Saturday, May 23, 2015

प्राणायाम क्या है , और क्या होता है इससे लाभ

 

 

 

 प्रस्तुति--  उषा रानी, राजेन्द्र प्रसाद सिन्हा

 

 

प्राणायाम दो शब्दों के योग से बना है-(प्राण+आयाम) पहला शब्द "प्राण" है दूसरा "आयाम"। प्राण का अर्थ जो हमें शक्ति देता है या बल देता है। आयाम का अर्थ जानने के लिये इसका संधि विच्छेद करना होगा क्योंकि यह दो शब्दों के योग (आ+याम) से बना है। इसमें मूल शब्द '"याम" ' है 'आ' उपसर्ग लगा है। याम का अर्थ 'गमन होता है और '"आ" ' उपसर्ग 'उलटा ' के अर्थ में प्रयोग किया गया है अर्थात आयाम का अर्थ उलटा गमन होता है। अतः प्राणायाम में आयाम को 'उलटा गमन के अर्थ में प्रयोग किया गया है। इस प्रकार प्राणायाम का अर्थ 'प्राण का उलटा गमन होता है। यहाँ यह ध्यान देने कि बात है कि प्राणायाम प्राण के उलटा गमन के विशेष क्रिया की संज्ञा है न कि उसका परिणाम। अर्थात प्राणायाम शब्द से प्राण के विशेष क्रिया का बोध होना चाहिये। प्राणायाम के बारे में बहुत से ऋषियों ने अपने-अपने ढंग से कहा है लेकिन सभी के भाव एक ही है जैसे पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र एवं गीता में जिसमें पतन्जलि का प्राणायाम सूत्र महत्वपूर्ण माना जाता है जो इस प्रकार है- तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ इसका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार होगा- श्वास प्रश्वास के गति को अलग करना प्राणायाम है। इस सूत्र के अनुसार प्राणायाम करने के लिये सबसे पहले सूत्र की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये लेकिन पतंजलि के प्राणायाम सूत्र की व्याख्या करने से पहले हमे इस बात का ध्यान देना चाहिये कि पतंजलि ने योग की क्रियाओं एवं उपायें को योगसूत्र नामक पुस्तक में सूत्र रूप से संकलित किया है और सूत्र का अर्थ ही होता है -एक निश्चित नियम जो गणितीय एवं विज्ञान सम्मत हो। यदि सूत्र की सही व्याख्या नहीं हुई तो उत्तर सत्य से दूर एवं परिणाम शून्य होगा। यदि पतंजलि के प्राणायाम सूत्र के अनुसार प्राणायाम करना है तो सबसे पहले उनके प्राणायाम सूत्र तस्मिन सति श्वासप्रश्वासयोर्गतिविच्छेद:प्राणायाम॥ की सम्यक व्याख्या होनी चाहिये जो शास्त्रानुसार, विज्ञान सम्मत, तार्किक, एवं गणितीय हो। इसी व्याख्या के अनुसार क्रिया करना होगा। इसके लिये सूत्र में प्रयुक्त शब्दों का अर्थबोध होना चाहिये तथा उसमें दी गयी गति विच्छेद की विशेष युक्ति को जानना होगा। इसके लिये पतंजलि के प्राणायाम सूत्र मे प्रयुक्त शब्दो का अर्थ बोध होना चाहिये।

प्राणायाम प्राण याने साँस आयाम याने दो साँसो मे दूरी बढ़ाना, श्‍वास और नि:श्‍वास की गति को नियंत्रण कर रोकने व निकालने की क्रिया को कहा जाता है।
श्वास को धीमी गति से गहरी खींचकर रोकना व बाहर निकालना प्राणायाम के क्रम में आता है। श्वास खींचने के साथ भावना करें कि प्राण शक्ति, श्रेष्ठता श्वास के द्वारा अंदर खींची जा रही है, छोड़ते समय यह भावना करें कि हमारे दुर्गुण, दुष्प्रवृत्तियाँ, बुरे विचार प्रश्वास के साथ बाहर निकल रहे हैं। हम साँस लेते है तो सिर्फ़ हवा नही खीचते तो उसके साथ ब्रह्मान्ड की सारी उर्जा को उसमे खींचते है। अब आपको लगेगा की सिर्फ़ साँस खीचने से ऐसा कैसा होगा। हम जो साँस फेफडो मे खीचते है, वो सिर्फ़ साँस नही रहती उसमे सारे ब्रम्हन्ड की सारी उर्जा समायी रहती है। मान लो जो साँस आपके पूरे शरीर को चलाना जनती है, वो आपके शरीर को दुरुस्त करने की भी ताकत रखती है। प्राणायाम निम्न मंत्र (गायत्री महामंत्र) के उच्चारण के साथ किया जाना चाहिये।
ॐ भूः भुवः ॐ स्वः ॐ महः, ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम्।
ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
ॐ आपोज्योतीरसोऽमृतं, ब्रह्म भूर्भुवः स्वः ॐ।

अनुक्रम

महत्व

प्राणायाम का योग में बहुत महत्व है।

सावधानियाँ

  • सबसे पहले तीन बातों की आवश्यकता है, विश्वास, सत्यभावना, दृढ़ता।
  • प्राणायाम करने से पहले हमारा शरीर अन्दर से और बाहर से शुद्ध होना चाहिए।
  • बैठने के लिए नीचे अर्थात भूमि पर आसन बिछाना चाहिए।
  • बैठते समय हमारी रीढ़ की हड्डियाँ एक पंक्ति में अर्थात सीधी होनी चाहिए।
  • सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन किसी भी आसन में बैठें, मगर जिसमें आप अधिक देर बैठ सकते हैं, उसी आसन में बैठें।
  • प्राणायाम करते समय हमारे हाथों को ज्ञान या किसी अन्य मुद्रा में होनी चाहिए।
  • प्राणायाम करते समय हमारे शरीर में कहीं भी किसी प्रकार का तनाव नहीं होना चाहिए, यदि तनाव में प्राणायाम करेंगे तो उसका लाभ नहीं मिलेगा।
  • प्राणायाम करते समय अपनी शक्ति का अतिक्रमण ना करें।
  • ह्‍र साँस का आना जाना बिलकुल आराम से होना चाहिए।
  • जिन लोगो को उच्च रक्त-चाप की शिकायत है, उन्हें अपना रक्त-चाप साधारण होने के बाद धीमी गति से प्राणायाम करना चाहिये।
  • यदि आँप्रेशन हुआ हो तो, छः महीने बाद ही प्राणायाम का धीरे धीरे अभ्यास करें।
  • हर साँस के आने जाने के साथ मन ही मन में ओम् का जाप करने से आपको आध्यात्मिक एवं शारीरिक लाभ मिलेगा और प्राणायाम का लाभ दुगुना होगा।
  • साँसे लेते समय किसी एक चक्र पर ध्यान केंन्द्रित होना चाहिये नहीं तो मन कहीं भटक जायेगा, क्योंकि मन बहुत चंचल होता है।
  • साँसे लेते समय मन ही मन भगवान से प्रार्थना करनी है कि "हमारे शरीर के सारे रोग शरीर से बाहर निकाल दें और हमारे शरीर में सारे ब्रह्मांड की सारी ऊर्जा, ओज, तेजस्विता हमारे शरीर में डाल दें"।
  • ऐसा नहीं है कि केवल बीमार लोगों को ही प्राणायाम करना चाहिए, यदि बीमार नहीं भी हैं तो सदा निरोगी रहने की प्रार्थना के साथ प्राणायाम करें।

भस्त्रिका प्राणायाम

सुखासन सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। नाक से लंबी साँस फेफडो मे ही भरे, फिर लंबी साँस फेफडो से ही छोडें| साँस लेते और छोडते समय एकसा दबाव बना रहे| हमें हमारी गलतीयाँ सुधारनी है, एक तो हम पुरी साँस नही लेते; और दुसरा हमारी साँस पेट में चाली जाती है| देखिये हमारे शरीर में दो रास्ते है, एक (नाक, श्वसन नलिका, फेफडे) और दूसरा (मुँह्, अन्ननलिका, पेट्)| जैसे फेफडोमें हवा शुद्ध करने की प्रणली है, वैसे पेट में नही है| उसीके का‍रण हमारे शरीर में आँक्सीजन की कमी मेहसूस होती है| और उसेके कारण हमारे शरीर में रोग जडते है| उसी गलती को हमें सुधारना है|जैसे की कुछ पाने की खुशि होति है, वैसे हि खुशि हमे प्राणायाम करते समय होनि चाहिये|और क्यो न हो सारि जिन्दगि का स्वास्थ आपको मील रहा है| आप के पन्चविध प्राण सशक्त हो रहे है, हमारे शरीर की सभि प्रणालिया सशक्त हो रही है|

लाभ

  • हमारा हृदय सशक्त बनाने के लिये है|
  • हमारे फेफडों को सशक्त बनाने के लिये है|
  • मस्तिष्क से सम्बंधित सभी व्याधिओं को मिटा ने के लिये भी यह लाभदायक है |
  • पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादि स्नायुओं से सम्बंधित सभी व्यधिओं को मिटाने के लिये |
  • भगवान से नाता जोडने के लिये|

कपालभाति प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और साँस को बाहर फेंकते समय पेट को अन्दर की तरफ धक्का देना है, इस में सिर्फ् साँस को छोडते रेहना है| दो साँसो के बीच अपने आप साँस अन्दर चली जायेगी जान-बुजके साँस को अन्दर नही लेना है| कपाल केहते है मस्तिषक के अग्र भाग को, भाती केहते है ज्योति को, कान्ति को, तेज को; कपालभाती प्राणायाम करने लगतार करने से चहरे का लावण्य बढाता है| कपालभाती प्राणायाम धरती की सन्जीवनि कहलाता है| कपालभाती प्राणायाम करते समय मुलाधार चक्र पे ध्याने केन्द्रीत करना है| इससे मुलाधार चक्र जाग्रुत हो के कुन्ड्लीनि शक्ति जग्रुत हो ने मे मदत होती है| कपालभाती प्राणायाम करते समय ऐसा सोचना है की, हमारे शरीर के सारे नीगेटीव्ह तत्व शरीर से बहर जा रहे है| खाना मीले ना मीले मगर रोज कमसे कम ५ मीनि कपालभाती प्राणायाम करना ही है, यह द्रिढ संक्लप करना है|

लाभ

  • बालो की सारी समस्याओँ का समाधान प्राप्त होता है|
  • चेहरे की झुरीयाँ, आखो के निचे के डार्क सर्कल मिट जयेंगे|
  • थायराँइड की समस्या मिट जाती है|
  • सभी प्रकारके चर्म समस्या मिट जाती है|
  • आखो की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है, और आखो की रोशनी लौट आती है|
  • दातों की सभी प्रकारकी समस्या मिट जाती है और दातों की खतरनाक पायरीया जैसी बीमारी भी ठीक हो जाती है|
  • कपालभाती प्राणायाम से शरीर की बढी चर्बी घटती है, यह इस प्राणायाम का सबसे बडा फायदा है|
  • कब्ज, सीडिटी, गँस्टीक जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • युट्रस (महीलाओ) की सभी समस्याओँ का समाधान होता है|
  • डायबिटीस संपूर्णतया ठीक होता है|
  • कोलेस्ट्रोल को घटाने में भी सहायक है|
  • सभी प्रकार की अँलार्जीयाँ मिट जाती है|
  • सबसे खतरनाक कँन्सर रोग तक ठीक हो जाता है।
  • शरीर में स्वतः हिमोग्लोबिन तैयार होता है|
  • शरीर मे स्वतः कँल्शीयम तैयार होता है|
  • किडनी स्वतः स्वच्छ होती है, डायलेसिस करने की जरुरत नहीं पडती|

बाह्य प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। साँस को पूरी तरह बाहर निकालने के बाद साँस बाहर ही रोके रखने के बाद तीन बन्ध लगाते है|
१) जालंधर बन्ध :- गले को पूरा सिकुड के ठोडी को छाती से सटा कर रखना है |
२) उड़ड्यान बन्ध :- पेट को पूरी तरह अन्दर पीठ की तरफ खीचना है|
३) मूल बन्ध :- हमारी मल विसर्जन करने की जगह को पूरी तरह ऊपर की तरफ खींचना है|

लाभ्

  • कब्ज, अँसीडीटी, गँसस्टीक, जैसी पेट की सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • हर्निया पूरी तरह ठीक हो जाता है|
  • धातु, और पेशाब से संबंधित सभी समस्याएँ मिट जाती हैं |
  • मन की एकाग्रता बढती है|
  • व्यंधत्व (संतान हीनता) से छुट्कारा मिलने में भी सहायक है।

अनुलोम-विलोम प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाँया नथुना बंद करें व बाये से लंबी साँस लें, फिर बाये को बंद करके, दाँया वाले से लंबी साँस छोडें...अब दाँया से लंबी साँस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाँया-दाँया बाँया-बाँया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे साँस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है| बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और बायी नाडी को सुर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है| चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सुर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है। थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है| इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है|
सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। शुरुवात और अन्त भी हमेशा बाये नथुने (नोस्टील) से ही करनी है, नाक का दाँया नथुना बंद करें व बाये से लंबी साँस लें, फिर बाये को बंद करके, दाँया वाले से लंबी साँस छोडें...अब दाँया से लंबी साँस लें व बाये वाले से छोडें...याने यह दाँया-दाँया बाँया-बाँया यह क्रम रखना, यह प्रक्रिया १०-१५ मिनट तक दुहराएं| सास लेते समय अपना ध्यान दोनो आँखो के बीच मे स्थित आज्ञा चक्र पर ध्यान एकत्रित करना चाहिए| और मन ही मन मे साँस लेते समय ओउम-ओउम का जाप करते रहना चाहिए|हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है| बायी नाडी को चन्द्र (इडा, गन्गा) नाडी, और दायी नाडी को सुर्य (पीन्गला, यमुना) नाडी केहते है| चन्द्र नाडी से थण्डी हवा अन्दर जती है और सुर्य नाडी से गरम नाडी हवा अन्दर जती है|थण्डी और गरम हवा के उपयोग से हमारे शरीर का तापमान संतुलित रेहता है| इससे हमारी रोग-प्रतिकारक शक्ती बढ जाती है|

लाभ

  • हमारे शरीर की ७२,७२,१०,२१० सुक्ष्मादी सुक्ष्म नाडी शुद्ध हो जाती है|
  • हार्ट की ब्लाँकेज खुल जाते है|
  • हाय, लो दोन्हो रक्त चाप ठिक हो जायेंगे|
  • आर्थराटीस, रोमेटोर आर्थराटीस, कार्टीलेज घीसना ऐसी बीमारीओंको ठीक हो जाती है|
  • टेढे लीगामेंटस सीधे हो जायेंगे|
  • व्हेरीकोज व्हेनस ठीक हो जाती है|
  • कोलेस्टाँल, टाँक्सीनस, आँस्कीडण्टस इसके जैसे विजतीय पदार्थ शरीर के बहार नीकल जाते है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • कीडनी नँचरली स्वछ होती है, डायलेसीस करने की जरुरत नही पडती|
  • सबसे बडा खतरनाक कँन्सर तक ठीक हो जाता है|
  • सभी प्रकारकी अँलार्जीयाँ मीट जाती है|
  • मेमरी बढाने की लीये|
  • सर्दी, खाँसी, नाक, गला ठीक हो जाता है|
  • ब्रेन ट्युमर भी ठीक हो जाता है|
  • सभी प्रकार के चर्म समस्या मीट जाती है|
  • मस्तिषक के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  • पर्किनसन, प्यारालेसिस, लुलापन इत्यादी स्नयुओ के सम्बधित सभि व्याधिओको मीटा ने के लिये|
  • सायनस की व्याधि मीट जाती है|
  • डायबीटीस पुरी तरह मीट जाती है|
  • टाँन्सीलस की व्याधि मीट जाती है|

भ्रामरी प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। दोनो अंगुठे से कान पुरी तरह बन्द करके, दो उंगली को माथे पे रख के, छः उंगलीया दोनो आँखो पर रख दे| और लंबी सास लेके कण्ठ से भवरें जैसा (म……) आवाज निकालना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन, ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये|
  • मन और मस्तिषक की शांती मीलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये|
  • मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये|
महोदय, मैने पिछले पांच वर्षो के निरंतर अभ्यास के बाद यह निष्कर्ष निकला है की :- अनुलोम विलोम प्राणायाम में साँस लेने की शुरुआत यदि दायीं नासिका से करते हुए अंत में दाई नासिका से साँस छोड़ा जाये तो मन में क्रोध तथा चिडचिडापन रहता है! तथा इसके विपरीत यदि साँस लेने की शुरुआत बायीं नासिका से करते हुए अंत में बायीं नासिका से ही साँस छोड़ा जाता है तो मन शांत रहता है !

उद्गीथ प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और लंबी सास लेके मुँह से ओउम का जाप करना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन, ऑर मस्तिषक के सम्बधित सभि व्यधिओको मीटा ने के लिये|
  • मन और मस्तिषक की शांती मीलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लीये|
  • मन और मस्तिषक की एकाग्रता बढाने के लिये|

प्रणव प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। और मन ही मन मे एकदम शान्त बैठ के लंबी सास लेके ओउम का जाप करना है|

लाभ

  • पॉझीटीव्ह एनर्जी तैयार करता है|
  • सायकीक पेंशनट्स को फायदा होता है|
  • मायग्रेन पेन, डीप्रेशन और मस्तिषक के सम्बधित सभी व्यधिओको मिटाने के लिये|
  • मन और मस्तिष्क की शांति मिलती है|
  • ब्रम्हानंद की प्राप्ती करने के लिये|
  • मन और मस्तिष्क की एकाग्रता बढाने के लिये|

अग्नीसार क्रिया

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। यह क्रिया मे कपालभाती प्राणायाम जैसा नही है बार बार साँस बाहर नही करनी है | सास को पुरी तरह बाहर नीकल के बाद बाहर ही रोक के पेट को आगे पीछे करना है |

लाभ

  • कब्ज, अँसीडीटी, गँसस्टीक, जैसी पेट सभी समस्या मिट जाती है|
  • हर्निया पुरी तरह मिट जाता है|
  • धातु, और पेशाब के संबंधीत सभी समस्या मिट जाता है|
  • मन की एकाग्रता बढेगी|
  • व्यंधत्व से छुट्कार मिल जायेगा|

विशेष प्राणायाम

उज्जायी प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। सीकुडे हुवे गले से सास को अन्दर लेना है|

लाभ

  • थायराँइड की शिकायत से आराम मिलता है|
  • तुतलाना, हकलाना, ये शिकायत भी दूर होती है|
  • अनिद्रा, मानसिक तनाव भी कम करता है|
  • टी•बी•(क्षय) को मिटाने मे मदद होती है|
  • गुंगे बच्चे भी बोलने लगेंगे|

सीत्कारी प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। जीव्हा टालु को लगाके दोनो जबडे बन्द करके लेना और उस छोटी सी जगह से सीऽऽ सीऽऽ करत॓ हुए हवा को अन्दर खिचना है | और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे| जैसे ए• सी• के फिन्स होते है, उससे ए• सी• के काँम्प्रेसर पर कम दबाव आता है और गरम हवा बाहर फेकने से हमरी कक्षा की हवा ठंडी हो जाती है | वैसे ही हमे हमारे शरीर की अतिरीक्त गर्मी कम कर सकते है|

लाभ

  • शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
  • ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
  • शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|

शितली प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है|और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे|

लाभ

  • शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
  • ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
  • पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
  • शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|

सुय॔भेदी प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है|और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे| लाभ
* शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
   * ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
   * पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
   * शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|

चंदभेदी प्राणायाम

सुखासन, सिद्धासन, पद्मासन, वज्रासन में बैठें। हमारे मुँह का " ० " आकार करके उससे जीव्हा को बाहर निकालना, हमरी जीव्हा भी " ० " आकार की हो जायेगी, उसी भाग से हवा अन्दर खीचनी है|और मुँह बन्द करके से साँस को नाक से बाहर छोड दे| लाभ
* शरीर की अतीरिक्त गरमी को कम करने के लिये|
   * ज्यादा पसीना आने की शीकायत से आराम मीलता है|
   * पेट की गर्मी और जलन को कम करने के लिये|
   * शरीर पर कहा भी आयी हुँवी फोडी को मीटाने की लीये|
इसके अलावा भी योग में अनेक प्रकार के प्राणायामों का वर्णन मिलता है जैसे-
1.अनुलोम-विलोम प्राणायाम 2.अग्नि प्रदीप्त प्राणायाम 3.अग्नि प्रसारण प्राणायाम 4.एकांड स्तम्भ प्राणायाम 5.सीत्कारी प्राणायाम 6.सर्वद्वारबद्व प्राणायाम 7.सर्वांग स्तम्भ प्राणायाम 8.सम्त व्याहृति प्राणायाम 9.चतुर्मुखी प्राणायाम, 10.प्रच्छर्दन प्राणायाम 11.चन्द्रभेदन प्राणायाम 12.यन्त्रगमन प्राणायाम 13.वामरेचन प्राणायाम 14.दक्षिण रेचन प्राणायाम 15.शक्ति प्रयोग प्राणायाम 16.त्रिबन्धरेचक प्राणायाम 17.कपाल भाति प्राणायाम 18.हृदय स्तम्भ प्राणायाम 19.मध्य रेचन प्राणायाम 20.त्रिबन्ध कुम्भक प्राणायाम 21.ऊर्ध्वमुख भस्त्रिका प्राणायाम 22.मुखपूरक कुम्भक प्राणायाम 23.वायुवीय कुम्भक प्राणायाम 24.वक्षस्थल रेचन प्राणायाम 25.दीर्घ श्वास-प्रश्वास प्राणायाम 26.प्राह्याभ्न्वर कुम्भक प्राणायाम 27.षन्मुखी रेचन प्राणायाम 28.कण्ठ वातउदा पूरक प्राणायाम 29.सुख प्रसारण पूरक कुम्भक प्राणायाम 30.नाड़ी शोधन प्राणायाम व नाड़ी अवरोध प्राणायाम

बाहरी कड़ियाँ

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