Thursday, October 1, 2020

स्वराज्य (नाटक )

 **परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज -【स्वराज्य 】

( नाटक )



कल से आगे:- ( तीसरा अंक) पहला दृश्य:

- स्थान नगरकोट महिला समाज का जल्सा ।          

                                 

  [बहुत सी स्त्रियांँ जमा है- एक चबूतरे पर व्याख्यान देने वालों के बैठने व खड़ा होने के लिए प्रबंध है। एक वृद्धा, जो जल्से की अधिष्ठात्री है, चबूतरे पर बैठती है और एक लड़की खड़ी होकर प्रार्थना गाती है] ●●●●प्रार्थना●●●●       

                                

 तेरे चरणों में प्यारे ऐ पिता! मुझे ऐसा दृढ़ विश्वास हो । कि मन में मेरे सदा आसरा  तेरी दया व मेहर की आस हो ।।१।।                                        

चढ आये कभी जो दुख की घटा  या पापकर्म की हो तपन।  तेरा नाम रहे मेरे चित बसा। तेरी दया मेहर की आस हो।।२।।                                                

  यह काम जो हमने है सर लिया  करें मिल के हम तेरे बाल सब।  तेरा हाथ हम पर रहे बना तेरी दया व मेहर की आस हो।।३।।                  

[ प्रार्थना खत्म होने पर अधिष्ठात्री व्याख्यान देने के लिए खड़ी होती है]           

                   

   अधिष्ठात्री-नगरकोट के राजपुत्रियो! में आप सबको जल्से के प्रबंधकर्ताओं  की तरफ से और अपनी तरफ से धन्यवाद देती हूँ कि अपने आराम व घर के काम को छोड़कर आपने इस जलसे में शरीक होने की तकलीफ गवारा फरमाई। मेरी उम्र 70 बरस के करीब है।  इस जलसे में चंद ही ऐसी स्त्रियाँ होगी जिन्हें उस जमाने की याद हो कि जब हमारे देश में हमारा अपना राज्य था- जब हमारे देश की किस्मत ने पलटा खाया- हमारे राज्य का प्रबंध राजद्रोही और विश्वासघाती पुरुषों के हाथ में पड़ गया- मगर परमात्मा को हमारे देश की रक्षा करनी मंजूर थी- इसलिए यवन देश के सपूतों ने नगरकोट पर हमला करके उन दुष्टों का विनाश कर दिया और महापापी धर्मवीर और दूसरे राजद्रोहियों की बदकारियों से भड़क कर नगर में कत्लेआम हुआ- इसलिए मुझे ख्याल हुआ कि इस जलसे में शायद ही चंद स्त्रियाँ ऐसी होंगी जिन्हें इस देश का पुराना हाल मालूम हो। कत्लेआम शुरू होने और उसके चंद दिनों बाद जो घटनाएँ मेरे देखने में आई उनका इतने बरस बीतने पर भी ख्याल करते ही कलेजा मुँह को आता है- चारों तरफ हाहाकार मचा था- गली गली में लाशें सडती थीं नालियों में राज्यनिवासियों का लहू पानी की तरह बहता था। आप कहेंगी कि नगरकोटनिवासियों पर यह बड़ा जुल्म हुआ।

 (रूककर और एक यूनानी अफसर की तरफ मुखातिब होकर जो एक कोने में खड़ा नोट ले रहा था)  

अगर आपको तकलीफ ना हो तो नजदीक आ जायें हमारी बातों को पूरे तौर पर लिख लें ( तकरीर को दोबारा जारी करते हुए) हाँ!  मैं यह कहती थी जाहिर में नगरकोटनिवासियों पर बडा जुल्म हुआ मगर दरअसल हमारा बडा उपकार हुआ क्योंकि आजदिन हमारे देश में कोई न कोई विश्वासघाती बाकी है और न कोई राजद्रोही- सबके सब दुष्टों की सफाई हो गई- यह जरूर है कि अब हमारे देश पर विदेशी लोग शासन करते हैं और हमें वैसी आजादी हासिल नहीं है जैसी कि हुकूमत करने वालों की प्रजा को अपने देश में हासिल है मगर इसमें ज्यादातर हमारा अपना ही कसूर है। 

क्रमशः                          

🙏🏻 राधास्वामी🙏🏻**

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