Wednesday, March 29, 2023

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

रा धा स्व आ मी




*29-0323-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-*




 *(6-10-31-मंगल)* 




*जो भाई दयालबाग़ में दिलचस्पी(रूची) रखते है वह प्लेटै(अफलातून) के हस्ब जैल कलमात(निम्नलिखित  बचनों) को गौर(ध्यान) से पढ़ें जिक्र यह हो रहा है कि जो आदर्श रियासत कायम(स्थापित) करनी है वह कैसे मक़ाम(स्थान) पर क़ायम की जाये। लिखा है:-                                                            " दरअसल (वास्तव में) मुकाबले की तिजारत(व्यापार)एक किस्म की जंग(युध) है। अमन महज़ जबानी जमा खर्च है। इसलिये मुनासिब होगा कि हम अपनी आदर्श रियासत को समन्दर से फासले(दूरी) पर क़ायम करें ताकि उसके अन्दर किसी क़िस्म की गैर-मुल्की(दूसरे देश की) तिजारत के क़ायम होने का इमकान(सम्भावना) न हो। समन्दर के जरीये मुल्क के अन्दर तिजारती माल,और तहसील-जर(धन प्राप्ति), व नफ़ा(लाभ) कमाने की हवस(लालसा) भर जाती है जिससे लोगों के दिलों में रुपये की हिर्स(हवस) और बेईमानी की आदत पैदा हों जाती है।"                                                          क्या यह हमारी खुशकिस्मती नहीं है कि दयालबाग समदंर से इतनी दूर वाक्रे(स्थित) है? अंग्रेजी अल्फ़ाज (शब्द) यह हैं                                                              It will be well then to situate our ideal state considerably inland, so that it shall be shut out from any high development of foreign commerce. The sea fills a country with merchandise & money-making & bargaining; it breeds in mens' minds habits of financial greed & faithlessness.                                                                रात के सतसंग में दान के मजमून(विषय) पर बातचीत हुई। जमाना सल्फ़(पुराने) के लोग दान को बड़ी अहमियत(महत्तव) देते थे और राजा महाराजा तलाश करके सच्चे ब्राह्मनों को दान पेश करते थे और उसके मंजूर होने पर अपना भाग सराहते थे। और सच्चे ब्राह्मन भी अपनी लंगोटी में मगन रहते थे और बिला अशद(अत्यधिक)  जरूरत के किसी के सामने हाथ न फैलाते थे। और ग़रीबी में दिन काटकर अपने ब्रह्म ज्ञान का रस लेते थे। और चूंकि वह ज़्यादातर गुरबत(निर्धनता) की हालत में दिन काटते थे इसलिये होते होते गरीबों को दान देने की महिमा क़ायम हो गई हत्ता कि लंगड़ों लूलों कोढ़ियों को बढ़िया खाने खिलाना और उन (को) बस्त्र देना निहायत बढ़ कर दान समझा जाने लगा। और चूंकि सच्चे ब्राह्मन नापैद(लुप्त) होते गये इसलिये अपाहिजों की खिदमत का आम रवाज हो गया। करीबन 30 बरस हुए शिमाली(उत्तरी) हिन्द में साधुओं व फुंकरों(फ़कीरों) की मंडलियां चक्कर लगाती थीं। लोग अपाहिजों के बजाय ऐसे लोगों को दान देकर व खाना खिलाकर निहायत खुश होते थे। उसके बाद आर्य समाज ने कालेज के लिये आम चन्दा मांगने का सिलसिला कायम किया। रुपये की सख्त जरूरत होने से लफ़्ज़ दान का इस्तेमाल होने लगा। आर्य समाज की कामयाबी देखकर हर एक सोसायटी दान मांगने पर उतर आई और कांग्रेस कमेटियों के क़ायम होने पर दान मांगना दाल रोटी हो गई। इसमें शक नहीं कि ज्यादातर लोगों ने चन्दों से वसूलशुदा(प्राप्त की हुई) रक्कमों का निहायत अच्छा इस्तेमाल किया है और उसके प्रताप से उस रुपये का एक हिस्सा जो पण्डों व पुजारियों के शिकम(पेट) में जाता था, मुफीद(लाभप्रद) संस्थाओं पर सर्फ होने लगा है। लेकिन यह अफ़सोस से कहा जाता है कि लोगों के दिल से दान की श्रद्धा जाती रही है। जब किसी के घर हर रोज कोई न कोई चन्दा मांगने के लिये आ जाये तो उसके दिल में श्रद्धा क्योंकर रह सकती है? लोगों ने दान की पवित्र संस्था का नामुनासिब इस्तेमाल करके उसको बदनाम कर दिया और लोगों के दिलों में उसके मुतअल्लिक उल्टे खयालात कायम कर दिये। लोग चन्दा वसूल करते वक़्त न यह देखते हैं कि उस शख्स की कमाई किस तरह की है, और न यह कि उसके दिल में हमारे काम के लिये श्रद्धा भी है या नहीं है। उन्हें रुपया वसूल करने से मतलब है । देने वाले के खयालात पर क्या असर पड़ता है और ख़राब के कमाये ढंग से उनके काम पर क्या असर पड़ता है, इन बातों से उन्हें मुतलक(तनिक भी) वास्ता(सम्बन्ध) नहीं है। बरखिलाफ़(विपरीत)इसके सतसंग में इन बातों का खास तौर लिहाज(ध्यान) रखा जाता है। सतसंग में भेंट का रवाज है। लेकिन यह मामला श्रद्धा का है। जिसके दिल में प्रेम व श्रद्धा हो वह भेंट करे और जिसके दिल में न हो वह न करे और जो भेंट करे वह हक़ व हलाल(परिश्रम व ईमानदारी)  की कमाई का धन भेंट करे। वरना अपने घर में रखे। शुक्र है कि शुरू से लेकर आज दिन तक इस उसूल पर बराबर अमल हो रहा है जिसका नतीजा यह है कि सतसंगियों के दिल श्रद्धा से भरे हैं। बेचारे हरचन्द(यद्दपि)गरीब हैं लेकिन श्रद्धा के बड़े धनी हैं। और सतसंग में इस कदर(इतना) रुपया आता है कि सभी काम निकल जाते हैं। लोग दरयाफ्त करते हैं कि अगर सतसंग में रुपया आना बन्द हो जावेगा तो क्या करोगे? मैं कहता हूँ कि जिस गालिक के नाम पर रुपया खर्च किया जाता है उससे अजमारूज(प्रार्थना) करेंगे। वह पूछते है अगर वह भी मदद न करे तो क्या करोगे? मैं जवाब देता हूँ कि वह सब काम जिन पर सतसंग का रुपया सर्फ़(व्यय) होता है बन्द कर दिये जायेंगे। अगर वह मालिक चाहता है कि उसके बंदों की कुछ सेवा हमारी मार्फत हो तो हम दिल व जान से करने को तैयार है लेकिन सेवा के लिये जराये(साधन) बहम(उपलब्ध) पहुंचाना उस मालिक का काम है। और अगर वह जराये बन्द कर देता है तो जाहिर है कि वह हमसे या किसी से सेवा लेना नहीं चाहता। फिर हम भी उसी में राजी हैं जो उसकी रजा(मौज) है। गर्जेकि मौजूदा(वर्तमान) चन्दा मांगने का ढंग नापसन्दीदा(नापसन्द) है और नौजवानों को मेहनत व मशक्कत(परिश्रम) करने के बजाय भीख मांगने के लिये उकसाना है। इसलिये जितनी जल्दी यह रवाज बन्द हो जाये उतना ही अच्छा है।*  


     



*🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

🙏सतगुरु मिले तो बंधन छूटे

 *गुरु की महिमा*


प्रस्तुति - उषा रानी सिन्हा / राजेंद्र प्रसाद 



एक पंडित रोज रानी के पास कथा करता था। कथा के अंत में सबको कहता कि ‘राम कहे तो बंधन टूटे’। तभी पिंजरे में बंद तोता बोलता, ‘यूं मत कहो रे पंडित झूठे’। पंडित को क्रोध आता कि ये सब क्या सोचेंगे, रानी क्या सोचेगी। पंडित अपने गुरु के पास गया, गुरु को सब हाल बताया। गुरु तोते के पास गया और पूछा तुम ऐसा क्यों कहते हो?


तोते ने कहा- ‘मैं पहले खुले आकाश में उड़ता था। एक बार मैं एक आश्रम में जहां सब साधू-संत राम-राम-राम बोल रहे थे, वहां बैठा तो मैंने भी राम-राम बोलना शुरू कर दिया। एक दिन मैं उसी आश्रम में राम-राम बोल रहा था, तभी एक संत ने मुझे पकड़ कर पिंजरे में बंद कर लिया, फिर मुझे एक-दो श्लोक सिखाये। आश्रम में एक सेठ ने मुझे संत को कुछ पैसे देकर खरीद लिया। अब सेठ ने मुझे चांदी के पिंजरे में रखा, मेरा बंधन बढ़ता गया। निकलने की कोई संभावना न रही। एक दिन उस सेठ ने राजा से अपना काम निकलवाने के लिए मुझे राजा को गिफ्ट कर दिया, राजा ने खुशी-खुशी मुझे ले लिया, क्योंकि मैं राम-राम बोलता था। रानी धार्मिक प्रवृत्ति की थी तो राजा ने रानी को दे दिया। अब मैं कैसे कहूं कि ‘राम-राम कहे तो बंधन छूटे’।


तोते ने गुरु से कहा आप ही कोई युक्ति बताएं, जिससे मेरा बंधन छूट जाए। गुरु बोले- आज तुम चुपचाप सो जाओ, हिलना भी नहीं। रानी समझेगी मर गया और छोड़ देगी। ऐसा ही हुआ। दूसरे दिन कथा के बाद जब तोता नहीं बोला,तब संत ने आराम की सांस ली। रानी ने सोचा तोता तो गुमसुम पढ़ा है,शायद मर गया। रानी ने पिंजरा खोल दिया,तभी तोता पिंजरे से निकलकर आकाश में उड़ते हुए बोलने लगा ‘सतगुरु मिले तो बंधन छूटे’। अतः शास्त्र कितना भी पढ़ लो, कितना भी जाप कर लो,लेकिन सच्चे गुरु के बिना बंधन नहीं छूटता..!!


   *🙏🏻🙏🏿🙏🏼

Saturday, March 25, 2023

🙏🌹राधास्वामी🙏🌹


 🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏

राधास्वामी नाम सुमिर छिन छिन, राधास्वामी रूप धियाओ पुन पुन 


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏



 🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


हरख हरख राधास्वामी गुन गावत, 

पल पल छिन छिन घड़ी घड़ी 


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏


साईं घट में आन रहो,

पूजवो मेरी आस; छिन छिन काया छीजती, 

घटे जात हैं स्वांस 


🙏🍁RADHASOAMI 🍁🙏




बीन बांसुरी मोहे सुना कर ।

मारे काला नाग री।।

लाग री मेरी सुरत सहेली।

गुरु के चरन में लाग री।।

🌹🙏राधास्वामी🌹🙏




भौजल पार सहज में पहुंची,

रही गुरु के गुन गाय।

धन राधास्वामी प्यारे सतगुरु जिन बूड़त लई है बचाय।।

नैया मेरी बूढ़त थी जल मांहि।।


🙏🌹राधास्वामी🙏🌹



🙏मैं जिद्द दम दम हठ करती, 

मौज हुकम में चित नहिं धरती, 

दया करो राधास्वामी प्यारे, 

 औगुन बख्शो लेवो उबारे 


🙏🍁RADHASOAMI🍁🙏



रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

 *रा धा स्व आ मी* 



*रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*



*25-03-23- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-कल से आगे:-*




*(14.6.31-आदित्य)* 




*मेल रात के बारह बजे आगरा छावनी स्टेशन पहुंच गई। दयालबाग जाकर राय बहादुर रविनन्दन प्रसाद के लिये मोटर पर स्ट्रेचर भिजवाया लेकिन दूसरी गाड़ी आने पर एक बजे मालूम हुआ कि आपको मथुरा स्टेशन पर उतार लिया गया है। फ़ौरन(तुरन्त) एक लारी मथुरा भिजवाई गई और अलस्सुबह(तड़के) राय बहादुर साहब की लाश दयालबाग पहुँच गई। मेरे आने पर लोग हमेशा खुशी मनाते हैं बैण्ड बजता है और नारे लगाये जाते हैं। लेकिन इस मौके पर यह सब बातें मौक़ूफ़(स्थगित)  की गई। 9 बजे के क़रीब दाह कर्म किया गया। सैकड़ों सतसंगी शमशान भूमि में जमा थे। अन्त में इससे ज्यादा एक इन्सान दूसरे के लिये और क्या कर सकता है। राय बहादुर साहब के रिश्तेदारान(सम्बन्धियों) के नाम जरूरी तारे खबरी(सन्देश का तार) भेजी गई।*  



                                                                                                                               

  *🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

पानी का प्रणाम



 एक बार मुजफ्फर नगर आश्रम मे बाढ़ का पानी भर आया। हम सभी सेवादार तसला आदि से बरतन लेकर पानी उलीचने में लगे रहे तब भी पानी का वेग रोक नहीे पाये। अंत मंे हमने गुरू जी ( स्वामी अनन्त प्रकाशानन्द जी महाराज) को घबराहट में बताया कि पानी रूकने का नाम नही ले रहा है लगता है कि पूरे आश्रम में जल ही जल भर जायेगा गुरू जी बोले-‘परम’ को बुला लाओ। श्री परमगुरू जी महाराज छत पर बजरी पर योहीं लेटे हुए थे, कारण  वे देह के ख्याल के प्रति बड़े फक्कड़ तो थे ही, कभी हमारे गुरू जी के साथ बैठकर खाने लगते तो कभी हम सेवको की पाँत मे बैठ जाते। हमने उन्हें जाकर सम्वाद दिया। गुरू जी( स्वामी अनन्त प्रकाशानन्द जी महाराज) बोले-‘भाई’ परम अपनी सिद्धाई दिखाओं और पानी के वेग को रोको वरना हमारा आश्रम डूब जायेगा। श्री परमगुरू जी दौड़कर पूजा-गृह में श्री गुरू महाराज जी (श्री नंगली निवासी भगवान) के सामने दण्डवत् विनती करने लगे और आकर गुरू जी से बोले-‘पानी कह रहा है कि वह श्री गुरू महाराज जी का चरण स्पर्श करेगा फिर  स्वतः लौट जायेगा। अतः पानी को श्री गुरू महाराज जी के चरणों तक जाने दो तबतक सभी मिलकर भजन करो। वैसा ही हुआ। पानी गुरू महाराज जी के स्वरूप को छूने के तुरत बाद वापस हो गया और देखते-देखते आश्रम का समुचा पानी बाहर निकल गया। (श्री परम पीयुष) भजन

गुरू की मूर्ति मन मेें ध्यान

गुरू के शबद मन्तर मन मान

गुरू के चरण ह्नदय ले  धारू

गुरू पारब्रह्मा सदा नमस्कारू

मत कोई भूले भरम संसारा

गुरू बिन कोई ना उतरे पारा

भूले के गुरू मारग पायो

अवर तेआग हरि भक्ति लाओ

जन्म-मरण की गुरू त्रास मिटाई

गुरू पूरे की बेअन्त बड़ाई

गुरू प्रसाद उरध कमल विकासा

अन्धकार में भयो प्रकाशा

जो कुछ किया सो गुरू ते जाना

गुरू कृपा ते मुकुट मन माना

गुरू कर्ता गुरू करने जोग

गुरू परमेश्वर है भी होग

कह नानक प्रभु एहो जनाई

बिनु गुरू मुकति ना पायो भाई

जाके मन मे गुरू की प्रतिति

तिस जन पावे प्रभु पद प्रति

कह नानक ताका पुरन भाग

गुरू चरणी जाका मन लाग

Friday, March 24, 2023

एक आवश्यक सूचना है।*

 Ra Dha Sva Aah Mi


*एक आवश्यक सूचना है।*


हिंदी प्रेम प्रचारक एवं दयालबाग हेराल्ड का प्रिंट कॉपी जो पोस्ट से आता था अब वो ऑन लाइन ही मिलेगा। 


इसके लिए वेबसाइट

www.dayalbagh.org.in

मे "weekly periodicals" मे क्लिक करें , google फॉर्म भरें वा राशि online जमा कर दें। 


सालाना राशि केवल ₹30/- होगी। 


यदि किसी ने हार्ड कॉपी के लिए राशि जमा कर चुके हैं, वे उस राशि को इसमें कनवर्ट करा सकते हैं। 


E- प्रेम प्रचारक / E- हेराल्ड के फायदे:

1. राशि ₹30/-  (हार्ड कॉपी का ₹45/- था) 

2. कोई पोस्टल विलंब नही होगा





सभी से निवेदन है की वे इस कार्य को अति शीघ्र कर लें। 

Rs।

Thursday, March 23, 2023

~प्रेत श्राप~

 * 


जन्म-पत्रिका के किसी भी भाव में शनि-राहू या शनि-केतू की युति हो तो प्रेत श्राप का निर्माण करती है | शनि-राहू या शनि-केतू की युति भाव के फल को पूरी तरह बिगाड़ देती है तथा दलदललाख यत्न करने पर भी उस भाव का उत्तम फल प्राप्त नहीं होता है |वह चाहे धन का भाव हो, सन्तान सुख, जीवन साथी या कोई अन्य भाव | भाग्य हर कदम पर रोड़े लेकर खड़ा सा दिखता है जिसको पार करना बार-बार की हार के बाद जातक के लिए अत्यन्त कठिन होता है | शनि + राहू = प्रेत श्राप योग यानि ऐसी घटना जिसे अचनचेत घटना कहा जाता है अचानक कुछ ऐसा हो जाना जिसके बारे में दूर दूर तक अंदेशा भी न हो और भारी नुक्सान हो जाये |  इस योग के कारण एक के बाद एक मुसीबत बडती जाती है यदि शनि या राहू में से किसी भी ग्रह की दशा चल रही हो या आयुकाल चल रहा हो यानी 7 से 12 या  36 से लेकर 47 वर्ष तक का समय हो तो मुसीबतों का दौर थमता नही है |


कई बार ऐसा भी होता है किसी शुभ या योगकारी ग्रह की दशा काल हो और शनि + राहू रूपी प्रेत श्राप योग की दृष्टि का दुष्प्रभाव उस ग्रह पर हो जाये तो उस शुभ ग्रह के समय में भी मुसीबतें पड़ती हैं जिस पर अधिकतर ज्योतिष गण ध्यान नही देते परन्तु पूर्व जन्म के दोषों में इसे शनि ग्रह से निर्मित  पितृ दोष कहा जाता है इस दोष का निवारण भी घर में सन्तान के जन्म लेते ही ब्राह्मण की सहायता से करवा लेना चाहिए अन्यथा मकान सम्बन्धी परेशानियाँ शुरू हो जाती है | प्रापर्टी बिकनी शुरू हो जाती है | कारखाने बंद हो जाते हैं  | पिता पर कर्जा चड़ना शुरू हो जाता है | नौकरी पेशा  हो कारोबारी संतान के प्रेत श्राप योग के कारण बाप का काम बंद होने के कगार पर पहुंच जाता है | ऐसे योग वाले के घर में निशानी होती है की जगह जगह दरारें पड़ना | सफाई के बावजूद भी  गंदी बदबू आते रहना|घर में से जहरीले जीव जन्तु निलकना बिच्छू - सांप आदि|इसलिए ये प्रेत श्राप योग भारी मुसीबतें ले कर आता है और इस योग के दशम भाव पर प्रभाव के कारण ही चलते हुए काम बंद हो जाते हैं |


सप्तम भाव पर प्रभाव के कारण ही  शादिया टूट जाती है | अष्टम भाव पर इसका प्रभाव हो तो जातक पर जादू – टोना जैसा अजीब सा  प्रभाव रहता है और दर्द नाक मौत होती है  | नवम भाव  में हो तो भाग्य हीनता ही रहती है | एकादश भाव में हो तो  मुसीबतों से लड़ता लड़ता इंसान हार कर बैठ जाता है मेहनत के बाद भी फल नही पाता आदि कुंडली के सभी भावों में इसका बुरा प्रभाव  रहता है |


ज्योतिष कोई जादू की छड़ी नहीं है ! ज्योतिष एक विज्ञानं है ! ज्योतिष में जो ग्रह आपको नुकसान करते है, उनके प्रभाव को कम कर दिया जाता है और जो ग्रह शुभ फल देता है, उनके प्रभाव को बढ़ा दिया जाता है !हमारे ज्योतिष आचार्यो ने शनि को छेवे आठवे दशवे और बारवे भाव का पक्का कारक माना है जबकि राहु एक छाया ग्रह है !एक मान्यता के अनुसार राहु और केतु का फल देखने के लिए पहले शनि को देखा जाता है क्योंकि यदि शनि शुभ फल दे रहे हो तो राहु और केतु अशुभ फल नहीं दे सकते और यह भी माना जाता है कि शनि का शुभ फल देखने के लिए चंद्रमा को देखा जाता है ! कहने का भाव यह है कि प्रत्येक ग्रह एक दुसरे पर निर्भर है ! इन सभी ग्रहों में शनि का विशेष स्थान है ! शनि से मकान और वाहन का सुख देखा जाता है साथ ही इसे कर्म स्थान का कारक भी माना जाता है,यह चाचा और ताऊ का भी कारक है ! राहु को आकस्मिक लाभ का कारक माना गया है ! राहु से कबाड़ का और बिजली द्वारा किये जाने वाले काम को देखा जाता है !


राहु का सम्बन्ध ससुराल से होता है अगर ससुराल से दुखी है तो राहु ख़राब चल रहा है ! ज्योतिष का मानना है कि राहु और केतु जिस भी ग्रह के साथ आ जाते है वो ग्रह दुषित हो जाता है और शुभ फल छोड़ देता है ! यदि शनि और राहु एक साथ एक ही भाव में आ जाये तो व्यक्ति को प्रेत बाधा आदि टोने टोटके बहुत जल्दी असर करते है क्योंकि शनि को प्रेत भी माना जाता है और राहु छाया है ! इसे प्रेत छाया योग भी कहा जाता है पर सामान्य व्यक्ति इसे पितृदोष कहता है ! एक कथा के अनुसार जब हनुमान जी ने राहु और केतु को हाथो में पकड़ लिया था और शनि को पूँछ में तब शनि महाराज ने कहा था आज जो हमें इस बालक से छुड़ा देगा उसे हम जीवन में कभी परेशान  नहीं करेगे यदि किसी की कुंडली में यह तीनो ग्रह परेशान कर रहे हो तो एक साबर विधि से इन्हें हनुमान जी से छूडवा दिया जाता है ! फिर यह जीवन भर परेशान नहीं करते यदि राहु की बात की जाये तो राहु जब भी मुशकिल में होता है तो शनि के पास भागता है !


राहु सांप को माना गया है और शनि पाताल  मतलब धरती के नीचे सांप धरती के नीचे ही अधीक निवास करता है ! इसका एक उदहारण यह भी है कि यदि किसी चोर या मुजरिम राजनेता रुपी राहु पर मंगल रुपी पुलीस या सूर्य रुपी सरकार का पंजा पड़ता है तो वे अपने वकील  रुपी शनि के पास भागते है ! सीधी बात है राहु सदैव शनि पर निर्भरकरता है पर जब शनि के साथ बैठ जाता है तो शनि के फल का नाश कर देता है ! यह सब पुलीस वकील आदि किसी न किसी ग्रह के कारक है !


शनि देव उस व्यक्ति को कभी बुरा फल नहीं देते जो मजदूरों और फोर्थ क्लास लोगो का सम्मान करता है क्योंकि मजदूर शनि के कारक है ! जो छोटे दर्जे के लोगो का सम्मान नहीं करता उसे शनि सदैव बुरा फल ही देते है !


आप अपनी कुंडली ध्यान से देखे अगर आपकी कुंडली में भी राहु और शनि एक साथ बैठे है तो यह उपाय करे ! हररोज मजदूरों को तम्बाकु की पुडिया दान दे ! ऐसा 43 दिन करे आपको कभी यह योग बुरा फल नहीं देगा क्योंकि मजदूर रुपी शनि है और तम्बाकु राहु है, जब मजदूर रुपी शनि तम्बाकु को खायेगा तो अच्छा तम्बाकु ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर थुक देगा ! सीधी बात है शनि अच्छा राहु ग्रहण कर लेगा और बुरा राहु बाहर थुक देगा ! आप यह उपाय जरूर कीजिये मैने हजारो लोगो पर इस उपाय को आजमाया है !  प्राचीन ग्रामीण कहावतें भी ज्योतिष से अपना सम्बन्ध रखने वाली मानी जाती थी, जिनके गूढ अर्थ को अगर समझा जाये तो वे अपने अपने अनुसार बहुत ही सुन्दर कथन और जीवन के प्रति सावधानी को उजागर करती थी। इसी प्रकार से एक कहावत इस प्रकार से कही जाती है- " मंगल  मगरी,  बुद्ध  खाट,  शुक्र  झाडू बारहबाट, शनि कल्छुली रवि कपाट, सोम की लाठी फ़ोरे टांट ",  यह कहावत भदावर से लेकर चौहानी तक कही जाती है। इसे अगर समझा जाये तो मंगलवार को राहु का कार्य घर में छावन के रूप में चाहे वह छप्पर के लिये हो या छत बनाने के लिये हो, किसी प्रकार से टेंट आदि लगाकर किये जाने वाले कार्यों से हो या छाया बनाने वाले साधनों से हो वह हमेशा दुखदायी होती है। शुक्रवार को राहु के रूप में झाडू अगर लाई जाये, तो वह घर में जो भी है उसे साफ़ करती चली जाती है। शनिवार के दिन लोहे का सामान जो रसोई में काम आता है लाने से वह कोई न कोई बीमारी लाता ही रहता है, रविवार को मकान दुकान या किसी प्रकार के रक्षात्मक उपकरण जो किवाड गेट आदि के रूप में लगाये जाते है वे किसी न किसी कारण से धोखा देने वाले होते है, सोमवार को लाया गया हथियार अपने लिये ही सामत लाने वाला होता है।* 


शनि राहु की युति के लिये भी कई बाते मानी जाती है, शनि राहु अगर अपनी युति बनाकर लगन में विराजमान है और लगनेश से सम्बन्ध रखता है तो व्यक्ति एक शरीर से कई कार्य एक बार में ही निपटाने की क्षमता रखता है। वह अच्छे कार्यों को भी करना जानता है और बुरे कामों को भी करने वाला होता है, वह जाति के प्रति भी कार्य करता है और कुजाति के प्रति भी कार्य करता है। वह कभी तो आदर्शवादी की श्रेणी में अपनी योग्यता को रखता है तो कभी बेहद गंदे व्यक्ति के रूप में समाज में अपने को प्रस्तुत करता है। यह प्रभाव उम्र के दो तिहाई समय तक ही प्रभावी रहता है |


शनि की सिफ़्त को समझने के लिये ’कार्य’ का रूप देखा जाता है और राहु से लगन मे सफ़ाई कर्मचारी के रूप मे भी देखा जाता है तो लगन से दाढी वाले व्यक्ति से भी देखा जाता है। राहु का प्रभाव शनि के साथ लगन में होता है तो वह पन्चम भाव और नवम भाव को भी प्रभावित करता है, इसी प्रकार से अगर दूसरे भाव मे होता है तो छठे भाव और दसवे भाव को भी प्रभावित करता है, तीसरे भाव में होता है तो सातवें और ग्यारहवे भाव में भी प्रभावकारी होता है, चौथे भाव में होता है तो वह आठवें और बारहवें भाव को भी प्रभावित करता है।लगन में राहु का प्रभाव शनि के साथ होने से जातक की दाढी भी लम्बी और काली होगी तो उसके पेट में भी बाल लम्बे और घने होंगे तथा उसके पेडू और पैरों में भी बालों का घना होना माना जाता है। शनि से चालाकी को अगर माना जाये तो उसके पिता भी झूठ आदि का सहारा लेने वाले होंगे आगे आने वाले उसके बच्चे भी झूठ आदि का सहारा ले सकते है। लेकिन यह शर्त पौत्र आदि पर लागू नही होती है। मंगल के साथ शनि राहु का असर होने से जातक के खून के सम्बन्ध पर भी असरकारक होता है।


शनि राहु से मंगल अगर चौथे भाव में है तो वह जातक को कसाई जैसे कार्य करने के लिये बाध्य करता है, शनि से कर्म और राहु से तेज हथियार तथा चौथे मंगल से खून का बहाना आदि। अगर मंगल शनि राहु से दूसरे भाव में है तो जातक को धन और भोजन आदि के लिये किसी न किसी प्रकार से झूठ का सहारा लेना पडता है जातक के अन्दर तकनीकी रूप से तंत्र आदि के प्रति जानकारी होती है और अपने कार्यों में वह तर्क वितर्क द्वारा लोगों को ठगने का काम भी कर सकता है। तीसरे भाव में मंगल के होने से जातक के अन्दर लडाई झगडे के प्रति लालसा अधिक होगी वह आंधी तूफ़ान की तरह लडाई झगडे में अपने को सामने करेगा और जो भी करना है वह पलक झपकते ही कर जायेगा


पंचम भाव में मंगल के होने से जातक के अन्दर दया का असर नही होगा वह किसी भी प्रकार से तामसी कारणो को दिमाग में रखकर चलेगा और जल्दी से धन प्राप्त करने के लिये खेल आदि का सहारा ले सकता है किसी भी अफ़ेयर आदि के द्वारा वह केवल अपने लिये धन प्राप्त करने की इच्छा करेगा। छठे भाव मे मंगल के होने से जातक के अन्दर डाक्टरी कारण बनते रहेंगे या तो वह शरीर वाली बीमारियों के प्रति जानकारी रखता होगा या अपने को अस्पताल में हमेशा जाने के लिये किसी न किसी रोग को पाले रहेगा।


 इसी प्रकार से अन्य भावों के लिये जाना जा सकता है शनि, राहु, हनुमान दे इन पांच सुखों का आनंद शनि हर व्यक्ति जीवन में अनेक रुपों में सुख भोगता है। कभी अपने तो कभी परिवार के सुख की लालसा जन्म से लेकर मृत्यु तक साथ चलती है। धर्म में आस्था रखने वाला व्यक्ति इन सुखों को पाने या कमी न होने के लिए देवकृपा की हमेशा आस रखता है। हर गृहस्थ या अविवाहित जीवन में बुद्धि, ज्ञान, संतान, भवन, वाहन इन पांच सुखों की कामना जरूर करता है। यहां इन सुखों का खासतौर पर जिक्र इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि ज्योतिष विज्ञान के अनुसार जब किसी व्यक्ति की जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति बन जाती है, तब इन पांच सुखों को जरूर प्रभावित करती है। जन्म कुण्डली में यह पांच सुख चौथे और पांचवे भाव नियत करते हैं। खासतौर पर जब जन्मकुण्डली में शनि-राहु की युति चौथे भाव में बन रही हो। तब वह पांचवे भाव पर भी असर करती है। हालांकि दूसरे ग्रहों के योग और दृष्टि अच्छे और बुरे फल दे सकती है। लेकिन यहां मात्र शनि-राहु की युति के असर और उसकी शांति के उपाय पर गौर किया जा रहा है। हिन्दू पंचांग में शनिवार का दिन न्याय के देवता शनि की उपासना कर पीड़ा और कष्टों से मुक्ति का माना जाता है। यह दिन शनि की पीड़ा, साढ़े साती या ढैय्या से होने वाले बुरे प्रभावों की शांति के लिए भी जरुरी है। किंतु शनिवार का दिन एक ओर क्रूर ग्रह राहु दोष की शांति के लिए भी अहम माना जाता है। राहु के बुरे प्रभाव से भयंकर मानसिक पीड़ा और अशांति हो सकती है। इसी तरह यह दिन रामभक्त हनुमान की उपासना से संकट, बाधाओं से मुक्त होकर ताकत, अक्ल और हुनर पाने का माना जाता है। यही नहीं श्री हनुमान की उपासना करने वाले व्यक्ति को शनि पीड़ा कभी नहीं सताती है। ऐसा शास्त्रों में स्वयं शनिदेव की वाणी है। इसी तरह राहु का कोप भी हनुमान उपासना करने वालों को हानि नहीं पहुंचाता। अगर आप इन पांच सुखों को पाने में परेशानी महसूस कर रहे हो या कुण्डली में बनी शनि-राहु की युति से प्रभावित हो, तो यहां जानते हैं सुखों का आनंद लेने के लिए हनुमान भक्ति और शनि-राहु युति की दोष शांति के सरल उपाय – शनिवार की सुबह यथासंभव जितना जल्दी हो सके उठकर स्नान करें। स्वच्छ वस्त्र पहनें। एक शुद्ध जल या उसमें गंगाजल मिलाकर घर के समीप या मंदिर में स्थित पीपल के पेड़ में जाकर चढ़ाएं। पीपल की सात परिक्रमा करें। अगरबत्ती, तिल के तेल का दीपक लगाएं। समय होने पर गजेन्दमोक्ष स्तवन का पाठ करें। इस बारे में किसी विद्वान ब्राह्मण से जानकारी ले सकते हैं। इसी तरह किसी मंदिर के बाहर बैठे भिक्षुक को तेल में बनी वस्तुओं जैसे कचोरी, समोसे, सेव, पकोड़ी यथाशक्ति खिलाएं या उस निमित्त धन दें। श्री हनुमान की प्रतिमा के सामने एक नारियल पर स्वस्तिक बनाकर अर्पित कर दें।


समयाभाव होने पर यह तीन उपाय न केवल आपकी मुसीबतों को कम करते हैं,बल्कि जीवन को सुखी और शांति से भर देते हैं। किंतु समय होने पर शनिवार के दिन शनिदेव, श्री हनुमान और राहू पूजा की पंचोपचार पूजा और विशेष सामग्रियों को अर्पित करें। शनि मंत्र ऊँ शं शनिश्चराये नम: और राहू मंत्र ऊँ रां राहुवे नम: का जप करें। हनुमान चालीसा का पाठ भी बहुत प्रभावी होता है। शनि मंदिर में जाकर लोहे की वस्तु चढाएं या दान करें, तिल का तेल का दीप जलाएं। तेल से बने पकवानों का भोग लगाएं। श्री हनुमान को गुड़, चना या चूरमें का भोग लगाएं। सिंदूर का चोला चढाएं। राहु की प्रसन्नता के लिए तिल्ली की मिठाईयां और तेल का दीप लगाएं।


प्रेत श्राप का अनुभूत उपाय निम्न प्रकार हैं जिनसे जातक लाभान्वित हो सकते हैं – शुक्रवार रात्री को तकिये के नीचे एक रुपया का सिक्का रखकर सोएँ तथा सुबह उठकर उस सिक्के को शमसान में बाहर से फेंक दें | शनिवार से प्रारम्भ कर 11 लौंग अपने ऊपर से सात बार उल्टा वारकर आग में 11 दिन तक लगातार जलायें | सिन्दूर तथा राई को सिर से सात बार वारकर 11 दिन तक जलायें | काले कुत्ते को चार माह तक दूध, ब्रेड या रोटी खिलाएँ | पीपल के पेड़ की सात परिक्रमा ‘ॐ श शनैश्चराये नमः’, ‘ॐ रां राहवे नमः’ मंत्र का काली हकीक की माला से जाप करते हुये करें | हनुमान चालीसा पढ़े तथा तिल्ली के तेल की मिठाई का भोग लगाएँ | दीप जलाकर शनि व राहू की आरती करें | मन्दिर के बाहर बैठे भिक्षुक को कचौड़ी, समोसे या नमकीन भुजिया खिलाएँ 

 शनिवार को सरसों के तेल की मालिश करें | मन्दिर तक सवारी से न जाकर पैदल ही जाएँ | पश्चिम दिशा की ओर मुख करके, काले आसान पर बैठकर सूर्योदय से पहले ‘ॐ ऐं ह्रीं राहवे नमः’तथा सूर्योदय के बाद ‘ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्रेष्ठायः नमः’मंत्र का जाप काले हकीक की माला से तीन माला जाप करें | शनि के साथ केतु  केतु चंद्रमा के दक्षिण नोड सिर के बिना एक शरीर है. इस समग्र दुनिया में जुदाई, अलगाव, आध्यात्मिकता, अहित का प्रतिनिधित्व करता है |

 

राहु बातें करना चाहता है और केतु बातें नहीं करना चाहता | केतु कर्म है, राहु और केतु किसी भी ग्रहों के साथ बैठता है जब भी, हमारे अवचेतन मन में हताशा देकर आध्यात्मिक विकास प्रस्तुत करते हैं |   शनि कर्म, सीमाओं, सीमाओं, हीन भावना और जिम्मेदारी का ग्रह है यह राशि चक्र बेल्ट में 10 वीं, 11 वीं घर पर राज | ये घर जिम्मेदारी, वाहक, प्रतिष्ठा, उच्च महत्वाकांक्षा, धन, सामाजिक नेटवर्क का मुख्य घर हैं और आदि शनि जीवन में ग्रह सामग्री दुनिया और व्यावहारिकता है | शनि पुराने लोगों, श्रम वर्ग प्लम्बर की तरह हाथ से काम करते हैं, या इमारतों में काम करने वाले उन लोगों पर सहमत, हताशा का ग्रह है |  दोनों ग्रह की प्रकृति, कुंठा, जीवन में असंतोष, असहमत और चीजों के इनकार में चिंतित, दर्दनाक अनुभव में गंभीर की हैं |


शनि के साथ केतु - जीवन में कुछ दुख का उत्पादन | केतु अध्यात्मवाद का ग्रह है और शनि ग्रह चुप्पी या ध्यान है | इसलिए केतु लोगों को परमात्मा के स्रोत के साथ कनेक्ट करने के लिए अद्वितीय क्षमता है, वे मन की शांति हासिल कर सकते है. उपाय  केतु बाधा का ग्रह है | भगवान गणेश केतु का देवता है | भगवान गणेश से केतु के द्वारा बनाई गई बाधा को दूर करने के लिए पूजा करनी चाहिए | शनि के लिए भगवान हनुमान की पूजा करनी चाहिए तथा रुद्राभिषेक कराना चाहिए एवं पलाश विधि से प्रेत मुक्ति के लिए नारायण बलि करना चाहिए

Sunday, March 19, 2023

❤ छोटी बहु / कृष्ण मेहता

 💔



 मान्यता है ठाकुर जी से यदि प्रेम करना हो तो उनसे कोई न कोई सम्िबन्ध स्थापित कर लो, ऐसा ही एक सम्बन्ध ठाकुर जी से जोड़ा बाबा विट्टल दास किशोरी जी ने, बाबा ठाकुर जी के अनन्य भक्त थे। बाबा हर वक्त उनकी निकुंज लीलाओं का ही स्मरण किया करते थे एवं किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर बात नहीं किया करते थे क्योंकि उन्हें लगता था कि किसी भी सांसारिक व्यक्ति से ज्यादा देर तक बोलना ठाकुर जी से ध्यान हटाने के बराबर है इसलिए हमेशा आंख मूंदे श्री राधा कृष्ण की युगल छवि का ध्यान करते थे।


बाबा श्री कृष्ण भगवान को पुत्र भाव से मानते थे और हमेशा उन्हें मेरा लाला और किशोरी जी को मेरी लाडली कहकर पुकारते थे। एक दिन बाबा विट्टलदास जी अपने घर के बाहर बैठे किशोरी जी का ध्यान कर रहे थे। तभी एक चूड़ी बेचने वाली आती है बाबा उसे बुलाते है और कहते है,"कि जा अन्दर जाकर मेरी बहूओं को चूड़ी पहना कर आ और जो पैसे हो वो मुझसे आकर ले लेना।"


तब चूड़ी बेचने वाली अंदर चली गय देर बाद बाहर आई और बोली,"बाबा 8 रुपये हुए?"


बाबा ने पूछा,"8 रुपये कैसे हुए?"


चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा तुम्हारी 8 बहुएं थी और हर एक को मैंने 1 रुपये की चूड़ी पहनाई।"


लेकिन बाबा बोले,"मेरे तो 7 बेटे हैं और उनकी 7 बहुएं है फिर ये 8 बहुएं कैसे?"


चूड़ी बेचने वाली ने कहा,"बाबा मैं तुझसे झूठ क्यों बोलूंगी?"


अब बाबा का ज्यादा बहस करने का मन नहीं था उन्हें लगा की अब इससे बहस करूंगा तो ठाकुर के ध्यान में विघ्न पड़ेगा इसलिए उन्होंने उस मनिहारिन को 8 रुपये ही देकर विदा कर दिया और अपने युगल सरकार का ध्यान करने लगे लेकिन उन्हें मन ही मन इस बात का दु:ख था की चूड़ी बेचने वाली ने झूठ बोलकर उनसे ज्यादा पैसे ले लिए थे क्योंकि पूरे गांव में बाबा जी से कोई भी झूठ न बोलता था।


वो इसी बात की चिंता में थे कि मुझसे उस चूड़ी बेचने वाली ने झूठ क्यों कहा? रात्रि में बाबा को सोते हुए स्वप्न में किशोरी जी आती है और कहती है,"बाबा!ओ बाबा!"


बाबा मंत्रमुग्ध हो कर किशोरी जी को प्रणाम करते है।


तब किशोरी जी कहती है कि, " बाबा तू ठाकुर जी को अपना पुत्र मानते हो ?"


बाबा बोले,"ठाकुर जी तो मेरे बेटे है मेरा लाला है वो तो।"


तब किशोरी जी कहती है,"यदि ठाकुर जी तुम्हारे बेटे है तो मैं भी तो तुम्हारी बहु हुई न? "


बाबा बोले,"हां हां बिलकुल बिलकुल मेरी लाली।"


फिर किशोरी जी कहती है,"फिर तुम दुखी क्यों होते हो जब चूड़ी बेचने वाली ने मुझे भी चूडियां पहना दी तो?"


तभी बाबा फूट-फूट कर रोने लग जाते है और कहते है कि,"हाय कितना अभागा हूं मैं मेरी किशोरी जी ने खुद मेरे घर आकर चूडियां पहनी और मैं पहचान भी न पाया?"


तभी किशोरी जी अंतर्धान हो जाती है और बाबा कि नींद खुल जाती है और फिर अगले दिन वो चूड़ी बेचने वाली उनके घर पर फिर से आती है और बाबा कहते है कि,"आगे से 8 जोड़ी चूडियां लेकर आना और मेरी सबसे छोटी बहु के लिए नीले रंग कि चूडियां लाना।"

धन्य है ऐसे भक्त जो किशोरी जी से, ठाकुर जी से अपना सम्बन्ध स्थापित करते है और उसे पूरी तरह से निभाते है।

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🙏परम गुरु हुजूर मेहताजी महाराज- भाग 2- बचन - 38:-

 


 हमको चाहिए कि हम हुजूर राधास्वामी दयाल के चरणों में प्रार्थना करें कि वह दयाल हमारी गलतियों, अपराधों व कमजोरियों को क्षमा करें और हम पक्का इरादा करें कि आगे हम सब अच्छे कामों को करेंगे जो कि हमको करने चाहिए। कोशिश यह है कि कोई अच्छा काम हम से छूटने ना पाए। अधिकतर लोग कहते हैं कि मेरी अंतर की आँख खोल दो। अंतर की आँख खोलने का आसान अर्थ यह है कि आप में समझ और बुद्धि पैदा हो जाए और वर्तमान दशा, उसका आदर्श और दर्जा ऊँचा हो जाए जिससे कि आप बारीक, पेचीदा और मुश्किल मामलों की आसानी से हल कर सकें और होने वाली बातों के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी आपको पहले से ही हो जाए जिससे आप इस संबंध में आवश्यक कार्रवाई कर सकें।।*                                *तीसरी आँख या अंतर की आँख खोलने का एक तरीका यह भी है कि आप अपने दिल में बुरे विचार न पैदा होने दें । आपका अंतरी तार राधास्वामी दयाल के चरणों से जुड़ा रहे।" साहब इतनी विनती मोरी- लाग रहे दृढ डोरी" और व्यर्थ बातों से परहेज किया जाए। हर वक्त मालिक के चरणो की याद बनी रहे। जिनकी ऐसी दशा है या जो इस दशा को पैदा करने की कोशिश में लगे रहते हैं उनका यह  वैयक्तिक अनुभव होगा कि उनकी मुश्किलें समय से पहले या ऐन वक्त पर हल हो जाती हैं । उनको गुप्त रूप से ऐसी मदद मिलती है और इस तरह से अपनी मुश्किलें आसानी से हल होते देख कर वे हैरान हो जाते हैं ।।*       

*🙏🏻रा धा स्व आ मी 🙏

Thursday, March 16, 2023

सेवा कर्म काटने का सबसे आसान ज़रिया है

 

प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा 


श्री हुज़ूर महाराज जी के समय में एक बहुत. धनी सेवादार हुआ करते थे । सेवा की तलाश में वह हुज़ूर महाराज जी के पास आए तो हुज़ूर महाराज जी ने उन्हें कुएँ में से पानी निकाल कर प्याऊ लगाने की सेवा बक्शी🙏

सेवादार बहुत धनी था और सिर्फ सफेद कपड़े ही पहनता था लेकिन जब वो कुएँ में से पानी निकाल कर मिट्टी में चलता था तो उसकी सफेद पैंट पर कीचड़ व मिट्टी के दाग लग जाते थे

उसने सोचा कि इस सेवा से तो मेरे सफेद कपड़े गंदे हो रहे हैं तो उसने एक नौकर को इस सेवा के लिये दिहाड़ी पर रख लिया

सेवा चलती रही वो मजदूर उस धनी सेवादार के हिस्से की सेवा बड़ी खुशी से करता रहा😊


कुछ समय बाद उस अमीर सेवादार की तबियत ख़राब हो गई और उसने बिस्तर पकड़ लिया ,हालत इतनी बिगड़ गई कि बिस्तर पर लेटे हुए उसे उल्टी लग जाती कभी शौच कपड़ों म़े ही निकल जाता उसके सारे कपड़े बुरी तरह ख़राब हो जाते थे😔

श्री हुज़ूर महाराज जी उसका हाल पूछने के लिए आए तो उस सेवादार ने रोते हुए कहा हुज़ूर दया करो 😭 


श्री हुज़ूर महाराज जी ने फरमाया कि दया तो हुई थी लेकिन तुमने अपने हिस्से की दया एक मज़दूर को दे दी😞


हुज़ूर ने प्यार से पूछा कि प्याऊ की सेवा करते हुए कपड़ों पर  थोड़ी सी मिट्टी लगना ठीक था कि जो अब हो रहा है वो ठीक है👏


फिर उसे समझाया अगर तुम कुएँ से पानी लाने की सेवा में अपने सफेद कपड़े थोडे से मैले कर लेते तो तुम आज यहाँ हस्पताल में ना होते😔


हम बिल्कुल भी नहीं जानते कि सतगुरू हमारे कर्म कैसे काट रहे हैं। बस हमे तो उनके हुक़्म की पालना करनी है

ये तन भी उसका है इसे ढकने के लिए कपड़े भी उसी ने ही तो दिए हैं.

अगर सेवा करते हुए सेवादार के कपड़े मैले या गन्दे हो जायें तो इसे भी सतगुरू की मौज समझना चाहिये 

*🙏🆚राधास्वामी जी🆚🙏*

Saturday, March 11, 2023

शाम के सतसंग के बाद खेतों में हुई अनाउंसमेंट*

 *11 - 03 - 2023*



शाम  के  सतसंग  के  बाद  खेतों  में  हुई  अनाउंसमेंट* 


*ऑडियो  अटैंडी  ध्यान  दीजिए* 


*जब  कलेक्टिव  प्रेयर  यहाँ  होती  हैं, यहाँ  के  सैंट्रल  सतसंग  के  टाइमिंग  से  और  इनटर्नेशनली  जो  हैं, उन्हीं  के  हक  में  मॉर्निंग व  इवनिंग  का  टाइमिंग  ३  बजे  से  ७  बजे  का  रखा  हैं। जबकि ये  कठिन  टाइम  हैं  यहाँ  के  लिए, तब  भी  आप  लोगों  को  फैसिलिटेट  करने  को,  आप  लोगों  के  फायदे  के  लिए  टाइम  ऐसा  रखा  गया  हैं, कि  आप  लोग  उसको  अटेंड  करे, लेकिन  आप  लोग  ऐसा  नहीं  कर  रहे  हैं।  अगर  आप  कलेक्टिव  प्रेयर  में  शामिल  होंगे, तो  उसका  ज्यादा  फायदा  होगा।  ऐसे  ही  संत  सुपरमैन  भी,  उनको  भी  लाइए  साथ  में  ऑडियो  में  भी  व  वीडियो  में  भी।*

 

*रा-धा-स्व-आ-मी*

राम की शक्तिपूजा


राम की शक्तिपूजासूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' द्वारा रचित [1] काव्य है। निराला जी ने इसका सृजन २३ अक्टूबर १९३६ को सम्पूर्ण किया था। कहा जाता है कि इलाहाबाद(प्रयागराज) से प्रकाशित दैनिक समाचारपत्र 'भारत' में पहली बार 26 अक्टूबर 1936 को उसका प्रकाशन हुआ था। इसका मूल निराला के कविता संग्रह 'अनामिका' के प्रथम संस्करण में छपा।

यह कविता ३१२ पंक्तियों की एक ऐसी लम्बी कविता है, जिसमें निराला जी के स्वरचित छंद 'शक्ति पूजा' का प्रयोग किया गया है। चूँकि यह एक कथात्मक कविता है, इसलिए संश्लिष्ट होने के बावजूद इसकी सरचना अपेक्षाकृत सरल है। इस कविता का कथानक प्राचीन काल से सर्वविख्यात रामकथा के एक अंश से है। इस कविता पर वाल्मीकि रामायण और तुलसी के रामचरितमानस से कहीं अधिक बांग्ला के कृतिवास रामायण का प्रभाव देखा जाता है। किन्तु कृतिवास और राम की शक्ति पूजा में पर्याप्त भेद है। पहला तो यह की एक ओर जहां कृतिवास में कथा पौराणिकता से युक्त होकर अर्थ की भूमि पर सपाटता रखती है तो वही दूसरी ओर राम की शक्तिपूजा में कथा आधुनिकता से युक्त होकर अर्थ की कई भूमियों को स्पर्श करती है। इसके साथ साथ कवि निराला ने इसमें युगीन-चेतना व आत्मसंघर्ष का मनोवैज्ञानिक धरातल पर बड़ा ही प्रभावशाली चित्र प्रस्तुत किया है।

निराला बाल्यावस्था से लेकर युवाववस्था तक बंगाल में ही रहे और बंगाल में ही सबसे अधिक शक्ति का रूप दुर्गा की पूजा होती है। उस समय शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार भारत देश के राजनीतज्ञों , साहित्यकारों और आम जनता पर कड़े प्रहार कर रही थी। ऐसे में निराला ने जहां एक ओर रामकथा के इस अंश को अपनी कविता का आधार बना कर उस निराश हताश जनता में नई चेतना पैदा करने का प्रयास किया और अपनी युगीन परिस्थितियों से लड़ने का साहस भी दिया।

यह कविता कथात्मक ढंग से शुरू होती है और इसमें घटनाओं का विन्यास इस ढंग से किया गया है कि वे बहुत कुछ नाटकीय हो गई हैं। इस कविता का वर्णन इतना सजीव है कि लगता है आँखों के सामने कोई त्रासदी प्रस्तुत की जा रही है।

इस कविता का मुख्य विषय सीता की मुक्ति है राम-रावण का युद्ध नहीं। इसलिए निराला युद्ध का वर्णन समाप्त कर यथाशीघ्र सीता की मुक्ति की समस्या पर आ जाते हैं।

राम की शक्तिपूजा का एक अंश-

रवि हुआ अस्त, ज्योति के पत्र पर लिखा
अमर रह गया राम-रावण का अपराजेय समर।
आज का तीक्ष्ण शरविधृतक्षिप्रकर, वेगप्रखर,
शतशेल सम्वरणशील, नील नभगर्जित स्वर,
प्रतिपल परिवर्तित व्यूह भेद कौशल समूह
राक्षस विरुद्ध प्रत्यूह, क्रुद्ध कपि विषम हूह,
विच्छुरित वह्नि राजीवनयन हतलक्ष्य बाण,
लोहित लोचन रावण मदमोचन महीयान,
राघव लाघव रावण वारणगत युग्म प्रहर,
उद्धत लंकापति मर्दित कपि दलबल विस्तर,
अनिमेष राम विश्वजिद्दिव्य शरभंग भाव,
विद्धांगबद्ध कोदण्ड मुष्टि खर रुधिर स्राव,
रावण प्रहार दुर्वार विकल वानर दलबल,
मुर्छित सुग्रीवांगद भीषण गवाक्ष गय नल,
वारित सौमित्र भल्लपति अगणित मल्ल रोध,
गर्जित प्रलयाब्धि क्षुब्ध हनुमत् केवल प्रबोध,
उद्गीरित वह्नि भीम पर्वत कपि चतुःप्रहर,
जानकी भीरू उर आशा भर, रावण सम्वर।
लौटे युग दल। राक्षस पदतल पृथ्वी टलमल,
बिंध महोल्लास से बार बार आकाश विकल।
वानर वाहिनी खिन्न, लख निज पति चरणचिह्न
चल रही शिविर की ओर स्थविरदल ज्यों विभिन्न।

'राम की शक्तिपूजा' की कुछ अन्तिम पंक्तियाँ देखिए-

"साधु, साधु, साधक धीर, धर्म-धन धन्य राम !"
कह, लिया भगवती ने राघव का हस्त थाम।
देखा राम ने, सामने श्री दुर्गा, भास्वर
वामपद असुर स्कन्ध पर, रहा दक्षिण हरि पर।

ज्योतिर्मय रूप, हस्त दश विविध अस्त्र सज्जित,

मन्द स्मित मुख, लख हुई विश्व की श्री लज्जित।
हैं दक्षिण में लक्ष्मी, सरस्वती वाम भाग,
दक्षिण गणेश, कार्तिक बायें रणरंग राग,
मस्तक पर शंकर! पदपद्मों पर श्रद्धाभर
श्री राघव हुए प्रणत मन्द स्वरवन्दन कर।

“होगी जय, होगी जय, हे पुरूषोत्तम नवीन।”
कह महाशक्ति राम के वदन में हुई लीन।

Thursday, March 9, 2023

रोजाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*

 *रा धा स्व आ मी!*



 *प्रस्तुति - नवल किशोट प्रसाद /  कुसुम रानी सिन्हा 


 

*08-03-23-आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-आज प्रात:काल से आगे:-*



 *(17.5.31-आदित्य)* 


                                                                                                  

*अमृतसर से एक सतसंगी ने एक गुरुमुखी इश्तहार भेजा है। जिससे जाहिर होता है कि अकाली सिख सरदार सावन सिंह के खिलाफ़ ज़बरदस्त प्रोपेगण्डा कर रहे हैं इस माह के आखिर में यह लोग व्यास सतसंग के मुक़ाबिल (समान) अपना तीसरा दीवान या जलसा मुनअक़िद (आयोजित) करेंगे जिसमें मास्टर आत्मासिंह साहब व बाबा बसाखा सिंह साहब तक़रीरें (व्याख्यान) करेंगे। वैसे अकाली भाई जो चाहें सो कहें लेकिन अगर बनजरे इन्साफ़ (न्याय की दृष्टि  से) देखा जावे तो सरदार सावन सिंह साहब उन्हीं का काम कर रहे हैं। क्योंकि वह मुतलाशी‍ (जिज्ञासु) सिखों को रा धा स्व आ मी मत की असली तालीमे कुलाह (शीर्ष की शिक्षा) से रोककर ग्रन्थ साहब की पूजा व बाहरमुखी रस्मियात (रीतियों) की टेक में लगा रहे हैं। सरदार साहब का अगर क़सूर है तो इस क़दर कि वह सिखों की सब कार्रवाइयां करते हुये वक़्तन-फवक़्तन (समय समय से) स्वामी जी महाराज की मुक़द्दस (पवित्र) पुस्तक का पाठ करते हैं और स्वामीजी महाराज को सन्त मानते हैं। मगर अकाली भाइयों के इस क़दर भड़कन दिखलाने के लिये यह काफ़ी वजह नहीं है क्योंकि नामधारी सिख भी तो दस गुरु साहबान के अलावा गुरुओं में एतकाद (विश्वास) रखते हैं और उन्हें कुछ नहीं कहा जाता। मालूम होता है कि ब्यास के सतसंग की रौनक बढ़ रही है और आसपास के मवाजियात (गाँवों) में रहने वाले अकालियों  से यह रौनक बर्दाश्त नहीं होती है।* 

       


  


*🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*

Wednesday, March 8, 2023

🌹🌹 मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*🌹🌹🌹🌹                                                              

 परम श्रद्धेय परम प्रिय ग्रैशस हुज़ूर जी का पावन पवित्र जन्मदिन-(9 मार्च 1937) की समस्त सतसंग जगत व प्राणी मात्र को बहुत बहुत बधाई  हो।

🌹🌹🌹🌹*


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*मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*तेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*सबके तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*मेरे तो,तेरे तो, सबके तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*धार नरदेह हुए प्रगट,परम पुरुष सोई।*

*मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*दया दृष्टि डारी मो पै, प्रेम बेल बोई।*

*अब तो बेल फैल गई, आनंद फल देई।*

*मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*छांड़ि दई मन की मानी, सुमिरन लीन होई।*

*सतगुरु ढिंग बैठि* *बैठि,जनम सुफल कियो री"*

*मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*चरनन में दीनी ठौर,भाग मोर जगो री*

*हाथ निज धरा सिर पर,तार लियो मोही*

*मेरे तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई।*

*मेरे तो, तेरे तो, सबके तो राधास्वामी दयाल, दूसरो न कोई !!*

*शब्दार्थ:-* 

*डारि मो पै-डाली मुझ पर*

*छांड़ि दई - छोड़ दी*

*ढिंग - पास, निकट*

*दीनी - दी* 

*ठौर - ठिकाना, आश्रय*

*मोर - मेरा*

*तार - तारण, पार उतार दिया, ( उद्धार कर दिया)                                                    

   🙏🏻राधास्वामी🙏🏻*


*🌹🌹       

                                                

        राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफल कर ले।                                                                                       राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।                              

  राधास्वामी सुमिरन ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।।                           

  राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफल कर ले।                                 

   राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतर कर ले।                                                                                    राधास्वामी सुमिर सुमिर ध्यान भजन से। जनम सुफलतम कर ले।                                

राधास्वामी सुमिर सुमिर रुनझुन शब्द सुनाई हो। 

 सुमिर सुमिर रुनझुन शब्द सुनाई हो।।                                                      🌹🌹*

रा धा स्व आ मी! 09032022

 *रा धा स्व आ मी!                                                                             

 09-03-2023-आज सुबह सतसंग में पढे गये शब्द पाठ:-                                                       (1) आज घड़ी  अति पावन भावन। रा धा स्व  आ मी आये जक्त चितावन।।(सारबचन- शब्द-4- पृ.सं.556)(अधिकतम् उपस्थिति-करनाल ब्राँच हरियाणा- @-3:15-दर्ज-274)                                                                      (2) मेरे हिये में बजत बधाई । संत सँग पाया रे।।(प्रेमबानी-3- शब्द-1- बचन-13- पृ.सं.176)(स्वामीनगर मोहल्ला)                                                                                                                                                                                                                                                                                                                                    

सतसंग के बाद:-     


                               

  (1)-रा धा स्व आ मी मूल नाम।                                                                

(2)-हे दयाल सद् कृपाल!                                                                                             

 (3)-रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी रा धा स्व आ मी!                                                                                                                                                                                                                                               

 🙏🏻रा धा स्व आ मी🙏🏻*. 



सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ

  प्रस्तुति - रामरूप यादव  सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्...