Wednesday, November 29, 2023

भीष्म कृष्ण संवाद


प्रस्तुति - उषा रानी / राजेंद्र प्रसाद सिन्हा 


भीष्म ने कहा , "कुछ पूछूँ केशव .... ? 

सम्भवतः धरा छोड़ने के पूर्व मेरे अनेक भ्रम समाप्त हो जाँय " .... !! 


कृष्ण बोले - कहिये न पितामह ....! 


एक बात बताओ प्रभु ! तुम तो ईश्वर हो न .... ? 


कृष्ण ने बीच में ही टोका , "नहीं पितामह ! मैं ईश्वर नहीं ... मैं तो आपका पौत्र हूँ पितामह ... ईश्वर नहीं ...." 


भीष्म उस घोर पीड़ा में भी ठठा के हँस पड़े .... ! बोले , " अपने जीवन का स्वयं कभी आकलन नहीं कर पाया

 कृष्ण , सो नहीं जानता कि अच्छा रहा या बुरा , पर अब तो इस धरा से जा रहा हूँ कन्हैया , अब तो ठगना छोड़ दे रे .... !! " 


कृष्ण जाने क्यों भीष्म के पास सरक आये और उनका हाथ पकड़ कर .... " कहिये पितामह .... !" 


भीष्म बोले , "एक बात बताओ कन्हैया ! इस युद्ध में जो हुआ वो ठीक था क्या .... ?" 


"किसकी ओर से पितामह .... ? पांडवों की ओर से .... ?" 


" कौरवों के कृत्यों पर चर्चा का तोll अब कोई अर्थ ही नहीं कन्हैया ! पर क्या पांडवों की ओर से जो हुआ वो सही था .... ? आचार्य द्रोण का वध , दुर्योधन की जंघा के नीचे प्रहार , दुःशासन की छाती का चीरा जाना , जयद्रथ और द्रोणाचार्य के साथ हुआ छल , निहत्थे कर्ण का वध , सब ठीक था क्या .... ? यह सब उचित था क्या .... ?" 


इसका उत्तर मैं कैसे दे सकता हूँ पितामह .... ! 

इसका उत्तर तो उन्हें देना चाहिए जिन्होंने यह किया ..... !! 

उत्तर दें दुर्योधन, दुःशाशन का वध करने वाले भीम , उत्तर दें कर्ण और जयद्रथ का वध करने वाले अर्जुन .... !!  


मैं तो इस युद्ध में कहीं था ही नहीं पितामह .... !! 


"अभी भी छलना नहीं छोड़ोगे कृष्ण .... ? 

अरे विश्व भले कहता रहे कि महाभारत को अर्जुन और भीम ने जीता है , पर मैं जानता हूँ कन्हैया कि यह तुम्हारी और केवल तुम्हारी विजय है .... ! 

मैं तो उत्तर तुम्ही से पूछूंगा कृष्ण .... !" 


"तो सुनिए पितामह .... ! 

कुछ बुरा नहीं हुआ , कुछ अनैतिक नहीं हुआ .... ! 

वही हुआ जो हो होना चाहिए .... !" 


"यह तुम कह रहे हो केशव .... ? 

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का अवतार कृष्ण कह रहा है..? यह छल तो किसी युग में हमारे सनातन संस्कारों का अंग नहीं रहा,फिर यह उचित कैसे गया..? " 


"इतिहास से शिक्षा ली जाती है पितामह,पर निर्णय वर्तमान की परिस्थितियों के आधार पर लेना पड़ता है..! 


हर युग अपने तर्कों और अपनी आवश्यकता के आधार पर अपना नायक चुनता है..!! 

राम त्रेता युग के नायक थे , मेरे भाग में द्वापर आया था..! 

हम दोनों का निर्णय एक सा नहीं हो सकता पितामह..!!" 


" नहीं समझ पाया कृष्ण ! तनिक समझाओ तो..!" 


" राम और कृष्ण की परिस्थितियों में बहुत अंतर है पितामह..! 

राम के युग में खलनायक भी 'रावण'जैसा शिवभक्त होता था..!! 

तब रावण जैसी नकारात्मक शक्ति के परिवार में भी विभीषण,मंदोदरी,माल्यावान जैसे सन्त हुआ करते थे.. तब बाली जैसे खलनायक के परिवार में भी तारा जैसी विदुषी स्त्रियाँ और अंगद जैसे सज्जन पुत्र होते थे..! उस युग में खलनायक भी धर्म का ज्ञान रखता था..!! 

इसलिए राम ने उनके साथ कहीं छल नहीं किया..!किंतु मेरे युग के भाग में में कंस, जरासन्ध,दुर्योधन,दुःशासन,शकुनी,जयद्रथ जैसे घोर पापी आये हैं..!! उनकी समाप्ति के लिए हर छल उचित है पितामह..! पाप का अंत आवश्यक है पितामह,वह चाहे जिस विधि से हो..!!" 


"तो क्या तुम्हारे इन निर्णयों से गलत परम्पराएं नहीं प्रारम्भ होंगी केशव..? 

क्या भविष्य तुम्हारे इन छलों का अनुशरण नहीं करेगा..? 

और यदि करेगा तो क्या यह उचित होगा..??" 


" भविष्य तो इससे भी अधिक नकारात्मक आ रहा है पितामह..! 


कलियुग में तो इतने से भी काम नहीं चलेगा..! 


वहाँ मनुष्य को कृष्ण से भी अधिक कठोर होना होगा..नहीं तो धर्म समाप्त हो जाएगा..! 


जब क्रूर और अनैतिक शक्तियाँ सत्य एवं धर्म का समूल नाश करने के लिए आक्रमण कर रही हों,तो नैतिकता अर्थहीन हो जाती है पितामह..! 

तब महत्वपूर्ण होती है धर्म की विजय,केवल धर्म की विजय..! 


भविष्य को यह सीखना ही होगा पितामह..!!" 


"क्या धर्म का भी नाश हो सकता है केशव..? 

और यदि धर्म का नाश होना ही है,तो क्या मनुष्य इसे रोक सकता है..?" 


"सबकुछ ईश्वर के भरोसे छोड़ कर बैठना मूर्खता होती है पितामह..! 


ईश्वर स्वयं कुछ नहीं करता..!केवल मार्ग दर्शन करता है 

सब मनुष्य को ही स्वयं करना पड़ता है..! 

आप मुझे भी ईश्वर कहते हैं न..! 

तो बताइए न पितामह,मैंने स्वयं इस युद्घ में कुछ किया क्या..? 

सब पांडवों को ही करना पड़ा न..? 

यही प्रकृति का संविधान है..!


युद्ध के प्रथम दिन यही तो कहा था मैंने अर्जुन से..!यही परम सत्य है..!!"


भीष्म अब सन्तुष्ट लग रहे थे..उनकी आँखें धीरे-धीरे बन्द होने लगीं थी..!

उन्होंने कहा - चलो कृष्ण ! यह इस धरा पर अंतिम रात्रि है..कल सम्भवतः चले जाना हो..अपने इस अभागे भक्त पर कृपा करना कृष्ण..!"


कृष्ण ने मन मे ही कुछ कहा और भीष्म को प्रणाम कर लौट चले,पर युद्धभूमि के उस डरावने अंधकार में भविष्य को जीवन का सबसे बड़ा सूत्र मिल चुका था..!


जब अनैतिक और क्रूर शक्तियाँ सत्य और धर्म का विनाश करने के लिए आ

क्रमण कर रही हों,तो नैतिकता का पाठ आत्मघाती होता है..!!

धर्मों रक्षति रक्षिती

Tuesday, November 14, 2023

जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध

 *_🌻 जीवात्मा और परमात्मा का सम्बन्ध  🌻*


*_🌹 एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति 


       _जब रावण की सेना को हरा कर- और सीता जी को लेकर श्री राम चन्द्र जी वापस अयोध्या पहुंचे - तो वहां उन सब के लौटने की ख़ुशी में एक बड़े भोज का आयोजन हुआ।

       _वानर सेना के भी सभी लोग आमंत्रित थे- लेकिन बेचारे,सब ठहरे वानर ही न...?

      _तो सुग्रीव जी ने उन सब को खूब समझाया- देखो- यहाँ हम मेहमान हैं, और अयोध्या के लोग हमारे मेजबान।

      ‌‌ _तुम सब यहाँ खूब अच्छे से आचरण करना - हम वानर जाति वालों को लोग *शिष्टाचार विहीन* न समझें,इस बात का ध्यान रखना!

        _वानर भी अपनी जाति का मान रखने के लिए तत्पर थे,किन्तु एक वानर आगे आया- और हाथ जोड़ कर श्री सुग्रीव से कहने लगा *"प्रभो - हम प्रयास तो करेंगे कि अपना आचार अच्छा रखें, किन्तु हम ठहरे बन्दर* कहीं भूल चूक भी हो सकती है- तो अयोध्या वासियों के आगे हमारी अच्छी छवि रहे- इसके लिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि आप किसी को हमारा अगुवा बना दें!

          ‌  _जो न सिर्फ हमें मार्गदर्शन देता रहे,बल्कि हमारे बैठने आदि का प्रबंध भी सुचारू रूप से चलाये, कि कही इसी चीज़ के लिए वानर आपस में लड़ने भिड़ने लगें तो हमारी छवि धूमिल नहीं होगी!"

         _अब वानरों में सबसे ज्ञानी,व *श्री राम के सर्व प्रिय तो हनुमान ही माने जाते थे-* तो यह जिम्मेदारी भी उन पर आई!

          _भोज के दिन श्री हनुमान जी सबके बैठने वगैरह का इंतज़ाम करते रहे, और सबको ठीक से बैठाने के बाद श्री राम के समीप पहुंचे, *तो श्री राम ने उन्हें बड़े प्रेम से कहा- कि तुम भी मेरे साथ ही बैठ कर भोजन करो।*

       _अब हनुमान पशोपेश में आ गए, उनकी योजना में प्रभु के बराबर बैठना तो था ही नहीं!

        _" वे तो अपने प्रभु के जीमने के बाद ही- प्रसाद के रूप में भोजन ग्रहण करने वाले थे!"

      _न तो उनके लिए बैठने की जगह ही थी, और ना ही केले का पत्ता- तो हनुमान बेचारे पशोपेश में थे- *ना तो प्रभु की आज्ञा टाली जाए,ना उनके साथ खाया जाए!* प्रभु तो भक्त के मन की बात जानते हैं ना ?

         _तो वे जान गए कि- मेरे हनुमान के लिए- केले का पत्ता भी नहीं है,और ना ही स्थान है।

        _उन्होंने अपनी कृपा से अपने से लगता हनुमान के बैठने जितना स्थान बढ़ा दिया *(जिन्होंने इतने बड़े संसार की रचना की हो उन्होंने ज़रा से और स्थान की रचना कर दी )*  लेकिन प्रभु ने एक और केले का पत्ता नहीं बनाया!


     _उन्होंने कहा *"हे मेरे प्रिय! अति प्रिय छोटे भाई!, या पुत्र की तरह प्रिय हनुमान!*  तुम मेरे साथ मेरे ही केले के पत्ते में भोजन करो।

           _क्योंकि भक्त और भगवान तो एक ही हैं-  *एकोऽहं द्वितीयो नाऽस्ति* तो कोई हनुमान को भी पूजेगा , तो मुझे ही प्राप्त करेगा *(यही अद्वैत यानी एकेश्वरवाद है.)"*

        _इस पर श्री हनुमान जी बोले - "हे प्रभु - आप मुझे कितने ही अपने बराबर बताएं,मैं कभी आप नहीं होऊँगा,ना तो कभी हो सकता हूँ - ना ही होने की अभिलाषा है! *,,,,, (यह है द्वैत,यानी जीव और ब्रह्म, भक्त और भगवान,के बीच की मर्यादा),,,,,* - मैं सदा सर्वदा से आपका सेवक हूँ,और रहूँगा-आपके चरणों में ही मेरा स्थान था - और रहेगा।

      _*तो मैं  तो आपकी थाल में से खा ही नहीं सकता!"*

     _जब हनुमान जी ने प्रभु के साथ भोजन करने से इनकार कर दिया। *तब,श्री राम ने अपने सीधे हाथ की मध्यमा अंगुली से केले के पत्ते के मध्य में एक रेखा खींच दी - जिससे वह पत्ता एक भी रहा- और दो भी हो गया! एक भाग में प्रभु ने भोजन किया- और दूसरे अर्ध भाग में हनुमान को कराया। तो जीवात्मा और परमात्मा के ऐक्य और द्वैत- दोनों के चिन्ह के रूप में केले के पत्ते आज भी एक होते हुए भी दो हैं -और दो होते हुए भी एक है।*

_*"यानी द्वैत में अद्वैत "* यही सृष्टि की व्यवस्था है , जो ब्रह्म और जीव के संबंध- *यानी द्वैत में अद्वैत को दर्शाती है।* इसे समझ लिया- तो जीवन से उद्धार तय है! यहीं है *जीवात्मा एवं परमात्मा का सम्बन्ध।**


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परम पूज्य हुज़ूर डा, लाल साहब जी

 पांच महत्वपूर्ण बातें

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प्रस्तुति - गुरुदास जी डेढ़गांव 


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18 अगस्त 1979 को सुबह रीजनल एसोसिएशन के प्रेसीडेन्ट, सेक्रेटरी, और ब्रांच सतसंग के सेक्रेटरी को हुज़ूर ने फरमाया---

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पहली बात---

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परम पूज्य हुज़ूर ने इस पर अधिक जोर दिया फरमाया कि मै ब्रांच सतसंगों के सेक्रेटरी को ज्यादा महत्वपूर्ण ब्यक्ति और उनको ब्रांच में सभा का प्रतिनिधि खयाल करता हूँ, 

इस वास्ते इस पद के मुतअल्लिक यह उनका पवित्र फर्ज है कि वह देखें कि ब्रांच के तमाम काम बहुत अच्छी तरह हो रहें हैं कि नहीं, 

ब्रांच सतसंग की समस्याएं चाहे वह सतसंगीयों के आपसी झगड़े की हो, सेहत की खराबी की हो या रा-धा-स्व-आ-मी मत के बारे में हो, 

खुद ही सुलझा लेनी चाहिए, दयालबाग को लिख कर नहीं भेजनी चाहिए, 

सेक्रेटरी को अपने ब्रांच सतसंग में ब्रांच के सतसंगीयों में खूब रलमिल कर उनकी समस्याओं को समझना चाहिए और उनका हल निकालना चाहिए।। 


दूसरी बात---

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फरमाया कि अब तक का अनुभव है कि उपदेश फार्म बहुत लापरवाही से अधूरे और घसीट कर भरे जाते हैं, 

जो पढने में भी नहीं आते हैं, 

उपदेश सतसंगी की जिंदगी की एक महान बात है, 

ऐसी महान बात की शुरुआत ऐसी लापरवाही से फार्म भरकर की जाती है, 

तो कोई शख्स उसके बहुत अच्छे नतीजे की उम्मीद किस तरह कर सकता है, 

सेक्रेटरी को चाहिए कि फार्म अपने समाने भरवायें और देखें कि तमाम पूछी गई बातें पूरी और सही भरी गई है और साफ व खुशखत लिखी गई है।। 


तीसरी बात----

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सभी ब्रांच सेक्रेटरी साहिबान अपनी ब्रांच में शादी के लायक लडके व लडकियों की फेहरिस्त तैयार करें, 

और अपने रीजनल प्रेसीडेन्ट के पास भेजें, 

जिससे कि प्रेसीडेन्ट के पास अपने अपने रीजन के ऐसे तमाम लडकों व लडकियों की पूरी जानकारी हो, 

ताकि शादियों की बातचीत और तय करने में वह सहायता कर सकें, 

सभी ब्रांच सेक्रेटरी को मशविरा दिया कि वह इस सिलसिले में अपनी पूरी कोशिश करें, 

ताकि शादियों का एक बहुत अच्छा और अनुकरणीय उदाहरण स्थापित हो जाय।। 


चौथी बात----

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ब्रांच सतसंग को सतसंग के इंडस्ट्रीयल प्रोग्राम को आगे बढाने में हिस्सा लेना चाहिए, 

यह दयालबाग के बने हुए माल की बिक्री से और अपने क्षेत्र में नुमाइश करने से कीया जा सकता है।। 


पांचवीं बात----

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फरमाया कि ब्रांच सतसंगों को 5 से 10 साल की उम्र के बच्चों के ग्रुप के लिए छोटे छोटे स्कूल जारी करने चाहिए, 

अगर यह मुमकिन ना हो तो सतसंगीयों को खुद ही बच्चों को पढाने का इन्तजाम करना चाहिए

बच्चों को सतसंग, दयालबाग और रा-धा-स्व-आ-मी क्यो कहते हैं, 

आदि बातों की A B C के बारे में जानकारी देनी चाहिए।। 


🙏रा-धा-स्व-आ-मी

Monday, November 13, 2023

बचन

 रा धा/ध: स्व आ मी



- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:- (24-11-31 मंगल का तीसरा भाग)- जब तीसरा नम्बर आया तो सेक्रेटरी साहब ने कहा कि मेरा नम्बर सरका दिया गया है। सबसे अव्वल पण्डित चमूपति जी ने जो आर्य समाज के माननीय वक्ता हैं तक़रीर की।             

                           

फ़िर रेवरेण्ड़ ठाकुर दास  साहब का लेक्चर हुआ उसके बाद प्रिंसिपल छबीलदास साहब ने व्याख्यान दिया। प्रिंसिपल साहब के सिवाय सबने यही कहा कि परमार्थ कौमी तरक्की के रास्ते में स‌ददेराह नहीं है। उसके बाद मुझे बोलने की इजाजत दी गई। डाक्टर नौरंग साहब ने बतौर सदर (अध्यक्ष) के अव्वल हाजिरीन(उपस्थित जन) से मेरा तार्रुफ (परिचय) कराया। मेरी सहूलियत के लिये एक कुसी रख दी गई थी जिस पर बैठकर में आराम से बोल सका। हाजिरीन एकदम खामोश हो गये।


मैने सुगांधीर सामला कि आवल में आर्य समाज के उस फैज (लाभ) के लिये जो मुझे गुजिश्ता (पिछली) सदी के आखिर में अपनी तालिबद्दल्ली(विद्यार्थी ) के जमाने में समाज से मिला है जिक्र कर दूँ। चुनांचे मैंने ऐसा ही किया और इस फिकरें   (वाक्य) पर बढ़े जोर से तालियां बजी। इससे जाहिर है कि अब समाजी भाई मेरी तरफ मोहब्बत की निगाह से देखने लगे हैं। उनको व नीज दूसरे सब मbतों के अनुयायियों को जेहननशीन (समझना)  चाहिये कि सतसंग प्राणिमात्र के लिये रोम रखता है और सत्संग के साथ प्रेम रखने में सबका भला है।


मजहबी ध्यासात में तकरको बेशक रहे लेकिन दिलों में तफरका (भिन्नता ) सेवक रहे लेकिन दिलों तफ़रका नहीं होना चाहिये। खैर! निस्फ़ घंटा गुजर गया। मुझे अफसोस है कि बमुश्किल तमाम निस्फ़ मजमून अदा हो सका। साहबेसद्र ने अजराहे-नवाजिश(कृपा वंश) तस्वीर जारी रखने की इजाजत दे दी। मैंने मजबूरन आयन्दा पांच मिनट के अन्दर जैसे जैसे मजमून खत्म कर दिया।

ऐसे जबरदस्त मजमून के लिये दो घंटे भी कम वक़्त था। चूंकि इस तक़रीर का अवाम(सामान्य जन) पर निहायत ही अच्छा असर पड़ा इसलिये इरादा है कि प्रेम प्रचारक में इसका खुलासा (Simply) तहरीर करूँ। साहबे सद्र ने मेरे बैठ जाने कर ऐसे तारीफ़ी कलमात(शब्द) जबान से निकाले कि मुझे बड़ी शर्म मालूम हुई क्योंकि यह मेरी जिन्दगी में पहला ही मौका था कि किसी ने बसरेआम(सार्वजनिक रूप से) मेरी ऐसी पुरजोश(उत्साह  पूर्वक) तारीफ़ की हो।

N यह महज रा धा/ध: स्व आ मी दयाल की दया है यह जब जैसा मुनासिब खयाल फ़रमाते हैं उसके लिये सभी सामान मुहय्या(एकत्रित )फरमा देते हैं। मेरे बाद मिस्टर जुत्शी जी, पण्डित विश्व बन्धु जी की तकरीरे हुई। दस बज गये और मैं चला आया।     

                                        🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी!


रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

Wednesday, November 8, 2023

तुलसीदास हनुमान जी और हनुमान चालीसा

 तुलसीदास जी हनुमान चालीसा लिखते थे लिखे पत्रों को रात में संभाल कर रख देते थे सुबह उठकर देखते तो उन में लिखा हुआ कोई मिटा जाता था।


तुलसीदास जी ने हनुमान जी की आराधना की , हनुमान जी प्रकट हुए तुलसीदास ने बताया कि मैं हनुमान चालीसा लिखता हूं तो रात में कोई मिटा जाता है हनुमान जी बोले वह तो मैं ही मिटा जाता हूं।


हनुमान जी ने कहा अगर प्रशंसा ही लिखनी है तो मेरे प्रभु श्री राम की लिखो , मेरी नहीं तुलसीदास जी को उस समय अयोध्याकांड का प्रथम दोहा सोच में आया उसे उन्होंने हनुमान चालीसा के प्रारंभ में लिख दिया


"श्रीगुरु चरन सरोज रज निज मन मुकुरु सुधारि।


वरनउं रघुबर बिमल जसु जो दायकु फल चारि॥


तो हनुमान जी बोले मैं तो रघुवर नहीं हूं तुलसीदास जी ने कहा आप और प्रभु श्री राम तो एक ही प्रसाद ग्रहण करने के उपरांत अवतरित हुए हैं इसलिए आप भी रघुवर ही है।


तुलसीदास ने याद दिलाया कि ब्रह्म लोक में सुवर्चला नाम की एक अप्सरा रहती थी जो एक बार ब्रह्मा जी पर मोहित हो गई थी जिससे क्रुद्ध होकर ब्रह्माजी ने उसे गिद्धि होने का श्राप दिया था वह रोने लगी तो ब्रह्मा जी को दया आ गई उन्होंने कहा राजा दशरथ के पुत्र यज्ञ में हवि के रूप में जो प्रसाद तीनों रानियों में वितरित होगा तू कैकेई का भाग लेकर उड़ जाएगी मां अंजना भगवान शिव से हाथ फैला कर पुत्र कामना कर रही थी उन्ही हाथों में वह प्रसाद गिरा दिया था जिससे आप अवतरित हुए प्रभु श्री राम ने तो स्वयं आपको अपना भाई कहा है।


"तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई


तुलसीदास ने एक और तर्क दिया कि जब आप मां जानकी की खोज में अशोक वाटिका गए थे तो मां जानकी ने आपको अपना पुत्र बनाया था।


"अजर अमर गुननिधि सुत होहू।


करहुं बहुत रघुनायक छोहू॥


जब मां जानकी की खोज करके वापस आए थे तो प्रभु श्री राम ने स्वयं आपको अपना पुत्र बना लिया था।


"सुनु सुत तोहि उरिन मैं नाहीं।


देखेउं करि विचार मन माहीं॥


इसलिए आप भी रघुवर हुए तुलसीदास का यह तर्क सुनकर हनुमानजी अंतर्ध्यान हो।


संसार में बहुधा यह बात कही और सुनी जाती है कि व्यक्ति को ज्यादा सीधा और सरल नहीं होना चाहिए सीधे और सरल व्यक्ति का हर कोई फायदा उठाता है ,यह भी लोकोक्ति है कि टेढे वृक्ष को कोई हाथ भी नहीं लगाता सीधा वृक्ष ही काटा जाता है।


दरअसल टेढ़े लोगों से दुनिया दूर भागती हैं वहीँ सीधों को परेशान किया जाता है।तो क्या फिर सहजता और सरलता का त्याग कर टेढ़ा हुआ जाए नहीं कदापि नहीं ; पर यह बात जरूर समझ लेना दुनिया में जितना भी सृजन हुआ है वह टेढ़े लोगों से नहीं सीधों से ही हुआ है।


कोई सीधा पेड़ कटता है तो लकड़ी भी भवन निर्माण या भवन श्रृंगार में ही काम आती है।


मंदिर में भी जिस शिला में से प्रभु का रूप प्रगट होता है वह टेढ़ी नहीं कोई सीधी शिला ही होती है।


जिस बाँसुरी की मधुर स्वर को सुनकर हमें आंनद मिलता है वो भी किसी सीधे बांस के पेड़ से ही बनती है। सीधे लोग ही गोविंद के प्रिय होते हैं !


🙏🏻 जय श्री सीताराम जी 🙏

आगरा जिला प्रशासन की सभी कार्रवाई को ठहराया


Anoop टोटल Tv:

😃


ज्योति एस. की रिपोर्ट


खुशखबरी खुशखबरी,



 इलाहाबाद.


हाईकोर्ट ने जारी किया आदेश। आगरा जिला प्रशासन की सभी कार्रवाई को ठहराया अवैध, किया निरस्त।


 अब मुंह काला करने कहां जाएंगे राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग को बदनाम करने वाले.


-पीत पत्रकारिता करने वाला मी डिया कहां छुपाएगा अपना चेहरा, क्या झूठ को सच में बदलने की अपनी कुचेष्टा छोड़ेगा मीडिया और जिला प्रशासन 



-आगरा जिला प्रशासन ने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग के खिलाफ की थी अवैधानिक कार्रवाई,  हाईकोर्ट ने प्रशासन के सभी नोटिसों और आदेशों को किया निरस्त, कार्रवाई को ठहराया गलत


-राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के पक्ष को सुनने और उसके बाद कदम उठाने का जिला प्रशासन को दिया आदेश


-हाईकोर्ट के आदेश से जिला प्रशासन की मनमानी और बदनीयत हुई उजागर, सच सामने आया, झूठ का मुंह हुआ काला, उंगली उठाने वालों के मुंह पर पुत गई कालिख


ज्योति एस, प्रयागराज।


 निजी स्वार्थ सिद्धि को उच्च कोटि की अति पावन पवित्र धार्मिक संस्था राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा को झूठ परोसकर बदनाम करने का षड्यंत्र रचने वाले जिला प्रशासन और मीडिया के के लोग अपना मुंह काला करने अब कहां जाएंगे, जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले ने उनके मुंह पर कालिख को दी है। आगरा जिला प्रशासन की बदनियत और मनमानी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अंकुश लगाते हुए राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा की संपत्तियों पर उसकी ओर से जारी सभी नोटिसों और आदेशों को निरस्त (क्वैश) कर दिया। हाई कोर्ट ने आज इस आशय के लिखित आदेश जारी कर दिए।


अपने आदेश में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन को तय समय में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा का पक्ष सुनने और उसके बाद आगे कोई कदम उठाने के निर्देश भी दिए। 

हाईकोर्ट ने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा को इस मामले में जिला प्रशासन की ओर से किए गए बेजा लाठीचार्ज तथा मानवाधिकार उल्लंघन मामले में  कार्रवाई जारी रखने की छूट भी प्रदान की। 

आगरा जिलाधिकारी आगरा पहले ही इस मामले में हाईकोर्ट के दो-दो अवमानना नोटिस का सामना कर रहे हैं। इस मामले में सुनवाई जारी है।

आरोप है कि उच्चकोटि की अति पावन-पवित्र धार्मिक संस्था राधास्वामी सतसंग सभा की संपत्तियों पर भूमाफियाओं व बिल्डर लॉबी के दबाव में अनैतिक-अवैधानिक कब्जा करने-कराने की नीयत को लेकर आगरा जिला प्रशासन ने सितंबर माह में तोड़फोड़ की कार्रवाई की थी, जिसमें किसी कार्य सेवा कर रहे निहत्थे शांतिप्रिय सतसंगी बच्चों, बूढ़ों महिलाओं तक पर लाठी चार्ज और पथराव किया गया था। आरोप है कि इस मामले में भू माफियाओं और बिल्डर लाॅबी से जुड़े कतिपय ग्रामीणों का भी सहयोग लिया था। जबकि राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा ने इसका लगातार विरोध किया और प्रशासन को भूमि का स्वामित्व अपना बताते हुए उसके पक्ष में प्रमाण भी प्रस्तुत किया था और उनसे अवैधानिक कार्रवाई रोकने की लगातार मांग की थी। यह भी बताया था कि यह क्षेत्र तहसील प्रशासन के अधिकार क्षेत्र से बाहर है और नगर पंचायत दयालबाग के अधिकार क्षेत्र में आता है। बावजूद इसके कार्रवाई की गई और राधास्वामी सत्संग सभा की कोई सुनवाई नहीं की गई।


*राधास्वामी सतसंग सभा ने इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर न्याय की गुहार लगाई थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के काउंसिल उज्जवल सत्संगी ने बताया कि आगरा जिला प्रशासन के नोटिस के जवाब में  राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा ने आगरा जिला प्रशासन को स्पष्ट किया था कि यह उसके अधिकार क्षेत्र का मामला नहीं है। क्योंकि राधास्वामी सतसंग सभा की प्रश्नगत समस्त संपत्तियां दयालबाग नगर पंचायत क्षेत्र में आती हैं, इसलिए यह दयालबाग नगर पंचायत के अधिकार का क्षेत्र का मामला है, जिसमें तहसील प्रशासन अनावश्यक हस्तक्षेप कर रहा है जो कि कानूनन उचित नहीं है। इतना ही नहीं राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा ने हाईकोर्ट में यह भी अपील दाखिल की थी कि उन्हें नोटिस मात्र दो संपत्तियों पर मिला, जबकि प्रशासनिक कार्रवाई की जद में 14 संपत्तियों को रखा गया, जोकि गलत और असंवैधानिक है।

आगरा जिला प्रशासन ने अपने जवाब में कहाकि नोटिस समस्त 14 संपत्तियों का दिया गया था। पर, राधास्वामी सतसंग सभा ने केवल दो ही नोटिस को रिसीव किया। जिस पर हाईकोर्ट की टिप्पणी थी कि आगरा जिला प्रशासन का यह कथन उचित जान नहीं पड़ता, क्योंकि जो व्यक्ति दो नोटिस रिसीव कर सकता है, उसे बाकी के नोटिस रिसीव करने में क्या आपत्ति। हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन से यह भी पूछा कि उसने राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा की इस आपत्ति कि 'मामला सदर तहसील अधिकार क्षेत्र का नहीं है क्योंकि प्रश्नगत संपत्ति नगर पंचायत दयालबाग के अधिकार क्षेत्र में आती हैं,' का उसने क्या जवाब दिया।*


इस मामले में आगरा जिला प्रशासन के जवाब से असंतुष्ट होते हुए *हाईकोर्ट ने आगरा जिला प्रशासन (सदर तहसील) की ओर से इस मामले में जारी सभी नोटिस और आदेशों को निरस्त (क्वैश) करने का आदेश देते हुए, निर्देश दिया कि आगरा जिला प्रशासन हाईकोर्ट की ओर से दिए गए समय में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा के पक्ष की सुनवाई करेगा उसकी ओर से प्रस्तुत प्रमाण को जांचेगा-परखेगा। इसके पश्चात ही भविष्य में कार्रवाई करेगा।*

हाईकोर्ट ने इस मामले में राधास्वामी सतसंग सभा दयालबाग आगरा को लाठीचार्ज तथा अन्य कार्रवाई एवं मानवाधिकार उल्लंघन मामले में अपनी कार्रवाई जारी रखने की छूट भी प्रदान की।

गौरतलब है कि इससे पहले हाईकोर्ट में इस मामले में राधास्वामी सत्संग सभा दयालबाग आगरा की ओर से दाखिल अवमानना याचिका पर सुनवाई करते हुए लालगढ़ी और राधाबाग नहर भूमि मामले में हाईकोर्ट की रोक के बावजूद कार्रवाई करने पर आगरा जिला अधिकारी को अवमानना नोटिस जारी किया हुआ है। इस पर भी सुनवाई होनी है।

पूर्व और आज के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से स्पष्ट हो गया कि आगरा जिला प्रशासन ने मनमाने तरह से अवैधानिक रूप से राधास्वामी सतसंग सभा की संपत्तियों पर तोड़फोड़ की तथा कृषि कार्य सेवा दे रहे शांतिप्रिय सतसंगियों पर लाठीचार्ज और पथराव किया था। इतना ही नहीं आगरा जिला प्रशासन के नोटिस की आड़ लेकर जो लोग राधास्वामी सतसंग सभा की नियत और कार्य पर उंगली उठा रहे थे, उनके मुंह पर भी कालिख पुत गई। क्योंकि हाईकोर्ट के निर्णय से साबित हो गया कि आगरा जिला प्रशासन की कार्रवाई अवैधानिक थी।


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