Thursday, June 29, 2023

तिरुपति बालाजी की कहानी /

 कैसे बने भगवान विष्णु तिरुपति बालाजी


प्रस्तुति  रेणु दत्ता / आशा सिन्हा 

    

  एक बार समस्त देवताओं ने मिलकर एक यज्ञ करने का निश्चय किया । यज्ञ की तैयारी पूर्ण हो गयी । तभी वेद ने एक प्रश्न किया तो एक व्यवहारिक समस्या आ खड़ी हुई । ऋषि-मुनियों द्वारा किए जाने वाले यज्ञ की हविष्य तो देवगण ग्रहण करते थे । लेकिन देवों द्वारा किए गए यज्ञ की पहली आहूति किसकी होगी ? यानी सर्वश्रेष्ठ देव का निर्धारण जरुरी था, जो फिर अन्य सभी देवों को यज्ञ भाग प्रदान करे ।


  ब्रह्मा-विष्णु-महेश परम् अात्मा हैं । इनमें से श्रेष्ठ कौन है ? इसका निर्णय आखिर हो तो कैसे ? भृगु ने इसका दायित्व सम्भाला । वह देवों की परीक्षा लेने चले । ऋषियों से विदा लेकर वह सर्व प्रथम अपने पिता ब्रह्मदेव के पास पहुँचे ।


  ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने के लिए भृगु ने उन्हें प्रणाम नहीं किया । इससे ब्रह्मा जी अत्यन्त कुपित हुए और उन्हें शिष्टता सिखाने का प्रयत्न किया । भृगु को गर्व था कि वह तो परीक्षक हैं, परीक्षा लेने आए हैं । पिता-पुत्र का आज क्या रिश्ता ? भृगु ने ब्रह्म देव से अशिष्टता कर दी । ब्रह्मा जी का क्रोध बढ़ गया और अपना कमण्डल लेकर पुत्र को मारने भागे । भृगु किसी तरह वहाँ से जान बचाकर भाग चले आए ।


  इसके बाद वह शिव जी के लोक कैलाश गए । भृगु ने फिर से धृष्टता की । बिना कोई सूचना का शिष्टाचार दिखाए या शिव गणों से आज्ञा लिए सीधे वहाँ पहुँच गए, जहाँ शिव जी माता पार्वती के साथ विश्राम कर रहे थे । आए तो आए, साथ ही अशिष्टता का आचरण भी किया । शिव जी शांत रहे, पर भृगु न समझे । शिव जी को क्रोध आया तो उन्होंने अपना त्रिशूल उठाया । भृगु वहाँ से भागे । 


  अन्त में वह भगवान विष्णु के पास क्षीर सागर पहुंचे । श्री हरि शेष शय्या पर लेटे निद्रा में थे और देवी लक्ष्मी उनके चरण दबा रही थीं । महर्षि भृगु दो स्थानों से अपमानित करके भगाए गए थे । उनका मन बहुत दुखी था । विष्णु जी को सोता देख । उन्हें न जाने क्या हो गया और उन्होंने विष्णु जी को जगाने के लिए उनकी छाती पर एक लात जमा दी ।


  विष्णु जी जाग उठे और भृगु से बोले  "हे ब्राह्मण देवता ! मेरी छाती वज्र समान कठोर है और आपका शरीर तप के कारण दुर्बल है, कहीं आपके पैर में चोट तो नहीं आयी ? आपने मुझे सावधान करके कृपा की है । आपका चरण चिह्न मेरे वक्ष पर सदा अंकित रहेगा ।"


  भृगु को बड़ा आश्चर्य हुआ । उन्होंने तो भगवान की परीक्षा लेने के लिए यह अपराध किया था । परन्तु भगवान तो दण्ड देने के बदले मुस्करा रहे थे । उन्होंने निश्चय किया कि श्रीहरि जैसी विनम्रता किसी में नहीं । वास्तव में विष्णु ही सबसे बड़े देवता हैं । लौट करके उन्होंने सभी ऋषियों को पूरी घटना सुनायी । सभी ने एक मत से यह निर्णय किया कि भगवान विष्णु को ही यज्ञ का प्रधान देवता समझकर मुख्य भाग दिया जाएगा ।


  लेकिन लक्ष्मी जी ने भृगु को अपने पति की छाती पर लात मारते देखा तो उन्हें बड़ा क्रोध आया । परन्तु उन्हें इस बात पर क्षोभ था कि श्रीहरि ने उद्दण्ड को दण्ड देने के स्थान पर उसके चरण पकड़ लिए और उल्टे क्षमा मांगने लगे ! क्रोध से तमतमाई महालक्ष्मी को लगा कि वह जिस पति को संसार का सबसे शक्तिशाली समझती है, वह तो निर्बल हैं । यह धर्म की रक्षा करने के लिए अधर्मियों एवं दुष्टों का नाश कैसे करते होंगे ?


  महालक्ष्मी ग्लानि में भर गई और मन श्रीहरि से उचाटन हो गया । उन्होंने श्रीहरि और बैकुण्ठ लोक दोनों के त्याग का निश्चय कर लिया । स्त्री का स्वाभिमान उसके स्वामी के साथ बंधा होता है । उनके समक्ष कोई स्वामी पर प्रहार कर गया और स्वामी ने प्रतिकार भी न किया, यह बात मन में कौंधती रही । यह स्थान वास के योग्य नहीं । पर, त्याग कैसे करें ? श्रीहरि से ओझल होकर रहना कैसे होगा ? वह उचित समय की प्रतीक्षा करने लगीं ।


  श्रीहरि ने हिरण्याक्ष के कोप से मुक्ति दिलाने के लिए वराह अवतार लिया और दुष्टों का संहार करने लगे । महालक्ष्मी के लिए यह समय उचित लगा । उन्होंने बैकुण्ठ का त्याग कर दिया और पृथ्वी पर एक वन में तपस्या करने लगीं ।

 तप करते-करते उन्होंने अपना शरीर छोड़ दिया । विष्णु जी वराह अवतार का अपना कार्य पूर्ण कर वैकुण्ठ लौटे तो महालक्ष्मी नहीं मिलीं । वह उन्हें खोजने लगे ।


  श्रीहरि ने उन्हें तीनों लोकों में खोजा किन्तु तप करके माता लक्ष्मी ने भ्रमित करने की अनुपम शक्ति प्राप्त कर ली थी । उसी शक्ति से उन्होंने श्री हरि को भ्रमित रखा । आख़िर श्रीहरि को पता लग ही गया । लेकिन तब तक वह शरीर छोड़ चुकीं थीं । दिव्य दृष्टि से उन्होंने देखा कि लक्ष्मी जी ने चोलराज के घर में जन्म लिया है । श्रीहरि ने सोचा कि उनकी पत्नी ने उनका त्याग सामर्थ्यहीन समझने के भ्रम में किया है, इसलिए वह उन्हें पुनः प्राप्त करने के लिए अलौकिक शक्तियों का प्रयोग नहीं

Sunday, June 25, 2023

दिनकर जी को सुनते बच्चन जी

 दिनकर जी को सुनते अमिताभ बच्चन, पिता बच्चन और जगदीश गुप्त।

सौजन्य- यश मालवीय


ये फ़ोटो रामकुमार वर्मा जी के घर ” साकेत” में, जो की प्रयाग स्ट्रीट पे है , ली गई थी। साल शायद 1972 होगा। फ़ोटो में दिनकर हैं, अमिताभ बच्चन, बच्चन जी हैं, जगदीश गुप्त हैं, उमाकांत मालवीय और अन्य हैं। फ़ोटो मालवीय जी के एल्बम में थी। यश भैया ने साझा की है। -Ritesh Mishr

Friday, June 23, 2023

शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन

 *रा-धा-स्व-आ-मी!           

22-06-23

- शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- 

 से आगे:- (18-831-मंगल)- महात्मा गांधी ने गोलमेज कांफ्रेंस के लिये लंड़न जाने से इंकार कर दिया। चारों तरफ चेमीगोइयां (कानाफूसी ) हो रही है ज्यादातर लोग नाखुश (अप्रसन्न ) मालूम होते हैं मगर रायआम्मा (जनता का मत) का ज्यादा एतबार (विश्वास ) नहीं है। उसे बदलते कुछ देर नहीं लगती इसके अलावा अभी एक और जहाज़ है जिस पर सवार होने से महात्मा गांधी अब भी वक्त से लंडन पहुंच सकते हैं और कोशिश की जा रही है कि आप और वायसराय में समझौता जाये। यह तो जाहिर है कि कांफ्रेन्स से इंडिया के कुछ ज्यादा तो हाथ पल्ले पड़ेगा नहीं क्योंकि जो मेम्बरान इस मरतबा मुन्तखब (चुने) हुए हैं उनके मुतफ़क़ुलराय (सहयत) होने की कम ही उम्मीद है और बिला उनके मुतफ़कुल हुए पार्लियामेन्ट क्या देवाल (देने वाली ) है? इसलिये महात्मा गांधी के लिये आराम इसी में है कि कांफ्रेन्स से अलग रहें। अलावाबरी (इसके अतिरिक्त ) जो कुछ भी लंडन में फ़ैसला होगा अगर वह वहां मौजूद रहते तो उसके मुतअल्लिक (संबंध में) उन्हें अपनी पोजीशन फ़ौरन साफ़ करनी पड़ती। अब फ़ैसला होने के बाद जब उनसे राय तलब (मांगी जायगी) होगी तो फुरसत से सोच समझकर और अपने मोतमदों (विश्वस्तों)  से मशवरा (परामर्श) करके अपनी राय कायम करेंगे और जवाब देंगे। जब तक अहले-हिन्द (भारतवासी ) अंग्रेज़ों से बढ़कर संगठन और होशियारी न दिखलावेंगे उस वक़्त तक उनका पल्ला हल्का ही रहेगा। क्रमशः---------                                                           

 🙏🏻 रा-धा-स्व-आ-मी 🙏🏻 

रोजाना वाकिआत-

परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


पाप, पुण्य और मो. क्ष क्या हैं?? / K

 .      


किसी आश्रम में एक साधु रहता था। काफी सालों से वह इसी आश्रम में रह रहा था। अब वह  काफी वृद्ध हो चला  था और  मृत्यु को वह  निकट महसूस कर रहा था , लेकिन संतुष्ट था कि 30 साल से उसने  प्रभु का सिमरन किया है, उसके खाते में ढेर सारा पुण्य जमा है इसलिए उसे मोक्ष मिलना तो तय ही है।

एक दिन उसके ख्याल  में एक स्त्री आयी। स्त्री ने साधु से कहा -

 "अपने एक दिन के पुण्य मुझे दे दो और मेरे एक दिन के पाप तुम वरण कर लो।" 

इतना कह कर स्त्री लोप  हो गयी। 

साधु बहुत बेचैन हुआ कि इतने बरस तो स्त्री ख्याल में ना आयी, अब जब अंत नजदीक है तो स्त्री ख्याल में आने लगी।  

फिर उसने ख्याल झटक दिया और प्रभु सुमिरन में बैठ गया। 

स्त्री फिर से ख्याल में आयी। फिर से उसने कहा कि

 "एक दिन का पुण्य मुझे  दे दो और मेरा एक दिन का पाप तुम वरण कर लो।"

इस बार साधु ने स्त्री को पहचानने की कोशिश की लेकिन स्त्री का चेहरा बहुत धुंधला था, साधु से पहचाना नहीं गया! साधु अब चिंतित हो उठा कि एक दिन का पुण्य लेकर यह स्त्री क्या करेगी! हो ना हो ये स्त्री कष्ट में है! लेकिन गुरु जी ने कहा हुआ है कि आपके पुण्य ही आपकी असल पूंजी  है, यह किसी को कभी मत दे बैठना।  और इतनी मुश्किल से पुण्यो की कमाई होती है, यह भी दे बैठे तो मोक्ष तो गया। हो ना हो ये मुझे मोक्ष से हटाने की कोई साजिश है।

साधू ने अपने गुरु के आगे अपनी चिंता जाहिर की। 

गुरु ने साधु को डांटा। 

 'मेरी शिक्षा का कोई असर नहीं तुझ पर? पुण्य किसी को नहीं देने होते। यही आपकी असली कमाई है।"

साधु ने गुरु जी को सत्य वचन कहा और फिर से प्रभु सुमिरन में बैठ गया। 

स्त्री फिर ख्याल  में आ गयी। 

 बोली -  तुम्हारा गुरु अपूर्ण है, इसे ज्ञान ही नहीं है, तुम तो आसक्ति छोड़ने का दम भरते हो, बीवी-बच्चे, दीन-दुनिया छोड़ कर तुम इस अभिमान में हो कि तुमने आसक्ति छोड़ दी  है। तुमने और तुम्हारे गुरु ने तो आसक्ति को और जोर से पकड़ लिया है। किसी जरूरतमंद  की मदद तक का चरित्र नहीं रहा तुम्हारा तो।"

साधु बहुत परेशान हो गया! वह फिर से गुरु के पास गया। स्त्री की बात बताई। गुरु ने फिर साधु को डांटा, "गुरु पर संदेह करवा कर वह तुम्हे पाप में धकेल रही है। जरूर कोई बुरी आत्मा तुम्हारे पीछे पड़ गयी है।"

साधु अब कहाँ जाए! वह वापिस लौट आया और फिर से प्रभु सुमिरन में बैठ गया। स्त्री फिर ख्याल में आयी। उसने फिर कहा-   "इतने साल तक अध्यात्म में रहकर तुम गुलाम भी बन गए हो। गुरु से आगे जाते। इतने साल के अध्ययन में तुम्हारा स्वतंत्र मत तक नहीं बन पाया। गुरु के सीमित ज्ञान में उलझ कर रह गए हो। मैं अब फिर कह रही हूँ, मुझे एक दिन का पुण्य दे दो और मेरा एक दिन का पाप वरण कर लो। मुझे किसी को मोक्ष दिलवाना है। यही प्रभु इच्छा है।" 

साधु को अपनी अल्पज्ञता पर बहुत ग्लानि हुई। संत मत कहता है कि पुण्य किसी को मत दो और धर्म कहता है जरूरतमंद की मदद करो। यहां तो फंस गया। गुरु भी राह नही दे रहा कोई, लेकिन स्त्री मोक्ष किसको दिलवाना चाहती है।

साधु को एक युक्ति सूझी। जब कोई राह ना दिखे तो प्रभु से तार जोड़ो। प्रभु से राह जानो। प्रभु से ही पूछ लो कि उसकी रजा क्या है

 उसने प्रभु से उपाय पूछा। आकाशवाणी हुई। 

वाणी ने पूछा-, "पहले तो तुम ही बताओ कि तुम  कौन से पुण्य पर इतरा रहे हो?"

साधु बोला,-"मैंने तीस साल प्रभू सुमिरन किया है। तीस साल मैं भिक्षा पर रहा हूँ। कुछ संचय नही किया। त्याग को ही जीवन माना है। पत्नी बच्चे तक सब  त्याग दिया।"

वाणी ने कहा- "तुमने तीस बरस कोई उपयोगी काम नही किया। कोई रचनात्मक काम नही किया। दूसरों का कमाया और बनाया हुआ खाया। राम-राम, अल्लाह-अल्लाह, गॉड-गॉड जपने से पुण्य कैसे इकठा होते है मुझे तो नही पता। तुम डॉलर-डॉलर, रुपिया-रुपिया जपते रहो तो क्या तुम्हारा बैंक खाता भर जायेगा? तुम्हारे खाते में शून्य पुण्य है।"


साधु बहुत हैरान हुआ। बहुत सदमे में आ गया।लेकिन हिम्मत करके उसने प्रभु से पूछा कि "फिर वह स्त्री पुण्य क्यो मांग रही है।"


प्रभु ने कहा- "क्या तुम जानते हो वह स्त्री  कौन है?"


साधु ने कहा,  "नही जानता लेकिन जानना चाहता हूं।"


प्रभु ने कहा- "वह तुम्हारी पत्नी है। तुम जिसे पाप का संसार कह छोड़ आये थे। कुछ पता है वह क्या करती है?"


साधु की आंखे फटने लगी। उसने कहा, "नही प्रभु। उसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता!"


प्रभु ने कहा, "तो  सुनो, जब तुम घर से चुपचाप निकल आये थे तब वह कई दिन तुम्हारे इन्तजार  में रोई। फिर एक दिन संचय खत्म हो गया और बच्चों की भूख ने उसे तुम्हारे गम पोंछ  डालने के लिए विवश कर दिया। उसने आंसू पोंछ दिए और नौकरी के लिए जगह-जगह घूमती भटकती रही। वह इतनी पढ़ी लिखी नही थी। तुम बहुत बीच राह उसे छोड़ गए थे । उसे काम मिल नही रहा था इसलिए उसने एक कुष्ठ आश्रम में नौकरी कर ली।

वह हर रोज खुद को बीमारी से बचाती उन लोगों की सेवा करती रही जिन्हें लोग वहां  त्याग जाते हैँ। वह खुद को आज भी पापिन कहती है कि इसीलिए उसका आदमी उसे छोड़ कर चला गया!"


प्रभु ने आगे कहा- "अब वह बेचैन है  तुम्हे लेकर। उसे बहुत दिनों से आभास होंने लगा है कि उसका पति मरने वाला है। वह यही चाहती है कि उसके पति को मोक्ष मिले जिसके लिए वह घर से गया है। उसने बारंबार प्रभु को अर्जी लगाई है की प्रभु मुझ पापिन  की जिंदगी काम आ जाये तो ले लो। उन्हें मोक्ष जरूर देना। मैंने कहा उसे कि अपना एक दिन  उसे दे दो।  कहती है मेरे खाते में पुण्य कहाँ,  होते तो मैं एक पल ना लगाती। सारे पुण्य उन्हें दे देती। वह सुमिरन नहीं करती,वह भी समझती है कि सुमिरन से पुण्य मिलते हैं।"


"मैंने उसे नहीं बताया कि  तुम्हारे पास अथाह पुण्य जमा हैं। पुण्य सुमिरन से नहीं आता। मैंने उसे कहा कि एक साधु है उस से एक दिन के पुण्य मांग लो,  अपने एक दिन के पाप देकर। उसने सवाल किया   कि ऐसा कौन  होगा जो om पाप लेकर पुण्य दे देगा। मैंने उसे आश्वस्त किया कि साधु लोग ऐसे ही होते हैं।"


"वह औरत अपने पुण्य तुम्हे दे रही थी और तुम ना जाने कौन से हिसाब किताब में पड़ गए।  तुम तो साधु भी ठीक से नहीं बन पाए। तुमने कभी नहीं सोचा कि पत्नी और बच्चे कैसे होंगे। लेकिन पत्नी आज भी बेचैन है कि तुम लक्ष्य को प्राप्त होवो। तुम्हारी पत्नी को कुष्ठ रोग है, वह खुद मृत्यु शैया पर है लेकिन तुम्हारे लिए मोक्ष चाह  रही है। तुम सिर्फ अपने मोक्ष के लिए तीस बरस से हिसाब किताब में पड़े हो।"


साधू के बदन पर पसीने की बूंदे बहने लगी,  सांस तेज होने लगी,

 उसने ऊँची आवाज में चीख लगाई

 "यशोदा!:"   

साधु हड़बड़ा कर उठ बैठा, उसके माथे पर पसीना बह रहा था। 

उसने बाहर झाँक कर देखा, सुबह होने को थी। उसने जल्दी से अपना झोला बाँधा और गुरु जी के सामने जा खड़ा हुआ।

 गुरु जी ने पूछा "आज इतने जल्दी भिक्षा पर?"


साधु बोला- "घर जा रहा हूँ।"


गुरु जी बोले- "अब घर क्या करने जा रहे हो?"


साधु बोला- "धर्म सीखने"


      श्री राम जी कहते हैं  :-


स्वर्ग  का  सपना  छोड़  दो,

     नर्क   का   डर   छोड़   दो ,

      कौन   जाने   क्या   पाप , 

              क्या   पुण्य ,

                   बस............

    किसी   का   दिल   न   दुखे

      अपने   स्वार्थ   के   लिए ,

                   बाकी   सब ......

          कुदरत   पर   छोड़   दो

ना पैसा  बड़ा.. ना पद बड़ा ।

मुसीबत में जो साथ खड़ा...

वो सबसे बड़ा ।

..........................

Wednesday, June 21, 2023

परमात्मा कि आवाज*/ कृष्ण मेहता

 *परमात्मा कि आवाज*


एक व्यक्ति को रास्ते में यमराज मिल गये वो व्यक्ति उन्हें पहचान नहीं सका। यमराज ने पीने के लिए पानी मांगा उस व्यक्ति ने उन्हें पानी पिलाया। पानी पीने के बाद यमराज ने बताया कि वो उसके प्राण लेने आये हैं लेकिन चूँकि तुमने मेरी प्यास बुझाई है इसलिए मैं तुम्हें अपनी किस्मत बदलने का एक मौका देता हूँ।


 यह कहकर यमराज ने उसे एक डायरी देकर कहा तुम्हारे पास 5 मिनट का समय है इसमें तुम जो भी लिखोगे वही होगा लेकिन ध्यान रहे केवल 5 मिनट। उस व्यक्ति ने डायरी खोलकर देखा तो पहले पेज पर लिखा था कि उसके पड़ोसी की लाॅटरी निकलने वाली है और वह करोड़पति बनने वाला है। उसने वहाँ लिख दिया कि पड़ोसी की लाॅटरी न निकले। अगले पेज पर लिखा था उसका एक दोस्त चुनाव जीतकर मंत्री बनने वाला है उसने लिख दिया कि वह चुनाव हार जाये। इसी तरह वह पेज पलटता रहा और अंत में उसे अपना पेज दिखाई दिया। जैसे ही उसने कुछ लिखने के लिए अपना पैन उठाया यमराज ने उसके हाथों से डायरी ले ली और कहा वत्स तुम्हारा 5 मिनट का समय पूरा हुआ अब कुछ नहीं हो सकता। तुमने अपना पूरा समय दूसरों का बुरा करने में निकाल दिया और अपना जीवन खतरे में डाल दिया अतः तुम्हारा अन्त निश्चित है। यह सुनकर वह व्यक्ति बहुत पछताया लेकिन सुनहरा समय निकल चुका था।


यदि ईश्वर ने आपको कोई शक्ति प्रदान की है तो कभी किसी का बुरा न सोचो न करो।

दूसरों का भला करने वाला सदा सुखी रहता है और ईश्वर की कृपा सदा उस पर बनी रहती है।

प्रण लें आज से हम किसी का बुरा नहीं करेंगे..!!

   *🙏🏿🙏🏾🙏🏽🙏🏼🙏


*🌞 सुविचार* ||🌞


🌞 सुविचार* ||🌞 / कृष्ण  मेहता                


1⃣  *जीवन बहुत छोटा है, उसे जियो. प्रेम दुर्लभ है, उसे पकड़ कर रखो. क्रोध बहुत खराब है, उसे दबा कर रखो. भय बहुत भयानक है, उसका सामना करो. स्मृतियां बहुत सुखद हैं, उन्हें संजो कर रखो.*

 *अगर आपके पास मन की*

          *शांति है तो.....*

    *समझ लेना आपसे अधिक*  

          *भाग्यशाली कोई नहीं है.!!*

2⃣ 

 *दुष्टों के साथ मैत्री और वैर दोनों ही*

  *नहीं करनी चाहिये। क्योंकि वह*

*दोनों स्थितियों में अनिष्ट करता है।*

   *जैसे कि जलते हुए कोयले को*

   *स्पर्श करने से वह हाथ को भी*

*जलाता है और ठण्डा होने पर छूने*

  *से हाथ को काला भी करता है।*

3⃣ 

*कुछ सहन करना भी*

*सीखना चाहिए ...*

*क्योंकि ...*

*हममें भी ऐसी बहुत सी*

*कमियाँ हैं ...*

*जिन्हें दूसरे सहन करते हैं .*   



             

Sunday, June 4, 2023

चमत्कार

 


बनारस की वो गलियाँ जहाँ हर मोड़ पे आपको एक छोटा-मोटा मंदिर मिल जाएगा। शायद यही बनारस की खूबसूरती का एक राज है।*

*हर पल उस छोटे बड़े मंदिर से आती घंटियों की आवाज़ें मन को कितना सुकून देती हैं।*


*बनारस के इन्हीं गलियों में एक राम जानकी मंदिर है, जिसकी देख रेख मंदिर के पुजारी पंडित रामनारायण मिश्र के हाथों थी। मिश्रजी भी अपनी पूरी जिंदगी इस राम जानकी मंदिर को समर्पित कर चुके थे।*


*संपत्ति के नाम पर उनके पास एक छोटा सा 2 कमरे का मकान और परिवार में उनकी पत्नी और विवाह योग्य बेटी कमला ।* 


*मन्दिर में जो भी दान आता वही पंडित जी और उनके परिवार के गुजारे का साधन था। बेटी विवाह योग्य हो गयी थी और पंडित जी ने हर मुकम्मल कोशिश की जो शायद हर बेटी का पिता करता। पर वही दान दहेज़ पे आकर बात रुक जाती।* 


*पंडित जी अब निराश हो चुके थे। सारे प्रयास कर के हार चुके थे।*

          

*एक दिन मंदिर में दोपहर के समय जब भीड़ न के बराबर होती है उसी समय चुपचाप राम सीता की प्रतिमा के सामने आँखें बंद किये अपनी बेटी के भविष्य के बारे में सोचते हुए उनकी आँखों से आँसू बहे जा रहे थे।*


 *तभी उनकी कानों में एक आवाज आई, "नमस्कार, पंडित जी!"*


*झटके में आँखें खोलीं तो देखा सामने एक बुजुर्ग दंपत्ति हाथ जोड़े खड़े थे। पंडित जी ने बैठने का आग्रह किया। पंडित जी ने गौर किया कि वो वृद्ध दंपत्ति देखने में किसी अच्छे घर के लगते थे। दोनों के चेहरे पर एक सुन्दर सी आभा झलक रही थी।*


*"पंडित जी आपसे एक जरूरी बात करनी है।" वृद्ध पुरूष की आवाज़ सुनकर पंडित जी की तंत्रा टूटी।*


*"हाँ हाँ कहिये श्रीमान।" पंडित जी ने कहा।*

 

*उस वृद्ध आदमी ने कहा, "पंडित जी, मेरा नाम विशम्भर नाथ है, हम गुजरात से काशी दर्शन को आये हैं, हम निःसंतान हैं, बहुत जगह मन्नतें माँगी पर हमारे भाग्य में पुत्र/पुत्री सुख तो जैसे लिखा ही नहीं था।"*


*"बहुत सालों से हमनें एक मन्नत माँगी हुई है, एक गरीब कन्या का विवाह कराना है, कन्यादान करना है हम दोनों को, तभी इस जीवन को कोई सार्थक पड़ाव मिलेगा।"*


*वृद्ध दंपत्ति की बातों को सुनकर पंडित जी मन ही मन इतना खुश हुए जा रहे थे जैसे स्वयं भगवान ने उनकी इच्छा पूरी करने किसी को भेज दिया हो।*


*"आप किसी कन्या को जानते हैं पंडित जी जो विवाह योग्य हो पर उसका विवाह न हो पा रहा हो। हम हर तरह से दान दहेज देंगे उसके लिए और एक सुयोग्य वर भी है।" वृद्ध महिला ने कहा।*


*पंडित जी ने बिना एक पल गंवाए अपनी बेटी के बारे में सब विस्तार से बता दिया। वृद्ध दम्पत्ति बहुत खुश हुए, बोले, "आज से आपकी बेटी हमारी हुई, बस अब आपको उसकी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं, उसका विवाह हम करेंगे।"*


*पंडित जी की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। उनकी मनचाही इच्छा जैसे पूरी हो गयी हो।*


*विशम्भर नाथ ने उन्हें एक विजिटिंग कार्ड दिया और बोला, "बनारस में ही ये लड़का है, ये उसके पिता के आफिस का पता है, आप जाइये। ये मेरे रिश्ते में मेरे साढ़ू लगते हैं।*


*बस आप जाइये और मेरे बारे में कुछ न बताइयेगा। मैं बीच में नहीं आना चाहता। आप जाइये, खुद से बात करिये।*


*पंडित जी घबराए और बोले, "मैं कैसे बात करूँ, न जान न पहचान, कहीं उन्होंने मना कर दिया इस रिश्ते के लिए तो..??"*


*वृद्ध दंपत्ति ने मुस्कुराते हुए आश्वासन दिया कि, "आप जाइये तो सही। लड़के के पिता का स्वभाव बहुत अच्छा है, वो आपको मना नहीं करेंगे।"* 


*इतना कह कर वृद्ध दंपत्ति ने उनको अपना मोबाइल नंबर दिया और चले गए। पंडित जी ने बिना समय गंवाए लड़के के पिता के आफिस का रुख किया।*


*मानो जैसे कोई चमत्कार सा हो गया। 'ऑफिस में लड़के के पिता से मिलने के बाद लड़के के पिता की हाँ कर दी', 'तुरंत शादी की डेट फाइनल हो गयी', पंडित जी जब जब उस दंपत्ति को फोन करते तब तब शादी विवाह की जरूरत का दान दहेज उनके घर पहुँच जाता।*


*सारी बुकिंग, हर तरह का सहयोग बस पंडित जी के फोन कॉल करते ही उन तक पहुँचने लगते।* 


*अंततः धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। पंडित जी की लड़की कमला विदा होकर अपने ससुराल चली गयी।*


*पंडित जी ने राहत की साँस ली। पंडित जी अगले दिन मंदिर में बैठे उस वृद्ध दम्पत्ति के बारे में सोच रहे थे कि कौन थे वो दम्पत्ति जिन्होंने मेरी बेटी को अपना समझा, बस एक ही बार मुझसे मिले और मेरी सारी परेशानी हर लिए।*


*यही सोचते-सोचते पंडित जी ने उनको फोन मिलाया। उनका फोन स्विच ऑफ बता रहा था। पंडित जी का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा।* 


*उन्होंने मन ही मन तय किया कि एक दो दिन और फोन करूँगा नहीं बात होने पर अपने समधी जी से पूछूँगा जरूर विशम्भर नाथ जी के बारे में।*


*अंततः लगातार 3 दिन फ़ोन करने के बाद भी विशम्भर नाथ जी का फ़ोन नहीं लगा तो उन्होंने तुरंत अपने समधी जी को फ़ोन मिलाया।*


*ये क्या….*


*फ़ोन पे बात करने के बाद पंडित जी की आँखों से झर झर आँसू बहने लगे। पंडित जी के समधी जी का दूर दूर तक विशम्भर नाथ नाम का न कोई सगा संबंधी, न ही कोई मित्र था।*


*पंडित जी आँखों में आँसू लिए मंदिर में प्रभु श्रीराम के सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गए। और रोते हुए बोले,*


*"मुझे अब पता चला प्रभु, वो विशम्भर नाथ और कोई नहीं आप ही थे,*

 

*वो वृद्धा जानकी माता थीं, आपसे मेरा और मेरी बेटी का कष्ट देखा नहीं गया न?*


*दुनिया इस बात को माने या न माने पर आप ही आकर मुझसे बातें कर के मेरे दुःख को हरे प्रभु।"*


*राम जानकी की प्रतिमा जैसे मुस्कुराते हुए अपने भक्त पंडित जी को देखे जा रही थी।*

         🌹जय जय श्री राम 🌹

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

 *रा-धा-स्व-आ-मी*


*04-06-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-*


*(9-8-31 आदित्य)* 




*तुलबा (विद्यार्थीगण ) के सतसंग में बवक्त सेहपहर (तीसरे पहर) बयान हुआ चूंकि छोटा बच्चा तजरबे (अनुभव) से जानता है कि उसके रोने में बड़ा असर है इसलिये वह अपनी हर एक मांग रोकर पूरी कराता है और जब वाल्दैन(माता पिता) किसी क़दर (कुछ) सर्दमहरी (कठोरता) से पेश आते (बरतते) हैं तो वह और जोर से चीखता है हत्ता (यहां तक) कि वाल्दैन उसकी ख्वाहिश (इच्छा) पूरा करने के लिये मजबूर हो जाते हैं इसी तरह चूंकि हुक्काम (अधिकारीगण ) जानते हैं कि लोग ताज़ीराते हिन्द (भारतीय दण्ड़ सहिंता)  यानी सज़ा के क़ानून से डरते हैं इसलिये जितने समन या नोटिस अदालतों से जारी होते हैं उन सबके अन्दर किसी न किसी धमकी का जिक्र रहता है ठीक इसी तरह प्रेमीजन जानते हैं कि प्रेम व दीनता का अंग लेकर और अपनी तबीयत यकसूं (एकाग्र) करके अगर सच्चे मालिक के हुजूर में कोई अर्ज (प्रार्थना ) पेश की जावे तो वह ज़रूर मंजूर हो जाती है। इसलिये हर एक ऐसे शख्स के लिये जो मालिक की हस्ती (अस्तित्व ) में एतक़ाद (आस्था) रखता है और उससे स्वार्थ व परमार्थ में मदद का उम्मीदवार है लाज़िमी (आवश्यक ) है कि अपने अन्दर प्रेम व दीनता का अंग और यकसूई तवज्जुह (एकाग्रता अभ्यास) का मुहावरा (क्रम) पैदा करे। रा धा स्व आ मी सतसंग में जो सेवा व सतसंग का सिलसिला जारी है वह इसीलिये है कि उनके जरीये (माध्यम से) हर सेवक के अन्दर प्रेम व दीनता पैदा हों और सुमिरन व ध्यान का जो उपदेश दिया जाता है उसकी अव्वल गरज (उद्देश्य ) यही है कि प्रेमीजन यकसूई तवज्जुह कायम (स्थापित ) करने में कामयाब (सफ़ल) हों।*


 *क्रमश------*



   *🙏🏻 रा-धा-स्व-आ-मी 🙏🏻*

यमुना तीरे पर हुई कल सूबह-(3-6-23) को हुई इम्पोर्टेंट अनाउंसमैंट

 यमुना  तीरे  पर  हुई कल सूबह-(3-6-23) को हुई इम्पोर्टेंट  अनाउंसमैंट 


यह (मोटर राइड)  मुफ्त  हैं, कोई  चार्ज  नही  लिया  जाता  हैं। हमारे  जो  ऑब्जेक्ट्स  हैं,  परोपकार  के  अंतर्गत  उनकी  ये  फैसिलिटी  दी  जाती  हैं। आज  अभी  तक  80  लोग   मोटर  राइड  कर  चुके  हैं  और  20  लोग  जो  हैं, मोटर  राइड  करने  के  लिए  तैयार  हैं  और  अपनी  बारी  का  इंतजार  कर  रहे  हैं।


आपको  पता  हैं, हमारी  संस्था एक  धार्मिक  और  परोपकारी  संस्था  हैं  व  इसके  अन्दर  जो  भी  काम  किए  जाते  हैं, फ्री  ऑफ  कॉस्ट  परोपकार  के  लिए  किए  जाते  हैं, जनहित  के  लिए। 


सुप्रीम  कोर्ट  ऑफ़  इंडिया  ने  हमको  इसके  लिए  परमिशन  दे  रखी  हैं। इसका  थ्री  जजेस  बैंच का  जजमेंट  हमारे  फेवर  में  हैं कि  सेंट्रल  गवर्नमेंट  ऑफ़  इंडिया  परोपकारी  कार्य  करने  के  लिए  93  लाख  हमारे  अकाउंट  में  ट्रांसफर  करें।

Saturday, June 3, 2023

🙏 ग्रेशस हुजूर सतसंगी साहब जी द्वारा रचित शब्द 🙏🙏

 रा-धा-स्व-आ-मी

         🙏🙏



कस गाऊँ न गाऊँ मै महिमा रा-धा-स्व-आ-मी की |


सुन सुन धुन रुनझुन शब्द गुरु की |


कस गाऊँ न गाऊँ मै महिमा रा-धा-स्व-आ-मी की |


सुन मेरे भाई सुन मेरी बहनी

प्यारे भाई, प्यारी बहनी

कस गाऊँ न गाऊँ मै महिमा रा-धा-स्व-आ-मी की |


रा-धा-स्व-आ-मी नाम में बड़े बड़े गुन

इस निज नाम में बड़े बड़े पुन

जो सुमिरे पहुंचे निजधाम

अजर अमर होय पावे पूरन विश्राम

धाम मिले, मिले पूरन धनी

सहज मिले पर्म पुरुष रा-धा-स्व-आ-मी

कस गाऊँ न गाऊँ मै महिमा रा-धा-स्व-आ-मी की |

🙏🙏

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...