**परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -रोजाना वाक्यात
- 27 जनवरी 1933- शुक्रवार:-
आज सुबह 10:00 बजे सर मैल्कम हेली से मुलाकात की। निहायत मुस्कुरा कर मिले। मैंने चंद्र मुश्किलों का चर्चा किया। आपने पूरी मदद देने का वादा फरमाया ।। शाम के सत्संग में डेनमार्क के एक यात्री शरीक हुए। हिंदुस्तानी लिबास पहने थे। 3 माह शांतिनिकेतन में ठहरे रहे । अब दयालबाग में ठहरे हैं। थोड़ा सा राधास्वामी मत का हाल बयान हुआ। राधास्वामी मत सिखलाता है कि हर शख्स को मलिक का दर्शन अपनी जिंदगी का उद्देश्य बनाना चाहिए । मालिक का दर्शन इन चमड़े की आंखों से नहीं हो सकता। अन्तचर्क्षु ही से ही हो सकता है। इंसान के अंदर अन्तर्चक्षु आमतौर पर सोई हुई है । जागृत करने से वह अपना काम कर सकती है। उसके जागृत करने के अमल को योग साधन कहते हैं । वह साधन किसी व्यवहारी उस्ताद से सीखने चाहिये। और सीख कर उन पर अमल उनकी देखरेख में करना चाहिये। चश्मे जाहिर की तरह चश्मे बातिन(अन्तर्चक्षु) के अंदर खास कुव्वत मुकीम है । चश्मे जाहिर के अंदर स्थूल जगत देखने की कूव्वत है लेकिन चश्मे बातिन के अंदर रूहानी जगत देखने की कूव्वत मुकीम है। चश्मे बातिन जगाने के लिए एक अरसे तक परिश्रम करनी पड़ती है। पुरानी आदतें, संसारी ख्वाहिशें , दैनिक व्यवहार, दुख सुख की हालते यह सब मन को चंचल बनाती है। मन चंचल होने पर हमारी तवज्जुह की धार मन की जानिब जोर से बहती है और अंतर में तवज्जुह का जोड़ना नामुमकिन हो जाता है। चश्में बातिन बेदार करने के लिए उस पर तवज्जुह का एकाग्र करना आवश्यक है । स्थूल ज्ञान इंद्रियां भी उनके अंदर तवज्जुह यकसू होने से बेदार होती है ।यही अमन चश्मे बातिन के बेतार करने के लिये करना पड़ता है । उस आँख के खुलने पर अभ्यासी का वही हाल होता है जो यकायक दृष्टि की कुव्वत आ जाने पर अन्धे का होता है। यानी उसे रूहानी तबके के तजरबात होने लगते हैं । उसे रूहानी दृश्य नजर आने लगते हैं। जिन्हें पाकर उसे रुह, रूहानियत रूहानियत के भंडार और रुहानी रास्ते की समझ आ जाती है। फिर वह रफ्ता रफ्ता आगे कदम बढ़ाता है और एक दिन गंतव्य पर पहुंच कर अपने भाग सरहाता है। 🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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