**परम गुरु हुजूर महाराज -प्रेम पत्र -भाग 1
- कल से आगे -(8 )
इन तीनों ऊपर के लिखे हुए सबब से जो चाह और हालत मन में पैदा होती है, वह इन किस्मों में से होगी । (१) स्त्री और पुत्र और धन की चाह और मोहब्बत।
(२) मान बडाई और हुकूमत की चाह और उसमें बंधन ।
(३) अहंकार अपनी जात पाँत और खानदानी बड़प्पन और धन हुकूमत और बडाई का।
(४) तन मन और इंद्रियों के भोग विलास और ऐश और आराम की ख्वाहिश और उसकी प्राप्ति के लिए फिक्र और मेहनत।।
(9) जो कोई समझदार और विचारवान् आदमी है, वह दुनियाँ के कारोबार और जीवों की मौत और भोगों और पदार्थों की नाशवानता और लोगों के स्वार्थ के साथ मोहब्बत और दुख और दर्द में धन और मान बड़ाई और हुकूमत और कुटुंब और परिवार से कुछ मदद और सहारे के न मिलने का हाल देखकर, जरूर अपने मन में ख्याल करेगा कि जिस कदर लोग मेहनत और जतन वास्ते पूरा करने अनेक चाहो के , जो मन में भरी हुई है, करते हैं, वे सब कुछ तो बिल्कुल फजूल और कुछ जरूरी है और सच्चे और पूरे सुख का फायदा इनमें बहुत कम है।
और जब दुःख या दर्द पैदा होवे या मौत आ जावे तो उसका फल एक छिन में जाता रहता है या कुछ अपने भी लाभदायक नहीं होता है और कोई कोई दुख का जैसे भारी रोग और सोग का , कोई जतन और इलाज नहीं है कि जिससे वे दूर हो जावें और ऐसी हालत में चाहे सब तरह के सामान सुख के हासिल भी है, वे सब के सब फीके और बेकार हो जाते हैं।
क्रमशः
🙏🏻राधास्वामी🙏🏻**
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