Tuesday, August 31, 2021

सतसंग पाठ M/ 01092021

 **राधास्वामी! 01-09-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                                   

अरी हे सुहावन आली ,

प्रीतम खबर सुना दे ,

मनुआँ नित भटके ॥ टेक ॥                                                                             

जब से मैं बिछड़ी स्वामी प्यारे से । जगत माहिं बँध रही तन मन से ।

बिरह घर की खटके ॥१ ॥                                                                                                      

जब लग गुरु का संग न पावे ।

घर की ओर उलट कस जावे ।

जगत मोह झटके ॥२ ॥                                                        

दया होय सतगुरु आय मेलें ।

 घर का भेद सुना सुर्त पेलें ।

घट धुन सँग लटके ॥३ ॥                                                      

मिल गुरु से अब लगन बढ़ाऊ ।

 ध्यान धरत घट शब्द जगाऊँ ।

 रही री नाम रट के ॥४ ॥                                             

 राधास्वामी धाम ओर सुत दौड़ी ।

 सुन सुन शब्द हुई घट पोढ़ी ।

 चली गुरु सँग गठ के ॥५॥                           

(प्रेमबानी-3-शब्द-2-पृ.सं.148,149)**

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पन्नी गली में उगिया सूरज आधी रात

 न्यू  पन्नी  गली 👇


संत  तुलसी  साहिब  का  तब  ज़ाहिर  हुआ  फरमान |  

जीव  उबारन  आए  राधास्वामी  तज  कर  अपना  धाम | 

 

छोड़ा  निज  घर  आये  भवजल  लाये  नाम  जहाज़ |  

संतों  के  सरताज  प्यारे  स्वामीजी  महाराज |  

हमारे  स्वामीजी  महाराज ||  

 

पन्नी  गली  में  उगिया  सूरज  आधी  रात |  

सब  जग  उजियारा  भया  अजब  हुआ परभात |


हुई  नयी  सहर  जीव  ग़फलत  से  जागे |  

बिरही  प्रेमी  सुरत  वंत  चरनन  लागे |  

हंस  आनंद  मगन  होय  झूमन  लागे |  

प्रगटे  दीन  दयाल  बधाई  गावन  लागे | 

पन्नी  गली  में ... 

 

संत  मत  भक्ति  का  पंथ  आपने  ज़ाहिर  किया |  

सुरत  शब्द  योग  का  रास्ता  रौशन  किया |  

राधास्वामी  मत  में  तीन  चीज़ें  दरकार  हैं |  

वक्त  गुरु,  नाम  सच्चा, सतसंग  दमदार  है |  

सतसंग  सेवा  और  अभ्यास  की  दरकार  है |  

सतसंग  सेवा  और  व्यायाम  की  दरकार  है |  

राधास्वामी  नाम  मालिक  ने  ज़ाहिर  किया |  

कलयुग  में  जीवोद्धार  का  कारवां  चला  दिया |  

पन्नी  गली  में ...

 

निर्मल  रास  लीला  का  दिखाया  नज़ारा |  

साइंसदाँ  को  इस  मत  का  राज़  बताया |  

ई - सतसंग  ने  तो  कर  दिया  कमाल | 

घर  बैठे  ही  कर  लिया  मुर्शिद  का  दीदार |  

संत  (सु)परमैन  स्कीम  का  कर  दिया  आग़ाज़ |  

दुनिया  में  मिशन  राधास्वामी  कर  दिया  ऐलान |  

अब  रहमतें  तेरी  जोश  करने  लगीं |  

मेरी  रग - रग  शुकराना  गानें  लगीं |  

उनकी  खुशामदीद  का ... 

 

मुर्शिद  की  आँख  बीच  से  है  रास्ता  चला |  

संगत  को  उसमे  समाना  सिखा  दिया |  

राधास्वामी  नाम  का  जपना  सब  मन्त्रों  का  सार  है |  

ध्यान  भजन  से  ही  है  जीवन  सफल  बता  दिया |  

अमृत  की  धारा  बह  रही  रोज़ाना  दयालबाग  में |  

जीवन  मरण  से  बचा  के  भवजल  पार  लगा ।दिया |  

 

अब  रहमतें  तेरी  जोश  करने  लगीं |  

मेरी  रग - रग  शुकराना  गानें  लगीं |  

उनकी  खुशामदीद  का ... 

  

प्यार  इतना  मिला  हम  तेरे  हो  गए |  

तेरे  आशिक  थे  अब  हम  ग़ुलाम  हो  गए | 

तू  जो  चाहे  तो  गोदी  बिठा  ले ।हमें |  

तू  जो  चाहे  तो  सूली  चढ़ा  दे  हमें | 

हम  तेरे  थे,  तेरे  हैं,  रहेंगे  तेरे |  

तेरे  चरणों  में  हरदम  ही  सजदा  करें |  

 

तुझको  पाकर  ना  अब  कुछ  हमें  चाहिए |  

बस  तेरी  रहमतों  की  नज़र  चाहिए |  

बस  तेरे  प्यार  की  एक  नज़र  चाहिए |  

तू  ही  तू - तू  ही  तू - तू  ही  तू  चाहिए |

सतसंग पाठ E / 31082021

: राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफल कर ले।   


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।  


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।    


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।  


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।       


राधास्वामी दोउ रिमझिम मेघा

एवं रूनझुन शब्द मिलाई हो।।

 As per announcement in khet


*Gracious Huzur ke vapsi ke baad  satsang hall  mein preeti bhoj hoga*



: **राधास्वामी! 31-08-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                 

आनंद हरख अधिक हिये छाया ।

दास प्रेम रंग आरत लाया ॥१ ॥                            

प्रीति रीति का थाल सजाया ।

 शब्द प्रतीति जोत जगवाया ॥२ ॥                              

बाजे अनहद सरस बजाया ।

मन अपंग को अधर चढ़ाया ॥ ३ ॥                                  

 गुरु चरनन में माथ नवाया ।

 काल करम का दाव चुकाया ॥४ ॥                                

सतगुरु सेवा अति मन भाई ।

अमी सरोवर जल भर लाई ॥ ५ ॥                           

भँवरगुफा चढ़ सतपुर धाई ।

 सत्तपुरुष धुन बीन सुनाई ॥६ ॥                                    

अलख अगम के पार सिधाई ।

राधास्वामी के दरशन पाई ॥७ ॥            

उमँग उमँग कर आरत गाई ।

दया मेहर परशादी पाई ॥८ ॥                                   

प्रेम प्रीति चरनन में लागी ।

 जगत भाव भय लज्जा त्यागी ॥९ ॥                                   

 रोग सोग संशय सब टारे ।

 चरन कँवल मेरे प्रान अधारे ॥१० ॥                                  

 नित नित महिमा राधास्वामी गाऊँ । चरन कँवल पर बल बल जाऊँ ॥११ ॥

                                                                      

अब आरत यह हो गई पूरी । राधास्वामी चरनन रहूँ हजूरी ॥१२ ॥                    

(प्रेमबानी-3-शब्द-9-पृ.सं.144,145)**


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Monday, August 30, 2021

कर्म से ही कृष्ण औऱ कंस

 *मैं ही कृष्ण, मैं ही कंस हूं..!*


प्रस्तुति - दीपा शरण



एक चित्रकार था, जो अद्धभुत चित्र बनाता था।

एक दिन कृष्ण मंदिर के भक्तों ने उनसे कृष्ण और कंस का एक चित्र बनाने की इच्छा प्रगट की।

चित्रकार तैयार हो गया पर उसने कुछ शर्तें रखीं।

उसने कहा _कृष्ण के चित्र के लिए नटखट बालक और कंस के लिए एक क्रूर भाव वाला व्यक्ति लाकर दें,_

*मुझे योग्य पात्र चाहिए,* *अगर वे मिल जाएं, तो मैं चित्र बना दूंगा।*

भक्त एक सुन्दर बालक ले आये। चित्रकार ने *उस बालक को सामने बैठा कर । बाल कृष्ण का एक सुंदर चित्र बनाया।*

अब बारी कंस की थी पर क्रूर भाव वाले व्यक्ति को ढूंढना थोडा मुश्किल था।

*जो व्यक्ति कृष्ण मंदिर वालों को पसंद आता वो चित्रकार को पसंद नहीं आता, उसे वो भाव मिल नहीं रहे थे...*

वक्त गुजरता गया।

आखिरकार थक-हार कर सालों बाद वो अब जेल में चित्रकार को ले गए, 

जहां उम्र कैद काट रहे अपराधी थे।

*उन अपराधियों में से एक को चित्रकार ने चुना। और उसे सामने बैठा कर उसने कंस का चित्र बनाया।*

कृष्ण और कंस की वो तस्वीर आज सालों के बाद पूर्ण हुई।

*कृष्ण मंदिर के भक्त वो तस्वीर देखकर मंत्रमुग्ध हो गए।*

उस अपराधी ने भी वह तस्वीर देखने की इच्छा व्यक्त की।

*उस अपराधी ने जब वो तस्वीर देखी तो वो फूट-फूटकर रोने लगा।*

सभी ये देख अचंभित हो गए।

चित्रकार ने उससे इसका कारण पूछा,

तब वह अपराधी बोला 

*"शायद आपने मुझे पहचाना नहीं,*

मैं ही वो बच्चा हूं जिसे सालों पहले आपने बालकृष्ण के चित्र के लिए पसंद किया था।

*मेरे कुकर्मों से आज मैं कंस बन गया, इस तस्वीर में मैं ही कृष्ण, मैं ही कंस हूं।*

*हमारे कर्म ही हमें अच्छा*

*और बुरा इंसान बनाते हैं..!!* 

प्रार्थना है जन्माष्टमी हमारे भीतर के कृष्ण को नया जन्म दे और हमें एक अच्छा इंसान बनने के लिए प्रेरित करे।

🙏🏻🙏🏻

जय श्री कृष्ण

सतसंग पाठ 31082021/ हुज़ूर टूर वापसी

**राधास्वामी! 31-08-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-             

                                                          

  अरी हे सहेली प्यारी ,

प्रीतम दरस जियरा बहु तड़पे ॥ टेक ॥                                         

 काल करम बहु पेच लगाये ।

बिन दरशन मैं रहूँ घबराये ।

 मनुआँ नित तरसे ॥१ ॥                                                                  

 जब जब प्रीतम छबि चित लाऊँ । नैनन से जल धार बहाऊँ ।

हियरा बहु धड़के ॥२ ॥                                                       

प्रीतम पीर सतावत निस दिन ।

 बिन सतसंग दुखित रहे तन मन ।

भाली ज्यों खड़के ॥३ ॥  


 जो कोई प्रीतम महिमा गावे ।

लीला और बिलास  सुनावे ।

मनुआँ अति हरखे ॥४ ॥


 जब राधास्वामी का दरशन पाऊँ ।

उमँग उमँग मैं नित गुन गाऊँ ।

घट आनँद बरसे।।५॥                             

(प्रेमबानी-3-शब्द-1-भाग पाँचवा-पृ.सं.147,148)**




GH Return Program*


 **Satsang Tour Programme

 :  August 2021 Tuesday , 31 August 2021 Origin-

 Destination -Distance ( km ) Departure- Arrival -

Remarks- Rajaborari-Timami (54) 5:30 am 6:30 am (Breakfast).   

                 

Timani-Bhopal (140) 7:00 am 9:30 am (Lunch).                                          

Bhopal- Guna (210) 10:15 am 1:00 pm (Tea)                                                          

Guna- Gwalior (200) 4:30 pm (Short Break ).                                          

Gwalior- Dayalbagh-( 125) 4:45 pm 6:45 pm.**


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मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत... 🙏🙏

 मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत... 🙏🙏

(धुन : मैया मोरी मै नहीं माखन खायो)


राजकिशोर सत्संगी 



मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत

भोर से पहले तुम खेतन में, कर्म हमरे कटवावत 

हम पड़े अलसाये बिस्तर में, समय से ना उठ पावत 

तुम सुनवाओ बीन-बांसुरी, कभी सुने तो कभी ना सुन पावत


मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...


चार-पहर, बारंबार तुम हमें समझावत 

सत्संग-सेवा से हमें रहत जुड़ावत 

दया-मेहर हम पे, हर पहर बरसावत 

फिर भी, हम तोहार एको बात न मानत 


मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...


चार-पहर हम पेट खातिर भटको, थको सांझ घर आवत 

दिन भर के घर के झंझावात, बैठा के सबके हम सुलझावत

चौरासी से छूटन के तरीका, तुम हमें हरदम बतावत

पर इ माया-जाल हमें, जाने कहां-कहां भरमावत

 

मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...


सुन के विपदा आपन पे, तुरंते खेते से ही जावे के मन बनावत 

विचारत ना आपन सेहत, सांझ तक राजाबरारी पहुंच जावत

रास्ता टूटल-फूटल, भोपाल से हमें सूरदास के भजन सुनवावत 

हैं हम चकराए, मालिक काहे भजन-विनती दोऊ संगे गवावत 


मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...


कोशिश करें बहुत, तोहरे कहे पे ना चल पावत 

क्या करें कैसे करें, हमका हमरे पे शरम आवत 

काहे ना बुलावत हमके, सामने काहे ना बैठावत 

इहे सब सोच-सोच के, अंखिया हमार बार-बार भर आवत


मालिक मोरे ! हमसे कछु काज ना बन पावत...

                      ----------------

                         

(राज किशोर सत्संगी)

30.08.2021

भोपाल में पधारे भू के पाल

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आज जन्माष्ठमी के पावन भंडारे 

पर ग्रेशस हुजूर का शुभागमन ब्रांच भोपाल, दिनाँक 30 अगस्त 2021 पर त्वरित भाव सम्प्रेषण

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  *भोपाल में पधारे*

      *भू के पाल*



धन्य भाग, धन्य भाग

धन्य भाग, उदित हुए आज 

ब्रांच भोपाल,भाग सौभाग्य 

भोपाल में पधारे भू के पाल आज।

  🌺

सत्संगियन में अति हर्ष आनंद

सतगुरु दीनदयाल हमारे जी 

दयालबाग़ से आया संदेशा

नगरी भोपाल हाल निहाल।

  🌺

भादौ अष्ठमी बरखा घनघोर

भंडारा पावन मन भावन जी

परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी

कलि काल में प्रकटे आय जहान

भोपाल भाग उदय मन हर्षावन

भोपाल भाग सौभाग्य।

  🌺

दया उमंगि गुरु सतगुरु पधारे

उठी मौज यह अति भारी,

सत्संगियन मन मुकुलित

सबके हृदय हुलसाने

दयालबाग़ से चल आये जी

भोपाल भाग सौभाग्य। 

  🌺

घड़ी पल में मौज उठी भारी

दयालबाग़ में आरती अगम अनामी,

भोपाल में भंडारा जन्माष्ठमी

शब्द वचन भोज प्रेम प्रीति 

भोपाल में पधारे *भू के पाल*

धन्य भाग धन्य भाग हमारे

भोपाल भाग सौभाग्य।

✨✨✨🙏✨✨✨

     मनोहर गोरे सत्संगी 

अभिभाषक, इंदौर,मध्यभारत

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प्रेम सद्भाव बना रहें

 🌹🙏 लक्ष्मी जी की कथा🙏🌹

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एक बूढे सेठ थे । वे खानदानी रईस थे, धन-ऐश्वर्य प्रचुर मात्रा में था परंतु लक्ष्मीजी का तो है चंचल स्वभाव । आज यहाँ तो कल वहाँ !


सेठ ने एक रात को स्वप्न में देखा कि एक स्त्री उनके घर के दरवाजे से निकलकर बाहर जा रही है !


उन्होंने पूछा :- ‘‘हे देवी आप कौन हैं ? मेरे घर में आप कब आयीं और मेरा घर छोडकर आप क्यों और कहाँ जा रही हैं ?


वह स्त्री बोली :- ‘‘मैं तुम्हारे घर की वैभव लक्ष्मी हूँ । कई पीढयों से मैं यहाँ निवास कर रही हूँ किन्तु अब मेरा समय यहाँ पर समाप्त हो गया है इसलिए मैं यह घर छोडकर जा रही हूँ !


मैं तुम पर अत्यंत प्रसन्न हूँ क्योंकि जितना समय मैं तुम्हारे पास रही, तुमने मेरा सदुपयोग किया। संतों को घर पर आमंत्रित करके उनकी सेवा की, गरीबों को भोजन कराया, धर्मार्थ कुएँ-तालाब बनवाये, गौशाला व प्याऊ बनवायी !


तुमने लोक-कल्याण के कई कार्य किये । अब जाते समय मैं तुम्हें वरदान देना चाहती हूँ । जो चाहे मुझसे माँग लो !


सेठ ने कहा :- ‘‘मेरी चार बहुएँ है, मैं उनसे सलाह-मशवरा करके आपको बताऊँगा । आप कृपया कल रात को पधारें !


सेठ ने चारों बहुओं की सलाह ली । उनमें से एक ने अन्न के गोदाम तो दूसरी ने सोने-चाँदी से तिजोरियाँ भरवाने के लिए कहा !


किन्तु सबसे छोटी बहू धार्मिक कुटुंब से आयी थी। बचपन से ही सत्संग में जाया करती थी !


उसने कहा : - ‘‘पिताजी ! लक्ष्मीजी को जाना है तो जायेंगी ही और जो भी वस्तुएँ हम उनसे माँगेंगे वे भी सदा नहीं टिकेंगी । यदि सोने-चाँदी, रुपये-पैसों के ढेर माँगेगें तो हमारी आनेवाली पीढी के बच्चे अहंकार और आलस में अपना जीवन बिगाड देंगे !


इसलिए आप लक्ष्मीजी से कहना कि वे जाना चाहती हैं तो अवश्य जायें किन्तु हमें यह वरदान दें कि हमारे घर में सज्जनों की सेवा-पूजा, हरि-कथा सदा होती रहे तथा हमारे परिवार के सदस्यों में आपसी प्रेम बना रहे क्योंकि परिवार में प्रेम होगा तो विपत्ति के दिन भी आसानी से कट जायेंगे !


दूसरे दिन रात को लक्ष्मीजी ने स्वप्न में आकर सेठ से पूछा : -‘‘तुमने अपनी बहुओं से सलाह-मशवरा कर लिया? क्या चाहिए तुम्हें ?


सेठ ने कहा : -‘‘हे माँ लक्ष्मी ! आपको जाना है तो प्रसन्नता से जाइये परंतु मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे घर में हरि-कथा तथा संतो की सेवा होती रहे तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रेम बना रहे !


यह सुनकर लक्ष्मीजी चौंक गयीं और बोलीं : -‘‘यह तुमने क्या माँग लिया। जिस घर में हरि-कथा और संतो की सेवा होती हो तथा परिवार के सदस्यों में परस्पर प्रीति रहे वहाँ तो साक्षात् नारायण का निवास होता है !


और जहाँ नारायण रहते हैं वहाँ मैं तो उनके चरण पलोटती (दबाती)हूँ और मैं चाहकर भी उस घर को छोडकर नहीं जा सकती। यह वरदान माँगकर तुमने मुझे यहाँ रहने के लिए विवश कर दिया है !!


🌹🙏जय मां लक्ष्मी 🙏🌹


🌹🙏मंगल सुप्रभात🙏🌹


🌹🙏जय जय श्री राधे🙏🌹


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भंडारा बचन / 300821

 आज  30082021 क़ो परम पुरुष पूरन धनी  हुज़ूर स्वामी जी महाराज के पावन भंडारे के समय पढा गया बचन 


 55. यह मन बतौर मस्त हाथी के है, जिधर चाहता है उधर चला जाता है और जीव को संग लिये फिरता है। जंगल के हाथी के लिये तो हाथीवान दुरुस्त करने को ज़रूर है और इस मनरूपी हाथी को सतगुरु ज़रूर हैं। जब तक सतगुरु का आँकुस इस पर न होगा, तब तक इसकी मस्ती नहीं उतरेगी। इस जीव को जो परम पद की चाह है तो सतगुरु करना ज़रूर है, बिना सतगुरु के कभी परम पद हासिल न होगा। इस बचन को सच्चा मानो, नहीं तो चौरासी जाओगे।


 56. संत सतगुरु का मत सर्गुन और निर्गुन दोनों से न्यारा है और जो रचना सत्तलोक में है, वह भी सत्य और उसका रचने वाला सत्तपुरुष भी सत्य है।


 57. जो संत या फ़क़ीर हैं, वह ज़ाते ख़ुदा यानी स्वरूप मालिक के हैं। जो उनकी ख़िदमत करेगा और उनकी मुहब्बत और प्रतीति करेगा, वह भी ज़ाते ख़ुदा हो जावेगा।


राधास्वामी


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❤ ख़ुदा का महल ❤ ( -12

 गुरु नानक साहिब जब काबा में जो मक्का शरीफ़ में है, क़ाज़ी रूकनुद्दीन से मिले, तो उसने पूछा कि ख़ुदा का महल कैसा है ? उसकी कितनी खिड़किया और दरवाज़े  हैं ? कितने बुर्ज हैं ? कितने कँगूरे हैं ? 

अब ये कोई मामूली सवाल नहीं थे, गहरे विचार के योग्य थे । गुरु साहिब ने जवाब दिया कि इस शरीर (जिस्म) के 

बारह बुर्ज हैं ( तीन दाहिनी बाँह के जोड़, तीन बाईं बाँह के जोड़ और दोनों टाँगों के तीन-तीन जोड़, इस प्रकार कुल बारह हुए ), 

नौ दरवाज़े  ( दो कान, दो आँखें, दो नासिका के सुराख़, एक मुँह और दो सुराख़ नीचे के ), 

बावन कँगूरे हैं  ( हाथ-पैरों के बीस नाख़ून और बत्तीस दाँत ),

दोनों आँखे दो खिड़किया हैं ।

महल बहुत अजीब और बे-मिसाल है ।


गुरु साहिब कहते हैं :

" ऊपर खास महल पर देवै बांग खुदाए ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-15 )

" अर्थात : आपके शरीर (जिस्म) के अन्दर ख़ुदा बाँग दे रहा है । यह शरीर ही ख़ुदा की मसजिद है । हम बाहर माथे रगड़ते हैं । क्या कभी किसी को वह बाहर मिला है

किसी को नहीं । बाँग (शब्द धुन) तो हरएक के अंदर हो रही है, लेकिन लोग सोये हुए हैं ।


" सुते बांग न सुन सकन रिहा खुदाइ जगाइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 214-215 )

" वह मालिक तो जगाना चाहता है लेकिन कोई जागता ही नहीं ।"


" सुती पई निभाग बस सुने न बांगां कोइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )

" वे लोग बदक़िस्मत है जो रात को जागकर उस बाँग को नहीं सुनते ।"


" जो जागे सेइ सुने सांईं संदी सोइ ।"*

( * भाई बालेवाली जन्म साखी, पृ - 215 )

" जो जागता है, उसकी सुरत शब्द में लगती है, वही मालिक की आवाज़ यानी शब्द को सुनता है ।"


पुस्तक :  " परमार्थी साखियाँ "

( महाराज सावन सिंह जी )

( साइंस आँफ़ द सोल रिसर्च सेंटर )

" राधास्वामी सत्संग ब्यास "

🙏(S)h(a)riff-(n)(a)🙏

पलटू दास के दोहे

 संत पलटू की वाणी

...........


बैरागिन भूली आप में जल में खोजै राम।l


जल में खोजै राम जाय के तीरथ छानै।l

भरमै चारिउ खूँट नहीं सुधि अपनी आनै।


फूल माहिं ज्यों बास काठ में अग्नि छिपानी।

खोदे बिनु नहीं मिलै अहै धरती में पानी।


दूध महै घृत रहै छिपी मेहँदी में लाली

ऐसे पूरन ब्रह्मा कहूँ तिल भरी नहीं खाली।l 


पलटू सत्संग बीच में करि ले अपना काम।

बैरागिन भूली आप मे जल में खोजै राम।

अपने घुटने कभी मत बदलिये*

 🔴 *

🙏🏻डॉ अशोक कुचेरिया🙏🏻

🔴50 साल के बाद धीरे-धीरे शरीर के जोडों मे से लुब्रीकेन्ट्स एवं केल्शियम बनना कम हो जाता है। 


🔴जिसके कारण जोडों का दर्द ,गैप, केल्शियम की कमी, वगैरा प्रोब्लेम्स सामने आते है, 


🔴जिसके चलते आधुनिक चिकित्सा आपको जोइन्ट्स रिप्लेस करने की सलाह देते है, 


🔴तो कई आर्थिक रुप से सधन लोग यह मानते है की हमारे पास तो बहुत पैसे है 


🔴तो घुटनां चेंज करवा लेते है।


🔴 किंतु क्या आपको पता है जो चीज कुदरत ने हमे दी है, 


🔴वो आधुनिक विज्ञान या तो कोई भी साइंस नही बनां सकती। 


🔴आप कृत्रिम जॉइन्ट फिट करवा कर थोडे समय २-४ साल तक ठीक हो सकते है। 


🔴लेकिन बाद मे आपको बहुत ही तकलीफ होगी। 


🔴जॉइन्ट रिप्लेसमेंट का सटीक इलाज आज मे आपको बता रहा हूँ ।


🔴वो आप नोट कर लीजिये और हां ऐसे हजारो जरुरतमंद लोगो तक पहुचाये जो रिप्लेसमेंट के लाखो रुपये खर्च करने मे असमर्थ है।  


🔴 *बबूल* नामके वृक्ष को आपने जरुर देखा होगा। 


🔴यह भारतमे हर जगह बिना लगाये ही अपने आप खडा़ हो जाता है, 


🔴अगर यह बबूल नामका वृक्ष अमेरिका या तो विदेशाें मे इतनी मात्रा मे होता तो आज वही लोग इनकी दवाई बनाकर हमसे हजारों रुपये लूटते । 


🔴लेकिन भारत के लोगों को जो चीज मुफ्त मे मिलती है उनकी कोइ कदर नही है। 


🔴प्रयोग इस प्रकार करना है 


🔴 *बबूल* के पेड पर जो *फली ( फल)* आती है उसको तोड़कर लाये, 


🔴अथवा तो आपको शहर मे नही मिल रहे तो किसी गांव जाये वहा जितने चाहिये उतने मिल जायेगें, उसको सुखाकर पाउडर बनाले। 


🔴और *सुबह १ चम्मच* की मात्रा में गुनगुने पानी से खाने के बाद, केवल 2-3 महिने सेवन करने से आपके घुटने का दर्द बिल्कुल ठीक हो जायेगा। 


🔴आपको घुटने बदलने की जरुरत नही पडेगी। 

🔴🙏🏻डॉ अशोक कुचेरिया🙏🏻                मो 9422913770       8237004503        

🔴इस मेसेज को हर एक भारतीय एवं हर एक घुटने के दर्द से पीड़ित व्यक्ती तक पहुचाये ताकि किसी गरीब के लाखों रुपये बच जाये।


विशेषज्ञों का कहना है कि इस संदेश को पढ़ने वाला प्रत्येक व्यक्ति इसे १० लोगों/ग्रुप तक भेज दे तो वह कम से कम एक व्यक्ति का जीवन रोगमुक्त कर सके🙏🏻🔴

Sunday, August 29, 2021

एक सवाल / उमाकांत दीक्षित

 ● एक विचारणीय प्रश्न ? / उमाकांत दीक्षित 


आज कृष्णजन्माष्टमी है, भारतवर्ष में हर ओर तथाकथित "नंदलाल" की जय जयकार हो रही है । उनका जन्मदिन धूमधाम से मनाया जा रहा है किन्तु मेरे मन में अचानक एक विचार आया कि लिंगभेद के चलते क्या कन्याओं की बलि द्वापरयुग में भी आज की भांति ही हुआ करती थी?


ये कितना बड़ा झूठ पिछले 5258 साल से आज तक  दुनिया को परोसा जा रहा है कि "कृष्ण" नंद के लाल अर्थात नंद के पुत्र थे ... अगर कृष्ण सच में नंद के पुत्र थे तो वह निरीह अबोध कन्या कौन थी जो देवकी व वासुदेव के पुत्र के बदले हत्या के लिए कंस को सौंपी गई थी? 


क्या कृष्णजन्माष्ठमी को मनाते हुए हमें एकबार भी उस अबोध बालिका की याद नही आती जिसने इस कृष्ण को जीवित रखने के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए थे? मैं उस निरीह कन्या की हत्या के पक्ष में दिए जाने वाले किसी भी तर्क से सहमत नही हूँ। क्या हमारी संवेदना नारी जाति के प्रति इतनी जड़ हो चुकी है?  क्या आज उस निरपराध कन्या का जन्मदिन नहीं है? जिसकी पत्थर पर पटक कर की गई भयावह हत्या केवल एक "पुत्र" को जीवित रखने के लिए जान बूझकर करवा दी गयी?


क्या यह बालिका वध नहीं है? आखिर कब तक इस तरह पुत्र मोह में पुत्रियों की बलि दी जाती रहेगी? क्यों आज भी बालिकाओं की भ्रूण हत्या को नही रोका जा सका है? यह सोच केवल भारत में ही क्यों है? क्या यह सच में "यत्र नार्यस्तु पूजन्ते रमन्ते तत्र देवता" का संदेश देने वाला देश है?


मैं पुरुष होने के नाते, आज उस अनाम कन्या के प्रति कृतज्ञ हूँ जो पुरुष के अहम के लिए भेंट चढ़ गई। मुझे यह स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है कि यह पुरुष समाज कितना स्वार्थी है ?


आज उस कन्या का जन्म दिवस तो है ही साथ ही उसका निर्वाण दिवस भी है। भारत के इस पुत्रमोह के भेंट चढ़ी उस दिव्य आत्मा को कोटि कोटि नमन ...

                                         ...उमाकांत दीक्षित

आज सुबह का भंडारा आरती के समय का बचन

 आज आरती के समय पढा गया बचन 


93- जो जीव को पूरा गुरु मिल जावे और उन पर प्रतीति आ जावे और उनकी भली प्रकार दीनता करे तो आज इस जीव को वह पद प्राप्त हो सकता है जो ब्रह्मा, विष्णु, महादेव से आदि लेकर जितने हुए किसी को नहीं मिला और न मिल सकता है।


 94-निंदा और स्तुति दोनों के करने में पाप होता है, क्योंकि जैसा कोई है वैसा बयान नहीं हो सकता है। इससे मुनासिब यह है कि स्तुति करे तो अपने सतगुरु की और निंदा करे तो अपनी। इसमें अपना काम बनता है, और किसी की निंदा स्तुति में वक्त़ खोना है, पर एक जगह के वास्ते मना नहीं है कि कोई अपना है और किसी के बहकाने में आ गया है या आया चाहता है, उससे यह कह देना ज़रूर है कि यहाँ से तुमको फ़ायदा नहीं होगा, यह जगह धोखे की है। इसमें पाप नहीं है, पर हर एक से कहना ज़रूर नहीं ।        


(सारबचन (नसर) भाग 2)


राधास्वामी

स्वामी जी महाराज भंडारा मुबारक हो

 🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹


परम पुरुष पूरनधनी हुजूर स्वामीजी महाराज का भंडारा


 सम्पूर्ण सत्संग जगत को एवं समस्त प्राणिमात्र को


 बहुत-बहुत मुबारक हो।


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[ 🙏🙏🙏🙏🙏राधास्वामी 🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼


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_*R.S.*_


_*आप सब को परम पुरूष पूरन धनी हुजूर स्वामी जी महाराज का  जन्मदिन व भण्डारा बहुत बहुत मुबारक हो।*_


_*Please JOIN eSatsang either through AUDIO Mode or through VIDEO*_


_*Hearty Radhasoami*_

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राधास्वामी संत औतार धरे री

🌹🌹राधास्वामी जीव उद्धार करेंरी । 

राधास्वामी संत औतार धरें री ।।

 राधास्वामी अतिकर दयाल हुए री ।

 राधास्वामी दया जम काल मुए री ।।

 राधास्वामी गुन गाऊँ नित नित री । 

राधास्वामी मात हुए और पित री ।।


 [ परम पुरुष पूरन धनी हुजूर स्वामीजी महाराज पावन जन्मदिन व पावन भंडारा समस्त सतसंग जगत व प्राणीमात्र को बहुत बहुत बधाई ।।🌹🌹**


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफल कर ले।   


राा।धास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।  


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।    


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।  


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।       


राधास्वामी दोउ रिमझिम मेघा

एवं रूनझुन शब्द मिलाई हो।।


राजा का भाई

 *विचार...*✍️


*एक राजमहल के द्वार पर एक वृद्ध भिखारी आया। द्वारपाल से उसने कहा- ‘भीतर जाकर राजा से कहो कि तुम्हारा तुमसे भाई मिलने आया है।’*


*द्वारपाल ने समझा कि शायद कोई दूर के रिश्ते में राजा का भाई हो। सूचना मिलने पर राजा ने भिखारी को भीतर बुलाकर अपने पास बैठा लिया।*


*भिखारी ने राजा से पूछा- ‘कहिए बड़े भाई! आपके क्या हालचाल हैं ?... राजा ने मुस्कराकर कहा- ‘मैं तो आनंद में हूं, पर आप कैसे हैं ?...*


*भिखारी बोला- ‘मैं जरा संकट में हूं। जिस महल में रहता हूं, वह पुराना और जर्जर हो गया है। कभी भी टूटकर गिर सकता है। मेरे बत्तीस नौकर थे, वे भी एक एक कर मुझे छोडकर चले गए। पांचों रानियां भी वृद्ध हो गईं हैं... क्या करुं समझ में नहीं आता...*🤔


*यह सुनकर राजा ने भिखारी को दो स्वर्ण मुद्राएं देने का आदेश दिया। भिखारी ने उसे कम बताए... तो राजा ने कहा- ‘इस बार राज्य में सूखा पड़ा है इससे अधिक नहीं दे सकते।*


*तब भिखारी बोला- ‘मेरे साथ सात समंदर पार चलिए। वहां सोने की खदानें हैं। मेरे पैर पड़ते ही समुद्र सूख जाएगा। मेरे पैरों की शक्ति तो आप देख ही चुके हैं।’ अब राजा ने भिखारी को एक हजार स्वर्ण मुद्रायें देने का आदेश दिया...*


*भिखारी के जाने के बाद राजा ने बोला- ‘भिखारी बहुत बुद्धिमान था। भाग्य के दो पहलू होते हैं... राजा व रंक। इस नाते उसने मुझे भाई कहा। आज जो राजा है वो रंक भी हो सकता है... और रंक राजा...*


*जर्जर महल से आशय उसके वृद्ध शरीर से था... शरीर तो जर्जर होगा ही एक दिन, तो अहंकार क्यों करें...*


*उसके बत्तीस नौकर यानी बत्तीस दांत और पांच रानियां यानी पांच पंचेंद्रीय को बताते हैं...*


*समुद्र के बहाने उसने मुझे उलाहना दिया कि राजमहल में उसके पैर रखते ही मेरा खजाना सूख गया, इसलिए मैं उसे दो स्वर्ण मुद्रायें दे रहा हूं। उसकी बुद्धिमानी देखकर मैंने उसे हजार स्वर्ण मुद्राएं दिए और कल मैं उसे अपना सलाहकार नियुक्त करूंगा।’*


👉 *कई बार अति सामान्य लगने वाले लोग भीतर से बहुत गहरे होते हैं, इसलिए व्यक्ति की परख उसके बाह्य रहन-सहन से नहीं बल्कि आचरण से करनी चाहिए...पर लोग धन सम्पत्ति, पद, प्रतिष्ठा को देखकर ही व्यवहार करते हैं, जो गलत भी हो सकता है...*


*!! जय श्रीराधे !!*🙏🚩

सतसंग पाठ E / 29082021

 *राधास्वामी! 29-08-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-*                                                                

 *धन धन धन मेरे सतगुम प्यारे ।

 करूँ आरती नैन निहारे ॥१ ॥                                     

सूरज मंडल थाल धराया ।

 जोत चंद्रमा दीप जगाया ॥२ ॥                                            

 हुई धनवन्त चरन गुरु पाए ।

 मगन रहूँ नित गुरु गुन गाए ॥३ ॥                                    

 मन चित से सेवूँ दिन राती ।

सतगुरु प्रेम रहूँ मद माती ॥४॥                                          

 काम क्रोध मेरे पास न आवे ।

लोभ मोह अब नहिं भरमावे ॥ ५ ॥*                                                                                     

*छिन छिन दरशन सतगुरु चाहूँ ।

 करम पछाड़ गगन चढ़ जाऊँ ॥६ ॥*                                  

*सहसकवँल दल जोत जगाऊँ ।

त्रिकुटी जाय मृदंग बजाऊँ ॥ ७ ॥                                         

सुन्न मँडल चढ़ अमी चुआऊँ ।

भँवरगुफा सोहँग धुन गाऊँ ॥ ८ ॥*                                                           

*सत्तलोक चढ़ बीन सुनाऊँ ।

 सतगुरु चरनन माथ नवाऊँ ॥९ ।।*


*अलख अगम के चरन परस के ।

राधास्वामी के बल बल जाऊँ ॥१० ॥*                                                                                  

*क्या महिमा मैं उनकी गाऊँ ।

उमँग उमँग चरनन लिपटाऊँ ॥११ ॥


E2स्सारब्बड्डीवक्सर्ये w (प्रेमबानी er fwt-1-शब्द-8-पृ.सं.143,144)*

 


Saturday, August 28, 2021

हुज़ूर स्वामी जी महाराज : भंडारा 3008 कार्यक्रम

 परम  पुरुष  पूरन  धनी  हुजूर  स्वामीजी  महाराज  के  पावन  भण्डारे  का  कार्यक्रम  इस  प्रकार  हैं*

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*२८ - ०८ - २०२१ (शनिवार)* 


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


*पावन  समृतालय (पावन  कक्ष  व  अन्य  कक्ष)*  - उपदेश  प्राप्त  बहनों  के   लिए  सुबह  ९  बजे  से  ११  बजे  तक


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*२९ - ०८ - २०२१ (रविवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


 *सभा   की   मीटिंग*    सुबह   खेतों   में


*पावन  समृतालय (पावन  कक्ष  व  अन्य  कक्ष)*  - उपदेश  प्राप्त  भाईसाहबान  के  लिए  सुबह  ९  बजे  से  ११  बजे  तक


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*३० - ०८ - २०२१ (सोमवार)* - *परम  गुरु  हुजूर  हुजूर  स्वामीजी  महाराज  के  भण्डारे  का  दिन* 


*आरती  व  खेतों  का  काम* -  सुबह  ३.४५  बजे


*भण्डारा  और  सेल*  - ग्रेसियस  निर्देशो  द्वारा


*शाम  का  सतसंग  व  खेतों  का  काम*  -  शाम  ३.४५  बजे


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*३१ - ०८ - २०२१ (मंगलवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


*पावन  समृतालय (अन्य  कक्ष)*  (सुबह  ९  बजे  से  सुबह  १०  बजे  तक)  -   जिज्ञासु   बहनों  के  लिए,  १५  वर्ष  तक  के  लड़के  व  लड़कियों  के  लिए,  संत  (सु)परमैन   स्कीम  के  बच्चे  व  उनकी  माताओं  के  लिए। 


*पावन  समृतालय (अन्य  कक्ष)*  (सुबह  १०  बजे  से  दोपहर  ११  बजे  तक)  -   जिज्ञासु   भाइयों  के  लिए,  १५  वर्ष  से  बड़े  लड़कों  के  लिए,  संत  (सु)परमैन   स्कीम  के  बच्चे  अपने  पिता  के  साथ।


*भेंट*  (अनुमति  प्राप्त  क्षेत्र  के  उपदेश  प्राप्त  सत्संगियां  द्वारा  भेंट / ऑनलाइन  भेंट) -   सुबह  १०  बजे  से  दोपहर  १२  बजे  तक


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*०१ - ०९ - २०२१ (बुधवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


*जोनल  सतसंग*  -. ग्रेसियस  निर्देशो  द्वारा


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*०२ - ०९ - २०२१ (बृहस्पतिवार)*


*सुबह  का  सतसंग*  सुबह  ३.४५  बजे


*सत्संगियों  का  प्रस्थान* 


*शाम  का  सतसंग*  शाम  ३.४५  बजे

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*उपदेश  प्राप्त  करने  के  इच्छुक  जिज्ञासुओ  को  सेक्रेटरी  सभा  द्वारा अधिक  दिन  तक  रहने  की  अनुमति  दी  जा  सकती  हैं। उपदेश  आवेदकों   के  लिए  (चार  दिनों  का  फील्ड  वर्क  अटेंडेंस  अनिवार्य  है)।*


*राधास्वामी

[घमंडी का सिर नीचा]


प्रस्तुति - आत्म स्वरूप


🙏Nariyal के पेड़ बड़े ही ऊँचे होते हैं और देखने में बहुत सुंदर होते हैं एक बार एक नदी के किनारे नारियल का पेड़ लगा हुआ था उस पर लगे नारियल को अपने पेड़ के सुंदर होने पर बहुत गर्व था सबसे ऊँचाई पर बैठने का भी उसे बहुत मान था इस कारण घमंड में चूर नारियल हमेशा ही नदी के पत्थर को तुच्छ पड़ा हुआ कहकर उसका अपमान करता रहता 


एक बार, एक शिल्प कार उस पत्थर को लेकर बैठ गया और उसे तराशने के लिए उस पर तरह – तरह से प्रहार करने लगा यह देख नारियल को और अधिक आनंद आ गया उसने कहा – ऐ पत्थर ! तेरी भी क्या जिन्दगी हैं पहले उस नदी में पड़ा रहकर इधर- उधर टकराया करता था और बाहर आने पर मनुष्य के पैरों तले रौंदा जाता था और आज तो हद ही हो गई ये शिल्पी तुझे हर तरफ से चोट मार रहा हैं और तू पड़ा देख रहा हैं अरे ! अपमान की भी सीमा होती हैं कैसी तुच्छ जिन्दगी जी रहा हैं मुझे देख कितने शान से इस ऊँचे वृक्ष पर बैठता हूँ पत्थर ने उसकी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया नारियल रोज इसी तरह पत्थर को अपमानित करता रहता .


कुछ दिनों बाद, उस शिल्पकार ने पत्थर को तराशकर शालिग्राम बनाये और पूर्ण आदर के साथ उनकी स्थापना मंदिर में की गई पूजा के लिए नारियल को पत्थर के बने उन शालिग्राम के चरणों में चढ़ाया गया इस पर पत्थर ने नारियल से बोला – नारियल भाई ! कष्ट सहकर मुझे जो जीवन मिला उसे ईश्वर की प्रतिमा का मान मिला मैं आज तराशने पर ईश्वर के समतुल्य माना गया जो सदैव अपने कर्म करते हैं वे आदर के पात्र बनते हैं लेकिन जो अहंकार/ घमंड का भार लिए घूमते हैं वो नीचे आ गिरते हैं ईश्वर के लिए समर्पण का महत्व हैं घमंड का नहीं पूरी बात नारियल ने सिर झुकाकर स्वीकार की जिस पर नदी बोली इसे ही कहते हैं घमंडी का सिर नीचा

 (Ghamandi Ka Sar Neecha)


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                ( दोहा )


1. गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूं पांय,

बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय।


              ( अर्थ )


कबीरदास जी ने यहाँ पर गुरु के स्थान का वर्णन किया है। वे कहते हैं कि जब गुरु और खुद ईश्वर एक साथ हो तब किसका पहले अभिवादन करें अथार्त दोनों में से किसे पहला स्थान दें? इस पर कबीरदास जी कहते हैं कि जिस गुरु ने ईश्वर का महत्व सिखाया है जिसने ईश्वर से मिलाया है वही श्रेष्ठ हैं क्योंकि उसने ही तुम्हें ईश्वर क्या है बताया है और उसने ही तुन्हें इस लायक बनाया है कि आज तुम ईश्वर के सामने खड़े हो।


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*एक ही चेहरे की अहमियत हर एक नजर में अलग सी क्यूँ है,,*


*उसी चेहरे पर कोई खफा तो कोई फिदा सा क्यूँ है,,,,,,*

🚩🌅🙏🏻 *सुप्रभात* 🙏🏻🌅🚩

*आपका दिन sशुभ व मंगलमय हो*


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सतसंग पाठ M रविवार / 298221

 *राधास्वामी! 29-08-2021(रविवार)-

आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-*                                              


*सतगुरु प्यारे ने सुनाई ।

प्रेमा बानी हो ॥ टेक ॥


 सुन सुन बचन प्रेम भरा मन में ।

 फूली नाहिं समाऊँ तन में ।

 हरख हरख हरखानी हो ॥१ ॥                                                      


मन और सुरत सिमट कर आये ।

गुरु मूरत हिये में दरसाये ।

 हुई चरनन मस्तानी हो ॥२ ॥                                                            


छिन छिन मन अस उमँग उठाई ।

दरशन रस ले रहूँ अघाई ।

चरनन पर कुरबानी हो ॥ ३ ।।*


*बिन दरशन मोहि चैन न आये ।

मुमिर मुमिर पिया जिया घवरावे ।

 भावे अन्न न पानी हो ॥४ ॥                                                    


 बिनय सुनो राधास्वामी प्यारे

चरनन में मोहि राखो सदारे ।

तुम समरथ पुरुष सुजानी हो ॥५।।**                   

*(प्रेमबानी-3-शब्द-45-पृ.सं.146,147)*


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सतसंग पाठ E / 28082021

 **राधास्वामी! 28-08-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                            

सुरत रँगीली आरत धारी। जग सुख तज सतगुरु आधारी ॥१ ॥                            

हिया कँवल थाली कर लाई । धुन विवेक घट जोत जगाई ॥२ ॥                                 

घंटा संख मृदंग बजाई ।

अमी धार सुन से चल आई ॥


 भँवरगुफा मुरली धुन बाजी

सतपुर माहिं बीन धुन गाजी ॥४ ॥                                    


 अलख अगम के पार निशानी।

 राधास्वामी दरस दिखानी।।५।।                                    

काल करम बहु बिघन लगाई ।

राधास्वामी दया खेप निभ आई ॥६ ॥                 

                                                                    प्रेम प्रीति चरनन में लागी ।

राधास्वामी दरशन सूरत पागी ॥ ७ ॥                                              

 •••••कल से आगे••••                                                                          

 क्या महिमा अब राधास्वामी गाऊँ । बार बार चरनन बल जाऊँ ॥ ८ ॥                                                                           

  जगत जाल से आप बचाया ।

 चरन सरन दे मोहि अपनाया ॥ ९ ॥                                                                             

  सुरत शब्द मारग बतलाया ।

बल अपना दे अधर चढ़ाया ॥१० ॥                                                                                   

सुरत रँगी अब प्रेम रंग से ।

राधास्वामी गुन गाऊँ मैं उमँग से ॥११ ॥                                                                            

  निस दिन रहूँ चरन रस माती ।

राधास्वामी गोद खेल दिन राती ॥१२।।


(प्रेमबानी-1-शब्द-7-पृ.सं.141,142)**


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मित्रता हो तो कृष्ण सुदामा जैसी

.एक ब्राह्मणी थी जो बहुत निर्धन थी। भिक्षा माँग कर जीवन-यापन करती थी।

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एक समय ऐसा आया कि पाँच दिन तक उसे भिक्षा नहीं मिली। वह प्रति दिन पानी पीकर भगवान का नाम लेकर सो जाती थी।

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छठवें दिन उसे भिक्षा में दो मुट्ठी चना मिले। कुटिया पे पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। 

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ब्राह्मणी ने सोंचा अब ये चने रात मे नही खाऊँगी प्रात:काल वासुदेव को भोग लगाकर तब खाऊँगी ।

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यह सोंचकर ब्राह्मणी ने चनों को कपडे़ में बाँधकर रख दिया और वासुदेव का नाम जपते-जपते सो गयी 

.

देखिये समय का खेल... कहते हैं...

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पुरुष बली नहीं होत है, समय होत बलवान ।

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ब्राह्मणी के सोने के बाद कुछ चोर चोरी करने के लिए उसकी कुटिया मे आ गये।

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इधर उधर बहुत ढूँढा, चोरों को वह चनों की बँधी पुटकी मिल गयी। चोरों ने समझा इसमें सोने के सिक्के हैं । 

.

इतने मे ब्राह्मणी जाग गयी और शोर मचाने लगी ।

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गाँव के सारे लोग चोरों को पकडने के लिए दौडे़। चोर वह पुटकी लेकर भागे।

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पकडे़ जाने के डर से सारे चोर संदीपन मुनि के आश्रम में छिप गये।

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संदीपन मुनि का आश्रम गाँव के निकट था जहाँ भगवान श्री कृष्ण और सुदामा शिक्षा ग्रहण कर रहे थे.

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गुरुमाता को लगा कि कोई आश्रम के अन्दर आया है। गुरुमाता देखने के लिए आगे बढीं  तो चोर समझ गये कोई आ रहा है, 

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चोर डर गये और आश्रम से भागे ! भागते समय चोरों से वह पुटकी वहीं छूट गयी। और सारे चोर भाग गये।

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इधर भूख से व्याकुल ब्राह्मणी ने जब जाना ! कि उसकी चने की पुटकी चोर उठा ले गये ।

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तो ब्राह्मणी ने श्राप दे दिया कि... मुझ दीनहीन असहाय के जो भी चने खायेगा वह दरिद्र हो जायेगा।

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उधर प्रात:काल गुरु माता आश्रम मे झाडू़ लगाने लगीं तो झाडू लगाते समय गुरु माता को वही चने की पुटकी मिली । 

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गुरु माता ने पुटकी खोल के देखी तो उसमे चने थे।

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सुदामा जी और कृष्ण भगवान जंगल से लकडी़ लाने जा रहे थे। ( रोज की तरह ) गुरु माता ने वह चने की पुटकी सुदामा जी को दे दी।

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और कहा बेटा ! जब वन मे भूख लगे तो दोनो लोग यह चने खा लेना ।

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सुदामा जी जन्मजात ब्रह्मज्ञानी थे। ज्यों ही  चने की पुटकी सुदामा जी ने हाथ में लिया त्यों ही उन्हे सारा रहस्य मालुम हो गया ।

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सुदामा जी ने सोचा ! गुरु माता ने कहा है यह चने दोनों लोग बराबर बाँट के खाना।

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लेकिन ये चने अगर मैंने त्रिभुवनपति श्री कृष्ण को खिला दिये तो सारी सृष्टि दरिद्र हो जायेगी।

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नहीं-नहीं मैं ऐसा नही करुँगा। मेरे जीवित रहते मेरे प्रभु दरिद्र हो जायें मै ऐसा कदापि नही करुँगा ।

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मैं ये चने स्वयं खा जाऊँगा लेकिन कृष्ण को नहीं खाने दूँगा।

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और सुदामा जी ने सारे चने खुद खा लिए।

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दरिद्रता का श्राप सुदामा जी ने स्वयं ले लिया। चने खाकर। लेकिन अपने मित्र श्री कृष्ण को एक भी दाना चना नही दिया। ऐसे होते हैं मित्र..

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मित्रों ! आपसे निवेदन है कि अगर मित्रता करें तो सुदामा जी जैसी करें और कभी भी अपने मित्रों को धोखा ना दें.. 


 जय जय श्री राधे


वृन्दावन के संत

 ✍एक बार की बात है। वृन्दावन में एक संत रहा करते थे। उनका नाम था कल्याण ,बाँके बिहारी जी के परमभक्त थे, एक बार उनके पास एक सेठ आया, अब था तो सेठ लेकिन कुछ समय से उसका व्यापार ठीक नही चल रहा था, उसको व्यापार में बहुत नुकसान हो रहा था, 


अब वो सेठ उन संत के पास गया और उनको अपनी सारी व्यथा बताई और कहा: महाराज आप कोई उपाय करिये, 


उन संत ने कहा  देखो, अगर मैं कोई उपाय जानता तो तुम्हे अवश्य बता देता, मैं तो ऐसी कोई विद्या जानता नही, जिससे मैं तेरे व्यपार को ठीक कर सकूँ, ये मेरे बस में नहीं है, हमारे तो एक ही आश्रय है बिहारी जी ,,


इतनी बात हो ही पाई थी कि बिहारी जी के मंदिर खुलने का समय हो गया.. अब उस संत ने कहा तू चल मेरे साथ ऐसा कहकर वो संत उसे बिहारी जी के मंदिर में ले आये और अपने हाथ को बिहारी जी की ओर करते हुए उस सेठ को बोले---


तुझे जो कुछ मांगना है, जो कुछ कहना है, इनसे कह दे, ये सबकी कामनाओं को पूर्ण कर देते है, अब वो सेठ बिहारी जी से प्रार्थना करने लगा, दो चार दिन वृन्दावन में रुका फिर चला गया, कुछ समय बाद उसका सारा व्यापार धीरे-धीरे ठीक हो गया, फिर वो समय समय पर वृन्दावन आने लगा,


बिहारी जी का धन्यवाद करता.. फिर कुछ समय बाद वो थोड़ा अस्वस्थ हो गया, वृन्दावन आने की शक्ति भी शरीर मे नहीं रही, लेकिन उसका एक जानकार एक बार वृन्दावन की यात्रा पर जा रहा था तो उसको बड़ी प्रसन्नता हुई कि ये बिहारी जी का दर्शन करने जा रहा है.. 


तो उसने उसे कुछ पैसे दिए 750 रुपये और कहा कि ये धन तू बिहारी जी की सेवा में लगा देना और उनको पोशाक धारण करवा देना अब बात तो बहुत पुरानी है ये, अब वो भक्त जब वृन्दावन आया तो उसने बिहारी जी के लिए पोशाक बनवाई और उनको भोग भी लगवाया, 


लेकिन इन सब व्यवस्था में धन थोड़ा ज्यादा खर्च हो गया, लेकिन उस भक्त ने सोचा कि चलो कोई बात नही, थोड़ी सेवा बिहारी जी की हमसे बन गई कोई बात नही, लेकिन हमारे बिहारी जी तो बड़े नटखट है ही,


अब इधर मंदिर बंद हुआ तो हमारे बिहारी जी रात को उस सेठ के स्वप्न में पहुच गए अब सेठ स्वप्न में बिहारी जी की उस त्रिभुवन मोहिनी मुस्कान का दर्शन कर रहा है.. उस सेठ को स्वप्न में ही बिहारी जी ने कहा: तुमने जो मेरे लिए सेवा भेजी थी, वो मेने स्वीकार की, लेकिन उस सेवा में 249 रुपये ज्यादा लगे है, 


तुम उस भक्त को ये रुपये लौटा देना, ऐसा कहकर बिहारी जी अंतर्ध्यान हो गए, अब उस सेठ की जब आँख खुली तो वो आश्चर्य चकित रह गया कि ये कैसी लीला है, बिहारी जी की.. 


अब वो सेठ जल्द से जल्द उस भक्त के घर पहुँच गया तो उसको पता चला कि वो तो शाम को आयेगे, जब शाम को वो भक्त घर आया तो सेठ ने उसको सारी बात बताई.. 


तो वो भक्त आश्चर्य चकित रह गया कि ये बात तो मैं ही जानता था और मैने तो किसी को यह बताई भी नही, सेठ ने उनको वो 249 रुपये दिए और कहा मेरे सपने में श्री बिहारी जी आए थे,


 वो ही मुझे ये सब बात बता कर गए है, ये लीला देखकर वो भक्त खुशी से मुस्कुराने लगा और बोला जय हो बिहारी जी की, इस कलयुग में भी बिहारी जी की ऐसी लीला,,


तो भक्तों ऐसे हैं हमारे बिहारी जी ये किसी का कर्ज किसी के ऊपर नहीं रहने देते, जो एक बार उनकी शरण ले लेता हैं.. फिर उसे किसी से कुछ भी माँगना नहीं पड़ता, उसको सब कुछ अपने आप ही मिलता चला जाता है..!!


🍁🌺🎍#जयजय #श्री #राधे🎍🌺🍁

राजाबरारी में मालिक का सम्हाल सुधार

 मालिक राधास्वामी दयाल की दया से आज हम सभी राजाबरारी के लोगों की संभाल का चमत्कार देखने को मिला, जो आज था कि 

 (27.8.21 को सुबह करीब 11 बजे हुज़ूरी आदेश के बाद कि जहाँ रातामाती के लोगों ने फेंसिंग के पोल तोड़ दिए थे उन्हें दुबारा लगाने का मिला, इसके लिए यह भी हुक्म हुआ कि छोटे बच्चों और बहनों को आगे रखते हुए और भाई सबां उनकी सुरक्षा करते हुए यह कार्य पोल लगाने का करेंगे , तब हम कुल 140 लोग जिसमें करीब 15-20 बच्चें 3 वर्ष से 8-9वर्ष के और 40-50 बहनें और बाकी की भाई साबान यह कार्य करने जहाँ सामने करीब 250 आदिवासी महिला पुरुष जिसमें से कई तो नशे की हालत में थे उनके सामने पहुँचे, 

पहले तो उन्होंने कई प्रयास किये की हमपर किसी तरह हावी हो जाये लेकिन हमनें हुज़ूरी आदेश का पालन करते हुए जैसे ही बच्चों और महिलाओं को आगे किये अचानक से वे सभी दूर हो गए कुछ पुलिस वाले भी दंग रह गए की ये लोग इस तरह से women शिल्ड क्यों बना रहे है जिसके कारण उन्हें हमें बचाने के लिए आगे आना पड़ा और वे सभी आदिवासी दूर हो गए,

अब हम लोगों ने कुछ पोल लगाने शुरू किए और तार लगा दिए, 

मालिक का आदेश यह भी था कि वहाँ अपने टेंट और पोर्टेबल टॉयलेट वहाँ जब तक सभी सतसंगी है रखे जाये, जिसकी तैयारी हम करने लगे। 

इसी बीच आज कुछ उच्च अधिकारियों को जिन्हें हुज़ूरी आदेश के बाद कलेक्टर हरदा से मिलने को कहा गया था वह भी मिलने गए जिसमें रातामाती के आदिवासी संगठन का नेता भी गया , जिसमें उसने कुछ  मांगे रखी 

1. हमारे घरों से लगी फेन्स को 15 फिट दूर कर दिया जाए

2. हमारे देवी देवता के स्थान पर जाने दिया जाए 

कई घंटों की मीटिंग के दौरान लगभग रात 10 बजे यह निर्णय हुआ कि,

1. राधास्वामी संस्था के लोग अभी विवाद की जमीन खाली कर देंगे।

2. आदिवासी अपना आंदोलन शांति पुर्वक करेंगे, और दिनांक 28.8.21 को रहटगांव में तहसीलदार को ज्ञापन देंगे और शांति पूर्वक चले जायेंगे।

3. प्रशासन ने हमसे कहा कि हमारी संपत्ति की सुरक्षा प्रशासन स्वयं करेगी।


इसी बीच कुछ और हुक्म आये मालिक की तरफ से कि-

1. हमें रातामाती के लोगो को साथ रख कर उनका सहयोग कर उनको अपने साथ रखना है 

2. जमीन सब की है सभी मिल कर काम करें। 


तो कलेक्टर से मीटिंग के बाद और मालिक के नए आदेश के अनुसार आज तय हुआ कि-

हम सभी वापस अपने घर जाए और 1 दिन के बाद उनके घरों की फेंसिंग 15 फुट पीछे करेंगे और उनकी पूजा की जगह पर एक रिवॉल्विंग गेट लगाएं जो कभी लॉक नही होगा।


तो इस प्रकार आज मालिक की दया रही कि सब ठीक प्रकार से हो गया।

Friday, August 27, 2021

सतसंग पाठ M / 28082021

 राधास्वामी! 28-08-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:


-सतगुरु प्यारे ने पढ़ाई घट की पोथी हो ॥टेक ॥       

                                           

जगत भाव में रही भुलानी ।

 बाहरमुख जुगती रही कमानी ।

 किरत करी सब थोथी हो ॥१ ॥


जब से सतगुरु संग लगाई ।

 सार बचन मोहि दिये समझाई ।

 जाग उठी स्रुत सोती हो ॥२ ॥                                                        

सतसँग करत बिकार घटाती ।

घट धुन में नित सुरत लगाती ।

 दिन दिन कलमल धोती हो ॥३ ॥                                                    

गुरु चरनन बढ़ती अनुरागा ।

जग भोगन से चित बैरागा ।

धुन में सूरत पोती हो ॥४ ॥                                                         

दया हुई स्रुत नभ पर चढ़ती ।

घंटा और संख धुन सुनती ।

 निरख रही घट जोती हो ॥ ५।।


बंकनाल धस त्रिकुटी धाई ।

काल करम दोउ रहे मुरझाई ।

 माया सिर धुन रोती हो ॥६ ॥


सत्तपुरुष के चरनन लागी ।

राधास्वामी धुन सँग सूरत पागी ।

चली प्रेम कियारी बोती हो ॥ ७ ।।


(प्रेमबानी-3-शब्द-44-पृ.सं.145,146)



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सच्चा औऱ झूठा / कृष्ण मेहता

 हमने देखा है कि कुछ किसान अपने खेतों में झूठा आदमी जैसा पुतला बनाकर खड़ा कर देते हैं। उसे कुरता पहना देते हैं, हंडिया लटका देते हैं, उसका मुंह बना देते हैं। ताकि जंगली जानवर उस झूठे आदमी को देखकर भाग जाएं। पक्षी-पक्षी खेत में आने से डरे।


एक दिन एक शहरी आदमी जिसमे ऐसा आदमी पहले कभी नही देखा था उस झूठे आदमी के पास से निकलता था। तो उस शहरी आदमी ने उस झूठे आदमी को पूछा कि दोस्त! मैंने सुना है तुम सदा यही खड़े रहते हो? धूप आती है, वर्षा आती है, सर्दियां आती हैं रात आती है, अंधेरा हो जाता है- लेकिन तुम यही खड़े रहते हो। क्या तुम ऊबते नहीं, घबराते नहीं, परेशान नहीं होते?

वह झूठा आदमी उस शहरी आदमी की बातें सुनकर बहुत हंसने लगा। उसने कहा, परेशान! परेशान मैं कभी नहीं होता, दूसरों को डराने में इतना मजा आता है कि उसके आगे मझे धूप बारिश, सर्दी गर्मी, दिन रात किसी का भी तो पता नही चलता। मुझे दूसरों को डराने में बहुत मजा आता है; दूसरों को प्रभावित देखकर, भयभीत देखकर बहुत मजा आता है। ‘दूसरों की आंखों में सच्चा दिखायी पड़ता हूं, - बस बात खत्म हो जाती है। पक्षी डरते हैं कि मैं सच्चा आदमी हूं। जंगली जानवर भय खाते हैं कि मैं सच्चा आदमी हूं। उनकी आंखों में देखकर कि मैं सच्चा हूं बहुत मजा आता है!


उस झूठे आदमी की बातें सुनकर वो शहरी आदमी बोला कि ”बड़े आश्रर्य की बात है। तुम जैसा कहते हो, वैसी हालत मेरी भी है। मैं भी दूसरों की आंखों में देखता हूं कि मैं क्या हूं और उसी से आनंद लेता चला जाता हूं! दूसरे जब मेरे पद, पावर को देखकर मुझसे डरते है तो मुझे भी बहुत मजा आता है। मैं भी लोगो की गर्दन दबोचने के लिए दिन-रात एक किये रहता हूँ। तुम तो फिर भी एक जगह खड़े हो। लेकिन मैं तो हमेशा कही ठहरता ही नही बस दिन रात और पैसा, ओर पावर इसी में लगा हूँ।


यह सुनकर वह झूठा आदमी हंसने लगा और उसने कहा, ”तब फिर मैं समझ गया कि तुम भी एक झूठे आदमी हो। झूठे आदमी की एक पहचान है : वह हमेशा दूसरे को डरना चाहता है। अपने पद से, अपने रुतबे से, अपनी शक्ति से। 


ऐसा आदमी कभी स्वयं को नही देखता उसकी दृष्टि दूसरे को ही देखती है। लेकिन एक बात मैं ओर बात दू। की जो तुम्हारे आगे झुकते है,  तुमसे डरते है वो तुम जैसे ही झूठे है। ये मत सोच लेना कि उनका तुमसे कुछ लेना देना है। कि वो तुमसे प्रेम करते है इसलिए तुम्हारे आगे झुकते है। उनका झुकना उनके डर के कारण है। आज ही यदि तुम्हरी शक्ति चली जाए। तुम्हारी सच्चाई उनके सामने आ जाये यही डरने वाले लोग तुम्हे उखाड़ फेकेंगे। 


इसलिए जितने झूठे तुम हो उतने ही झूठे दूसरे लोग भी है। लेकिन दोनो ही सच्चे होने का नाटक करते रहते है। दोनो एक दूसरे के मन मे भ्रम पैदा करते हैं और कुछ नही।

Thursday, August 26, 2021

पाप से मुक्ति

 अनजाने में किये हुये पाप का प्रायश्चित कैसे होता है?बहुत सुन्दर प्रश्न है ,यदि हमसे  अनजाने में कोई पाप हो जाए तो क्या उस पाप से मुक्ती का कोई उपाय है।

श्रीमद्भागवत जी के षष्ठम स्कन्ध में , महाराज राजा परीक्षित जी ,श्री शुकदेव जी से ऐसा प्रश्न कर लिए । बोले भगवन - आपने  पञ्चम स्कन्ध में जो नरको का वर्णन  किया ,उसको सुनकर तो गुरुवर  रोंगटे खड़े जाते हैं।प्रभूवर मैं आपसे ये पूछ रहा हूँ की यदि  कुछ पाप हमसे अनजाने में हो जाते हैं ,जैसे चींटी मर गयी,हम लोग स्वास लेते हैं तो कितने जीव श्वासों के माध्यम से मर जाते हैं। भोजन बनाते समय लकड़ी जलाते हैं ,उस लकड़ी में भी कितने जीव मर जाते हैं । और ऐसे कई पाप हैं जो अनजाने हो जाते हैं ।तो उस पाप से मुक्ती का क्या उपाय है  भगवन ।आचार्य शुकदेव जी ने कहा -राजन ऐसे पाप से मुक्ती के लिए रोज प्रतिदिन पाँच प्रकार के यज्ञ  करने चाहिए ।महाराज परीक्षित जी ने कहा, भगवन एक यज्ञ यदि कभी करना पड़ता है तो सोंचना पड़ता है ।आप पाँच यज्ञ रोज कह रहे हैं ।यहां पर आचार्य शुकदेव जी हम सभी मानव के  कल्याणार्थ कितनी सुन्दर बात बता रहे हैं बोले राजन  पहली यज्ञ है -जब घर में रोटी बने तो पहली रोटी  गऊ ग्रास के लिए निकाल देना चाहिए ।दूसरी यज्ञ है राजन -चींटी को दस पाँच ग्राम आटा रोज वृक्षों की जड़ो के पास डालना चाहिए। तीसरी यज्ञ है राजन्-पक्षियों को अन्न रोज डालना चाहिए ।चौथी यज्ञ है राजन् -आँटे की गोली बनाकर रोज जलाशय में मछलियो को डालना चाहिए ।पांचवीं यज्ञ है राजन्- भोजन बनाकर अग्नि भोजन , रोटी बनाकर उसके टुकड़े करके उसमे घी चीनी मिलाकरअग्नि को भोग लगाओ।राजन् अतिथि सत्कार  खूब करें, कोई भिखारी आवे तो उसे जूठा अन्न कभी भी भिक्षा में न दे । राजन् ऐसा करने से अनजाने में किये हुए पाप से मुक्ती मिल जाती है ।हमे उसका दोष नहीं लगता ।उन पापो का फल हमे नहीं भोगना पड़ता। राजा ने पुनः पूछ लिया ,भगवन यदि गृहस्त में रहकर ऐसी यज्ञ न हो पावे तो और कोई उपाय हो सकता है क्या।तब यहां पर श्री शुकदेव जी कहते हैं राजन् कर्मणा  कर्मनिर्हांरो न ह्यत्यन्तिक इष्यते।

अविद्वदधिकारित्वात् प्रायश्चितं विमर्शनम् ।।नरक से मुक्ती पाने के लिए हम प्रायश्चित करें। कोई ब्यक्ति तपस्या के द्वारा प्रायश्चित करता है।कोई ब्रह्मचर्य पालन करके प्रायश्चित करता है।कोई ब्यक्ति यम,नियम,आसन के द्वारा प्रायश्चित करता है।लेकिन मैं तो ऐसा मानता हूँ राजन!केचित् केवलया भक्त्या  वासुदेव परायणः।राजन् केवल हरी नाम संकीर्तन से ही जाने और अनजाने में किये हुए को नष्ट करने की सामर्थ्य है ।इस लिए हे राजन !----- सुनिएस्वास स्वास पर कृष्ण भजि बृथा स्वास जनि खोय।न जाने या स्वास की आवन होय न होय। ।राजन किसी को पता नही की जो स्वास अंदर जा रही है वो लौट कर वापस आएगी की नही ।इस लिए सदैव हरी का जपते रहो ।मैं तो जी माहराज आप सबसे यह निवेदन 🙏🏻करना चाहूँगा की, भगवान  राम और कृष्ण के नाम को जपने के लिए कोई भी नियम की जरूरत नही होती है।कहीं भी कभी भी  किसी भी समय सोते जागते उठते बैठते गोविन्द का नाम रटते रहो।हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हर

!! जय श्री राम!!

आनंद ?

 {{  दुःख रूपी पत्थर }}

 *एक संत से एक युवक ने पूछा:-* “ *गुरुदेव*, हमेशा खुश रहने का *नुस्खा* अगर हो तो दीजिए।"


 *संत बोले:-* "बिल्कुल है, आज तुमको वह राज बताता हूँ।" 


संत उस युवक को अपने साथ सैर को ले चले, अच्छी बातें करते रहे, युवक बड़ा आनंदित था। एक स्थान पर ठहर कर संत ने उस युवक को एक बड़ा पत्थर देकर कहा:- " *इसे उठाए साथ चलो।* "


 पत्थर को उठाकर वह युवक संत के साथ-साथ चलने लगा। कुछ समय तक तो आराम से चला लेकिन थोड़ी देर में हाथ में दर्द होने लगा, पर दर्द सहन करता चुपचाप चलता रहा। संत पहले की तरह मधुर उपदेश देते चल रहे थे पर युवक का धैर्य जवाब दे गया। 


 *उस युवक ने कहा:-* "


 *गुरूजी* आपके प्रवचन मुझे प्रिय नहीं लग रहे अब, मेरा हाथ दर्द से फटा जा रहा है।"


पत्थर रखने का संकेत मिला तो उस युवक ने पत्थर को फेंका और आनंद में भरकर गहरी साँसे लेने लगा।


 *संत ने कहा:-* "यही है खुश रहने का राज़, मेरे प्रवचन तुम्हें तभी आनंदित करते रहे जब तुम बोझ से मुक्त थे, परंतु पत्थर के बोझ ने उस आनंद को छीन लिया। जैसे पत्थर को ज़्यादा देर उठाये रखेंगे तो दर्द बढ़ता जायेगा उसी तरह हम दुखों या किसी की कही कड़वी बात के बोझ को जितनी देर तक उठाये रखेंगे उतना ही दुःख होगा। 


 *अगर खुश रहना चाहते हो तो दु:ख रुपी पत्थर को जल्दी से जल्दी नीचे रखना सीख लो और हो सके तो उसे उठाओ ही नहीं।* 

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सतसंग पाठ M / 27082021

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राधास्वामी! 27-08-2021-आज सुबह सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                                                   


 सतगुरु प्यारे ने सिंगारी ,

 सुरत रंगीली हो।। टेक ॥                                                             


 जग में सुरत रही मेरी अटकी ।

करम भरम में बहु बिधि भटकी ।

गह रही टेक हठीली हो।।१।।


बचन सुनाय गढ़त गुरु कीनी ।

घट का भेद मेहर कर दीनी ।

धुन शब्द सुनाई रसीली हो ॥२ ॥                                                            

सुन सुन धुन सुत नम पर धाई ।

गगन फोड गह सुन्न में छाई ।

हो गई आज छबीली हो ॥ ३ ॥            

                                                विघन सबहि गुरु दर कराई ।

 काल करम दोउ रहे लजाई ।

 माया भई शरमीली हो ॥४ ॥                                            

सुन्न शिखर पर चढ़ी स्रुत बिरहन ।

भंवरगुफा धुन पड़ी अब सरवन ।

छोड़ दिया मठ नीली हो ॥ ५ ।।                                           


 सतपुर जाय किया अब बासा ।

 हंस करें जहाँ नित्त बिलासा ।

सुनी धुन बीन सुरीली हो ॥६ ॥    

                                                         

  यहाँ से सूरत अधर चढ़ाई । राधास्वामी दरस पाय हरखाई ।

 हो गई आज सजीली हो ॥ ७ ॥


 (प्रेमबानी-3-शब्द-43-पृ.सं.143,144)

भाव के भूखे भगवान

 *आज का अमृत*/ भक्ति और भाव*

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प्रस्तुति - कृष्ण मेहता 


कृष्ण भगवान का एक बहुत बड़ा भक्त हुआ लेकिन वो बेहद गरीब था।


एक दिन उसने अपने शहर के सब से बड़े "गोविन्द गोधाम" की महिमा सुनी और उसका वहाँ जाने को मन उत्सुक हो गया।


कुछ दिन बाद जन्माष्टमी आने वाली थी उसने सोचा मै प्रभु के साथ जन्माष्टमी "गोविन्द गोधाम" में मनाऊँगा।


गोंविंद गोधाम उसके घर से बहुत दूर था। जन्माष्टमी वाले दिन वो सुबह ही घर से चल पड़ा।


उसके मन में कृष्ण भगवान को देखने का उत्साह और मन में भगवान के भजन गाता जा रहा था।


रास्ते में जगह जगह लंगर और पानी की सेवा हो रही थी, वो यह देखकर बहुत आनंदित हुआ की वाह प्रभु आपकी लीला ! मैने तो सिर्फ सुना ही था कि आप गरीबो पर बड़ी दया करते हो आज अपनी आँखों से देख भी लिया। 


सब गरीब और भिखारी और आम लोग एक ही जगह से लंगर प्रशाद पाकर कितने खुश है।


भक्त ऑटो में बैठा ही देख रहा था उसने सबके देने पर भी कुछ नही लिया और सोचा पहले प्रभु के दर्शन करूँगा फिर कुछ खाऊँगा ! क्योंकि आज तो वहाँ ग़रीबो के लिये बहुत प्रशाद का इंतेज़ाम किया होगा।


रास्ते में उसने भगवान के लिए थोड़े से अमरुद का प्रशाद लिया और बड़े आनंद में था भगवान के दर्शन को लेकर।


भक्त इतनी कड़ी धूप में भगवान के घर पहुँच गया और मंदिर की इतनी प्यारी सजावट देखकर भावविभोर हो गया।


भक्त ने फिर मंदिर के अंदर जाने का किसी से रास्ता पूछा।किसी ने उसे रास्ता बता दिया और कहा यह जो लाईने लगी हुई है आप भी उस लाइन में लग जाओ।


वो भक्त भी लाईन में लग गया वहाँ बहुत ही भीड़ थी पर एक और लाइन उसके साथ ही थी पर वो एकदम खाली थी।


भक्त को बड़ी हैरानी हुई की यहाँ इतनी भीड़ और यहाँ तो बारी ही नही आ रही और वो लाइन से लोग जल्दी जल्दी दर्शन करने जा रहे है।


उस भक्त से रहा न गया उसने अपने साथ वाले भक्त से पूछा की भैया यहाँ इतनी भीड़ और वो लाइन इतनी खाली क्यों है और वहाँ सब जल्दी जल्दी दर्शन के लिए कैसे जा रहे है वो तो हमारे से काफी बाद में आए है।


उस दूसरे भक्त ने कहा भाई यह VIP लाइन है जिसमे शहर के अमीर लोग है।


भक्त की सुनते ही आँखे खुली रह गई उसने मन में सोचा भगवान के दर पे क्या अमीर क्या गरीब यहाँ तो सब समान होते है।


कितनी देर भूखे प्यासे रहकर उस भक्त की बारी दरबार में आ ही गई और भगवान को वो दूर से देख रहा था और उनकी छवि को देखकर बहुत आनंदित हो रहा था।


वो देख रहा था की भगवान को तो सब लोग यहाँ छप्पन भोग चढ़ा रहे है और वो अपने थोड़े से अमरुद सब से छुपा रहा था।


जब दर्शन की बारी आई तो सेवादारो ने उसे ठीक से दर्शन भी नही करने दिए और जल्दी चलो जल्दी चलो कहने लगे। उसकी आँखे भर आई और उसने चुपके से अपने वो अमरुद वहाँ रख दिए और दरबार से बाहर चला गया।


दरबार के बाहर ही लंगर प्रशाद लिखा हुआ था। भक्त को बहुत भूख लगी थी सोचा अब प्रशाद ग्रहण कर लू ।


जेसे ही वो लंगर हाल के गेट पर पहुँचा तो 2 दरबान खड़े थे वहाँ उन्होंने उस भक्त को रोका और कहा पहले VIP पास दिखाओ फिर अंदर जा सकोगे।


भक्त ने कहाँ यह VIP पास क्या होता है मेरे पास तो नही है। उस दरबान ने कहा की यहाँ जो अमीर लोग दान करते है उनको पास मिलता है और लंगर सिर्फ वो ही यहाँ खा सकते हैं।


भक्त की आँखों में इतने आँसू आ गए और वो फूट फूट कर रोने लगा और भगवान से नाराज़ हो गया और अपने घर वापिस जाने लगा।


रास्ते में वो भगवान से मन में बातें करता रहा और उसने कहा प्रभु आप भी अमीरों की तरफ हो गए आप भी बदल गए प्रभु मुझे आप से तो यह आशा न थी और सोचते सोचते सारे रास्ते रोता रहा।


भक्त घर पर पहुँच कर रोता रोता सो गया।


भक्त को भगवान् ने नींद में दर्शन दिए और भक्त से कहा तुम नाराज़ मत होओ मेरे प्यारे भक्त


भगवान ने कहा अमीर लोग तो सिर्फ मेरी मूर्ति के दर्शन करते है।अपने साक्षात् दर्शन तो मै तुम जैसे भक्तों को देता हूँ ...


और मुझे छप्पन भोग से कुछ भी लेंना देंना नही है मै तो भक्त के भाव खाता हूँ और उनके आँसू पी लेता हूँ और यह देख मै तेरे भाव से चढ़ाए हुए अमरुद खा रहा हूँ।


भक्त का सारा संदेह दूर हुआ और वो भगवान के साक्षात् दर्शन पाकर गदगद हो गया और उसका गोविंद गोधाम जाना सफल हुआ और भगवान को खुद उसके घर चल कर आना पड़ा।


भगवान भाव के भूखे है बिन भाव के उनके आगे चढ़ाए छप्पन भोग भी फीके है।

*🌹

सतसंग पाठ E/ 26082021

 राधास्वामी! / 26-08-2021-आज शाम सतसंग में पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-         

                          

  आज मैं गुरु की करूँगी आरती ।

तन मन धन सब चरन वारती ॥१ ॥                                                           बिरह प्रेम की जोत जगाती ।

हिरदे थाली सन्मुख लाती ॥२ ॥                                                        

फूल फूल कर हार चढ़ाती ।

 उमँग उमँग बस्तर पहिराती ॥३ ॥                                                              घंटा संख मृदंग बजाती ।

 सारँग बंसी बीन सुनाती ॥ ४ ॥                                          

राग रागनी नइ धुन गाती ।

समाँ बँधा कुछ कहा न जाती ॥ ५ ॥                                     

अचरज सामाँ भोग धराती ।

अमी सरोवर जल भर लाती ॥६ ॥                                                       

अंग अंग गुरु प्रेम बढाती ।

सेवा कर राधास्वामी रिझाती ॥७ ॥                                                                  

दृढ परतीत हिये बिच लाती । राधास्वामी राधास्वामी सदा धियाती ।।८।।

महिमा राधास्वामी कही न जाती ।

 दया मेहर परशादी पाती ॥९।।                                   

एक आस बिसवास धराती ।

 चरन सरन की रहुँ रस माती ॥१०।।                                                  राधास्वामी सँग छोड़ा कुल जाती । राधास्वामी चरन सुरत मेरी राती ॥११ ॥                                        

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻



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शाहदरा ब्रांच के सतसंगियों के लिए सूचनार्थ

 *राधास्वामी*



शाहदरा ब्रांच की नई मैरिज इन्फॉर्मेशन बैंक (MIB - Marriage Information Bank) की कार्यभारी प्रेमी बहन रजनी बेरीवाल है जिन्होंने अभी अगस्त 202j1 में ही कार्यभार संभाला है।


आप सभी माता पिता से यह निवेदन है कि अगर आपके परिवार में कोई शादी की उम्र के है और जिनका रजिस्ट्रेशन अभी तक नही हुआ वह रेजिस्ट्रेशन के लिए प्रेमी बहन रजनी बेरीवाल से फॉर्म प्राप्त करे और फॉर्म को भरके उन्हें ही जमा कराए ।


*प्रेमी बहन रजनी बेरीवाल*

*9911139750*.


*🌞श्री कृष्ण की सोलह कलाएं🌞*

*🌞श्रीकृष्ण को जिन सोलह कलाओं से परिपूर्ण कहा जाता है, वे कलाएं कौन सी हैं?*


*🌞प्रभु श्रीराम 12 कलाओं के ज्ञाता थे तो भगवान श्रीकृष्ण सभी 16 कलाओं के ज्ञाता हैं। चंद्रमा की सोलह कलाएं होती हैं। और ब्रह्म यानि की स्वयं ईश्वर 16 कलाओं से युक्त होते हैं और फिर भगवान शिव जी 64 कलाओं में पारंगत हैं और उन्हें 64 कलाओं का पूर्ण ज्ञान है ।।*


*👏सामान्यत मनुष्य के पास 5 कला तक होती है और अगर उसे उसका ज्ञान और भान हो तब ठीक है ।।*


*🌞यहां पर भगवान श्रीकृष्ण जी के 16 कलाओं के बारे में जानकारी दी गई है ।।*


*🌞भगवान श्रीकृष्ण सोलह कलाओं से युक्त थे। श्रीकृष्ण जी में ही ये सारी खूबियां समाविष्ट थी। श्री कृष्ण जिन सोलह कलाओं को धारण करते थे उनका संक्षिप्त विवरण यह है। भगवान कृष्ण की ये वो 16 कलायें हैं, जो हर किसी व्यक्ति में कम या ज्यादा होती हैं।*


*👉 कला 1- श्री संपदा:*

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*🌞श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है। ऐसा व्यक्ति आत्मिक रूप से धनवान होता है। ऐसे व्यक्ति के पास से कोई खाली हाथ वापस नहीं आता। इस कला से संपन्न व्यक्ति ऐश्वर्यपूर्ण जीवनयापन करता है।*


*👉 कला 2- भू संपदा:*

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*🌞जिसके भीतर पृथ्वी पर राज करने की क्षमता हो तथा जो पृथ्वी के एक बड़े भू-भाग का स्वामी हो, वह भू कला से संपन्न माना जाता है।*


*👉 कला 3- कीर्ति संपदा:*

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*🌞कीर्ति कला से संपन्न व्यक्ति का नाम पूरी दुनिया में आदर सम्मान के साथ लिया जाता है। ऐसे लोगों की विश्वसनीयता होती है और वह लोककल्याण के कार्यों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं।*


*👉 कला 4- वाणी सम्मोहन:*

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*🌞वाणी में सम्मोहन भी एक कला है। इससे संपन्न व्यक्ति की वाणी सुनते ही सामने वाले का क्रोध शांत हो जाता है। मन में प्रेम और भक्ति की भावना भर उठती है।*


*👉 कला 5- लीला:*

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*🌞पांचवीं कला का नाम है लीला। इससे संपन्न व्यक्ति के दर्शन मात्र से आनंद मिलता है और वह जीवन को ईश्वर के प्रसाद के रूप में ग्रहण करता है।*


*👉 कला 6- कांति:*

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*🌞जिसके रूप को देखकर मन अपने आप आकर्षित हो जाता हो, जिसके मुखमंडल को बार-बार निहारने का मन करता हो, वह कांति कला से संपन्न होता है।*


*👉 कला 7- विद्या:*

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*🌞सातवीं कला का नाम विद्या है। इससे संपन्न व्यक्ति वेद, वेदांग के साथ ही युद्घ, संगीत कला, राजनीति एवं कूटनीति में भी सिद्घहस्त होते हैं।*


*👉 कला 8- विमला:*

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*🌞जिसके मन में किसी प्रकार का छल-कपट नहीं हो और जो सभी के प्रति समान व्यवहार रखता हो, वह विमला कला से संपन्न माना जाता है।*


*👉 कला 9- उत्कर्षिणि शक्ति:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों को कर्म करने के लिए प्रेरित करने की क्षमता होती है। ऐसे व्यक्ति में इतनी क्षमता होती है कि वह लोगों को किसी विशेष लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रेरित कर सकता है।*


*👉 कला 10- नीर-क्षीर विवेक:*

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*🌞इससे संपन्न व्यक्ति में विवेकशीलता होती है। ऐसा व्यक्ति अपने विवेक से लोगों का मार्ग प्रशस्त कर सकने में सक्षम होता है।*


*👉 कला 11- कर्मण्यता:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में स्वयं कर्म करने की क्षमता तो होती है। वह लोगों को भी कर्म करने की प्रेरणा दे सकता है और उन्हें सफल बना सकता है।*


*👉 कला 12- योगशक्ति:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में मन को वश में करने की क्षमता होती है। वह मन और आत्मा का फर्क मिटा योग की उच्च सीमा पा लेता है।*


*👉 कला 13- विनय:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में नम्रता होती है। ऐसे व्यक्ति को अहंकार छू भी नहीं पाता। वह सारी विद्याओं में पारंगत होते हुए भी गर्वहीन होता है।*


*👉 कला 14- सत्य-धारणा:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में कोमल-कठोर सभी तरह के सत्यों को धारण करने की क्षमता होती है। ऐसा व्यक्ति सत्यवादी होता है और जनहित और धर्म की रक्षा के लिए कटु सत्य बोलने से भी परहेज नहीं करता।*


*👉 कला 15- आधिपत्य:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में लोगों पर अपना प्रभाव स्थापित करने का गुण होता है। जरूरत पड़ने पर वह लोगों को अपने प्रभाव की अनुभूति कराने में सफल होता है।*


*👉 कला 16- अनुग्रह क्षमता:*

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*🌞इस कला से संपन्न व्यक्ति में किसी का कल्याण करने की प्रवृत्ति होती है। वह प्रत्युपकार की भावना से संचालित होता है। ऐसे व्यक्ति के पास जो भी आता है, वह अपनी क्षमता के अनुसार उसकी सहायता करता है।*


*🌞श्री राधे कृष्ण🌞*

Wednesday, August 25, 2021

राम सबरी मुलाक़ात

 *🙏मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम🙏*

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*👏माता शबरी बोली- यदि रावण का अंत नहीं करना होता तो राम तुम यहाँ कहाँ से आते?"*


*🌞राम गंभीर हुए। कहा, "भ्रम में न पड़ो अम्मा! राम क्या रावण का वध करने आया है? छी... अरे रावण का वध तो लक्ष्मण अपने पैर से वाण चला भी कर सकता है। राम हजारों कोस चल कर इस गहन वन में आया है तो केवल तुमसे मिलने आया है अम्मा, ताकि हजारों वर्षों बाद जब कोई पाखण्डी भारत के अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा करे तो इतिहास चिल्ला कर उत्तर दे कि इस राष्ट्र को क्षत्रिय राम और उसकी भीलनी माँ ने मिल कर गढ़ा था !जब कोई कपटी भारत की परम्पराओं पर उँगली उठाये तो तो काल उसका गला पकड़ कर कहे कि नहीं ! यह एकमात्र ऐसी सभ्यता है जहाँ एक राजपुत्र वन में प्रतीक्षा करती एक दरिद्र वनवासिनी से भेंट करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार करता है। राम वन में बस इसलिए आया है ताकि जब युगों का इतिहास लिखा जाय तो उसमें अंकित हो कि सत्ता जब पैदल चल कर समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचे तभी वह रामराज्य है। राम वन में इसलिए आया है ताकि भविष्य स्मरण रखे कि प्रतिक्षाएँ अवश्य पूरी होती हैं !!!*


*👏सबरी एकटक राम को निहारती रहीं। राम ने फिर कहा- " राम की वन यात्रा रावण युद्ध के लिए नहीं है माता! राम की यात्रा प्रारंभ हुई है भविष्य के लिए आदर्श की स्थापना के लिए। राम आया है ताकि भारत को बता सके कि अन्याय का अंत करना ही धर्म है l राम आया है ताकि युगों को सीख दे सके कि विदेश में बैठे शत्रु की समाप्ति के लिए आवश्यक है कि पहले देश में बैठी उसकी समर्थक सूर्पणखाओं की नाक काटी जाय, और खर-दूषणो का घमंड तोड़ा जाय। और राम आया है ताकि युगों को बता सके कि रावणों से युद्ध केवल राम की शक्ति से नहीं बल्कि वन में बैठी सबरी के आशीर्वाद से जीते जाते हैं।"*


*👏सबरी की आँखों में जल भर आया था। उसने बात बदलकर कहा- बेर खाओगे राम?*


*🌞राम मुस्कुराए, "बिना खाये जाऊंगा भी नहीं अम्मा..."*


*👏सबरी अपनी कुटिया से झपोली में बेर ले कर आई और राम के समक्ष रख दिया। राम और लक्ष्मण खाने लगे तो कहा- मीठे हैं न प्रभु?*


*👉 यहाँ आ कर मीठे और खट्टे का भेद भूल गया हूँ अम्मा! बस इतना समझ रहा हूँ कि यही अमृत है...*


*👏सबरी मुस्कुराईं, बोलीं- "सचमुच तुम मर्यादा पुरुषोत्तम हो राम! गुरुदेव ने ठीक कहा था..."*


*👏साभार👏*


*🙏जय श्री राम🙏*

सतसंग पाठ M /26082021

: *राधास्वामी!* /  26-08-2021-आज सुबह पढा जाने वाला दूसरा पाठ:-                                          

सतगुरु प्यारे ने खुलाया।

 घट प्रेम खज़ाना हो ॥ टेक ॥                                                   

मेहर दृष्टि मेरे सतगुरु डाली ।

 सुरत शब्द सुन घट में चाली ।

 मन हुआ आज निमाना हो ॥१ ॥* 

                                                          **रूप अनूप देख हिये माहीं ।

 सुरत निरत दोउ घट घिर आईं ।

 मन हुआ प्रेम दिवाना हो ॥२ ॥                                                                 

मद और मोह अहँगता त्यागी ।

भक्ति नवीन हिये में जागी ।

 गुरु पै बल बल जाना हो ॥३ ॥                                                                

गुरु छबि मोहि लगी अति प्यारी ।

बार बार चरनन पर वारी ।

सुध बुध सब बिसराना हो ॥४ ॥*


*मेहर दया ले चढी गगन में।

गरु बतियाँ सुन हुई मगन में ।

काल और करम हिराना हो ॥५ ॥   

                                                         सुन में जा हुई हंसन प्यारी ।

अमी धार जहाँ हर दम जारी ।

 पी पी अमी अघाना हो ॥६ ॥


भँवरगुफा जाय लागी ताड़ी ।

 धुन मुरली जहँ बजत करारी ।

छूटा आना जाना हो ॥७ ॥


 सतपर सतगुरु दरस दिखानी ।

बीन सुनत स्रुत हुई मस्तानी ।

 अचरज खेल खिलाना हो ॥८ ॥                                                  

अलख अगम के पार ठिकाना । राधास्वामी दरस दिखाना ।

 चरनन माहि समाना हो ॥९।। 

   

(प्रेमबानी-3-शब्द-42-पृ.सं.142,143)                                               

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**





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राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफल कर ले।   


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।  


राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।    


राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।  


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।     


राधास्वामी सुमिर सुमिर रूनझुन शब्द सुनाई हो।।       


राधास्वामी दोउ रिमझिम मेघा

एवं रूनझुन शब्द मिलाई हो।।


🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼

वसई किला / मनीषा सिंह

 मुंबई के पास एक स्थान है वसई जहाँ समुद्र किनारे पुर्तगालियो द्वारा बनवाया एक किला है, 

इस किले पर पहुँचने के लिए आपको एक बस स्टॉप पर उतरना होता है जिसका नाम है चिमाजी अप्पा जंक्शन। 


किसी भी स्थान के नाम के पीछे उस जगह का इतिहास छिपा होता है, यह बात थोड़ी जिज्ञासा पैदा करती है कि आखिर पुर्तगालियो के किले का चिमाजी अप्पा से क्या लेना देना होगा।


चिमाजी अप्पा एक ब्राह्मण, पेशवा बाजीराव के छोटे भाई और मराठा सेना के जनरल थे। 

उत्सुकता में इस किले का इतिहास निकालना पड़ा और जो सच सामने आया उसने झकझोर कर रख दिया और सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर चिमाजी अप्पा जैसे महापुरुष इतिहास में कहाँ गुमनाम हो गए। 


नेहरूजी पर दोषारोपण कर भी दिया जाए तो हिंदूवादियों ने भी इन्हें प्रसिद्धि दिलाने का क्या प्रयास किया??


भारत को गुलाम बनाने का सपना सबसे पहले पुर्तगालियो ने ही देखा था ये मुगलो से पहले भारत मे आ गए थे। 

सन 1738 तक इन्होंने मुंबई और गोवा पर कब्जा कर लिया साथ ही एक अलग राष्ट्र की घोषणा कर दी। 

उस समय मराठा साम्राज्य बेहद शक्तिशाली हो चुका था। ठीक एक साल पहले पेशवा बाजीराव दिल्ली और भोपाल में सारे रणबांकुरों को धूल चटाकर लौटे थे।


बाजीराव ने पुर्तगालियो को संदेश भेजा कि आप मुंबई और गोवा में व्यापार करें मगर ये दोनो मराठा साम्राज्य और भारत के अंग हैं इसलिए मुगलो की तरह आप भी हमारी अधीनता स्वीकार करें। 

जब पुर्तगाली नही माने तो बाजीराव ने अपने छोटे भाई और मराठा जनरल श्री चिमाजी अप्पा को युद्ध का आदेश दिया। 

चिमाजी अप्पा ने पहले गोवा पर हमला किया और वहाँ के चर्चो को तहस नहस कर दिया इससे पुर्तगालियो की आर्थिक कमर टूट गयी। 

फिर वसई आये जहाँ ये किला है। 


चिमाजी अप्पा ने 2 घंटे लगातार किले पर बमबारी की और पुर्तगालियो ने सफेद झंडा दिखाया, चिमाजी अप्पा ने किले पर मराठा ध्वज फहराया और पुर्तगालियो ने समझौता किया कि वे सिर्फ व्यापार करेंगे और अपने लाभ का एक चौथाई हिस्सा मराठा साम्राज्य को कर के रुप में देंगे। 


चिमाजी अप्पा ने सारे हथियार, गोला, बारूद जब्त कर लिए। 

इस युद्ध ने पुर्तगालियो की शक्ति का अंत कर दिया और भारत पर राज करने का सपना आखिर सपना ही बनकर रह गया।


हिन्दू धर्म मे यह बेहद दुर्लभ है कि किसी व्यक्ति को शस्त्र के साथ शास्त्र का भी ज्ञान हो, चिमाजी अप्पा उन्ही लोगो मे से एक थे। 

वसई का किला खण्डहर हो चुका है कुछ सालो में शायद खत्म भी हो जाये मगर उस बस स्टॉप का नाम हमेशा भारत के गौरवशाली इतिहास का स्मरण कराता रहेगा कि एक भरतवंशी योद्धा इस जगह आया था जिसने मातृभूमि को पराधीनता में जकड़े जाने से पहले ही आज़ाद कर लिया और इतिहास में अमर हो गया।


नीचे किले में बनी चिमाजी अप्पा की मूर्ति है। 

चिमाजी अप्पा अपनी विजयी मुद्रा में खड़े आज अपने अस्तित्व का युद्ध भी लड़ रहे है क्योकि राष्ट्रवादी व्यस्त है अपनी राजनीति में।।

✍🏻परख सक्सेना


कोलाचेल युद्ध में डचों को हराने वाले राजा मार्तण्ड वर्मा : इतिहास की पुस्तकों से गायब


डच वर्तमान नीदरलैंड (यूरोप) के निवासी हैं. भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से इन लोगों ने 1605 में डच ईस्ट इंडिया कंपनी बनायीं और ये लोग केरल के मालाबार तट पर आ गए. ये लोग मसाले, काली मिर्च, शक्कर आदि का व्यापार करते थे.

धीरे धीरे इन लोगों ने श्रीलंका, केरल, कोरमंडल, बंगाल, बर्मा और सूरत में अपना व्यवसाय फैला लिया. इनकी साम्राज्यवादी लालसा के कारण इन लोगों ने अनेक स्थानों पर किले बना लिए और सेना बनायीं. श्रीलंका और ट्रावनकोर इनका मुख्य गढ़ था. स्थानीय कमजोर राजाओं को हरा कर डच लोगों ने कोचीन और क्विलोन (quilon) पर कब्ज़ा कर लिया.

उन दिनों केरल छोटी छोटी रियासतों में बंटा हुआ था. मार्तण्ड वर्मा एक छोटी सी रियासत वेनाद का राजा था. दूरदर्शी मार्तण्ड वर्मा ने सोचा कि यदि मालाबार (केरल) को विदेशी शक्ति से बचाना है तो सबसे पहले केरल का एकीकरण करना होगा. उसने अत्तिंगल, क्विलोन (quilon) और कायामकुलम रियासतों को जीत कर अपने राज्य की सीमा बढाई.

अब उसकी नज़र ट्रावनकोर पर थी जिसके मित्र डच थे. श्रीलंका में स्थित डच गवर्नर इम्होफ्फ़ (Gustaaf Willem van Imhoff) ने मार्तण्ड वर्मा को पत्र लिख कर कायामकुलम पर राज करने पर अप्रसन्नता दर्शायी. इस पर मार्तण्ड वर्मा ने जबाब दिया कि 'राजाओं के काम में दखल देना तुम्हारा काम नहीं, तुम लोग सिर्फ व्यापारी हो और व्यापार करने तक ही सीमित रहो'.

कुछ समय बाद मार्तण्ड वर्मा ने ट्रावनकोर पर भी कब्ज़ा कर लिया. इस पर डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने कहा कि मार्तण्ड वर्मा ट्रावनकोर खाली कर दे वर्ना डचों से युद्ध करना पड़ेगा. मार्तण्ड वर्मा ने उत्तर दिया कि 'अगर डच सेना मेरे राज्य में आई तो उसे पराजित किया जाएगा और मै यूरोप पर भी आक्रमण का विचार कर रहा हूँ'. ['I would overcome any Dutch forces that were sent to my kingdom, going on to say that I am considering an invasion of Europe'- Koshy, M. O. (1989). The Dutch Power in Kerala, 1729-1758) ]

डच गवर्नर इम्होफ्फ़ ने पराजित ट्रावनकोर राजा की पुत्री स्वरूपम को ट्रावनकोर का शासक घोषित कर दिया. इस पर मार्तण्ड वर्मा ने मालाबार में स्थित डचों के सारे किलों पर कब्ज़ा कर लिया.

अब डच गवर्नर इम्होफ्फ़ की आज्ञा से मार्तण्ड वर्मा पर आक्रमण करने श्रीलंका में स्थित और बंगाल, कोरमंडल, बर्मा से बुलाई गयी 50000 की विशाल डच जलसेना लेकर कमांडर दी-लेननोय कोलंबो से ट्रावनकोर की राजधानी पद्मनाभपुर के लिए चला. मार्तण्ड वर्मा ने अपनी वीर नायर जलसेना का नेतृत्व स्वयं किया और डच सेना को कन्याकुमारी के पास कोलाचेल के समुद्र में घेर लिया.

कई दिनों के भीषण समुद्री संग्राम के बाद 31 जुलाई 1741 को मार्तण्ड वर्मा की जीत हुई. इस युद्ध में लगभग 11000 डच सैनिक बंदी बनाये गए, शेष डच सैनिक युद्ध में हताहत हो गए.

डच कमांडर दी-लेननोय, उप कमांडर डोनादी तथा 24 डच जलसेना टुकड़ियों के कप्तानो को हिन्दुस्तानी सेना ने बंदी बना लिया और राजा मार्तण्ड वर्मा के सामने पेश किया. राजा ने जरा भी नरमी न दिखाते हुए उनको आजीवन कन्याकुमारी के पास उदयगिरी किले में कैदी बना कर रखा.

अपनी जान बचाने के लिए इनका गवर्नर इम्होफ्फ़ श्रीलंका से भाग गया. पकडे गए 11000 डच सैनिकों को नीदरलैंड जाने और कभी हिंदुस्तान न आने की शर्त पर वापस भेजा गया, जिसे नायर जलसेना की निगरानी में अदन तक भेजा गया, वहां से डच सैनिक यूरोप चले गए. 

कुछ वर्षों बाद कमांडर दी-लेननोय और उप कमांडर डोनादी को राजा ने इस शर्त पर क्षमा किया कि वे आजीवन राजा के नौकर बने रहेंगे तथा उदयगिरी के किले में राजा के सैनिकों को प्रशिक्षण देंगे. इस तरह नायर सेना यूरोपियन युद्ध कला में निपुण हुई. उदयगिरी के किले में कमांडर दी-लेननोय की मृत्यु हुई, वहां आज भी उसकी कब्र है.

केरल और तमिलनाडु के बचे खुचे डचों को पकड़ कर राजा मार्तण्ड सिंह ने 1753 में उनको एक और संधि करने पर विवश किया जिसे मवेलिक्कारा की संधि कहा जाता है. इस संधि के अनुसार डचों को इंडोनेशिया से शक्कर लाने और काली मिर्च का व्यवसाय करने की इजाजत दी जायेगी और बदले में डच लोग राजा को यूरोप से उन्नत किस्म के हथियार और गोला बारूद ला कर देंगे.

राजा ने कोलाचेल में विजय स्तम्भ लगवाया और बाद में भारत सरकार ने वहां शिला पट्ट लगवाया.

मार्तण्ड वर्मा की इस विजय से डचों का भारी नुकसान हुआ और डच सैन्य शक्ति पूरी तरह से समाप्त हो गयी. श्रीलंका, कोरमंडल, बंगाल, बर्मा एवं सूरत में डचो की ताकत क्षीण हो गयी.

राजा मार्तण्ड वर्मा ने छत्रपति शिवाजी से प्रेरणा लेकर अपनी सशक्त जल सेना बनायीं थी.

तिरुवनन्तपुरम का प्रसिद्द पद्मनाभस्वामी मंदिर राजा मार्तण्ड वर्मा ने बनवाया और अपनी सारी संपत्ति मंदिर को दान कर के स्वयं भगवान विष्णु के दास बन गए. इस मंदिर के 5 तहखाने खोले गए जिनमे बेशुमार संपत्ति मिली. छठा तहखाना खोले जाने पर अभी रोक लगी हुई है.

यह दुख की बात है कि महान राजा मार्तण्ड वर्मा और कोलाचेल के युद्ध को NCERT की इतिहास की पुस्तकों में कोई जगह न मिल सकी.

1757 में अपनी मृत्यु से पूर्व दूरदर्शी राजा मार्तण्ड वर्मा ने अपने पुत्र राजकुमार राम वर्मा को लिखा था - 'जो मैंने डचों के साथ किया वही बंगाल के नवाब को अंग्रेजों के साथ करना चाहिए. उनको बंगाल की खाड़ी में युद्ध कर के पराजित करें, वर्ना एक दिन बंगाल और फिर पूरे हिंदुस्तान पर अंग्रेजो का कब्ज़ा हो जाएगा'.


छत्रपति संभाजी महाराज ने शस्त्र युक्त नौ जहाज का निर्माण किया यह कहना गलत नही होगा संभाजी महाराज नौ वैज्ञानिक तो थे ही साथ में शस्त्र विशेषज्ञ भी थे उन्हें ज्ञात था कौनसा नौके में कितने वजन का तोप ले जा सकता हैं ।

छत्रपति शिवाजी महाराज नौसेना के जनक थे केवल भारत ही नही अपितु पुरे विश्व को नौ सेना बनाने का विचार सूत्र दिया नौका को केवल वाहन रूप में इस्तेमाल किया जाता था शिवाजी महाराज प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने साधारण नौका को समंदर का रक्षक का रूप दे दिया शस्त्रयुक्त लड़ाकू जहाज बनाकर । शिवपुत्र संभाजी महाराज समंदर के अपराजय योद्धा थे समंदर की रास्ता उन्हें अपनी हथेलियों की लकीर जैसी मालूम थी , इसलिए पुर्तगालियों के पसीने छूटते थे संभाजी महाराज के नाम से केवल।


पुर्तगाली साथ युद्ध-:

‘छत्रपति संभाजी महाराजने गोवामें पुर्तगालियों से किया युद्ध राजनीतिक के साथ ही धार्मिक भी था । हिंदुओं का धर्मांतरण करना तथा धर्मांतरित न होनेवालों को जीवित जलाने की शृंखला चलानेवाले पुर्तगाली पादरियों के ऊपरी वस्त्र उतार कर तथा दोनों हाथ पीछे बांधकर संभाजी महाराज ने गांव में उनका जुलूस निकाला ।’ – प्रा. श.श्री. पुराणिक (ग्रंथ : ‘मराठ्यांचे स्वातंत्र्यसमर (अर्थात् मराठोंका स्वतंत्रतासंग्राम’ डपूर्वार्ध़) छत्रपति संभाजी महाराज अत्यंत क्रोधित हुए क्योंकि गोवा में पुर्तगाली हिन्दुओं के धर्म परिवर्तन के साथ साथ मंदिरों को ध्वंश भी कर रहे थे। छत्रपति संभाजी महाराज द्वारा किये जा रहे हमले से अत्यंत भयभीत होगे थे जो पोर्तुगाली के लिखे चिट्ठी में दर्शाता हैं : “ संभाजी आजके सबसे पराक्रमी व्यक्ति हैं और हमें इस बात का अनुभव हैं” । 

यह रहा पोर्तुगाली इसाई कसाइयों द्वारा लिखा हुआ शब्द-: (The Portuguese were very frightened of being assaulted by Sambhaji Maharaj, and this reflects in their letter to the British in which they wrote, ‘Now-a-days Sambhaji is the most powerful person and we have experienced it’. ) 

 

संभाजी महाराज गोवा की आज़ादी एवं हिन्दुओ के उप्पर हो रहे अत्याचारों का बदला लेने के लिए 7000 मावले इक्कट्ठा किया और पुर्तगालीयों पर आक्रमण कर दिया पुर्तगाली सेना जनरल अल्बर्टो फ्रांसिस के पैरो की ज़मीन खिसक गई महाराज संभाजी ने 50,000 पुर्तगालीयों सेना को मौत के घाट उतार दिया बचे हुए पुर्तगाली अपने सामान उठाकर चर्च में जाकर प्रार्थना करने लगे और कोई चमत्कार होने का इंतेज़ार कर रहे थे संभाजी महाराज के डर से समस्त पुर्तगाली लूटेरे पंजिम बंदरगाह से 500 जहाजों पर संभाजी महाराज के तलवारों से बच कर कायर 25000 से अधिक पुर्तगाली लूटेरे वापस पुर्तगाल भागे । 


संभाजी महाराज ने पुरे गोवा का शुद्धिकरण करवाया एवं ईसाइयत धर्म में परिवर्तित हुए हिंदुओं को हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया ।  


पुर्तगाली सेना के एक सैनिक मोंटिरो अफोंसो वापस पुर्तगाल जाकर किताब लिखा (Drogas da India) लिखता हैं संभाजी महाराज को हराना किसी पहाड़ को तोड़ने से ज्यादा मुश्किल था महाराज संभाजी के आक्रमण करने की पद्धति के बारे में  से ब्रिटिश साम्राज्य तक भयभीत होगया गया था अंग्रेजो और हम (पुर्तगाल) समझ गए थे भारत को गुलाम बनाने का सपना अधुरा रह जायेगा।  

संभाजी महाराज की युद्धनिति थी अगर दुश्मनों की संख्या ज्यादा हो या उनके घर में घुसकर युद्ध करना हो तो घात लगा कर वार करना चाहिए जिसे आज भी विश्व के हर सेना इस्तेमाल करती हैं जिसे कहते हैं Ambush War Technic। पुर्तगाल के सैनिक कप्तान अफोंसो कहता हैं संभाजी महाराज के इस युद्ध निति की कहर पुर्तगाल तक फैल गई थी संभाजी महाराज की आक्रमण करने का वक़्त होता था रात के ८ से ९ बजे के बीच और जब यह जान बचाकर पुर्तगाल भागे तब वहा भी कोई भी पुर्तगाली लूटेरा इस ८ से ९ बजे के बीच घर से नहीं निकलता था in लूटेरो को महाराज संभाजी ने तलवार की वह स्वाद चखाई थी जिससे यह अपने देश में भी डर से बहार नहीं निकलते थे घर के ।     

    

हिंदू धर्म में पुनः परिवर्तित किया गया :

हम सभी जानते हैं छत्रपति शिवाजी महाराज के निकट साथी, सेनापति नेताजी पालकर जब औरंगजेब के हाथ लगे और उसने उनका जबरन धर्म परिवर्तन कर उसका नाम मोहम्मद कुलि खान रख दिया । शिवाजी महाराज ने मुसलमान बने नेताजी पालकर को ब्राम्हणों की सहायता से पुनः हिन्दू बनाया और उनको हिन्दू धर्म में शामिल कर उनको प्रतिष्ठित किया।

हालांकि, यह ध्यान देने की बात हैं संभाजी महाराज ने हिंदुओं के लिए अपने प्रांत में एक अलग विभाग स्थापित किया था जिसका नाम रखा गया 'पुनः परिवर्तन समारोह' दुसरे धर्म में परिवर्तित होगये हिन्दुओ के लिए इस समारोह का आयोजन किया गया था ।

हर्षुल नामक गाँव में कुलकर्णी ब्राह्मण रहता था संभाजी महाराज पर लिखे इतिहास में इस वाकया का उल्लेख हैं कुलकर्णी नामक ब्राह्मण को ज़बरन इस्लाम में परिवर्तित किया था मुगल सरदारों ने कुलकर्णी मुगल सरदारों की कैद से रिहा होते ही संभाजी महाराज के पास आकर उन्होंने अपनी पुन: हिन्दू धर्म अपनाने की इच्छा जताई संभाजी महाराज ने तुरंत 'पुनः धर्म परिवर्तन समारोह का योजन करवाया और हिन्दू धर्म पुनःपरिवर्तित किया ।

✍🏻मनीषा सिंह

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