सतसंग के उपदेश भाग-3 ( परम गुरु हुज़ूर साहबजी महाराज)
बचन (97)
बाज़ लोग सतगुरु की महिमा सुनकर घबरा जाते हैं। वजह यह है कि उन्हें मालूम नहीं है कि सतगुरुगति किसे कहते हैं। जैसे ताँबे की तार देखने में एक मामूली व कमहैसियत चीज़ है लेकिन चूँकि उसमें यह गुण है कि उस पर बिजली की धार बआसानी रवाँ हो सकती है इसलिये यह तार एक बड़ी कारआमद (काम की) व बेशक़ीमत चीज़ बन जाती है। ताँबे की तार पर रवाँ होकर बिजली हमारे सैकड़ों काम करती है। हमारे घरों से अँधेरा दूर करती है, पानी खींचती है और हमें बेहद मेहनत व तकलीफ़ से बचाती है। इसी तौर पर हरचन्द सतगुरु देखने में साधारण पुरुष होते हैं लेकिन चूँकि उनमें यह गुण होता है कि उनकी सुरत या आत्मा का सच्चे मालिक की परम चेतनधार से बराहेरास्त मेल रहता है इसलिये मनुष्यों को उनके द्वारा बेशुमार लाभ प्राप्त होते हैं:- उनके घट का अन्धकार दूर होता है, अन्तर में अमृतरस प्राप्त होता है और काल और कर्म के अनेक दुःखों से रिहाई मिलती है। इस वजह से सतगुरु संसार में एक दुर्लभ रत्न क़रार पाते हैं।
बचन (98)
यह स्थूल देश सुरत का निज देश नहीं है। यह देश उस मसाले का बना है जिससे हमारा स्थूल शरीर तय्यार हुआ है। हमारी सुरत अपनी चेतनता सर्फ़ करके यहाँ के मसाले को जान देती है वरना यह बिल्कुल जड़ है। इसी मानी में इसको खारी पानी का सागर कहा जाता है। जब से मनुष्य ने इस देश में क़दम रक्खा है बराबर कोशिश हो रही है कि इस देश को सुख का सागर बनाया जावे। मनुष्य ने इस अर्से में तरह तरह की ईजादें भी कीं और तरकीबें भी निकालीं जिनकी वजह से क़िस्म क़िस्म की तहज़ीबें ज़हूर में आईं और मुख़्तलिफ़ नमूनों की हुकूमतें क़ायम हुईं लेकिन इसके खारीपन में ज़रा भी फ़र्क़ नहीं आया और यहाँ की तकलीफ़ें बराबर तरक़्क़ी कर रही हैं। यह हालत देखकर हर समझदार मनुष्य का फ़र्ज़ हो जाता है कि निर्मल चेतन देश में, जो हमारी सुरत का निज देश है, पहुँचने की फ़िक्र करे। वहाँ पहुँचने ही पर सुरत को अपने निज अंगों में बरतने और सच्चा सुख भोगने का मौक़ा मिलेगा।
राधास्वामी
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