेंगे, हमारी सोच एकदम से बदल जाएगी, हमारी सारी चिंताएं, सारी परेशानियाँ, सारे तनाव एक दम से ख़त्म हो जायेंगे और हमें मुश्किलों से निकलने के नए - नए रास्ते दिखाई देने लगेंगे।

*

Sunday, May 29, 2022

रिश्ता भक्त और भगवन्त की

 🙏🙏🙏🏿🙏🏿🙏🏿

          🌹

       संसार में

          🌹

सेवक और सतगुरु का  रिश्ता है निराला 

           🙏

सेवक चाहिए सतगुरु के बताये रास्ते पर चलने बाला, 

          🌹

सेवक जो चले सतगुरु के बताये रास्ते पर, उसका

कोई नहीं है धुरधाम का रास्ता रोकने बाला, 

          🙏

       संसार में

          🌹

सतगुरु की लीला है सबसे आला, 

उसको कोई नहीं समझने बाला, 

          🙏

जो सेवक हो सतगुरु की लीला समझने बाला, 

उसको संसार में कोई नहीं है झकोले देने बाला, 

         🙏

सच्ची दीनता से सतगुरु का दामन पकड ले, 

अंत समय कोई नहीं सहारा देने बाला, 

         🌹

       संसार में

          🙏

काल है जाल बिछाने बाला, 

गले में फंदा डालने बाला, 

कौन है बचाने 

बाला, 

दुर खड़े देखे लाली और लाला, 

एक सच्चा साहब है बचाने बाला, 

        🌹

जो हो सच्चाई से सतगुरु की डगर चलने बाला, 

साथ है सांचा साहब उडके साथ ले जाने बाला, 

          🙏

सुन और समझ यह संसार है लाला, 

है तु काल का निवाला, 

कोई नहीं है तुझे बचाने बाला, 

         🌹

        बस

        🙏

सच्चा हो जा सतगुरु का दर बाला, 

तेरे साथ है सुनाने बाला, 

तेरे साथ है समझाने बाला, 

तेरे साथ है बचाने बाला, 

        🙏

      संसार में

         🌹

  और सतगुरु का रिश्ता है सबसे निराला

🙏🌹🙏🌹🙏

      राधास्वामी

🙏🌹🙏🌹🙏

आपका🙏

जी०एस०पाठक

Thursday, May 26, 2022

दुनियां में तेरा कोई हैं क्या?

 🙏🌹🙏

हे माटी के पुतले जरा सोच, 

दुनिया में तेरा कोई है क्या

   🌹

मेरा मेरा करते करते तेरी ज़िंदगी जाये बीती

पलट के देख तेरा सहाई कोई है क्या

         🌹

तेरी ज़िंदगी की राहों में रंजो गम के मेले है

भीड है कयामत की जरा पलट के देख

तेरे साथ कोई है क्या, 

         🌹u

सतगुरु के बताये रास्ते पर चल, 

तेरी औकात है क्या, 

        🌹

दिन भर मेहनत करें, 

रात को बिछाय खटीया सोये, 

देख दुनिया में तेरा कोई है क्या, 

          🌹

तेरा मेरा करते करते

उमरिया बिताई

सोच तुझे कुछ मिला है क्या, 

           🌹

खट पट में तेरी उमरिया जाये बीती

जरा सोच तेरा अपना कोई है क्या, 

           🌹

खाली हाथ आया था

खाली हाथ जायेगा

जरा सोच साथ ले जाने को 

तेरे पास कुछ है क्या, 

          🌹

बनके मुसाफिर घुमता जग में, 

जाने का रास्ता मालुम है क्या, 

            🌹

धर मानुष रुप, तेरे बास्ते सतगुरु आये जग में

तु सतगुरु की सरन में है क्या, 

           🌹

सतगुरु तुझे प्यार से गोद में बिठावें

तुने सतगुरु का दामन पकडा है क्या, 

           🌹

तेरी ज़िंदगी तीन घंटे का शो

पहला घंटा बचपन दुसरा जबानी तीसरा बुढापा

सुमिरन करले देख वहाँ है क्या, 

          🌹

सतगुरु आन कही सुमिरन भजन करले

तेरी ज़िंदगी का ऐतबार क्या, 

        🌹

जीते जी मरना सीख ले

देख त्रिकुटी, सुन्न महासुन्न, भवरगुफा, सतलोक, अगम लोक अलख लोक, राधास्वामी धाम के नजारे है क्या, 

🌹🙏🌹🙏🌹

     राधास्वामी

🌹🙏🌹🙏🌹

          🙏

जी०एस०पाठक

गुरुवचनों की प्रेरक माला

 गुरुवचनों की प्रेरक माला


प्रस्तुति - रेणु दत्ता /  आशा सिन्हा



1. भजन का उत्तम समय सुबह 3 से 6 बजे तक होता है ।


2. ,*24 घंटे में से 3 घंटों पर आप का हक नही, ये समय गुरु का है ।*


3 *कमाए हुए धन का 10 वा अंश गुरु का है. इसे परमार्थ में लगा देना चाहिए।*


4. *गुरु आदेश की पलना ही गुरु भक्ति है । गुरु का पहला आदेश भजन का है जो नामदान के समय मिला था ।*


5. 24 घंटों के जो भी काम, सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक करो सब गुरु को समर्पित करके करोगे तो कर्म लागू नही होंगे ।


6.*24 घंटे मन में सुमिरन करने से मन और अन्तः कर्ण साफ़ रहता है. और गुरु की याद भी हमसे रहेगी. यही तो सुमिरन है।*


7. भजन करने वालो को, भजन न करने वाले पागल कहते है । मीरां को भी तो लोगो ने प्रेम दीवानी कहा था ।


8. कही कुछ खाओ तो सोच समझ कर खाओ, क्यों की जिसका अन्न खाओगे तो मन भी वैसा ही हो जायेगा 

मांसाहारी के यहाँ का खा लिए तो फिर मन भजन में नही लगेगा |

*"जैसा खाए अन्न वैसा होवे मन, जेसा पीवे पाkनी वैसी होवे वाणी."*


9. गुरु का आदेश, एक प्रार्थना रोज़ होनी चाहिए ।


10. सामूहिक सत्संग ध्यान भजन से लाभ मिलता है. एक कक्षा में होंशियार विधार्थी के पास बेठ कर कमजोर विध्यार्थी भी कुछ सीख लेता है, और कक्षा में उतीर्ण हो जाता है ।


11. गुरु का प्रसाद यानी *"बरक्कत"* रोज़ लेनी चाहिए |


12. भोजन दिन में 2 बार करते हो तो भजन भी दिन में 2 बार करना चाहिए ।


13. हर जीव में परमात्मा का अंश है इस लिए सब पर दया करो, सब के प्रति प्रेम भाव रखो, चाहे वो आपका दुश्मन ही क्यों न हो. इसे सोचोगे की में परमात्मा की हर रूह से प्रेम करता हूँ तो भजन भी बनने लगेगा ।


14. परमार्थ का रास्ता प्रेम का है, दिमाग लo😪hhhगाने लगोगे तो दुनिया की बातो में फंस के रह जाओगे ।


15. अगर 24 घंटो में भजन के लिए समय जरूर  निकालना चाहिए । 


16. आज के समय में वाही समझदार है जो घर गृहस्थी का काम करते हुए भजन करके यहाँ से निकल चले, वरना बाद में तो रोने के सिवाय कुछ नही मिलने वाला ।


17. आपनी मौत को हमेशा याद रखो. मौत याद रहेगी तो मन कभी भजन में रुखा नही होगा. मौत समय बताके नही आएगी ।


18. साथ तो भजन जायेगा और कुछ नही. इसलिए कर लेने में ही भलाई है, और जगत के काम सब झूंठे है।


19. भोजन तो बस जीने के लिए खाओ. खाने के लिए मत जीवो. भोजन शरीर रक्षा के लिए करो ।


20. परमार्थ में शरीर को सुखाना पड़ता है मन और इन्द्रियों को वश में करना पड़ता है जो ये करे वही परमार्थ के.लायक है ।


21. अपने भाग्य को सराहो की आपको गुरु औरनामदान मिल गया 

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22. किसी की निंदा मत करो।


23. इस कल युग में तीन बातों से जीव का कल्याण हो सकता है, एक सतगुरु पूरे का साथ, दूसरा साधन की संगत सत्संग और सेवा तीसरा "नाम" का सुमिरन,* ध्यान और भजन

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आप सभी का दिन शुभ रहे। 🙏🏻🙏🏻

Sunday, May 22, 2022

अद्भुत ( भक्ति ) विश्वास

 " केदारनाथ को इसलिए कहते हैं ‘जागृत महादेव’ ?,


प्रस्तुति -  रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


एक बार एक शिव-भक्त अपने गांव से केदारनाथ धाम की यात्रा पर निकला। पहले यातायात की सुविधाएँ तो थी नहीं, वह पैदल ही निकल पड़ा। रास्ते में जो भी मिलता केदारनाथ का मार्ग पूछ लेता। मन में भगवान शिव का ध्यान करता रहता। चलते चलते उसको महीनो बीत गए। आखिरकार एक दिन वह केदार धाम पहुच ही गया। केदारनाथ में मंदिर के द्वार 6 महीने खुलते है और 6 महीने बंद रहते है। वह उस समय पर पहुचा जब मन्दिर के द्वार बंद हो रहे थे। पंडित जी को उसने बताया वह बहुत दूर से महीनो की यात्रा करके आया है। पंडित जी से प्रार्थना की - कृपा कर के दरवाजे खोलकर प्रभु के दर्शन करवा दीजिये । लेकिन वहां का तो नियम है एक बार बंद तो बंद। नियम तो नियम होता है। वह बहुत रोया। बार-बार भगवन शिव को याद किया कि प्रभु बस एक बार दर्शन करा दो। वह प्रार्थना कर रहा था सभी से, लेकिन किसी ने भी नही सुनी।

पंडित जी बोले अब यहाँ 6 महीने बाद आना, 6 महीने बाद यहा के दरवाजे खुलेंगे। यहाँ 6 महीने बर्फ और ढंड पड़ती है। और सभी जन वहा से चले गये। वह वही पर रोता रहा। रोते-रोते रात होने लगी चारो तरफ अँधेरा हो गया। लेकिन उसे विस्वास था अपने शिव पर कि वो जरुर कृपा करेगे। उसे बहुत भुख और प्यास भी लग रही थी। उसने किसी की आने की आहट सुनी। देखा एक सन्यासी बाबा उसकी ओर आ रहा है। वह सन्यासी बाबा उस के पास आया और पास में बैठ गया। पूछा - बेटा कहाँ से आये हो ? उस ने सारा हाल सुना दिया और बोला मेरा आना यहाँ पर व्यर्थ हो गया बाबा जी। बाबा जी ने उसे समझाया और खाना भी दिया। और फिर बहुत देर तक बाबा उससे बाते करते रहे। बाबा जी को उस पर दया आ गयी। वह बोले, बेटा मुझे लगता है, सुबह मन्दिर जरुर खुलेगा। तुम दर्शन जरुर करोगे।

बातों-बातों में इस भक्त को ना जाने कब नींद आ गयी। सूर्य के मद्धिम प्रकाश के साथ भक्त की आँख खुली। उसने इधर उधर बाबा को देखा, किन्तु वह कहीं नहीं थे । इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता उसने देखा पंडित जी आ रहे है अपनी पूरी मंडली के साथ। उस ने पंडित को प्रणाम किया और बोला - कल आप ने तो कहा था मन्दिर 6 महीने बाद खुलेगा ? और इस बीच कोई नहीं आएगा यहाँ, लेकिन आप तो सुबह ही आ गये। पंडित जी ने उसे गौर से देखा, पहचानने की कोशिश की और पुछा - तुम वही हो जो मंदिर का द्वार बंद होने पर आये थे ? जो मुझे मिले थे। 6 महीने होते ही वापस आ गए ! उस आदमी ने आश्चर्य से कहा - नही, मैं कहीं नहीं गया। कल ही तो आप मिले थे, रात में मैं यहीं सो गया था। मैं कहीं नहीं गया। पंडित जी के आश्चर्य का ठिकाना नहीं था।

उन्होंने कहा - लेकिन मैं तो 6 महीने पहले मंदिर बन्द करके गया था और आज 6 महीने बाद आया हूँ। तुम छः महीने तक यहाँ पर जिन्दा कैसे रह सकते हो ? पंडित जी और सारी मंडली हैरान थी। इतनी सर्दी में एक अकेला व्यक्ति कैसे छः महीने तक जिन्दा रह सकता है। तब उस भक्त ने उनको सन्यासी बाबा के मिलने और उसके साथ की गयी सारी बाते बता दी। कि एक सन्यासी आया था - लम्बा था, बढ़ी-बढ़ी जटाये, एक हाथ में त्रिशुल और एक हाथ में डमरू लिए, मृग-शाला पहने हुआ था। पंडित जी और सब लोग उसके चरणों में गिर गये। बोले, हमने तो जिंदगी लगा दी किन्तु प्रभु के दर्शन ना पा सके, सच्चे भक्त तो तुम हो। तुमने तो साक्षात भगवान शिव के दर्शन किये है। उन्होंने ही अपनी योग-माया से तुम्हारे 6 महीने को एक रात में परिवर्तित कर दिया। काल-खंड को छोटा कर दिया। यह सब तुम्हारे पवित्र मन, तुम्हारी श्रद्वा और विश्वास के कारण ही हुआ है। आपकी भक्ति को प्रणाम।

हर हर महादेव.....🙏🏻🙏🏻🙏🏻


राधास्वामी 🙏🏿

Wednesday, May 18, 2022

चाय की हाय

 *चाय के शरीर पर दुष्प्रभाव*

🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸

बार बार चाय पीने वाले इसे जरूर पढ़े !


सिर्फ दो सौ वर्ष पहले तक भारतीय घर में चाय नहीं होती थी। आज कोई भी घर आये अतिथि को पहले चाय पूछता है। ये बदलाव अंग्रेजों की देन है। कई लोग ऑफिस में दिन भर चाय लेते रहते है., यहाँ तक की उपवास में भी चाय लेते है । किसी भी डॉक्टर के पास जायेंगे तो वो शराब - सिगरेट - तम्बाखू छोड़ने को कहेगा , पर चाय नहीं,( ये सब भी छोड़ो और चाय भी) क्योंकि यह उसे पढ़ाया नहीं गया और वह भी खुद इसका गुलाम है. परन्तु किसी अच्छे वैद्य के पास जाओगे तो वह पहले सलाह देगा चाय ना पियें। चाय की हरी पत्ती पानी में उबाल कर पीने में कोई बुराई नहीं परन्तु जहां यह फर्मेंट हो कर काली हुई सारी बुराइयां उसमे आ जाती है।


आइये जानते है कैसे? 


हमारे गर्म देश में चाय और गर्मी बढ़ाती है, पित्त बढ़ाती है। चाय के सेवन करने से शरीर में उपलब्ध विटामिन्स नष्ट होते हैं। इसके सेवन से स्मरण शक्ति में दुर्बलता आती है। - चाय का सेवन लिवर पर बुरा प्रभाव डालता है।

१👉  चाय का सेवन रक्त आदि की वास्तविक उष्मा को नष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

२👉 दूध से बनी चाय का सेवन आमाशय पर बुरा प्रभाव डालता है और पाचन क्रिया को क्षति पहुंचाता है।

३👉 चाय में उपलब्ध कैफीन हृदय पर बुरा प्रभाव डालती है, अत: चाय का अधिक सेवन प्राय: हृदय के रोग को उत्पन्न करने में सहायक

होता है।

४👉 चाय में कैफीन तत्व छ: प्रतिशत मात्रा में होता है जो रक्त को दूषित करने के साथ शरीर के अवयवों को कमजोर भी करता है।

५👉 चाय पीने से खून गन्दा हो जाता है और चेहरे पर लाल फुंसियां निकल आती है।

६👉 जो लोग चाय बहुत पीते है उनकी आंतें जवाब दे जाती है. कब्ज घर कर जाती है और मल निष्कासन में कठिनाई आती है।

७👉 चाय पीने से कैंसर तक होने की संभावना भी रहती है।

८👉 चाय से स्नायविक गड़बडियां होती हैं, कमजोरी और पेट में गैस भी।

९👉 चाय पीने से अनिद्रा की शिकायत भी बढ़ती जाती है।

१०👉 चाय से न्यूरोलाजिकल गड़बड़ियां आ जाती है।

११👉 चाय में उपलब्ध यूरिक एसिड से मूत्राशय या मूत्र नलिकायें निर्बल

हो जाती हैं, जिसके परिणाम स्वरूप चाय का सेवन करने वाले व्यक्ति को बार-बार मूत्र आने की समस्या उत्पन्न हो जाती है।

१२👉 इससे दांत खराब होते है. - रेलवे स्टेशनों या टी स्टालों पर बिकने वाली चाय का सेवन यदि न करें तो बेहतर होगा क्योंकि ये बरतन को साफ किये बिना कई बार इसी में चाय बनाते रहते हैं जिस कारण कई बार चाय विषैली हो जाती है। चाय को कभी भी दोबारा गर्म करके न पिएं तो बेहतर होगा।

१३👉 बाज़ार की चाय अक्सर अल्युमीनियम के भगोने में खदका कर बनाई जाती है। चाय के अलावा यह अल्युमीनियम भी घुल कर पेट की प्रणाली को बार्बाद करने में कम भूमिका नहीं निभाता है।

१४👉 कई बार हम लोग बची हुई चाय को थरमस में डालकर रख देते हैं इसलिए भूलकर भी ज्यादा देर तक थरमस में रखी चाय का सेवन न करें। जितना हो सके चायपत्ती को कम उबालें तथा एक बार चाय बन जाने पर इस्तेमाल की गई चायपत्ती को फेंक दें।

१५👉 शरीर में आयरन अवशोषित ना हो पाने से एनीमिया हो जाता है. - इसमें मौजूद कैफीन लत लगा देता है. लत हमेशा बुरी ही होती है.

१६👉 ज़्यादा चाय पिने से खुश्की आ जाती है.आंतों के स्नायु भी कठोर बन जाते हैं।

१७👉  चाय के हर कप के साथ एक या अधिक चम्मच शकर

ली जाती है जो वजन बढाती है।

१८👉 अक्सर लोग चाय के साथ नमकीन , खारे बिस्कुट ,पकौड़ी आदि लेते है. यह विरुद्ध आहार है. इससे त्वचा रोग होते है.।

१९👉 चाय से भूख मर जाती है, दिमाग सूखने लगता है, गुदा और वीर्याशय ढीले पड़ जाते हैं। डायबिटीज़ जैसे रोग होते हैं। दिमाग सूखने से उड़ जाने वाली नींद के कारण आभासित कृत्रिम स्फूर्ति को स्फूर्ति मान लेना, यह बड़ी गलती है।

२०👉 चाय-कॉफी के विनाशकारी व्यसन में फँसे हुए लोग स्फूर्ति का बहाना बनाकर हारे हुए जुआरी की तरह व्यसन

में अधिकाधिक गहरे डूबते जाते हैं। वे लोग शरीर, मन, दिमाग और पसीने की कमाई को व्यर्थ गँवा देते हैं और भयंकर व्याधियों के शिकार बनते है।


चाय का विकल्प 

🔸🔸🔹🔸🔸

पहले तो संकल्प कर लें की चाय नहीं पियेंगे. दो दिन से एक हफ्ते तक याद आएगी ; फिर सोचोगे अच्छा हुआ छोड़ दी.एक दो दिन सिर दर्द हो सकता है.

सुबह ताजगी के लिए गर्म पानी ले. चाहे तो उसमे आंवले के टुकड़े मिला दे. थोड़ा एलो वेरा मिला दे. 


सुबह गर्म पानी में शहद निम्बू डाल के पी सकते है. 


गर्म पानी में तरह तरह की पत्तियाँ या फूलों की पंखुड़ियां डाल कर पी सकते है. 

जापान में लोग ऐसी ही चाय पीते है और स्वस्थ और दीर्घायु होते है.


कभी पानी में मधुमालती की पंखुड़ियां, कभी मोगरे की, कभी जासवंद, कभी पारिजात आदि डाल कर पियें.


गर्म पानी में लेमन ग्रास, तेजपत्ता, पारिजात आदि के पत्ते या अर्जुन की छाल या इलायची, दालचीनी इनमे से एक कुछ डाल कर पीये।

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Saturday, May 14, 2022

जरूरी सूचना

*जरूरी सूचना कृपया ध्यान दें

आज ही सेक्रेटरी सभा दयालबाग़ का मैसेज आया है जिसमें उन्होंने साफ़ साफ़ कहा है कि जुलाई भंडारे में सिर्फ उन्हीं जिज्ञासु और सतसंगियो को इजाजत मिलेगी जिनका UID है और उनका बायोमेट्रिक हो गया है.  इसमें किसी तरह की छूट नही मिलेगी.


*अतः 15 04 2022 तारीख तक ऐसे सभी लोगों का बायोमेट्रिक करवा लें वरना इसकी सारी जिम्मॆवारी आपकी होगी.

Thursday, May 12, 2022

श्री राम सबरी संवाद


प्रस्तुति - सतेंद्र गुप्ता


सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो :- राम*


एक टक देर तक उस सुपुरुष को निहारते रहने के बाद बुजुर्ग भीलनी के मुंह से स्वर/बोल फूटे :-


"कहो राम !  सबरी की डीह ढूंढ़ने में अधिक कष्ट तो नहीं हुआ  ?"


राम मुस्कुराए :-  "यहां तो आना ही था मां, कष्ट का क्या मोल/मूल्य ?"


"जानते हो राम !   तुम्हारी प्रतीक्षा तब से कर रही हूँ, जब तुम जन्में भी नहीं थे|

  यह भी नहीं जानती थी,   कि तुम कौन हो ?   कैसे दिखते हो ?   क्यों आओगे मेरे पास ?   बस इतना ज्ञात था,   कि कोई पुरुषोत्तम आएगा जो मेरी प्रतीक्षा का अंत करेगा|


राम ने कहा :- "तभी तो मेरे जन्म के पूर्व ही तय हो चुका था,   कि राम को सबरी के आश्रम में जाना है”|


"एक बात बताऊँ प्रभु !   भक्ति के दो भाव होते हैं |   पहला  ‘मर्कट भाव’,   और दूसरा  ‘मार्जार भाव’|


”बन्दर का बच्चा अपनी पूरी शक्ति लगाकर अपनी माँ का पेट पकड़े रहता है, ताकि गिरे न...  उसे सबसे अधिक भरोसा माँ पर ही होता है,   और वह उसे पूरी शक्ति से पकड़े रहता है। यही भक्ति का भी एक भाव है, जिसमें भक्त अपने ईश्वर को पूरी शक्ति से पकड़े रहता है|  दिन रात उसकी आराधना करता है...”(मर्कट भाव)


पर मैंने यह भाव नहीं अपनाया|  ”मैं तो उस बिल्ली के बच्चे की भाँति थी,   जो अपनी माँ को पकड़ता ही नहीं, बल्कि निश्चिन्त बैठा रहता है कि माँ है न,   वह स्वयं ही मेरी रक्षा करेगी,   और माँ सचमुच उसे अपने मुँह में टांग कर घूमती है...   मैं भी निश्चिन्त थी कि तुम आओगे ही, तुम्हें क्या पकड़ना..." (मार्जार भाव)


राम मुस्कुरा कर रह गए |


भीलनी ने पुनः कहा :-   "सोच रही हूँ बुराई में भी तनिक अच्छाई छिपी होती है न...   “कहाँ सुदूर उत्तर के तुम,   कहाँ घोर दक्षिण में मैं”|   तुम प्रतिष्ठित रघुकुल के भविष्य,   मैं वन की भीलनी...   यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो तुम कहाँ से आते ?”


राम गम्भीर हुए | कहा :-


भ्रम में न पड़ो मां !   “राम क्या रावण का वध करने आया है” ?


रावण का वध तो,  लक्ष्मण अपने पैर से बाण चला कर कर सकता है|


राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है,   तो केवल तुमसे मिलने आया है मां,   ताकि “सहस्त्रों वर्षों बाद,  जब कोई भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे,   कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था”|


जब कोई  भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं !   यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ,   एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है|


राम वन में बस इसलिए आया है,   ताकि “जब युगों का इतिहास लिखा जाय,   तो उसमें अंकित हो कि ‘शासन/प्रशासन/सत्ता’ जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है”|




राम वन में इसलिए आया है,  ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतीक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं|   राम रावण को मारने भर के लिए नहीं आया हैं  मां|


माता सबरी एकटक राम को निहारती रहीं |


राम ने फिर कहा :-


राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता ! “राम की यात्रा प्रारंभ हुई है,   भविष्य के आदर्श की स्थापना के लिए”|


राम निकला है,   ताकि “विश्व को संदेश दे सके कि माँ की अवांछनीय इच्छओं को भी पूरा करना ही 'राम' होना है”|


राम निकला है,   कि ताकि “भारत को सीख दे सके कि किसी सीता के अपमान का दण्ड असभ्य रावण के पूरे साम्राज्य के विध्वंस से पूरा होता है”|


राम आया है,   ताकि “भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है”|


राम आया है,   ताकि “युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है, कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणों का घमंड तोड़ा जाय”| 

वानर सेना भी बड़े युद्ध में जीत देकर दीखा सके । आम जन में आत्मविश्वास बढ़े । 

राष्ट्रहित में सभी सहभागी बने ।



राम आया है,   ताकि “युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं”| सबसे नीचली पायदान पर बैठा आदमी भी अपना योगदान देने की शिक्षा ले सके ।


सबरी की आँखों में जल भर आया था|

उसने बात बदलकर कहा :-  "बेर खाओगे राम” ?


राम मुस्कुराए,   "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं मां"


सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया|


राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा :- 

"बेर मीठे हैं न प्रभु” ?


"यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ मां ! बस इतना समझ रहा हूँ,  कि यही अमृत है”|


सबरी मुस्कुराईं, बोलीं :-   "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो, राम"


अखंड भारत-राष्ट्र के महानायक, मर्यादा-पुरुषोत्तम, भगवान श्री राम को बारंबार सादर वन्दन

सुबह खेत पर घोषणा

 *सुबह खेत में हुई अनाउंसमेंट 13/5/22* 


 *कल शाम को एक माता पिता ने अपने बच्चे से पुछवाया था gracious huzur को की वो काठ की गाड़ी में कब बैठेंगे। हुजूर का फरमाना यह है कि वो काठ के गाड़ी कभी नहीं बठेंगे ईरिक्शा  में ही बैठेंगे। ऐसे ही काम करवाते रहेंगे।       

✌🏼         नोट:-भूल सुधार-कार्ट की गाड़ी।*


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 *राधास्वामी*

हम हैं कायस्थ / अरविंद अकेला



हम हैं कायस्थ अपने वतन के,

हमें खुद पर है अभिमान,

हमसे है यह देश गौरवान्वित,

हमसे बना यह देश महान।


हम हैं सृष्टि के उद्भव के साक्षी,

स्वर्ग में भी है मेरा सम्मान,

हम हैं सत्य,सनातन हिन्दु,

हिन्दुत्व मेरी रग-रग पहचान।


हम हैं श्रीचित्रगुप्त के वंशज,

जो भगवान ब्रह्मा की संतान,

जन्म- मरण के ज्ञाता हैं वो,

स्वर्ग में जिनका ऊँचा स्थान।


पृथ्वी पर सम्मानित हम,

देश-विदेश में है मान,

मेधा के पुजारी हम,

कलम से है अपनी शान।


हम हैं शक्ति के उपासक,

राष्ट्र धर्म का हमें है भान,

देश सेवा में जान दे देते,

करते हैं विश्व का कल्याण।


स्वतंत्रता संग्राम में दी कुर्बानी,

किया हमने संविधान निर्माण,

जब भी पड़ी देश को जरूरत,

देश के लिए हमने दे दी  जान ।

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      अरविन्द अकेला,

पूर्वी रामकृष्ण नगर,पटना-27

Wednesday, May 11, 2022

शलभासन के लाभ*

 *शलभासन : कमर को लचीला बनाने के लिए किए जाने वाला आसन : जानिए इसके फायदे और कायदे* 


शलभ का अर्थ टिड्डी (Locust ) होता है। यह आसन अंतिम मुद्रा में शरीर टिड्डी जैसा लगता है, इसलिए इसे इस नाम से जाना जाता है। इसे Locust Pose Yoga भी कहते हैं। यह कमर एवं पीठ दर्द के लिए बहुत लाभकारी आसन है। इसके नियमित अभ्यास से आप कमर दर्द पर बहुत हद तक काबू पा सकते हैं।


*शलभासन के लाभ*


1. यह कमर दर्द के लिए अति उत्तम योगाभ्यास है। इसके नियमित अभ्यास से आप पुराने से पुराने कमर दर्द से निजात पा सकते हैं।

2. यह पेट की मालिश करते हुए पाचन तंत्र को मजबूत बनाता है।

3. यह तंत्रिका तंत्र को मजबूत बनाता है और इसके सक्रियता को बढ़ाता है।

4. कब्ज से निजात पाने के लिए यह लाभकारी योग है।

5. इस आसन के अभ्यास से आप दमा रोग को कण्ट्रोल कर सकते हैं। 

6. यह रक्त साफ करता है तथा उसके संचार को बेहतर बनाता है।

7. शरीर के लचीलापन को बढ़ाता है और आपको बहुत सारी परेशानियों से दूर रखता है।

8. साइटिका: यह आसन साइटिका को ठीक करने के लिए अहम भूमिका निभाता है।

9. यह पैंक्रियास को नियंत्रण करता है और मधुमेह के प्रबंधन में सहायक है।

10. पेट और कमर की अतरिक्त वसा को कम करता है, इस तरह से वजन कम करने में सहायक है।

11. इसके अभ्यास से आप गर्भाशय सम्बंधित परेशानियों को कम कर सकते हैं।

12. इसके अभ्यास से पेट गैस को कम किया जा सकता है।

13. मणिपूर्ण चक्र के लिए प्रभावी योग है।

14. यह नाभि को सही जगह पर रखता है।

 

*शलभासन की विधि*


1. सबसे पहले आप स्वच्छ आसन बिछाकर पेट के बल लेट जाएं।

2. अपने हथेलियों को जांघों के नीचे रखें।

3. एड़ियों को आपस में जोड़ लें।

4. सांस लेते हुए अपने पैरों को यथासंभव ऊपर ले जाएं।

5. धीरे धीरे सांस लें और फिर धीरे धीरे सांस छोड़े और इस अवस्था को बनाएं रखें।

6. सांस छोड़ते हुए पांव नीचे लाएं।

7. यह एक चक्र हुआ। इस तरह से आप 3 से 5 बार करें।

8. निरंतर अभ्यास से चक्र और समयावधि को बढ़ाया जा सकता है किन्तु नौसिखिए इसे शुरुआती दौर में योग्य व्यक्ति के सहयोग से  और कम समय के लिए ही करें। 


*शलभासन की सावधानिया*

 

1. मेरुदंड की समस्या में इसे न करें।

ज़्यदा कमर दर्द में इसका अभ्यास न करें।

2. पेट का ऑपरेशन होने पर इसको करने से बचें।

3. इस आसन को उच्च रक्तचाप की स्थिति में नहीं करनी चाहिए।

4. हृदय रोग से पीड़ित व्यक्ति को इस आसन के प्रैक्टिस से बचना चाहिए।

5. दमा के रोगियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।

6. शुरुवाती दौर में इसको ज़्यदा देर तक न रोकें।

7. हर्निया की स्थिति में इसका अभ्यास न करें।

Tuesday, May 10, 2022

कृष्ण - कर्ण संवाद / कृष्ण मेहता

 🙏😊🌹


*पहली बात,*

*महाभारत में*

*कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...*


मेरी माँ ने मुझे जन्मते ही त्याग दिया,

क्या ये मेरा अपराध था कि मेरा जन्म

एक अवैध बच्चे के रूप में हुआ?


*दूसरी बात*

*महाभारत में*

*कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछी...*


दोर्णाचार्य ने मुझे शिक्षा देने से मना

कर दिया था क्योंकि वो मुझे क्षत्रीय

नहीं मानते थे, क्या ये मेरा कसूर था.


*तीसरी बात*

*महाभारत में*

*कर्ण ने श्री कृष्ण से पूछी...।*


द्रौपदी के स्वयंवर में मुझे अपमानित

किया  गया,  क्योंकि  मुझे  किसी

राजघराने का कुलीन व्यक्ति नहीं

समझा गया.


*श्री कृष्ण मंद मंद मुस्कुराते*

*हुए कर्ण को बोले, सुन...*


हे कर्ण, मेरा जन्म जेल में हुआ था.

मेरे पैदा होने से पहले मेरी मृत्यु

मेरा   इंतज़ार   कर   रही   थी.

जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात

मुझे माता-पिता से अलग होना पड़ा.

मैने गायों को चराया और गायों के

गोबर को अपने हाथों से उठाया.

जब मैं चल भी नहीं पाता था, तब

मेरे ऊपर प्राणघातक हमले हुए.

      मेरे पास

कोई सेना नहीं थी,

कोई शिक्षा नहीं थी,

कोई गुरुकुल नहीं था,

कोई महल नहीं था,

       फिर भी

मेरे मामा ने मुझे अपना

सबसे बड़ा शत्रु समझा.

बड़ा होने पर मुझे ऋषि

सांदीपनि के आश्रम में

जाने का अवसर मिला.

जरासंध के प्रकोप के कारण, मुझे अपने

परिवार को यमुना से ले जाकर सुदूर प्रान्त,

समुद्र के किनारे द्वारका में बसना पड़ा.


*हे कर्ण...*

किसी का भी जीवन चुनौतियों से

रहित नहीं है.  सबके जीवन में

सब   कुछ   ठीक   नहीं   होता.

सत्य क्या है और उचित क्या है?

ये हम अपनी आत्मा की आवाज़

से   स्वयं   निर्धारित   करते   हैं.

इस बात से *कोई फर्क नहीं पड़ता,*

कितनी बार हमारे साथ अन्याय होता है.

इस बात से *कोई फर्क नहीं पड़ता,*

कितनी बार हमारा अपमान होता है.

इस बात से भी *कोई फर्क नहीं पड़ता,*

कितनी बार हमारे अधिकारों का हनन

होता है.

*फ़र्क़ तो सिर्फ इस बात से पड़ता है*

*कि हम उन सबका सामना किस प्रकार ज्ञान  के साथ करते हैं.*

*ज्ञान है तो ज़िन्दगी हर पल मौज़ है,*

*वरना समस्या तो सभी के साथ रोज है.*

🌹🙏ओउम् नमो भगवते वासुदेवाय 🙏🌹

Monday, May 9, 2022

संत बचन हिरदे में dharnav

 *राधास्वामी!    

                                       

 10-05-22-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                       

संत बचन हिरदे में धरना ।

उनसे मुख मोड़न नहिं करना॥१।।                                              

जो तू घट में चालनहार।

चलने वाला सँग ले यार॥१९॥                                            

हिन्दू चाहे मुसलमाँ होवे ।

 अरबी होय तुरक चाहे होवे॥२०॥                                               

रूप रंग उसका मत देख ।

सरधा भाव निशाना पेख॥२१॥                                           

जिनके है मालिक का प्यार।

हिन्दू और तुरक दोउ यार॥२२॥                                            

जो हैं माते मन के केल।

दो हिन्दू का होय न मेल॥२३॥                                              

भान रूप मालिक सुन भाई।

नर देही में रहा छिपाई॥२४॥                                            

फूल खिलें गुलनारी जबही।

बाग़ सुहावन लागे तवही॥२५॥                                              

अस गुरु संग करे जो कोई।

पूरे सँग पूरा होय सोई॥२६॥                                              

 गुरु पूरे का सेवक बरतर ।

क्या जो हुकम करे राजों पर।।२७।।*                                       

 हर दम सुरत चढ़े ऊंचे को।

मालिक ताज ख़ास दिया उसको॥२८॥                                      

गुरु की गति परखो अन्तर में।

वे परखे मत मानो मन में॥२९॥                                           

   जो गुरु परख न पावे घट में।

तो मत जाय अकेला बट में ॥ ३०॥                                 

रस्ते में है काल का घेरा।

शब्द सुना दुख देहे घनेरा॥३१॥                                          

अभ्यासी को कहे पुकारी।

 शब्द सुनो आओ सरन हमारी।।३२।।                                            

जो कोई काल शब्द में रचिया।

घर नहिं जाय राह में पचिया॥३३॥                                      

धावत जाय काल के घर को।

भिड़ा शेर खा जावें उसको॥३४॥                                          

 काल शब्द की यह पहिचान।

 मन चाहे धन आदर मान॥३५।।                                             

 काल शब्द में चित्त न लाओ।

तब निज घर का भेद खुलाओ॥३६॥                                  

जिस घट परघट सत का नूर।

उसको पूजें देव और हूर।।३७॥                                         

साध का निरखो आँख और माथा।

सत्त का नूर रहे जिस साथा॥३८॥                                   

यह चिन्ह देख करें पहिचान|

गुरु पद का जिन हिरदे ज्ञान।।३९॥                                      

परम पुरुष सम गुरु को जान।

बिन जिभ्या कहें बचन सुजान॥४०॥                                    

वही हकीम और वही उस्ताद।

हिये में सुनत रहो उन नाद॥४१॥                                            

छोड़ कुसंगी से तू प्यार।

सच्चा संगी खोजो यार॥४२।।

जिन कीना सतगुरु का संग।

 सत्तपुरुष का पाया रंग।।४३।।                                                

झूठे गुरु का जो संग लाय।

नरक पड़े और अति दुख पाय।।४४॥                                         

 गत मत भेद संत का भारी।

 वही पावे जिन तन मन वारीं।।४५॥                                       

  संत न देखें बोल और चाल।

 वें परखेंअंतर का हाल॥४६॥                                               

गुरु का हाथ पुरुष का हाथ।

हाज़िर ग़ायब सब के साथ।।४७॥                                      

 उनका हाथ बहु लंबा ऊँचा।

सात मुक़ाम के ऊपर पहुँचा।।४८॥                                          

   जो तू सिर को राखा चाह।

दीन होय गुरु सरनी आय।।४९।।                                              

 गुरु तुझको सब भाँति बचावें।

काल बिघन सब दूर करावें॥५०।।                                       

 झूठे गुरु की ओट न गहना।

सतगुरु चरन सरन सुख लेना।।५१॥                                              

जिन सतगुरु का संग न कीना।

दुख पाया हुआ काल अधीना॥५२॥                                     

जो हुआ सतगुरु की छाँह।

सूरज लागा उसके पायँ।।५३॥

(प्रेमबानी-3-शब्द- अशरार सतगुरु महिमा- पृ.सं.381-386)**


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/ *"चेले की भूल"* / कृष्ण मेहता

प्रस्तुति - रेणु दत्ता / आशा सिन्हा


एक महात्मा बहुत ज्ञानी थे, अपनी ही साधना में लीन रहते थे। एक बार एक लड़का उनके पास आया। उसने उनसे अपना चेला बना लेने की पुरजोर प्रार्थना की। महात्मा जी ने सोचा, बुढ़ापा आ रहा है। एक चेला पास में होगा, तो सहारा बनेगा। यह सोचकर उन्होंने उसे चेला बना लिया।          

चेला बहुत चंचल प्रकृति का था। ज्ञान-ध्यान में उसका मन नहीं लगता था। दिन-भर आने-जाने वालों से बातें करने और मस्ती करने में उसका समय व्यतीत होता। गुरु ने कई बार उसे समझाने की चेष्टा की पर सफलता नहीं मिली।          

एक दिन चेला महात्माजी से बोला -गुरुदेव  मुझे कोई चमत्कार सिखा दें। गुरु ने कहा, वत्स  चमत्कार कोई काम की वस्तु नहीं है उससे एक बार भले ही व्यक्ति प्रसिद्धि पा ले, लेकिन अंततोगत्वा उसका परिणाम अच्छा नहीं होता। पर चेला अपनी बात पर अड़ा रहा।        

 बालहठ के सामने गुरुजी को झुकना पड़ा उन्होंने अपने झोले में से एक पारदर्शी डंडा निकाला और चेले के हाथ में उसे थमाते हुए कहा, यह लो चमत्कार इस डंडे को तुम जिस किसी की छाती के सामने करोगे, उसके दोष इसमें प्रकट हो जाएंगे चेला डंडे को पाकर बहुत प्रसन्न हुआ।

गुरु ने चेले के हाथ में डंडा क्या थमाया, मानो बंदर के हाथ में तलवार थमा दी कोई भी व्यक्ति आश्रम में आता, चेला हर आगंतुक के सीने के सामने उस डंडे को घुमा देता फलत: उसकी कमजोरियाँ उसमें प्रकट हो जातीं और चेला उनका दुष्प्रचार शुरू कर देता. 

गुरुजी सारी बात समझ गए एक दिन उन्होंने चेले से कहा, एक बार डंडा अपनी ओर भी घुमाकर देख लो, इससे स्वयं का परीक्षण हो जाएगा कि आश्रम में आ कर अपनी साधना से तुमने कितनी प्रगति की है चेले को बात जंची, उसने फौरन डंडा अपनी ओर किया लेकिन देखा कि उसके भीतर तो दोषों का अंबार लगा है शर्म से उसका चेहरा लटक गया वह तत्काल गुरु के चरणों में गिर पड़ा और अपनी भूल की क्षमा मांगते हुए बोला, आज से मैं दूसरों के दोष देखने की भूल नहीं करूँगा..!!

  

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संत बचन हिरदे में धरना । उनसे मुख मोड़न नहिं करना॥१॥

 राधास्वामी!                                          

09- 05-22  सुबह सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                               


संत बचन हिरदे में धरना ।

 उनसे मुख मोड़न नहिं करना॥१॥                                     

मीठा कड़वा बोल सुहाई ।

मत को तेरे दे हैं पकाई॥२॥                                            

 गरम सरद का सोच न लाना । नरक अगिन से तोहि बचाना॥३॥                                  

  तेरी समझ है किनके माहीं ।

 गुरु पूरा खोजो जग माहीं॥४॥                                         

उन सँग किनका पावे ज्ञान ।

मार लेय तू मन शैतान॥५॥                                               गुरु पूरा कस्तूर समान ।

बाहर खूँ घट मुश्क बसान॥६।।                                            

 जब वे घट का भेद सुनावें ।

 नभ की ओर सुरत मन धावें॥७॥                                

अँधे को शीशा दिखलाना ।

 ऐसे हरि पत्थर में जाना॥८॥                                               

गुरु बिन घट में राह न चलना ।

 डर और बिघन अनेकन मिलना॥९॥                                 *

●●कल से आगे-09-05-22-●●            

गुरु रक्षा जाके सँग नाहीं । उसको काल dयाते सतगुरु ओट पकड़ना । झूठे गुरु से काज न सरना॥११॥                                 

गिर समान उन छाया जग में ।

सुरत बिहंगम रहत अधर में॥१२॥                                  

 जो मन करड़ा पत्थर होवे ।

गुरु से मिलत जवाहिर होवे॥१३॥                               

बँदगी भजन करे सौ बरसा ।

 गुरु का संग दुघड़िया बढ़का॥१४॥                               

जो मालिक का चहे दीदार ।

जा तू बैठ गुरू दरबार॥१५॥                                      

मालिक का बालक गुरु पूर ।

 मालिक का हरदम मंजूर॥१६॥                                   

गुरु पूरे को समरथ जान । क

रम बान उलटावें आन॥१७॥                                              

जो मालिक का मुनता बोल।

 उसका वचन सही कर तोल॥१८॥                                

जो तू घट में चालनहार।

 चलने वाला सँग ले यार॥१९॥                                            

 हिन्दू चाहे मुसलमाँ होवे ।

 अरबी होय तुरक चाहे होवे॥२०॥                                      

 रूप रंग उसका मत देख ।

सरधा भाव निशाना पेख॥२१॥                             

जिनके है मालिक का प्यार।

हिन्दू और तुरक दोउ यार॥२२॥                                        

 जो हैं माते मन के केल । दो

 हिन्दू का होय न मेल॥२३॥                                              

भान रूप मालिक सुन भाई ।

 नर देही में रहा छिपाई॥२४॥                                         

फूल खिलें गुलनारी जबही ।

 बाग़ सुहावन लागे तवही॥२५॥                                  

 अस गुरु संग करे जो कोई ।

पूरे सँग पूरा होय सोई॥२६॥

 (प्रेमबानी-3-शब्द-अशरार सतगुरु

 भक्ति-पृ.सं. 381,382,383-पैरा-1-26)*


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Thursday, May 5, 2022

सुरत मेरी हुई चरन गुरु लीन।

 राधास्वामी!                         

 05-2022


-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-  

                                                      

 सुरत मेरी हुई चरन गुरु लीन।

 लखी घट मूरत मन हुआ दीन।।१।।                                      

 वारती तन मन गुरु चरना।

धारती मन में गुरु सरना॥२॥                                            

  जगत का परमारथ छोड़ा।

करम सँग अब नाता तोड़ा॥३॥                                               

भक्ति गुरु लागी अति प्यारी।

 संत मत हित चित से धारी॥४॥                                            

सुरत और शब्द जुगत अनमोल।

धार हिये सुनती बाला बोल॥५॥                                        

नाम रस पियत रहँ दिन रात।

गुरू का दम दम अब गुन गात॥६॥                                   

बहुत दिन तीरथ बर्त पचाय।

रही मैं ठगियन संग ठगाय॥७॥                                             

सुफल मेरी नरदेह आज भई।

दीन दिल राधास्वामी सरन गही॥८॥                           

मेहर हुई चित चरनन लागा।

बढ़त अब दिन दिन अनुरागा॥९॥                                           

*●●कल से आगे-05-05-22-●●  

           

बचन सतसँग के हिरदे धार।

उमँग मन त्यागत जगत लबार॥१०॥                                    

चरन में गुरु के चाहत बास।

होत जहाँ निस दिन परम बिलास॥११॥                                                                      

  रूप गुरु धारूँ हिरदे ध्यान।

संत सँग प्रीति बढ़ाऊँ आन॥१२॥                                             

 करूँ अस निस दिन किरत सम्हार।

 भरम और संशय टारूँ झार॥१३॥                                

होंय जब राधास्वामी गुरु परसन्न।

 दया कर काटें सब बंधन॥१४॥                                       

चढ़े तब सूरत शब्द सम्हार।

लखै फिर घट में मोक्ष दुआर॥१५॥                                              

गगन चढ़ तिरबेनी न्हावे।

भँवर लख सतपुर दरसावे॥१६॥                                        

अलख लख अगम का निरखै रूप।

 मिले पिता राधास्वामी कुल भूप॥१७॥                                                                

 आरती सन्मुख धार रही।

चरन पर तन मन वार रही॥१८।।

(प्रेमबानी-1-शब्द-82- पृ.सं.381,382,383)*


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Wednesday, May 4, 2022

परोपकार की नीयत


प्रस्तुति -  शैलेन्द्र कुमार जारूहार


 एक बुज़ुर्ग शिक्षिका भीषण गर्मियों के दिन में बस में सवार हुई, पैरों के दर्द से बेहाल, लेकिन बस में सीट न देख कर जैसे – तैसे खड़ी हो गई। 

कुछ दूरी ही तय की थी बस ने कि एक उम्रदराज औरत ने बड़े सम्मानपूर्वक आवाज़ दी, "आ जाइए मैडम, आप यहाँ बैठ जाएं” कहते हुए उसे अपनी सीट पर बैठा दिया। खुद वो गरीब सी औरत बस में खड़ी हो गई। मैडम ने दुआ दी, "बहुत-बहुत धन्यवाद, मेरी बुरी हालत थी सच में।"

उस गरीब महिला के चेहरे पर एक सुकून भरी मुस्कान फैल गई।


कुछ देर बाद शिक्षिका के पास वाली सीट खाली हो गई। लेकिन महिला ने एक और महिला को, जो एक छोटे बच्चे के साथ यात्रा कर रही थी और मुश्किल से बच्चे को ले जाने में सक्षम थी, को सीट पर बिठा दिया।

अगले पड़ाव पर बच्चे के साथ महिला भी उतर गई, सीट खाली हो गई, लेकिन नेकदिल महिला ने बैठने का लालच नहीं किया।

बस में चढ़े एक कमजोर बूढ़े आदमी को बैठा दिया जो अभी - अभी बस में चढ़ा था।


सीट फिर से खाली हो गई। बस में अब गिनी – चुनी सवारियाँ ही रह गईं थीं। अब उस अध्यापिका ने महिला को अपने पास बिठाया और पूछा, "सीट कितनी बार खाली हुई है लेकिन आप लोगों को ही बैठाते रहे, खुद नहीं बैठे, क्या बात है?"

महिला ने कहा, "मैडम, मैं एक मजदूर हूँ, मेरे पास इतने पैसे नहीं हैं कि मैं कुछ दान कर सकूँ।" तो मैं क्या करती हूँ कि कहीं रास्ते से पत्थर उठाकर एक तरफ कर देती हूँ, कभी किसी जरूरतमंद को पानी पिला देती हूँ, कभी बस में किसी के लिए सीट छोड़ देती हूँ, फिर जब सामने वाला मुझे दुआएं देता है तो मैं अपनी गरीबी भूल जाती हूँ। दिन भर की थकान दूर हो जाती है। और तो और, जब मैं दोपहर में रोटी खाने के लिए बैठती हूँ ना बाहर बेंच पर, तो ये पंछी - चिड़ियाँ पास आ के बैठ जाते हैं, रोटी डाल देती हूँ छोटे-छोटे टुकड़े करके। जब वे खुशी से चिल्लाते हैं, तो उन भगवान के जीवों को देखकर मेरा पेट भर जाता है। पैसा धेला न सही, सोचती हुँ दुआएं तो मिल ही जाती है ना मुफ्त में। फायदा ही है ना और हमने लेकर भी क्या जाना है यहाँ से ।


शिक्षिका अवाक रह गई, एक अनपढ़ सी दिखने वाली महिला इतना बड़ा पाठ जो पढ़ा गई थी उसे।

अगर दुनिया के आधे लोग ऐसी सोच को अपना लें तो धरती स्वर्ग बन जाएगी।  

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सुरत मेरी हुई चरन गुरु लीन।

 *राधास्वामी! 04-05-2022

-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                              

  सुरत मेरी हुई चरन गुरु लीन।

 लखी घट मूरत मन हुआ दीन।।१।।                                      

 वारती तन मन गुरु चरना।

धारती मन में गुरु सरना॥२॥                                              

जगत का परमारथ छोड़ा।

करम सँग अब नाता तोड़ा॥३॥                                               

भक्ति गुरु लागी अति प्यारी।

 संत मत हित चित से धारी॥४॥                                           

 सुरत और शब्द जुगत अनमोल।

धार हिये सुनती बाला बोल॥५॥                                       

 नाम रस पियत रहँ दिन रात।

 गुरू का दम दम अब गुन गात॥६॥                                   

बहुत दिन तीरथ बर्त पचाय।

रही मैं ठगियन संग ठगाय॥७॥                                           

  सुफल मेरी नरदेह आज भई।

दीन दिल राधास्वामी सरन गही॥८॥                          

 मेहर हुई चित चरनन लागा।

 बढ़त अब दिन दिन अनुरागा॥९॥                                            

बचन सतसँग के हिरदे धार।

उमँग मन त्यागत जगत लबार॥१०॥                                    

चरन में गुरु के चाहत बास।

होत जहाँ निस दिन परम बिलास॥११॥                                                                       

 रूप गुरु धारूँ हिरदे ध्यान।

 संत सँग प्रीति बढ़ाऊँ आन॥१२॥                                              

करूँ अस निस दिन किरत सम्हार।

 भरम और संशय टारूँ झार॥१३॥                                

होंय जब राधास्वामी गुरु परसन्न।

दया कर काटें सब बंधन॥१४॥                                      

 चढ़े तब सूरत शब्द सम्हार।

लखै फिर घट में मोक्ष दुआर॥१५॥                                             

 गगन चढ़ तिरबेनी न्हावे।

भँवर लख सतपुर दरसावे॥१६॥                                       

 अलख लख अगम का निरखै रूप।

 मिले पिता राधास्वामी कुल भूप॥१७॥                                                                 

आरती सन्मुख धार रही।

चरन पर तन मन वार रही॥१८।।

 (प्रेमबानी-1-शब्द-82- पृ.सं.381,382,383)*



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Tuesday, May 3, 2022

रामायण का प्रसंग / कृष्ण मेहता

 🕉️•|तुलसीदास जी जब “रामचरितमानस” लिख रहे थे, तो उन्होंने एक चौपाई लिखी:


🕉️सिय राम मय सब जग जानी,

  करहु प्रणाम जोरी जुग पानी ।।🕉️


अर्थात –

पूरे संसार में श्री राम का निवास है, सबमें भगवान हैं और हमें उनको हाथ जोड़कर प्रणाम कर लेना चाहिए।


चौपाई लिखने के बाद तुलसीदास जी विश्राम करने अपने घर की ओर चल दिए। रास्ते में जाते हुए उन्हें एक लड़का मिला और बोला –


अरे महात्मा जी, इस रास्ते से मत जाइये आगे एक बैल गुस्से में लोगों को मारता हुआ घूम रहा है। और आपने तो लाल वस्त्र भी पहन रखे हैं तो आप इस रास्ते से बिल्कुल मत जाइये।


तुलसीदास जी ने सोचा – ये कल का बालक मुझे चला रहा है। मुझे पता है – सबमें राम का वास है। मैं उस बैल के हाथ जोड़ लूँगा और शान्ति से चला जाऊंगा।


लेकिन तुलसीदास जी जैसे ही आगे बढे और इससे पहले की बैल को हाथ जोड़ पाते बिगड़े बैल ने उन्हें जोरदार टक्कर मारी और वो बुरी तरह गिर पड़े।


अब तुलसीदास जी घर जाने की बजाय सीधे उस जगह पहुंचे जहाँ वो रामचरित मानस लिख रहे थे। और उस चौपाई को फाड़ने लगे, तभी वहां हनुमान जी प्रकट हुए और बोले – श्रीमान ये आप क्या कर रहे हैं?


तुलसीदास जी उस समय बहुत गुस्से में थे, वो बोले – ये चौपाई बिल्कुल गलत है। ऐसा कहते हुए उन्होंने हनुमान जी को सारी बात बताई।


हनुमान जी मुस्कुराकर तुलसीदास जी से बोले – श्रीमान, ये चौपाई तो शत प्रतिशत सही है। आपने उस बैल में तो श्री राम को देखा लेकिन उस बच्चे में राम को नहीं देखा जो आपको बचाने आये थे। भगवान तो बालक के रूप में आपके पास पहले ही आये थे लेकिन आपने देखा ही नहीं।


ऐसा सुनते ही तुलसीदास जी ने हनुमान जी को गले से लगा लिया ।


गंगा बड़ी, न गोदावरी, न तीर्थ बड़े प्रयाग।

सकल तीर्थ का पुण्य वहीं, जहाँ हदय राम का वास।।


🕉️ •|"जय श्री राम"|• 🕉️

गया बिहार से सतसंग की खबरें


 बायोमेट्रीक काडॕ बनाने की तिथि  को 15  मई तक बढ़ा दिया गया है | वैसे सतसंगी या रजिस्टर्ड जिज्ञासु जो गया से बाहर रहते हैं या गया में रहते हुए भी नहीं बनवा पाये हैं , उनसे अनुरोध है कि वे अपना बायोमेट्रीक जरुर से जरुर जल्‍द बनवा लें |

इसके लिए ब्राॕच सेक्र॓टरी से बात कर के एक टाईम फिक्स कर लें     राधास्‍वामी

S: सूचना :-

महिला एशोसिएसन की स्थापना दिवस के मौके पर , एशोसिएसन की तरफ से एक मीटिंग , कल दि० 3/5 को , दोपहर दो बजे , सतसंग भवन में रखी गयी है |

एशोसिएसन की सारी सदस्याएं तो इसमें भाग लेगीं ही , साथ ही साथ , एशोसिएसन ने अनुरोध किया है कि , सतसंगी भाई बहन भी इस मीटिंग में हिस्सा ले कर , एशोसिएसन का मनोबल बढ़ायें |

राधास्‍वामी

प्रसीडेन्‍ट / सेक्र॓टरी

महिला एशोसिएसन

गया ब्राॕच , गया


 मुरार समर स्कूल में  ऑन लाइन क्लास होगें

 |

जो बच्चे इसमें भाग लेना चाहते हैं  , वे उपर दिये गये फामॅ को डाउनलोड करें तथा  उसे भर कर 

मेरे पास अविलम्ब भेज दें |

अंत समय का इंतजार नही करें |

इसी तरह शिक्षक तथा वोलेन्‍टियर भी अपनी अपनी सेवाएँ  देने हेतु करें |

राधास्‍वामी

बचन गुरु सुनत हुआ आनंद / ध्यान कटे मन फंद॥१॥

 *राधास्वामी!                                             

02-05-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा जाने वाला दूसरा शब्द पाठ:-                                                                                           

   बचन गुरु सुनत हुआ आनंद।

ध्यान कटे मन फंद॥१॥                                 

करम और भरम दिये सब छोड़।

 चरन में लाग रहा चित जोड़॥२॥                                   

हुई गुरु बचनन दृढ़ परतीत।

धार लई चित में भक्ती रीति॥३॥                                   

भरोसा राधास्वामी मन में धार।

रहूँ नित राधास्वामी नाम पुकार॥४॥                      

 भरे मेरे मन में बहुत बिकार।

दया कर राधास्वामी लेहैं सम्हार॥५॥                    

करम मैं कीन्हे बहु भाँती।

 मेहर बिन नहिं आई शांती॥६॥                                    

 मान बस भूला बारम्बार।

गुरू बिन नहिं लखिया पद सार॥७॥                                                     

  मिला अब राधास्वामी पद का भेद।

 करम के मिट गये सारे खेद।।८।।                                                                           

बीनती गुरु चरनन में धार।

 गुरू से माँगूँ दया अपार॥९॥                                            

  सरन दे मोहि उतारो पार।

 नाम गुरु जपत रहूँ हर बार॥१०॥                                        

काल अब करे न कोई घात।

 दूर करो मन के सब उत्पात॥११॥                                                      

चलूँ अब चरन सम्हार सम्हार।

बचन पर निस दिन रहूँ हुशियार॥१२॥                                                             

सुरत मन निरमल होय चालें।

 प्रीति गुरु हिये छिन छिन पालें॥१३॥                             

 रूप गुरु ध्यान धरूँ दिन रात।

करम की बाज़ी होवे मात॥१४॥                            

 गगन चढ़ सुनूँ शब्द घनघोर।

छुटे तब मन का मोर और तोर॥१५॥                                

दसम दर निरखूँ पाट हटाय।

सत्तपुर सुनूँ बीन धुन जाय।।१६।।                                   

 चरन में राधास्वामी के धाऊँ।

प्रेम सँग वहाँ आरत गाऊँ॥१७॥                                  

दीन दिल पकड़ूँ गुरु चरना।

 धार रहूँ हिये में गुरु सरना।।१८।।                                   

 दया राधास्वामी पाई सार।

उतर गया जन्म जन्म का भार।।१९।।                                                  

 भाग बिन नहिं पावे यह धाम।

 मेहर बिन नहिं मिलिहै निज नाम॥२०॥                                                           

  करी मोपै राधास्वामी दया अपार।

 दिया मोहि निज चरनन आधार॥२१॥

 (प्रेमबानी-1-शब्द-81- पृ.सं.379,380,381)*


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Sunday, May 1, 2022

गुरू मैं तेरे दीदार का आशिक जो हुआ ।

 *राधास्वामी!  

                                              

 02-05-2022-आज सुबह सतसंग में पढ़ा जाने.व वाला पाठ 

हे गुरू मैं तेरे दीदार का आशिक जो हुआ ।

 मन से बेज़ार सुरत वार के दीवाना हुआ॥१॥                                                                        

इक नज़र ने तेरी ऐ जाँ मुझे बेहाल किया ।

 लैला के इश्क़ में मजनूँ सा परेशान किया॥२॥                                                            

मैं हूँ बीमार मेरे दर्द का नहिं और इलाज ।

 मेरे दिल जख़्म का मरहम तेरी बोली है इलाज।।३।।                                                           तेरे

मुखड़े की चमक ने किया मन को नूराँ ।

 सूरज और चाँद हज़ारों हुए उससे खिजलाँ॥४॥                                                    

     जग में इस चक्र ज़माने का यह दस्तूर हुआ ।

प्रेमी प्रीतम के चरन लाग के मशहूर हुआ॥५॥                                                          

    हिर्स दुनियाँ की मेरे दिल से हुई है सब दूर ।

 तेरे दरशन की लगन मन में रही है भरपूर॥६॥                                                                

  वाह वाह भाग जगे गुरु चरनन सुर्त मिली।

चंद्र मंडल को वहीं फोड़ के गगना में पिली॥७॥                                                         

 राग और रागनी मैंने सुने अंतर जाकर।

मेरे नज़दीक हुए हिन्दू मुसलमाँ काफ़िर॥८।।

 (प्रेमबानी-3-ग़ज़ल-1- पृ.सं.374,375)*


डायरी / परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज

 **राधास्वामी!                                          

01-05-2022-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन:-

[डायरी-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज-रोजाना वाकिआत-(भूमिका)]:

- हुजूर साहबजी महाराज ने अत्यन्त दया करके 18 सितम्बर , 1930 से एक डायरी ( दैनिकी ) लिखनी शुरू की थी । सतसंग की सप्ताहिक पत्रिकाओं में इसके कुछ संकलन प्रकाशित किये गये थे । सतसंगियों के अनुरोध पर 18 सितम्बर ,1930 से 31 दिसम्बर 1930 के समय के सम्बन्धित इस संकलन को 1931 में राधास्वामी सतसंग सभा ने एक पुस्तक के रूप में " रोजाना वाकआत " के शीर्षक के साथ उर्दू और हिन्दी में प्रकाशित किया था ।                


  हुजूर साहब जी महाराजने अपने अतिव्यस्त कार्यक्रम के बावजूद 2 अप्रैल , 1933 तक डायरी लिखी थी । यह युग सतसंग की कार्यवाहियों में तीव्र विकास का था । देश में राधास्वामी सतसंग का नाम उज्जवल हुआ और देश में ही नहीं अपितु विदेश में दयालबाग , इसके आदर्श और यहाँ की जीवन शैली की ओर सार्वजनिक ध्यान आकृष्ट हुआ ।                                          

यह डायरी उस ज़माने के जीवन का एक सजीव प्रतिबिम्ब है । इसमें उस समय देश विदेश में होने वाली विभिन्न घटनाओं और व्यक्तियों का , जो हुजूर साहबजी महाराज के सम्पर्क में आये , विवरण है और धार्मिक विषयों , दयालबाग की रहनी गहनी और सतसंग के प्रति जन साधारण की प्रतिक्रियाओं तथा उन पर हुजूर साहबजी महाराज के कथन और टिप्पणी का उल्लेख है ।

 हुजूर साहबजी महाराज ने स्वयं इस डायरी के लिखने का मतव्य इस प्रकार से बताया था “ इस दैनिकी के लिखने और इसे प्रकाशित करने का उद्देश्य यह है कि सतसंगी मेरे विचारों से अवगत हो जायें और ऊनसे लाभ उठा सकें। इस डायरी म़े परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के महान और अनुपम व्यक्तित्व की झलक दिखती है । सतसंगियों के लिये यह एक बहुमूल्य पूंजी है ।।          डायरी का अंग्रेजी भाषान्तर 1973 में प्रकाशित किया गया था । अब हिन्दी में दैनिकी का द्वितीय खण्ड सभा प्रकाशित कर रही है । इस प्रथम भाग में 18 सितम्बर , 1930 से 31 दिसम्बर , 1931 को समय का विवरण है।*


*राधास्वामी सहाय ।

 डायरी [रोज़ाना वाक़िआत]--◆◆--                                 

(18 सितम्बर सन् 1930 ई०से 31 दिसम्बर सन् 1931ई०तक )°°°°  18-9-30 बृहस्पति ।:- अय्याम तालिबइल्मी में ( तालिबइल्मी के दिनों में )

मुझे रोजाना वाक़िआत तहरीर करने ( लिखने ) का शौक़ हुआ और मैंने करीबन छः माह तक वाक़िआत क़लमबन्द किये ( लिखे ) लेकिन एक दिन एक दोस्त ने तान मारा कि डायरी तो बड़े बड़े लोग रक्खा करते हैं , मेरा डायरी रखना सरीह ( साफ़ ) हिमाकत है । मुझे शर्म आई और मैंने डायरी लिखना बन्द कर दिया और पिछली डायरी आग के हवाले कर दी ।

 अब मैंने चन्द वजूह ( कुछ कारणों ) से रोजाना वाक़िआत तहरीर करना ( लिखना ) फिर शुरू किया है । मेरे दोस्त का तान ग़लतफ़हमी ( भ्रम ) पर मबनी ( निर्भर ) था । अन्दाजन् छः माह तक सिल्सिलए तहरीर जारी रखकर देखूँगा कि मुझसे यह काम इन दिनों में चलाया जा सकता है कि नहीं ।                                 

मैंने रोजाना कामों के लिए वक़्त मुक़र्रर कर रक्खे हैं और जहाँ तक मुमकिन होता है मैं मुक़र्ररा अवक़ात ( वक्तों ) की पाबन्दी करता हूँ । इसमें मुझे बड़ी सहूलियत रहती है और काम भी सब हो जाता है ।

चुनाँचे आजकल सुबह का सतसंग ठीक छः बजे शुरू होता है और क़रीबन् सात बजे ख़त्म होता है । इसके बाद पाव घंटा जरूरियात में सर्फ़ ( खर्च ) होता है और निस्फ़ ( आध ) घंटा चहलकदमी में । इसके बाद सुबह का वक़्त क़रीबन ग्यारह बजे तक ख़त व किताबत में सर्फ़ होता है ।

J तीन बजे सेह ( तीसरे ) पहर से साढ़े पाँच बजे तक कारखाने में खर्च होता है । इसके बाद एक घंटा Lawn ( लॉन ) पर जहाँ सब सतसंगी भाई जमा होते हैं और मुख्तलिफ़ ( तरह तरह के ) मजामीन ( विषयों ) पर बातचीत होती है । इसके बाद रात का सतसंग होता है।      

              क्रमशः🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 रोजाना वाक़िआत भाग-1-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


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सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...