Sunday, June 29, 2014

कॉफी रखती है याददाश्त को दुरुस्त


प्रस्तुति- अखौरी प्रमोद/

स्कूल या कॉलेज की परीक्षा के पहले सारी रात जग कर पढ़ाई करना आम बात है. खुद को जगाए रखने के लिए स्टूडेंट अक्सर बार बार चाय कॉफी पीते हैं. खुशखबरी यह है कि इससे वाकई पाठ याद रहता है.
कॉफी की चुस्कियां लेने के शौकीन अब उसके फायदे भी गिना सकते हैं. अमेरिका की जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने पाया है कि कैफीन यादों को हमारे मस्तिष्क में करीब एक दिन तक ताजा रख सकता है. याददाश्त बढ़ाने में कॉफी की भूमिका का अब तक कोई प्रमाण नहीं मिला था. ऐसा इसलिए क्योंकि परीक्षा के लिए कुछ पढ़ते समय व्यक्ति वैसे ही बहुत आतुर होता है कि चीजों को याद रखे. इससे यह अंतर करना मुश्किल हो जाता है कि व्यक्ति प्राकृतिक रूप से ही इतना सजग है या वह कैफीन का असर है.
कॉफी का असर
इस मिलेजुले असर को समझने के लिए मनोविज्ञान एवं मस्तिष्क विज्ञान पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर माइकल यास्सा ने एक अलग तरीका निकाला. उन्होंने 73 लोगों को बहुत सारी तस्वीरें दिखाईं, जैसे एक पौधा, एक टोकरी, एक सेक्सोफोन या एक समुद्री घोड़ा. बाद में समूह के आधे सदस्यों को उन्होंने 200 मिलीग्राम कॉफी की गोली दी, जो कि दो कप शुद्ध एस्प्रेसो कॉफी के बराबर है.
शरीर में कैफीन के स्तर की जांच के लिए यास्सा ने गोली देने के पहले, तीसरे और चौबीस घंटे के बाद इन लोगों की लार के नमूने लिए. अगले दिन दोनों समूहों को फिर नई तस्वीरें दिखाई गईं. उनमें से कुछ तस्वीरें ऐसी थीं जो पहली बार से मिलती जुलती थीं. उदाहरण के लिए टोकरी की तस्वीर दिखाई गई लेकिन उसमें दो के बजाए एक ही हत्था था. शोधकर्ताओं ने पाया कि दोनों समूहों ने पुरानी और नई तस्वीरें तो ठीक से पहचान लीं लेकिन फर्क तब दिखा जब उस समूह ने मिलती जुलती चीजों को बहुत तेजी से पहचाना जिसने कॉफी पी थी.
अल्जाइमर से बचाव
इस टेस्ट से मस्तिष्क के हिप्पोकैंपस पर कैफीन का असर देखने को मिला. हिप्पोकैंपस दिमाग का वह हिस्सा होता है जो अलग अलग पैटर्नों के बीच में फर्क करता है. इस अंतर को समझने के लिए शॉर्ट टर्म मेमोरी यानि अल्पकालिक याददाश्त और लॉन्ग टर्म मेमोरी यानि दीर्घकालिक याददाश्त दोनों की जरूरत होती है. यास्सा बताते हैं, "अगर हम पहचानने की क्षमता जानने के लिए कोई मानक तरीका अपनाते तो हमें कैफीन का कोई असर नहीं दिखाई देता."
दिमाग में यादों को दर्ज करने की प्रक्रिया जटिल होती है. यास्सा कहते हैं कि इसीलिए उन्होंने ऐसी मिलती जुलती चीजों में फर्क पहचानने का टेस्ट करवाया जिससे दिमाग पर जोर पड़े. यह प्रक्रिया 'पैटर्न सेपरेशन' कहलाती है जिस पर कैफीन का असर देखा गया. 'नेचर न्यूरोसाइंस' नाम के जर्नल में छपा यह शोध मस्तिष्क कोशिकाओं की सेहत के अध्ययन में बहुत मददगार हो सकता है.
कैफीन को लंबी उम्र जीने और अल्जाइमर जैसी याददाश्त से जुड़ी बीमारियों को रोकने में प्रभावकारी माना जाता है. यास्सा कहते हैं, "यह निश्चित रूप से भविष्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण सवाल हैं."
आरआर/आईबी (एएफपी)

DW.DE

संबंधित सामग्री

No comments:

Post a Comment

पूज्य हुज़ूर का निर्देश

  कल 8-1-22 की शाम को खेतों के बाद जब Gracious Huzur, गाड़ी में बैठ कर performance statistics देख रहे थे, तो फरमाया कि maximum attendance सा...