Sunday, February 28, 2021

तुलसीदास की भक्ति

 *"श्री.तुलसीदासजी"* से एक भक्त ने पूछा कि...

*"महाराज आप श्रीराम के इतने गुणगान करते हैं , क्या कभी खुद श्रीराम ने आपको दर्शन दिए हैं * ?.. 

तुलसीदास बोले :- " हां "

भक्त :- महाराज क्या आप मुझे भी दर्शन करा देंगे ???

तुलसीदास :- " हां अवश्य "

★ *तुलसीदास जी ने ऐसा मार्ग दिखाया कि एक गणित का विद्वान भी चकित हो जाए  !!!*

*तुलसीदास जी ने कहा , ""अरे भाई यह बहुत ही आसान है  !!! तुम श्रीराम के दर्शन स्वयं अपने अंदर ही प्राप्त कर सकते हो.""*

*हर नाम के अंत में राम का ही नाम है.*


इसे समझने के लिए तुम्हे एक *"सूत्रश्लोक "* बताता हूं .

यह सूत्र किसी के भी नाम में लागू होता है !!!

भक्त :-" कौनसा सूत्र महाराज ?"

*तुलसीदास* :- यह सूत्र है ...

*||"नाम चतुर्गुण पंचतत्व मिलन तासां द्विगुण प्रमाण || || तुलसी अष्ट सोभाग्ये अंत मे शेष राम ही राम || "*


 इस सूत्र के अनुसार 

★ *अब हम किसी का भी नाम ले और उसके अक्षरों की गिनती करें*...

*१)उस गिनती को (चतुर्गुण) ४ से गुणाकार करें*.

*२) उसमें (पंचतत्व मिलन) ५ मिला लें.*

*३) फिर उसे (द्विगुण प्रमाण) दुगना करें.*

*४)आई हुई संख्या को (अष्ट सो भागे) ८ से विभाजित करें .*

*"" संख्या पूर्ण विभाजित नहीं होगी और हमेशा २ शेष रहेगा!!!  ...

*यह २ ही "राम" है। यह २ अंक ही " राम " अक्षर हैं*...


★विश्वास नहीं हों रहा है ना???

चलिए हम एक उदाहरण लेते हैं ...

आप एक नाम लिखें , अक्षर कितने भी हों  !!!

★ उदा. ..निरंजन... ४ अक्षर 

१) ४ से गुणा करिए  ४x४=१६

२)५ जोड़िए  १६+५=२१

३) दुगने करिए २१×२=४२

४)८ से विभाजन करने पर  ४२÷८= ५ पूर्ण अंक , शेष २ !!!

*शेष हमेशा दो ही बचेंगे,यह बचे २ अर्थात्  - "राम" !!!*


*विशेष यह है कि सूत्रश्लोक की संख्याओं को तुलसीदासजी ने विशेष महत्व दिया है*!!!

★1) *चतुर्गुण* अर्थात् *४ पुरुषार्थ* :- *धर्म, अर्थ, काम,मोक्ष* !!!

★2) *पंचतत्व* अर्थात् ५ *पंचमहाभौतिक* :- *पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु , आकाश*!!!

★3) *द्विगुण प्रमाण* अर्थात् २ *माया व ब्रह्म* !!!

★4) *अष्ट सो भागे* अर्थात् ८ *अाठ दिशायें* 

( *चार दिशा* :-पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण , 

 *चार उपदिशा* - आग्नेय,नैऋत्य, वायव्य, ईशान्य, *आठ प्रकारची लक्ष्मी* (आग्घ, विद्या, सौभाग्य, अमृत, काम, सत्य, भोग आणि योग

लक्ष्मी )


★अब यदि हम सभी अपने नाम की जांच इस सूत्र के अनुसार करें तो आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि हमेशा शेष २ ही प्राप्त होगा ...

इसी से हमें श्री तुलसीदास जी की  बुद्धिमानी और अनंत रामभक्ति का ज्ञान होता है !!!

🙏🏻 *जय श्रीराम* 🙏🏻

सतसंग सुबह DB 01/03

 **राधास्वामी!! 01-03-2021- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                 

   (1) चेत चलो यह सब जंजाल। काम न आवे कुछ धन माल।।-(राधास्वामी गुरु जब होयँ दयाल। चरन शरन दे करें निहाल।।) (सारबचन-शब्द-पहला चितावनी भाग दूसरा-पृ.सं. 279)                                           

  (2) मिले मोहि आज गुरु पूरे। ओहो हो हो अहा हा हा।।-(मिला अब राधास्वामी पद मूरे। ओहो हो हो अहा हा हा।।) (प्रेमबानी-2-शब्द-14-पृ.सं.415,416)                                           

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



परम गुरु मेहताजी महाराज-

भाग 1- कल से आगे-( 38)-


 4 सितंबर, 1940 की शाम के सत्संग में हुजूर ने फरमाया- हुजूर साहबजी महाराज ने "गुरु गोविंद सिंह और उनके पाँच प्यारों" के संबंध का बचन एक आस गरज को सामने रखकर लिखा था। बचन पढ़ने से पता चलता है कि जिस दौर से सत्संग आजकल गुजर रहा है उसमें और सिक्खों की उस जमाने की हालत में पूर्ण समानता है। जो सूरतेहाल सिक्खों पर उस जमाने में गुजर रही थी उसी तरह की एक नई सूरत हमारे संगत के सामने भी दरपेश है।                                      

   जिस तरह से जब गुरु गोविंदसिंह जी ने देखा कि उनकी सिक्ख कौम तुर्कों के जुल्मों सितम का शिकार हो रही है और वह लोग इसकी बर्बादी के दरपै हैं तो उन्होंने अपनी कौम में संगठन कायम करके इसको तबाही और बर्बादी से बचाना चाहा।

 इसी तरह से जब हजूर साहबजी महाराज ने देखा कि इस वक्त दुनियाँ की हालत आम तौर पर और हिंदू मजहब की खास तौर पर बहुत अबतर हो रही है तो बेकारी और बेरोजगारी हर जगह सब को परेशान कर रही है, तो ख्याल किया कि लोगों में संगठन पैदा किया जाय और उसकी शुरुआत सतसंग कम्युनिटी से ही की जाय। इसलिए उन्होंने इस तरफ कमली कदम उठाने का फैसला किया।

जिस तरह से गुरु साहब ने इस सिलसिले में अपनी संगत में से सच्चे और अजमाये हुए सेवक चुनने और महत्वपूर्ण ऐलान सुनाने की गरज से आनंदपुर में सिक्खों का आम जलसा किया जिसमें कौम को बचाने के लिए पाँच बहादुरो के सिर तलब किये, इसी तरह से हजूर साहबजी महाराज ने सूबा मद्रास के सतसँगियों की इस किस दरख्वास्त पर कुछ अरसा बाद सूबा मद्रास में इंडस्ट्रीज का काम शुरू करने का फैसला किया।क्रमशः                                         

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

[ भगवद् गीता के उपदेश]

- कल से आगे:-

योगी को चाहिए कि इस संकल्प से पैदा होने वाली सभी कामनाएँ एक दम दिल से निकाल करके और मन के द्वारा इंद्रियों को हर तरफ से रोक कर धीरे-धीरे खूब स्थिर की हुई बुद्धि के द्वारा शांत हो और मन को आत्मा में जोड़कर किसी भी चीज का ख्याल अपने अंदर न उठने दे । 【25 】                             

जब जब मन चंचलता और चपलता करके किसी तरफ भाग निकले, तब तक उसे रोक कर आत्मा के बस में लावे। जिस योगी का मन परम शांति और रजोगुण निश्चल हो गया है , जो पाप की मैल से रहित हो कर ब्रह्म रूप हो गया है, निःसंदेह वह परम आनंद का रस लेता है। जो योगी इस तरह अपने जीवात्मा को अंतर में जोड़कर पाप से रहित हो गया है, वह सहज में ब्रह्मस्पर्श के अपार आनंद का रस लेता है।

जीवात्मा योग के अंतर में हो जाने पर आत्मा को सब जीवो के अंदर और सब जीवों को आत्मा में निवास किये हुए देखता है और उसे सब जगह एक ही जलवा नजर आता है। अर्जुन! जो पुरुष मुझे हर जगह मौजूद और हर वस्तु को मेरे अंदर स्थित देखता है, मैं कभी उससे दूर नहीं होता, न वह कभी मुझ से दूर होता है ।

【30】 क्रमशः 

                                  

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर महाराज

-प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:-

स्त्रियों के अनपढ़ और मूर्ख रखने का सारा पाप और भार उनके पुरुषों की गर्दन पर है, क्योंकि जो पुरुष आप सच्चा परमार्थी होगा वह अपनी स्त्री को भी जरूर शामिल करेगा, और जो आप थोड़ी विद्या की कदर जानेगा कि जिससे उसकी स्त्री उसको और वह अपनी स्त्री को चिट्ठी पत्री भेज सके और घर का हिसाब किताब लिख सके, तो वह जरूर अपनी स्त्री को इस कदर विद्या जोर देकर पढ़ावेगा और उसको पोथी पढ़ने और परमार्थी अभ्यास करने पर तवज्जह दिलाता रहेगा कि जिससे उस स्त्री का और उस पुरुष का भी इस दुनियाँ में और फिर परलोक में भला होवे और पाप कर्मो से बचें।।                                                            

   

 और जो आप पूरे गुरु से नहीं मिले और कुछ परमार्थ की कार्यवाही नहीं करते और अपने वक्त और अपनी नरदेही की कदर नहीं जानते, वे आपही बदकिस्मत रहे और अपनी स्त्री को भी अब आगे बनावेंगे और इस पाप का फल आगे भोगेंगे, क्योंकि जिसने नरदेही पाकर उसको पशु की तरह मेहनत मजदूरी और 🙏🙏🙏🙏खानपान में खर्च किया, वह मनुष्य स्त्री होवे चाहे पुरुष, पशु के समान है।

क्रमशः                                                        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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लोक कथा

 आज का प्रेरक प्रसंग / !! एहसान !!*

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प्रस्तुति -  प्रियेश सिन्हा



एक बहेलिया था। एक बार जंगल में उसने चिड़िया फंसाने के लिए अपना जाल फैलाया। थोड़ी देर बाद ही एक उकाब उसके जाल में फंस गया।


वह उसे घर लाया और उसके पंख काट दिए। अब उकाब उड़ नहीं सकता था, बस उछल उछलकर घर के आस-पास ही घूमता रहता।


उस बहेलिए के घर के पास ही एक शिकारी रहता था। उकाब की यह हालत देखकर उससे सहन नहीं हुआ।


वह बहेलिए के पास गया और कहा-"मित्र, जहां तक मुझे मालूम है, तुम्हारे पास एक उकाब है, जिसके तुमने पंख काट दिए हैं। उकाब तो शिकारी पक्षी है।


छोटे-छोटे जानवर खा कर अपना भरण-पोषण करता है। इसके लिए उसका उड़ना जरूरी है। मगर उसके पंख काटकर तुमने उसे अपंग बना दिया है। फिर भी क्या तुम उसे मुझे बेच दोगे?"


बहेलिए के लिए उकाब कोई काम का पक्षी तो था नहीं, अतः उसने उस शिकारी की बात मान ली और कुछ पैसों के बदले उकाब उसे दे दिया।


शिकारी उकाब को अपने घर ले आया और उसकी दवा-दारू करने लगा। दो माह में उकाब के नए पंख निकल आए। वे पहले जैसे ही बड़े थे। अब वह उड़ सकता था।


जब शिकारी को यह बात समझ में आ गई तो उसने उकाब को खुले आकाश में छोड़ दिया। उकाब ऊंचे आकाश में उड़ गया। शिकारी यह सब देखकर बहुत प्रसन्न हुआ। उकाब भी बहुत प्रसन्न था और शिकारी बहुत कृतज्ञ था।


अपनी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उकाब एक खरगोश मारकर शिकारी के पास लाया।


एक लोमड़ी, जो यह सब देख रही थी,


लोमड़ी उकाब से बोली-"मित्र! जो तुम्हें हानि नहीं पहुंचा सकता उसे प्रसन्न करने से क्या लाभ?"


इसके उत्तर में उकाब ने कहा-"व्यक्ति को हर उस व्यक्ति का एहसान मानना चाहिए, जिसने उसकी सहायता की हो और ऐेसे व्यक्तियों से सावधान रहना चाहिए जो हानि पहुंचा सकते हों।"


*शिक्षा/Moral:-*

व्यक्ति को सदा सहायता करने वाले का कृतज्ञ रहना चाहिए।


*सदैव प्रसन्न रहिये।*

*जो प्राप्त है,  वही पर्याप्त है।।*ll


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भंडारा मुबारक हो

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज का पावन भंडारा समस्त सतसंग जगत को बहुत बहुत मुबारक।



 आज आरती के समय पढा गया बचन 


सच्चे रहनुमा (मार्गदर्शक) न रहने की वजह से सभी मज़हबों पर ज़ंग चढ़ गया है। और ज़माने की उलटफेर और ख़यालात में तबद्दुल (परिवर्तन) की वजह से अवाम (जन साधारण) बुज़ुर्गों की तालीम का असली मफ़हूम (आशय) समझने से क़ासिर (असमर्थ) है। साइंस की तरक़्क़ी और तालीम की इशाअत (प्रसार) से दिन ब दिन दुनिया में नई रोशनी फैल रही है।

कुछ अर्से के लिये दुनिया मज़हब से मुन्हरिफ़ (विमुख) हो जाये लेकिन देर अबेर सभी समझदार शान्ति के हुसूल (प्राप्ति) के लिये मज़हब का दरवाज़ा खटखटायेंगे।


(रोज़ाना वाक़िआत, भाग-2, डायरी,

परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज, सोमवार, 27 फ़रवरी, 1933 का अंश)


प्रेम  सिंध  से मौज उठ    किया  जगत उजियास    ।

सतगुरु रूप  औतार धर  घट  घट  प्रेम   प्रकास     ।।

प्रेमी  बिरही  साध जन    धर  हिरदय  विश्वास      ।

निस  दिन भाग सरावते   निरखत     प्रेमबिलास    ।।🌹


स्मारिका


परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने स्वयं अपने रचे हुए दो शब्दों में उपदेश लेने के पहले की और बाद की दशा को बयान किया है। वे शब्द ये हैं-

1. सतगुरू मेरे पियारे, धुर घर से चल के आए।

 (प्रेम बिलास शब्द 6)

2. मिले मोहि राधास्वामी प्यारे, सराहूँ भाग क्या अपना।

 (प्रेम बिलास शब्द 47)


🌹🌹🌹

Saturday, February 27, 2021

अंबाला मे हुजूर का वचन /04/5/2015


*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के पवित्र जन्म स्थान-(संत समागम, मोहल्ला कलाल माजरी, अम्बाला) में प्रातः 4.5.2015 को सतसंग दौरे पर परम पूज्य हुज़ूर प्रोफ़ेसर प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा*        

 

*अत्यन्त जलाल में* *फ़रमाया गया अमृत बचन*

 


*यह एक ऐतिहासिक क्षण है और राधास्वामी दयाल के वांशिक परिवार की सदस्यता भी मौजूद है इस स्थान पर। परम गुरु साहबजी महाराज इस आयोजन में राधास्वामी दयाल के रूप में इस सभा के सभापति हैं। मुझे एक विशेष सेवा के लिए आज अगम आरती करने का सुअवसर प्राप्त है। हुज़ूर साहबजी महाराज के आदेश पर, यह मान्यता है कि, मैंने इस संसार में जन्म लिया, और सच्चा संत सतगुरु राधास्वामी दयाल ही हैं और उनकी आरती करने का सर्वश्रेष्ठ साधन अगम आरती करने का है और यह सौभाग्य, जैसा मैंने कहा, दयालबाग़ के वर्तमान घोषित संत सतगुरु को ही प्राप्त है इसलिये मैं दयालबाग़ या राधास्वामी सतसंग के संत सतगुरु का प्रतिनिधित्व करता हुआ, राधास्वामी दयाल से भिन्न एक पद नीचे, अगम पुरुष पद से, आज उन्हें श्रद्धांजलि (आरती), परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी दयाल को,परम गुरु साहबजी महाराज के रूप में, प्रस्तुत करता हूँ। अब पाठ करिये। राधास्वामी।*


*पाठ पढ़ा गया:-            आज साहब घर मंगलकारी।प्रसाद वितरण के पश्चात दूसरा पाठ पढ़ा गया:*

*स्वामी तुम काज बनाये सबन के। *           *उल्लिखित वर्णन के संदर्भ में संत समागम के बाहर निम्न पाठ की कड़ियों की ओर विशेष ध्यान आकृष्ट किया गयाः कौन करम हम ऐसा कीन्हा। आज साहब घर आये जी। (प्रेम प्रचारक, 18 मई, 2015)*

*परम पूज्य हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब का महत्त्वपूर्ण संदेश*


*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के पवित्र भंडारे के सुअवसर पर (मध्याह्न 15.2.2004)*

*..............आपने यह भी सुना कि मुख्य वस्तु सतसंग में राधास्वामी दयाल की प्रसन्नता है।* *और क्योंकि सबकी रसाई राधास्वामी धाम तक नहीं है इसलिये उनके प्रतिनिधि सतगुरु स्वरूप की प्रसन्नता प्राप्त करना आसान मालूम होता है। उसके बारे में भी परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने हमें बताया कि अगर आपमें निर्मलता पवित्रता इत्यादि उत्पन्न होती हैं और अडोल प्रेम और शान्ति आपको प्राप्त हो जाती है तो यह समझना चाहिये कि राधास्वामी दयाल प्रसन्न हो गये।अब अगर राधास्वामी दयाल का मिशन है कि पहले वह सतसंगियों को सुपरमैन बनायें और उसके बाद उनके उदाहरण के अनुकरण और अनुसरण से सारा प्राणिमात्र सुपरमैन बन सके तो हमारे ऊपर यह बड़ी ज़िम्मेदारी आ जाती है कि हम, राधास्वामी दयाल ने जो सेवा सुपरमैन बनने की बख़्शी है, उसको पूरी करें और उनकी प्रसन्नता प्राप्त करें। इसके लिये उन्होंने दयालबाग़ में साधन भी उपलब्ध करा दिये। दयालबाग़ की संस्कृति या सतसंग की संस्कृति जिसका उद्देश्य है सुपरमैन की नस्ल तैयार करना सतसंग में, उसके लिये उन्होंने शिक्षा का प्रबन्ध कर दिया। यहाँ की शिक्षा में आप देखेंगे कि सम्पूर्ण मानव के उद्भव की कल्पना की जाती है जो दूसरे शब्दों में सुपरमैन की कल्पना है। आप जो शैक्षिक पाठ्यक्रम का अध्ययन करते हैं, उसके द्वारा जो बौद्धिक विकास होता है और जो आपको धार्मिक अध्ययन और भारतीय संस्कृति के अध्ययन का अवसर प्राप्त होता है, उससे आप में ब्राह्मण के गुण आते हैं।* *आप शारीरिक क्रिया कलाप करके और खेलकूद में भाग लेकर के अपने को स्वस्थ और बलवान बनाते हैं और शिक्षा के माध्यम से प्रशासनिक क़ाबिलियत प्राप्त करते हैं, यह क्षत्रिय के गुण उत्पन्न करने के लिये प्रयत्न है। हमारी नवीन शिक्षा पद्धति में कार्यानुभव पाठ्यक्रम और व्यावसायिक शिक्षा को शैक्षिक पाठ्यक्रम में अभिन्न रूप से शामिल कर लिया गया है। और इस प्रकार हम व्यवसायों के लिये गुण प्राप्त करते हैं और यह वैश्यों के गुण हुए। जो विभिन्न सेवाएँ हम सतसंग के परिवेश में और शिक्षण संस्थान के पाठ्यक्रम द्वारा करने का अवसर प्राप्त करते हैं, जैसे सामाजिक सेवा कार्यक्रम इत्यादि उससे शूद्रों के गुण उत्पन्न होते हैं।*            *यह कहा जा सकता है कि यह शिक्षा तो सिर्फ़ उनको मिल पाती है जो दयालबाग़ के शिक्षा संस्थानों में पढ़ने का सुअवसर प्राप्त करते हैं।तो इसके लिये भी अब कुछ पहल की जा रही है कि इस शिक्षा पद्धति जिससे कि सुपरमैन बन सकते हैं उनको सतसंगी समुदाय तक देश के कोने कोने में और विदेश में भी पहुँचाया जा सके और इसके लिये दूरगामी शिक्षा और शिक्षा के विकेन्द्रीकरण द्वारा ऐसे प्रयास करने का ख़्याल है।तो आप देखेंगे कि यह सब नीतियाँ हमको हमारे उद्देश्य की तरफ़ ले जाती हैं, जैसा कि परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज ने अपने अमृत बचनों में हमें बताया।*                       *प्रेम प्रचारक,दिनांक 8 मार्च, 2004,पुनः प्रकाशित 3 मार्च, 2020 का अंश)*


 

सतसंग के प्रसंग

 दो प्रसंग 



*कभी दरिया समुद्र में गिरते हैं और कभी कभी समुद्र दरिया में चला आता है इसी तरह सतगुरु मनुष्यों और मालिक के बीच मिलाप करने वाली कड़ी हैं। सतगुरु की सुरत में रचनात्मक और बोधनात्मक अंग दोनों क्रियाशील होते हैं और उनका मालिक से सीधा सम्बन्ध होता है। वह इस लोक और कुल मालिक से संबंध रखते हैं। यही आला (यंत्र) सतगुरु कहलाते हैं।यह शब्द बतलाता है कि सतगुरु की इस मण्डल में क्या पोज़ीशन है अब हम एक एक कड़ी का भावार्थ वर्णन करेंगे-*             

*(1) सतगुरु क्या है? यह प्रत्येक मनुष्य में समझने या अनुभव करने की योग्यता नहीं पायी जाती।वही इसे ठीक ठीक समझ सकता है जिस पर वह दया करें और जिसको वह रोशनी बख़्शें।**

*(2) जिसको हम सतगुरु कहते हैं वह बनावटी रूप और रंग से रहित है वह बन्धन से रहित हैं।।*          *

(3) सतगुरु सर्व व्यापक हैं, वह सब मनुष्यों के अन्तर में निवास करते हैं, कोई घाट उनके बिना नहीं है परन्तु फिर भी वह दूर से दूर हैं। वह त्रिलोकी के परे चौथे लोक में रहते हैं। जैसे सूर्य हर जगह है अगर्चे वह बहुत दूर है ऐसे ही सतगुरु की शक्ति हर जगह पाई जाती है यद्यपि वह त्रिलोकी के परे रहते हैं।*

*(4) सतगुरु का अनादि धाम त्रिलोकी के परे है लेकिन जब कभी उन्हें मंज़ूर होता है वह इस देश में उतर कर जीवों की सहायता फ़रमाते हैं और उन्हें संसार से छुटकारा दिलाते हैं, वह दूसरे जीवों की तरह कर्मवश इस लोक में जन्म धारण नहीं करते बल्कि वह अपनी मर्ज़ी से जन्म धारण करके मनुष्य जाति को मन और प्रकृति से मुक्ति दिलाते हैं।

एक क़ैदी और जेल डाक्टर के दृष्टान्त से हमारा अभिप्राय स्पष्ट हो जायगा। एक क़ैदी गिरफ़्तार होकर जेल जाता है न कि ख़ुशी से लेकिन जेल का डाक्टर भी जेल के अंदर जाता है लेकिन वह गिरफ़्तार होकर नहीं जाता बल्कि वह अपनी मर्ज़ी से जाता है और वह इस मतलब के लिये जाता है ताकि बीमार क़ैदियों का इलाज कर सके लेकिन कुछ ऐसे बेफक़ूफ़ हो सकते हैं जो डाक्टर को जेल में देखकर उसे क़ैदी समझ लें। ऐसे ही मूर्ख जीव सतगुरु को साधारण मनुष्य समझ सकते हैं कि वह शरीर व मन की चारदीवारी में क़ैद हैं लेकिन सतगुरु जेल डाक्टर के समान हैं जो ख़ुशी से जेल के अंदर और बाहर जा सकते हैं। सतगुरु इस संसार में रोगी आत्माओं को आराम देने के लिये तशरीफ़ लाते हैं।        

(5) जब वह इस मंडल में उतरते हैं तो तुम उन्हें साधारण मनुष्यों से विशेष नहीं पा सकते हो। उनका जीवन संसारी भोग का नहीं होता, वह सुख दुख की ज़िंदगी बिना किसी उद्देश्य के गुज़ारते हैं बल्कि वह ख़ास उद्देश्य से संसार में आते हैं, वह इस संसार में भक्ति मार्ग चलाते हैं, वह जीवों को कुल मालिक की भक्ति व प्रेम सिखलाते हैं। जैसे तुम देखते हो कि कुछ पहाड़ों से निर्मल जल की धारा बहकर मैदानों में आती है ऐसे ही सतगुरु से भक्ति नदी बहकर प्रेमीजनों के हृदयों को प्रफुल्लित करती है। इस तरह इस तपी हुई दुनियाँ में प्रेम की नदी बहती है।

*(6) वह अपने ऊपर ज़िम्मेवारियाँ लेते हैं, जिनका प्राकृतिक फल चिन्ता होता है परन्तु वह निश्चिन्त रहते हैं। सच्ची बात यह है कि वह सुख दुख से परे हैं और दोनों से उपरत हैं।

*(7) वह भक्त जनों को अपने चरणों में शरण देते हैं, वह उन्हें अपनी नज़दीकी बख़्शते हैं और उनके अंदर प्रेम व भक्ति के संचार से उनकी चिंताएँ दूर करते हैं।

*(8) वह कर्म करते हैं, वह अपनी ज़िम्मेवारियाँ पूरी करने के लिये हर तरह का काम करते हैं लेकिन तो भी वह बिल्कुल कर्म-रहित हैं, उनका किसी से मोह नहीं है, सतगुरु की महिमा अपार है, वह कर्म करते हुए बन्धन से रहित होते हैं।

*(9) सतगुरु को प्रतिदिन की जाग्रत अवस्था के अनुभव के प्रकाश में समझना असंभव है। न किसी मनुष्य की मानसिक योग्यता या चतुरता उनके समझने में सहायक बन सकती है योग से भी उन्हें नहीं समझा जा सकता। इन तमाम साधनों के द्वारा उन्हें नहीं समझा जा सकता। संसार के बुद्धिमान और मानसिक योग्यता रखने वाले और योगी सब के सब उनका असली स्वरूप और गति समझने में बिल्कुल लाचार और बेबस हैं।

           

(10) सतगुरु की असली गति को कौन समझ सकता है? जिस पर राधास्वामी दयाल दया फ़रमावें वही समझ सकता है, या वही समझ सकता है जिसके अन्तर वह अपना स्वरूप प्रकट करें।* **हम सतगुरु को उसी समय देख सकते हैं जब वह अपना स्वरूप हमारे अंदर प्रकट करते हैं सौ अंधे एक सुझाके को नहीं देख सकते परन्तु वह (अपने को) सबको पकड़ा सकता है।

*इसलिए हमको प्रार्थना करनी चाहिये कि वह दया करके हमारे अंदर अपने को प्रकट करें जिससे कि हम उन्हें देख सकें।।**                            

 *(प्रेम प्रचारक 17 सितम्बर सन् 1934,पुनः प्रकाशित- 25 फ़रवरी, 2008)*

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सतगुरु नाम की महिमा

सतगुरु किसे कहते  हैं?


*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*


*(17 जून, सन् 1934 ई. आदित्य मुक़ाम कुर्तालम)*


*आज शाम का सतसंग इस मनोहर शब्द से शुरू हुआ जिसकी पहली कड़ी निम्नलिखित हैः-*


*‘मेहर होय कोई प्रेमी जाने ऐसा गुरू हमारा’*

*इस मनोहर शब्द का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ जिसको सुनकर प्रेमी भाई और बहनें अत्यंत प्रभावित हुए। इसमें सतगुरु की महिमा और बड़ाई का वर्णन है जिससे हर मुल्क के जिज्ञासु हर ज़माने में प्रकाश प्राप्त करेंगे। नीचे पूरा शब्द लिखा जाता हैः-*      **मेहर  होय कोई  प्रेमी जाने  ,    ऐसा    गुरू     हमारा         ।।टेक।।*


*रूप  रंग  रेखा नहिं  ताके    ,    नहिं   गोरा  नहिं  कारा       ।।1।।*


*सर्व निवासी घट घट  बासी ,    तीन   लोक    के  पारा        ।।2।।*


*मौज होय जग देह धर आवे ,    जीवन     करे    उबारा        ।।3।।*


*भक्ति भाव  की रीति चलावे ,    प्रेम   प्रीति   की   धारा       ।।4।।*


*चिन्ता  में  सद रहे अचिन्ता ,    हर्ष   सोग    से   न्यारा        ।।5।।*


*चरन सरन दे दास भक्त का ,    मेटे   दुख   भय    सारा       ।।6।।*


*काज  करे  कर्ता  नहिं  होवे ,    अचरज    अकथ  ब्योहारा   ।।7।।*


*बुधि   चतुराई  मूर्छा  खाई  ,    ज्ञान   जोग  थक  हारा        ।।8।।*


*जा पर मेहर करी राधास्वामी, (घट)  अन्तर  रूप निहारा   ।।9।।*

*आज रात को जो हुज़ूर साहबजी महाराज ने इसी शब्द पर बचन फ़रमाया उससे शब्द का भावार्थ अधिक स्पष्ट रूप से उपस्थित भाइयों को विदित हो गया जिसको संक्षेप में नीचे लिखा जाता है:-*

*यह शब्द इसलिए बड़ा आवश्यक है कि इसमें गुरु-भक्ति की फ़िलासफ़ी बयान की गई है।* *हमारे मत में गुरु भक्ति पर कमाल ज़ोर दिया जाता है। कुछ सतगुरुभक्ति को मर्दुमपरस्ती ख़्याल करते हैं हमने इन लोगों की नुक्ताचीनी का जवाब देने के लिये यह शब्द बनाया था।* *इस शब्द में हमने सतगुरु गति वर्णन की है जैसी कि हमारे मत में सिखलाई जाती है।*

*सच्ची बात यह है कि सतसंगियों की विवेकशक्ति पर, यदि वह कुलमालिक के अवतार को केवल मनुष्य समझें, बड़ा आक्षेप आयेगा।* *हम किसी मनुष्य के शरीर व मन को मालिक का अवतार नहीं समझते, न ही सतगुरु के शरीर या मन में आध्यात्मिकता पाई जाती है, वह तो केवल शारीरिक और मानसिक मसाले के बने हैं इसलिये वह कैसे कुल मालिक के प्रतिनिधि हो सकते हैं।* *हम सतगुरु के शरीर को वह ग़िलाफ़ समझते हैं जिसमें मालिक की धार विराजमान है क्रियाशील है। स्थूल शरीर कपड़े मात्र हैं जिन्हें कि सतगुरु केवल शारीरिक नियमों के अधीन ग्रहण करते हैं क्योंकि कोई शक्ति यानी शारीरिक शक्ति भी अपने इज़हार के लिये बगै़र वसीला के काम नहीं करती।* **कोई उष्णता को देख नहीं सकता हालाँकि उष्णता अनुभव की जा सकती है। इसी तरह बिजली वस्तु क्या है कोई नहीं कह सकता केवल अनुमान की जा सकती है। बिजली की शक्ति देखी या अनुभव नहीं की जा सकती। इसका ज्ञान केवल वस्तु के द्वारा किया जा सकता है। तमाम शक्तियों को अपने इज़हार के लिये ग़िलाफ़ धारण करना पड़ता है। इसी कानून की रू से कुल मालिक की शक्ति को भी मनुष्य जाति के उद्धार के लिये आवरण धारण करना पड़ता है।* *यदि परम शक्ति किसी देव का शरीर धारण करके, जिसका सिर आसमान पर और पैर पाताल में हों, उतरे और ऐसी भाषा बोले जिसको यहाँ कोई नहीं समझ सकता।* **तो उसकी शिक्षा को कोई नहीं समझेगा और उसका अवतार धारण करना व्यर्थ जायगा इसलिये दया के मिशन की कामयाबी उसी* *सूरत में संभव है जब कुल मालिक मनुष्य-शरीर धारण करे और आध्यात्मिक शक्ति स्वयं शरीर पर क़ाबू नहीं पा सकती, न उसे उपयोग कर सकती है बल्कि उसे मानसिक ग़िलाफ़ की ज़रूरत होती है इसलिये सतगुरु मन भी धारण करते हैं।*  **सतसगुरु की शक्ति उनके शरीर और मन को जान देती है इसके अलावा अपने मिशन की पूर्ति करती है। आम आदमियों की तरह सतगुरु में आध्यात्मिक शक्ति सोई हुई नहीं होती।* *जैसे कोयला तभी मनुष्य के लिये हितकर सिद्ध हो सकता है जब उसके अन्दर गर्मी की लहरें क्रियाशील हो जायँ।*

*यहाँ पर यह वर्णन करना उचित होगा कि आत्मा के दो कर्म हैं-* *प्रथम उसका पैदा करने वाला अंग, जिससे हममें से प्रत्येक मनुष्य जानकार है अर्थात् हमारा शरीर सुरत से बनाया जाता है, जिसको उसका* *रचनात्मक अंग कहते हैं। इसका दूसरा अंग, जो हममें से प्रायः बहुतों में सोया हुआ है, इसको बोधनात्मक अंग कहते हैं। इसका सुरत की बोधनात्मक अवस्था से सम्बंध है और यह काम प्रत्येक मनुष्य में नहीं होता परन्तु सतगुरु में यह काम होता रहता है। सतगुरु की सुरत का कुल मालिक से सीधा मिलाप होता है।* *सतगुरु का शरीर दूसरे लोगों के शरीर के अनुसार ही होता है परन्तु उनके शरीर के अंदर सुरत जाग्रत होती है और उसका कुल मालिक के साथ सीधा सम्बंध रहता है जैसा कि समुद्र के क़रीब दरिया होते हैं रात के वक्त़ समुद्र के पानी का लेबल चाँद के* *खिंचाव के कारण ऊँचा हो जाता है और यह दरियाओं में चला जाता है। कभी*

मालिक पर भरोसा रखो

 *सतसंग के उपदेश, भाग 2 / बचन (20)


*मालिक की दया का भरोसा रखने से ज़िन्दगी के दुख बरदाश्त करने में भारी सहायता मिलती है।*


            *शहर कलकत्ता के एक रईस ने ज़िन्दगी से दुखी होकर अव्वल अपने दो निरपराध बच्चों को ज़हर पिलाया और बाद में ख़ुद ज़हर पी कर परलोक को सिधार गया और यह तहरीर छोड़ गया कि उसका विश्वास परमात्मा की हस्ती से उठ गया था और उसने ज़िन्दगी से तंग आकर ये कर्म किये। सब जानते हैं कि जब इन्सान मुसीबतों से घिर जाता है और बावजूद हर क़िस्म की मेहनत व कोशिश के अपनी हालत ख़राब पाता है तो ख़ुदा, देवी, देवता, भूत, प्रेत की जानिब मुख़ातिब होता है और जब उस जानिब से भी मायूसी हो जाती है तो पागल होकर जो मन में आता है कर गुज़रता है और अक्सर ख़ुदकुशी (आत्मघात) कर लेता है इसलिये इस रईस से जो कर्म बन पड़ा वह इतना आश्चर्यजनक नहीं है मगर इस घटना से एक निहायत मुफ़ीद मतलब सबक़ हासिल होता है यानी यह कि जब तक इन्सान का मालिक की दया में विश्वास क़ायम रहता है वह हिम्मत नहीं हारता, वह सख़्त से सख़्त मुश्किल बरदाश्त करता हुआ बेहतरी की राह देखता है। यानी मालिक की दया का भरोसा एक ऐसा लंगर है जिसे गिराकर इन्सान ज़िन्दगी के समुद्र की लहरों से बेख़ौफ़ आशा की नाव में बैठा हुआ दुनिया का तमाशा देख सकता है। लेकिन चूँकि आम लोगों को न तो मालिक का कुछ पता है और न ही उसकी ज़ात में सच्चा विश्वास है इसलिये अक्सरऔक़ात मामूली झोंके आने पर लंगर टूटकर उनकी आशा की नाव डूब जाती है। इसके अलावा अक्सर लोग ख़्वाहमख़्वाह दया का भरोसा बाँधकर अपनी हैसियत से बढ़कर सौदे कर बैठते हैं या नाजायज़ फ़ायदा उठाने के लिये मुक़द्दमाबाज़ी करते हैं और वक़्तेमुनासिब आने पर मायूसी का मुँह देखते हैं। सन्तमत यह ज़रूर सिखलाता है कि हर प्रेमीजन को मालिक की हस्ती व दया में सच्चा व गहरा विश्वास रखना चाहिये लेकिन साथ ही यह भी सिखलाता है कि उस मालिक को हाज़िर व नाज़िर जानकर किसी ऐसे कर्म का भागी न बनना चाहिये और न कोई ऐसी उम्मीद बाँधनी चाहिये कि जिससे वह परमार्थी आदर्श से गिर जाय। सच्चे मालिक की दया में भरोसा इसलिये नहीं बँधवाया जाता कि हर प्रेमीजन मालिक से अपनी मर्ज़ी के मुआफ़िक़ काम ले और अपनी जायज़ व नाजायज़ इच्छाएँ पूरी करावे बल्कि इसलिये कि नामुवाफ़िक़ हालात के आने  पर उसका धीरज बना रहे और वह हरक़िस्म की ग़ैरज़रूरी चिन्ता व फ़िक्र से आज़ाद रहकर मुनासिब यत्न व कोशिश कर सके। जब तक हमारा इस दुनिया में क़याम है तबतक दुनियवी ज़रूरियात का और उनके पूरा करने के सिलसिले में विरोधी सूरतों का पैदा होते रहना क़ुदरती बात है। हमारा यह ख़्याल करना क़तई ग़लत व लाहासिल होगा कि हुज़ूरी शरण लेने से हम तमाम सृष्टिनियमों और संसारी तूफ़ानों से बचे रहें। हमें समझ बूझ कर सृष्टिनियमों का पालन करते हुए ज़िन्दगी बसर करनी होगी। हमें दुश्मनों, धोकेबाज़ों और फ़साद करने वालों से बचने के लिये मुनासिब इन्तिज़ाम करना होगा और नीज़ हमें हर क़िस्म की दैविक व भौतिक आपत्तियों को बर्दाश्त करते हुए अपने कर्तव्य पालन करने होंगे लेकिन जैसे आम लोग अपनी ज़िन्दगी रुपये, पैसे और इष्टमित्र की मदद या चालाकी व सीनाज़ोरी के भरोसे पर बसर करते हैं और मुख़ालिफ़ सूरतों के नमूदार होने पर उन्हीं से काम लेते हैं हमें बजाय इनके सच्चे मालिक की दया का भरोसा रखकर दिन काटने होंगे और नामुवाफ़िक़ बातों के ज़ाहिर होने पर मालिक की दया का आसरा लिये हुए मुनासिब यत्न व कोशिश करनी होगी और यह बात बेख़ौफ़ कही जा सकती है कि इन उसूलों पर चलने से किसी भी प्रेमीजन को मायूसी का मुँह न देखना पड़ेगा। यह मुमकिन है कि कुछ अर्से के लिये किसी की मुश्किलों में **ज़ाहिरन् इज़ाफ़ा होता जावे और उसे किसी जानिब से मदद की सूरत दिखलाई न दे लेकिन यह नहीं हो सकता कि कोई प्रेमीजन, जो सँभलकर चाल चलता है और परमार्थी आदर्श को हमेशा निगाह के रूबरू रखता है, हमेशा के लिये या बहुत समय के लिये चिन्ता व फ़िक्र की आग में डाला जावे।*


*सतगुरु किसे कहते हैं?*


*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*


*(17 जून, सन् 1934 ई. आदित्य मुक़ाम कुर्तालम)*


*आज शाम का सतसंग इस मनोहर शब्द से शुरू हुआ जिसकी पहली कड़ी निम्नलिखित हैः-*


*‘मेहर होय कोई प्रेमी जाने ऐसा गुरू हमारा’*

*इस मनोहर शब्द का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ जिसको सुनकर प्रेमी भाई और बहनें अत्यंत प्रभावित हुए। इसमें सतगुरु की महिमा और बड़ाई का वर्णन है जिससे हर मुल्क के जिज्ञासु हर ज़माने में प्रकाश प्राप्त करेंगे। नीचे पूरा शब्द लिखा जाता हैः-*      **मेहर  होय कोई  प्रेमी जाने  ,    ऐसा    गुरू     हमारा         ।।टेक।।*


*रूप  रंग  रेखा नहिं  ताके    ,    नहिं   गोरा  नहिं  कारा       ।।1।।*


*सर्व निवासी घट घट  बासी ,    तीन   लोक    के  पारा        ।।2।।*


*मौज होय जग देह धर आवे ,    जीवन     करे    उबारा        ।।3।।*


*भक्ति भाव  की रीति चलावे ,    प्रेम   प्रीति   की   धारा       ।।4।।*


*चिन्ता  में  सद रहे अचिन्ता ,    हर्ष   सोग    से   न्यारा        ।।5।।*


*चरन सरन दे दास भक्त का ,    मेटे   दुख   भय    सारा       ।।6।।*


*काज  करे  कर्ता  नहिं  होवे ,    अचरज    अकथ  ब्योहारा   ।।7।।*


*बुधि   चतुराई  मूर्छा  खाई  ,    ज्ञान   जोग  थक  हारा        ।।8।।*


*जा पर मेहर करी राधास्वामी, (घट)  अन्तर  रूप निहारा   ।।9।।*

*आज रात को जो हुज़ूर साहबजी महाराज ने इसी शब्द पर बचन फ़रमाया उससे शब्द का भावार्थ अधिक स्पष्ट रूप से उपस्थित भाइयों को विदित हो गया जिसको संक्षेप में नीचे लिखा जाता है:-*

*यह शब्द इसलिए बड़ा आवश्यक है कि इसमें गुरु-भक्ति की फ़िलासफ़ी बयान की गई है।* *हमारे मत में गुरु भक्ति पर कमाल ज़ोर दिया जाता है। कुछ सतगुरुभक्ति को मर्दुमपरस्ती ख़्याल करते हैं हमने इन लोगों की नुक्ताचीनी का जवाब देने के लिये यह शब्द बनाया था।* *इस शब्द में हमने सतगुरु गति वर्णन की है जैसी कि हमारे मत में सिखलाई जाती है।*

*सच्ची बात यह है कि सतसंगियों की विवेकशक्ति पर, यदि वह कुलमालिक के अवतार को केवल मनुष्य समझें, बड़ा आक्षेप आयेगा।* *हम किसी मनुष्य के शरीर व मन को मालिक का अवतार नहीं समझते, न ही सतगुरु के शरीर या मन में आध्यात्मिकता पाई जाती है, वह तो केवल शारीरिक और मानसिक मसाले के बने हैं इसलिये वह कैसे कुल मालिक के प्रतिनिधि हो सकते हैं।* *हम सतगुरु के शरीर को वह ग़िलाफ़ समझते हैं जिसमें मालिक की धार विराजमान है क्रियाशील है। स्थूल शरीर कपड़े मात्र हैं जिन्हें कि सतगुरु केवल शारीरिक नियमों के अधीन ग्रहण करते हैं क्योंकि कोई शक्ति यानी शारीरिक शक्ति भी अपने इज़हार के लिये बगै़र वसीला के काम नहीं करती।* **कोई उष्णता को देख नहीं सकता हालाँकि उष्णता अनुभव की जा सकती है। इसी तरह बिजली वस्तु क्या है कोई नहीं कह सकता केवल अनुमान की जा सकती है। बिजली की शक्ति देखी या अनुभव नहीं की जा सकती। इसका ज्ञान केवल वस्तु के द्वारा किया जा सकता है। तमाम शक्तियों को अपने इज़हार के लिये ग़िलाफ़ धारण करना पड़ता है। इसी कानून की रू से कुल मालिक की शक्ति को भी मनुष्य जाति के उद्धार के लिये आवरण धारण करना पड़ता है।* *यदि परम शक्ति किसी देव का शरीर धारण करके, जिसका सिर आसमान पर और पैर पाताल में हों, उतरे और ऐसी भाषा बोले जिसको यहाँ कोई नहीं समझ सकता।* **तो उसकी शिक्षा को कोई नहीं समझेगा और उसका अवतार धारण करना व्यर्थ जायगा इसलिये दया के मिशन की कामयाबी उसी* *सूरत में संभव है जब कुल मालिक मनुष्य-शरीर धारण करे और आध्यात्मिक शक्ति स्वयं शरीर पर क़ाबू नहीं पा सकती, न उसे उपयोग कर सकती है बल्कि उसे मानसिक ग़िलाफ़ की ज़रूरत होती है इसलिये सतगुरु मन भी धारण करते हैं।*  **सतसगुरु की शक्ति उनके शरीर और मन को जान देती है इसके अलावा अपने मिशन की पूर्ति करती है। आम आदमियों की तरह सतगुरु में आध्यात्मिक शक्ति सोई हुई नहीं होती।* *जैसे कोयला तभी मनुष्य के लिये हितकर सिद्ध हो सकता है जब उसके अन्दर गर्मी की लहरें क्रियाशील हो जायँ।*

*यहाँ पर यह वर्णन करना उचित होगा कि आत्मा के दो कर्म हैं-* *प्रथम उसका पैदा करने वाला अंग, जिससे हममें से प्रत्येक मनुष्य जानकार है अर्थात् हमारा शरीर सुरत से बनाया जाता है, जिसको उसका* *रचनात्मक अंग कहते हैं। इसका दूसरा अंग, जो हममें से प्रायः बहुतों में सोया हुआ है, इसको बोधनात्मक अंग कहते हैं। इसका सुरत की बोधनात्मक अवस्था से सम्बंध है और यह काम प्रत्येक मनुष्य में नहीं होता परन्तु सतगुरु में यह काम होता रहता है। सतगुरु की सुरत का कुल मालिक से सीधा मिलाप होता है।* *सतगुरु का शरीर दूसरे लोगों के शरीर के अनुसार ही होता है परन्तु उनके शरीर के अंदर सुरत जाग्रत होती है और उसका कुल मालिक के साथ सीधा सम्बंध रहता है जैसा कि समुद्र के क़रीब दरिया होते हैं रात के वक्त़ समुद्र के पानी का लेबल चाँद के* *खिंचाव के कारण ऊँचा हो जाता है और यह दरियाओं में चला जाता है। कभी*

ग्रेशस हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा रचित शब्द*

 *“मैं पाया सुहाग सतगुरु का”*

*“मैं पाया सुहाग सतगुरु का”*



*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के भण्डारे के सुअवसर पर*


*आरती सतसंग में गाया गया।* 22/09/02008



 


*मैं      पाया      सुहाग     सतगुरु      का     ।।*


*मैं      पाया    स्वरूप    परम    गुरु   का*     ।


*मुझे    मिल     गया  नाम   पर्म   पुर्ष  का    ।*


*मैं     सुमिरूँ   नाम     राधास्वामी     का     ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं      धाऊँ     धाम     राधास्वामी     का   ।*


*मैं   दरसूँ   पर्म   प्रकाश   राधास्वामी  का    ।*


*मैं  निरखत लीला-बिलास  राधास्वामी का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं    अनहद    शब्द    सुनूँ    ब्रह्मण्ड    का   ।*


*घंटा    शंख    मृदंग    किंगरी   सारंग  का   ।*


*मैं    देखूँ    प्रकाश     व्यापक    मन    का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*ज्योति,  लाल-रवि,  पूरनमासी  चन्द्र  का   ।*


*मैं   सुनूँ  मुरली -बीन  वाद्य  सत  पुरुष का   ।*


*मैं   परखूँ   प्रकाश   मध्याह्न    भान    का   ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं   लखूँ   शब्द-प्रकाश   अलख  अगम  का   ।*


*मैं चखूँ निर्मल अविरल  बिलास धुर घर का   ।*


*मैं  पाया  पूर्न  सुहाग राधास्वामी चरन का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग       सतगुरु      का     ।।*


 

*(प्रेम प्रचारक, 30 मार्च, 2009)*ग्रेशस हुज़ूर डा. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा रचित शब्द*


*परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज के भण्डारे के सुअवसर पर*


*आरती सतसंग में गाया गया।*


*(22.2.2009)*


 


*मैं      पाया      सुहाग     सतगुरु      का     ।।*


*मैं      पाया    स्वरूप    परम    गुरु   का*     ।


*मुझे    मिल     गया  नाम   पर्म   पुर्ष  का    ।*


*मैं     सुमिरूँ   नाम     राधास्वामी     का     ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं      धाऊँ     धाम     राधास्वामी     का   ।*


*मैं   दरसूँ   पर्म   प्रकाश   राधास्वामी  का    ।*


*मैं  निरखत लीला-बिलास  राधास्वामी का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं    अनहद    शब्द    सुनूँ    ब्रह्मण्ड    का   ।*


*घंटा    शंख    मृदंग    किंगरी   सारंग  का   ।*


*मैं    देखूँ    प्रकाश     व्यापक    मन    का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*ज्योति,  लाल-रवि,  पूरनमासी  चन्द्र  का   ।*


*मैं   सुनूँ  मुरली -बीन  वाद्य  सत  पुरुष का   ।*


*मैं   परखूँ   प्रकाश   मध्याह्न    भान    का   ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 


*मैं   लखूँ   शब्द-प्रकाश   अलख  अगम  का   ।*


*मैं चखूँ निर्मल अविरल  बिलास धुर घर का   ।*


*मैं  पाया  पूर्न  सुहाग राधास्वामी चरन का    ।*


*मैं     पाया      सुहाग      सतगुरु      का     ।।*


 

*(प्रेम प्रचारक, 30 मार्च, 2009)*

सतसंग भंडारा आरती DB 28/02


 **राधास्वामी!! 28-02-2021- भंडारा परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज (आरती) पढे गये पाठ:-    

                                                         

(1) गुरु प्रीति बढी चितवन में।

सुर्त खैंच धरी चरनन में।।-(

राधास्वामी गुरु हम पाये। पी चरन अम्बु तृप्ताये।।)

(सारबचन-शब्द-तीसरा- पृ.सं.178,179,180-)       

                                  

  आरती के बाद:- स्पेशल पाठ:-                                                                         

 (1) कौन सके गुन गाय तुम्हारेः

कौन सके गुन गाये जी।।

कामी क्रोधी लोभी हम से।

चरनन आन मिलाये जी।।

-(राधास्वामी दयाल चरन की।

 महिमा निसदिन गाये जी।।)


 (प्रेमबिलास-शब्द-24-पृ.सं.29,30) 

                                                      

  (2) गुरू दयाल(मेरे दयाल) अस करिये दाया।

 तुम्हरी सेवा और तुम भक्तन की बनत रहे सिर नाया।।-

(दुर्मति दूर हटे जीवन से सतमत के फल चाखें।

प्रेम मगन होय सभी उमँग से राधास्वामी २ भाखें।।)


 (प्रेमबिलास-शब्द-115-पृ.सं.171,172)      

              

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏


अपने आप को खुद परखे



कृष्ण मेहता: *


दूसरों के चश्मे से खुद को मत देखो


 उनकी नजरें धुंधली भी हो सकती हैं क्योंकि खुद को खुद से बेहतर कोई और समझ ही नहीं सकता,भगवान का डर और दुनियाँ की शर्म,यह दो वो चीजें हैं जो इंसान को इंसान बनाए रखती हैं इस खोज में मत उलझें कि भगवान हैं या नहीं,खोज यह रखें कि हम खुद इन्सान हैं या नहीं,हजारों रिश्तों को तराशा बस नतीजा एक ही निकला कि जरूरत ही सब कुछ है रिश्ते कुछ भी नहीं सच्चे प्रेम की कोई परिभाषा नहीं होती,प्रेम बस वही होता है जहाँ कोई आशा नहीं होती,वज़न तो सिर्फ हमारी इच्छाओं का ही होता है बाकि ज़िन्दगी तो बिलकुल हलकी फुलकी होती है चाय हो या चाह रंग एकदम पक्का होना चाहिए फिक्र हो या ज़िक्र रिश्तों में अपनापन होना चाहिए जीवन में हीरा परखने वाले से पीड़ा परखने वाला ज्यादा महत्वपूर्ण होता है*                                   

                

 दर्शन की लालसा


एक बार राधाजी के मन में कृष्ण दर्शन की बड़ी लालसा थी, ये सोचकर महलन की अटारी पर चढ गई और खिडकी से बाहर देखने लगी कि tशायद श्यामसुन्दर यही से आज गईया लेकर निकले.अब हमारी प्यारी जू के ह्रदय में कोई बात आये और लाला उसे पूरा न करे ऐसा तो हो ही नहीं सकता.


जब राधा रानी जी के मन के भाव श्याम सुन्दर ने जाने तो आज उन्होंने सोचा क्या क्यों न साकरीखोर से (जो कि लाडली जी के महलन से होकर जाता है)होते हुए जाए,अब यहाँ महलन की अटारी पे लाडली जी खड़ी थी.तब उनकी मईया कीर्ति रानी उनके पास आई.

और बोली -अरी राधा बेटी! देख अब तु बड़ी है गई है, कल को दूसरे घर ब्याह के जायेगी, तो सासरे वारे काह कहेगे, जा लाली से तो कछु नाय बने है, बेटी कुछ नहीं तो दही बिलोना तो सीख ले, अब लाडली जी ने जब सुना तो अब अटारी से उतरकर दही बिलोने बैठ गई.पर चित्त तो प्यारे में लगा है.

लाडली जी खाली मथानी चला रही है,घड़े में दही नहीं है इस बात का उन्हें ध्यान ही नहीं है,बस बिलोती जा रही है.उधर श्याम सुन्दर नख से शिख तक राधारानी के इस रूप का दर्शन कर रहे है,बिल्वमंगल जी ने इस झाकी का बड़ा सुन्दर चित्रण किया है.

लाला गईया चराके लौट तो आये है पर लाला भी प्यारी जू के ध्यान में खोये हुए है और उनका मुखकमल पके हुए बेर के समान पीला हो गया है.पीला इसलिए हो गया है क्योकि राधा रानी गोरी है और उनके श्रीअंग की कांति सुवर्ण के समान है इसलिए उनका ध्यान करते-करते लाला का मुख भी उनके ही समान पीला हो गया है.


इधर जब एक सखी ने देखा कि राधा जी ऐसे दही बिलो रही है तो वह झट कीर्ति मईया के पास गई और बोली मईया जरा देखो, राधा बिना दही के माखन निकाल रही है, अब कीर्ति जी ने जैसे ही देखा तो क्या देखती है, श्रीजी का वैभव देखो, मटकी के ऊपर माखन प्रकट है.सच है लाडली जी क्या नहीं कर सकती,उनके के लिए फिर बिना दही के माखन निकलना कौन सी बड़ी बात है.

इधर लाला भी खोये हुए है नन्द बाबा बोले लाला - जाकर गईया को दुह लो. अब लाला पैर बांधने की रस्सी लेकर गौ शाला की ओर चले है, गईया के पास तो नहीं गए वृषभ (सांड)के पास जाकर उसके पैर बांध दिए और दोहनी लगाकर दूध दुहने लगे.

अब बाबा ने जब देखा तो बाबा का तो वात्सल्य भाव है बाबा बोले - देखो मेरो लाला कितनो भोरो है, इत्ते दिना गईया चराते है गए, पर जा कू इत्तो भी नाय पता है, कि गौ को दुहो जात है कि वृषभ को, मेरो लाल बडो भोरो है.

और जो बाबा ने पास आकर देखा तो दोहनी दूध से लबालब भरी है बाबा देखते ही रह गए,सच है हमारे लाला क्या नहीं कर सकते,वे चाहे गईया तो गईया, वृषभ को भी दुह सकते है



मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरों ना कोय....

 प्रेममयी मीराबाई



प्रस्तुति -  कृष्ण मेहता 


मीरा नाम ही अपने आप में पुर्ण है प्रेम के लिए, मीरा ने ये ज़माने को बताया की विरह कोई तकलीफ या चिंता नहीं ये तो वो अवस्था है प्रेम का जब ह्रृदय के रोम-रोम में प्रेमी उतर जाता है। मीरा का नृत्य भी प्रेममयी था, उसका गान भी अमर हो गया।वो जो सिर्फ एक श्याम नाम की दिवानी थी लोग उसे मीरा दिवानी बुलाने लगे।


संसार का ये दुर्भाग्य रहा है की वो हमेशा से महान आत्माओं को पहचानने में भूल करता रहा है।

मीरा जब तक रही श्याम नाम का प्रेम बांटती रही लेकिन बदले में संसार ने उन्हे क्या दिया,हलाहल विष का प्याला!भूखे नाहर को भेज दिया मीरा को खाने के लिए, विषैले सर्प को डसने के लिए छोड़ दिया लेकिन प्रेम की ताकत नफरत,ईष्या से बहुत बड़ी होती है।


हलाहल विष को जब नाम चरणामृत दिया गया तो श्याममयी मीरा वो भी हंसते हंसते पी गयी और कहानी कहती है की विष का प्रभाव इतनी तेज थी की द्वारिकाधीश के मुर्ति से झाग निकलने लगी।


 प्रेम में ये विश्वास हो की प्रेमी के नाम से दिया गया विष भी चरणामृत समझ के पी लिया जाए तो वो प्रेमी जो सर्वप्रकार का समर्थ है कैसे देर करता।

मीरा के पास जब टोकरी में भर के विषैला सर्प भेजा गया ये कहलवा कर की इसमें ठाकुर जी है तो मीरा दौड़ पड़ी उस टोकरी की तरफ़,अहा कितना अद्भुत नजारा होगा वो सर्प की जगह वहां साक्षात शालिग्राम थे।


वो शालिग्राम आज भी आपको वृंदावन के मीरा मंदिर में देखने को मिल जाएगा। जिसमें शालिग्राम स्वयं विराजमान है।

राणा जब थक गया लाख प्रयत्न करने के बाद भी तो भूखे शेर को मीरा के महल में भिजवा दिया।सारी दासियां लोग भागने लगे उसके भय से।


एक दासी मीरा से भी कहती है आप भी यहां से तुरंत निकल जाइए आपके लिए भूखे शेर को भेजा गया है ये सुनते ही प्रेम की मतवाली मीरा आरती और फूल का थाल लिए भूखे शेर की तरफ़ दौड़ पड़ी ये कहते कि अहो भाग्य मेरे जो भगवान नृसिंह स्वयं यहां पधारें।शेर चुपचाप मीरा के सामने खड़ा रहा और मीरा उसका सत्कार करती रही।


मीरा जैसे सिर्फ़ और सिर्फ़ मीरा हो सकती थी।उसके प्रेम की महिमा अपरंपार है जिसे किसी भी शब्दों में,शास्त्रों में कहा नहीं जा सकता।


मीरा के तो गिरधर गोपाल दूसरा न कोय


प्रेम विश्वास के साथ त्याग भी मांगता है,दुनिया लाख कहे मीरा बावरी हो गयी है, मीरा कुलनाशी है लेकिन प्रेम का शब्द प्रेम का रस सिर्फ और सिर्फ प्रेम करने वाला ही समझ सकता है।


राणा हर तरफ़ से जब मीरा को नुकसान नहीं पहुंचा पाया तो परपुरूष से बात करने का इल्जाम लगा, घूस गया मीरा के कक्ष में लेकिन वहा श्याम मुर्ति और मीरा के सिवाय और कौन हो सकता था। राणा ने अंहकार में भर कर जब मीरा से पूछा की 

"किससे बाते कर रही थी कहा है तुम्हारा वो आशिक? जिसके लिए तुम कूल की मर्यादा भी भूल बैठी हो नाचती रहती हो गाती रहती हो सबके सामने"


मीरा हंसी बस एक इशारा ही काफी था ,ऊंगली श्याम मुर्ति की तरफ घूमा दी,राणा ये देख आपा खो बैठा उठाया वो श्याम मुर्ति और फेक दिया खिड़की से बाहर बगल में बहने वाली झील की तरफ़ और हाय रे वो प्रेम की परिकाष्ठा, मीरा ने एक क्षण भी नहीं गंवाया, कूद पड़ी उसी खिड़की से मुर्ति की ओर ,वो दुनिया के लिए बस एक साधारण मुर्ति हो सकता था लेकिन मीरा के लिए तो वही पति, वही प्रेमी वही सब कुछ था।


कहानी कहती है की मीरा कुदी तो मेवाड़ के राजमहल के झील में लेकिन जब बाहर निकली तो प्रेम स्थली श्रीधाम वृंदावन के युमना से।


मीरा की प्रेम की यही परिकाष्ठा थी ,जो वृंदावन 4500 सालों से उजाड़ थी उसमें फ़िर से रौनक आ गयी।प्रेमी तो जहां भी जाता है अपने प्रेम से कण-कण में प्रेम भर देता है

सतसंग के उपदेश, भाग do *बचन (20)*

मालिक की दया का भरोसा रखने से ज़िन्दगी के दुख बरदाश्त करने में भारी सहायता मिलती है।*


            *शहर कलकत्ता के एक रईस ने ज़िन्दगी से दुखी होकर अव्वल अपने दो निरपराध बच्चों को ज़हर पिलाया और बाद में ख़ुद ज़हर पी कर परलोक को सिधार गया और यह तहरीर छोड़ गया कि उसका विश्वास परमात्मा की हस्ती से उठ गया था और उसने ज़िन्दगी से तंग आकर ये कर्म किये। सब जानते हैं कि जब इन्सान मुसीबतों से घिर जाता है और बावजूद हर क़िस्म की मेहनत व कोशिश के अपनी हालत ख़राब पाता है तो ख़ुदा, देवी, देवता, भूत, प्रेत की जानिब मुख़ातिब होता है और जब उस जानिब से भी मायूसी हो जाती है तो पागल होकर जो मन में आता है कर गुज़रता है और अक्सर ख़ुदकुशी (आत्मघात) कर लेता है इसलिये इस रईस से जो कर्म बन पड़ा वह इतना आश्चर्यजनक नहीं है मगर इस घटना से एक निहायत मुफ़ीद मतलब सबक़ हासिल होता है यानी यह कि जब तक इन्सान का मालिक की दया में विश्वास क़ायम रहता है वह हिम्मत नहीं हारता, वह सख़्त से सख़्त मुश्किल बरदाश्त करता हुआ बेहतरी की राह देखता है। यानी मालिक की दया का भरोसा एक ऐसा लंगर है जिसे गिराकर इन्सान ज़िन्दगी के समुद्र की लहरों से बेख़ौफ़ आशा की नाव में बैठा हुआ दुनिया का तमाशा देख सकता है। लेकिन चूँकि आम लोगों को न तो मालिक का कुछ पता है और न ही उसकी ज़ात में सच्चा विश्वास है इसलिये अक्सरऔक़ात मामूली झोंके आने पर लंगर टूटकर उनकी आशा की नाव डूब जाती है। इसके अलावा अक्सर लोग ख़्वाहमख़्वाह दया का भरोसा बाँधकर अपनी हैसियत से बढ़कर सौदे कर बैठते हैं या नाजायज़ फ़ायदा उठाने के लिये मुक़द्दमाबाज़ी करते हैं और वक़्तेमुनासिब आने पर मायूसी का मुँह देखते हैं। सन्तमत यह ज़रूर सिखलाता है कि हर प्रेमीजन को मालिक की हस्ती व दया में सच्चा व गहरा विश्वास रखना चाहिये लेकिन साथ ही यह भी सिखलाता है कि उस मालिक को हाज़िर व नाज़िर जानकर किसी ऐसे कर्म का भागी न बनना चाहिये और न कोई ऐसी उम्मीद बाँधनी चाहिये कि जिससे वह परमार्थी आदर्श से गिर जाय। सच्चे मालिक की दया में भरोसा इसलिये नहीं बँधवाया जाता कि हर प्रेमीजन मालिक से अपनी मर्ज़ी के मुआफ़िक़ काम ले और अपनी जायज़ व नाजायज़ इच्छाएँ पूरी करावे बल्कि इसलिये कि नामुवाफ़िक़ हालात के आने  पर उसका धीरज बना रहे और वह हरक़िस्म की ग़ैरज़रूरी चिन्ता व फ़िक्र से आज़ाद रहकर मुनासिब यत्न व कोशिश कर सके। जब तक हमारा इस दुनिया में क़याम है तबतक दुनियवी ज़रूरियात का और उनके पूरा करने के सिलसिले में विरोधी सूरतों का पैदा होते रहना क़ुदरती बात है। हमारा यह ख़्याल करना क़तई ग़लत व लाहासिल होगा कि हुज़ूरी शरण लेने से हम तमाम सृष्टिनियमों और संसारी तूफ़ानों से बचे रहें। हमें समझ बूझ कर सृष्टिनियमों का पालन करते हुए ज़िन्दगी बसर करनी होगी। हमें दुश्मनों, धोकेबाज़ों और फ़साद करने वालों से बचने के लिये मुनासिब इन्तिज़ाम करना होगा और नीज़ हमें हर क़िस्म की दैविक व भौतिक आपत्तियों को बर्दाश्त करते हुए अपने कर्तव्य पालन करने होंगे लेकिन जैसे आम लोग अपनी ज़िन्दगी रुपये, पैसे और इष्टमित्र की मदद या चालाकी व सीनाज़ोरी के भरोसे पर बसर करते हैं और मुख़ालिफ़ सूरतों के नमूदार होने पर उन्हीं से काम लेते हैं हमें बजाय इनके सच्चे मालिक की दया का भरोसा रखकर दिन काटने होंगे और नामुवाफ़िक़ बातों के ज़ाहिर होने पर मालिक की दया का आसरा लिये हुए मुनासिब यत्न व कोशिश करनी होगी और यह बात बेख़ौफ़ कही जा सकती है कि इन उसूलों पर चलने से किसी भी प्रेमीजन को मायूसी का मुँह न देखना पड़ेगा। यह मुमकिन है कि कुछ अर्से के लिये किसी की मुश्किलों में **ज़ाहिरन् इज़ाफ़ा होता जावे और उसे किसी जानिब से मदद की सूरत दिखलाई न दे लेकिन यह नहीं हो सकता कि कोई प्रेमीजन, जो सँभलकर चाल चलता है और परमार्थी आदर्श को हमेशा निगाह के रूबरू रखता है, हमेशा के लिये या बहुत समय के लिये चिन्ता व फ़िक्र की आग में डाला जावे।*


*सतगुरु किसे कहते हैं?*


*(परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)*


*(17 जून, सन् 1934 ई. आदित्य मुक़ाम कुर्तालम)*


*आज शाम का सतसंग इस मनोहर शब्द से शुरू हुआ जिसकी पहली कड़ी निम्नलिखित हैः-*


*‘मेहर होय कोई प्रेमी जाने ऐसा गुरू हमारा’*

*इस मनोहर शब्द का श्रोताओं पर गहरा असर हुआ जिसको सुनकर प्रेमी भाई और बहनें अत्यंत प्रभावित हुए। इसमें सतगुरु की महिमा और बड़ाई का वर्णन है जिससे हर मुल्क के जिज्ञासु हर ज़माने में प्रकाश प्राप्त करेंगे। नीचे पूरा शब्द लिखा जाता हैः-*      **मेहर  होय कोई  प्रेमी जाने  ,    ऐसा    गुरू     हमारा         ।।टेक।।*


*रूप  रंग  रेखा नहिं  ताके    ,    नहिं   गोरा  नहिं  कारा       ।।1।।*


*सर्व निवासी घट घट  बासी ,    तीन   लोक    के  पारा        ।।2।।*


*मौज होय जग देह धर आवे ,    जीवन     करे    उबारा        ।।3।।*


*भक्ति भाव  की रीति चलावे ,    प्रेम   प्रीति   की   धारा       ।।4।।*


*चिन्ता  में  सद रहे अचिन्ता ,    हर्ष   सोग    से   न्यारा        ।।5।।*


*चरन सरन दे दास भक्त का ,    मेटे   दुख   भय    सारा       ।।6।।*


*काज  करे  कर्ता  नहिं  होवे ,    अचरज    अकथ  ब्योहारा   ।।7।।*


*बुधि   चतुराई  मूर्छा  खाई  ,    ज्ञान   जोग  थक  हारा        ।।8।।*


*जा पर मेहर करी राधास्वामी, (घट)  अन्तर  रूप निहारा   ।।9।।*

*आज रात को जो हुज़ूर साहबजी महाराज ने इसी शब्द पर बचन फ़रमाया उससे शब्द का भावार्थ अधिक स्पष्ट रूप से उपस्थित भाइयों को विदित हो गया जिसको संक्षेप में नीचे लिखा जाता है:-*

*यह शब्द इसलिए बड़ा आवश्यक है कि इसमें गुरु-भक्ति की फ़िलासफ़ी बयान की गई है।* *हमारे मत में गुरु भक्ति पर कमाल ज़ोर दिया जाता है। कुछ सतगुरुभक्ति को मर्दुमपरस्ती ख़्याल करते हैं हमने इन लोगों की नुक्ताचीनी का जवाब देने के लिये यह शब्द बनाया था।* *इस शब्द में हमने सतगुरु गति वर्णन की है जैसी कि हमारे मत में सिखलाई जाती है।*

*सच्ची बात यह है कि सतसंगियों की विवेकशक्ति पर, यदि वह कुलमालिक के अवतार को केवल मनुष्य समझें, बड़ा आक्षेप आयेगा।* *हम किसी मनुष्य के शरीर व मन को मालिक का अवतार नहीं समझते, न ही सतगुरु के शरीर या मन में आध्यात्मिकता पाई जाती है, वह तो केवल शारीरिक और मानसिक मसाले के बने हैं इसलिये वह कैसे कुल मालिक के प्रतिनिधि हो सकते हैं।* *हम सतगुरु के शरीर को वह ग़िलाफ़ समझते हैं जिसमें मालिक की धार विराजमान है क्रियाशील है। स्थूल शरीर कपड़े मात्र हैं जिन्हें कि सतगुरु केवल शारीरिक नियमों के अधीन ग्रहण करते हैं क्योंकि कोई शक्ति यानी शारीरिक शक्ति भी अपने इज़हार के लिये बगै़र वसीला के काम नहीं करती।* **कोई उष्णता को देख नहीं सकता हालाँकि उष्णता अनुभव की जा सकती है। इसी तरह बिजली वस्तु क्या है कोई नहीं कह सकता केवल अनुमान की जा सकती है। बिजली की शक्ति देखी या अनुभव नहीं की जा सकती। इसका ज्ञान केवल वस्तु के द्वारा किया जा सकता है। तमाम शक्तियों को अपने इज़हार के लिये ग़िलाफ़ धारण करना पड़ता है। इसी कानून की रू से कुल मालिक की शक्ति को भी मनुष्य जाति के उद्धार के लिये आवरण धारण करना पड़ता है।* *यदि परम शक्ति किसी देव का शरीर धारण करके, जिसका सिर आसमान पर और पैर पाताल में हों, उतरे और ऐसी भाषा बोले जिसको यहाँ कोई नहीं समझ सकता।* **तो उसकी शिक्षा को कोई नहीं समझेगा और उसका अवतार धारण करना व्यर्थ जायगा इसलिये दया के मिशन की कामयाबी उसी* *सूरत में संभव है जब कुल मालिक मनुष्य-शरीर धारण करे और आध्यात्मिक शक्ति स्वयं शरीर पर क़ाबू नहीं पा सकती, न उसे उपयोग कर सकती है बल्कि उसे मानसिक ग़िलाफ़ की ज़रूरत होती है इसलिये सतगुरु मन भी धारण करते हैं।*  **सतसगुरु की शक्ति उनके शरीर और मन को जान देती है इसके अलावा अपने मिशन की पूर्ति करती है। आम आदमियों की तरह सतगुरु में आध्यात्मिक शक्ति सोई हुई नहीं होती।* *जैसे कोयला तभी मनुष्य के लिये हितकर सिद्ध हो सकता है जब उसके अन्दर गर्मी की लहरें क्रियाशील हो जायँ।*

*यहाँ पर यह वर्णन करना उचित होगा कि आत्मा के दो कर्म हैं-* *प्रथम उसका पैदा करने वाला अंग, जिससे हममें से प्रत्येक मनुष्य जानकार है अर्थात् हमारा शरीर सुरत से बनाया जाता है, जिसको उसका* *रचनात्मक अंग कहते हैं। इसका दूसरा अंग, जो हममें से प्रायः बहुतों में सोया हुआ है, इसको बोधनात्मक अंग कहते हैं। इसका सुरत की बोधनात्मक अवस्था से सम्बंध है और यह काम प्रत्येक मनुष्य में नहीं होता परन्तु सतगुरु में यह काम होता रहता है। सतगुरु की सुरत का कुल मालिक से सीधा मिलाप होता है।* *सतगुरु का शरीर दूसरे लोगों के शरीर के अनुसार ही होता है परन्तु उनके शरीर के अंदर सुरत जाग्रत होती है और उसका कुल मालिक के साथ सीधा सम्बंध रहता है जैसा कि समुद्र के क़रीब दरिया होते हैं रात के वक्त़ समुद्र के पानी का लेबल चाँद के* *खिंचाव के कारण ऊँचा हो जाता है और यह दरियाओं में चला जाता है। कभी*

17 शक्तिपीठ

 *🌹💐भारत के ऐसे 17 शक्तिपीठ जिनके दर्शन हर माता के भक्त को करने चाहिए*

*प्रस्तुति -कृष्ण मेहता


1. अर्बुदा देवी : - अर्बुदा देवी माउंट आबू (राजस्थान) का एक शक्तिपीठ है जो बेहद पवित्र माना जाता है. अर्बुदा पर्वत पर सती के औंठ/”अधर” गिरे थे। जिसकी वजह से इसे अधर या अरबुदा देवी का घर कहा जाने लगा. अर्बुदा देवी को बारिश देने के लिए माना जाता है. राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्र में बारिश को जीवन और शान्ति हेतु पूजा जाता है. मंदिर आबू की पहाड़ी पर स्थित है जहां पहुंचने के लिए 365 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती हैं. यहां की गुफा के भीतर एक चिराग लगातार जलता रहता है और भक्त इस प्रकाश को शक्ति का दर्शन कहते हैं. यहां चैत पूर्णिमा और विजया दशमी पर मेले का आयोजन होता है।


2. कौशिक : - अल्मोड़ा से 8 किलोमीटर की दूरी पर काशाय पर्वतों पर स्थित है यह शक्तिपीठ. देश के अलग-अलग इलाकों से दर्शनार्थी यहां पूजा-अर्चना हेतु यहां आते हैं. काठगोदाम रेलवे स्टेशन से आपको यहां पहुंचने के कई साधन मिल जाएंगे।


3. हरसिद्धि माता : - हरसिद्धि माता की चौकी राजा विक्रमादित्य की मशहूर राजधानी उज्जैन में स्थित है. यह पवित्र स्थान महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग के नज़दीक स्थित है. बड़ी दूर-दूर से श्रद्धालु यहां दर्शन हेतु आते हैं. यहां के आस-पास के इलाकों में हरसिद्धि माता के चमत्कार के कई किस्से कहे-सुने जाते है।


4. सत् यात्रा : - ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से 3 मील की दूरी पर और नर्मदा नदी के तट पर स्थित है यह शक्तिपीठ। इसे सप्तमातृका मंदिर के तौर पर भी जाना जाता है, जिसका अर्थ ब्राम्ही, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वराही, नरसिंहि और ऐन्द्री होता है. इस तीर्थ स्थल पर इन सभी देवियों के मंदिर हैं. और यहां के प्राकृतिक नज़ारे तो बस आपका मन मोह लेंगे।


5. काली : - यह शक्तिपीठ कोलकाता में स्थित है. भागीरथी नदी के तटों पर स्थापित यह मंदिर हावड़ा रेलवे स्टेशन से 5 कि.मी की दूरी पर है. मंदिर के भीतर त्रिनयना, रक्तांबरा, मुंडमालिनि और मुक्ताकेशी की चौकियां स्थापित हैं. पूरे बंगाल में इसे बड़ी श्रद्धा की नज़र से देखा जाता है और इसको लेकर कई चमत्कारिक कहानियां कही सुनी जाती हें. कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस पर साक्षात मां काली की कृपा थी।


6. गुहेश्वरी : - गुहेश्वरी नामक यह अति मशहूर पीठ नेपाल की राजधानी काठमांडू में स्थित है. यह शक्तिपीठ बागमती नदी के तट पर पशुपतिनाथ मंदिर के नज़दीक है. मां गुहेश्वरी का नाम पूरे नेपाल में बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है. नवरात्र के दौरान नेपाल का राजघराना अपने पूरे परिवार के साथ बागमती नदी में स्नान के पश्चात् यहां दर्शन-पूजन हेतु यहां आता है।


7. कालिका ;- भगवती कालिका का यह शक्तिपीठ कालका जंक्शन के नज़दीक दिल्ली-शिमला रूट पर स्थित है. कहावत है कि शुम्भ-निशुम्भ से के दुराचारों से परेशान होकर सभी देवता भगवान विष्णु के पास सहायता के लिए तप करने चले गए थे।


जब मां पार्वती ने पूछा कि वे किसकी स्तुति कर रहे हैं, तभी वहां मां पार्वती का एक और रूप प्रकट हुआ और उनके अश्वेत वर्ण की वजह से उसे कालका नाम से जाना गया।


8. दुर्गा शक्तिपीठ : - मां महालक्ष्मी, महाकाली और महासरस्वती वाराणसी में त्रिकोणीय शक्ति का केंद्र हैं. इन शक्तिपीठों की स्थापना के साथ ही अलग-अलग कुंडों की भी स्थापना की गई थी, जिसमें से लक्ष्मी कुंड और दुर्गा कुंड आज भी वाराणसी में विद्यमान हैं. 

इन शक्तिपीठों के अलावा वाराणसी में नवदुर्गा अर्थात् शैलपुत्री, ब्रम्हचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंद माता, कात्यायनी, काल रात्रि, महागौरी और सिद्धि रात्रि भी विराजमान हैं।


इन सारे चौकियों की व्याख्या शब्दों में करना बड़ा मुश्किल है, और पूरी दुनिया से श्रद्धालु यहां दर्शन-पूजन हेतु यहां आते हैं।


9. विद्धेश्वरी पीठ : - यह पुरातन मंदिर हिमाचल प्रदेश राज्य के कांगड़ा में स्थित है. कांगड़ा रेलवे स्टेशन पठानकोट और योगिन्दरनगर के बीच मेन रूट पर पड़ता है।


इस मंदिर को प्रमुख शक्तिपीठों में शुमार किया जाता है, और यदि पुराणों को माना जाए तो यहां माता सती का सिर गिरा था. इस मंदिर में मां सती की सिरनुमा प्रतिमा स्थापित है एवं इसके ऊपर सोने का छाता लगा हुआ है. इसके दर्शन हेतु पूरी दुनिया से श्रद्धालु यहां आते हैं. यहां मंदिर परिसर में एक कुंड भी स्थित है।


10. महालक्ष्मी पीठ : - मां महालक्ष्मी की यह चौकी कोल्हापुर में स्थित है, जहां किसी जमाने में शिवाजी के वंशज राज किया करते थे. अगर देवी भागवत और मत्स्य पुराण की मानें तो यह पवित्रतम पूजन स्थल है.पूरे महाराष्ट्र में इससे पवित्र स्थल कोई नहीं है, जहां पूरे देश से लाखो श्रद्धालु पूजन हेतु आते हैं।


11. योगमाया : - योगमाया मंदिर कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से 15 मील की दूरी पर स्थापित है, जिसे क्षीर भवानी योगमाया मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।


यह मंदिर एक द्वीप पर है जो चारो तरफ पानी से घिरा है. और यहां के पानी का बदलता रंग आपकी इच्छा और कामना के पूरे होने की कहानी कहता है. जेठ मास में यहां एक बहुत बड़ा मेला लगता है।


12. अम्बा देवी : - अम्बा देवी का यह मंदिर जूनागढ़ के गिरनार पहाड़ियों पर स्थित है. यह मंदिर काफ़ी ऊंचाई पर स्थित है. यहां तक पहुंचने के लिए 6000 सीढ़ियां और तीन चोटियां चढ़नी पड़ती हैं. 

यहां तीनों चोटियों पर अलग-अलग मां अम्बा देवी, गोरक्षानाथ और दत्तात्रेय के मंदिर स्थापित हैं. घने जंगलों के बीच मां अम्बा की यह विशाल प्रतिमा और मंदिर अद्भुत नज़ारे प्रस्तुत करता है. यहां की एक गुफा में मां काली का मंदिर स्थापित किया गया है, जहां भक्तों का तांता लगा रहता है।


13. कामाख्या पीठ : - यह अतिप्रसिद्ध और सिद्ध शक्तिपीठ आसाम में गुवाहाटी से 2 मील की दूरी पर स्थित है. कालिका-पुराण के अनुसार यहां मां सती का यौनांग गिरा था. इस पवित्र स्थल को “योनि-पीठ” के तौर पर जाना जाता है जो गुफा के भीतर स्थापित है. यहां एक कुंड भी स्थित है, जिसमें फूलों की भरमार है. इसे महाक्षेत्र के नाम से जाना जाता है।


माना जाता है कि मां भगवती को यहां मासिक धर्म की वजह से रक्तस्त्राव होता है और यह मंदिर इस दौरान बंद रहता है. यहां से 16 कि.मी की दूरी पर प्रसिद्ध “कामरूप” मंदिर स्थित है. इस इलाके में रहने वाली औरतों के मोहपाश में बांधने के किस्से दूर-दूर तक कहे सुनाए जाते हैं।


14. भवानी पीठ : - यह पवित्र पूजन स्थल चित्तागौंग से 24 मील की दूरी पर स्थित है जिसे सीताकुंड के नाम से भी जाना जाता है. यह प्रसिद्ध भवानी मंदिर नज़दीक चंद्रशेखर पर्वतों के ऊपरी भाग में स्थित है. यहां “वाराव” नाम का एक कुंड स्थित है. और यहीं नज़दीक में एक कभी न बुझने वाली ज्योति प्रज्वलित रहती है।


15. कालिका पीठ : - मां काली के मंदिर के तौर पर फेमस यह बेहद प्राचीन सिद्धपीठ ऐतिहासिक चित्तौड़गढ़ में स्थित है. यहां मंदिर के स्तंभों में आकृतियां उभारी गयी हैं और यहां एक कभी न बुझने वाला दीप भी प्रज्वलित रहता है।

इस किला परिसर में तुलजा भवानी और माता अन्नपूर्णा के भी मंदिर स्थापित हैं।


16. चिंतपूर्णी : - होशियारपुर से 30 कि.मी की दूरी पर मां चिंतपूर्णी को समर्पित यह पीठ पर्वतीय इलाकों में अद्भुत छटा बिखेरता है. कांगड़ा घाटियों में स्थित मां चिंतपूर्णी, मां ज्वालामुखी और मां विद्धेश्वरी के रूप मं स्थापित यह तीनों केंद्र हर वर्ष लाखों श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचते हैं. अब बाद बाकी आप जाइए और मां के दर्शन कर आइए।


17. मां विन्ध्यवासिनी : - उत्तरप्रदेश के चुनार रेलवे स्टेशन से 2 मील की दूरी पर स्थित यह मंदिर विन्ध्य पर्वत श्रृंखला पर स्थित है. यहां मंदिर का प्रवेश द्वार बड़ा ही संकरा है जैसे कोई खिड़की हो. यहां पूरे उत्तर भारत के लोगों के साथ-साथ कई जानी मानी हस्तियां दर्शन हेतु यहां आती हैं. यहां का दृश्य बड़ा ही मनोरम है. यहां आने वाले श्रद्धालु बताते हैं कि उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

Friday, February 26, 2021

28/02 को भंडारा के आसपास के कार्यक्रम और सूचना

🌾🌾🌾🌾🌾🌾🌾 सुबह 27-2-21 को होने वाले खेतों का कार्यक्रम:


 जनरल पार्टी के भाईसाहबान, बहनें, सुपरमैन स्कीम के बच्चे, आलू निकालने के लिए नेहर के उत्तर जाएंगे।


आलू सीधे ट्राली में लोड होता है, इसलिए अपने साथ आलू इकट्ठा करने के लिए पुरानी चादर, छोटा तसला, टब या छोटी बाल्टी, टोकरी लेकर आएं।


 राधास्वामी ।

[2/26, 19:24] +91 97176 60451: *भण्डारा  प्रोग्राम  - परम  गुरु  हुजूर  साहब  जी  महाराज,  २८  फरवरी,  २०२१ (रविवार)* 


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 *२६ - ०२ - २०२१ (शुक्रवार)* 


 *सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *पावन  समृतालय (पावन  कक्ष  व  अन्य  कक्ष)*  - उपदेश  प्राप्त  बहनों  के   लिए  सुबह  ९  बजे  से  १२  बजे  तक


 *शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*२७ - ०२ - २०२१ (शनिवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *पावन  समृतालय (पावन  कक्ष  व  अन्य  कक्ष)*  - उपदेश  प्राप्त  भाईसाहबान  के  लिए  सुबह  ९  बजे  से  १२  बजे  तक


 *शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*२८ - ०२ - २०२१ (रविवार)* - *परम  गुरु  हुजूर  साहब  जी  महाराज  के  भण्डारे  का  दिन* 


 *आरती  व  खेतों  का  काम* -  सुबह  ३.४५  बजे


*भण्डारा  और  सेल*  - ग्रेसियस  निर्देशो  द्वारा


 *शाम  का  सतसंग  व  खेतों  का  काम*  -  शाम  ३.४५  बजे


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*०१ - ०३ - २०२१ (सोमवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *पावन  समृतालय (अन्य  कक्ष)*  (सुबह  ९  बजे  से  सुबह  १०.३०  बजे  तक)  -   जिज्ञासु   बहनों  के  लिए,  १५  वर्ष  तक  के  लड़के  व  लड़कियों  के  लिए,  संत  (सु)परमैन   स्कीम  के  बच्चे  व  उनकी  माताओं  के  लिए। 


*पावन  समृतालय (अन्य  कक्ष)*  (सुबह  १०.३०  बजे  से  दोपहर  १२  बजे  तक)  -   जिज्ञासु   भाइयों  के  लिए,  १५  वर्ष  से  बड़े  लड़कों  के  लिए,  संत  (सु)परमैन   स्कीम  के  बच्चे  अपने  पिता  के  साथ।


 *भेंट*  (अनुमति  प्राप्त  क्षेत्र  के  उपदेश  प्राप्त  सत्संगियां  द्वारा  भेंट / ऑनलाइन  भेंट) -   सुबह  १०  बजे  से  दोपहर  १  बजे  तक


 *शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*०२ - ०३ - २०२१ (मंगलवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *जोनल  सतसंग*  -. ग्रेसियस  निर्देशो  द्वारा


 *शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*०३ - ०३ - २०२१ (बुधवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *सत्संगियों  का  प्रस्थान* 


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*उपदेश  प्राप्त  करने  के  इच्छुक  जिज्ञासुस  को  सेक्रेटरी  सभा  द्वारा अधिक  समय  तक  रहने  की  अनुमति  दी  जा  सकती  हैं। उपदेश  आवेदकों   के  लिए  (चार  दिनों  का  फील्ड  वर्क  अटेंडेंस  अनिवार्य  है)।*


*राधास्वामी*

ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं संत सतगुरु /

ईश्वर के प्रतिनिधि होते हैं संत सतगुरु 


प्रस्तुति पं0 कृष्ण मेहता** 

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संत किसे कहते हैं? 

संत-जीवन का आदर्श क्या है? 

किन लक्षणों द्वारा संत का यथार्थ परिचय प्राप्त हो सकता है?


 इस तरह के प्रश्न प्राय: हमारे मन में उठते रहते हैं। श्रीमद्भागवत महापुराणमें स्वयं भगवान इस संदर्भ में प्रकाश डालते हुए कहते हैं- संत सब पर दया करने वाला, किसी से भी द्रोह न करने वाला, परनिंदा आदि दोषों से रहित, सुख-दु:ख में समान भाव वाला, तितिक्षु, सत्यवादी, सबका उपकार करने वाला, विषयों से विचलित न होने वाला, जितेंद्रिय, कोमल चित्त, पवित्र, अकिंचन, निष्कामी,स्वल्प भोजन करने वाला, शांत, स्थिर, भगवत्परायण,मननशील,सावधान, गंभीर, संकट में भी धैर्य रखने वाला, भूख, प्यास, शोक, मोह, जरा और मृत्यु इन छहों विकारों पर विजयी, मान न चाहने वाला, दूसरों को मान देने वाला, दक्ष, सबसे मैत्री रखने वाला, कारुणिक और ज्ञानवान होता है।

संतों के जीवन में आत्मा के आठ गुणों का विकास होता है।

 गौतमस्मृति में आत्मा के आठ गुण बताए गये हैं-

 ••••••••••••दया, क्षमा, अनसूया,शौच, अनायास, मंगल, अकार्पण्यऔर अस्पृहा।इनके लक्षण बृहस्पतिस्मृतिमें विस्तार से बताए गए हैं। 


महाभारत का मत है-  

""आचार लक्षणोधर्म: सन्तश्चाचारलक्षणा:""

अर्थात् आचार ही धर्म का लक्षण है, सदाचारी होना ही संत का लक्षण है। 


""सतां सदा शाश्वतधर्मवृत्ति:। 

सन्तोन सीदन्तिन चव्यथन्ते॥""


संत सदा धर्म का पालन करते हैं। संत कभी घबराते और दुखी नहीं होते हैं। श्रीमद्भगवद्गीतामें योगेश्वर श्रीकृष्ण ने सत्पुरुष के चालीस लक्षण गिनाए हैं।


देवर्षिनारद भक्तिसूत्र में संतों का संग दुर्लभ और अमोघफलदायकबताते  हैं। सच्चे संत परमसुख(मोक्ष) का कारण बनते हैं। 


आद्यशंकराचार्यका कथन है कि ""जिस सत्पुरुष ने परब्रह्म का साक्षात्कार कर लिया है, उसके लिये सम्पूर्ण जगत नन्दनवन है, समस्त वृक्ष कल्पवृक्ष हैं, सारा जल गंगाजल है, उसकी वाणी चाहे प्राकृत हो या संस्कृत, वह वेद का सार है, उसके लिए सारी पृथ्वी काशी है। ऐसे संत का एक क्षण के लिए भी संग हो जाए, तो वह सत्संग भवसागर से पार उतार देने वाला होता है।


 महर्षि वेदव्यासका मानना है कि जल में डूबते हुए लोगों के लिए संत दृढ नौका के समान हैं। 

भयानक संसार-समुद्र में गोते खाने वालों के लिए ब्रह्मवेत्ताशांतचित्त संतजनही परम अवलम्ब (सहारा) हैं।

जैसे-जैसे पुरुष सांसारिक पदार्थोसे निवृत्त होता है, तैसे-तैसे वह दुखों से मुक्त होता जाता है। संत निवृत्तिपरायण(त्यागी) होते हैं, इसलिए वे सदा आनन्दमग्न रहते हैं। संसारिकइच्छाओं का अंत हो जाने पर ही व्यक्ति संत बन सकता है। 


""जो लोग क्षुद्र सिद्धियों का प्रदर्शन कर अपने नाम-रूप की पूजा कराना चाहते हैं, वे तो संत हैं ही नहीं। ""


बल्कि आजकल तो बहुत लोग ऐसे मिलते हैं, जिनको यथार्थ में योगविभूतियां(सिद्धियां) भी प्राप्त नहीं हैं। ऐसे तथाकथित महात्मा अपनी चतुराई से भोले-भाले सीधे-सादे लोगों को ठगते हैं।


 संत का वास्तविक चमत्कार तो उसका ईश्वर को समर्पित जीवन-दर्शन है। सच्चे संत प्राय: अपने को जनसाधाणमें प्रकट नहीं करते हैं वरन वे गुप्त रूप से लोक-कल्याण में योगदान देते हैं। वे बडे-बडे आश्रम बनाने और सुख के संसाधन जुटाने में नहीं फंसते। स्वप्रचारसे वे कोसों दूर रहते हैं।


संत-भाव की प्राप्ति में सबसे बडा विघ्न है- 

•""कीर्ति की कामना।""

       स्त्री-पुत्र, घर-द्वार, धन-सम्पत्ति का त्याग कर चुकने वाला पुरुष भी कीर्ति की मोहिनी में आसक्त हो जाता है। जिस मनुष्य की साधना चुपचाप चलती है, उसको इतना डर नहीं है परन्तु जिसके साधक होने का पता लोगों को हो जाता है, उसकी ख्याति चारों ओर फैलने लगती है। फिर उसकी पूजा-प्रतिष्ठा चालू हो जाती है। 


साधक प्रसिद्धि के मोह-पाश में जरा भी फंसा कि उसका पतन आरंभ हो जाता है। जब भक्तों द्वारा इंद्रियों को आराम पहुंचाने वाले भोग-पदार्थ समर्पित होने लगते हैं, तब उनकी वासना जागृत होकर और भी प्रबल हो उठती है। 


इंद्रियां मन को खींचती हैं, मन बुद्धि को और जहां बुद्धि अपने परम लक्ष्य परमात्मा को छोडकर विषय-सेवन परायणा इंद्रियों के अधीन हो जाती है, वहीं सर्वनाश हो जाता है। 


अतएव संत को तडक-भडक से बचते हुए सादगी के साथ जीवन व्यतीत करना चाहिए। 


संयम संत का ब्रह्मास्त्र है।

बजरंग बाण के चमत्कार - कृष्ण मेहता

 बजरंग बाण के चमत्कार


**प्रस्तुति - कृष्ण मेहता


बजरंगबाण से विवाह बाधा खत्म कदली वन, या कदली वृक्ष के नीचे बजरंग बाण का पाठ करने से विवाह की बाधा खत्म हो जाती है। यहां तक कि तलाक जैसे कुयोग भी टलते हैं !

 बजरंग बाण से ग्रहदोष समाप्त अगर किसी प्रकार के ग्रहदोष से पीड़ित हों, तो प्रात:काल बजरंग बाण का पाठ, आटे के दीप में लाल बत्ती जलाकर करें। ऐसा करने से बड़े से बड़ा ग्रह दोष पल भर में टल जायेगा। 


-साढ़ेसाती-राहु से नुकसान की भरपाई अगर शनि,राहु,केतु जैसे क्रूर ग्रहों की दशा,महादशा चल रही हो तो उड़द दाल के 21 या 51 बड़े एक धागे में माला बनाकर चढ़ायें। सारे बड़े प्रसाद के रुप में बांट दें।

 आपको तिल के तेल का दीपक जलाकर सिर्फ 3 बार बजरंगबाण का पाठ करना होगा।

 -बजरंगबाण से कारागार से मुक्ति अगर किसी कारणवश जेल जाने के योग बन रहे हों, या फिर कोई संबंधी जेल में बंद हो तो उसे मुक्त कराने के लिए हनुमान जी की पूंछ पर सिंदूर से 11 टीका लगाकर 11 बार बजरंग बाण पढ़ने से कारागार योग से मुक्ति मिल जाती है। अगर आप हनुमान जी को 11 गुलाब चढ़ाते हैं या फिर चमेली के तेल में 11 लाल बत्ती के दीपक जलाते हैं तो, बड़े से बड़े कोर्ट केस में भी आपको जीत मिल जायेगी। 

-सर्जरी और गंभीर बीमारी टाले बजरंग बाण कई बार पेट की गंभीर बीमारी जैसे लीवर में खराबी, पेट में अल्सर या कैंसर जैसे रोग हो जाते हैं, ऐसे रोग अशुभ मंगल की वजह से होते हैं। अगर इस तरह के रोग से मुक्ति पानी हो तो हनुमान जी को 21 पान के पत्ते की माला चढ़ाते हुए 5 बार बजरंग बाण पढ़ना चाहिये। ध्यान रहे कि बजरंगबाण का पाठ राहुकाल में ही करें। पाठ के समय घी का दीप ज़रुर जलायें। 

-छूटी नौकरी दोबारा दिलाए बजरंग बाण अगर नौकरी छूटने का डर हो या छूटी हुई नौकरी दोबारा पानी हो तो बजरंगबाण का पाठ रात में नक्षत्र दर्शन करने के बाद करें। इसके लिए आपको मंगलवार का व्रत भी रखना होगा। अगर आप हनुमान जी को नारियल चढ़ाने के बाद, उसे लाल कपड़े में लपेट कर घर के आग्नेय कोण रखते हैं तो मालिक स्वयं आपको नौकरी देने आ सकता है।

 

-वास्तुदोष दूर करे बजरंगबाण कई बार घर में वास्तुदोष के चलते कई समस्या हो जाती है। तो घर में वास्तुदोष दूर करने के लिए 3 बार बजरंगबाण का पाठ करना चाहिए। हनुमान जी को लाल झंडा चढ़ाने के बाद उसे घर के दक्षिण दिशा में लगाने से भी वास्तुदोष से मुक्ति मिलती है। घर में सकारात्मक ऊर्जा के लिए पंचमुखी हनुमान की प्रतिमा घर के मुख्य द्वार पर लगायें। 

-बजरंग बाण से दवा असर करे कई बार गंभीर बीमारी में दवा फायदा नहीं करती। दवा फायदा करे इसके लिए 2 बार बजरंग बाण का पाठ करना चाहिए। साथ ही साथ संजीवनी पर्वत की रंगोली बनाकर उस पर तुलती के 11 दल चढ़ाने से दवा धीरे धीरे असर करने लगती है।

|| श्री बजरंग बाण ||

॥ दोहा ॥

निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥

जय हनुमन्त सन्त हितकारी, सुन लीजै प्रभु अरज हमारी ।

जन के काज विलम्ब न कीजै, आतुर दौरि महा सुख दीजै।

जैसे कूदि सिन्धु महिपारा, सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।

आगे जाय लंकिनी रोका, मारेहु लात गई सुरलोका ।

जाय विभीषन को सुख दीन्हा, सीता निरखि परमपद लीन्हा ।

बाग उजारि सिन्धु महं बोरा, अति आतुर जमकातर तोरा ।

अक्षय कुमार को मारि संहारा, लूम लपेट लंक को जारा ।

लाह समान लंक जरि गई, जय जय धुनि सुरपुर में भई ।

अब विलम्ब केहि कारन स्वामी, कृपा करहु उर अन्तर्यामी ।

जय जय लखन प्राण के दाता, आतुर होय दु:ख करहु निपाता ।

जै गिरिधर जै जै सुख सागर, सुर समूह समरथ भटनागर ।

ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले, बैरिहि मारू बज्र की कीले ।

गदा बज्र लै बैरिहिं मारो, महाराज प्रभु दास उबारो ।

ॐ कार हुंकार महाप्रभु धावो, बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।

ॐ ह्रिं ह्रिं ह्रिं हनुमन्त कपीसा, ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा ।

सत्य होहु हरि शपथ पायके, राम दूत धरु मारु जाय के ।

जय जय जय हनुमन्त अगाधा, दु:ख पावत जन केहि अपराधा ।

पूजा जप तप नेम अचारा, नहिं जानत हौं दास तुम्हारा ।

वन उपवन मग गिरि गृह माहीं, तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ।

पांय परौं कर जोरि मनावौं, येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।

जय अंजनि कुमार बलवन्ता, शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ।

बदन कराल काल कुल घालक, राम सहाय सदा प्रतिपालक ।

भूत, प्रेत, पिशाच निशाचर, अग्नि बेताल काल मारी मर ।

इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की, राखउ नाथ मरजाद नाम की ।

जनकसुता हरि दास कहावो, ताकी शपथ विलम्ब न लावो ।

जै जै जै धुनि होत अकासा, सुमिरत होत दुसह दु:ख नाशा ।

चरन शरण कर जोरि मनावौं, यहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।

उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई, पांय परौं कर जोरि मनाई ।

ॐ चं चं चं चं चपल चलंता, ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ।

ॐ हं हं हांक देत कपि चंचल, ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ।

अपने जन को तुरत उबारो, सुमिरत होय आनंद हमारो ।

यह बजरंग बाण जेहि मारै, ताहि कहो फिर कौन उबारै ।

पाठ करै बजरंग बाण की, हनुमत रक्षा करै प्राण की ।

यह बजरंग बाण जो जापै, ताते भूत-प्रेत सब कांपै ।

धूप देय अरु जपै हमेशा, ताके तन नहिं रहै कलेशा ।

॥ दोहा ॥

प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान ।

तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करैं हनुमान ॥


बजरंग बाण और उसके तीव्र प्रभाव का कारण

हनुमान जी कलयुग में सर्वाधिक जाग्रत देवता माने जाते हैं जो सप्त चिरंजीवी में से एक हैं ,अर्थात जिनकी कभी मृत्यु नहीं हो सकती ,इनके सम्बन्ध में अनेक किवदंतियां हैं और आधुनिक युग में भी इन्हें कहीं कहीं उपस्थित रूप से माना जाता है अथवा इनकी उपस्थिति समझी जाती है, इन्होने भगवान् राम की ही सहायता नहीं की अपितु अर्जुन और भीम की भी सहायता की , इन्हें रुद्रावतार भी कहा जाता है और एकमात्र यही हैं, जो शनि ग्रह के प्रभाव को भी नियंत्रित कर सकते हैं ,सामान्यतया जब भी हनुमान आराधना /उपासना की बात आती है ,लोगों के दिमाग में हनुमान चालीसा और सुन्दरकाण्ड के पाठ की याद आती है ,यह सबसे अधिक प्रचलित पाठ हैं,

 जिनके प्रभाव भी दीखते हैं , हनुमान की कृपा प्राप्ति और उनके द्वारा कष्टों के निदान के लिए अनेक उपाय और पाठ इनके अतिरिक्त भी बनाए गए हैं जो भिन्न भिन्न समस्याओं में लोगों द्वारा प्रयोग होते हैं ,इन्ही पाठों में दो पाठ ऐसे हैं जो, अत्यधिक तीव्र प्रभावी हैं ,यह पाठ बजरंग बाण और हनुमान बाहुक के हैं !

बजरंग बाण है, तो हनुमान चालीसा जैसा ही पाठ किन्तु यह हनुमान चालीसा से अधिक प्रभावी है , शत्रु बाधा ,तांत्रिक अभिचार ,किया कराया ,भूत -प्रेत ,ग्रह दोष आदि के लिए यह बाण की तरह काम करता है,

इसीलिए इसका नाम बजरंग बाण है ,बजरंग बाण चौपाइयों पर आधारित पाठ है किन्तु इसकी सफलता इसके शपथ में है ,इसमें देवता को शपथ दी जाती है की वह पाठ कर्ता की समस्या दूर करे ,यह शपथ की प्रक्रिया शाबर मंत्र जैसी है जिसके कारण बजरंग बाण की क्रिया प्रणाली बिलकुल भिन्न हो जाती है , वास्तव में जब व्यक्ति शपथ देता है , भगवान् को तो भगवान् शपथ के अधीन हो न हो ,व्यक्ति जरुर गहरे से भगवान् से जुड़ जाता है, और प्रबाल आत्मविश्वास ,आत्मबल उत्पन्न होता है कि, अब तो समस्या जरुर हटेगी !

क्योंकि भगवान् को हमने शपथ दिया है ,तीव्र आंतरिक आवेग उत्पन्न होता है और जितनी भी आंतरिक शक्ति होती है, व्यक्ति की उस समस्या के पीछे लग जाती है ,इस कारण सफलता बढ़ जाती है ,कुछ ऐसा ही शाबर मन्त्रों के साथ होता है , इसके साथ ही पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील अंग देवता और सहायक शक्तियाँ उस व्यक्ति के साथ जुड़ उसकी सहायता करने का प्रयत्न करती हैं , यहाँ यह जरुर ध्यान देने की बात है की जब देवता को शपथ दी जाए तो बहुत सतर्कता और सावधानी की जरूरत हो जाती है ,क्योंकि फिर गलतियाँ क्षमा नहीं होती !

जब आप देवता को मजबूर करने का प्रयत्न करते हैं, तब आपको भी नियंत्रित रहना होता है अन्यथा देवता की ऊर्जा तीव्र प्रतिक्रिया कर सकती है !

बहुत से लोग जो वैदिक हैं ,सनातन पद्धति से जुड़े हैं वह इस शपथ की प्रक्रिया को ,शपथ देने को अच्छा नहीं मानते ,किन्तु यह पाठ गोस्वामी तुलसीदास के समय बनाया गया है, जो यह प्रकट करता है कि, उस समय सामाजिक विक्षोभ की स्थिति में जब सामान्य पाठ ,मंत्र आदि काम नहीं कर रहे थे, तब शाबर मंत्र काम कर रहे थे ,अतः यह उस पद्धति पर बनाया गया ,शाबर मन्त्रों में तो किसी भी देवता को आन दी जा सकती है ,शपथ दी जा सकती है , इसकी एक विशेष अलग कार्यप्रणाली होती है ,इसी आधार पर हनुमान की शक्ति को अधिकतम पाने के लिए बजरंग बाण में शपथ का प्रयोग किया गया !यह पद्धति काम करती है और इसके अच्छे परिणाम भी मिलते हैं बस साधक खुद को नियंत्रित ,संतुलित और एकाग्र रखे ,जैसे की शाबर मन्त्रों में होता है , इनसे पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील शक्तियाँ प्रभावित होती हैं, वैसा ही बजरंग बाण में भी होता है कि, पृथ्वी की सतह पर क्रियाशील धनात्मक ऊर्जा से संचालित शक्तियाँ साधक की सहायता करने लगती हैं !

52 शक्तिपीठ संक्षिप्त कथा saar

 देवी भागवत पुराण में 108, कालिका पुराण में 26 , शिवचरित्र में 51, दुर्गा सप्तशती और तंत्र चूड़ामणि में शक्तिपीठों की संख्या 52 बताई गई है। आमतौर पर 51 शक्तिपीठ माने जाते हैं। तंत्र चूड़ामणि में लगभग 52 शक्ति पीठों के बारे में बताया गया है। कहा जाता है कि इस शक्तिपीठों के दर्शन मात्र से ही हर मनोकामना पूरी हो जाती है।


1. *हिंगलाज*

कराची से 125 किमी दूर है। यहां माता का ब्रह्मरंध (सिर) गिरा था। इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व भैरव को भीम लोचन कहते हैं।

 2. *शर्कररे*

पाकिस्तान के कराची के पास यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की आंख गिरी थी। इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी व भैरव को क्रोधिश कहते हैं।

3 *सुगंधा*

बांग्लादेश के शिकारपुर के पास दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है। माता की नासिका गिरी थी यहां। इसकी शक्ति सुनंदा है व भैरव को त्र्यंबक कहते हैं।

4. *महामाया*

भारत के कश्मीर में पहलगांव के निकट माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।

*ज्वाला जी*

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी। इसे ज्वाला जी स्थान कहते हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव को उन्मत्त कहते हैं।

*त्रिपुरमालिनी*

पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, जहां माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव को भीषण कहते हैं।

*वैद्यनाथ*

झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहां माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।

*महामाया*

नेपाल में गुजरेश्वरी मंदिर, जहां माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।

*दाक्षायणी*

तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास पाषाण शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है दाक्षायणी और भैरव अमर।

*विरजा*

ओडिशा के विराज में उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति विमला है व भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।

*गंडकी*

नेपाल में मुक्ति नाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं।

*बहुला*

पश्चिम बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला व भैरव को भीरुक कहते हैं।

*उज्जयिनी*

पश्चिम बंगाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।

*त्रिपुर सुंदरी*

त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी व भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।

*भवानी*

बांग्लादेश चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दाईं भुजा गिरी थी। भवानी इसकी शक्ति हैं व भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।

*भ्रामरी*

पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।

*कामाख्या*

असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। कामाख्या इसकी शक्ति है व भैरव को उमानंद कहते हैं।

*प्रयाग*

उत्तर प्रदेश के इलाहबाद (प्रयाग) के संगम तट पर माता के हाथ की अंगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं।

*जयंती*

बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, जहां माता की बाईं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।

*युगाद्या*

पश्चिम बंगाल के युगाद्या स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।

*कालीपीठ*

कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।

*किरीट*

पश्चिम बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला व भैरव को संवत्र्त कहते हैं।

*विशालाक्षी*

यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजडि़त कुंडल गिरे थे। शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव को काल भैरव कहते हैं।

*कन्याश्रम*

कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।

*सावित्री*

हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव को स्थाणु कहते हैं।

*गायत्री*

अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं।

*श्रीशैल*

बांग्लादेश के शैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।

*देवगर्भा*

पश्चिम बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।

*कालमाधव*

मध्यप्रदेश के सोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था, जहां एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।

*शोणदेश*

मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।

*शिवानी*

यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।

*वृंदावन*

मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।

*नारायणी*

कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहां पर माता के दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। शक्तिनारायणी और भैरव संहार हैं।

*वाराही*

पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।

*अपर्णा*

बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति अर्पणा और भैरव को वामन कहते हैं।

*श्रीसुंदरी*

लद्दाख के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं।

*कपालिनी*

पश्चिम बंगाल के पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।

*चंद्रभागा*

गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।

*अवंती*

उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।

*भ्रामरी*

महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।

*सर्वशैल स्थान*

आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्ति है राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैं।

*गोदावरीतीर*

यहां माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं।

*कुमारी*

बंगाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं।

*उमा महादेवी*

भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।

*कालिका*

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।

*जयदुर्गा*

कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।

*महिषमर्दिनी*

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (मन:) गिरा था। शक्ति है महिषमर्दिनी व भैरव वक्रनाथ हैं।

*यशोरेश्वरी*

बांग्लादेश के खुलना जिला में माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।

*फुल्लरा*

पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं।

*नंदिनी*

पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। शक्ति नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर हैं।

*इंद्राक्षी*

श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षेश्वर कहते हैं।

*अंबिका*

विराट (अज्ञात स्थान) में पैर की अंगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है अंबिका और भैरव को अमृत कहते हैं।

सतसंग RS-DB - शाम 26/02

 **राधास्वामी!! 26-02-2021- आज शाम सतसंग मे पढे गये पाठ:-                                   

 (1) सुरतिया हरष रही।

निरखत गुरु चरन बिलास।।

जो अस दुर्लभ भक्ति कमावे।

जावे निज घर बिन परियास।।-

(दया करी राधास्वामी प्यारे। घट घट कीन्हा प्रेम प्रकाश।।)

 (प्रेमबानी-4-शब्द-12-पृ.सं.117,118)

                                               

 (2) सतगुरु मेरे पियारे।

गुरु रूप धर के आये।

 एक छिन में आप मुझको।

 चरनन लिया लगाये।।

 हे दयाल दाता सन्ती। चित धारो मेरी चिन्ती।

ऐसी दया कराओ। औसर न जाने पाये।।

-(अँग अँग से अब हरख कर। चरनों पै सीस धर कर।

 राधास्वामी नाम गाऊँ।

 जिध आप मुझ चिताये।।)


 (प्रेमबिलास-शब्द-11-पृ.सं.15)                                                                   

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                                                    

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻

                            

   आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे:-                                                                 (167)-

प्रश्न- ६- व्यर्थ है। पहले यह लिखा था कि आदि में "आपहि आप न दूसरे कोई" अर्थात वह आप ही आप था और अब उस "आप ही आप" के लिए 'स्वामी' शब्द प्रयुक्त किया गया है।  इन दोनों बातों में कुछ भेद नहीं है।।  

                                                     

 ( 168)-प्रश्न-७- ब्रह्मा, विष्णु ,महेश की कलाएँ जब संसार में प्रकट हुई तो वे मनुष्य कहलाई। वास्तव में यह कालपुरुष की तीन चेतन धारों के केंद्रों के नाम है। श्रीमद्भागवत गीता के ग्यारहवें सकंद के चौथे अध्याय में लिखा है-" पहले उन्ही( विराट पुरुष) के रजोगुण से सृष्टिकार्य के लिए ब्रह्मा और सतोगुण से पालन कार्य के लिए यज्ञपति और द्विजधर्म  की मर्यादा रूप बिष्णु,एवं तमोगुण से सहांर कार्य के लिये रूद्र ( शिव) उत्पन्न हुए हैं जिन से प्रजागण की सृष्टि, पालन, और संहार सर्वदा इसी प्रकार होता रहता है।

 वहीं आदिपुरुष नारायण हैं। (श्लोक ५)"। जोकि प्रकृति के तीन गुण इन्ही तीन धारों की क्रिया से प्रकट हुए हैं इसलिए वे भी इन्हीं नामों से प्रसिद्ध हुए।। 

                                           

     🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

कालिया सर्प और कृष्ण

 श्री कृष्ण और कालिया सांप कथा 


यमुना नदी से जुड़ा हुआ एक मीठे पानी का सुंदर झील था। कहीं से एक बहुत ही जहरीला सांप वहां आकर रहने लगा जिसका नाम था कालिया। कालिया का जहर यमुना नदी के पानी में बहुत तेजी से घुल रहा था।


एक बार एक गाय चराने वाले व्यक्ति ने जब उस झील का पानी पिया तो उसकी मृत्यु हो गई। जब भगवान श्रीकृष्ण को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी शक्ति से उस व्यक्ति को जीवित कर दिया।


उसके बाद श्री कृष्ण उस झील के पानी में कूद गए। कृष्ण पानी के बहुत अंदर गए और उस सांप को जोर-जोर से पुकारने लगे। जब बहुत देर तक कृष्ण पानी से नहीं निकले तो गांव के लोग इकट्ठा होकर नदी किनारे उनका इंतजार करने लगे। बहुत सारे लोग डरने भी लगे। कुछ देर बाद पानी के अंदर से कालिया सांप कृष्ण के सामने आया और आते ही उसने कृष्ण पर आक्रमण कर दिया।


कुछ ही देर में कृष्ण ने कालिया को जकड़ लिया और उसके सर पर चढ़ गए। कालिया हजार सिर वाला सांप था। कृष्ण उसके सर पर तेजी से नाचने लगे और तेजी से नाचने के कारण कालिया सर्प के मुंह से खून निकलने लगा। यह देखकर कालिया की पत्नी पानी से ऊपर आई और उसने कालिया के जीवन की भीख मांगी।


कृष्ण ने उन्हें  यमुना नदी किस झील को छोड़ने के लिए कहा और रामानका द्वीप चले जाने को कहा। साथ ही कृष्ण ने कालिया को आश्वासन दिया कि अब उन पर गरुड़ कभी भी आक्रमण नहीं करेगा क्योंकि कालिया के सिर पर कृष्ण के पैरों के निशान पढ़ चुके हैं।


यह सुनकर कालिया बहुत ही खुश हुआ और वह यमुना नदी के उस सुंदर झील को छोड़कर अपनी पत्नी के साथ चले गया। इस प्रकार कृष्ण में कालिया सांप से गांव की रक्षा की।

झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास !!!!!!

 धन लक्ष्मी माँ का वास निवास



पौराणिक शास्त्रों में कहा गया है कि जिस घर में झाड़ू का अपमान होता है वहां धन हानि होती है, क्योंकि झाड़ू में धन की देवी महालक्ष्मी का वास माना गया है।


विद्वानों के अनुसार झाड़ू पर पैर लगने से महालक्ष्मी का अनादर होता है। झाड़ू घर का कचरा बाहर करती है और कचरे को दरिद्रता का प्रतीक माना जाता है। जिस घर में पूरी साफ-सफाई रहती है वहां धन, संपत्ति और सुख-शांति रहती है। इसके विपरित जहां गंदगी रहती है वहां दरिद्रता का वास होता है।


 ऐसे घरों में रहने वाले सभी सदस्यों को कई प्रकार की आर्थिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसी कारण घर को पूरी तरह साफ रखने पर जोर दिया जाता है ताकि घर की दरिद्रता दूर हो सके और महालक्ष्मी की कृपा प्राप्त हो सके। घर से दरिद्रता रूपी कचरे को दूर करके झाड़ू यानि महालक्ष्मी हमें धन-धान्य, सुख-संपत्ति प्रदान करती है।


वास्तु विज्ञान के अनुसार झाड़ू सिर्फ घर की गंदगी को दूर नहीं करती है बल्कि दरिद्रता को भी घर से बाहर निकालकर घर में सुख समृद्घि लाती है। झाड़ू का महत्व इससे भी समझा जा सकता है कि रोगों को दूर करने वाली शीतला माता अपने एक हाथ में झाड़ू धारण करती हैं।


यदि भुलवश झाड़ू को पैर लग जाए तो महालक्ष्मी से क्षमा की प्रार्थना कर लेना चाहिए।जब घर में झाड़ू का इस्तेमाल न हो, तब उसे नजरों के सामने से हटाकर रखना चाहिए।

ऐसे ही झाड़ू के कुछ सतर्कता के नुस्खे अपनाये गये उनमें से आप सभी मित्रों के समक्ष हैं जैसे :-


*शाम के समय सूर्यास्त के बाद झाड़ू नहीं लगाना चाहिए इससे आर्थिक परेशानी आती है।*


*झाड़ू को कभी भी खड़ा नहीं रखना चाहिए, इससे कलह होता है।*


*आपके अच्छे दिन कभी भी खत्म न हो, इसके लिए हमें चाहिए कि हम गलती से भी कभी झाड़ू को पैर नहीं लगाए या लात ना लगने दें, अगर ऐसा होता है तो मां लक्ष्मी रुष्ठ होकर हमारे घर से चली जाती है।*


*झाड़ू हमेशा साफ रखें ,गिला न छोडे ।*


*ज्यादा पुरानी झाड़ू को घर में न रखें।*


*झाड़ू को कभी घर के बाहर बिखराकर ना फेके और इसको जलाना भी नहीं चाहिए।*


*झाड़ू को कभी भी घर से बाहर अथवा छत पर नहीं रखना चाहिए। ऐसा करना अशुभ माना जाता है। कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में चोरी की वारदात होने का भय उत्पन्न होता है। झाड़ू को हमेशा छिपाकर रखना चाहिए। ऐसी जगह पर रखना चाहिए जहां से झाड़ू हमें, घर या बाहर के किसी भी सदस्यों को दिखाई नहीं दें।*


*गौ माता या अन्य किसी भी जानवर को झाड़ू से मारकर कभी भी नहीं भगाना चाहिए।*


*घर-परिवार के सदस्य अगर किसी खास कार्य से घर से बाहर निकले हो तो उनके जाने के उपरांत तुरंत झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। यह बहुत बड़ा अपशकुन माना जाता है। ऐसा करने से बाहर गए व्यक्ति को अपने कार्य में असफलता का मुंह देखना पड़ सकता है।*


*शनिवार को पुरानी झाड़ू बदल देना चाहिए।*


*सपने मे झाड़ू देखने का मतलब है नुकसान।*


*घर के मुख्य दरवाजा के पीछे एक छोटी झाड़ू टांगकर रखना चाहिए। इससे घर में लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।


पूजा घर के ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्वी कोने में झाडू व कूड़ेदान आदि नहीं रखना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से घर में नकारात्मक ऊर्जा बढ़ती है और घर में बरकत नहीं रहती है इसलिए वास्तु के अनुसार अगर संभव हो तो पूजा घर को साफ करने के लिए एक अलग से साफ कपड़े को रखें।


जो लोग किराये पर रहते हैं वह नया घर किराये पर लेते हैं अथवा अपना घर बनवाकर उसमें गृह प्रवेश करते हैं तब इस बात का ध्यान रखें कि आपका झाड़ू पुराने घर में न रह जाए। मान्यता है कि ऐसा होने पर लक्ष्मी पुराने घर में ही रह जाती है और नए घर में सुख-समृद्घि का विकास रूक जाता है।*


                        जय श्री विष्णुप्रिया


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                     🌺जय लक्ष्मी माता 🌺

Thursday, February 25, 2021

सतसंग RS सुबह DB 26/02


 **राधास्वामी!! 26-02-2021- आज सुबह सतसंग मे पढे गये पाठ:-                                

    (1) जग में घोर अंधेरा भारी। तन में तम का भंडारा।।

 बचन न माने कहन न पकडे। फिर फिर भरमें नौ वारा।।-

(राधास्वामी कहा बुझाई। सुरत चढा़ओ नभ द्वारा।।)

(सारबचन-शब्द-12-पृ.सं.274)

                             

(2) बचन सतगुरु सुने भारी। अहा हा हा ओहो हो हो।।

-(चरन राधास्वामी पर वारी। अहा हा हा ओहो हो हो।।)

 ( प्रेमबानी-2-शब्द-12-पृ.सं.410,411)   

                   

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज-

भाग 1- कल से आगे:-( 36 )-

7 अगस्त 1940 की शाम को गुंटकल में सत्संग के समय हुजूर ने फरमाया - कुछ अरसा पहले सन 1934 के करीब आप सब लोगों ने हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में यह प्रार्थना की थी कि मद्रास प्रेसीडेंसी के म़ुफसिल और गरीब भाइयों की हालत बेहतर बनाने के लिए वह दयाल कोई अमली काम यहाँ पर भी शुरू करने की मौज फरमावें।

आप लोगों की प्रार्थना के जवाब में आँ हुजूर ने उस वक्त यह फरमाया था कि आप सब लोग मुनासिब वक्त व मौज  का इंतजार करें। इसके बाद ही उन दयाल ने सभा से यह तजवीज की कि वह दयालबाग की चीजों की पैदावार (जो उस वक्त ६ लाख रुपया सालाना थी)  बढ़ाकर 5 साल के अंदर एक करोड रुपए तक पहुँचावे। आज इस प्रोग्राम को हाथ में लिए हम को 2 साल हो गये और तीसरा साल चल रहा है। अभी 2 साल इस प्रोग्राम के लिए और बाकी है ।                                  

 जब हुजूर साहबजी महाराज आखरी बार सन 1937 में मद्रास तशरीफ ले गये उस वक्त उन्होंने फरमाया कि आप साहबान मद्रास के पास कोई अच्छी जमीन हासिल करने की कोशिश करें।

मद्रास गवर्नमेंट की इनायत से आपको अवडी में जमीन मिल गई है । अंग्रेजी में कहावत है Work is Worship, Work is Power  जिसका मतलब यह है कि "काम ही भजन- पूजन है और काम ही शक्ति है।"

 अगर आप साहबान उस तरीके अमल पर जो हुजूर साहबजी महाराज मुकर्रर कर गये हैं चलें और मेहनत से काम करें तो आपकी मुफलिसी और गरीबी जिसने आप को सख्त परेशान कर रक्खा है उससे और दूसरे संसारी क्लेशों से आपको छुटकारा मिल सकेगा और फिर कोई वजह न होगी कि आप पैसे की कमी और गरीबी की वजह से किसी किस्म की तकलीफ उठावें।

अब आप साहबान हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में उनकी अत्यंत उपयोगी व लाभदायक तजवीजो पर जिनको उन दयाल ने काल और माया की कैदों से छुटकारा दिलाने के लिए जारी फरमाया है शुकराना पेश करें और माथा नवायें।                                                     

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻


**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज

-[ भगवद् गीता के उपदेश]-

कल से आगे :-

 योगाभ्यास साफ़ जगह में अपना आसन जमा कर, जो न बहुत ऊँचा हो न बहुत नीचा, करना चाहिये। आसन के लिए पहले कुशा घास बिछाई जाय उस पर मृगछाला और फिर उस पर कपडा डाला जाय। योगी उस आसन पर जम कर बैठे और अपने मन को एकाग्र करके और इंद्रियों को बस मिलाकर जीव आत्मा की शुद्धि के लिए योग साधन करें ।

जिस्म, सिर और गर्दन को सीधा और अडोर रक्खे। कि इधर उधर से दृष्टि रोक कर नासिकाय अर्थात् अपनी नाक के सिरे पर दृष्टि जमावें और शान्तचित्त, निर्भय, ब्रह्मचर्य में मजबूत, मन थामें मेरा ध्यान संभाले , अंतर में जुड़ा हुआ, मेरे दर्शन पाने की इच्छा लेकर बैठे। जो योगी मन को बस में रख कर सदा इस तरह से आत्मा में होता है अर्थात जुडता है वह शांति और परम निर्वाण- गति को प्राप्त होता है जो मेरी जात में कायम है।

【15】

क्मशः         

                               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻




परम गुरु हुजूर महाराज-

प्रेम पत्र- भाग 1- कल से आगे:- 4-

[चौथा औरतों के सत्संग में शामिल होने से लिहाज पर्दे का न रहना।]-  


                                                         

 मालूम होवे कि औरत और मर्द में सुरत बराबर मौजूद है और ताकत भी उसकी सिवाय जिस्मानी यानी शरीर की ताकत की (जिस में थोड़ी कमी व बेशी है) बराबर है।

 देखो आजकल लड़कियाँ मदरसे में पढ़कर मिस्ल लड़कों के बी० ए० और एम० ए० और डाक्टरी का दर्जा हासिल करती है और इसी तरह भक्तमाल की पोथी के पढ़ने से मालूम होगा कि पिछले वक्तो में बहुत सी स्त्रियाँ भक्त हुई और उनको भारी दर्जा मालिक के दरबार से मिला कि अब तक उनका नाम बड़े भाव और प्रेम के साथ लोग लेते हैं।  

                                                          

अब बिचरना चाहिए कि यह दर्जे विद्या या भक्ति और प्रमार्थ के पर्दे में रहने से कभी हासिल नहीं हो सकते और जो कि शुरू से बराबर परदे में रहती हैं उनकी समझ और अक्ल निहायत मोटी और औछी होती है और अपने जीव के कल्याण की उनको कुछ भी खबर नहीं होती।

क्रमशः                         

 🙏🏻राधास्वामी🙏


🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

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