Saturday, March 16, 2013

आगरा : विशेषताओं का शहर है आगरा

आगरा विशेषताओं का शहर


हर आदमी की तरह हर शहर की भी एक पहचान होती है। कुछ विशेषताएं होती हैं और कुछ घटनायें उससे जुड़ी रहती हैं। इस दृष्टि से दिल्ली की पहचान कुतुबमीनार है, जयपुर की हवामहल, चित्तौड़ की विजय स्तम्भ, उदयपुर की झीलें और लेक पैलेस, जैसलमेर की सोनार किला, उज्जैन की महाकालेश्वर, वाराणसी की काशी विश्वनाथ, हैदराबाद की चार मीनार आदि-आदि। आगरा की पहचान नि:संदेह ताजमहल है और इसे सिटी ऑफ ताज कहा जाता है। ताज के कारण ही आगरा न केवल पूरे भारत में बल्कि विश्व के सब देशों में जाना जाता है। भारत आने वाले हर विदेशी पर्यटक की पहली पसंद ताज देखना होती है। ताज की सुन्दरता ने सब तरह के लोगों को मोहित किया है और उन्होंने इस पर अपने विचार व्यक्त किए हैं। हर नवविवाहित जोड़े की इच्छा रहती है कि वह प्रेम का अमर स्मारक ताज देखे।
आगरा को सिकंदर लोदी ने 1504 ई. में बसाया था ताकि इटावा, बयाना, धोलपुर, ग्वालियर, कोल आदि जागीरों पर पूर्ण नियंत्रण रखा जा सके, लेकिन 1505 ई. में आगरा में भयंकर भूचाल आया, जिससे धन-जन की बहुत क्षति हुई। वैसे आगरा की प्रसिध्दि व शानो-शौकत मुगलकाल से शुरू हुई। मुगलों ने इसको देश की राजधानी बनाया। मुगल शासकों अकबर, जहांगीर, शाहजहां ने यहां कई शानदार और भव्य इमारतें बनवाई और उनको बड़ी खूबी से सजाया संवारा। मुगलकाल में जब एक अंग्रेज यात्री ने आगरा व फतेहपुर सीकरी को देखा तो कहा कि यह दोनों शहर इतने बड़े हैं कि इनके मुकाबले में लन्दन एक छोटी बस्ती लगता है।
आगरा का प्रमुख आकर्षण बेशक ताज है जिसकी सुन्दरता व भव्यता को निहारने देश-विदेश के हर साल लाखों लोग आते हैं। इससे अच्छी खासी आय होती है और विदेशी मुद्रा भी प्राप्त होती है। ताज की गिनती विश्व के आश्चर्यों में होती है। ताज की तरह ही यमुना के किनारे पर संगमरमर में बना हुआ एत्मादुदोला है जो आकार में छोटा-सा मगर सुन्दरता में ताज से भी अच्छा है। इसे नूरजहां ने अपने पिता मिर्जा गियास बेग की याद में बनवाया था। ताज महल इसी से प्रेरणा पाकर ही बनाया गया था। अकबर का भव्य और विशाल मकबरा भी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है। आगरा का लाल पत्थर से बना हुआ सुदृढ़ और अच्छी तरह संरक्षित किला भी दर्शनीय है। इसमें कई महल, आंगन और एक संगमरमर की मस्जिद भी है। बादशाह शाहजहां इसी किले में आठ साल तक बेटे औरंगजेब का बंदी रहकर ताज को देखते-देखते 1666 ई. में मर गया। किले के नाम पर आगरा का एक प्रमुख स्टेशन आगरा फोर्ट है, जो भव्य जामा मस्जिद और किले के बीच स्थित है और शहर से सटा हुआ है।
दर्शनीय इमारतों के पश्चात दूसरे नम्बर पर आगरा में पैरों की शान व शोभा बढ़ाने वाले कई तरह के जूते हैं जिनकी मांग न केवल पूरे देश में है बल्कि देश के बाहर दूसरे देशों में भी भेजे जाते हैं। इनसे से भी पर्याप्त विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। जूते आगरा में हींग के कारण बनने शुरू हुए। मुगलकाल में हींग अफगानिस्तान से चमड़े के बोरों में भरकर आती थी। हींग निकालकर बोरे अलग कर दिये जाते थे, जब यह अधिक संख्या में इकट्ठे हो गए तो इनके उपयोग को सोचा गया और जूते बनाये जाने लगे। आज भी हींग की मण्डी में आगरा में जूतों का एक प्रमुख बाजार है। जब मण्डी और बाजार की बात चली तो आगरा का एक प्रचलित वाक्य याद आ गया- 63 मण्डी, 64 बाजार है आगरा का विस्तार।
तीसरे स्थान पर आता है आगरा का स्वादिष्ट पेठा जो देश के कोने-कोने में जाता है और अब तो विदेशों में भी जाने लगा है। पेठा-सूखा व गीला (अंगूरी) कई किस्मों में बनाया जाता है। आगरा में पेठे की शुरुआत शाहजहां के काल में हुई जब उनके राजवैद्य को यमुना में बहता हुआ बीज मिला जिसे उन्होंने उसे यमुना के किनारे पर उगाया तो सुन्दर पेठे का फल तैयार हुआ। उस फल को चाशनी में पकाकर खाने योग्य बनाया गया। बेगम मुमताज को पेठा अत्यधिक पसंद था और शाहजहां उसे अपनी शाही मिठाई का दर्जा देते थे। पेठे के साथ ही आगरा की चटपटी और मसालेदार नमकीन दालमोंठ है जो लोगों को बहुत भाती है। आगरा में पेठे का एक अलग बाजार है तथा अनेक दुकानें हैं जो ज्यादातर रेलवे स्टेशनों और बस व टैम्पो स्टैण्ड के आसपास बनी हुईं हैं। पेठा की दुकानों पर दालमोठ भी रहती है।
आज का आगरा एक मुकम्मल महानगर है जहां सब तरह की सुविधाएं मौजूद है। यह शहर शिक्षा का बड़ा केन्द्र है जहां सब तरह की शिक्षा के लिये अनेक कॉलेज, संस्थान व संस्थाएं हैं। आगरा यूनिवर्सिटी देश की पुरानी यूनिवर्सिटियों में से एक है। एक समय राजस्थान, मध्यप्रदेश और यूपी के सारे कॉलेज सिवाय अलीगढ़, वाराणसी, इलाहाबाद के इसके तहत होते थे।
आगरा का दयालबाग क्षेत्र जो राधास्वामी मत का मुख्यालय है, शिक्षा का बड़ा केन्द्र है। अब इसको डीम्ड यूनिवर्सिटी मान लिया गया है। यहां सब तरह की टेक्निकल शिक्षा भी उपलब्ध है। दयालबाग में हजूर साहिब की समाधि जो एक शताब्दी से बन रही है बड़ी भव्य, कलात्मक और नयनाभिराम है।
चिकित्सा की दृष्टि से भी आगरा अति उत्तम है। यहां हर बीमारी के लिए एक से बढ़कर एक अच्छे डॉक्टर मौजूद हैं। आगरा का एसएन मेडिकल कॉलेज देश के पुराने चिकित्सा संस्थानों में से है। आगरा का मेंटल हॉस्पिटल बहुत बड़ा और पुराना है जो उत्तर भारत में माना हुआ है। यह भी आगरा को एक पहचान दिलाता है और आगरा का पर्याय बन चुका है। अब भी कोई आदमी जब उल्टी-सीधी हरकतें करता है तो कहा जाता है कि चिन्ता मत कर आगरा पास ही है।
धार्मिक दृष्टि से भी आगरा बड़ा महत्वपूर्ण है। यहां सब धर्मों को मानने वालों के पूजा स्थल हैं। जिनमें से कई तो दर्शनीय हैं। शहर में सबसे पवित्र और माननीय पूजा स्थल मनकामनेश्वर मंदिर है, जो आगरा फोर्ट स्टेशन और जामा मस्जिद के पास है। इसके दर्शन करने लोग दूर-दूर से आते हैं। एक दूसरा शिव मंदिर ईदगाह स्टेशन के पास रावली में है जो पुराना है, लेकिन इसकी भी मान्यता कम नहीं है। आगरा में दशहरा के दौरान राम बारात बड़ी भव्य व शानदार निकाली जाती है। रामबारात का जुलूस उत्तर भारत में सबसे बड़ा माना जाता है। इसमें झांकियां बड़ी साज-सज्जा से हाथी, ऊंटों और रथों पर निकाली जाती हैं जो शहर के प्रमुख बाजारों में होकर रात भर जाती हैं। दूर-दूर से लाखों लोग इसको देखने आते हैं। दशहरा का एक और आकर्षण यहां की जनकपुरी है जो बारी-बारी से शहर के किसी न किसी बाजार में बनाई जाती है। इसकी सफाई सजावट और रोशनी बड़ी दिलकश व सुन्दर होती है जिसको देखने शहर के कोने-कोने से बड़ी संख्या में लोग आते हैं। यह भी रात भर शोभा प्रदान करती है। आगरा शहर के चारों ओर शिव मंदिर बल्केश्वर, पृथ्वीनाथ, राजेश्वर और कैलाश स्थित है, जो मराठा काल (वर्ष1772-1803) में बनवाए गए थे। यहां श्रावण महीने के हर सोमवार को बारी-बारी से मेला लगता है जिसमें दूर-दूर से हजारों लोग पूजा करने आते हैं।
आगरा की प्रमुख घटनाओं में एक है छत्रपति शिवाजी का औरंगजेब जैसे क्रूर बादशाह की जेल से बड़ी चतुराई, सूझबूझ और साहस से भाग निकलना। इस घटना का औरंगजेब को जीवन भर बड़ा मलाल रहा। आगरा की दूसरी अद्भुत और विस्मयकारी किन्तु विस्तृत घटना है अमर सिंह राठौर का शौर्य व साहस। इस वीर ने शाहजहां के भरे दरबार में उसके एक मंत्री सलाबत खान को कत्ल कर दिया जबकि बादशाह के दरबार में तो कोई ऊंची आवाज में बात भी नहीं कर सकता था। अमर सिंह को कोई भी सैनिक पकड़ नहीं सका। किले के दरवाजे बंद कर दिये मगर राठौर वीर किले की ऊंची फसील से घोड़े सहित चौड़ी खांई को पार करते हुए नीचे कूद गया। घोड़ा तो मर गया लेकिन अमर सिंह बच निकला। ऐसा विलक्षण और साहसिक कार्य शायद ही विश्व में किसी दूसरे व्यक्ति ने किया हो। किन्तु बड़े खेद की बात है कि इस अद्वितीय वीर योध्दा की याद में कोई मूर्ति नहीं लगाई गई है जैसा कि शिवाजी महाराज की लगाई गई है। मेरा आगरा प्रशासन और नगर निगम से अनुरोध है कि इस वीर की प्रतिमा घोड़े सहित उसी स्थान पर लगाई जाये जहां वह गिरा था। मूर्ति लगने से देश विदेश के पर्यटक जो बड़ी संख्या में आगरा आते हैं अमर सिंह के पराक्रम और वीरता को जानेंगे और प्रेरणा लेंगे। इससे देश का गौरव बढ़ेगा।
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