Saturday, October 31, 2020

आज का दिन मंगलमय हो

 प्रस्तुति - कृष्ण  मेहता 


🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 01 नवम्बर 2020*

⛅ *दिन - रविवार*

⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)* 

⛅ *शक संवत - 1942*

⛅ *अयन - दक्षिणायन*

⛅ *ऋतु - हेमंत*

⛅ *मास - कार्तिक  (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार - अश्विन)*

⛅ *पक्ष - कृष्ण* 

⛅ *तिथि - प्रतिपदा रात्रि 10:49 तक तत्पश्चात द्वितीया*

⛅ *नक्षत्र - भरणी रात्रि 08:57 तक तत्पश्चात कृत्तिका*

⛅ *योग - व्यतिपात 02 नवम्बर प्रातः 05:19 तक तत्पश्चात वरीयान्*

⛅ *राहुकाल - शाम 04:37 से शाम 06:03 तक*

⛅ *सूर्योदय - 06:42* 

⛅ *सूर्यास्त - 18:01* 

⛅ *दिशाशूल - पश्चिम दिशा में*

⛅ *व्रत पर्व विवरण - 

 💥 *विशेष - प्रतिपदा को कूष्माण्ड(कुम्हड़ा, पेठा) न खाये, क्योंकि यह धन का नाश करने वाला है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *कार्तिक मास* 🌷

🙏🏻 *महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 106 के अनुसार “कार्तिकं तु नरो मासं यः कुर्यादेकभोजनम्। शूरश्च बहुभार्यश्च कीर्तिमांश्चैव जायते।।” जो मनुष्य कार्तिक मास में एक समय भोजन करता है, वह शूरबीर, अनेक भार्याओं से संयुक्त और कीर्तिमान होता है।*

💥 *कार्तिक में बैंगन और करेला खाना मना बताया गया है .?*

🙏🏻 *महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 66 जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में अन्न का दान करता है, वह दुर्गम संकट से पार हो जाता है और मरकर अक्षय सुख का भागी होता है ।*

🙏🏻 *शिवपुराण के अनुसार कार्तिक में गुड़ का दान करने से मधुर भोजन की प्राप्ति होती है*।

🌷 *स्कंदपुराण वैष्णवखंड के अनुसार-  ‘मासानां कार्तिकः श्रेष्ठो देवानां मधुसूदनः। तीर्थ नारायणाख्यं हि त्रितयं दुर्लभं कलौ।’*

➡ *अर्थात मासों में कार्तिक, देवताओं में भगवान विष्णु और तीर्थों में नारायण तीर्थ बद्रिकाश्रम श्रेष्ठ है। ये तीनों कलियुग में अत्यंत दुर्लभ हैं।*

🌷 *स्कंदपुराण वैष्णवखंड के अनुसार-  ‘न कार्तिसमो मासो न कृतेन समं युगम्‌। न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थ गंगया समम्‌।’*

➡ *अर्थात कार्तिक के समान दूसरा कोई मास नहीं, सतयुगके समान कोई युग नहीं, वेद के समान कोई शास्त्र नहीं और गंगाजीके समान कोई तीर्थ नहीं है।*

🙏🏻 *भगवान श्री कृष्ण को वनस्पतियों में तुलसी, पुण्य क्षेत्रों में द्वारिकापुरी, तिथियों में एकादशी और महिनों में कार्तिक विशेष प्रिय है- कृष्णप्रियो हि कार्तिक:, कार्तिक: कृष्णवल्लभ:।  इसलिए कार्तिक मास को अत्यंत पवित्र और पुण्यदायक माना गया है।*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *कार्तिक मास* 🌷

➡ *31 अक्टूबर से 30 नवम्बर तक कार्तिक स्नान ।*

💥 *विशेष ~ गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार अभी अश्विन मास है ।*

🌷 *कार्तिक मास में वर्जित* 

🙏🏻 *ब्रह्माजी ने नारदजी को कहा : ‘कार्तिक मास में चावल, दालें, गाजर, बैंगन, लौकी और बासी अन्न नहीं खाना चाहिए | जिन फलों में बहुत सारे बीज हों उनका भी त्याग करना चाहिए और संसार – व्यवहार न करें |*’

🌷 *कार्तिक मास में विशेष पुण्यदायी* 

🙏🏻 *प्रात: स्नान, दान, जप, व्रत, मौन, देव – दर्शन, गुरु – दर्शन, पूजन का अमिट पुण्य होता है | सवेरे तुलसी का दर्शन भी समस्त पापनाशक है | भूमि पर शयन, ब्रह्मचर्य का पालन, दीपदान, तुलसीबन अथवा तुलसी के पौधे लगाना हितकारी है |*

🙏🏻 *भगवदगीता का पाठ करना तथा उसके अर्थ में अपने मन को लगाना चाहिए | ब्रह्माजी नारदजी को कहते हैं कि ‘ऐसे व्यक्ति के पुण्यों का वर्णन महिनों तक भी नहीं किया जा सकता |’*

🙏🏻 *श्रीविष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना भी विशेष लाभदायी है | 'ॐ नमो नारायणाय '| इस महामंत्र का जो जितना अधिक जप करें, उसका उतना अधिक मंगल होता है | कम – से – कम १०८ बार तो जप करना ही चाहिए |*

🙏🏻 *प्रात: उठकर करदर्शन करें | ‘पुरुषार्थ से लक्ष्मी, यश, सफलता तो मिलती है पर परम पुरुषार्थ मेरे नारायण की प्राप्ति में सहायक हो’ – इस भावना से हाथ देखें तो कार्तिक मास में विशेष पुण्यदायी होता है |*

🙏🏻 *सूर्योदय के पूर्व स्नान अवश्य करें*

🙏🏻 *जो कार्तिक मास में सूर्योदय के बाद स्नान करता है वह अपने पुण्य क्षय करता है और जो सूर्योदय के पहले स्नान करता है वह अपने रोग और पापों को नष्ट करनेवाला हो जाता है | पूरे कार्तिक मास के स्नान से पापशमन होता है तथा प्रभुप्रीति और सुख – दुःख व अनुकूलता – प्रतिकूलता में सम रहने के सदगुण विकसित होते हैं |* 

🙏🏻 *हम छोटे थे तब की बात है | हमारी माँ कार्तिक मास में सुबह स्नान करती, बहनें भी करतीं, फिर आस - पडोस की माताओं - बहनों के साथ मिल के भजन गातीं | सूर्योदय से पहले स्नान करने से पुण्यदायी ऊर्जा बनती है, पापनाशिनी मति आती है | कार्तिक मास का आप लोग भी फायदा उठाना |*

🌷 *३ दिन में पूरे कार्तिक मास के पुण्यों की प्राप्ति*

🙏🏻 *कार्तिक मास के सभी दिन अगर कोई प्रात: स्नान नहीं कर पाये तो उसे कार्तिक मास के अंतिम ३ दिन – त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा  को 'ॐकार' का जप करते हुए सुबह सूर्योदय से तनिक पहले स्नान कर लेने से महिनेभर के कार्तिक मास के स्नान के पुण्यों की प्राप्ति कही गयी है |*


             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏

दयालबाग़ मेँ आजकल की सूचनाएँ

 एडवाइज़री कमेटी ऑन एजुकेशन (ACE) की मीटिंग में

परम पूज्य हुज़ूर प्रो. प्रेम सरन सतसंगी साहब द्वारा फ़रमाए गए अमृत बचन

(बुधवार 23 सितम्बर, 2020 को सुबह कृषिकार्य के दौरान)

 (पिछले दिन का शेष)


          परम पूज्य हुज़ूर द्वारा आदेश दिए जाने पर कानूनी सलाहकार (डी.ई.आई.) ने सेन्ट्रल गवर्नमेन्ट के मूल्यांकन की विधि में संशोधन किए जाने तथा विचाराधीन विषय के कानूनी सुधार के संबंध में अपने विचार प्रस्तुत किए।

तत्पश्चात् परम पूज्य हुज़ूर ने फ़रमाया-

          विश्व स्तर पर Cumulative Grade Point Average (CGPA) को मान्यता प्राप्त है तथा कोर्ट भी CGPA सिस्टम के प्रति सजग हैं तथा पूर्व में 4.00 में से 4.00 CGPA जो फ़ुट-पाउण्ड-सेकेण्ड था और अब मेट्रिक सिस्टम हो गया है। तो इसकी वास्तविकता से कोई इन्कार नहीं करता है। CGPA Index की कोर्ट को पूर्ण जानकारी है, CGPA चाहे पूर्व का फ़ुट, पौण्ड, सेकण्ड सिस्टम हो या वर्तमान विश्वव्यापी प्रयोग किया जाने वाला सिस्टम हो, जिसे संक्षेप में मेट्रिक सिस्टम कहते हैं। सरकार ने स्वयं प्रधानमंत्री व प्रेसीडेन्ट, वाइस-प्रेसीडेन्ट को परामर्श देने हेतु देश में प्रयुक्त लोकतंत्र में विशेषज्ञ डा. सैम पिट्रोदा की सहायता ली है। तो ऐसा कुछ नहीं है कि कोर्ट जानते नहीं हैं। उन्हें पता है कि इनका अर्थ क्या है। पहले प्रतिशत अंक का सिस्टम था। यह एक बार फिर पीछे के दरवाज़े से पुराने प्रतिशत सिस्टम से भी बदतर पर्सन्टाइल (Percentile) सिस्टम को लाकर इसको वैज्ञानिक मूल्यांकन का दावा पेश करना है, जिसका देशीय सिस्टम पर प्रयोग वर्जित है और केवल अन्तर्राष्ट्रीय मूल्यांकन में प्रयुक्त होता है।

          तत्पश्चात् परम पूज्य हुज़ूर द्वारा पूछे जाने पर प्रो. पम्मी दुआ, डायरेक्टर, दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स ने CGPA विधि के सम्बन्ध में अपने विचार प्रस्तुत किए और अग्रणी संस्थान दिल्ली स्कूल ऑफ़ इकोनोमिक्स की फ़िलौसफ़ी व कार्यों (दायित्वों) को संक्षेप में बताया।

         परम पूज्य हुज़ूर ने पुनः टिप्पणी करते हुए फ़रमाया-

          मैं समझता हूँ कि डॉ. सैम पिट्रोदा द्वारा किए गए मूल्यांकन को विश्व भर में फैले दर्शकों को सुनाया जाए इससे बेहतर समझ होगी। यह वार्त्ता दो घंटे की थी, इसके प्रारम्भ के 10 मिनट तथा अंत के 10 मिनट जिसमें समापन किया गया था उसे सुनवाएँ। मल्टीमीडिया सेंटर इसे e DEI www.education पर रिलीज़ करें।

          इसके पश्चात् डॉ. सैम पिट्रोदा के भाषण के कुछ उद्धरण सुनवाए गए जिसमें डी.ई.आई. (डीम्ड यूनिवर्सिटी) द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान किए गए अथक प्रयासों की प्रशंसा की गई है। उन्होंने DEI (डीम्ड यूनिवर्सिटी) के शिक्षा के क्षेत्र में किए गए अग्रणी कार्यों तथा उच्चस्तर की सफलता व उपलब्धियों के परिपेक्ष्य में कहा कि संस्थान को अब Scaling (विस्तार) पर बल देना चाहिए जिससे कि यह विश्व के हर नुक्कड़ व कोने में स्थापित हो जाए जिससे कि इसकी अनूठी शिक्षा प्रणाली से अधिक से अधिक लोग लाभान्वित हों। उन्होंने यह भी कामना की कि देश के प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में डी.ई.आई. स्थापित हो।

          मीटिंग के अन्त में डा. विजय कुमार ने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए बताया कि ’दयालबाग़ जीवन शैली’ प्रकृति के साथ समन्वय, जो पृथ्वी ग्रह की वर्तमान एवं भावी सुरक्षा एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक है, पर विशेष बल देती है। उन्होंने यह भी बताया कि हमारी आध्यात्मिक प्रक्रिया (meditation process) की यह विशेषता है कि यह microcosm (सूक्ष्म जगत) की खोज कर macrocosm से मेल कराती है जो परम सत्य की ओर ले जाती है, यही शिक्षा का परम लक्ष्य है।

 🙏Radhasoami 🙏


Gone from our sight but never from our hearts!


Pbn. Charansakhi  Thakur 1953 to 25 Oct. 2020 D/o. Late pbn. Vidya wati and late PB. Rana jaswant Roy district sec. Jaladhar branch is no more!

We pray Gracious Hazur to let her soul rest in his feet🙏:

 प्रदर्शनी सम्बन्धी आवश्यक सूचना


            यदि किसी ब्रांच के सतसंगी वर्ष 2021 के द्वितीय छमाही अर्थात् जुलाई से दिसम्बर, 2021 की अवधि में दयालबाग़ उत्पाद प्रदर्शनी आयोजित करने के इच्छुक हों तो उस ब्रांच के सेक्रेटरी इस निमित्त ब्रांच के सतसंगियों की एक मीटिंग बुलाएँ जिसका स्थान, समय और उद्देश्य की सूचना सेक्रेटरी द्वारा पूर्व में दी जाये। उपस्थित सतसंगी मीटिंग का एक अध्यक्ष चुनें जो शेष कार्यवाही करायेगा। उस बैठक में प्रदर्शनी कमेटी के चेयरमैन और अन्य सदस्यों का चयन किया जायेगा। इस प्रकार चुने गये चेयरमैन प्रदर्शनी कमेटी के सदस्यों के परामर्श से तैयार प्रस्ताव को अपने रीजन के प्रतिनिधि को तथा उसकी एक प्रतिलिपि रीजनल प्रेसीडेन्ट को देर से देर 30 नवम्बर, 2020 तक निम्नलिखित बातों का विवरण देते हुए भेज दें।

1.   ब्रांच का नाम।

2.   स्थान, शहर का नाम तथा पता जहाँ पर प्रदर्शनी प्रस्तावित है। (प्रदर्शनी का स्थान ब्रांच के क्षेत्र में रहेगा)।

3.   एक दिवसीय प्रदर्शनी में रखी गयी वस्तुओं का कुल सम्भावित मूल्य  1,00,000 रुपये से अधिक न हो। (रीजन दो अथवा तीन एक दिवसीय प्रदर्शनी के स्थान पर बड़े शहर में एक नियमित प्रदर्शनी,   जिसका मूल्य 3,00,000 रुपये से अधिक न हो, आयोजित कर सकता है)।

4.   प्रदर्शनी के लिए ब्याजमुक्त धनराशि देने वाले उसी ब्रांच के उपदेश प्राप्त सतसंगियों की सूची, जिसमें फ़ार्म ‘ए‘ की क्रम-संख्या/यू.आई.डी. संख्या प्रथम उपदेश की पूरी तिथि (तारीख़, माह एवं वर्ष) तथा दी जाने वाली राशि सहित जो प्रति व्यक्ति 2000/- रुपये से अधिक नहीं हो, सम्मिलित हों। जिन व्यक्तियों की प्रथम उपदेश की पूरी तिथि मालूम नहीं है उनका नाम ब्याजमुक्त धनराशि देने वालों की सूची में सम्मिलित न करें।

5.   प्रदर्शनी आयोजित करने का महीना/प्रस्तावित तिथि।

6.   प्रदर्शनी कमेटी के चेयरमैन का पूरा नाम एवं पता नगर के पिन कोड सहित (बड़े और साफ़ अक्षरों में) और टेलीफ़ोन/मोबाइल नम्बर, e mail ID (यदि हो तो) तथा प्रदर्शनी कमेटी के अन्य सदस्यों के नाम उनके प्रथम उपदेश की पूरी तारीख़ के साथ।

सेक्रेटरी

एस.सी.एस.डब्लू.एस. 


*जरूरी  सलाह*


*कोविड -१९  पेंडेमिक  के  समय  कृपया  निम्नलिखित  बातों  का  अवश्य  पालन  करें-*


( *१* )  मास्क  का  इस्तेमाल  अवश्य  करें।  हाथों  की  स्वच्छता  का  ध्यान  रखें।  हाथों  को  साबुन  से  धोएं  या  हैण्ड  सैनिटाइजर  का  इस्तेमाल  भी  कर  सकते  हैं।  सोशल  डिस्टेंसिंग  का  पालन  करें।


( *२* )  जो  कोविड  पॉजिटिव  हो  चुके   हैं,  वे  अपने  घरों में  सोडियम  हाइपोक्लोराइट  ( १ % )  का  स्प्रे  करें  और  यूवी  लाइट  का  उपयोग  सावधानीपूर्वक  करें।




( *३* )  ऐसे  व्यक्ति  डॉक्टर  विजय  कुमार,  एडवाइजर  मेडिकल  एजुकेशन  एंड  हेल्थ  केयर  प्रैक्टिस  की  सलाह  से  डेक्सामेथासोन  की  टेबलेट  लें।


*राधास्वामी*

दयालबाग़ सतसंग शाम 31/10

 **राधास्वामी! /  31-10- 2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                               

   (1) लगे है सतगुरु मुझे पियारे। कर उनका सतसंग शब्द धारे।। छुटे है मन के बिकार सारे। कहूँ मैं कैसे गुरु कि गतियाँ।।-(जगा है मेरा अपार भागा। चरन में राधास्वामी आन लगा।। गायें सब जीव माया रागा। रहे है थक मग में जोगी जतियाँ।।) (प्रेमबानी-4-गजल-10-पृ.सं.11-12 )                         

 (2) सरन पडे की लाज प्रभु राखो राखनहार।।टेक।। निर्गुनियारा गुन नहिं एको औगुन भरे हजार।।-(जामें छुटे कंटक करमा चरनन मिले अधार।। राधास्वामी सतगुरु परम दयाला दीजे कष्ट निवार।। ) (प्रेमबिलास-शब्द-80-पृ.सं.113)                                             

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।                    🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 31-10 -2020- 

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे- (30)

                                         

 इसी तरह मिस्टर जार्ज सेल के कुरान शरीफ में के अंग्रेजी अनुवाद की भूमिका में पृष्ठ 37 पर लिखा है- इस स्थान पर यह प्रकट करना अनुचित न होगा कि उस समय मुसलमान पैगंबर साहब का कैसा अनुमान से बाहर सम्मान करने लगे थेंं•••••••••••• 

राजदूत ने बयान किया कि उसे रोम और ईरान के बादशाहों के दरबारों में जाने का अवसर मिला था, पर जिस दर्जे का सम्मान मोहम्मद साहब के सहाबा (निकटवर्ती ) करते थे ऐसा किसी शहजादे का देखने में नहीं आया। क्योंकि जब पैगंबर साहब नमाज अदा करने के लिए वजू करते थे तो सहाबी दौड़कर बरते हुए पानी को उठा लेते थे और जब पैगंबर साहब थूकते थे वे तुरंत उसे चाट लेते थे और जब कोई उनका बाल गिर जाता था वे बड़ी श्रद्धा से उठा लेते थे।  

                                    

  (31) भाई ज्ञानसिंहजी ज्ञानी रचित' तवारीख गुरु खालसा' के पहले भाग (जो सन 1923 ईस्वी में छपी है ) के पृष्ठ 74 पर लिखा है-" एक रोज गुरु नानक साहब ने इंम्तहानन एक मुर्दे की लाश को दरिया के किनारे पर देखकर हुक्म दिया कि जो शख्स हमारे कोल (बचन ) पर एतबार रखता है वह इस मुद्दे को खावे यह सुनकर सब चुप रह गए किसी ने जरूरत ना कि अगर सामने फोन हुकुम की तामिल की रवायत है जी खाने को गए तो उनको कड़ा प्रसाद की लज्जत का मालूम हुआ।।                                                   (32) इसके अतिरिक्त गुरु गोविंद साहब के पाँच प्यारों और समर्थ रामदास जी के गुरुमुख शिष्य  शिवाजी के चरित्र और आत्मसमर्पण का वृतांत इतना प्रसिद्ध है कि उसको या लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा 

-परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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Thursday, October 29, 2020

कार्तिक माह की कथा

 🕉️•| कार्तिक माहात्म्य |•🕉️


                            अध्याय - 01


                    नैमिषारण्य तीर्थ में श्रीसूतजी ने अठ्ठासी हजार शौनकादि ऋषियों से कहा – अब मैं आपको कार्तिक मास की कथा विस्तारपूर्वक सुनाता हूँ, जिसका श्रवण करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त समय में वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

          सूतजी ने कहा – श्रीकृष्ण जी से अनुमति लेकर देवर्षि नारद के चले जाने के पश्चात सत्यभामा प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण से बोली – हे प्रभु! मैं धन्य हुई, मेरा जन्म सफल हुआ, मुझ जैसी त्रौलोक्य सुन्दरी के जन्मदाता भी धन्य हैं, जो आपकी सोलह हजार स्त्रियों के बीच में आपकी परम प्यारी पत्नी बनी। मैंने आपके साथ नारद जी को वह कल्पवृक्ष आदिपुरुष विधिपूर्वक दान में दिया, परन्तु वही कल्पवृक्ष मेरे घर लहराया करता है। यह बात मृत्युलोक में किसी स्त्री को ज्ञात नहीं है। हे त्रिलोकीनाथ! मैं आपसे कुछ पूछने की इच्छुक हूँ। आप मुझे कृपया कार्तिक माहात्म्य की कथा विस्तारपूर्वक सुनाइये जिसको सुनकर मेरा हित हो और जिसके करने से कल्पपर्यन्त भी आप मुझसे विमुख न हों।

          सूतजी आगे बोले – सत्यभामा के ऎसे वचन सुनकर श्रीकृष्ण ने हँसते हुए सत्यभामा का हाथ पकड़ा और अपने सेवकों को वहीं रूकने के लिए कहकर विलासयुक्त अपनी पत्नी को कल्पवृक्ष के नीचे ले गये फिर हंसकर बोले – हे प्रिये! सोलह हजार रानियों में से तुम मुझे प्राणों के समान प्यारी हो। तुम्हारे लिए मैंने इन्द्र एवं देवताओं से विरोध किया था। हे कान्ते! जो बात तुमने मुझसे पूछी है, उसे सुनो।

          एक दिन मैंने (श्रीकृष्ण) तुम्हारी (सत्यभामा) इच्छापूर्ति के लिए गरुड़ पर सवार होकर इन्द्रलोक जाकर कल्पवृक्ष मांगा। इन्द्र द्वारा मना किये जाने पर इन्द्र एवं गरुड़ में घोर संग्राम हुआ और गौ लोक में भी गरुड़ जी गौओं से युद्ध किया। गरुड़ की चोंच की चोट से उनके कान एवं पूंछ कटकर गिरने लगे जिससे तीन वस्तुएँ उत्पन्न हुई। कान से तम्बाकू, पूँछ से गोभी और रक्त से मेहंदी बनी। इन तीनों का प्रयोग करने वाले को मोक्ष नहीं मिलता तब गौओं ने भी क्रोधित होकर गरुड़ पर वार किया जिससे उनके तीन पंख टूटकर गिर गये। इनके पहले पंख से नीलकण्ठ, दूसरे से मोर और तीसरे से चकवा-चकवी उत्पन्न हुए। हे प्रिये! इन तीनों का दर्शन करने मात्र से ही शुभ फल प्राप्त हो जाता है।

          यह सुनकर सत्यभामा ने कहा – हे प्रभो! कृपया मुझे मेरे पूर्व जन्मों के विषय में बताइए कि मैंने पूर्व जन्म में कौन-कौन से दान, व्रत व जप नहीं किए हैं। मेरा स्वभाव कैसा था, मेरे जन्मदाता कौन थे और मुझे मृत्युलोक में जन्म क्यों लेना पड़ा। मैंने ऎसा कौन सा पुण्य कर्म किया था जिससे मैं आपकी अर्द्धांगिनी हुई?

          श्रीकृष्ण ने कहा – हे प्रिये! अब मै तुम्हारे द्वारा पूर्व जन्म में किये गये पुण्य कर्मों को विस्तारपूर्वक कहता हूँ, उसे सुनो। पूर्व समय में सतयुग के अन्त में मायापुरी में अत्रिगोत्र में वेद-वेदान्त का ज्ञाता देवशर्मा नामक एक ब्राह्मण निवास करता था। वह प्रतिदिन अतिथियों की सेवा, हवन और सूर्य भगवान का पूजन किया करता था। वह सूर्य के समान तेजस्वी था। वृद्धावस्था में उसे गुणवती नामक कन्या की प्राप्ति हुई। उस पुत्रहीन ब्राह्मण ने अपनी कन्या का विवाह अपने ही चन्द्र नामक शिष्य के साथ कर दिया। वह चन्द्र को अपने पुत्र के समान मानता था और चन्द्र भी उसे अपने पिता की भाँति सम्मान देता था।

          एक दिन वे दोनों कुश व समिधा लेने के लिए जंगल में गये। जब वे हिमालय की तलहटी में भ्रमण कर रहे थे तब उन्हें एक राक्षस आता हुआ दिखाई दिया। उस राक्षस को देखकर भय के कारण उनके अंग शिथिल हो गये और वे वहाँ से भागने में भी असमर्थ हो गये तब उस काल के समान राक्षस ने उन दोनों को मार डाला। चूंकि वे धर्मात्मा थे इसलिए मेरे पार्षद उन्हें मेरे वैकुण्ठ धाम में मेरे पास ले आये। उन दोनों द्वारा आजीवन सूर्य भगवान की पूजा किये जाने के कारण मैं दोनों पर अति प्रसन्न हुआ।

          गणेश जी, शिवजी, सूर्य व देवी – इन सबकी पूजा करने वाले मनुष्य को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। मैं एक होता हुआ भी काल और कर्मों के भेद से पांच प्रकार का होता हूँ। जैसे – एक देवदत्त, पिता, भ्राता, आदि नामों से पुकारा जाता है। जब वे दोनों विमान पर आरुढ़ होकर सूर्य के समान तेजस्वी, रूपवान, चन्दन की माला धारण किये हुए मेरे भवन में आये तो वे दिव्य भोगों को भोगने लगे।

क्रमशः

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               🕉️•|"जय जय श्री हरि"|•🕉️

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प्रेमपत्र भाग -1 30/10

 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र-भाग-1-


 कल से आगे: -                          


 (10 )-जितने मत कि संसार में जारी है उनका लक्ष्य स्थान माया के घेर में है और इस सबब से उनके बचन और उनकी युक्तियाँ अभ्यास की उसी हद में खत्म हो जाती है। इस वास्ते राधास्वामी दयाल के इष्ट वालों को चाहिए कि उन बचनों और युक्तियों को सुन कर धोखा न  खावें और उन मत वालों की बातें सुनकर या उनकी किताबें पढ़कर भूल न जावें और अपना इरादा राधास्वामी देश में पहुंचने का ढीला न करें, नहीं तो किसी न किसी स्थान पर रास्ते में अटक जावेंगे और जन्म मरण से उनका सच्चा छुटकारा नहीं होगा।।      

                     

 ( 11) राधास्वामी दयाल अपने सच्चे भक्तों को आप प्यार करते हैं और हर तरह से उनकी सँभाल और रक्षा करते रहते हैं । और जो वे अपना इरादा मजबूत रखेंगे और राधास्वामी की दया का भरोसा और यकीन करेंगे, तो भी हर हालत में उनको आप माया और काल के चक्करों से बचाकर सीधे रास्ते से अपने देश में ले जावेंगे और अपने दर्शनों का परम आनंल बख्शेंगे और रास्ते में कहीं धोखा नहीं खाने देंगे । 

पर अभ्यासी भक्त को चाहिए कि प्रीति और प्रतीति उनके चरणों में बढ़ाता जावे और संशय और भरम अपने चित्त में ना लावे और जब कभी कोई संशय और भरम उठे, उसको सत्संग में फौरन जाहिर करके दूर करावें।और अपने तई कमजोर और अयोग्य जान कर , जब तब चरणों के वास्ते प्राप्ति मेहर  और दया और अपनी सँभाल के प्रार्थना करता रहे।

 क्रमशः                  

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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Wednesday, October 28, 2020

आज का दिन मंगलमय हो

 ✦• प्रस्तुति -  कृष्णा  मेहता 


_आज का पंचाग_* 🧾 *_गुरुवार  29 अक्टूबर _*

           **प्रस्तुति**

**पंडित कृष्ण मेहता**

 *_।। आप का दिन मंगलमय हो ।।_*


🌌 *_दिन (वार) - गुरुवार के दिन तेल का मर्दन करने से धनहानि होती है । (मुहूर्तगणपति) गुरुवार के दिन धोबी को वस्त्र धुलने या प्रेस करने नहीं देना चाहिए । गुरुवार को ना तो सर धोना चाहिए, ना शरीर में साबुन लगा कर नहाना चाहिए और ना ही कपडे धोने चाहिए ऐसा करने से घर से लक्ष्मी रुष्ट होकर चली जाती है ।_*

*_गुरुवार को पीतल के बर्तन में चने की दाल, हल्दी, गुड़ डालकर केले के पेड़ पर चढ़ाकर दीपक अथवा धूप जलाएं । इससे बृहस्पति देव प्रसन्न होते है, दाम्पत्य जीवन सुखमय होता है ।_*

*_गुरुवार को चने की दाल भिगोकर उसके एक हिस्से को आटे की लोई में हल्दी के साथ रखकर गाय को खिलाएं, दूसरे हिस्से में शहद डालकर उसका सेवन करें। इस उपाय को करने से कार्यो में अड़चने दूर होती है, भाग्य चमकने लगता है ।_*

🌐 *_विक्रम संवत् – 2077.संकल्पादि में प्रयुक्त होनेवाला संवत्सर – प्रमादी._*

☸️ *_शक संवत - 1942_*

☣️ *_अयन - दक्षिणायण_*

⛈️ *_ऋतु - सौर हेमंत ऋतु आरंभ_*

🌤️ *_मास - द्वितीय अधिक आश्विन माह_*

🌖 *_पक्ष - शुक्ल पक्ष_*

📆 *_तिथि - षत्रयोदशी  03:15 PM तक तत्पश्चात चतुर्दशी_*

📝 *_तिथि का स्वामी – त्रयोदशी तिथि के देवता प्रेम देवता कामदेव जी जी और चतुर्दशी तिथि के स्वामी भगवान भोलेनाथ जी है।_*

💫 *_नक्षत्र –उत्तर भाद्रपद दोपहर 12 बजे तक. तत्पश्चात रेवती_*

🪐 *_नक्षत्र के देवता, ग्रह स्वामी- उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुंधन्य देव, स्वामी शनि देव जी एवं वहीं राशि स्वामी गुरु है।_*

🤷🏻‍♀️ *_उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 27 नक्षत्रों में 26वां नक्षत्र है, उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के देवता अहिर्बुंधन्य देव, स्वामी शनि देव जी एवं वहीं राशि स्वामी गुरु है। शनि गुरु में शत्रुता है। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र के जातको पर जीवन भर शनि और गुरु का प्रभाव रहता है ।_*

🌟 *_उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र का आराध्य वृक्ष : नीम तथा स्वाभाव शुभ माना गया है। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र सितारे का लिंग पुरुष है। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक पर जीवन भर शुक्र एवं राहु ग्रह का प्रभाव बना रहता है।_*

*_उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति धार्मिक, कुशल वक्ता,  यशस्वी, परोपकारी और धनवान होते है। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्तियों को सन्तान पक्ष से सुख की प्राप्ति होती है। इनका पारिवारिक जीवन भी सुखमय रहता है।_*

*_इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति को हनुमान जी की आराधना करनी चाहिए, इनको पीपल की सदैव / विशेषकर शनिवार को तो अवश्य ही सेवा करनी चाहिए ।_*

*_उत्तर भाद्रपद नक्षत्र के लिए भाग्यशाली अंक क्या हैं 6 और 8, भाग्यशाली रंग बैगनी तथा भाग्यशाली दिन  गुरुवार, मंगलवार और शुक्रवार होता है ।_*

*_उत्तर भाद्रपद नक्षत्र में जन्मे जातको को तथा जिस दिन यह नक्षत्र हो उस दिन सभी को इस नक्षत्र देवता के नाममंत्र:- ॐ अहिर्बुंधन्याय नमःl मन्त्र की माला का जाप अवश्य करना चाहिए ।_*

📣 *_योग :- हर्षण – 02:39 AM, 30 अक्टूबर तक_*

⚡ *_प्रथम करण :- तैतिल – 15 :15 तक_*

✨ *_द्वितीय करण :- गर – 04:29 AM, 30 अक्टूबर तक_*

⚜️ *_दिशाशूल – बृहस्पतिवार को दक्षिण दिशा एवं अग्निकोण का दिकशूल होता है । यात्रा, कार्यों में सफलता के लिए घर से सरसो के दाने या जीरा खाकर जाएँ ।_*

🤖 *_राहुकाल – दिन – 1:30 से 3:00 तक।_*

🌞 *_सूर्योदय – प्रातः 06:08_*

🌅 *_सूर्यास्त – सायं 17:55_*

🔅 *_रवि योग- दोपहर 12 बजे से लेकर शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक_*

🌟 *_हर्षण योग - पूरा दिन पार कर देर रात 2 बजकर 37 मिनट तक_*

💮 *_उत्तराभाद्रपद नक्षत्र- दोपहर 12 बजे तक_*

❄️ *_रेवती नक्षत्र- दोपहर 12 बजकर 1 मिनट से शुक्रवार दोपहर 2 बजकर 57 मिनट तक_*

🗣️ *_यायीजयद योग- मुकदमा दायर करने या अपनी बात रखने के योग सूर्योदय से दोपहर बाद 3 बजकर 15 मिनट तक_*

🔯 *_सर्वार्थसिद्धि योग- सारे काम बनाने वाले योग दोपहर 12 बजे से शुक्रवार सुबह सूर्योदय तक रहेगा।_*

⚛️ *_पर्व व त्यौहार- पंचक_*

✍🏼 *_विशेष – त्रियोदशी को बैगन का सेवन नहीं करना चाहिए ।_*


           🏚️ *_वास्तु टिप्स_* 🏘️


*_वास्तु शास्त्र में जानिए दर्पण लगाने के अन्य फायदों के बारे में। जिन लोगों का घर बहुत छोटी जगह में बना हो या घर में बने कमरों का साइज़ बहुत छोटा और सामान रखने की वजह से घर या कमरा भरा-भरा लगता हो, तो ऐसी स्थिति में घर को थोड़ा खाली दर्शाने के लिये या घर के स्पेस को बढ़ा हुआ दिखाने के लिये वहां की उत्तर या पूर्व दिशा की दीवार पर या उत्तर-पूर्व के कोने, यानी ईशान कोण में एक बड़ा-सा दर्पण लगवा सकते हैं।_*

*_आप अपने कमरे में ड्रेसिंग टेबल भी इसी दिशा में लगा सकते हैं, लेकिन ध्यान रहे कि दर्पण बहुत अधिक भारी नहीं होना चाहिए। दर्पण जितना हल्का होगा, कमरे का प्रतिबिम्ब उतने ही अच्छे तरीके से दमकेगा। इससे घर में आये अन्य लोगों को भी कमरा बहुत संकुचित नहीं लगेगा।_*


          ♻️ *_जीवनोपयोगी कुंजियां_* ⚜️


🧘🏻‍♀️ *_फेशियल के बाद भूल कर भी ना करें स्क्रब_*

*_फेशियल करने से आपकी स्किन अच्छी तरह से साफ हो जाती है। कुछ लोग फेशियल के बाद भी स्क्रब करते हैं। अगर आप भी कुछ ऐसी ही करती हैं तो सावधान हो जाएं। क्योंकि ऐसा करना आपकी चेहरे की स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है।_*


⛺ *_घरेलू नुस्खे का ना करें इस्तेमाल_*

*_वैसे तो घरेलू नुस्खे स्किन के लिए हमेशा फायदेमंद होते हैं। लेकिन फेशियल के बाद कुछ दिनों तक स्किन पर किसी भी चीज का इस्तेमाल करना आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा सकता है। फेशियल के बाद त्वचा बहुत ज्यादा कोमल होती है। ऐस में हो सकता है कि किसी घरेलू नुस्खे को ट्राई करने के बाद आपकी स्किन पर जगह-जगह लाल चकत्ते पड़ जाएं।_*


👀 *_चेहरे पर सीधे ना पड़ने दें सूर्य की किरणें_*

*_सूरज की किरणों के सीधे त्वचा पर पड़ने से भी आपकी स्किन पर बुरा असर पड़ सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि फेशियल के दौरान स्किन को गहराई से साफ किया जाता है। ऐसे में त्वचा के सूर्य की किरणों के सीधा संपर्क में आने पर स्किन पर टैनिंग भी जल्द हो सकती है। इसलिए हो सके तो कम से कम 30 एसपीएफ वाली सनसक्रीम लगाकर ही घर से बाहर निकलें।_*


               ☘️ *_आरोग्य कुंजियां_* 🍁


🍛 *_कुलथ की दाल सेहत के लिए काफी फायदेमंद है। इसमें ऐसे गुण पाए जाते हैं जो आसानी से पथरी की समस्या से निजात दिला देते है। इसलिए आप सप्ताह में एक बार कुलथ की दाल का सेवन करे। कभी भी आपको स्टोन नहीं होगा। अगर आपके किडनी में पथरी हैं तो इसका सूप का सेवन करें। इसके लिए कुलथ की दाल रात को भिगो दें। जिससे कि यह आसानी से गल जाए। सुबह इसमें हींग और सेंधा नमक डालकर अच्छी तरह से पका लें। इसके बाद इसका सेवन करे। इसे खाने से 1 सप्ताह में पथरी से निजात मिल जाएगा।_*

☘️ *_पत्थर चट्टा का पौधा आसानी से कही पर भी मिल जाता है। जिसका सेवन करके आप आसानी से किडनी के स्टोन से निजात पा सकते हैं। इसके लिए पत्थर चट्टा का एक पत्ता लें और उसमें मिश्री के कुछ दाने के साथ पीस लें। इसके बाद इसका सेवन कर लें।_*


            🪔 *_गुरु भक्ति योग_* 📖


*_कदम, कसम और कलम हमेशा सोच समझकर ही उठाना चाहिए।'_*


            *_इस कथन का अर्थ है कि मनुष्य को तीन कामों को करने से पहले हमेशा सोचना समझना चाहिए। ये तीन काम कदम, कसम और कलम है। ये तीनों कार्य ऐसे हैं कि अगर एक बार भी आपने फैसला ले लिया तो बाद में पैर पीछे हटाना मुश्किल है। यानी कि ये आपके लिए पत्थर की तरह होंगे। हालांकि ये ऐसी लकीर होगी जिसे आप मिटाना तो चाहते हैं लेकिन आप मिटा नहीं सकते।_*

        *_पहली चीज की बात करें तो वो कदम है। हमारा कहना है कि मनुष्य जब भी किसी दिशा की तरफ बढ़ता है तो वो सही है या फिर गलत उसका फैसला उसे पैर आगे बढ़ाने से पहले ही ले लेना चाहिए। क्योंकि अगर एक बार पैर आपने आगे बढ़ा लिया तो उसे पीछे हटाना आपके लिए नामुमकिन है।_*

       *_दूसरी चीज कलम है। जिस तरह से पत्थर पर खींची गई लकीर को मिटाना असंभव है ठीक उसी तरह कलम से जो भी आपने एक बार लिख दिया उसे मिटाना मुश्किल है। यानी कि कलम में इतनी ताकत होती है कि वो किसी मनुष्य की जिंदगी को रोक सकती है और आगे बढ़ा भी सकती है। इसलिए किसे के बारे में कुछ भी लिखने से पहले मनुष्य को सौ बार सोच लेना चाहिए।_*

       *_तीसरी चीज कसम है। कई लोगों की आदत बात-बात पर कसम देने की होती है। अगर आपको भी ये आदत है तो इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए आप कसम तभी दें जब आपको लगे वो देने लायक है। बात-बात पर कसम देने से कसम की वैल्यू कम होती है। इसके साथ ही कई बार ऐसा होता है मनुष्य को उसकी दी गई कसम ही भारी पड़ जाती है। इसलिए आचार्य चाणक्य ने कहा कि मनुष्य को कदम, कसम और कलम हमेशा सोच समझकर ही उठाना चाहिए।_*


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⚜️ *_त्रयोदशी तिथि के स्वामी कामदेव हैं। कामदेव प्रेम के देवता माने जाते है । पौराणिक कथाओं के अनुसार कामदेव, भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के पुत्र माने गए  हैं। उनका विवाह प्रेम और आकर्षण की देवी रति से हुआ है। इनकी पूजा करने से जातक रूपवान होता है, उसे अपने प्रेम में सफलता एवं इच्छित एवं योग्य जीवनसाथी प्राप्त होता है। त्रियोदशी को कामदेव की पूजा करने से वैवाहिक सुख भी पूर्णरूप से मिलता है।_*

*_इस तिथि का खास नाम जयकारा भी है। समान्यता त्रयोदशी तिथि यात्रा एवं शुभ कार्यो के लिए श्रेष्ठ होती है।_*

*_त्रियोदशी को बैगन नहीं खाना चाहिए ।_*

  *_※❖ॐ∥▩∥श्री∥ ۩۞۩ ∥श्री∥▩ॐ❖※_*

हम वो आखिरी पीढ़ी के लोग हैं......

 मेरा हमेशा से यह मानना रहा है कि दुनिया में ‌जितना बदलाव हमारी पीढ़ी ने देखा है वह ना तो हमसे पहले किसी पीढ़ी ने देखा है और ना ही हमारे बाद किसी पीढ़ी के देखने की संभावना लगती है।


#हम_वो_आखरी_पीढ़ी_हैं जिसने बैलगाड़ी से लेकर सुपर सोनिका जेट देखें हैं। बैरंग ख़त से लेकर लाइव चैटिंग तक देखा है और असंभव लगने वाली बहुत सी बातों को संभव होता देखा है। 


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_हैं

जिन्होंने कई-कई बार मिटटी के घरों में बैठ कर परियों और राजाओं की कहानियां सुनीं, जमीन पर बैठ कर खाना खाया है, प्लेट में चाय पी है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने बचपन में मोहल्ले के मैदानों में अपने दोस्तों के साथ पम्परागत खेल, गिल्ली-डंडा, छुपा-छिपी, खो-खो, कबड्डी, कंचे जैसे खेल खेले हैं।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं 

जिन्होंने कम या बल्ब की पीली रोशनी में होम वर्क किया है और चादर के अंदर छिपा कर नावेल पढ़े हैं।  


● #हम_वही_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने अपनों के लिए अपने जज़्बात, खतों में आदान प्रदान किये हैं और उन ख़तो के पहुंचने और जवाब के वापस आने में महीनों तक इंतजार किया है।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने कूलर, एसी या हीटर के बिना ही  बचपन गुज़ारा है। और बिजली के बिना भी गुज़ारा किया है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जो अक्सर अपने छोटे बालों में, सरसों का ज्यादा तेल लगा कर, स्कूल और शादियों में जाया करते थे।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होंने स्याही वाली दावात या पेन से कॉपी,  किताबें, कपडे और हाथ काले, नीले किये है। तख़्ती पर सेठे की क़लम से लिखा है और तख़्ती घोटी है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने टीचर्स से मार खाई है। और घर में शिकायत करने पर फिर मार खाई है।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जो मोहल्ले के बुज़ुर्गों को दूर से देख कर, नुक्कड़ से भाग कर, घर आ जाया करते थे। और समाज के बड़े बूढों की इज़्ज़त डरने की हद तक करते थे।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने अपने स्कूल के सफ़ेद केनवास शूज़ पर, खड़िया का पेस्ट लगा कर चमकाया हैं।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जिन्होंने गोदरेज सोप की गोल डिबिया से साबुन लगाकर शेव बनाई है। जिन्होंने गुड़  की चाय पी है। काफी समय तक सुबह काला या लाल दंत मंजन या सफेद टूथ पाउडर इस्तेमाल किया है और कभी कभी तो नमक से या लकड़ी के कोयले से दांत साफ किए हैं। 


● #हम_निश्चित_ही_वो_लोग_हैं

जिन्होंने चांदनी रातों में, रेडियो पर BBC की ख़बरें, विविध भारती, आल इंडिया रेडियो, बिनाका गीत माला और हवा महल जैसे  प्रोग्राम पूरी शिद्दत से सुने हैं।


● #हम_वो_आखरी_लोग_हैं

जब हम सब शाम होते ही छत पर पानी का छिड़काव किया करते थे। उसके बाद सफ़ेद चादरें बिछा कर सोते थे। एक स्टैंड वाला पंखा सब को हवा के लिए हुआ करता था। सुबह सूरज निकलने के बाद भी ढीठ बने सोते रहते थे। वो सब दौर बीत गया। चादरें अब नहीं बिछा करतीं। डब्बों जैसे कमरों में कूलर, एसी के सामने रात होती है, दिन गुज़रते हैं।


● #हम_वो_आखरी_पीढ़ी_के_लोग_हैं

जिन्होने वो खूबसूरत रिश्ते और उनकी मिठास बांटने वाले लोग देखे हैं, जो लगातार कम होते चले गए। अब तो लोग जितना पढ़ लिख रहे हैं, उतना ही खुदगर्ज़ी, बेमुरव्वती, अनिश्चितता, अकेलेपन, व निराशा में खोते जा रहे हैं। और #हम_वो_खुशनसीब_लोग_हैं, जिन्होंने रिश्तों की मिठास महसूस की है...!!


#हम_एकमात्र_वह_पीढी_है  जिसने अपने माँ-बाप की बात भी मानी और बच्चों की भी मान रहे है.


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ये पोस्ट जिंदगी का एक आदर्श स्मरणीय पलों को दर्शाती है अतः मुझे अच्छी लगी सो फारवर्ड की। इसे बार बार पढ़ें। पसन्द आए तो आगे भी फारवर्ड करें।


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दयालबाग़ सुबह सतसंग -29/10

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत-

 17 फरवरी 1933 - शुक्रवार :-


 सुबह सैर को निकले ही थे कि कल वाले आदमी आये । जो जात के "गोली" है।  कहने लगे कि कल की बेवकूफी के लिए सख्त शर्मिंदा है माफी दी जावे।  माफी दे दी गई।  दोपहर को भंडारा हुआ जिसमें 125 मर्द, औरत को बच्चे शरीक हुए । खाने के लिए पूरी ,कचौरी ,रस की खीर और आलू मटर की सब्जी का इंतजाम था। खाना बहुत अच्छा था । भंडारे में हर जाति व कौम के मर्द और औरत थे। जात पाँत तोड़क मंडल के सेक्रेटरी साहब यह सुनकर खुश होंगे कि सत्संगी चुपचाप उनका काम कामयाबी के साथ कर रहा है । और झूठ मूट की जात पाँत के गढ़ रफ्ता रफ्ता ध्वस्त हो रहे हैं। राजाबरारी में यह कौमें आबाद है:- गोंड, कोरकू, गोली ,,गोलान,बलाही प्रधान , कहार ,ठठिया। यह सब अपनी अपनी कौम का पक्ष करते हैं और एक दूसरे के साथ बैठकर खाने पीने से सख्त परहेज करते हैं ।                                                    

शाम के वक्त लोगों को समझाया कि सुबह उठकर अव्वल मुँह धो कर कुछ देर मालिक के चरणो की याद करें साफ सुथरा खाना खायें, अपने घरों व जिस्म को साफ रखें, और दिन का काम खत्म होने पर कुछ देर चुपचाप बैठ कर फिर मालिक की याद करें। दरयाफ्त करने पर मालूम हुआ कि बाज लोगों को अभी तक नदी का पानी पीना पड़ता है । प्रबंधंक गण राजाबरारी से मश्वरा किया। 

निश्चय पाया कि एक के बजाय चार नयें कुएँ तामीर कराएँ जावे।  इन कुओं से सिंचाई का भी काम लिया जावे ताकि कृषि की तरक्की भी हो तामीर का खर्चा भी निकल आवे।।                                             

रात के वक्त इत्तिला मिली एक लड़की 2 दिन बुखार में प्रेषित रह कर इंतकाल कर गई। उस लड़की को अपनी लड़की की तरह पाला था।  हमारे राजाबरारी पहुंचने से एक रोज पहले ही आगरा से यहाँ आई थी। उसका पति राजाबरारी में पटवारी है।  और उसका ससुर यही सुकून से बसे  हैं । और उसने सत्संग की राजाबरारी में अनेक प्रशंसनीय सेवाएँ की है।  लड़की के मर जाने से हर किसी को सख्त सदमा हुआ।    

                        

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻***


राधास्वामी!! 29-10-2020- आज सुबह सतसंग में पढे गये पाठ:-                                    

(1) गुरु चरन बसे अब मन में। मैं सेऊँ दम दम तन में।। करमी जिव जग के अंधे। सब फँसे काल के फँदे।। उनसे नहिं कहना चहिये। मत गूढ छिपाये रहिये।।-(उपदेश किया यह टीका। राधास्वामी नाम मैं सीखा।।) (सारबचन-शब्द-12वाँ, पृ.सं.195)    

                                                                

(2) आज भींजे सुरत गुरु प्रेम रंग।।टेक।। 

                                        

उमँग भरी आई सतगुरु चरना। बचन सुनत हुई आज निसंक।।-(राधास्वामी प्रीतम मिले अधर में। लिपट रही स्रुत उमँग उँमग।।) (


प्रेमबानी-2-शब्द-66 पृ.सं.332-333)      

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏✌️                                🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

दयालबाग़ शाम सतसंग 28/10

**राधास्वामी!! 28-10-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- (1) आज गुरु प्यारे के चरनों में झलकती है अजब मेंहदी की लाली।।टेक।। देखो गुरु प्यारे के चरनों में अजब म़ेहदी की लाली। हाथ भी सुर्ख है और मुखडे की छबी देखी निराली।।-( सुर्त बन्नी का मिला भाग से गुरु बन्ना से जोडा। राधास्वामी की दया पाय के निज घर चाली।।) (प्रेमबानी-4-गजल-7 पृ.सं.8-9) (2) सतगुरु दीजे मोहि इक दात।।टेक।। नीच निबल मैं गुन नहिं कोई। बल पौरुष कुछ जोर न गात।।-(राधास्वामी प्यारे होउ सहाई। बाल तुम्हारा रहा बिलकात।।) (प्रेमबिलास-शब्द-78,पृ.सं.110-111) (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻** **राधास्वामी!! 28 -10 -2020 -आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन - कल से आगे:-( 27) 【 सतगुरु सेवा 】: - जो युक्तियां (संसार में विषयों का बिलास) और उल्लेख प्रस्तुत हुए उनसे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि सतगुरु की पूजा, सेवा और भक्ति सच्चे दिल से करनी चाहिए पर यह स्पष्ट नहीं होता कि क्या क्या सेवा करनी चाहिए। अब इसी का वर्णन करते हैं ।। (28) सेवा चार प्रकार की है- तन, मन ,धन और सुरत से। प्रेमीजन इनमें से जो सेवाएँ प्रिय लगे कर सकता हैं। अपने शरीर को सतगुरु की सेवा में लगाना तन की सेवा; जैसे कुएँ से पानी भरना, मिट्टी खोदना और ढोना कपड़े धोना , चरण दबाना आदि। मन में सतगुरु के लिए प्रेम और श्रद्धा के भाव उठाना और उनको और उनकी संगत को सुख पहुँचाने की युक्तियाँ सोचना मन की सेवा है। अपना धन सतगुरु और संगत की आवश्यकताओं के लिए पेश करना धन की सेवा है । अंतर में उनके नाम और रूप को आराधना और शब्द-अभ्यास करना सुरत की सेवा है। पर विदित हो कि संतमत में सेवा का सिद्धांत सांसारिक कामनाओं की पूर्ति के लिए स्थापित नहीं किया गया किंतु प्रेमीजन के अंदर सच्ची दीनता और श्रद्धा उत्पन्न करने और उसके मन की चंचलता और मलिनता दूर करने के निमित्त प्रचलित किया गया है। तदनुसार राधास्वामी-मत में बतलाया जाता है कि अहंकार, प्रशंसा या स्वार्थ का भाव लेकर जो क्रिया की जाय वह सेवा का फल नहीं देती; इसलिए समझदार सत्संगी आपा और स्वार्थभाव छोड़कर सेवा करते हैं ।आपा और स्वार्थ भाव छोड़ देने पर प्रेमीजन और सतगुरु में दुई का भाव नहीं रहता । 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा ा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

Tuesday, October 27, 2020

दयालबाग़ सतसंग शाम 27/10

 **राधास्वामी!! 27-10-2020

- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:- 

                                  

  (1) आज हंगामये शादी का गरम हो रहा देखो हर जा। राधास्वामी की दया का करो सब शुक्र अदा।।-(राधास्वामी की दया से यह मुबारक जोडा। खुश रहे याद में चरनों के करे मन को फिदा।।) (प्रेमबानी-4-गजल-6,पृ.सं.7-8)                                                       

(2) नैया मेरी बूडत थी जल माह़ि।।टेक।।     काम क्रोध के काले बदला बरषा रहे बरसाय। नौ द्वारन से पानी भरता रोका नाहिं रुकाय।।  -(भौजल पार सहज मैं पहुँची रहु गुरु के गुन गाय। धन राधास्वामी प्यारे सतगुरु जिन बूडत लई बचाय।।) ( प्रेमबिलास-शब्द-77,पृ.सं.109-110)                                                    

  (3) यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा-कल से आगे।                              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 27-10 -2020

 शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:-( 26) 

अब देखिए                      

  कबीर साहब क्या फरमाते हैं:-                                                    

गुरु को कीजे दण्डवत, कोटि-कोटि परनाम। कीट न जाने भृंग को , गुरु कर ले आप समान।। 

 गुरु को मानुष जानते, चरनामृत को पान । ते नर नरकै जायँगे, जनम जनम होय स्वान।। यह तन बिष की बेलरी, गुरु अम्मृत की खान। सीस दिये जो गुरु मिलें तो भी सस्ता जान।।  गुरु से ज्ञान जो लीजिये, सीस दीजिये दान। बहुतक भौंदू बह गये, राखि जीव अभिमान ।। 

गुरु को सिर पर रखिये, चलिये आज्ञा माहिं। कहे कबीर ता दास को, तीन लोक डर नाहिं।। जो कामिन परदे रहे, सुने न गुरु की बात। सो तो होगी सूकरी , फिरे उघारे गात।। वस्तु कहीं ढूंढे कहीं, केहि बिधी आवे हाथ। कहे कबीर तब पाइये, जब भेदी लीजे साथ।। 

भेद लीया साथ करि, दीनी वस्तु लखाय। कोटि जनम का पंथ था, पल में पहुँचा जाय।। कबीर गुरु की भक्ति कर, तज विषया रस चौज। बार-बार नहीं पाइहै, मानुष जन्म की मौज।। जा खोजत ब्रह्मा थके, सुर नर मुनि देवा। कहे कबीर सुन साधवा, कर सतगुरु सेवा।।

 साध मिले साहब मिले, अंतर रही न रेख। मनसा वाचा करमना, साधू साहब एक।। अलखपुरुष की आरसी, साधु ही की देह। लखा जो चाहे अलख को , उनहीं में लख लेह।। 

साधू आवत देखि कर, मन में धरे मरोर। सो तो होसी चूहड़ा, बस गांव के छोर।। साधन के मैं संग हूँ, अन्त कहूँ नहिं जाउँ। जो मोहिं अरपै प्रीत से, साधन मुख होय खाउँ।।

 साध मिले यह सब टलें, काल जाल जम चोट। सीस नवावत ढह पडे,अघ पापन की पोट।।    

                                       

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻       

                                             

यथार्थ प्रकाश -भाग दूसरा

 -परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज! 

【शब्दो के अर्थ】  

-(कीट-कीडा), (भृंग-एक जीव जिसके विषय में प्रसिद्ध है कि कीडों को अपना शब्द सुनाकर अपने जैसा बना लेता है), (पान-पानी),(स्वान-कुत्ता), (बीष-जहर),(भौंदू-मेर्ख), (कमिन-स्त्री), (सूकरी-सूअरी), (चौच-संसार के विषयों का बिलास), (आरसी-एक भूषण जो स्त्रियाँ अँगूठे में पहनते है और जिसमें मुख देखने के लिए दर्पण लगा रहता है।】**


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Monday, October 26, 2020

दयालबाग़ शाम सतसंग -26/10

 **राधास्वामी!! 26-10-2020

-आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-  

                                  

(1) आज आनंद रहा मौज से चहुँ दिस छाई। राधास्वामी की रहे सब मिल महिमा गाई।।-( उमँग उमँग हर कोई देता है मुबारकबादी। राधास्वामी रह़े निज मेहर से नित प्रति सहाई।।) (प्रेमबानी-4-गजल-5,पृ.सं.6-7)                                 

(2) सुनकर विनय नवीन मेहर स्वामी को आई। जीवन के हित अर्थ बचन यों बोल सुनाई।। सेवा निसदिन कर प्रीति से घिस तन मन को। सँघ में बैड जाग खोल के नैन श्रवन को।।-(राधास्वामी कहा सूनाय यही है बढके उपावोः गुरु सँग करके बास प्रीति मन माहिं बढाव़ो।। (प्रेमबिलास-शब्द-76,पृ.सं.108)                                                

 (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।           

  🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 26-10 -2020

 शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे-( 25) का शेष:-  

                                          

औलिया ईतफाले हक अन्द ऐ पिसर।  हाजिरी व गायबी अन्दर नजर।।  अर्थ- बेटा! औलिया मालिक के निज पुत्र होते हैं और अंतर बाहर मालिक की उन पर नजर रहती है।।                                                                

  पीर रा बिगुर्जी कि बेपीर ईं सफर। हस्त पुर अज फितना व खौफो खतर।।  अर्थ- तू सतगुरु की शरण ले। सतगुरु की सहायता के बिना इस सफर( यात्रा)  में तुझे बहुत सी7 कठिनाइयों और भयानक घटनाओं का सामना करना पड़ेगा।।                                     

 हेच न कुशद नफ्स रा जुज जिल्ले पीर। दामने आँ नफ्स कुशरा शख्स गीर। जिल्ले पीर अन्दर जर्मी चूँ कोहे काफ। रूहे ऊ सीमुर्ग व बस आली तवाफ। पस बिरौ खामोश बाश अज अन् कयाद। जेरे जिल्ले अमरें शेखे ओस्ताद।-अर्थ- मन को सिवाय सतगुरु की छाया के और कोई शक्ति नष्ट नहीं कर सकती, इसलिए तुझे चाहिए कि उस मन को मर्दन करने वाले का पल्ला मजबूती से पकड़ । 

सतगुरु की छाया (शरीर) पृथ्वी पर कोहे काफ( एक पर्वत का नाम) की तरह रहती है, पर उनकी सुरत सीमुर्ग(एक पक्षी का नाम) की तरह ऊँचे आस्मान पर चक्कर लगाती है; पस जा और आज्ञाकारी होकर पूरे सतगुरु के चरणो में चुपचाप बैठ।।                                              

 अज हदीसे ओलिया नरमो दुरुश्त। तन मपोशाँ जाँकि दीनता रास्त पुश्त।।                   

 अर्थ- औलिया के बचनों से, चाहे वे सख्त हों या नरम, मुँह मत फेर क्योंकि उनसे तेरा विश्वास दृढ होगा।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


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Sunday, October 25, 2020

दयालबाग़ सतसंग / शाम -25/10

 **राधास्वामी!!-25-10-2020- 

आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-   

                                                  

  (1) आज प्यारी तू समझ सोच के कर काम अपना।।टेक।। क्यों पचो दुनिया में यह देश तुम्हारा नाहीं। मिलके सतगुरु से करो खोज भला धाम अपना।।-(राधास्वामी की सरन धार के चलना घर को। उनके चरन अंबु से तुम नित्त भरो जाम अपना।।) (प्रेमबानी-4-गजल 4 पृ.सं.5-6)                                                            

  (2) सुनकर बिनय  नवीन मेहर स्वामी को आई। जीवन के हित अर्थ बचन यों बोल सुनाई।। भूले तन की पीड और रोना भी भूले। बार बार सिल बाट धरे बूटी और झूले।।-(जस रोगी ले आस करे बूटी का सेवन। खोजी धर बीश्वास रहे कुछ दिन गुरु चरनन।।) (प्रेमबिलास-शब्द-76-उत्तर,पृ.सं.107-108)            

(3) यथार्थ प्रकाश-भाग-दूसरा-कल से आगे।।

🙏🏻  राधास्वामी🙏🏻**



**राधास्वामी!! 25-10 -2020  

शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे-( 25) 


अब दो चार बचन फकीरों के पेश किए जाते हैं। हर की ख्वाहद हम नशीनी बा खुदा। गो नशीं अन्दर हजूरे औलिया। अर्थ -जो मालिक से एकता चाहता है उसको उचित है कि औलिया( सिद्धपुरुष) के दरबार में जाकर बैठे अर्थात् उनका सत्संग करें।।                                                                                        

हम नशीनी साअते बा औलिया। बेहतर अज सद साला ताअत बेरया। अर्थ- औलिया के दरबार में एक घड़ी हाजिर रहना सो वर्ष की निर्मल भजन बंदगी से बेहतर है।।                                                            

 दर बशर रूपोश कर दस्त आफताब। फहमकुन वल्लाह आलम बिल सवाब। अर्थ- सतगुरु क्या है ? मनुष्य के अंदर सूर्य छिपा हुआ है।  तू पहचान कर और अल्लाह दुरुस्ती और सच्चाई को भली प्रकार जानता है ।।   

                                                      

गुफ्त पैगंबर कि हक फरमूदा अस्त। मन न गुंजम हेच दर बाला व पस्त। दर जमीनो आसमानो अर्श नीज। मन न गुंजम ईं यकीं दाँ ऐ अजीज। दर दिले मोमिन बिगुंजम ईं अजब । गर मरा ख्वाही अजाँ दिल हा तलब।।

 अर्थ- पैगम्बर साहब ने फरमाया कि खुदा ताला फरमाता है कि मैं किसी ऊँचे व नीचे स्थान पर नहीं बसता हूँ। मैं न जमीन पर रहता हूँ, न आस्मान पर और न अर्श पर। ऐ प्यारे! तू इस बात को सच मान।  

मैं मोमिन यानी भक्त के हृदय में निवास करता हूँ। अगर तू मुझसे मिलना चाहता है तो वहाँ से तलब कर।।                                                                                                        🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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Saturday, October 24, 2020

संसार चक्र ( नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-【 स्वराज्य】

 कल सेआगे 

- शाह- बड़े भाग्य है कि आप से तपस्वी और सच्चे महापुरुष के दर्शन नसीब हुए। 

उग्रसेन- मुझे अपना एक अदना बंदा ख्याल फरमावें।                                          

  शाह-मैंने प्लेटो की एक तस्नीफ में पढ़ा था कि बादशाहत का काम सबसे ज्ञानी पुरुषों के हाथ में होना चाहिये- आज की बातचीत के शुरू में जिन ख्याला का इजहार आपने फरमाया वे प्लेटो के ख्यालात से बिल्कुल मुत्तफिक है- मेरी मुश्किल यह है कि मैं हजार अपने मन को समझाता हूंँ कि सब जानदारों का जन्मदाता एक सच्चा मालिक है लेकिन मन यही कहता है कि जिसको देखा नहीं उसको इतना बड़ा दर्जा देना नामुनासिब है। 

उग्रसेन- लेकिन जबकि आपने उसके देखने के लिए कोशिश ही नहीं की तो आपकी यह मुश्किल कैसे दूर हो सकती है?

  शाह -गवर्नर लाहोर लिखते हैं कि आप ने उनकी यह मुश्किल हल कर दी- क्या यह बात दुरुस्त है?

 उग्रसेन- मैंने उन्हें योगसाधन बतलाया- उन्होंने उसकी दिल लगाकर कमाई की और सच्चे मालिक ने कृपा की और दर्शन देकर उनका जन्म सफल किया। 

शाह-  क्या आप मुझे भी वह साधन की युक्ति बतला सकते हैं?  उग्रसेन- जरूर , जो कुछ मेरा है वह आपका है और सब इंसानों का है- हम सब जीव एक ही मालिक के बच्चे हैं इसलिये सब भाई हैं- और जो कुछ मुझे उस परमपिता की कृपा से हासिल हुआ है वह सबका है।

 क्रमशः                                

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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दयालबाग़ सतसंग शाम

 **राधास्वामी!! 24-10-2020- आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                                      (1) आज मम भाग जगे गुरु सतसंग आय मिली।।टेक।। सुनके सतगुरु के बचन हो गई मैं आज निहाल। संग में प्रेमी जनो के मगन होय रली।।-(गुरु से ले भेद चली आगे को सूरत प्यारी। राधास्वामी का दरश पाय के धुर धाम वली।।) (प्रेमबानी-4-गजल-3,पृ.सं.4)                                                           (2) सुनकर बिनय नवीन मेहर स्वामी को आई। जीवन के हित अर्थ बचन यों बोल सुनाई।।-( फिर तो यह जी आय लेस ले सारे तन को। पेश कहीं जो आय भक्ष ले कई इक मन को) (प्रेमबिलास - शब्द-76-उत्तर-पृ.सं.106)                                                         (3)  यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।        🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी*!! **24-10-2020 -

आज शाम सत्संग में पढ़ा गया बचन-

 कल से आगे-( 24) 

अब श्रीमद्भागवद्गीता को लीजिये।अध्याय 17 के श्लोक 14 में उल्लेख है :- "देवताओं, ब्राह्मणों, गुरुओं और ज्ञानियों की पूजा, पवित्रता , निष्कपटता, ब्रह्मचर्य और अहिंसा अर्थात किसी को दु:ख न देना - शरीर के तप कहलाते हैं"। 

इसके अतिरिक्त अध्याय 18 के श्लोक 64-66 पर भी विचार कीजिये। " हे अर्जुन, मेरा परम बचन एक बार फिर सुन लो जो अति गुप्त भेद की बात है। जोकि तुम मुझे हृदय से प्यारे हो इसलिए तुम्हारे कल्याण के निमित्त में इसे दोबारा वर्णन कर देता हूँ-  अपने मन को मुझ में गला लो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो, मुझे नमस्कार करो, तुम अवश्य मुझको प्राप्त होगे। मैं तुम्हें अपना वचन देता हूँ, तुम मेरे प्यारे हो। सब धर्मों को त्याग कर तुम केवल मेरी शरण धारण करो, मैं तुम्हें सारे पापों से छुड़ा लूँगा। इसकी बिल्कुल चिन्ता न करो"।।     

             

यह लिखने की आवश्यकता नहीं है कि कृष्ण महाराज ब्रह्म के अवतार थे और वक्त के गुरु थे।

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहब जी महाराज!**

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Friday, October 23, 2020

दयालबाग़ सतसंग 23/10 शाम

 **राधास्वामी!! 23-10-2020-

 आज शाम  सतसंग में पढे गये पाठ:-       

                              

   (1) आज सतगुरु के चरन में तू लगा ले नेहरा।।टेक।। शौक के साथ करो सतसंग उनका। मेहर से उनके तेरा छूटे चौरासी फेरा।।-(राधास्वामी की सरन धार ले दृढ कर मन में। वे करें मेहर तेरा पार लगावें बेडा।।) (प्रेमबानी-4-गजल-2,पृ.सं.3)                                                                  

 (2) सेवक सुन पहिचान मगन होय बोला ऐसे। सर्व गुनन भंडार कहे कोई गुन तुम कैसे।।-(सोच फिकर सब छुटें करे जिव कौन उपावो। गहरी गुरु से प्रीति जुडे कस सो कह गावो।।) (प्रेमबिलास-शब्द-75 पृ.सं.105-106)                                                 

   (3) यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।।         🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 23 -10 -2020

 आज शाम  सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे-( 23)  

गुरु अर्जुन साहब फरमाते हैं -अंतर में गुरु को आराधो अर्थात अंतर में गुरु की याद करो और जबान से गुरु का नाम उच्चारण करो। आंखों से सतगुरु का दर्शन करो और कानों से गुरु का नाम सुनो । जो सतगुरु के साथ रत हो जाता है यानी गहरा प्रेम करता है उसको मालिक के दरबार में जगह मिलती है। पर जिस जीव पर मालिक कृपा करता है उसी को यह वस्तु मिलती है। 

जगत् में इस दात के लिए अधिकारी जीव कोई विरले ही होते हैं । और देखिए:- गुरमुख नादं गुरुमुख वेदं गुरुमुख रह्या समाई। गुरु ईशर गुरु गोरख ब्रह्म गुर पारवती माई।।( जपजी साहब पौडी ४)        

                                    ●             ●              ●            ●       ब्रह्मज्ञानी जिस करें प्रभ् आप, ब्रह्मज्ञानी का बड़ परताप।                                                       ●             ●               ●                ●                       

 ब्रह्मज्ञानी को खोजें महेशुर, नानक ब्रह्मज्ञानी आप परमेशुर।                                                  ●               ●                ●                 ●             

ब्रह्मज्ञानी का अंत न पार, नानक ब्रह्मज्ञानी को सदा नमस्कार।  ब्रह्मज्ञानी सब सृष्टि का करता , ब्रह्मज्ञानी सद् जीव नहीं मरता । ब्रह्मज्ञानी मुकति जुगति जीव का दाता, ब्रह्मज्ञानी पूरन पुरख विधाता।  ब्रह्मज्ञानी अनाथ का नाथ, ब्रह्मज्ञानी का सब ऊपर हाथ।  ब्रह्मज्ञानी का सगल अकार, ब्रह्मज्ञानी आप निरंकार।                               

  [सुखमणि साहब, अष्टपदी ( 8) ]            

                                             

  कोई आन मिलावे मेरा प्रीतम प्यारा।  हौं तिस पहि आप वेचाई। दर्शन हर देखन के ताई। कृपा करें ता सतगुरु मेले, हर हर नाम धियाई(१)।।रहाव।।।                                        

●          ●           ●          ●          

तन मन काट काट सब अरपी, विच अगनी आग जलाई। पक्का फेरी पानी ढोवां, जो देवे सो खाई।                                                           ●          ●          ●           ● 

अक्खी काढ धरी चरनातल, सब धरती फिर मत पाई।     ●         ●           ●            ●   

वार वार जाई गुर ऊपर, पै पैरी सन्त मनाई।  नानक विचारा भया दीवाना, हर तौ दर्शन के ताई। (सूही महल्ला ४) 

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻 

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा

- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**

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Thursday, October 22, 2020

मौन का महत्व / कृष्ण मेहता

रात्री कथा* / मौन  का महत्व*


एक मछलीमार कांटा डाले तालाब के किनारे बैठा था.

काफी समय बाद भी कोई मछली कांटे में नहीं फँसी, ना ही कोई हलचल हुई तो वह सोचने लगा...

कहीं ऐसा तो नहीं कि मैने कांटा गलत जगह डाला है, यहाँ कोई मछली ही न हो

उसने तालाब में झाँका तो देखा कि उसके कांटे के आसपास तो बहुत-सी मछलियाँ थीं.

उसे बहुत आश्चर्य हुआ कि इतनी मछलियाँ होने के बाद भी कोई मछली फँसी क्यों नहीं.


एक राहगीर ने जब यह नजारा देखा तो उससे कहा-- "लगता है भैया, यहाँ पर मछली मारने बहुत दिनों बाद आए हो! 

अब इस तालाब की मछलियाँ कांटे में नहीं फँसती.....

मछलीमार ने हैरत से पूछा-- "क्यों, ऐसा क्या है यहाँ?.

राहगीर बोला-- "पिछले दिनों तालाब के किनारे एक बहुत बड़े संत ठहरे थे


उन्होने यहाँ मौन की महत्ता पर प्रवचन दिया था उनकी वाणी में इतना तेज था कि जब वे प्रवचन देते तो सारी मछलियाँ भी बड़े ध्यान से सुनतीं. यह उनके प्रवचनों का ही असर है कि उसके बाद जब भी कोई इन्हें फँसाने के लिए कांटा डालकर बैठता है तो ये मौन धारण कर लेती हैं. 

जब मछली मुँह खोलेगी ही नहीं तो कांटे में फँसेगी कैसे. 

इसलिए बेहतर यहीं होगा कि आप कहीं और जाकर कांटा डालो.


परमात्मा ने हर इंसान को दो आँख, दो कान, दो नासिका, हर इन्द्रिय दो-2 ही प्रदान किया है.पर जिह्वा एक ही दी..क्या कारण रहा होगा


क्योंकि यह एक ही अनेकों भयंकर परिस्थितियाँ पैदा करने के लिये पर्याप्त है.

संत ने कितनी सही बात कही कि जब मुँह खोलोगे ही नहीं तो फँसोगे कैसे ?


अगर इन्द्रिय पर संयम करना चाहते हैं तो.. इस जिह्वा पर नियंत्रण कर लेवें बाकी सब इन्द्रियां स्वयं नियंत्रित रहेंगी.

यह बात हमें भी अपने जीवन में उतार लेनी चाहिए.

           

 

     . *"

प्रेमपत्र औऱ संसारचक्र

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज-

【स्वराज्य】

-  कल से आगे :- 

शाह -अगर आप सचमुच साबिक राजा नगरकोट है, तो कुदरतन आपके दिल में अपना राज्य दोबारा हासिल करने के लिए जज्बात उठते होंगे और नामुमकिन नहीं है कि इन जज्बात ही की वजह से आप इस वक्त इस किस्म के ख्यालात का इजहार कर रहे हो?

  उग्रसेन- हरगिज़ नहीं- सन्यासी को राजपाट क्या, दुनिया की किसी भी चीज की ख्वाहिश नहीं होती।

एक सरदार -आलीजाह! मेरी राय नाकिस में यह शख्स निहायत मखदूश है।

 शाह - नगरकोट के पुलिस अफसर ने भी यही ख्याल जाहिर किया था लेकिन 

गवर्नर लाहोर- बाद काफी तहकीकात के खिलाफ- नतीजे पर पहुंचे हैं।* **

वजीर-अगर हुजूर इजाजत बख्शे तो मैं कुछ अर्ज करूँ? शाह- इजाजत है । 

वजीर-(उग्रसेन से) हाँ- आप कोई सबूत पेश नहीं कर सकते जिससे हमें ना हो कि आप साबिक राजा नगरकोट है? 

उग्रसेन-जी नही- यहाँ मेरे पास कोई सबूत नहीं है।

  वजीर- सबूत की अदम मौजूदगी में आपको एक मखदूश रिआया क्यों न तसव्वुर किया जावे?* *

*उग्रसेन-(बेखौफी से) आपको इख्तियार है।

 वजीर- इस खातून ने, जिसे आप अपनी दुख्तर बयान करते हैं, नगरकोट में महिलासमाज कायम करके बगावत की तहरीक शुरू की और.............*      

  **राजकुमारी-( बात काटकर) नहीं, अपने मुल्क के लिए आजादी की।  

वजीर- (नाराज होकर) मुझे अपनी बात खत्म कर लेने दो,(मामूली तौर से)महिलसमाज के एक जल्से में दो धुआंधार तकरीरें हुई जिससे हाजिरीन जल्सा जोश में भर आये और हमारे पुलिस अफसर को मजबूरन् जल्सा मुन्तशिर करना पड़ा क्योंकि अगलब था कि फौरन बलवा हो जाता - 

जल्से के व्याख्यान देने वालों में एक खातून राजकुमारी थी, और अगर मैं गलती नहीं करता तो वह खातून आप ही थी?  

राजकुमारी-(बेखौफी से ) जी हाँ-वह खातून मैं ही थी। 

वजीर- उस खातून की तकरीर खत्म होने पर इन संन्यासी साहब ने जोश में आकर फरमाया कि मैं हर तरह नगरकोटनिवासियों की मदद करने के लिए तैयार हूँ।जबकि ननगरकोट के रहने वाले शाह यूनान की हुकुमत का जुआ उतार फेंकनें की कोशिश में और ये संन्यासी साहब हर तरह इमदाद करने के लिये रजामन्दी जाहिर करते थे तो मेरी राय में यह सरहीन् बरगलाने वाला तरीके अमल था।   

                                

उग्रसेन-(शाह से मुखातिब होकर) अगर इजाजत हो तो मैं कुछ जवाब अर्ज करुँ?

  वजीर- और आपको याद रखना चाहिए कि इस तरीके अमल की सजा फाँसी है।  

शाह- आप जो चाहे कह सकते हैं । उग्रसेन-संन्यासी कभी झूठ न बोलेगा - उसे न जीने की परवाह है और न मरने का डर है।जबकि मैनें शुरु ही में अर्ज किया कि दुनिया में राज्य खास भाव व आदर्श रखने वालों को मिला करता है और जबकि शाह यूनान का दिल खुद उस आदर्श को कबूल नहीं करता जिसकी निस्बत मैंने अपना अनुभव जाहिर किया तो फिर यह नतीजा कैसे निकाला जा सकता है कि मैं नगरकोटनिवासियों का फौरन स्वराज्य हासिल करने की कोशिश में हामुं हूँ  जबकि वे अभी बलिहाज भावों व आदर्शों के अहले यूनान से भी नीचे जीने पर है। 

क्रमशः

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


(  प्रेमपत्र  -  )


 परम गुर हुजूर महाराज -प्रेम पत्र- भाग 1- 

कल से आगे-(4) 

मन से एक वक्त में एक ही काम हो सकता है। इस वास्ते अभ्यासी को मुनासिब है कि जब भजन में न लगे, तब उसको ध्यान में लगावे। और जो ध्यान में भी अच्छी तरह न लगे और प्रेम की कड़ियाँ गाकर भी ख्याल को न छोड़े, तो सिर्फ सुमिरन करें , इस तरकीब से कि मुकाम नाफ( नाभि) या हृदय से नाम की धुन अंदर ही अंदर थोड़ी आवाज के साथ उठावे, और हृदय और कंठ चक्र के  स्थान पर, एक एक हिस्सा नाम का उच्चारण करता हुआ सहसदलकँवल के स्थान या त्रिकुटी में ठहरावे  यानी धुन को खत्म करे।  

और फिर इसी तरह दूसरी दफा नाम का उच्चारण नाफ(नाभि) से लेकर सहसदलकँवल तक करें, यानी चार हिस्से करके एक एक हिस्सा नाम का उच्चारण एक-एक चक्र के मुकाम पर करके आख़ीर हिस्सा सहसदलकँ में खत्म करें , जैसा कि नीचे लिखा है:-                                                                               

【नाफ-रा,हृदय-धा,कंठ-स्वा,सहसदलकँवल-मी】 

और जो हृदय चक्र से उठावे, तो त्रिकुटी में खत्म करे-इस तरह-                        

【हृदय-रा,कंठ-धा, सहसदलकँवल-स्वा, त्रिकुटी-मी】

 क्रमशः       

                          

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


Wednesday, October 21, 2020

काल का डर

 🧘‍♂ *सच्ची लगन* 🧘‍♀


✍ *एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके।*


*चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा, कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया।*


*कपड़े बदलकर वापस सत्संग की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले, फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया।*


*जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है।*


*इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया।* 


*पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें।*


*लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नही हुआ।*


*दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...?*


*दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि*


*मैं काल हूँ,*


*ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा।*


*काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था।*


*जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए।*


*जब मैंने आपको *दूसरी* *बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए।*


*मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे.* *इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ।*


*अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं।*


*क्यों....?*


*क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं।*


*उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया।*


*क्यों...?*


*क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।*


*इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था !*


*इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।*


*एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।*


*बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।*


👉 *इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी।* 

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स्वराज्य (नाटक )

 **परम गुरु जी साहबजी महाराज-【 स्वराज्य】 

कल से आगे:- शाह- मगर चूँकि हमारा भाई हमारी अपनी माँ के गर्भ से और हमारे बाप के वीर्य से पैदा होता है इसलिए कुदरतन्  हमारे दिल में भाई के लिए बिरादराना मोहब्बत पैदा होती है।।                   

 [ यूनानी सरदार खुश हो कर हँसते हैं और दोनों संन्यासी सहम जाते हैं]  

उग्रसेन -आप बजा फरमाते हैं लेकिन अगर यह ख्याल रक्खा जावे कि हम सब की माता पृथ्वी है और सबका पिता सच्चा मालिक है तो ऐसी हालत में आपके फरमाने के बमूजिब हर इंसान के दिल में कुदरतन् एक दूसरे के लिए बिरादराना रिश्ता कायम होना चाहिये। 

शाह-( सोच कर ) तो इसके ये मानी हुए कि आयन्दा राज्य संसार में उन लोगों का होगा जो पृथ्वी को सबकी माँ और सच्चे मालिक को सबका बाप समझते हुए लोगों के दिलों में विरादराना मोहब्बत कायम कराने के काबिल हों? 

उग्रसेन- मेरा अनुभव तो यही कहता है। 

[ शाह सोच में पड़ जाता है- वजीर एक कागज पेश करके शाह के कान में कुछ बातें कहता है-  शाह कागज को पढता है]  

शाह- हाँ! आप कोई सबूत इस अम्र का दे सकते हैं कि आप साबिक राजा नगरकोट है? 

 उग्रसेन- मैं कोई सबूत पेश नहीं कर सकता- आप जिस तरह चाहे इत्मीनान फरमा लें। 

राजकुमारी -आप मेरे पिताजी के जवाबात से भी तो समझ सकते हैं कि यह कोई मामूली शख्स नहीं है। 

क्रमशः                          

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

दयालबाग़ सतसंग 21/10 शाम

 **राधास्वामी!! 21-10-2020-

 आज शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-

                                   

  (1) मैं सतगुरु पे डालूँगी तन मन को वार। मैं चरनों में कुरबान हूँ बार बार।। करो मन से मालिक का सुमिरन मुदाम। परम पुर्ष राधास्वामी है उनका नाम।।-(जपो प्रीत से नित्त राधास्वामी नाम। पाओ मेहर से एक दिन आदि धाम।।)                                         

   (प्रेमबानी-3-मसनवी-8-पृ.सं.407-408-इती संपूर्ण)                                                                (2) सुन सेवक की माँग हुए स्वामी अति मगना। गहरी मेहर बिचार मृदू अस बोले बचना।।-(मन में तब यही फुरी धरो टुक धीर दिलासा। पितु मेरे होयं एक और सब भाँड तमाशा।।)                  

    (प्रेमबिलास-शब्द-74,पृ.सं.103-104)                                          

 (3)  यथार्थ प्रकाश-भाग दूसरा-कल से आगे।               🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


**राधास्वामी!! 21- 10- 2020 

-आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन- 

कल से आगे-(21) 

का शेष भाग:- 

 जहाँ गुरु का सच्चा या झूठा दोष कहा जाता हो या निंदा होती हो वहां अपने कान बंद कर ले या वहाँ से उठ जाय

( श्लोक 200 )। गुरु का सच्चा या झूठा दोष कहने से गधा और निंदा करने से कुत्ता होता है ।और गुरु की बड़ाई न सह सकने से बड़ा कीड़ा होता है (श्लोक 201)।  


गुरु के गुरु को भी अपने गुरु के समान जाने और बिना गुरु की आज्ञा के अपने देश से आये हुए चचा आदि को प्रणाम न करें (श्लोक 205)  स्नान कराना, उबटन लगाना, जूठा खाना , पाँव धोना, ये सब काम गुरु-पुत्र के न करें अर्थात गुरु ही के करें (श्लोक 206)।

 तो  ब्रह्मचारी शरीर त्याग करने तक गुरु की सेवा करता है वह बिना परिश्रम अविनाशी ब्रह्मलोक को पाता है चलो (244) ।                      

 🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻  

यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा-

 परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**


तीन ग़ज़लें / सुरेंद्र सिंघल

 ग़ज़लें 


                           १


वो केवल हुक्म देता है सिपहसालार जो ठहरा 

मैं उसकी जंग लड़ता हूं मैं बस हथियार जो ठहरा


दिखावे की ये हमदर्दी तसल्ली खोखले वादे 

मुझे सब झेलने पड़ते हैं मैं बेकार जो ठहरा


तू भागम भाग में इस दौर की शामिल हुई ही क्यों 

मैं कैसे साथ दूं तेरा मैं कम रफ्तार जो ठहरा 


मोहब्बत दोस्ती चाहत वफ़ा दिल और कविता से

 मेरे इस दौर को परहेज़ है बीमार जो ठहरा


घुटन लगती न यूं ,कमरे में इक दो खिड़कियां होतीं

 मैं केवल सोच सकता हूं किराएदार जो ठहरा


उसे हर शख्स को अपना बनाना खूब आता है

मगर वो खुद किसी का भी नहीं हुशियार जो ठहरा


                            २


तमाशा बन के सहीं मैंने फब्तियां जो थीं 

तमाशबीनों के हाथों में रोटियां जो थीं


मैं आसमान से फ़रियाद किस लिए करता 

खुद आसमान से टूटीं थीं बिजलियां जो थीं


मुझे सही वो समझता था फिर भी साथ न था

कुछ आसमानी किताबों की धमकियां जो थीं


दरख़्त फूल परिंदे हैं अब भी जंगल में

 अगर नहीं हैं तो बस मुझ पे छुट्टियां जो थीं


मशीनों सिर्फ मशीनों फ़कत मशीनों में

 उलझ गई हैं कलाकार उंगलियां जो थीं


तुम आज मंच के हो और उस बुलंदी से

 हमें ही भूल गए हम कि तालियां जो थीं


खुद अपने आप तो मां-बाप का कहा माना

 हमें तो कसमें खिलातीं थीं लड़कियां जो थीं


                           ३


दिलों की आग से पिघलेंगीं चुप्पियां जो हैं

बहस से और भी उलझेंगीं गुत्थियां जो हैं


ये अक्लमंदी भरे मशवरे हैं छोड़ो भी

 अब और यूं न बढ़ाओ कि दूरियां जो हैं


हमेशा सोचती रहती हैं फा़यदे नुक़सान

 ये कैसा इश्क सा करती हैं लड़कियां जो हैं


तेरे लबों पे खिले हैं जो फूल नकली हैं

 तो इनका क्या करूं मुझ में ये तितलियां जो हैं


ये माना बंद हैं बाहर से सारे दरवाज़े

 कभी तो काम में आएंगी खिड़कियां जो हैं


सुरेंद्र सिंघल            9758876000

लगन की कीमत

 🧘‍♂ *सच्ची लगन* 🧘‍♀


✍ *एक शख्स सुबह सवेरे उठा साफ़ कपड़े पहने और सत्संग घर की तरफ चल दिया ताकि सतसंग का आनंद प्राप्त कर सके।*


*चलते चलते रास्ते में ठोकर खाकर गिर पड़ा, कपड़े कीचड़ से सन गए वापस घर आया।*


*कपड़े बदलकर वापस सत्संग की तरफ रवाना हुआ फिर ठीक उसी जगह ठोकर खा कर गिर पड़ा और वापस घर आकर कपड़े बदले, फिर सत्संग की तरफ रवाना हो गया।*


*जब तीसरी बार उस जगह पर पहुंचा तो क्या देखता है की एक शख्स चिराग हाथ में लिए खड़ा है और उसे अपने पीछे पीछे चलने को कह रहा है।*


*इस तरह वो शख्स उसे सत्संग घर के दरवाज़े तक ले आया।* 


*पहले वाले शख्स ने उससे कहा आप भी अंदर आकर सतसंग सुन लें।*


*लेकिन वो शख्स चिराग हाथ में थामे खड़ा रहा और सत्संग घर में दाखिल नही हुआ।*


*दो तीन बार इनकार करने पर उसने पूछा आप अंदर क्यों नही आ रहे है ...?*


*दूसरे वाले शख्स ने जवाब दिया "इसलिए क्योंकि*


*मैं काल हूँ,*


*ये सुनकर पहले वाले शख्स की हैरत का ठिकाना न रहा।*


*काल ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा मैं ही था जिसने आपको ज़मीन पर गिराया था।*


*जब आपने घर जाकर कपड़े बदले और दुबारा सत्संग घर की तरफ रवाना हुए तो भगवान ने आपके सारे पाप क्षमा कर दिए।*


*जब मैंने आपको *दूसरी* *बार गिराया और आपने घर जाकर फिर कपड़े बदले और फिर दुबारा जाने लगे तो भगवान ने आपके पूरे परिवार के गुनाह क्षमा कर दिए।*


*मैं डर गया की अगर अबकी बार मैंने आपको गिराया और आप फिर कपड़े बदलकर चले गए तो कहीं ऐसा न हो वह आपके सारे गांव के लोगो के पाप क्षमा कर दे.* *इसलिए मैं यहाँ तक आपको खुद पहुंचाने आया हूँ।*


*अब हम देखे कि उस शख्स ने दो बार गिरने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी और तीसरी बार फिर पहुँच गया और एक हम हैं यदि हमारे घर पर कोई मेहमान आ जाए या हमें कोई काम आ जाए तो उसके लिए हम सत्संग छोड़ देते हैं, भजन जाप छोड़ देते हैं।*


*क्यों....?*


*क्योंकि हम जीव अपने भगवान से ज्यादा दुनिया की चीजों और रिश्तेदारों से ज्यादा प्यार करते हैं।*


*उनसे ज्यादा मोह हैं। इसके विपरीत वह शख्स दो बार कीचड़ में गिरने के बाद भी तीसरी बार फिर घर जाकर कपड़े बदलकर सत्संग घर चला गया।*


*क्यों...?*


*क्योंकि उसे अपने दिल में भगवान के लिए बहुत प्यार था। वह किसी कीमत पर भी अपनी बंदगीं का नियम टूटने नहीं देना चाहता था।*


*इसीलिए काल ने स्वयं उस शख्स को मंजिल तक पहुँचाया, जिसने कि उसे दो बार कीचड़ में गिराया और मालिक की बंदगी में रूकावट डाल रहा था, बाधा पहुँचा रहा था !*


*इसी तरह हम जीव भी जब हम भजन-सिमरन पर बैठे तब हमारा मन चाहे कितनी ही चालाकी करे या कितना ही बाधित करे, हमें हार नहीं माननी चाहिए और मन का डट कर मुकाबला करना चाहिए।*


*एक न एक दिन हमारा मन स्वयं हमें भजन सिमरन के लिए उठायेगा और उसमें रस भी लेगा।*


*बस हमें भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और न ही किसी काम के लिए भजन सिमरन में ढील देनी हैं। वह मालिक आप ही हमारे काम सिद्ध और सफल करेगा।*


👉 *इसीलिए हमें भी मन से हार नहीं माननी चाहिए और निरंतर अभ्यास करते रहना चाहिए जी।* 

🌷🌷🙏🙏🙏🙏🌷🌷

Tuesday, October 20, 2020

रोजाना वाक्यात

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाकिआत-

 कल से आगे:

-  उन्होंने कुछ लोगों के नाम सिफारशी चिट्टियां तलब कीं। मैंने कहा भाइयों!  यह क्या गजब करते हो? इतने बुलंद आदर्श ,और शिफारशी चिट्टियों पर अवलंबन ? बेहतर होगा की 1-2 पब्लिक लेक्चर दो और अपने जौहर दिखलाओ । लोग खुद आपके घर आयेंगे। अफसोस उन्हें यह मशवरा पसंद न आया उन्होंने कहा हमारे लिए यही हुकुम है कि लोगों के घर जाकर उनके दरवाजे खटखटाओं। मैंने कहा अगर यही है तो बिस्मिल्लाह कीजिए। फिर अमीरों और बड़े आदमियों को क्यों चुनते हो। जो घर रास्ते में आयें, चाहे अमीरों के हो चाहे गरीबों के , सब पर कृपा कीजिये। इस पर वह हँसने लगे । मैंने दो चिट्ठियाँ देकर रुखसत हासिल की ।।                                

 रात के सत्संग में इसी विषय पर बहस हुई। क्या वजह है कि लोग ईश्वर , मालिक व खुदा का नाम भी लेते हैं, उसकी भक्ति का उपदेश भी करते हैं लेकिन उसका भरोसा नहीं रखते। मेरी राय में वजह यही है कि उन्होंने मालिक से नजदीकी हासिल करने का कभी साधन नहीं किया । न उन्हें मालिक से नजदीकी हासिल है, न उन्हें उससे कभी कोई निर्देश मिलती है। न उसने उनके जिम्में  अपना उपदेश फैलाने का काम किया है और न ही वह इस काम के योग्य हैं।

 उन्हें मालिक का काम करने की लालच जरूर है लेकिन अधिकार नहीं है।  यही वजह है कि मजहब गलियों में मारा मारा फिरता है और बड़े-बड़े उपदेशक रूपए पैसे की फिराक में दुनियादारों के दरवाजों पर धक्के खाते हैं। 

जबकि आप अपने काम हर किसी के सुपुर्द नहीं करते और हमेशा एहतियात करते हैं कि आपके काम काबिल आदमियों के सिपुर्द हो फिर दुनिया कैसे उम्मीद करती है कि हर शख्स ईश्वर, खुदा या मालिक का उपदेश फैलाने का अधिकारी है। यह लोग महज मालिक के नाम व मिशन का चोला पहनकर अपने मन के अंगों में बरतते हैं। और मजहब व ईश्वर दोनों को दुनिया में बदनाम करते हैं।                     

 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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Monday, October 19, 2020

प्रेमपत्र

 *(२४) प्रेम पत्र -१*


जो कोई सत्संगी किसी दूसरे सत्संगी की बुराई या निंदा करे, तो उसको सुनना नहीं चाहिए और उसको समझाना चाहिए कि यह आदत निहायत नाकिस है, बल्कि संसारियों में भी यह आदत  बहुत बुरी समझी जाती है, क्योंकि जो कोई एक कि बुराई  और निंदा करता है  वह इसी तरह सबकी बुराई और निंदा करता फिरेगा और अपना भारी अकाज करता है कि उसके मन में सच्चे मालिक और गुरु का प्रेम कभी नहीं ठहरेगा और दूसरे के प्रेम और भक्ति को भी गदला करता है । परमार्थी को मुनासिब है कि हमेशा सब के  गुन देखता रहे और ओगुन दृष्टि में न लावे। और जो किसी सतसंगी में कोई  ओगुण नजर पड़े, तो उसको एकांत में प्यार से समझा देवे और जो वह उस ऑगुन को न छोड़े तो सतगुरु से इतिला  करें । वे जैसा मुनासिब  समझेंगे कार्यवाही करेंगे,  पर इसको चाहिए  कि फिर उसका ख्याल मन में न रक्खे।

मत देख पराए ओगून

क्यों पाप बड़ावे दिन दिन ।

मक्खी सम मत कर भिन्न भिन्न ।

नहि खावे चोट तू छिन छिन ।।

देखा कर  सब के तू  गुन ।

सुख मिले बहुत तोही पुन पुन ।।

आज कर दिन मंगलमय हो

 प्रस्तुति  - कृष्ण मेहता 

🌞 ~ *आज का हिन्दू पंचांग* ~ 🌞

⛅ *दिनांक 20 अक्टूबर 2020*

⛅ *दिन - मंगलवार*

⛅ *विक्रम संवत - 2077 (गुजरात - 2076)*

⛅ *शक संवत - 1942*

⛅ *अयन - दक्षिणायन*

⛅ *ऋतु - शरद*

⛅ *मास - अश्विन*

⛅ *पक्ष - शुक्ल* 

⛅ *तिथि - चतुर्थी दोपहर 11:19 तक तत्पश्चात पंचमी*

⛅ *नक्षत्र - ज्येष्ठा 21 अक्टूबर रात्रि 02:12 तक तत्पश्चात मूल*

⛅ *योग - सौभाग्य सुबह 09:49 तक तत्पश्चात शोभन*

⛅ *राहुकाल - शाम 03:15 से शाम 04:41 तक* 

⛅ *सूर्योदय - 06:37* 

⛅ *सूर्यास्त - 18:09* 

⛅ *दिशाशूल - उत्तर दिशा में*

⛅ *व्रत पर्व विवरण - मंगलवारी चतुर्थी (सूर्योदय से दोपहर 01:19 तक), उपांग-ललिता पंचमी*

 💥 *विशेष - चतुर्थी को मूली खाने से धन का नाश होता है।(ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)*

               🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *विघ्न-बाधा में* 🌷

🙏🏻 *आदित्य ह्रदय स्तोत्र भगवान रामजी को अगस्त्य मुनि ने दिया था l आदित्य ह्रदय स्तोत्र ३ बार जपने से विघ्न-बाधा व आरोप लगाने वालों को सफलता नहीं मिलती -*

 🙏🏻  *पूज्य बापूजी -11thDec. 2009*

             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞


🌷 *उपांग ललिता व्रत* 🌷

🙏🏻 *आदि शक्ति मां ललिता दस महाविद्याओं में से एक हैं। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को इनके निमित्त उपांग ललिता व्रत किया जाता है। यह व्रत भक्तजनों के लिए शुभ फलदायक होता है। इस वर्ष उपांग ललिता व्रत 20 अक्टूबर, मंगलवार को है। इस दिन माता उपांग ललिता की पूजा करने से देवी मां की कृपा व आशीर्वाद प्राप्त होता है। जीवन में सदैव सुख व समृद्धि बनी रहती है।*

🙏🏻 *उपांग ललिता शक्ति का वर्णन पुराणों में प्राप्त होता है, जिसके अनुसार पिता दक्ष द्वारा अपमान से आहत होकर जब माता सती ने अपना देह त्याग दिया था और भगवान शिव उनका पार्थिव शव अपने कंधों में उठाए घूम रहें थे। उस समय भगवान विष्णु ने अपने चक्र से सती की देह को विभाजित कर दिया था। इसके बाद भगवान शंकर को हृदय में धारण करने पर इन्हें ललिता के नाम से पुकारा जाने लगा।*

🙏🏻 *उपांग ललिता पंचमी के दिन भक्तगण व्रत एवं उपवास करते हैं। कालिका पुराण के अनुसार, देवी की चार भुजाएं हैं, यह गौर वर्ण की, रक्तिम कमल पर विराजित हैं। ललिता देवी की पूजा से समृद्धि की प्राप्त होती है। दक्षिणमार्गी शास्त्रों  के मतानुसार देवी ललिता को चण्डी का स्थान प्राप्त है। इनकी पूजा पद्धति देवी चण्डी के समान ही है। इस दिन ललितासहस्रनाम व ललितात्रिशती का पाठ किया जाए तो हर मनोकामना पूरी हो सकती है।*

*

             🌞 *~ हिन्दू पंचांग ~* 🌞

🙏🍀🌷🌻🌺🌸🌹🍁🙏

Sunday, October 18, 2020

स्वराज्य ( नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -

【स्वराज्य 】

 कल से आगे:-

 शाह- आप आशीर्वाद दें कि हमारे राज्य दुनिया में हमेशा कायम रहे।। 

उग्रसेन- मेरे आशीर्वाद देने से क्या फायदा जबकि सब जानते हैं कि किसी का राज्य से हमेशा कायम नहीं रहा? 

 शाह- मगर संन्यासियों के आशीर्वाद में भी तो बडा बल होता है?  

उग्रसेन -सृष्टिनियमों से वाकिफ संन्यासी सोच समझकर ही आशीर्वाद दिया करते हैं।  

शाह- यह दुरुस्त है कि अब तक किसी का राज्य  हमेशा कायम नहीं रहा मगर इसके यह मानी कैसे हो सकते हैं कि आइंदा भी किसी का राज्य हमेशा कायम न रहेगा?  

उग्रसेन- आपका एतराज बजा है लेकिन अगर मेरी राय दरयाफ्त की जावे तो मैं अर्ज करूँगा कि संसार में राज्य किसी इंसान का नहीं होता। राज्य दरअसल भावों और आदर्शों का होता है और चूँकि भाव और आदर्श इंसान ही के हृदय में कायम रह सकते हैं इसलिए जिस कौम या इंसान के दिल में भाव और आदर्श कायम हो, जो सच्चा मालिक संसार में फैलाया चाहता है, उस कौम या इंसान को संसार में राज्य मिल जाता है क्योंकि ऐसे ही लोगों की मार्फत उन भावों और आदर्शों का संसार में पूरे तौर पर प्रचार हो सकता है - इसलिये जब तक आपका दिल और आपकी संतान का दिल उन भावों और आदर्शों को, जो सच्चा मालिक आयंदा संसार में फैलाने की मौज करें, कबूल करता रहेगा उस वक्त तक आपका और आपकी संतान का राज्य कायम रहेगा।  शाह- अगर हमारा दिल उस किस्म का हो, जैसे कि आप चाहते हैं, तब तो हमारे राज्य हमेशा कायम रह सकता है?

  उग्रसेन -जरूर।  

शाह- ऐसी हालत में तो आप हमारे लिये आशीर्वाद देने को तैयार होंगे ? 

उग्रसेन-बिला सुबह लेकिन अव्वल मेरा इत्मीनान होना चाहिये कि आपका और आपकी हुकूमत का दिल इस किस्म का है। 

क्रमशः                          

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

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प्रेमपत्र

 **परम गुरु हुजूर महाराज- प्रेम पत्र -भाग 1- 

कल से आगे -(11 ) 

इस वास्ते कुल जीवों को, चाहे मर्द होवें या औरत , मुनासिब और लाजिम है कि अपनी जिंदगी संत मत का भेद और उसके अभ्यास की जुगती समझ कर जिस कदर बने कार्रवाई शुरू करें और अपने मन का घाट यानी मुकाम बदलवावें, तब यह भूल और भरम और गफलत, जिस कदर अभ्यास और सत्संग बनता जावेगा , दूर होती जावेगी। और जिन खयालों में कि मन भरमता रहता है उनकी आहिस्ता आहिस्ता कमी और अभाव होता जावेगा और भोगों की तरफ से चित्त हटता जावेगा और होशियारी बढ़ती जावेगी अंतर में रस और आनंद सुरत और शब्द की धार का ध्यान और भजन के अभ्यास में मिलता जावेगा और मन और सुरत उसके आसरे चढ़ते जावेंगे और भूल और भरम और दुख सुख और कर्म के स्थान से हटते जावेंगे और रफ्ता रफ्ता त्रिकुटी में पहुँच कर मन अपने निज घर में रह जवेगा, और वहाँ से सुरत न्यारी होकर अकेली अपने निज देश में, जो कि सत्तलोक और राधास्वामी धाम है, पहुँच कर अमर और परम आनंद को प्राप्त होगी और तब जन्म मरण और देहियों के बंधन से सच्चा छुटकारा और बचाव हो जावेगा । क्रमशः                              🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**

रोजाना वाक्यात 19/10

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज- रोजाना वाकयात

- कल से आगे:

- रात के सत्संग में जनता की राय के मुतअल्लिक़ जिक्र हुआ। एक तरफ तो यह कहा जाता है कि काम करने वाले को अपने काम में लगे रहना चाहिये और किसी के कहने सुनने की तनिक भी परवाह न करनी करनी चाहिये और दूसरी तरफ यह कहा जाता है कि वर्तमान में जनता की राय अपने हक में किये बगैर कभी काम नहीं चल सकता।  

और जनता की राय का हाल यह है कि सुन सुन कर तबीयत उद्विग्न होती है । कुछ लोग कहते हैं दयालबाग के लोगों ने इतनी इंडस्ट्रीज चला कर मुल्क की जबरदस्त खिदमत की है और दूसरे लोग कहते हैं कि दयालबाग के लोगों ने परमार्थ में दुकानदारी दाखिल करके मजहब व रुहानियत को बदनाम कर दिया है।

  कुछ लोग कहते हैं कि दयालबाग वाले अपनी चीजें मँहगी कीमत पर बेचकर लाखों रुपए कमा रहे हैं । और दूसरे लोग कहते हैं दयालबाग के सब कारखाने घाटे पर चल रहे हैं । वहां की सभा भेंट के रूप से नुकसान पूरा करके हैं काम चला रही है और झूठ मुठ के लिए मशहूर किया जा रहा है कि कारखाने खूब चल रहे हैं। 

कुछ लोग कहते हैं कि दयालबाग के लोगों ने अविष्कार की कला में कमाल दिखाया हैं और दूसरे लोग कहते हैं कि दयालबाग के लोग पब्लिक को सख्त धोखा दे रहे हैं।  वह कोई चीज खुद निर्माण नहीं करते।  

जर्मनी व जापान से पुर्जे मँगा कर चीजे बनाते हैं और मुफ्त की शाबाश लेते हैं। यह सब बातें हैं। इनके लफ्जों पर नहीं जाना चाहिये। जनता की राय दरयाफ्त करने के लिए यह देखना चाहिये कि आया पब्लिक दयालबाग की शिल्पों का पोषण करती है या नहीं । 

अगर पोषण करती है तो यही समझना चाहिए कि जनता की राय दयालबाग के हक में है। आपत्तिकर्ताओं के एतराजात की अनेक वजह हो सकती है । और इसी मानी में कहा जाता है कि लोगों के कहने सुनने की परवाह ना करनी चाहिये।🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


उपनिषदों की बात

 **राधास्वामी/ 18-10-2020- 

आज शाम के सत्संग में पढ़ा गया बचन

- कल से आगे -(19) 


पहले उपनिषदों को लीजिये। मुण्डक उपनिषद में आता है- " पर ये नौकाएँ है जो यज्ञरुप है अठारह, जिनमें ज्ञान से निचले दर्जे का कर्म बतलाया गया है । जो मूढ इसी को परम कल्याण जानकर प्रशंसा करते हैं वे फिर भी जरा और मृत्यु को प्राप्त होते हैं,..........  कर्मों से जो लोक लाभ किये जाते हैं उनकी परीक्षा करके ( उनकी नाशमानता को जान कर)  ब्राह्मण को चाहिए कि उन इच्छाओं से वैराग्य को प्राप्त हो क्योंकि जो अकृत है वह कृत अर्थात कर्म से नहीं प्राप्त किया जाता । उसके जानने के लिए ब्राह्मण को हाथों में समिधा( शब्दार्थ- हवन करने के लिए पलाशादि की लकडियाँ। यह शिस्यता ग्रहण करने का चिन्ह् है)  लेकर एक ऐसे गुरु के पास जाना चाहिए जो श्रोत्रिय और ब्रह्मनिस्ट अर्थात वेद का जानने वाला और ब्रह्म में एकाग्र-चित्र हो"( मुण्डक उपनिषद, पहला मुण्डक, दूसरा खंड, श्लोक 7 और 12)                                                     

  ( 20 ) इसी प्रकार श्वेताश्वतर उपनिषद में आया है कि जिसकी परमात्मा में परम भक्ति हो और जैसी परम भक्ती परमात्मा में हो वैसी ही गुरु में हो, ऐसे महात्मा ही को इस उपनिषद के उपदेश समझ में आवेंगे (देखो छठा अध्याय, श्लोक 23)                                

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻            

                               

 यथार्थ प्रकाश- भाग दूसरा- परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**



**राधास्वामी!! 18-10-2020- आज भंडारा के अवसर शाम सतसंग में पढे गये पाठ:-                          

     (1) धन धन धन मेरे सतगुरु प्यारे। करूँ आरती नैन निहारे।। -(क्या महिमा मैं उनकी गाऊँ। उमँग उमँग चरनन लिपटाऊँ।। (प्रेमबानी-1--शब्द-8,पृ.सं 143-144)                                                   

(2) बार बार कर जोर कर, सविनय करूँ पुकार। (राधास्वामी गुरु समरत्थ, तुम बिन और न दूसरा।अब करो दया परत्क्ष, तुम दर ऐती बिलँब क्यों।। दया करो मेरे साइयाँ, देव प्रेम की दात। दुःख सुख कछु ब्यापै नहीं, छुटे सब उत्पात।। ) (अमृत बचन-जमीमा-।।सोरठा।।,पृ.सं.2)  सतसंग के बाद:-                        (1) धन्य धन्य सखी भाग हमारे धन्य गुरु का संग री।।टेक।। (प्रेमबिलास-शब्द-126,पृ.सं.185)                                                              

(2) निज गुन भाट जगत बहुतेरे। पर गुन ग्राहक नर न घनेरे।। (अमृत बचन-जमीमा-चौपाई।)                                   (3) ड्रामा आडियो -हमने दर परदा तुझे शम्से जबीं देख लिया।।                           .              

🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**


गणित

 *ईश्वर का गणित*


*एक बार दो आदमी एक मंदिर के पास बैठे गपशप कर रहे थे । वहां अंधेरा छा रहा था और बादल मंडरा रहे थे*


*थोड़ी देर में वहां एक आदमी आया और वो भी उन दोनों के साथ बैठकर गपशप करने लगा ।*


*कुछ देर बाद वो आदमी बोला उसे बहुत भूख लग रही है, उन दोनों को भी भूख लगने लगी थी ।*


*पहला आदमी बोला मेरे पास 3 रोटी हैं, दूसरा बोला मेरे पास 5 रोटी हैं, हम तीनों मिल बांट कर खा लेते हैं।*


*उसके बाद सवाल आया कि 8 (3+5) रोटी तीन आदमियों में कैसे बांट पाएंगे ??*


*पहले आदमी ने राय दी कि ऐसा करते हैं कि हर रोटी के 3 टुकडे करते हैं, अर्थात 8 रोटी के 24 टुकडे (8 X 3 = 24) हो जाएंगे और हम तीनों में 8 - 8 टुकड़े बराबर बराबर बंट जाएंगे।*


    *तीनों को उसकी राय अच्छी लगी और 8 रोटी के 24 टुकडे करके प्रत्येक ने 8 - 8 रोटी के टुकड़े खाकर भूख शांत की और फिर बारिश के कारण मंदिर के प्रांगण में ही सो गए ।*


*सुबह उठने पर तीसरे आदमी ने उनके उपकार के लिए दोनों को धन्यवाद दिया और प्रेम से 8 रोटी के टुकड़ों के बदले दोनों को उपहार स्वरूप 8 सोने की गिन्नी देकर अपने घर की ओर चला गया ।*


*उसके जाने के बाद दूसरे आदमी ने  पहले आदमी से कहा हम दोनों 4 - 4 गिन्नी बांट लेते हैं ।*


*पहला आदमी बोला नहीं मेरी 3 रोटी थी और तुम्हारी  5 रोटी थी,अतः मैं 3 गिन्नी लुंगा, तुम्हें 5 गिन्नी रखनी होगी ।इस पर दोनों में बहस होने लगी ।*


*इसके बाद वे दोनों समाधान के लिये मंदिर के पुजारी के पास गए और उन्हें  समस्या बताई तथा  समाधान के लिए प्रार्थना की ।*


*पुजारी भी असमंजस में पड़ गया, दोनों  दूसरे को ज्यादा  देने के लिये लड़ रहे है ।  पुजारी ने कहा तुम लोग ये 8 गिन्नियाँ मेरे पास छोड़ जाओ और मुझे सोचने का समय दो, मैं कल सवेरे जवाब दे पाऊंगा ।*


*पुजारी को दिल में वैसे तो दूसरे आदमी की 3-5 की बात ठीक लग रही थी पर फिर भी वह गहराई से सोचते-सोचते गहरी नींद में सो गया।*


*कुछ देर बाद उसके सपने में भगवान प्रगट हुए तो पुजारी ने सब बातें बताई और न्यायिक मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना की और बताया कि मेरे ख्याल से 3 - 5 बंटवारा ही उचित लगता है ।*


*भगवान मुस्कुरा कर बोले- नहीं, पहले आदमी को 1 गिन्नी मिलनी चाहिए और दूसरे आदमी को 7 गिन्नी मिलनी चाहिए ।*

*भगवान की बात सुनकर पुजारी अचंभित हो गया और अचरज से पूछा-*


*प्रभु, ऐसा कैसे  ?*


*भगवन फिर एक बार मुस्कुराए और बोले :*


*इसमें कोई शंका नहीं कि पहले आदमी ने अपनी 3 रोटी के 9 टुकड़े किये परंतु उन 9 में से उसने सिर्फ 1 बांटा और 8 टुकड़े स्वयं खाया अर्थात उसका त्याग सिर्फ 1 रोटी के टुकड़े का था इसलिए वो सिर्फ 1 गिन्नी का ही हकदार है ।*


    *दूसरे आदमी ने अपनी 5 रोटी के 15 टुकड़े किये जिसमें से 8 टुकड़े उसने स्वयं खाऐ और 7 टुकड़े उसने बांट दिए । इसलिए वो न्यायानुसार 7 गिन्नी का हकदार है .. ये ही मेरा गणित है और ये ही मेरा न्याय है  !*


*ईश्वर की न्याय का सटिक विश्लेषण सुनकर पुजारी  नतमस्तक हो गया।*


इस कहानी का सार ये ही है कि हमारी वस्तुस्थिति को देखने की, समझने की दृष्टि और ईश्वर का दृष्टिकोण एकदम भिन्न है । हम ईश्वरीय न्यायलीला को जानने समझने में सर्वथा अज्ञानी हैं ।

*_यह महत्वपूर्ण नहीं है कि हम कितने धन संपन्न है, महत्वपूर्ण यहीं है कि हमारे सेवाभाव कार्य में त्याग कितना है।_*

भारत में 51 शक्तिपीठ

 *नवरात्री विशेष।*/ 51 शक्तिपीठ 

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⚫ *जानिए माता सती से जुड़े 51 शक्तिपीठों के बारे में जो पूरे भारतीय उपमहाद्वीप भारत, नेपाल,पाकिस्तान, श्री लंका और बांग्लादेश में स्तिथ है।*



*1.-हिंगलाज:-*

*🔶कराची से 125 किमी दूर है। यहां माता का ब्रह्मरंध (सिर) का ऊपरी भाग गिरा था। इसकी शक्ति-कोटरी (भैरवी-कोट्टवीशा) है व भैरव को भीम लोचन कहते हैं।*


*2.-शर्कररे:-*

*🔶पाक के कराची के पास यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की आंख गिरी थी। इसकी शक्ति- महिषासुरमर्दिनी व भैरव को क्रोधिश कहते हैं।*

 

*3.-सुगंधा:-*

*🔶बांग्लादेश के शिकारपुर के पास दूर सोंध नदी के किनारे स्थित है। माता की नासिका गिरी थी यहां। इसकी शक्ति सुनंदा है व भैरव को त्र्यंबक कहते हैं।*


*4.-महामाया:-*

*🔶भारत के कश्मीर में पहलगांव के निकट माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति है महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।"*


*5:-ज्वालाजी:-*

*🔶हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में माता की जीभ गिरी थी। इसे ज्वालाजी स्थान कहते हैं। इसकी शक्ति है सिद्धिदा (अंबिका) व भैरव को उन्मत्त कहते हैं।*


*6.-त्रिपुरमालिनी:-*

*🔶पंजाब के जालंधर में देवी तालाब, जहां माता का बायां वक्ष (स्तन) गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुरमालिनी व भैरव को भीषण कहते हैं।*


*7.-वैद्यनाथ:-*

*🔶झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथधाम जहां माता का हृदय गिरा था। इसकी शक्ति है जय दुर्गा और भैरव को वैद्यनाथ कहते हैं।*


*8.-महामाया:-*

*🔶नेपाल में गुजरेश्वरी मंदिर, जहां माता के दोनों घुटने (जानु) गिरे थे। इसकी शक्ति है महशिरा (महामाया) और भैरव को कपाली कहते हैं।*


*9.-दाक्षायणी:-*

*🔶तिब्बत स्थित कैलाश मानसरोवर के मानसा के पास पाषाण शिला पर माता का दायां हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है दाक्षायणी और भैरव अमर।*


*10.-विरजा:-*

*🔶ओडिशा के विराज में उत्कल में यह शक्तिपीठ स्थित है। यहां माता की नाभि गिरी थी। इसकी शक्ति विमला है व भैरव को जगन्नाथ कहते हैं।*


*11.-गंडकी:-*

*🔶नेपाल में मुक्ति नाथ मंदिर, जहां माता का मस्तक या गंडस्थल अर्थात कनपटी गिरी थी। इसकी शक्ति है गंडकी चंडी व भैरव चक्रपाणि हैं।*


*12.-बहुला:-*

*🔶प. बंगाल के अजेय नदी तट पर स्थित बाहुल स्थान पर माता का बायां हाथ गिरा था। इसकी शक्ति है देवी बाहुला व भैरव को भीरुक कहते हैं।*

 

*13.-उज्जयिनी:-*

*🔶प. बंगाल के उज्जयिनी नामक स्थान पर माता की दाईं कलाई गिरी थी। इसकी शक्ति है मंगल चंद्रिका और भैरव को कपिलांबर कहते हैं।*


*14.-त्रिपुर सुंदरी:-*

*🔶त्रिपुरा के राधाकिशोरपुर गांव के माता बाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी व भैरव को त्रिपुरेश कहते हैं।*


*15.-भवानी:-*

*🔶बांग्लादेश चंद्रनाथ पर्वत पर छत्राल (चट्टल या चहल) में माता की दाईं भुजा गिरी थी। भवानी इसकी शक्तिहैं व भैरव को चंद्रशेखर कहते हैं।*


*16.-भ्रामरी:-*

*🔶प. बंगाल के जलपाइगुड़ी के त्रिस्रोत स्थान पर माता का बायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है भ्रामरी और भैरव को अंबर और भैरवेश्वर कहते हैं।*

 

*17.-कामाख्या:-*

*🔶असम के कामगिरि में स्थित नीलांचल पर्वत के कामाख्या स्थान पर माता का योनि भाग गिरा था। कामाख्या इसकी शक्ति है व भैरव को उमानंद कहते हैं।*


*18.-प्रयाग:-*

*🔶उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (प्रयाग) के संगम तट पर माता के हाथ की अंगुली गिरी थी। इसकी शक्ति है ललिता और भैरव को भव कहते हैं।*


*19.-जयंती:-*

*🔶बांग्लादेश के खासी पर्वत पर जयंती मंदिर, जहां माता की बाईं जंघा गिरी थी। इसकी शक्ति है जयंती और भैरव को क्रमदीश्वर कहते हैं।*


*20.-युगाद्या:-*

*🔶प. बंगाल के युगाद्या स्थान पर माता के दाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है भूतधात्री और भैरव को क्षीर खंडक कहते हैं।*


*21.-कालीपीठ:-*

*🔶कोलकाता के कालीघाट में माता के बाएं पैर का अंगूठा गिरा था। इसकी शक्ति है कालिका और भैरव को नकुशील कहते हैं।*


*22.-किरीट:-*

*🔶प. बंगाल के मुर्शीदाबाद जिला के किरीटकोण ग्राम के पास माता का मुकुट गिरा था। इसकी शक्ति है विमला व भैरव को संवत्र्त कहते हैं।*


*23.-विशालाक्षी:-*

*🔶यूपी के काशी में मणिकर्णिका घाट पर माता के कान के मणिजडि़त कुंडल गिरे थे। शक्ति है विशालाक्षी मणिकर्णी व भैरव को काल भैरव कहते हैं।*


*24.-कन्याश्रम:-*

*🔶कन्याश्रम में माता का पृष्ठ भाग गिरा था। इसकी शक्ति है सर्वाणी और भैरव को निमिष कहते हैं।*


*25.-सावित्री:-*

*🔶हरियाणा के कुरुक्षेत्र में माता की एड़ी (गुल्फ) गिरी थी। इसकी शक्ति है सावित्री और भैरव को स्थाणु कहते हैं।*


*26.-गायत्री:-*

*🔶अजमेर के निकट पुष्कर के मणिबंध स्थान के गायत्री पर्वत पर दो मणिबंध गिरे थे। इसकी शक्ति है गायत्री और भैरव को सर्वानंद कहते हैं।*


*27.-श्रीशैल:-*

*🔶बांग्लादेश केशैल नामक स्थान पर माता का गला (ग्रीवा) गिरा था। इसकी शक्ति है महालक्ष्मी और भैरव को शम्बरानंद कहते हैं।*


*28.-देवगर्भा:-*

*🔶प. बंगाल के कोपई नदी तट पर कांची नामक स्थान पर माता की अस्थि गिरी थी। इसकी शक्ति है देवगर्भा और भैरव को रुरु कहते हैं।*


*29.-कालमाधव:-*

*🔶मध्यप्रदेश के शोन नदी तट के पास माता का बायां नितंब गिरा था जहां एक गुफा है। इसकी शक्ति है काली और भैरव को असितांग कहते हैं।*


*30.-शोणदेश:-*

*🔶मध्यप्रदेश के शोणदेश स्थान पर माता का दायां नितंब गिरा था। इसकी शक्ति है नर्मदा और भैरव को भद्रसेन कहते हैं।*


*31.-शिवानी:-*

*🔶यूपी के चित्रकूट के पास रामगिरि स्थान पर माता का दायां वक्ष गिरा था। इसकी शक्ति है शिवानी और भैरव को चंड कहते हैं।*


*32.-वृंदावन:-*

*🔶मथुरा के निकट वृंदावन के भूतेश्वर स्थान पर माता के गुच्छ और चूड़ामणि गिरे थे। इसकी शक्तिहै उमा और भैरव को भूतेश कहते हैं।*


*33 नारायणी:-*

*🔶कन्याकुमारी-तिरुवनंतपुरम मार्ग पर शुचितीर्थम शिव मंदिर है, जहां पर माता के दंत (ऊर्ध्वदंत) गिरे थे। शक्तिनारायणी और भैरव संहार हैं।*


*34 वाराही:-*

*🔶पंचसागर (अज्ञात स्थान) में माता की निचले दंत (अधोदंत) गिरे थे। इसकी शक्ति है वराही और भैरव को महारुद्र कहते हैं।*


*35.-अपर्णा:-*

*🔶बांग्लादेश के भवानीपुर गांव के पास करतोया तट स्थान पर माता की पायल (तल्प) गिरी थी। इसकी शक्ति अर्पणा और भैरव को वामन कहते हैं।*


*36.-श्रीसुंदरी:-*

*🔶लद्दाख के पर्वत पर माता के दाएं पैर की पायल गिरी थी। इसकी शक्ति है श्रीसुंदरी और भैरव को सुंदरानंद कहते हैं।*


*37.-कपालिनी:-*

*🔶पश्चिम बंगाल के जिला पूर्वी मेदिनीपुर के पास तामलुक स्थित विभाष स्थान पर माता की बायीं एड़ी गिरी थी। इसकी शक्ति है कपालिनी (भीमरूप) और भैरव को शर्वानंद कहते हैं।*


*38.-चंद्रभागा:-*

*🔶गुजरात के जूनागढ़ प्रभास क्षेत्र में माता का उदर गिरा था। इसकी शक्ति है चंद्रभागा और भैरव को वक्रतुंड कहते हैं।*


*39.-अवंती:-*

*🔶उज्जैन नगर में शिप्रा नदी के तट के पास भैरव पर्वत पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है अवंति और भैरव को लम्बकर्ण कहते हैं।*


*40.-भ्रामरी:-*

*🔶महाराष्ट्र के नासिक नगर स्थित गोदावरी नदी घाटी स्थित जनस्थान पर माता की ठोड़ी गिरी थी। शक्ति है भ्रामरी और भैरव है विकृताक्ष।*


*41.-सर्वशैल स्थान:-*

*🔶आंध्रप्रदेश के कोटिलिंगेश्वर मंदिर के पास माता के वाम गंड (गाल) गिरे थे। इसकी शक्तिहै राकिनी और भैरव को वत्सनाभम कहते हैंं।*


*42.-गोदावरीतीर:-*

*🔶यहां माता के दक्षिण गंड गिरे थे। इसकी शक्ति है विश्वेश्वरी और भैरव को दंडपाणि कहते हैं।*


*43.-कुमारी:-*

*🔶बंगाल के हुगली जिले के रत्नाकर नदी के तट पर माता का दायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है कुमारी और भैरव को शिव कहते हैं।*


*44.-उमा महादेवी:-*

*🔶भारत-नेपाल सीमा पर जनकपुर रेलवे स्टेशन के निकट मिथिला में माता का बायां स्कंध गिरा था। इसकी शक्ति है उमा और भैरव को महोदर कहते हैं।*


*45.-कालिका:-*

*🔶पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नलहाटि स्टेशन के निकट नलहाटी में माता के पैर की हड्डी गिरी थी। इसकी शक्ति है कालिका देवी और भैरव को योगेश कहते हैं।*


*46.-जयदुर्गा:-*

*🔶कर्नाट (अज्ञात स्थान) में माता के दोनों कान गिरे थे। इसकी शक्ति है जयदुर्गा और भैरव को अभिरु कहते हैं।*


*47.-महिषमर्दिनी:-*

*🔶पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में पापहर नदी के तट पर माता का भ्रुमध्य (मन:) गिरा था। शक्ति है महिषमर्दिनी व भैरव वक्रनाथ हैं।*


*48.-यशोरेश्वरी:-*

*🔶बांग्लादेश के खुलना जिला में माता के हाथ और पैर गिरे (पाणिपद्म) थे। इसकी शक्ति है यशोरेश्वरी और भैरव को चण्ड कहते हैं।*


*49.-फुल्लरा:-*

*🔶पश्चिम बंगला के लाभपुर स्टेशन से दो किमी दूर अट्टहास स्थान पर माता के ओष्ठ गिरे थे। इसकी शक्ति है फुल्लरा और भैरव को विश्वेश कहते हैं।*


*50.-नंदिनी:-*

*🔶पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के नंदीपुर स्थित बरगद के वृक्ष के समीप माता का गले का हार गिरा था। शक्ति नंदिनी व भैरव नंदीकेश्वर हैं।*


*51.-इंद्राक्षी:-*

*🔶श्रीलंका में संभवत: त्रिंकोमाली में माता की पायल गिरी थी। इसकी शक्ति है इंद्राक्षी और भैरव को राक्षसेश्वर कहते हैं।*

सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

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