क्या भगवान हमसे निश्छल प्रेम करते हैं???????????आ
ज का भगवद चिंतन।परमात्मा बड़े ही दयालु है।वे हम से निश्छल प्रेम करते हैं, तभी उन्होंने हमें यह मनुष्य शरीर दिया है।रिश्ते,नाते,सुख सुविधा सब उन्ही की देन है ।फिर भी हम निर्मल और शुद्ध मन से एक पल भी उनका शुक्रिया नही करते।हम जो भी पूजा पाठ करते हैं केवल स्वार्थ के कारण करते हैं।बहुत ही विरले लोग होते हैं जो बिना किसी इच्छा के भगवान की भक्ति करते हैं। प्रेम सदैव स्वार्थ रहित होना चाहिए। पढिये कथा।एक दिन किसी नगर के एक राजा भगवान के दर्शनार्थ मंदिर जा रहे थे शाम हो चुकी थी मंदिर बन्द होने को था।
मंदिर के सामने एक फूल वाली जोअपने सभी फूल बेच चुकी थी उस के पास केवल एक सुगन्धित फूल बचा था,
राजा ने उससे वह फूल मांगा! वह उसे दाम बता कर बेचने वाली थी कि उसी समय शहर के सबसे बड़े पैसे वाले और एक रईस व्यक्ति ने आकर उसे दुगने दाम देकर खरीदना चाहा...उसपर नीलामी की प्रक्रिया होने लगी,दाम बढ़ाते बढ़ाते अंत मे राजा ने फूल को पाने के लिए अपना पूरा राज्य दांव पर लगा दिया (जिसकी बराबरी व्यापारी नही कर सकता या हरा सकता )
राजा ने वह फूल भगवान को चढ़ाया और आम आदमी की तरह गांव के बड़े से हाल में सो गया..
उस रात भगवान राजा के सपने में आये और कहा "उस फूल को मेरे सिर से उतार दो उसके वजन के कारण असहनीय पीड़ा हो रही थी , राजा ने उनसे पूछा भगवान "फूल कैसे भारी हो सकता है आपके लिए,आपने उंगली के एक अंश से पूरी सृष्टि को उठा रखा है?" प्रभु ने कहा " मैं पूरी सृष्टि का भार उठा सकता हूँ परन्तु अपने प्रिय भक्त की भक्ति का वजन जिसने मेरे प्रेम के कारण पूरी राज्यसत्ता छोड़ दी,सृष्टि के भार से भी भारी है जिस फूल को मुझे समर्पित करने के लिए आपने पूरा राज्य दे दिया और स्वयं को सम्पत्ति रहित कर लिया।मैं आपके इस निर्मल प्रेम से बहुत खुश हूँ।और तुम्हे इस जन्म बन्धन के फेरे से मुक्त कर अपने धाम में स्थान देता हूँ।भगवान ऐसे भक्त के प्रेम के कारण अपनी व्यवस्था तक बदल देते हैं।।जय जय श्री राधेकृष्ण जी।
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