Tuesday, August 6, 2013

समुद्री डकैतों का आतंक








समुद्री डाकू
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
लेख का ड्राफ़्टलेख (प्रतीक्षित)
http://bharatdiscovery.org/w/images/thumb/6/67/Sea-pirate.jpg/250px-Sea-pirate.jpg
http://bharatdiscovery.org/w/skins/common/images/magnify-clip.png
समुद्री डाकू
समुद्री डाकू अथवा जल दस्यु समुद्री जहाज़ों को और कभी-कभी समुद्र तटीय स्थानों को लूटा करते थे। इनके पास अपने जहाज़ होते थे जिन पर ये समुद्री यात्रा करते थे। 17-18 सदी में अधिक सक्रिय रहे और आज भी कम संख्या में ही सही लेकिन सक्रिय तो हैं ही। लगभग 1650-1720 से समुद्री डाकुओं के हजारों समूह सक्रिय थे। इन वर्षों को कभी-कभी दस्युओं की 'द गोल्डन एज​​' के रूप में जाना जाता है। समुद्री डाकू समुद्री यात्राओं के प्राचीन काल से ही अस्तित्व में है। वे प्राचीन यूनान के व्यापार मार्गों की और रोमन जहाजों से अनाज और ज़ैतून का तेल से लदे मालवाहकों को ज़ब्त करते रहते थे और फिरौती वसूल करके छोड़ भी देते थे।
पहचान चिह्न
जल दस्युओं से जुड़ी अनेक लोक कथाएँ हैं इस विषय पर अनेक फ़िल्में बन चुकी हैं। इनके कुछ विशेष पहचान चिह्न भी होते थे। जिनमें मनुष्य खोपड़ी के निशान का झंडा और एक आँख को ढँक लेने वाला काले रंग का गोल-तिकोना जैसा एक टुकड़ा होता था। जो चमड़े या कपड़े का होता है और कभी-कभी धातु का भी। इसे पाइराइट पॅच (Pirate patch) या आई पॅच (Eye patch) कहा जाता है पाइराइट पॅच पहनने के कई कारण थे जैसे:
  1. एक आँख का ख़राब होना और उसे ढँकने के लिए।
  2. सिर्फ़ शौक़िया भी जिससे थोड़े डरावने रूप से प्रभावशाली लगें।
  3. एक व्यावहारिक कारण यह भी हो सकता है कि दूरबीन (टेलीस्कोप) से देखने के लिए एक आँख बंद करने में सुविधा हो।
  4. जो सबसे मुख्य और व्यावहारिक कारण था वह था; अचानक से रौशनी से अंधेरे में जाना या अंधेरे से रौशनी में जाना। जहाज़ों के निचले हिस्से अक्सर कम रौशनी वाले होते थे जबकि ऊपरी हिस्सा खुला और तेज़ धूप वाला होता था। रौशनी के कारण आँखें चुंधियाई रहती थी और अचानक निचले हिस्से में जाने पर काफ़ी देर तक कुछ दिखता नहीं था। इस समस्या का एक ही इलाज था कि एक आँख को बंद रखा जाय और कम रौशनी वाले हिस्से में उसे खोला जाय जिससे साफ़ दिखाई दे सके।
  • http://bharatdiscovery.org/w/images/thumb/a/a4/Pirate-patch.jpg/120px-Pirate-patch.jpg
चमड़े का पाइराइट पॅच
  • http://bharatdiscovery.org/w/images/thumb/e/ee/Sanjay-Dutt.jpg/120px-Sanjay-Dutt.jpg
अभिनेता संजय दत्त पाइराइट पॅच पहने हुए, फ़िल्म खलनायक

2
समुद्री डाकू हुए रिटायर
समुद्री डाकू हुए रिटायर
फोटो: The Voiceof Russia
सोमालिया के एक सबसे बड़े समुद्री डाकू मोहम्मद अब्दी हसन ने आठ साल तक समुद्र में डकैतियों का "कठिन
सोमालिया के एक सबसे बड़े समुद्री डाकू मोहम्मद अब्दी हसन ने आठ साल तक समुद्र में डकैतियों का "कठिन काम" करने के बाद अब इस काम से रिटायर होने का फैसला किया है। पश्चात्ताप करनेवाले इस डाकू ने अपने आपराधिक कैरियर के दौरान कितना धन कमाया होगा, इसके बारे में तो कोई अनुमान ही लगाया जा सकता है। लेकिन दुनिया को इतना ज़रूर मालूम है कि उसके गिरोह ने ही समुद्री जहाज़ों पर बड़े बड़े हमले किए थे। इसी गिरोह ने यूक्रेनी मालवाहक जहाज़ "फ़ाइना" पर कब्ज़ा किया था जिस पर टी-72 वर्ग के टैंक लदे हुए थे।
सोमालिया के सबसे बड़े समुद्री डाकू मोहम्मद अब्दी हसन ने अब डकैतियाँ करने का काम छोड़ दिया है। अब उसने पश्चात्ताप करने का फैसला भी किया है। यह उन डकैतों के लिए सार्वजनिक रूप से पश्चाताप करने या माफ़ी मांगने का एक अच्छा उदाहरण है जो पहले से ही डकैतियां करने का काम छोड़ चुके हैं। समुद्री डाकू बड़े पैमाने पर अपना यह पुराना काम छोड़ रहे हैं। यह डकैतों के विरुद्ध चलाए गए उस अंतर्राष्ट्रीय अभियान का ही परिणाम है जिसमें रूसी युद्धपोतों ने सक्रिय रूप से भाग लिया था। इस संबंध में समाचारपत्र "कम्सॉमोल्सकया प्रावदा" के सैन्य विश्लेषक विक्टर बरानेत्स ने कहा-
दुनिया में क़रीब 30ऐसे स्थान हैं जहाँ समुद्री डाकुओं की गतिविधियां पूरे ज़ोरों पर हैं। अदन की खाड़ी भी एक ऐसा ही स्थान है। वहां मछली पकड़ने वाली नौकाओं और मालवाहक जहाज़ों पर अक्सर हमले किए जाते रहे हैं। रूसी युद्धपोत यहाँ लगभग लगातार गश्त करते रहे हैं। जिन देशों की नौकाओं की हमने रक्षा की है उनकी सरकारों ने कई बार हमें धन्यवाद दिया है। दुर्भाग्य से, संयुक्त राष्ट्र ने समुद्री डकैतों के विरुद्ध तुरंत कार्रवाई करने के लिए विशेष दस्तों का अभी तक गठन नहीं किया है।
 रूस ने अभी हाल ही में इस बात की घोषणा की थी कि उसने अपने काला सागरीय बेड़े के कुछ युद्धपोत अदन की खाड़ी के लिए रवाना कर दिए हैं जहाँ वे समुद्री डकैतों से लड़ने के अभ्यास करेंगे। इन युद्धपोतों में रूसी नौसेना का जहाज़ "एडमिरल लेवचेन्का", "एडमिरल चबानेन्का" 'एडमिरल पांतेलियेव " और एक गश्ती जहाज़ "नेउस्त्राशीमी" यानी "निडर" शामिल हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, वर्ष 2012 में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को समुद्री डकैतों के विरुद्ध लड़ाई में पहली बड़ी सफलताएं प्राप्त हुई हैं। इन सफलताओं का एक बड़ा कारण यह भी रहा है कि न केवल समुद्र में बल्कि भूमि पर भी समुद्री डाकुओं का पीछा करने की अनुमति मिल गई थी। आम तौर पर समुद्री डकैत किसी न किसी तटीय इलाके में छिप जाते थे और वहाँ से समुद्र में दाखिल होकर नौकाओं पर हमले करते थे। अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों की बदौलत वर्ष 2012 के उत्तरार्ध में समुद्री डकैत किसी एक भी समुद्री जहाज़ पर कब्ज़ा नहीं कर सके हैं।
  • शेयर करें:
  •  
  •  
  •  
  • http://hindi.ruvr.ru/img/addthis-ico.png
टिप्पणियां
  • http://hindi.ruvr.ru/img/cabinet/avatar__30x30.jpg
और शेयर Facebook, Twitter
इसी विषय पर

चालीस साल बाद लिया जा रहा प्रतिशोध

प्रशान्त महासागर के बीचों-बीच नए साल का स्वागत

भारतीय महिलाओं के लिए विशेष रेलगाड़ियां

"डकार-2013" में "कामाज़ मास्टर" की जीत

क्या सियाचिन समस्या का कोई हल हो सकता है?

पाकिस्तान में पोलियो की महामारी का खतरा

अब सीरिया भी अल-जज़ीरा जैसा चैनल शुरू करेगा
3
समुद्र से उभरा बड़ा संकट
Updated on: Mon, 27 Feb 2012 01:07 AM (IST)
0

0
Google +
0

0

1

1

http://www.jagran.com/Resources/jagran/images/icon_fontdec.png  http://www.jagran.com/Resources/jagran/images/icon_fontinc.png
http://images.jagran.com/images/27_02_2012-udayb1.jpg
समुद्र से उभरा बड़ा संकट
गत दिनों केरल के तट पर एक इटालियन पोत पर सवार सैनिकों के हाथों दो भारतीय मछुआरों की हत्या की घटना ने भारत और इटली के बीच एक बड़े राजनीतिक-कानूनी-कूटनीतिक विवाद का रूप ले लिया है। इटली का स्पष्टीकरण यह है कि उसके सैनिकों ने गलती से दोनों मछुआरों को समुद्री लुटेरे समझ लिया और संयोग से उनकी नौका का नाम सेंट एंटनी था, जो समुद्री डाकुओं की भी नौका का नाम है और इसी गफलत में यह घटना हो गई।
यह घटना केरल के तट से 22 नौटिकल मील दूर हुई और इस लिहाज से यह नजर आता है कि यह समुद्र के काफी अंदर अथवा अंतरराष्ट्रीय जल में घटित हुई, कि क्षेत्रीय सीमा के भीतर, जो आम तौर पर तट से 12 नौटिकल दूर तक का इलाका होता है। तकनीकी रूप से कहें तो इस घटना के संदर्भ में अंतरराष्ट्रीय जल वाला कानून लागू होगा और इसके तहत जिस देश का झंडा लगा हुआ है उसमें मामला चलाया जाएगा। इस मामले में इटली सवालों के घेरे में है, क्योंकि जिस जहाज से इस घटना को अंजाम दिया गया वह इटली के व्यावसायिक पोत के रूप में दर्ज है। दूसरी ओर भारतीय दंड संहिता यानी आइपीसी के अनुसार किसी भारतीय नागरिक के खिलाफ किए गए किसी अपराध अथवा हमले के मामले में मुकदमा भारत में चलाया जाएगा और यदि ऐसी किसी घटना में किसी भारतीय की जान चली गई हो अथवा उसकी हत्या कर दी गई हो तो संबंधित निकाय कानून भी लागू किए जाएंगे, जैसा कि इस मामले में है।
क्या भारतीय मछुआरों की हत्या महज एक दुर्घटना थी? अथवा क्या इटली के सशस्त्र सैनिकों ने बिना किसी उकसावे के आनन-फानन में भारतीय मछुआरों को मार डाला। ऐसे ही न जाने कितने जटिल सवाल इस मामले की गहन जांच-पड़ताल के क्रम में उठेंगे। अगर इटली की सरकार अपनी इस दलील पर कायम रहती है कि उसके सैनिकों ने भारतीय मछुआरों को समुद्री लुटेरे समझ लिया था तो उन्हें यह भी साबित करना होगा कि भारतीयों ने उसके पोत पर हमले की कोशिश की। इस मामले की तह तक तभी पहुंचा जा सकता है जब बैलिस्टिक सबूतों की जांच-पड़ताल हो और दोनों पोत पर गोलियों के निशान जांचे जाएं, इटालियन पोत की लाग बुक के विवरण भी महत्वपूर्ण होंगे। फिलहाल इटली के दोनों सैनिक कोच्चि में हिरासत में रखे गए हैं। इटली के विदेश मंत्री फ्रांको फ्राटिनी मंगलवार को नई दिल्ली पहुंच रहे हैं ताकि इस मामले को उचित तरीके से हल किया जा सके। दुखद सच्चाई यह है कि चाहे यह घटना महज एक दुर्घटना हो अथवा इसे जानबूझकर अंजाम दिया गया हो, दो निर्दोष भारतीय मछुआरों ने तो अपनी जिंदगी गंवा ही दी। अब इस मामले में न्याय की दरकार है, न कि किसी बदले की कार्रवाई की। सबसे बड़ा फैसला तो इस संदर्भ में होना है कि मुकदमे की कार्रवाई किस देश में चलाई जाए-भारत में या इटली में? यह मामला इसलिए जटिल बन गया है, क्योंकि भारतीय मछुआरों की हत्या करने वाले इटली के गार्ड अपने देश की सेना के सदस्य हैं, कि निजी सुरक्षा गार्ड। सबसे अधिक आवश्यकता इस बात की है कि इस मामले को इतना अधिक न बढ़ने दिया जाए जिससे दोनों देशों के आपसी संबंधों पर आंच आने लगे। स्पष्ट है कि भारत और इटली को मिलकर इसे सही तरह हल करना होगा, लेकिन न्याय हर कीमत पर होना चाहिए।
प्रथम दृष्ट्या इटली का यह दावा कमजोर नजर आता है कि उसके सैनिकों ने समुद्री लुटेरों के धोखे में भारतीय मछुआरों पर गोली चला दी, क्योंकि जिस इलाके में यह घटना घटित हुई उसे समुद्री लुटेरों से प्रभावित जल क्षेत्र नहीं माना जाता। फिर इटली के पोत पर सवार सैनिकों ने यह कैसे मान लिया कि उन पर समुद्री लुटेरों का हमला होने वाला है। उनसे यह सवाल भी पूछा जाएगा कि अगर उन्हें यह भ्रम भी हो गया था तो उन्होंने कथित समुद्री लुटेरों से बचने के लिए क्या किया? क्या स्थानीय तटरक्षक जहाजों को चेतावनी का संकेत भेजा गया? जांच के दौरान ऐसे सभी सवालों का जवाब अवश्य सामने आना चाहिए। यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि इटली के पोत ने इस घटना के बाद भागने की कोशिश नहीं की और जब उसे निर्देश दिया गया तो वह भारतीय जल क्षेत्र में प्रवेश कर गया ताकि जांच का काम पूरा किया जा सके। इससे यह संकेत मिलता है कि भारतीय मछुआरों की जान लेने के बाद इटली के सैनिकों ने इस घटना को छिपाने अथवा घटनास्थल से भाग जाने की कोई कोशिश नहीं की।
नि:संदेह यह भारत और इटली, दोनों के लिए अपनी तरह का पहला मामला है और इसे कानूनी तरीके से ठंडे दिमाग से हल किया जाना चाहिए। मुद्दा समुद्री लुटेरों के खतरे का भी है। इस संदर्भ में यह भी गौर करने लायक है कि चीन ने भी इस समस्या से निपटने के लिए भारत और जापान के साथ बेहतर तालमेल के साथ काम करने का संकल्प व्यक्त किया है। सोमालियाई समुद्री लुटेरों ने पूरे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए बहुत बड़ी चुनौती खड़ी कर दी है। भारत के आसपास अगर ऐसी समस्या खड़ी होती है तो इससे अधिक चिंताजनक और क्या होगा-खासकर यह देखते हुए कि यह क्षेत्र पहले ही आतंकवाद और मजहबी क˜रता के बहुत गंभीर ख्रतरे का सामना कर रहा है। हाल में इस संदर्भ में लंदन में हुए एक सम्मेलन में भारत के विदेश राज्य मंत्री ई. अहमद ने भी भाग लिया और समुद्री क्षेत्र में उभर रही चुनौती से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में व्यापक रणनीति की जरूरत पर जोर दिया। जल क्षेत्र में उभरी समस्या से निपटने का सबसे प्रभावशाली हल जमीन पर टिका है। तात्पर्य यह है कि देशों को इस समस्या का सामना करने के लिए कहीं अधिक राजनीतिक प्रतिबद्धता दिखानी होगी।
[सी. उदयभाष्कर: लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं]
5
यूरोप का इतिहास
मुक्त ज्ञानकोष विकिपीडिया से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
यूरोप में मानव ईसापूर्व 35,000 के आसपास आया । ग्रीक (यूनानी) तथा लातिनी (रोम) राज्यों की स्थापना प्रथम सहस्त्राब्दी के पूर्वार्ध में हुई । इन दोनों संस्कृतियों ने आधुनिक य़ूरोप की संस्कृति को बहुत प्रभावित किया है । ईसापूर्व 480 के आसपास य़ूनान पर फ़ारसियों का आक्रमण हुआ जिसमेंम यवनों को बहुधा पीछे हटना पड़ा । 330 ईसापूर्व में सिकन्दर ने फारसी साम्राज्य को जीत लिया । सन् 27 ईसापूर्व में रोमन गणतंत्र समाप्त हो गया और रोमन साम्राज्य की स्थापना हुई । सन् 313 में कांस्टेंटाइन ने ईसाई धर्म को स्वीकार कर लिया और यह धर्म रोमन साम्राज्य का राजधर्म बन गया । पाँचवीं सदी तक आते आते रोमन साम्राज्य कमजोर हो चला और पूर्वी रोमन साम्राज्य पंद्रहवीं सदी तक इस्तांबुल में बना रहा । इस दौरान पूर्वी रोमन साम्राज्यों को अरबों के आक्रमण का सामना करना पड़ा जिसमें उन्हें अपने प्रदेश अरबों को देने पड़े ।
सन् 1453 में इस्तांबुल के पतन के बाद यूरोप में नए जनमानस का विकास हुआ जो धार्मिक बंधनों से उपर उठना चाहता था । इस घटना को पुनर्जागरण (फ़्रेंच में रेनेसाँ) कहते हैं । पुनर्जागरण ने लोगों को पारम्परिक विचारों को त्याग व्यावहारिक तथा वैज्ञानिक तथ्यों पर विश्वास करने पर जोर दिया । इस काल में भारत तथा अमेरिका जैसे देशों के समुद्री मार्ग की खोज हुई । सोलहवीं सदी में पुर्तगाली तथा डच नाविक दुनिया के देशों के सामुद्रिक रास्तों पर वर्चस्व बनाए हुए थे । इसी समय पश्चिमी य़ूरोप में औद्योगिक क्रांति का सूत्रपात हो गया था । सांस्कृतिक रूप से भी य़ूरोप बहुत आगे बढ़ चुका था । साहित्य तथा कला के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई थी । छपाई की खोज के बाद पुस्तकों से ज्ञानसंचार त्वरित गति से बढ़ गया था ।
सन् 1789 में फ्रांस की राज्यक्रांति हुई जिसने पूरे यूरोप को प्रभावित किया । इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता, जनभागीदारी तथा उदारता को बल मिला था । रूसी साम्राज्य धीरे-धीरे विस्तृत होने लगा था । पर इसका विस्तार मुख्यतः एशिया में अपने दक्षिण की तरफ़ हो रहा था । इस समय ब्रिटेन तथा फ्रांस अपने नौसेना की तकनीकी प्रगति के कारण डचो तथा पुर्तगालियों से आगे निकल गए । पुर्तगाल पर स्पेन का अधिकार हो गया और पुर्तगाली उपनिवेशों पर अधिकांशतः अंग्रेजों तथा फ्रांसिसियों ने अधिकार कर लिया । रूसी सर्फराज्य का पतन 1861 में हुआ । बाल्कन के प्रदेश उस्मानी साम्राज्य (ऑटोमन) से स्वतंत्र होते गए । 1914-8 तथा 1939-45 में दो विश्वयुद्ध हुए । दोनों में जर्मनी की पराजय हुई । इसेक बाद विश्व शीतयुद्ध के दौर से गुजरा । अमेरिका था रूस दो महाशक्ति बनकर उभरे । प्रायः पूर्वी य़ूरोप के देश रूस के साथ रहे जबकि पश्चिमी य़ूरोप के देश अमेरिका के । जर्मनी का विभाजन हो गया ।
सन् 1959 में रूस ने अपने कॉस्मोनॉट यूरी गगरिन को अंतरिक्ष में भेजा । 1969 में अमेरिका ने सफलतापूर्वक मानव को चन्द्रमा की सतह तक पहुँचाने का दावा किया हथियारों की होड़ बढ़ती गई । अंततः अमेरिका आगे निकल गया और 1989 में जर्मनी का एकीकरण हुआ । 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया । रूस सबसे बड़ा परवर्ती राज्य बना । सन् 2007 में यूरोपीय संघ की स्थापना हुई ।
सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में यूरोप के देशों की आर्थिक-सामाजिक स्थिति
सत्रहवीं शताब्दी में पहली बार भारत का ब्रिटेन से सम्पर्क हुआ। यह सम्पर्क दो परस्पर-विरोधी संस्कृतियों का परस्पर टकरानामात्र था। उन दिनों समूचा ब्रिटेन अर्धसभ्य किसानों का उजाड़ देश था। उनकी झोपड़ियों नरसलों और सरकंडों की बनी होती थीं, जिनके ऊपर मिट्टी या गारा लगाया हुआ होता था। घास-फूस जलाकर घर में आग तैयार की जाती थी जिससे सारी झोपड़ी में धुआँ भर जाता था। धुँए को निकालने के कोई राह ही न थी। उनकी खुराक जौ, मटर, उड़द, कन्द और दरख्तों की छाल तथा मांस थी। उनके कपड़ों में जुएं भरी होती थीं।
आबादी बहुत कम थी, जो महामारी और दरिद्रता के कारण आए दिन घटती जाती थी। शहरों की हालत गाँवों से कुछ अच्छी न थी। शहरवालों का बिछौना भुस से भरा एक थैला होता था। तकिये की जगह लकडी का एक गोल टुकड़ा। शहरी लोग जो खुशहाल होते थे, चमड़े का कोट पहनते थे। गरीब लोग हाथ-पैरों पर पुआल लटेपकर सरदी से जान बचाते थे। न कोई कारखाना था, न कारीगर। न सफाई का इन्तजाम, न रोगी होने पर चिकित्सा की व्यवस्था। सड़कों पर डाकू फिरते थे और नदियां तथा समुद्री मुहाने समुद्री डाकुओं से भरे रहते थे। उन दिनो दुराचार का तमाम यूरोप में बोलबाला और आतशक-सिफलिस की बीमारी आम थी। विवाहित या अविवाहित, गृहस्थ पादरी, यहाँ कि पोप दसवें लुई तक भी इस रोग से बचे न थे। पादरियों का इंग्लैंड की एक लाख स्त्रियों को भ्रष्ट किया था। कोई पादरी बड़े से बड़ा अपराध करने पर भी केवल थोड़े-से जुर्माने की सज़ा पाता था। मनुष्य-हत्या करने पर भी केवल छः शिलिंग आठ पैंस- लगभग पांच रुपये-जुर्माना देना पड़ता था। ढोंग-पाखण्ड, जादू-टोना उनका व्यवसाय था।
सत्रहवीं शताब्दी के अंतिम चरण में लंदन नगर इतना गंदा था, और वहां के मकान इस कदर भद्दे थे कि उसे मुश्किल से शहर कहा जा सकता था। सड़कों की हालत ऐसी थी कि पहियेदार गाड़ियों का चलना खतरे से खाली न था लोग लद्दू टट्टुओं पर दाएं-बाएं पालनों में असबाब की भाँति लदकर यात्रा करते थे। उन दिनों तेज़ से तेज़ गाड़ी इंगलैंड में तीस से पचास मील का सफर एक दिन मे तय कर सकती थी। अधनंगी स्त्रियां जंगली और भद्दे गीत गाती फिरती थीं और पुरुष कटार घुमा-घुमाकर लड़ाई के नाच नाचा करते थे। लिखना-पढ़ना बहुत कम लोग जानते थे। यहाँ तक कि बहुत-से लार्ड अपने हस्ताक्षर भी नहीं कर सकते थे। बहुदा पति कोड़ों से अपनी स्त्रियों को पीटा करते थे। अपराधी को टिकटिकी से बाँधकर पत्थर मार-मारकर मार डाला जाता था। औरतों की टाँगों को सरेबाजार शिकंजों में कसकर तोड़ दिया जाता था। शाम होने के बाद लंदन की गलियां सूनी, डरावनी और अंधेरी हो जाती थीं। उस समय कोई जीवट का आदमी ही घर से बाहर निकलने का साहस कर सकता था। उसे लुट जाने या गला काट जाने का भय था। फिर उसके ऊपर खिड़की खोल कोई भी गन्दा पानी तो फेंक ही सकता था। गलियों में लालटेन थीं ही नहीं। लोगों को भयभीत करने के लिए टेम्स के पुराने पुल पर अपराधियों के सिर काट कर लटका दिए जाते थे। धार्मिक स्वतन्त्रता न थी। बादशाह के सम्प्रदाय से भिन्न दूसरे किसी सम्प्रदाय के गिरजाघर में जाकर उपदेश सुनने की सजा मौत थी। ऐसे अपराधियों के घुटने को शिकजे में कसकर तोड़ दिया जाता था। स्त्रियों को लड़कियों को सहतीरों में बाँधकर समुद्र के किनारे पर छोड़ देते थे कि धीरे-धीरे बढ़ती हुई समुद्र की लहरें उन्हें निगल जाएं। बहुधा उनके गालों को लाल लोहे से दागदार अमेरिका निर्वासित कर दिया जाता था। उन दिनों इंग्लैंड की रानी भी गुलामों के व्यापर में लाभ का भाग लेती थी।
इंग्लैंड के किसान की व्यवस्था उस ऊदबिलाव के समान थी जो नदी किनारे मांद बनाकर रहता हो। कोई ऐसा धंधा-रोजगार न था कि जिससे वर्षा न होने की सूरत में किसान दुष्काल से बच सकें। उस समय समूचे इंगलिस्तान की आबादी पचास लाख से अधिक न थी। जंगली जानवर हर जगह फिरते थे। सड़कों की हालत बहुत खराब थी। बरसात में तो सब रास्ते ही बन्द हो जाते थे। देहात में प्रायः लोग रास्ता भूल जाते थे और रात-रात भर ठण्डी हवा में ठिठुरते फिरते थे। दुराचार का दौरदौरा था। राजनीतिक और धार्मिक अपराधों पर भयानक अमानुषिक सजाएं दी जाती थीं।
यह दशा केवल ब्रिटेन की ही न थी, समूचे यूरोप की थी। प्रायः सब देशों में वंश-क्रम से आए हुए एकतन्त्र, स्वेच्छाचारी निरंकुश राजा राज्य करते थे। उनका शासन-सम्बन्धी मुख्य सिद्दान्त था-हम पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि हैं, और हमारी इच्छा ही कानून है। जनता की दो श्रेणियां थी। जो कुलीन थे वे ऊँचे समझे जाते थे; जो जन्म से नीच थे वे दलितवर्गी थे। ऐसा एक भी राजा न था जो प्रजा के सुख-दुख से सहानुभूति रखता हो। विलाश और शान-शौकत ही में वे मस्त रहते थे। वे अपनी सब प्रजा के जानोमाल के स्वामी थे। राजा होना उनका जन्मसिद्ध अधिकार था। उनकी प्रजा को बिना सोचे-समझे उनकी आज्ञा का पालन करना ही चाहिए। फ्रांस का चौदहवां लुई ऐसा ही बादशाह था। यूरोप में वह सबसे अधिक काल तक तख्तनशीन रहा। वह औरंगजेब से बारह वर्ष पूर्व गद्दी पर बैठा और उसके मरने के आठ वर्ष बाद तक गद्दी पर बैठा रहा। पूरे बहत्तर वर्ष। वह सभ्य, बुद्धिमान और महत्वाकांक्षी था। और चाहता था कि फ्रांस दुनिया का सबसे अधिक शक्ति-सम्पन्न राष्ट्र बन जाए।
परन्तु जब-जब वह फ्रांस की शक्ति और उन्नति की बात सोचता था, तब-तब वह फ्रांस की जनता के सम्बन्ध में नहीं, केवल अपने और अपने सामन्तों के सम्बन्ध में। वह अपने ही को राज्य कहता था, और यह उसका तकिया-कलाम बन गया था। उसने अपनी दरबारी तड़क-भड़क से सारे संसार को चकित कर दिया था और फ्रांस सारे तत्कालीन सभ्य संसार में फैशन के लिए प्रसिद्ध हो गया था। उसने प्रजा पर भारीभारी टैक्स लगाए थे तथा प्रजा की गाढ़ी कमायी से बड़े-बड़े राजमहल बनाए थे। उसने वसाई और पेरिस की शान बनाई कि जिसकी उपमा यूरोप में न थी। उसने अजेय सेना का संगठन किया था, जिसे यूरोप के सब राष्ट्रों ने मिलकर बड़ी ही कठिनाई से परास्त किया। सन् 1715 में जब वह मरा तो पेरिस अपनी शान-फैशन साहित्य, सौन्दर्य और बड़े-बड़े महलों तथा फव्वारों से सुसज्जित था और फ्रांस यूरोप की प्रधान राजनीतिक और सैनिक शक्ति बन गया था। परन्तु सारा देश भूखा और सन्तुष्ट था। उस काल में यूरोप का मुख्य प्रतिद्वन्द्वी आस्ट्रिया था जिसके राजा हाशबुर्ग के थे। पवित्र रोमन साम्राज्य के सम्राट का गौरवपूर्ण पद इसी राजवंश को प्राप्त था। यद्यपि इस पद के कारण आस्ट्रिया के राजाओं की शक्ति मे कोई वृद्ध नहीं हुई थी पर उसका सम्मान और प्रभाव तथा प्रभुत्व समूचे यूरोप पर था।
उस समय जर्मन न कोई एक राष्ट्र था, न एक राज्य का नाम ही जर्मनी था। तब जर्मनी लगभग तीन सौ साठ छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था, जिनमें तनिक भी राजनीतिक एकता न थी। वे नाममात्र को आस्ट्रिया के धर्मसम्राट की अधीनता मानते थे।
यही दशा इटली की थी। इटली का राष्ट्र है, यह कोई न जानता था। वहाँ भी अनेक छोटे-छोटे स्वतन्तत्र राज्य थे, जिसके राजा निरंकुश स्वेच्छाचारी थे। जनता को शासन में कहीं कोई अधिकार प्राप्त न था।
स्पेन इस काल में यूरोप का सबसे अधिक समर्थ राज्य था। पन्द्रहवीं-सोलहवीं शताब्दी में ही उसने अमेरिका मे उपनिवेश स्थापित करके अपनी अपार समृद्धि बढ़ा ली थी। स्पेन के राजा यूरोप के अनेकों देशों के अधिपति थे।
पोलैण्ड सोलहवीं शताब्दी तक यूरोप का एक समर्थ राज्य था। सत्रहवीं शताब्दी में पीटर के अभियानों ने उसे जर्जर और अव्यवस्थिपित कर दिया था और फिर वहाँ किसी शक्तिशाली केन्द्रीय शासन का विकास नहीं हो पाया।
स्वीडन, डेनमार्क, नार्वें, हालैण्ड और स्विटज़लैण्ड का विकास अभी हुआ ही नहीं था। अभी ये देश पिछड़े हुए थे।
आज का सोवियत रूस संसार का सबसे बड़ा और समर्थ प्रतातन्त्र है। आज उसका एक छोर बाल्टिक सागर से पैसिफिक सागर तक फैला हुआ और दूसरा आर्कटिक सागर से भारत और चीन की सीमाओं को छू रहा है। परन्तु उन दिनों वह छोटा-सा प्रदेश था, मास्को नगर के आसपास के इलाकों तक ही सीमित था और जिसका अधिकांश जंगल था। समुद्र से उसका सम्बन्ध विच्छिन्न था। एक भी समुद्र-तट उसके पास न था। तब बाल्टिक सागर का सारा तट स्वीडन के बाद शाह के अधीन और सागर तथा कास्पियन सागर तट का सारा दक्षिण भू-भाग तातारी और तुर्क राजाओं के सरदारों के अधिकार में था।
चौदहवीं शताब्दी के अंतिम चरण में पीटर ने ज़ार के सिंहासन पर बैठकर रूस की कायापलट करने का उपक्रम किया। उन दिनों रूस के लोग लम्बी-लम्बी दाढ़ियाँ रखते और ढीले-ढीले लबादे पहनते थे। एक दिन उसने अपने सब दरबारियों को अपने दरबार में बुलाया, और सबकी दाढ़ी अपने हाथ से मूंड दीं। और चुस्त पोशाकें पहना दीं। उसने स्वीडन के बादशाह के हाथों से बाल्टिक तट छीन लिया और समुद्र-तट पर अपनी नई राजधानी सेण्ट पीटर्सबर्ग जो आज लेनिन ग्राड के नाम से विख्यात है।
परन्तु यह महान सुधारक पीटर भी उन दोषों से मुक्त न था, जो उन दिनों संसार के बादशाहों में थे। वह स्वेच्छाचारी था। वह जो चाहता था वही करता था उनकी आज्ञा का पालन करने में किसे कितना कष्ट झेलना पड़ेगा, इसकी उसे परवाह न थी।
इन्हें भी देखें
दिक्चालन सूची
Top of Form
Bottom of Form
8
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के हाल ही में सोमालिया समुद्री डाकूओं पर वार करने के सवाल पर पारित एक प्रस्ताव को लेकर चीनी विदेश मंत्रालय के अधिकारी ने कहा कि चीन संबंधित समुद्री क्षेत्रों में जहाजरानी की सुरक्षा के लिए सैन्य पोत भेजने पर विचार कर रहा है। संबंधित विशेषज्ञों ने कहा कि चीन द्वारा जहाजरानी की सुरक्षा के लिए भेजे जाने वाले सैन्य पोत संयुक्त राष्ट्र के ढांचे के तहत कार्यवाही करेगी, यह अन्तरराष्ट्रीय कानून के अनुरूप है।
इधर के सालों में सोमालिया समुद्री क्षेत्रों में बराबर समुद्री डाकूओं द्वारा सशस्त्र हमलों से वहां से गुजर रहे जहाजों को अपहृत करने की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं, अन्तरराष्ट्रीय नौ परिवहन, समुद्री व्यापार व समुद्री सुरक्षा को भारी खतरा पैदा हुआ है। सूत्रों के अनुसार, 2007 में करीब 300 से अधिक जहाज सोमालिया समुद्र में डाकूओं के शिकार हुए हैं। इस साल की जनवरी से नवम्बर तक कोई 40 से अधिक जहाजों को अपहृत् किया गया है, वर्तमान कोई 20 से अधिक जहाजों व करीब 300 से अधिक सेलरों को बन्धक बनाए रखा है, इन में एक चीनी माहीगिरी जहाज व 18 सेलर भी शामिल हैं।
इस माह की 16 तारीख को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने फिर एक बार सोमालिया समुद्री डाकूओं पर प्रहार करने के सवाल पर एक प्रस्ताव पारित किया। चीनी उप विदेश मंत्री खे या फए ने प्रस्ताव के पारित होने के बाद जानकारी देते हुए कहा कि चीन एडन घाड़ी व सोमालिया समुद्री क्षेत्रों में जहाजरानी की सुरक्षा के लिए सैन्य पोत भेजने पर विचार कर रहा है। 18 तारीख को चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ल्यू च्येन छाओ ने फिर एक बार दोहराते हुए कहा कि चीन अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के समुद्री डाकूओं पर प्रहार करने पर किए जा रहे कारगर सहयोग का स्वागत करता है, निकट समय में सैन्य पोत को संबंधित समुद्री क्षेत्रों में जहाजरानी की सुरक्षा गतिविधियों में भाग लेने पर विचार कर रहा। उन्होने कहा चीन सरकार अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के सोमालिया समुद्री डाकूओं के खतरों को लेकर किए गए कारगर सहयोग का स्वागत करती है और संबंधित देशों के अन्तरराष्ट्रीय कानून व सुरक्षा परिषद के संबंधित प्रस्तावों के अनुसार सोमालिया समुद्री डाकूओं पर प्रहार करने के प्रयासों का समर्थन करती है, चीनी पक्ष इधर के दिनों में संबंधित समुद्री क्षेत्रों में जहाजरानी की सुरक्षा के लिए सैन्य पोत भेजने पर विचार कर रहा है।
चीनी सैन्य सवाल के विशेषज्ञ सुंग श्याओ च्वीन ने कहा कि चीन एडन घाड़ी व सोमालिया समुद्री क्षेत्रों में जहाजरानी की सुरक्षा के लिए जो सैन्य पोत भेजने पर विचार कर रहा है वह अन्तरराष्ट्रीय नौ परिवहन, समुद्री व्यापार की सुरक्षा से प्रस्थान होकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा सौंपी गैरपरम्परागत सुरक्षा क्षेत्रों में सुरक्षा मिशन को निभाने की कार्यवाही होगी , न कि केवल चीनी जहाजरानी की सुरक्षा करने कार्यवाही । उन्होने कहा यह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एक सदस्य देश के सैन्य पोत को एक गैरपरम्परागत सुरक्षा क्षेत्रों में कार्य निभाने का एक सामान्य मिशन है. यह केवल अकेले चीनी दूर समुद्र जहाजों की रखवाली करना नहीं है, बल्कि भागीदारी की हैसियत से पूरे अन्तरराष्ट्रीय समुदाय के संयुक्त राष्ट्र द्वारा सौंपे अधिकार तहत सोमालिया समुद्री इलाकों के डाकूओं की भयंकर डकेती को रोकने की एक कार्यवाही है।
जानकारी के अनुसार, सोमालिया समुद्री डाकूओं की भयंकर डकेती कार्यवाहियां चीन के जहाजों के लिए एक गंभीर खतरा बन गयी है, चीनी दूर समुद्र संघ के आंकड़ो से पता चला है कि इस साल की जनवरी से नवम्बर तक एडन घाड़ी और सोमालिया समुद्री क्षेत्रों में कुल 1265 जहाज इन इलाकों से गुजरे हैं, इन में एक जहाज का अपहरण किया गया है और 83 जहाजों को अलग अलग तौर से समुद्री डाकूओं के हमलों का सामना करना पड़ा है। विशेषकर नवम्बर में यह स्थिति और गंभीर हो गयी है, चीनी दूर समुद्र परिवहन समूह के अधीन के 20 जहाजों पर डाकूओं ने हमले बोले हैं।
इस के अलावा, वर्तमान चीन द्वारा पंजीकृत दूर समुद्र नौ परिवहन जहाजों की संख्या हालांकि केवल 1000 ही है, लेकिन चीन के हितों से संबंधित जहाजों की संख्या इस से कहीं ज्यादा है। बहुत से चीनी कम्पनियों ने पंजीकरण सुविधा को देखते हुए व उदार कर वसूली दर के लालच पर पानामा और होन्डालोस आदि देशों में पंजीकरण किया है। और तो और चीन के निर्यातित श्रमिकों की संख्या भी बहुत विशाल है, बहुत से देशों के जहाजों में चीनी सेलर कार्यरत हैं।
सुन श्याओ च्वीन ने इस पर बोलते हुए कहा कि वर्तमान नाटो, रूस, यूरोपीय संघ, भारत और जापान आदि 10 से अधिक देशों व संगठनों ने एडन घाड़ी में 20 से अधिक सैन्य पोतें भेजे हैं, जो व्यापरियों के जहाजों की सुरक्षा कर रहे हैं। उन्होने कहा संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित अनेक प्रस्तावों में एक समान कानून ढांचे तहत चीन जैसा देश भी इस तरह का मिशन निभा सकता हैं, यह एक अत्यन्त कुंजीभूत सवाल है। क्योंकि चीनी राजनयिक नीति में एक महत्वपूर्ण विषय यह है कि अन्तरराष्ट्रीय विवादों का निपटारा करने के समय बल शक्ति व सशस्त्र बल से धमकी देने का विरोध जताया गया है, यह एक बेहद महत्वपूर्ण सैद्धांतिक सवाल है।
http://hindi.cri.cn/images/content2007_07.jpg
http://hindi.cri.cn/images/07indexwz_39.jpg
http://hindi.cri.cn/images/07indexwz_46.jpg
http://hindi.cri.cn/images/07indexwz_47.jpg
http://hindi.cri.cn/images/spacer.gif
फ़ोकस मामले
http://hindi.cri.cn/images/07indexwz_29.jpg
http://hindi.cri.cn/images/content2007_12.jpg
http://hindi.cri.cn/images/spacer.gif
http://hindi.cri.cn/images/spacer.gif
© China Radio International.CRI. All Rights Reserved.
16A Shijingshan Road, Beijing, China. 100040
9
नई दिल्ली। समुद्री डकैती की बढ़ती संख्या के मद्देनजर और अपनी तटीय सुरक्षा को सशक्त बनाने के लिए भारत शुक्रवार को अरब सागर में अपने दो नए तटरक्षक प्रतिष्ठानों को खोलेगा। रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने बुधवार को यहां बताया कि रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी अपनी लक्ष्यद्वीप की यात्रा के दौरान इन नए प्रतिष्ठानों का उद्घाटन करेंगे। प्रवक्ता ने बताया कि लक्षद्वीप के पास हाल के दिनों में समुद्री डकैती के मामलों में इजाफा हुआ है। इस नई सुरक्षा संरचनाओं से 36 द्वीपों के द्वीपसमूहों की करीब 32 वर्ग कीलोमीटर की तटीय सुरक्षा मजबूत होगी।
स्थापित किए जाने वाले दोनों केन्द्रों कावरत्ती में भारतीय तट रक्षक बल जिला मुख्यालय-12 और मिनिकय में तट रक्षक स्टेशन पर बनाए गए हैं। रक्षा मंत्रालय की ओर से जारी एक विज्ञप्ति में बताया गया कि कावरत्ती स्थित मुख्यालय आईसीजी, केन्द्र शासित क्षेत्रों के अधिकारियों और अन्य समुद्री सीमा से सम्बंधित मामलों और अन्य समुद्री पणधारकों के बीच घनिष्ठ समन्वय स्थापित करने में सहायता प्रदान करेगा। इससे समुद्र क्षेत्र में होने वाली गतिविधियों पर त्वरित निर्णय लेने में भी मदद मिलेगी।
केरल तट से 200 और 400 किलोमीटर के बीच की दूरी पर स्थित लक्षद्वीप कुल लगभग 32 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र के साथ 36 द्वीपों का द्वीप समूह है। इन 36 द्वीपों में से केवल 11 पर लोग निवास करते हैं। विज्ञप्ति के मुताबिक प्रादेशिक जल लगभग 20,000 वर्ग किलोमीटर और विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र 4 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। हाल में लक्षद्वीप के काफी नजदीक समुद्री डकैतों की घटनाओं में बढ़ोतरी ने क्षेत्र में नए खतरों की संभावनाओं को उजागर किया है।
लक्ष्यद्वीप भी समुद्री प्रदूषण से असुरक्षित है, क्योंकि विश्व की दो सर्वाधिक व्यस्ततम संचार समुद्री लेन यहां पर हैं। समुद्री यातायात का यह महत्वपूर्ण मार्ग है क्योंकि 30 से 40 जलयान प्रतिदिन इस मार्ग से गुजरते हैं।
10
http://hindi.webdunia.com/articles/1106/21/images/img1110621040_1_1.jpg
BBC
दुनियाभर में समुद्रों के हालात को लेकर जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्रों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और समुद्री जीवों के विलुप्त होने का खतरा आशंका से कहीं अधिक तेजी से बढ़ रहा है।

इंटरनेशनल प्रोग्राम ऑन स्टेट ऑफ ओशियंसनाम की इस रिपोर्ट में एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि दुनियाभर में समुद्रों के हालात बद से बदतर हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक समुद्रों को इस दुर्दशा से बचाने के लिए जल्द से जल्द कुछ कदम उठाने की जरूरत है। इनमें, मछलियों के जरूरत से ज्यादा शिकार पर रोक, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी और विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण जैसे सुझाव शामिल हैं।

जरूरी कदम : यह रिपोर्ट इस सप्ताह के अंत पर संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश की जाएगी और इस पर विचार-विमर्श के लिए अलग-अलग विषयों से जुड़े वैज्ञानिक आगे आएंगे।

बीबीसी संवाददाता रिचर्ड ब्लैक के मुताबिक रिपोर्ट में साफ तौर पर यह कहा गया है कि समुद्रों के हालात में किए गए आकलन से कहीं अधिक तेजी से गिरावट आ रही है।

कोरल रीफ के खात्मे, समुद्री जीवों की दुर्लभ प्रजातियों के शिकार और तेजी से पिघलती बर्फ ने कई ऐसे खतरे पैदा कर दिए हैं जिनसे समय रहते निपटना जरूरी है।

अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले घटकों ने एक तरह से साथ मिलकर इस नुकसान और खतरे को बढ़ा दिया। अनुसंधानकर्ताओं ने माना है कि वैज्ञानिकों को इस घटनाक्रम का अंदाजा नहीं था।
संबंधित जानकारी
11


PTI /  November 20, 2012





Gaur Sportswood Sec 79 : 3/4 BHK Apt Start @ 70.84 Lacs. Ultra Luxury Amenities. Book Now!
Homewiseindia.com/mini/Sports-Wood
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप सिंह पुरी की अध्यक्षता में कल सुरक्षा परिषद् में समुद्री लूट के मुद्दे पर एक चर्चा आयोजित की गई।
संबंधित खबरें



http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg
http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg
http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg
http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg
http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg
http://hindi.business-standard.com/images/bullets.jpg

गौरतलब है कि मासिक तौर पर सुरक्षा परिषद् की अध्यक्षता की प्रणाली के तहत पुरी इस महीने इस 15 सदस्यीय परिषद् के अध्यक्ष हैं।
मेनटेनेंस ऑफ इंटरनेशनल पीस एंड सिक्योरिटी: पाइरेसी विषय पर आयोजित इस चर्चा के बाद परिषद् ने समुद्री लूट के मुद्दे पर भारत के प्रतिनिधिमंडल की ओर से लाए गए एक अध्यक्षीय टिप्पणी को भी मंजूर किया।
इस टिप्पणी में कहा गया, सुरक्षा परिषद् अंतरराष्ट्रीय समुद्री परिचालन, व्यवासायिक समुद्री मार्गों और संबंधित क्षेत्रों की सुरक्षा एवं विकास पर समुद्री लूट के खतरे पर बहुत चिंतित है। परिषद् नाविकों और समुद्री परिवहन से जुड़े अन्य लोगों की सुरक्षा एवं समुद्री लुटेरों की ओर से हिंसा की घटनाएं बढ़ने से भी काफी चिंतित है।
13
नई दिल्ली: समुद्री क्षेत्रों में सशस्त्र लूटपाट से एशियाई क्षेत्रों की स्थिरता पर खतरा बताते हुए रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने कहा कि भारत समुद्री लूटपाट और आतंकवाद से निपटने के लिए अपनी क्षमताओं को बढ़ाने के कदम उठा रहा है।

एशियाई तट रक्षक एजेंसियों के प्रमुखों के आठवें अधिवेशन को संबोधित करते हुए रक्षा मंत्री ने कहा, ‘भारत इस बात को मजबूती से मानता है कि समुद्र में सुरक्षा और हिफाजत सुनिश्चित करने के लिए आपसी सहयोग अकेले सबसे प्रभावी तरीका है।’’ उन्होंने कहा, ‘समुद्री लूटपाट और सशस्त्र लूट, मादक पदाथोर्ं और हथियारों की तस्करी तथा अनियमित एवं पता नहीं चलने वाली मछली पकड़ने की घटनाओं समेत अनेक चुनौतियां क्षेत्र की अल्पकालिक और दीर्घकालिक स्थिरता दोनों के लिए खतरा हैं।चीन, जापान, बांग्लादेश, श्रीलंका, वियतनाम और कंबोडिया समेत 17 एशियाई देशों के तट रक्षक प्रमुख बैठक में भाग ले रहे हैं।

रक्षामंत्री ने बढ़ी हुई जिम्मेदारियों तथा चुनौतियों के संदर्भ में कहा, ‘हम तटीय सुरक्षा, समुद्री लूटपाट, आतंकवाद रोधी अभियानों और तेल रिसाव पर कार्रवाई के क्षेत्र में अपनी क्षमता को बढ़ाने पर भी विचार कर रहे हैं।क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने की जरूरत पर टिप्पणी करते हुए एंटनी ने कहा कि भारतीय नौसेना और तटरक्षक अनेक एशियाई देशों के साथ नियमित तौर पर संयुक्त अभ्यासों में भाग लेते हैं। (एजेंसी)



<script language="javascript" src="http://jt.india.com/addyn/3.0/1191/4360554/0/1/ADTECH;cookie=info;loc=700;target=_blank;grp=[group]"></script><noscript><a href="http://jt.india.com/adlink/3.0/1191/4360554/0/1/ADTECH;cookie=info;loc=300;grp=[group]" target="_blank"><img src="http://jt.india.com/adserv/3.0/1191/4360554/0/1/ADTECH;cookie=info;loc=300;grp=[group]" border="0" width="468" height="60"></a></noscript>

14

Sign in
Hindi news home page

Top of Form
हिन्दी में
Bottom of Form
आप यहां हैं : होम » दुनिया से »
अफ्रीका में समुद्री लूट से लड़ने में भारत मदद को तैयार
Indo Asian News Service, Last Updated: फ़रवरी 28, 2012 01:55 PM IST

Gaur Sportswood Sec 79 – 3/4 BHK Apt Start @ 70.84 Lacs. Get Easy Home Loans. Book Now!
email
email
संयुक्त राष्ट्र: भारत ने गिनी की खाड़ी में समुद्री लूट के खतरे से निपटने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में योगदान देने के लिए तत्परता दिखाई है।
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि हरदीप सिंह पुरी ने सुरक्षा परिषद से सोमवार को कहा, "भारत इस क्षेत्र के देशों के समुद्र में समुद्री लूट व सशस्त्र लूट से निपटने में प्रभावी सहयोग बढ़ाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में योगदान देने के लिए तैयार है।"

अफ्रीका के दोनों तटों पर समुद्री लूट इस इलाके में मौजूद अस्थिरता व आतंकवादी और आपराधिक समूहों की यहां पहुंच को दिखाती है। पुरी ने इस क्षेत्र में उभरते तेल उद्योगों व वाणिज्यिक नौवहन पर समुद्री लूट का बुरा प्रभाव पड़ने के मद्देनजर यह बात कही। पुरी ने कहा कि सोमालिया के तट पर समुद्री लूट में भारत सबसे ज्यादा प्रभावित है। उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समुद्री लूट विरोधी रणनीति तैयार करने की त्वरित आवश्यकता है।

उन्होंने कहा कि भारत गिनी की खाड़ी सहित उसके आर्थिक व सामाजिक तटों पर बढ़ती समुद्री लूट के प्रति चिंतित है। पुरी ने कहा कि अब समय आ गया है कि सुरक्षा परिषद समुद्री लूट के प्रति अपनी चिंताओं को दूर करने के लिए ठोस योजना बनाए। उन्होंने कहा कि यह एक क्षेत्रीय समस्या है लेकिन यह आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में पश्चिमी अफ्रीका व क्षेत्रीय और उप-क्षेत्रीय संगठनों सहित अंतरराष्ट्रीय समुदाय के पूर्ण सहयोग से इससे निपटा जाए। से जुड़े अन्य अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें फेसबुक पर ज्वॉइन करें, ट्विटर पर फॉलो करे..

15

वेबसाइट खोलने के लिए लिंक
हमारा ताज़ा रेडियो कार्यक्रम
ताज़ा समाचार:
 मंगलवार, 21 जून, 2011 को 01:31 IST तक के समाचार
ख़तरे में है समुद्री जीवन !
http://wscdn.bbc.co.uk/worldservice/assets/images/2011/06/20/110620195201_ocean_marine_life_466x262_getty_nocredit.jpg
दुनियाभर में समुद्रों के हालात को लेकर जारी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि समुद्रों के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं और समुद्री जीवों के विलुप्त होने का ख़तरा आशंका से कहीं अधिक तेज़ी से बढ़ रहा है.
इंटरनेशनल प्रोग्राम ऑन स्टेट ऑफ ओशियंसनाम की इस रिपोर्ट में एक अध्ययन के हवाले से कहा गया है कि दुनियाभर में समुद्रों के हालात बद से बदतर हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक समुद्रों को इस दुर्दशा से बचाने के लिए मछलियों के ज़रूरत से ज़्यादा शिकार, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी और विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण जैसे क़दम उठाने होंगे.
रिपोर्ट के मुताबिक समुद्रों को इस दुर्दशा से बचाने के लिए जल्द से जल्द कुछ क़दम उठाने की ज़रूरत है. इनमें, मछलियों के ज़रूरत से ज़्यादा शिकार पर रोक, प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन में कमी और विलुप्त हो रही प्रजातियों के संरक्षण जैसे सुझाव शामिल हैं.
ज़रूरी क़दम
यह रिपोर्ट इस सप्ताह के अंत कर संयुक्त राष्ट्र के सामने पेश की जाएगी और इस पर विचार-विमर्श के लिए अलग-अलग विषयों से जुड़े वैज्ञानिक आगे आएंगे.
बीबीसी संवाददाता रिचर्ड ब्लैक के मुताबिक रिपोर्ट में साफ़ तौर पर यह कहा गया है कि समुद्रों के हालात में किए गए आकलन से कहीं अधिक तेज़ी से गिरावट आ रही है.
कोरल रीफ़ के खात्मे, समुद्री जीवों की दुर्लभ प्रजातियों के शिकार और तेज़ी से पिघलती बर्फ़ ने कई ऐसे खतरे पैदा कर दिए हैं जिनसे समय रहते निपटना ज़रूरी है.
अनुसंधानकर्ताओं के मुताबिक पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले घटकों ने एक तरह से साथ मिलकर इस नुकसान और खतरे को बढ़ा दिया. अनुसंधानकर्ताओं ने माना है कि वैज्ञानिकों को इस घटनाक्रम का अंदाज़ा नहीं था.
बुकमार्क करें:
एक नज़र इधर
 123 
9/11 के बाद गिरफ़्तार बेगुनाह का दर्द.
·         एक माँ का डरसलमा बीबी
बेटा कहीं चरमपंथी न हो जाए.
चीन में बढ़ रहे हैं ईसाई और चर्च भी...
उच्च रक्तचाप से जुड़े जीन वर्गों की खोज
पुरस्कार समारोह में क्यों नहीं गई टीम?
प्यार के जुनून में किए 65,000 फोन-कॉल
सोवियत संघ-ब्रिटेन में ठनी, केली की मौत.
यौन उत्तेजना और आक्रामकता घटी
·         दुख़द सफरदिल्ली
'राजधानी दिल्ली में सफ़र करना दुख़दायी'
झूठ पकड़ने की नई तकनीक.
अंगोला की लीला लोपेज़ को मिला ताज.
इसराइल-फ़लस्तीनियों में समझौता.
9/11 के बाद गिरफ़्तार बेगुनाह का दर्द.
·         एक माँ का डरसलमा बीबी
बेटा कहीं चरमपंथी न हो जाए.
चीन में बढ़ रहे हैं ईसाई और चर्च भी...
उच्च रक्तचाप से जुड़े जीन वर्गों की खोज
पुरस्कार समारोह में क्यों नहीं गई टीम?
प्यार के जुनून में किए 65,000 फोन-कॉल
सोवियत संघ-ब्रिटेन में ठनी, केली की मौत.
यौन उत्तेजना और आक्रामकता घटी
इसी विषय पर अन्य ख़बरें
18 अगस्त, 2010
29 सितंबर, 2010
10 अगस्त, 2009
3 मई, 2011
3 नवंबर, 2009
19 फ़रवरी, 2010
11 जनवरी, 2010
पाठकों की पसंद

  1. सबके सामने क्यों रो पड़े आमिर ख़ान?
  2. दुकान से भागे साँप ने दो बच्चों की जान ली
  3. झीलों का हुस्न
  4. सैनिकों की मौत: पाकिस्तान का आरोपों से इनकार
  5. फेसबुक पर कमेंट के कारण दलित लेखक गिरफ्तार
सुर्ख़ियों में
सेवाएँ

Top of Form
खोजें:
Bottom of Form
bbc.co.uk navigation
बीबीसी लिंक
·          
·          
·          
BBC

No comments:

Post a Comment

_होली खेल है जाने सांवरिया_*.......

 *🌹रा धा स्व आ मी🌹* *_होली खेल है जाने सांवरिया_* *_सतगुरु से सर्व–रंग मिलाई_* फागुन मास रँगीला आया।  घर घर बाजे गाजे लाया।।  यह नरदेही फा...