Satasangi Lane, Deo 824202
Monday, December 2, 2024
Sunday, November 10, 2024
बधाई है बधाई / स्वामी प्यारी कौड़ा
बधाई है बधाई ,बधाई है बधाई।
परमपिता और रानी मां के
शुभ विवाह की है बधाई।
सारी संगत नाच रही है,
सब मिलजुल कर दे रहे बधाई।
परम मंगलमय घड़ियां देखो,
हम सबके जीवन में आईं।
स्रुत बन्नी का स्रुत बन्ने से,
परिणय हुआ था आज के दिन।
नाच उठे अंबर और धरती,
तारामंडल चमका टिमटिम।
झूम रही है संगत सारी,
खुश हो कर दे रही बधाई।
आओ हंस, हंसिनी मिलकर हम ,
गाएं शुभ विवाह की बधाई।
परम पवित्र जोड़ी का सरमाया,
हम बच्चों पर सदा ही बना रहे।
नाचें ,कूदें उनके आंगन में ,
उनका प्यार-दुलार मिलता रहे।
सुबह- शाम ,रात और दिन,
उनके संरक्षण में बने रहें।
उनकी दुलार भरी गोदी में,
निज धाम का हम दर्शन करें।
आप हमारे माता-पिता हैं,
धन धन भाग सराहें हम।
दाता जी व रानी साहिबा की,
शादी का जश्न मनाएं हम।
झूमें ,नाचें, गाएं हम।
डॉ स्वामी प्यारी कौड़ा
4/64 विद्युत नगर ,
दयालबाग, आगरा।
Tuesday, November 5, 2024
लोकपर्व 0छठ / सुनील कुमार
सूर्य उपासना का महापर्व छठ
सुनील कुमार,
उप महानिरीक्षक, मध्य क्षेत्र
लखनऊ
इस पर्व की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इस पर्व में सदियों से गंगा नदी व अन्य सरोवरों में सभी जाति व धर्मों के लोग कतारबद्ध होकर अपने आराध्य देव सूर्य भगवान की आराधना करते हैं। यह झलक अपने आप वसुधैव कुटुम्बकम की भी मान्यता है कि जिस स्त्री-पुरुष ने इस पर्व को पूरी आस्था, भावना एवं धार्मिक रीति-रिवाज के साथ किया, उन्हें भगवान सूर्य ने शीघ्र ही मनोवांछित फल प्रदान किया। कहा जाता है कि बांझन के पुत्र देहुल निर्धन को माया।
रोगिन के निरोग कईलू और मनसा सब के पुरैलू।
छठ पर्व कैसे और कब से मनाया जाता है? इसके पीछे अनगिनत कहानियां हैं जो वेद और पुराण से सुनने को मिलता है यह कटु सत्य है कि जो व्यक्ति इस रहस्यमय कथा को श्रद्धा से श्रवण करता है उसकी हर मनोकामना पूर्ण होती है। भविष्य पुराण के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले नागकन्या ने किया था व नागकन्या से सुनकर सुकन्या ने च्यवन ऋषि के पुत्र को लौटाया था। इसी कथा का अनुकरण करते हुए पांडवों की पत्नी द्रोपदी ने पुरोहित महाराज धौम्य से इस महान पर्व के विधि-विधान का श्रवण कर इस व्रत को कर अपने पतियों का राजपाठ एवं राजलक्ष्मी को प्राप्त कराया था। कथा इस प्रकार है कि पाण्डव ने अपने बनवासी जीवन में भोजपत्र पहनकर संकटों का सामना करते हुए निवास कर रहे थे। तब उनके निवास स्थान पर ब्रह्म देवता तपोरूप अट्ठासी हजार मुनि आ पहुंचे, जिससे महाराज युद्धिष्ठिर यह सोचकर घबरा उठे कि मेरे आंगन में पधारे महात्माओं के भोजन का प्रबंध कैसे होगा इस दृश्य को देखकर द्रोपदी अत्यन्त दुख से व्याकुल हो गई और इस समस्या के निवारण के लिए अपने पुरोहित महाराज धौम्य के पास जाकर विनम्रतापूर्वक उपाय मांगा। प्रतिउत्तर में महाराज धौम्य ने द्रोपदी के कहा कि तुम भी वहीं सूर्य षष्ठी व्रत करो जिस व्रत को पूर्व काल में नागकन्या के उपदेश से सुकन्या ने किया था। जिसके परिणामस्वरूप उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुई थीं। इस कथा को विस्तारपूर्वक बतलाते हुए महाराज धौम्य ने द्रोपदी से कहा कि सुनों सत्ययुग में एक शर्याति नामक राजा था जिन्हें एक हजार स्त्रियां थी परंतु उनसे एक ही कन्या उत्पन्न हुई थी। पिता की प्रिय होने के कारण उस कन्या का नाम सुकन्या पड़ा। एक समय राजा शर्याति मृग शिकार के लिए मंत्री, सेना, बड़े-बड़े योद्धा और पुरोहित को लेकर जंगल की और गए। शिकार खेलने 'के निमित राजा को जंगल में वास करते हुए कई दिन व्यतीत हो गए।
एक समय की बात है कि सखियों के साथ सुकन्या फूल लेने हेतु जंगल गई। वहां पर च्यवन मुनि का स्थान था जहां पर मुनिवर च्यवन ध्यानमग्न हो तपस्या में लीन थे। कठोर तपस्या के कारण मुनि के शरीर में केवल हड्डियां ही दिखाई दे रही थी तथा साथ ही उनके पूरे शरीर को दिमक ने खा लिया था दिमक के खाने की वजह से उनके शरीर में हड्डी के अतिरिक्त आंख के स्थान पर दो छिद्र दिखाई दे रहे थे। सुकन्या च्यवन मुनि के इस रूप को देखकर विस्मित हो गई और मुनि की दोनों आंखे कांटों से फोड़ दी। परिणामरूप, मुनि के नेत्रों से रक्त की धारा बहने लगी। सुकन्या द्वारा च्यवन मुनि के नेत्र फोड़े जोने के कारण राजा और सेना का मल-मूत्र बंद हो गया। मल-मूत्र बंद हो जाने के कारण व्याकुल होकर तीन दिन बाद राजा ने अपने पुरोहित से इसका कारण पूछा। प्रतिउत्तर में पुरोहित ने अपनी दिव्य दृष्टि से देखकर कहा कि हे राजन आपकी कन्या ने अज्ञानतावश च्यवन मुनि के दोनों नेत्र कांटों से फोड़ दिया है जिससे रुधिर बह रहा है। उन्हीं के क्रोध से आपको यह कष्ट झेलना पड़ रहा है। अतः इस कष्ट से निवारण हेतु आपका कर्तव्य बनता है कि आप मुनि की सेवा के लिए अपनी कन्या सुकन्या को मुनि को दान कर दें।
राजा ने अपने पुराहित के आदेश को मानते हुए अपनी बेटी सुकन्या को मुनि की सेवा में अर्पित कर दिया, जिससे मुनि प्रसन्न हो गए और उस दिन से राजा के सारे कष्ट समाप्त हो गए। सुकन्या च्यवन मुनि की सेवा करते हुए एक दिन कार्तिक मास में जल लेने हेतु पुष्करिणी (छोटे तालाब) में गई जहां उन्होंने अनेकों आभूषणों से युक्त नागकन्या को देखा। वह नागकन्या भगवान सूर्य की अराधान कर रही थी।
इसे देखकर सुकन्या ने नागकन्या से पूछा कि यह आप क्या कर रही हैं ? सुकन्या के इस मधुर वचन को सुनकर नागकन्या ने कहा कि मैं नाग कन्या हूं और मैं सभी सुखों को देने वाले भगवान सूर्य की पूजा कर रही हूं। नागकन्या ने इस पूजा के विधि-विधान को बताते हुए यह कि कार्तिक शुल्क षष्ठी को सप्तमी युक्त होने पर सर्वमनोरथ सिद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है। व्रती को चाहिए कि वह पंचमी के दिन नियम से व्रत को धारण करें, सांयकाल में खीर का भोजन करके जमीन पर सोए, छठ के दिन निर्जला रहें और अनेक प्रकार के फल और पकवान विशेषकर गुड़ से बना आटे का ठेकुआ आदि का नैवेद्य और सूर्य भगवान की प्रसन्नता के लिए गीत-वाद्य आदि गा-बजाकर उत्सव मनावे। जबतक सूर्यनारायण का दर्शन न हो तब तक व्रत को धारण किए रहें। प्रातः काल सप्तमी को सूर्यनारायण के दर्शन कर अर्ध्य देवे और सूर्य भगवान के बाहर नाम का मनन कर दण्डवत प्रमाण करते हुए अर्ध्य देवे। इस प्रकार इस व्रत को विधिपूर्वक करने से सूर्य भगवान महान कष्ट को दूरकर मनवांछित फल देते हैं। नागकन्या के इस वचन को सुनकर सुकन्या ने इस उत्तम व्रत को किया। इस व्रत के प्रभाव से च्यवन महाराज के नेत्र पूर्ववत हो गए, उनका शरीर निरोग हो गया और सुकन्या के साथ लक्ष्मीनारायण के भांति सुख भोगने लगे।
इस कथा को सुनकर द्रौपदी ने भी पवित्र मन से इस पर्व को विधि-विधान के अनुसार किया, जिसके परिणामस्वरूप महाराजा युधिष्ठर के चिंता का निराकरण हो गया और उन्होंने अपने यहां पधारे अट्ठासी हजार मुनिओं का आतिथ्य सत्कार किया। द्रौपदी के इस व्रत के प्रभाव से ही पाण्डवों को पुनः राजलक्ष्मी प्राप्त हुई । कहा भी गया है कि जो भी स्त्री इस पुनीत छठ व्रत को करेगी उसके समस्त पाप नाश होकर सुकन्या की भांति पति सहित सुख पावेगी। इस घोर कलयुग में भी इस छठ पर्व की अपार महिमा है। इस महिमामयी एवं वरदायिनी छठ मैया के पर्व को सभी व्यक्ति चाहें वह किसी भी जाति या धर्म के क्यों न हो, सम्मान की नजरों से देखते हैं।
अंत में मैं सारे विघ्न-बाधाओं एवं पापों का नाश करने वाले भगवान श्री सूर्य के श्री चरणों में उक्त दो पंक्तियों के साथ कोटि-कोटि नमन करते हुए छठ मईया की महिमा का इति श्री करता हूं।
एहि सूर्य सहस्त्राशी तेजोरोशे जगत्पते!
अनुकम्पय माँ भक्तया गृहार्ध्य दिवाकर!!
सुनील कुमार,
उप महानिरीक्षक,
के.रि.पु.बल, मध्य क्षेत्र लखनऊ
Friday, October 18, 2024
भगवान का रूप
*भगवान*
*भगवान कहाँ हैं ? कौन हैं ? किसने देखा है ?*
मैं कईं दिनों से बेरोजगार था, एक एक रूपये की कीमत जैसे करोड़ो लग रही थी, इस उठापटक में था कि कहीं नौकरी लग जाए।
आज एक इंटरव्यू था, पर दूसरे शहर और जाने के लिए जेब में सिर्फ दस रूपये थे। मुझे कम से कम पांच सौ की जरूरत थी।
अपने एकलौते इन्टरव्यू वाले कपड़े रात में धो पड़ोसी की प्रेस मांग के तैयार कर पहन अपने योग्यताओं की मोटी फाइल बगल में दबा दो बिस्कुट खा के निकलाl
लिफ्ट ले, पैदल जैसे तैसे चिलचिलाती धूप में तरबतर बस स्टेंड शायद कोई पहचान वाला मिल जाए।
काफी देर खड़े रहने के बाद भी कोई न दिखा।
मन में घबराहट और मायूसी थी, क्या करूंगा अब कैसे पहचुंगा।
पास के मंदिर पर जा पहुंचा, दर्शन कर सीढ़ियों पर बैठा था पास में ही एक फकीर बैठा था l
उसके कटोरे में मेरी जेब और बैंक एकाउंट से भी ज्यादा पैसे पड़े थेl
मेरी नजरे और हालत समझ के बोला, "कुछ मदद कर सकता हूं क्या?"
मैं मुस्कुराता बोला, "आप क्या मदद करोगे?"
"चाहो तो मेरे पूरे पैसे रख लो ।" वो मुस्कुराता बोला।
मैं चौंक गया । उसे कैसे पता मेरी जरूरत ।
मैने कहा "क्यों ...?"
"शायद आप को जरूरत है" वो गंभीरता से बोला।
"हां है तो पर तुम्हारा क्या तुम तो दिन भर मांग के कमाते हो ।" मैने उस का पक्ष रखते बोला।
वो हँसता हुआ बोला, "मैं नहीं मांगता साहब लोग डाल जाते है मेरे कटोरे में पुण्य कमानें l
मैं तो फकीर हूं मुझे इनका कोई मोह नहीं, मुझे सिर्फ भुख लगती है, वो भी एक टाईम और कुछ दवाईंया बस l
मैं तो खुद ये सारे पैसे मंदिर की पेटी में डाल देता हूं ।" वो सहज था कहते कहते।
मैनें हैरानी से पूछा, "फिर यहां बैठते क्यों हो..?"
"आप जैसो की मदद करनें ।" वो फिर मंद मंद मुस्कुरा रहा था।
मै उसका मुंह देखता रह गया, उसने पांच सौ मेरे हाथ पर रख दिए और बोला, "जब हो तो लौटा देना।"
मैं शुक्रिया जताता वहां से अपने गंतव्य तक पहुचा, मेरा इंटरव्यू हुआ, और सिलेक्शन भी ।
.
मैं खुशी खुशी वापस आया सोचा उस फकीर को धन्यवाद दूं,
.
मंदिर पहुचां
बाहर सीढ़़ियों पर भीड़ थी,
मैं घुस के अंदर पहुचा देखा
वही फकीर मरा पड़ा था l
.
मैं भौंचक्का रह गया।, मैने दूसरो से पूछा कैसे हुआ l
.
पता चला, वो किसी बिमारी से परेशान था, सिर्फ दवाईयों पर जिन्दा था आज उसके पास दवाईंया नहीं थी और न उन्हैं खरीदने या अस्पताल जाने के पैसे ।
मै आवाक सा उस फकीर को देख रहा था। अपनी दवाईयों के पैसे वो मुझे दे गया था।
जिन पैसों पे उसकी जिंदगी का दारोमदार था, उन पैसों से मेरी ज़िंदगी बना दी थी....
भीड़ में से कोई बोला, अच्छा हुआ मर गया ये भिखारी भी साले बोझ होते है कोई काम के नहीं।...........
मेरी आँखें डबडबा आयी।
वो भिखारी कहां था, वो तो मेरे लिए भगवान ही था
श्रीभूषण शर्मा *
*सेवक :-
गोरी गिरधर गौशाला* *(वृन्दावन )*
Thursday, July 11, 2024
रोजाना वाक्यात
**रा धा/ध: स्व आ मी!
10-07-24- आज शाम सतसंग में पढ़ा गया बचन- कल से आगे:- (2.5.32 सोम)- मौलाना शौकत अली साहब ने शादी कर ली है। आपकी उम्र 68 अड़सठ साल बतलाई जाती है। लोग तरह तरह की नुक्ताचीनियाँ (आलोचनायें) कर रहे हैं। कोई कुछ कहता है कोई कुछ। लॉर्ड रीडिंग ने क़रीबन (लगभग) इसी उम्र में शादी की थी लेकिन एक शख्स ने भी ज़बान न खोली। क्या मौलाना साहब इस बात के लिये मुबारकबाद के मुस्तहक़ (अधिकारी) नहीं हैं कि उन्होंने दुनिया को दिखला दिया कि अब अहले-हिन्द (भारत वाले) पहले के से कमजोर नहीं रहे हैं।
दयालबाग की साख़्ता (निर्मित) घड़ी एक हफ़्ता से मेरे कमरे में रखी है। ठीक चल रही है। साल में एक मर्तबा चाभी मांगती है। उम्मीद होती है कि तजर्बे में कामिल(पूरी) कामयाबी हासिल (प्राप्त) हुई है। 8 और घड़ियाँ बनाने के लिए इजाजत दे दी गई है। क्रमशः ....
🙏🏻रा धा/ध: स्व आ मी🙏🏻
रोजाना वाक़िआत-
परम गुरु हुजूर साहबजी महाराज!**
Wednesday, July 3, 2024
ज्ञान की इमारतें / कृष्ण मेहता
एक तिब्बती कथा है मारपा के विषय में। उसके गुरु ने उससे घर बनाने को कहा, अकेले ही, बिना किसी की मदद के। गांव से ईंटों और पत्थरों को मठ तक लाना कठिन था। चार या पांच मील की दूरी थी। मारपा ने हर चीज अकेले ही ढोई, ऐसा करना ही था। और बनाना था तिमजला मकान, तिब्बत में उन दिनों जो बड़े से बड़ा बनाया जा सकता था। उसने दिन रात कड़ी मेहनत की। अकेले ही करनी थी उसे हर चीज। वर्षों बीत गए, घर तैयार हो गया, और मारपा लौट आया खुशी खुशी। उसने गुरु के चरणों में झुक कर प्रणाम किया और बोला, ‘घर तैयार है।’ गुरु ने कहा, ‘अब आग लगा दो उसमें।’ मारपा गया और जला दिया वह घर। सारी रात और सारे अगले दिन घर जलता रहा। सांझ तक कुछ न बचा था। मारपा गया, झुका, प्रणाम किया और बोला, ‘जैसा किं आपने आदेश दिया था, घर जला दिया गया है।’
गुरु ने देखा उसकी तरफ और बोला, ‘कल सुबह फिर से शुरू कर दो। एक नया घर बनाना होगा।’ और कहा जाता है कि ऐसा सात बार घटित हुआ। मारपा का हो चला, वही बात फिर फिर करते हुए ही। वह बना देता घर और वह बहुत ज्यादा कुशल हो गया धीरे धीरे। वह ज्यादा जल्दी घर बनाने लगा, कम समय में ही। हर बार जब घर तैयार हो जाता, गुरु कह देता, जला दो उसे। जब घर सातवीं बार जल गया, तो गुरु ने कहा, ‘ अब कोई जरूरत नहीं।’
यह एक कथा है। शायद ऐसा न भी हुआ हो, लेकिन यही तो मैं कर रहा हूं तुम्हारे साथ। जिस क्षण तुम सुनते हो मुझे तो तुम भीतर एक ‘घर’ बनाना शुरू कर देते हो सिद्धातों का ढांचा, एक सुसंगत जोड़, जीने का एक दर्शन, अनुसरण करने का एक सिद्धांत, एक नक्शा जिस क्षण मैं देखता हूं कि घर तैयार है तो मैं गिराने लगता हूं उसे। और ऐसा मैं करूंगा सात बार, और यदि जरूरत हुई, तो सत्तर बार। मैं प्रतीक्षा कर रहा हूं उस क्षण की जब तुम सुनोगे और तुम इकट्ठा न करोगे शब्दों को। तुम सुनोगे, पर तुम सुनोगे मुझे, उसे नहीं जो कि मैं कहता हूं। तुम सुनोगे सार तत्व को, उसे धारण करने वाले पात्र को नहीं; शब्दों को नहीं बल्कि शब्दविहीन संदेश को। धीरे धीरे ऐसा होगा ही। कितनी देर तक तुम मकान बनाए जा सकते हो, यह खूब जानते हुए कि उसे गिराना ही होगा? यही अर्थ है मेरी सारी विरोधी बातों का।
कृष्णमूर्ति ने भी, जो कि कहते हैं किसी सिद्धांत की जरूरत नहीं, लोगों में एक सिद्धांत निर्मित कर दिया है, क्योंकि वे विरोधात्मक नहीं हैं। उन्होंने लोगों में उतार दिया है बड़े गहरे में सिद्धांत। मैंने बहुत तरह के लोग देखे हैं, लेकिन कृष्णमूर्ति के अनुयायियों जैसे नहीं देखे। वे चिपक जाते हैं, बिलकुल चिपक ही गए हैं वे, क्योंकि वह आदमी बड़ा अविरोधी है। चालीस वर्षों से वह कह रहा है वही बात, बार बार कह रहा है। अनुयायियों ने बना ली हैं गगनचुंबी इमारतें। चालीस वर्ष में निरंतर इसी में बढ़ते, उनकी इमारत बढ़ती ही जाती है, और और आगे ही आगे बढ़ती जाती है।
मैं तुम्हें ऐसा नहीं करने दूंगा। मैं चाहता हूं, तुम शब्दों से संपूर्णतया खाली हो जाओ। मेरा सारा प्रयोजन ही यही है तुमसे बात करने का। एक दिन तुम जान जाओगे कि मैं बोल रहा हूं और तुम ढांचा नहीं बना रहे हो। यह भली भांति जानते हुए कि मैं खंडन कर दूंगा उसका जो कुछ भी मैं कह रहा हूं तुम चिपकते नहीं हो फिर। यदि तुम नहीं चिपकते, यदि तुम शून्य ही हुए रहते हो, तो तुम मुझे सुन पाओगे, न कि उसे जो कि मैं कहता हूं। और संपूर्णतया अलग ही बात है उस सत्ता को सुनना जो कि मैं हूं उस अस्तित्व को सुनना जो कि बिलकुल अभी घट रहा है, इसी क्षण घट रहा है।
मैं तो केवल एक झरोखा हूं तुम देख सकते हो मुझसे और उस पार का कुछ खुल जाता है। झरोखे की ओर मत देखो, उसमें से देखो। मत देखना झरोखे की चौखट की ओर। मेरे सारे शब्द झरोखे की चौखट हैं उनमें से उनके पार देखना। भूल जाना शब्दों को और चौखट के ढांचे को और शब्दातीत, कालातीत कुछ मौजूद होता है, आकाश मौजूद होता है। यदि तुम चिपक जाते हो चौखट से, तो कैसे, कैसे पाओगे तुम पंख? इसीलिए मैं शब्दों को गिराता जाता हूं ताकि तुम चिपको नहीं ढांचे से। तुम्हें पंख पाने ही हैं। तुम्हें गुजरना होगा मुझसे, लेकिन तुम्हें जाना होगा मुझसे दूर। तुम्हें गुजरना होगा मुझमें से, लेकिन तुम्हें भूल जाना होगा मुझे पूरी तरह से। तुम्हें गुजर जाना है मुझमें से, लेकिन पीछे देखने की कोई जरूरत नहीं। एक विशाल आकाश मौजूद है। जब मैं विपरीत बात करता हूं तो मैं तुम्हें दे देता हूं एक स्वाद उस विशालता का।
Wednesday, April 24, 2024
सूर्य को जल चढ़ाने का अर्थ
प्रस्तुति - रामरूप यादव
सूर्य को सभी ग्रहों में श्रेष्ठ माना जाता है क्योंकि सभी ग्रह सूर्य के ही चक्कर लगाते है इसलिए सभी ग्रहो में सूर्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। हिन्दू धर्म में सूर्य का बहुत महत्त्व बताया गया है, शताब्दियों से हमारी परम्परा में नहाने के बाद सूर्य को अर्ध्य देने अर्थात जल चढाने का नियम है।
सूर्य को जल चढाने का धार्मिक महत्त्व
सूर्य को सभी ग्रहों में विशेष माना जाता है, सूर्य की उत्पत्ति स्वयं नारायण से हुयी थी। हिन्दू धर्म में सूर्य की पूजा की जाती है और सूर्य को अर्ध दिया जाता है, ऐसा माना जाता है कि अगर सूर्य देवता आपसे प्रसन्न है तो बाकी ग्रह का असर नहीं पड़ता है, इसलिए सूर्य की पूजा और उपासना को शुभ फलदाई माना गया है, रविवार को सूर्य देव का दिन माना गया है और इस दिन सूर्य देव की उपासना करने से जीवन सफल होता है, भगवान राम भी सूर्य को जल चढाते थे इसलिए सूर्य को जल चढाने की परम्परा सहस्त्र वर्षों से चली आ रही है, तो अगर आपके मन में भी कोई इस तरह का प्रश्न उठता है जो जवाब यहाँ से जान सकते है कि सूर्य को जल क्यों चढ़ाएं।
जल चढाने का वैज्ञानिक महत्त्व
सूर्य को जल चढाने का धार्मिक महत्व के साथ वैज्ञानिक महत्त्व भी है। वैज्ञानिकों के अनुसार जब कोई व्यक्ति सुबह के समय सूर्य को जल चढ़ाता है तो सूर्य से निकलने वाली किरणें उस व्यक्ति को कई स्वास्थ्य लाभ देती है, सुबह के समय सूरज की जो किरणें निकलती है वे हमारे शरीर में होने वाले रंगों के असंतुलन को सही करती है, सूरज की किरणों में इन्द्रधनुष के सात रंगों का समावेश होता है और यह रंग रंगों के विज्ञान पर काम करता है, विज्ञान के अनुसार सुबह के समय सूर्य को जल चढाते समय इन किरणों के प्रभाव से ये रंग संतुलित हो जाते है जिससे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति बढ़ जाती है, इसके अलावा दूसरा वैज्ञानिक कारण है सुबह के समय सूर्य से निकलने वाली विटामिन डी. सूर्य की रोशनी से शरीर में विटामिन डी की कमी नहीं होती है, इसके अलावा सूर्य की सुबह की रोशनी सुंदरता बढ़ाने का काम करती है और इससे आँखों को भी स्वास्थ्य लाभ मिलता है।
जल चढाने का ज्योतिष महत्त्व
ज्योतिष विज्ञान में सूर्य को जल चढाने के कई महत्त्व बताये गए है, यदि कोई व्यक्ति ब्रह्म मुहूर्त में नहाकर साफ़ कपडे पहनकर सूर्य को जल चढ़ाए तो उसकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है, जब सूर्य उदय होता है तब लालिमा युक्त सूर्य को जल चढाने से ज्यादा लाभ मिलता है, इसके अलावा रोगों से मुक्ति पाने के लिए भी सुबह-सुबह सूर्य को जल चढ़ाना लाभकारी होता है।
अब आप समझ ही गए होंगे कि सूर्य को जल चढाने के सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं है बल्कि कई वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी है, तो क्यों ना आप भी आज से सूर्य को जल चढ़ाये और अपनी जिंदगी में चमत्कार होते देखे।
पूज्य हुज़ूर का निर्देश
कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...
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संत काव्य : परंपरा एवं प्रवृत्तियां / विशेषताएं ( Sant Kavya : Parampara Evam Pravrittiyan / Visheshtayen ) हिंदी साहित्य का इतिहास मुख्...
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