Sunday, February 25, 2024

बैकुंठ धाम पर भंडारे / डॉ.स्वामी प्यारी कौड़ा के दिन*

 *🙏🙏🙏🙏🙏



तेरे सजदे में सर झुका रहे,

 यह आरज़ू अब दिल में है।

 हर हुक्म की तामील करें,

 बस यह तमन्ना अब मन में है।।


तेरी आन बान शान निराली है ,

यह नज़ारा हमने देख लिया।

बैकुंठ धाम पर यमुना तीरे,

 तेरा जलवा हमने देख लिया।।


रूहानियत का आलम था,

रौनकों का अजब शोर था।

हंसते खिलखिलाते प्रेमियों से,

 मजमा सराबोर था।


दाता जी की तशरीफ़ आवरी से,

कण-कण में चेतनता छा गई।

यमुना की लहरें मचलने लगीं,

 हर गुल पर रौनक आ गई।।


संगीत की स्वर लहरियों पर,

थिरकती सुपरमैनों की टोलियां।

 दाता दयाल की दया दृष्टि पा

 भर रहीं थीं प्रेम की झोलियां।।


दया और मेहर का अजब नज़ारा,

 यमुना के तट पर था।

 सैकड़ो प्रेमियों का प्रेम  रंग,

 थिरक रहा यमुना जल पर था।।


शहंशाहों के शहंशाह यमुना तट पर विराजमान थे।

 प्रेमियों के झुंड के झुंड उनके चरणों पर कुर्बान थे।।


बैकुंठ धाम का अनुपम नज़ारा हम ने यहां देख लिया।

 सोते जगते हर वक्त ऊष्मा पा, निज धाम हमने पा लिया।।


स्याही रंग छुड़ाकर दाता ने, रंग दिया मजीठे रंग में।

कल करम से हमें बचा, प्रेम सरन दे बिठा लिया गोद में।।


सर पर धरा हाथ दया का, चिंता अब किस बात की।

 प्रेम रंग में जब रंग डाला ,अब फिक्र नहीं दिन-रात की।।



 *डॉक्टर स्वामी प्यारी कौड़ा* 

 4/64 विद्युत नगर

दयालबाग,आगरा 

 *25 फरवरी 2024

Monday, February 5, 2024

मौन और मुस्कान

 *प्रस्तुति - नवल किशोर प्रसाद / कुसुम सिन्हा 


मैं मौमु सेठ के बारे में बहुत तो नहीं जानता, पर इतना तो जानता ही हूँ कि वह पहले से ही सेठ नहीं था। वह तो एक गरीब आदमी था, झन्नु उसका नाम था।


झन्नु हमेशा झन्नाया रहता। बिना बात का झगड़ा करना तो उसके स्वभाव में ही था।


किसी ने पूछ लिया कि *झन्नु भाई टाईम क्या हुआ होगा?* तो झन्नु झनझना जाता और कहता- *यह घड़ी तेरे बाप ने ले कर दी है? यहाँ टाईम पहले ही खराब चल रहा है, तूं और आ गया मेरा टाईम खाने। भाग यहाँ से।*


अब ऐसे आदमी के साथ कौन काम करे? न उसके पास कोई ग्राहक टिकता, न नौकर। यही कारण था कि वो जो भी काम करता था, उसमें उसे नुकसान ही होता था।


कहते हैं कि एक संत एक बार झन्नु के पास से गुजरे। वे कभी किसी से कुछ माँगते नहीं थे, पर न मालूम उनके मन में क्या आया, सीधे झन्नु के सामने आ खड़े हुए। बोले- *बेटा! संत को भोजन करा देगा?"*


अब झन्नु तो झन्नु ही ठहरा। झन्ना कर बोला- *"मैं खुद भूखे मर रहा हूँ, तूं और आ गया। चल चल अपना काम कर।"*


संत मुस्कुराए और बोले- *"मैं तो अपना काम ही कर रहा हूँ, बिल्कुल सही से कर रहा हूँ। तुम ही अपना काम सही से नहीं कर रहे।"*


झन्नु झटका खा गया। उसे ऐसे उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पूछने लगा- *"क्या मतलब?"*


संत उसके पास बैठ गए। बोले- *"बेटा मालूम है तुम्हारा नाम झन्नु क्यों है? क्योंकि झन्नाया रहना और नुकसान उठाना, यही तुम करते आए हो।अगर तुम अपना स्वभाव बदल लो, तो तुम्हारा जीवन बदल सकता है। मेरी बात मानो तो चाहे कुछ भी हो जाए, खुश रहा करो।"*


झन्नु बोला- *"महाराज! खुश कैसे रहूँ? मेरा तो नसीब ही खराब है।"*


संत बोले- *"खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, खुशनसीब वह है जो अपने नसीब से खुश है। तुम खुश रहने लगो तो नसीब बदल भी सकता है। तुम नहीं जानते कि कामयाब आदमी खुश रहे न रहे, पर खुश रहने वाला एक ना एक दिन कामयाब जरूर होता है।"*


झन्नु बोला- *"महाराज! दुनिया बड़ी खराब है और मेरा ढंग ही ऐसा है कि मुझसे झूठ बोला नहीं जाता।"*


संत बोले- *"झन्नु! झूठ नहीं बोल सकते पर चुप तो रह सकते हो? तुम दो सूत्र पकड़ लो। मौन और मुस्कान। मुस्कान समस्या का समाधान कर देती है। मौन समस्या का बाध कर देता है। चाहे जो भी हो जाए, तुम चुप रहा करो, और मुस्कुराया करो। फिर देखो क्या होगा?"*


*झन्नु को संत की बात जंच गई। और भगवान की कृपा से उसका स्वभाव और भाग्य दोनों बदल गए। फल क्या मिला? समय बदल गया, झन्नु मौन और मुस्कान के सहारे चलते चलते मौमु सेठ बन गया।*




*शुभ प्रभात। 🙏🙏🙏


आज का दिन आपके लिए शुभ एवं मंगलकारी हो।*

❤️🌹💐👌🙏👍


 

Friday, February 2, 2024

रोज़ाना वाकिआत-



रा धा/ध: स्व आ मी!       

                             

  02-02-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन-

कल से आगे:-

 (12.1.32 का दूसरा व शेष भाग)-

 रात के सतसंग में ब्रह्मा (बर्मा) के एक सतसंगी ने सवाल किया कि मन कभी तो बडा प्रेम दिखलाता है कभी खुश्क (सूखा) हो जाता है कभी बडा श्रद्धावान हो जाता है कभी मुखालिफत (विरोध) करने लगता है। इसकी क्या वजह है? जवाब दिया गया- इसकी वजह मन की चंचलता व मलिनता है। जब तक किसी के मन के अन्दर दुनिया की चीजों व बातों के लिए मोह मौजूद है उन चीजों के मुतअल्लिक मुआफिक (अनूकूल )या मुखालिफ (प्रतिकूल) सूरतें नमूदार (प्रकट) होने पर उसको उन उतार चढ़ाव की हालतो का जरूर तल्ख (कड़वा) तजरबा सहना पड़ेगा। इस मोह की मलिनता को दूर करो व नीज (और भी) मन को एक ठिकाने पर क़ायम करने की कोशिश करो तो मन की एकरस हालत कायम रह सकेगी। उसने कहा यह तो निहायत (बहुत) मुश्किल काम है। मन न आसानी से चीजो की मोहब्बत छोडेगा और न अपनी चचलता से बाज आवेगा। जवाब दिया गया कि मालिक के चरनों में मोह बढाओ ऐसा करने से ससार का मोह आप से आप छूट जावेगा और प्रेम बस होकर जब मालिक अन्तर में दर्शन देने की कृपा फरमावेगा तो सभी मलिनता एकदम भस्म हो जावेगी। उसने कहा कि मालिक से प्रेम बढाना भी तो आसान काम नहीं है? जवाब दिया गया - बेशक यह भी आसान बात नहीं है। तो फिर बेहतर होगा कि सतगुरु से या किसी प्रेमी जन से मोहब्बत कायम करो। और दुख सुख व नफा नुकसान दोनों की हालतों में उन्हें याद किया करने से भी मन की हालत बहुत कुछ सुधर सकती है।उसने यह जवाब मंजूर किया।                                       

🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻

रोज़ाना वाकिआत-परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज!*


पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...