Sunday, June 29, 2014

नकली दवाओं का जंजाल

प्रस्तुति--दिनेश कुमार सिन्हा / राजेश सिन्हा
पूरी दुनिया में नकली दवाओँ का कारोबार तेजी से बढ़ रहा है. खतरनाक नतीजों के बावजूद यह बड़े मुनाफे का कारोबार है. अंतरराष्ट्रीय सहयोग इसे रोकने की कोशिश में है.
चारकोल से बनी दर्द निवारक दवाएं, जहरीले आर्सेनिक वाली भूख मिटाने की दवा और नपुंसकता का इलाज करने के लिए दवा के नाम पर बेचा जाता सादा पानी. हर साल अंतरराष्ट्रीय अपराध जगत नकली दवाएं बेच कर अरबों रुपये कमा रहा है. यह दवाएं इंटरनेट के जरिये, काउंटर से या फिगर गैर कानूनी तरीके से बेची जाती हैं. आम तौर पर यह दवाएं कोई असर नहीं करतीं लेकिन कई बार घातक होती हैं और जान भी ले सकती हैं. अनुमान है कि केवल अफ्रीका में करीब सात लाख लोग मलेरिया या टीबी की नकली दवा इस्तेमाल करने के कारण मारे जाते हैं.
भारत और जर्मनी समेत दुनिया के तमाम देशों में नकली दवाओं का कारोबार बढ़ रहा है. जर्मन शहर कोलोन में कस्टम्स विभाग की अधिकारी रुथ हालिती कहते हैं, "हर साल तादाद बढ़ रही है." इस साल के पहले छह महीनों में कस्टम विभाग ने 14 लाख नकली दवा की गोलियां, पाउडर और एम्पुल जब्त किए हैं. 2012 की तुलना में यह करीब 15 फीसदी ज्यादा है. हालिती का कहना है कि यह तो कुछ भी नहीं, "वास्तविक संख्या तो इससे बहुत ज्यादा है."
चोरी छिपे ढुलाई
बहुत सी नकली दवाइयां पूर्वी एशियाई देशों से आती हैं. जर्मनी का फ्रैंकफर्ट हवाई अड्डा यूरोप में सामान पहुंचाने का सबसे बड़ा केंद्र है. हर साल हवाई रास्ते से फ्रैंकफर्ट आने वाले करीब 90 टन सामान की तलाशी ली जाती है. सामान को पहले ढुलाई के लिए की गई पैकिंग से पकड़ने की कोशिश होती है. हालिती बताती हैं, "इनकी खास पैकिंग या फिर भेजने वाले की जगह कोई संदिग्ध नाम हो सकता है." अगर कोई पत्र या पार्सल संदिग्ध हो तो फिर इसे छानबीन के लिए लैब में भेजा जाता है जहां इसकी हर सिरे से पूरी जांच की जाती है.
नकली दवाएं अब छोटी मोटी नहीं रही कि कोई कुछ बना कर बेच दे. यह बहुत बड़ा कारोबार बन चुकी है. हालिती तो कहती हैं, "इस तरह का दूसरा अपराध अगर कोई जानकारी में है तो वह नशीली दवाओँ का धंधा ही है." इसकी वजह भी बहुत साफ है. इस धंधे में पैसा बहुत है, वास्तव में नशीली दवाओँ के कारोबार से भी ज्यादा. वियाग्रा जैसी दवा के नकली कारोबार में 25 हजार फीसदी का फायदा होता है. मुनाफे का ये आंकड़ा नकली कोकेन के धंधे से कम से कम 10 गुना ज्यादा है.
अंतरराष्ट्रीय सहयोग
नकली दवा के कारोबारियों के अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क पर नकेल कसने के लिए सरकारें दूसरे देशों के साथ सहयोग कर रही है हैं. इस साल के मध्य में अंतरराष्ट्रीय ढुलाई के मालों की पूरे हफ्ते चेकिंग की गई जिससे कि नकली दवाओं को ढूंढा जा सके. पुलिस ने 10 लाख संदिग्ध दवाइयां पकड़ीं और करीब 200 लोग गिरफ्तार किए गए.
यूरोपीय संघ भी बड़ी सक्रियता से नकली दवाओं के बाजार पर नकेल डालने की कोशिश में है. 2010 में सभी दवाओं की पैकिंग के लिए एक नए दिशानिर्देश बनाए गए जिसके तहत इन पैकेटों पर एक सिक्योरिटी कोड डालना जरूरी कर दिया गया. इसके जरिए हर पैकेट की पहचान की जा सकती है और तुरंत इसे बनाने वाले तक पहुंचा जा सकता है. इस योजना को अभी कुछ फार्मेसियों के साथ मिल कर काम करना है. इनमें ऑनलाइन फार्मेसी भी शामिल हैं.
हालांकि इन दिशानिर्देशों का संदिग्ध वेबसाइटों पर कोई असर होगा यह कहना मुश्किल है और सबसे ज्यादा पैसा वो ही कमा रही हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहा है कि ऑनलाइन बेची जा रही हर दूसरी दवा नकली है.
इन नकली दवाओँ का खतरा सबसे ज्यादा विकासशील देशों में हैं जहां दवाओँ के कारोबार पर नियम कानून का पहरा बहुत मामूली या है ही नहीं. जर्मनी की दवा उद्योग से जुड़े योआखिम ओडेनबाख कहते हैं, "जैसी कानूनी संरचना हमारे यहां है, दवाओं और फार्मेसी के लिए वहां वैसा कुछ भी नहीं है." खास तौर से कम पैसे वाले लोगों का जोखिम और ज्यादा है क्योंकि वे आधिकारिक फार्मेसी की बजाय इधर उधर से दवाएं लेते हैं.
घातक नकली दवाएं
मलेरिया, दिल की बीमारी, ब्लड प्रेशर यहां तक कि एचआईवी के इलाज के लिए भी अवैध रास्ते से दवा खरीदी जा सकती है. कई बार यह दवा असली न हो कर नकली होती है. इसके अलावा इन दवाओं को एक साथ बहुत असुरक्षित तरीके से रखा जाता है. नकली दवा बनाने वाले अपने लैब में बहुत कम ध्यान रखते हैं और लैब के नमूने बताते है कि कई बार इनमें चूहे की लेड़ी जैसी चीजें भी मिली होती हैं. डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 1990 के मध्य में कोई 2500 लोग दिमागी बुखार की वैक्सीन लेने के तुरंत बाद मर गए थे.
रिपोर्टः हाइमो फिशर/एनआर
संपादनः मानसी गोपालकृष्णन

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कॉफी रखती है याददाश्त को दुरुस्त


प्रस्तुति- अखौरी प्रमोद/

स्कूल या कॉलेज की परीक्षा के पहले सारी रात जग कर पढ़ाई करना आम बात है. खुद को जगाए रखने के लिए स्टूडेंट अक्सर बार बार चाय कॉफी पीते हैं. खुशखबरी यह है कि इससे वाकई पाठ याद रहता है.
कॉफी की चुस्कियां लेने के शौकीन अब उसके फायदे भी गिना सकते हैं. अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया है कि कैफीन यादों को हमारे मस्तिष्क में करीब एक दिन तक ताजा रख सकता है. याददाश्त बढ़ाने में कॉफी की भूमिका का अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला था. ऐसा इसलिए क्योंकि परीक्षा के लिए कुछ पढ़ते समय व्यक्ति वैसे ही बहुत आतुर होता है कि चीजों को याद रखे. इससे यह अंतर करना मुश्किल हो जाता है कि व्यक्ति प्राकृतिक रूप से ही इतना सजग है या वह कैफीन का असर है.
कॉफी का असर
इस मिलेजुले असर को समझने के लिए मनोविज्ञान एवं मस्तिष्क विज्ञान पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर माइकल यास्सा ने एक अलग तरीका निकाला. उन्होंने 73 लोगों को बहुत सारी तस्वीरें दिखाईं, जैसे एक पौधा, एक टोकरी, एक सेक्सोफोन या एक समुद्री घोड़ा. बाद में समूह के आधे सदस्यों को उन्होंने 200 मिलीग्राम कॉफी की गोली दी, जो कि दो कप शुद्ध एस्प्रेसो कॉफी के बराबर है.
शरीर में कैफीन के स्तर की जांच के लिए यास्सा ने गोली देने के पहले, तीसरे और चौबीस घंटे के बाद इन लोगों की लार के नमूने लिए. अगले दिन दोनों समूहों को फिर नई तस्वीरें दिखाई गईं. उनमें से कुछ तस्वीरें ऐसी थीं जो पहली बार से मिलती जुलती थीं. उदाहरण के लिए टोकरी की तस्वीर दिखाई गई लेकिन उसमें दो के बजाए एक ही हत्था था. शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों समूहों ने पुरानी और नई तस्वीरें तो ठीक से पहचान लीं लेकिन फर्क तब दिखा जब उस समूह ने मिलती जुलती चीजों को बहुत तेजी से पहचाना जिसने कॉफी पी थी.
अल्जाइमर से बचाव
इस टेस्ट से मस्तिष्क के हिप्पोकैंपस पर कैफीन का असर देखने को मिला. हिप्पोकैंपस दिमाग का वह हिस्सा होता है जो अलग अलग पैटर्नों के बीच में फर्क करता है. इस अंतर को समझने के लिए शॉर्ट टर्म मेमोरी यानि अल्पकालिक याददाश्त और लॉन्ग टर्म मेमोरी यानि दीर्घकालिक याददाश्त दोनों की जरूरत होती है. यास्सा बताते हैं, "अगर हम पहचानने की क्षमता जानने के लिए कोई मानक तरीका अपनाते तो हमें कैफीन का कोई असर नहीं दिखाई देता."
दिमाग में यादों को दर्ज करने की प्रक्रिया जटिल होती है. यास्सा कहते हैं कि इसीलिए उन्होंने ऐसी मिलती जुलती चीजों में फर्क पहचानने का टेस्ट करवाया जिससे दिमाग पर जोर पड़े. यह प्रक्रिया 'पैटर्न सेपरेशन' कहलाती है जिस पर कैफीन का असर देखा गया. 'नेचर न्यूरोसाइंस' नाम के जर्नल में छपा यह शोध मस्तिष्क कोशिकाओं की सेहत के अध्ययन में बहुत मददगार हो सकता है.
कैफीन को लंबी उम्र जीने और अल्जाइमर जैसी याददाश्त से जुड़ी बीमारियों को रोकने में प्रभावकारी माना जाता है. यास्सा कहते हैं, "यह निश्चित रूप से भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण सवाल हैं."
आरआर/आईबी (एएफपी)

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Saturday, June 28, 2014

बांस की साइकिल पर फिलीपींस





प्रस्तुति- अखौरी प्रमोद

फिलीपींस के वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए अब बांस से बनी साइकिलें अहम भूमिका निभाएंगी.
राजधानी मनीला ट्रैफिक जाम और वायु प्रदूषण के लिए बदनाम है. लेकिन बहुत जल्द इस छवि को बदलेंगी यहां इस्तेमाल होने जा रही बांस की साइकिलें.
बांस से तैयार इन साइकिलों का आइडिया 29 साल के मैकक्लीलैंड का है. वह फिलीपीनी अमेरिकी हैं. उनकी कंपनी बैंबाइक्स फिलीपींस में बांस से बाइक तैयार करती है. उन्होंने कंपनी की शुरुआत 2010 में की थी. हाल ही में उन्होंने मनीला में बैंबाइक टुअर का आयोजन किया. मनीला के ऐतिहासिक इंत्रामुरोस इलाके से करीब ढाई घंटे तक बैंबाइकों पर सवार सैलानी गुजरते रहे.
उनकी साइकिलों का ढांचा बांस से तैयार किया गया है. बांस को मनीला के खास पौधे के रेशे से बांधा जाता है. मैकक्लीलैंड मानते हैं कि बांस दुनिया की कुछ सबसे मजबूत चीजों में है और उसमें धातु जैसी ही लोचदार भी होती है.
बाइक टुअर की शुरुआत
मैकक्लीलैंड ने बताया, "वैसे तो इस तरह के साइकिल टुअर दुनिया के बहुत से शहरों में लोकप्रिय हैं. कई शहरों में इनका आयोजन शहर और वहां के पर्यावरण से लोगों के परिचय के लिए भी होता है." उन्हें इंत्रामुरोस मनीला का टुअर शुरू करने का सबसे सही इलाका लगा. यह शहर का सबसे पुराना इलाका है और प्रकृति के नजदीक भी.
मनीला की ही जूलिया नेब्रीजा ने हाल में हुए बैंबाइक टुअर में हिस्सा लिया. उन्होंने बताया, "बांस की बाइकों पर सवार होकर लोग शहर को एक नई तरह से देख सकते हैं. इनसे इंत्रामुरोस में घूमना आसान और मजेदार हो जाता है." वह कहती हैं कि इसके जरिए आप लोगों को दिखा सकते हैं कि इंत्रामुरोस जैसे इलाकों में भी बाइक आसानी से चलाई जा सकती है और इन बाइकों से पर्यावरण को नुकसान भी नहीं पहुंचता.
साफ सुथरे शहर के लिए
इस प्रोजेक्ट के जरिए पर्यटक और खुद मनीला के रहने वाले शहर को प्रदूषण से नुकसान पहुंचाए बगैर शहर में घूम पा रहे है. साथ ही प्रदूषण मुक्त शहर की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं. मैकक्लीलैंड इंत्रामुरोस के अधिकारियों से इस सिलसिले में बात भी कर रहे हैं कि शहर को ज्यादा पैदल चलने वालों और साइकिल वालों के लायक बनाया जाए और पर्यटन के क्षेत्र में भी इन तरीकों को बढ़ावा दिया जाए.
उन्होंने बताया फिलहाल मनीला में साइकिल से चलने वालों के लिए अलग से कोई सड़क या रास्ता नहीं है. सड़कों पर इतनी ज्यादा संख्या में कारें हैं कि ट्रैफिक में फंसने का डर रहता है. वह मानते हैं, "कई फिलीपीनों को तो साइकिल चलाना भी नहीं आता. शायद इसलिए कि ये लोग शहर में पले बढ़े हैं और यहां साइकिल चलाना फिलहाल उतना सुरक्षित नहीं जिससे वे हतोत्साहित हो सकते हैं."
वायु प्रदूषण की चपेट में
एशिया के कुछ सबसे प्रदूषित इलाकों में मनीला भी शुमार है. पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधन मंत्रालय के अनुसार मनीला में 70 फीसदी प्रदूषण वाहनों के कारण होता है. शहर को बेहतर विकल्प की जल्द से जल्द जरूरत है.
एशियाई विकास बैंक में काम करने वाले अर्थशास्त्री को साकामोतो कहते हैं, "मनीला जैसे शहर को टिकाऊ यातायात में निवेश करके बहुत फायदा हो सकता है. खास कर दो क्षेत्रों में- सार्वजनिक परिवहन और पैदल चलने वालों और साइकिल सवारों के लिए नए रास्ते तैयार करके."
देश के सामने एक बड़ी चुनौती है मोटर गाड़ियों की संख्या में हर साल हो रही भारी वृद्धि. एशिया के दूसरे देशों की तरह फिलीपींस भी इस समस्या से जूझ रहा है. साकामोतो कहते हैं कि एशियाई देशों में हर चार से सात साल में सड़कों पर दौड़ रही गाड़ियों की संख्या दोगुनी हो रही है.
सरकारी कदम
प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार भी अपनी तरफ से कदम उठा रही है. ज्यादा से ज्यादा हाइब्रिड बसें सड़कों पर लाने के प्रोजेक्ट पर काम चल रहा है. इनके साथ डीजल इंजन और इलेक्ट्रिक मोटर के इस्तेमाल को प्रोत्साहित किया जा रहा है. ये बसें 30 फीसदी कम ईंधन इस्तेमाल करती हैं और कार्बन डायॉक्साइड का भी 30 फीसदी कम उत्सर्जन करती हैं. फिलहाल 249 हाइब्रिड बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं. इस साल के अंत तक 300 और बसों के आने की योजना है.
रिपोर्टः आया लोवे/एसएफ
संपादनः ए जमाल

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