Wednesday, August 31, 2011

प्रेस क्लब / अनामी शरण बबल-6






बस जल्द ही बढ़ने  वाला है रेल किराया

जनता जर्नादन होशियार,  बा मुलाहिजा सावधान । लालू ममता की दया धार अब बंद होने वाली है। सात साल के बाद एक बार फिर रेल किराया में बढ़ने का दौर चालू होने जा रहा है। बिहार को रसातल में ले जाने के लिए कुख्यात बदनाम लालू राबड़ी राज का कलंक अभी तक बरकरार है, इसके बावजूद एक रेल मंत्री के रूप में लालू ने कमाल किया और लगातार पांच साल तक रेल किराये को बढ़ने नहीं दिया। आय के अन्य संसाधनों को बढ़ाकर रेलवे को घाटे में नहीं आने दिया। लालू के बाद ममता बनर्जी ने भी लालू के पदचिन्हों पर चली, और किराये को नहीं बढ़ाया। मगर ममता पार्टी के प्रेशर से रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी ने दया करूणा प्रेम ममता और संवेदना को दरकिनार करते हुए रेल भाड़ा बढ़ाने का गेम चालू कर दिया है। संसाधनों को तलाश कर आय में चौतरफा बढ़ोतरी के उपायों में जुट गए है। रेल घाटे से बेहाल है, क्योंकि ममता दीदी ने रेल की बजाय वेस्ट बंगाल पर तो ध्यान दिया, मगर रेल को लेकर अपने कर्तव्य भूल गई। देश यूपीए और सरदार जी की गद्दी पर कोई खास संकट (अन्नामय की तरह) नहीं आया तो साल 2011 के अंत तक देश की जीवनरेखा माने जाने वाली रेल में सफर करना पहले से कुछ महंगा जरूर हो जाएगा।



युवराज की छवि संवारने और दिखाने की मुहिम

अन्ना अनशन में देश एकजुट हो गया, मगर हमेशा की तरह दिल्ली में मौनी बाबा बने रहने वाले अपने युवराज यानी राहुल बाबा इस बार भी खामोशी के साथ हंगामा देखते रहे। देखते रहे अपनी पार्टी और पीएम की फजीहत। एक तरफ सरकार की पैंट गिल्ली होती रही तो दूसरी तरफ अन्ना की आंधी से पूरी सरकार का दम उखड़ती रही। हालात को हाथ से बाहर होते देख पर्दे के पीछे से कमान थामे राहुल बाबा को संसद में पूरा पक्ष रखना पड़ा। अन्ना के सामने सरकार को मत्था टेकना पड़ा। हालांकि ये सब हुआ तो राहुल बाबा के निर्देश पर ही। मगर जब पूरा देश अन्नामय होकर उल्लास मना रहा है तो सरकार को अगले साल होने वाले कई चुनावों की चिंता सताने लगी। लिहाजा लोकपाल बिल पर सरकार कोशिश करसरही है कि कुछ चक्कर इस तरह का चलाए कि लोकपाल मामले में अन्ना की जगह राहुल बाबा को भी पूरा श्रेय मिले, ताकि पार्टी सीना चौड़ा करके अन्ना का काउंटर कर सके।


भाई ने भाई को मारा( पछाड़ा)


कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी किसी भी पार्टी के नेता से मात खा जाए या पस्त हो जाए तो चलता है। मगर खासतौर पर अपने चचेरे भाई वरूण गांधी से पस्त हो जाए यह खुद राहुल प्रियंका सोनिया समेत पार्टी को कतई बर्दाश्त नहीं होता। कई मामलों में वरूण से मात गए राहुल बाबा  की अपने भाई के सामने बोलती ही बंद हो गई। खासकर कई साल तक इंतजार के बाद भी शादी नहीं करने पर इसी साल छोटे भाई ने बनारस में शादी करके बड़ी मम्मी के दुखते रग पर हाथ रख दिया। पूरे देश में इस शादी से ज्यादा चर्चा सोनिया राहुल प्रियंका के इसमें शरीक नहीं होने से हुआ। अब ताजा मामला अन्ना आंदोलन का है कि युवा भीड़ अंत तक अपने युवा नेता राहुल बाबा को तलाशती ही रही, मगर वे नहीं आए, मगर वरूण की सक्रिय मौजूदगी ने एक बार फिर अपने बड़े भाई को पछाड़ ही दिया।.


बहनजी की सक्रियता आई काम

पंजा पार्टी में मैडम अम्मा हैं तो प्रियंका वाड्रा गांधी पूरे पार्टी के लिए बहनजी है। हालांकि वे राहुल गांधी की सगी बहन है, पर पूरे पार्टी ने इन्हें अपनाया और माना। इस समय पार्टी सुप्रीमों और इनका मम्मी जब देश से बाहर है तो पार्टी का सारा काम पर्दे के पीछे बहनजी के हाथ में है। देश की जनता के मूड को भांपना और अन्ना की ताकत के सामने सरकार के घुटने टेकने की कवायद और चालाकी सब भाई-बहनों के निर्देश पर हुए। हालांकि पार्टी सुप्रीमों द्वारा गठित कोर कमेटी को साथ लेकर तमाम फैसले हुए मगर कुल मिलाकर पार्टी और टीम पीएम के कोरे ज्ञान ने दिखा और बता दिया कि अपन सरदार जी विवेक पूर्वक और अपने मन से काम करने में एकदम कोरे कागज है। पीएम के नासमझी पर बहनजी ने कई बार रोष भी जताया। अब देखना है कि देश में खराब हुई पार्टी और सरकार की छवि को युवराज के सहारे ठीक करने की मुहिम में क्या अपने सरदार जी भी कदमताल कर पाएंगे ?  

पार्टी का आत्ममंथन

अन्ना हजारे का अनशन भले ही खत्म हो गया हो, मगर पंजा पार्टी में आत्ममंथन का दौर चालू हो गया है। अन्ना हजारे को हल्केपन से आंकने की भूल से लेकर अनशन के दौरान गलत बयानी और नेताओं के उग्र तेवर से होने वाले नुकसाल की समीक्षा की जा रही है। कपिल सिब्बल, मनीष तिवारी,से लेकर प्रणव मुखर्जी,लुबोधकांत सहाय दिग्गी राजा से लेकर तमाम नेताओं के बयानों पर यही वोग समीक्षा करने में लगे है। खासकर प्रियंका और राहुल नेताओं द्वारा अन्ना की फौज को कमतर आंकने की भूल को माफ करने के मूड में नहीं है। अगले साल होने वाले यबपी समेत कई राज्यों के चुनाव और समाज में पार्टी की इमेज को लेकर एक गुप्त रिपोर्ट मंगवा रही है। इस बाबत एक सर्वे भी कराने पर जोर दिया जा रहा है। खासकर यूपी में अन्ना के बाद की हालात को जानने के लिए बाबा उतावले है कि सालों की मेहनत का कोई असर अभी बाकी है या अन्ना की आंधी में सब धुल(उखड़) गया। (खबर लिखने के बाद पता चला कि बेकाबू होकर बोलने में उस्ताद अपने मनीष तिवारी पर कैंची चल गई है)


अन्ना के सामने सब ढेर


महाराष्ट्र में जनसंघर्ष करने वाले अन्ना हजारे की मार्च 2011 तक नेशनल इमेज होने के बाद भी लोकप्रिय नहीं थे। खासकर धाक और प्रभाव के मामले में भी अन्ना को कोई खास महत्व नहीं दिया जाता था। मगर, एक गांधीवादी अहिंसक आंदोलनकारी की साफ सुथरी छवि होने के कारण ही दिल्ली के नेताओं को अन्ना की जरूरत पड़ी। अप्रैल में अपने मजबूत इरादे और आत्मबल से सरकार को मजबूर करने वाले अन्ना रातोरात इतने लोकप्रिय हो गए कि लोग इन्हें आज तो गांधी जैसा मानने लगे है। देश विदेश की मीडिया में सराहे जा रहे अन्ना के सामने सारे धूमिल से हो गए है। चाहे खिलाड़ी हो या अभिनेता कोई भी इनके सामने टीक नहीं पा रहा । अन्ना के पीछे पूरा देश देखकर तो सारे हैरान है कि इस 74 साल के नौजवान ने इतनी बड़ी लकीर खिंच दी है कि इसके सामने तो अभी कोई नहीं ठहरता।
           
ये तो होना ही था

अन्ना हजारे की दादागिरी नुमा गांधीगिरी जिसे अब अन्नागिरी के नाम से पुरा देश जानता, मानता और अपनाया है। अन्ना की छवि देश के दूसरे गांधी के रूप में उभरी। लोकप्रियता के चरम पर स्थापित अन्ना की इस लोकप्रियता से बौखलाए टीम अन्ना के (खुद को अन्ना से ज्यादा महान मानने वाले) सदस्यों में स्वामी अग्निवेश और रामदेव बाबा का हश्र सारा देश देख रहा है।  बंधुआ मुक्ति मोर्चा और अंग्रेजी विरोध समेत पांच तारा होटलों के बाहर प्रदर्शन करने वाले को तरजीह देने की बजाय अन्नागान सो तो बौखलाना ही था। इस भीड़ में कोई घास भी ना डाले इससे बेहतर है कि कपिल (?) मुनि की गोद में बैठकर मलाई ही चाटे। यही हाव योगगुरू रामदेव का हुआ। अन्ना के अप्रैल वाले अन्नागिरी से परेशान बाबा कालाधन के खिलाफ जोरदार हंगामे के साथ अन्ना को डाउन दिखाना चाहते थे। पर रामलीला मैदान में राम(देव) लीला क्या हुआ  यह सारा देश जानता है। अपने लालच और स्वार्थ वश अन्ना के साथ आने वालों का राज खुल गया। वाचाल रामदेव की बोलती ही बंद हो गई है। देखना है कि सरकारी मेहमान बनने की लालसा वाले अग्निवेश का क्या होता है। चाहे जो हो , मगर बंधुआ मुक्ति मोर्चा के पुरोधा अब खुद सरकारी बंधुआ होते जा रहे है।

मनमोहन पर मनमोहनी कविता

अन्ना आंदोलन के दौरान युवाओं ने कविता पैरोडी और हास्य व्यंग्य से जमकर उल्लास मनाया। अपने सरदारजी यानी पीएम मनमोहन सिंह सबों के सबसे पंसदीदा थे। मुन्नी बदनाम होने के बाद मुन्ना बदनाम हुआ की तर्ज पर लोगों ने अपने मुन्ना यानी मनमोहन जी पर कुछ इस तरह वार किया।

मुन्ना बदनाम हुआ मैडमजी आईसी(कांग्रेस आई) के लिए।
अपनी इज्जत का फलूदा बनाया मैडमजी आईसी के लिए।।

 राजा ने जमकर टूजी मे इजी करप्शन किया
 सुरेश शीला पर आपने एक्शन नहीं लेने दिया
 सालों की इमेज का काम तमाम किया मैडमजी आईसी के लिए।।

मनमोहन पर एक और गाने का मजा ले

अली बाबा 40 चोर की बात हुई पुरानी।
नए जमाने में है अब तो नयी कहानी .।।
मॅाल मोबाइल मेट्रो की मौज है
और सबसे ईमानदार पीएम की टोली में 40 चोरों की फौज है।।  



और जो अन्नागिरी से बच गए (लात जूता खाने से)

अन्ना हजारे भले ही सरकार के लिए सिरदर्द बन गए हो, मगर कुछेक लोगों के लिए तो अन्ना तारणहार बन गए। उनके मन में यह सोचकर ही दिल बैठ जाएगा कि यदि अन्ना महाराज का अनशन नहीं चल रहा होता तो इंगलैंड में गोरों के हाथों बुरी तरह शर्मनाक मात खाने के बाद अपन हिन्दुस्तान के पागल क्रिकेट प्रेमी इन क्तिकेटरों की क्या गत करते। अगर आपको कुछ याद नहीं है तो 2007 में विश्वकप के पहले ही दौर में बाहर होने के बाद तो सारे क्रिकेटरों को अपने फैन से चोर की तरह छिपछिपा कर घर पहुंचना  पड़ा था। किसी के घर के बाहर होलिका दहन की गई को किसी के घर को ही फूंकने की कोशिश की गई। मगर धोनी के धुरंधरों का ये सौभाग्य ही रहा कि हारे भी इस कदर कि खुद ही शर्मसार हो गए मगर अन्ना की आंधी में ज्यादातर भारतीय युवाओं ने क्रिकेट में देश की भारी पराजय को कोई भाव ही नहीं दिया।

कामनवेल्थ के चोरों मिला जीवनदान

पानी अब इतना महंगा औक दुर्लभ होता जा रहा है कि पानी की तरह पैसा बर्बाद करने का मुहाबरा भी गलत दिखने लगा है। सरकारी पैसे को अनाप शनाप खर्चे करने वालों में दिल्ली की सीएम शीला दीक्षित भी अन्ना अनशन से बच गई। एक तरफ अन्ना और दूसरी तरफ सोनिया का इलाज कराने अमरीका जाना भी शीला को लाईफ मिलने का कारण बन गया। अपन पीएम साहब तो दबंग है नहीं कि मैडम के बगैर कुछ कर सके। यानी अन्ना को सरकार चाहे जितना कोस ले मगर वाकई अन्ना कितनों के लिए धन्ना बन गए। जय हो जय हो अन्ना हजारे जी जय हो।



नवाकुंरों के जज्बे को सलाम

करीब पांच माह (एक्जाम और एडमिशन) के अंतराल के बाद वर्ष 2011-12 में मीडिया छात्रों को पढ़ाने का खाता दयालबाग एजूकेशनल इंस्टीट्यूट (डीइआई) से शुरू हुआ। दिल्ली की अपेक्षा छोटे और मीडिया के लिहाज से बेहद कम साधनों वाले शहर में रहकर  मीडिया में कैरियर बनाने की तैयारी करना हमेशा कठिन होता है। पत्रकारिता के बारे में सैद्धांतिक तौर से ज्यादा नहीं जानने के बाद भी इनके उत्साह और कुछ कर गुजरने की लालसा देखकर मन संतुष्ट हुआ। चाहे अतुल से लेकर पवन बघेल, पूजा मनवानी, मोनिका ककरवानी, श्वेता सारस्वत, रेणु सिंह, अंशिका चतुर्वेदी हो या नेहा सिंह। यानी कुल आठ छात्रों के मिजाज को देखना उत्साहवर्द्धक लगा। वहीं मीडिया के प्रति लड़कियों की जीवटता उत्साह (भले ही लगन कहना अभी जल्दबाजी होगी) को देखना और भी ज्यादा अनोखा और सुखद लगा कि इस बार आठ छात्रों में छह लड़कियां है। इनके जज्बे को सलाम करता हूं। साथ ही इनके हेड ज्योति कुमार वर्मा जी और इनके तमाम साथियों से  अपेक्षा करूंगा कि वे इन्हें इस तरह तराशें ताकि उत्साह ज्ञान और अनुभव से ये भावी पत्रकार खुद को निखार सके। सबों के उज्जवल और बेहतर भविष्य की कामना के साथ मीडिया या पत्रकारिता में स्वागत है।

तुम मिले तो ज्वार आया

प्रकाशन :रविवार, 28 अगस्त 2011 kgxbj
कुंवर बैचेन
कुँवर बेचैन
तुम मिले तो ज्वार आया
जो हृदय-तल में छुपा था,
वह उमड़कर प्यार आया।

श्वास हर प्रश्वास में तुम
धड़कनों की प्यास में तुम,
नयन के द्वारे तुम्हीं हो
हृदय के आवास में तुम।

हाथ में जैसे किसी के
कीमती उपहार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।

खुशबुओं में घुल गए तुम
फूल से खिल-खुल गए तुम,
ज्योति के पूरे गगन में
धूप जैसे धुल गए तुम।

एक उजला दिन हमारी
जिंदगी के द्वार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।

क्यों न तन-मन को सजाऊँ
क्यों न नाचूँ क्यों न गाऊँ,
दूर तक डुबकी लगाऊँ
क्यों न जल में भीग जाऊँ।

युग-युगों के बाद
मोहक प्रीति का त्योहार आया,
तुम मिले तो ज्वार आया।

यमुना किनारे एक सप्ताह




मन ना माने मन की बात / हरदम बह जाए मन के साथ
मन निराला मन मतवाला मन का नहीं कोई ऱखवाला
यमुना तेरा रूप निराला, तेरी आभा तेरी धार दूर दूर तक केवल रफ्तार
आगरा की भीड़ भाड़ से दूर यमुना नदी के किनारे यमुना पंप के किनारे एक सप्ताह का बसेरा। जहां पर यह कहा जाए कि दुनियां की खबरें केवल छन छन कर आ रही थी तो भी कोई हर्ज  नहीं। यमुना नदी को यदि यही एक दो माह छोड़ दे तो दिल्ली में यमुना सड़े हुए नाले की तरह दिखती रही है। मगर यहां पर तो यमुना की जवानी रवानी धार ऱफ्तार देखकर तो लगता ही नही है कि हम उसी यमुना के पास है, जिसके लिए मन में ना भाव है ना ही कोई चाव है।
मगर आगरा के इसी यमुना कोदेखकर मेरा मन मयूर नाच उठा। अपने टेंट वाले कमरे में  गप्प शप्प के बीच भी कलरव करने की बजाय बेकल बेकाबू दूर दूर तक आर्तनाद करती यमुना की आवाज मुझे हमेशा लुभाती और मैं सुबह दोपहर शाम यमुना किनारे कुएं पर खड़ा होकर उसकी प्यास बेकली सबको अपने साथ ले जाने की पागलपन को देखता रहता। पानी के खेल में रोजाना उतरती और चढ़ती यमुनाको देखना भाता। पल पल रंग और रूप बदलती यमुना की आभा में गजब का सिंगार लगता। कभी पास बुलाने का मनुहार लगता कभी नेह निमंत्रण तो कभी देह निमंत्रण सा लगता। उसकी धार के साथ प्यार भरा आमंत्रण मानो यमुना में समाहिता होने का दे रहा था निमंत्रण।
 मैं भीकब तलक रूक पाता इसके सामने। मेरे मन में भी उठने लगा सुनामी महसूस होने लगा मानो मैं भी उतरकर उसमें अपना रूप अपनी ताकत वल शौर्य कला और सौंदर्य से रोक दूं उसकी विह्वलता। होकर साकार उसमें हो जाउं समाहित। लेकर अंगड़ाई रोक दूं नदी की बेकली। बुझा दूं और सबकुछ मिटा देने की अनबुझ प्यास, फिर शांत कर दूं यमुना की ज्वाला। दूर खड़ा मैं उसके किनारे महसूस कर रहा हूं,. मानो तेज धार और लहरों के बीच मैं खड़ा होकर कर रहा हूं मंगल प्रतिवाद। तेज थपेड़ों और अपने में मिलाने मिटाने  अंगीकार कर लेने की बेताबी बेकली के साथ  वो ले जाना चाहती है दूर दूर बहुत दूर तक अपने लिए अपना बनाकर अपनी धार में रफ्तार में प्यार में करके गिरफ्तार। हमेशा के लिए अपना बनाकर।
मैं भी हार सा रहा था इस बार उस बेकाबू बेजार धार केसमीप. सदियों से विह्वल और बेताबी से करती रही संहार। आज मन मे भी किसी बाल गोपाल सा बांध देने की लालसा जागी। मेरे भीतर मानो फन उठाकर कालिया जागने लगा हो। करने संहार और टीस देकर  उसको पीने की करने लगा हो कोशिश. लगा मानो उसके संग उतराता धार में कभी होकर पस्त बह जाता साथ साथ तो कभी मैहोकर सवार रोकने में सफल हो जाता उसकी बेचैनी को। कभी होकर समाहित उसके संग धार में खो जाता तो कभी लगता मानो आनंद तृप्ति सुख संतोष समर्पण से होकर आतुर लबरेज एकाएक बाहर निकलता उसकी ठंड़ी जल मगन शीतल कोमल आगोश से। एक सप्ताह तक रोजरोज मानो करता रहा उसके संग रास लीला। अठखेलियों के साथ करता उसकोतंग।लगता मानो उसने भी अपना मानकर,अपना बनाकर सबकुछ सहती रही, झेलती रही खेलती रही मेरे संग संग होकरमचलती उछलती कूदती रहीमेरे अंग अंग को करके सराबोर करती रही भरती रही तरंग उमंग।
ना जाने कैसै और कब बीत चला एक सप्ताह का प्रवास। उदास सा मैं खड़ा किनारे लेना चाह रहा था विदाई। लगा मानो पानी के उतार से उदास है मेरी यमुना। धार में रफ्तार में नरमी आ गई थी। शांत होकर कलरव करती मानो होकर उदास दे रही हो फिर आने के भावबिह्वल निमंत्रण के साथ विदाई। कह रही हो मानो लोग आते है देखकर चले जाते है, मगर तुमने किया मेरे संग संवाद तेरा आना तेरी लीला मुझे भी लगा प्रिय। शांतदेखकर मेरा मन होकर विह्वल होचाहे जो विनाश हो, पर तेरे रंग रूप के निराले की आभा तेरा सौंदर्य मुझे हमेशा भाता और लुभाता है।
जाने से एक दिन पहले फिर चढने लगी यमुना। दिल्ली और हरियामा की बारिश ने फिर से भर दी हो जान। मेरे जैसे ही और की टेंटो मे रह रहे हरियाणा डेढगांवा पंजाब यूपी और दिल्ली के टेंटों के भीतर पानी आ गया।केवल राजस्थानी लोगों ने टेंट के चारो तरफ पहले ही गड्ढा बनाकर यमुना को रोक दिया था। दयालबाग के निर्मल रासलीला के दरवाजे को पार करते ही यमुना नदी का तट दिखता। एक तरफ दूर से ताजमहल के गुबंद मानो बाय करता हुआ दिखता.तो दूसरी तरफ रोजाना यमुना मेरे भीतर आती और अपने संग ले जाती। प्यार से दुलार कर . आखिरी दिन चढाव के बाद भी पानी की धार को देखने मैं चला। एक तरफ दिल्ली जाने की बेकली के बाद भी यमुना को देखने और विदा लेने का लोभ नहीं छोड पाया। देखते ही मानो वह बोल पड़ी। लोग आते है और छोड़ जाते है बहुत कुछ।मगर तुम हो जो छोड़ कर जा रहे हो अपनी छाप। बादलों के अपने प्रेमी से मिलने की बेताबी और पागल रफ्तार के नीचे यमुना भी मानो मेरे भीतर उतर कर मुझे अपने लायक अपने ढंग से बनाकर ले चलना चाह रही हो बांहो में भरकर निगाहों में बसाकर दूर रहकर भी शायद अपना बनाकर.
फिर आने की लालसा के साथ लौट रहा हूं तो रास्ते भर आती रही यमुना की याद जो इस बार मन में बस गई मन में उतर गई मानो हमेशा-हमेशा के लिए।










Monday, August 29, 2011

कभी जिन्ना की हवेली थी, अब जिन्नात का डेरा है / - शिवनाथ झा -




  • http://www.mediadarbar.com/2318/jinnah-mumbai/

    मशहूर टेलीविजन प्रोग्राम कौन बनेगा करोड़पति में एक बार सवाल पूछा गया था, ”जिन्ना हाउस कहां है?” करीब तीन चौथाई लोगों ने इसे पाकिस्तान के शहरों में बताया, जबकि सही जवाब था मुंबई। जी हां, कभी अंग्रेजों से आजादी की लड़ाई में देश का नेतृत्व करने वाले जिन्ना का मकान आज भी हिन्दुस्तान की व्यवसायिक राजधानी मुंबई में मौजूद है। लेकिन आज यह इतना बदहाल है कि इसे ऐतिहासिक धरोहर कहने में भी शर्म आती है।

    पिछले दिनों मुंबई में था। सन् 1857 और 1947 के बीच स्वतंत्रता संग्राम में गुमनाम वीर योद्धाओं और शहीदों के जीवित वंशजों की खोज में जो देश की आजादी के 65 साल बीतने पर भी गुमनाम जिन्दगी जी रहे हैं। इस दरम्यान मुंबई स्थित मोहम्मद अली जिन्ना के निवास स्थान भी गया। स्थानीय पुलिसकर्मियों, मकान की देख रेख करनेवाले श्री दुबे जी और अन्य गणमान्य व्यक्तियों से बातचीत की। मेरे पास आवाक रह जाने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं था। हम चाहे भारत-पाकिस्तान संबंधों के बारे में कार्यालय में बैठकर चाहे जितना भी ढिन्ढोरा पीट लें कि हम सही दिशा की ओर उन्मुख हैं सच्चाई यह है कि सरकारी स्तर पर हम आज भी उनते ही कन्जेर्वेटिव हैं जितना 65 साल पहले थे।

    सरकार की ढीली-ढाली नीति, न्यायपालिका प्रक्रिया और कुछ दबंग लोगों की निगाह के कारण मोहम्मद अली जिन्ना का दक्षिण मुंबई के मालाबार हिल स्थित 2, मौंटप्लीजेंट रोड (अब भाऊसाहेब हीरेमार्ग) भवन अपनी किस्मत पर आज भी रो रहा है और सालों से इंतजार कर रहा है अपने नए स्वामी का जो इसे फिर से संवारे।

    सन् 1936 में लगभग दो लाख रूपये की लागत पर बनी और तीन एकड़ मे फैली मोहम्मद अली जिन्ना की यह कोठी, जो किसी जमाने में साउथकोर्ट के नाम से जानी जाती थी, आज जहरीले सापों का घर बन गई है। यह अलग बात है कि भवन के 100 गज की दूरी पर महाराष्ट्र के मुख्य मंत्री का आवास है। समुद्र की ओर मुख किये इस भवन का निर्माण क्लोड बाटली ने यूरोपियन स्टाइल से किया था। यह भवन स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान महात्मा गाँधी, जवाहरलाल नेहरु, सरदार बल्लभ भाई पटेल और अन्य नामी-गिरामी लोगों को देखा हैं। आज इस भवन की अनुमानित कीमत 80 करोड़ से भी अधिक होगी और इस बहुमूल्य भवन पर किसी का भी दिल आ सकता है चाहे कोई भी हों?

    यह भवन विवादस्पद है और मुंबई उच्च न्यायलय में पेंडिंग है। इस बीच सार्क देशों ने भारत सरकार से अनुरोध किया है कि चुंकि भारत में सार्क का कोई अधिकृत कार्यालय नहीं है और सार्क देशों के कला और संस्कृति को आपस में देखने-दिखाने के लिए यह भवन बहुत ही उपयुक्त होगा, इसलिए इस भवन को सार्क को दे दिया जाये। इस बात पर टिपण्णी करते हुए, महाराष्ट्र सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है, ”मुफ्त में कौन इसे नहीं लेना चाहेगा और खास कर तब, जब सरकार भी उसका साथ दे !”

    नियमतः, विशेष कर सर्वोच्च न्यायालय के एक मुकदमे के निर्णय के बाद, इस भवन पर बिना किसी हिचकिचाहट से मोहम्मद अली जिन्ना के वंशजों का हक बनता है लेकिन देखना यह है कि उनके वंशज कितने सामर्थवान हैं और सरकार की नियत उनके प्रति कैसी है? जो भी हो, सार्क ने इस भवन के गेट पर अपना दावा ठोंक दिया है और एक बोर्ड लटका दिया है जो यह कहता है कि प्रपोज्ड साईट फॉर साउथ एशिया सेंटर फॉर आर्ट एंड कल्चर।

    बहरहाल, पिछले दिनों देश में राजा महमूदाबाद और उनकी सम्पत्ति के हकदार बहुचर्चित रहे। यह मामला क्या केवल राजा साहब की सम्पत्ति तक ही सीमित रहेगा या फिर कानून के दायरे में अन्य पाकिस्तानियों की सम्पत्तियां जो भारत में हैं, उन पर भी लागू होगा ? चूंकि यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है, इसलिये पाकिस्तान चले गए अनेक मुहाजिर इस मामले में अपनी सम्पत्तियों के बारे में दावा पेश कर सकते हैं। यदि कानून राजा मेहमूदाबाद के उत्तराधिकारियों को उनकी सम्पत्ति लौटा देने का हुक्म देता है, तो फिर पाकिस्तान चले गए अन्य लोगों को क्यों नहीं ? यह तो एक प्रकार का विवाद का पिटारा है, जिसे भारत सरकार ने खोल दिया है। जूनागढ से लगाकर हैदराबाद चले गए मुहाजिरों की बांछे खिल गई है। कुछ ही दिनों में इस प्रकार के विवादों का ढेर लग जायेगा।

    बंटवारे के बाद जो पाकिस्तान चले गए उनके परिवार के बहुत सारे वंशज आज भी भारत में रहते हैं, और वे किसी न किसी दस्तावेज के आधार पर यह चुनौती देंगे कि वह अमुक व्यक्ति का कानूनी उत्तराधिकारी है, इसलिये अमुक सम्पत्ति उसकी है और उसे वह संपत्ति मिल जानी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय इस दिशा में उसके लिए सहायक बनेगा और भारत में रह गए पाकिस्तानियों के सगे संबंधियों को उक्त अचल सम्पत्ति पर अधिकार मिल जाएगा। भारत सरकार ने राजा मेहमूदाबाद सहित इस प्रकार के भगोडों की कुल 2186 सम्पत्ति जब्त की थी। इसमें 1100 सम्पत्ति के अकेले दावेदार राजा मेहमूदाबाद के पुत्र अमीर मोहम्मद खान उर्फ सुलेमान मियां को मिल जाएगी। शेष 1086 सम्पत्ति जो भारत सरकार के पास रहने वाली है। उसके दावेदार भी बिलों से निकल कर इस मांग को दोहराने वाले हैं कि उनके बाप दादा की सम्पत्ति इस निर्णय के तहत उन्हें लौटा दी जाएं। उक्त निर्णय मोहम्मद अली जिन्ना की पुत्री के लिए भी वरदान साबित होनेवाला है।

    जब 1949 के कस्टोडियन एक्ट और 1965 के शत्रु सम्पत्ति कानून की बात करते हैं, तब हमारे सामने मोहम्मद अली जिन्ना, जो 1947 में पाकिस्तान चले गए थे, के मुंबई स्थित बंगले का विवाद सामने आकर खडा हो जाता है। जिन्ना के बंगले का मामला पिछले कई वर्षों से मुंबई उच्च न्यायालय में चल रहा है। जाहिर है, उनकी उक्त सम्पत्ति को कस्टोडियन कानून के अंतर्गत भारत सरकार को अधिग्रहित करने में कोई हिचकिचाहट नहीं थी। जिन्ना ने उस समय भारत में रहनेवाले उनके किसी सगे संबंधी को वारिस बनाकर यह बंगला उन्हें सौंपा नहीं था। इसलिये बंगले पर सरकार के लिए कानूनी तौर पर कब्जा करने में कोई कठिनाई नहीं थी। लेकिन जवाहरलाल नेहरू के बीच में आ जाने से ऐसा नहीं हो सका।

    जब नहरी पानी विवाद संबंधी समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये तत्कालीन सिंचाई मंत्री काका साहेब गाडगिल पाकिस्तान गए थे, उस समय नेहरू जी ने उनसे कहा था कि वे जिन्ना से पूछें कि उनके बंगले का क्या करना है? काका साहेब गाडगिल ने जब जिन्ना से पूछा तो जिन्ना एकदम भावुक हो गए और कहने लगे कि जवाहरलाल से कहो मेरा बंगला मुझसे नहीं छीने। मैंने अपना यह बंगला कितने अरमानों से बनाया है। कुछ जानकारों का मानना है कि जिन्ना ने गाडगिल जी से यह भी कहा था कि क्या पाकिस्तान में सब कुछ ठीक ठाक हो जाने के बाद मैं भारत लौट कर अपने इस बंगले में रहूं ? पाकिस्तान जिन्ना ने अपनी हठधर्मी से बना तो लिया था, लेकिन वहां जिस प्रकार उन्होंने नवाबों और जमीदांरों का उत्पात देखा और कट्टरवादी मौलाना जिस तरह से पाकिस्तान को इस्लामी देश बनाने के लिए उतावले थे, उससे घबराकर मन ही मन जिन्ना अपनी गलती पर पछताने लगे थे। लेकिन उनमें इतना नैतिक साहस नहीं था कि वे पीछे हटते और अखंड भारत के लिए फिर से तैयार हो जाते। कुल मिलाकर जिन्ना के जीवन में भारत लौटने का अवसर कभी नहीं आया और माउंट प्लेजेंट रोड स्थित उक्त बंगला ज्यों का त्यों खडा रहा।

    जिन्ना की मृत्यु के समय भारत सरकार चाहती तो तुरंत हस्तगत कर लेती, लेकिन तत्कालीन कांग्रेसियों का जिन्ना प्रेम मन में से नहीं गया और वह बंगला अनिर्णित रहा। जिन्ना की मृत्यु के पश्चात् उनकी पुत्री दीना वाडिया ने उक्त बंगले का वारिसदार स्वयं को बतलाया और भारत सरकार से आग्राह किया कि उक्त बंगला उसको सौंप दिया जाए। इस बीच पाकिस्तान सरकार ने भारत से मांग की कि उक्त सम्पत्ति उसके निर्माता की है, इसलिए यादगार के बतौर उसके हवाले कर दी जाए। यही नहीं सरकार ने अपनी मंशा भी बतला दी कि वह बंगले में पाकिस्तान कौंसलेट खोलना चाहती है। जब दीना वाडिया ने अपना अधिकार जतलाया तो मामला कोर्ट में पहुंच गया। तब से शत्रु की यह सम्पत्ति कानूनी उलझनों में फंसी हुई है।
    वास्तव में तो 1949 में एवेक्यू प्रोपेरटी एक्ट के तहत यह बंगला महाराष्ट्र सरकार के अधीन चला गया है। लेकिन मामला कोर्ट के तहत होने के कारण महाराष्ट्र सरकार इसको अपने कब्जे में नहीं ले सकी है। इस समय इसके दो प्रबल दावेदार हैं। एक तो 91 वर्षीय जिन्ना की पुत्री दीना जो भले ही अमेरिका में रहती हों, लेकिन दीना का कहना यह है कि वह अपने पिता की एकमात्र संतान है, इसलिए उन्हें यह जायदाद मिलना चाहिए। लेकिन जिन्ना ने 30 मई 1939 में जो वसीयत की है, वह कुछ और ही कहती है।

    उक्त वसीयत के अनुसार उनकी तीन बहनें फातिमा, शीरिन और बिलकीस को उन्होंने अपनी चल अचल सम्पत्ति में हिस्सेदार बनाया है। उनके एक भाई अहमद को भी कुछ नगद धन राशि दी है। इसी प्रकार मुंबई विश्वविद्यालय और अंजुम ने इस्लाम को भी वसीयतनामे में शामिल किया है। इस वसीयत में दीना वाडिया के बारे में कहा गया है कि मैंने अपने मुवक्किल को यह बतलाया है कि मेरे दो लाख रुपए का छः प्रतिशत जोकि लगभग एक हजार रुपए होंगे उनको जीवन भर दिया जाता रहे और उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी संतानों में दो लाख रुपये का बंटवारा कर दिया जाए। इनमें पुरुष और स्त्री के बीच कोई अंतर नहीं होगा। इस वसीयत के चौथे लाइन में लिखा गया है कि मुंबई के मालाबार हिल के माउंटप्लेंजेंट रोड स्थित घर, उसकी समस्त जमीन, घर का समस्त सामान गाडियों सहित फातेमा जिन्ना को (जिन्ना की बहन) को दे दिया जाए। दीनावाडिया ने इस वसीयत को खारिज करते हुए कहा है कि मेरे पिता श्री मोहम्मद अली जिन्ना ने ऐसी कोई वसीयत अपने पीछे नहीं छोडी है। इस बात को लेकर मुंबई उच्च न्यायालय में वर्षों से यह मामला लंबित है। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि दीना ने जब पारसी युवक वाडिया से विवाह कर लिया उस पर जिन्ना बहुत नाराज थे। दीना ने उसी समय पाकिस्तान छोड दिया था।

    जिन्ना की जब मृत्यु हुई उस समय भी दीना उनके पास नहीं थी। भाई अहमद की तो भारत में ही मृत्यु हो गई थी। दो बहने विवाद के पश्चात मुंबई में स्थायी थी और केवल फातिमा जिन्ना उनके साथ थी। जब जिन्ना ने भारत को हमेशा के लिए अलविदा किया उस समय भी फातिमा उनके साथ थी। अयूब खान के समय में फातिमा की मृत्यु हुई।चूंकि फातिमा ने अयूब खान के विरुद्ध चुनाव लडा था,उसके पश्चात दोनों के बीच अच्छे संबंध नहीं थे। एक दिन सवेरे फातिमा जिन्ना को उनके घर में मृत पाया गया। फातिमा की एक नौकरानी ने जब उन्हें सवेरे मरा हुआ पाया तब लोगों को समाचार मिला। फातिमा जिन्ना ने अपनी आत्मकथा में बहुत कुछ लिखा है । मोहम्मद अली जिन्ना जब बीमार थे, उस समय उन्हें जियारत नामक हिल स्टेशन पर रखा गया था। वहां पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री लियाकत खान ने उनके साथ ऐसा हीन व्यवहार किया उसे पढकर आज भी लोगों की आंखों में आंसू आ जाते हैं। जिन्ना की मौत के समय केवल उनकी बहन फातिमा ही उनके साथ थी।

    पिछले दिनों जिन्ना के इस बंगले के उत्तराधिकारी के रूप में एक व्यक्ति का नाम और भी सामने आया। मोहम्मद इब्राहीम नामक एक व्यक्ति ने कोर्ट में याचिका दायर करके यह बतलाया कि वह फातिमा जिन्ना का लडका है। उक्त बंगला मोहम्मद अली जिन्ना ने मेरी मां के नाम पर वसीयत किया है। मेरी मां ने मुझे इस बंगले का कानूनी वारिसदार घोषित किया है। इसलिये यह सम्पत्ति दीना वाडिया की नहीं, बल्कि मेरी माता फातिमा की है। जिन्ना के इस विवादास्पद बंगले का सही वारिसदार कौन है ? इसका निर्णय करने संबंधी मुकदमे की सुनवाई मुंबई उच्च न्यायालय के दो न्यायमूर्ति डी के दिनेश और एन डी देशपांडे की खंड पीठ कर रही है। इसका निर्णय आने के पश्चात ही इस मामले का अंत आ सकेगा। लेकिन सवाल यह है कि अब तक महाराष्ट ªसरकार इस मामले में ढील क्यों दे रही है?

    बहरहाल, महाराष्ट्र मुख्यमंत्री कार्यालय के एक अधिकारी का कहना है कि चुंकि यह मामला वर्षों से मुंबई उच्च न्यायालय में लंबित है इसलिए इस विषय पर किसी प्रकार की टिप्पणी करना न्यायालय का अपमान करना होगा। वैसे, इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इस मामले को बहुत ही आसानी से समाप्त किया जा सकता है। एक अन्य अधिकारी ने कहा कि मुंबई जैसे शहर में इस भवन पर कोई भी कब्जा करना चाहेगा चाहे उसके लिए कितनी ही कीमत अदा करनी पड़े। आज कि तारीख में मुंबई शहर में इस भवन की कीमत 80 करोड़ से कम नहीं होगी !

मोबाईल कंपनियों की ठगी के खिलाफ



बिकनी गर्ल्‍स मैं कंप्‍यूटर पर ही देख लेता!

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राजपूत : 65 साल की उम्र में नंग-धड़ंग तस्‍वीर देखने की इच्‍छा नहीं होती : ग्राहकों को लूट रही हैं मोबाइल टाटा और रिलायंस मोबाइल कंपनियां : देश की दो जानी मानी मोबाइल कम्पनियां इन दिनों अपने ग्राहकों को जमकर लूट रहीं हैं, क्योंकि इन कंपनियों की लाखों कोशिशों के बाद भी बाजार पर इनकी पकड़ ढीली होती जा रही है. हम इन कंपनियों के बारे में ऐसा क्यों लिख रहे हैं, आइये कुछ उदाहरण दे देता हूँ. कुछ महीने पहले मैंने रिलायंस कम्पनी का एक मोबाइल लिया, जिसका नंबर 9313444115 था. जो प्रीपेड था. दोस्तों इस मोबाइल में मैं जब भी पचास या सौ रूपये का कूपन डालता तुरंत तीस चालीस रूपये काट लिए जाते. इसकी शिकायत जब मैं कस्टमर केयर में करता तो वहां से जबाब आता कि आपने अपने मोबाइल से आर वर्ल्‍ड खोला है और उस पर बिकनी गर्ल्स को देखा है, तब उनसे मेरा जबाब होता कि भाई मेरे पास कई कंप्यूटर हैं, जिनमें चौबीस घंटे इंटरनेट सेवा की सुविधा है, अगर मुझे बिकनी गर्ल्स या नंग-धड़ंग तस्वीरों को ही देखना होता तो मैं उस पर देख लेता. मैं 1200 के मोबाइल की छोटी स्क्रीन पर ऐसा क्यों करूंगा.
इस बात पर उनका हठ होता कि आपने देखा है या आपके बच्चों ने देखा होगा? मैं फिर उनसे कहता की भाई बच्चे तो अभी बिलकुल छोटे हैं, वो ऐसा कर ही नहीं सकते और फिर मेरा मोबाइल मेरे पास ही रहता है. ऐसा कहने पर कभी-कभी वो मेरा कटा हुआ पैसा वापस डाल देते, लेकिन इस ठगी की बात मैं कई और लोगों से सुनकर सन्न रह गया. तब जाकर मुझे आभास हुआ कि उक्त कम्पनी वाले जनता के साथ ठगी कर रहे हैं और मैंने रिलायंस से पल्ला झाड़ लिया.
अब आते हैं टाटा मोबाइल पर जब मैंने रिलायंस बंद किया तो उसके बाद टाटा का सेल लिया, जो अब तक मजबूरीबस प्रयोग कर रहा हूँ. क्योंकि बार-बार नंबर बदलने पर अपना काफी नुकसान होना महसूस करता हूँ. टाटा के मोबाइल में भी रिलायंस जैसे ठगी महसूस कर रहा हूँ, क्योंकि टाटा वाले भी मेरे लिए महाठग साबित हो रहे हैं. अब टाटा का जो नंबर मेरे पास है उसका नंबर 9289463240 है और अपनी गाढ़ी कमाई से जब कभी उसे रिचार्ज करवाता हूँ तुरंत उसका बैलेंस काट लिया जाता है. इस बात की शिकायत जब कस्टमर केयर पर करता हूँ तो उनका जबाब होता है कि आपने 5282 पर मैसेज करते हैं इस कारण आपका बैलेंस काट लिया जाता है.
अब कैसे समझाऊं मैं उन जनाब या मोहतरमा को जो मुझे ऐसा जबाब देते हैं, क्योंकि मेरे पास मैसेज करने का वक़्त ही नहीं होता और उनकी 5282 के बारे में मुझे कुछ पता ही नहीं है. इसी झमेले को मैं और लोगों से भी सुनता हूं कि टाटा में पैसे डालो तुरंत काट लिए जाते हैं. तब जाकर मुझे अहसास होता है कि ये कम्पनी भी देशवासियों का खून चूस रहीं हैं, क्‍योंकि टाटा पर कुछ ऐसे मैसेज आते हैं जिन्हें आप पढ़ना भी चाहें तो आपके पांच रूपये तुरंत फुर्र हो जाते हैं. कुल मिलाकर मैं कहना चाहूंगा कि देश के ये बड़े घरानों की कम्पनियां लुटेरी हैं और इनके मालिक देशवासियों के खून चूसकर दिन प्रतिदिन और अमीर होते जा रहे हैं और देश में गरीबों की संख्या में बढ़ोत्तरी के जिम्मेदार कहीं ना कहीं ऐसे लोग भी हैं, जो अपनी तिजोरी भरने के लिए पता नहीं किस-किस तरीके से लोगों को लूट रहे हैं.
हमारे पड़ोस में रहने वाले क्राइम पोस्ट अखबार के मुख्य सम्पादक सोम दत्त शर्मा भी इन कंपनियों की ठगी का शिकार हैं. शर्मा जी का कहना है कि जब कभी रिचार्ज करवाता हूँ तो कभी गाने के नाम पर तो कभी नंग-धड़ंग तस्वीर देखने के नाम पर बैलेंस काट लिए जा रहे हैं. पैंसठ वर्षीय शर्मा जी का कहना है कि मैंने ना कभी कोई गाना लोड किया ना ही नंग-धड़ंग तस्वीर देखने की इच्छा होती है, फिर भी ठगी का शिकार हो रहा हू.
लेखक पुष्‍पेन्‍द्र सिंह राजपूत फरीदाबाद में पत्रकार तथा न्‍यज वेबसाइट फरीदाबाद मेट्रो के संपादक हैं.
Comments
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Anonymous 2011-01-12 15:50:26

Reliance waale to be-wazah paisa kaat te hain. Lagta hai ki Anil Ambani ki compamy ne Raja ko iske liye *Khush * kiya tha . Warna be-wazah paisa kaat ne waale reliance par ab tak koi kaaryawaahi nahi hui, jabki is tarah ki dhokha-dhadi ke shikaar hazaaron log hue hain .


पंकज झा. 2011-01-12 21:09:38

टाटा फोटोन की लूट का मैं भी शिकार हुआ हूं. 550 रूपये का रिचार्ज कराने पर कहा गया कि महीने भर तक नेट यूज कर सकते हैं. जबकि तीन दिन में ही बेलेंस समाप्त हो गया. बाद में कहा गया कि महीने भर का अनलिमिटेड प्लान 555 रूपये का आता है.अब पांच रूपये के लिए थोड़े कोई तीस दिन के बदले तीन दिन का प्लान लेता. ज़ाहिर है जान-बूझकर रिचार्ज कराने गए मेरे सहयोगी को टाटा के लोगों ने भरमाया.
निश्चित ही आज भी भरोसे लायक कम्पनी केवल बी एस एन एल ही है लेकिन कहा जाता है कि निजी कंपनियां संचार अधिकारियों को पैसा खिला कर जान-बूझ कर उसकी खराब सर्विस कराते हैं ताकि निजी कंपनियों की दूकान चलती रहे.लेखक से पूर्ण सहमत.


Darinde
Himanshu Lumar Sharma 2011-01-13 13:55:33

Dear Pushpendra ji
in sabhi Tata Aur Reliance Ke karmachariyo ko gadhe pe baitha ke ghumana chahiye. par aap chinta na kare upar wala dekh raha hai .Aaj ye aap ka paisa kaat rahe hai. Kal enka koe aur katega .Ye bhi pareshan hone. Aah ! lagage enko bhi.


Anonymous 2011-01-13 14:31:30

:ooo:


P.S.Rajput
pushpendra singh rajput 2011-01-13 14:32:33

कुछ असर कलयुग का और कुछ कलयुगी सरकार का है हिमांशु भाई क्यू की देश के बड़े चोर लुटेरों का बाल भी बांका नही होता क्यू कि सरकार को चुनाव के लिए उन्ही से मोटा चन्दा मिलता है | देश की नामी गिरामी हस्तियों को जिनमे फ़िल्मी दुनिया और क्रिकेटर भी शामिल हैं उसनके हाँथ में सेल पकड़ाकर उन्हें करोडो देते हैं और उनसे कहलवाते हैं ये बैटरी एक महीने चलेगी,ये ऐसा होगा,वैसा होगा, उन्ही को देखकर जनता फंस जाती है और जनता को लूटकर ही उन्हें करोड़ों देते हैं |


call to grahak suraksh court
Darshan 2011-01-13 22:41:18

:ooo:
call to grahak suraksha court thy help well,his result is abov to good ,thy r good work
jai hind


madanpuri 2011-01-14 17:52:08

himansu bhai call sasati karke ye grahak ko apni taraph akarsit karte hai . bina kisi suchna ke dailer tone set kar dete hai or balance me se paise bhi kat lete hai. yah sab aam admi ko lutne ka kam hai.


नंग-धडंग तस्वीर देखने की उम्र क्या है
मदन कुमार तिवारी 2011-01-15 10:26:32

नंग-धडंग तस्वीर देखने की उम्र क्या है सर जी । वैसे पंकज झा जी ने सही लिखा है । आपलोगो ने एक और बात नही नोट की होगी । रात में सोने के पहले मोबाईल का बैलेंस लिख ले , सुबह में बैलेंस चेक करें बैलेंस कम मिलेगा । कारण है की निजी कंपनिया आपको सपने में भी बात करवाती हैं । इसलिये रात में पैसे काट लेती हैं सपने में बात करने का ।


मदन कुमार तिवारी 2011-01-15 10:29:01

वैसे ६५ की उम्र हीं होती है नंग-धडंग तस्वीर देखने का । उसके पहले तो ॥॥॥॥॥ हा हा हा :love: :) :)


Ajey Kumar Singh 2011-01-15 12:40:37

jab paise cut hi rahe hai to dekh hi lijiye. company aise bhi paisa to kat hi rahi hai to dekhne ka maza kyon kho rahe hai.


crime mai sipahi hissedaar
Rajvir Singh 2011-01-15 20:23:33

jha par mai rhata hu ek choki ka ek sipahi hai jo kuch logo ko jua khelne ka bhadava deta hai.hadh to jab vo gyi us sipahi ne 4 juaarion ko pakda or 80,000 rupy baramand kiye or n charo ko chod diya or jisne sipahi ko bulaya tha uske 6,000 vapas krne ke baad baki apne paas rakh liye.ye crime ko bhadhava hai ya kuch or...rajvir


telecom
anil kr saxena 2011-01-16 21:10:34

लेखक से पूर्ण सहमत.


Anonymous 2011-01-17 22:44:25

sub matherchod hai


subidha kam paresani jyada
mukesh sah 2011-01-18 13:13:09

in company ko jyada paise ho gya hai kisi or ko bhi change dene ko planing bana rhe hai


भ्रष्टाचारी व्यवस्था में आम जन की व्यथा
अंकित माथुर 2011-01-19 13:18:40

आदरणीय पुष्पेन्द्र जी-
आपका आलेख पढ़ा, पढकर ये महसूस होता है, कि जब प्रभावशाली पत्रकार समूह के सदस्यों की शिकायत के बावजूद कोई सुनवाई नही, तो एक आम इंसान कहां जाये? आप के पास तो भिन्न प्रकार के माध्यम हैं, जिनके उपयोग कर के आप कम से कम अपनी आवाज़ को बुलंद तो कर सकते हैं, लेकिन एक आम आदमी के पास तो वो साधन भी नही.
ये दूरसंचार कम्पनियां दोनों हाथों से भर भर कर भोली भाली जनता का शोषण कर रही हैं। अगली बार यदि आपके साथ ऐसा कुछ हो, तो
१.)ग्राहक सेवा प्रतिनिधी से बात समाप्त करने से पूर्व उससे अपनी बात का रेफ़ेरेंस नम्बर पूछें।
२.)अपने सर्कल की नोडल अधिकारी को ईमेल करें। (nodalofficer.har@tatatel.co.in)
फ़ोन नं० 9254000555
३.)ईमेल की कापी अपीलेट अथारिटी को सी सी करें। (आशीष पंडित, (0184) 6451801) ईमेल: AppellateAuthority.har@tatatel.co.in
४.)ईमेल में सभी बातों का क्रमानुसार तथ्यात्मक उल्लेख करे।

आशा है, आईंदा आपके साथ ऐसा कुछ भी नही होगा।

धन्यवाद...
अंकित माथुर...

Sunday, August 28, 2011

जन लोकपाल विधेयक आंदोलन २०११

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जन लोकपाल विधेयक (नागरिक लोकपाल विधेयक) के निर्माण के लिए जारी यह आंदोलन अपने अखिल भारतीय स्वरूप में ५ अप्रैल २०११ को समाजसेवी अन्ना हजारे एवं उनके साथियों के जंतर-मंतर पर शुरु किए गए अनशन के साथ आरंभ हुआ, जिनमें मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविंद केजरीवाल, भारत की पहली महिला प्रशासनिक अधिकारी किरण बेदी, प्रसिद्ध लोकधर्मी वकील प्रशांत भूषण, पतंजलि योगपीठ के संस्थापक बाबा रामदेव आदि शामिल थे। संचार साधनों के प्रभाव के कारण इस अनशन का प्रभाव समूचे भारत में फैल गया और इसके समर्थन में लोग सड़कों पर भी उतरने लगे। इन्होंने भारत सरकार से एक मजबूत भ्रष्टाचार विरोधी लोकपाल विधेयक बनाने की माँग की थी और अपनी माँग के अनुरूप सरकार को लोकपाल बिल का एक मसौदा भी दिया था। किंतु मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली तत्कालीन सरकार ने इसके प्रति नकारात्मक रवैया दिखाया और इसकी उपेक्षा की। इसके परिणामस्वरूप शुरु हुए अनशन के प्रति भी उनका रवैया उपेक्षा पूर्ण ही रहा। किंतु इस अनशन के आंदोलन का रूप लेने पर भारत सरकार ने आनन-फानन में एक समिति बनाकर संभावित खतरे को टाला और १६ अगस्त तक संसद में लोकपाल विधेयक पास कराने की बात स्वीकार कर ली। अगस्त से शुरु हुए मानसून सत्र में सरकार ने जो विधेयक प्रस्तुत किया वह कमजोर और जन लोकपाल के सर्वथा विपरीत था। अन्ना हजारे ने इसके खिलाफ अपने पूर्व घोषित तिथि १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाने की बात दुहराई।

अनुक्रम

[छुपाएँ]

[संपादित करें] इतिहास

[संपादित करें] अप्रैल २०११

५ अप्रैल २०११ को एक सशक्त लोकपाल विधेयक के निर्माण की माँग पर सरकारी निष्क्रियता के प्रतिरोध में अन्ना हजारे ने आमरण अनशन शुरु कर दिया। भ्रष्टाचार के खिलाफ उनकी इस मुहिम में अरविंद केजरीवाल, किरण बेदी, प्रशांत भूषण, बाबा रामदेव एवं अन्य अनेक प्रसिद्ध समाजसेवी शामिल थे। सरकार ने इसे उपेक्षित करना जारी रखा। इस अनशन को भारत एवं शीघ्र ही विश्व के संचार माध्यमों में विस्तृत रूप से प्रकाशित और प्रसारित किया जाने लगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी इस कोशिश को शीघ्र ही व्यापक जनसमर्थन मिलने लगा। भारत के प्रायः सभी शहरों में युवा सड़कों पर उतर आए एवं इसके समर्थन में प्रदर्शन किया तथा पर्चे बाँटे।
अन्ना हजारे के अनशन के देशव्यापी जन आन्दोलन के रूप में फैल जाने से चिंतित सरकार ने जनलोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये झटपट एक समिति की घोषणा की। उसने १६ अगस्त से पहले संसद में एक मजबूत लोकपाल विधेयक पास कराने पर भी सहमति प्रकट कर दी। इस तरह यह अनशन समाप्त हुआ और भ्रष्टाचार के विरुद्ध पनपता जन आंदोलन मजबूत लोकपाल के निर्माण की आशा के साथ समाप्त हुआ। किंतु सरकारी मंशा संदिग्ध थी इसलिए अन्ना हजारे ने साथ ही घोषणा की कि यदि आगामी १५ अगस्त तक अपेक्षित लोकपाल विधेयक निर्मित नहीं हुआ तो वे १६ अगस्त से पुनः अनशन पर जाएँगे।

[संपादित करें] लोकपाल मसौदा समिति

अप्रैल में किए गए अन्ना हजारे के अनशन की समाप्ति की शर्तों के अनुरूप सरकार ने १० सदस्यीय लोकपाल मसौदा निर्माण समिति के निर्माण की घोषणा की। इसमें सरकार के ५ एवं नागरिक समाज के ५ प्रतिनिधि रखे गए। अन्ना हजारे ने सरकार के संवैधानिक प्रावधानों की बाध्यता वाले तर्क का विरोध न करते हुए किसी मंत्री को समिति का अध्यक्ष होना स्वीकार कर लिया। किंतु इस समिति के मंत्रियों ने अपनी मनमानी की। प्रधानमंत्री और न्यायधीशों को लोकपाल के दायरे में लाने के मुद्दे पर नागरिक समाज के प्रतिनिधियों और सरकार के बीच विरोध बना रहा। केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि भविष्य में क़ानून बनाने के लिए नागरिक समाज की राय नहीं ली जाएगी। [1] अंततः मंत्रियों ने अन्ना हजारे द्वारा प्रस्तुत जन लोकपाल के सभी महत्वपूर्ण सुझावों को मानने से इनकार कर दिया। दिखावे के लिए जन लोकपाल के वे सभी बिंदु मान लिए गए जो सरकारी मंत्रियों और सांसदों, एवं न्यायधिशों को लोकपाल की पहुँच से बाहर रखते थे। अंततः सरकारी मंत्रियों के रवैये से निराश अन्ना हजारे के साथियों ने जन लोकपाल का मसौदा अलग से निर्मित किया। और इस तरह समिति ने दो मसौदे का निर्माण किया जिसे केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने रखा गया। वहाँ भी मंत्रियों के मसौदे को तो पूर्णतः प्रस्तुत किया गया किंतु जन लोकपाल का सारांश रखा गया। और अपेक्षा के अनुरूप मंत्रिमंडल ने मंत्रियों के मसौदे को अपनाकर संसद में पेश करने के लिए सहमति दे दी।

[संपादित करें] संसद में प्रस्तुत लोकपाल विधेयक

४ अगस्त २०११ को संसद में लोकपाल विधेयक पेश किया गया। सरकार के लोकपाल बिल में प्रधानमंत्री को उनके कार्यकाल के दौरान इसके दायरे से बाहर रखा गया है। लेकिन सभी भूतपूर्व प्रधानमंत्री इसके दायरे में हैं।
इस विधेयक के अनुसार लोकपाल कमिटी होगी जिसके चेयरमैन वर्तमान या सेवानिवृत्त जज होंगे. इसमें आठ सदस्य होंगे जिसमें से चार अनुभव प्राप्त क़ानून को जानने वाले लोग होंगे। लोकपाल में जांच की समय सीमा सात साल रखी गई है। [2]

[संपादित करें] अगस्त २०११ अनशन

भारत का ६५ वाँ स्वाधीनता दिवस समारोह अन्ना हजारे द्वारा अप्रैल के अनशन की समाप्ति की इस घोषणा की छाया में हुआ कि यदि १५ अगस्त तक सरकार ने लोकपाल विधेयक पास नहीं कराया तो वे पुनः अनशन करेंगें। १५ अगस्त से कई दिन पूर्व ही यह स्पष्ट हो चुका था कि १६ अगस्त से घोषित अनशन जरूर होगा। सरकार ने इसे रोकने की हर तरह की कोशिश आरंभ कर दी। दिल्ली पुलिस ने १ अगस्त तक जंतर मंतर पर अनशन की अनुमति देने से इनकार कर दिया। इसके पश्चात अन्ना हजारे ने चार अन्य स्थान सुझाकर वहाँ अनशन करने की अनुमति माँगी किंतु वह भी नहीं दी गई। अंततः १३ अगस्त को अन्ना हजारे ने घोषणा की कि यदि उन्हें अनशन की इजाजत नहीं दी गई तो वे जेल भरो आंदोलन शुरु करेंगे। साथ ही उन्होंने पानी भी त्याग देने की घोषणा की। दिल्ली पुलिस ने जेपी पार्क में अनशन करने की अनुमति २२ प्रतिबंधों के साथ दी। अन्ना हजारे ने इनमें से ६ शर्तों को मानने से इनकार कर दिया। इनमें प्रदर्शनकारियों की संख्या ५००० तक सीमित रखने, अनशन ३ दिन तक ही करने, अनशन स्थल पर लाउडस्पीकर का प्रयोग न करने, टेंट न लगाने आदि की शर्तें शामिल थीं। [3]
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत के ६५ वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हुए एक तरफ तो भ्रष्टाचार को समाप्त करने की इच्छा जताई मगर साथ ही उसके लिए किसी भी तरह के प्रदर्शन को असंवैधानिक करार दिया। अन्ना हजारे सारा दिन राजघाट पर चिंतन करते रहे और शाम को अनशन के जारी रखने की घोषणा की। 'उन्होंने कहा, "हम सुबह अनशन के लिए जेपी पार्क जाएँगे. हमें पता चला है कि वहाँ धारा १४४ लगी है पर अगर हमें वहाँ जाने से मना किया तो हम उसी जगह बैठ जाएँगे कि ले चलो जहाँ चलना है। प्रशासन उन्हें जहाँ भी ले जाए उनका अनशन वहीं होगा, "हम जेल में अनशन पर बैठेंगे, वहाँ ले गए और अगर फिर छोड़ दिया तो वापस जेपी पार्क पर आकर बैठ जाएँगे।" [4]
१६ अगस्त भारतीय सत्ता और जनता की शक्ति की परीक्षा का दिन था। पुलिस ने अनशन से निबटने की पूरी तैयारी कर रखी थी। अनशन शुरु करने के लिए तैयार होते हुए अन्ना एवं उनके साथियों को पुलिस ने दिल्ली के मयूर विहार स्थित सुप्रीम इन्क्लेव से करीब साढ़े सात बजे अनशन शुरु करने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया। [5] पुलिस ने वहां मौजूद लोगों को बताया कि वो अन्‍ना को अनशन स्‍थल ले जा रहे हैं। उन्होंने जीवन अनमोल अस्पताल के पास मीडिया और अन्‍ना समर्थकों को आगे बढ़ने से रोक दिया। गिरफतार कर दिल्ली के सिविल लाइन्स पुलिस मेस ले जाये जाने के फौरन बाद उन्होंने वहीं अपना उपवास आरंभ कर दिया और पानी लेने से भी इनकार कर दिया। [6] दिल्ली की एक विशेष अदालत में आगे आंदोलन न करने और अपने समर्थकों को आंदोलन करने के लिए न कहने जैसी शर्तों वाले निजी मुचलका न देने के बाद अदालत ने अन्ना हज़ारे और उनके सहयोगियों को सात दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। पुलिस ने उन्हें तथा अन्य कार्यकर्ताओं को तिहाड़ जेल भेज दिया।

[संपादित करें] देशव्यापी प्रदर्शन

अन्ना हजारे की गिरफ्तारी के बाद पूरे देश में जम्मू से कर्नाटक तक और कोलकाता से जयपुर तक सैकड़ों लोगों ने सड़कों पर उतर कर विरोध प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन शुरू हो गया। केवल दिल्ली में ही 3 हजार से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया गया। दिल्ली पुलिस ने दिल्ली के 12 स्टेडियमों को जेल में तब्दील कर दिया। [7] महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले में स्थित अन्ना हज़ारे के गाँव रालेगण सिद्धि में उनकी गिरफ़्तारी की ख़बर पहुँचते ही गाँव निवासी अपने जानवरों सहित सड़क पर आ गए और रास्ता रोक दिया। दुकानें और स्कूल बंद रहे तथा सैंकड़ों लोगों ने उपवास आरंभ गर दिया। देश की वाणिज्यिक राजधानी मुंबई के आज़ाद मैदान में बडी़ संख्या में लोगों ने एकत्रित होकर जनलोकपाल बिल का समर्थन और अन्ना हज़ारे की गिरफ़्तारी का विरोध किया। पुणे और नासिक में 'मी अन्ना हज़ारे' यानी मैं अन्ना हज़ारे लिखी हुई गाँधी टोपियाँ पहने लोगों ने मोर्चा निकाला। पटना में गाँधी मैदान के पास कारगिल चौक से लेकर डाकबंगला चौराहा और बेली रोड तक अलग-अलग जत्थों में लोग सड़कों पर निकले। जिनमें रोष था किंतु वे हिंसा या तोड़फोड़ जैसी कार्रवाई नहीं कर रहे थे। उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में उच्च न्यायालय के अधिवक्ताओं ने हड़ताल कर दिया। जयपुर में अन्ना के समर्थन में उद्योग मैदान में तीन दिनों का क्रमिक अनशन करने का निर्णय लिया। चंडीगढ़, पंजाब और हरियाणा में विभिन्न स्थानों पर वकीलों, शिक्षाविदों और कार्यकर्ताओं ने रैलियाँ निकाली। पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता सहित राज्य के विभिन्न हिस्सों में विरोध प्रदर्शन हुए।
हैदराबाद में दो जगहों पर बड़े प्रदर्शन हुए। इंदिरा पार्क में सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन किया और सौ लोग अनशन पर बैठे। दूसरी तरफ तेलुगु देशम पार्टी ने एक रैली निकाली और अपने नेता चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व ने दिन भर का अनशन किया। विजयवाड़ा, वारंगल, तिरुपति और विशाखापट्टनम आदि में भी अन्ना के समर्थन में प्रदर्शन हुए। तमिलनाडु के चेन्नई, कोयबंटूर और मदुराई सहित कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए। केरल और कर्नाटक में भी बड़ी संख्या में लोग विरोध प्रदर्शन के लिए सड़कों पर उतरे। [8] शाम को दिल्ली के इंडिया गेट और छत्रसाल स्टेडियम में सैकड़ों लोगों ने इकट्ठा होकर मोमबत्तियाँ जलाकर विरोध प्रदर्शन किया। यह प्रदर्शन १७ अगस्त को भी तिहाड़ जेल में बंद अन्ना हजारे के समर्थन में जारी रहा। मुंबई में ५ बड़ी रैलियाँ निकाली गई। पटना में जुनियर डॉक्टरों ने हड़ताल किया। भोपाल में स्कूली बच्चों, छात्रों और प्राध्यापकों, वकीलों एवं कई सरकारी कर्मचारियों ने प्रदर्शन में भाग लिया। दिल्ली में छत्रसाल स्टेडियम प्रदर्शन कारियों का कारागार बना रहा। अंदर और बाहर हजारों लोग जमा थे जिन्होंने अन्ना की ही तरह रिहा होने से इनकार कर दिया। शाम चार बजे हजारों लोगों ने स्वतः ही इंडिया गेट पहुँचकर जंतर-मंतर की ओर मार्च शुरू कर दिया। [9]

[संपादित करें] तिहाड़ जेल में

अन्ना को मिल रहे देशव्यापी समर्थन के दबाब में सरकार ने उन्हें मुक्त करने का फैसला किया। १६ अगस्त की ही शाम साढ़े सात बजे तक दिल्ली पुलिस ने विशेष अदालत से अन्ना की रिहाई के लिए आवेदन किया जिसे मान लिया गया। लेकिन ने अन्ना ने रिहाइ के बाद अपने गाँव लौट जाने या दिल्ली में तीन दिन अनशन कर लेने की शर्त के साथ रिहा होने से इनकार कर दिया और तिहाड़ में ही रात बिताई। जेल के कई कैदियों ने उनके समर्थन में भोजन लेने से इनकार कर दिया। जेल के बाहर हजारों लोगों का हुजूम उनका समर्थन करने के लिए डटा रहा। अन्ना ने बिना शर्त प्रदर्शन करने की अनुमति मिलने तक तिहाड़ जेल में ही अनशन जारी रखने का फैसला किया। १७ अगस्त को दिन भर दिल्ली पुलिस अन्ना को तिहाड़ से बाहर करने के लिए माथा-पच्ची करती रही। उसने अन्ना तथा उनके रिहा साथियों किरण वेदी तथा उनके समर्थन में पहुँचे लोगों मेधा पाटकर, स्वामी अग्निवेश, आदि से भी बात की। शाम तक दिल्ली पुलिस ने उन्हें अनशन के लिए रामलीला मैदान का प्रस्ताव दिया जिसे अन्ना ने स्वीकार कर लिया। मगर उन्होंने दिल्ली पुलिस के ३ दिन का प्रदर्शन करने की शर्त को मानने से इनकार कर दिया। उन्हें बीमार बताकर तिहाड़ से बाहर करने के लिए बुलाए गए एंबुलेंस को अन्ना समर्थकों ने जेल तक पहुँचने ही नहीं दिया। दिल्ली पुलिस ने लोगों पर बल-प्रयोग का साहस नहीं किया। १७ अगस्त की रात भी तिहाड़ ही आंदोलन की धूरी बना रहा। अन्ना कम-से-कम ३० दिनों तक अनशन से कम पर राजी नहीं थे। देर रात को दिल्ली के पुलिस आयुक्त ने किरन बेदी, प्रशांत भूषण, मनीष सिसौदिया और अरविंद केज़रीवाल वाली अन्ना टीम के साथ बैठक की। [10]
तीन दिन तिहाड़ जेल में गुजारने के बाद जब अन्ना हजारे पौने 12 बजे बाहर निकले तो जोश से भरे हुए दिखे। उन्होंने इंकलाब जिंदाबाद और भारत माता की जय के नारे के साथ अपने समर्थकों का जोश बढ़ाया। समर्थकों को संदेश देने के बाद अन्ना हजारे जुलूस के साथ मायापुरी की ओर रवाना हो गए। खुले ट्रक में अन्ना के जुलूस के साथ- साथ हजारों लोगों की भीड़ हाथ में तिरंगा लिए उनके साथ पैदल मार्च कर रही थी। दिल्ली की सड़कों पर ऐसा नज़ारा शायद ही पहले देखा गया हो , जब तेज बारिश में हाथ में झंडा लिए नारे लगाते हुआ जनसैलाब आगे बढ़ा। मायापुरी चौक पर पहुंचने के बाद अन्ना कार से राजघाट पहुंचे।

[संपादित करें] रामलीला मैदान पर

तिहाड़ जेल में ३ दिन बिताने के बाद रामलीला मैदान को अनशन के लिए तैयार कर दिए जाने पर अन्ना हजारे जुलूस के साथ मायापुरी और राजघाट होते हुए 18 अगस्त को दोपहर बाद सवा दो बजे वहाँ पहुंच गए। वहाँ उनके आने का सुबह से इंतजार कर रहे समर्थकों ने नारों के साथ उनका स्वागत किया।

[संपादित करें] पहला संवोधन

रामलीला मैदान में मंच पर आते ही अन्ना ने भी भारत माता की जय , इंकलाब जिंदाबाद के नारों के साथ अपने समर्थकों का अभिवादन किया और उन्हें अपना संदेश दिया- "1942 में हमारे देश में एक क्रांति हुई थी , जिससे अंग्रेज चले गए थे। अंग्रेज चले गए , लेकिन भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ। इसलिए अब आजादी की दूसरी लड़ाई की शुरुआत हो गई है। देश के सभी लोगों ने मेरे भाई , मेरी बहन , युवा - युवतियों ने यह जो मशाल जलाई है , इस मशाल को कभी बुझने नहीं देना। चाहे अन्ना हजारे रहे न रहे मशाल जलती रहेगी। अभी एक लोकपाल नहीं इस देश में पूरा परिवर्तन लाना है। देश के गरीब महकमे को हम कैसे महल दे सकेंगे यह सोचना है। क्रांति की शुरुआत हो चुकी है। मैं आज ज्यादा कुछ नहीं बोलूंगा क्योंकि पिछले तीन दिनों में मेरा वजन 3 किलो कम हो गया है , लेकिन आप लोग जो आंदोलन देश में चला रहे हैं उसकी ऊर्जा मुझे मिल रही है। '
कई देशों को युवकों ने बनाया है , मुझे पूरा विश्वास है इस देश का युवा जग चुका है और अब इस देश का भविष्य उज्ज्वल है। इन गद्दारों ने देश को लूटा है अब हम भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं करेंगे। अपनी आजादी को हम हरगिज भुला सकते नहीं। सर कटा सकते हैं लेकिन सर झुका सकते नहीं। मैं खुश हूं कि कोई तोड़फोड़ नहीं हुई और न ही राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचा। अब मैं ज्यादा कुछ नहीं कहूंगा , लेकिन मैं आपसे फिर बात करूंगा। "

तिहाड़ के बाहर अन्ना का संदेश मंगलवार से अनशन पर बैठे अन्ना ने तिहाड़ के बाहर समर्थकों को सम्बोधित करते हुए पहले भारत माता और वंदेमातरम के नारे लगाए। उन्होंने कहा , '1947 में अधूरी आजादी मिली। 1947 में मिली आजादी के लिए 1942 में आंदोलन शुरू हुआ था और अब 16 अगस्त से दूसरी आजादी की लड़ाई शुरू हो गई हैं जिसे आपको अंजाम तक पहुंचाना है। उन्होंने कहा कि अन्ना रहे या न रहे लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ यह मशाल जलती रहनी चाहिए। अन्ना ने कहा , ' जेल के बाहर 4 दिनों से बैठे आप लोगों को मैं धन्यवाद देता हूं और बच्चे , बूढ़े और युवाओं से अपील करता हूं कि वे अधिक से अधिक संख्या में रामलीला मैदान पहुंचे। ' उन्होंने समर्थकों से अपील की कि कोई तोड़फोड़ और राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान नहीं पहुंचाएं और ट्रैफिक का पूरा ध्यान रखें। छोटे से अपने संदेश में उन्होंने समर्थकों से कहा कि वह अब उनसे रामलीला मैदान पर ही बात करेंगे। इसके बाद एक खुले ट्रक में सवार होकर अन्ना जुलूस के साथ मायापुरी रवाना हो गए।
इससे पहले अन्ना के प्रमुख सहयोगी केजरीवाल ने कहा कि इस आंदोलन के दौरान किसी भी राजनीतिक पार्टी के नेता को अन्ना के मंच पर जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी। हां , यदि कोई हमारे समर्थन में आता है तो उसका स्वागत है। केजरीवाल से यह पूछे जाने पर कि बीजेपी के कार्यकर्ता इसमें बढ़ - चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं , तो उन्होंने कहा , ' हम किसी भी पार्टी के कार्यकर्ता और नेता को मना नहीं कर रहे हैं , उनका स्वागत है। वे यहां आकर अन्य समर्थकों के बीच बैठ सकते हैं। '
रामलीला मैदान में अन्ना की अनशन की तैयारी जोर शोर से चल रही है। रातभर काम चलता रहा। सबसे पहले अन्ना के लिए मंच बनाने का काम शुरू हुआ। टीम अन्ना ने कहा कि अन्ना मंच पर अकेले ही बैठेंगे। मैदान का जितना हिस्सा ठीक हो चुका था , उसमें साउंड सिस्टम भी लग चुका था। मोबाइल टॉयलेट्स भी मंगवाए जा चुके थे। मंच पर बैठे अन्ना दूर बैठे लोगों को भी साफ नजर आ सकें , इसके लिए यहां 10 एलसीडी स्क्रीन भी लगाए जाएंगे।
गुरुवार को सुबह करीब आठ बजे जब एमसीडी के लोग रामलीला मैदान पहुंचे तो यहां का हाल बेहद ही खस्ता था। चारों तरफ कीचड़ और जगह जगह गड्ढे। एमसीडी ने करीब 250 लोगों को यहां काम पर लगा दिया। कीचड़ इतना ज्यादा था कि शाम होने तक भी मैदान के करीब 30 % हिस्से पर ही काम हो पाया। सुबह 10 बजे एमसीडी के डिप्टी मेयर अनिल शर्मा यहां पहुंचे। उनके आने के बाद काम में तेजी आ गई। उन्होंने बताया कि हमने जल बोर्ड से पानी का इंतजाम करने के लिए और शेल्टर बोर्ड से मोबाइल टॉयलेट का इंतजाम करने के लिए कहा है। पार्किंग का इंतजाम पुलिस करेगी लेकिन हमारी सभी पार्किंग अन्ना समर्थकों के लिए खुली रहेंगी।
शुक्रवार सुबह से रामलीला मैदान में बड़ी संख्या में पुलिस कर्मी तैनात कर दिए गए। मेन गेट के पास पुलिस ने मेटल डिटेक्टर के साथ ही स्कैनिंग मशीन भी लगा दी। स्निफर डॉग से पूरे मैदान की जांच की गई। इसके बाद पुलिस ने लोगों के मैदान पर आने पर पाबंदी लगा दी। यहां काम कर रहे लोगों के अलावा , अन्ना टीम के सदस्य ही अंदर आ जा रहे थे। सुबह से अन्ना टीम के वॉलेंटियर्स यहां पहुंच गए थे। उन्होंने बताया कि हम हर पल की जानकारी अरविंद केजरीवाल तक पहुंचा रहे हैं और वह अन्ना को इस बारे में बता रहे हैं।
मैदान के बाहर मेला लग चुका है। खोमचे रेहड़ी वालों के साथ साथ तिरंगे झंडे बेचने वालों ने भी मोर्चा संभाल लिया है। अन्ना के अनशन ने तिरंगे झंडे का भाव भी बढ़ा दिया है। जो झंडा पहले 5 रुपये में मिलता था , वो उसके लिए यहां 10 से 20 रुपये तक वसूले जा रहे हैं। शर्ट की जेब पर पिन से लगाया जाने वाला छोटा सा फ्लैग भी 10 रुपये से कम में नहीं मिल रहा है। एक तरफ जहां झंडे के नाम पर लूट मची है , तो दूसरी तरफ रेहड़ी खोमचे वालों को भी बिक्री का नया फंडा मिल गया है। मैदान के बाहर छोले कुलचे बेच रहा एक शख्स लोगों को आकर्षित करने के लिए आवाज लगा रहा था - अन्ना कुलचा खा लो।
फ्री ठंडा पानी रेहड़ी पर बिकने वाला ठंडे पानी का एक गिलास पीने के लिए आमतौर पर एक रुपया खर्च करना पड़ता है , लेकिन अन्ना के एक समर्थक ने रामलीला मैदान के अंदर कई रेहडि़यां लगवा दी थीं और उसके समर्थन का तरीका यह था कि इन रेहडि़यों पर फ्री में ठंडा पानी पिलाया जा रहा था। पुलिस वाले , वॉलंटियर्स , मीडियाकर्मी व अन्य लोग इसका पूरा फायदा उठा रहे थे।

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